महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-121
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सात्यकियुद्धवर्णनम्।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 5-121-1x |
सम्प्रद्य महत्सैन्यं यान्तं शैनेयमर्जुनम्। निर्हीका मम ते पुत्राः किमकुर्वत सञ्जय।। | 5-121-1a 5-121-1b |
कथं वैषां तदा युद्धे धृतिरासीन्मुमूर्षताम्। शैनेयचरितं दृष्ट्वा यादृशं सव्यसाचिनः।। | 5-121-2a 5-121-2b |
किं नु वक्ष्यन्ति ते क्षात्रं सैन्यमध्ये पराजिताः। कथं नु सात्यकिर्युद्धे व्यतिक्रान्तो महायशाः।। | 5-121-3a 5-121-3b |
कथं च मम पुत्राणां जीवतां तत्र सञ्जय। शैनेयोऽभिययौ युद्धे तन्ममाचक्ष्व सञ्जय।। | 5-121-4a 5-121-4b |
अत्यद्भुतमिदं तात त्वत्सकाशाच्छृणोम्यहम्। एकस्य बहुभिः सार्धं शत्रुभिस्तैर्महारथैः।। | 5-121-5a 5-121-5b |
विपरीतमहं मन्ये मन्दभाग्यं सुतं प्रति। यत्रावध्यन्त समरे सात्वतेन महारथाः।। | 5-121-6a 5-121-6b |
एकस्य हि न पर्याप्तं यत्सैन्यं तस्य सञ्जय। क्रुद्धस्य युयुधानस्य सर्वे तिष्ठन्तु पाण्डवाः।। | 5-121-7a 5-121-7b |
निर्जित्य समरे द्रोणं कृतिनं चित्रयोधिनम्। यथा पशुगणान्सिंहस्तद्वद्धन्ता सुतान्मम।। | 5-121-8a 5-121-8b |
कृतवर्मादिभिः शूरैर्यत्तैर्बहुभिराहवे। युयुधानो न शकितो हन्तुं यत्पुरुषर्षभः।। | 5-121-9a 5-121-9b |
नैतदीदृशकं युद्धं कृतवांस्तत्र फल्गुनः। यादृशं कृतवान्युद्धं शिनेर्नप्ता महायशाः।। | 5-121-10a 5-121-10b |
स़ञ्जय उवाच। | 5-121-11x |
तव दुर्मन्त्रिते राजन्दुर्योधनकृतेन च। शृणुष्वावहितो भूत्वा यत्ते वक्ष्यामि भारत।। | 5-121-11a 5-121-11b |
ते पुनः सन्न्यवर्तन्त कृत्वा संशपथान्मिथः। परां युद्धे मतिं क्रूरां तव पुत्रस्य शासनात्।। | 5-121-12a 5-121-12b |
त्रीणि सादिसहस्राणि दुर्योधनपुरोगमाः। शककाम्भोजबालह्लीका यवनाः पारदास्तथा।। | 5-121-13a 5-121-13b |
कुलिन्दास्तङ्कणाम्बष्ठाः पैशाचाश्च सबर्बराः। पार्वतीयाश्च राजेन्द्र क्रुद्धाः पाषाणपाणयः। अभ्यद्रवन्त शैनेयं शलभाः पावकं यथा।। | 5-121-14a 5-121-14b 5-121-14c |
युक्ताश्च पार्वतीयानां रथाः पाषाणयोधिनाम्। शूराः पञ्चशतं राजञ्शैनेयं समुपाद्रवन्।। | 5-121-15a 5-121-15b |
ततो रथसहस्रेण महारथशतेन च। द्विरदानां सहस्रेण द्विसाहस्रैश्च वाजिभिः।। | 5-121-16a 5-121-16b |
शरवर्षाणि मुञ्चन्तो विविधानि महारथाः। अभ्यद्रवन्त शैनेयमसङ्ख्येयाश्च पत्तयः।। | 5-121-17a 5-121-17b |
तांश्च सञ्चोदयन्सर्वान्घ्नतैनमिति भारत। दुःशासनो महाराज सात्यकिं पर्यवारयत्।। | 5-121-18a 5-121-18b |
तत्राद्भुतमपश्याम शैनेयचरितं महत्। यदेको बहुभिः सार्धमसम्भ्रान्तमयुध्यत।। | 5-121-19a 5-121-19b |
अवधीच्च रथानीकं द्विरदानां च तद्बलम्। सादिनश्चैव तान्सर्वान्दस्यूनपि च सर्वशः।। | 5-121-20a 5-121-20b |
तत्र चक्रैर्विमथितैर्भग्नैश्च परमायुधैः। अक्षैश्च बहुधा भग्नैरीषादण्डकबन्धुरैः।। | 5-121-21a 5-121-21b |
कुञ्जरैर्मथितैश्चापि ध्वजैश्च विनिपातितैः। वर्मभिश्च तथाऽनीकैर्व्यवकीर्णा वसुन्धरा।। | 5-121-22a 5-121-22b |
