महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-156
← उद्योगपर्व-155 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-156 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-157 → |
दुर्योधनेन भीष्मंप्रति सैनापत्यस्वीकारप्रार्थना ।। 1 ।।
भीष्मेण समयप्रतिज्ञाकरणपूर्वकं सैनापत्याङ्गीकारः ।। 2 ।।
दुर्योधनेन भीष्मस्य सैनापत्येऽभिषेचनपूर्वकं सेनाभिः सह कुरुक्षेत्रगमनम् ।। 3 ।।
|
वैशंपायन उवाच। | 5-156-1x |
ततः शान्तनवं भीष्मं प्राञ्जलिर्धृतराष्ट्रजः। | 5-156-1a 5-156-1b |
ऋते सेनाप्रणेतारं पृतना सुमहत्यपि । | 5-156-2a 5-156-2b |
नहि जातु द्वयोर्बुद्धिः समा भवति कर्हिचित् । | 5-156-3a 5-156-3b |
श्रूयते च महाप्राज्ञ हैहयानमितौजसः । | 5-156-4a 5-156-4b |
तानभ्ययुस्तदा वैश्याः शूद्राश्चैव पितामह । | 5-156-5a 5-156-5b |
ते स्म युद्धे प्रभज्यन्ते त्रयो वर्णाः पुनः पुनः । | 5-156-6a 5-156-6b |
ततस्ते क्षत्रियानेव पप्रच्छुर्द्विचसत्तमाः । | 5-156-7a 5-156-7b |
वयमेकस्य श्रृणुमो महाबुद्धिमतो रणे । | 5-156-8a 5-156-8b |
ततस्ते ब्राह्मणाश्चक्रुरेकं सेनापतिं द्विजम्। | 5-156-9a 5-156-9b |
एवं ये कुशलं शूरं हितेप्सितमकल्पषम्। | 5-156-10a 5-156-10b |
भवानुशनसा तुल्यो हितैषी च सदा मम। | 5-156-11a 5-156-11b |
रश्मीवतामिवादित्यो वीरुधामिव चन्द्रमाः । | 5-156-12a 5-156-12b |
पर्वतानां यथा मेरुः सुपर्णः पक्षिणां यथा। | 5-156-13a 5-156-13b |
भवता हि वयं गुप्ताः शत्रेणेव दिवौकसः । | 5-156-14a 5-156-14b |
प्रयातु नो भवानग्रे देवानामिव पावकिः । | 5-156-15a 5-156-15b |
भीष्म उवाच। | 6-156-16x |
एवमेतन्महाबाहो यथा वदसि भारत। | 5-156-16a 5-156-16b |
अपि चैव मया श्रोयो वाच्यं तेषां नराधिप । | 5-156-17a 5-156-17b |
न तु पश्यामि योद्धारमात्मनः सदृशं भुवि । | 5-156-18a 5-156-18b |
स हि वेद महाबुद्धिर्दिव्यान्यस्त्राण्यनेकशः । | 5-156-19a 5-156-19b |
अहं स च क्षणेनैव निर्मनुष्यमिदं जगत्। | 5-156-20a 5-156-20b |
न त्वेवोत्सादनीया मे पाण्डोः पुत्रा जनाधिप । | 5-156-21a 5-156-21b |
एवमेषां फरिष्यामि निधनं कुरुनन्दन । | 5-156-22a 5-156-22b |
सेनापतिस्त्वहं राजन्समयेनापरेण ते। | 5-156-23a 5-156-23b |
कर्णो वा युध्यतां पूर्वमहं वा पृथिवीपते । | 5-156-24a 5-156-24b |
कर्ण उवाच। | 5-156-25x |
नाहं जीवति गाङ्गेये राजन्योत्स्ये कथंचन। | 5-156-25a 5-156-25b |
वैशंपायन उवाच। | 5-156-26x |
ततः सेनापतिं चक्रे विधिवद्भूरिदक्षिणम्। | 5-156-26a 5-156-26b |
ततो भेरीश्च शङ्खांश्च शतशोऽथ सहस्रशः। | 5-156-27a 5-156-27b |
सिंहनादाश्च विविधा वाहनानां च निःस्वनाः ।। | 5-156-28a |
निर्घार्ताः पृथिवीकम्पा गजबृंहितनिःस्वनाः। | 5-156-29a 5-156-29b |
वाचश्चाप्यशरीरिण्यो दिवश्चोल्काः प्रपेदिरे। | 5-156-30a 5-156-30b |
सैनापत्ये यदा राजा गाङ्गेयमभिषिक्तवान् । | 5-156-31a 5-156-31b |
ततः सेनापतिं कृत्वा भीष्मं परबलार्दनम् । | 5-156-32a 5-156-32b |
वर्धमानो जयाशीर्भिर्निर्ययौ सैनिकैर्वृतः। | 5-156-33a 5-156-33b |
स्कन्धावारेण महता कुरुक्षेत्रं जगाम ह ।। | 5-156-34a |
परिक्रम्य कुरुक्षेत्रं कर्णेन सह कौरवः । | 5-156-35a 5-156-35b |
मधुरानूषरे देशे प्रभूतयवसेन्धने। | 5-156-36a 5-156-36b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-156-15 पावकिः कार्तिकेयः ।। 5-156-19 विवृतो विस्पष्टो भूत्वेत्यर्थः ।। 5-156-20 निर्मनुष्यं निर्जनम् ।। 5-156-21 सदा प्रत्यहम् ।। 5-156-29 पातयन्तः मूर्च्छितानि कुर्वन्तः ।।
उद्योगपर्व-155 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-157 |