महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-007
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दुर्योधनार्जुनयोः कृष्णदर्शनाय यदृच्छया युगपत् द्वारकागमनम् ।। 1 ।। अर्जुनेन सारथ्येन वरयित्वा तेन सह युधिष्ठिरसमीपगमनम् ।। 2 ।। दुर्योधनेन नारायणाह्वयकृष्णकुमारानादाय कृतवर्मणासह स्वपुरगमनम् ।। 3 ।।
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वैशंपायन उवाच। | 5-7-1x |
पुरोहितं ते प्रस्थाप्य नगरं नागसाह्वयम्। | 5-7-1a 5-7-1b |
प्रस्थाप्य दूतानन्यत्र द्वारकां पुरुषर्षभः । | 5-7-2a 5-7-2b |
गते द्वारवतीं कृष्ण बलदेवे च माधवे। | 5-7-3a 5-7-3b |
सर्वमागमयामास पाण्डवानां विचेष्टितम् । | 5-7-4a 5-7-4b |
स श्रुत्वा माधवं यान्तं सदश्वैरनिलोपमैः । | 5-7-5a 5-7-5b |
तमेव दिवसं चापि कौन्तेयः पाण्डुनन्दनः । | 5-7-6a 5-7-6b |
तौ यात्वा पुरुषव्याघ्रौ द्वारकां कुरुनन्दनौ । | 5-7-7a 5-7-7b |
दुर्योधनस्तु प्रथमं वासुदेवमुपाश्रयत् । | 5-7-8a 5-7-8b |
ततः किरीटी तस्यानु प्रविवेश महामनाः । | 5-7-9a 5-7-9b |
प्रतिबुद्धः स वार्ष्णेयो ददर्शाग्रे किरीटिनाम्। | 5-7-10a 5-7-10b |
स तयोः स्वागतं कृत्वा यथावत्प्रतिपूज्य तौ । | 5-7-11a 5-7-11b |
ततो दुर्योधनः कृष्णामुवाच प्रहसन्निव। | 5-7-12a 5-7-12b |
समं हि भवतः सख्यं मम चैवार्जुनेऽपि च। | 5-7-13a 5-7-13b |
अहं चाभिगतं सन्तो भजन्ते पूर्वसारिणः ।। | 5-7-14a 5-7-14b |
सततं संमतश्चैव सद्वृत्तमनुपालय ।। | 5-7-15a |
कृष्ण उवाच। | 5-7-16x |
भवानभिगतः पूर्वमत्र मे नास्ति संशयः। | 5-7-16a 5-7-16b |
तव पूर्वाभिगमनात्पूर्वं चाप्यस्य दर्शनात् । | 5-7-17a 5-7-17b |
प्रवारणं तु बालानां पूर्वं कार्यमिति श्रुतिः। | 5-7-18a 5-7-18b |
मत्संहननतुल्यानां गोपानामर्बुदं महत्। | 5-7-19a 5-7-19b |
ते वा युधि दुराधर्षा भवन्त्वेकस्य सैनिकाः । | 5-7-20a 5-7-20b |
आभ्यामन्यतरं पार्थ यत्ते हृद्यतरं मतम्। | 5-7-21a 5-7-21b |
` एतद्विदित्वा कौन्तेय विचार्य च पुनः पुनः । | 5-7-22a 5-7-22b |
वैशंपायन उवाच। | 5-7-23x |
एवमुक्तस्तु कृष्णेन कुन्तीपुत्रे धनञ्जयः। | 5-7-23a 5-7-23b |
नारायणममिघ्नं कामाज्जातमजं नृषु । | 5-7-24a 5-7-24b |
दुर्योधनस्तु तत्सैन्यं सर्वमावरयत्तदा । | 5-7-25a 5-7-25b |
कृष्णं चापहृतं ज्ञात्वा संप्राप परमां मुदम् । | 5-7-26a 5-7-26b |
ततोऽभ्ययाद्भीमबलो रौहिणेयं महाबलम् । | 5-7-27a 5-7-27b 5-7-27c |
बलदेव उवाच। | 5-7-28x |
विदितं ते नरव्याघ्र सर्वं भवितुमर्हति। | 5-7-28a 5-7-28b |
निगृह्योक्तो हृषीकेशस्त्वदर्थं कुरुनन्दन। | 5-7-29a 5-7-29b |
न च तद्वाक्यमुक्तं वै केशवं प्रत्यपद्यत। | 5-7-30a 5-7-30b |
नाहं सहायः पार्थस्य नापि दुर्योधनस्य वै । | 5-7-31a 5-7-31b |
जातोऽसि भारते वंशे सर्वपार्थिवपूजिते । | 5-7-32a 5-7-32b |
वैशंपायन उवाच। | 5-7-33x |
इत्येवमुक्तस्तु तदा परिष्वज्य हलायुधम्। | 5-7-33a 5-7-33b |
सोऽभ्ययात्कृतवर्माणं धृतराष्ट्रसुतो नृपः । | 5-7-34a 5-7-34b |
स तेन सर्वसैन्येन भीमेन कुरुनन्दनः । | 5-7-35a 5-7-35b |
ततः पीताम्बरधरो जगत्स्रष्टा जनार्दनः । | 5-7-36a 5-7-36b |
अयुध्यमानः कां बृद्धिमास्थायाहं वृतस्त्वया । | 5-7-37a |
अर्जुन उवाच। | 5-7-37x |
भवान्समर्थस्तान्सर्वान्निहन्तुं नात्र संशयः । | 5-7-37b 5-7-37c |
भवांस्तु कीर्तिमाँल्लोके तद्यशस्त्वां गमिष्यति। | 5-7-38a 5-7-38b |
सारथ्यं तु त्वया कार्यमिति मे मानसं सदा। | 5-7-39a 5-7-39b |
वासुदेव उवाच। | 5-7-40x |
उपपन्नमिदं पार्थ यत्स्पर्धसि मया सह। | 5-7-40a 5-7-40b |
वैशंपायन उवाच। | 5-7-41x |
एवं प्रमुदितः पार्थः कुष्णेन सहितस्तदा। | 5-7-41a 5-7-41b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-7-10 प्रवारणं ईप्सितसादानम्। पूर्वमर्हः त्वत्तः कनिष्ठत्वादित्यर्थः ।। 10 ।।
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