महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-082
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युधिष्ठिरादिभिरनुगम्यमानेन श्रीकृष्णेन रथमधिरुह्य सात्यकिना सह हास्तिनपुरंप्रति प्रस्थानम् ।। 1 ।।
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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अर्जुन उवाच। | 5-82-1x |
कुरूणामद्य सर्वेषां भवान्सुहृदनुत्तमः। | 5-82-1a 5-82-1b |
पाण्डवैर्धार्तराष्ट्राणां प्रतिपाद्यमनामयम्। | 5-82-2a 5-82-2b |
त्वमित्तः पुण्डरीकाक्ष सुयोधनममर्षणम् । | 5-82-3a 5-82-3b |
त्वया धर्मार्थयुक्तं चेदुक्तं शिवमनामयम्। | 5-82-4a 5-82-4b |
श्रीभगवानुवाच। | 5-82-5x |
धर्म्यमस्मद्धितं चैव कुरूणां यदनामयम्। | 5-82-5a 5-82-5b |
वैशंपायन उवाच। | 5-82-6x |
ततो व्यपेते तमसि सूर्ये विमल उद्गते । | 5-82-6a 5-82-6b |
कौमुदे मासि रेवत्यां शरदन्ते हिमागमे । | 5-82-7a 5-82-7b |
मङ्गल्याः पुण्यनिर्घोषा वाचः श्रृण्वंश्च सूनृताः । | 5-82-8a 5-82-8b |
कृत्वा पौर्वाह्णिकं कृत्यं स्नातः शुचिरलङ्कृतः । | 5-82-9a 5-82-9b |
ऋषभं पृष्ठ आलभ्य ब्राह्मणानभिवाद्य च। | 5-82-10a 5-82-10b |
तत्प्रतिज्ञाय वचनं पाण्डवस्य जनार्दनः। | 5-82-11a 5-82-11b |
रथ आरोप्यतां शङ्खश्चक्रं च गदया सह। | 5-82-12a 5-82-12b |
दुर्योधनश्च दुष्टात्मा कर्णश्च सहसौबलः । | 5-82-13a 5-82-13b |
ततस्तन्मतमाज्ञाय केशवस्य पुनःसराः । | 5-82-14a 5-82-14b |
तं दीप्तमिव कालाग्निमाकाशगमिवाशुगम् । | 5-82-15a 5-82-15b |
अर्धचन्द्रैश्च चन्द्रैश्च मत्स्यैः समृगपक्षिभिः । | 5-82-16a 5-82-16b |
तरुणादित्यसङ्काशं बृहन्तं चारुदर्शनम् । | 5-82-17a 5-82-17b |
सूपस्करमनाधृष्यं वैयाघ्रपरिवारणम्। | 5-82-18a 5-82-18b |
वाजिभिः शैब्यसुग्रीवमेधपुष्पबलाहकैः । | 5-82-19a 5-82-19b |
महिमानं तु कृष्णस्य भूय एवाभिवर्धयन्। | 5-82-20a 5-82-20b |
तं मेरुशिखरप्रख्यं मेघदुन्दुभिनिस्वनम् । | 5-82-21a 5-82-21b |
ततः सात्यकिमारोप्य प्रययौ पुरुषोत्तमः। | 5-82-22a 5-82-22b |
व्यपोढाभ्रस्ततः कालः क्षणेन समपद्यत। | 5-82-23a 5-82-23b |
प्रदक्षिणानुलोमाश्च मङ्गल्या मृगपक्षिणः। | 5-82-24a 5-82-24b |
मङ्गल्यार्थप्रदैः शब्दैरन्ववर्तन्त सर्वशः। | 5-82-25a 5-82-25b |
मन्त्राहुतिमहाहोमैर्हूयमानश्च पावकः । | 5-82-26a 5-82-26b |
वसिष्ठो वामदेवश्च भूरिद्युम्नो गयः क्रथः। | 5-82-27a 5-82-27b |
देवब्रह्मर्षयश्चैव कृष्णं यदुसुखावहम्। | 5-82-28a 5-82-28b |
एवमेतैर्महाभागैर्महर्षिगणसाधुभिः । | 5-82-29a 5-82-29b |
` देवताभ्यो नमस्कृत्य ब्राह्मणान्स्वस्ति वाच्य च। | 5-82-30a 5-82-30b |
तं प्रयान्तमनुप्रायात्कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । | 5-82-31a 5-82-31b |
चेकितानश्च विक्रान्तो धृष्टकेतुश्च चेदिपः । | 5-82-32a 5-82-32b |
धृष्टद्युम्नः सपुत्रश्च विराटः केकयैः सह। | 5-82-33a 5-82-33b |
ततोऽनुव्रज्य गोविन्दं धर्मराजो युधिष्ठिरः। | 5-82-34a 5-82-34b |
यो वै न कामान्न भयान्न लोभान्नार्थकारणात्। | 5-82-35a 5-82-35b |
धर्मज्ञो धृतिमान्प्राज्ञः सर्वभूतेषु केशवः । | 5-82-36a 5-82-36b |
तं सर्वगुणसंपन्नं श्रीवत्सकृतलक्षणम्। | 5-82-37a 5-82-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-82-2 प्रतिपाद्यं संपाद्यात्। अनामयं कुशलम् ।। 5-82-5 अभीप्सया प्राप्तुमिच्छया ।। 5-82-7 कौमुदे कर्तिके ।। 5-82-11 प्रतिज्ञाय अनुस्मृत्य ।। 5-82-15 आकाशगः सूर्यः ।। 5-82-18 सूपस्करं शोभनैरुपकरणैरुपेताम्। नन्दिवर्धनं आनन्दवर्धनम् ।। 5-82-19 संपादयामासुः सज्जीकृतवन्तः ।। 5-82-33 संसाधनार्थं कार्यनिष्पत्त्यर्थम् ।। 5-82- 5-82- 5-82-
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