महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-129
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भीमेन कर्णपराजयो दुःशलवधश्च।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 5-129-1x |
निनदन्तं तथा तं तु भीमसेनं महाबलम्। मेघस्तनितनिर्घोषं के वीराः पर्यवारयन्।। | 5-129-1a 5-129-1b |
न हि पश्याम्यहं तं वै त्रिषु लोकेषु कञ्चन। क्रुद्धस्य भीमसेनस्य यस्तिष्ठेदग्रतो रणे।। | 5-129-2a 5-129-2b |
गदां युयुत्समानस्य कालस्येवेह सञ्चय। न हि पश्याम्यहं युद्धे यस्तिष्ठेदग्रतः पुमान्।। | 5-129-3a 5-129-3b |
रथं रथेन यो हन्यात्कुञ्जरं कुञ्चरेण च। कस्तस्य समरे स्थाता साक्षादपि पुरन्दरः।। | 5-129-4a 5-129-4b |
क्रुद्धस्य भीमसेनस्य मम पुत्राञ्जिघांसतः। दुर्योधनहिते युक्ताः समतिष्ठन्त केऽग्रतः।। | 5-129-5a 5-129-5b |
भीमसेनदवाग्नेस्तु मम पुत्रांस्तृणोलपम्। प्रधक्ष्यतो रणमुखे केऽतिष्ठन्नग्रतो नराः।। | 5-129-6a 5-129-6b |
काल्यमानांस्तु पुत्रान्मे दृष्ट्वा भीमस्य संयुगे। कालेनेव प्रजाः सर्वाः के भीमं पर्यवारयन्।। | 5-129-7a 5-129-7b |
न मेऽर्जुनाद्भयं तादृक्कृष्णान्नापि च सात्वतात्। हुतभुग्जन्मनो नैव यादृग्भीमाद्भयं मम।। | 5-129-8a 5-129-8b |
भीमवह्नेः प्रदीप्तस्य मम पुत्रान्दिधक्षतः। के शूराः पर्यवर्तन्त तन्ममाचक्ष्व सञ्जय।। | 5-129-9a 5-129-9b |
सञ्चय उवाच। | 5-129-10x |
तथा तु नर्दमानं तं भीमसेनं महाबलम्। तुमुलेनैव शब्देन कर्णोऽप्यभ्यद्रवद्बली।। | 5-129-10a 5-129-10b |
व्याक्षिपन्सुमहच्चापमतिमात्रममर्षणः। कर्णः सुयुद्धमाकाङ्क्षन्दर्शयिष्यन्बलं मृधे।। | 5-129-11a 5-129-11b |
रुरोध मार्गं भीमस्य वातस्येव महीरुहः। भीमोऽपि दृष्ट्वा सावेगं पुरो वैकर्तनं स्थितम्।। | 5-129-12a 5-129-12b |
चुकोप बलवद्वीरश्चिक्षेपास्य शिलाशितान्। तान्प्रत्यगृह्णात्कर्णोऽपि प्रतीपं प्रापयच्छरान्।। | 5-129-13a 5-129-13b |
ततस्तु सर्वयोधानां यतनां प्रेक्षतां तदा। प्रावेपन्निव गात्राणि कर्णभीमसमागमे।। | 5-129-14a 5-129-14b |
रथिनां सादिनां चैव तयोः श्रुत्वा तलस्वनम्। भीमसेनस्य निनदं श्रुत्वा घोरं रणाजिरे।। | 5-129-15a 5-129-15b |
खं च भूमिं च संरुद्धां मेनिरे क्षत्रियर्षभाः। पुनर्घोरेण नादेन पाण्डवस्य महात्मनः।। | 5-129-16a 5-129-16b |
समरे सर्वयोधानां धनूंष्यभ्यपतन्क्षितौ। शस्त्राणि न्यपतन्दोर्भ्यः केषाञ्चिच्चासवोऽद्रवन्।। | 5-129-17a 5-129-17b |
