महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-012
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नहु षप्रसादनाय देवादिभिः प्रार्थितेनापि बृहस्पतिना शच्या अत्याजनम् ।। 1 ।। बृहस्पत्यनुमत्या समयकरणाय शच्यानहुषसमीपगमनम् ।। 2 ।।
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शल्य उवाच। | 5-12-1x |
क्रुद्धं तु नहुषं दृष्ट्वा देवा ऋषिपुरोगमाः। | 5-12-1a 5-12-1b |
देवराज जहि क्रोधं त्वयि क्रुद्धे जगद्विभो। | 5-12-2a 5-12-2b |
जहि क्रोधमिमं साधो न कुप्यन्ति भवद्विधाः । | 5-12-3a 5-12-3b |
निवर्तय मनः पापात्परदाराभिमर्शनात्। | 5-12-4a 5-12-4b |
एवमुक्तो न जग्राह तद्वचः काममोहितः । | 5-12-5a 5-12-5b |
अहल्या धर्षिता पूर्वमृषिपत्नी यशस्विनी । | 5-12-6a 5-12-6b |
बहूनि च नृशंसानि कृतानीन्द्रेण वै पुरा । | 5-12-7a 5-12-7b |
उपतिष्ठतु देवी मामेतदस्या हितं परम्। | 5-12-8a 5-12-8b |
देवा ऊचुः। | 5-12-9x |
इन्द्राणीमानयिष्यामो यथेच्छसि दिवस्पते। | 5-12-9a 5-12-9b |
शल्य उवाच। | 5-12-10x |
इत्युक्त्वा तं तदा देवा ऋषिभिः सह भारत। | 5-12-10a 5-12-10b |
जानीमः शरणं प्राप्तामिन्द्राणीं तव वेश्मनि। | 5-12-11a 5-12-11b |
ते त्वां देवाः सगन्धर्वा ऋषयश्च महाद्युते । | 5-12-12a 5-12-12b |
इन्द्राद्विशिष्टो नहुषो देवराजो महाद्युतिः । | 5-12-13a 5-12-13b |
एवमुक्ते तु सा देवी बाष्पमुत्सृज्य सस्वनम् । | 5-12-14a 5-12-14b |
नाहमिच्छामि नहुषं पतिं देवर्षिसत्तम। | 5-12-15a 5-12-15b |
बृहस्पतिरुवाच। | 5-12-16x |
शरणागतं न त्यजेयमिन्द्राणि मम निश्चयः। | 5-12-16a 5-12-16b |
नाकार्यं कर्तुमिच्छामि ब्राह्मणः सन्विशेषतः । | 5-12-17a 5-12-17b |
नाहमेतत्करिष्यामि गच्छध्वं वै सुरोत्तमाः । | 5-12-18a 5-12-18b |
न तस्य बीजं रोहति रोहकाले | 5-12-19a 5-12-19b 5-12-19c 5-12-19d |
मोघमन्नं विन्दति चाप्यचेताः | 5-12-20a 5-12-20b 5-12-20c 5-12-20d |
प्रमीयते चास्य प्रजा ह्यकाले | 5-12-21a 5-12-21b 5-12-21c 5-12-21d |
एतदेवं विजानन्वै न दास्यामि शचीमिमाम्। | 5-12-22a 5-12-22b |
अस्या हितं भवेद्यच्च मम चापि हितं भवेत्। | 5-12-23a 5-12-23b |
शल्य उवाच। | 5-12-24x |
अथ देवाः सगन्धर्वा गुरुमाहुरिदं वचः। | 5-12-24a 5-12-24b |
बृहस्पतिरुवाच। | 5-12-25x |
नहुषं याचतां देवी किंचित्कालान्तरं शुभा। | 5-12-25a 5-12-25b |
बहुविघ्नः सुराः कालः कालः कालं नयिष्यति। | 5-12-26a 5-12-26b |
शल्य उवाच। | 5-12-27x |
ततस्तेन तथोक्ते तु प्रीता देवास्तथाब्रुवन्। | 5-12-27a 5-12-27b |
एवमेतद्द्विजश्रेष्ठ देवी चेयं प्रसाद्यताम्। | 5-12-28a 5-12-28b |
ऊचुर्वचनमव्यग्रा लोकानां हितकाम्यया। | 5-12-29a |
देवा ऊचुः। | 5-12-29x |
त्वया जगदिदं सर्वं धृतं स्थावरजङ्गमम्। | 5-12-29b 5-12-29c |
क्षिप्रं त्वामभिकामश्च विनशिष्यति पापकृत्। | 5-12-30a 5-12-30b |
एवं विनिश्चयं कृत्वा इन्द्राणी कार्यसिद्धये। | 5-12-31a 5-12-31b |
दृष्ट्वा तां नहुषश्चापि वयोरूपसमन्विताम् । | 5-12-32a 5-12-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-12-7 वैधर्म्याणि त्वाष्ट्रवधादीनि। उपधाः वृत्रसख्यादीनि छलानि ।। 5-12-20 अचेताः दुर्बलचित्तः ।। 5-12-25 कालान्तरं कालावधिम् ।।
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