महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-013
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शच्या नहुषंप्रति इन्द्रस्यान्वेषणेऽप्यपरिज्ञाने त्वामुपस्थास्य इति समयकरणम् ।। 1 ।। देवैर्विष्ण्वाज्ञया इन्द्रस्य ब्रह्महत्यापनोदनाय अश्वमेधयाजनम् ।। 2 ।। ध्वस्तपाप्मनोपीन्द्रस्य पुनर्नहुषभयाददर्शने शोचन्त्या शच्या उपश्रुतिदेवीपूजनम् ।। 3 ।।
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शल्य उवाच। | 5-13-1x |
अथ तामब्रवीद्दृष्ट्वा नहुषो देवराट् तदा। | 5-13-1a 5-13-1b |
भजस्व मां वरारोहे पतित्वे वरवर्णिनि। | 5-13-2a 5-13-2b |
प्रावेपत भयोद्विग्ना प्रवाते कदली यथा। | 5-13-3a 5-13-3b |
देवराजमथोवाच नहुषं घोरदर्शनम् । | 5-13-4a 5-13-4b |
न हि विज्ञायते शक्रः किं वा प्राप्तः क्व वा गतः। | 5-13-5a 5-13-5b |
ततोऽहं त्वामुपस्थास्ये सत्यमेतद्ब्रवीमि ते। | 5-13-6a 5-13-6b |
नहुष उवाच। | 5-13-7x |
एवं भवतु सुश्रोणि यथा मामिह भाषसे। | 5-13-7a 5-13-7b |
नहुषेण विसृष्टा च निश्चक्राम ततः शुभा। | 5-13-8a 5-13-8b |
तस्याः संश्रुत्य च वचो देवाश्चाग्निपुरोगमाः । | 5-13-9a 5-13-9b |
देवदेवेन शङ्गम्य विष्णुना प्रभविष्णुना। | 5-13-10a 5-13-10b |
ब्रह्मवध्याभिभूतो वै शक्रः सुरगणेश्वरः । | 5-13-11a 5-13-11b |
रक्षार्थं सर्वभूतानां विष्णुत्वमुपजग्मिवान्। | 5-13-12a 5-13-12b |
वृतः सुरगणश्रेष्ठ मोक्षं तस्य विनिर्दिश। | 5-13-13a 5-13-13b |
मामेव यजतां शक्रः पावयिष्यामि वज्रिणम्। | 5-13-14a 5-13-14b |
पुनरेष्यति देवानामिन्द्रत्वमकुतोभयः। | 5-13-15a 5-13-15b |
किंचित्कालमिदं देवा मर्षयध्वमतन्द्रिताः। | 5-13-16a 5-13-16b |
ततः सर्वे सुरगणाः सोपाध्यायाः सहर्षिभिः । | 5-13-17a 5-13-17b |
तत्राश्वमेधः सुमहान्महेन्द्रस्य महात्मनः । | 5-13-18a 5-13-18b |
विभज्य ब्रह्महत्यां तु वृक्षेषु च नदीषु च। | 5-13-19a 5-13-19b |
संविभज्य च भूतेषु विसृज्य च सुरेश्वरः। | 5-13-20a 5-13-20b |
अकम्प्यं नहुषं स्थानाद्दृष्ट्वा बलनिषूदनः। | 5-13-21a 5-13-21b |
ततः शचीपतिर्देवः पुनरेव व्यनश्यत। | 5-13-22a 5-13-22b |
प्रनष्टे तु ततः शक्रे शची शोकसमन्विता । | 5-13-23a 5-13-23b |
यदि दत्तं यदि हुतं गुरवस्तोषिता यदि। | 5-13-24a 5-13-24b |
पुण्यां चेमामहं दिव्यां प्रवृत्तामुत्तरायणे। | 5-13-25a 5-13-25b |
प्रयता च निशां देवीमुपातिष्ठत तत्र सा। | 5-13-26a 5-13-26b |
यत्रास्ते देवराजोऽसौ तं देशं दर्शयस्व मे। | 5-13-27a 5-13-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-13-12 विष्णुत्वं व्यापकत्वम् ।। 12 ।। 5-13-26 आकरोत् आकारितवती ।। 26 ।।
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