संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी)

संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी)
चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा
१९२८

संस्कृत-शब्दार्थ-कौस्तुभ अथॉत संस्कृत शब्दों का हिन्दी भाषा में अथॅ बदलने वाला एक बडा कोष संग्रहकर्ता चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा, एन० आर० ए० पक्ष


{ प्रथम संस्करश्च } प़़काशक लाला रामनारायण लाल पब्लिशर और बुकसेलर इलाहाबाद

१९२८ मूल्य ६ रुपया PREFACE F late years great efforts have been made to raise the standard of education in our schools and universities, and the study of no subicct has attracted so much attention as that of the Indian Vernacalars. The educated public, as well as those responsible for our educational institutions, have been taking progressive interest in their teaching and development. Not long ago an academy has been instituted for the purpose of improving the Vernacolars with the moral and material blessings of the Government. The classics, however, have not been so fortunate. Their studies are in comparative neglect. They have to yield their high place to mere utilitarian and modern subjects. The present day tendency in education to subordinate what is purely or mostly cultural, to what is primarily utilitarian has thrown classics in shade. Of all the classical langeages Sanskrit has suffered most. Persian and Arabic are still popular with their admirers, for they (the admirers) have not yet decided to break off more or less completely from their past culture or ancient literature. They would not be satisfied with a second-hand and scrappy knowledge of their old literature through the translations by foreigners in foreign languages. With the former champion of Sanskrit it is otherwise. A great many of those, who wield influence in the spheres of politics, education or social matters, even hesitate to do lip-service to that language in which the glories of their past are recorded. To them all old things of their country are only fit to be forgotten. Their neglect of Sanskrit has almost verged on hatred. They object even to that style of Hindi, which uses Sanskrit or words derived from it. And these very persons would gladly support the infusion of foreign words and derivatives into Prindi which might sound Hebrew and Greek to an average Hindi-speaking person! Yet Sanskrit occupies an unique position-not only in the history and enl ture of Aryavarta-but also among the languages of the world. Dr. Ogilvie and Wilson did not overestimate the importance of Sanskrit when they said: → Sanskrit, the ancient language of the Hindoos, has been termed the language of the lan guages and is even regarded, as the key to all those termed 'Indo-Buropean' including the Teutome family, French, Italian, Spanish, Sclavonian, Lithuanian, Greek, Latin and Celtic. It is found to bear such a striking resemblance both in its more importaut words and its grammatical forms to the Indo-European languages, as to lead to the conclusion that all must have sprung from a common source-some primitive language, now lost, of which they are all to be regarded as mere varieties." It is very painful, for these reasons to find that Sanskrit does not possess an Etymological and Explanatory dictionary worthy of its importance and status. And when we consider the circumstances prevailing among our intelligentsia, it is idle to hope that the study of Sanskrit would receive any very serious impetus for some time to core-at any rate in these Provinces. However, it is our sacred duty to help the praiseworthy efforts of those who are still inclined to study Sanskrit. With this object in view, the present work was undertaken and this very simple compilation is placed before the public. There are two other valuabic works on the subject-one by Dr. A. A. MacDonell and the other by the late Principal Varman Shivaram Apte. But they could be of use to those only who know English. The great work known as the great Vachaspatya is a standard work and is very useful for scholars. But until a well edited edition of the work comes out, it could not be of much help to even an average Sanskrit student. There are three other works, vi, the Padmachandra Kosha, the Chaturvedi Kosha and the Yugal Kosha, which can help a Sanskrit reader, but they are tou small for much practical use. It is, therefore, hoped that the present work will answer the needs of those Hindi and Sanskrit-knowing students who are studying Sanskrit in a college or school or privately. It is designed to be an adequate guide to a knowledge of Sanskrit words. It contains as many explanations and details as were permitted by the limited space at the disposal of the compiler. No doubt the work could be improved and enlarged, but there was a danger of defeating the very object of the compilation by such improvement. For an enlarged volume should have increased the price and thus it should have been out of reach of the Sanskrit students who are the poorest students in this poor country. The compiler is doubtful if the cost and price of the book-low as they are are not already high for the Sanskrit students. The compiler acknowledges with thanks the many works he has consulted in preparing this work. They are too numerous to be enumerated in a short preface. He must, however, acknowledge his special gratitude to the late ( m ) Principal Pandit V. S. Apte for the belp he has obtained from his monumental work. If the work reaches those for whom it is meant, and if it helps them in their study of Sanskrit, the compiler would feel his labours amply repaid. In case the first edition is exhausted in a reasonable time, thus showing a real demand for the work, the compiler proposes to enlarge and improve the work. DARAGAXI, Allahabad, The 23rd July, 1998. C. D. P. S. संकेत-सूची १ ० का० २ अब्यथा ३ अन्व० अन्वर्थ Literal ४५० ६०-अतिशयार्थच Superbative. ५० था आणि ई शात्मा० म ७ अं० शु-~अङ्कङRAC ८६० ६०-कर्म 8 ८० ५०हरवा १० कर्तु० का० अध्ययाम Luistiable. ११० वा०-कर्म carive. १२ क्रि० उ० या उ०। १३ (३०) नपुंसकलिङ्ग) १४ परस्मैपरस्मैपदी १५ च० ऋ०-वर्तमानक कृदन्त | १६ (५०) पुल्लिङ्ग १७ भू० क० रु०-भूतकालबाथककर्मवाच्य दन्त । १८ स० का० --सद्भावनायक कर्तवाच्य दन्त | १६ सं० वाजवभः । २०० श्री संस्कृत शब्दार्थ- कौस्तुभ P थ -संस्कृत और हिन्दी वर्णमाला का यह प्रथम अञ्चर है। बंगला आदि अन्य भाषायों की वर्णमाला का भी यही आदिम वर्णं है। इसका उच्चारण कण्ठ से होता है; अतः यह वर्ग करव्य कहलाता है। संस्कृत व्याकरण में उच्चारणभेद से इसके १८ मेद दिखलाए गए हैं। प्रथम -हस्व, दीर्घ | समझा जाता है। पुल्लिङ्ग में ( और प्लुत। तदुपरान्त-हस्व-उदास, हस्व- अनुदात्त, हुस्व-स्वरित; दीर्घ-उदात्त, दीर्घ-धनुदात्त, दीर्घ-स्वरित प्लुत उदात्त, प्लुत-अनुदात्त, प्लुत- स्त्ररित ये ६ प्रकार हुए। फिर अनुनासिक और अननुनासिक भेद से-इन के दुगुने १४२८३८ भेद हुए। व्यञ्जनों के उचारण में इस वर्ष की सहायता अपेक्षित रहती है। इसीसे संस्कृत या हिन्दी में क आदिक व अकार-स्वर-संयुक्त लिखे तथा बोले जाते हैं। न तत्पुरुष में भी 'न लोपो | नमः' ( पाणिनि-अष्टाध्यायी-- ६।३।७३ ) सूत्र से नकार का लोप हो जाने पर 'अ' वचता है। नज् - के अर्थ ६ हैं:--- , - तत्सादृश्यमभावश्च तद्भ्यत्वं सदस्यता | अप्राशस्त्यं विरोधश्च, नअर्थाः षट् प्रकीर्तिताः ॥ (उदाहरण क्रम से ) सादृश्य में-न माहाणः (अ) अभाव में-- पापम् (पापाभावः ) भिन्नता के ज्ञान में - अटः ( घटभिन्नः ) J न-लोप मायभाव में कालः (अप्रशसकालः ) विरोध में- अनादरः (आदरबिरोधी-तिरस्कार) में इतनी विशेषता है कि, स्वरवर्ण परे रहते जुम् का आगम हो जाता है। जैसे, “अनादरः" । (अर्थ) विष्णु। कहीं कहीं बढ़ का अर्थ भी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी अंशः एक० द्वि० बहु० श्री श्राः श्रौ अंशः ( पु० ) एन श्राय आलू-श्राद् अस्थ ए आभ्याम् ऐः 22 " आन् यो एभ्यः [13] आनां पष्टी सप्तमी ऐपु 22 । अंश (धा० उ० ) [ अंशयति-अंशयते ]: विभाजित करना । बाँटना | भाग कर के बाँटना २ करना। इसी अर्थ में अंशापयति भी व्यवहत होता है। भाग हिस्सा बाँट । २ भाज्य अङ्क | ३ भिन्न की लकीर के ऊपर की संख्या ४ चौधा भाग ५ कला | ६ सोलहवाँ हिस्सा । ७ वृत्त की परिधि का ३६०वाँ हिस्सा, जिसे इकाई मान कर कोण या चाप का परिमाण बतलाया जाता है। ८] कंधा वारह आदित्यों में से एक- अंशः अंशक ( २ ) प्रकर अंशावतार । एक हिस्से का हिस्सा । अंशि | अंशुमती ( स्त्री० ) १ पौधा विशेष सालवण | अवतारः ( क्रि० वि० ) भागशः । हिस्सेवार। जो पूर्णावतार न हो। अवतार विशेष। जिसमें पर- मात्मा का कुछ ही भाग हो । श्रवतरणं ( महाभारत के आदिपर्व के ६४ वें तथा ६७ वें अध्याओं का नाम । - भाज-हर-हारिन् ( पु० स्त्री० ) उत्तराधिकारी, यथा--" पिण्डदों शहरश्चैषां पूर्वाभावे परः परः " ( याज्ञ० ) - सवर्णनं (न० ) अशा की एक क्रिया विशेष ।-स्वरः ( संगीत में ) प्रधान स्वर । अंशकः ( पु० ) १ हिस्सेदार । पाँतीदार | साझीदार । २ भाग | टुकड़ा।३ दिवस। दिन। अंश ( न० ) भाग देने की क्रिया । (०) विभाजक | बाँटने वाला | २ हिस्सेदार | पाँतीवाला । अंशल (वि०) १ हिस्सा पाने का अधिकारी। २ मज़- बूत ३ सबल । स्वस्थ हृद्रकाय बलवान। मांसल । अंशिन् (वि० ) १ साझीदार | समान भाग पाने वाला यथा-" सर्वे वा स्युः समांशिनः । ( याज्ञ० ) २ हिस्सोंवाला । अंशु (पु०) किरण रश्मि | २ चमक | दमक । ३ नोंक । (डोरे का) छोर। ४ पोशाक सजावट ५ रफ़्तार | गति । ६ परमाणु । जालं- (न० ) रश्मिसमुदाय । – घरः, भृत्, – पतिः, - बाणः, – भर्तृ, – स्वामी, - हस्तः (पु० ) सूर्य । आदित्य । - पट्ट (न०) एक प्रकार का रेश्मी वस्त्र । - माला (स्त्री० ) १ प्रकाश की माला । २ सूर्य या चन्द्र का मण्डल-मालिन्-माली (पु०) सूर्य । अंशुकं १ वस्त्र विशेष । मिहीन कपड़ा। अर्थात् मिहीन रेशमी मलमल । टसर । मिहीन सफेद वस्त्र । २ वह सिला कपड़ा जो सब के ऊपर या सब के नीचे पहिना जाता है। ३ पत्ता ४ आँच की या रोशनी की मंदी लौ या ज्योति । अंशुमत् (वि०) १ – चमकदार चमकीला। दमकीला । २ नुकीला | नोकदार | – मान् (पु०) १ सूर्य २ सूर्यवंशी एक राजा, जो असमञ्जस के पुत्र और महाराज सगर के पौत्र तथा महाराज दिलीप के पिता थे 1 २ पूर्णमासी । पूर्णिमा । फला (स्त्री० ) केले का वृक्ष । अंशुल ( वि० ) चमकीला । दमकीला | अंशुल ( पु० ) चाणक्य का दूसरा नाम । (अंति, सापयति ) देखो “ अंश् ” । सः १ टुकड़ा हिस्सा | २ कंधा। कंधे की हड्डी। श्रंस- फलक ।-फ्रूट: ( पु० ) सौंद के कंधों के बीच का ऊपर को उठा हुआ भाग । कुबड़| कुव्व। —ं ( न० ) कंधों का कवच विशेष । – फलकः ( पु० ) मेरुदण्ड का ऊपरी भाग भारः ( पु० ) कंधे पर का बोझ या जुआँ । -भारिक, भारिन् ( वि० ) कंधे पर रख कर बोझ उठाये हुए अथवा कंधे पर जुआँ रखे हुए। विवर्तिन (वि० ) कंधों की ओर मुड़ा हुआ। अंसल (वि० ) , देखो “ अंशल "। मज़बूत कंधों वाला यथा “ युवा युगभ्यायत बाहुरंसलः । " ग्रह ( धा० धात्मने० ) [ अंहते, हितु, हित ] जाना समीप आना आरम्भ करना भेजना प्वमकना । बोलना । अंहतिः - ती (स्त्री० ) १ भेंट उपहार | दान | दैन। खैरात । २ बीमारी । स् ( न० ) १ पाप | २ कष्ट । चिन्ता । अंहि: (पु० ) १ पैर | २ पेड़ जड़ संख्याः (पु० ) पादप जड़ से जल पीने वाले अर्थात् वृछ । – स्कन्धः ( पु० ) पैर के तलवे का ऊपरी भाग (घा० परस्मै० ) [ अति, अकित ] धूमधुमश्रा चाल चलना। सर्पाकार चलना । प्रकं (न० ) १ हर्ष का अभाव | पीड़ा | कष्ट | २ पाप । प्रकच (वि०) १ गंजा। जिसके सिर पर बाल न हों। कचः (पु०) केतु का नाम । कनिष्ठ (वि० ) १ जो छोटा न हो । २ श्रेष्टतर | अकनिष्ठः (पु० ) गौतमबुद्ध का नाम । कन्या (स्त्री० ) जिसका छारपन उतर चुका हो । प्रकर (वि० ) १ लुंजा | जिसके हाथ न हो | २ कर्मण्य | जो कुछ न करे । ३ वह माल जिस पर चुंगी न लगे या वह व्यक्ति जिस पर करन हो । व्यकरण ( न० ) कुछ न करना। क्रिया का अभाव : करणः (स्त्री० ) असफलता। नैराश्य | अपूर्णता । २ इसका प्रयोग प्रायः किसी को शाप देने या किसी की अमङ्गल कामना करने में होता है। कर्ण (वि० ) १ करहित। जिसके कान न हो । प्रकाम (वि० ) १ विना कामना का कामनारहित । २ इच्छाशुभ्य३ निस्पृह ४ विना चाह अर्थात् प्रीति का २ अवोध ६ अतर्कित | थकामतः ( क्रि० वि० ) १ विना प्रयोजन के व्यर्थ । २ खेद्र के सहित विवश होकर अज्ञानता के कारण से। i २ बहरा। ः (पु० ) सर्प । अकर्तन (वि० ) बौना । खर्वांकार । अकर्मन् (वि० ) १ सुत । २ जिसके पास करने को कुछ काम न हो अथवा जो कुछ भी काम न करता हो । ३ अयोग्य ४ पतित दुष्ट ५ व्याकरण में अकर्मक किया के अर्थ में (न० ) ( मं) १ कार्याभाव | २ अनुचित कार्य बुरा कर्म पाप अन्वित ( वि० ) १ वेकाम। खाली । निठल्लू । २ अपराधी कृत (वि०) १ किया से रहित २ अनुचित काम करने वाला - -भोगः श्राप उत्पन्न | अकारणम् ( क्रि० वि०) विना कारण के। व्यर्थ । अकार्य (वि० ) अनुचित कारिन (वि० ) पापी बुरा काम करने वाला २ कर्तव्य- पराड मुख । ( पु० ) कर्मफल से मुक्त होने की स्वतंत्रता का | प्रकार्यम् ( न० ) १ अनुचित या बुरा कर्म । २ जुर्म | सुखानुभव अकर्मक (वि०) क्रियाविशेष। (स्त्री० ) कर्मिका । अकर्मराय (वि० ) १ धनुचित न करने योग्य । २ सुस्त, निकम्मा | अकल (वि० ) १ जो भागों में विभक्त न हो। २ परब्रह्म की उपाधि विशेष | अकाय (वि०) विना शरीर का पाचभौतिक शरीर से रहित । ( पु० ) १ राहु का नाम १२ परमात्मा की एक उपाधि | व्यकरण ( वि० ) विना कारण हेतुरहित । २ स्वेच्छाप्रसूत । अयवसम्भूत । स्वतःप्रवृत्त । अपने अपराध | व्यकाल (वि० ) १ - अनुपयुक्त समय अनवसर । कुसमय ठीक समय से पीछे या पहिले । २ कथा |~-कुसुमं, पुष्पं ( न० ) कुसमय का फूला हुआ फूल-कूष्माड: ( पु० ) कुसमय में फला हुआ कुम्हा-जा उत्पन्न, जात (बि० ) कुलमय में उत्पन्न कच्चा-जलदादयः, मेघो- दयः १ कुसमय आकाश में बादलों का उमड़ना । २ पाला या कुहरा। मृत्यु (पु० ) बेसमय की मौत। असामयिक मृत्यु | अनायास मृत्यु | थोड़ी अवस्था में माना । चेला (स्त्री०) कुसमय /- सह ( वि० ) जो विलम्ब को अथवा समय का नाश न सह सके बेसन 1 I कल्क (वि० ) : विशुद्ध | पवित्र २ पापशून्य अकल्का ( स्त्री० ) चन्द्रमा की चाँदनी । अकल्प (वि० ) अनियंत्रित। असंगत २ निर्बल | अयोग्य ३ तुलनाशून्य जिसकी तुलना न हो सके। प्रकल्प (वि० ) अस्वस्थ्य भला चंगा नहीं। अकस्मात् (अव्यय०) संयोगवश । सहसा आकस्मिक अकस्मात्या हुआ। तत् बैठे बिठाए | दैवयोग से हटात् आप से चाप। चकारण। अकांड, अकाण्ड ( वि० ) । १ सहसा | इत्ति- फ़ाकिया। श्रोचक २ जिसमें इंडल या डाली न हो।-जात ( वि० ) सहसा उत्पन्न हुआ अथवा व्यकिंचिज्ज्ञ, अकिञ्चिज्ज ( वि० ) कुछ भी न जानते उत्पन्न किया हुआ-पातजात ( वि० ) जन्मते हुए। निपट अज्ञान। निपट अबोध ही मर जाने वाला।--धूलं ( म० ) बायुगोले | किञ्चित्कर (वि० ) का सहसा उठने वाला दर्द। १ असमर्थ। जिसका किया कुछ भी न हो सके। अशक्त २ प्रकुंठ, अकुराठ (वि० ) जो कुण्ठित मा गोंडक्ष अकाँडे, कागडे ( क्रि० वि०) अचिन्तित सहसा अकिंचन, अकिञ्चन ( वि० ) जिसके पास कुछ न हो। निपट निर्धन। कंगाल | दरिद्र दीन शरीब। मुहताज । " 1 ( ४ ) प्रकुत ५ अत्यधिक । अतः ( क्रि० वि० ) यह न हो । तीषण | चोख । २ सीब । खरा। तेज़ । ३ विना रोकाटोका हुआ । ४ निर्दिष्ट | अकेला कहीं नहीं प्रयुक्त होता। इसका अर्थ है जो कहीं से न हो। कुतोभय ( वि० ) सुरक्षित | जिसे किसी का भय न हो । अकुप्यं ( न० ) १ सुवर्ण । २ चाँदी | ३ कम कीमती धातु नहीं। अकुशल ( वि० ) १ जो निपुण न हो । अनाड़ी । २ अशुभ | अभागा । अकुशलं (न०) विपत्ति अपार ( पु० ) बुराई । अहित । समुद्र । २ सूर्य १३ बड़ा कछुआ। वह विशाल कछुआ जिसकी पीठ पर पृथिवी टिकी हुई मानी जाती है। ४ पत्थर | चट्टान । अ (वि० ) कपटशून्य । शठता रहित । चातुर्य- विहीन । छलविवर्जित । अकृच्छ्र (वि०) सरल | सहज । –म् (न०) सरलता । आसानी । अक्ष प्रकृष्ट (वि० ) अनजुती हुई। जो न जोती गयी हो -पथ्य, रोहिनू ( न० ) जो अनजुती ज़मीन में उत्पन्न हुआ हो। कृष्णकर्मन (वि० ) निर्दोष । निर्मल | (पु० ) सुपाड़ी का वृक्ष । कोविद ( वि० ) मूद्र । अपण्डित । मूर्ख । का (स्त्री० ) माता । व्यक्त ( वि० ) १ जोड़ा हुआ | २ गया हुआ ३ बाहर रुफ फैला हुआ । ४ तैलादि की मालिश किया हुआ अत (स्त्री० ) रात्रि । [ ( न० ) वर्म | कवच | जिरहबगतर | (०) अंडबंड | क्रमः (पु० ) गड़बड़ी । अनियमितता | व्यक्रिय (वि० ) सुख | क्रियाशून्य । अयि (स्त्री० ) क्रियाशून्यता | सुस्ती । कर्त्तव्यपालन में सावधानी । प्रकृत (वि० ) १ जो न किया गया हो । जो ठीक ठीक न किया गया हो। जिसके करने में भूल की गयी हो । २ अपूर्ण अधूरा। जो तैयार न हो । ३ जो रचा न गया हो । ४ जिसने कोई काम न किया हो। ५ अपक्क| कच्चा । जो पका न हो।-ता (स्त्री०) बेटी होने पर भी | जो बेटी न मानी जाय और जो पुत्रों के समकक्ष मानी जाय । -तं ( न० ) १ किसी कार्य को न करना । २ पूर्ण कर्म । अर्थ ( वि० ) असफल । अनुत्तीर्णं ।—स्त्र ( वि० ) जिसको हथियार चलाने का अभ्यास न हो । - श्रात्मन् (वि०) अज्ञानी अबोध । मूर्ख । परब्रह्म या परमात्मा से भिन्न | उद्वाह (वि० ) अवि- वाहित । —ज्ञ (वि० ) १ जो कृतज्ञ न हो । जो किये हुए उपकार को न माने । कृतघ्न | नाशुकरा | २ अधम । नीच। -धी, बुद्धि ( वि० ) अज्ञ। श्रबोध। मूर्खं । प्रकृतिन् (वि०) कुसित । अकुशल । असुविधाजनक । अक्रूर (वि० ) जो क्रूर या कठोर न हो। जो संगदिल न हो। अक्रूरः ( पु० ) एक यादव का नाम, जो कृष्ण के चचा और हितैषी थे। क्रोध (वि०) क्रोधशून्य | शान्त । धः (पु० ) शान्त | क्रोधराहित्य | व्यक्किा (स्त्री० ) नील का पौधा अष्ट (वि०) १ कटरहित । विना क्लेश का | २ सुगम सहज | आसान। यत् (धा० परस्मै० ) [ क्षति, अघणोति, अक्षित ] १ पहुँचना । २ व्यास होना । ३ घुसना ४ एकत्र करना जमा करना । ः (पु० ) धुरी। किसी गोल वस्तु के बीचों बीच पिरोयी हुई वह लोहे की छड़ या लकड़ी जिस पर वह गोल वस्तु घूमती है। २ गाड़ी | छकडा | ३ पहिया ४ तराजू की डांड़ी। 4 एक कल्पित स्थिर रेखा जो पृथिवी के भीतरी केन्द्र से होती हुई उसके आर पार दोनों ध्रुव पर निकली है और पर पृथिवी घूमती हुई मानी जाती है । ६ चौंसर का पाँसा | चौंसर । ७ रुखाय । ८ तौल विशेष जो १६ माशे की होती है और जिसे कर्प भी कहते हैं । ६ बहेड़ा। १० सर्प ध्यक्ष ११ गरुड़ | १२ आत्मा व्यवहार। मामला । १५ १३ ज्ञान १४ मुकदमा । जन्मान्ध | ३ (स्त्री० ) १ इन्द्रिय | २ तृतिया | ३ सोहागा। अक्ष + अग्रकोलः अतलकः (पु०) गाड़ी के पहिये में जो कील लगायी जाती है, वह अ + धावपनम् (न० ) चौसर की छाँत या बोर्ड । ध्यक्ष + ध्यावापः (पु० ) ज्वारी । + कर्णः (पु० ) समकोण त्रिभुज के सामने | की बाहु | अकुशल अ} (बि०) जुआ खेलने में प्रवीण। अक्षकूट: (पु० ) आँख की पुतली | अक्षकोविद ३ (वि०) पाँसे या चौसर के खेल में ) निपुण या उसका ज्ञाता | अक्षज्ञ अग्लहः (पु० ) जथा। पाँसे का खेल। अक्षजं ( न० ) 3 ज्ञान | अवगति । २ वज्र | ३ हीरा । अक्षजः (पु० ) विष्णु का नाम विशेष | अक्षतत्वं (न०) अक्षविद्या (बी०) । (जुआ खेलने की कला या विद्या । अक्षदर्शकः }२ एका व्यक ( ( पु० ) : जुए का निर्णायक । अदृश् देविन ( पु० ) ज्वारी द्यूतं ( न० ) जुआ | चौसर। पाँसे का खेल। अधूर्तः (पु० ) ज्वारी । अधूर्तिलः (पु० ) गाड़ी के जुर्थों में जुता हुआ सांड़ या बैल ( न० ) १ न्यायालय | २ वह स्थान या कमरा, जहाँ श्रदालती काग़जात रखे जाते हों। (०) अखाड़ा । पटक (०) आईन के ज्ञान में निपुण । जज । न्यायाधीश | अक्षभागः अक्षांशः अक्षपातः (पु० ) पाँसे का फिकाव । अक्षपाद (पु० ) सोलह पदार्थ वादी न्यायशास्त्र के रचयिता गौतम ऋषि अथवा न्यायवादी । (पु० ) ये रेखाएं जो किसी मानचित्र - में उत्तर से दक्षिण की ओर खिंची हों, उन रेखाओं का कुछ बैँश अक्षभारः (पु० ) गाड़ी भर बोझा । अक्षय्य अक्षमाला ( स्त्री० ) ( रुद्राफ की माला । अक्षसूत्रं ( न० ) अक्षराजः (पु० ) वह जिसे जुआ खेलने का व्यसन हो अथवा पाँसों में प्रधान अक्षवाट: ( पु० ) वह घर जिसमें जुआ होता हो । जुभाइखाना | ध्यक्षहृदयं (न० ) जुआ के खेल में पूर्ण निपुणता । अक्षवतो (स्त्री० ) चौसर का खेल | अक्षणिक ( वि० ) डढ़ | मजबूत । जो क्षणिक या स्थायी न हो । प्रक्षत (वि० ) १ जो चोटिल न हो । २ जो टूटा न हो। ३ सम्पूर्ण | ४ अविभक्त । जो विभाजित न हो। अक्षतः ( पु० ) १ शिव । २ कूटे हुए या पछोरे हुए चावल, जो धूप में सुखाये गये हों। ( बहु- वचन में ) सम्पूर्ण अनाज | २ चावल जो जल से धोये हुए हों और पूजन में किसी देवता पर चढ़ाने को रखे जाँय । ३ यव । अक्षतं ( न० ) अनाज किसी भी प्रकार का २ हिजड़ा । नपुंसक । ( यह पुल्लिङ्ग भी हैं ) । श्रतयोनिः (स्त्री०) कन्या जिसका पुरुष से संसर्ग न हुआ हो। वह कन्या जिसका विवाह तो हो गया हो, परन्तु पुरुष के साथ संसर्ग न हुआ हो। अक्षता (पु० ) १ वारी । २ धर्मशास्त्रानुसार वह पुनर्भं स्त्री जिसने पुनर्विवाह तक पुरुष से संसर्ग न किया हो । ३ काँकड़ासिंगी । अक्षम (वि० ) १ असमर्थ । अयोग्य | लाचार । अशक्त असहिष्णु। ३ समारहित ४ अधीर । अक्षमा ( स्त्री० ) १ ईर्ष्या | २ अधैर्य | ३ क्रोध | रोप । अविनाशी । कभी जो न अक्षय (वि० ) जिसका नाश न हो। अनश्वर सदा बना रहने वाला चुके । २ कल्पान्तस्थायी । कल्प से अन्त तक रहने वाला तृतीया ( स्त्री० ) १ वैशाख शुक्ला ३ | आखातीज । २ सतयुग का आरम्भ दिवस | अक्षय्य (वि०) कभी न चुकने वाला। अविनाशी । सदा बना रहने वाला। > अखण्डित अतिगत (वि० ) १ दृष्टिगोचर | २ उपस्थित | वर्तमान | आँख में पड़ी हुई ( किरकिरी ) । का उदमा । ३ घृणित यथा—“अचिगतो- हमस्ख हास्यो जातः । दशकुमारच० 39 ध्वनि को सूचित करने वाले सङ्केत २ लिखत | टीप | दस्तावेज | ३ अविनाशी | श्रक्षिपूक्ष्मन् ( ( न० ) बन्हीं। पलकों के किनारों के आत्मा अझ जल। २ आकाश । ६ अतिलोमन ऊपर के वाल। 1 इसी किली का रोग विशेष । विशेष | ( न० ) समुद्री परमानन्द । मोक्ष | —अर्थ शब्दार्थ | चयक्षिपटलम् (न०) (१) आँख के कोए पर की किल्ली । ( बुं ) चुः चणः (नः ) ( यु० ) लेखक | नकलनवीस । प्रतिलिपि करने वाला यही अर्थ अत्तरजीवी अथवा अक्षरजीवकः अथवा प्रक्षर जीविकः का भी है। चन्बु (पु०) लेखक । क्लार्कच्युतकं (न० ) किसी अक्षर के जोड़ देने से किसी शब्द का भिन्न अर्थं करता। वॅदसू (२०) वृत्तं (न०) किसी पद्य का एक पाद-जननी-तूलिका (स्त्री०) नरकुल या सेंटे की कलम ।-न्यासः (वि० ) १ लेख । २ अकारादि वर्ण । ग्रन्थ ४ तंत्र की एक क्रिया जिसमें मंत्र के एक एक अक्षर पढ़ कर हृदय, अँगुलिया, कण्ठ धादि अंगस्पर्श किये जाते हैं। -भूमिका (श्री०) पट्टी या काठ का तस्ता जिस पर लिखा जाय । यक्षिविकूणितं ) (२०) तिरछी नज़र | कनखियों की अतिविकूशितं देखन। प्रतिवः | ( पु० ) पौधा अतीवः | लवण | अक्षुण्ण ( वि० ) 2 २ अनाड़ी अभग्न | अनटूटा समूचा अकुशल ३ जो परास्त न हुआ - हो जो जीता न गया हो। सफलमनोरथ यथा "अनुगणोनुनयः” ( वेणीसंहार ) ४ जो कुचला या फूटा या पीटा गया हो। ५ असाधा- रण। गैरमामूली । मुखः (०) विद्वान् । शास्त्री। वर्जित अपढ़ मूर्ख- शिक्षा (स्त्री० ) तांत्रिक प्रत्तर शिक्षाविशेष | --संस्थान (न० ) 1 लेख । २ वर्णमाला | अक्षरकं (न० ) एक स्वर। एक अक्षर अक्षरशः ( क्रि० वि०) अञ्चर | अञ्चर | शब्द व शब्द | २~~ बिल्कुल सम्पूर्णतया । अक्षर ( ( 1 अक्षर ( वि० ) १अच्युत स्थिर | नित्य | अवि- नाशी । - १ शिव । २ विष्णु -रं अकारादिवर्ण | मनुष्य के मुख से निकली हुई अक्षांतिः अक्षान्तिः प्रक्षेत्र (वि० ) विना खेत वाला बिना जोता बोगा हुआ। - वाद (वि० ) जिसको आध्यात्मिक ज्ञान न हो । विद्यार्थी | २ | अक्षेत्र ( म० ) पुरा या खराब खेत । (आ०) कुशिष्य अयोग्य पात्र । 1 अो (पु० ) अखरोट । } (स्त्री०) असहिष्णुता । ईर्ष्या • दाह । अक्षर (वि०) जिसमें बनावटी निमकीनपन न हो। अक्षारः ( पु० ) असली निमक। प्रति ( न० ) [ अतिणी, अक्षोणि, अदणा, यणः ] १ नेत्र | २ दो की संख्या | प्रतिकम्पः (पु० ) आँख भएकता। अति: ( 50 ) अक्षिटकः (पु०) आँख की पुतली अतिगालः पु०) अतितारा (बी०). } अक्षोभ्य (वि० ) जिस में होम न हो। अनुहोगी। शान्त हड़ धीर स्थिर | अक्षौहिणी (स्त्री० ) पूरी चतरंगिनी सेना सेना का एक परिमाण सेना की संख्या विशेष एक 1 चीहिणी में १०६३५० पैदल सिपाही, ६५६१० घोड़े, २१८७० रथ और २१८७० हाथी होते हैं। अखंड रे (वि०) अभन्न जो टूटा न हो। सम्पूर्ण अखण्ड समूचा अटूट। अविवि लगातार । अखंडनम् । (न०) जिसको कोई काट न सके । अखण्डनम् | जिसका खनन हो सके। अखंडनः अखण्डनः ( पु० ) काळ समय । वत अखंडित ३ (वि० ) जिसके टुकड़े न हुए हों। अखण्डित विभागरहित अविदित मृतु प्रर्व ( पु० ) यह फसल जिस में मामूली फल पुष्प उत्पन्न हों। सफल फलवान् । अखर्च (वि० ) जो बोना न हो, जो छोटा न हो। बड़ा। “असर्वेण गवें विराजमानः" । -दश | कुमार | (वि० ) बिना खोदा हुआ बिना गाड़ा बिना दफनाया हुआ | खातं (०) (जलाशय या भील या खाड़ी । २ (पु०) ११ बिना खोदा हुआ या स्वाभाविक हुआ अखातः , किसी मन्दिर के सामने की पुष्करिणी । अखिल ( वि० ) सम्पूर्ण समग्र समूचा सव अखिलेन ( क्रि० वि० ) १ सम्पूर्णतः । पूर्ण रूप से । २ गैरआबाद। गैर जोता हुआ। अटक (पु०) साधारणतः वृक्ष २ कुता जिसको शिकार खेलना सिखलाया गया हो। प्रख्यातिः ( स्त्री० ) बदनामी | अपकीर्ति निन्दा ( वि० ) निन्य । बदनाम । प्र] ( धा० परस्मै० ) [ अगति, आगीत, अगिष्यति | अगित ] टेदामेंदा, सर्प की तरह चलना। लहरियाद्वार गति । २ चलना | जाना । अग ( वि० ) १ चलने में असमर्थ २ जिसके पास कोई न पहुँच सके आत्मजा ( स्त्री० ) पर्वत की कन्या | पार्वती देवी । श्रोस् (पु० ) 3 पर्वत पर बसने वाला। २ ( वृक्षवासी ) पत्ती | ३ शरभ जन्तु जिसके आठ टोंगे बतलायी जाती हैं। ४ शेर सिंह | ( वि० ) पहाड़ों में होकर घूमने फिरने वाला। जंगली :-जं (न०) शिलाजीत शैलज तेल । अगः (०) १ वृक्ष । २ पहाड़ | ३ सर्प | ४ सूर्य २७ की संख्या । अगच्छ ( वि० ) अचल । जो चल न सके। अगच्छ: ( पु० ) वृष्ठ | पेड़ | अगतिः ( स्त्री० ) १ उपाय रहित बिना उपाय का । २ अनवबोध | (वि० ) 'जिसकी कहीं गति न हो' । | जिसका कहीं ठिकाना न हो। अशरण। अनाथ निराश्रित निरावलम्ब | 1 रोगरहित । स्वस्थ | अगतिक अगतीक अगद (वि० ) नीरोग 1 अगुरु अगदः (४०) यौषध दवा २ स्वास्थ्य | ३ विष नाश करने का विज्ञान | } अगद, ( पु० ) चिकित्सक वैय अगदंकारः अगदङ्कारः ) रोग दूर करने वाला। अगदतन्त्रम् (न० ) आयुर्वेद का एक अंग विशेष इसमें सांप बिच्छू आदि के विष उतारने की दवाइयाँ लिखी हैं। ध्यगम देखो, घग अगम्य (वि०) १ गमन के अयोग्य । जहाँ कोई न पहुँच सके। २ अज्ञेय जानने १ अयोग्य ३ विकट | कठिन ४ अपार बहुत अत्यन्त २ प्रधाह, बहुत गहरा अगम्या (स्त्री० ) न गमन करने योग्य मैथुन करने के प्रयोग्य स्त्री। एक अस्पृश्य नीच जाति -गमनं ( न० ) न गमन करने योग्य स्त्री के साथ गमन करना ।गामिन् । (वि०) मैथुन न करने योग्य स्त्री के साथ गमन किये हुए। अगरु (न० ) ऊद | अगर लकड़ी। अगस्तिः २ (पु० ) : कुम्भव । एक ऋषि का नाम । अगस्त्यः २ एक का नाम | ३ एक वृक्ष का नाम। -कूट (पु० ) दक्षिण भारत के मंदरास प्रान्त के एक पर्वत का नाम, जिससे ताम्रपर्णी नदी निकलती है। - अगाध ( वि० ) 1 अथाह । बहुत गहरा । अतल- अपार बहुत अधिक I स्पर्शी | २ असीम | ३ बोधगम्य । दुवेध | अगावः ( 30 ) छेद गड्ढा दरार | अगाधं (न०) | भगायजतः ( पु० ) हद | तालाब । ( वि० ) अथाह जल वाला। अगारं ( न० ) घर मकान । अगिरः (पु० ) स्वर्ग। आकाश। प्रोकस (वि०) स्वर्ग में यावास करने वाला (देवताओं की तरह)। अगुण ( वि० ) 1 निर्गुण २ जिसमें कोई सद्गुण न हो। निकम्मा । अगुणः (पु० ) अपराध अगुरु ( ( वि० ) हल्का (छन्दः शास्त्र में ) छोटा कोई गुरु न हो। ( न० सुगन्धित काह विशेष | खराबी। बुराई। जो भारी न हो। २ ३ निगुरा। जिसका और पु० में भी ) अगर गृह गृह (पु० ) बिना घर वाला। ( नट, जनजारा ) यती । + गोचर (वि०) इन्द्रियों के प्रत्यक्ष का अविषय । जिसका अनुभव इन्द्रियों को न हो। अप्रत्यक्ष अप्रकट । (5) गोचरम् (२०) | नायी ( स० ) १ अग्निदेव की स्त्री स्वाहा। २ त्रेतायुग। " तेज "

