महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-155
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द्रोणयुद्धवर्णनम्।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 5-155-1x |
यत्तदा प्राविशत्पाण्डूनाचार्यः कुपितो बली। उक्ता दुर्योधनं मन्दं मम शास्त्रातिगं सुतम्।। | 5-155-1a 5-155-1b |
प्रविश्य विचरन्तं च रथे शूरमवस्थितम्। कथं द्रोणं महेष्वासं पाण्डवाः पर्यवारयन्।। | 5-155-2a 5-155-2b |
केऽरक्षन्दक्षिणं चक्रमाचार्यस्य महाहवे। के चोत्तरमरक्षन्त निघ्नतः शास्त्रवान्बहून्।। | 5-155-3a 5-155-3b |
के चास्य पृष्ठतोऽन्वासन्वीरा वीरस्य योधिनः। के पुरस्तादवर्तन्त रथिनस्तस्य शत्रवः।। | 5-155-4a 5-155-4b |
मन्ये तानस्पृशच्छीतमतिवेलमनार्तवम्। मन्ये ते समवेपन्त गावो वै शिशिरे यथा।। | 5-155-5a 5-155-5b |
यत्प्राविशन्महेष्वासः पाञ्चालानपराजितः। नृत्यन्स रथमार्गेषु सर्वशस्त्रभृतां वरः।। | 5-155-6a 5-155-6b |
निर्दहन्सर्वसैन्यानि पाञ्चालानां रथर्षभः। धूमकेतुरिव क्रुद्धः कथं मृत्युमुपेयिवान्।। | 5-155-7a 5-155-7b |
सञ्जय उवाच। | 5-155-8x |
सायाह्ने सैन्धवं हत्वा राज्ञा पार्थः समेत्य च। सात्यकिश्च महेष्वासो द्रोणमेवाभ्यधावताम्।। | 5-155-8a 5-155-8b |
तथा युधिष्ठिरस्तूर्णं भीमसेनश्च पाण्डवः। पृथक्चमूभ्यां संयत्तौ द्रोणमेवाभ्यधावताम्।। | 5-155-9a 5-155-9b |
तथैव नकुलो धीमान्सहदेवश्च दुर्जयः। धृष्टद्युम्नः शतानीको विराटश्च सकेकयः। मात्स्याः साल्वाः ससेनाश्च द्रोणमेव ययुर्युधि।। | 5-155-10a 5-155-10b 5-155-10b |
द्रुपदश्च तथा राजा पाञ्चालैरभिरक्षितः। धृष्टद्युम्नपिता राजन्द्रोणमेवाभ्यवर्तत।। | 5-155-11a 5-155-11b |
द्रौपदेया महेष्वासा राक्षसश्च घटोत्कचः। ससैन्यास्ते न्यवर्तन्त द्रोणमेव महाद्युतिम्।। | 5-155-12a 5-155-12b |
प्रभद्रकाश्च पाञ्चालाः षट्सहस्राः प्रहारिणः। द्रोणमेवाभ्यवर्तन्त पुरस्कृत्य शिखण्डिनम्।। | 5-155-13a 5-155-13b |
तथेतरे नरव्याघ्राः पाण्डवानां महारथाः। सहिताः सन्न्यवर्तन्त द्रोणमेव द्विजर्षभम्।। | 5-155-14a 5-155-14b |
तेषु शूरेषु युद्धाय गतेषु भरतर्षभ। बभूव रजनी घोरा भीरूणां भयवर्धिनी।। | 5-155-15a 5-155-15b |
योधानामशिवा रौद्रा राजन्नन्तकगामिनी। कुञ्जराश्वमनुष्याणां प्राणान्तकरणी तदा।। | 5-155-16a 5-155-16b |
तस्यां रजन्यां घोरायां नदन्त्यः सर्वतः शिवाः। न्यवेदयन्भयं घोरं सज्वालकबलैर्मुखैः।। | 5-155-17a 5-155-17b |
उलूकाश्चाप्यदृश्यन्त शंसन्तो विपुलं भयम्। विशेषतः कौरवाणां ध्वजिन्यामतिदारुणाः।। | 5-155-18a 5-155-18b |
ततः सैन्येषु राजेन्द्र शब्दः समभवन्महान्। भेरीशब्देन महता मृदङ्गानां स्वनेन च।। | 5-155-19a 5-155-19b |
गजानां बृंहितैश्चापि तुरङ्गाणां च हेषितैः। खुरशब्दनिपातैश्च तुमुलः सर्वतोऽभवत्।। | 5-155-20a 5-155-20b |
ततः समभवद्युद्धं सन्ध्यायामतिदारुणम्। द्रोणस्य च महाराज सृञ्जयानां च सर्वशः।। | 5-155-21a 5-155-21b |
