महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-049
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अभिमन्युवधः।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-49-1x |
विष्णोः स्वसुर्नन्दकरः स विष्ण्वायुधभूषणः। रराजातिरथः सङ्ख्ये जनार्दन इवापरः।। | 5-49-1a 5-49-1b |
मारुतोद्धूतकेशान्तमुद्यतारिवरायुधम्। वपुः समीक्ष्य पृथ्वीशा दुःसमीक्ष्यं सुरैरपि।। | 5-49-2a 5-49-2b |
`यदि पाणितलादेतच्चक्रं मुञ्चेत फाल्गुनिः। वरदानान्मातुलस्य विष्णोश्चक्रमिवापतेत्'।। | 5-49-3a 5-49-3b |
तच्चक्रं भृशमुद्विग्नाः संचिच्छिदुरनेकधा। महारथस्ततः कार्ष्मिः स जग्राह महागदाम्।। | 5-49-4a 5-49-4b |
विधनुःस्यन्दनासिस्तैर्विचक्रश्चारिभिः कृतः। अभिमन्युर्गदापाणिरश्वत्थामानमार्दयत्।। | 5-49-5a 5-49-5b |
स गदामुद्यतां दृष्ट्वा ज्वलन्तीमशनीमिव। अपाक्रामद्रथोपस्थाद्विक्रमांस्त्रीन्नरर्षभः।। | 5-49-6a 5-49-6b |
तस्याश्वान्गदया हत्वा तथोभौ पार्ष्णिसारथी। शराचिताङ्गः सौभद्रः श्वाविद्वत्समदृश्यत।। | 5-49-7a 5-49-7b |
ततः सुबलदायादं कालिकेयमपोथयत्। जघान चास्यानुचरान्गान्धारान्सप्तसप्ततिम्।। | 5-49-8a 5-49-8b |
पुनश्चैव वसातीयाञ्जघान रथिनो दश। केकयानां रथान्सप्त हत्वा च दश कुञ्जरान्। दौःशासनिरथं साश्वं गदया समपोथयत्।। | 5-49-9a 5-49-9b 5-49-9c |
ततो दौःशसनिः क्रुद्धो गदामुद्यम्य मारिष। अभिदुद्राव सौभद्रं तिष्ठतिष्ठेति चाब्रवीत्।। | 5-49-10a 5-49-10b |
तावुद्यतगदौ वीरावन्योन्यवधकाङ्क्षिणौ। भ्रातृव्यौ सम्प्रजहाते पुरेव त्र्यम्बकान्धकौ।। | 5-49-11a 5-49-11b |
तावन्योन्यं गदाग्राभ्यामाहत्य पतितौ क्षितौ। इन्द्रध्वजाविवोत्सृष्टौ रणमध्ये परंतपौ।। | 5-49-12a 5-49-12b |
दौःशासनिरथोत्थाय कुरूणां कीर्तिवर्धनः। उत्तिष्ठमानं सौभद्रं गदया मूर्ध्न्यताडयत्।। | 5-49-13a 5-49-13b |
गदावेगेन महता व्यायामेन च मोहितः। विचेता न्यपतद्भूमौ सौभद्रः परवीरहा।। | 5-49-14a 5-49-14b |
एवं विनिहतो राजन्नेको बहुभिराहवे। क्षोभयित्वा चमूं सर्वां नलिनीमिव कुञ्जरः।। | 5-49-15a 5-49-15b |
अशोभत हतो वीरो व्याधैर्वनगजो यथा। तं तथा पतितं शूरं तावकाः पर्यवारयन्।। | 5-49-16a 5-49-16b |
दावं दग्ध्वा यथा शान्तं पावकं शिशिरात्यये। विमृद्व्य नगशृङ्गाणि सन्निवृत्तमिवानिलम्।। | 5-49-17a 5-49-17b |
अस्तिं गतमिवादित्यं तप्त्वा भारत वाहिनीम्। उपप्लुतं यथा सोमं संशुष्कमिव सागस्म्।। | 5-49-18a 5-49-18b |
पूर्णचन्द्राभवदनं काकपक्षवृतालिकम्। तं भूमौ पतितं दृष्ट्वा तावकास्ते महारथाः। मुदा परमया युक्ताश्चुक्रुशुः सिंहवन्मुहुः।। | 5-49-19a 5-49-19b 5-49-19c |
आसीत्परमको हर्षस्तावकानां विशाम्पते। इतरेषां तु वीराणां नेत्रेभ्यः प्रापतज्जलम्।। | 5-49-20a 5-49-20b |
अन्तरिक्षे च भूतानि प्राक्रोशन्त विशाम्पते। दृष्ट्वा निपतितं वीरं च्युतं चन्द्रमिवाम्बरात्।। | 5-49-21a 5-49-21b |