  • पिस "

- रन्ति (पु०) आग | हवन की याग। यह तीन प्रकार की मानी गई है। यथाः-गार्हपत्य, शाहवनीय और दक्षिण| उदर के भीतर जो शक्ति खाद्य पदार्थों को पचाती है, उसको भी अग्नि कहते हैं और उसका नामविशेष है "जठराग्मि" था “वैधानर" ३ पाँच तत्वों में से एक, जिसे कहते हैं। ४ कफ, बात, पित्त में को अग्नि माना है। १ सुवर्ण । ६ तीन की संख्या ७ वैदिक तीन प्रधान देवताओं में (श्रग्नि, वायु और सूर्य) एक अनि भी है। म चित्रक। चीता। (औषध विशेष ) | ३ भिलावा । [१०] नीबू । (था) गारं- ( था ) गारा --आालयः, (पु०) गृह ( न० ) अग्नि देव का मन्दिर । -अस्त्रं ( = अभ्यास्त्र ) ( न० ) वह अस्त्र विशेष जो मंत्र द्वारा चलाये जाने पर आग की वर्षा करता है।-याणः (पु०) यह भी "अग्न्यास" ही का अर्थ वाची शब्द है- धनं (अभ्याधान ) ( न० ) १ अग्नि की यथाविधि स्थापना | २ अग्निहोत्र-आहितः, -(अभ्याहितः ) ( पु० ) जो अपने घर में सदा विधान पूर्वक अग्नि को रखता है।-उत्पातः ( पु० ) अग्नि सम्बन्धी उपद्रव विशेष अथवा अग्नि द्वारा सूचित अशुभ चिन्ह विशेष उल्का- पांत आदि उपस्थानं ( न० ) १ थग्नि का पूजन या चाराधन २ वे मंत्र विशेष जिनसे अग्नि का पूजन किया जाता है। कणः स्तोकः ( पु० ) अँगारी। शोना। बैंगारा ।-कार्य- कर्मन् ( न० ) अग्नि का पूजन काष्टं (न०) अगर का वृक्ष । – कुकुटः (पु० ) जलता हुआ पगाल का पूला लूक लुकारी। -कुराडं (न०) ( अग्नि एक विशेष प्रकार का गढ़ा जिसमें अग्नि प्रज्वलित करके हवन किया जाता है। यह कुण्ड धातु के भी बनाये जाते हैं। कुमार तनयः सुतः (पु०) १ कार्तिकेय पदानन | २ आयुर्वेद के मता- नुसार एक रस विशेष । कुलं (न०) क्षत्रियों का एक वंश विशेष /-केतुः ( पु० ) १ धूम | पुथा । २ शिव का नाम । ३ रावण की सेना का } । चयः एक राक्षस)Srkris (सम्भाषणम्)कोणणः (५०) दिळू पूर्व और दक्षिण का कोना जिसके देवता अग्नि हैं।-क्रिया (सी०) १ शव का अग्निदाह । मुर्दा जलाना | २ दागना । -क्रीड़ा ( श्री० ) १ आतिशवाजी | २ रोशनी दीपमालिका |--गर्भ (वि०) जिसके भीतर आग हो।-गर्भः (पु०) सूर्यकान्तमणि। सूर्यमुखी शीशा । गर्भ (स्त्री० ) १ शमीवृक्ष । २ पृथिवी का नाम । चित् (पु० ) अग्निहोत्री । ( पु० ) वयनं (न० ) -चित्या (सी०) देखो अग्न्याधान। -ज (वि०) अग्नि से उत्पन्न 1-अः -ज्ञातः (५०) १ कार्तिकेय । षडानन । २ विष्णु । -जं जातं (न०) सुवर्ण/जिह्वा (सी०) आग की लौ। (न०) अग्नि की सात जिह्वा मानी गयी हैं। उन सातों के भिन्न भिन्न नाम है । ( यथा कराली, धूमिनी, श्वेता, लोहिता, नील- लोहिता, सुवर्ण पारागा। ) तपसू (वि० ) उत्पन होता हुआ चमकता हुआ या जलता हुआ।--त्र्यं (न०) चेता (सी०) तीन प्रकार की भाग जिनका वर्णन अग्नि के अर्थ के अन्तर्गत किया जा चुका है। द (वि० ) ताकत बढ़ाने वाला। जठराझि को प्रदीप्त करने वाला।- दातृ ( पु० ) अन्तिम संस्कार अर्थात् दाइकर्म करने वाला (दीपन (वि०) जठराग्नि प्रदीप्तकारी । - दीतिः- वृद्धि : (स्त्री) बढ़ी हुई पाचन शक्ति | - भू-देवा (सी०) कृत्तिका नसत्र :- धानं (न०) वह स्थान या पात्र जिसमें पवित्र भाग रखी जाय। अग्निहोत्री का गृह वारं ( न०) अभि को घर में सदा रखना। -परि किया,-परिष्किया (सी०) अभि का पूजन। -- परिच्छेदः (पु०) हवन के ध्रुवा आज्यस्थती आदि पात्र । - परीक्षा (स्त्री०) जलती हुई आग द्वारा अनि परीक्षा या जाँच जैसी कि जानकी जी की लंका में हुई थी। पर्वतः (g०) ज्वालामुखी पहाद। -पुराणं ( न० ) १८ पुराणों में से एक। इसको सर्वप्रथम अग्निदेव ने वशिष्ठ जी को श्रवण कराया था; अतः वक्ता के नाम पर इसका नाम अग्नि- पुराग्य पदा-प्रतिष्ठा ( स्त्री० ) अग्नि को विधानपूर्वक वेदी पर या कुण्ड में स्थापना; विशेषकर विवाह के समय 1- श्वेशः ( पु० ) - प्रवेशनं ( न० ) किसी पत्रिता का अपने पति के साथ चिता में बैठ कर सती होना - प्रस्तरः ( पु० ) चकमक पत्थर, जिसको टकराने से श्राग उत्पन्न होती है। बाहुः (पु० ) धूम | ( धुआँ ) भं (ज०) १ कृत्तिका नक्षत्र का नाम । २ सुवर्ण 1-भु (न०) १ जल १२ सुवर्ण । -भूः ( पु० ) अग्नि से उत्पन्न | कार्त्तिकेय का नाम । ~~-मणिः (पु० ) सूर्यकान्तमणि | चकमक पत्थर ।--- मंथ: (मन्यः) ( 50 ) मंथन ( मन्थनम् ) (न०) रगढ़ से आग उत्पस करना। -मान्यं (न०) कब्ज़ि- यत । कुपच | धनपच । -मुखः (पु०) १ देवता । २ साधारणतया ब्राह्मण | ३ खटमल /- मुखी ( स्त्री० ) रसोईघर । -युग ज्योतिषशास्त्र के पाँच पाँच वर्ष के १२ युगों में से एक युग का नाम । --रक्षणं अग्नि को घर में बनाये रखना बुझने न देना। - रजः (पु.) - रचस् (पु०) १ इन्द्रगोप नामक कीड़ा। वीरवहूदी २ अग्नि को शक्ति | ३ सुवर्ण /-रोहिणी ( स्त्री० ) रोगविशेष । इसमें अग्नि के समान कलकते हुए फफोले पढ़ जाते हैं 1 - लिङ्ग (पु०) कीलकी रंगत और उसके मुकाव को देख शुभाशुभ बतलाने की विद्या विशेष लोकः जिसमें अग्निवास करते हैं। यह लोक मेरुपर्वत के शिखर के नीचे है |~~-लिङ्गः- वंशः ( पु० ) देखो “अग्निकुल" /--वधूः स्वाहा, जो दक्ष की पुत्री और अग्नि की रखी है।-वर्धक (वि०) जठराग्नि को बढ़ाने वाली (दवा :-वर्णः (पु०) इच्वाकुवंशी एक राजा का नाम। यह सुदर्शन का पुत्र और रघु का पौत्र था। --वल्लभः (पु० ) १ साखू का पेड़ १२ साल का गौंद | ३ राल । धूप | अय -विदु -वाहः (१०) १ धूम | पुष । २ बकरा |-- (पु०) अग्निहोत्री । - विद्या (स्त्री०) अग्निहोत्र | अग्नि की उपासना की विधि - विश्वरूप केतुतारों का एक भेद-वेशः आयुर्वेद के एक धाचार्य। -व्रतः (पु०) वेद की एक ऋचा का नाम /- वीर्य (न० ) अग्नि की शक्ति या पराक्रम (२) सुबई 1 - शरणं (न०) - शाला (खी०) ~शालं (न०) वह स्थान या गृह जहाँ पवित्र धग्नि रखी जाय। ~ शिखः (पु०) १ दीपक २ आशिबाण २ कुसुम वा बरें का फूख ४ केसर। --शिखं (न०) : केसर | २ सोना । -~-टुत दुम-ट्रोम ( पु० ) यज्ञविशेष । -संस्कार: (पु०) १ सपाना । २ जलाना । ३ शुद्धि के लिये अझिस्पर्शसंस्कार का विधान ३ मृतक के शव को भस्म करने के लिये चिता पर अनि रखने की क्रिया दाहकर्म ४ आद में पिण्डवेदी पर धाग को चिनगारी फिराने की रीति-सखः, सहायः (पु०) १ पवन । हवा २ जंगली कबूतर ३ धूम धुआ।-सादिक ( वि० ) या ( क्रि० वि० ) अनिदेवता के सामने संपादित । अझि को साक्षी करना।-- सात् ( क्रि० वि० ) भाग में जलाया हुआ। अस्म किया हुआ। सेवन श्राग तापना /- स्तुत् यशीय फर्म का वह भाग जो एक दिन अधिक होता है। स्तोमः (पु०) देखा "अनिष्टोमः" । ष्वान्तः (पु० दिव्य पितर निस्य पितर। पितरों का एक भेद। अशि, विद्युत् श्रादि विद्यज का जानने वाला --होत्रं न० ) एक यज्ञ | सायं प्रातः नियम से किये जाने वाला वैदिक कर्म विशेष । --होत्रिन् (वि० ) करनेवाला । ( पु० ) वह लोक ः (पु० ) ऋविक विशेष | इसका कार्य यज्ञ में अग्नि की रक्षा करना है। अभीषोमीयम् ( न० ) अग्निसोम नामक यज्ञ की हवि यज्ञ विशेष इस यज्ञ के देवता अग्नि और सोम माने गये हैं। अग्र ( वि० ) १ श्रागे का भाग | अगला हिस्सा | सिरा नोंक २ स्मृत्यानुसार भिक्षा का परिमाण, जो मोर के ४८ अंडों या सोलह माशे के बराबर होता है।३ प्रथम श्रेष्ठ २ प्रधान- अनी । सं० श० कौ०- २ घ+ प्रायुस् अग्रिम ( वि० ) १ अगाऊ | पेशगी | २ आगे आनेवाला । सब से आगे का मुख्य । ३ ज्येष्ठ । अग्रिमः ( पु० ) ज्येष्ठ भ्राता | अप्रिय (वि० ) सब से आगे वाला । अप्रियः (पु० ) ज्येष्ठत्राता। अग्रीय ( वि० ) आगे होने वाला। मुख्य अ (स्त्री० ) उँगली । ७ अग्रे ( क्रि० वि० ) १ सामने आगे ( समय और स्थान सम्बन्धी । ) २ उपस्थिति में ३ पीछे से । यथा "एवमग्रे कथयति ।" "एवमग्रेऽपि श्रोतव्यं ।” ( ४ ) सर्वप्रथम ( अन्य की अपेक्षा ) । प्रथम | अगः, अगू: ( पु०) नेता | पेशवा । अदधिषुः, अदधिष: ( पु० ) माह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य जाति का वह मनुष्य जो किसी विवाहिता स्त्री के साथ विवाह करता है। व्यग्रत कः, - अरणीकः ( पु० ) अनोकं, – प्रणीकम् ( न० ) सेना के आगे आगे चलने वाली घुड़सवार सैनिकों की टोली श्रासनं (स) (न०) प्रधान बैठकी। सब से ऊँची बैठकी। करः (50) हाथ का अगला भाग या हाथी की सूंड की नोंक। दहिना हाथ हाथ की उँगुलिया। --गः (१०) १ नेता | २ रहनुमा । मार्ग- दर्शक 1---गण्य ( वि० ) प्रधान | मुखिया | | जिसकी गिनती प्रथम की जाय। बड़ा श्रेष्ठ -ज (वि० ) प्रथमउत्पन्न --जः ( पु० ) बड़ा भाई । २ ब्राह्मण 1-जा ( स्त्री० ) बड़ी बहिन ।—जात, जातक, आति. - जन्मन् ( पु०) : प्रथम जम्मा हुआ। बड़ा भाई | २ ब्राह्मण । -जिह्वा ( स्त्री० ) जीभ की नोंक दानिन् (५०) पतित ब्राह्मण जो मृतक-कर्म में दान लेता है। - दूतः (पु०) आगे जानेवाला दूत । हल्कारा/- तस् ( अव्यया० ) सामने । पहिले - नीः या णीः ( पु० ) अगुआ । श्रेष्ठ प्रधान - पादः ( पु० ) पैर की उँगुलि 1- पाणि: ( पु० ) दहिना हाथ | - पूजा (स्त्री० ) सर्वोत्कृष्ट सम्मान | -पेयं ( न० ) पान करने में पूर्ववर्तिता। किसी पेय वस्तु को पीने में सर्वप्रथमता या प्रधानत्व - भागः ( पु० ) १ प्रथम या श्रेष्ठ भाग ३२ अवशिष्ट शेष बचा हुआ | ३ नोंक | छोर | -भागिन् ( वि० ) प्रथम पाने वाला। -भूमिः ( स्त्री० ) उद्देश्य | लक्ष्य । --मांस ( न० ) हृदय का माँस । हृविण्ढ । — यायिन् (वि० ) आगे चलने वाला । -योधिन् ( पु० ) मुख्य योद्धा । प्रधान लड़ने वाला।—सन्धानी स्त्री०) अधू यमराज के दफ़्तर का वह खाता जिसमें प्राणियों । ४ अशैाच सूतक । अपवित्रता | ५ मुख्य। दुःख । के पाप पुण्य लिखे जाते हैं । - सन्ध्या (स्त्री०) प्रातः | ग्रघं (न० ) १ पाप । २ दुष्कर्म अपराध । जुर्मं। सन्ध्या /-सर (वि० ) आगे चलने वाला /- ३ व्यसन हः ( पु० ) अविवाहित जिसके स्त्री न हो। - हायन: ( पु० ) हायणः (पु० ) वर्ष के आरम्भ का मास मार्गशीर्ष मास। अगहन का महीना - हारः (पु०) राजा की ब्राह्मणों को दी हुई भूमि । तः ( क्रि० वि० ) सामने । पूर्व । आगे । २ उप- स्थिति में । ३ प्रथम । -सरः ( पु०) नेता । पेशवा । | घः (पु० ) बकासुर और पुतना के भाई एक असुर का नाम यह कंस की सेना का प्रधान सेना- ध्यक्ष था। अघ + अहः (ग्रहन्) (पु०) अशौचदिन । अपवित्र दिन अघ + आयुस् (चि० ) पापमय जीवन वाला । अमेदिधिषूः ( स्त्री० ) "ज्येष्ठायां यद्मनुढायां कण्यायमुझतेऽनुजा | मायादिपिया पूर्वा व दिधिवः स्मृता ॥ " अर्थात् वह स्त्री जिसका स्वयं तो विवाह हो गया हो, किन्तु उसकी बड़ी बहिन अविवाहिता हो । अग्रेपतिः (पु०) ऐसी स्त्री का पति । प्रग्रेवनं, अग्रेवणं ( न० ) वन की सीमा बन का प्रान्त । अग्रेसर (वि०) अग्रगामी पुरोगामी । आगे चलने वाला । प्राय (वि० ) सब से आगे सर्वोत्कृष्ट सर्वोत्तम । सर्वोच्च । सर्वप्रथम अयः ( पु० ) जेष्ठ भ्राता | जेठा भाई । अंधू ( धा० उ० ) भूल करना । पाप करना । अनुचित करना । ( ११ अब + नाश अघ+ नाश, अघ + नाशन ( वि० ) प्रायश्चितात्मक | पाप दूर करने वाला। अधर्म (वि० ) ठंडा | जो गर्म न हो । अघमर्षणम् (न० ) पापनाशक मंत्र विशेष यह मंत्र वैदिक सन्ध्या में पढ़ा जाता है। अघविषः ( पु० ) सर्प । अघशंसः ( 30 ) दुष्ट मनुष्य यथा चोर आदि । अघशंसिन (वि० ) मुखवर दूसरे के पाप कर्म या जुर्म की ( अधिकारीवर्ग को ) सूचना देने वाला । घायुः (पु०) पापपूर्ण। जिसका जीवन पापमय हो । अघोर (वि० ) जो भयानक न हो। –रः ( पु० ) शिव महादेव ।-पथः, -मार्गः ( पु० ) शैव । शिवपंथी ।-प्रमाणं ( न० ) भयङ्कर शपथ या परीक्षा | अधोरा ( स्त्री० ) भावमास के कृष्ण पक्ष की १४शी । इस तिथि को शिव जी की पूजा की जाती है। इसीसे इसका नाम "अघोरा" पड़ा है। अघोः सम्बोधनवाची अव्यय । अघोष (वि० ) प्लुतस्वर ।-पः (पु० ) व्यञ्जन अपरों में से किसी का प्लुत स्वर । यः (go ) प्रजापति । पर्वत । ( वि० ) मारने के अयोग्य | धन्या ( स्त्री०) सौरमेयी । गौ। जो न मारी जाय या जो न मारे । अयम् ( म० ) : सूधने के अयोग्य | २ मदिरा | शराब । अंकः, अङ्क ( पु०म० ) १ गोदी | क्रोड़ | २ चिन्ह | निशान । ३ संख्या | ४ पार्श्व | ओर । तरफ़ | ५ सामीप्य। पहुँच ! ६ नाटक का एक भाग ७ काँटा। काँटेदार श्रौज़ार ८ दस प्रकार के रूपकों में से एक ६ टेढ़ी रेखा । रेखा अवतारः (अङ्कावतारः) (पु०) किसी नाटक के किसी एक अकोलका अंक के अन्त में अगले दूसरे अंक के अभिनय की सूचना या आभास जो पात्रों द्वारा दी जाय।-तंत्रं ( न० ) अङ्कगणित या बीजगणित विद्या |-- धारणं ( न० ) धारणा ( स्त्री० ) १ चिन्हित २ किसी पुरुष को पकड़ कर रखने की रीति परिवर्तः ( 50 ) दूसरी ओर उलटना। करबट । २ किसी को आलिङ्गन करने के लिये करवट बदलना । —पालि:- पाली (स्त्री०) १ आलिङ्गन । २ दायी। धाय ।-पाशः ( पु० ) गणित की विधिविशेष | - भाज् (वि० ) १ गोद में बैठा हुआ अथवा किसी को ( बच्चे की तरह ) कमर पर रखकर ले जाते हुए । २ सहज में प्राप्त समीपवर्ती शीघ्र प्राप्तव्य। -मुखं या - यास्यं ( १० ) किसी नाटक का वह स्थल जिसमें उस नाटक के सब दृश्यों का खुलासा किया गया हो। -विद्या ( स्त्री० ) गणितशास्त्र । अंकनम् अङ्कनम् ( न० ) १ चिन्ह । चिन्हानी | २ चिन्हित करने की क्रिया । अंकुटः, अङ्कुटः अंकुरः, अङ्करः ( पु० ) १ आँखया | नवोद्भिद | गाभ | अँगुसा । २ डाभ करवा । कनखा । ३ नुकीले चौघड़े दाँत : ( आलं- ) ४ प्रशाखा | पल्लव सन्तति । २ जल ६ रक्त | ७ केश | ८ सूजन | गुमड़ा। अंक, अ ( धा० आत्मने० ) टेढ़ामेढ़ा चलना । | अंकुरित अङ्कुरित ( वि० ) अँखुआ निकला [अकयेति-~अङ्कयते, अङ्कयितुं अङ्कित] 1 चिन्हित करना | निशान लगाना | २ गणना करना । हुआ। उगाँ हुआ जमा हुआ | अंकुशः, अश: १ काँटा विशेष, जिससे हाथी जाता ३ कलकित करना | दाग़ी करना | ४ चलना । जाना। सगर्व चलना। है। २ रोक थाम -ग्रहः ( पु० ) महावत । हाथी चलाने वाला । - दुर्धरः ( पु० ) मतवाला हाथी । - धारिन (पु० ) हाथी रखने वाला अथवा जिसके पास हाथी हो । ) अंकतिः, अतिः (पु० ) १ पवन | २ अग्नि | ३ ब्रह्म अग्निहोत्री ब्राह्मण · ३ ( पु० ) चाबी । ताली । अंकृषः, अङ्कषः देखो “अङ्कुश” । अंकोटः, अंकोठः, अंकोलः, श्रङ्कोटः अङ्कोटः अकोलः (पु० ) पिश्ते का पेड़ । प्रकालिका, अङ्गोलिका ( स्त्री० ) आलिङ्गन । अक्य य, अन्य (वि०) दागने योग्य यः (पु०) एक प्रकार का ढोल या मृदङ्ग । ( १२ ) न्, अ ( धा० परस्मै० ) [ ] , १ रेंगनो । घुटनों के बल चलना । २ चिपटना | ३ रोकना | ढक्का देना । - [, [अङ्ग (घा० परस्मै० ) [ अंगति । अङ्गति । आनंग - आनङ्ग | अंगितु - अङ्गतु गि अ]ि १ जाना । टहलना २ चारों ओर घूमना फिरना १३ चिन्हित करना । दागना । ४ गिनना । -- , अङ्ग ( अन्यथा० ) सम्बोधनवाची धन्यय विशेष जिसका अर्थ है-"बहुत अच्छा", "श्रीमन् बहुत ठीक", "अवश्य”, “सस्य है", "अङ्गीकार " किन्तु जब इसके पूर्व "किं" जुड़ता है, सब इसका अर्थ होता है ---"कितना कम" ? या “कितना अधिक" यथाः- "तृपोन कार्य भवतीश्वराणां किनङ्ग वाग्दस्तधता गरेण ।” -पञ्चतंत्र । संस्कृत कोशकारों ने “श्रङ्गः" शब्द के निम्नाङ्कित अर्थ बतलाये हैं- - "सिमे पुनरर्थे च सङ्गभाशयथोस्तथा । हर्षे सम्बोपने चैव यन्दः मयुज्यते ।" अर्थात् शीघ्रता | पुनः । सङ्गम असूया। हर्ष । सम्बोधन के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है। -- (अ) ( म०) १ काय | गात्र | अवयव | २ प्रतीक | ३ उपाय | ४ मन । ५ छः की संख्या का बाचक । -गः (अङ्गः) (पु०) एक देश विशेष तथा वहाँ के निवासियों का नाम यह देश विहार के भागलपुर नगर के आसपास कहीं पर है। इसकी सीमा का परिचय संस्कृतसाहित्य में इस प्रकार दिया हुआ है:--- - वैद्यनार्थं समारम्य भुवनेशा शिवे तावदङ्गाभिषो देशो यात्रायां नदि दुष्पति ॥” अर्थात् वैद्यनाथ देवघर से लेकर उड़ीसास्थित भुवनेश्वर तक का देश अदेश कहलाता है। इस देश में इतने बीच में ज्ञान का निषेध नहीं है अग का जो सम्बन्ध शरीर के साथ होता है, वह अ भाव कहलाता है। गायमुख्य भाव | उपकार्योपकारक भाव । –अधीपः अधीशः (पु०) श्रङ्गदेश का राजा या अधीश्वर । -ग्रह (पु०) अकड़बाई । शरीर की पीड़ा। अंगों का अकड़ जाना। -जे-जात ( वि० ) १ शरीर से उत्पन्न या शरीर पर उत्पन्न | २ सुन्दर । विभूषित –जः, अनुस् ( पु० ) १ पुत्र बेटा २ शरीर के लोम । ( न० ) ३ प्रेम । कामदेव | ४ नशे का व्यसन । नशा । मद्यपान ।५ रोगविशेष | व्याधि | जा (स्त्री०) पुत्री | वेटी 1-जं ( न० ) रक्त । खून । लेहु द्वीपः ( पु० ) छः द्वीपों में से एक व्यासः ( पु० ) उपयुक्त मंत्रोच्चारण पूर्वक हाथ से शरीर के भिन्न भिन्न अङ्गों का स्पर्श - पालिः ( स्त्री० ) आलिङ्गन - पालिका ( देखापाल ) | --- प्रत्यङ्गम् ( न० ) शरीर के छोटे बड़े सब अङ्ग-भूः ( पु० ) १ पुत्र | २ कामदेव । -भङ्गः ( पु०) १ किसी शरीरावयव का नाश | २ लकवा का रोग | ३ ऐवाई – मंत्रः (पु०) मंत्र विशेष | -मईः (५०) शरीर दबानेवाला । २ शरीर दवाने की क्रिया | मर्दिन - भी इसी अर्थ में व्यवहृत होते हैं। - अर्थः (पु०) गठिया रोग । -यज्ञः-यागः (पु०) किसी मुख्य यज्ञ के अन्तर्गत कोई गौण यज्ञीय कर्म विशेष - रक्षकः ( पु०) शरीर की रक्षा करने वाला अँगरेज़ी भाषा में " बाडीगार्ड "अङ्गरक्षक ही का परियाय- चाची शब्द है । -रक्षणी १ अंगरखी | अंगा | २ टरच्छद । ३ कवच | चर्म । - रक्षण (न०) किसी व्यक्ति का रक्षण। --रागः ( पु० ) चन्दन श्रादि लेप । २ उबटन ३ उबटन लगाने की क्रिया । — विकल (वि० ) १ अङ्गभङ्ग | २ लकवा मारा हुआ - विकृतिः ( स्त्री० ) सूरत बदल जाना। सहसा सर्वाङ्गीन पतन। जीवन शक्ति का निमज्जन । अवसाद । - विकारः ( पु० ) शारी- रिक दोष या त्रुटि। -विज़ेपः ( पु० ) शारीरिक अवयव का सकोड़ना फैलाना या उनको हिलाना दुजाना श्रयों का - - वाजी विद्या A अगकम् शुभाशुभ घटनाओं को बतलाने की विद्या । सामु द्विक विद्या | २ व्याकरण शास्त्र, जिससे ज्ञान की वृद्धि हो । बृहद्संहिता का ५१ वाँ अध्याय जिसमें इस विद्या का विस्तार पूर्वक वर्णन है।- वीरः ( पु० ) मुख्य या प्रधान शूर । -वैकृतं ( न० ) १ अङ्गों की चेष्टा से हृदय का भाव बतलाने की किया । २ सिर हिला कर स्वीकृति बतलाने की क्रिया | ३ आँख मारना। शरीर की बदली हुई सूरत :--संस्कारः ( पु० ) - संस्किया ( स्त्री० ) १ङ्गों की शोभा बढ़ाने वाले कर्म- संहतिः ( स्त्री० ) सुन्दर अङ्गसंस्थान या अङ्ग विन्यास । धङ्गसौष्ठव । अङ्गप्रत्यङ्ग की श्रेष्ठता या परस्पर ऐक्य | शरीर | शरीर की दृढ़ता। -सङ्गः ( पु० ) ऐक्य शारीरिक स्पर्श सङ्गम सेवकः ( पु० ) निज नौकर-हारः ( पु० ) नृत्य विशेष धंगों की मटकौल ।-हारिः । १ मटकै २ रंगभूमि | ३ नाचने का कमरा | नाचघर /-हीन ( वि० ) अपूर्णाङ्ग | बुंजा । लंगड़ा | विकलाङ्ग | कम् (न० ) १ शरीर का अवयव । २ अंगकम् शरीर । अंगण अङ्गणम् (न० ) देखा "अनम्" । अंगतिः, अङ्गतिः (पु०) १ सवारी । गाड़ी । बध्धी । अग्नि | ३ ब्रह्म । ४ श्रग्निहोत्री ब्राह्मण । अंगदम् अङ्गदम् (न०) बाहुभूपण जोशन बाजूबंद । दः (०) १ वालि के पुत्र का नाम । २ उर्मिला की कोख से उत्पन्न लक्ष्मण के एक पुत्र का नाम। इनकी राजधानी का नाम अंगढ़िया था । ३ दक्षिण दिशा के दिग्गज का नाम । अंग-अंग अङ्गम् (न० ) १ आँगन । सहन | चौक | २ सवारी | ३ चलना | टहलना । घूमना । अंगना अना (स्त्री० ) अच्छे अंगोवाली स्त्री । .२ सार्वभौम नामक दिग्गज की हथिनी । ३ ( ज्योतिष में) कन्याराशि |-जन ( पु० ) स्त्रीजाति । – प्रिय ( वि० ) स्त्रियों का प्रेमी /- प्रियः (पु०) अशोक अंगस्, अस् (पु० ) पक्षी । अगीकृत अंगार: (पु०) अंगारं ( म० ) अङ्कारः (पु०) अङ्गारं (न०) १ जलता हुआ या ठंडा, कोयला । "उष्णोदविचार श्रोतः कृष्णास्यते करम् ।" -~-हितोपदेश । २ मङ्गल ग्रह । ( न० ) लाल रंग । -धानिका ( स्त्री० ) अंगीठी | बरोसी | - पात्री (स्त्री० ) ) शकटी (स्त्री० ) अंगीठी | बरोसी। वल्लुरी-वल्ली ( स्त्री० ) कितने ही पौधों का नाम है। विशेष कर गुआ या घुचची का । अंगारकः ( पु० ) अंगारकं (न०) अङ्गारकः (पु०) कं ( न० ) : कोयला | २ मङ्गलग्रह । ३ भौमवार | ४ चिनगारी | - मणिः ( पु० ) मूँगा । अंगारी–अङ्गारी ( स्त्री० ) अंगीठी | बरोसी । अंगारक अङ्गारकत ( वि० ) जलाया हुआ। भूना हुआ | तला हुआ । अंगारिका, अङ्गारिका (स्त्री०) १ अँगीठी | बरोसी । २ गन्ने का डंडुल । ३ किंशुक की कली । अंगार ( स्त्री० ) १ छोटी अंगीठी । २ थेल ( लता । अंगारित, अङ्गारित ( वि० ) १ जलाया हुआ । २ भूना हुआ। ३ अधजल । अंगिका, अङ्गिका (स्त्री० ) चोली | अँगिया | अंनिन् (वि० ) १ दैहिक | देहभृत । मूर्तिमान् । शरीरधारी | २ मुख्य | प्रधान । जिसमें उपभाग हो । " एक एव भवेदंगो भृङ्गारो वीर एव था ।" -साहित्यदर्पण | अंगिर, अंगिरस अङ्गिरा, अङ्गिरस (पु० ) १ एक प्रजापति का नाम जिनकी गणना दस प्रजापतियों में है । एक वैदिक ऋषि। ३ बहुवचन में अंगिरा के सन्तान । ३ वृहस्पति का नाम । ४ साठ संवत्सरों में से छठवें का नाम । ५ कतीला ( गोंद बिशेष ) अंगीकारः अङ्गीकारः ( पु० ) - कृतिः ( स्त्री० ) -- करणं ( न० ) १ स्वीकृति | मंजूरी | २ रज़ामंदी । प्रतिज्ञा | अंगोकृत, अङ्गीकृत ( वि० ) स्वीकृत | मंजूर अङ्गीकार किया हुआ | अंगोय अंगोय, अङ्गीय ( दि० ) शरीर सम्बन्धी । अंगुः, अङ्गु (पु० ) हाथ । अगुरिः-अंगुरी, अङ्गुर-अङ्गुरी ( स्त्री० ) उँगुली । अंगुलः, अतः (०) १ उँगली २ अंगुठा ( न० ) अंगुल भैर का नाप, जो आठ यव के वरावर माना जाता है। ( १४ ) १ उंगली } अंगुलि:- अंगुली अंगुरि:-अंगुरी अङ्गुलिः प्रती-अङ्गुर अङ्गुरी जिनके नाम यथाक्रम अंगूठा तर्जनी, मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका हैं । २ हाथी की सूंड की नोंक | ३ नाप विशेष | - तोरणं (न०) माथे पर चंदन का अर्धचन्द्राकार पुण्डू ( तिलक ) । - त्राणं (न० ) दस्ताना जो धनुष चलाने वाले अचतुर (वि०) १ चार संख्या से शून्य २ अनिपुण । उँगुलियों में पहना करते थे । तुद्रा, मुद्रिका | अचंडी, प्रचण्डी (वि० ) सीधी गैौ । शान्त स्त्री । ( स्त्री० ) सील मोहर सहित अंगूठी | मोटनं- स्फोटनं ( न० ) अंगुली चटकाना -संज्ञा ( स्त्री० ) उंगली का इशारा या सङ्केत। - संदेशः उंगलियों के इशारे से मनोगत भावों को प्रदर्शित | करना । - सम्भूतः ( पु० ) नख । अंगुलिका, अङ्गुलिका देखो अंगुलिः । अंज, अंगुरा अंगुजीयं, अंगुरीकं, अंगुरीयकं, अङ्गुली, अङ्गुरी, अङ्गुली, अङ्गकं, यकं (न० ) अंगूठी। इसका प्रयोग पुलिस में भी होता है। यथा । "काकुत्स्यस्यांगुलीयक” भट्टी काव्य | अंगुष्ठः, अष्ठः ( पु० ) [१] [अंगूठा | --मात्र (वि० ) अंगूठे के बराबर ( नाप में ) । प्रचित अच् (धा० उभय० ) [ अचित ते, अंचति, आनंव, अंतित ] १ जाना। २ हिलना डुलना । ३ सम्मान करना | ४ प्रार्थना करना | ५ माँगना । पूँचना | अ ( पु० ) व्याकरण शास्त्र में "अचू" स्वर की व्यापाररहित । अक (वि० ) विना पहिये का मंत्री सेनापति रहित (राजा) । अचक्षुस् ( वि० ) अंधा | नेत्रहीन । ( न० ) बुरी रोगिल नेत्र आँख अंगुष्ठः, अङ्गुष्ठचः (पु०) अंगुठे का नाखून या नख । अंगूषः : ( पु० ) १ न्योला । २ सीर । अंघ, यह (धा० आमने०) [ अंघते अद्भुते, धंघति- श्रद्धति ] चलना। २ आरम्भ करना। शीघ्रताकरना । ४ डाँटना। छपटना। फटकारना। भला बुरा कहना | अंघ (न० ) पाप (हि) पैर । २ पेड़ की जड़ | किसी श्लोक का चौथा चरण चतुर्थपाद --पः (पु०) वृक्ष।