तमसा चावृते लोके न प्राज्ञायत किञ्चन। सैन्येन रजसा चैव समन्तादुत्थितेन ह।। | 5-155-22a 5-155-22b |
नरस्याश्वस्य नागस्य समसज्जत शोणितम्। नापश्याम रजो भौमं कश्मलेनाभिसंवृताः।। | 5-155-23a 5-155-23b |
रात्रौ वंशवनस्येव दह्यमानस्य पर्वते। घोरश्चटचटाशब्दः शस्त्राणां पततामभूत्।। | 5-155-24a 5-155-24b |
मृदङ्गानकनिर्ह्रादैर्झर्झरैः पटहैस्तथा। फेत्कारैर्हेषितैः शब्दैः सर्वमैवाकुलं बभौ।। | 5-155-25a 5-155-25b |
नैव स्वे न परे राजन्प्राज्ञायन्त तमोवृते। उन्मत्तमिव तत्सर्वं बभूव रजनीमुखे।। | 5-155-26a 5-155-26b |
भौमं रजोऽथ राजेन्द्र शोणितेन प्रणाशितम्। शातकौम्भैश्च कवचैर्भूषणैश्च तमोऽनशत्।। | 5-155-27a 5-155-27b |
ततः सा भारती सेना मणिहेमविभूषिता। द्यौरिवासीत्सनक्षत्रा रजन्यां भरतर्षभ।। | 5-155-28a 5-155-28b |
गोमायुबलसङ्घुष्टा शक्तिध्वजसमाकुला। वारणाभिरुता घोरा क्ष्वेडितोत्क्रुष्टनादिता।। | 5-155-29a 5-155-29b |
तत्राभवन्महाशब्दस्तुमुलो रोमहर्षणः। समावृण्वन्दिशः सर्वा महेन्द्राशनिनिःस्वनः।। | 5-155-30a 5-155-30b |
सा निशीथे महाराज सेनाऽदृश्यत भारती। अङ्गदैः कुण्डलैर्निष्कैः शस्त्रैश्चैवावभासिता।। | 5-155-31a 5-155-31b |
तत्र नागा रथाश्चैव जाम्बूनदविभूषिताः। निशायां प्रत्यदृश्यन्त मेघा इव सविद्युतः।। | 5-155-32a 5-155-32b |
ऋष्टिशक्तिगदाबाणमुसलप्रासपट्टसाः। सम्पतन्तो व्यदृश्यन्त भ्राजमाना इवाग्नयः।। | 5-155-33a 5-155-33b |
दुर्योधनपुरोवातां रथनागवलाहकाम्। वादित्रघोषस्तनितां चापविद्युद्व्वजैर्वृताम्।। | 5-155-34a 5-155-34b |
द्रोणपाण्डवपर्जन्यां खङ्गशक्तिगदाशनिम्। शरधारास्त्रपवनां शस्त्रपातोष्मसङ्कुलाम्।। | 5-155-35a 5-155-35b |
घोरां विस्मापनीमुग्रां जीवितच्छिदमप्लुवाम्। तां प्राविशन्नतिभयां नदीं युद्धचिकीर्षवः।। | 5-155-36a 5-155-36b |
तस्मिन्रात्रिमुखे घोरे महाशब्दनिनादिते। भीरूणां त्रासजनने शूराणां हर्षवर्धने।। | 5-155-37a 5-155-37b |
रात्रियुद्धे महाघोरे वर्तमाने सुदारुणे। द्रोणमभ्यद्रुवन्क्रुद्धाः सहिताः पाण्डुसृञ्जयाः।। | 5-155-38a 5-155-38b |
ये ये प्रमुखतो राजन्नावर्तन्त महारथाः। तान्सर्वान्विमुखांश्चक्रे कांश्चिन्निन्ये यमक्षयम्।। | 5-155-39a 5-155-39b |
तानि नागसहस्राणि रथानामयुतानि च। पदातिहयसङ्घानां प्रयुतान्यर्बुदानि च। द्रोणेनैकेन नाराचैर्निर्भिन्नानि निशामुखे।। | 5-155-40a 5-155-40b 5-155-40c |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि चतुर्दशरात्रियुद्धे पञ्चपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 155 ।। |
5-155-1 शास्त्रातिगं शास्त्रमाज्ञा।। 5-155-7 धूमकेतुरग्निः ।। 5-155-14 सन्न्यवर्तन्त सम्मुखं नितरामवर्तन्त।। 5-155-155 पञ्चपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-154 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-156 |