महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-031
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अश्वत्थाम्ना नीलस्य वधः।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 5-31-1x |
तेष्वनीकेषु भग्नेषु पाण्डुपुत्रेण सञ्जय। चलितानां द्रुतानां च कथमासीन्मनांसि वः।। | 5-31-1a 5-31-1b |
आनीकानां प्रभग्नानामवस्थानमपश्यताम्। दुष्करं प्रतिसन्धानं तन्ममाचक्ष्व सञ्जय।। | 5-31-2a 5-31-2b |
सञ्जय उवाच। | 5-31-3x |
तथापि तव पुत्रस्य प्रियकामा विशाम्पते। यशः प्रवीरा लोकेषु रक्षन्तो द्रोणमन्वयुः।। | 5-31-3a 5-31-3b |
समुद्यतेषु चास्त्रेषु सम्प्राप्ते च युधिष्ठिरे। अकुर्वन्नार्यकर्माणि भैरवे सत्यभीतवत्।। | 5-31-4a 5-31-4b |
अन्तरं भीमसेनस्य प्रापतन्नमितौजसः। सात्यकेश्चैव वीरस्य धृष्टद्युम्नस्य वा विभो।। | 5-31-5a 5-31-5b |
द्रोणं द्रोणमिति क्रूराः पाञ्चालाः समचोदयन्। मा द्रोणमिति पुत्रास्ते कुरून्सर्वानचोदयन्।। | 5-31-6a 5-31-6b |
द्रोणं द्रोणमिति ह्येके मा द्रोणमिति चापरे। कुरूणां पाण्डवानां च द्रोणद्यूतमवतेत।। | 5-31-7a 5-31-7b |
यंयं प्रमथते द्रोणः पाञ्चालानां रथव्रजम्। तत्रतत्र तु पाञ्चाल्यो धृष्टद्युम्नोऽभ्यवर्तत।। | 5-31-8a 5-31-8b |
तेषां भाग्यविपर्यासैः सङ्ग्रामे भैरवे सति। वीराः समासदन्वीरान्कुर्वन्तो भैरवं रवम्।। | 5-31-9a 5-31-9b |
अकम्पनीयाः शत्रूणां बभूवुस्तत्र पाण्डवाः। अकम्पयन्ननीकानि स्मरन्तः क्लेशमात्मनः।। | 5-31-10a 5-31-10b |
ते त्वमर्षवशं प्राप्ता हीमन्तः सत्वचोदिताः। त्यक्त्वा प्राणान्न्यवर्तन्त घ्नन्तो द्रोणं महाहवे।। | 5-31-11a 5-31-11b |
अयासमिव सम्पातः शिलानामिव चाभवत्। दीव्यतां तुमुले युद्धे प्राणैरमिततेजसाम्।। | 5-31-12a 5-31-12b |
नानुस्मरन्ति सङ्ग्राममपि वृद्धास्तथाविधम्। ये पूर्वदेवैर्देवानामपश्यन्युद्धमद्भुतम्।। | 5-31-13a 5-31-13b |
प्राकम्पतेव पृथिवी तस्मिन्वीरावसादने। निवर्तता बलौघेन महता भारपीडिता।। | 5-31-14a 5-31-14b |
घूर्णतोऽपि बलौघस्य दिवं स्तब्ध्वेव निःस्वनः। अजातशत्रोस्तत्सैन्यमाविवेश सुभैरवः।। | 5-31-15a 5-31-15b |
समासाद्य तु पाण्डूनामनीकानि सहस्रशः। द्रोणेन चरता सङ्ख्ये प्रभग्नानि शितैः शरैः।। | 5-31-16a 5-31-16b |
तेषु प्रमथ्यमानेषु द्रोणेनाद्भुतकर्मणा। पर्यवरायदासाद्य द्रोणं सेनापतिः स्वयम्।। | 5-31-17a 5-31-17b |
तदद्भुतमभूद्युद्धं द्रोणपाञ्चालयोस्तथा। नैव तस्योपमा काचिदिति मे निश्चिता मतिः।। | 5-31-18a 5-31-18b |
ततो नीलोऽनलप्रख्यो ददाह कुरुवाहिनीम्। शरस्कुलिङ्गश्चापार्चिर्दिहन्कक्षमिवानलः।। | 5-31-19a 5-31-19b |
तं दहन्तमनीकानि द्रोणपुत्रः प्रतापवान्। पूर्वाभिभाषी सुश्लक्ष्णं स्मयमानोऽभ्यभाषत।। | 5-31-20a 5-31-20b |
नील किं बहुभिर्दग्धैस्तव योधैः सरार्चिषा। मयैकेन हि युध्यस्व क्रुद्धः प्रहर चाशु माम्।। | 5-31-21a 5-31-21b |
तं पद्मनिकराकारं पद्मपत्रनिभेक्षणम्। व्याकोशपद्माभमुखो नीलो विव्याध सायकैः।। | 5-31-22a 5-31-22b |
तेनापि विद्धः सहसा द्रौणिर्भल्लैः शितैस्त्रिभिः। धनुर्ध्वजं च च्छत्रं च द्विषतः सन्न्यकृन्तत।। | 5-31-23a 5-31-23b |
स प्लुतः स्यन्दनात्तस्मान्नीलश्चर्मवरासिभृत्। द्रौणायनेः शिरः कायाद्धर्तुमैच्छत्पतत्त्रिवत्।। | 5-31-24a 5-31-24b |
तस्योद्यतासेः सुनसं शिरः कायात्सकुण्डलम्। भल्लेनापाहरद्द्रौणिः स्मयमान इवानघ।। | 5-31-25a 5-31-25b |
सम्पूर्णचन्द्राभमुखः पद्मपत्रनिभेक्षणः। प्रांशुरुत्पलपत्राभो निहतो न्यपतद्भुवि।। | 5-31-26a 5-31-26b |
ततः प्रविव्यथे सेना पाण्डवी भृशमाकुला। आचार्यपुत्रेण हते नीले ज्वलिततेजसि।। | 5-31-27a 5-31-27b |
अचिन्तयंश्च ते सर्वे पाण्डवानां महारथाः। कथं नो वासविस्त्रायाच्छत्रुभ्य इति मारिष।। | 5-31-28a 5-31-28b |
दक्षिणेन तु सेनायाः कुरुते कदनं बली। संशप्तकावशेषस्य नारायणबलस्य च।। | 5-31-29a 5-31-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि द्वादशदिवसयुद्धे एकत्रिंशोऽध्यायः।। 31 ।। |
5-31-5 अन्तरं छिद्रम्। प्रापतन्सृतवन्तः।। 5-31-7 पाण्डवान्याम इत्येव मा द्रोणमिति चापरे इति कः पाठः।। 5-31-9 समासदन्प्रतिगतवन्तः।। 5-31-11 न्यवर्तन्त भयेभ्यो निवृत्ताः। सत्यचोदिताः इति क.घ.ङ. पाठः।। 5-31-31 एकत्रिंशोऽध्यायः।।
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