महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-128
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पुनर्द्रोणरथान्भङ्क्त्वा गच्छतो भीमस्यार्जुनदर्शनेन सिंहनादः।। 1 ।। तच्छ्रवणेन युधिष्ठिरस्य हर्षोदयः।। 2 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-128-1x |
समुत्तीर्णं रथानीकं पाण्डवं विहसन्रणे। विवारयिषुराचार्यः शरवर्षैरवाकिरत्।। | 5-128-1a 5-128-1b |
पिबन्निव शरौघांस्तान्द्रोणचापपरिच्युतान्। सोऽभ्यद्रवत सोदर्यान्मोहयन्बलमायया।। | 5-128-2a 5-128-2b |
तं मृधे वेगमास्थाय परं परमधन्विनः। चोदितास्तव पुत्रैश्च सर्वतः पर्यवारयन्।। | 5-128-3a 5-128-3b |
स तैस्तु संवृतो भीमः क्रोधेन प्रदहन्निव। उद्यच्छन्स गदां तेभ्यः सुघोरां सिंहवन्नदन्। अवासृजच्च वेगेन शत्रुपक्षविनाशिनीम्।। | 5-128-4a 5-128-4b 5-128-4c |
इन्द्राशनिरिवेन्द्रेण प्रविद्धा संहतात्मना। प्रामथ्नात्सा महाराज सैनिकांस्तव संयुगे।। | 5-128-5a 5-128-5b |
घोषेण महता राजन्पूरयन्तीव मेदिनीम्। ज्वलन्ती तेजसा भीमा त्रासयामास ते सुतान्।। | 5-128-6a 5-128-6b |
तां पतन्तीं महावेगां दृष्ट्वा तेजोभिसंवृताम्। प्राद्रवंस्तावकाः सर्वे नदन्तो बैरवान्रवान्।। | 5-128-7a 5-128-7b |
सिंहनादमसह्यं हि श्रुत्वा भीमस्य संयुगे। प्रापतन्मुनुजास्त्रस्ता रथेभ्यो रथिनस्तदा।। | 5-128-8a 5-128-8b |
ते हन्यमाना भीमेन गदाहस्तेन तावकाः। प्राद्रवन्त रणे भीता व्याघ्रघ्राता मृगा इव।। | 5-128-9a 5-128-9b |
स तान्विद्राव्य कौन्तेयः सङ्ख्येऽमित्रान्दुरासदान्। सुपर्ण इव वेगेन पक्षिराडत्यगाच्चमूम्।। | 5-128-10a 5-128-10b |
तथा तु विप्रकुर्वाणं रथयूथपयूथपम्। भारद्वाजो महाराज भीमसेनं समभ्ययात्।। | 5-128-11a 5-128-11b |
भीमं तु समरे द्रोणो वारयित्वा शरोर्मिभिः। अकरोत्सहसा नादं षाण्डूनां भयमादधत्।। | 5-128-12a 5-128-12b |
तद्युद्धमासीत्सुमहद्धोरं देवासुरोपमम्। द्रोणस्य च महाराज भीमस्य च महात्मनः।। | 5-128-13a 5-128-13b |
यदा तु विशिखैस्तीक्ष्णैर्द्रोणचापविनिःसृतैः। वध्यन्ते समरे वीराः शतशोऽथ सहस्रशः।। | 5-128-14a 5-128-14b |
ततो रथादवप्लुत्य वेगमास्थाय पाण्डवः। निमील्य नयने राजन्पदातिर्द्रोणमभ्ययात्।। | 5-128-15a 5-128-15b |
अंसे शिरो भीमसेनः करौ कृत्वोरसि स्थिरौ। वेगमास्थाय बलवान्मनोनिलगरुत्मताम्।। | 5-128-16a 5-128-16b |
यथा हि गोवृषो वर्षं प्रतिगृह्णाति लीलया। तथा भीमो नरव्याघ्रः शरवर्षं समग्रहीत्।। | 5-128-17a 5-128-17b |
स वध्यमानः समरे रथं द्रोणस्य मारिष। ईषायां पाणिना गृह्य प्रचिक्षेप महाबलः।। | 5-128-18a 5-128-18b |