द्रोणकर्णमुखैः षड्भिर्धार्तराष्ट्रैर्महारथैः। एकोऽयं निहतः शेते नैष धर्मो मतो हि नः।। | 5-49-22a 5-49-22b |
तस्मिन्विनिहते वीरे बह्वशोभत मेदिनी। द्यौर्यथा पूर्णचन्द्रेण नक्षत्रगणमालिनी।। | 5-49-23a 5-49-23b |
रुक्मपुङ्खैश्च सम्पूर्णा रुधिरौघपरिप्लुता। उत्तमाङ्गैश्च शूराणां भ्राजमानैः सकुण्डलैः।। | 5-49-24a 5-49-24b |
विचित्रैश्च परिस्तोमैः पताकाभिश्च संवृता। चामरैश्च कुथाभिश्च प्रविद्धैश्चाम्बरोत्तमैः।। | 5-49-25a 5-49-25b |
रथाश्वनरनागानामलङ्कारैश्च सुप्रभैः। खङ्गैः सुनिशितैः पीतैर्निर्मुक्तैर्भुजगैरिव।। | 5-49-26a 5-49-26b |
चापैश्च विविधैश्छिन्नैः शक्त्यृष्टिप्रासकम्पनैः। विविधैश्चायुधैश्चान्यैः संवृता भूरशोभत।। | 5-49-27a 5-49-27b |
`निष्टनद्भिरतीवान्यैरुद्वहद्रुधिरस्रवैः। नरैः पतद्भिः पतितैरवनी स्वधिकं बभौ।। | 5-49-28a 5-49-28b |
वाजिभिश्चापि निर्जीवैः श्वसद्भिः शोणितोक्षितैः। सारोहैर्विषमा भूमिः सौभद्रेण निपातितैः।। | 5-49-29a 5-49-29b |
साङ्कुशैः समहामात्रैः सर्वमायुधकेतुभिः। पर्वतैरिव विध्वस्तैर्विशिखैर्मथितैर्गजैः।। | 5-49-30a 5-49-30b |
पृथिव्यानुकीर्णैश्च अश्वसारथियोधिभिः। हदैरिव प्रक्षुभितैर्हृतनागै रथोत्तमैः।। | 5-49-31a 5-49-31b |
पदातिसङ्घैश्च हतैर्विविधायुधभूषणैः। भीरूणां त्रासजननी घोररूपाऽभवन्मही।। | 5-49-32a 5-49-32b |
तं दृष्ट्वा पतितं भूमौ चन्द्रार्कसदृशद्युतिम्। तावकानां परा प्रीतिः पाण्डूनां चाभवद्व्यथा।। | 5-49-33a 5-49-33b |
अभिमन्यौ हते राजञ्शिशुकेऽप्राप्तयौवने। सम्प्राद्रवच्चमूः सर्वा धर्मराजस्य पश्यतः।। | 5-49-34a 5-49-34b |
दीर्यमाणं बलं दृष्ट्वा सौभद्रे विनिपातिते। अजातशत्रुस्तान्वीरानिदं वचनमब्रवीत्।। | 5-49-35a 5-49-35b |
स्वर्गमेष गतः शूरो यो हतो न पराङ्मुखः। संस्तम्भयत माभैष्ट विजेष्यामो रणे रिपून्।। | 5-49-36a 5-49-36b |
इत्येवं स महातेजा दुःखितेभ्यो महाद्युतिः। धर्मराजो युधां श्रेष्ठो ब्रुवन्दुःखमपानुदत्।। | 5-49-37a 5-49-37b |
युद्धे ह्याशीविषाकारान्राजपुत्रान्रणे रिपून्। पूर्वं निहत्य सङ्ग्रामे पश्चादार्जुनिरभ्ययात्।। | 5-49-38a 5-49-38b |
हत्वा दशसहस्राणि कौसल्यं च महारथम्। कृष्णार्जुनसमः कार्ष्णिः शक्रलोकं गतो ध्रुवम्।। | 5-49-39a 5-49-39b |
रथाश्वनरमातङ्गान्विनिहत्य सहस्रशः। अवितृप्तः स सङ्ग्रामादशोच्यः पुण्यकर्मकृत्। | 5-49-40a 5-49-40b |
गतः पुण्यकृतां लोकाञ्शाश्वतान्पुण्यनिर्जितान्।। | 5-49-41a |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि त्रयोदशदिवसयुद्धे एकोनपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 49 ।। |
5-49-18 उपप्लुतं राहुग्रस्तम्।। 5-49-19 काकपक्षावृताक्षिकं इति झ पाठः।। 5-49-30 विशाखोन्मथितैर्गजैः इति क.पाठः।। 5-49-31 व्यश्वसारथियोधिभिः इति क.पाठः।। 5-49-49 एकोनपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-048 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-050 |