महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-166
← द्रोणपर्व-165 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-166 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-167 → |
कृतवर्मणा युधिष्ठिरपराजयः।। 1 ।।
|
सञ्जय उवाच। | 5-166-1x |
वर्तमाने तदा रौद्रे रात्रियुद्धे विशाम्पते। सर्वभूतक्षयकरे धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 5-166-1a 5-166-1b |
अब्रवीत्पाण्डवांश्चैव पाञ्चालांश्चैव सोमकान्। अभिद्रवत संयात द्रोणमेव जिघांसया।। | 5-166-2a 5-166-2b |
राज्ञस्ते वचनाद्राजन्पाञ्चालाः सृञ्जयास्तथा। द्रोणमेवाभ्यवर्तन्त नदन्तो भैरवान्रवान्।। | 5-166-3a 5-166-3b |
तान्वयं प्रतिगर्जन्तः प्रत्युद्याताः स्म हर्षिताः। यथाशक्ति यथोत्साहं यथासत्वं च संयुगे।। | 5-166-4a 5-166-4b |
कृतवर्मा तु हार्दिक्यो युधिष्ठिरमुपाद्रवत्। द्रोणं प्रति समायान्तं मत्तो मत्तमिव द्विपम्।। | 5-166-5a 5-166-5b |
शैनेयं शरवर्षाणि विकिरन्तं समन्ततः। अभ्ययात्कौरवो राजन्भूरिः सङ्ग्राममूर्धनि।। | 5-166-6a 5-166-6b |
सहदेवमथायान्तं द्रोणप्रेप्सुं महारथम्। कर्णो वैकर्तनो राजन्वारयामास पाण्डवम्।। | 5-166-7a 5-166-7b |
भीमसेनमथायान्तं व्यादितास्यामिवान्तकम्। स्वयं दुर्योधनो राजा प्रतीपं मृत्युमाव्रजत्।। | 5-166-8a 5-166-8b |
नकुलं च युधां श्रेष्ठं सर्वयुद्धविशारदम्। शकुनिः सौबलो राजन्वारयामास सत्वरः।। | 5-166-9a 5-166-9b |
शिखण्डिनमथायान्तं रथेन रथिनां वरम्। कृपः शारद्वतो राजन्वारयामास संयुगे।। | 5-166-10a 5-166-10b |
प्रतिविन्ध्यमथायान्तं मयूरसदृशैर्हयैः। दुःशासनो महाराज यत्तो यत्तमवारयत्।। | 5-166-11a 5-166-11b |
भैमसेनिमथायान्तं मायाशतविशारदम्। अश्वत्थामा महाराज राक्षसं प्रत्यषेधयत्।। | 5-166-12a 5-166-12b |
द्रुपदं वृषसेनस्तु ससैन्यं सपदानुगम्। वारयामास समरे द्रोणप्रेप्सुं महारथम्।। | 5-166-13a 5-166-13b |
विराटं द्रुतमायान्तं द्रोणस्य निधनं प्रति। मद्रराजः सुसङ्क्रुद्धो वारयामास भारत।। | 5-166-14a 5-166-14b |
शतानीकमथायान्तं नाकुलिं रभसं रणे। चित्रसेनो रुरोधाशु शरैर्द्रोणपरीप्सया।। | 5-166-15a 5-166-15b |
अर्जुनं च युधांश्रेष्ठं प्राद्रवन्तं महारथम्। अलायुधो महाराज राक्षसेन्द्रो न्यवारयत्।। | 5-166-16a 5-166-16b |
तथा द्रोणं महेष्वासं निघ्नन्तं शात्रवान्रणे। धृष्टद्युम्नोऽथ पाञ्चाल्यो हृष्टरूपमवारयत्।। | 5-166-17a 5-166-17b |
तथाऽन्यान्पाण्डुपुत्राणां समायातान्महारथान्। तावका रथिनो राजन्वारयामासुरोजसा।। | 5-166-18a 5-166-18b |
गजारोहा गजैस्तूर्णं सन्निपत्य महामृधे। योधयन्तः स्म दृश्यन्ते शतशोऽथ सहस्रशः।। | 5-166-19a 5-166-19b |
निशीथे तुरगा राजन्द्रावयन्तः परस्परम्। समदृश्यन्त वेगेन पक्षवन्तो यथाऽद्रयः।। | 5-166-20a 5-166-20b |
सादिनः सादिभिः सार्धं प्रासशक्त्यृष्टिपाणयः। समागच्छन्महाराज विनदन्तः पृथक्पृथक्।। | 5-166-21a 5-166-21b |
नरास्तु बहवस्तत्र समाजग्मुः परस्परम्। गादाभिर्मुसलैश्चैव नानाशस्त्रैश्च संयुगे।। | 5-166-22a 5-166-22b |
