महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-024
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धृतराष्ट्रेण पुत्रान्प्रति शोचनपूर्वकं सञ्जयम्प्रति युद्धकथनचोदना।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 5-24-1x |
व्यथयेयुरिमे सेनां देवानामपि सञ्जय। आहवे ये न्यवर्तन्त वृकोदरमुखा नृपाः।। | 5-24-1a 5-24-1b |
सम्प्रयुक्तः किलैवायं दिष्टैर्भवति पूरुषः। तस्मिन्नेव च सर्वार्थाः प्रदृश्यन्ते पृथग्विधाः।। | 5-24-2a 5-24-2b |
दीर्घं विप्रोषितः कालमरण्ये जटिलोऽजिनी। अज्ञातश्चैव लोकस्य विजहार युधिष्ठिरः।। | 5-24-3a 5-24-3b |
स एव महतीं सेनां समावर्तयदाहवे। किमन्यद्दैवसंयोगान्मम पुत्राभवाय च।। | 5-24-4a 5-24-4b |
युक्त एव हि भाग्येन ध्रुवमुत्पद्यते नरः। स तथाऽऽकृष्यते तेन न यथा स्वयमिच्छति।। | 5-24-5a 5-24-5b |
द्यूतव्यसनमासाद्य क्लेशितो हि युधिष्ठिरः। स पुनर्भागधेयेन सहायानुपलब्धवान्।। | 5-24-6a 5-24-6b |
अर्थे मे केकया लब्धाः काशिका कोसलाश्चये। चेदीनां चार्धमपरे मामे व समुपाश्रिताः।। | 5-24-7a 5-24-7b |
पृथिवी भूयसी तात मम पार्थस्य नो तथा। इति मामब्रवीत्सूत मन्दो दुर्योधनः पुरा।। | 5-24-8a 5-24-8b |
तस्य सेनासमूहस्य मध्ये द्रोणः सुरक्षितः। निहतः पार्षतेनाजौ किमन्यद्भागधेयतः।। | 5-24-9a 5-24-9b |
मध्ये राज्ञां महाबाहुं सदा युद्धाभिनन्दिनम्। सर्वास्त्रपारगं द्रोणं कथं मृत्युरुपेयिवान्।। | 5-24-10a 5-24-10b |
समनुप्राप्तकृच्छ्रोऽहं मोहं परममागतः। भीष्मद्रोणौ हतौ श्रुत्वा नाहं जीवितुमुत्सहे।। | 5-24-11a 5-24-11b |
यन्मां क्षत्ताऽब्रवीत्तात प्रपश्यन्पुत्रगृद्धिनम्। दुर्योधनेन तत्सर्वं प्राप्तं सूत मया सह।। | 5-24-12a 5-24-12b |
नृशंसं तु परं तात त्यक्त्वा दुर्योधनं यदि। पुत्रशेषं चिकीर्षेयं कृत्स्नं न मरणं व्रजेत्।। | 5-24-13a 5-24-13b |
यो हि धर्मं परित्यज्य भवत्यर्थपरो नरः। सोऽस्माच्च हीयते लोकात्क्षुद्रभावं च गच्छति।। | 5-24-14a 5-24-14b |
अद्य चाप्यस्य राष्ट्रस्य कृतोच्छेदस्य सञ्जय। अवशेषं न पश्यामि ककुदे मृदिते सति।। | 5-24-15a 5-24-15b |
कथं स्यादवशेषो हि धुर्ययोरभ्यतीतयोः। यौ नित्यमुपजीवामः क्षमिणौ पुरुषर्षभौ।। | 5-24-16a 5-24-16b |
व्यक्तमेव च मे शंस यथा युद्धमवर्तत। केऽयुध्यन्के व्यपाकुर्वन्के क्षुद्राः प्राद्रवन्भयात्।। | 5-24-17a 5-24-17b |
धनुञ्जयं च मे शंस यद्यच्चक्रे रथर्षभः। तस्माद्भयं नो भूयिष्ठं भ्रातृव्याच्च वृकोदरात्।। | 5-24-18a 5-24-18b |
यथाऽसीच्च निवृत्तेषु पाण्डवेयेषु सञ्जय। मम सैन्यावशेषस्य सन्निपातः सुदारुणः।। | 5-24-19a 5-24-19b |
कथं च वो मनस्तात निवृत्तेष्वभवत्तदा। मामकानां च ये शूराः के कांस्तत्र न्यवारयन्।। | 5-24-20a 5-24-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि चतुर्विंशोऽध्यायः।। 24 ।। |
5-24-2 संप्रयुक्तः सम्बद्धः। भवति उत्पद्यते। तस्मिन् दिष्ट एव।। 5-24-18 भ्रातृव्यादमित्रात्।। 5-24-24 चतुर्विशोऽध्यायः।।
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