वित्रस्तानि च सर्वाणि शकृन्मूत्रं प्रसुस्रुवुः। वाहनानि च सर्वाणि बभूवुर्विमनांसि च।। | 5-129-18a 5-129-18b |
प्रादुरासन्निमित्तानि घोराणि सुबहून्युत। गृध्रकङ्कबलैश्चासीदन्तरिक्षं समावृतम्।। | 5-129-19a 5-129-19b |
तस्मिन्सुतुमुले राजन्कर्णभीमसमागमे। ततः कर्णस्तु विंशत्या शराणां भीममार्दयत्।। | 5-129-20a 5-129-20b |
विव्याध चास्य त्वरितः सूतं पञ्चभिराशुगैः। प्रहस्य भीमसेनोऽपि कर्णं प्रत्याद्रवद्रणे।। | 5-129-21a 5-129-21b |
सायकानां चतुः षष्ट्या क्षिप्रकारी महायशाः। तस्य कर्णो महेष्वासः सायकांश्चतुरोऽक्षिपत्।। | 5-129-22a 5-129-22b |
असम्प्राप्तांश्च तान्भीमः सायकैर्नतपर्वभिः। चिच्छेद बहुधा राजन्दर्शयन्पाणिलाघवम्।। | 5-129-23a 5-129-23b |
तं कर्णश्चादयामास शरव्रातैरनेकशः। सञ्छाद्यमानः कर्णेन बहुधा पाण्डुनन्दनः।। | 5-129-24a 5-129-24b |
चिच्छेद चापं कर्णस्य मुष्टिदेशे महारथः। विव्याध चैनं बहुभिः सायकैर्नतपर्वभिः।। | 5-129-25a 5-129-25b |
अथान्यद्धनुरादाय सञ्यं कृत्वा च सूतजः। विव्याध समरे भीमं भीमकर्मा महारथः।। | 5-129-26a 5-129-26b |
तस्य बीमो भृशं क्रुद्धस्त्रीञ्शरान्नतपर्वणः। निचखानोरसि क्रुद्धः सूतपुत्रस्य वेगतः।। | 5-129-27a 5-129-27b |
तैः कर्णोऽराजत शरैरुरोमध्यगतैः सदा। महीधर इवोदग्रस्त्रिशृङ्गो भरतर्षभ।। | 5-129-28a 5-129-28b |
सुस्राव चास्य रुधिरं विद्धस्य परमेषुभिः। धातुप्रस्यन्दिनः शैलाद्यथा गैरिकधातवः।। | 5-129-29a 5-129-29b |
किञ्चिद्विचलितः कर्णः सुप्रहाराभिपीडितः। आकर्णपूर्णमाकृष्य भीमं विव्याध सायकैः।। | 5-129-30a 5-129-30b |
चिक्षेप च पुनर्बाणाञ्शतशोऽथ सहस्रशः। स शरैरर्दितस्तेन कर्णेन दृढधन्विना। धनुर्ज्यामच्छिनत्तूर्णं भीमस्तस्य क्षुरेण ह।। | 5-129-31a 5-129-31b 5-129-31c |
सारथिं चास्य भल्लेन रथनीडादपातयत्। वाहांश्च चतुरस्तस्य व्यसूंश्चक्रे महारथः।। | 5-129-32a 5-129-32b |
हताश्वात्तु रथात्कर्णः समाप्लुत्य विशाम्पते। स्यन्दनं वृषसेनस्य तूर्णमापुप्लुवे भयात्।। | 5-129-33a 5-129-33b |
निर्जित्य तु रणे कर्णं भीमसेनः प्रतापवान्। ननाद बलवान्नादं पर्जन्यनिनदोपमम्।। | 5-129-34a 5-129-34b |
तस्य तं निनदं श्रुत्वा प्रहृष्टोऽभूद्युधिष्ठिरः। कर्णं पराजितं मत्वा भीमसेनेन संयुगे।। | 5-129-35a 5-129-35b |
समन्ताच्छङ्खनिनदं पाण्डुसेनाऽकरोत्तदा। शत्रुसेनाध्वनिं श्रुत्वा तावका ह्यनदन्भृशम्।। | 5-129-36a 5-129-36b |
