महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-134
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भीमेन पराजितस्य कर्णस्य पलायनम्।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-134-1x |
सर्वथा विरथः कर्णः पुनर्भीमेन निर्जितः। रथमन्यं समास्थाय पुनर्विव्याध पाण्डवम्।। | 5-134-1a 5-134-1b |
महागजाविवासाद्य विषाणाग्रैः परस्परम्। शरैः पूर्णायतोत्सृष्टैरन्योन्यमभिजघ्नतुः।। | 5-134-2a 5-134-2b |
अथ कर्णः शरव्रातैर्भीमसेनं समार्पयत्। ननाद च महानादं पुनर्विव्याध चोरसि।। | 5-134-3a 5-134-3b |
तं भीमो दशभिर्बाणैः प्रत्यविध्यदजिह्मगैः। पुनर्विव्याध सप्तत्या शराणां नतपर्वणाम्।। | 5-134-4a 5-134-4b |
कर्णस्तु नवभिर्भीमं भित्त्वा राजंस्तनान्तरे। ध्वजमेकेन विव्याध विशोकं च त्रिभिः शरैः।। | 5-134-5a 5-134-5b |
सायकानां ततः पार्थस्त्रिषष्ट्या प्रत्यविध्यत। तोत्रैरिव महानागं कशाभिरिव वाजिनम्।। | 5-134-6a 5-134-6b |
सोऽतिविद्धो महाराज पाण्डवेन यशस्विना। सृक्विणी लेलिहन्वीरः क्रोधरक्तान्तलोचनः।। | 5-134-7a 5-134-7b |
ततः शरं महाराज सर्वकायावदारणम्। प्राहिणोद्भीमसेनाय बलायेन्द्र इवाशनिम्।। | 5-134-8a 5-134-8b |
स निर्भिद्य रणे पार्थं सूतपुत्रधनुश्च्युतः। अगच्छद्दारयन्भूमिं चित्रपुङ्खः शिलीमुखः।। | 5-134-9a 5-134-9b |
ततो भीमो महाबाहुः क्रोधसंरक्तलोचनः। वज्रकल्पां चतुष्किष्कुं गुर्वी रुक्माङ्गदां गदाम्। प्राहिणोत्मूतपुत्राय षडस्रामविचारयन्।। | 5-134-10a 5-134-10b 5-134-10c |
तया जघानाधिरथेः सदश्वान्साधुवाहिनः। गदया भारतः क्रुद्धो वज्रेणेन्द्र इवासुरान्।। | 5-134-11a 5-134-11b |
ततो भीमो महाबाहुः क्षुराभ्यां भरतर्षभ। ध्वजमाघिरथेश्छित्त्वा सूतमभ्यहनच्छरैः।। | 5-134-12a 5-134-12b |
हताश्वसूतमुत्सृज्य स रथं पतितध्वजम्। विष्फारयन्धनुः कर्णस्तस्थौ भारत दुर्मनाः।। | 5-134-13a 5-134-13b |
तत्राद्भुतमपश्याम राधेयस्य पराक्रमम्। विरथो रथिनां श्रेष्ठो वारयामास यद्रिपुम्।। | 5-134-14a 5-134-14b |
विरथं तं नरश्रेष्ठं दृष्ट्वाऽऽधिरथिमाहवे। दुर्योधनस्ततो राजन्नभ्यभाषत दुर्मुखम्।। | 5-134-15a 5-134-15b |
एष दुर्मुख राधेयो भीमेन विरथीकृतः। तं रथेन नरश्रेष्ठ सम्पादय महारथम्।। | 5-134-16a 5-134-16b |
ततो दुर्योधनवचः श्रुत्वा भारत दुर्मुखः। त्वरमाणोऽभ्ययात्कर्णं भीमं चावारयच्छरैः।। | 5-134-17a 5-134-17b |
दुर्मुखं प्रेक्ष्य सङ्ग्रामे सूतपुत्रपदानुगम्। वायुपुत्रः प्रहृष्टोऽभूत्सृक्विणी परिसंलिहन्।। | 5-134-18a 5-134-18b |
