महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-179
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घटोत्कचेनाऽलायुधवधः।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 5-179-1x |
संदृश्य समरे भीमं रक्षसा ग्रस्तमन्तिकात्। वासुदेवोऽव्रवीद्राजन्घटोत्कचमिदं वचः।। | 5-179-1a 5-179-1b |
पश्य भीमं महाबाहो रक्षसा ग्रस्तमाहवे। पश्यतां सर्वसैन्यानां तव चैव महाद्युते।। | 5-179-2a 5-179-2b |
स कर्णं त्वं समुत्सृज्य राक्षसेन्द्रमलायुधम्। जहि क्षिप्रं महाबाहो पश्चात्कर्णं बधिष्यसि।। | 5-179-3a 5-179-3b |
स वार्ष्णेयवचः श्रुत्वा कर्णमुत्सृज्य वीर्यवान्। युयुधे राक्षसेन्द्रेण बकभ्रात्रा घटोत्कचः।। | 5-179-4a 5-179-4b |
तयोः सुतुमुलं युद्धं बभूव निशि रक्षसोः। अलायुधस्य चैवोग्रं हेडिम्बेश्चापि भारत।। | 5-179-5a 5-179-5b |
अलायुधस्य योधांश्च राक्षसान्भीमदर्शनान्। वेगेनापततः शूरान्प्रगृहीतशरासनान्।। | 5-179-6a 5-179-6b |
आत्तायुधः सुसङ्क्रुद्धो युयुधानो महारथः। नकुलः सहदेवश्च चिच्छिदुर्निशितैः शरैः।। | 5-179-7a 5-179-7b |
सर्वांश्च समरे राजन्किरीटी क्षत्रियर्षभान्। परिचिक्षेप बीभत्सुः सर्वतः प्रकिरञ्छरान्।। | 5-179-8a 5-179-8b |
कर्णश्च समरे राजन्व्यद्रावयत पार्थिवान्। धृष्टद्युम्नशिखण्ड्यादीन्पाञ्चालानां पहारथान्।। | 5-179-9a 5-179-9b |
तान्वध्यमानान्दृष्ट्वाऽथ भीमो भीमपराक्रमः। अभ्ययात्त्वरितः कर्णं विशिखान्प्रकिरन्रणे।। | 5-179-10a 5-179-10b |
ततस्तेऽप्याययुर्हत्वा राक्षसान्यत्र सूतजः। नकुलः सहदेवश्च सात्यकिश्च महारथः। ते कर्णे योधयामासुः पाञ्चाला द्रोणमेव तु।। | 5-179-11a 5-179-11b 5-179-11c |
अलायुधस्तु सङ्क्रुद्धो घटोत्कचमरिन्दमम्। परिघेणातिकायेन ताडयामास मूर्धनि।। | 5-179-12a 5-179-12b |
स तु तेन प्रहारेण भैमसेनिर्महाबलः। ईषन्मूर्छितमात्मानमस्तम्भयत वीर्यवान्।। | 5-179-13a 5-179-13b |
ततो दीप्ताग्निसङ्काशां शतघण्टामलङ्कृताम्। चिक्षेप तस्मै समरे गदां काञ्चनभूषिताम्।। | 5-179-14a 5-179-14b |
सा हयांश्च रथं चास्य सारथिं च महास्वना। चूर्णयामास वेगेन विसृष्टा भीमकर्मणा।। | 5-179-15a 5-179-15b |
स भग्नहयचक्राक्षाद्विशीर्णध्वजकूबरात्। उत्पपात रथात्तूर्णं मायामास्थाय राक्षसीम्।। | 5-179-16a 5-179-16b |
स समास्थाय मायां तु ववर्ष रुधिरं बहु। विद्युद्विभ्राजितं चासीत्तुमुलाभ्राकुलं नभः।। | 5-179-17a 5-179-17b |
ततो वज्रनिपाताश्च साशनिस्तनयित्नवः। महांश्चटचटाशब्दस्तत्रासीच्च महाहवे।। | 5-179-18a 5-179-18b |
तां प्रेक्ष्य महतीं मायां राक्षसो राक्षसस्य च। ऊर्ध्वमुत्पत्य हैडिम्बिस्तां मायां माययाऽवधीत्।। | 5-179-19a 5-179-19b |
सोऽभिवीक्ष्य हतां मायां मायावी माययैव हि। अश्मवर्षं सुतुमुलं विससर्ज घटोत्कचे।। | 5-179-20a 5-179-20b |
अश्मवर्षं स तं घोरं शरवर्षेण वीर्यवान्। दिक्षु विध्वंसयामास तदद्भुतमिवाभवत्।। | 5-179-21a 5-179-21b |