स शङ्खबाणनिनदैर्हर्षाद्राजा स्ववाहिनीम्। चक्रे युधिष्ठिरः सङ्ख्ये हर्षनादैश्च सङ्कुलाम्।। गाण्डीवं व्याक्षिपत्पार्थः कृष्णोऽप्यब्जमवादयत् | 5-129-37a 5-129-37b 5-129-37c |
तमन्तर्धाय निनदं भीमस्य नदतो ध्वनिः। अश्रूयत तदा राजन्सर्वसैन्येषु दारुणः।। | 5-129-38a 5-129-38b |
ततो व्यायच्छतामस्त्रैः पृथक्पृथगजिह्मगैः। मृदुपूर्वं तु राधेयो दृढपूर्वं तु पाण्डवः।। | 5-129-39a 5-129-39b |
`भीमोऽपि च महाराज वैकर्तनमुपाद्रवत्। आसुरे तु महासैन्ये तारकं पावकिर्यथा।। | 5-129-40a 5-129-40b |
तयोरेवं महद्युद्धमभवद्भीमकर्णयोः। तं भीमसेनो महता शरवर्षेण वारयन्।। | 5-129-41a 5-129-41b |
विव्याध सारथिं चास्य हयांश्च चतुरः शरैः। ध्वजं चास्य पताकां च भल्लैः सन्नतपर्वभिः। रथं च चक्ररक्षौ च भीमश्चिच्छेद मारिष।। | 5-129-42a 5-129-42b 5-129-42c |
कर्णोऽपि रथिनां श्रेष्ठो भीमसेनेन कम्पितः। खङ्गचर्मधरो राजन्भीममभ्यद्रवद्बली।। | 5-129-43a 5-129-43b |
भीमश्चिच्छेद खङ्गं च चर्मणा सह मारिष।। | 5-129-44a |
दृष्ट्वा कर्णं च पार्थेन बाधितं बहुभिः शरैः। दुर्योधनो महाराज दुश्शलं प्रत्यभाषत। कर्णं कृच्छ्रगतं पश्य शीघ्रं यानं प्रयच्छह।। | 5-129-45a 5-129-45b 5-129-45b |
सञ्जय उवाच। | 5-129-46x |
एवमुक्तस्ततो राज्ञा दुश्शलः समुपाद्रवत्। दुश्शलस्य रथं कर्णश्चारुरोह महारथः।। | 5-129-46a 5-129-46b |
तौ पार्थः सहसा गत्वा विव्याध दशभिः शरैः। पुनश्च कर्णं विद्ध्वाऽपि दुश्शलस्य शिरोऽहरत्।। | 5-129-47a 5-129-47b |
दुश्शलं निहतं दृष्ट्वा भीमसेनेन मारिष। तस्यैव धनुरादाय कर्णो विव्याध पाण्डवम्।। | 5-129-48a 5-129-48b |
अन्योन्यं समरे वीरौ युयुधाते महाबलौ। शत्रुघ्नौ शत्रुमध्ये तु बलवज्रभृताविव।। | 5-129-49a 5-129-49b |
भीमो विद्धा हयांश्चैव सारथिं च पुनः पुनः। कर्णमभ्यद्रवत्पार्थः प्रहसंश्च महाबलः।। | 5-129-50a 5-129-50b |
ततो व्यायच्छमानस्य भीमसेनस्य संयुगे। तत्सैन्यं कलिलीभूतं न प्राज्ञायत किञ्चन।। | 5-129-51a 5-129-51b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे एकोनत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 129 ।। |
5-129-1 युयुत्समानस्य व्यापारयतः।। 5-129- सावेगं सत्वरम्।। 5-129- संरुद्धामेकतामापन्नाम्।। 5-129- व्यायच्छतां प्रहरताम्।। 5-129- एकोनत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 129 ।।
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