महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-001
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धृतराष्ट्रेण सञ्जयंप्रति भीप्मपातानन्तरीयकदुर्योधनादिवृत्तान्तप्रश्नः।। 1 ।। सञ्जयेन योधानां शरणत्वेन कर्णाह्वाने कथिते धृतराष्ट्रस्य कर्णवृत्तान्तप्रश्नः।। 2 ।।
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श्रीवेदव्यासाय नमः। | 5-1-1x |
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। | 5-1-1a 5-1-1b |
जनमेजय उवाच। | 5-1-1x |
तमप्रतिमसत्वौजोबलवीर्यपराक्रमम्। हतं देवव्रतं श्रुत्वा पाञ्चाल्येन शिखण्डिना।। | 5-1-1a 5-1-1d |
धृतराष्ट्रस्ततो राजा शोकव्याकूललोचनः। किमचेष्टत विप्रर्षे हते पितरि वीर्यवान्।। | 5-1-2a 5-1-2b |
तस्य पुत्रो हि भगवान्भीष्मद्रोणमुखै रथैः। पराजित्य महेष्वासान्पाण्डवान् राज्यमिच्छति।। | 5-1-3a 5-1-3b |
तस्मिन्हते तु भगवन्केतौ सर्वधनुष्मताम्। यदचेष्टत कौरव्यस्तन्मे ब्रूहि तपोधन।। | 5-1-4a 5-1-4b |
वैशंपायन उवाच। | 5-1-5x |
निहतं पितरं श्रुत्वा धृतराष्ट्रो जनाधिपः। लेभे न शान्तिं कौरव्यश्चिन्ताशोकपरायणः।। | 5-1-5a 5-1-5b |
तस्य चिन्तयतो दुःखमनिशं पार्थिवस्य तत्। आजगाम विशुद्धात्मा पुनर्गावल्गणिस्तदा।। | 5-1-6a 5-1-6b |
`व्यासप्रसादाद्विज्ञाय सर्वं वृत्तान्तमुत्तमम्। सैनिकानां च सर्वेषां सेनयोरुभयोस्तदा'।। | 5-1-7a 5-1-7b |
शिबिरात्सञ्जयं प्राप्तं निशि नागाह्वयं पुरम्। आम्बिकेयो महाराज धृतराष्ट्रोऽन्वपृच्छत।। | 5-1-8a 5-1-8b |
श्रुत्वा भीष्मस्य निधनमप्रहृष्टमना भृशम्। पुत्राणां जयमाकाङ्क्षन्विललापातुरो यथा।। | 5-1-9a 5-1-9b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-1-10x |
संशोच्य तु महात्मानं भीष्मं भीमपराक्रमम्। किमकार्षुःपरं तात कुरवः कालचोदिताः।। | 5-1-10a 5-1-10b |
तस्मिन्विनिहते शूरे दुराधर्षे महात्मनि। किं नु स्वित्कुरवोऽकार्षुर्निमग्नाः शोकसागरे।। | 5-1-11a 5-1-11b |
तदुदीर्णं महत्सैन्यं त्रैलोक्यस्यापि सञ्जय। भयमुत्पादयेत्तीव्रं पाण्डवानां महात्मनाम्।। | 5-1-12a 5-1-12b |
को हि दौर्योधने सैन्ये पुमानासीन्महारथः। यं प्राप्य समरे वीरा न त्रस्यन्ति महाभये।। | 5-1-13a 5-1-13b |
देवव्रते तु निहते कुरूणामृषभे तदा। किमकार्षुर्नृपतयस्तन्ममाचक्ष्व सञ्जय।। | 5-1-14a 5-1-14b |
सञ्जय उवाच। | 5-1-15x |
शृणु राजन्नेकमना वचनं ब्रुवतो मम। यत्ते पुत्रास्तदाकार्षुर्हते देवव्रते मृधे।। | 5-1-15a 5-1-15b |
