महाभारतम्-14-आश्वमेधिकपर्व-047
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ब्रह्मणा महर्षीन्प्रति संन्यासज्ञानतपसां परमपुरुषार्थसाधनत्वोक्तिः।। 1 ।।
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ब्रह्मोवाच। | 14-47-1x |
संन्यासं तप इत्याहुर्वृद्धा निश्चितवादिनः। ब्राह्मणा ब्रह्मयोनिस्था ज्ञानं ब्रह्म परं विदुः।। | 14-47-1a 14-47-1b |
अतिदूरात्मकं ब्रह्म वेदविद्याव्यपाश्रयम्। निर्द्वन्द्वं निर्गुणं नित्यमचिन्त्यगुणमुत्तमम्।। | 14-47-2a 14-47-2b |
ज्ञानेन तपसा चैव धीराः पश्यन्ति तत्परम्। निर्णिक्तमनसः पूता व्युत्क्रान्तरजसोऽमलाः।। | 14-47-3a 14-47-3b |
तपसा क्षेममध्वानं गच्छन्ति परमेश्वरम्। संन्यासनिरता नित्यं ये च ब्रह्मविदो जनाः।। | 14-47-4a 14-47-4b |
तपः प्रदीप इत्याहुराचारो धर्मसाधकः। ज्ञानं वै परमं विद्यात्संन्यासं तप उत्तमम्।। | 14-47-5a 14-47-5b |
यस्तु वेद निराबाधं ज्ञानं तत्त्वविनिश्चयात्। सर्वभूतस्थमात्मानं स सर्वविदिहोच्यते।। | 14-47-6a 14-47-6b |
यो विद्वान्सहवासं च विवासं चैव पश्यति। तथैवेकत्वनानात्वे स दुःखात्प्रतिमुच्यते।। | 14-47-7a 14-47-7b |
यो न कामयते किञ्चिन्न किञ्चिदवमन्यते। इह लोकस्थ एवैष ब्रह्मभूयाय कल्पते।। | 14-47-8a 14-47-8b |
प्रधानगुणतत्त्वज्ञः सर्व भूतविधानवित्। निर्ममो निरहङ्कारो मुच्यते नात्र संशयः।। | 14-47-9a 14-47-9b |
निर्द्वन्द्वो निर्नमस्कारो निःस्वधाकार एव च। निर्गुणं नित्यमद्वन्द्वं प्रशमेनैव गच्छति।। | 14-47-10a 14-47-10b |
हित्वा गुणमयं सर्वं कर्म जन्तुः शुभाशुभम्। उभे सत्यानृते हित्वा मुच्यते नात्र संशयः।। | 14-47-11a 14-47-11b |
अव्यक्तबीजप्रभवो बुद्धिस्कन्धमयो महान्। महाहङ्कारविटप इन्द्रियान्तरकोटरः।। | 14-47-12a 14-47-12b |
महाभूतविशाखश्च विशेषप्रतिशाखवान्। सदापत्रः सदापुष्पः शुभाशुभफलोदयः।। | 14-47-13a 14-47-13b |
आजीव्यः सर्वभूतानां ब्रह्मवृक्षः सनातनः। एनं छित्त्वा च भित्त्वा च तत्त्वज्ञानासिना बुधः।। | 14-47-14a 14-47-14b |
हित्वा सङ्गमयान्पाशान्मृत्युजन्मजरोदयान्। निर्ममो निरहङ्कारो मुच्यते नात्र संशयः।। | 14-47-15a 14-47-15b |
द्वाविमौ पक्षिणौ नित्यौ संक्षेपौ चाप्यचेतनौ। एताभ्यां तु परो योन्यश्चेतनावान्स उच्यते।। | 14-47-16a 14-47-16b |
अचेतनः सत्वसङ्ख्याविमुक्तः सत्त्वात्परं चेतयतेऽन्तरात्मा। स क्षेत्रवित्सर्वसङ्ख्यातबुद्धि- र्गुणातिगो मुच्यते सर्वपापैः।। | 14-47-17a 14-47-17b 14-47-17c 14-47-17d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्वमेधिकपर्वणि अनुगीतापर्वणि सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः।। 47 ।। |
14-47-15 हित्वा चामरतां प्राप्य जह्याद्यो मृत्युजन्मनीति क.ठ.थ. पाठः।। 14-47-16 पक्षिणौ जीवेश्वरौ।। 14-47-17 अचेतनस्तत्वसंघातयुक्तस्तत्वात्परं चेतयतेन्तरात्मा। स क्षेत्रज्ञस्तत्वसंघातबुद्धिर्गुणातिगो मुच्यते मृत्युपाशादिति क.थ.पाठः।।
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