ततो नानाप्रहरणैरन्योन्यमभिवर्षताम्। आयसैः परिघैः शूलैर्गदामुसलमुद्गरैः।। | 5-179-22a 5-179-22b |
पिनाकैः करवालैश्च तोमरप्रासकम्पनैः। नाराचैर्निशितैर्भल्लैः शरैश्चक्रैः परश्वथैः।। | 5-179-23a 5-179-23b |
अयोगुडैर्भिण्डिपालैर्गोशीर्षोलूखलैरपि। उत्पाटितैर्महाशाखैर्विविधैर्जगतीरुहैः।। | 5-179-24a 5-179-24b |
शमीपीलूकदम्बैश्च चम्पकैश्चैव भारत। इङ्गुदैर्बदरीभिश्च कोविदारैश्च पुष्पितैः।। | 5-179-25a 5-179-25b |
पलाशैश्चारिमेदैश्च प्लुक्षन्यग्रोधपिप्पलैः। महद्भिः समरे तस्मिन्न्योन्यमभिजघ्नतुः।। | 5-179-26a 5-179-26b |
विपुलैः पर्वताग्रैश्च नानाधातुभिराचितैः। तेषां शब्दो महानासीद्वज्राणां भिद्यतामिव।। | 5-179-27a 5-179-27b |
युद्धं समभवद्धोरं भैम्यलायुधयोर्नृप। हरीन्द्रयोर्यथा राजन्वालिसुग्रीवयोः पुरा।। | 5-179-28a 5-179-28b |
तौ युद्ध्वा विविधैर्घोरैरायुधैर्विशिखैस्तथा। उत्सृज्य च शितौ खङ्खागवन्योमभिपेततुः।। | 5-179-29a 5-179-29b |
तावन्योन्यमभिद्रुत्य केशेषु सुमहाबलौ। भुजाभ्यां पर्यगृह्णीतां महाकायौ महाबलौ।। | 5-179-30a 5-179-30b |
तौ स्विन्नगात्रौ प्रस्वेदं सुस्रुवाते जनाधिप। रुधिरं च महाकायावतिवृष्टाविवाम्बुदौ।। | 5-179-31a 5-179-31b |
अथाभिपत्य वेगेन समुद्धाम्य च राक्षसम्। बलेनाक्षिप्य हैडिम्बिश्चकर्तास्य शिरो महत्।। | 5-179-32a 5-179-32b |
सोऽपहृत्य शिरस्तस्य कुण्डलाभ्यां विभूपितम्। तदा सुतुमुलं नादं ननाद सुमहाबलः।। | 5-179-33a 5-179-33b |
हतं दृष्ट्वा महाकायं बकज्ञातिमरिन्दमम्। पाञ्चालाः पाण्डवाश्चैव सिंहनादान्विनेदिरे।। | 5-179-34a 5-179-34b |
ततो भेरीसहस्राणि शङ्खानामयुतानि च। अवादयन्पाण्डवेया राक्षसे निहते युधि।। | 5-179-35a 5-179-35b |
अतीव सा निशा तेषां बभूव विजयावहा। विद्योतमाना विबभौ समन्ताद्दीपमालिनी।। | 5-179-36a 5-179-36b |
अलायुधस्य तु शिरो भैमसेनिर्महाबलः। दुर्योधनस्य प्रमुखे चिक्षेप गतचेतसः।। | 5-179-37a 5-179-37b |
अथ दुर्योधनो राजा दृष्ट्वा हतमलायुधम्। बभूव परमोद्विग्नः सह सैन्येन भारत।। | 5-179-38a 5-179-38b |
तेन ह्यस्य प्रतिज्ञातं भीमसेनमहं युधि। हन्तेति स्वयमागम्य स्मरता वैरमुत्तमम्।। | 5-179-39a 5-179-39b |
ध्रुवं स तेन हन्तव्य इत्यमन्यत पार्थिवः। जीवितं चिरकालं भ्रातॄणां चाप्यमन्यत।। | 5-179-40a 5-179-40b |
स तं दृष्ट्वा विनिहतं भीमसेनात्मजेन वै। प्रतिज्ञां भीमसेनस्य पूर्णामेवाभ्यमन्यत।। | 5-179-41a 5-179-41b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि चतुर्दशरात्रियुद्धे एकोनाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 179 ।। |
5-179-28 हरीन्द्रयोः सिंहमुख्ययोः।। 5-179-179 एकोनाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-178 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-180 |