महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-020
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सङ्कुलयुद्धवर्णनम्।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-20-1x |
परिणाम्य निशां तां तु भारद्वाजो महारथः। उक्त्वा सुबहु राजेन्द्र वचनं वै सुयोधनम्।। | 5-20-1a 5-20-1b |
विधाय गोप्तॄन्पार्थस्य संशप्तकगणैः सह। निष्क्रान्ते च तदा पार्थे संशप्तकवधं प्रति।। | 5-20-2a 5-20-2b |
व्यूढानीकस्ततो द्रोणः पाण्डवानां महाचमूम्। अभ्ययाद्भरतश्रेष्ठ धर्मराजजिघृक्षया।। | 5-20-3a 5-20-3b |
व्यूढां दृष्ट्वा सुपर्णेन भारद्वाजस्य तां चमूम्। व्यूहेन मण्डलार्धेन प्रत्यव्यूहद्युधिष्ठिरः।। | 5-20-4a 5-20-4b |
मुखं त्वासीत्सुपर्णस्य भारद्वाजो महारथः। शिरो दुर्योधनो राजा सोदर्यैः सानुगैर्वृतः।। | 5-20-5a 5-20-5b |
चक्षुषी कृतवर्माऽऽसीद्गौतमश्चास्यतां वरः।। | 5-20-6a |
भूतशर्मा क्षेमशर्मा करकाक्षश्च वीर्यवान्। कलिङ्गाः सिंहलाः प्राच्याः शूरा भीरा दशेरकाः।। | 5-20-7a 5-20-7b |
शका यवनकाम्भोजास्तथा हंसपथाश्च ये। ग्रीवायां शूरसेनाश्च दरन्दा मद्रकेकयाः। गजाश्वरथपत्त्योघास्तस्थुः परमदंशिताः।। | 5-20-8a 5-20-8b 5-20-8c |
भूरिश्रवास्तथा शल्यः सोमदत्तश्च बाह्लिकः। अक्षौहिण्या वृता वीरा दक्षिणं पार्श्वमास्थिताः।। | 5-20-9a 5-20-9b |
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ काम्भोजश्च सुदक्षिणः। वामं पार्श्वं समाश्रित्य द्रोणपुत्राग्रतः स्थिताः।। | 5-20-10a 5-20-10b |
पृष्ठे कलिङ्गाः साम्बष्ठा मागधाः पौण्ड्रमद्रकाः। गान्धाराः शकुनाः प्राच्याः पार्वतीया वसातयः।। | 5-20-11a 5-20-11b |
पुच्छे वैकर्तनः कर्णः सपुत्रज्ञातिबान्धवः। महत्या सेनया तस्थौ नानाजनपदोत्थया।। | 5-20-12a 5-20-12b |
जयद्रथो भीमरथः सम्पातिर्ऋषभो जयः। भूमिञ्जयो वृषक्राथो नैषधश्च महाबलः।। | 5-20-13a 5-20-13b |
वृता बलेन महता ब्रह्मलोकपरिष्कृताः। व्यूहस्योरसि ते राजन्स्थिता युद्धविशारदाः।। | 5-20-14a 5-20-14b |
द्रोणेन विहितो व्यूहः पदात्यश्वरथद्विपैः। वातोद्धूतार्णवाकारः प्रनृत्त इव लक्ष्यते।। | 5-20-15a 5-20-15b |
तस्य पक्षप्रपक्षेभ्यो निष्पतन्ति युयुत्सवः। सविद्युत्स्तनिता मेघाः सर्वदिग्भ्यः इवोष्णगे।। | 5-20-16a 5-20-16b |
तस्य प्राग्ज्योतिषो मध्ये विधिवत्कल्पितं गजम्। आस्थितः शुशुभे राजन्नंशुमानुदये यथा।। | 5-20-17a 5-20-17b |
माल्यदामवता राजञ्श्वेतच्छत्रेण धार्यता। कृत्तिकायोगयुक्तेन पौर्णमास्यामिवेन्दुना।। | 5-20-18a 5-20-18b |
नीलाञ्जनचयप्रख्यो मदान्धो द्विरदो बभौ। अतिवृष्टो महामेघैर्यथा स्यात्पर्वतो महान्।। | 5-20-19a 5-20-19b |
नानानृपतिभिर्वीरै र्विविधायुधभूषणैः। समन्वितः पार्वतीयैः शक्रो देवगणैरिव।। | 5-20-20a 5-20-20b |
ततो युधिष्ठिरः प्रेक्ष्य व्यूहं तमतिमानुषम्। अजय्यमरिभिः सङ्ख्ये पार्षतं वाक्यमब्रवीत्।। | 5-20-21a 5-20-21b |
ब्राह्मणस्य वशं नाहमियामद्य यथा प्रभो। पारावतसवर्णाश्व तथा नीतिर्विधीयताम्।। | 5-20-22a 5-20-22b |