निहते तु तदा भीष्मे राजन्सत्यपराक्रमे। तावकाः पाण्डवेयाश्च प्राध्यायन्त पृथक्पृथक्।। | 5-1-16a 5-1-16b |
विस्मिताश्च प्रहृष्टाश्च क्षत्रधर्मं निशम्य ते। स्वधर्मं निन्दमानास्ते प्रणिपत्य महात्मने।। | 5-1-17a 5-1-17b |
शयनं कल्पयामासुर्भीष्मायामितकर्मणे। सोपधानं नरव्याघ्र शरैः सन्नतपर्वभिः।। | 5-1-18a 5-1-18b |
विधाय रक्षां भीष्माय समाभाष्य परस्परम्। अनुमान्य च गाङ्गेयं कृत्वा चापि प्रदक्षिणम्।। | 5-1-19a 5-1-19b |
क्रोधसंरक्तनयनाः समवेत्य परस्परम्। पुनर्युद्धाय निर्जग्मुः क्षत्रियाः कालचोदिताः।। | 5-1-20a 5-1-20b |
ततस्तूर्यनिनादैश्च भेरीणां निनदेन च। तावकानामनीकानि परेषां च विनिर्ययुः।। | 5-1-21a 5-1-21b |
व्यावृत्तेऽर्यम्णि राजेन्द्र पतिते जाह्नवीसुते। अमर्षवशमापन्नाः कालोपहतचेतसः।। | 5-1-22a 5-1-22b |
अनादृत्य वचः पथ्यं गाङ्गेयस्य महात्मनः। निर्ययुर्भरतश्रेष्टाः शस्त्राण्यादाय सत्वराः।। | 5-1-23a 5-1-23b |
मोहात्तव सपुत्रस्य वधाच्छान्तनवस्य च। कौरवा मृत्युनाऽऽहूताः सहिताः सर्वराजभिः।। | 5-1-24a 5-1-24b |
अजावय इवागोपा वने श्वापदसंकुले। `कर्णकर्णेति चाक्रन्दञ्छेषा भारत पार्थिवाः'। भृशमुद्विग्नमनसो हीना देवव्रतेन ते।। | 5-1-25a 5-1-25b 5-1-25c |
पतिते भरतश्रेष्ठे बभूव कुरुवाहिनी। द्यौरिवापेतनक्षत्रा हीनं खमिव वायुना।। | 5-1-26a 5-1-26b |
विपन्नसस्येव मही वाक्चैवासंस्कृता यथा। आसुरीव यथा सेना निगृहीते नृपे बलौ।। | 5-1-27a 5-1-27b |
विधवेव वारारोहा शुष्कतोयेव निम्नगा। वृकैरिव वने रुद्धा पृषती हतयूथपा।। | 5-1-28a 5-1-28b |
शरभाऽऽहतसिंहेव महती गिरिकन्दरा। सा सेना भरतश्रेष्ठे पतिते जाह्नवीसुते।। | 5-1-29a 5-1-29b |
विष्वग्वाताहतिक्षुब्धा नौरिवासीन्महार्णवे। बलिभिः पाण्डवैर्वीरैर्लब्धलक्षैर्भृशार्दिता।। | 5-1-30a 5-1-30b |
सा तदासीद्भृशं सेना व्याकुलाश्वरथद्विपा। विपन्नभूयिष्ठनरा कृपणा ध्वस्तमानसा।। | 5-1-31a 5-1-31b |
तस्यां त्रस्ता नृपतयः सैनिकाश्च पृथग्विधाः। पाताल इव मज्जन्तो हीना देवव्रतेन ते। | 5-1-32a 5-1-32b |
कर्णस्य कुरवोऽस्मार्षुः स हि देवव्रतोपमः। सर्वशस्त्रभृतां श्रेष्ठं रोचमानमिवातिथिम्।। | 5-1-33a 5-1-33b |
बन्धुमापद्गतस्येव तमेवोपागमन्मनः। चुक्रुशुः कर्णकर्णेति तत्र भारत पार्थिवाः।। | 5-1-34a 5-1-34b |
राधेयं हितमस्माकं सूतपुत्रं तनुत्यजम्। स हि नाबुध्यत तदा दशाहानि महायशाः।। | 5-1-35a 5-1-35b |
