महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-052
← द्रोणपर्व-051 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-052 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-053 → |
युधिष्ठिराश्वासनाय व्यासेन तम्प्रति अकम्पनोपाख्यानकथनोपक्रमः।। 1 ।।
|
सञ्जय उवाच। | 5-52-1x |
एवं विलपमाने तु कुन्तीपुत्रे युधिष्ठिरे। कृष्णद्वैपायनस्तत्र आजगाम महानृषिः।। | 5-52-1a 5-52-1b |
अथ दृष्ट्वा महात्मानं पाण्डुपुत्रो युधिष्ठिरः। युक्तासनो दीनमनाः पूजां चक्रे महात्मनः।। | 5-52-2a 5-52-2b |
अर्चयित्वा यथान्यायमुपविष्टं युधिष्ठिरः। अब्रवीच्छोकसन्तप्तो भ्रातुः पुत्रवधेन च।। | 5-52-3a 5-52-3b |
अधर्मयुक्तैर्बहुभिः परिवार्य महारथैः। युध्यमानो महेष्वासैः सौभद्रो निहतो रणे।। | 5-52-4a 5-52-4b |
बालश्च बालबुद्धिश्च वीरश्च परवीरहा। अनुपायेन सङ्ग्रामे युध्यमानो विनाशितः।। | 5-52-5a 5-52-5b |
मया प्रोक्तः स सङ्ग्रामे द्वारं सञ्जनयस्व नः। प्रविष्टेऽभ्यन्तरे तस्मिन्सैन्धवेन निवारिताः।। | 5-52-6a 5-52-6b |
ननु नाम समं युद्धमेष्टव्यं युद्धजीविभिः। इदं चैवासमं युद्धमीदृशं यत्कृतं परैः।। | 5-52-7a 5-52-7b |
तेनास्मि भृशसन्तप्तः शोकबाष्पसमाकुलः। शमं नैवाधिगच्छामि चिन्तयानः पुनः पुनः।। | 5-52-8a 5-52-8b |
सञ्जय उवाच। | 5-52-9x |
तं तथा विलपन्तं वै शोकव्याकुलमानसम्। उवाच सान्त्वयन्व्यासो युधिष्ठिरमिदं वचः।। | 5-52-9a 5-52-9b |
व्यास उवाच। | 5-52-10x |
युधिष्ठिर महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारद। व्यसनेषु न मुह्यन्ति त्वादृशा भरतर्षभ।। | 5-52-10a 5-52-10b |
स्वर्गमेष गतः शूरः शत्रून्हत्वा बहून्रणे। अबालसदृशं कर्म कृत्वा वै पुरुषोत्तमः।। | 5-52-11a 5-52-11b |
अनतिक्रमणीयो वै विधिरेष युधिष्ठिर। देवदानवगन्धर्वान्मूत्युर्हरति भारत।। | 5-52-12a 5-52-12b |
युधिष्ठिर उवाच। | 5-52-13x |
इमे वै पृथिवीपालाः शेरते पृथिवीतले। निहताः पृतनामध्ये मृतसंज्ञा महाबलाः।। | 5-52-13a 5-52-13b |
नागायुतबलाश्चान्ये वायुवेगबलास्तथा। त एते निहताः सङ्ख्ये तुल्यरूपा नरैर्नराः।। | 5-52-14a 5-52-14b |
नैषां पश्यामि हन्तारं प्राणिनां संयुगे क्वचित्। विक्रमेणोपसम्पन्नास्तपोबलसमन्विताः।। | 5-52-15a 5-52-15b |
जेतव्यमिति चान्योन्यं येषां नित्यं हृदि स्थितम्। अथ चेमे हताः प्राज्ञाः शेरते विगतायुषः।। | 5-52-16a 5-52-16b |
मृता इति च शब्दोयं वर्तते च ततोऽर्थवत्। इमे मृता महीपालाः प्रायशो भीमविक्रमाः।। | 5-52-17a 5-52-17b |
