महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-079
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अर्जुनेन मणलूरपुरं प्रति गमनम्।। 1 ।। तथा पितृभक्त्या विनयेनागतं चित्राङ्गदायां जातं स्वात्मजं बभ्रुवाहनंप्रति क्षत्रधर्मपरित्यागजरोषादुपालम्भः।। 2 ।। तमसहमानया उलूप्या नागलोकादेत्य बभ्रुवाहनस्यार्जुनेन सह युद्धप्रोत्साहनम्।। 3 ।। बभ्रुवाहनेन स्वशरागाढाभिधातेन निपतिते पार्थे पितृमारणशोकेन मोहाधिगमः।। 4 ।। ततश्चित्राङ्गदया रणाङ्गणमेत्य बहुधा विलापः।। 5 ।।
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वैशम्पायन उवाच। | 14-79-1x |
श्रुत्वा तु नृपतिः प्राप्तं पितरं बभ्रुवाहनः। निर्ययौ विनयेनाथ ब्राह्मणार्यपुरःसरः।। | 14-79-1a 14-79-1b |
मणलूरेश्वरं त्वेवमुपयातं धनंजयः। नाभ्यनन्दत्स मेधावी क्षत्रधर्ममनुस्मरन्।। | 14-79-2a 14-79-2b |
उवाच च स धर्मात्मा समन्युः फल्गुनस्तदा। प्रक्रियेयं न ते युक्ता बहिस्त्वं क्षत्रधर्मतः।। | 14-79-3a 14-79-3b |
संरक्ष्यमाणं तुरगं यौधिष्ठिरमुपागतम्। यज्ञियं विषयान्ते मां नायोत्सीः किंनु पुत्रक।। | 14-79-4a 14-79-4b |
धिक्त्वामस्तु सुदुर्बुद्धिं क्षत्रधर्माविशारदम्। यो मां युद्धाय सम्प्राप्तं साम्नैव प्रत्यगृह्णथाः।। | 14-79-5a 14-79-5b |
न त्वया पुरुषार्थो हि कश्चिदस्तीह जीवता। यस्त्वं स्त्रीवद्युधा प्राप्तं मां साम्ना प्रत्यगृह्णथाः।। | 14-79-6a 14-79-6b |
यद्यहं न्यस्तशस्त्रस्त्वामागच्छेयं सुदुर्मते। प्रक्रियेयं भवेद्युक्ता तावतव नराधम।। | 14-79-7a 14-79-7b |
तमेवमुक्तं भर्त्रा तु विदित्वा पन्नगात्मजा। अमृष्यमाणा भित्त्वोर्वीमुलूपी समुपागमत्।। | 14-79-8a 14-79-8b |
सा ददर्श तत पुत्रं विमृशन्तमधोमुखम्। संतर्ज्यमानमसकृत्पित्रा युद्धार्थिना विभो।। | 14-79-9a 14-79-9b |
ततः सा चारुसर्वाङ्गी समुपेत्योरगात्मजा। उलूपी प्राह वचनं क्षत्रधर्मविशारद।। | 14-79-10a 14-79-10b |
उलूपीं मां निबोध त्वं मातरं पन्नगात्मजाम्। कुरुष्व वचनं पुत्र धर्मस्ते भविता परः।। | 14-79-11a 14-79-11b |
युध्यस्वैनं कुरुश्रेष्ठं धनंजयमरिन्दमम्।। एवमेष हि ते प्रीतो भविष्यति न संशयः।। | 14-79-12a 14-79-12b |
एवमुद्धार्षितो राजा स मात्रा बभ्रुवाहनः। मनश्चक्रे महातेजा युद्धाय भरतर्षभ।। | 14-79-13a 14-79-13b |
सन्नह्य काञ्चनं वर्म शिरस्त्राणं च भानुमत्। तूणीरशतसंबाधमारुरोह रथोत्तमम्।। | 14-79-14a 14-79-14b |
सर्वोपकरणोपेतं युक्तमश्वैर्मनोजवैः। सचक्रोपस्करं श्रीमान्हेमभाण्डपरिष्कृतम्।। | 14-79-15a 14-79-15b |
परमार्चितमुच्छ्रित्य ध्वजं हंसं हिरण्मयम्। प्रययौ पार्थमुद्दिश्य स राजा बभ्रुवाहनः।। | 14-79-16a 14-79-16b |
ततोऽभ्योत्य हयं वीरो यज्ञियं पार्थरक्षितम्। ग्राहयामास पुरुषैर्हयशिक्षाविशारदैः।। | 14-79-17a 14-79-17b |
गृहीतं वाजिनं दृष्ट्वा प्रीतात्मा स धनंजयः। पुत्रं रथस्थं भूमिष्ठः संन्यवारयदाहवे।। | 14-79-18a 14-79-18b |
