महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-120
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सात्यकियुद्धवर्णनम्।।
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सञ्जय उवाच। | 5-120-1x |
जित्वा यवनकाम्भोजान्युयुधानस्ततोऽर्जुनम्। जगाम तव सैन्यस्य मध्येन रथिनां वरः।। | 5-120-1a 5-120-1b |
शरदंष्ट्रो नरव्याघ्रो विचित्रकवचच्छविः। मृगं व्याघ्र इवाजिघ्रंस्तव सैन्यमभीषयत्।। | 5-120-2a 5-120-2b |
स रथेन चरन्मार्गान्धनुरुद्धामयद्भृशम्। रुक्मपृष्ठं महावेगं रुक्मचन्द्रकसङ्कुलम्।। | 5-120-3a 5-120-3b |
रुक्माङ्गदशिरस्त्राणो रुक्मवर्मसमावृतः। रुक्मध्वजधनुः शूरो मेरुशृङ्गमिवाबभौ।। | 5-120-4a 5-120-4b |
सधनुर्मण्डलः सङ्ख्ये तेजोभासुररश्मिवान्। शरदीवोदितः सूर्यो नृसूर्यो विरराज ह।। | 5-120-5a 5-120-5b |
वृषभस्कन्धविक्रान्तो वृषभाक्षो नरर्षभः। तावकानां बभौ मध्ये गवां मध्ये यथा वृषः।। | 5-120-6a 5-120-6b |
मत्तद्विरदसङ्काशं मत्तद्विरदगामिनम्। प्रभिन्नमिव मातङ्गं यूथमध्ये व्यवस्थितम्।। | 5-120-7a 5-120-7b |
व्याधा इव जिघांसन्तस्त्वदीयाः समुपाद्रवन्। `सात्यकिं समरे राजन्परिवव्रुस्तवात्मजाः'।। | 5-120-8a 5-120-8b |
द्रोणानीकमतिक्रान्तं भोजानीकं च दुस्तरम्। जलसन्धार्णवं तीर्त्वा काम्भोजानां च वाहिनीम्।। | 5-120-9a 5-120-9b |
हार्दिक्यमकरान्मुक्तं तीर्णं वै सैन्यसागरम्। परिवव्रुः सुसङ्क्रुद्वास्त्वदीयाः सात्यकिं रथाः।। | 5-120-10a 5-120-10b |
दुर्योधनश्चित्रसेनो दुःशासनविविंशती। शकुनिर्दुःसहश्चैव युवा दुर्धर्षणः क्रथः।। | 5-120-11a 5-120-11b |
अन्ये च बहवः शूराः शस्त्रवन्तो दुरासदाः। पृष्ठतः सात्यकिं यान्तमन्वधावन्नमर्षिणः।। | 5-120-12a 5-120-12b |
अथ शब्दो महानासीत्तव सैन्यस्य मारिष। मारुतोद्धूतवेगस्य सागरस्येव पर्वणि।। | 5-120-13a 5-120-13b |
तानभिद्रवतः सर्वान्समीक्ष्य शिनिपुङ्गवः। शनैर्याहीति यन्तारमब्रवीत्प्रहसन्निव।। | 5-120-14a 5-120-14b |
इदमेति समुद्धूतं धार्तराष्ट्रबलं महत्। मामेवाभिमुखं तूर्णं गजाश्वरथपत्तिमत्। नादयद्वै दिशः सर्वा रथघोषेण सारथे।। | 5-120-15a 5-120-15b 5-120-15c |
पृथिवीं चान्तरिक्षं च कम्पयन्सागरानपि। एतद्बलार्णवं सूत वारयिष्ये महारणे। पौर्णमास्यामिवोद्धूतं वेलेव मकरालयम्।। | 5-120-16a 5-120-16b 5-120-16c |
पश्य मे सूत विक्रान्तमिन्द्रस्येव महामृधे। एष सैन्यानि शत्रूणां विधमामि शितैः शरैः।। | 5-120-17a 5-120-17b |
निहतानाहवे पश्य पदात्यश्वरथद्विपान्। मच्छरैरग्निसङ्काशैर्विद्धदेहान्सहस्रशः।। | 5-120-18a 5-120-18b |
इत्येवं ब्रुवतस्तस्य सात्यकेरमितौजसः। समीपे सैनिकास्ते तु शीघ्रमीयुर्युयुत्सवः। जह्याद्रवस्व तिष्ठेति पश्यपश्येति वादिनः।। | 5-120-19a 5-120-19b 5-120-19c |
तानेवं ब्रुवतो वीरान्सात्यकिर्निशितैः शरैः। जघानं त्रिशतानश्वान्कुञ्जरांश्च चतुःशतान्। `लध्वस्त्रश्चित्रयोधी च प्रहरञ्शिनिपुङ्गवः'।। | 5-120-20a 5-120-20b 5-120-20c |
स सम्प्रहारस्तुमुलस्तस्य तेषां च धन्विनाम्। देवासुररणप्रख्यः प्रावर्तत जनक्षयः।। | 5-120-21a 5-120-21b |
मेघजालनिभं सैन्यं तव पुत्रस्य मारिष। प्रत्यगृह्णाच्छिनेः पौत्रः शरैराशीविषोपमैः।। | 5-120-22a 5-120-22b |
प्रच्छाद्यमानः समरे शरजालैः स वीर्यवान्। असम्भ्रमन्महाराज तावकानवधीद्बहून्।। | 5-120-23a 5-120-23b |
