महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-023
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सञ्जयेनोपप्लाव्यं गत्वा पाण्डवान्प्रति धृतराष्ट्रकृतकुशलप्रश्नकथनम् ।। 1 ।। युधिष्ठिरेण सञ्जयंप्रति धृतराष्ट्रादीनां कुशलादिप्रश्नः ।। 2 ।।
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वैशंपायन उवाच। | 5-23-1x |
राज्ञस्तु वचनं श्रुत्वा धृतराष्ट्रस्य सञ्जयः। | 5-23-1a 5-23-1b |
स तु राजानमासाद्य कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम् । | 5-23-2a 5-23-2b |
गवल्गणिः सञ्जयः सूतसूनु- | 5-23-3a 5-23-3b 5-23-3c 5-23-3d |
अनामयं पृच्छति त्वाम्बिकेयो | 5-23-4a 5-23-4b 5-23-4c 5-23-4d |
कच्चित्कृष्णा द्रौपदी राजपुत्री | 5-23-5a 5-23-5b 5-23-5c 5-23-5d |
युधिष्ठिर उवाच। | 5-23-6x |
गावल्गणे सञ्जय स्वागतं ते | 5-23-6a 5-23-6b 5-23-6c 5-23-6d |
चिरादिदं कुशलं भारतस्य | 5-23-7a 5-23-7b 5-23-7c 5-23-7d |
पितामहो नः स्थविरो मनस्वी | 5-23-8a 5-23-8b 5-23-8c 5-23-8d |
कच्चिद्राजा धृतराष्ट्रः सपुत्रो | 5-23-9a 5-23-9b 5-23-9c 5-23-9d |
स सोमदत्तः कुशली तात कच्चि- | 5-23-10a 5-23-10b 5-23-10c 5-23-10d |
सर्वे कुरुभ्यः स्पृहयन्ति सञ्जय | 5-23-11a 5-23-11b 5-23-11c 5-23-11d |
कच्चिन्मानं तात लभन्त एते | 5-23-12a 5-23-12b 5-23-12c 5-23-12d |
वैश्यापुत्रः कुशली तात कच्चित् | 5-23-13a 5-23-13b 5-23-13c 5-23-13d |
स्त्रियो वृद्धा भारतानां जनन्यो | 5-23-14a 5-23-14b 5-23-14c 5-23-14d |
कच्चिद्राजा ब्राह्मणानां यथावत् | 5-23-15a 5-23-15b 5-23-15c 5-23-15d |
कच्चिद्राजा धृतराष्ट्रः सपुत्र | 5-23-16a 5-23-16b 5-23-16c 5-23-16d |
एतञ्ज्योतिश्चोत्तमं जीवलोके | 5-23-17a 5-23-17b 5-23-17c 5-23-17d |
कच्चिद्राजा धृतराष्ट्रः सपुत्रो | 5-23-18a 5-23-18b 5-23-18c 5-23-18d |
कच्चिन्न पापं कथयन्ति तात | 5-23-19a 5-23-19b 5-23-19c 5-23-19d |
कच्चिद्राज्ये धृतराष्ट्रं सपुत्रं | 5-23-20a 5-23-20b 5-23-20c 5-23-20d |
मौर्वीभुजाग्रप्रहितान्स्म तात | 5-23-21a 5-23-21b 5-23-21c 5-23-21d |
न चापश्यं कंचिदहं पृथिव्यां | 5-23-22a 5-23-22b 5-23-22c 5-23-22d |
गदापाणिर्भीमसेनस्तरस्वी | 5-23-23a 5-23-23b 5-23-23c 5-23-23d |
माद्रीपुत्रः सहदेवः कलिङ्गान् | 5-23-24a 5-23-24b 5-23-24c 5-23-24d |
पुरा जेतुं नकुलः प्रेषितोऽयं | 5-23-25a 5-23-25b 5-23-25c 5-23-25d |
पराभवो द्वैतवने य आसी- | 5-23-26a 5-23-26b 5-23-26c 5-23-26d |
अहं पश्चादर्जुनमभ्यरक्षं | 5-23-27a 5-23-27b 5-23-27c 5-23-27d |
न कर्मणा साधुनैकेन नूनं | 5-23-28a 5-23-28b 5-23-28c 5-23-28d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-23-11 कुरुभ्यः स्पृहयन्ति कच्चिदित्यनुषङ्गः ।। 5-23-14 अव्यलीकाः निष्कपटाः ।। 5-23-15 वृत्तिं जीविकां दातुमिति शेषः । दायान्मद्दत्तान् ग्रामादीन् ।। 5-23-17 एतद्ब्रह्मणानां वृत्तः पालनं ज्योतिः परलोकप्रकाशकं जीवलोके इह शुक्लं यशस्करम् । दोषं लोभं ब्राह्मणवृत्त्युपघातेन न नियच्छन्ति ।। 5-23-18 बुभूपते प्रापयितुमिच्छति ।। 5-23-21 मौर्व्याः भुजः कौटिल्यं तस्य अग्रमिवाग्रं शरसंधानदेशः ततः प्रहितान् प्रेषितान् ।। 5-23-22 सुवाससः सुषुङ्घा। हस्तवापो हस्तक्षेपः । एकषष्टिर्वाणा अस्य एतेन। ... .... इत्यर्थः ।। 5-23-23 नङ्वलेषु सतृणेषु स्थलेषु ।। 23 ।। 5-23-24 दन्तकूरे संप्रागे ।। 24 ।। 5-23-26 जयः अर्जुनः ।।
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