-पान (वि०) पैर या पैर की उँगुली (लड़कों की तरह) चूसने वाला । स्कन्धः (पु०) गुल्फ | एवी या एड़ी। प्रचंड, अचण्ड ( वि० ) शान्त । जो क्रोधी स्वभाव का न हो। अनाड़ी अचल (वि०) गमन या शक्ति हीन । स्थावर स्थायी । अचलः (पु०) १ पहाड़ | चट्टान | २ कील | काँटा । ३ सात सूचक संख्या अचला (स्त्री० ) पृथिवी अचलं ( न० ) ब्रह्म । अचल-कन्यका, सुता- दुहिता-तनया । ( स्त्री० ) । हिमालय की पुत्री पार्वती । अचलकीला ( स्त्री० ) पृथिवी अचलज, जात ( वि० ) पर्वत से उत्पन्न | अचलजा-जाता (स्त्री० ) पार्वती का नाम । प्रचलत्विष ( पु० ) कोयल | अचल द्विष ( पु० ) पर्वतशत्रु | इन्द्र का नाम जिन्होंने पर्वतों के पंख काट डाले थे। अचलपतिः- राष्ट्र ( पु० ) हिमालय पर्वत का नाम । पर्वतों का स्वामी । अचापल, लय ( वि० ) चञ्चलतारहित । स्थिर | अचापल्यं ( म० ) स्थिरता । व्यचित् (वि० ) (वैदिक) १ जिसमें समझदारी न हो । २ धर्मविचार शून्य जड़ व्यक्ति ( वि० ) ( वैदिक ) १ हुआ २ अविचारित । ३ एकत्र न किया हुआ | बिखरा हुआ। प्रचित्त अचित्त (वि० ) विचार से परे । जो समझ ही में न आवे अजड अच्छोटनम् ( न० ) शिकार | आखेट | अच्छदम् (न०) निर्मल जल वाला सरोवर । देखो अच् के अन्तर्गत | अचिन्तनीय | (वि०) ६ मन और बुद्धि के परे अबोधगम्य | अज्ञेय । कल्पनातीत २ अकृत । अतुल | ३ आशा से अधिक । अचिन्त्यः ( ० ) ब्रह्म । शिव | अचिंतित, अचिन्तित (वि०) जिसका चिंतन न किया गया हो। विना सोचा विचारा। श्राकस्मिक अच्युत (वि०) जो कभी न गिरे। दृढ़ स्थिर । अवि- चल। (पु०) भगवान् विष्णु का नाम । -अग्रजः (पु०) बलराम या इन्द्र का नाम ।–अंगजः, -- पुत्रः, श्रात्मजः ( पु० ) कामदेव | अनंग | कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र का नाम । श्रावासः, - वासः (५०) अश्वस्थ वृक्ष । वट वृक्ष | अचिर (न०) अल्प । थोड़ा । थोड़ी देर ठहरने या रहने अज् ( धा० परस्मै० ) ( यजति, अजितवीत ) १ धुतिः, वाला। शीघ्र | जल्दी । अंशु, आभा, प्रभा, भासू-रोचिस्- (स्त्री०) चपला, बिजली । अचिरात् (अन्ययात्मक ) तुरन्स, शीघ्रता से [ अचिरेण, अचिर भी इसी अर्थ में प्रयुक्त होते चलना जाना २ हाँकना नेतृत्व करना। ३ फेंकना । लुढ़काना | छिटकाना। ग्रज (वि०) ६ जन्मरहित। अनन्तकाल से वर्तमान -- (पु०) यह ब्रह्मा की उपाधि है। २ विष्णु का शिव का या ब्रह्मा का नाम | ३ जीव | ४ मेदा| बकरा ५ मेषराशि । ६ अन्न विशेष । ७ चन्द्रमा अथवा कामदेव का नाम । अदनी (स्त्री०) एक कटीली वनस्पति । धमासा । - अविकं ( न० ) छोटा पशु । -अश्वं (न०) बकरे । घोड़े। एड़कं (न०) बकरे । मेढ़े। -गरः (पु०) एक बड़ा भारी सर्प । -गरी (स्त्री०) एक पौधे का नाम । -गल 'देखो अजागल'। - जीव:- जीविकः ( पु० ) बकरों की हेड़ (-मारः (पु०) १ कसाई | बूचड़ | २ एक प्रदेश का नाम जो इन दिनों अजमेर के नाम से प्रसिद्ध है। - मोदः ( पु० ) अजमेर का दूसरा नाम । २, युधिष्ठिर की उपाधि । —मोदा - मोदिका (स्त्री०) यह एक अत्यन्त गुणकारी दवाई के पौधे का नाम है । इसेवा भी कहते हैं। -शृङ्गी (स्त्री० ) पौधा विशेष मेदासिंगी । जन (वि०) चलते हुए। हाँकते हुए ।-जः ( पु०) ब्रह्मा अजका, अजिका (स्त्री०) छोटी बकरी । अजकवः ( पु०), अजकवम् (२०) शिव जी के धनुष का नाम । अजकाव: (०), जकायम् (न०) शिवधनुष प्रजगावं- न०) अजगावः (पु०) पिनाक । शिव जी अचित्य, अचिन्त्य अचिंतनीय, ३ अचेतन ( वि० ) १ चेतनारहित | जड़ | २ | संज्ञा- शून्य | मूर्च्छित ३ ज्ञानहीन । अचैतन्यम् (वि० ) चेतनारहित ज्ञानशून्य । जड़ अच्छ (वि०) साफ पवित्र | विशुद्ध |–च्छः (पु०) १ स्फटिक । २ रीछ । भालू |–उदन (अच्छद) साफजल वाला। -दं (न०) कादम्बरी में वर्णित हिमालय पर्वत स्थित एक झील का नाम । -भल्लः ( पु० ) रीछ । भालू । अच्छा (वैदिक ) ( धन्यया० ) श्रोर । तरफ। वाकः ( पु० ) श्रद्धानकर्ता। सोमयज्ञ कराने वालों में से एक धात्विज जो होता का सहवर्ती रहता है। श्रच्छन्दस् १ वह जिसने वेदाध्ययन न किया हो। (यज्ञोपवीत संस्कार होने के पूर्व का बालक) अथवा वेदाध्ययन का अधिकारी | शूद्र | २ जो पद्यमय न हो । च्छिद्र (वि०) भङ्ग । जो टूटा न हो। जो चोटिल न हो। निर्दोष ब्रटिरहित । छ ( न० ) निर्दोष कार्य । निर्दोषता । अन्न (वि ) १ अविरत सतत २ जो खण्डित न हो । ३ अविभक्त । जो पृथक् न किया जा सके। का धनुष | अजड ( वि० ) जो जड़ अर्थात् मूर्ख न हो। श्रजन अजन ( वि० ) निर्जन ( चियावान ) । जहाँ एक भी जन न हो। अजनाभ ( ५० ) भारतवर्ष का प्राचीन नाम | अजनाभ था। अजनिः ( स्त्री० ) राखा। सड़क। अजन्मन् (वि० ) अनुत्पन्न धजन्मा जीव की उपाधि । ( पु० ) अन्तिम परमानन्द मोक्ष | अजन्य (वि० ) उत्पन्न किये जाने के या होने के यो। मनुष्य जाति के प्रतिकूल (~-म् (न०) दैवी उत्पात् । दैवी उपद्रव भूचाल आदि । प्रजपः ( पु० ) १ वह ब्राह्मण जो सन्ध्योपासन यथा- विधि नहीं करता । जप न करने वाला | २ बकरे | पालने वाला। बकरे चराने वाला ३ अस्पष्ट पढ़ने चाला। । गायत्री। जिसका यजपा ( स्त्री० ) देवता विशेष अप श्वास प्रश्वास के साथ स्वयं होता रहता है। श्रजपात् ( पु० ) १ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र २ ग्यारह रूद्रों में से एक का नाम अजमक्ष ( पु० ) बवूर अजंभ, अजम्भ (वि०) कतरहित 1-मः ( 50 ) १ मेंडक | २ सूर्य | बालक की वह अवस्था जब उसके दाँत नहीं रहते। अजय (वि० ) जो जीता या सर न किया जा सके। -यः ( पु० ) हार। शिकस्त ।-या ( स्त्री० ) भोग | अजय्य (वि० ) अजेय जो जीता न जा सके। अजर (वि० ) १ जो बूढ़ा न हो। सदैव युवा | २ अविनाशी । जिसका कभी नाश न हो। रा ( पु० ) देवता-मू (न० ) परवक्ष अजयम् ( न० ) मैत्री | दोस्ती । अज (वि० ) निरन्तर सन्तत सदा त्रिकाल में स्थितशील । अजहत्स्वार्था ( स्त्री० ) उसयाविशेष 1 इसमें लक्षक शब्द, अपने वाच्यार्थ को न छोड़कर कुछ भिन्न - अथवा अतिरिक्त अर्थ प्रकट करता है। इसका उपादानलक्षण भी नाम है। अजिर अजहल्लिङ्गम् (न० ) संशाविशेष जो विशेषण की तरह व्यवहत होने पर भी अपना लिङ्ग न बदले। अजहा (स्त्री० ) कँछ । कपिकच्छुक । शुकशिम्बी नामक औषध | यजा १ सांख्यदर्शनानुसार प्रकृति या माया | २ वकरी । -गलस्तनः ( पु० ) बकरी के गले के थन । इनकी उपमा किसी वस्तु की निरर्थकता सूचित करने में दी जाती है। जीवः, पालक (पु०) जिसकी जीविका बकरे बकरियों से हो यकों की देड़ | - - प्रजाजि:अजाजी (स्त्री०) काला जीरा। सफेद जीरा। अजात (वि० ) अनुत्पन्न | जो अभी तक उत्पन्न न हुआ हो। -अरि, -शत्रु (त्रि०) जिसका कोई शत्रु न हो। ( पु०) १ युधिष्टिर की उपाधि । २ शिवजी तथा अनेकों की उपाधि - ककुत्, द् ( पु० ) छोटी ऊमर का बैल, जिसके कुव्व न निकला हो। बड़ा| व्यञ्जन (वि० ) जिसके स्पष्ट चिन्ह (डाड़ी मं आदि ) पहिचान के लिये न हो। - व्यवहारः ( पु० ) नाबालिग़ | अवयस्क । अजानिः ( पु० ) रहुआ। जिसकी स्त्री न हो। स्त्री रहित । विधुर | अजानिक ( पु० ) बकरों की हेद अज्ञानेय ( वि० ) कुलीन उत्तम या उथ कुल का । निर्भय ( जैसे घोड़ा)। 1 अजित (वि० ) अजेय। जो जीता न जा सके। -तः (पु०) विष्णु, शिव तथा बुध की उपाधि विशेष अजिनम् ( न० ) १ चीता शेर हाथी भात्रि का और विशेष कर काले हिरन का रोंएदार चमहा, जे आसन अथवा तपस्वियों के पहिनने के काम आता था। २ एक प्रकार का चमड़े का थैला या धौंकनी। -पत्रा-त्री-त्रिका (स्त्री०) चिमगादव। चिमगीदह । -योनि: ( पु०) हिरन या बारहसिंहा / वासिन् ( वि० ) मृगचर्मधारी | -सन्धः ( पु० ) लोमनिर्मितवस्त्र व्यवसायी पशमीना या शाल बेचने वाला। 1- प्रजि ( (वि०) १ तेज़ । फुर्तीला । शीघ्र - म् (न०) : यौगन चौक | अखाड़ा २ शरीर | अजि ३ इन्द्रिय कोई पदार्थ ४ पवन | हवा ५ सेंद्रक | प्रजिरा (स्त्री०) १ एक नदी का नाम । २ दुर्गा का | अज्ञेय ( वि० ) जो जाना न जा सके। बोधगम्य | नाम | ज्ञानातीत । अजि (वि०) १ सीधा २ ईमानदार अजिहाः ( पु० ) मेंढ़क अजिहाग ( वि० ) अपनी सीध में जाने वाला। ( पु० ) तीर | बाण | प्रजिहः (पु० ) क अजीक (न० ) शिव जी का अनुप अजीगतः ( पु० ) सर्प २ उपनिषद् तथा पुराणों में वर्णित शुभःशेष के पिता का नाम । अजीर्ण (वि०) न पचा हुआ। अजीर्णम् (न० ) अजी मन्दाशि। बदहजमी । अध्यसन (स्त्री० ) अपच २ वीर्य शक्ति पराक्रम | ओजस्विता । जीर्णता का अभाव | अजीव (दि० ) मृत | मरा हुआ। मृतक जीवः (पु० ) मृत्यु । मौत | यजीवनिः ( स्त्री० ) मृत्यु । ( इसका व्यवहार प्रायः अकोसने में होता है। यथाः- "अजीवनिस्ते शठ भूयात् ।" -सिद्धान्त कौमुदी। A अजेय (वि० ) जो जीता न जा सके। जीतने के अयोग्य कपा (पु० ) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र २ रुद्र विशेष की उपाधि | अञ्जलिः प्रज्ञानम् (न० ) ज्ञान का प्रभाव | जड़ता। सुर्खता । मोह। धजानपन | २ श्रविद्या | अज्ञात (वि० ) अविदित। अनजाना हुआ। अपरि- चित। अप्रकट नमालूम प्रज्ञान ( वि० ) १ ज्ञानशून्य । गँवार । मूर्ख | ~~प्रभवः ( पु० ) अज्ञान से उत्पन्न । - प्रभवी (वि० ) मूर्ख। अविद्वान् । च, (धा० उभय०) [अंचति-ते, पानश, अक्रितुं अच्यात् या अंच्यात्, प्रक्त या अञ्चित ] १ मोड़ना, उमेठना । भुफाना । यथा “शिरोधित्या " ( भडीकान्य ) २ जाना। हिलना तुलना। मिलना। ३ पूजन करना। सम्मान करना। भूषित करना । ४ याचना करना प्रार्थना करना | अभिलाषा अस्पष्ट शब्द कहना | गुनगुनाना ( निज० ) प्रकाशित करना । खोलना | करना। २ भुनभुनाना अंचलः (50) अञ्चलः (पु.) अंचलं (न०) अञ्चलम् (न०) अंत | (वि०) 1 मुड़ा हुआ, कुफा हुआ। २ सम्मा- अञ्चित् । नित। प्रतिष्ठित | ३ सिला हुआ। बुना हुआ | ( किनारा छोर। J अंजनम् । ( न० ) १ फजख | २ अञ्जनम् ३ साअन ४ स्याही | ६ रात्रि । ( पु० ) दिमान विशेष । अंजनकेशी व्यन्जनकेशी अंजना अञ्जना इसे हरविलासिनी कहते हैं। ( स्त्री० ) एक सुगन्धद्रग्ध विशेष, जिसे स्त्रियों बालों में लगाती हैं। सौवीर । अग्नि । का (स्त्री० ) १ (नाटकोक्ति में ) वेश्या | अज्जूका २ बड़ी बहिन जी की माता का नाम । अवलं ( न० ) १ ढाल २ दहकता हुआ अंगारा अंजनाधिका । ( स्त्री० ) काजल से भी बढ़ कर अनाधिका काला एक फीट विशेष । ध्यक्ष (वि० ) जड़ । अनपढ़। अविवेकी मूर्ख || अंजनावती | ( स्त्री० ) सुप्रतीक नामक दिग्गज ज्ञानशून्य अनुभवशून्य । अञ्जनावती काला है। की हथिनी । इसका रंग बहुत अंजनी (स्त्री०) एक वानरी का नाम हनुमान ( स्त्री० ) गन्ध पदार्थों को लेपन करने योग्य स्त्री कटुक वृक्ष कालाअन हुए दोनों हाथ। दोनों कर. या मिलाकर सं० श० कौ०-३ अंजलिः ) ( पु० ) जुड़े अज्ञ्जलिः | हथेलियों को जोड़ J अजलिका अणुक जो बीच में गड्ढा सा बनता है उसे कहते हैं। इस अंजलि में जितना भावे उतना एक नाय। परिमाण विशेष :-कर्मन् (न० ) के लिये बनाया हुआ प्रकार | गुंबज ४ हाट बाज़ार | मंदी| प्रासाद । महल । विशाल भवन । प्रणाम। सम्मानसूचक सुद्रा-कारिका (स्त्री०) अट्टम् (न० ) भोज्य पदार्थ भात ।["अट्टला 35 मिट्टी की गुड़िया --पुटः (पु० ) - पुढं ( ० ) जनपदा महाभारतः )-"अट्ट धनं शूलं विक्रेयं येषां ते" नीलकगड | J दोनों हथेलियों को मिलाने से बना हुआ संपुढ ( स्त्री० ) १ सूपिका | चुहिया छोटा चूहा | २ अर्जुन के एक बाय अंजलिका अञ्जलिका ( १८ ) का नाम । अंजस अंजसी (वि० ) १ जो टेड़ा न हो । अंजीस अंजोसी | सीधा | २ ईमानदार सचा अंजसा | ( क्रि० वि०) १ सिधाई से २ सच्चाई से असा | ३ उचित रीति से ठीक तौर पर ४ शीघ्रता से | तुरन्त ताव से कृत(२०) | विनय से किया हुआ शीघ्रता से किया हुआ | संजिष्ठ:--अजि अशिष्ठ:--अजिष्णु सापड | } (पु० ) सूर्यं । भास्कर । | छाट (वि० ) घूमते हुए। अटनं ( न० ) घूमना | भ्रमण | गमन | अटनिः, अटनी ( स्त्री० ) धनुष का अक्रभाग | अढा (श्री०) भ्रमण करने का अभ्यास (जैसा परिवाजक किया करते हैं ) भ्रमण पर्यटन | अटरष घटरूपः } { पु० ) अडूसा । अरविः, अटी (खी० ) वन जंगल रविकः आठविकः ( पु० ) वनरखा | वन में काम करने वाला। अंजीर: (50) अंजीरं (म० ) ( स्वनामख्यात ग्रुप एवं फल अञ्जीरः (पु०) अखीर (न०) । विशेष | अँजीर । अटू ( धा० प० ) ( कभी कभी आत्मनेपदी भी होती | अणः (g०) ) 9 सुई की नोंक । है ) [ अति, अति ] घूमना फिरना । प्रणी (स्त्री०) ) की चाबी ३ सीमा हड़ का कोना । कः (०) अटा | महल । अट्टहासः ( पु० ) शोर की हँसी । कहकहा। खिल खिलाना | १ कम करना। घटना २ अनादर करना। अट्ट (वि०) १ ऊँचा | रवकारी | २ सतत | ३ शुष्क अहासकः ( पु० ) कुन्द पुष्प | अट्टहासिन् ( पु० ) शिव जी का नाम । श्रद्दाल, अद्दालकः ( पु० ) १ था । कोठा । २ दूसरी मंज़िल | ३ महत्त्व प्रासाद | अट्टालिका ( स्त्री० ) प्रासाद | ऊँचा भवन। कारः ( पु० ) राज | थवई । मैमार । अड् ( घा० पर० ) उद्यम करना। अडूनं ( ५० ) बाल | म् (न० ) अ (पु० ) १ अटा। अदारी । २ पत्र बुर्ज १२ आश्रय आधार आधार व्यय् (धा० पर० ) रव करना। श्वास लेना। अणक, अनक (वि०) बहुत छोटा तुच्छ । तिर- स्करणीय | अभागा । २ पहिये ४ घर अणु ( वि० ) [ श्री० - अग्रवी ] १ लेश । सूक्ष्म | परमाणु सम्बन्धी । अट्ट ( धा० श्रा० ) १ मारना | २ लांघना । (निज०) ः (पु०) नैयायिकों द्वारा स्वीकृत पदार्थ विशेष पदार्थों का मूल कारण २ चोना नाम से प्रसिद्ध श्रीहि विशेष ३ विष्णु का नाम ४ शिव अणिमन् (पु० ) अगुता, (स्त्री०) अन्वं ( न०) १ सूक्ष्मता २ शिवजी को आठ सिद्धियों में से एक श्रम ( स० ) १ छोटापन लघुता | २ अष्ट सिद्धियों में से एक। यसू ( वि० ) १ बहुत थोड़ा | २ बहुत छोटा | लघुत्तर | का नाम । (वि० ) अल्पतर | २ बहुत छोटा बड़ा सूक्ष्म बहुत मिहीन । ३ सीचय । ३ परभा (स्त्री० ) विद्युत् बिजली | अरमा ( स्त्री० ) जिसकी प्रभा स्वल्प और चय स्थायी हो । विद्युत् विजली । अरमात्रिक ( वि० ) १ अति । अत्यन्त छोटा २ जीव की संज्ञा | ः ( 30 ) सरे। धूलकण । वादः ( 50 ) सिद्धान्त विशेष जिससे जीव या खात्मा माना गया है। यह बहुभाचार्य का सिद्धान्त है। २ शास्त्रविशेष जिसमें पदार्थों के अनु नित्य माने गये हैं। वैशेषिकदर्शन | अणिष्ठ (वि० ) सूक्ष्मतर सूक्ष्मतम अति सूक्ष्म अंड: (०) अर्ड (न०) (१ अण्डकोश | २ अंडा अण्ड:- का नाम अ (पु०) १ पक्षी या अँटे से उत्पन्न होने वाले जीव यथा मछली, सर्प, छिपकली धादि । २ ब्रह्मा । } ( स्त्री० ) मुश्क 1 कस्तूरी | अंडजा अडजा अंडधरः अण्डघर: J ( पु० ) शिव ) ( न०) / ३ करतूरी | ४ पेशी | २ शिव | अतपसू-अतपस्क ( वि० ) वह व्यक्ति जो अपना धार्मिक कृत्य नहीं करता या जो अपने धार्मिक कर्तव्यों से विमुख रहता है। श्रुतर्क (बि०) युक्तिशून्य तर्क के नियमों के विरुद्ध | अतर्क (5०) जो तर्क के नियमों से अनभिज्ञ हो । अतर्कित (वि० ) १ आकस्मिक २ वे सोचा समझा। जो विचार में न आया हो। अंडालु } ( १० ) मछली । अगडाळुः अंडीरस डीर ( पु० ) पुरुष | बलवान पुरुष । थत् (धा० पर० ) [अतनि, अत्त-अतित] १ जाना। चलना । भ्रमण करना । सदैव चलना । २ ( वैदिक ) प्राप्त करना ३ बाँधना 1 अतस् मतदई (अव्यया० ) अनुचित रीति से रूप से। प्रतर्कितम् ( क्रि० वि०) आकस्मिक रूप से । अंडाकार- कृति अण्डाकार - कृति } ( वि० ) अंडे की शह का अर्थ ( वि० ) १ जिसके विषय में किसी प्रकार की विवेचना न हो सके । २ अचिन्त्य | ३ अनिर्बंधनीय । प्रतनं ( न० ) जाना । घूमना । अतनः ( पु० ) भ्रमण करने वाला । राइचलतू । अतट (वि०) सीधा अलवाँ खड़ा ढालयौँ । अतः (पु० ) प्रपात । पर्वत का ऊपरी भाग ऊँचा पहाड़। अतथा (धन्यवा० ) ऐसा नहीं | 1 अतद्गुणः ( पु० ) १ अङ्कार विशेष किसी वर्णनीय पदार्थ के गुण ग्रहण करने की सम्भावना रहने पर भी जिसमें गुण ग्रहण नहीं किया जा सकता उसे धदुरा भलकार कहते हैं। २ बहुमीहि समास का एक भेद | अतंत्र (वि० ) [स्त्री०-प्रतंत्री] १ विना डोरी का | विना तारों का ( बाजा ) । २ असंयत । पर्यटक अतेन्द्र अतन्द्रित ( वि० ) सतर्क। सावधान। जागरूक अतन्द्रिन चौकस होशियार । प्रतन्द्रित अत (वि० ) जिसमें तरी या पैंदी न हो। अतलम् ( म०) सात अधोलोकों अर्थात् पातालों में से दूसरा पाताल । अतलः (पु० ) शिव जी का नाम । -स्पृशू, -स्पर्श ( वि० ) तलरहित बहुत गहरा | जिसकी याद न मिले। प्रतसू (अव्यया० ) १ इसकी अपेक्षा । इससे २ इससे या इस कारण से। अतः ऐसा या इस लिये 46 1 इस शब्द के समानार्थ वाची " यत् " यस्मात् " और " हि " हैं। ३ अतः इस स्थान से इसके आगे ( समय और स्थान सम्बन्धी ।) इसके समानार्थवाची है "अतःपरं" या “अ”। पीछे से । अर्थ, -निमित्तं इस ( २० प्रतस कारण। श्रतपुर्व इस कारण से।-एव इसी कारण से।उध्ये इसके आगे पीछे से। -परं आगे और आगे। इसके पीछे इसके परे इससे भी आगे। 1 अतसः (पु० ) १ यवन। हवा २ आत्मा। जीव ३ पटसन का बना हुआ वस्त्र । अतसी (स्त्री० ) अलसी । सन । पटसन --तैलम् ( न० ) अलसी का तेल | अति (अव्यया०) यह एक उपसर्ग है जो विशेषणों और क्रियाविशेषणों के पहले लगायी जाती है। इसका 1 1 4 अर्थ है --बहुत बहुत अधिक परिमाण से बहुत अधिक उत्कर्ष प्रकर्ष प्रशंसा क्रिया में जुड़ने पर यह उपसर्ग-ऊपर, परे का अर्थ बतलाती है। जब यह संज्ञा या सर्वनाम जुड़ती है, तब इसका अर्थ होता है परे । बढ़ कर श्रेष्ठतर प्रसिद्ध प्रतिपन्न । उञ्चतर ऊपर। - । अतिकथा (स्त्री० ) बहुत बड़ा कर कहा हुआ वृत्तान्त | २ व्यर्थ की या वेमतलब की बातचीत । अतिकर्षणं ( न० ) अत्यन्त पीड़ित । अत्यधिक परिश्रम | अतिक्रमणीय ( स० क० कृ० ) अतिक्रमण करने योग्य उत्तरान करने योग्य बचा देने के योग्य छोड़ देने के योग्य | अतस्क (वि० ) असंयतेन्द्रिय जो अपनी इन्द्रियों ! अतिक्रान्त (भू० क० कृ० ) को अपने वश में न रख सके। अतिकश ( वि० )कोड़े को न मानने वाला घोड़े की तरह हाथ में न आने वाला। ) प्रतिकृच्छ्र (वि० ) बहुत कठिन | बड़ा मुश्किल । ध्यतिकृण्ड्रम् (म०) प्रतिकुच्छ्रः (पु.) १ असाधारण कठिनता । २ एक प्रायश्चित विशेष, जो १२ रात में पूर्ण होता है। प्रतिर अतिक्रमः ( पु० ) नियम या मर्यादा उलङ्गन विरुद्ध व्यवहार | २ अप्रतिष्ठा असम्मान बे- इज्जती ३ चोट | ४ विरोध ५ ( काल | का ) व्यतीत हो जाना । बीत जाना । दमन करना पराजित करना । हराना ६ छोड़ जाना। उपेक्षा करना भूल जाना ७ ज़ोर शोर 1 काय ६ दुपयोग | १० निर्धारण स्थापन आदेश करसंस्थापन । अतिक्रमणम् (न०) उशन | पार करना बढ़ जाना । सीमा के बाहिर जाना। समय को व्यतीत करना । आधिक्य | दोष अपराध | सीमा या मर्यादा का उल्लहन किये हुए बढ़ा हुआ। बीता हुआ। व्यतीत । अतिखद् (वि०) शय्यारहित शय्या की आवश्यकता को दूर कर देने योग्य | I प्रतिग (वि०) अत्यधिक अपेक्षा कृत। उत्कृष्ट | प्रतिगन्ध (वि०) ऐसी गन्ध जो सब के ऊपर हो। प्रतिगन्धः (पु०) १ गन्धक २ भूतृण ३ चंपा का 1 अतिगव (वि० ) १ बड़ा भारी मूर्ख । गण्ड मुर्ख । २ अवर्णनीय अकथनीय । अतिगण्डः (पु०) ज्योतिष शास्त्र वर्णित योग विशेष । (वि०) बड़ा गले वाला । अतिकाय (वि० ) दीर्घकाय असाधारण डीलडौल | अतिगो (स्त्री० ) श्रेष्ठ गौ | उत्तम गाय । का। प्रतिगुण (वि०) १ वह जिसमें सर्वोत्कृष्ट अथवा श्रेष्ठतर गुण हों। २ गुणशून्य निकम्मा अतिगुणः (५०) श्रेष्ठ गुण प्रतिग्रह (वि० ) जो बोधगम्य न हो। अविग्रहः अतिग्राहः } ( 30 ) १ इन्द्रियगम्य । इन्द्रियगोचर । २ सत्यज्ञान | ३ श्रेष्ठ होने के लिये कर्म या क्रिया। अतिचम् (बि०) सेनाओं पर विजय प्राप्त । प्रतिचर (वि०) बड़ा परिवर्तनशील । अनित्य । अचिर- स्थायी विध्वंसी। राणिक | प्रतिवरा (स्त्री०) स्थलपद्मिनी पद्मिनी | पद्मचारिणी- } लता। प्रतिचर (न० ) अत्यधिक अभ्यास अधिक काम करना। प्रतिचार ( २१ ) प्रतिप्रबन्ध अतिचारः (पु० ) १ उल्लङ्घन । २ सगुण में अति- अतिद्वय ( वि० ) ३ अद्वितीय । जिसके समान दूसरा क्रमण करना | ३ ग्रहों की शीघ्र गति । ग्रहों न हो। जो दो से बह कर हो । जिसकी तुलना न का एक राशि से दूसरी राशि पर जाना। ( पु० ) छाती नाम से प्रसिद्ध एक | अतिधन्वन् (पु० ) वेजोड़ तीरंदाज या योद्धा | (स्त्री०) तृय विशेष २ तालमखाना। प्रतिच्छत्रका (स्त्री) ३ सुल्का । अतिजगती (स्त्री०) छन्द विशेष जो १३ अक्षरों का होता है (वि०) जगत को डौंकने वाला। ज्ञानी । जीवन्मुक्त | जिसके जोड़ का दूसरा धनुर्धारी या योद्धा न हो। अतिधृतिः ( सी० ) एक छन्द जिसमें प्रत्येक पक्ष में १८ असर होते हैं। अतिष्ठत्र हो सके। जिसका जोड़ न हो। ३ अतिदीप्यः (पु०) रक्तचित्रक वृष्ण लाल चीता का पेड़ | अतिजव (चि०) बड़े वेग से चलने वाला। अतिजागरः ( पु० ) नीलक पक्षी--जो सदा जागता रहता है। (वि०) जिसको नींद न आवे । व्यतिज्ञात (वि०) जो आवशद न हो। व्यतिडोनं (न०) पक्षियों का एक असाधारण उड़ान। अतितराम्, अतितमां ( अव्यया० ) अधिक । उच्चतर | २ बहुत अधिक। प्रतितीरण (वि०) अत्यन्त कड़वा | मरिचा। अतितीवा (स्त्री०) गोंठडूब अतिथिः (पु०) मनु अन्या० ३ लो० १०२ के अनुसार | अतिपत्तिः ( स्त्री० ) असिद्धि । असफलता । सीमा अतिथि की परिभाषा यह है :- के वाहिर जाना। (E धुँ स्मृतः अभिष्यं दो स्वातस्मादतिभिषयते ॥' " H - १ आगन्तुक घर में आया हुआ। अज्ञात पूर्व किया, (वि० ) - सत्कारः ( पु० ) सकिया, (स्त्री०) सेवा, सपर्या (स्त्री० ) अतिथि का आदर सत्कार । मेहमानदारी । - धर्मः ( पु० ) अतिथि का सरकार-यशः ( पु० ) पञ्चमहायों में से एक नृयज्ञ । अतिथिपूजा मेहमानदारी। अतिदानं (न०) अत्यधिक दान | " प्रतिदिष्ट (वि०) दूसरे के धर्म का दूसरे में आरोप | अतिपातकं ( न० ) एक बड़ाभारी पाप । मीमांसा शाख की परिभाषा विशेष | अतिदेशः (पु० ) अतिदिष्ट वह नियम जो अपने निर्दिष्ट विषय के अतिरिक्त और विषयों में भी काम दे। प्रतिनिद्र (वि०) १ अत्यधिक निद्रानु। अत्यधिक सोने वाला १२ विना निद्रा का निद्रा रहित | अनिद्रम् | निद्रा के समय का अतिक्रम। अतिनिद्रा (सी० ) अत्यधिक मद अतिनु, व्यतिनौ ( वि० ) नाव से उतारा हुआ । नदी या समुद्र के तट पर उतरा हुआ। अतिपंचा, अतिपक्ष (स्त्री० ) पाँच वर्ष के ऊपर की लड़की। प्रतिपतनं ( न० ) निर्दिष्ट सीमा के धागे उड़ जाना था निकल जाना चूक जाना छोड़ जाना। उलझन करना। मर्यादा के बाहिर जाना। अतिपत्रः ( पु० ) सागौन का वृत्त । अतिपर ( वि० ) वह व्यक्ति जिसने अपने शत्रुयों का नाथ कर डाला हो । अतिपरः ( पु० ) वदा या श्रेष्ठ शत्रु । अतिपरिचयः (पु० ) अत्यधिक मेलमिलाप । अतिपात (पु० ) गुज़रजाना ( समय का ) । भूल उल्लङ्घन २ घटना का घटना ३ दुर्व्यवहार । असद्व्यवहार | विरोध प्रतिकूल्य | नष्ट हो जाना । चूक ध्यतिपातिन् (वि० ) चाल में बढ़ा हुआ। अपेक्षा- कृत वेगवान् । प्रतिपात्य ( भू० स० कृ० ) विलम्ब करने योग्य स्थगित करने योग्य | | अतिप्रवन्धः ( पु० ) अत्यन्त निरवच्छता | प्रतिप्र अति ( अन्यथा० ) बड़े तबके। बड़े भोर । प्रतिप्रश्नः ( पु० ) ऐसा प्रश्न जिसको सुन उद्देक उत्पन्न हो | खिजाने वाला प्रश्न अतिप्रसङ्गः ( पु० ) प्रसाद प्रेम | ३ अतिप्रसक्तिः (स्त्री०) १ अत्यन्त उदण्डता। (व्याक० ) २ अविव्याप्तिः | ३ घनिष्ठसंसर्ग | अतिप्रोडा (स्त्री० ) त्यानी लड़की जो विवाह योग्य हो गयी हो। अतिवाला ( स्त्री० ) दो वर्ष की उम्र की गो अतिरः प्रतिभारः ( पुo ) बहुत अधिक बोझ अतिभारमः ( पु० ) खचर । अतिभवः (पु० ) पराजय अतिथल ( चि० ) बड़ा बलवान या दृढ़ | प्रतिवलः (५०) एक प्रसिद्ध या विख्यात योद्धा प्रतिवला (स्त्री०) १ एक विद्याविशेष जिसे विश्वामित्र जी ने श्रीरामचन्द्र जी को बतलाया था। २ एक | अतिरिक्त (वि०) १ सिवाय अलावा २ अधिक। श्रौषध विशेष । । शेष|३ म्यारा। अलग। जुदा भिन अतिरेकः अतीरेकः ( पु० ) १ अतिशय | २ सर्वे- स्कृष्टता सर्वश्रेष्ठत्व | ३ प्रसिद्धि | ४ थन्तर । भेद । विजय | व्यतिभावः ( 5 ) श्रेष्ठता उरकुटवा | अतिमीः (श्री० ) विद्युत् | बिजुली । इन्द्र के वज्र की | कड़क या चमक | अतिभूमिः ( स्त्री० ) १ आधिक्य । चरम सीमा पर | पहुँच अत्युच स्थान पर धारोहय २ साहस । धमर्यादा । ३ ख्याति । श्रेष्ठता। ( २२ ) 1 अतिमतिः (स्त्री०) प्रतिमानः (पु०) कोध चिड़चि ढ़ापन अत्यन्त गर्व या अभिमान । अतिमर्त्यः (पु०)–अतिमानुष (वि०) अमानुषिक अलौकिक । धतिमात्र (वि० ) मात्रा से अधिक । अत्यधिक नितान्त असमर्थनीय . प्रतिवादः अतिमुक्तिः ( स्त्री० ) मुक्ति मोह आवागमन से सदा के लिये छुटकारा | अतिरंहस् (वि० ) अत्यन्त फुर्तीला । बहुत तेज़ अतिरथः ( पु० ) ऐसा योद्धा जिसका कोई प्रति- द्वन्दी न हो और जो रथ में बैठ कर बड़े। अतिरभसः ( पु० ) बड़ी रफ़्तार । उक्षमवेग । हर जिड़ | अतिराजन् ( पु० ) असाधारण या उत्तम राजा | २ वह व्यक्ति जो राजा से आगे बढ़ जाय। अतिमाय ( वि० ) अन्त में मुक्त हुआ। सांसारिक माया से मुक्त। प्रतिमुक्त १ अन्त में दासता से मुक्त। बंधन से मुक्त। २ वन्ध्या ऊसर ३ बढ़ाव चड़ाव। प्रतिमुक्तः ( ( पु० ) माधवी क्षता । कुसरी ! अतिमुक्तकः कुस्तरमोगरा। FTP अतिरात्र (पु० ) ज्योतिष्टोम यज्ञ का एक ऐच्छिक भाग । २ रात्रि की निस्तब्धता अतिराव (पु० ) घुटना। रहना। प्रतिक् (स्त्री० ) अत्यन्त सुन्दरी श्री । अतिरोमश. अतिलोमश (वि०) बहुत रोंगटों वाला। बहुत बालों वाला। रोशः ( ( 50 ) जंगली बकरा | २ अतिलोमशः बृहद्काय बंदर । अतिलइनं ( न० ) १ बहुत अधिक उपवास या लंघन । ( २ ) उशकून अतिक्रमण । अति (वि० ) भूल करने वाला। ग़लती करने वाला । प्रतिवयस् (वि० ) बहुत बूदा | बड़ो उमर का | प्रतिवर्तनं (न०) १ क्षम्य अपराध | क्षम्य दुष्टाचरण | यतिवर्णाश्रमिन् ( वि० ) १ जो वर्णाश्रम के परे हो । क्षम्य सामान्य अपराध क्षमा करने योग्य क्षुद्र अपराध | २ दण्डवर्जित। अतिवर्तिन (वि० ) अतिक्रम करने वाला। नियम तोड़ कर चलने वाला। अतिवादः ( वि० ) अत्यन्त कहा । बढ़ा सनत | कुवाव्य युक्त भाषा। गाली। कुवाव्य | तिरस्कार। निन्दाबाद। भर्त्सना | प्रतिवाहन ( २३ ) अतीन्द्रियम् अतिवाहनं ( न० ) व्यतीत । सर्च किया हुआ | २ | प्रतिशेषः (पु० ) बचत ) स्वल्प बचा हुआ | अत्यन्त सहमशील या परिश्रमी । अत्यधिक भार || प्रतियसिः (पु० ) यह पुरुष जो सर्वोत्तम श्री से किसी काम से पिंढ या पीछा छुटाये हुए। श्रेष्ठ हो अतिश्व (वि०) १ बल में बड़ा चढ़ा से निकृष्ट/-श्वा ( स्त्री ) दासस्य | अश्विन (पु० ) सर्वोत्तम कुत्ता। अतिसक्ति (सी०) घनिष्ठता । अत्यधिक अनुराग । अविसन्धानं (न० ) धोखा दुगा जाल कपट । प्रतिसरः (पु० ) १ आगे बढ़ा हुआ। २ नेता | अतिसर्गः ( पु० ) 1 देना ( पुरस्कार रूप से ) | २ अनुमति देना। आशा देना १२ पृथक करना। (नौकरी से ) | अतिविषा (स्त्री०) एक विषविशेष जो दवाई के काम में आता है। अतिवृष्टिः ( स्त्री० ) मुसलधार वर्षा ६ प्रकार की ईतियों में से एक। प्रतिचेल ( बि० ) १ अस्यधिक । असीम अतिशय अतिसर्जनम् ( न० ) : देना ( २ मुक्ति छुटकारा 1 २ अमिताचारी । ३ वदान्यता । दानशीलता ४ वध विद्रोह बियोग प्रतिविकट (वि०) यहा भयङ्कर विकट: (०) दुष्टहाथी । प्रतिषितरः ( पु० ) १ दीर्घसूत्रता : २ प्रपंच | बहुत वफफक | अतिवृत्तिः ( स्त्री० ) १ अतिक्रमण | उशन | २ अतिशयोति । प्रतिवेलम् ( क्रि० वि० ) १ अत्यधिकतया । २ वे समय से | अन्ऋतु से। अतिव्यातिः ( सी० ) किसी नियम या सिद्धान्त का अनुचित विस्तार किसी कथन के अन्तर्गत उद्देश्य या लक्ष्य के अतिरिक्त अन्य विषय के आ जाने 1 1 का दोष नैयायिकों का एक दोप विशेष । यदि किसी का लक्षण अथवा किसी शब्द की या वस्तु की परिभाषा की जाय और वह लक्षण या परि भाषा अपने मुख्य वाच्य को छोड़ कर दूसरे की बोधक हो तो वहाँ अतिव्याप्ति दोष माना । जाता है। अतिशायिन् (वि० ) श्रेह । समीचीन अतिशायिन (पु० ) १ अतिक्रमण | २ अधिक । अतिसर्व (चि० ) सर्वोपरि सब के ऊपर । अतिसर्वः ( पु० ) परमात्मा | परनवर | अतिसार अतीसारः । अतिसारिन् अतीसारिन् कुत्ता २ कुचे सेवा । ( पु० ) दस्तों की बीमारी। ( पु० ) पतीसार रोग जिसमें मल बढ़कर रोगी के उदारानि को सन्द कर देता है और शरीर के रसों के साथ बराबर निकलता है। प्रतिस्नेहः (पु० ) अत्यधिक अनुराग | प्रतिस्पर्श: (पु०) अस्थर और स्वर की एक संज्ञा । थतीत ( वि० ) १ रात बीता हुआ | २ मरा हुआ। ३ निर्लेप | विरक्त पृथक 8 असंख्य यथा "संख्यातीत" । अतिशयः (पु० ) बहुत । अत्यन्त । सर्वोत्तमता) २ उकृष्टता।