महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-070
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सृञ्जयम्प्रति नारदेन परशुरामप्रभाववर्णनम्।। 1 ।।
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नारद उवाच। | 5-70-1x |
रामो महातपाः शूरो वीरो लोकनमस्कृतः। जामदग्न्योऽप्यतियशा अवितृप्तो मरिष्यति।। | 5-70-1a 5-70-1b |
यश्चास्त्रमनुपर्येति भूमिं कुर्वन्विपांसुलाम्। नचासीद्विक्रिया यस्य प्राप्य श्रियमनुत्तमाम्।। | 5-70-2a 5-70-2b |
`जामदग्न्यो न ते राजन्कच्चिच्छ्रोत्रमुपागतः। येनैकेन पुरा राजन्क्रुद्धेन हतबन्धुना।। | 5-70-3a 5-70-3b |
भृगुभिस्ताम्भमानेन त्राहि रामेति विस्वरम्। त्रिःसप्तकृत्वो भूमिर्यत्कृता निःक्षत्रिया पुरा'।। | 5-70-4a 5-70-4b |
यः क्षत्रियैः परामृष्टे वत्से पितरि चाब्रुवन्। ततोऽवधीत्कार्तवीर्यमजितं समरे परैः।। | 5-70-5a 5-70-5b |
क्षत्रियाणां चतुःषष्टिमयुतानि सहस्रशः। तदा मृत्योः समेतानि एकेन धनुषाऽजयत्।। | 5-70-6a 5-70-6b |
ब्रह्मद्विषां चाथ तस्मिन्हस्राणि चतुर्दश। पुनरन्यान्निजग्राह दन्तकूरे जघान ह।। | 5-70-7a 5-70-7b |
सहस्रं मुसलेनाहन्सहस्रमसिनाऽवधीत्। उद्बन्धनात्सहस्रं च सहस्रमुदके कृतम्।। | 5-70-8a 5-70-8b |
दन्तान्भङ्क्त्वा सहस्रस्य भिन्नकर्णांस्तथाऽकरोत्। ततः सप्तसहस्राणां कुटुधृपमपाययत्।। | 5-70-9a 5-70-9b |
शिष्टान्वध्वा च हत्वा वै तेषां मृर्ध्नि विभिद्य च। गुणावतीमुत्तरेण खाण्डवाद्दक्षिणेन च। गिर्यन्ते शतसाहस्रा हैहयाः समरे हताः।। | 5-70-10a 5-70-10b 5-70-10c |
सरथाश्वगजा वीरा निहतास्तत्र शेरते। पितुर्वधामर्षितेन जामदग्न्येन धीमता।। | 5-70-11a 5-70-11b |
निजघ्ने दशसाहस्रान्रामः परशुना तदा। न ह्यमृष्यत ता वाचो यास्तैर्भृशमुदीरिताः।। | 5-70-12a 5-70-12b |
भृगौ रामाभिधावेति यदाक्रन्दन्द्विजोत्तमाः। ततः काश्मीरदरदान्कुन्तिक्षुद्रकमालवान्।। | 5-70-13a 5-70-13b |
अङ्गवङ्गकलिङ्गांश्च विदेहांस्ताम्रलिप्तकान्। रक्षोवाहान्वीतिहोत्रांस्त्रिगर्तान्मार्तिकावतान्।। | 5-70-14a 5-70-14b |
शिबीनन्यांश्च राजन्यान्देशान्देशान्सहस्रशः। निजघान शितैर्बाणैर्जामदग्न्यः प्रतापवान्।। | 5-70-15a 5-70-15b |
कोटीशतसहस्राणि क्षत्रियाणां सहस्रशः। इन्द्रगोपकवर्णस्य बन्धुजीवनिभस्य च।। | 5-70-16a 5-70-16b |
रुधिरस्य परीवाहैः पूरयित्वा सरांसि च। सर्वानष्टादश द्वीपान्वशमानीय भार्गवः।। | 5-70-17a 5-70-17b |
ईजे क्रतुशतैः पुण्यैः समाप्तवरदक्षिणैः। वेदीमष्टनलोत्सेधां सौवर्णां विधिनिर्मिताम्।। | 5-70-18a 5-70-18b |
सर्वरत्नशतैः पूर्णां पताकाशतमालिनीम्। ग्राम्यारण्यैः पशुगणैः सम्पूर्णां च महीमिमाम्।। | 5-70-19a 5-70-19b |
रामस्य जामदग्न्यस्य प्रतिजग्राह कश्यपः। ततः शतसहस्राणि द्विपेन्द्रान्हेमभूषणान्।। | 5-70-20a 5-70-20b |
निर्दस्युं पृथिवीं कृत्वा शिष्टेष्टजनसङ्कुलाम्। कश्यपाय ददौ रामो हयमेधे महामखे।। | 5-70-21a 5-70-21b |
त्रिःसप्तकृत्वः पृथिवीं कृत्वा निःक्षत्रियां प्रभुः। इष्ट्वा क्रतुशतैर्वीरो ब्राह्मणेभ्यो ह्यमन्यत।। | 5-70-22a 5-70-22b |
सप्तद्वीपां वसुमतीं मारीचोऽगृह्णत द्विजः। रामं प्रोवाच निर्गच्छ वसुधातो ममाज्ञया।। | 5-70-23a 5-70-23b |
स कश्यपस्य वचनात्प्रोत्सार्य सरिताम्पतिम्। इषुपाते युधां श्रेष्ठः कुर्वन्ब्राह्मणशासनम्।। | 5-70-24a 5-70-24b |
अध्यावसद्गिरिश्रेष्ठं महेन्द्रं पर्वतोत्तमम्। एवं गुणशतैर्युक्तो भृगूणां कीर्तिवर्धनः।। | 5-70-25a 5-70-25b |
जामदग्न्यो ह्यतियशा मरिष्यति महाद्युतिः। त्वया चतुर्भद्रतरः पुण्यात्पुण्यतरस्तव।। | 5-70-26a 5-70-26b |
अयज्वानमदक्षिण्यं मा पुत्रमनुतप्यथाः। एते चतुर्भद्रतरास्त्वया भद्रशताधिकाः। मृता नरवरश्रेष्ठ मरिष्यन्ति च सृञ्जय।। | 5-70-27a 5-70-27b 5-70-27c |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि षोडशराजकीये सप्ततितमोऽध्यायः।। 70 ।। |
5-70-1 ये मृतास्तेऽतीता ये वर्तमानास्तेऽपि। मरिष्यन्त्येवेत्याह राम इति।। 5-70-5 क्षत्रियैः कार्तवीर्यपुत्रैः। अब्रुवन्नविकत्थयन्।। 5-70-6 मृत्योर्मृत्युमवधीकृत्य।। 5-70-7 तस्मिंस्तन्मध्ये एव। दन्तक्रूरमिति पाठे तद्देशाधिपतिम्।। 5-70-8 उद्बन्धनाद्वृक्षशाखावलम्बनात्।। 5-70-9 कणधूममपाययत् इति क.ङ.पाठः।। 5-70-12 तैराश्रमवासिभिः।। 5-70-18 अष्टनलेत्यत्र नलशब्दश्चतुर्हस्तवचनः।। 5-70-70 सप्ततितमोऽध्यायः।।
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