महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-010
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द्रोणमरणश्रवणेन मूर्छितस्य धृतराष्ट्रस्य पिरचारिकाभिर्जलसेचनादिना समुद्बोधनम्।। 1 ।। धृतराष्ट्रेण सञ्जयम्प्रति युद्धकथनचोदना।। 2 ।।
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वैशम्पायन उवाच। | 5-10-1x |
एवं पृष्ट्वा सूतपुत्रं हृच्छोकेनार्दितो भृशम्। जये निराशः पुत्राणां धृतराष्ट्रोऽपतत्क्षितौ।। | 5-10-1a 5-10-1b |
तं विसंज्ञं निपतिन्त सिषिचुः परिचारिकाः। जलेनात्यर्थशीतेन जीवन्त्यः पुण्यगन्धिना।। | 5-10-2a 5-10-2b |
पतितं चैनमालोक्य समस्ता भरतस्त्रियः। परिवव्रुर्महाराजमस्पृशंश्चैव पाणिभिः।। | 5-10-3a 5-10-3b |
उत्थाप्य चैनं शनकै राजानं पृथिवीतलात्। आसनं प्रापयामासुर्बाष्पकण्ठ्यो वराननाः।। | 5-10-4a 5-10-4b |
आसनं प्राप्य राजा तु मूर्च्छयाऽभिपरिप्लुतः। निश्चेष्टोऽतिष्ठत तदा वीज्यमानः समन्ततः।। | 5-10-5a 5-10-5b |
स लब्ध्वा शनकैः संज्ञां वेपमानो महीपतिः। पुनर्गावल्गणिं सूतं पर्यपृच्छद्यथातथम्।। | 5-10-6a 5-10-6b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-10-7x |
यः स उद्यन्निवादित्यो ज्योतिषा प्रणुदंस्तमः। अजातशत्रुमायान्तं कस्तं द्रोणादवारयत्।। | 5-10-7a 5-10-7b |
प्रभिन्नमिव मातङ्गं यथा क्रुद्धं तरस्विनम्। प्रसन्नवदनं दृष्ट्वा प्रतिद्विरदगामिनम्।। | 5-10-8a 5-10-8b |
वासितासङ्गमे यद्वदजय्यं प्रतियूथपैः। निजघान रणे वीरान्वीरः पुरुषसत्तमः।। | 5-10-9a 5-10-9b |
यो ह्येको हि महावीर्यो निर्दहेद्धोरचक्षुषा। कृत्स्नं दुर्योधनबलं धृतिमान्सत्यसङ्गरः।। | 5-10-10a 5-10-10b |
चक्षुर्हणं जये सक्तमिष्वासधरमच्युतम्। दान्तं बहुमतं लोके के शूराः पर्यवारयन्।। | 5-10-11a 5-10-11b |
के दुष्प्रधर्षं राजानमिष्वासधरमच्युतम्। समासेदुर्नरव्याघ्रं कौन्तेयं तत्र मामकाः।। | 5-10-12a 5-10-12b |
तरसैवाभिपद्याथ यो वै द्रोणमुपाद्रवत्। यः करोति महत्कर्म शत्रूणां वै महाबलः।। | 5-10-13a 5-10-13b |
महाकायो महोत्साहो नागायुतसमो बले। तं भीमसेनमायान्तं के शूराः पर्यवारयन्।। | 5-10-14a 5-10-14b |
यदायाज्जलदप्रख्यो रथः परमवीर्यवान्। पर्जन्य इव बीभत्सुस्तुमुलामशनीं सृजन्।। | 5-10-15a 5-10-15b |
विसृजञ्छरजालानि वर्षाणि मघवानिव। अवस्फूर्जन्दिशः सर्वास्तलनेमिस्वनेन च।। | 5-10-16a 5-10-16b |
चापविद्युत्प्रभो घोरो रथगुल्मवलाहकः। सनेमिघोषस्तनितः शरशब्दातिबन्धुरः।। | 5-10-17a 5-10-17b |
रोषनिर्जितजीमूतो मनोभिप्रायशीघ्रगः। मर्मातिगो बाणधरस्तुमुलः शोणितोदकैः।। | 5-10-18a 5-10-18b |