उतिः (अतिशयोकिः) (स्त्री०) अलङ्कारविशेष, जिसमें लोकसीमा का उशचन विशेष रूप से दिखलाया जाय। अतिशयन ( वि० ) बड़ा मुख्य प्रचुर बहुतसा अतिशयनम् ( न० ) आधिक्य बहुतायत । अतिशायनम् (२०) श्रेष्ठत्व समीचीनस्य उमदापन । अतीन्द्रियः ( पु० ) ( सांख्यशाब में ) जीव या प्रकर्ष | पुरुष परमात्मा अतीन्द्रिय (वि० ) जो इन्द्रियों के ज्ञान के बाहिर हो। अव्यक्त अप्रत्यक्ष अगोचर । अतीन्द्रियम् ( न० ) १ ( सांवय मतानुसार ) प्रधान या प्रकृति | २ ( वेदान्त में ) मन । प्रतीष अतोव ( अन्यथा० ) अधिक अतिशय बहुत } अतुल (वि०) असमान। अनुपम उपमान रहित । अतुलः (पु० ) तिलक वृक्ष । अतुल्य (वि० ) जिसकी तुलना या समता न हो ! बेजोड़ | अद्वितीय। ( अतुषार ( वि० ) जो ठंदा न हो। -करः ( पु० ) सूर्य अतृराया ( स्त्री० ) थोड़ी सी घास। प्रतेजस् (वि० ) : धुंधला । जो चमकदार न हो । २ निर्बल | कमज़ोर | ३ तुन्छ । (स्त्री० ) १ माता | २ बड़ी बहिन | ३ सास । यत्तिः ( स्त्री० ) अत्तिका ( स्त्री० ) बढ़ी बहिन | आदि । अत्यनिष्टोमः ( पु० ) ज्योतिष्टोम यज्ञ का कर्म विशेष | अत्यङ्कुश (वि० ) जो दश में न रह सके। वेकाबू ( हाथी) । २४ ) 1 । अत्यन्त (वि० ) १ बेहद बहुत अधिक अतिशय २ सम्पूर्ण । नितान्त ३ अनन्त । सदा सर्वदा रहने वाला भाव (त्यन्ता- भावः ) किसी वस्तु का बिल्कुल न होना। सत्ता की नितान्त शून्यता । गत (चि० ) सदैव के लिये गया हुआ। जो लौटकर न आवे । गामिन् ( वि० ) बहुत चलने फिरने वाला बहुत तेज़ चलने वाला । – वासिन् (पु० ) वह जो सदा | अपने शिक्षक के साथ छात्रावस्था में रहे। संयोगः ( पु० ) अति सामीप्य अविच्छिन्नता । श्रविच्छेद | www अत्यन्तिक ( वि० ) १ बहुत था बहुत तेज़ चलने वाला । २ बहुत समीप ३ दूर दूर का । प्रत्यन्तिकम् (न० ) अति सामीप्य | बिल्कुल मिला हुआ। पड़ोस प्रत्याहित अत्यन्तीन ( वि० ) बहुत अधिक चलने फिरने वाला बड़ी तेज़ी से चलने वाला। अनः, अनुः (पु० ) १ हवा | २ सूर्य । अत्यन्ह (वि० ) स्थितिकाल में एक दिन से अधिक । प्रत्यभिः ( पु० ) विकार उत्पन्न करने वाली तीक्ष्ण | अव्यकार: ( पु० ) तिरस्कार | अभिषाप । भर्त्सना । धिकार । २ वड़े डोल डौल वाला शरीर । पाचन शक्ति | प्रत्ययः (पु०) १ बीत जाना । निकल जाना । २ अन्त । उपसंहार | समासि । अनुपस्थिति । श्रदर्शन। लोप | तिरोधान् । ३ मृत्यु | नाश | ४ खतरा जोखों। बुराई । ५ दुःख ६ अपराध दोष । अतिक्रमण ७ आक्रमण 1 अत्ययित ( दि० ) १ बढ़ा हुआ आगे निकला हुआ। २, उल्लङ्घन किया हुआा। अत्याचार किया हुआ। प्रत्यायिन् (वि० ) बड़ा हुआ। आगे निकला हुआ। अव्यर्थ ( वि० ) अत्यधिक बहुत ज्यादा। 1 1 प्रत्यर्थम् ( क्रि० वि० ) बहुत अधिकता से अति- शयता से । अत्याचारः (१०) १ अन्याय विरुद्धाचार | दुराचार | आचार का अतिक्रमण कोई ऐसा कार्य जो प्रथा से समर्थित न हो । २ उपद्रव । दुःखद काम । अधार्मिक कृत्य | प्रत्यादित्य ( वि० ) सूर्य की चमक को अपनी चमक से दबा देने वाला। अत्यानन्दा ( स्त्री० ) स्त्रीसहवास सम्वन्धी श्रानन्द्रों के प्रति अस्वस्थ अनास्था | अत्यायः (पु०) १ अतिक्रमण । उहवन २ आधिक्य | ज्यादती । प्रत्यारूढ (वि० ) बहुत अधिक बढ़ा हुआ । अत्यारूढम् (न०) – प्रत्यारूदिः (स्त्री०) अत्युच्चपद | अत्यधिक उन्नति या उत्कर्प। त्याश्रमः ( पु० ) संन्यासाश्रम । (२) संन्यासी २ परमहंस | ब्रह्मचर्यादि आश्रमधर्मों को पालन करने वाला । अत्याहित] ( न० ) १ थड़ी भारी विपत्ति | खतरा महाविपद । दुर्घटना | २ दुस्साहस या जोख का काम। अत्युक्तिः श्रदत्त अत्युक्तिः (स्त्री० ) बहुत बढ़ा कर कहा हुआ कथन । बढ़ा चढ़ा कर कहने की शैली । बढ़ावा । सुवालिग़ा | अपिच | पुनः। -- किं, और क्या ? हाँ। ठीक यही । ठोक ऐसा हो । निस्सन्देह |–च पिच । किञ्च । इसी प्रकार | ऐसे ही वाया | २ वरं । अधिकतर था क्यों या कदाचित् । प्रथम कथन का संशोधन करते हुए। अत्युपध (वि०) विश्वस्त । परीक्षित | प्रत्यूहः ( पु० ) १ गम्भीर विचार या ध्यान । ठीक अथवा सच्चा तर्कवितर्क । २ अलकुक्कुट | एक | अथर्वन् ( पु० ) १ यज्ञकर्त्ता विशेष, जो अग्नि और प्रकार का जलपक्षी । कालकण्ठ । सोम का पूजन करता है | २ ब्राह्मण । (बहुवचन में । ) अथर्वन ऋषि के सन्तान । अथर्ववेद की ऋचाएं। अधिकरणार्थक धन्यय यहाँ। इसमें अन्तरे ( क्रि० वि० ) इस बीच में | इस असें में। -भवत् ( पु० ) - भवान् । श्लाध्य | पूज्य प्रशंसा करने योग्य अंगरेज़ी के Your honour अथर्वा, अथर्व ( पु० न० ) अथर्ववेद । - निधिः- विदु (पु० ) अथर्ववेद पढ़ने का पात्र या अधि कारी अथर्ववेद का ज्ञाता । या His Honour के समान इसी प्रकार अथर्वणिः ( पु० ) अथर्ववेद में निष्णात ब्राह्मण । Your Ladyship or Her Ladyship के लिये “ अनभवती" का व्यवहार होता है। अथवा अथर्ववेद में वर्णित कार्यों के कराने में निपुण । यथा । अथर्वा ( न० ) अथर्ववेद की अनुष्टानपद्धति | अथवा (अव्यया० ) पक्षान्तर बोधक अन्यय या वा किंवा । (१) " छन्नभवान् मकृतिमापनः " ( २५ -शकुन्तला (२) " वृक्षसेचमादेव परिश्रान्तामत्रभवतीं शक्षये -शकुन्तला । म अत्रत्य (वि० ) १ यहाँ सम्बन्धी । इस स्थल से | २ यहाँ उत्पन्न हुआ । यहाँ प्राप्त । इस स्थान का । स्थानीय । त्र (वि० ) निर्लज्ज | दुरशील | प्रगल्भ उद्धृत । अत्रः ( पु० ) एक ऋषि का नाम।–जः जातः द्वग्ज; नेत्रप्रसूतः प्रभवः, - भवः ( पु० ) चन्द्रमा | अयमयनसमुत्थं ज्योतिरप्रेरियोः ।" रघुवंश सर्ग २ लोः ७५ अथ (अन्यया० ) मङ्गल आरम्भ । अधिकार | २ सदनन्तर। पीछे से ३ यदि कल्पना करिये। यदि अब । ऐसी दशा में किन्तु यदि । ४ और ऐसा भी। इसी प्रकार जिस प्रकार २ इसका प्रयोग किसी विषय को जिज्ञासा करने में तथा कोई प्रश्न आरम्भ करने में होता है । ६ सम्पूर्णता । नितान्तता । ७ सन्देह संशय यथा “शब्दों नित्योऽथानित्यः । ” अपि, अपर किञ्च । ) थो (अव्यया० ) अथ | अदु (धा०प० ) [ अति, अन्न-जग्ध ] १ खाना । भजण करना । २ नष्ट करना । यद् यद् (वि०) भोजन करते हुए। भक्षण करते हुए । अष्ट्र (वि० ) दन्तरहित । अष्ट्रः (पु० ) सर्प जिसका विषदन्त उखाड़ लिया गया हो। प्रदक्षिणा (वि० ) १ बाँया | २ वह कर्म जिसमें कर्म कराने वाले को दक्षिणा न मिले। विना दक्षिणा का । ३ सादा । निर्बल मन का । निर्वाध | मूढ़ । ४ सौष्टवशून्य । नैपुण्यरहित । चातुर्यविवर्जित । भद्दा । ५ प्रतिकूल । अंदण्ड्य ( वि० ) १ दण्ड देने के अयोग्य २ दण्ड से मुक्त | सज़ा से बरी । प्रदत् ( वि० ) दन्तरहित विना दाँतों का। अदत्त ( वि० ) १ विना दिया हुआ । २ अन्याय पूर्वक या अनुचित रीति से दिया हुआ | ३ विवाह में न दियां हुआ ! सं० श० कौ० ४ अदत्ता प्रदत्ता (सी.) अविवाहित लड़की । अदत्तूम् (न०) निष्फलदान ।-~- प्रादायिन् ( go ) निष्फल दान का ग्रहण करने वाला वह पुरुष जो बिना दी हुई वस्तु को उठा ले जाय। उठाई- गीरा। चोर-पूर्वा ( स्त्री० ) विना सम्बन्ध युक्त | जिसकी सगाई पहले न हुई हो। 'श्रदत्तपूर्वोत्याशंक्यते । १३ मालतीमाधव । अ० ४ अदंत १ बिना दाँतों वाला | २ जिनके अन्त में अदन्त । अत्याध हो । ३ जोंक । प्रदत्य ( (वि०) १ दाँत सम्बन्धी नहीं। २ दाँतों के अदन्त्य | योग्य नहीं। दाँतों के लिये हानिकारक | अ (वि० ) कम नहीं। बहुत अधिक । विपुल । प्रदर्शनम् ( न० ) १ अदृष्ट अनुपस्थित २ (व्याकरण में ) वयंलोप । ( २६ ) "" अस् (वि० ) दूर की वस्तु । तत् | दूसरा अन्य । ये अभी । अदादि (वि० ) जिसके आरम्भ में श्रद् हो । व्याकरण की रूढि विशेष । अदाय (वि० ) जो भाग पाने का अधिकारी न हो। श्रदायाद ( वि० ) १ जो उत्तराधिकारी होने का अधिकारी न हो। २ उत्तराधिकारी रहित । लावारिस । प्रदेव अदितिनन्दनः } ( पु० ) देवता । अदुर्ग ( वि. ) १ जिसमें प्रवेश किया जा सके। २ दुर्गरहित 1 विषयः ( पु० ) ऐसा देश जिसमें रचा के लिये दुर्ग न हो। अरक्षित देश या राज्य | अदायिक (वि०) १ वह वस्तु या सम्पति जिसके प्रदायिको (स्त्री० ) पाने के उत्तराधिकारी ने अपना स्वत्य प्रदर्शित न किया हो। लावारिसी जिसका कोई वारिस न हो । २ न हो। जो पुश्तैनी अदा ( वि० ) १ ( लड़की जो ) विवाह में न दी । अष्टम् ( न० ) वह जो देख न पढ़े । २ गयी हो। २ अवदान्य कंजूस । प्रारब्ध भाग्य। नसीय | किस्मत पाप या पुण्य जो दुःख या सुख का कारण है। ४ ऐसी विपत्ति या खतरा जिसका पहले कभी ध्यान भी न रहा हो। ( जैसे अग्निकाण्ड, जलप्लावन ) । -अर्थ ( वि० ) अध्यात्मविया सम्बन्धी । सम्वविद्या सम्बन्धी :-कर्मन् (वि० ) श्रि यात्मक अनुभवशूल्य 1- फल ( वि० ) वह जिसका परिणाम दृष्टिगत न हो फलं ( न० ) अच्छे बुरे कर्मों का भावी फल या परिणाम | अदितिः ( स्त्री० ) १ पृथिवी । २ श्रदिति देवी, जो | धादियों की माता है। पुराणों में देवताओं की उत्पत्ति अदिति ही से बतलायी गयी है। ३ भायीं। ४ गौ। प्रदूर (वि० ) जो बहुत दूर न हो । समीप (समय और स्थान सम्बन्धी ) । रम् (पु० ) सामीप्य पड़ोस श्रदूरे प्रदू, अरेण प्रदूरतः रात् (०) (किसी स्थान या समय से बहुत दूर नहीं। अदृश् (वि० ) दृष्टिहीन | नेत्रहीन | अंधा | (०) १ जो देखा न जाय । अनदेखा हुआ। जो पहिले न देखा गया हो। २ जो जाना न गया हो । ३ पूर्व से अनदेखा न देखा या न सोचा हुआ। अशात अविचारित | ४ अस्वीकृत | आईन के विरुद्ध | अदृष्टिः (स्त्री० ) बुरी दृष्टि । ( वि० ) अंधा | देय ( वि० ) जो देने योग्य न हो या जो दिया न जा सके। देयम् ( न० ) वह जिसका दिया जाना या देना ठीक नहीं या आवश्यक नहीं। इस श्रेणी क वस्तु में स्त्री, पुत्र आदि हैं। यदेव (बि० ) १ देव के समान नहीं । २ अपवित्र अदवः प्रदेवः (न० ) वह जो देवता न हो । राक्षस दैत्य असुर 1 प्रदेश: (पु० ) अनुपयुक्त स्थान २ कुदेश वर्जित देश - कालः (पु०) कुदेश और कुसमय | स्थ (वि० ) कुठौर का । ( (वि०) १ निर्दोष । दोषरहित । त्रुटिरहित । निरपराध | २ रचना सम्बन्धी दोषों से वर्जित । ( रचना के दोष जैसे अश्लीलता; ग्राम्यता आदि ।) (०) वह समय जिसमें गौ का दुहना सम्भव नहीं। २ न दुहना । श्रद्धा (अव्यया० ) सचमुच | वेशक निस्सन्देह । दरहकीकत | २ प्रत्यक्ष रूप से स्पष्टतया । अद्भुत (वि० ) १ विलक्षण विचित्र श्राश्चर्य जनक । विस्मयकारक । अनौखा । श्रजीव । अनूठा ‘ अपूर्वं । अलौकिक । २ काव्य के नौ रसों में से एक ।-सारः अद्भुत राज सर्जरस । यतधूप | -स्वनः ( पु० ) १ आश्रर्यशब्द । २ महादेव का नाम । अनिः (पु० ) श्राग व्यग्नि । योँच । (वि० ) बहुत खाने वाला । भहणशील अद्य (वि०) खाने योग्य । अद्यतन (वि० ) १ आज सम्बन्धी आज तक की। २ आधुनिक । अद्वैतम्

(पु० ) १ पर्वत । पहाड़ | २ पत्थर | ३ वज्र

कुलिश | ४ वृक्ष | ५ सूर्य । ६ बादलों की घटा बादल ७ सापविशेष सात की संख्या । अद्यतनी (स्त्री०) भूतकाल का परियायवाचक शब्द | अद्यतनीय अद्यतन १ श्राज का १२ आधुनिक अद्रव्यं ( न० ) १ वह वस्तु जो किसी भी काम की न हो । निकम्मी वस्तु २ कुशिष्य | कुपात्र | २७ ) - ईशः पतिः, नाथः (पु०) १ पहाड़ों का राजा। हिमालय | २ कैलासपति महादेव । —कीला ( स्त्री० ) पृथिवी |--कन्या, तनया, सुता (स्त्री०) पार्वती । -जं (न०) गेरू मिट्टी । – द्विष, -भिद् (पु०) पर्वत-शत्रु या पर्वत को विदीर्ण करने वाला । यह इन्द्र की उपाधि है । - द्रोण, - (स्त्रो० ) १ पहाड़ की घाटी । २ नदी जो पहाड़ से निकलती है। - पतिः - राजः (पु०) पहाड़ों का स्वामी | हिसालय – शय्यः ( पु०) शिव / - शृङ्गम् ( न० ) - सानु पर्वत का शिखर । पहाड़ की चोटी । - सारः ( पु० ) पर्वत का सारांश | लोहा | अद्रोहः (go ) विद्वेषशून्यता | विनम्रता । अद्वय (वि० ) १ दो नहीं | २ एकमात्र । बेजोड़ | अद्वितीय श्राज भी अचम् ( न० ) भोज्यपदार्थ । खाने योग्य कोई वस्तु । ( अव्यया० ) आज । आज का दिन वर्तमान दिवस |-अपि ( = अद्यापि ) आज तक अब भी। अब तक नहीं । - अवधि ( अद्यावधि ) १ आाज से आज तक 1- पूर्व ( न० ) आज के पहिले । इससे अद्वितीय ( वि० ) बेजोड़ | केवल । एकमात्र । पूर्व । आज से आगे - श्वीना ( वि० ) वह जिसके समान दूसरा न हो। गर्भिणी स्त्री जो एक ही दो दिन में बच्चा जनने | अद्वितीयम् ( न० ) परमात्मा । ब्रह्म । वाली हो । आसन्नमसवा । (वि० ) द्वितीयशून्य । अपरिवर्तनशील । २ अनुपम | बेजोड़ | एकाकी । द्वैतम् ( न० ) १ऐक्य । ( विशेष कर ब्रह्म या जीव का अथवा ब्रह्म और संसार का अथवा जीव और बाह्य पदार्थों ।) २ सर्वोत्कृष्ट या सर्वो- • परि सत्य । ब्रह्म । --वादिन । ( वि० ) वेदान्ती । ब्रह्म और जीव को एक मानने वाला। . श्रयः (पु० ) बुद्धदेव का नाम । अद्वयं (न०) अद्वितीयता। विजातीय और स्वगतभेद- शून्यता। सर्वोत्कृष्ट सत्य । ब्रह्म और विश्व की एकता । जीव और बाह्य पदार्थों की एकता | - वादिन् ( न०) वेदान्ती। बौद्ध | अद्वैतवादी । बौद्धविशेष | अद्वारं ( न०) द्वार नहीं। कोई भी निकलने का रास्ता या द्वार, जो नियमित से दरवाज़ा न हो । श्रघम (वि०) | नीच दुष्टातिदुष्ट बहुत बुरा -अङ्गभू ( स० ) पैर पाद । अर्ध (न० ). शरीर के नीचे का श्राधा अङ्ग । नाभि के नीचे का ( अंगॠणः ऋणिकः ( पु० ) कर्जदार कटुआ ! ( उत्तमर्णः का उलटा ) - भृतः, भृतकः ( पु० ) कुली | मज़दूर साईस अधमः (०) जार अधरमा ) श्रधरतः अधमा (स्त्री० ) दुष्टश मलकिन । दुष्टा स्वामिनी J (वि०) १ नीचे का | निचला | तले का । २ नीच । अधम । दुष्ट गुण में कम अश्रेष्ठ ३ परास्त किया हुआ पराभूत | सुप किया हुआ | - उत्तर (वि०) १ नीचला और ऊपर का | अच्छा बुरा । २ शीघ्र या देर से । ३ उल्टा पल्टा । अंडबंड। अस्तव्यस्त ४ समीप दूर । -: ( पु० ) नीचे का होंठ -कण्ठः ( पु० ) गरदन के नीचे का भाग ।-पानं (न०) चूमना | चुम्बन करना । —मधु अमृतं ( न० ) औठों का अमृत / स्वास्तिकं । ( न० ) अधोविन्दु । - अधरम् (न०) १ (शरीर के) नीचे का भाग । निचला हिस्सा २ भाषण | व्याख्यान | अधरस्तात् अधरातू अधुतात् अधरे २८ ) (अव्यया० ) नीचे की ओर। निचले भाग में। नीचे के लोक में । अधरीकृ (धा० उ०) आगे निकल जाना। हरा देना। पराजित कर देना। प्रघरीण (वि०) १ निचला | २ निन्दित । वदनाम | अपकीर्तित । भर्सिंत । श्रधरेयुः (अव्यया० ) किसी पूर्व दिवस १२ परसों | ( बीता हुआ ) धर्मः (पु०) । पापकर्म अन्याय दुष्टता अन्याय से अन्यायपूर्वक | २ अन्याय्य कर्म । निषिद्ध कर्म । पाप धर्म और अधर्म। न्याय में वर्णित २४ गुणों में से दो और इनका सम्बन्ध श्रात्मा से है। सुख और दुःख के ये ही कारण है। ३. एक प्रजा- पति का नाम सूर्य के एक अनुचर को नाम अधि धर्मम् ( म० ) उपाधिशून्यता । विशेष आत्मन, चारिन पापी । - ब्रह्म की उपाधि (वि० ) दुष्ट । अधर्मा ( स्त्री० ) मूर्त्तिमान दुष्टता ध्रुघवा (स्त्री०) राँड़। बेवा। जिसका पति मरगया हो । ● में । अस्, अधः (अन्या०) नीचे | नीचे के लोक में नरक में 1-अंकम् ( न० ) निचला कपड़ा यथा बनियाइन । नीमास्तीन आदि । २ धोती । कटिवस्त्र /- अक्षजः (पु०) विष्णु का नाम । - करः ( पु० ) हाथ का निचला हिस्सा ।—करणम् ( न० ) पराभव | श्रवःपास । - खननम् ( न० ) गाड़ना । तोपना । -गतिः (स्त्री० ) गमनम्, (न०) - पातः (१०) नीचे जाना। नीचे गिरना 1 नीचे उतरना। अवनति हास-गन्तु ( पु० ) चूहा । भूसा । -चरः ( पु० ) चोर - जिहिका ( स्त्री० ) अलि-प्रति-जिह्वा । सुधाश्रवा तालु- जिह्वा । घण्टिका छोटी जीभ जो तालु के नीचे रहती है। -दिश (स्त्री० ) अधोविन्दु । दक्षिण दिशा । -दृष्टि: (स्त्री० ) नीचे को निगाह 1- प्रस्तरः ( पु० ) वह चटाई जिस पर वे लोग जो मातमपुर्सी करने आते हैं, बिठाये जाते हैं। - भागः (पु०) नीचे का भाग :-- भुवनं ( न० ) -लोकः ( पु०) पृथिवी के नीचे के लोक पाता- लादि ।—मुख चदन (वि० ) नीचे की ओर मुख किये हुए। -जम्बः (पु०) सीसे का गोला । लम्बितरेखा सीधी खड़ी रेखा । वायुः (पु०) अपानवायु उदराध्मान पेट का फूलना। --- स्वस्तिकं (न०) प्रधोविन्दु । I 1 2 अधस्तन (वि० ) [ स्त्री० - अधस्तनी ] जो नीचे हो। निचला। अधस्तात् ( क्रि० वि०) (अधि०) नीचे की ओर | अंदर। भीतर । अधामार्गवः (पु० ) अपामार्ग । अधारणक (वि० ) जो लाभदायक न हो । अधि (अन्यया० ) १ यह क्रियाओं के साथ उपसर्ग की तरह आता है। ऊपर ऊर्ध्व । अतीत अधिक। २ प्रधान मुख्य विशेष 1 ● अधिक ( २३ ) अधिदन्तः अधिक (वि०) १ बहुत ज्यादा । विशेष | २ अतिरिक्त । अधिकारिन् } (वि०) अधिकारयुक्त । अधिकार सिवा फालतू बना हुआ। शेष | अधिकारवत् । प्राप्त २ पाने का हकदार प्राप्त करने का अधिकारी। ३ प्राप्त । ४ योग्य । योग्यता या क्षमता रखने वाला । क़ाविल । उप- युक्त पात्र | अधिकारी, अधिकारवान् ( पु० ) अफ़सर । पदाधिकारी | दरोगा । २ स्वामी | मालिक | स्वस्याधिकारी । अधिकम् (न० ) अलकार विशेष, जिसमें आधेय को आधार से अधिक वर्णन करते हैं। श्रङ्ग, श्रङ्गी (वि०) नियत संख्या से अधिक अंगों वाला - अर्थ (अधिकार्थ) (वि०) प्रत्युक्त ॠद्धि (वि०) बहुल । प्रचुर | शुभ सम्पन्न | सौभाग्य- शाली। ऋजुमान् । तिथि ( स्त्री० ) -- दिनं ( न० ) - दिवसः (पु०) बढ़ी हुई तिथि | अधिकरणम् ( न० ) १ आधार। आसरा | सहारा । २ सम्बन्ध । ३ (व्याकरण में) की और कर्म द्वारा क्रिया का आधार | व्याकरण विषयक सम्बन्ध | ४ (दर्शन में) आधार विषय अधिष्ठान | मीमांसा और वेदान्त के अनुसार वह प्रकरण जिसमें किसी सिद्धान्त विशेष की विवेचना की जाय और उसमें निम्न पाँच अवयव हों-१ विपय, २ संशय, ३ पूर्वप, ४ उत्तरपक्ष, २ निर्णय | यथाः--- "विषयो विषयप्रवेध पूर्वपलस्तथोतरं । निर्णयश्चेति सिद्धान्तः शास्त्रेऽधिकरणं स्मृतम् ॥” -भोजकः (पु० ) जज । निर्णायक । न्यायकती। - मण्डपः ( पु० ) श्रदालत । न्यायालय /- सिद्धान्तः (पु०) सिद्धान्त विशेष जिसके सिद्ध होने से अन्यसिद्धान्त भी स्वयं सिद्ध हो जायँ । अधिकरणकः ( पु० ) न्यायाधीश न्यायकत्ती । राज्यन्यवर्ग पर्यवेक्षक वह जिसको देखरेख और प्रबन्ध का काम सौंपा गया हो। अधिगुण (वि ) योग्य | उत्कृष्टगुण विशिष्ट । गुण- वान् । (कमान पर ) भली भाँति रोदा चढ़ाया हुआ । भलीभाँति प्रन्धित । अधिकर्मिकः (पु०) किसी बाज़ार का दरोगा, जिसका अधिवरणं (न०) किसी वस्तु के ऊपर टहलना या चलना । काम व्यापारियों से कर उगाहने का हो । अधिकाम (वि० ) उम्र थाकाक्षाओं वाला । अति प्रचण्ड । क्रोधाविष्ठ । उत्तेजित | कामासक्त । कामो- दीप्तिजनक । (०) अधिकार में आया हुआ। हाथ मे आया हुआ। उपलब्ध | अधिकृतः (पु०) अधिकारी अध्यक्ष अधिकृतिः (स्त्री० ) स्वत्व | हक्क | मालकाना | अधिकृत्य (अन्य ) सम्बन्ध से। विषयक । अधिकम: (पु०)} चढ़ाई । आरोहण । चढ़ाव। अधिक्षेपः ( पु० ) १ कुवाथ्य | गाली । आक्षेप । अप- मान | व्यंग्य | २ वरखास्ती विसर्जन । त ( भू० का० कृ० ) १ प्राप्त | पाया हुआ । २ जाना हुआ। अवगत । ज्ञात | पड़ा हुआ। (०)अधिगमनम् (न०) प्राप्ति | पाना । ज्ञान अध्ययन | ३ लाभ । सम्पत्ति की प्राप्ति । व्यापारिक सारिणी । ४ स्वीकृति । ५ सङ्गम संसर्ग आलाप । अधिकारः ( 30 ) १ कार्यभार । आधिपत्य । प्रभुत्व । अधिकार | २ अधिकारयुक्तपद ३ शासन । ४ प्रकरण शीर्षक & क्षमता । ६ योग्यता : परिचय ज्ञान-विधि (स्त्री०) मीमांसा की वह विधिया आज्ञा जिससे यह बोध हो कि, किस फल के लिये कौन सा मानुष्ठान करना चाहिये । अधिजननं (न०) उत्पत्ति । अधिजिह्वः (पु०) १ सर्प । अधिजिहा 2 १ उपजिह्वा । २ जिह्वा पर एक अधिजिडिका । प्रकार की सूजन । अधिव्य (वि०) धनुष का रोदा ता हुए। अधित्यका (स्त्री०) पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि | ऊँचा पथरीला मैदान । उसका उल्टा " उपत्यका " अधिदन्तः ( पु० ) एक दाँत के ऊपर दूसरे दाँत की उत्पत्ति । अधिदेव ( ३० ) अधडानम् इष्टदेव । कुलदेव । पदार्थों के | अधिलोकं (अव्यया० ) १ सांसारिक | २ संसार में | अधदेवः (पु० ) अधिदेवता (स्त्री) । अधिष्ठाता देवता । रक्षक देवता। अधिदैव अधिदैवतम् ( न०) किसी वस्तु का अधिष्ठाता देवता! अधिनाथः (पु० ) परग्रहा। परमात्मा । सर्वेश्वर | अधिनायः (पु०) गन्ध | महक | अधियः ( पु० ) मालिक। स्वामी । राजा " अधिपतिः प्रभु | शासक प्रधान | अधिपत्नी (स्वी०) [ वैदिक ] स्वामिनी | शासन करने वाली । अधिपुरुषः अधिपूरुषः } { पु० ) परमात्मा । परब्रह्म । अधिप्रज (वि०) बहुसन्तति वाला। अधिभूतं ( न० ) परमात्मा । परब्रह्म । परब्रह्म की सर्वव्यापकता | अधिमात्र (वि० ) नाप से अधिक । अस्यधिक । अपरमित | अधियज्ञः ( पु० ) प्रधान यज्ञ परमेश्वर । " अधियोहमेवात्र देहे देहां पर " गीता । अधिवचनम् (न० ) वकालत । २ नाम अधिराज्यं । ( न० ) १ साम्राज्य | चक्रवर्ती राज्य । अधिराष्ट्र २ राष्ट्र | सम्राट का ऐश्वर्य । ३ एक देश का नाम । अधिरूड ( भू० का० कृ० ) १ सवार | चड़ा हुआ। २ बड़ा हुआ । उसत । अधिरोहः (पु० ) हाथी का सवार २ चढ़ाव | अधिरोहणं ( ० ) चड़ना । सवार होना ऊपर उठना । अधरोही (स्त्री० ) नसैनी। सीड़ी। जीना। अधिरोइन् (वि०.) चढ़ा हुआ सवार 1 ऊपर उठा हुआ | अधिवासः ( पु० ) १ निवासस्थल रहने की जगह ( २ ) हठ पूर्वक तकादा। ३ किसी यज्ञानुष्ठान के आरम्भ में किसी प्रतिमा की प्रतिष्ठाक्रिया विशेष | परिच्छविशेष | चुगा । अंगा। ५ असर फुलेल या उबटन लगाना । महासुगन्ध | खुशबू । ६ मनु के अनुसार स्त्रियों के ६ दोपों में से एक। ७ दूसरे के घर जाकर रहना । परगृहवास अधिक ठहरना। अधिक देर तक रहना। किसी के पक्ष में बोलना । उपाधि | अधिवासनम् ( न०) १ सुगन्धित पदार्थ से सुवासित करना । सुगंधपदार्थ २ मूर्ति की आरम्भिक प्रतिष्ठा । देवता की किसी मूर्ति में उसकी प्रतिष्ठा करना । अधिविन्ना (स्त्री०) पतिपरित्यक्ता स्त्री । वह स्त्री जिसके पति ने दूसरा विवाह कर लिया हो। अधिरथ ( वि० ) रथ पर सवार । अधिरथः (१०) १ सारथी । रथधान् । रथ हाँकने अधिवेदनं (न०) एक विवाहित स्त्री के रहते दूसरी स्त्री अधिवेदः ( पु० ) एक अतिरिक्त पत्नी करना । वाला । २ कर्ण के पिता का नाम । के साथ विवाह करना। अधिवे (पु०) पति जिसने अपनी पहिली पत्नी छोड़ वो हो । अधिराज अधिराज }( पु० ) चक्रवर्ती । वादशाह । सन्नाट् । अधिश्रयः (५०) आधार | पात्र | २ उबालना । गर्माना ( आग पर रख कर ) । अधि अधिपणं । अधिश्रयणी अधिपणी ( न० ) उबालना | गर्माना | १ तंदूर। अग्निकुण्ड । चूल्हा | अंगीठो | अधि (वि० ) अत्यधिक धनवान् । सर्वोत्कृष्ट सर्वोपरि प्रभु या स्वामी । । अधिष्ठानम् (न०) १ समीप खड़े होना। समीप जाना। २ स्थिति | आधार बैठक स्थान नगर । कसवा ३ आवासस्थान रहाइस | ४ अधिकार। राजसचा | सवा २ डुकूमत | राज्याधिकार ६ ऊँ ४ (नधित इनज़ीर | निर्दिष्ट शिर्वाद। महलकामना । धति (भू० का० ० ) : ठहरा हुआ बसा हुआ। २ नियुक्त देखरेख में आतङ्कित । स्थापित निर्वाचित | ३ रक्षित | अधिकार में प्रभावान्वित अधीकारः देखो “ अधिकार । 