महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-002
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बलरामेण कृष्णमतानुमोदनपूर्वकं स्वस्य दुर्योधने पक्षपताविष्करणम् ।। 1 ।।
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बलदेव उवाच। | 5-2-1x |
श्रुतं भवद्भिर्गदपूर्वजस्य | 5-2-1a 5-2-1b 5-2-1c 5-2-1d |
अर्धं हि राज्यस्य विसृज्य वीराः | 5-2-2a 5-2-2b 5-2-2c 5-2-2d |
लब्ध्वा हि राज्यं पूरुषप्रवीराः | 5-2-3a 5-2-3b 5-2-3c 5-2-3d |
दुर्योधनस्यापि मतं च वेत्तुं | 5-2-4a 5-2-4b 5-2-4c 5-2-4d |
स भीष्ममामन्त्र्य कुरुप्रवीरं | 5-2-5a 5-2-5b 5-2-5c 5-2-5d |
सवे च येऽन्ये धृतराष्ट्रपुत्रा | 5-2-6a 5-2-6b 5-2-6c 5-2-6d |
एतेषु सर्वेषु समागतेषु | 5-2-7a 5-2-7b 5-2-7c 5-2-7d |
सर्वास्ववस्थासु च ते न कोप्या | 5-2-8a 5-2-8b 5-2-8c 5-2-8d |
निवार्यमाणश्च कुरुप्रवीरः | 5-2-9a 5-2-9b 5-2-9c 5-2-9d |
हित्वा हि कर्णं च सुयोधनं च | 5-2-10a 5-2-10b 5-2-10c 5-2-10d |
उत्सृज्य तान्सौबलमेव चायं | 5-2-11a 5-2-11b 5-2-11c 5-2-11d |
संरम्भमाणो विजितः प्रसह्य | 5-2-12a 5-2-12b 5-2-12c 5-2-12d |
तथा हि शक्यो धृतराष्ट्रपुत्रः | 5-2-13a 5-2-13b 5-2-13c 5-2-13d |
साम्ना जितोऽर्थोऽर्थकरो भवेत | 5-2-14a 5-2-14b |
एवं ध्रुवत्येव मधुप्रवीरे | 5-2-15a 5-2-15b 5-2-15c 5-2-15d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-2-3 राज्यं राज्यार्धम् ।। 3 ।। 5-2-6 बलं चतुरङ्गम्। निगमो नीतिशास्त्रं ते उभे प्रधानं योषाम् ।। 5-2-10 दुरोदराः द्यूतकाराः ।। 5-2-12 संरम्भमाणः हठं कुर्वाणः ।।
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