महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-158
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भीमेनः बाह्लीकवधः।। 1 ।। तथा दुर्योधनानुजदशकस्य शकुनिभ्रातृपञ्चकस्य च वधः।। 2 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-158-1x |
द्रुपदस्यात्मजान्दृष्ट्वा कुन्तिभोजसुतांस्तथा। द्रोणपुत्रेण निहतान्राक्षसांश्च सहस्रशः।। | 5-158-1a 5-158-1b |
युधिष्ठिरो भीमसेनो धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः। युयुधानश्च संयत्ता युद्धायैव मनो दधुः।। | 5-158-2a 5-158-2b |
सोमदत्तः पुनः क्रुद्धो दृष्ट्वा सात्यकिमाहवे। महता शरवर्षेण च्छादयामास भारत।। | 5-158-3a 5-158-3b |
ततः समभवद्युद्धमतीव भयवर्धनम्। त्वदीयानां परेषां च घोरं विजयकाङ्क्षिणाम्।। | 5-158-4a 5-158-4b |
तं दृष्ट्वा समुपायान्तं रुक्मपुङ्खैः शिलाशितैः। दशभिः सात्वतस्यार्थे भीमो विव्याध सायकैः।। | 5-158-5a 5-158-5b |
सोमदत्तोऽपि तं वीरं शतेन प्रत्यविध्यत। सात्वतस्त्वभिसंक्रुद्धः पुत्राधिभिरभिप्लुतम्।। | 5-158-6a 5-158-6b |
वृद्धं वृद्धगुणैर्युक्तं ययातिमिव नाहुषम्। विव्याध दशभिस्तीक्ष्णैः शरैर्वज्रनिपातनैः। शक्त्या चैनं विनिर्भिद्य पुनर्विव्याध सप्तभिः।। | 5-158-7a 5-158-7b 5-158-7c |
ततस्तु सात्यकेरर्थे भीमसेनो नवं दृढम्। मुमोच परिघं घोरं सोमदत्तस्य मूर्धनि।। | 5-158-8a 5-158-8b |
सात्वतोऽप्यग्निसङ्काशं मुमोच शरमुत्तमम्। सोमदत्तोरसि क्रुद्धः सुपत्रं निशितं युधि।। | 5-158-9a 5-158-9b |
युगपत्पेततुर्वीर घोरौ परिघमार्गणौ। शरीरे सोमदत्तस्य स पपात महारथः।। | 5-158-10a 5-158-10b |
व्यामोहिते तुनये बाह्लीकस्तमुपाद्रवत्। विसृजञ्छरवर्षाणि कालवर्षीव तोयदः।। | 5-158-11a 5-158-11b |
भीमोऽथ सात्वतस्यार्थे बाह्लीकं नवभिः शरैः। प्रातिपेयं महात्मानं विव्याध रणमूर्धनि।। | 5-158-12a 5-158-12b |
प्रातिपेयस्तु सङ्क्रुद्धः शक्तिं भीमस्य वक्षसि। निचखान महाबाहुः पुरन्दर इवाशनिम्।। | 5-158-13a 5-158-13b |
स तथाऽभिहतो भीमश्चकम्पे च मुमोह च। प्राप्य चेतश्च बलवान्गदामस्मै ससर्ज ह।। | 5-158-14a 5-158-14b |
सा पाण्डवेन प्रहिता बाह्लीकस्य शिरोऽहरत्। स पपात हतः पृथ्व्यां वज्राहत इवाद्रिराट्।। | 5-158-15a 5-158-15b |
तस्मिन्विनिहते वीरे बाह्लीके पुरुषर्षभ। पुत्रास्तेऽभ्यर्दयन्भीमं दश दाशरथेः समाः।। | 5-158-16a 5-158-16b |
नागदत्तो दृढरथो महाबाहुरयोभुजः। दृढः सुहस्तो विरजाः प्रमाथ्युग्रोऽनुयाय्यपि।। | 5-158-17a 5-158-17b |
तान्दृष्ट्वा चुक्रुधे भीमो जगृहे भारसाधनान्। एकमेकं समुद्दिश्य पातयामास मर्मसु।। | 5-158-18a 5-158-18b |
ते विद्धा व्यसवः पेतुः स्यन्दनेभ्यो हतौजसः। चण्डवातप्रभग्नास्तु पर्वताग्रान्महीरुहाः।। | 5-158-19a 5-158-19b |
नाराचैर्दशभिर्भीमस्तान्निहत्य तवात्मजान्। कर्णस्य दयितं पुत्रं वृषसेनमवाकिरत्।। | 5-158-20a 5-158-20b |
ततो वृकरथो नाम भ्राता कर्णस्य विश्रुतः। जघान भीमं नाराचैस्तमप्यभ्यद्रवद्बली।। | 5-158-21a 5-158-21b |
ततः सप्तरथान्वीरः श्यालानां तव भारत। निहत्य भीमो नाराचैः शतचन्द्रमपोथयत्।। | 5-158-22a 5-158-22b |
अमर्षयन्तो निहतं शतचन्द्रं महारथम्। शकुनेर्भ्रातरो वीरा गवाक्षः शरभो विभुः।। | 5-158-23a 5-158-23b |
सुभगो भानुदत्तश्च शूराः पञ्च महारथाः। अभिद्रुत्य शरैस्तीक्ष्णैर्भीमसेनमताडयन्।। | 5-158-24a 5-158-24b |
स ताड्यमानो नाराचैर्वृष्टिवेगैरिवाचलः। जघान पञ्चभिर्बाणैः पञ्चैवातिरथान्बली।। | 5-158-25a 5-158-25b |
तान्दृष्ट्वा निहतान्वीरान्विचेलुर्नृपसत्तमाः।। | 5-158-26a |
