महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-070
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कृष्णेनाभिमन्युसुतस्य पदप्रवृत्तिनिमित्तकथनपूर्वकं नामकरणम्।। 1 ।। अत्रान्तरे युधिष्ठिरादीनां स्वर्णभारानयनेन हस्तिनपुरंप्रत्यागमनश्रवणेन कृष्णादिभिस्तत्प्रत्युद्यानम्।। 2 ।।
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14-70-5 वाचयामासुः स्वस्तीति शेषः।। 14-70-7 ग्रम्थिकाः दैवज्ञाः सुखावहं सौख्यं शयनं इति पृच्छन्ति ते सौख्यशायिकाः।। 14-70-8 कुरुवंशस्य स्तवं आचक्षते ताभिः कुरुवंशस्तवाख्याभिः।। 14-70-9 उत्थाय तु यथाकाममिति क.ट.थ.पाठः।। 14-70-10 तस्य कृष्णो ददौ हृष्टो बहुरत्नं विशेषतः। तथान्ये वृष्णिशार्दूला इति झ.पाठः।।
वैशम्पायन उवाच। | 14-70-1x |
ब्रह्मास्त्रं तु यदा राजन्कृष्णेन प्रतिसंहृतम्। तदा तद्वेश्म ते पित्रा तेजसाऽभिविदीपितम्।। | 14-70-1a 14-70-1b |
ततो रक्षांसि सर्वाणि नेशुस्त्यक्त्वा गृहं तु तत्। अन्तरिक्षे च वागासीत्साधु केशव साध्विति।। | 14-70-2a 14-70-2b |
तदस्त्रं ज्वलितं चापि पितामहमगात्तदा। ततः प्राणान्पुनर्लेभे पिता तव नरेश्वर।। | 14-70-3a 14-70-3b |
व्यचेष्टत च बालोसौ यथोत्साहं यताबलम्। बभूवुर्मुदिता राजंस्ततस्ता भरतस्त्रियः।। | 14-70-4a 14-70-4b |
ब्राह्मणा वाचयामासुर्गोविन्दस्यैव शासनात्। ततस्ता मुदिताः सर्वाः प्रशशंसुर्जनार्दनम्।। | 14-70-5a 14-70-5b |
स्त्रियो भरतसिंहानां नावं लब्ध्वेव पारगाः। कुन्ती द्रुपदपुत्री च सुभद्रा चोत्तरा तथा। स्त्रियश्चान्या नृसिंहानां बभूवुर्हृष्टमानसाः।। | 14-70-6a 14-70-6b 14-70-6c |
तत्र मल्ला नटाश्चैव ग्रन्थिकाः सौख्यशायिकाः। सूतमागधसङ्घाश्चाप्यस्तुवंस्तं जनार्दनम्।। | 14-70-7a 14-70-7b |
कुरुवंशस्तवाख्याभिराशीर्भिर्भरतर्षभ। `सभाजयत संहृष्टो महाराज महाजनः।।' | 14-70-8a 14-70-8b |
उत्थाय तु यथाकालमुत्तरा यदुनन्दनम्। अभ्यवादयत प्रीता सह पुत्रेण भारत।। | 14-70-9a 14-70-9b |
ततस्तस्यै ददौ प्रीतो बहुरत्नं विशेषतः। तथैव वृष्णिशार्दूलो नाम चास्याकरोत्प्रभुः। पितुस्तव महाराज सत्यसन्धो जनार्दनः।। | 14-70-10a 14-70-10b 14-70-10c |
परिक्षीणे कुले यस्माज्जातोऽयमभिमन्युजः। परिक्षिदिति नामास्य भवत्वित्यब्रवीत्तदा।। | 14-70-11a 14-70-11b |
सोऽवर्धत यथाकालं पिता तव जनाधिप। मनःप्रह्लादनश्चासीत्सर्वलोकस्य भारत।। | 14-70-12a 14-70-12b |
मासजातस्तु ते वीर पिता भवति भारत। अथाजग्मुः सुबहुलं रत्नमादाय पाण्डवाः।। | 14-70-13a 14-70-13b |
`मेरुकूटनिभान्भाण्डान्कलशान्भाजनानि च। कृताकृतं महद्भीममादाय पुरुषोत्तमाः।। | 14-70-14a 14-70-14b |
भारतैर्वाहनैस्तत्र गोरुते गोरुते पथि। निवसन्तो ययुर्देवं स्मरन्तः परमेष्ठिनः।। | 14-70-15a 14-70-15b |
नासीत्तत्र नृपः कश्चिदभारार्तो नृपं विना। भीमादयोऽपि यज्ञार्थं वहन्ते किं पुनर्जनाः।।' | 14-70-16a 14-70-16b |
तान्समीपगताञ्श्रुत्वा निर्ययुर्वृष्णिपुङ्गवाः। अलञ्चक्रुश्च माल्यौघैर्नगरं नागसाह्वयम्।। | 14-70-17a 14-70-17b |
पताकाभिर्विचित्राभिर्ध्वजैश्च विविधैरपि। वेश्मानि समलञ्चक्रुः पौराश्चापि जनेश्वरः।। | 14-70-18a 14-70-18b |
देवतायतनानां च पूजाः सुविविधास्तथा। संदिदेशाथ विदुरः पाण्डुपुत्रप्रियेप्सया।। | 14-70-19a 14-70-19b |
राजमार्गाश्च तत्रासन्सुमनोभिरलङ्कृताः। शुशुभे तत्पुरं चापि समुद्रौघनिभस्वनम्।। | 14-70-20a 14-70-20b |
नर्तकैश्चापि नृत्यद्भिर्गायकानां च निःस्वनैः। आसीद्वैश्रवणस्येव निवासस्तत्पुरं तदा।। | 14-70-21a 14-70-21b |
बन्दिभिश्च नरै राजन्स्त्रीसहायैश्च सर्वशः। तत्रतत्र विविक्तेषु समन्तादुपशोभितम्।। | 14-70-22a 14-70-22b |
पताका धूयमानाश्च समन्तान्मातरिश्वना। अदर्शयन्निव तदा कुरून्वै दक्षिणोत्तरान्।। | 14-70-23a 14-70-23b |
अघोषयंस्तदा चाप पुरुषा राजमार्गतः। सर्वरात्रविहारोऽद्य रत्नाभरणलक्षणः।। | 14-70-24a 14-70-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि सप्ततितमोऽध्यायः।। 70 ।। |
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