धृष्टद्युम्न उवाच। | 5-20-23x |
द्रोणस्य यतमानस्य वशं नैष्यसि सुव्रत। अहमावारयिष्यामि द्रोणमद्य सहानुगम्।। | 5-20-23a 5-20-23b |
मयि जीवति कौरव्य नोद्वेगं कर्तुमर्हसि। न हि शक्तो रणे द्रोणो विजेतुं मां कथञ्चन।। | 5-20-24a 5-20-24b |
सञ्जय उवाच। | 5-20-25x |
एवमुक्त्वा किरन्बाणान्द्रुपदस्य सुतो बली। पारावतसवर्णाश्वः स्वयं द्रोणमुपाद्रवत्।। | 5-20-25a 5-20-25b |
अनिष्टदर्शनं दृष्ट्वा धृष्टद्युम्नमवस्थितम्। क्षणेनैवाभवद्द्रोणो नातिहृष्टमना इव।। | 5-20-26a 5-20-26b |
`स हि जातो महाराज द्रोणस्य निधनं प्रति।। | 5-20-27a |
मर्त्यधर्मतया तस्माद्भारद्वाजो व्यमुह्यत। नाशकत्तत्र तत्किञ्चिदनीकं प्रतिवीक्षितुम्।। | 5-20-28a 5-20-28b |
ततः किरन्निषूंस्तीक्ष्णान्द्रुपदस्य वरूथिनीम्। भराद्वाजो ययौ तूर्णं पार्षतं वर्जयन्युधि। द्रुपदस्य महत्सैन्यं दारयामास ब्राह्मणः'।। | 5-20-29a 5-20-29b 5-20-29c |
तं तु सम्प्रेक्ष्य पुत्रस्ते दुर्मुखः शत्रुकर्षणः। प्रियं चिकीर्षुर्द्रोणस्य धृष्टद्युम्नमवारयत्।। | 5-20-30a 5-20-30b |
स सम्प्रहारस्तुमुलः सुघोरः समपद्यत। पार्षतस्य च शूरस्य दुर्मुखस्य च भारत।। | 5-20-31a 5-20-31b |
पार्षतः शरजालेन क्षिप्रं प्रच्छाद्य दुर्मुखम्। भारद्वाजं शरौघेण महता समवारयत्।। | 5-20-32a 5-20-32b |
द्रोणावारितं दृष्ट्वा भृशायस्तस्तवात्मजः। नानालिङ्गैः शरव्रातैः पार्षतं सममोहयत्।। | 5-20-33a 5-20-33b |
तयोर्विषक्तयोः सङ्ख्ये पाञ्चाल्यकुरुमुख्ययोः। द्रोणो यौधिष्ठिरं सैन्यं बहुधा व्यधमच्छरैः।। | 5-20-34a 5-20-34b |
अनिलेन यथाऽभ्राणि विच्छिन्नानि समन्ततः। तथा पार्थस्य सैन्यानि विच्छिन्नानि क्वचित्क्वचित्।। | 5-20-35a 5-20-35b |
मुहूर्तमिव तद्युद्धमासीन्मधुरदर्शनम्। तत उन्मत्तवद्राजन्निर्मर्यादमवर्तत।। | 5-20-36a 5-20-36b |
`नैव खं न दिशो भूमिर्बभासे न च भास्करः'। नैव स्वे न परे राजन्नाज्ञायन्त परस्परम्। अनुमानेन संज्ञाभिर्युद्धं तत्समवर्तत।। | 5-20-37a 5-20-37b 5-20-37c |
चूडामणिषु निष्केषु भूषणेष्वपि वर्मसु। तेषामादित्यवर्णाभा रश्मयः प्रचकाशिरे।। | 5-20-38a 5-20-38b |
तत्प्रकीर्णपताकानां रथवारणवाजिनाम्। बलाकाशबलाभ्रामं ददृशे रूपमाहवे।। | 5-20-39a 5-20-39b |
नरानेव नरा जघ्नरुदग्राश्च हया हयान्। रथांश्च रथिनो जघ्नुर्वारणा वरवारणान्।। | 5-20-40a 5-20-40b |
समुच्छ्रितपताकानां गजानां परमद्विपैः। क्षणेन तुमुलो घोरः सङ्ग्रामः समपद्यत।। | 5-20-41a 5-20-41b |
तेषां संसक्तगात्राणां कर्षतामितरेतरम्। दन्तसङ्घातसङ्घर्षात्सधूमोऽग्निरजायत।। | 5-20-42a 5-20-42b |
विप्रकीर्णपताकास्ते विषाणजनिताग्नयः। बभूवुः खं समासाद्य सविद्युत इवाम्बुदाः।। | 5-20-43a 5-20-43b |
विक्षिपद्भिर्नदद्भिश्च निपतद्भिश्च वारणैः। सम्बभूव मही कीर्णा मेघैर्द्यौरिव वार्षिकी।। | 5-20-44a 5-20-44b |
तेषामाहन्यमानानां बाणतोमरऋष्टिभिः। वारणानां रवो जज्ञे मेघानामिव सम्पुवे।। | 5-20-45a 5-20-45b |
तोमराभिहताः केचिद्बाणैश्च परमद्विपाः। वित्रेसुः सर्वनागानां शब्दमेवापरेऽसृजन्।। | 5-20-46a 5-20-46b |