ततो युधिष्ठिरः क्रुद्धस्तवानीकमशातयत्।। मिषतः कुम्भयोनेस्तु पुत्राणां तव चानघ।। | 5-158-27a 5-158-27b |
अम्बष्ठान्मालवाञ्छूरांस्त्रिगर्तान्सशिबीनपि। प्राहिणोन्मृत्युलोकाय क्रुद्धो युद्धे युधिष्ठिरः।। | 5-158-28a 5-158-28b |
अभीषाहाञ्छूरसेनान्बाह्लीकान्सवसातिकान्। निहत्य पृथिवीं राजा चक्रे शोणितकर्दमाम्।। | 5-158-29a 5-158-29b |
यौधेयान्मालवान्राजन्मद्रकाणां गणान्युधि। प्राहिणोन्मृत्युलोकाय शूरान्बाणैर्युधिष्ठिरः।। | 5-158-30a 5-158-30b |
हताहरत गृह्णीत विध्यत व्यवकृन्तत। इत्यासीत्तुमुलः शब्दो युधिष्ठिररथं प्रति।। | 5-158-31a 5-158-31b |
सैन्यानि द्रावयन्तं तं द्रोणो दृष्ट्वा युधिष्ठिरम्। चोदितस्तव पुत्रेण सायकैरभ्यवाकिरत्।। | 5-158-32a 5-158-32b |
द्रोणस्तु परमक्रुद्धो वायव्यास्त्रेण पार्थिवम्। विव्याध सोऽपि तद्दिव्यमस्त्रमस्त्रेण जघ्निवान्।। | 5-158-33a 5-158-33b |
तस्मिन्विनिहते चास्त्रे भारद्वाजो युधिष्ठिरे। वारुणं याम्यमाग्नेयं त्वाष्ट्रं सावित्रमेव च। चिक्षेप परमक्रुद्धो जिघांसुः पाण्डुनन्दनम्।। | 5-158-34a 5-158-34b 5-158-34c |
क्षिप्तानि क्षिप्यमाणानि तानि चास्त्राणि धर्मजः। जघानास्त्रैर्महाबाहुः कुम्भयोनेरवित्रसन्।। | 5-158-35a 5-158-35b |
सत्यां चिकीर्षमाणस्तु प्रतिज्ञां कुम्भसम्भवः।। | 5-158-36a |
प्रादुश्चक्रेऽस्त्रमैन्द्रं वै प्राजापत्यं च भारत। जिघांसुर्धर्मतनयं तव पुत्रहिते रतः।। | 5-158-37a 5-158-37b |
पतिः कुरूणां गजसिंहगामी विशालवक्षाः पृथुलोहिताक्षः। प्रादुश्चकारास्त्रमहीनतेजा माहेन्द्रमस्त्रं स जघान तेन।। | 5-158-38a 5-158-38b 5-158-38c 5-158-38d |
विहन्यमानेष्वस्त्रेषु द्रोणः क्रोधसमन्वितः। युधिष्ठिरवधं प्रेप्सुर्ब्राह्ममस्त्रमुदैरयत्।। | 5-158-39a 5-158-39b |
ततो नाज्ञासिषं किञ्चिद्धोरेण तमसाऽऽवृते। सर्वभूतानि च परं त्रासं जग्मुर्महीपते।। | 5-158-40a 5-158-40b |
ब्रह्मास्त्रमुद्यतं दृष्ट्वा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। ब्रह्मास्त्रेणैव राजेन्द्र तदस्त्रं प्रत्यवारयत्।। | 5-158-41a 5-158-41b |
ततः सैनिकमुख्यास्ते प्रशशंसुर्नरर्षभौ। द्रोणपार्थौ महेष्वासौ सर्वयुद्धविशारदौ।। | 5-158-42a 5-158-42b |
ततः प्रमुच्य कौन्तेयं द्रोणो द्रुपदवाहिनीम्। व्यधमत्क्रोधताम्राक्षो वायव्यास्त्रेण भारत।। | 5-158-43a 5-158-43b |
ते हन्यमाना द्रोणेन पाञ्चालाः प्राद्रवन्भयात्। पश्यतो भीमसेनस्य पार्थस्य च महात्मनः।। | 5-158-44a 5-158-44b |
ततः किरीटी भीमश्च सहसा सन्न्यवर्तताम्। महद्ध्यां रथवंशाभ्यां परिगृह्य बलं तदा।। | 5-158-45a 5-158-45b |
बीभत्सुर्दक्षिणं पार्श्वमुत्तरं च वृकोदरः। भारद्वाजं शरौघाभ्यां महद्भ्यामभ्यवर्षताम्।। | 5-158-46a 5-158-46b |
केकयाः सृञ्जयाश्चैव पाञ्चालाश्च महौजसः। अन्वगच्छन्महाराज मात्स्याश्च सह सात्वतैः।। | 5-158-47a 5-158-47b |
ततः सा भारती सेना वध्यमाना किरीटिना। तमसा निद्रया चैव पुनरेव व्यदीर्यत।। | 5-158-48a 5-158-48b |
द्रोणेन वार्यमाणास्ते स्वयं तव सुतेन च। नाशक्यन्त महाराज योधा वारयितुं तदा।। | 5-158-49a 5-158-49b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि चतुर्दशरात्रियुद्धे अष्टपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 158 ।। |
5-158-12 प्रातिपेयं प्रतीपपुत्रम्।। 5-158-38 पतिः कुरूणां युधिष्ठिरः। माहेन्द्रमन्यत्स जघानेति झ.पाठः।। 5-158-158 अष्टपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-157 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-159 |