सम्प्लावयन्दिशः सर्वा मानवैरास्तरन्महीम्। भीमनिःस्वनितो रौद्रो दुर्योधनपुरोगमान्।। | 5-10-19a 5-10-19b |
युद्धेऽभ्यषिञ्चद्विजयो गार्ध्रपत्रैः शिलाशितैः। गाण्डीवं धारयन्धीमान्कीदृशं वो मनस्तदा।। | 5-10-20a 5-10-20b |
इषुसम्बाधमाकाशं कुर्वन्कपिवरध्वजः। यदायात्कथमासीत्तु तदा पार्थं समीक्षताम्।। | 5-10-21a 5-10-21b |
कच्चिद्गाण्डीवशब्देन न प्रणश्यति वै बलम्। यद्वः सभैरवं कुर्वन्नर्जुनो भृशमन्वयात्।। | 5-10-22a 5-10-22b |
कच्चिन्नापानुदत्प्रामानिषुभिर्वो धनञ्जयः। वातो वेगादिवाविध्यन्मेघाञ्शरगणैर्नृपान्।। | 5-10-23a 5-10-23b |
को हि गाण्डीवधन्वानं रणे सोढुं नरोऽर्हति। यमुषश्चुत्य सेनाग्रे जनः सर्वो विदीर्यते।। | 5-10-24a 5-10-24b |
यत्सेनाः समकम्पन्त यद्वीरानस्पृशद्भयम्। के तत्र नाजहुर्द्रोणं के क्षुद्राः प्राद्रवन्भयात्।। | 5-10-25a 5-10-25b |
के वा तत्र तनूस्त्यक्त्वा प्रतीपं मृत्युमाव्रजन्। अमानुषाणां जेतारं युद्धेष्वपि धनञ्जयम्।। | 5-10-26a 5-10-26b |
न च वेगं सिताश्वस्य विसहिष्यन्ति मामकाः। गाण्डीवस्य च निर्घोषं प्रावृड्जलदनिःस्वनम्।। | 5-10-27a 5-10-27b |
विष्वक्सेनो यस्य यन्ता यस्य योद्धा धनञ्चयः। अशक्यः स रथो जेतुं मन्ये देवासुरैरपि।। | 5-10-28a 5-10-28b |
सुकुमारो युवा शूरो दर्शनीयश्च पाण्डवः। मेधावी निपुणो धीमान्युधि सत्यपराक्रमः।। | 5-10-29a 5-10-29b |
आरावं विपुलं कुर्वन्व्यथयन्सर्वसैनिकान्। यदायान्नकुलो द्रोणं के शूराः पर्यवारयन्।। | 5-10-30a 5-10-30b |
आशीविष इव क्रुद्धः सहदेवो यदाऽभ्ययात्। कदनं करिष्यञ्शत्रूणां तेजसा दुर्जयो युधि।। | 5-10-31a 5-10-31b |
आर्यव्रतममोघेषुं हीमन्तमपराजितम्। सहदेवं तमायान्तं के शूराः पर्यवारयन्।। | 5-10-32a 5-10-32b |
यस्तु सौवीरराजस्य प्रमथ्य महतीं चमूम्। आदत्त महिषीं भोजां काम्यां सर्वाङ्गशोभनाम्।। | 5-10-33a 5-10-33b |
सत्यं धृतिश्च शौर्यं च ब्रह्मचर्यं च केवलम्। सर्वाणि युयुधानेऽस्मिन्नित्यानि पुरुषर्षभे।। | 5-10-34a 5-10-34b |
बलिनं सत्यकर्माणमदीनमपराजितम्। वासुदेवसमं युद्धे वासुदेवादनन्तरम्।। | 5-10-35a 5-10-35b |
धनञ्जयोपदेशेन श्रेष्ठमिष्वस्त्रकर्मणि। पार्थेन सममस्त्रेषु कस्तं द्रोणादवारयत्।। | 5-10-36a 5-10-36b |
वृष्णीनां प्रवरं वीरं शूरं सर्वधनुष्मताम्। रामेण सममस्त्रेषु यशसा विक्रमेण च।। | 5-10-37a 5-10-37b |
सत्यं धृतिर्मतिः शौर्यं ब्राह्मं चास्त्रमनुत्तमम्। सात्वते तानि सर्वाणि त्रैलोक्यमिव केशवे।। | 5-10-38a 5-10-38b |
तमेवङ्गुणसम्पन्नं दुर्वारमपि दैवतैः। समासाद्य महेष्वासं के शूराः पर्यवारयन्।। | 5-10-39a 5-10-39b |
पाञ्चालेषूत्तमं वीरमुत्तमाभिजनप्रियम्। नित्यमुत्तमकर्माणमुत्तमौजसमाहवे।। | 5-10-40a 5-10-40b |