ततः कर्णं महाराज वारयित्वा शिलीमुखैः। दुर्मुखाय रथं तूर्णं प्रेषयामास पाण्डवः।। | 5-134-19a 5-134-19b |
तस्मिन्क्षणे महाराज नवभिर्नतपर्वभिः। सुमुखैर्दुर्मुखं भीमः शरैर्निन्ये यमक्षयम्।। | 5-134-20a 5-134-20b |
ततस्तमेवाधिरथिः स्यन्दनं दुर्मुखे हते। आस्थितः प्रबभौ राजन्दीप्यमान इवांशुमान्।। | 5-134-21a 5-134-21b |
शयानं भिन्नमर्माणं दुर्मुखं शोणितोक्षितम्। दृष्ट्वा कर्णोऽश्रुपूर्णाक्षो मुहूर्तं नाभ्यवर्तत।। | 5-134-22a 5-134-22b |
तं गतासुमतिक्रम्य कृत्वा कर्णः प्रदक्षिणम्। दीर्घमुष्णं श्वसन्वीरो न किञ्चित्प्रत्यपद्यत।। | 5-134-23a 5-134-23b |
तस्मिंस्तु विवरे राजन्नाराचान्गार्धवाससः। प्राहिणोत्सूतपुत्राय भीमसेनश्चतुर्दश।। | 5-134-24a 5-134-24b |
ते तस्य कवचं भित्त्वा स्वर्णचित्रं महोजसः। हेमपुङ्खा महाराज व्यशोभन्त दिशो दश।। | 5-134-25a 5-134-25b |
अपिबन्सूत पुत्रस्य शोणितं रक्तभोजनाः। क्रुद्धा इव मनुष्येन्द्र भुजङ्गाः कालचोदिताः।। | 5-134-26a 5-134-26b |
प्रसर्पमाणा मेदिन्यां ते व्यरोचन्त मार्गणाः। अर्धप्रविष्टाः संरब्धा बिलानीव महोरगाः।। | 5-134-27a 5-134-27b |
तं प्रत्यविध्यद्राधेयो जाम्बूनदविभूषितैः। चतुर्दशभिरत्युग्रैर्नाराचैरविचारयन्।। | 5-134-28a 5-134-28b |
ते भीमसेनस्य भुजं सव्यं निर्भिद्य पत्रिणः। प्राविशन्मेदिनीं भीमाः क्रौञ्चं पत्ररथा इव।। | 5-134-29a 5-134-29b |
ते व्यरोचन्त नाराचाः प्रविशन्तो वसुन्धराम्। गच्छत्यस्तं दिनकरे दीप्यमाना इवांशवः।। | 5-134-30a 5-134-30b |
स निर्भिन्नो रणे भीमो नाराचैर्मर्मभेदिभिः। सुस्राव रुधिरं भूरि पर्वतः सलिलं यथा।। | 5-134-31a 5-134-31b |
स भीमस्त्रिभिरायस्तः सूतपुत्रं पतत्रिभिः। सुपर्णवेगैर्विव्याध सारथिं चास्य सप्तभिः।। | 5-134-32a 5-134-32b |
स विह्वलो महाराज कर्णो भीमशराहतः। प्राद्रवज्जवनैरश्वै रणं हित्वा महाभयात्।। | 5-134-33a 5-134-33b |
भीमसेनस्तु विष्फार्य चापं हेमपरिष्कृतम्। आहवेऽतिरथोऽतिष्ठज्ज्वलन्निव हुताशनः।। | 5-134-34a 5-134-34b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे चतुस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 134 ।। |
5-134-10 ततः शैक्यां चतुष्किष्कुं इति क.ख.ङ.पाठः।। 5-134-32 सुष्ठु पर्णानां पत्राणां वेगो येषाम्।। 32 ।। 5-134-134 चतुस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।।
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