महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-051
← उद्योगपर्व-050 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-051 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-052 → |
धृतराष्ट्रस्य सञ्जयाग्रे भीमसेनप्रतापानुस्मरणेन परिशोचनम् ।। 1 ।।
|
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-51-1x |
सर्व एते महोत्साहा ये त्वया परिकीर्तिताः। | 5-51-1a 5-51-1b |
भीमसेनाद्धि मे भूयो भयं सञ्जायते महत्। | 5-51-2a 5-51-2b |
जागर्मि रात्रयः सर्वा दीर्घमुष्णं च निःश्वसन्। | 5-51-3a 5-51-3b |
न हि तस्य महाबाहोः शक्रप्रतिमतेजसः। | 5-51-4a 5-51-4b |
अमर्षणश्च कौन्तेयो दृढवैरश्च पाण्डवः । | 5-51-5a 5-51-5b |
महावेगो महोत्साहो महाबाहुर्महाबलः। | 5-51-6a 5-51-6b |
उरुग्राहगृहीतानां गदां बिभ्रद्वृकोदरः। | 5-51-7a 5-51-7b |
अष्टाश्रिमायसीं घोरां गदां काञ्चनभूषणाम् । | 5-51-8a 5-51-8b |
यथा मृगाणां यूथेषु सिंहो जातबलश्चरेत्। | 5-51-9a 5-51-9b |
सर्वेषां मम पुत्राणां स एकः क्रूरविक्रमः । | 5-51-10a 5-51-10b |
उद्वेपते मे हृदयं ये मे दुर्योधनादयः। | 5-51-11a 5-51-11b |
तस्य वीर्येण संक्लिष्टा नित्यमेव सुता मम। | 5-51-12a 5-51-12b |
ग्रसमानमनीकानि नरवारणवाजिनाम्। | 5-51-13a 5-51-13b |
अस्त्रे द्रोणार्जुनसमं वायुवेगसमं जवे। | 5-51-14a 5-51-14b |
सञ्जयाचक्ष्व मे शूरं भीमसेनममर्षणम् । | 5-51-15a 5-51-15b 5-51-15c |
येन भीमबला यक्षा राक्षसाश्च पुरा हताः। | 5-51-16a 5-51-16b |
न स जातु वशे तस्थौ मम बाल्येऽपि सञ्जय । | 5-51-17a 5-51-17b |
निष्ठुरो रोषणोऽत्यर्थं भज्येतापि न संनमेत्। | 5-51-18a 5-51-18b |
शूरस्तथाऽप्रतिबलो गौरस्ताल इवोन्नतः। | 5-51-19a 5-51-19b |
जवेन वाजिनोऽत्येति बलेनान्त्येति कुञ्जरान् । | 5-51-20a 5-51-20b |
इति बाल्ये श्रुतः पूर्वं मया व्यासमुखात्पुरा। | 5-51-21a 5-51-21b |
आयसेन स दण्डेन रथन्नागान्नरान्हयान्। | 5-51-22a 5-51-22b |
अमर्षी नित्यसंरब्धो भीमः प्रहरतां वरः। | 5-51-23a 5-51-23b |
निष्कर्णामायसीं स्थूलां सुपार्श्वां काञ्चनीं गदाम् । | 5-51-24a 5-51-24b |
अपारमप्लवागाधं समुद्रं शरवेधनम् । | 5-51-25a 5-51-25b |
क्रोशतो मे न श्रृण्वन्ति बालाः पण्डितमानिनः । | 5-51-26a 5-51-26b |
संयुगे ये गमिष्यन्ति नररूपेण मृत्युना। | 5-51-27a 5-51-27b |
शैक्यां तात चतुष्किष्कुं षडश्रिममितौजसम्। | 5-51-28a 5-51-28b |
गदां भ्रामयतस्तस्य भिन्दतो हस्तिमस्तकान्। | 5-51-29a 5-51-29b |
उद्दिश्य नागान्पततः कुर्वतो भैरवान्रवान्। | 5-51-30a 5-51-30b |
विगाह्य रथमार्गेषु वरानुद्दिश्य निघ्नतः । | 5-51-31a 5-51-31b |
वीथीं कुर्वन्महाबाहुर्द्रावयन्मम वाहिनीम् । | 5-51-32a 5-51-32b |