स्रग्भिराभरणैर्वस्त्रैरनुकर्षैश्च मारिष। सञ्छन्ना वसुधा तत्र द्यौर्ग्रहैरिव भारत।। | 5-121-23a 5-121-23b |
गिरिरूपधरैश्चापि पतितैश्च महागजैः। `म्लेच्छस्थितैर्महाराज भिन्नाञ्जनचयोपमैः।। | 5-121-24a 5-121-24b |
मृगैर्मन्द्रैश्च भद्रैश्च मृगमन्द्रैस्तथाऽपरैः। भद्रैर्मन्द्रमृगैश्चैव मृगभद्रैस्तथैव च।। | 5-121-25a 5-121-25b |
भद्रमन्द्रैश्चैव तथा तथा भद्रमृगैरपि। तत्रतत्र धरा कीर्णा शयानैः पर्वतोपमैः'।। | 5-121-26a 5-121-26b |
अञ्जनस्य कुले जाता वामनस्य च भारत। सुप्रतीककुले जाता महापद्मकुले तथा।। | 5-121-27a 5-121-27b |
ऐरावतकुले चैव तथाऽन्येषु कुलेषु च। जाता दन्तिवरा राजञ्शेरते बहवो हताः।। | 5-121-28a 5-121-28b |
वनायुजान्पार्वतीयान्काम्भोजान्बाह्लिकानपि। तथा हयवरान्राजन्निजघ्ने तत्र सात्यकिः।। | 5-121-29a 5-121-29b |
नानादेशसमुत्थांश्च नानाजातींश्च दन्तिनः। निजघ्ने तत्र शैनेयः शतशोऽथ सहस्रशः।। | 5-121-30a 5-121-30b |
तेषु प्रकाल्यमानेषु दस्यून्दुःशासनोऽब्रवीत्। निवर्तध्वमधर्मज्ञा युध्यध्वं किं सृतेन वः।। | 5-121-31a 5-121-31b |
तांश्चातिभग्नासन्सम्प्रेक्ष्य पुत्रो दुःशासनस्तव। पाषाणयोधिनः शूरान्पार्वतीयानचोदयत्।। | 5-121-32a 5-121-32b |
अश्मयुद्धेषु कुशला नैतञ्जानापि सात्यकिः। अश्मयुद्धमजानन्तं हतैनं युद्धकामुकम्।। | 5-121-33a 5-121-33b |
तथैव कुरवः सर्वे नाश्मयुद्धविशारदाः। अभिद्रवत माभैष्ट न वः प्राप्स्यति सात्यकिः।। | 5-121-34a 5-121-34b |
ते पार्वतीया राजानः सर्वे पाषाणयोधिनः। अभ्यद्रवन्त शैनेयं राजानमिव मन्त्रिणः।। | 5-121-35a 5-121-35b |
ततो गजशिरःप्रख्यैरुपलैः शैलवासिनः। उद्यतैर्युयुधानस्य पुरतस्तस्थुराहवे।। | 5-121-36a 5-121-36b |
क्षेरणीयैस्तथाप्यन्ये सात्वतस्य वधैषिणः। चोदितास्तव पुत्रेण सर्वतो रुरुधुर्दिशः।। | 5-121-37a 5-121-37b |
तेषामापततामेव शिलायुद्धं चिकीर्षताम्। सात्यकिः प्रतिसन्धाय निशितान्प्राहिणोच्छरान्।। | 5-121-38a 5-121-38b |
तामश्मवृष्टिं तुमुलां पार्वतीयैः समीरिताम्। चिच्छेदोरगसंकाशैर्नाराचैः शिनिपुङ्गवः।। | 5-121-39a 5-121-39b |
तैरश्मचूर्णैर्दीप्यद्भिः खद्योतानामिव व्रजैः। प्रायः सैन्यान्यहन्यन्त हाहाभूतानि मारिष।। | 5-121-40a 5-121-40b |
ततः पञ्चशतं शूराः समुद्यतमहाशिलाः। निकृत्तबाहवो राजन्निपेतुर्धरणीतले।। | 5-121-41a 5-121-41b |
सात्वतस्य च भल्लेन निष्पिष्टैस्तैस्तथाऽद्रिभिः। न्यपतन्निहता म्लेच्छास्तत्रतत्र गतासवः।। | 5-121-42a 5-121-42b |
ते हन्यमानाः समरे सात्वतेन महात्मना। अश्मवृष्टिं महाघोरां पातयन्ति स्म सात्वते।। | 5-121-43a 5-121-43b |
पाषाणयोधिनः शूरान्यतमानानवस्थितान्। न्यवधीद्बहुसाहस्रांस्तदद्भुतमिवाभवत्।। | 5-121-44a 5-121-44b |
ततः पुनर्बस्तमुखैरश्मवृष्टीः समन्ततः। अधोबस्तैः स्थूलबस्तैर्दरदैः खसतङ्कणैः।। | 5-121-45a 5-121-45b |
लम्बकैश्च कुणिन्दैश्च क्षिप्ताः क्षिप्ताश्च सात्यकिः। नाराचैः प्रतिचिच्छेद प्रतिपत्तिविशारदः।। | 5-121-46a 5-121-46b |
अद्रीणां भिद्यमानानामन्तरिक्षे शितैः शरैः। शब्देन प्राद्रवन्सङ्ख्ये रथाश्वगजपत्तयः।। | 5-121-47a 5-121-47b |