द्रोणस्तु सत्वरो राजन्क्षिप्तो भीमेन संयुगे। `ददृशे तावकैर्योधैर्विस्मयोत्फुल्ललोचनैः। परिहृत्य रथं द्रोणश्चूर्णितं तं महीतले'।। | 5-128-19a 5-128-19b 5-128-19c |
रथमन्यं समारुह्य व्यूहद्वारं ययौ पुनः। तमायान्तं तथा दृष्ट्वा भग्नोत्साहं गुरुं तदा।। | 5-128-20a 5-128-20b |
गत्वा वेगात्पुनर्भीमो धुरं गृह्य रथस्य तु। तमप्यतिरथं भीमश्चिक्षेप भृशरोषितः।। | 5-128-21a 5-128-21b |
एवमष्टौ रथाः क्षिप्ता भीमसेनेन लीलया।। | 5-128-22a |
व्यदृश्यत निमेषेण पुनः स्वरथमास्थितः। दृश्यते तावकैर्योधैर्विस्मयोत्फुल्ललोचनैः।। | 5-128-23a 5-128-23b |
तस्मिन्क्षणे तस्य यन्ता तूर्णमश्वानचोदयत्। भीमसेनस्य कौरव्य तदद्भुतमिवाभवत्।। | 5-128-24a 5-128-24b |
ततः स्वरथमास्थाय भीमसेनो महाबलः। अभ्यद्रवत वेगेन तव पुत्रस्य वाहिनीम्।। | 5-128-25a 5-128-25b |
स मृद्गन्क्षत्रियानाजौ वातो वृक्षानिवोद्धतः। अगच्छद्दारयन्सेनां सिन्धुवेगो नगानिव।। | 5-128-26a 5-128-26b |
भोजानीकं समासाद्य हार्दिक्येनाभिरक्षितम्। प्रमथ्य तरसा वीरस्तदप्यतिबलोऽभ्ययात्।। | 5-128-27a 5-128-27b |
सन्त्रासयन्ननीकानि तलशब्देन पाण्डवः। अजयत्सर्वसैन्यानि शार्दूल इव गोवृषान्।। | 5-128-28a 5-128-28b |
भोजानीकमतिक्रम्य दरदानां च वाहिनीम्। तथा म्लेच्छगणानन्यान्बहून्युद्धविशारदान्।। | 5-128-29a 5-128-29b |
सात्यकिं चैव सम्प्रेक्ष्य युध्यमानं महारथम्। रथेन यत्तः कौन्तेयो वेगेन प्रययौ तदा।। | 5-128-30a 5-128-30b |
भीमसेनो महाराज द्रष्टुकामो धनञ्जयम्। अतीत्य समरे योधांस्तावकान्पाण्डुनन्दनः।। | 5-128-31a 5-128-31b |
सोऽपश्यदर्जुनं तत्र युध्यमानं महारथम्। सैन्धवस्य वधार्थं हि पराक्रान्तं पराक्रमी।। | 5-128-32a 5-128-32b |
तं दृष्ट्वा पुरुषव्याघ्रश्चुक्रोश महतो रवान्। प्रावृट्काले महाराज नर्दन्निव बलाहकः।। | 5-128-33a 5-128-33b |
तं तस्य निनदं घोरं पार्थः शुश्राव नर्दतः। वासुदेवश्च कौरव्य भीमसेनस्य संयुगे।। | 5-128-34a 5-128-34b |
तौ श्रुत्वा युगपद्वीरौ निनदं तस्य शुष्मिणः। पुनः पुनः प्राणदतां दिदृक्षन्तौ वृकोदरम्।। | 5-128-35a 5-128-35b |
ततः पार्थो महानादं मुञ्चन्वै माधवश्च ह। अभ्ययातां महाराज नर्दन्तौ गोवृषाविव।। | 5-128-36a 5-128-36b |
भीमसेनरवं श्रुत्वा फल्गुनस्य च धन्विनः। अप्रीयत महाराज धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 5-128-37a 5-128-37b |
विशोकश्चाभवद्राजा श्रुत्वा तं निनदं तयोः। धनञ्जयस्य समरे जयमाशास्तवान्विभिः।। | 5-128-38a 5-128-38b |
तथा तु नर्दमाने वै भीमसेने मदोत्कटे। स्मितं कृत्वा महाबाहुर्धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 5-128-39a 5-128-39b |