सामात्यबन्धुः कर्णो वै तमानयत माचिरम्। भीष्मेण हि महाबाहुः सर्वक्षत्रस्य पश्यतः।। | 5-1-36a 5-1-63b |
रथेषु गण्यमानेषु बलविक्रमशालिषु। सङ्ख्यातोऽर्धरथः कर्णो द्विगुणः सन्नरर्षभः।। | 5-1-37a 5-1-37b |
रथातिरथसङ्ख्यायां योऽग्रणीः शूरसम्भतः। सासुरानपि देवेशान्रणे यो योद्धुमुत्सहेत्।। | 5-1-38a 5-1-38b |
स तु तेनैव कोपेन राजन्गाङ्गेयमुक्तवान्। त्वयि जीवति कौरव्य नाहं योत्स्ये कदाचन। | 5-1-39a 5-1-39b |
त्वया तु पाण्डवेयेषु निहतेषु महामृधे। दुर्योधनमनुज्ञाप्य वनं यास्यामि कौरव।। | 5-1-40a 5-1-40b |
हते वा त्वयि पार्थैस्तु युधि स्वर्गमुपेयुषि। हन्तास्म्येकरथेनैव कृत्स्नान् यान्मन्यसे रथान्।। | 5-1-41a 5-1-41b |
एवमुक्त्वा महाबाहुर्दशाहान्येक एव स। नायुध्यत ततः कर्णः पुत्रस्य तव संयते।। | 5-1-42a 5-1-42b |
भीष्मः समरविक्रान्तः पाण्डवेयस्य भारत। जघान समरे योधानसङ्ख्येयपराक्रमः।। | 5-1-43a 5-1-43b |
तस्मिंस्तु निहते शूरे सत्यसन्धे महौजसि। त्वत्सुताः कर्णमस्मार्षुस्तर्तुकामा इव प्लवम्।। | 5-1-44a 5-1-44b |
तावकास्तव पुत्राश्च सहिताः सर्वराजभिः। हा कर्ण इति चाक्रन्दन्कालोऽयमिति अब्रुवन्।। | 5-1-45a 5-1-45b |
एवं ते स्म हि राधेयं सूतपुत्रं तनुत्यजम् चुक्रुशुः सहिता योधास्तत्र तत्र महाबलाः।। | 5-1-46a 5-1-46b |
जामदग्न्याभ्यनुज्ञातमस्त्रे दुर्वारपौरुषम्। अगमन्नो मनः कर्णं बन्धुमात्ययिकेष्विव।। | 5-1-47a 5-1-47b |
स हि शक्तो रणे राजञ्स्त्रातुमस्मान्महाभयात्।। त्रिदशानिव गोविन्दः सततं सुमहाभयात्।। | 5-1-48a 5-1-48b |
वैशंपायन उवाच। | 5-1-49x |
तथा तु सञ्जयं कर्णं कीर्तयन्तं पुनः पुनः। आशीविषवदुच्छ्वस्य धृतराष्ट्रोऽब्रवीदिदम्।। | 5-1-49a 5-1-49b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-1-50x |
यत्तद्वैकर्तनं कर्णमगमद्वो मनस्तदा। उप्यरक्षत्स राधेयः सूतपुत्रस्तनुत्यजः।। | 5-1-50a 5-1-50b |
अपि तन्न मृषाकार्षीत्कच्चित्सत्यपराक्रमः। सम्भान्तानां तदार्तानां त्रस्तानां त्राणमिच्छतां।। | 5-1-51a 5-1-51b |
अपि तत्पूरयांचक्रे धनुर्धरवरो युधि। यत्तद्विनिहते भीष्मे कौरवाणामपाकृतम्।। | 5-1-52a 5-1-52b |
तत्खण्डं पूरयन्कर्णः परेषामादधद्भयम्। स हि वै पुरुषव्याघ्रो लोके सञ्जय कथ्यते।। | 5-1-53a 5-1-53b |
आर्तानां बान्धवानां च क्रन्दतां च विशेषतः। परित्यज्य रणे प्राणांस्तत्त्राणार्थं च शर्म च। कृतवान्मम पुत्राणां जयाशां सफलामपि।। | 5-1-54a 5-1-54b 5-1-54c |
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