प्रभिन्न इव मातङ्गः प्रभञ्जन्पुष्पितान्द्रुमान्। | 5-51-33a 5-51-33b |
कुर्वन्रथान्विपुरुषान्विसारथिहयध्वजान् । | 5-51-34a 5-51-34b |
गङ्गावेग इवानूपांस्तीरजान्विविधान्द्रुमान्। | 5-51-35a 5-51-35b |
वधं नूनं गमिष्यन्ति भीमसेनभयार्दिताः । | 5-51-36a 5-51-36b |
येन राजा महावीर्यः प्रविश्यान्तःपुरं पुरा। | 5-51-37a 5-51-37b |
कृत्स्नेयं पृथिवी देवी जरासन्धेन धीमता। | 5-51-38a 5-51-38b |
भीष्मप्रतापात्कुरवो नयेनान्धकवृष्णयः । | 5-51-39a 5-51-39b |
स गत्वा पाण्डुपुत्रेण तरसा बाहुशालिना। | 5-51-40a 5-51-40b |
दीर्घकालसमासक्तं विशमाशीविषो यथा। | 5-51-41a 5-51-41b |
महेन्द्र इव वज्रेण दानवान्देवसत्तमः । | 5-51-42a 5-51-42b |
अविषह्यमनावार्यं तीव्रवेगपराक्रमम् । | 5-51-43a 5-51-43b |
अगदस्याप्यधनुषो विरथस्य विवर्मणः । | 5-51-44a 5-51-44b |
भीष्मो द्रोणश्च विप्रोऽयं कृपः शारद्वतस्तथा। | 5-51-45a 5-51-45b |
आर्यव्रतं तु जानन्तः सङ्गरान्तं विधित्सवः । | 5-51-46a 5-51-46b |
बलीयः सर्वतो दिष्टं पुरुषस्य विशेषतः। | 5-51-47a 5-51-47b |
ते पुराणं महेष्वासा मार्गमैन्द्रं समास्थिताः। | 5-51-48a 5-51-48b |
यथैषां मामकास्तात तथैषां पाण्डवा अपि। | 5-51-49a 5-51-49b |
ये त्वस्मदाश्रयं किञ्चिद्दत्तमिष्टं च सञ्जय। | 5-51-50a 5-51-50b |
आददानस्य शस्त्रं हि क्षत्रधर्मं परीप्सतः। | 5-51-51a 5-51-51b |
स वै शोचामि सर्वान्वै ये युयुत्सन्ति पाण्डवैः । | 5-51-52a 5-51-52b |
न तु मन्ये विघाताय ज्ञानं दुःखस्य सञ्जय । | 5-51-53a 5-51-53b |
ऋषयो ह्यपि निर्मुक्ताः पश्यन्तो लोकसङ्ग्रहान्। | 5-51-54a 5-51-54b |
किं पुनर्मोहमासक्तस्तत्र तत्र सहस्रधा। | 5-51-55a 5-51-55b |
संशये तु महत्यस्मिन्किं नु मे क्षममुत्तरम्। | 5-51-56a 5-51-56b |
द्यूतप्रमुखमाभाति कुरूणां व्यसनं महत्। | 5-51-57a 5-51-57b |
मन्ये पर्यायधर्मोऽयं कालस्यात्यन्तगामिनः। | 5-51-58a 5-51-58b |
किं नु कुर्यां कथं कुर्यां क्व नु गच्छामि सञ्जय । | 5-51-59a 5-51-59b |
अवशोऽहं तदा तात पुत्राणां निहते शते। | 5-51-60a 5-51-60b |
यथा निदाघे ज्वलनः समद्धो | 5-51-61a 5-51-61b 5-51-61c 5-51-61d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
<F.N> 5-51-7 उरुग्राहः महानिर्बन्धस्तेन गृहीतानां वशीकृतानाम् ।। 5-51-10 रभसः वेगवान् ।। 5-51-21 पुरा पुराणम् ।। 5-51-24 निष्कर्णां अवक्राम्। शतनिर्ह्रादां महाशब्दवतीम् ।। 5-51-28 शैक्यां शिक्यस्थाम् ।। 5-51-35 अनूपान् सजलदेशे स्थितान् ।। 5-51-44 अगदस्य गदाहीनस्य ।। 5-51-58 पर्यायधर्मः विपरीतधर्मः। प्रधिर्नेमिः। अस्य कालवशस्य । तृतीयार्थे षष्ठी ।।
उद्योगपर्व-050 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-052 |