महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-001
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विराटसभां प्रविष्टेषु राजसु श्रीकृष्णेन पाण्डववृत्तान्तकथनपूर्वकं धृतराष्ट्रंप्रति दूतप्रेषणनिर्धारणम् ।। 1
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श्रीवेदव्यासाय नमः। | 5-1-1x |
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। | 5-1-1a 5-1-1b |
वैशंपायन उवाच। | 5-1-1x |
कृत्वा विवाहं तु कुरुप्रवीरा- | 5-1-1a 5-1-1b 5-1-1c 5-1-1d |
सभा तु सा मत्स्यपतेः समृद्धा | 5-1-2a 5-1-2b 5-1-2c 5-1-2d |
अथासनान्याविशतां पुरस्ता- | 5-1-3a 5-1-3b 5-1-3c 5-1-3d |
पाञ्चालराजस्य समीपतस्तु | 5-1-4a 5-1-4b 5-1-4c 5-1-4d |
सुताश्च सर्वे द्रुपदस्य राज्ञो | 5-1-5a 5-1-5b 5-1-5c 5-1-5d |
सर्वे च शूराः पितृभिः समाना | 5-1-6a 5-1-6b 5-1-6c 5-1-6d |
तथोपविष्टेषु महारथेषु | 5-1-7a 5-1-7b 5-1-7c 5-1-7d |
ततः कथास्ते समवाययुक्ताः | 5-1-8a 5-1-8b 5-1-8c 5-1-8d |
कथान्तमासाद्य च माधवेन | 5-1-9a 5-1-9b 5-1-9c 5-1-9d |
श्रीकृष्ण उवाच। | 5-1-10x |
सर्वैर्भवद्भिर्विदितं यथाऽयं | 5-1-10a 5-1-10b 5-1-10c 5-1-10d |
शक्तैर्विजेतुं तरसा महीं च | 5-1-11a 5-1-11b 5-1-11c 5-1-11d |
रिच्छद्भिराप्तं स्वकुलेन राज्यम्।। | 5-1-12f |
एवं गते धर्मसुतस्य राज्ञो | 5-1-13a 5-1-13b 5-1-13c 5-1-13d |
अधर्मयुक्तं न च कामयेत | 5-1-14a 5-1-14b 5-1-14c 5-1-14d |
पित्र्यं हि राज्यं विदितं नृपाणां | 5-1-15a 5-1-15b 5-1-15c 5-1-15d |
न चापि पार्थो विजितो रणे तैः | 5-1-16a 5-1-16b 5-1-16c 5-1-16d |
यत्तु स्वयं पाण्डुसुतैर्विजित्य | 5-1-17a 5-1-17b 5-1-17c 5-1-17d |
बलाभियुक्तैर्विविधैरुपायैः | 5-1-18a 5-1-18b 5-1-18c 5-1-18d |
तेषां च लोभं प्रसमीक्ष्य वृद्धं | 5-1-19a 5-1-19b 5-1-19c 5-1-19d |
इमे च सत्येऽभिरताः सदैव | 5-1-20a 5-1-20b 5-1-20c 5-1-20d |
तैर्विप्रकारं च निशम्य कार्ये | 5-1-21a 5-1-21b 5-1-21c 5-1-21d |
तथाऽपि नेमेऽल्पतयाऽसमर्था- | 5-1-22a 5-1-22b 5-1-22c 5-1-22d |
दुर्योधनस्यापि मतं यथाव- | 5-1-23a 5-1-23b 5-1-23c 5-1-23d |
तस्मादितो गच्छतु धर्मशीलः | 5-1-24a 5-1-24b 5-1-24c 5-1-24d |
निशम्य वाक्यं तु जनार्दनस्य | 5-1-25a 5-1-25b 5-1-25c 5-1-25d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-1-1 प्रतीताः प्रबुद्धाः ।। 1 ।। 5-1-3 आविशतामुपविष्टौ । पित्रा बसुदेवेन ।। 3 ।। 5-1-10 अक्षवत्यां द्यूतक्रीडायाम् ।। 10 ।। 5-1-11 सत्यं रथवदारोद्धं योग्यं योषाम् ।। 11 ।। 5-1-14 बभूषेत् प्राप्तुमिच्छेत् । तङभाव आर्षः ।। 14 ।। 5-1-16 अनामयं कुशलम् ।। 16 ।। 5-1-20 अतो राज्यार्धप्रदानात् ।। 20 ।।
उद्योगपर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-002 |