हृद्गतं मनसा प्राह ध्यात्वा धर्मभृतां वरः। दत्ता भीम त्वया संवित्कृतं गुरुवचस्तथा।। | 5-128-40a 5-128-40b |
न हि तेषां जयो युद्धे येषां द्वेष्टाऽसि पाण्डव। दिष्ट्या जीवति सङ्ग्रमे सव्यसाची धनञ्जयः।। | 5-128-41a 5-128-41b |
दिष्ट्या च कुशली वीरः सात्यकिः सत्यविक्रमः। दिष्ट्या शृणोमि गर्जन्तौ वासुदेवधनञ्जयौ।। | 5-128-42a 5-128-42b |
येन शक्रं रणे जित्वा तर्पितो हव्यवाहनः। स हन्ता द्विषतां सङ्ख्ये दिष्ट्या जीवति फल्गुनः।। | 5-128-43a 5-128-43b |
यस्य बाहुबलं सर्वे वयमाश्रित्य जीविताः। स हन्ता रि पुसैन्यानां दिष्ट्या जीवति फल्गुनः।। | 5-128-44a 5-128-44b |
निवातकवचा येन देवैरपि सुदुर्जयाः। निर्जिता धनुषैकेन दिष्ट्या पार्थः स जीवति।। | 5-128-45a 5-128-45b |
कौरवान्सहितान्सर्वान्गोग्रहार्थे समागतान्। योऽजयन्मत्स्यनगरे दिष्ट्या पार्थः स जीवति।। | 5-128-46a 5-128-46b |
कालकेयसहस्राणि चतुर्दश महारणे। योऽवधीद्भुजवीर्येण दिष्ट्या पार्थः स जीवति।। | 5-128-47a 5-128-47b |
गन्धर्वराजं बलिनं दुर्योधनकृते च वै। जितवान्योऽस्त्रवीर्येण दिष्ट्या पार्थः स जीवति।। | 5-128-48a 5-128-48b |
किरीटमाली बलवाञ्छेताश्वः कृष्णसारथिः। मम प्रियश्च सततं दिष्ट्या पार्थः स जीवति।। | 5-128-49a 5-128-49b |
पुत्रशोकाभिसन्तप्तश्चिकीर्षन्कर्म दुष्करम्। जयद्रथवधान्वेषी प्रतिज्ञां कृतवान्हि यः। कच्चित्स सैन्धवं सङ्ख्ये हनिष्यति धनञ्जयः।। | 5-128-50a 5-128-50b 5-128-50c |
कच्चित्तीर्णप्रतिज्ञं हि वासुदेवेन रक्षितम्। अनस्तमित आदित्ये समेष्याम्यहमर्जुनम्।। | 5-128-51a 5-128-51b |
कच्चित्सैन्धवको राजा दुर्योधनहिते रतः। नन्दयिष्यत्यमित्रान्हि फल्गुनेन निपातितः।। | 5-128-52a 5-128-52b |
कच्चिद्दुर्योधनो राजा फल्गुनेन निपातितम्। दृष्ट्वा सैन्धवकं सङ्ख्ये शममस्मासु धास्यति।। | 5-128-53a 5-128-53b |
दृष्ट्वा विनिहतान्भ्रातॄन्भीमसेनेन संयुगे। कच्चिद्दुर्योधनो मन्दः शममस्मासु यास्यति।। | 5-128-54a 5-128-54b |
दृष्ट्वा चान्यान्महायोधान्पातितान्धरणीतले। कच्चिद्दुर्योधनो मन्दः पश्चात्तापं गमिष्यति।। | 5-128-55a 5-128-55b |
शेषस्य रक्षणार्थं च सन्धास्यति सुयोधनः।। एवं बहुविधं तस्य राज्ञश्चिन्तयतस्तदा। | 5-128-56a 5-128-56b |
कृपयाऽभिपरीतस्य घोरं युद्धमवर्तत।। | 5-128-57a |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 128 ।। |
5-128-24 भीमसेनस्य कमेन्ति शेषः।। 5-128-128 अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।।
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