युक्तं धनञ्जयहिते ममानर्थार्थमुत्थितम्। यमवैश्रवणादित्यमहेन्द्रवरुणोपमम्।। | 5-10-41a 5-10-41b |
महारथं समाख्यातं द्रोणायोद्यतमाहवे। त्यजन्तं तुमुले प्राणान्के शूराः समवारयन्।। | 5-10-42a 5-10-42b |
एकोपसृत्य चेदिभ्यः पाण्डवान्यः समाश्रितः। धृष्टकेतुं समायान्तं द्रोणं कस्तं न्यवारयत्।। | 5-10-43a 5-10-43b |
योऽवधीत्केतुमान्वीरो राजपुत्रं दुरासदम्। अपरान्तगिरिद्वारे द्रोणात्कस्तं न्यवारयत्।। | 5-10-44a 5-10-44b |
स्त्रीम्पुसयोर्नरव्याघ्रो यः स वेद गुणागुणान्। शिखण्डिनं याज्ञसेनिमम्लानमनसं युधि।। | 5-10-45a 5-10-45b |
देवव्रतस्य समरे हेतुं मृत्योर्महात्मनः। द्रोणायाभिमुखं यान्तं के शूराः पर्यवारयन्।। | 5-10-46a 5-10-46b |
यस्मिन्नभ्यधिका वीरे गुणाः सर्वे धनञ्जयात्। यस्मिन्नस्त्राणि सत्यं च ब्रह्मचर्यं च सर्वदा।। | 5-10-47a 5-10-47b |
वासुदेवसमं वीर्ये धनञ्जयसमं बले। तेजसाऽऽदित्यसदृशं बृहस्पतिसमं मतौ।। | 5-10-48a 5-10-48b |
अभिमन्युं महात्मानं व्यात्ताननमिवान्तकम्। द्रोणायाभिमुखं यान्तं के शूराः समवारयन्।। | 5-10-49a 5-10-49b |
तरुणस्तरुणप्रज्ञः सौभद्रः परवीरहा। यदाभ्यधावद्वै द्रोणं तदाऽऽसीद्वो मनः कथं।। | 5-10-50a 5-10-50b |
द्रौपदेया नरव्याघ्राः समुद्रमिव सिन्धवः। यद्रोणमाद्रवन्सङ्ख्ये के शूरास्तान्न्यवारयन्।। | 5-10-51a 5-10-51b |
एते द्वादश वर्षाणि क्रीडामुत्सृज्य बालकाः। अस्त्रार्थमवसन्भीष्मे बिभ्रतो व्रतमुत्तमम्।। | 5-10-52a 5-10-52b |
क्षत्रञ्जयः क्षत्रदेवः क्षत्रवर्मा च मानदः। धृष्टद्युम्नात्मजा वीराः के तान्द्रोणादवारयन्।। | 5-10-53a 5-10-53b |
शताद्विशिष्टं यं युद्धे सममन्यन्त वृष्णयः। चेकितानं महेष्वासं कस्तं द्रोणादवारयत्।। | 5-10-54a 5-10-54b |
वार्धक्षेमिः कलिङ्गानां यः कन्यामाहरद्युधि। अनाधृष्टिरदीनात्मा कस्तं द्रोणादवारयत्।। | 5-10-55a 5-10-55b |
भ्रातरः पञ्च कैकेया धार्मिकाः सत्यविक्रमाः। इन्द्रगोपकसङ्काशा रक्तवर्मायुधध्वजाः।। | 5-10-56a 5-10-56b |
मातृष्वसुः सुता वीराः पाण्डवानां जयार्थिनः। तान्द्रोणं हन्तुमायातान्के वीराः पर्यवारयन्।। | 5-10-57a 5-10-57b |
यं योधयन्तो राजानो नाजयन्वारणावते। षण्मासानपि संरब्धा जिघांसन्तो युधां पतिं।। | 5-10-58a 5-10-88b |
धनुष्मतां वरं शूरं सत्यसन्धं महाबलम्। द्रोणात्कस्तं नरव्याघ्रं युयुत्सुं पर्यवारयत्।। | 5-10-59a 5-10-59b |
यः पुत्रं काशिराजस्य वाराणस्यां महारथम्। समरे स्त्रीषु गृध्यन्तं भल्लेनापाहरद्रथात्।। | 5-10-60a 5-10-60b |
धृष्टद्युम्नं महेष्वासं पार्थानां मन्त्रधारिणम्। युक्तं दुर्योधनानर्थे सृष्टं द्रोणवधाय च।। | 5-10-61a 5-10-61b |