निश्चेष्टा निरभीमानाः शूराः शत्रुवशंगताः। राजपुत्राश्च संरब्धा वैश्वानरमुखं गताः।। | 5-52-18a 5-52-18b |
अत्र मे संशयः प्राप्तः कुतः संज्ञा मृता इति। कस्य मृत्युः कुतो मृत्युः केन मृत्युरिमाः प्रजाः। हरत्यमरसङ्काश तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 5-52-19a 5-52-19b 5-52-19c |
सञ्जय उवाच। | 5-52-20x |
तं तथा परिपृच्छन्तं कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्। आश्वासनमिदं वाक्यमुवाच भगवानृषिः।। | 5-52-20a 5-52-20b |
व्यास उवाच। | 5-52-21x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। अकम्पनस्य कथितं नारदेन पुरा नृप।। | 5-52-21a 5-52-21b |
स चापि राजा राजेन्द्र पुत्रव्यसनमुत्तमम्। अप्रसह्यतमं लोके प्राप्तवानिति नः श्रुतम्।। | 5-52-22a 5-52-22b |
तदहं सम्प्रवक्ष्यामि मृत्योः प्रभवमुत्तमम्। ततस्त्वं मोक्ष्यसे दुःखात्स्नेहबन्धनसंश्रयात्।। | 5-52-23a 5-52-23b |
समस्तपापराशिघ्नं शृणु कीर्तयतो मम। धन्यमाख्यानमायुष्यं शोकघ्नं पुष्टिवर्धनम्।। | 5-52-24a 5-52-24b |
पवित्रमरिसङ्घघ्नं पङ्गलानां च मङ्गलम्। यथैव वेदाध्ययनमुपाख्यानमिदं तथा।। | 5-52-25a 5-52-25b |
श्रवणीयं महाराज प्रातर्नित्यं नृपोत्तमैः। पुत्रानायुष्मतो राज्यमीहमानैः श्रियं तथा।। | 5-52-26a 5-52-26b |
पुरा कृतयुगे तात आसीद्राजा ह्यकम्पनः। स शत्रुवशमापन्नो मध्ये सङ्ग्राममूर्धनि। `योधयामास बलवान्बद्धश्चासीदकम्पनः'।। | 5-52-27a 5-52-27b 5-52-27c |
तस्य पुत्रो हरिर्नाम नारायणसमो बले। श्रीमान्कृतास्त्रो मेधावी युधि शक्रोपमो बली।। | 5-52-28a 5-52-28b |
`स दृष्ट्वा पितरं युद्धे तदवस्थं महाद्युतिः। अचिन्तयित्वा मरणं शत्रुमध्यं ततोऽविशत्।। | 5-52-29a 5-52-29b |
स शत्रुभिः परिवृतो बहुधा रणमूर्धनि। योधयामास तान्सर्वान्सर्वास्त्रकुशलो बली।। | 5-52-30a 5-52-30b |
वर्षन्बाणसहस्राणि शत्रुष्वमितविक्रमः। पदातिरथनागाश्वान्प्रममाथ महाबलः।। | 5-52-31a 5-52-31b |
स शरैराचितश्चक्रैर्गदाभिर्मुसलैरपि। मृद्गन्रथसहस्राणि पदातीन्वाजिवारणान्।। | 5-52-32a 5-52-32b |
परानीकं विभिद्याजौ मोक्षयित्वा च तं नृपम्। पुनरेवाकरोद्युद्धं शत्रुमध्यगतो बली।। | 5-52-33a 5-52-33b |
ततस्ते रथिनः सर्वे समेत्य पुनराहवे। जघ्नुस्तं परिवार्यैकं तोमरैरिव कुञ्जरम्'।। | 5-52-34a 5-52-34b |
स कर्म दुष्करं कृत्वा सङ्ग्रामे शत्रुतापनः। शत्रुभिर्निहतः सङ्ख्ये पृतानायां युधिष्ठिर।। | 5-52-35a 5-52-35b |
द्विषद्भिर्निहतं दृष्ट्वा प्रियं पुत्रमकम्पनः। अमर्षजनितक्रोध आहवात्सहसाऽऽगतः।। | 5-52-36a 5-52-36b |