अश्मचूर्णैरवाकीर्णा मनुष्यगजवाजिनः। नाशक्नुवन्नवस्थातुं भ्रमरैरिव दंशिताः।। | 5-121-48a 5-121-48b |
हतशिष्टाः सरुधिरा भिन्नमस्तकपिण्डिकाः। `विभिन्नशिरसो राजन्दन्तैश्छिन्नैश्च दन्तिनः। निर्धूतैश्च करैर्नागा व्यङ्गाश्च शतशः कृताः।। | 5-121-49a 5-121-49b 5-121-49c |
हत्वा पञ्चशतं योधांस्तत्क्षणेनैव मारिष। व्यचरत्पृतनामध्ये शैनेयः कृतहस्तवत्।। | 5-121-50a 5-121-50b |
कुञ्जराः सन्न्यवर्तन्त युयुधानेन मोहिताः।। | 5-121-51a |
अश्मनां भिद्यमानानां सायकैः श्रूयते ध्वनिः। पद्मपत्रेषुधाराणां पतन्तीनामिव ध्वनिः'।। | 5-121-52a 5-121-52b |
ततः शब्दः समभवत्तव सैन्यस्य मारिष। माधवेनार्द्यमानस्य सागरस्येव पर्वणि।। | 5-121-53a 5-121-53b |
तं शब्दं तुमुलं श्रुत्वा द्रोणो यन्तारमब्रवीत्। एष सूत रणे क्रुद्धः सात्वतानां महारथः।। | 5-121-54a 5-121-54b |
दारयन्बहुधा सैन्यं रणे चरति कालवत्। यत्रैष शब्दस्तुमुलस्तत्र सूत रथं नय।। | 5-121-55a 5-121-55b |
पाषाणयोधिभिर्नूनं युयुधानः समागतः। तथाहि रथिनः सर्वे हियन्ते विद्रुतैर्हयैः।। | 5-121-56a 5-121-56b |
विशस्त्रकवचा रुग्णास्तत्रतत्र पतन्ति च। न शक्नुवन्ति यन्तारः संयन्तुं तुमुले हयान्।। | 5-121-57a 5-121-57b |
सञ्जय उवाच। | 5-121-58x |
इत्येतद्वचनं श्रुत्वा भारद्वाजस्य सारथिः। प्रत्युवाच ततो द्रोणं सर्वशस्त्रभृतां वरम्।। | 5-121-58a 5-121-58b |
सैन्यं द्रवति चायुष्मन्कौरवेयं समन्ततः। पश्य योधान्रणे भग्नान्धावतो वै ततस्ततः।। | 5-121-59a 5-121-59b |
इमे च संहताः शूराः पाञ्चालाः पाण्डवैः सह। त्वामेव हि जिघांसन्त आद्रवन्ति समन्ततः।। | 5-121-60a 5-121-60b |
अत्र कार्यं समाधत्स्व प्राप्तकालमरिन्दम। स्वाने वा गमने वापि दूरं यातश्च सात्यकिः।। | 5-121-61a 5-121-61b |
सञ्चय उवाच। | 5-121-62x |
तथैवं वदतस्तस्य भारद्वाजस्य सारथेः। प्रत्यदृश्यत शैनेयो निघ्नन्बहुविधान्रथान्।। | 5-121-62a 5-121-62b |
ते वध्यमानाः समरे युयुधानेन तावकाः। युयुधानरथं त्यक्त्वा द्रोणानीकाय दुद्रुवुः।। | 5-121-63a 5-121-63b |
यैस्तु दुःशासनः सार्धं रथैः पूर्वं न्यवर्तत। ते भीतास्त्वभ्यधावन्त सर्वे द्रोणरथं प्रति।। | 5-121-64a 5-121-64b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे एकविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 121 ।। |
5-121-11 दुर्योधनस्य कृतेन कर्मणा।। 5-121-12 मतिं कृत्वेत्यन्वयः।। 5-121-25 मृगमन्द्रादयो गजविशेषाः।। 5-121-27 वामनस्य यमोपवाह्यस्य। सुप्रतीकस्य ईशोपवाह्यस्य। महापद्मस्य कुमुदस्य कुले।। 5-121-28 अन्येषु कुलेषु पुण्डरीकपुष्पदन्तसार्वभौमीयेषु।। 5-121-37 क्षेपणीयैः शस्त्रैः।। 5-121-45 ततः पुनर्व्यात्तमुखास्तेऽश्मवृष्टीः समन्ततः। अयोहस्ताः शूलहस्ता दरदास्तङ्कणाः खसाः। लम्पकाश्च कुलिन्दाश्च चिक्षिपुस्तांश्च सात्यकिः। इति झ.ञ.घ.पाठः।। 5-121-47 अद्रीणां प्रस्तराणाम्।। 5-121-121 एकविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।।
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