महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-031
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युधिष्ठिरेण सञ्जयंप्रति धृतराष्ट्रभीष्मयोरभिवादनपूर्वकं सन्धिकरणविज्ञापननिवेदनचोदनम् ।। 1 ।। तथा दुर्योधनंप्रति तत्कृतानयोपेक्षणकथनपूर्वकं ग्रामपञ्चकदानेन सन्धिकरणसन्देशः ।। 2 ।।
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युधिष्ठिर उवाच। | 5-31-1x |
उत सन्तमसन्तं वा बालं वृद्धं च सञ्जय। | 5-31-1a 5-31-1b |
उत बालाय पाण्डित्यं पण्डितायोत बालताम्। | 5-31-2a 5-31-2b |
बलं जिज्ञासमानस्य आचक्षीथा यथातथम्। | 5-31-3a 5-31-3b |
गावल्गणे कुरून्गत्वा धृतराष्ट्रं महाबलम् । | 5-31-4a 5-31-4b |
ब्रूयाश्चैनं त्वमासीनं कुरुभिः परिवारितम् । | 5-31-5a 5-31-5b |
तव प्रसादाद्बालास्ते प्राप्ता राज्यमरिन्दम। | 5-31-6a 5-31-6b |
सर्वमप्येतदेकस्य नालं सञ्जय कस्यचित् । | 5-31-7a 5-31-7b |
तथा भीष्मं शान्तनवं भारतानां पितामहम्। | 5-31-8a 5-31-8b |
अभिवाद्य च वक्तव्यस्ततोऽस्माकं पितामहः । | 5-31-9a 5-31-9b |
स त्वं कुरु तथा तात स्वमतेन पितामह । | 5-31-10a 5-31-10b |
तथैव विदुरं ब्रूयाः कुरूणां मन्त्रधारिणम्। | 5-31-11a 5-31-11b |
अथ दुर्योधनं ब्रूया राजपुत्रममर्षणम्। | 5-31-12a 5-31-12b |
अपापां यदुपैक्षस्त्वं कृष्णामेतां सभागताम् । | 5-31-13a 5-31-13b |
एवं पूर्वापरान्क्लेशानतितिक्षन्त पाण्डवाः। | 5-31-14a 5-31-14b |
यन्नः प्रव्राजयेः सौम्य अजिनैः प्रतिवासितान्। | 5-31-15a 5-31-15b |
यत्कुन्तीं समतिक्रम्य कृष्णां केशेष्वधर्षयत्। | 5-31-16a 5-31-16b |
अथोचितं स्वकं भागं लभेमहि परन्तप। | 5-31-17a 5-31-17b |
शान्तिरेवं भवेद्राजन्प्रीतिश्चैव परस्परम् । | 5-31-18a 5-31-18b |
अविस्थलं वृकस्थलं माकन्दीं वारणावतम्। | 5-31-19a 5-31-19b |
भ्रातॄणां देहि पञ्चानां पञ्च ग्रामान्सुयोधन। | 5-31-20a 5-31-20b |
भ्राता भ्रातरमन्वेतु पिता पुत्रेण युज्यताम्। | 5-31-21a 5-31-21b |
अक्षतान्कुरु पाञ्चालान्पश्येयमिति कामये। | 5-31-22a 5-31-22b |
अलमेव शमायास्मि तथा युद्धाय सञ्जय। | 5-31-23a 5-31-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-31-1 सन्तं साधुम्। असन्तं दुष्टम् । धाता ईश्वरः ।। 1 ।। 5-31-2 शुक्रं बीजभूतं प्राचीनं कर्म उच्चरन् उद्दीपयन् ।। 2 ।। 5-31-7 सर्वं ब्रह्माण्डम्। संहत्य एकीभूय ।। 7 ।। 5-31-13 अतितिक्षाम क्षान्तवन्तो वयम् तत्र हेतुः मां वधीष्मेति ।। 13 ।। 5-31-17 गृद्धां लुब्धाम् ।। 17 ।। 5-31-18 अवसानं वसतिस्थानम् ।।
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