39 - स्वागत स्वानोकामय" -कुमारसम्भव । धोतिन् (वि०) सुपठित । भलीभाँति पड़ा हुआ। अधीतिः (स्सी०) अध्ययन पाठ २ स्मृति स्मरणशक्ति याददाश्त अधीन (वि०) आश्रित मातहत | वशीभूत | अधीयानः ( वि०) रन । विद्यार्थी छात्र जो वेद पढ़ता देर | अधीर (वि०) 1 भी डरपोंक। कायर | २ घवदाया हुआ | उत्तेजित | उद्विग्न व्याकुल विह्वल | ३ चंचल अस्थिर बेसव उतावला। अधोरा ( स्त्री० ) १ बिजली विद्युत २ कलह- प्रिया स्त्री । अधुना ( अन्यथा० ) सम्पति । इस समय । श्रय | आजकल । अधुनातन (वि०) [श्री०-प्रधुनातनी] आधुनिक । अर्वाचीन । अध्यवसाय. २ असुख ३ चंचलता । दृढ़ता का अभाव | वाहतुरता। अधूमकः (१०) जलती हुई आग जिसमें पुधा न हो। स्प्रवृतिः ( स्त्री० ) : धृति का अभाव । अधीरता । प्रहृष्य (वि०) १ दुर्जेय | जिसके समीप कोई न पहुँच सके । २ शर्मीला | ३ अभिमानी। गर्वीला | अधोऽक्ष अधोंऽशुक देखो "अघल्" धांजः (go ) परमा | २ विष्णु | ज्ञानी । जीवन्मुक्त | (अध्यक्ष (वि०) इन्द्रियगोचर |२ व्यापक | विस्तृत | अध्यक्षः (पु०) १ देखरेख करने वाला। किसी विषय का अधिकारी पर्यवेचक । व्यवस्थापक | २ सीरिका I अधोवासः (पु०) सुरत | दोग़ा। अध्यधीन ( वि० ) नितान्त अधीन | निपट वशवर्ती | विका हुआ दास । जन्म का दास । अधोशः (पु०) स्वामी । मालिक। सरदार राजा | (५०) मालिक | स्वामी। (२) भूपति राजा । अधिपति । अध्ययः (पु) विद्या अध्ययन स्मरणशक्ति | अध्ययनम् (न०) १ पढ़ना (विशेष कर वेदों का) अर्थ सहित अक्षरों को ग्रहण करना २ माह्मणों के प्रधोष्ट (वि.) अवैतनिक ! सत्कारपूर्वक किसी व्यापार | अध्यधं (दि०) वह जिसके पास अतिरिक्त आधा हो । शास्त्र विहित पट् कम्मों में से एक। में नियुक्त | सविनय प्रार्थित । अधीः (०) अवैतनिक पद या कार्यं । अध्यवसानम् (न०) उद्योग निश्चय (भकृत और अमकृत की ) इस प्रकार की पहचान जिससे यह बोध हो जाय कि एक दूसरे में सम्पूर्णतः लीन हो गया। अध्यतरं (न० ) श्रोङ्कार । अध्य(अध्यया०) विवाह के समय हवन करने के अभि के समीप या ऊपर। (न०) स्प्रीधन | वह धन जो वर को अग्नि की साक्षी में वधु के माता पिता देने हैं। अध्यधि (अव्यया० ) ऊपर | ऊंचे पर अध्यधिपः (०) बुरी बुरी गालियों । अत्यन्त कुत्सित कुवाव्य उम्र भर्त्सना । अध्यवसायः ( पु० ) १ उद्योग १२ दृढ़ विचार । सङ्कल्प १२ बुद्धि सम्बन्धी व्यापार | ३ किसी पदार्थ का ज्ञान होने के समय रजोगुण और तमोगुण की न्यूनता होने पर जो सत्वगुणा का प्राथुर्भाव होता है उसे अध्यवसाय कहते हैं। ४ अध्यवसायिन् लगातार उद्योग । अविश्रान्त परिश्रम १ उत्साह | निश्चय | प्रतीसि । ( ३२ ) समे वर्गः परदायाचप्रहार उपध्यासः परिवर्त पटल का एहसानन ॥ स्थाम मकरसं चैव पर्वोरलासादिकानि च । द मायशः परिकोर्तिती # अभ्यवसायिन् (न०) १ लगातार उद्योग करनेवाला । परिश्रमी उद्योगी उद्यमी १२ उत्साही । J अध्यशनं ( न० ) अधिक भोजन। एक बार भर पेट | अध्यायिन् ( वि० ) पड़ने वाला । अध्ययनशील । खा लेने पर, उसके न पचते पचते पुनः खा लेना । अजी। अपन अभ्यारूढ (वि० ) १ चढ़ा हुआ । सवार २ ऊपर उठा हुआ। उन्नत पर पहुँचा हुआ | ३ ऊँचा । श्रेष्ठ | ४ नीचा अनुतम | अध्यात्म ( वि० ) आत्मा सम्बन्धी । --ज्ञानम् (न०) आमा अनात्मा का विवेक - विद्या (स्त्री० ) अध्यात्मतत्व। जीव और ब्रह्म का स्वरूप बतलाने वाली विद्या | 1 अध्यूढः घ्यध्यारोपः ( पु० ) १ उठाना । ऊँचा फरना | २ ( वेदान्त मतानुसार ) भ्रमवश दूसरी वस्तु को दूसरी वस्तु समझना यथा रस्सी को साँप सम- झना । ३ मिथ्याज्ञान | अध्यात्म (न०) आत्मा। देह | मन । “स्वभावोsध्या- त्ममुख्यते” गीता के इस वाक्यानुसार स्वभाव को | अध्यारोपणं (न०) १ उठाना | २ बोना (बीजों का)। अध्यात्म कहते हैं। श्रीधर के मतानुसार प्रत्येक शरीर में परवझ की जो ससा या अंश वर्तमान रहता है, वही अध्यात्म कहलाता है 1 9 शुल्क लेकर पढ़ाना। श्रध्यापनम् ( म० ) पढ़ाना। शिक्षा देना। ब्राह्मणों के षट् कर्त्तव्यों में से एक स्मृतिकारों के मता नुसार अध्यापन तीन प्रकार का है धर्मार्थ पढ़ाना | २ ३ सेवा के बदले पढ़ाना। अध्यापयितु (पु० ) शिक्षक पढ़ाने वाला। अध्यायः ( पु० ) १ पाठ। अध्ययन (विशेषतः वेदों का) । २ अध्ययन का उपयुक्त काल। पाठ उपदेश । ३ प्रकरण । किसी अन्य का एक बड़ा भाग | संस्कृतकोशकारों ने अध्याय के परियायवाची मे शब्द बतलाये हैं:- अध्यावापः (पु० ) ( बीजों को ) बोने या बोने के लिये छितराने की क्रिया २ खेत जिसमें बीज बोये जाँय । 1 अध्यात्मिक ( वि० ) [स्त्री० --अन्यात्मकी] अध्यात्म | अध्यावाहनिकम् ( न० ) छः प्रकार के उन स्त्रीधनों सम्बन्धी । में से एक जिसे स्त्री ससुराज जाते समय अपने माता पिता से पाती है। अध्यापकः ( पु० ) शिक्षक | गुरु । उपाध्याय पढ़ाने वाला । ( विशेषकर वेदों का ) विष्णुस्मृति के अनुसार अध्यापक के दो भेद हैं | एक आचार्य "यन पुगते नारी मोगमामा तु पैतृकात्। (गृह) अध्यावाइनिकम् नाम स्त्रीधनं परिकीर्तित" जो द्विज बालक का उपनयन संस्कार कर उसे वेद | अध्यासः (१०) (१ किसी पर बैठना । (किसी स्थान पढ़ने का अधिकारी बनाता है और दूसरा उपाध्याय जो अपने छात्र को चुपयर्थ कोई विद्या पढ़ा देता है। है अध्यासनम् न० ) [ को) रोकना या छेकना अध्यक्ष का काम करना । २ बैठकी। स्थान। अध्यासः (पु० ) देखो अध्यारोप | मिथ्याज्ञान । उपाङ्ग । अनुपङ्ग । अध्याहारः (पु) (8 किसी वाक्य को पूरा करने अध्याहरणम् (न०) J के लिये उसमें छूटी हुई बात को मिला कर उस वास्या को पूरा करना । वाक्य को पूरा करने के लिये उसमें ऊपर से कोई शब्द मिलाना था जोड़ना । २ तर्क वितर्क । उहावोह | विचार बहस विचिकित्सा | अभ्युट्र: ( पु० ) गाड़ी जिसमें ऊँट जुते हों। चौपहिया अभ्यूट ( वि० ) ऊपर को ऊठा हुआ। उमड़ा हुआ। अध्यूढः ( पु० ) शिव अध्यूदा अध्यूढा ( स्त्री० ) "अधिविना " देखो। प्रध्येषणम् ( न० ) प्रार्थना । कोई कार्य कराने की प्रार्थना | अध्येषणा ( स्त्री० ) प्रार्थना | याचना । अव (वि०) १ सन्दिग्ध | संशयपूर्ण | २ अस्थायी । "विनश्वर। यहड़ अलग किये जाने वाला अनुषं ( न० ) अनिश्चयता । ध्वन् (पु० ) १ मार्ग | रास्ता। सड़क । नक्षत्रों के घूमने का मार्ग । २ अन्तर बीच फासला | ३ समय । काल । मूर्तिमान काल । ४ व्याकाश । वातावरण | ५ विधि | उपाय | प्रक्रिया । ६ आक्रमण • अध्वगः ( पु० ) : पथिक । राहगीर । मुसाफिर २ ऊँट । ३ खच्चर सूर्य अध्वा ( स्त्री० ) गङ्गा | पति (पु०) सूर्य रथः ( पु० ) १ पालकी गाड़ी । २ हल्कारा। } (बि०) यात्रा करने योग्य । अध्वनीन अध्वन्य प्रध्वनोनः } (पु०) तेज़ चलने वाला यात्री । अध्वन्यः अध्वरः ( 30 ) यज्ञ एक धार्मिक कृत्य विशेष । सोमयाग । अध्वरम् ( न० ) आकाश या अन्तरिक्ष | अध्वरमीमांसा ( स्त्री० ) जैमिनि प्रणीत पूर्वमीमांसा का नाम । ध्यध्वर्यु: ( पु० ) १ यज्ञ कराने वाला ऋत्विक । यजुर्वेद का जानने वाला पुरोहित । २ यजुर्वेद | - वेदः ( पु० ) यजुर्वेद | अग्वाति देखो "अध्वगः” । अध्वान्तम् ( न० ) प्रदोषकाल | गोधूलिबेला । उपा काकज्योत्स्ना । तिमिर । अन्धकार । [[अनिति, अनित] स्वांस लेना । प्राण धारण करना। हिलना डोलना जीना। अन् ( धातु० पर० ष्प्रनः ( पु० ) स्वांस अनंश ( वि० ) पैतृक सम्पति में भाग न पाने वाला। अनडुडू अनंशु मत्फला ( श्री० ) कदलीवृक्ष । केले का पेड़ | अनकन्दभिः ( पु० ) श्री कृष्ण के पिता वसुदेव की उपाधि | की (स्त्री० ) ढोल नगाड़ा | अन (वि० ) नेत्रहीन इटिरहित अंधा 1 अक्षर ( वि० ) १ गंगा | २ अनपढ़ | ३ उच्चारण करने के अयोग्य | अक्षरम् (न० ) गाली : कुवाच्य भर्त्सना । डाँट उपट अननि: ( पु० ) १ श्रौतस्मार्तकर्महीन । अग्निहोत्र रहित । २ अधार्मिक || ३ वह जो अपच रोग से पीड़ित हो। कब्जियत रोग वाला। ४ अविवाहित । जिसका व्याह न हुआ हो। अनघ (वि०) १ पापरहित निर्दोष | २ त्रुटि रहित । सुन्दर खूबसूरत ३ सुरक्षित | अनचोटिल जिसके चोट न लगी हो । ४ विशुद्ध कलङ्क रहित । अनघः ( पु० ) १ सफेद सरसों या राई २ विष्णु का नाम। शिव का नाम । अनंकुश } 2 ( वि० ) १ जो दबाव में न रहे । अनङ्कश License ) का उपभोग करने वाला। } ( वि० ) १ शरीररहित । अशरीरी । -क्रीड़ा ( स्त्री० ) प्रेमालापमयी क्रीडा | बिहार प्रेमी और प्रेयसी का पारस्परिक प्रेमालाप पूर्वक क्रीडन । लेखः ( पु० ) प्रेमपत्र । शत्रुः, असुहृत् (५०) शिवजी का नाम । }(पु० ) कामदेव । अनंग अनङ्ग अनंगः अनङ्ग अनंगम् ) ( न० ) १ आकाश पवन एक प्रकार अनङ्गम् ) का अति सूक्ष्म वायवीय पदार्थ | ईथर । २ मन । अनंजन } ( वि० ) विना सुर्मा का | अनञ्जन धनंजनम् ) ( न० ) १ आकाश । व्योम : २ परब्रह्म । अनञ्जनम् । विष्णु या नारायण । अनुड्डह् ( पु० ) (अनड्डान्) १ बैल सांड़ वृषराशि | सं०० को अध्यवसायिन् लगातार उद्योग । अविश्रान्त परिश्रम । ५ उत्साह | निश्चय | प्रतीति । ( ३२ ) अध्यवसायिन् (न०) १ लगातार उद्योग करनेवाला । परिश्रमी उद्योगी । उद्यमी | २ उत्साही । पेट अध्यशनं ( न० ) अधिक भोजन। एक बार भर खा लेने पर, उसके न पचते पचते पुनः खा लेना। अजीर्ण । श्रनपत्र | अध्यात्म ( वि० ) श्रात्मा सम्बन्धी । - ज्ञानम् (न०) आत्मा अमात्मा का विवेक । - विद्या (स्त्री० ) अध्यात्मतत्व। जीव और ब्रह्म का स्वरूप बतलाने वाली विद्या | अध्यात्म (०) आत्मा। देह | मन । “स्वभावोऽध्या- त्ममुच्यते" गीता के इस वाक्यानुसार स्वभाव को अध्यात्म कहते हैं। श्रीधर के मतानुसार प्रत्येक शरीर में परब्रह्म की जो सत्ता या अंश वर्तमान रहता है, वही अध्यात्म कहलाता है ! अभ्यात्मिक ( वि० ) [स्त्री०–अध्यात्मकी] अध्यात्म सम्बन्धी । कर्गो उच्छ्वास स्मानं ध्यापनम् (न० ) पढ़ाना। शिक्षा देना | ब्राह्मण के पढ़ कर्तव्यों में से एक स्मृतिकारों के मता- नुसार अध्यापन तीन प्रकार का है । धर्मार्थ पढ़ाना | २ शुल्क लेकर पढ़ाना । ३ सेवा के बदले पढ़ाना। अध्यापयितु (पु० ) शिक्षक पढ़ाने वाला। अध्यायः ( पु० ) १ पाठ । अध्ययन (विशेषतः वेदों का) । २ अध्ययन का उपयुक्त काल। पाठ उपदेश । ३ प्रकरण । किसी ग्रन्थ का एक बड़ा भाग । संस्कृतकोशकारों ने अध्याय के परियायवाची ये शब्द बतलाये हैं:- वर्ग: अध्यूट. परिच्छेदाताध्यायांकसंग्रहाः | पटल: काण्डमाजन || परिवर्तन मकरसं चैव पवेरिलासाहिकानि च । स्कन्धांशौ तु पुराणादौ मायशः परिकीर्तितो ॥ अध्यायिन् ( वि० ) पढ़ने वाला । अध्ययनशील । अध्यारूद ( वि० ) १ चढ़ा हुआ । सवार | २ ऊपर उठा हुआ। उन्नत पर पहुँचा हुआ | ३ ऊँचा श्रेष्ठ ४ नीचा अनुत्तम । अध्यारोपः ( पु० ) उठाना । ऊँचा करना | २ ( वेदान्त मतानुसार ) अमवश दूसरी वस्तु को दूसरी वस्तु समझना यथा रस्सी को सौंप सम- कना । ३ मिथ्याज्ञान ध्यारोपणं ( न० ) १ उठाना | २ बोना (बीजों का)। अध्यावाः (पु० ) ( बीजों को ) बोने या वोने के लिये की किया | २ खेत जिसमें बीज बोये जाँय । अभ्यावाहनिकम् ( न० ) छ: प्रकार के उन स्त्रीधनों में से एक जिसे स्त्री ससुराल जाते समय अपने माता पिता से पाती है। अध्यापकः ( पु० ) शिक्षक | गुरु | उपाध्याय | पढ़ाने वाला । ( विशेषकर वेदों का ) विष्णुस्मृति के अनुसार अध्यापक के दो भेद हैं | एक आचार्य "यत् पुनर्लभते भारी नीयमामा तु पैतृकात् | () अध्यावाहनिकम् नाम स्त्रीधनं परिकीर्तितम्” जो द्विज बालक का उपनयन संस्कार कर उसे वेद अध्यासः (१०) (१ किसी पर बैठना । (किसी स्थान पढ़ने का अधिकारी बनाता है और दूसरा | प्रध्यालनम् न०) ) को रोकना या छेकना अध्यक्ष उपाध्याय जो अपने छात्र को वृत्यर्थ कोई विद्या का काम करना । २ बैठकी: स्थान | पढ़ा देता है। प्रध्यासः ( पु० ) देखो अध्यारोप | मिथ्याज्ञान | उपाङ्ग । अनुषङ्ग । अध्याहारः (पु ) १ किसी वाक्य को पूरा करने अध्याहरणम् (न०) J के लिये उसमें छुटी हुई बात को मिला कर उस वाक्या को पूरा करना । वाक्य को पूरा करने के लिये उसमें ऊपर से कोई शब्द मिलाना या जोड़ना २ तर्क वितर्क । उहावोह । विचार | बहस | विचिकित्सा | अभ्युष्टः ( पु० ) चौपहिया । अध्यूढ ( वि० ) ऊपर को ऊठा हुआ। उमड़ा हुआ। अध्यूढः ( पु० ) शिव । गाड़ी जिसमें ऊँट जुते हों । अध्यूढ़ी अध्यूढा ( स्त्री० ) “ अधिविना " देखो। अध्येषणम् ( न० ) प्रार्थना । कोई कार्य कराने की प्रार्थना । अध्येपणा ( स्त्री० ) प्रार्थना याचना । अव (वि०) १ सन्दिग्ध | संशयपूर्ण | २ अस्थायी । "विनश्वर अढ़ अलग किये जाने वाला अनुवं ( न० ) अनिश्चयता । श्रध्वन् ( पु० ) १ मार्ग | रास्ता | सड़क । नक्षत्रों के घूमने का मार्ग । २ अन्तर। बीच फासला | ३ समय । काल । मूर्तिमान काल । ४ आकाश । वातावरण | २ विधि | उपाय | प्रक्रिया । ६ श्राक्रमण · अध्वगः ( ५० ) १ पथिक । राहगीर । मुसाफिर २ ऊँट । ३ खच्चर ४ सूर्य | अध्वा ( स्त्रीः ) गङ्गा । -- पति (पु० ) सूर्य । - रथः ( पु० ) १ पालकी गाड़ी । २ हल्कारा । } (वि०) यात्रा करने योग्य । } (पु०) तेज़ चलने बाला यात्री । अध्वरः ( ९० ) यज्ञ एक धार्मिक कृत्य विशेष । सोमयाग | ध्यध्वनीन अध्वन्य ( ३३ ) ध्यध्वनोनः प्रध्वन्यः अध्वरम् (न० ) थाकाश या अन्तरिक्ष । मांसा (स्त्री० ) जैमिनि प्रणीत पूर्वमीमांसा का नाम । अध्वर्यु: ( पु० ) १ यज्ञ कराने वाला ऋत्विक | यजुर्वेद का जानने वाला पुरोहित २ यजुर्वेद | - वेदः ( पु० ) यजुर्वेद | अध्याति देखो "अध्वगः” । ध्यध्वान्तम् ( न० ) प्रदोषकाल | गोधूलिबेला । उपा। काकज्योत्स्ना | तिमिर । अन्धकार | अन् (धातु० पर० ) [अनिति, अनित] स्वांस लेना । प्राण धारण करना हिलना डोलना जीना। अनः (पु० ) स्वांस । अनंश ( वि० ) पैतृक सम्पति में भाग न पाने वाला । अन्डह् अनंशु मत्फला (स्त्री० ) कदलीवृत्त केले का पेड़ धनकदुन्दभिः ( पु० ) श्री कृष्ण के पिता चसुदेव की उपाधि | नकदुन्दी (स्त्री० ) ढोल नगाड़ा | (वि० ) नेत्रहीन | दृष्टिरहित अंधा अनक्षर ( वि० ) १ गंगा | २ अनपढ़ | ३ उच्चारण करने के अयोग्य । अनतरम् (न० ) गाली | कुवाय्य | भर्त्सना । डाँट डपट । अनः (०) १औतस्मातकर्महीन । अग्निहोत्र रहित । २ अधार्मिक । अपवित्र | ३ वह जो अनपच रोग से पीड़ित हो । कब्जियत रोग वाला। ४ अविवाहित । जिसका व्याह न हुआ हो। अनघ (वि०) १ पापरहित । निर्दोष | २ त्रुटि रहित । सुन्दर खूबसूरत ३ सुरक्षित | अनचोटिल जिसके चोट न लगी हो । ४ विशुद्ध । कलङ्क रहित । अनघः ( पु० ) १ सफेद सरसों या राई २ विष्णु का नाम । शिव का नाम । अकुश ( वि० ) १ जो दबाव में न रहे । अनङ्कश } उद्दण्ड | २ कविस्वातंत्र्य ( Poetic 'License ) का उपभोग करने वाला। ( वि० ) १ शरीररहित । अशरीरी। क्रीड़ा ( स्त्री० ) प्रेमालापमग्री क्रीड़ा | } विहार। प्रेमी और प्रेयसी का पारस्परिक प्रेमालाप पूर्वक क्रीडन | -लेखः ( पु० ) प्रेमपत्र |--- शत्रुः, -असुहृत् (पु०) शिवजी का नाम । अनंगः }(g०) कामदेव । अनङ्गः अनंगम् ( न० ) १ आकाश | पवन एक प्रकार अनङ्गम् ) का अति सूक्ष्म वायवीय पदार्थ ईथर । अनंग अनङ्ग अनंजन अनञ्जन } ( वि० ) विना सुर्मा का | अनंजनम् ) अनञ्जनम् । ( न०) १ आकाश | व्योम | २ परब्रह्म । विष्णु या नारायण । अनुहुहू ( पु० ) ( अनड्डान्) १ बैल सांड़ वृषराशि | संश० कौ ध्यनंन्य बादल । का नाम वासुकी नाग का नाम । २ ३ एक प्रकार का मसूण खनिज पदार्थ अभ्रक । ४ अनन्ता--जो एक रेशम का ढोरा होता है और जिसमें १४ गांठे लगा कर अनन्त चतुर्दशी के दिन दहिनी बौह पर बाँधा जाता है। अनन्तम् (न०) आकाश । व्योम | २ अनन्तकाल | ३ निस्तार । उद्धार अव्याहति । पापमोचन | पापचमापन | ४ परब्रहा | अद्यः (पु० ) सफेद सरसों अनंतर ) ( वि० ) १ जिसके भीतर स्थान न हो। अनन्तर । निस्सीम | २ | धन | ३ जो बहुत दूर अनद्यतन (वि० ) व्याकरण में क्रिया का काल- विशेष-बाधक शब्द | अन्यतनः (पु०) आज का दिन नहीं। न हो। अति निकट का मिला हुआ। सटा हुआ (जड़ा हुआ ) --जः (पु०) या-जा ( स्त्री० ) क्षत्रिय या वैश्य माता के गर्भ तथा ब्राह्मण वा क्षत्रिय पिता के वीर्य से उत्पन्न २ छोटा या बदा भाई या बहन । अनधिक ( वि० ) १ अधिक या अत्यधिक नहीं । २ असीम पूर्ण। मनधीनः ( पु० ) बढ़ई जो रोज़नदारी पर काम न अनंतरम्, अनन्तरम् (न० ) १ निरन्तरता । २ ब्रह्म । नंतरम्, अनन्तरम् (थव्यया० ) पीछे । पश्चात् । बाद को। कर स्वतंत्र अपने लिये ही काम करें। अनध्यक्ष (वि०) १ जो देख न पड़े। अगोचर अनदुद्दी अनही अनाही } : स्त्री० ) गौ । गाय । अनति (अव्यया० ) बहुत अधिक नहीं। अनतिरेकः ( पु० ) अमेव । ( ३४ ) अनतिविलम्बिता (स्त्री० ) विलम्ब का अभाव | २ बक्ता का एक गुण । ३५ वागगुण हैं, उनमें से एक। अनंतरीय २ अध्यक्ष या नियन्ता वर्जित । ( वि० ) क्रम से एक के बाद दूसरा । अनन्तरीय अनध्यायः ( पु० ) अध्ययन के लिये अनुपयुक्त समय | अनंतता ) ( स्त्री० ) १ पृथिवी । २ एक की संख्या । या दिन। पढ़ने के लिये निषिद्ध काल या दिन। छुट्टी का दिन । अनन्तता ३ पार्वती का नाम ४ परब्रह्म २ कई अननम् ( म० ) स्वांस लेना। प्राण धारण करना। अननुभावुक (वि०) धारण करने के अयोग्य न समझने लायक । अनंत ) ( वि० ) अन्तरहित । निस्सीम सीमा अनन्त | रहित | कभी समाप्त न होने वाला - तृतीया (स्त्री० ) भाद्रपद शुक्ला तृतीया। मार्ग- शीर्ष शुद्धा तृतीया थौर वैशाख शुद्धा तृतीया - दृष्टि: ( पु० ) इन्द्र या शिव का नाम । -देवः (पु० ) १ शेषनाग २ शेषशायी नारायव्य का नाम -पार ( वि० ) । अन्तरहित चौड़ाई या औढ़ाई। निस्सीम 1 रूप १ ( वि० ) संख्यातीत आकार प्रकार का । २ विष्णु भगवान की उपाधि - - विजयः ( पु० ) युधिष्ठिर के शहू का नाम । अनन्तः (पु० ) विष्णु का नाम शेष जी का नाम श्रीकृष्ण और उनके भाई का नाम शिव पौधों के नाम जैसे, दूर्वा, अनन्तमूल आदि । अनन्य (वि०) १ अन्य से सम्बन्ध न रखने वाला। एक- निष्ट एक ही में लीन २ एकरूप अमिव । ३ एकमात्र | अद्वितीय | ३ अविभक्त । -गतिः ( स्त्री० ) गत्यन्तर रहित । - चित, -चिन्त- चेतस, -मानसू, —मानस, - हृदय ( वि० ) एक ही ओर मन या ध्यान लगाने वाला जः, -जन्मन् (पु०) कामदेव । अनङ्ग/पूर्वः (पु० ) जिसकी दूसरी स्त्री न हो। पूर्वा ( स्वी० ) कारी अविवाहिता । जिसका पति न हो। -भाज् ( वि ) स्त्री जो अन्य किसी पुरुष में अनुराग न रखती हो । - विषय (g०) वह विपय जिसका किसी से सम्बन्ध न हो या जिस पर किसी अन्य की सत्ता न हो । -वृत्ति (वि०) १ एक ही स्वभाव का । २ जिसके आजीविका का अन्य कोई द्वार न हो। ३ एकाग्रचित्त सामान्य साधारण ( वि० ) असाधारण एक ही में जो अनुरागवान् हो । J 1अनन्वयः ( ३५ ) एक ही से सम्बन्ध रखने वाला ।—सदश ( वि० ) – सद्दशी । ( स्त्री० ) बेजोड़ | अद्वितीय | अनन्वयः ( 3० ) १ अन्वयशून्य सम्बन्ध रहित । २ अर्थालङ्कार विशेष जिसमें एक हो उपमान और एक ही उपमेय हो । (वि०) जिसमें अधिक जल न हो। अपकार ( न० ) अपकर्मन (२०) वाला | २ अमोचन | ३ श्रदा नपकिया (स्त्री०) न करना । | १ अनुपकारी | अपकार न करने कर (पु० ) बुराई नहीं। भलाई । हित ।-- कारिन् (वि०) निर्दोष । अहित शून्य । अनपत्य (वि०) सन्तानहीन | सन्ततिवर्जित । जिसका कोई उत्तराधिकारी न हो। अनपत्रप (वि० ) निर्लज्ज | बेहया | बेशर्मं । अपभ्रंश (पु० ) ठीक ठीक बना हुआ शब्द शब्द विकृत रूप में न हो, अपने शुद्ध रूप में हो। अनपसर (वि० ) जिसमें से निकलने का कोई मार्ग न हो । २ असमर्थित । अक्षम्य । अनपसरः ( पु० ) बल पूर्वक अधिकार करने वाला जबरदस्ती कब्जा करने वाला । बरजोरी दखल करने वाला । अनपाय (वि०) धनश्वर। अविनाशी । अनपाय: ( पु० ) स्थायित्व । स्थितिशीलता । २ शिवजी का नाम । अनपायिन् (वि० ) अविनाशी । दद | मजबूत । स्थायी । क्षणभङ्गुर नहीं । अनपेक्ष ( ( वि० ) १ अपेक्षावर्जित । निःस्पृह | अनपेक्षिन् । २ असावधान ३ स्वतंत्र । जिसे किसी अन्य व्यक्त की परवाह न हो । जिसे किसी वस्तु की ज़रूरत न हो। ४ निर्धेत । पचपात रहित ५ असङ्गत । अनपेक्षम् ( क्रि० वि०) स्वतंत्रता से | मनमुखबारी । यथेच्छ । अनवधानता से। अनर्थ्य जो पृथक न हो। ३ जो विहीन न हो। जो वर्जित न हो। [[अनभ्यस्त । अनभिज्ञ ( वि० ) अज्ञ | अनजान । अपरिचित । अनभ्यावृत्तिः (स्त्री०) न दुहराना | बारबार आवृत्ति न करना। अनपेक्षा (स्त्री० ) निःस्पृहता । उपेक्षा । अनपेत ( बि० ) १ दूर न निकला हुआ । जो व्यतीत न हुआ हो । २ जो विपथगामी न हो । अभ्यास } ( वि० ) समीप नहीं। दूर। थनम्र (वि० ) मेघविवर्जित । अनमः ( पु० ) वह ब्राह्मण, जो न तो किसी को स्वयं प्रणाम करे और न किसी को उसके किये हुए प्रणाम के बदले आशीर्वाद दे। अनमितंपच (वि० ) कृपणतया | लोभ से । अनंबर अनम्बर अनंबर: अनम्बरः } ( बि० ) नंगा । जो कपड़े पहिने न हो । } (पु० ) बौद्ध भिक्षुक । अनयः (पु० ) १ दुर्व्यवस्था । थसदाचरण । अन्याय अनौचित्य | २ दुर्नीति | कुपथ | ३ विपत्ति | दुःख | ४ दुर्भाग्य ५ जुआ । अनर्गल ( वि० ) अनियंत्रित | यथेच्छाचारी । २ विना ताळेकुंजी का । खुला हुआ। अर्घ (वि० ) अमूल्य | वेशनीमती । अनर्ध: ( पु० ) अनुचित मूल्य | अयथार्थं मूल्य | अनर्थ्य (वि० ) श्रमूल्य बड़ा प्रतिष्ठित अनर्थ ( वि० ) १ निकम्मा । किसी काम का नहीं । २ अभागा । दुःखी । ३ हानिकारक वाहियात बेमतलब का । – कर ( वि० ) 1- करी (स्त्री० ) उपद्रवी । हानिकारी । अनर्थ: ( पु० ) : निष्प्रयोजन या बिना मूल्य का । २ कोई वस्तु जो कोड़ी काम की न हो । निकम्मी वस्तु । ३ आपत्ति । विपत्ति | बद क्रिस्मती | दुर्भाग्य | ४ निरर्थक | अर्थशून्यता | अनर्थ्य | ( वि० ) १ अनुपयोग | अर्थरहित । अनर्थक २ वाहियात ४ जो लाभ- दायक नहीं है। हानिकारी ४ अभागा । तुच्छ | ३ अनर्थ्यम् अनागत की बातचीत। अनर्थ्यम् ) ( न० ) वाहियात यातचीत | बेमतलय | अनवलंब: (पु०) अनवलंबम् (२०) स्वातंत्र्य अनथकम् ) अवलम्बः (१०) नवलम्बम् (न०) अनर्ह (बि०) अनवलोभनम् ( न० ) संस्कार विशेष सीमन्तोनयन काम का नहीं। अयोग्य अवान्छित | २ कोड़ी | के पीछे तीसरे मास में गर्भ का किया जाने वाले संस्कार | अनलः ( पु० ) १ अग्नि २ अग्निदेव ३ भोजन पचाने की शक्ति । ४ पित्त । -द (वि० ) गर्मी | अनवसर (दि०) १ वेमौका | कुसमय १ जिसको या अग्नि नाशक या दूर करने वाला २ दीपन। पावन शक्ति बढ़ाने वाला। मिया ( श्री० ) अग्नि की पत्नी स्वाहा। ---सादः : पु० ) भूख का न लगना। कुपच रोग। धवलस (वि० ) : आलस्य विवर्जित । फुर्तीला परिश्रमी २ अयोग्य। धनुषयुक्त । धनल्प (वि० ) १ थोड़ा नहीं बहुत उदार । काम काज से फुरसत न मिले । अनवसरः (पु०) १ फुरसत का अभाव । २ कुसमय | अनवस्कर (वि० ) मैह से रहित साफसुथरा नवस्थ (वि० ) अद 1 अनवस्था (स्त्री०) अस्थिरता अस्थिर दशा २ बुरा चाल चलन ३ तर्क शैली का दोष विशेष | अनवस्थान ( वि० ) चंचल । अस्थायी | शहद | अनवस्थानः (पु०) पवन | + अनवस्थानम् (न०) १ नश्वरता । २ चरित्र सम्बन्धी निर्बलता। अनवकाश ( वि० ) 1 अवकाश का अभाव । फुरसत का न होना। २ जो लागू न हो । ३ अप्रार्थित । अनवग्रह (वि० ) अप्रतिरोधनीय | अनिवार्य अति प्रबल स्वच्छन्द | अनवच्छिन (दि० ) निस्सीम | अमर्यादित । अचिन्हित । जो काटा गया न हो। जो अलहदा न किया गया हो । २ अत्यधिक ३ असंशोधित। जिसकी परिभाषा न दी हो। ४ अखरिडत अटूट अनवद्य (पि० ) निर्दोष । निष्कलङ्क | धभर्त्सनीय -अङ्ग-रूप (वि०) सुन्दर | खूबसूरत । - अङ्गी ( स्त्री० ) यह स्त्री, जिसके शरीर की सुन्दरता में कोई त्रुटि या दोष न हो । अनवधान (वि० ) असावधान | धमनस्क । अनवधानता ( स्त्री० ) सावधानी । अमनस्कता | अनवधि (वि० ) निस्सीम अवधि रहित अनन् । म् (वि० ) जो नीच या अश्रेष्ठ न हो । श्रेष्ठ | उच्चत | अनवरत (दि० ) निरन्तर सतत सदैव रातदिन । लगातार हमेशा [समीचीन | अनवरा ( वि० ) मुख्य श्रेष्ठ । सर्वोत्तम । अनवसंव, अनवलम्ब ( वि० ) निराश्रित | अनलम्बन, अनवलम्बन जिसका सहारा न हो। अनवस्थित (वि० ) 3 परिवर्तनीय अस्थिर । २ परिवर्तित । ३ असंगत। अनियंत्रित । अनवेक्षक (वि० ) असावधान । लापरबाइ । निरपेच | [निरपेक्षता | अनवेक्षणम् ( न० ) असावधानी । लापरवाही । अनशनम् ( न० ) उपवास। भूख मरना । अनश्वर (वि० ) [ स्त्री०- अनश्वरी ] अविनाशी । जो नष्ट न हो। जो नारा को प्राप्त न हो। अनसू (२०) १ गाड़ी | २ भोजन | भात १३ जन्म 1 उत्पत्ति ४ प्राणघारी। २ रसोईघर । अनसूय ) ( वि० ) डाह से रहित । ईर्ष्या से अनसूयक । वर्जित । अनसूया ( स्त्री० ) १ ईर्ष्या का अभाव । २ अत्रिमुनि की पत्नी का नाम । ३ उच्च कोटि का पारिवत धर्म अनन् ( न० ) बुरा दिन अभागा दिन । अनाकालः : पु० ) १ कुसमय | वेवगत २ अकाल । क/-भृतः पु० ) अस विना प्राण जाने पर, अस के लिये अपने को दूसरे का दास बनाने [अवचल | अनाज ( वि० ) १ शान्त आत्मसंयंत २ स्थिर अनागत ( वि० ) १ नहीं आया हुआ २ अप्राप्त ३ वाला । . अनागम अनार्यक भविष्यद् ४ अनजान | थज्ञात !-अवेत्तणं | अनादीनव (चि० ) निर्दोष । निरपराध | ( न० ) आगम देखना आये का ज्ञान - प्रावधिः ( पु० ) आने वाली विपत्ति - यार्तवा ( स्त्री० ) कारी, जो जवान नहीं हुई।- विधातृ (पु०) वह जो भविष्य के लिये तैयारी करे। परिणामदर्शी | पंचतंत्र की कहानी के एक मस्य का नाम 1. अनागमः (५०) न पहुँचना । न आना २ अप्राप्ति । अनागसू (वि०) निर्दोष । निरपराध | निष्कलङ्क | अनाचार ( पु० ) निन्दित आचार। शास्त्र विहित आचारों के विरुद्ध आचरण । अनातप (द्रि० ) जो उष्ण न हो। ठंडा । अनाद्य ( वि० ) १ अनादि २ अभय । वह वस्तु जो खाने योग्य न हो। 4 बदनाम | अनानुपूर्व्य ( वि० ) जो नियत क्रम में न रहे। नाह (वि० ) १ प्राप्त अयोग्य अनिपुण अतः (पु० ) अनजान | अजनबी। अनामक ( वि० ) नाम रहित। गुमनाम अनामन् (वि० ) नामरहित । गुमनाम | अपकी- र्तित बदनाम । ( पु० ) १ लोंद मास । अधिक मास | २ हाथ की वह उँगली जिसमें अँगुठी पहनी जाती है। गुनिया के पास की अंगुली (न०) अर्थरोग | बवासीर । । ● 1 अनातुर ( वि० ) १ जो आतुर न हो। जो उद्विम न हो । २ अपरिश्रान्त जो थका न हो। धनात्मन् ( वि० ) १ आत्मा रहित २ जो शा से सम्बन्ध न रखे। ३ वह जो संयमी न हो जिसने अपने को वश में न किया हो। ( पु० ) आत्मा से भिन्न | धन्य धात्मा से कोई वस्तु मिन्न |-ज्ञ-वेदिन ( पु० ) अपने आपको न पहचानने वाला मूर्ख- -सम्पन्न (वि०) मूर्ख | अनात्मनीन ( वि० ) निःस्वार्थी | स्वार्थ रहित । अनात्मवत् ( वि० ) असंयत । अजितेन्द्रिय | अनाथ (वि० ) नायरहित रचकवर्जित गरीब । मातृपितृ रहित । यतीम | विधवा । अनाथसभा ( स्त्री० ) मोहताजनाना अनाथालय अनादर (वि० ) निरपेक्ष | विचार शून्य । अनादरः ( पु० ) अप्रतिष्ठा । घृणा | असम्मान | अनादि (दि०) जिसका शुरू न हो। जिसका आरम्भ फाल अज्ञात हो । आदिरहित । सनातन - अनन्त, अन्त (वि० अथ और इति रहित) आरम्भ और समाप्ति विवर्जित । सनातन |--- अनन्तः (१०) भगवान् विष्णु का नाम :-निधन ( वि० ) जिसकी न आदि (आरम्भ ) हो और न अन्त ( समाप्ति ) | सतत । सनातन - मध्यान्त (वि०) जिसका न तो आरम्भ हो न | अनार्यकं ( न० ) १ आर्यावर्त से भिन्न देश भगुरु मध्य हो और न अन्त हो। सनातन । काठ। अगर की लकड़ी |