निर्दहन्तं रणे योधान्दारयन्तं च सर्वतः। द्रोणाभिमुखमायान्तं के शूराः पर्यवारयन्।। | 5-10-62a 5-10-62b |
उत्सङ्ग इव सम्वृद्धं द्रुपदस्यास्त्रवित्तमम्। शैखण्डिनं शस्त्रगुप्तं के द्रोणादवारयन्।। | 5-10-63a 5-10-63b |
य इमां पृथिवीं कृत्स्नां चर्मवत्समवेष्टयत्। महता रथघोषेण मुख्यारिघ्नो महारथः।। | 5-10-64a 5-10-64b |
दशाश्वमेधानाजहे स्वन्नपानाप्तदक्षिणान्। निरर्गलान्सर्वमेधान्पुत्रवत्पालयन्प्रजाः।। | 5-10-65a 5-10-65b |
विसृष्टा दक्षिणा यस्य गङ्गाजलमवारयत्। गङ्गास्रोतसि यावत्यः सिकता अप्यशेषतः। तावतीर्गा ददौ वीर उशीनरसुतोऽध्वरे।। | 5-10-66a 5-10-66b 5-10-66c |
न पूर्वे नापरे चक्रुरिदं केचन मानवाः। इतीदं चुक्रुशुर्देवाः कृते कर्मणि दुष्करे।। | 5-10-67a 5-10-67b |
पश्यामस्त्रिषु लोकेषु न तं संस्थास्नुचारिषु। जातं चापि जनिष्यन्तं द्वितीयं चापि साम्प्रतम्।। | 5-10-68a 5-10-68b |
अन्यमौशीनराच्छेब्याद्धुरो वोढारमित्युत। गतिं यस्य न यास्यन्ति मानुषा लोकवासिनः।। | 5-10-69a 5-10-69b |
तस्य नप्तारमायान्तं शैब्यं कः समवारयत्। द्रोणायाभिमुखं यत्तं व्यात्ताननमिवान्तकम्।। | 5-10-70a 5-10-70b |
विराटस्य रथानीकं मत्स्यस्यामित्रघातिनः। प्रेप्सन्तं समरे द्रोणं के वीराः पर्यवारयन्।। | 5-10-71a 5-10-71b |
सद्यो वृकोदराज्जातो महाबलपराक्रमः। मायावी राक्षसो वीरो यस्मान्मम महद्भयम्।। | 5-10-72a 5-10-72b |
पार्थानां जयकामं तं तं पुत्राणां मम कण्टकम्। घटोत्कचं महात्मानं कस्तं द्रोणादवारयत्।। | 5-10-73a 5-10-73b |
एते चान्ये च बहवो येषामजितं युधि। त्यक्तारः संयुगे प्राणान्किं तेषामजितं युधि।। | 5-10-74a 5-10-74b |
येषां च पुरुषव्याघ्रः शार्ङ्गधन्वा व्यपाश्रयः।। लोकानां गुरुरत्यर्थं लोकनाथः सनातनः। | 5-10-75a 5-10-75b |
नारायणोरणे नाथो दिव्यो दिव्यात्मकः प्रभुः।। यस्य दिव्यानि कर्माणि प्रवदन्ति मनीषिणः। | 5-10-76a 5-10-76b |
तान्यहं कीर्तयिष्यामि भक्त्या स्थैर्यार्थमात्मनः।। | 5-10-77a |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि द्रोणाभिषेकपर्वणि दशमोऽध्यायः।। 10 ।। |
5-10-8 सः प्रसिद्धः। तमजातशत्रुम् आयान्तं दृष्ट्वा द्रोणात्कः अवारयदित्यन्वयः।। 5-10-15 यदा अयात् यदा च दुर्योधनपुरोगमान्गार्ध्रपत्रैरभ्यषिञ्चत्तदा वो मनः क्रीदृशमभूदिति षष्ठेनान्वयः।। 5-10-34 युयुधाने सात्यकौ।। 5-10-38 सात्वते सात्यकौ।। 5-10-68 स्थास्रुचारिषु स्थावरजङ्गमात्मकेषु। स्नमित्यस्य व्यवहितेन पश्याम इत्यनेन सम्बन्धः।। 5-10-10 दशमोऽध्यायः।। 10 ।।
द्रोणपर्व-009 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-011 |