महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-022
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धृतराष्ट्रेण यथाक्रमं दुर्योधनपाण्डवनिन्दाप्रशंसनपूर्वकं पाण्डवान्प्रति सञ्जयप्रेषणम् ।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-22-1x |
प्राप्तानाहुः सञ्जय पाण्डुपुत्रा- | 5-22-1a 5-22-1b 5-22-1c 5-22-1d |
सर्वान्वदेः सञ्जय स्वस्तिमन्तः | 5-22-2a 5-22-2b 5-22-2c 5-22-2d |
नाहं क्वचित्सञ्जय पाण्डवानां | 5-22-3a 5-22-3b 5-22-3c 5-22-3d |
दोषं ह्येषां नाध्यगच्छं परीच्छ- | 5-22-4a 5-22-4b 5-22-4c 5-22-4d |
धर्मं शीतं क्षुत्पिपासे तथैव | 5-22-5a 5-22-5b 5-22-5c 5-22-5d |
र्दुर्योधनात्क्षुद्रतराच्च कर्णात् ।। | 5-22-6f |
` पुत्रो मह्यं मृत्युवशं जगाम | 5-22-7a 5-22-7b 5-22-7c 5-22-7d |
उत्थानवीर्यः सुखमेधमानो | 5-22-8a 5-22-8b 5-22-8c 5-22-8d |
यस्यार्जुनः पदवीं केशवश्च | 5-22-9a 5-22-9b 5-22-9c 5-22-9d |
सह्येवैकः पृथिवीं सव्यसाची | 5-22-10a 5-22-10b 5-22-10c 5-22-10d |
तिष्ठेत कस्तस्य मर्त्यः पुरस्ता- | 5-22-11a 5-22-11b 5-22-11c 5-22-11d |
दिशं ह्युदीचीमपि चोत्तरान्कुरून् | 5-22-12a 5-22-12b 5-22-12c 5-22-12d |
यश्चैव देवान्खाण्डवे सव्यसाची | 5-22-13a 5-22-13b 5-22-13c 5-22-13d |
गदाभृतां नास्ति समोऽत्र भीमा- | 5-22-14a 5-22-14b 5-22-14c 5-22-14d |
सुशिक्षितः कृतवैरस्तरस्वी | 5-22-15a 5-22-15b 5-22-15c 5-22-15d |
सुतेजसौ वलिनौ शीघ्रहस्तौ | 5-22-16a 5-22-16b 5-22-16c 5-22-16d |
एतद्बलं पूर्णमस्माकमेवं | 5-22-17a 5-22-17b 5-22-17c 5-22-17d |
सहामात्यः सोमकानां प्रबर्हः | 5-22-18a 5-22-18b 5-22-18c 5-22-18d |
सहोषितश्चरितार्थो वयस्थो | 5-22-19a 5-22-19b 5-22-19c 5-22-19d |
अवरुद्धा रथिनः केकयेभ्यो | 5-22-20a 5-22-20b 5-22-20c 5-22-20d |
सर्वांश्च वीरान्पृथिवीपतीनां | 5-22-21a 5-22-21b 5-22-21c 5-22-21d |
गिर्याश्रया दुर्गनिवासिनश्च | 5-22-22a 5-22-22b 5-22-22c 5-22-22d |
पाण्ड्यश्च राजा समितीन्द्रकल्पो | 5-22-23a 5-22-23b 5-22-23c 5-22-23d |
अस्त्रं द्रोणादर्जुनाद्वासुदेवा- | 5-22-24a 5-22-24b 5-22-24c 5-22-24d |
उपाश्रिताश्चेदिकरूशकाश्च | 5-22-25a 5-22-25b 5-22-25c 5-22-25d |
अस्तम्भनीयं युधि मन्यमान्यो | 5-22-26a 5-22-26b 5-22-26c 5-22-26d |
यशोमानौ वर्धयन्पाण्डवानां | 5-22-27a 5-22-27b 5-22-27c 5-22-27d |
तमसह्यं केशवं तत्र मत्वा | 5-22-28a 5-22-28b 5-22-28c 5-22-28d |
यस्तं प्रतीपस्तरसा प्रत्युदीया- | 5-22-29a 5-22-29b 5-22-29c 5-22-29d |
पराक्रमं मे यदवेदयन्त | 5-22-30a 5-22-30b 5-22-30c 5-22-30d |
न जातु ताञ्छत्रुरन्यः सहेत | 5-22-31a 5-22-31b 5-22-31c 5-22-31d |
न चेद्गच्छेत्सङ्गरं मन्दबुद्धि- | 5-22-32a 5-22-32b 5-22-32c 5-22-32d |
मते हि मे शक्रसमो धनञ्जयः | 5-22-33a 5-22-33b 5-22-33c 5-22-33d |
दुर्योधनेन निकृतो मनस्वी | 5-22-34a 5-22-34b 5-22-34c 5-22-34d |
यथा राज्ञः क्रोधदीप्तस्य सूत | 5-22-35a 5-22-35b 5-22-35c 5-22-35d |
तस्य क्रोधं सञ्जयाहं समीक्ष्य | 5-22-36a 5-22-36b 5-22-36c 5-22-36d |
अजातशत्रुं कुशलं स्म पृच्छेः | 5-22-37a 5-22-37b 5-22-37c 5-22-37d |
अनामयं मद्वचनेन पृच्छे- | 5-22-38a 5-22-38b 5-22-38c 5-22-38d |
प्रियश्चैषामात्मसमश्च कृष्णो | 5-22-39a 5-22-39b 5-22-39c 5-22-39d |
न मूर्च्छयेद्यन्न च युद्धहेतुः ।। | 5-22-40f |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
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5-22-2 स्वस्तिमन्तो वयमिति सर्वान्वदेः । कृच्छ्रं निरुष्यापि तेषां शान्तिरक्रोधोऽस्मासु विद्यते। मिथ्यापेतानां निष्कपटानाम् ।। 2 ।। 5-22-3 मह्यं पर्याकार्षुः मदर्थं परित आनीतवन्तः ।। 5-22-4 धर्मार्थाभ्यां धर्मार्थं अर्थार्थं 5-22-7 तेजः क्रोधम् ।। 5-22-9 तस्य तस्मै। प्रदानं भागप्रदानम् ।। 5-22-10 जिष्णुर्जयशीलः ।। 5-22-13 जातवेदसे उपाहृरत् खाण्डवमिति विपरिणामेनानुषङ्गः ।। 5-22-20 अवरुद्धाः बहिर्निः सारिताः ।। 5-22-24 कार्ष्णिः प्रद्युम्नस्तत्तुल्यम् ।। 5-22-25 चेदिपतिं शिशुपालम् । कृष्णो ममर्देत्युत्तरेणान्वयः ।। 5-22-29 आशं समानो जयमिति शेषः ।। 5-22-30 यत् यतः । अवेदयन्त ज्ञापितवन्तः । चारा इति शेषः ।। 5-22-31 कृष्णौ वासुदेवार्जुनौ ।। 5-22-34 निकृतो वञ्चितः । मनस्वी जितमनाः ।। 5-22-36 स्थाने जानन् युक्तं पश्यन् ।। 5-22-37 महामात्रं महाभागम् ।। 5-22-38 शान्तिमीप्सुरस्तीति वदेत्यध्याहारः ।। 5-22-40 मूर्च्छयेत् वर्धयेत् । क्रोधमिति शेषः ।।
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