आश्चर्यं तत्र राजेन्द्र सुमहद्दृष्टवानहम्। न मोघः सायकः कश्चित्सात्यकेरभवत्प्रभो।। | 5-120-24a 5-120-24b |
रथनागाश्वकलिलः पदात्यूर्मिसमाकुलः। शैनेयवेलामासाद्य स्थितः सैन्यमहार्णवः।। | 5-120-25a 5-120-25b |
सम्भ्रान्तनरनागाश्वमावर्तत मुहुर्मुहुः। तत्सैन्यमिषुभिस्तेन वध्यमानं समन्ततः। बभ्राम तत्रतत्रैव गावः शीतार्दिता इव।। | 5-120-26a 5-120-26b 5-120-26c |
पदातिनं रथं नागं सादिनं तुरगं तथा। अविद्वं तत्र नाद्राक्षं युयुधानस्य सायकैः।। | 5-120-27a 5-120-27b |
न तादृक्कदनं राजन्कृतवांस्तत्र फल्गुनः। यादृक्क्षयमनीकानामकरोत्सात्यकिर्नृप।। | 5-120-28a 5-120-28b |
अत्यर्जुनं शिनेः पौत्रो युध्यते पुरुषर्षभः। वीतभीर्लाघवोपेतः कृतित्वं सम्प्रदर्शयन्।। | 5-120-29a 5-120-29b |
ततो दुर्योधनो राजा सात्वतस्य त्रिभिः शरैः। विव्याध सूतं निशितैश्चतुर्भिश्चतुरो हयान्।। | 5-120-30a 5-120-30b |
सात्यकिं च त्रिभिर्विद्व्वा पुनरष्टाभिरेव च। दुःशासनः षोडशभिर्विव्याध शिनिपुङ्गवम्।। | 5-120-31a 5-120-31b |
शकुनिः पञ्चविंशत्या चित्रसेनश्च पञ्चभिः। दुःसहः पञ्चदशभिर्विव्याधोरसि सात्यकिम्।। | 5-120-32a 5-120-32b |
उत्स्मयन्वृष्णिशार्दूलस्तथा बाणैः समाहतः। तानविध्यन्महाराज सर्वानेव त्रिभिस्त्रिभिः।। | 5-120-33a 5-120-33b |
गाढविद्धानरीन्कृत्वा मार्गणैः सोऽतितेजनैः। शैनेयः श्येनवत्सङ्ख्ये व्यचरल्लघुविक्रमः।। | 5-120-34a 5-120-34b |
सौबलस्य धनुश्छित्त्वा हस्तावापं निकृत्य च। दुर्योधनं त्रिभिर्बाणैरभ्यविध्यत्स्तनान्तरे।। | 5-120-35a 5-120-35b |
चित्रसेनं शतेनैव दशभिर्दुःसहं तथा। दुःशासनं तु विंशत्या विव्याध शिनिपुङ्गवः।। | 5-120-36a 5-120-36b |
अथान्यद्धनुरादाय श्यालस्तव विशाम्पते। अष्टाभिः सात्यकिं विद्व्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः।। | 5-120-37a 5-120-37b |
दुःशासनश्च दशभिर्दुःसहश्च त्रिभिः शरैः। दुर्मुखश्च द्वादशभी राजन्विव्याध सात्यकिम्।। | 5-120-38a 5-120-38b |
दुर्योधनस्त्रिसप्तत्या किद्व्वा भारत माधवम्। ततोस्य निशितैर्बाणैस्त्रिभिर्विव्याध सारथिम्।। | 5-120-39a 5-120-39b |
तान्सर्वान्सहिताञ्शूरान्यतमानान्महारथान्। पञ्चभिः पञ्चभिर्बाणैः पुनर्विव्याध सात्यकिः।। | 5-120-40a 5-120-40b |
ततः स रथिनां श्रेष्ठस्तव पुत्रस्य सारथिम्। आजघानाशु भल्लेन स हतो न्यपतद्भुवि।। | 5-120-41a 5-120-41b |
पतिते सारथौ तस्मिंस्तव पुत्ररथः प्रभो। वातायमानैस्तैरश्वैरपानीयत सङ्गरात्।। | 5-120-42a 5-120-42b |
ततस्तव सुतो राजन्सैनिकाश्च विशाम्पते। राज्ञो रथमभिप्रेक्ष्य विद्रुताः शतशोऽभवन्।। | 5-120-43a 5-120-43b |
विद्रुतं तत्र तत्सैन्यं दृष्ट्वा भारत सात्यकिः। अवाकिरच्छरैस्तीक्ष्णै रुक्मपुङ्खैः शिलाशितैः।। | 5-120-44a 5-120-44b |
विद्राव्य सर्वसैन्यानि तावकानि सहस्रशः। प्रययौ सात्यकी राजञ्श्वेताश्वस्य रथं प्रति।। | 5-120-45a 5-120-45b |
`तं प्रयान्तं महाबाहुं तावकाः प्रेक्ष्य मारिष। दृष्टं चादृष्टवत्कृत्वा क्रियामन्यामयोजयन्'।। | 5-120-46a 5-120-46b |
तं शरानाददानं च रक्षमाणं च सारथिम्। आत्मानं पालयानं च तावकाः समपूजयन्।। | 5-120-47a 5-120-47b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 120 ।। |
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