महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-006
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दुर्योधनेन द्रोणम्प्रति सैनापत्यस्वीकारप्रार्थना।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-6-1x |
कर्णस्य वचनं श्रुत्वा राजा दुर्योधनस्तदा। सेनामध्यगतं द्रोणमिदं वचनमब्रवीत्।। | 5-6-1a 5-6-1b |
दुर्योधन उवाच। | 5-6-2x |
वर्णश्रैष्ठ्यात्कुलोत्पत्त्या श्रुतेन वयसा धिया। वीर्याद्दाक्ष्यादधृष्यत्वादर्थज्ञानान्नयाज्जयात्।। | 5-6-2a 5-6-2b |
तपसा च कृतज्ञत्वाद्वृद्धः सर्वगुणैरपि। युक्तो भवत्सश्रो गोप्ता राज्ञामन्यो न विद्यते।। | 5-6-3a 5-6-3b |
स भवान्पातु नः सर्वान्देवानिव शतक्रतुः। भवन्नेत्राः पराञ्जेतुमिच्छामो द्विजसत्तम।। | 5-6-4a 5-6-4b |
रुद्राणामिव कापालिर्वसूनामिव पावकः। कुबेर इव यक्षाणां मरुतामिव वासवः।। | 5-6-5a 5-6-5b |
वसिष्ठ इव विप्राणां तेजसामिव भास्करः। पितॄणामिव धर्मेन्द्रो यादसामिव चाम्बुराट्।। | 5-6-6a 5-6-6b |
नक्षत्राणामिव शशी दितिजानामिवोशनाः। `सर्वेषामिव लोकानां विश्वस्य च यथा क्षयः'।। | 5-6-7a 5-6-7b |
विश्वोत्पत्तिस्थितिलये श्रेष्ठो नारायणः प्रभुः। एवं सेनाप्रणेतॄणां मम सेनापतिर्भव।। | 5-6-8a 5-6-8b |
अक्षौहिण्यो दशैका च वशगाः सन्तु तेऽनघ। ताभिः शत्रून्प्रतिव्यूह्य जहीन्द्रो दानवानिव।। | 5-6-9a 5-6-9b |
प्रयातु नो भवानग्रे देवानामिव पावकिः। अनुयास्यामहे त्वाऽऽजौ सौरभेया इवर्षभम्।। | 5-6-10a 5-6-10b |
उग्रधन्वा महेष्वासो दिव्यं विष्फारयन्धनुः। दृष्ट्वा भवन्तं सङ्ग्रामे नार्जुनः प्रहरिष्यति।। | 5-6-11a 5-6-11b |
ध्रुवं युधिष्ठिरं सङ्ख्ये सानुबन्धं सबान्धवम्। जेष्यामि पुरुषव्याघ्र भवान्सेनापतिर्यदि।। | 5-6-12a 5-6-12b |
सञ्जय उवाच। | 5-6-13x |
एवमुक्ते ततो द्रोणं जयेत्यूचुर्नराधिपाः। सिंहनादेन महता हर्षयन्तस्तवात्मजम्।। | 5-6-13a 5-6-13b |
सैनिकाश्च मुदा युक्ता वर्धयन्ति द्विजोत्तमम्। दुर्योधनं पुरस्कृत्य प्रार्थयन्तो महद्यशः। दुर्योधनं ततो राजन्द्रोणो वचनमब्रवीत्।। | 5-6-14a 5-6-14b 5-6-14c |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि द्रोणाभिषेकपर्वणि षष्ठोऽध्यायः।। 6 ।। |
5-6-4 भवान्नेस्रं तेना येषां ते।। 5-6-6 धर्मेन्द्रो यमः। अम्बुराट् वरुणः।। 5-6-10 पावकिः स्कन्दः।। 5-6-6 षष्टोऽध्यायः।।
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