कृतवर्मा तु हार्दिक्यो धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्। वारयामास सङ्क्रुद्धो वेलेवोद्वृत्तमर्णवम्।। | 5-166-23a 5-166-23b |
युधिष्ठिरस्तु हार्दिक्यं विद्व्वा पञ्चभिराशुगैः। पुनर्विव्याध विंशत्या तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। | 5-166-24a 5-166-24b |
कृतवर्मा तु सङ्क्रुद्धो धर्मपुत्रस्य मारिष। धनुश्चिच्छेद भल्लेन तं च विव्याध सप्तभिः।। | 5-166-25a 5-166-25b |
अथान्यद्धनुरादाय धर्मपुत्रो महारथः। हार्दिक्यं दशभिर्बाणैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत्।। | 5-166-26a 5-166-26b |
माधवस्तु रणे विद्धो धर्मपुत्रेण मारिष। प्राकम्पत च रोषेण सप्तभिश्चार्दयच्छरैः।। | 5-166-27a 5-166-27b |
तस्य पार्थो धनुश्छित्त्वा हस्तावापं निकृत्य च। प्राहिणोन्निशितान्बाणान्पञ्च राजञ्छिलाशितान्।। | 5-166-28a 5-166-28b |
ते तस्य कवचं भित्त्वा हेमचित्रं महाधनम्। प्राविशन्धरणीं भित्त्वा वल्मीकमिव पन्नगाः।। | 5-166-29a 5-166-29b |
अक्ष्णोर्निमेषमात्रेण सोऽन्यदादाय कार्मुकम्। विव्याध पाण्डवं षष्ट्या सूतं च नवभिः शरैः।। | 5-166-30a 5-166-30b |
तस्य शक्तिममेयात्मा पाण्डवो भुजगोपमाम्। चिक्षेप भरश्रेष्ठ रथे न्यस्य महद्धनुः।। | 5-166-31a 5-166-31b |
सा हेमचित्रा महती पाण्डवेयेन प्रेरिता। निर्भिद्य दक्षिणं बाहुं प्राविशद्धरणीतलम्।। | 5-166-32a 5-166-32b |
एतस्मिन्नेव काले तु गृह्य पार्थः पुनर्धनुः। हार्दिक्यं छादयामास शरैः सन्नतपर्वभिः।। | 5-166-33a 5-166-33b |
ततस्तु समरे शूरो वृष्णीनां प्रवरो रथी। व्यश्चसूतरथं चक्रे निमेषार्धाद्युधिष्ठिरम्।। | 5-166-34a 5-166-34b |
ततस्तु पाण्डवो ज्येष्ठः खङ्गं चर्म समाददे। तदस्य निशितैर्बाणैर्व्यधमन्माधवो रणे।। | 5-166-35a 5-166-35b |
तोमरं तु ततो गृह्य स्वर्णदण्डं दुरासदम्। प्रैषयत्समरे तूर्णं हार्दिक्यस्य युधिष्ठिरः।। | 5-166-36a 5-166-36b |
तमापतन्तं सहसा धर्मराजभुजच्युतम्। द्विधा चिच्छेद हार्दिक्यः कृतहस्तः स्मयन्निव।। | 5-166-37a 5-166-37b |
ततः शरशतेनाजौ धर्मपुत्रमवाकिरत्। कवचं चास्य सङ्क्रुद्धः शरैस्तीक्ष्णैरदारयत्।। | 5-166-38a 5-166-38b |
हार्दिक्यशरसञ्छन्नं कवचं तन्महाधनम्। व्यशीर्यत रणे राजंस्ताराजालमिवाम्बरात्।। | 5-166-39a 5-166-39b |
स च्छिन्नधन्वा विरथः शीर्णवर्मा शरार्दितः। अपायासीद्रणात्तूर्णं धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 5-166-40a 5-166-40b |
कृतवर्मा तु निर्जित्य धर्मात्मानं युधिष्ठिरम्। पुनर्द्रोणस्य जुगुपे चक्रमेव महात्मनः।। | 5-166-41a 5-166-41b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि चतुर्दशरात्रियुद्धे षट्षष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। 166 ।। |
5-166-12 भैमसेनिं घटोत्कचम्।। 5-166-27 माधवः कृतवर्मा।। 5-166-166 षट्षष्ठ्यधिकशततमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-165 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-167 |