अनामा १ (स्त्री० ) अंगूठी पहनने की उँगुली । अनामिका) द्वगुनिया के पास वाली डेंगुली। अनामय (वि० ) तंदुरुस्त । स्वस्थ | हट्टाकट्टा | अनामयः ( पु० ) तंदुस्ती । स्वास्थ्य | अनामयम् (न० ) विष्णु का नाम । अनायत वि० ) जो परतंत्र न हो अजीविका | + स्वतंत्र | स्वतंत्र विना परिश्रम | अनायास ( वि० ) बिना प्रयास विना उद्योग सरल सहज | ष्प्रनारत ( वि० ) १ सतत | बराबर अखरिडत । अबाधित २ सनातन । 1 1 } अनार्जव ! वि. ) कुटिल येईमान अधार्मिक नारम्भः (पु० ) अननुष्ठान आरम्भ का अभाव। नार्जवम् ( न० ) १ कुटिलता । जाज । फरेब | २ रोग | ध्यनार्तव (वि०) [ सी० --अनार्तवी ] वे ऋतु का अनार्तवा (श्री. ) वह लड़की जिसको मासिक धर्म न होता हो । अनार्य (वि० ) दुर्जन | दुश्शील । चभ्रम | दस्यु | अनार्यः (go ) : जो आर्यन हो । २ वह देश जिसमें आर्य न बसते हों । ३ शूद्र । ४ म्लेच्छ । ५ अधम पुरुष SACTIO अनियत अनार्थ (वि० ) जो ऋऋषियों का प्रोक न हो । | अनिकेत (वि० ) गृहद्दीन आवारा। जिसके घर अवैदिक । न हो और बेमतलब इधर उधर घूमा करे। अनिगी (चि० ) १ जो निगला हुआन हो। अमुक्त। २ अकथित | ३ जो छिया न हो । प्रकट । प्रत्यक्ष अनिच्छ } ( पु० ) सहारे का अभाव ! आधार अनिच्छक | ( वि० ) इच्छा न रखने वाला । अन- शूभ्यता । भिलाषी | निराकांक्षी । जिसे चाह अनिच्छत् अनिच्छु अनिच्छुक . अनालंब }{ वि० ) निराश्रित | बिना सहारे का । अनालस्त्र प्रनालंबः अनालम्बः धनालंबी ) (स्त्री० ) शिवजी की बीणा या शनालम्बी सारंगी । न हो। २ अनित्य ( वि० ) १ जो सनातन न हो । २ विनश्वर । विनाशी नाशवान । २ अस्थायी । अधुव ४ असाधारण । अनिमित १ अस्थिर । चञ्चल ६ सन्दिग्ध संशयात्मक । दत्तः, - दत्तकः, -- इत्तिमः ( पु० ) पुत्र जो किसी दूसरे को कुछ दिनों के लिये दे दिया आय । अनाविद्ध ( वि० ) जो छेदा न गया हो। जो अनावृत्तिः ( स्त्री० ) : अपरावर्तन । फिर न जन्मना । मोह | | अनिष्यम् (श्रव्यवा०) १ कभी कभी । हठात् । दैवात् । [विशेष | इति विशेष | दि (वि०) निरहित जागता हुआ (आलं० ) अनावृष्टिः (स्त्री०) सूखा। वर्षा का अभाव। उपद्रव जागरूक | सावधान सतर्क । थनाअमिन् (पु०) वह जो चार आश्रमों में से किसी भी आश्रम में न हो। जो आश्रमी न हो। अनालंबुका अनालम्बुका अनालंभुका अनालम्भुका (स्त्री०) रजस्वला स्त्री । अनावर्तिन (वि०) फिर न होने वाला फिर न लौटने वाला। [छिदा न हो। “समावी न तिष्ठेनु हममेकमपि द्विज " अनाधव ( वि० ) जो किसी का कहना न सुने। या कहने पर कान न दे। [किया गया हो। . ) अनाहूत (वि० ) अनिमंत्रित विना बुलाया हुआ। विना न्योता हुआ ।उपजल्पिन् विना कहे बोलने वाला या शेखी बघारने वाला उपविष्ट (वि० ) अनिमंत्रित था कर बैठा हुआ। 1 अनिन्द्रियं ( न० ) १ कारण । २ इन्द्रियों में से कोई इन्द्री नहीं, मन । अनिभृत ( वि० ) १ सार्वजनिक | खुलंखुटा । धनछिपा हुआ। २ लज्जाहीन । बेहया साहसी । ३ अस्थिर। जो हद न हो। चपल अविनीत । मक्षिका | अश्वसू (वि० ) अनखाया हुआ। जो भोग न | अनिकः ( पु० ) मेंढक | २ कोयल | ३ मधु- अनास्था (स्त्री०) १ निरपेक्षता अश्रद्धा २ अनादर । नाहत (वि० ) 1 नया ( कपड़ा ) । कोरा कपड़ा। २ तंत्रशास्त्रानुसार हृदयस्थित द्वादशदल कमल । ३ मध्यम | वाक् | ४ आघात रहित वस्तु । अनाहार (वि० ) उपवास किये हुए । अनाहारः (पु० ) उपवास । कड़ाका । लंघन | अनाहुतिः (स्त्री०) अमहवनीय कोई हवन, जो हवम | अनिमेष के नाम से कहलाने के अयोग्य हो । २ अनुचित बलि या अध्यं । प्रनिमित्तम् (न०) १ किसी उपयुक्त कारण या अवसर- का प्रभाव २ अपशकुन बुरा शकुन । अनिमिष ) ( वि० ) उहतापूर्वक नियुक्त या नियत 5 स्पन्दनहीन (नेत्र ) दृषि, लोचन (वि०) विना पलक झपकाये देखना। [आचार्य । अनिमिषाचार्यः ( पु० ) गुरु बृहस्पति देवताओं के अनिमेषः (पु० ) १ देवता | २ मछली |३ विष्णु । अनियत ( वि० ) १ असंयत २ सन्दिग्ध | अनि यमित ३ कारयन्त्र ४ नश्वर यात्मन् (वि० ) असंयत । -पुंसका ( वि० ) दुधारिणी अनिमित्त (वि०) अकारण। आाधाररहित ।~-निरा- क्रिया (स्त्री० ) बुरे शकुनों को पलट देने की अनियत्रण ( ३९ ) स्त्री -वृति (वि० ) वह जिसकी आमदनी या जीविका बंधी हुई न हो। अनियमित आय । अनियंत्रण ( वि० ) असंयत। जो नियंत्रण में न रहे || अनियंत्रितः ( पु० ) उच्छृङ्खल | नियमविरुद्ध | अनियमः ( पु० ) 1 नियम का अभाव । नियत आज्ञा | २ सन्देह ३ अनुचित आचरण । अनिरस्त (वि० ) १ स्पष्ट न कहा गया हो । २ भली भाँति व्याख्या न किया हुआ भली भाँति न समझाया हुआ | 1 अनियः (पु० ) अनिश्चितता। निर्णय का अभाव | अनिर्देश 3 ( वि० ) मृत्यु अथवा जन्म के 10 दिन अनिर्दशाह के धशौच के भीतर। निर्देश: { पु० ) किसी निश्चित foun या आज्ञा का प्रभाव | अनिरुद्ध (वि० ) अबाधित। मुक्त | अनियंत्रित । स्वेच्छाचारी । जो वश में न आसके। पर्थ (न०) १ बिना रुका मार्ग । आकाश। व्योम | अनिरुद्ध: ( पु० ) १ भेदिया। जासूस | २ प्रयुन के पुत्र का नाम जो श्री कृष्ण जी का पौत्र और ऊषा का पति था । ३ पशु आदि के बांधने की रस्सी । ४ मन का अधिष्ठाता। -भाविनी (बी०) अनिरुद्ध की खी। ऊपा | अनिशं (अव्यया० ) सदा । अविरत । सर्वदा। अनिष्ट (वि० ) १ अनभीष्ट अति प्रतिकूल | अनिर्देश्य ( वि० ) यह जिसकी परिभाषा का वर्णन | न हो सके। अवर्थनीय ध्यनिर्देश्यम् ( न० ) परब्रह्म । अनिर्धारित ( वि० ) अनिश्चित | अनिर्वचनीय ( वि० ) १ अनुचा । अवर्णनीय । २ वर्णन करने के अनुपयुक्त। अनिर्वचनीयम् (न०) १ माया | अज्ञान | २ संसार | अनिर्वाण (वि० ) अधुला। स्नान न किये हुए | अनिवेदः ( पु० ) अशोभ। उदासीनता या उदासी का अभाव। थाप्मनिर्भरता | साहस । अनीकः निर्वृतिः १ ( सी ) १ बेचैनी । विकलता। चिन्ता | व्यनिर्वृत्तिः | २ गरीबी निर्धनता अनिर्वृत (चि० ) चैत दुखी | ● निलः (पु० ) पवन | २ पवन देव | ३ एक उपदेवता | ४ शरीरस्थ पवन । मानसिक भावों में से एक २ गठिया रोग या बातजन्य कोई रोग अयनं ( न० ) पवन नार्ग । --अशनू,- अशिन् । २ पवनखाना। उपवास | आत्मजः (पु० ) पवनपुत्र। भीम और हनुमान- आमयः (अनिलामयः ) ( पु० ) वातरोग । अफरा- सखः ( पु० ) अभि । अनिलन् (पु० ) सर्प । अनिर्लोडिस (वि० ) भली भाँति अविचारित । बुरी तरह निर्णीत | २ अशुभ ३ बुरा भाग ४ यज्ञद्वारा असम्मा- नित। - आपत्तिः (स्त्री० ) -- आपादनं ( न० ) अवच्छित वस्तु की प्राप्ति। सर्वोति घटना /- ग्रहः (पु०) पापग्रह | सुरेह /-प्रसङ्गय (पु० ) दुर्घटना अशुभ घटना । किसी बुरी वस्तु, युक्ति अथवा नियम से सम्बन्ध युक्त ।-फलं ( न० ) बुरा परिणाम – शङ्का (बी० ) अशुभ का भय । -हेतुः (पु० ) अपशकुन बुरा शकुन । अनिष्टम् ( न० ) अशुभ | अमाम्य | दुर्भाग्य | विपत्ति । २ असुविधा हानि । 1 निष्पत्रम् (अन्य ) तीर का वह भाग जिसमें पर लगे रहते हैं, जिससे वह दूसरी ओर न निकले । अनिस्तीर्ण ( वि० ) १ जिससे पिंड या पीछा न छुटा हो । २ अनुत्तरित। अस्खण्डित। जिसका खण्डन न हुआ हो। अनीकः ( पु० ) १ सेना फौज पटन दल --स्थः ( पु० ) २ सैनिक | योद्धा ३ पहरे- दार सन्तरी ४ महावत या हाथी का शिक्षक २ मारूबाजा | ढोल या बिगुल ६ सत। चिन्ह । निशानी । अनीकम ( ४० ) अनुक्रमणं १ जमाय। भुंड । २ लड़ाई अनुकंप } (१०) दया | करुया । कोमलता । सहानुभूति | अनीकम् ( न० ) आमना-सामना । युद्ध ३ पंक्ति अवजी | अनुकम्पसम् ४ सामना । मुख्य प्रधान । ध्यनीकिनी (पु०) १ सेना ! बुल फौज | २ तीन [1] चमू या अचौहिणी सेना का दसयों भाग । अनुकंपा } ( स्वी० ) दया । कण्या | I अनील (वि० ) जो नीला न हो। सफेद - या जिन् | अनुकंप्य } ( स० का० कृ० ) व्यापात्र | कृपाशुत्र अनुकम्प्य) सहानुभूति दिखलाने योग्य दयनीय । अनुकंप्य: } (पु० ) हलकारा। दूत शीघ्र सन्देशा से अनुकम्यः जाने वाला। ( पु० ) सफेद घोड़ों वाला। अर्जुन की उपाधि । श्यनरेश ( वि० ) १ सर्वोपरि । सर्वोद | २ जो किसी पर अपनी सत्ता था धातक न रखता हो। जो स्वामी या मालिफ न हो । अनीशः ( पु० ) विष्णु का नाम । असंयत अनीश्वर (वि० २ अयोग्य | ३ ईश्वर सम्बन्धी नहीं। नास्तिकता वाला-वादः (पु.) नास्तिकवाद । नास्तिक | 1 प्री (वि० ) निःस्पृह निरपेड़ | फलाशारहित । अनिच्छुक अनीहा (स्त्री०) अनिच्छा निःस्पृहता अनुकथनम् (न० ) १ पीछे का वर्णन | २ सम्बन्ध । ३ संवाद । वार्तालाप । अनुकरणम् ( न० ) (१ नकल उतारना | २ प्रति- अनुकृतिः (स्त्री० ) } लिपि । समानता। एक- रूपता । अनुकनीयस् (वि०) दूसरा सब से छोटा (उम्र में) । अनुकम्पक ( वि० ) दयालु | दयावान कश्या पूर्ण अनुक ( 30 ) ) १ पीछे घसीटना २ रथ के अनुकर्षणम् (सी० )) नीचे रहने वाली लकी जिसके सहारे पहिये रहते हैं। अनुकल्पः (५०) गौस कल्प उसके प्रतिनिधि की कल्पना अनु ( अभ्यया० ) यह एक उपसर्ग है (इसका प्रयोग संज्ञाओं के साथ क्रियाविशेषणात्मक अनुकार देखो “अनुकरणं " । समासों के बनाने में या क्रियाओं अथवा क्रियाओं | अनुकाल (वि० ) सामायिक | मौके का · की धातुओं में होता है पीछे पश्चात् २ साथ। पास पास ३ साथ | ४ अश्रेष्ठ या आश्रित् ५ विशेष सम्बन्ध से सम्बन्ध में या । वस्था में ६ साझा | ७ दुहराना । = दिन | अनुकूल ( वि० ) १ पक्ष में | अभिमत | मनोश । प्रति दिन ६ ओर । तरफ | १० क्रम से एक के बाद एक | मुआाफिक | २ सदय | दोस्ताना | ३ समर्थनीय | अनुकूल: (पु० ) विश्वस्त और दयालु पति । नायक विशेष | समान । मानों । १२ समर्थनीय समर्थन करने योग्य अनुक ( वि० ) १ लालची। अभिलाषी । २ कामी। लम्पट । इन्द्रियदास | अनुकम् ( न० ) वितर्क | युक्ति। मुख्य के अभाव में प्रतिनिधि | अनुकामीन ( वि० ) स्वेच्छापूर्वक गमन या सहर्ष गमन | स्वेच्छाचारिता | अनुकीर्तनम् ( न० ) प्रकाशन या प्रकटन ग्रा घोषणा करने की क्रिया . अनुकूलम् ( न० ) १ कृपा | अनुग्रह | २ सहायता | प्रसन्नता । अनकूलयति ( धा० परमै० ) मिलाना । अपने पक्ष में कर लेना। राजी कर लेना। अनुक (वि० ) धारे की तरह दाँतों वाला। अनुक्रमः ( पु० ) १ सिलसिला क्रम तरतीय । परिपाठी | यथाक्रम | २ विषयसूची | अनुक्रम ( न० ) १ सिलसिलेवार बढ़ना । २ अनु- गमन । अनुक्रमणी अनुक्रमणी अनुक्रमणिका ( स्त्री० ) १ विषय सूची परिपाटी बतलाने वाली। जिसमें किसी ग्रन्थ में वर्णित विषयों का संक्षेप में पतेवार वर्णन ( ४१ ) J हो । सूची | तालिका । २ फात्यायन के एक ग्रन्थ | का नाम इसमें मंत्रों के ऋषि, छन्द, देवता, और मंत्रों के विनियोगों का वर्णन है। अनुकिश देखो "अनुकरणम्" अनुकोशः ( पु० ) दया । रहम कृपा अनुतणम् (धव्यया०) प्रत्येक लहमा प्रत्येक क्षण सन्त बराबर अक्सर बहुधा अनुत्तू ( पु० ) ) अनुक्षता (श्री० ) दरबान या सारथी का | } टहलुआ। अनुक्षेत्रं ( १० ) पुजारियों को दी जाने वाली वृत्ति या बंधान। ( उड़ीसा के मंदिरों में यह बंधान बंधा हुआ है । अनुख्यातिः ( स्त्री॰ ) किसी गुप्त बात की सूचना देना या उसको प्रकट करना | अनुग ( वि० ) अनुगत । पीछे जाने वाला ( मिलान करने पर ) मिलना । अनुतर्पः अनुग्रहः ( ५० ) ( कृपा | दया । अनुकंपा । २ अनुग्रहणम् (न० । । स्वीकारोक्ति स्वीकृति । ३ प्रधान सैम्पदलका पश्चातभाग रचक सैन्यदल अनुप्रासकः ( पु० ) मुख भर कर अर्थात् जितना मुख में घट सके। अनुयायी साथी । अनुवर्ती। पीछे चलने अनुचर: ( पु० ) दास । सेवक 1 टहलुआ । सहचार | अनुचरी ( स्त्री० ) टहलुनी। दासी । अनुवरा अनुचारकः (g० ) अनुचर | सेवक । अनुचारिका ( स्त्री० ) अनुचरी | दासी । अनुचित ( वि० ) प्रयुक्त । नामुनासिय | २ असाधारण अयोग्य अनुचिंता, (स्त्री०) अनुचितनम् (न० ) ) विचार । अनुचिन्ता (०) अनुचिन्तनम् ( न० ) ) ध्यान | अनुध्यान उत्कण्ठा पूर्वक स्मरण | अनुच्छादः (पु० ) अंगे के नीचे पहना जाने वाला कपड़ा। नीमा । अनुच्छित्तिः ( स्त्री० ) अनुच्छेदः (३० ) ) अनुगः ( पु० ) अनुयायी। पिछलगुचा । थाज्ञाकारी मौकर साथी सहचार अनुगतिः ( स्त्री० ) अनुगमन | पीछे चलना | नकल | अनुजातः } ( पु० ) छोटा भाई । करना। अनुकरण करना अनुगमः ( 50 ) 21 पीछे चलना | अधीन | अनुजन्मन् ( पु० ) छोटा भाई । अनुगमनम् ( ज० 25 होना। सहायक होना । २ सहमरण | किसी स्त्री का अपने पति के पीछे मरना ३ अनुकरण करना अनुसरण करना। समीप जाना १४ अनुहार । अनुसार। अनुगर्जित (वि० कृ० ) गर्जन करता हुआ । अनुगर्जितम् (न० ) गर्जन युक्त, प्रतिध्वनि । अनुगवीन: ( पु०) गोपाल । ग्वाला । अहीर गौ चराने वाला। अनुगामिन् ( पु० ) अनुगामी । (वि० ) वाला । अनुगुण ( वि० ) समान गुण वाला समान स्वभाव | अनुतर्पः (पु० ) १ प्यास नाला अनुकूल | मनोज्ञ | उपयोगी । ३. पानपात्र ४ मय । अनाशकत्व | अनष्टत्व | } (वि० ) पीछे जन्मा हुआ। पिछला । छोटा है अनुज अनुजजात अनुजीविन् वि० ) परावलम्बी। दूसरे पर ( आजी- विका के लिये निर्भर नौकर चाकर। 1 J अनुक्षा ( स्त्री० ) | अनुज्ञानं (न० ) अनुमति । आज्ञा । हुक्म । अनुशापकः ( पु० ) आज्ञा देने वाला हुक्म देने चाला। अनुशापनम् ( म० ) अनुज्ञप्ति (स्त्री० ) अनुज्येष्ठम् (अन्य या बढ़ाई। आशा हुक्म अनुमति । ) ( वयक्रम से ) ज्येष्ठता २ इच्छा | कामना । सं० श० कौ० ६ ( ४२ ) अनुतण मनुतर्पणं ( न० ) देखो "धनुतर्पः" [दुःख मनुतापः (पु० ) पश्चाताप कर्म करने के अनन्तर धनुतितं ( अव्यया० ) अति सूक्ष्मता से। तिल तिल करके तिल के बराबर | अनुत्थानं ( न० ) उद्योग का अभाव | अनुत्सूत्र (वि०) सूत्र के विरुद्ध नहीं। अनुत्सेकः ( पु० ) क्रोध या अभिमान का अभाव | शील | अनुत्क ( वि० ) जो अत्यधिक उत्कण्ठित न हो। जो पश्चात्ताप न करे । [ कर। अनुचम ( वि० ) सर्वोत्कृष्ट | सर्वश्रेष्ठ | सब से बद अनुत्तर ( वि० ) १ मुख्य | प्रधान | २ उत्तम | श्रेष्ट | ३ उत्तर विना | चुप उत्तर देने में अस मर्थ । ४ दृढ़ | मज़बूत । २ नीच | अश्रेष्ठ | कमीना | द | ६ दक्षिणी । दक्षिण दिशा का । [ वाला | अनुष्वरम् (न० ) कोई उत्तर नहीं। अनुत्तरङ्ग ( वि० ) मजबूत | रङ । बिना लदरों | अनुध्यानम् ( न० ) अनुत्तरा ( स्त्री० ) दक्षिण दिशा । अनुत्सेकिन ( वि० ) जो अभिमान से फूल कर कृष्णा न हो गया हो । अनुदार ( वि० ) १ जो उदार न हो। जो कुञ्जीन न हो । २ जिसके उपयुक्त पक्षी हो। अनुपधातः अनुद्भुत ( चि० कृ० ) पिछ्याया हुआ | २ लौटाया हुआ। वापिस लाया हुआ। अनुगामी। ध्यनुद्रुतम् (१० ) ( संगीत में ) तालविशेष । मात्रा का चौथा भाग अनुदिनम् (अन्य ) नित्य | हररोज | दिनों अनुदिवसम् दिन। अनुवाहः (पु०) अविवाहावस्था। अनूढावस्था । चिर- कौमार्य । अनुदेशः (१०) पीछे का निर्देश । २ निर्देश | आज्ञा । अनुद्धत (वि० ) जो उदण्ड या अभिमानी न हो। अनुद (वि० ) १ जो वीर न हो। जो साहसी न हो। कोमल स्वभाव वाला १२ जो उन्नत या बहुत ऊँचा न हो। अनुधावनम् ( न० ) १ पीछे दौड़ना पीछा करना । पछियाना| २ किसी पदार्थ के बिल्कुल समीप समीप दौड़ना । अनुसन्धान करना पता लगाना। तहकीकात करना । ३ अप्रास होने पर भी किसी भकिन या स्वामिनी का पता लगाना । ४ साफ करना। पवित्र करना। अनुचिन्तन बार बार सोचना २ किसी विषय में तत्पर रहना। ३ असक्ति ४ कृपा करना। ५ मङ्गलकामना । अनुनयः ( ५० ) १ विनय । प्रणिपात । २ सान्त्वना | ३ प्रार्थना। अनुनाद: ( पु० ) शब्द होहल्ला। शोर गुल गपाड़ा। प्रतिध्वनि | भाई अनुदर (वि० ) कृशोदर पतला दुबला। अनुदर्शनं ( न० ) पर्यवेक्षण मुआयना । अनुनायिक ( वि० ) तुष्ट अनुदास (वि०) १ जो उदात्त स्वर से उच्चारणीय नअनुनायिका ( स्त्री० ) एक हो। उदात्त स्वर से भिन्न स्वर अनुनायक ( वि० ) १ आज्ञाकारी । विनम्र विनयशील २ 1 शान्त | सुप्रसन्न | अभिनय पात्री जो किसी अभिनय के मुख्य पात्र ( नायिक) की सहायक हो, जैसे धात्री, दासी आदि अनुनायिका ये होती हैं:- सखी मद्रजिता दासी मैया भाषेविका तथा १ प्रत्याशिवाय विवेया अनुनाविकाः ॥ अनुनासिक (वि०) नासिका की सहायता से उच्चारण होने वाले वर्णं । अनुर्निदेशः ( पु० ) किसी पूर्ववर्ती वचन या भाश का सम्बन्धसूचक दूसरा वचन या श्राशा । अनुनीतिः देखो अनुनय " अनुपघातः (पु० ) किसी जोखों या बाधा का 1 अभाव । अनुपतन अनुपतनं (न०) गणित की वैराशिक किया। अनुपातः (50) ) वैराशिक गणित । २ पीछे गिरना । पीछा करना । ३ आनुगुण्य एक अद्भ के साथ दूसरे अङ्ग का सम्बन्ध । अनुपथ (वि० ) मार्ग का अनुसरण अनुपथम् ( क्रि० वि० ) सड़क के साथ साथ । अनुपद (वि० ) १ पीछे पीछे कदम कदम | २ अनन्तर। बाद ही। अनुपपत्तिः (स्त्री०) १ उपपति का श्रभाव | सङ्गति । असिद्धि । २ असम्पन्नता असमर्थता । अनुपम ( वि० ) उपमारहित बेजोड़ सर्वोत्तम । सर्वोकृष्ट अनुपदवी (स्त्री० ) मार्ग सड़क | अनुप (वि०) अनुसरित पीछे लगा हुआ खोजने वाला। तलाश करने वाला जिज्ञासु । अनुपदीना ( स्वी० ) जूता, मोना, खड़ाऊ । अनुपधः ( पु० ) उपधा या उपान्त्य शब्दोश का [जाल साड़ी के । श्रभाव | अनुपधि ( वि० ) प्रयञ्चना रहित । चलवर्जित । विना अनुपातकम् ( न० ) महापातक जैसे चोरी, हत्या, अनुषन्यासः ( पु० ) १ वर्णन न करना | बयान न व्यभिचार आदि । विप्में, इस श्रेणी में, ३२ और मनुस्मृति में ३० प्रकार के पातकों को शामिल किया है। देना | २ सन्देह शक । प्रमाण या निश्चय का अभाव असमाधान | बेनजीर [हथिनी । अनुपमा ( स्त्री० ) नैऋत्य कोण के कुमुद दिग्गज की अनुपमेय ) ( वि० ) येजोड़ | जिसकी तुलना न अनुपमित हो सके। अनुपलब्धिः (खी ३) । अप्राप्ति | न मिलना । अस्वी कृति प्रत्याभिज्ञान। ( सांख्य ) प्रत्याभिज्ञान | अनुपलंभ (पु० ) बोध या अत्यम का अनुपलम्भः अभाव । अतुपवीतिन् ( १० ) जो द्विज यज्ञोपवीत धारण न करे । अनुमसक्तिः अनुपसंहारिन (पु० ) ( न्याय ) हेत्वाभास । अनुपसर्गः ( पु० ) १ शब्दांश जिसमें उपसर्ग न हो । २ उपसर्ग रहित । अनुपशयः ( पु० ) १ कोई वस्तु या अवस्था जो रोग की वृद्धि करे २ रोगज्ञान के पांच विधानों में से एक इससे आहार विहार के बुरे परिणाम से रोगी के रोग का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। अनुपस्थानम् ( ० ) गैरहाज़िरी अनुपस्थिति। समीप न होना। अविद्यमानता । अनुपस्थित (वि० ) गैरहाजिर | अविद्यमान | मौजूद नहीं | अनुपस्थितिः ( स्त्री० ) गैरहाज़िरी । अविद्यमानता । अनुपहत ( वि० ) १ चोटिल नहीं २ श्रव्यवहृत | काम में न लाया हुआ। अभ्यस्त | ३ कोरा (जैसा कपड़ा ) । अनुपाख्य (वि० ) जो साफ साफ न देख पड़े । जो साफ़ साफ़ समझ में न आवे । अनुपानम् (न० ) पदार्थ विशेष जो किसी औषध के साथ या ऊपर से खाया जाय। [आज्ञाकारी । अनुपालनम् ( म० ) रखवाली अनुपुरुषः (पु० ) अनुयायी । अनुपूर्व (वि० ) यथाक्रम | सुविभक्त जः (वि० ) पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षा | ! साख व साख -वत्सा (वि० ) गौ जो नियमित रूप से बच्चे दे। --पूर्वशः, - पूर्वेण ( क्रि० वि० ) - क्रमागत रीति से । 1 समपरिमित | अनुपेत (वि० ) जिसका उपनयन ( यज्ञोपवीत ) संस्कार न हुआ हो। [प्रयोग | अनुप्रयोगः (पु० ) बार बार दुहराना। अतिरिक्त अनुप्रवेशः ( पु० ) दरवाजे के भीतर जाना । किसी के मन के भीतर घुसना मन में स्थान करना । अनुप्रसकिः ( सी० ) १ घनिष्ट प्रेम | प्रगाढ़ अनुराग । २ ( शब्दों का) अत्यन्त घनिष्ट सम्बन्ध | अनुप्रसादनम् अनुप्रसादनम् (न०) प्रसादन | सोपन दूसरे को सन्तुष्ट या प्रसन्न करने की क्रिया। अनुमाप्तिः । ( स्त्री० ) प्राप्ति । पहुँच। अनुप्लवः (पु० ) अनुयायी | नौकर। सहायक । अनुगामी । अनुप्रासः (पु० ) अलङ्कार विशेष इसमें किसी पद में एक ही अक्षर बार बार प्रयुक्त हो कर उस पद को अलत करता है। वर्णवृत्ति वर्णमैत्री | वर्णाम् । 1 अनुबद्ध ( व० कृ० ) १ बंधा हुआ । गसा हुआ । जकड़ा हुआ। २ यथाक्रम अनुगमन करने वाला। ३ सम्बन्ध युक्त | ४ सतत । लगातार । अनुबंधः ) ( पु० ) बन्धान सम्बन्ध युक्त । २ अनुबन्धः ) एक के बाद एक क्रमागत | ३ परिणाम | फल ४ इरादा उद्देश्य कारण ५ व्याकरण में प्रकृति, प्रत्यय, श्रागम, आदेश यादि में कार्य के लिये जो वर्ण लगा दिये जाते हैं, वे भी अनुबन्ध कहे जाते हैं । ६ माता पिता का अनु- वर्तन करने वाला पुत्र प्रारम्भ किये हुए किसी काम का अनुवर्तन करना | ७ भावी अशुभ परिणाम । फलसाधन । ८ वेदान्त में एक एक विषय का अधिकरण १ बात, कफ, पित्त में जो अप्रधान हो । १० लगाव | श्रागा पीछा । 19 होने वाला शुभ या अशुभ | अनुबंधनं अनुबन्धनम् } (न० ) लगाँव । सम्बन्ध । अनुबंधिन् । ( वि० ) १ सम्बन्धित । लगाव रखने अनुबन्धिन् । बोला । सम्बन्धो परिणाम स्वरूप | २ समृद्धशाली । ३ थवाधित । अनुवन्ध्य ( वि० ) १ मुख्य | प्रधान | २ मारे जाने को मार डालने को। अनुवलं ( न० ) मुख्य सेना की रक्षा के लिये उसके पीछे आने वाला सैन्यदल सहायक सैन्यदल अनुबोधः (पु० ) स्मरण या बोध जो पीछे हो । गन्धोद्दीपन | अनुबोधनम् ( न० ) प्रबोधन । स्मरण । स्मरण शक्ति । अनुमतिः साक्षात् करने से प्राप्त हुआ ज्ञान । परीक्षा द्वारा प्राप्त ज्ञान उपलब्ध ज्ञान | तजरबा | २ परिणाम । फल/- सिद्ध (वि० ) अनुभव या तजरवे से प्रतिपादित । अनुभवः (५०) अनुभावः (पु० ) राजसी चमकदमक । चमक दमक । महिमा | बढ़ाई। शक्ति । अधिकार प्रभाव | सामर्थ्य | निश्चय | २ हृदयम्भित भाव को प्रकाशित करने वाली कटाच रोमाञ्चादि चेष्टा । भावप्रकाश का भाववोधक ३ काव्य में रस के चार अंगों में से एक। वे गुण और क्रियाएं जिनसे रस का बोध हो सके । ४ अनुभाव के १ सात्विक २ कायिक ३ मानसिक और आहार्य चार भेद माने जाते हैं। हाव भी इसीके अन्तर्गत है। अनुभावक ( वि०) द्योतक । निर्देशक । बतलाने बाला। समझाने वाला। ३ अनुभावनम् (न० ) चेष्टाओं द्वारा मानसिक भावों का निर्देश करना अर्थात् बतलाना । अनुभावणं ( न० ) किसी दावे या कथन को दुहरा कर खण्डन करना। खण्डन करने के लिये किसी दावे या कथन को दुहराना। अनुभूतिः ( स्त्री० ) अनुभव | परिज्ञान। आधुनिक न्याय के अनुसार ये चार प्रकार की मानी गयी है । अर्थात् १ प्रत्यक्ष १ २ अनुमिति | ३ उपमिति ४ शब्दबोध | अनुभागः (पु० ) १ वह भूमि जो किसी को किसी काम के बदले माफी में दी जाय । खिदमती । २ सुखभोग विलास | अनुभ्रातृ (पु० ) छोटा भाई । अनुमत (व० कृ ) १ अनुज्ञात स्वीकृत । श्रङ्गी- कृत २ पसंद प्रिय प्यारा । कृपापात्र | | अनुमतम् ( न० ) स्वीकृति | रजामंदी । अनुमति । अनुमतः (पु) अनुरागी। आशिक । अनुशा अनुमतिः ( स्त्री० ) १ आज्ञा । अनुज्ञा | हुक्म | २ पूर्णिमा जिसमें एक कला कम हो। चतुर्दशीयुक्त पुर्णिमा | - पत्र ( न० ) प्रमाणपत्र जिसमें किसी काम की मंजूरी दी गयी हो । ( अनुमननम् अनुमननम् ( न० ) स्वीकृति । अनुमति । आज्ञा । इजाजत | २ स्वतंत्रता | मंत्र (०) मंत्रों द्वारा श्राह्वाहन या प्रतिष्ठा । अनुमरण (न०) पीछे मरना । किसी पहले मरे हुए के पीछे मरना । किसी विधवा का पीछे सती होना । ak ) अनुमेय ( स० का० ऋ० ) अनुमान के योग्य | अनुमोदनम् ( न० ) · समर्थन | ताईद। स्वीकृति । [ अनुयाग अनुयाजः (पु० ) यज्ञ का अङ्ग विशेष अनुयाज | अनु (५०) अनुयायो । अनुलीपः अनुयोजनम् (न० ) प्रश्न | खोज | अनुयोज्य: ( पु० ) नौका । परिषदवर्ग । अनुरक्त ( व कृ० ) १ लाल रंगीन । २ प्रसन्न सन्तुष्ट । अनुरागवान् । अनुरक्तिः (स्त्री० ) प्रेम अनुराग | भक्ति | स्नेह | अनुरंजक अनुरञ्जक अनुरंजनं अनुरज्जनम् । प्रद । अनुरतिः ( स्त्री० ) प्रेम । स्नेह | अनुमा (स्त्री० ) अनुमिति | अनुमान | अनुमानम् (न० ) १ अटकल | अंदाज़ा भावना विचार २ । परिणाम । नतीजा फल | ३ म्याय- शास्त्रानुसार प्रमाण के चार भेदों में से एक। इससे प्रत्यक्ष साधनों द्वारा प्रत्यक्ष साध्य की | अनुरध्या (स्त्री०) पगडंडी | उपमार्ग । भावना होती है। } ( वि० ) प्रसन्नताप्रद । सुखप्रद । ह्लादकर । अनुरसः (पु० ) अनुरमितं ( न० ) अनुमासः (पु०) आगे का महीना । अनुमा (व्या ) प्रत्येक मास अनुरहस (वि० ) गुप्त एकान्त । निजू । अनुमितिः ( स्त्री० ) १ अनुमान | २ नव्य न्याय के | अनुरागः (१०) खलाई । २ भक्ति | प्रेम । स्वामि- अनुसार अनुभूति के चार भेदों में से एक। भक्ति | ३ अनुभव विशेष। परा-र्श से उत्पन्न ज्ञान हेतु अनुराग } ( बि॰ ) प्रेमपूर्ण । या तर्क से किसी वस्तु को जान लेना । ३ ( न० ) सन्तोषकारक | प्रसन्नता - अनुयात्रम् (न० ) हे अनुचरवर्ग | अनुयात्रा (खो०) । पारिपाश्र्वं । अनुयात्रिकः ( ० ) अनुचर नौकर | अनुयानं ( न० ) अनुगमन । पीछे जाना। अनुयायिन् (वि० ) १ पीछे गमन करने अनुवर्ती। याश्रित। नौकर २ परिवर्ती घटना अनुक्कू ( पु० ) परीक्षक जिज्ञासु । शिक्षक। अनुयोगः ( पु० ) १ प्रश्न | खोज । परीक्षा | टीकाटिप्पणी २ भर्त्सना डांढपटक ३ याचना। अनुरोधिन् } ४ उद्योग। ५ ध्यान । ६ | कृत ( पु० ) १ प्रश्नकर्त्ता | २ उपदेशक | शिक्षक गुरु अनुरूपं अनुरूपतः अनुरूपेण अनुरूपशः } प्रतिध्वनि । झाई । अनुरात्रम् ( अव्यया ) रात्रि में प्रत्येक रात्रि | प्रति रात्रि । एक रात के बाद दूसरी रात । अनुराधा (स्त्री० ) २७ नक्षत्रों में से १७ वाँ । यह सात तारों के मिलने से सर्पाकार है। अनुरूप ( वि० ) अनुहार तुल्य सदश । समान सरीखा २ योग्य | अनुकूल उपयुक्त | ( कि० वि० ) सादृश्य से अनुहार से। अनुसार । वाला । | अनुरोधः (पु० ) } १ प्रेरणा | उत्तेजना । २ अनुराधनम् (न० ) ऽ आग्रह | दबाव विनय पूर्वक किसी बात के लिये थाग्रह प्रार्थना | याचना | अनुवर्तन । (वि०) विनयी । विनम्र । वचन- अनुरोधक ग्राही । अनुलापः ( पु० ) बारबार कथन । पुनरुक्ति । द्विरुक्ति । ( न्याय० ) पुनर्बाद | आनेडन | अनुलासः } ( पु० ) मोर । मथुर । अनुलासः अनुजास्यः अनुलेपः ( पु० ) । किसी तरल वस्तु की तह अनुलेपनम् ( न० ) ) चढ़ाना | सुगंधित वस्तुओं को शरीर में लगाना उबटन करना । २ उबटन | लेप । अनुलोम ( वि० ) १ केश सहित । श्रेणीक्रम | नियमित अनुकूल | २ सङ्कर ( जाति ) - अर्थ (वि० ) अनुकूल कथन । ज, - जन्मन् (वि० ) यथाक्रम उत्पत्ति । पिता की अपेक्षा होनवर्ण माता की सन्तान । वर्णसङ्कर | अनुलोमम् ( अव्यया० ) यथाक्रम | स्वाभाविक क्रम से। अनुलोमा (बहुवचन) सङ्करजातियां | दोगली जातियां । अनुवण (वि.) : अत्यधिक नहीं। न अधिक न कम | २ अस्पष्ट | अव्यक्त | अनुवंशः (पु० ) गोत्रपट | वंशावलीपत्र । अनुवक ( वि० ) बहुत टेढ़ा । अनुवचनं (न) पुनरावृत्ति | पठन | शिक्षण | अनुवत्सरः (पु० ) वर्ष संवत्सर । अनुवर्तनम् ( न ) १ अनुगमन | आज्ञापालन । समर्थन । २ प्रसन्नता | कृतज्ञता | ३ पसंदगी | ४ परिणाम। फल । २ किसी पूर्ववर्ती सूत्र की पूर्ति । अनुवाक ( पु० ) अन्यविभाग। ग्रन्थखण्ड । अध्याय या प्रकरण का एक हिस्सा । वेद के अध्याय का एक भाग। अनुवाचनम् ( न० ) पढ़वाना । पाठ कराना । शिक्षा दिलाना। २ स्वयं बांचना या पढ़ना । अनुवेल लिये किसी अंश का बार बार पढ़ना किसी ऐसे विषय का जिसका निरूपण हो चुका हो, व्याख्या रूप में या प्रमाण रूप में पुनः पुनः कथन । २ समर्थन | ३ सूचना । अफवाह ४ भाषान्तर | उत्था | तर्जुमा । अनुवातः ( पु० ) हवा का रुख । जिस ओर की हवा हो उस ओर। अनुवादक अनुवादिन (वि० ) १ उल्था करने वाला | भाषान्तर करने वाला । २ अर्थवोधक | व्याख्या- सूचक | सङ्गतिविशिष्ट अनुवाद्य ( स० का० कृ० । व्याख्या करने योग्य | उदाहरणीय । अनुविधायिन (वि० ) आज्ञाकारी । अनुवश ( बि० ) दूसरे का वशवर्ती | दूसरे की इच्छा | अनुविनाशः ( पु० ) पीछे से विनाश | पर निर्भर | परवश आज्ञाकारी । अनुवार (अव्यया० ) बार बार । समय समय पर अक्सर । अनुवासनम् ( न० ) ) यादि से सुवासित । श्वस्त्र के अनुवासः ( पु० ) १ सुगन्ध | सौरभ । २ धूप छोर को अतर से तर कर सुवासित करना । अनुवासनः (पु० ) पिचकारी । अनुवासित (वि० ) सुवासित । सुगन्धित अनुवित्तिः ( स्त्री० ) प्राप्ति | उपलब्धि । अनुद्धि (व० कृ० ) छिदा हुआ। सुराख किया हुआ । वमी चलाया हुआ | २ फैला हुआ। छापा हुआ। श्रोतप्रोत । परिपूर्ण | व्याप्त । संमिश्रित । ३ सम्बन्धयुक्त ४ जड़ा हुआ । अनुविधानं ( न० ) १ आज्ञापालन | २ आज्ञानुसार कार्य करना । अनुविष्टम्भ ( पु० ) परिणाम स्वरूप बाधा में पड़ा हुआ। अन्त में रुद्ध । अनुवृत्त (व० कृ० ) आज्ञापालन | अनुवर्तन । २ अवाधित । विना रोका टोका हुआ | सतत | अनुवृत्तः (पु० ) । प्रविष्ट | व्याप्त पालित। अनुवृत्तिः ( स्त्री० ) १ स्वीकृति । आज्ञापालन | समर्थन । अनुसरण सातत्य । निरवच्छिन्नता । २ पुनरावृत्ति । अनुवादः (पु० ) ३ दुरुक्तिः । ब्याख्या करने के लिये | अनुवेलं (अव्यया० ) कभी कभी । यदाकदा । प्रायः । या उदाहरण देने के लिये अथवा पुष्ट करने के समय समय। सदैव । अनुवेश अनुष्णम् १ अनुसरण | पीछे प्रवेश करना | | अनुशिष्टि: (स्त्री०) श्रादेश। शिक्षण | निर्देश । आज्ञा विचार पूर्वक कर्तव्याकर्तव्य का निरूपण | पु०) ईका विवाह । } (न० ) गौण क्षक्षण ॥ अनशोकः ( पु० ) ) शोक | पछतावा | दुःख । ( पु० ) १ चोट | छेदन | धन | | अनुशोचनम् ( न० ) ) खेद | २ संभोग। मिलन | ३ भुकन | ४ रोक | अनुश्रवः ( पु० ) गुरु परम्परा से उच्चारित। जो केवल सुना जाय। वेद । १ पुनरावृत्ति | पुनः पुनः उच्चारण । २ शाप | अकोसा। (न०) ) घर आये हुए शिष्ट पुरुषों के जाने बी०) ) के समय, कुछ दूर तक उनको के लिये जाना । शिष्टाचारविशेष । पीछे जाना । ० ) भक्त | भक्तिमान् | अनुरक्त अनु- 1 वि० ) सौ के साथ या सौ में खरीदा वि० ) सुब्ध | दुःखी । ( स्त्री० ) परकीया नायिका का एक भेद । अपने प्रिय के मिलने के स्थान के नष्ट दुःखी हो । वि० ) १ भक्ति के कारण अनुरागी । निष्ठ ।२ पश्चात्ताप करने वाला। ० ) १ पश्चात्ताप परिताप । दुःख भारी वैर घोर शत्रता। महाक्रोध । ३ अनुषङ्गिक (वि० ) सहभावी। सहवर्ती सम्बन्धी । 'निष्ट सम्बन्ध । घनिष्ट अनुराग ४ किसी | अनपेंगिन् } ( वि० ) १ सम्बन्ध युक्त | सम्बन्धी । खरीदने के बाद का क्षोभ | २ अनुष हुआ । चिपका हुआ । २ ज्याप्त । अनुषेक (पु०) पानी से बार बार तर करना। अनुसेचनम् ) ( न० ) सींचना | राम । एक घृणोत्पादक | १० ) राक्षस । ( वि०) निर्देशक । शासन करने वाला। आशा देने वाला राज्य का प्रबन्ध करने उपदेष्टा । शिक्षक। देश था वाला अनुशीलनम् ( म० ) बार बार देखना। आलोचन अध्ययन विशेष । ( ( न० ) १ उपदेश । शिक्षा आज्ञा । आदेश व्याख्यान | विवरण | २ महा- एक पर्व । अनुष्क (व० ० ) १ सम्बन्धित | चिपका हुआ। सटा हुआ । अनुषङ्ग ( पु० ) १ अतिनिकट सम्बन्ध या विद्यमानता 1 सम्बन्ध | मेल । संघ | २ एकीभाव | संहति । ३ एक शब्द का दूसरे शब्द से सम्बन्ध | ४ निश्चित परिणाम | ५ दया | करुणा । ६ प्रसङ्ग से एक बाक्य के आगे और वाक्य लगा लेना । ७ (न्याय में ) उपनयन के अर्थ को निगमन में ले जाकर घटाना । अनुष्टुतिः ( स्त्री० ) स्तुति प्रशंसा । ( यथाक्रम ) । अनुष्टुभू] ( स्त्री० ) १ प्रशंसा से पूर्ण वाणी। २ सरस्वती । ३ चार पाद का एक छन्द विशेष | इसके प्रत्येक पाठ में चार अन्तर होते हैं। अनुष्ठाव अनुष्ठायिन (चि० ) करते हुए । बनाते हुए। अनुष्ठानम् (न०) किसी क्रिया का प्रारम्भ शास्त्र विहित किसी कर्म को नियम पूर्वक करना। प्रयोग | पुरश्चरण | अनुष्ठापनम् (म० ) कोई काम करवाना। अनुष्य ( वि० ) १ जो गर्म न हो। ठंडा २ सुस्त काहिल । निरपेक्ष | अनुष्णः (पु०) ठंडा | शीतज्ञ । अनुष्यम् (न० ) नीलकमल । उत्पक्ष । अनुष्यन्द अनुष्यन्दः (१०) पिछला पहिया अनुसन्धानम् ( न० ) खोज तहकीकात सूक्ष्म निरीक्षण या पर्यवेक्षण परीक्षा | जांच | २ चेष्टा । | प्रयत्न कोशिश ३ उपयुक्त सम्बन्ध | अनुसंहित (वि. कृ० ) तहकीकात किया हुआ | जाँचा हुआ। खोज किया हुआ। ( ४८ ) सिद्धान्तकौमुदी । अनुसंहितम् ([अव्यया०) संहिता ( पेट में ) संहिता | अनुस्तरणम् ( न० ) चारों ओर से सीना या के अनुसार। गांठना। चारों ओर फैलाना या विद्वाना। अनुस्तरी ( श्री० ) गौ | यह गौ जे किसी के मृतक कर्म में उत्सर्ग की जाय। अनुसमयः ( पु० ) नियमित या उपयुक्त सम्बन्ध जैसा कि शब्दों का। अनुसमापनम् (न) नियमित समाप्ति । अनुसम्बन्ध (वि० ) सम्बन्धयुक्त । अनुसरणम् (न. ) पीछे पीछे चलना। पीछा करना पीछे जाना। समर्थन अनुकूल आचरण अनुमर्पः (go ) पेट के चल रंगने वाले जन्तु | छिपकली, सर्प यादि । अनुसरः (पु.) अनुचर । अनुयायी सहचर | | अनुस्मृतिः ( स्त्री० ) 1 मन से किया हुआ ध्यान । साधी । अन्य वस्तुओं को त्याग एक ही वस्तु का ध्यान करना ध्यान अनुस्मरण | अनुसचनम् (अन्यया० ) १ यज्ञानन्तर २ प्रत्येक यज्ञ में ३ प्रतिक्षण | अनुसाम (वि० ) अनुकूल मित्रता से | राज़ी । सुप्रसन्न | अनुसायं ( न० ) प्रतिसन्ध्या हर शाम। अनुसार: (०) अनुकूल ३ सदश समान | २ अनुसरण अनुक्रम ३ पद्धति | रीति रस्म । निश्चित परिपाटी ४ प्राप्त या प्रतिष्ठित अधिकार || (वि० ) १ अनुसरण अनुक्रम २ खोज | हूढ़| तलाश परीक्षण | जांच ३ अनुसार | समर्थन में अनुसरण (श्री) पीछे पांछे जाना पीछा करना । अनुसूत्रक (वि० ) बतलाने वाला निर्देश करने 1 अनुसारक अनुसारिन् वाला। अनुसूचनम् ( न० ) निर्देश बतलाना करना । अनूढ अनुसैन्यं (न० ) किसी सेना का पिछला भाग | मुख्य सेना का सहायक सैन्य दक्ष। अनुस्कन्दम् (अन्यया० ) यथाक्रम से उत्तराधिकारी होना क्रम से किसी वस्तु का मालिक होना। "गेहं गेदमनुस्कन्दम् ।" अनुस्मरणम् (न० ) १ स्मरण | याददाश्त । २ वार बार का स्मरण | अनुसूतिः ( श्री. ) पीछे पीछे जाना। पीछे चलना। समर्थन। अनुसार। अनस्यूत (वि० ) ग्रथित । बुना हुआ निरन्तर संसत खूप मिला हुआ सिला हुआ या बँधा हुआ। अनुस्वानः ( पु० ) भाई । प्रतिध्वनि | एक स्वर के समान दूसरा स्वर । L अनुस्वारः ( पू० ) स्वर के बाद उच्चारण किया जाने वाला एक अनुनासिक वर्ण। इसका चिन्ह [[ ] है। आश्रयस्थान भागी। स्वर के ऊपर की बिंदी अनुम् (न० ) ) नकल | समानता | समान- अनुहार ( पु० )ऽ रूपता । अनुकरण | अनूकम् (न० ) ) मिजाज | स्वभाव | चरित्र. शील | अनूकः ( पु० ) ) 2 कुटुम्ब | जाति २ प्रवृत्ति | जातीय विशेषता । अनूचान ( वि० ) 21 अध्ययनशील । साङ्गोपाः अनूचानः ( पु० ) ) वेद पदा हुआ विद्वान् । वेदों का अर्थ करने वाला २ विनय युक्त सविनय । सुशील |~मानी (वि०) अपने को वेदार्थ का ज्ञाता समझने वाला। प्रकट | अजूढ ( वि० ) १ न ढोया हुआ। न ले जाया हुआ। २ फारा। अविवाहित मान (वि०) लज्जाशील | लज्जालु लजवन्त । लजीला-भ्रातृ (अनूढ- भ्रातृ ) अविवाहित पुरुष का भाई । अनूढा ( ४६ ) अनाकशायिन् धनूढा (स्त्री० ) वारी । अविवाहिता । --भ्रातृ | अमृतुः (पु० ) अनुचित समय | बेठीक वक्त - ( पु० ) १ अविवाहिता स्त्री का भाई । २ राजा को रखेल का भाई। कन्या (स्त्री० ) लड़की जिसको रजस्वलाधर्म न हुआ हो। अनूदकम् ( न० ) जलाभाव | सूखा । अनावृष्टि | प्रदेश: (पु० ) अलङ्कार विशेष | अनून ( वि० ) । १ अस्वल्प । श्रेष्ठ | अभावशून्य २ पूर्ण समस्त समूचा। बड़ा बहुत अनूप ( वि० ) जलप्राय | अधिक जल वाला। दलदल बाला :-जं (अनूपजन) (न०) १ नम | तर | २ अदरक । चादी । प्राय (वि० ) दलदल 7 वाला । अनूपः ( पु० ) अधिक जल वाला देश २ देश विशेष का नाम । अनूपाः बहुवचन दलदल । ३ जलाशय तालाय ४ ( नदी ) तद । (पर्वत) पार्श्व । ५ भैसा ६ मँडफ ७ तीतर विशेष हाथी अनूरु (वि० ) जंबा रहित । अनु (पु०) सूर्य के सारथि अरुण देव उपःकाल । भोर तबका। अनूर्जित (वि० ) अदद नामजबूत नियंत सामर्थ्यहीन २ गर्वरद्दित । मुग्धवोध । अमृद्ध (चि० ) जो सीधा न हो। टेवा । ( आ. ) दुष्ट येईमान बुरा। अनृण (वि० ) जो कर्तदार न हो । जिसके ऊपर ऋषियों, देवों एवं पितरों का कण न हो। वदनं, भाषणं, बोलना । असत्य बोलना ।--वादिन-वाच् (वि ) झूठा ( -व्रत (वि० ) ओ अपना अत झूठा सिद्ध करे। - अनृतम् (म० ) १ झूठ दसा धोखा २ कृषि | अनेक (वि० ) : एक नहीं | एक से अधिक । कई एक | भिन्न भिन्न | २ वियुक्त। विभाजित । अनेकधा ( धन्यवा० ) अनेक प्रकार से । अनेकशः (अन्य ) 8 कई बार बहुत बार अक्सर । बहुधा २ अनेक प्रकार से बहुत तरह से। ३ बहुत बड़ी संख्या में बड़ी तादाद में । बड़े परिमाण में । बड़ी मिकदार में । अनेकान्त (वि० ) अनियत । अनिश्चित जो एक रूप न हो। जिसके विषय में कुछ निश्चय न हो ! [ जैनदर्शन | 1 चञ्चल । अनेकान्तवादः (पु० ) स्यादवाद। आईतदर्शन। अनेकान्तवादी (वि० ) बौद्ध | जैनविशेष | सात पदार्थों को मानने वाले नास्तिक विशेष । अनूपर (वि.) लोना । ऊसर 1- नेहस ने अनेइसौ(बी० ) अनुच् } (दि० ) विना ऋचा का । जो ऋग्वेदन | अनैकान्त (वि०) अनिश्चित । चञ्चन। अस्थिर। परि- अव पड़ा हो या न जानता है। यज्ञोपवीत न होने के कारण जिसे वेदाध्ययन का अधिकार न हो। । वर्तनीय कभी कभी नैमित्तिक । बीच बीच में अनैकान्तिक (चि० ) [ खो०- अनैकान्तिकी ] प्रभावः । चञ्चल अस्थिर । २ न्याय में हेत्वाभास के पांच प्रकारों में से एक [ इसके तीन भेद हैं। यथा साधारण । असाधारण । अनुपसंहारी । सम्यभिचार । ] म् (म० ) एकता का अभाव बहुतायत २ ऐक्य का अभाव। गड़बबी। दुर्व्यवस्था | अनैतिहाम् (न० ) परम्परागत पद्धति के विरुद्ध । अ ( अव्यया० ) नहीं । न । मनोकशायिन् ( पु० ) [ श्री० --अनेोकशायी ] घर में न सोने वाला । भिक्षुक | अमृत ( वि० ) झूठा। व्याख्यानं ( न० ) झूठ व्यनेड: (वि० ) मूर्ख आदमी। अनाड़ी आदमी - मूक ( वि० ) १ गूंगा बहरा २ अँधा । ३ बेईमान ४ दुष्ट | अनेनस् (वि० ) पापरहित । कलङ्कशून्य ( go ) }}₁ समय काल वक्त ✔ सं० श० कौ TEA अनोकरः मोहः (पु० ) वृक्ष अनौचित्य ( न० ) अयोग्यतः । अयुक्तता । अनाजस्थं ( न० ) उत्साह साहस या बल का अभाव | ( ५० } अतर, अन्तर अंतक, अन्तक ( वि० ) जिससे मौत हो । नाश करने वाला । मोहलक । मृत्युशील । अंकः अन्तकः ( पु०) १ मौत । मृत्यु | २ यमराज | अंततः अन्ततः (अव्यया० ) १ अन्त से २ अन्त में। आखिर में। सत्र से पीछे से ३ कुछ कुछ थोड़ा थोड़ा ४ भीतर। अन्दर 1 नत्यम् (न० ) १ शील | विनम्रता | २ शान्ति । अनौरस (वि० ) शास्त्रविरुद्ध । निजू नहीं। गोद लिया हुआ (पुत्र ) । रंत, अन्त (वि०) ३ समीप | २ अखीर | ३ सुन्दर । प्यारा । ४ सब से नीचा सब से गयायीता | २ सबसे छोटा ( उम्र में ) 1-तः [ कभी कभी नपुंसक भी] (g० ) 1 छोर | सीमा | मर्यादा । २ किनारा। धार | ३ वस्र का आँचल | ४ पड़ोस । सामीप्य | उपस्थिति । ५ समाप्ति | ६ मृत्यु | नाश जीवन की समाप्ति । ७ (व्याकरण में) किसी शब्द का अन्तिम अक्षर या शब्दांश ८ समासान्त शब्द का अन्तिम शब्द | ६ forget भाग या अवशेष भाग जैसे-निशान्त | वेदान्स | ११ प्रकृति । अवस्था प्रकार जाति । १२ स्वभाव | सिजाङ्ग । सारांश -अवशायिन् (पु० ) चाण्डाल /-- अवसायिन ( पु० ) १ नाई । २ अछूत जाति । चाण्डाल। –कर, करण, -कारिन (वि० ) नाशक। मारक। मरणशील 1- कर्मन ( न० ) मृत्यु 1-कालः ( पु० ) - बेला (स्त्री० ) मृत्यु का समय या मृत्यु की घड़ी । - ग (वि० ) १ अन्त तक पहुँचा हुआ । २ भली भाँति परिचित । -गति, -गामिन् (वि० ) नष्ट नाशवान् |-- गमनं ( न० ) १ समाप्ति | पूर्णता | २ मृत्यु | दीपकं (न० ) चलङ्कार विशेष - पालः (पु०) १ आगे का सैन्यदल | २ द्वारपाल/---- लीन (वि०) छिपा हुआ /- लोप: (पु० ) शब्द के अन्तिम अक्षर का अभाव | - वासिन् । (वि०) सीमा पर रहने वाला। समीप रहने वाला (पु० ) १ शिष्य जो सदा अपने शिक्षक के समीप रह कर विद्याध्ययन करता है | २ चाण्डाल जो गाँव के निकास पर रहता है। --- शय्या ( वि० ) १ भूमि पर का बिछौना । मृत्युशय्या | २ कब्रगाह । कवरस्तान | श्मशान | सक्रिया (स्त्री०) दाहकर्म । -सद् ( पु० ). शिष्य । छात्र ( अ ) अन्त में । आखिर में। २ भीतर | अंदर | ३ सामने । समीप में । पास में 1 -- वासः ( पु० ) १ पड़ोसी | साथी । २ शिष्य | छात्र | शागिर्द अंतर, अन्तर (अव्यया० ) ( धातु का एक उपसर्ग ) बीचोबीच मध्य में अन्दर में अग्निः ( go ) जठराशि | पेट के अंदर की धाग जो भोजन पचाती है -प्रङ्ग ( वि० ) भीतरी । भीतर का । - अङ्गम् (न०) १ भीतरी अंग अर्थात् हृदय सन २ प्रसाद मिश्र | विश्वस्त पुरुष-आकाशः ( पु० ) वा जो हृदय में वास करता है | हृदयाकाश । आकृत ( न० ) गुरु विचार | मन में छिपा हुआ इरादा ।—आत्मन् (पु०) १ आत्मा जीव । आन्तरिकभाव । हृदय २ ( बहुवचन में ) श्रात्मा के भीतर रहने वाला परमात्मा / आराम ( वि० ) मन में आनन्दा- नुभव (इन्द्रिनं (न० भीतर की इन्द्रिय | मन । -करणं (न०) हृदय जीव रूह | विचार और अनुभव का स्थान | विचार शक्ति | मन | सत्या- सस्य विवेकशक्ति ।-कुटिल (वि. ) मन का कपटी | कुटिल। -कुटिलः (पु०) शङ्ख । -कोणः ( पु० ) भीतरी कौना /-कोपः (१० ) अंदरूनी गुस्सा | भीतरी क्रोध । - गहु (वि०) निकम्मा । व्यर्थं । अनुपयोगी ~~-गम्, --गत (वि० ) देखो "अन्तर्गम्”-गर्भ (वि०) गर्मिणी । – गिर, गिरि (अव्यया०) पहाड़ों में। - गुडवलय (g०) अन्तर्गुदावलय | मलद्वार आदि स्वाभाविक छिद्रों को खोलने मूंदनेवाली गोलाकार पेशी 1-गूह (वि०) भीतर छिपा हुआ। गूढ़ विषः (पु०) हृदय में छिपा हुआ विष 1-गृहं, गेहूं, भवनं (न०) घर के भीतर का कोठा या कमरा ।-घयाः अंतर, अन्तर मनस् ( पु० ) - घणं। घर के द्वार के सामने का खुला हुआ स्थान |–चर (वि. ) शरीर में व्याप्त । — जठरं ( न० ) पेट । -ज्वलनं ( न० ) जलने वाला । सूजन /--ताप (वि० ) सीतर की जलन । -तापः ( पु० ) भीतरी ज्वर । - दहनं (न०) -दाहः (पु.) १ भीतरी गर्मी । २ सूजन /- द्वारं (न०) घर का चोरदरवाज़ा । पर: (४०) -पर्ट (न० ) पर्दा | चिक धाड़ | परिधानम् ( वि० ) पोशाक के सब से नीचे का वस्त्र [--- पुरं (न०) १ महल के भीतर का कमरा । २ महल के भीतर रहने वाली स्त्रियाँ । राजसहिपी। रानी। -- धर्ती, ज्ञनानी ड्योड़ी का दरोगा । पुरिकः ( go ) जनानखाने का दरोगा । -भेदः (५०) भीतरी झगड़े। आपसी का झगड़ा, टंटा (वि०) उदास । उद्विग्न |- यामः (पु०) दस साधना और कण्ठस्वर को रोकना । ~लीन (वि०) भीतर छिपा हुआ । वली (वि.) गर्भिणी स्त्री |-- वस्त्रं, (न०) - वासस् (न०) अंगे आदि के नीचे पहिनने का वस्त्र । कुर्ता बनियाइन आदि - वाणि (वि०) प्रकाण्डविद्वान । -वेगः ( पु० ) अंदरूनी बुखार । भीतर की घबड़ाहट। आन्तरिक- चिन्ता । - वेदिः, - वेदी स्त्री०) [अन्तर्वेद | प्रदेश विशेष | वह प्रदेश जो गंगा और यमुना नदी के बीच में है। घेश्मन् ( न० ) घर के भीतर का कोठा । भीतर का कोठा । – वेश्मिकः ( पु० ) रनवास का प्रबन्धक । - शिला (स्त्री०) एक नदी का नाम जो विन्ध्याचल पर्वत से निकलती है। - सखा ( वि० ) गर्भिणी स्त्री । - सन्तापः ( पु० ) अंदरूनी दुःख, क्षोभ, खेद |–सलिल ( वि० ) वह जल जो ज़मीन के नीचे यहता है। -सार (वि०) भारी । दृढ़ |--- सेनं (अव्यया० ) सेनाओं के बीच में ।—स्थः (अन्तस्थः) (पु० ) स्पर्श और उष्म के मध्य के वर्ण य, व, र, ल आदि। -~-स्वेदः ( पु० ) ( मदमाता ) हाथी । - हासः ( पु० ) गूढ़ हास्य । -हृदयं ( न० ) हृदय के भीतर का स्थान | ( ५१ ) र, अन्तर (वि.) १ भीतरी । भीतर की ओर। २ समीप | पास में | ३ सम्बन्धवाची | समीपी। प्रतय, अन्तय प्रिय ४ समान । ५ भिन्न | दूसरा | ६ बाहिरी | बाहिरस्थित । बाहिर पहिना जाने वाला - अपत्या (वि०) गर्भवती स्त्री । --ज्ञ (वि० ) भीतर का हाल जानने वाला । दूरदर्शी । परिणाम दर्शी। -पुरुषः- पूरुषः, (पु० ) जीव । आत्मा । वह देवता जो पुरुष के भीतर वास करता और उसके शुभाशुभ कर्मों का साठी बना रहता है। -प्रभवः ( पु० ) वर्णसङ्कर जाति वालों में से एक स्थ, स्थाचिन, - स्थित ( वि० ) 9 भीतर चंदर। स्वाभाविक | सहज । २ बीच में स्थित। अंतरम्, अन्तरम् (न०) १ (क) भीतर | भीतरी । (ख) सूराख, सन्धि । २ आत्मा | रूह | हृदय । मन ३ परमात्मा | ४ कालसन्धि | बीच का समय या स्थान | अवकाश का समय ।५ कमरा | स्थान | ६ द्वार जाने का रास्ता । प्रवेश द्वार । ७ ( समय की ) अवधि । ८ मौक़ा | अवसर | समय । ६ ( दो वस्तुओं के बीच ) अन्तर | फर्क | १० (गणित में) भिन्नता | शेष | १९ फर्क | दूसरा | परिवर्तित । १२ विशेषता | प्रकार | क़िस्म । १३ निर्बलता । असफलता । त्रुटि । दोष | १४ ज़मानत | वायित्व स्वीकृति । १५ सर्वश्रेष्ठता १६ परिधान । वस्त्र । १७ अभिप्राय | मतलब । १८ प्रतिनिधि। एक के स्थान पर दूसरे के स्थापन की क्रिया | १६ रहित । विना । । अंतरतः, अन्तरतः (अव्यया० ) १ भीतर | भीतरी | बिल्कुल २ बीच से । बीच में | ३ अंदर | अंतरम अन्तरम (वि०) अत्यन्त निकट | भीतरी । पास अत्यन्त विश्वस्त | अंतरयः अन्तरयः ) ( पु० ) वाधा रोक । अंतरायः, अन्तरायः ऽ अड़चन | रुकावट | अंतरयति, अन्तरयति ( क्रि० ) १ बीच में डालना। दूसरी ओर मुड़वाना स्थगित करवाना | २ विरोध करना । ३ हटाना | ढकेलना । अंतरा, अन्तरा (अव्यया० ) १ निकट | २ मध्य | ३ रहित बिना। -अंसः ( पु० ) वक्षस्थल छाती । - भवदेहः, ( पु० ) –भवसत्वं ( न० ) अंतराल, अन्तरालम् जीव या जीव की वह अवस्था जो मृत्यु और जन्म के बीच के काल में रहती है। वेदः (५०) - वेदी (स्त्री० ) १ बरंडा दालान द्वारमण्डप २ दीवाल विशेष | -शृङ्गं (अव्यया० ) सींगों के वीच 1 ( ५२ ) अंतरालं. अन्तराल ) ( न० ) १ अभ्यन्तर | अंतरालकं, अन्तरालकं मध्य । बीच । अंतरितं, अन्तरिक्षं ? (न०) आकाश । आसमान | अंतरीक्षं, अन्तरीक्षं ऽ ध्योम | नभ | --: - चरः (पु०) पत्ती चिड़िया (जलं ( न० ) श्रोस| हिम | | अंतरित, अन्तरित (व० कृ०) १ बीच में गया हुआ। बीच में पड़ा हुआ । २ अग्दर घुसा हुआ। हुआ। ढका हुआ। पर्दा के भीतर का दृष्टि के | ओझल | ३ रुकावट डाला हुआ। रूद्ध । रुका हुआ। भिन्न किया हुआ। पृथक् किया हुआ निगाह से | छिपा हुआ झा गायब | लुप्त। नष्ट ( दृष्टि से ) प्रस्थानित | रोका हुआ ५ छूटा हुआ चूका अंतरीयम्, अन्तरीयम् ( न० ) बनियाइन । कुर्त्ता | नीमास्तीन । नीमा । अंतरे, अन्तरेण (श्रन्यया० ) १ विना | छोड़ कर सिवाय | २ मध्य में। बीच में हृदय से । मन से.) अंतर्गतम्, अन्तर्गतम् ( वि० ) १ अन्तर्भूत। भीतर गया हुआ । २ विस्तृत । ३ दिया हुआ | ४ च । शायन । --उपमा ( स्त्री० ) गुप्त उपमा । अंतर्धान्त (g०) छिपाव | दुराव | वकाव । अंतर्धानम् अन्तर्धानम् ( न० ) छिप जाना | गुप्त हो जाना अदृश्य होना। अंतर्धिः, अन्तर्धिः (स्त्री० ) अदृश्यता | छिपाव । दुराव। अंतर्भव, अन्तर्भव (वि०) भीतर की ओर । भीतरी । अंदरूनी । अन्य अन्त्य अंतर्भावः, अन्तभवः ( पु० ) अन्तर्निवेश | सहज प्रवृत्ति अन्तर्निंगूढ प्रवृत्ति अंतर्भावना अन्तर्भावना ( स्त्री ) ग्रन्तर्निवेश | २ मानसिक ध्यान या चिन्ता अंतर्य, अन्तर्य (वि० ) भीतरी । अंदरूनी । बीच में। मध्य में। हुआ। अंतरीपः (पु० ) भूमि का एक टुकड़ा जो किसी समुद्र या खाड़ी के भीतर तक चला गया | अंतिम, अन्तिम (चि० ) चरम | सब से पीछे का । हो। द्वीप। आखिरी अङ्कः ( पु० ) नव की संख्या । - अङ्गुलिः कनिष्ठिका । छगुनिया अंन्ती ( पु० ) चूल्हा | अंगीठी। अलाव | अंत्य, अन्त्य (वि०) १ अन्तिम चरम् । २ सब से नीचा सब से बुरा सब से हल्का | दुष्ट | -अवसायिन ( पु० ) ( स्त्री० ) नीच जाति का पुरुष या स्त्री । निम्न सात जातियाँ नीच मानी गयी है। अंतर्हित अन्तर्हित १ मध्यस्थित पृथक् किया हुआ । अलगाया हुआ । छिपा हुआ गुढ़ | २ अदृश्य ग़ायब ।-आत्मन् (पु०) शिवजी का नाम । ति, अन्ति (अव्यया० ) को । समीप में । अंतिः, अन्तिः ( नाटकों में ) ! बड़ी चहिन अंकि, अन्तिक (वि० ) १ समीप । नज़दीक । २ पहुँच । ३ तक । अतिकम्, अन्तिकम् ( न० ) सामीप्य | पड़ोस | उपस्थिति । मौजूदगी । अंतिका, अन्तिका (स्त्री०) १ जेठी बहिन । २ चूल्हा | अंगीठी | ३ सातलाख्य या शातलारूप नाम की औषधि विशेष 1 "चाण्डालः खपचः बत्ता भूतो वैदेषकस्तथा । भागवायोगवा सप्तैतेऽन्स्यावसायिनः # --आहुतिः, इष्टिः (स्त्री० ) -कर्मन, -- क्रिया (स्त्री०) पूर्णाहुति । बलिदान ।--ऋऋणं ( न० ) तीन ऋणों में से अन्तिमऋण अर्थात् सन्तानोत्पत्ति । जः, -जन्मन् ( पु० ) १ शुद्ध सात नीच जातियों में से एक। चाण्डाल | -जन्मन्, जाति, जातीय (वि०) १ किसी त्य, अन्त्य ( ५३ ) अजम् नीच जाति का | २ शूज | ३ चाण्डाल। -भं (न०) र अन्धकरण ( वि० ) धंधा बनाने वाला । रेवती नक्षत्र | – युगं ( न० ) अन्तिम युग अर्थात् | भविष्णु, अन्ध॑मविष्णु (वि०) अंधा हो जाना। कलियुग । -~~-योनि (वि० ) यी जाति अंधमभावुक, अन्धभावुक (वि०) देखो अंधभविष्णु । का। --लोपः किसी शब्द के अन्तिम अक्षर का लुप्त होना । —वर्णः (पु०) – वर्णों (स्त्री०) नीच जाति का पुरुष या स्रो। शुद्ध स्त्री या शुद्ध पुरुन । अंत्यः, ष्यन्त्यः निन्नवर्ण का मनुष्य शब्द का अन्तिस अक्षर) ३ (पु० ) अन्तिम चान्द्रमास फाल्गुण मास | ४ म्लेच्छ । धंधक, अन्धक ( वि० ) थंधा । —अरिः, रिपुः, शत्रुः, -घाती, प्रसुहृद् (१० ) अन्धक दैत्य के मारने वाले । शिवजी का नाम ।-वर्तः ( पु० ) एक पहाड़ का नाम :-: ( पु० ) (बहुवचन) अन्धक और वृष्णि के वंशवाले । अंधकः, अन्धकः (पु०) एक असुर का नाम जो कश्यप औरत का पुत्र था और जिसे शिव जी ने मारा था । अंत्यम्, अन्यम् (न० ) संख्याविशेष अर्थात् १००००००००००००००। मीन राशि | रेवती नक्षत्र | अंत्यकः अन्त्यकः ( पु० ) पञ्चमवर्ण का मनुष्य | अन्त्य (स्त्री० ) नीच जाति की स्त्री | अंधस्, अन्धस् ( न० ) भोजन । अधिका, अन्धका १ रात्रि | २ खेल विशेष | । जुआ। ३ नेत्ररोग विशेष | इनारा | मंन्त्रं (न०) आंत। - क्रूजः (५०), कूजनं, 1 रना - विकूजनं न . ) आंत का बोलना । पेट की गुड़- अंधु, अन्धुः ( पु० ) कुआ | कूप गुद | वृद्धिः ( स्त्री० ) आँत का शिला (स्त्रो०) विन्ध्याचल से निकलने वाली एक नदी का नाम । --स्रज (स्त्री०) चाँतों की माला जिसे नृसिंह भगवान् ने पहिना था --अन्धमिः (स्त्री० ) अजीर्ण । अपच अंदु: दु: है ( स्त्री० ) हथकड़ी बेड़ी। हाथी के अंदूः, अन्दूः ) पैर में बांधने की जंजीर। नूपुर । अंदोलनम् अन्दोलनं ( न० ) लहराना । हिलना । हिलना जुलना । अंधू, अन्धू (धातु० उभय० ) अंधा बनाना | धंधा हो जाना। अंध, अन्ध (वि.) अंधा दृष्टिहीन । --कारः (g०) अंधियारा । कूपः (पु०) कुन्ना जिसका मुख ढपा हो । २ एक नरक का नाम। -तमसं,- तामसं, अन्धातमसम् ( न० ) निविड़ अन्धकार । -तामिस्रः या तामिश्रः (पु०) १ निविड़ अन्धकार। - घी (वि० ) मानसिक अंधा । - पूतना ( स्त्री० ) एक राक्षसी जो बालकों में रोग उत्पन्न करने वाली मानी जाती है। म् अन्धम् (न] ) १ अंधियारा । अन्धकार । २ जल गंदला जल। अन्ध्र (पु० बहुवचन ) १ एक जाति का तथा उस जाति के उस देश का नाम जिसमें वह बस्ती है। २ एक राजवंश का नाम । ३ निन्न या वर्णसङ्कर जाति का मनुष्य । म् ( न० ) १ (साधारणतया ) भोजन | भात २ कच्चा धान्य, चना, जौ आदि ।