महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-046
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अभिमन्युना दुर्योधनसूनोर्लक्ष्मणस्य वधः।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 5-46-1x |
यथा वदसि मे सूत एकस्य बहुभिः सह। सङ्ग्रामं तुमुलं घोरं जयं चैव महात्मनः।। | 5-46-1a 5-46-1b |
अश्रद्धेयमिवाश्चर्यं सौभद्रस्याथ विक्रमम्। किन्तु नात्यद्भुतं तेषां येषां धर्मो व्यपाश्रयः।। | 5-46-2a 5-46-2b |
दुर्योधने च विमुखे राजपुत्रशते हते। सौभद्रे प्रतिपत्तिं कां प्रत्यपद्यन्त मामकाः।। | 5-46-3a 5-46-3b |
सञ्जय उवाच। | 5-46-4x |
संशुष्कास्याश्चलन्नेत्राः प्रस्विन्ना रोमहर्षणाः। पालयनकृतोत्साहा निरुत्साहा द्विष़ज्जये।। | 5-46-4a 5-46-4b |
हतान्भ्रातॄन्पितॄन्पुत्रान्सुहृत्सम्बन्धिबान्धवान्। उत्सृज्योत्सृज्य सञ्जग्मुस्त्वरयन्तो हयद्विपान्।। | 5-46-5a 5-46-5b |
तान्प्रभग्नांस्तथा दृष्ट्वा द्रोणो द्रौणिर्बृहद्बलः। कृपो दुर्योधनः कर्णः कृतवर्माथ सौबलः।। | 5-46-6a 5-46-6b |
अभ्यधावन्सुसङ्क्रुद्धाः सौभद्रमपराजितम्। ते तु पौत्रेण ते राजन्प्रायशो विमुखीकृताः। `सौभद्रेण महाराज शक्रप्रतिमतेजसा'।। | 5-46-7a 5-46-7b 5-46-7c |
एकस्तु सुखसंवृद्धो बाल्याद्दर्पाच्च निर्भयः। इष्वस्त्रविन्महातेजा लक्ष्मणोऽर्जुनिमभ्ययात्।। | 5-46-8a 5-46-8b |
तमन्वगेवास्य पिता पुत्रगृद्धी न्यवर्तत। अनुदुर्योधनं चान्ये न्यवर्तन्त महारथाः।। | 5-46-9a 5-46-9b |
तं तेऽभिषिषिचुर्बाणैर्मेघा गिरिमिवाम्बुभिः। स तु तान्प्रममाथैको विष्वग्वातो यथाम्बुदान्।। | 5-46-10a 5-46-10b |
पौत्रं तव च दुर्धर्षं लक्ष्मणं प्रियदर्शनम्। पितुः समीपे तिष्ठन्तं शूरमुद्यतकार्मुकम्।। | 5-46-11a 5-46-11b |
अत्यन्तसुखसंवृद्धं धनेश्वरसुतोपमम्। आससाद रणे कार्ष्णिर्मत्तो मत्तमिव द्विपम्। `सिंहशाबो वने शश्वत्पुण्डरीकशिशुं यथा'।। | 5-46-12a 5-46-12b 5-46-12c |
लक्ष्मणेन तु सङ्गम्य सौभद्रः परवीरहा। शरैः सुनिशितैस्तीक्ष्णैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत्।। | 5-46-13a 5-46-13b |
सङ्क्रुद्धौ वै महाराज दण्डाहत इवोरगः। पौत्रस्तव महाराज तव पौत्रमभाषत।। | 5-46-14a 5-46-14b |
सुदृष्टः क्रियतां लोको ह्यमुं लोकं गमिष्यसि। पश्यतां बान्धवानां त्वां नयामि यमसादनम्।। | 5-46-15a 5-46-15b |
एवमुक्त्वा ततो भल्लं सौभद्रः परवीरहा। उद्बबर्ह महाबाहुर्निर्मुक्तोरगसन्निभम्।। | 5-46-16a 5-46-16b |
स तस्य भुजनिर्मुक्तो लक्ष्मणस्य सुदर्शनम्। सुनसं सुभ्रु केशान्तं शिरोऽहार्षीत्सकुण्डलम्।। | 5-46-17a 5-46-17b |
`पौत्रस्तु तव दुर्धर्षं लक्ष्मणं प्रियदर्शनम्। पितुः समीपे तिष्ठन्तं प्राहिणोद्यमसादनम्।। | 5-46-18a 5-46-18b |
अत्यन्तसुखसंवृद्धं धनेश्वरसुतोपमम्'। लक्ष्मणां निहतं दृष्ट्वा हाहेत्युच्चुक्रुशुर्जनाः।। | 5-46-19a 5-46-19b |
ततो दुर्योधनः क्रुद्धः प्रिये पुत्रे निपातिते। हतैनमिति चुक्रोश क्षत्रियान्क्षत्रियर्षभः।। | 5-46-20a 5-46-20b |
ततो द्रोणः कृपः कर्णो द्रोणपुत्रो बृहद्बलः। कृतवर्मा च हार्दिक्यः षड्रथाः पर्यवारयन्।। | 5-46-21a 5-46-21b |
तांस्तु विद्धा शितैर्बाणैर्विमुखीकृत्य चार्जुनिः। वेगेनाभ्यपतत्क्रुद्धः सैन्धवस्य महद्बलम्।। | 5-46-22a 5-46-22b |
आवव्रुस्तस्य पन्थानं गजानीकेन दंशिताः। कलिङ्गाश्च निषादाश्च क्राथपुत्रश्च वीर्यवान्। तत्प्रसक्तमिवात्यर्थं युद्धमासीद्विशाम्पते।। | 5-46-23a 5-46-23b 5-46-23c |
ततस्तत्कुञ्जरानीकं व्यधमद्धृष्टमार्जुनिः। यथा वायुर्नित्यगतिर्जलदाञ्शतशोऽम्बरे।। | 5-46-24a 5-46-24b |
ततः क्रुद्धाः शरव्रातै राजानः समवारयन्। अथेतरे सन्निवृत्ताः पुनर्द्रोणमुखा रथाः। परमास्त्राणि धुन्वानाः सौभद्रमभिदुद्रुवुः।। | 5-46-25a 5-46-25b 5-46-25c |
तान्निवार्यार्जुनिर्बाणैः क्राथपुत्रमयोधयत्। शरौघेणाप्रमेयेण त्वरमाणो जिघौसया।। | 5-46-26a 5-46-26b |
सधनुर्बाणकेयूरौ बाहू समुकुटं शिरः। सच्छत्रध्वजयन्तारं रथं चाश्वान्न्यपातयत्।। | 5-46-27a 5-46-27b |
कुलशीलश्रुतिबलैः कीर्त्या चास्त्रबलेन च। युक्ते तस्मिन्हते वीराः प्रायशो विमुखाऽभवन्।। | 5-46-28a 5-46-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि त्रयोदशदिवसयुद्धे षट्चत्वारिंशोऽध्यायः।। 46 ।। |
5-46-3 प्रतिपत्तिं प्रतिविधानम्।। 5-46-10 विष्वग्वातोऽशेषदिग्वातः।। 5-46-17 केशान्तं केशैर्मनोहरम्। अन्तः प्रान्तेऽन्तिके मध्ये स्वरूपे च मनोहरे इत्यभिधानात्।। 5-46-23 धृष्टं प्रगल्भम्।। 5-46-46 षट्चत्वारिंशोऽध्यायः।।
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