स राजा प्रेतकृत्यानि तस्य कृत्वा शुचान्वितः। शोचन्नहनि रात्रौ च नालभत्सुखमात्मनः।। | 5-52-37a 5-52-37b |
तस्य शोकं विदित्वा तु पुत्रव्यसनसम्भवम्। आजगामाथ देवर्षिर्नारदोऽस्य समीपतः।। | 5-52-38a 5-52-38b |
स तु राजा महाभागो दृष्ट्वा देवर्षिसत्तमम्। पूजयित्वा यथान्यायं कथामकथयत्तदा।। | 5-52-39a 5-52-39b |
तस्य सर्वं समाचष्ट यथावृत्तं युधिष्ठिर। शत्रुभिर्विजयं सङ्ख्ये पुत्रस्य च वधं तथा।। | 5-52-40a 5-52-40b |
अकम्पन उवाच। | 5-52-41x |
मम पुत्रो महावीर्य इन्द्रविष्णुसमद्युतिः। शत्रुभिर्बहुभिः सङ्ख्ये पराक्रम्य हतो बली।। | 5-52-41a 5-52-41b |
शृणु मे प्राणिनां चापि मृत्युः प्रभवते किल। क एष मृत्युर्भगवन्किंवीर्यबलपौरुषः। एतदिच्छामि तत्त्वेन श्रोतुं मतिमतां वर।। | 5-52-42a 5-52-42b 5-52-42c |
व्यास उवाच। | 5-52-43x |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा नारदो वरदः प्रभुः। आख्यानमिदमाचष्ट पुत्रशोकापहं महत्।। | 5-52-43a 5-52-43b |
नारद उवाच। | 5-52-44x |
शृणु राजन्महाबाहो आख्यानं बहुविस्तरम्। यथावृत्तं श्रुतं चैव मयाऽपि वसुधाधिप।। | 5-52-44a 5-52-44b |
प्रजाः सृष्टा तदा ब्रह्मा आदिसर्गे पितामहः। असंहृतं महातेजा दृष्ट्वा जगदिदं प्रभुः।। | 5-52-45a 5-52-45b |
तस्य चिन्ता समुत्पन्ना संहारं प्रति पार्थिव। चिन्तयन्न ह्यसौ देव संहारं वसुधाधिप।। | 5-52-46a 5-52-46b |
तस्य रोषान्महाराज मुखेभ्योऽग्निरजायत। तेन सर्वा दिशो व्याप्ताः सान्तर्देशा दिधक्षता।। | 5-52-47a 5-52-47b |
ततो दिवं भुवं चैव ज्वालामालासमाकुलम्। चारचरं जगत्सर्वं ददाह भगवान्प्रभुः।। | 5-52-48a 5-52-48b |
ततो हतानि भूतानि चराणि स्थावराणि च। महता क्रोधवेगेन त्रासयन्निव वीर्यवान्। | 5-52-49a 5-52-49b |
ततो रुद्रो जटी स्याणुर्निशाचरपतिर्हरः। जगाम शरणं देवं ब्रह्माणं परमेष्ठिनम्।। | 5-52-50a 5-52-50b |
तस्मिन्नापतिते स्थाणौ प्रजानां हितकाम्यया। अब्रवीत्परमो देवो ज्वलन्निव महामुनिः।। | 5-52-51a 5-52-51b |
किं कर्म कामं कामार्ह कामाज्जातोऽसि पुत्रक। करिष्यामि प्रियं सर्वं ब्रूहि स्थाणो यदिच्छसि।। | 5-52-52a 5-52-52b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि द्विपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 52 ।। |
5-52-6 द्वारं सञ्जनयस्वेति मया उक्त इति सम्बन्धः। निवारितः तमनुप्रविशन्त इति शेषः।। 5-52-19 कस्य मृत्युः क इति शेषः।। 5-52-47 खेभ्य इति पाठे श्रोत्रादिच्छिद्रेभ्यः।। 5-52-52 द्विपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-051 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-053 |