विषाणाभिहताश्चापि केचित्तत्र गजा गजैः। चक्रुरार्तस्वनं घोरमुत्पातजलदा इव।। | 5-20-47a 5-20-47b |
प्रतीपाः क्रियमाणाश्च वारणा वरवारणैः। उन्मथ्य पुनराजग्मुः प्रेरिताः परमाङ्कुशैः।। | 5-20-48a 5-20-48b |
महामात्रैर्महामात्रास्ताडिताः शरतोमरैः। गजेभ्यः पृथिवीं जग्मुर्मुक्तप्रहरणाङ्कुशाः।। | 5-20-49a 5-20-49b |
निर्मनुष्याश्च मातङ्गा विनदन्तस्ततस्ततः। छिन्नाभ्राणीव सम्पेतुः सम्प्रविश्य परस्परम्।। | 5-20-50a 5-20-50b |
हतान्परिवहन्तश्च पतितान्पतितायुधान्। दिशो जग्मुर्महानागाः केचिदेकचरा इव।। | 5-20-51a 5-20-51b |
ताडितास्ताड्यमानाश्च तोमरर्ष्टिपरश्वथैः। पेतुरार्तस्वनं कृत्वा तदा विशसने गजाः।। | 5-20-52a 5-20-52b |
तेषां शैलोपमैः कायैर्निपतद्भिः समन्ततः। आहता सहसा भूमिश्चकम्पे च ननाद च।। | 5-20-53a 5-20-53b |
सादितैः सगजारोहैः सपताकैः समन्ततः। मातङ्गैः शुशुभे भूमिर्विकीर्णैरिव पर्वतैः।। | 5-20-54a 5-20-54b |
गजस्थाश्च महामात्रा निर्भिन्नहृदया रणे। रथिभिः पातिता भल्लैर्विकीर्णाङ्कुशतोमराः।। | 5-20-55a 5-20-55b |
क्रौञ्चवद्विनदन्तोऽन्ये नाराचाभिहता गजाः। परान्स्वांश्चापि मृद्गन्तः परिपेतुर्दिशो दश।। | 5-20-56a 5-20-56b |
गजाश्वरथयोधानां शरीरौघसमावृता। बभूव पृथिवी राजन्मांसशोणितकर्दमा।। | 5-20-57a 5-20-57b |
प्रमथ्य च विषाणाग्रैः समुत्क्षिप्ताश्च वारणैः। सचक्राश्च विचक्राश्च रथैरेव महारथाः।। | 5-20-58a 5-20-58b |
रथाश्च रथिभिर्हीना निर्मनुष्याश्च वाजिनः। हतारोहाश्च मातङ्गा दिशो जग्मुर्भयातुराः।। | 5-20-59a 5-20-59b |
जघानात्र पिता पुत्रं पुत्रश्च पितरं तथा। इत्यासीत्तुमुलं युद्धं न प्राज्ञायत किञ्चन।। | 5-20-60a 5-20-60b |
आगुल्फेभ्योऽवसीदन्ते नरा लोहितकर्दमैः। दीप्यमानैः परिक्षिप्ता दावैरिव महाद्रुमाः।। | 5-20-61a 5-20-61b |
शोणितैः सिच्यमानानि वस्त्राणि कवचानि च। छत्राणि च पताकाश्च सर्वं रक्तमदृश्यत।। | 5-20-62a 5-20-62b |
हयौघाश्च रथौघाश्च नरौघाश्च निपातिताः। संक्षुण्णाः पुनरावृत्य बहुधा रथनेमिभिः।। | 5-20-63a 5-20-63b |
सगजौघमहावेगः परासुनरशैवलः। रथौघतुमुलावर्तः प्रबभौ सैन्यसागरः।। | 5-20-64a 5-20-64b |
तं वाहनमहानौभिर्योधा जयधनैषिणः। अवगाह्याथ मज्जन्तो नैव मोहं प्रचक्रिरे।। | 5-20-65a 5-20-65b |
शरवर्षाभिवृष्टेषु योधेष्वञ्चितलक्ष्मसु। न तेष्वचित्ततां लेभे कश्चिदाहतलक्षणः।। | 5-20-66a 5-20-66b |
वर्तमाने तथा युद्धे घोररूपे भयङ्करे। मोहयित्वा परान्द्रोणो युधिष्ठिरमुपाद्रवत्।। | 5-20-67a 5-20-67b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि द्वादशदिवसयुद्धे विंशोऽध्यायः।। 20 ।। |
5-20-16 उष्णगे घर्मात्यये।। 5-20-18 पौर्णमास्यां कृत्तिकायोगयुक्तेन इन्दुना। शारदपूर्णचन्द्रेणेत्यर्थः।। 5-20-26 अनिष्टदर्शनं स्वमृत्युहेतुत्वात्।। 5-20-33 भृशायस्तोऽतिप्रयत्नवान्।। 5-20-51 एकचराः द्विपान्तरदर्शनासहाः।। 5-20-66 अचित्ततां मोहम्।। 5-20-20 विंशोऽध्यायः।।
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