महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-088
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अर्जुनस्य रणाङ्गणप्रवेशः।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-88-1x |
व्यूढेषु तव सैन्येषु समुत्क्रुष्टेषु मारिष। ताड्यमानासु भेरीषु मृदङ्गेष्वानकेषु च।। | 5-88-1a 5-88-1b |
अनीकानां च संह्रादे वादित्राणां च निःस्वने। प्रध्मापितेषु शङ्खेषु सन्नादे रोमहर्षणे।। | 5-88-2a 5-88-2b |
प्रगृहीतेषु शस्त्रेषु भारतेषु युयुत्सुषु। रौद्रे मुहूर्ते सम्प्राप्ते सव्यसाची व्यदृश्यत।। | 5-88-3a 5-88-3b |
बलानां वायसानां च पुरस्तात्सव्यसाचिनः। पिशितासृग्भुजां सङ्घाः प्रलीयन्ते सहस्रशः।। | 5-88-4a 5-88-4b |
मृगाश्च घोरसन्नादः शिवाश्चाशिवदर्शनाः।। दक्षिणेन प्रयातानामस्माकं नेदुरध्वनि।। | 5-88-5a 5-88-5b |
`लोकक्षये महाराज यादृशास्तादृशा हि ते। अशिवा धार्तराष्ट्राणां शिवाः पार्थस्य संयुगे'।। | 5-88-6a 5-88-6b |
सनिर्घाता ज्वलन्त्यश्च पेतुरुल्काः सहस्रशः। चचाल च मही कृत्स्ना भये घोरे समुत्थिते।। | 5-88-7a 5-88-7b |
विष्वग्वाताः सनीहारा रूक्षाः शर्करकर्षिणः। ववुरायाति कौन्तेये सङ्ग्रामे समुपस्थिते।। | 5-88-8a 5-88-8b |
नाकुलिश्च शतानीको धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः। पाण्डवानामनीकानि प्राज्ञौ तौ व्यूहतुस्तदा।। | 5-88-9a 5-88-9b |
ततो रथसहस्रेण द्विरदानां शतेन च। त्रिभिरश्वसहस्रैश्च पदातीनां शतैः शतैः।। | 5-88-10a 5-88-10b |
अध्यर्धमात्रे धनुषां सहस्रे तनयस्तव। अग्रतः सर्वसैन्यानां स्थित्वा दुर्मर्षणोऽब्रवीत्।। | 5-88-11a 5-88-11b |
अद्य गाण्डीवधन्वानं तपन्तं युद्धदुर्मदम्। अहमावारयिष्यामि वेलेव मकरालयम्।। | 5-88-12a 5-88-12b |
अद्य पश्यन्तु सङ्ग्रामे धनञ्जयममर्षणम्। विषक्तं मयि दुर्धर्षं भिन्नं कुम्भमिवाश्मनि।। | 5-88-13a 5-88-13b |
तिष्ठध्वं रथिनो यूयं सङ्ग्राममभिकाङ्क्षिणः। युध्यामि संहतानेतान्यशो मानं च वर्धयन्।। | 5-88-14a 5-88-14b |
एवं ब्रुवन्महाराज महात्मा स महीपतिः। महेष्वासैर्वृतो राजन्महेष्वासो व्यवस्थितः।। | 5-88-15a 5-88-15b |
ततोऽर्जुनो महाराज महात्मा महतां पतिः। महारथसमाख्यातो महेष्वासो व्यवस्थितः।। | 5-88-16a 5-88-16b |
कक्षाग्निरिव दुःस्पर्शः सवज्र इव वासवः। दण्डपाणिरिवासह्यो मृत्युः कालेन चोदितः।। | 5-88-17a 5-88-17b |
शूलपाणिरिवाक्षोभ्यो वरुणः पाशवानिव। युगान्ताग्निरिवार्चिष्मान्दिधक्षुः स्थास्नुजङ्गमम्।। | 5-88-18a 5-88-18b |
क्रोधामर्षबलोद्धूतो निवातकवचान्तकः। युद्धे जेता स्थितः सत्ये पारयिष्यन्महाव्रतम्।। | 5-88-19a 5-88-19b |
आमुक्तकवचः खङ्गी जाम्बूनदकिरीटभृत्। शुभ्रमाल्याम्बरधरः स्वङ्गदश्चारुकुण्डलः।। | 5-88-20a 5-88-20b |
रथप्रवरमास्थाय नरो नारायणानुगः। विधुन्वन्गाण्डिवं सङ्ख्ये बभौ सूर्य इवोदितः।। | 5-88-21a 5-88-21b |
अग्रानीकस्य सोऽध्यर्ध इषुपाते धनञ्जयः। व्यवस्थाप्य रथं राजञ्शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।। | 5-88-22a 5-88-22b |
अथ कृष्णोऽप्यसम्भ्रान्तः पार्थेन सह मारिष। प्राध्मापयत्पाञ्चजन्यं शङ्खप्रवरमोजसा।। | 5-88-23a 5-88-23b |
तयोः शङ्खप्रणादेन तव सैन्ये विशाम्पते। आसन्संहृष्टरोमाणः कम्पिता गतचेतसः।। | 5-88-24a 5-88-24b |
यथा त्रस्यन्ति भूतानि सर्वाण्यशनिनिःस्वनात्। तथा शङ्खप्रणादेन वित्रेसुस्तव सैनिकाः।। | 5-88-25a 5-88-25b |
प्रसुस्रुवुः शकृन्मूत्रं वाहनानि च सर्वशः। एवं सवाहनं सर्वमाविग्नमभवद्बलम्।। | 5-88-26a 5-88-26b |
सीदन्ति स्म नरा राजञ्शङ्खशब्देन मारिष। विसंज्ञाश्चाभवन्केचित्केचिद्राजन्वितत्रसुः।। | 5-88-27a 5-88-27b |
ततः कपिर्महानादं सहभूतैर्ध्वजालयैः। अकरोद्व्यादितास्यश्च भीषयंस्तव सैनिकान्।। | 5-88-28a 5-88-28b |
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च मृदङ्गाश्चानकैः सह। पुनरेवाभ्यहन्यन्त तव सैन्यप्रहर्षणाः।। | 5-88-29a 5-88-29b |
नानावादित्रसंहादैः क्ष्वेडितास्फोटिताकुलैः। सिंहनादैः समुत्क्रुष्टैः समाधूतैर्महारथैः।। | 5-88-30a 5-88-30b |
तस्मिंस्तु तुमुले शब्दे भीरूणां भयवर्धने। अतीव हृष्टो दाशार्हमब्रवीत्पाकशासनिः।। | 5-88-31a 5-88-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि चतुर्दशदिवसयुद्धे अष्टांशीतितमोऽध्यायः।। 88 ।। |
5-88-10 शतैः शतैर्दशसहस्रैः।। 5-88-30 समाधूतैः सञ्चालितैः।। 5-88-88 अष्टाशीतितमोऽध्यायः।।
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