महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-014
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स्तुत्या प्रत्यक्षीभूतया उपश्रुतिदेव्यासह पद्मनालभेदनेन तद्विवरं गतया शच्या तत्रस्थेन्द्रदर्शनम् ।। 1 ।। तथा इन्द्रं स्तुत्वा नहुषवृत्तान्तकथनम् ।। 2 ।।
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शल्य उवाच। | 5-14-1x |
अथैनां रूपिणी साध्वीमुपातिष्ठदुपश्रुतिः। | 5-14-1a 5-14-1b |
इन्द्राणी संप्रहृष्टात्मा संपूज्यैनामथाब्रवीत्। | 5-14-2a 5-14-2b |
उपश्रुतिरुवाच। | 5-14-3x |
उपश्रुतिरहं देवि तवान्तिकमुपागता। | 5-14-3a 5-14-3b |
पतिव्रता च युक्ता च यमेन नियमेन च। | 5-14-4a 5-14-4b |
क्षिप्रमन्वेहि भद्रं ते द्रक्ष्यसे सुरसत्तमम्। | 5-14-5a 5-14-5b |
देवारण्यान्यतिक्रम्य पर्वतांश्च बहूंस्ततः । | 5-14-6a 5-14-6b |
समुद्रं च समासाद्य बहुयोजनविस्तृतम्। | 5-14-7a 5-14-7b |
तत्रापश्यत्सरो दिव्यं नानाशकुनिभिर्वृतम्। | 5-14-8a 5-14-8b |
तत्र दिव्यानि पद्मानि पञ्चवर्णानि भारत । | 5-14-9a 5-14-9b |
सरसस्तस्य मध्ये तु पद्मिनी महती शुभा । | 5-14-10a 5-14-10b |
पद्मस्य भित्त्वा नालं च विवेश सहिता तया। | 5-14-11a 5-14-11b |
तं दृष्ट्वा च सुसूक्ष्मेण रूपेणावस्थितं प्रभुम् । | 5-14-12a 5-14-12b |
इन्द्रं तुष्टाव चेन्द्राणी विश्रुतैः पूर्वकर्मभिः। | 5-14-13a 5-14-13b |
किमर्थमसि संप्राप्ता विज्ञातश्च कथं त्वहम्। | 5-14-14a 5-14-14b |
इन्द्रत्वं त्रिषु लोकेषु प्राप्य वीर्यसमन्वितः । | 5-14-15a 5-14-15b |
उपतिष्ठेति स क्रूरः कालं च कृतवान्मम । | 5-14-16a 5-14-16b |
एतेन चाहं संप्राप्ता द्रुतं शक्र तवान्तिकम्। | 5-14-17a 5-14-17b |
प्रकाशयस्व चात्मानं दैत्यदानवसूदन। | 5-14-18a 5-14-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-14-16 त्रास्यसि पालयिष्यसि ।। 16 ।।
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