महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-021
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भीष्मेण पुरोहितवाक्येऽनुमोदिते कर्णेन तदाक्षेपपूर्वकं सङ्केतकालस्य सशेषतया पुनर्वनवासादिना तत्समापने राज्यदानोक्तिः ।। 1 ।। भीष्मेण कर्णाधिक्षेपः ।। 2 ।। धृतराष्ट्रेण पाण्डवान्प्रति स्वेन सञ्जयप्रेषणकथनपूर्वकं पुरोहितस्य प्रतियापनम् ।। 3 ।।
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वैशंपायन उवाच। | 5-21-1x |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा प्रज्ञावृद्धो महाद्युतिः। | 5-21-1a 5-21-1b |
दिष्ट्या कुशलिनः सर्वे सह दामोदरेण ते। | 5-21-2a 5-21-2b |
दिष्ट्या च सन्धिकामास्ते भ्रातरः कुरुनन्दनाः । | 5-21-3a 5-21-3b |
भवता सत्यमुक्तं तु सर्वमेतन्न संशयः। | 5-21-4a 5-21-4b |
असंशयं क्सेशितास्ते वने चेह च पाण्डवाः। | 5-21-5a 5-21-5b |
किरीटि बलवान्पार्थः कृतास्त्रश्च महारथः । | 5-21-6a 5-21-6b |
अपि वज्रधरः साक्षात्किमुतान्ये धनुर्भृतः । | 5-21-7a 5-21-7b |
वैशंपायन उवाच। | 5-21-8x |
भीष्मे ब्रुवति तद्वाक्यं धृष्टमाक्षिप्य मन्युना। | 5-21-8a 5-21-8b |
न तत्राविदितं ब्रह्मँल्लोके भूतेन केनचित् । | 5-21-9a 5-21-9b |
दुर्योधनार्थे शकुनिर्द्यूते निर्जितवान्पुरा । | 5-21-10a 5-21-10b |
स तं समयमाश्रित्य राज्यं नेच्छति पैतृकम्। | 5-21-11a 5-21-11b |
दुर्योधनो भयाद्विद्वन्न दद्यात्पादमन्ततः। | 5-21-12a 5-21-12b |
यदि काङ्क्षन्ति ते राज्यं पितृपैतामहं पुनः । | 5-21-13a 5-21-13b |
ततो दुर्योधनस्याङ्के वर्तन्तामकुतोभयाः । | 5-21-14a 5-21-14b |
अथ ते धर्ममुत्सृत्य युद्धमिच्छन्ति पाण्डवाः। | 5-21-15a 5-21-15b |
भीष्म उवाच। | 5-21-16x |
किं नु राधेय वाचा ते कर्म तत्स्मर्तुमर्हसि। | 5-21-16a 5-21-16b |
` विराटनगरे धीरः किं त्वं तत्रैव नागतः'। | 5-21-17a 5-21-17b |
न चेदेवं करिष्यामो यदयं ब्राह्मणोऽब्रवीत्। | 5-21-18a 5-21-18b |
` दुर्योधनः सहामात्यो विनङ्क्ष्यति न संशयः ।। | 5-21-19a |
वैशंपायन उवाच। | 5-21-19x |
धृतराष्ट्रस्ततो भीष्ममनुमान्य प्रसाद्य च। | 5-21-19b 5-21-19c |
अस्मद्धितं वाक्यमिदं भीष्मः शान्तनवोऽब्रवीत्। | 5-21-20a 5-21-20b |
चिन्तयित्वा तु पार्थेभ्यः प्रेषयिष्यामि सञ्जयम् । | 5-21-21a 5-21-21b |
स तं सत्कृत्य कौरव्यः प्रेषयामास पाण्डवान् । | 5-21-22a 5-21-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-21-8 धृष्टं धर्षणायुक्तं यथा स्यात्तथा ।। 8 ।
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