स तत्र राजा तं वीरं शरसङ्घैरनेकशः। अर्दयामास निशितैराशीविषविषोपमैः।। | 14-79-19a 14-79-19b |
तयोः समभवद्युद्धं पितुः पुत्रस्यक चातुलम्। देवासुररणप्रख्यमुभयोः प्रीयमाणयोः।। | 14-79-20a 14-79-20b |
किरीटिनं प्रविव्याघ शरेणानतपर्वणा। जत्रुदेशे नरव्याघ्रं प्रहसन्बभ्रुवाहनः।। | 14-79-21a 14-79-21b |
सोभ्यगात्सहपुङ्खेन वल्मीकमिव पन्नगः। विनिर्भद्य च कौन्तेयं प्रविवेशि महीतलम्।। | 14-79-22a 14-79-22b |
स गाढवेदनो धीमानालम्ब्य धनुरुत्तमम्। दिव्यं तेजः समाविश्य प्रमीत इव सोभवत्।। | 14-79-23a 14-79-23b |
स संज्ञामुपलभ्याथ प्रशस्य पुरुषर्षभः। पुत्रं शक्रात्मजो वाक्यमिदमाह महाद्युतिः।। | 14-79-24a 14-79-24b |
साधुसाधु महाबाहो वत्स चित्राङ्गदात्मज। सदृशं कर्म ते दृष्ट्वा प्रीतिमानस्मि पुत्रक।। | 14-79-25a 14-79-25b |
विमुञ्चाम्येष ते बाणान्पुत्र युद्धे स्थिरो भव। इत्येवमुक्त्वा नाराचैरभ्यवर्षदमित्रहा।। | 14-79-26a 14-79-26b |
तान्स गाण्डीवनिर्मुक्तान्वज्राशनिसमप्रभान्। नाराचानच्छिनद्राज भल्लैः सर्वांस्त्रिधा द्विधा।। | 14-79-27a 14-79-27b |
तस्य पार्थः शरैर्दिव्यैर्ध्वजं हेमपरिष्कृतम्। सुवर्णतालप्रतिमं क्षुरेणापाहरद्रथात्।। | 14-79-28a 14-79-28b |
हयांश्चास्य महाकायान्महावेगानरिंदम। चकार राजन्निर्जावान्प्रहसन्निव पाण्डवः।। | 14-79-29a 14-79-29b |
स रथादवतीर्याथ राजा परमकोपनः। पदातिः पितरं क्रुद्धो योधयामास पाण्डवम्।। | 14-79-30a 14-79-30b |
सम्प्रीयमाणः पार्थानामृषभः पुत्रविक्रमात्। नात्यर्थं पीडयामास पुत्रं वज्रधरात्मजः।। | 14-79-31a 14-79-31b |
स हन्यमानोऽभिमुखं पितरं बभ्रुवाहनः। शरैराशीविषाकारैः पुनरेवार्दयद्बली।। | 14-79-32a 14-79-32b |
ततः स बाल्यात्पितरं विव्याध हृदि पत्रिणा। निशेतेन सुपुङ्खेन बलवद्बभ्रुवाहनः।। | 14-79-33a 14-79-33b |
स बाणस्तेजसा दीप्तो ज्वलन्निव हुताशनः। विवेश पाण्डवं राजन्मर्म भित्त्वाऽतिदुःखकृत्।। | 14-79-34a 14-79-34b |
स तेनातिभृशं विद्धः पुत्रेण कुरुनन्दनः। महीं जगाम मोहार्तस्ततो राजन्धनंजयः।। | 14-79-35a 14-79-35b |
तस्मिन्निपतिते वीरे कौरवाणां धुरंधरे। सोपि मोहं जगामाथ ततश्चित्राङ्गदासुतः।ष | 14-79-36a 14-79-36b |
व्यायम्य संयुगे राजा दृष्ट्वा च पितरं हतम्। पूर्वमेव स बाणौर्घर्गाढविद्धोऽर्जुनेन ह। पपात सोपि धरणीमालिङ्ग्य रणमूर्धनि।। | 14-79-37a 14-79-37b 14-79-37c |
भर्तारं निहतं दृष्ट्वा पुत्रं च पतितं भुवि। चित्राङ्गदा परित्रस्ता प्रविवेश रणाजिरे।। | 14-79-38a 14-79-38b |
शोकसंतप्तहृदया रुदती वेपती भृशम्। | 14-79-39a |
मणलूरपतेर्माता ददर्श निहतं पतिम्।। | 14-79-40a |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधकपर्वणि अनुगीतापर्वणि एकोनाशीतितमोऽध्यायः।। 79 ।। |
14-79-23 प्रमीतइव मृतइव।। 14-79-25 पुत्रं प्रशस्येति संबन्धः।। 14-79-39 पतिमर्जुनम्।।
आश्वमेधिकपर्व-078 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्वमेधिकपर्व-080 |