—प्रद्यं (न०) उपयुक्त भोजन | आच्छादनं, - वस्त्रं (न०) भोजन और वस्त्र -- कालः ( पु० ) भोजन करने का समय कूट: ( पु० ) भात का एक बड़ा ( पर्वतोपम ) ढेर कोष्ठकः ( पु० ) १ भड़ेरी । भण्डारी | अलमारी । २ विष्णु | ३ सूर्य । -गन्धिः (पु० ) दस्तों की बीमारी। अतीसार । संग्रहणी – जलं ( न० ) रोटी पानी–दासः ( पु० ) नौकर चाकर वह नौकर जो केवल भोजन पर काम करे। देवता (स्त्री०) अन के अधिष्ठातृ देवता /- दोषः ( पु० ) निषिद्ध अन्न खाने से उत्पन्न पाप - द्वेषः (पु०) अन्न से अरुचि अफरा रोग-पूर्णा ( स्त्री० / दुर्गा का एक रूप विशेष - प्राशः, ( पु० ) – प्राशनं ( न० ) १६ संस्कारों में से एक विशेष संस्कार । इसमें नवजात बालक को ( ५४ ) प्रथमवार अन्न खिलाने की विधिवत् क्रिया सम्पा- दन की जाती है। जूठा 1-~-भुज् ( वि० ) १ श्रम का खाना | २ शिव की उपाधि । - मलं ( न० ) १ विष्ठा | मन । पाखाना ( २ ) मंदिरा विशेष | अः (पु० ) सूर्य । अनमय (वि० ) [ स्त्री० -- अन्नमयी ] अन की बनी हुई। कोशः, कोषः ( पु० ) स्थूल शरीर । ध्यन्नमयम् ( न० ) अश का बाहुल्य | भोज्य पदार्थों की बहुतायत । अन्य (वि० ) ( अन्यत् न० ) १ भिन्न | दूसरा २ विलक्षण । असाधारण यथा । " अन्दा अगतिमयी मनसः प्रवृत्तिः क्षेत्रं -भामिनीविलास । ३ साधारण कोई ४ अतिरिक्त | नया अधिक । - असाधारण (वि०) जो दूसरों के लिये साधारण न हो । विचित्र । विलक्षण । - उदय (वि०) दूसरे से उत्पन्न |र्यः (अन्यर्थः पु० ) ५ सौतेली मा का पुत्र । सौतेला भाई) ( स्त्री० ) सौतेली यहिन /-ऊढा ( वि० ) दूसरे को विवाही हुई। दूसरे की पत्नी । ( न० ) १ दूसरा खेत २ दूसरा राज्य विदेशी राज्य | ३ दूसरे की स्त्री। -ग, -गामिन् (वि०) १ दूसरे के पास जाना। २ व्यभिचारी | छिनरा | जार। लंपट पापी-गोत्र ( वि० ) दूसरे वंश का - चित्त ( वि० ) मनविशेष | -ज, - - जात । ( वि० ) दूसरी उत्पत्ति का । दूसरी जाति का जन्मन् ( न० ) जन्मान्तर - दुर्वह ( वि० ) दूसरों द्वारा न ढोने या उठाने योग्य |~नाभि ( वि० ) दूसरे वंश या कुल का । – पर ( वि० ) १ दूसरों के प्रति भक्ति मान् । दूसरों से अनुरक्त। दूसरी वस्तु को प्रकट करना या हवाला देना / पुष्ट: ( पु० ) -पुछा (स्त्री०.) - भृतः, ( १० ) -भृता ( स्त्री० ) दूसरों से पाली हुई । कोयल । - पूर्वा ( स्त्री० ) कन्या का जिसकी सगाई दूसरी जगह हो चुकी है। बीजः, - दीज- अन्याय समुद्भवः समुत्पन्न: ( 50 ) गोद लिया हुआ पुत्र | दत्तक पुत्र भृत ( पु० ) कौया । काक । - मनस्, – मनस्क, मानस (वि०) चन्चल । जो ध्यान न दे। प्रसावधान - मातृजः ( पु० ) सौतेला भाई। रूप ( वि० ) परिवर्तित बदला हुआ । - लिङ्ग, - लिङ्गक (वि० ) दूसरे शब्द के लिङ्गानुसार वापः ( पु० ) कोयल 1- विवर्धित (वि० ) कोयल J अन्यतम् ( वि० ) बहुत में से एक । अन्यतर ( दि०) दो में से एक। अन्यतरतः (अन्य ) दो तरह में से एक। अन्यतरेद्यः अन्यथा० ) दो में से किसी एक दिन। एक दिन या दूसरे दिन | धन्यतः (अन्य ) १ दूसरे से ५ एक ओर दूसरे आधार पर या दूसरे उद्देश्य से अन्यत्र ( अन्य० ) दूसरी जगह । अन्यस्थान | २ व्यतिरेक | दूसरा | ३ विना | धान्यथा (अन्य ) १ प्रकारान्तर । पक्षान्तर । २ मिथ्यापन से। झूठपन से | ३ अशुद्धता से । भूल से । -भावः ( पु० ) परिवर्तन | अदलबदल | अन्तर 1 - वादिन ( वि० ) प्रकारान्तर से बोलने वाला । मिथ्यावादी वृति ( वि० ) परिवर्तित । उत्तेजित । उद्विग्न -सिद्धिः ( स्त्री० ) ( न्याय में ) एक दोष विशेष, जिसमें यथार्थं नहीं, प्रत्युत अन्य कोई कारण दिखला कर किसी विषय की सिद्धि की जाय । - स्त्रोत्रं ( न० ) व्यंग्य | 1 धन्यदा ( अव्यया० ) 1 दूसरे समय। दूसरे अवसर पर। अन्य किसी दशा में । २ एक यार। कभी एक बार | ३ कभी कभी धन्यई (अन्यया० ) दूसरे समय । धन्याहृत ( वि० ) परिवर्तित । असाधारण । धन्याशे ) विलक्षण | अन्यादृश् धन्याय ( वि० ) धनुपयुक्त । बेठीक । धन्यायः (पु० ) कोई अनुचित या झाईन विरुद्ध कार्यं । अम्यायिन् अन्यायिन् (वि० ) अनुचित । अयथार्थं । अन्याय्य ( वि० ) : अयथार्थ | आईन विरुद्ध । २ अनुचित | बेडौल | भद्दा | ३ अप्रामाणिक | न्यून (वि० ) समूचा। समस्त – (वि० ) जिसका कोई अङ्ग कम बढ़ न हो । न्ये (अन्य ) दूसरे दिन या अगले दिन । २ एक दिन। एक बार। अन्योन्य (अन्य ) १ परस्पर आपस में प्राय ( वि० ) परस्पर अविलम्बित | युक्तिः ( श्री० ) वार्तालाप । बातचीत। अन्योन्याभावः (पु० ) पारस्परिक अभाव । अन्योन्याश्रय (वि० ) आपस का सहारा । एक दूसरे की अपेक्षा सापेक्षज्ञान | ( ५५ ) अन्वंचू ( वि० | १ पीछे जाना | पछियाना | अनुस रण । अन्वासनम् धन्ववायः ( पु० ) जाति | वंश | कुल । श्रन्यवेक्षा (स्त्री०) सम्मान | आदर । अन्वटका (स्त्री०) साग्निकों के लिये एकसातृक श्राद्ध, जो अष्ठका के अनन्तर पूस, माघ, फागुन और आश्विन की कृष्णा नवमी को किया जाता है। अन्वष्टमदिशं (अव्यया० ) उत्तर पश्चिम के कोण की ओर । अन्वयः (पु०) अनुयायी चाकर। २ सम्बन्ध | सङ्गति । रिश्तेदारी | ३ व्याकरणानुसार वाक्य की शब्द योजना | ४ आति । वंश | कुल | ६ वंशवाले । कुलवाले । ५ न्याय में कार्य करण सम्बन्ध -- आगत ( वि० ) वंशपरम्परागत --- झः ( पु० ) वंशावाली जानने वाला । - व्यतिरेकः ( go ) निश्चय पूर्वक हाँ या ना सूचक कथित वाक्य ५ नियम और अपवाद -व्याप्तिः ( स्त्री० ) स्वीकारोक्ति । जहाँ धूम वहाँ अग्नि-इस प्रकार की व्याप्ति | अन्वर्थ ( वि० ) १ अर्थ के अनुसार १२ सार्थक अर्थयुक्त । अन्ववसर्गः ( पु० ) कामयारानुज्ञा | यथेच्छ आच- रण की अनुमति । यथेच्छाचार | अन्ववसित (वि० ) सम्बन्धयुक्त | बंधा हुआ । जकड़ा हुआ । (अन्यया० ) प्रति दिन । दिन दिन । धन्वाख्यानं ( म० ) पूर्वकथित विषय की पीछे से व्याख्या | अन्वत ( वि० ) प्रत्यक्ष | साक्षात् । अन्वतम् ( न० ) पीछे से पीछे । मुरम्त ही। पीछे से। तुरन्त । सीधा, किसी के बीच में होकर नहीं। अन्वक् (अन्यया० ) तदनन्तर । पीछे से अनुकूलता से पीछे | अन्यादेशः (पु० ) एक आज्ञा के बाद दूसरी भाशा | किसी कथन की द्विरुक्ति । अन्वाधानं ( न० ) हवन अग्नि पर समिधाओं को रखना । अवधिः १ अमानत जो किसी अन्य पुरुष को इस लिये सौपी जाय कि, अन्त में वह उसे उसके न्यायानुमोदित अधिकारी को दे दे ।२ दूसरी चमा- नत । ३ सतत परिताप, पश्चाताप या पछतावा अन्वाधेयं ) ( न० ) एक प्रकार का सीधन, जो अन्वाधेयकं । स्त्री को विवाह के बाद पतिकुल या पितृकुल अथवा उसके अन्य कुटुम्बियों से ग्राह होता है। अन्वाचयः (५० ) मुख्य कार्य की सिद्धि के साथ साथ प्रधान (गौण) की भी सिद्धि । जैसे एक काम के लिये जाते हुए को, एक दूसरा वैसा ही साधारण काम बतला देना । अन्वादिष्ट (०) पीछे त । पुनर्नियुक्त | २ गौण | उपयोगी । अवारम्भः ( पु० ) ( स्पर्श | किसी विशेष धर्म्मा- अन्वारम्भम् ( न० ) ) नुष्ठान के बाद यजमान का स्पर्श या पीठ ठोकना यह जताने को कि, उसका कृत्य सुफल हुआ। अन्वारोहगां ( न० ) किसी सती स्त्री का पति के शव के साथ या पीछे भस्म होने के लिये चिता पर चढ़ना । अन्वासनम् (न० ) सेवा पूजा २ एक के बैठने के बाद दूसरे का बैठना । ३ दुःख। शोक | धन्याहार्यः अन्याहार्यः ( पु० ) ) [मृत पुरुष के उद्देश्य से प्रति अन्वायम् (न० ) (अमावास्या के दिन किया व्यन्वाहायकम् (न०) जाने वाला मासिक श्राद्ध। अन्वाहिक (वि० ) [ स्त्री० - [अन्वाहिकी ] दैनिक | थन्वित ( व० कृ०) १ युक्त । सम्बन्धमाप्त | २ किसी पद्य के शब्द जो वाक्यरचना के नियमानुसार यथास्थान रखे गये हों। ३ साधयं के अनुसार भिन्न भिन्न वस्तु जो एक श्रेणी में रखी हुई हों। भन्योक्षणं ( न० ) १ ध्यान से देखना २ खोज। अन्वीक्षणा ( स० ) अनुसन्धान | विचार | अन्वीत देखो अन्वित | अचं (अव्यया० ) पद्म के बाद पद्म प्रवेशः (पु० ) अन्वेषणम् (न० ) अन्वेषणा (स्त्री०) अन्वेषक अन्वेषिन प्रवेष्ट अनुसन्धान 4 तालारा । हूत | खोज | ( वि० ) खोजने चाला । तलाश। करने वाला । अपू] (स्त्री०) [ इसके बहुवचन ही में रूप होते हैं। आपः, अपः, अनिः, अनुयः, अपां किन्तु वैदिक साहित्य में इसके रूप में एकवचन और बहुबचन में जल । पानी नाम ।२ समुद्र | । अप (अन्यया० ) जब यह किसी क्रिया में उपसर्ग के रूप में जोड़ा जाता है। सब इसका अर्थ होता है दूर हट कर विरोध अस्वीकृति | खगढन । वर्ज़न । कई स्थलों पर अप का अर्थ होता है बुरा । श्रश्रेष्ठ | बिगड़ा हुआ । अशुद्ध | अयोग्य | अपेक्रामः अपकर्मन् (न०) १ दुष्कर्म | दुराचार | दुष्टाचरण | २ दुटता। अत्याचार ज्यादती | ३ कई अदा करना । ऋण चुकाना । "दत्तस्यानपकर्मच ।" ( मनु० ) अपकर्षः (पु० ) नीचे को खींचना : २ घटावा । अपकर्षक ( वि० ) घटाने वाला | छोटा करने वाला । कमी | उतार | ३ निरादर अपमान बेकद्री । नीचे खींचने वाला। छापकरणं ( न० ) अनुचित रीति से वर्तना | २ डुराई करना । अपमान करना। चिड़ाना। दुर्भ्य अपकर्षणम् ( न० ) १ हटाना। खींच कर नीचे ले जाना। खींचकर निकालना । २ कम करना । ३ किसी को किसी स्थान से हटाकर स्वयं उस पर बैठना। और अप्सु दोनों वचनों, अपकारकः मिलते हैं। ] प्रपकारी पतिः (पु० ) वरुण का | ध्यपकुशः ( पु ) दन्तरोग विशेष । अपकारः (पु०) अनिष्टसाधन द्वेप द्रोह | बुराई | नुकसान | हानि । अनभल । अहित । २ दुष्टता अत्याचार उम्रता ३ थोड़ा या नीच कर्म |-अर्थिन् (वि०) विद्वेषकारी । अनिष्ट- प्रिय दुराशय - शब्दः (पु०) गालियाँ | कुवाच्य | अपमानकारक उक्ति । अपकारिन पहुँचने वाला । हानिकारी । २ अपकारक है (वि०) १ अनिष्टकर्त्ता । क्षति विरोधी । द्वेषी । ( पु० ) अपकार करने वाला। बुराई करने वाला । अपकृत (वि० अपकृष्ट ( व० कृ० ) ६ हटाया हुआ | खींच कर ले प्रकृति ( स्त्री० अपकार किया हुआ। अपकारी। अपक्रिया अपकार । प्रति । जाया हुआ । २ नीच दुष्ट । क्षुद्र अपकृष्टः ( 3० ) काक। कौथा। अपकौशली (स्त्री० ) खबर | समाचार सूचना | । अपतिः ( स्त्री० ) १ कच्चापन | २ अजोएँ । अपक्रमः (50) १ पलायन भग्गड़ दौड़ भागना। २ ( समय का ) निकल जाना। (वि०) अस्त- व्यस्त गड़बड़ हार करना। घायल करना । ध्यपकर्तृ (वि० ) सांघातिक। अनिष्टकर | अप्रीति अपक्रमणम् ( न० ) } पलायन । (सेना का ) पीछे कर (पु०) शत्रु | ) बचकर निकल जाना। हटजाना । निकलभागना । अपकोश अपशब्द निन्दन अपक्रोशः (पु० ) गाली जुगुप्सन | तिरस्कार | अपकम् (वि० ) अपरिणत । नहीं बदर हुआ। कथा | 1 अपक्ष (वि०) १ बिना पंख का उड़ने की शक्ति से | ध्यपचारिन् ( वि० ) दुष्ट पुरा । असदाचारी हीन । २ जो किसी दल विशेष का न हो। ३ जिसका कोई मित्र या अनुयायी न हो। विरुद्ध उल्टा~पातः (पु.) पक्षपातराहित्य | म्याय । खरापन । -पातिन् ( न० ) जो किसी की तरफदारी न करें। खरा न्यायी अपक्षयः ( १० ) नाश । अधःपात हास य अपक्षेपः ( पु० ) १ १ फेंकना । पल्टामा । २ अपक्षेपणम् (न० ) । गिराना च्युतकरना | ३ प्रकाशादि का किसी पदार्थ से टकरा कर पलटना ४ (वैशेषिक दर्शनानुसार आदि यांच प्रकार के कर्मों में से एक । याकुञ्चन, प्रसारण अपगण्ड: ( पु०) बालिग वयस्क । अपगमः (पु० ) ) 3 प्रस्थान | वियोग २ पात | अपगमनम् (न०) ) गायब | अपगतिः ( स्त्री ) बदकिस्मती दुर्भाग्य अभाग्य अपगरः १ (5०) धिक्कार डॉटडपट गालीगलौज ● । २ गालियाँ देनेवाला या अप्रियवचन कहने वाला। अपगर्जित ( वि० ) गर्जनाशून्य अपगुणः (पु० ) दोप। अवगुण अगोपुर ( वि० ) नगरद्वार से शून्य जिसमें फाटक न हो। अपघन: ( पु० ) देह । शरीर । अवयव । शरीरावयव । अपघातः (पु०) १ हत्या हिंसा १२ वञ्चना | धोखा। विश्वासघात । अपघातिन् (वि० ) विश्वासघाती हिंसक हत्या करने वाला। अपतिक अपचरितं (न) ) अपराध भूल दुष्कर्म । अपचार: (पु०) प्रस्थान मृत्यु २ अभाव राहित्य | ३ अपराध दुष्कर्म चसदाचरख जुर्म |४ अपथ्य | अपवितिः ( स्त्री० ) हानि। अधःपात | नाश । २ व्यय | ३ पाप का प्रायश्चित्त समन्वय । क्षति- पूरण ४ सम्मान पूजन। प्रनिडाप्रदर्शन | पच्छ (वि० ) विना छाते का | छाता रहित । अपच्छाय ( वि० ) १ जिसकी परछायी न हो। २ चमक रहित धुंधला ३ एक प्रकार की गाली। अपचयः ( पु० ) धवनति हास पात नाश २ ऐव| त्रुटिं। दोष असफलता सदन अधः- यः (०) जिसकी परछाई न हो | देवता । 1 अपच्छेदः ( ४० ) ) काट डालना : २ हानि । (२०) । ३ वाधा । अपजयः (पु० ) हार। शिकस्त अपजातः (पु० ) डरी सन्तान सन्तान जो अपने माता पिता गुणों के समान न हो। अज्ञानं ( न० ) अस्वीकृति। छिपाय | दुराव। 1 | अपञ्चीकृत ( न० ) पदार्थ विशेष जो पाँचतत्वों से न बना हो । अटी (खो०) नात कपड़े की एक प्रकार की विशेष पर्दा २ पर्दा । ध्यपटु ( वि० ) धनिपुण गाउदी। भौं । २ वक्तृत्व शक्ति में जो निपुण न हो। ३ बीमार। रोगी । पठ (वि० ) जो पड़ न सके। जो पढ़ा न हो। अधम पाठक | अपण्डित (वि०) जो विद्वान न हो। जो बुद्धिमान न हो। मूर्ख। थपढ़ अज्ञानी २ जिसमें चातुर्थ, रुचि और दूसरों की सराहना करने का अभाव हो । अपच: (पु०) रसोई बनाने के अयोग्य अथवा आध्यपराय (वि० ) जो विक न सके। अपने लिये रसोई न बनावे । २ गँवार रसोइया | | अपनगणं ( न० ) ( बीमारी में ) कड़ाका । लंघन । ( असन्तोष | व्यपति प्रपतिक) ( वि० ) विना स्वामी के। विना पति के अविवाहित । सं० श० कौ – ८ अपक्षीक अपत्नीक ( दि० ) विना स्त्री वाला । पक्षीरहित । अपत्यं ( न० ) सन्तति । शिशु । सन्तान। श्रौलाद । --काम ( वि० ) पुत्र या पुत्री की इच्छा रखने बाला /-पथः ( पु० ) योनि । भग । -विक्र यिन् ( पु० ) सन्तान बेचने वाला /- शत्रः ( पु० ) १ केकड़ा | २ साँप | अपत्रप ( दि० ) निलंज। बेहया । शर्म। लजा। खाज पत्रम् (न० ) पत्र ( स्त्री० ) अपञपिष्णु ( वि० ) शर्मीला | खजीला । अपत्रस्त (च० क० ) भयभीत | ढरा हुआ। भय से थमा हुआ। भय से रुका हुआ। अपथ (बि० ) मार्गहीन /--गामिन् (वि० ) डरी राह चलने वाला | कुमार्गी । अपन्था (स्त्री०) ) (अलं०) बुरी राह | पाप की राह प्रपथ्य (वि० अयोग्य | अनुचित हानिकारी । ज़हरीला २ अहितकर। जो गुणकारी न हो। कारिन् (वि० ) अप- ३ खराब | अभागा - राधी जुर्म करने वाला। व्यपदः ( पु० ) उरग सरीसृप, सर्प धादि - ध्यन्तर (वि० ) समीपस्थ । अति निकट /- अन्तरम् (न० ) समीप्य | निकटता | अपदम् ( न० ) १ बुरा स्थान या घर। २ शब्द जो पदवाच्य न हो। ३ व्योम | FF " अपयात्रित ● + अपदेशः (पु० ) १ बयान | कथन । उपदेश । वर्णन | २ बहाना। व्याज | मिस्र २ लक्ष्य उद्देश्य । ३ अपने स्वरूप को छिपाना भेष बदलना | ४ स्थान ६ अस्वीकृति । ७ फीति नामवरी छल। धोखा। झाबाजी ! अपदेवता (स्त्री० ) भूत प्रेत दुष्ट आत्मा। अपद्रव्यं ( न० ) बुरी वस्तु } -काव्यप्रकाश । अपद्वारं ( न० ) बग़ल का दरवाजा बग़ली द्वार ध्यपधूम (वि० ) धूमरहिव 1 अपव्यानं ( ० ) बुरे विचार अनिष्टचिन्तन मन ही मन अकोसना । पध्वंसः (पु० ) अधःपात | अपमान बेइजती । ~-जः ( पु० ) - आ (स्त्री०) किसी वर्णसङ्कर, अथम और अद्भुत जाति का व्यक्ति । -- अपध्वस्त ( ब० कृ० ) शापित । अकोसा हुआ । घृणित | २ जो अच्छी तरह से न कूटा पीसा गया हो। अधकुटा अधकचरा १३ व्यक्त त्यागा हुआ छोड़ा हुआ। प्रपदक्षिणं (अन्य ) बाई ओर। हदा करना | नष्ट करना । अपनयनं ( न० ) हटाना अलहदा करना । २ ( घाव ) पुराना | चंगा करना। ३ उॠण करना । अपनस (वि० ) नकटा । नाक रहित । अपदम (वि०) असंयमी । विना इन्द्रिय-निग्रह-वान् | | प्रपनत्तिः ( स्त्री० ) | हटाना। अलगाना। अल- अपदश (वि० ) दस की संख्या से दूर। ध्यपनोदः ( पु० ) अपनोदनम् (न० ) ध्यपदानं | ( न० ) १ सदाचरण । विशुद्ध पाच- अपदानकम् [रण २ महान् या उत्तम काम । अपपा ( पु० ) बुरी तरह पाठ करना सर्वोत्तम कर्म | ३ सम्यक् पूर्ण किया हुआ कार्य । करना। पाठ में भूल । व्यपदार्थ: (पु० ) कुछ नहीं | २ वाक्य में जो शब्द प्रयुक्त हुए हो उनका अर्थ न होना। प्रायश्चित्त करना। दूर करना। पाठ यपदार्थोपियवा सुदि अवध्यस्तः (०) दुष्ट अभागा। जिसमें सदसदविवेक शक्ति रह ही न गयी हो । अपनयः ( पु० ) १ हटाना। अलहदा करना । खण्ड- करना । २ बुरी नीति | बुरा भालचलन ३ उपकार । अपपात्र ( वि० ) नीच जाति के पात्रों ( बरतनों ) को काम में लाने से वञ्चित । अपपातिः ( पु० ) किसी बड़े दुष्कर्म करने के कारण जाति से च्युत मनुष्य जो अपने सम्बंधियों के साथ एक बरतन में खा पी न सके। प्रपपान अपपानं (न०) अपेय । न पीने योग्य पीने की वस्तु । अपप्रजाता (स्त्री०) स्त्री, जिसका गर्भपात हो गया हो। अपप्रदानम् ( न० ) घूँस | रिश्वत । अपभय ( वि० ) डर से रहित । निर्भय । ( ५३ अपराजित -- जनः, ( पू० ) पाश्चात्य जन पश्चिमी देशों के रहने वाले। दक्षिणं, (श्रव्यया०) दक्षिण पश्चिम में। -पतः, (पु०) १ कृष्णपक्ष २ दूसरी थोर । उल्टी श्रोर । ३ प्रतिवादी । –पर, (वि०) कई एक भिन्न भिन्न तरह तरह के। - पाणि- नीयाः, (५०) पाणिनी के शिष्य जो पश्चिम में रहते हैं। —प्रणेय, (चि० ) सहज में दूसरे द्वारा प्रभा- चान्वित होने वाला। – रात्रः, (पु०) रात का पिछला पहर:-परलोकः, ( पु० ) स्वर्गं । - स्वस्तिकं ( न० ) श्राकाश का पश्चिमी अन्तिम विन्दु । - हैमन (वि० ) शीतकाल का पिछला भाग । अपर (पु० ) १ हाथी का पिछला पैर । २ शत्रु | (स्त्री० ) अन्तिम तारावृक्ष या नक्षत्र । अपभाषणम् ( न० ) गालियाँ | मानहानि । शः (पु) पतन । गिराव २ बिगाड़ | विकृति | ३ बिगड़ा हुआ। अपमः ( पु० ) ग्राहणिक ग्रहण या अयनमण्डल सम्बन्धी । क्रान्ति । अान्त । अपमई (पु० ) धूल गर्यो । जो बुहारा जाय। अपमर्श: (पु० ) छूना चराना | अपमानः ( पु० ) निरादार | बेइज्जती बदनामी । अपमार्गः (पु०) पगडंडी वगली रास्ता | बुरी राखा अपमुख (वि० ) बदशक्ल । बदसूरत । कुरूप | अपमूर्धन ( वि ) लापरवाह अपमार्जनम् ( न० ) १ घो कर साफ करना | पवित्र करना । २ हजामत बनवाना | अपमृत्युः ( पु० ) कुमृत्यु | कुसमय को मौत । बिजली गिरने से, विष खाने से, साँप आदि के काटने से मरना । अषित (वि० ) १ जो बोधगम्य न हो। जो सम न पड़े। अस्पष्ट । २ । नापसंद । अपयशः (०} } बदनामी । अपकीर्ति । अपयानम् ( न० ) भाग जाना। पीछे लौट जाना। अपर ( वि. ) १ जो पर या दूसरा न । पहिला पूर्व का | २ पिछला। जिससे कोई पर न हो ३ । : दूसरा | अन्य और भिन ४ अपकृष्ट | नीचा | -- अनि, ( 50 ) दक्षिण और गार्हपत्यानि ।। अपराः, अपरे, अपराग, दूसरे दूसरे । कई एक | भिन्न भिन्न -अहः, ( पु० ) तीसरे पहर । -इतरा, ( स्त्री० ) पूर्व दिशा । - कालः, ( पु० ) पीछे का काल। पिछला समय । ) अपरम् ( न० ) १ भविष्य | २ हाथी का पिछला पैर । ( श्रव्यया० ) पुनः । आगे। अपरता (स्त्री० ) | दूसरापन अनगैरीपन | २४ गुणों में अपरत्वं ( न० )[ से एक गुण | अन्तर सम्बन्ध | अपरत्र (थव्य० ) अन्यत्र | दूसरी जगह | अपरक्त (वि०) १ विना रंग का खूनरहित । पोला । २ असन्तुष्ट | परतः (स्त्री) १२ असन्तोष। अपरवः (पु० ) झगड़ा। विवाद ( किसी सम्पत्ति के उपभोग के सम्बन्ध में ) २ अपकीर्ति । बदनामी । अपरस्पर (चि० ) एक के बाद दूसरा अवाधित लगातार । अपरा (स्त्री०) पश्चिम को ओर। हाथी के पीछे का धड़ | ३ गशय झिल्ली | ४ गर्भावस्था में रुका हुआ रजोधर्म। अपराग ( वि० ) विना रंग का। गः (०) सन्तोष २ शत्रुता | दुश्मनी रांच (वि) सम्मुख सामने। -राक् (अपराकू) ( श्रव्यया० ) सम्मुख | सामने ।-मुख, (वि०) -मुखी, ( स्त्री० ) २ मुंह न मोड़ना | ३ साहस के साथ सामना करना । मोर्चा लेना अपराजित (वि० ) जो हारा न हो। अजेय । अपराजितः (पु०) १ एक प्रकार का ज़हरीला कीड़ा | २ विष्णु । ३ शिव । अपराजिता अपराजिता (स्त्री० ) १ दुर्गा देवी जिनका पूजन दशहरा के दिन किया जाता है । २ ओषधि विशेष। यह औषधि कलाई में यंत्र की तरह बांधो जाती है। ३ ईशान कोण । अपराडि (सी० ) अपराध कर २ पाप । दुष्कर्म । अपराध: ( पु० / कसूर जुर्म | २ पाप । अपरा. धन् (वि० ) अपराध करने वाला। अपराधी । अपरिग्रह (वि० ) जिसके पास न तो कोई वस्तु हो और न कोई नौकर चाकर निपट मोहताज निपट रंक | अपरिग्रहः (पु० ) १ अस्वीकृति । नामंजूरी | २ अभाव | गरीबी | 1 अपरिच्छद ( वि० ) दरिद्र गरीब मोहताज | पर (वि० ) ३ सतत २ अभेय मिला हुआ ३ असीम | इयसारहित । । अपरायः (पु० ) अनूदावस्था अविवाहित अवस्था | चिर-कौमार्य । " अपर (स्त्री० ) अविवाहित लड़की । अपरिसंख्यानम् ( न० ) १ आनन्थ्य २ असीम ३ असंख्य | 0 ) अपचतनम् अपर्याप्तिः ( स्त्री० ) १ अपूर्णता कमी | २ अयोग्यता अक्षमता। अपाय ( वि० ) क्रमरहित । बेसिलसिले अपर्यायः (पु० ) क्रम या विधि का अभाव । जिसका कोई क्रम या सिलसिला न हो। पर्युषित (वि०) रात का रखा हुआ नहीं। वासी नहीं। ताज्ञा । टटका पर्वन (वि०) जिसमें गाँठ न हो । ( न०) १ बेजोड़ अथवा जिसमें जोड़ने की जगह न हो । २ ये समय अतु अप (वि० ) मांस का अपलम् (न० ) पिन या बोल् पलपनम् (न०) } 8 छपाव | दुराव | २ अपलापः (पु०) छिपाना किसी वस्तु 1 की जानकारी को छिपाना । निकास सत्य बात का, विचार का और भाव का छिपाना ( पु० ) मिथ्याभाषण के लिये सजा। अपलापिन् (वि० ) इंकार करने वाला। मुकरने वाला छिपाने वाला। [ प्यास | अपजाषिका (स्त्री०) अपलासिका ( स्त्री० ) बड़ी अपलाविन् १ (दि० ) १ प्यासा | २ प्यास या अपलापुक अभिलाषण से मुक्त । अपवन ( वि० ) विना आँधी बतास के पवन से रचित | व्यपवनम् ( ४० ) नगर के समीप का बाग। उपवन । लताकुआ। - दण्डः, - अपरीक्षित (वि० ) १ अनजांचा हुआ थसिद्ध । २ कुविचारित । मूर्खतापूर्ण । अविचारित । ३ जो | सब प्रकार से सिद्ध या स्थापित न हुआ हो। अपरुष (वि०) कोशून्य अपवरकः ( go )) भीतरी कमरा । २ अपवारका (स्त्री०) रोशनदान | झरोखा अपरूप (वि०) [ स्वी०-अपरूपा था अपरूपी ] | अपवरणं ( न० ) १ पर्दा | चिक | २ कपड़ा | बदशक । कुरूप बेडंग अंगभंग अपरेयुः (अव्यया० ) दूसरे दिन। अगले दिन । ध्यपरीक्ष (वि०) १ अस्य . 1 द्वारा जाना जाने वाला ४ भेंट। ना जो देख न पड़े इन्द्रियों २ समीप | अपरोध ( पु० ) वर्जन । मनाई। रोक । अपर्ण (वि० ) पत्तारहित । अपर्णा (स्त्री० ) पार्वती या दुर्गा देवी का एक नाम । | अपर्याप्त (वि० ) अयथेष्ट जो काफ़ी न हो। २ असीम सीमारहित ३ अशक्त असमर्थ अपवर्गः (पु०) १ पूर्णता । समाप्ति | किसी कार्य का पूर्ण होना या सुसम्पन्न होना। २ अपवाद | विशेष नियम ३ स्वर्गीय आनन्द | पुरस्कार | दैन। ५ त्याग | ६ का ( तीरों का ) । अपवर्जनम् (न० ) १ त्याग। (प्रतिज्ञा की) पूर्ति। उऋण होना। २ भेट दान | ३ स्वर्गीय आनन्द । अपवर्तनम् ( न० ) पलटाव उलटफेर । २ वञ्चित } अयोग्य । करना । अपवाद अपवादः ( पु० ) निन्दा । अपकीर्ति । कलङ्क | २ नियम विशेष जो व्यापक नियम के विरुद्ध हो । ३ आशा निर्देश ४ खराडन प्रतिवाद | २ विश्वास । इतमीनान । ६ प्रेम । सौहार्द । अपव्ययः पु०) फिजुल निरर्थक व्यय । सद्भाव । आत्मीयता । ७ वेदान्तशास्त्रानुसार | अपशकुनम् ( ३० ) बुरा सगुन । असगुन । अध्यारोप का निराकरण | अपशङ्क (वि० ) निडर। निर्भय अपवादक ) (वि०) १ निन्दुक बदनाम करने | अपशब्दः (पु० ) १ अशुद्ध शब्द दूषित शब्द। अपवादिन ) वाला | २ विरोधी । किसी आज्ञा २ असंच प्रलाप | ३ गाली | कुवाच्य | ४ पाद गोज़ अपानवायु को हटाने वाला बाहिर करने वाला। द्विपाव ढकाव | २ अन्तर्धान 1 अपशिरस अवशीर्ष अपशीर्षन् ( वि० ) सिररहित बीच में पढ़ कर आघात से अपशुच् (वि० ) बिना शोक जीवात्मा अपशोकः ( पु० ) अशोकवृत । अपश्चिम (वि०) जिसके पीछे कोई न हो। २ प्रथम | पूर्व सव के आगे वाला। ३ अति । अत्यन्त । "अपश्चिमा काभापदं मानुवश्व | (०) ३ रोक : व्यवधान बचाने वाली वस्तु । अपवारित ( वि० ० ) १ ढका हुआ छिपा हुआ। २ दूर किया हुआ हटाया हुआ | ३ तिरोहित । अति अपवारितम् अपवारितकम् अपवाहः (g०) अपवाहनम् (न०) ( न० ) छिपे हुए या तरीके। गुप्त तौर १ दूर करना । हटाना । २ कम करना । घटाना । ) अपसपक. अपवेधः (०) ग़लत छेदना ( मोती आदि का ) । ठीक स्थान पर न वेधना अपविघ्न (वि०) अवाधित। विना रोक टोक का। अपक्षयः ( पु० ) किया। बालिश | अपविद्ध (व० कृ०) १ ढलफाया हुआ या दूर फैका | अपक्षी ( वि० ) सौन्दर्यरहित ) बदसूरत । हुआ। २ व्यक्त। त्यागा हुआ छोड़ा हुआ। अस्वी | अपष्ठं ( न० ) अङ्कुश की नोंक 1 कृत किया हुआ । भूला हुआ। स्थानान्तर किया | अपण्ड ( वि० ) १ विरुद्ध | २ प्रतिकूल | ३ याँया । हुआ। छुड़ाया हुआ रहित हीन । २ नीच ! (अन्य ) १ विरुद्ध १ २ झुठाई से | ३ निर्दोषता । ओड़ा। से | ४ भली भाँति । ठीक ठीक । 1 बेसिर का । ( पु० ) रूह | अपविद्धः (१०) हिन्दूधर्मशाखानुसार बारह प्रकार के अपडत } (वि० ) उल्टा ! विरुद्ध । अपष्टुल बीखा का | अपवीणा ( श्री० ) बुरी वीणा । अपवृक्तिः ( स्त्री० ) पूर्ति। समाप्ति सम्पूर्णता अपवृतिः (स्त्री०) । खुलाव जो ढका न हो। अपवृत्तिः (स्त्री०) समाप्ति । छोर। अन्त | -रामायण त्याग दिया हो और अन्य किसी ने उसे गोद ले | अपसदः (50) जातिवहिष्कृत | २ अधम | नीच लिया हो। अपकृष्ट । ३ नीच जाति विशेष । अपविधा (स्त्री०) अज्ञता आध्यात्मिक अज्ञान अविद्या | माया । अपवीण (वि० ) बुरी वीणा रखने वाला या बिना | अपसरणम् ( म० ) चला जाना । सौट जाना ( सेना का ) । बच कर निकल जाना। अपसर्जनम् (न० ) त्याग २ भेंट या दान। ३ स्वर्गीय सुख ( पु० ) जासूस | भेदिया। सर्पः अपसर्पकः असरः (पु० ) १ अपसरण हटना पीछे लौटना । २ युक्तियुक्त कारण | ३ उचित क्षमाप्रार्थना | अपसपण अपस (न० ) पीछे हटना या जाना सन्ह भेद खेना ( 2 ) अपाक्त्य भेदिया की | अपहस्तित ( ३० कृ० ) निरस्त हराया हुआ। गले में हाथ देकर निकाला हुआ। रही किया हुआ | छोड़ा हुआ। त्यागा हुआ। अपहानिः (खी०) १ त्याग विच्छेद २ अन्तर्धान नाश वर्जन । अपहारः ( पु० ) लूट अपचय अपहरण अपहारक ( वि० ) १ अपहरण करने वाला छीनने वाला बलात् हरने बाखा २ डाँकू । चोर अपसव्य ) ( वि० ) १ दहिना | २ उल्टा | अपसव्यकविरुद्ध | अपसव्यम् (अन्य ) यज्ञोपवीत को बॉएं कंधे से दहिने कंधे पर करना। अपसारः (पु० ) १ बाहिर जाना वहिर्गमन पीछे लौटना २ निकास निकलने का रास्ता । श्रपसाराम् ( न० ) । दूर हटाना हँफा देना । 1 1 लुटेरा | अपहारी ( वि० ) १ अपहरणशील २ नाश करने वाला ३ चोर लुटेरा अपहृत (वि० ) छीना हुआ लूटा हुआ | चुराया हुआ। अपवः (०) छिपाव दुराव। २ वाम्जाल से सत्य को छिपाना ३ बहाना ४ स्नेह | प्रेम | ब ३ गुदा मलद्वार व्यपस्नानं ( न० ) 1 अशौचस्नान । २ अपवित्र प्रपश्रुतिः ( स्त्री० ) ३ मुकरना | सत्य को छिपाना | २ काव्यालङ्कार विशेष । इसमें उपमेय का निषेध कर के उपमान स्थापित किया जाता है। 1 स्नान। ऐसे जल में नान करना जिसमें कोई मनुष्य पहिले अपना शरीर धो चुका दो 1 अपस्पश ( वि० ) जिसके पास जासूस न हो। अपस्पर्श ( वि० ) विचेतन संज्ञाहीन | धनुभव- | शक्तिद्दीन । अपस्मार ( पु० ) ) १ विस्मृति । भ्रन्ति । अपस्मृति ( वि० ) ) २ मिरगी। बीमारी । अपस्मारिन (वि०) भुलवता भूल जाने वाला। अपस्मृतिः (श्री० )) मिर्गी के रोग वाला। अह (वि०) दूर रखते हुए स्थानान्तरित करते हुए। नाश करते हुए। अपहृतपाप्मा (वि०) जिसके समस्त पाप दूर हो गये । वेदान्त द्वारा जानने योग्य (आत्मा) । ध्यपहतिः ( श्री० ) हटाना नष्ट करना विनाश | उद बाजू हो जाना। अपसिद्धान्तः ( पु० ) असन् सिद्धान्त | अपसृप्तिः ( सी० ) गमन | अपस्करः (पु० ) पहियों को छोड़ गाली का अन्य कोई भाग । अपस्करम् (न० ) १ विष्ठा २ योनि । भग ध्यपहननम् (न०) निवारण करना। हटाना। प्रति- क्षेप करना पीछे हटाना । अपहरणम् (म० ) १ हर ले जाना स्थानान्तरित करना २ धुरानी। अपहसितं (न०) । अकारण इस अपहासः (पु.) हास निरर्थक हास्य । मूर्खतापूर्ण चोरी छिपाव लुटाना। सङ्गोपन | अपहासः ( पु० ) घटाव | कमी । अशकः ( पु० ) अजीर्ण | अनपच | २ कबापन | ३ अवयस्कता अपाकरणम् ( न० ) 1 निराकरण हटाना | दूर करना । २ यस्वीकृति । नामंजुरी खण्डन । ३ अदायगी | कर्ज की अदायगी का प्रबन्ध ४ व्यवसाय उत्तोलन किसी कारवार को समेटना। उठा देना । 1 अपाकर्मन् ( म० ) अदायगी परिशोध ऋण- परिशोध की व्यवस्था कारवार उठाना। अपाकृतिः ( स्त्री० ) अस्वीकृति । स्थानान्तरित कारण भय या क्रोध से उत्पन्न उड्डाम ( वि० ) विद्यमान प्रत्यक्ष इन्द्रियग्राह्य २ नेत्रहीन जुरे नेत्रों वाला। अपांक प्रपांकेय डापांत्य ( वि० ) एक पंक्ति में नहीं । जाति पहिष्कृत जो अपनी विरादरी के साथ बैठ कर न ला पो सके। अपाङ्गः अपाङ्गः ( पु० ) १ आँख का कोया २ सम्प्र- अपाङ्गकः 5 दाय सूचक माथे पर का चिन्ह | ३ काम- देव -दर्शनं, (न० ) -दृष्टि: ( स्त्री० ) -विलोकित, (न०) वोक्षगणं, (न०) कनखियों से देखना। आँख मारना । अपाच ( वि०) १ पश्चात्भाग में स्थित पीछे। पांच नखुला। अस्पष्ट । ३ पाश्चात्य । ४ दक्षिणी । दक्षिण का। अपाची ( स्त्री० ) दक्षिण या पश्चिम दिशा । अपाचीन ( वि० ) १ पीछे को घूमा हुआ। पीछे को सुड़ा हुआ २ अदृश्य। जो न देख पड़े।३ दक्षिण का पश्चिम का | सामने का उल्टा । अपाच्य (वि० ) दक्षिणी या पश्चिमी । अपाणिनीय (वि०) १ पाणिनी के नियमों के विरुद्ध । २ वह जिसने पाणिनी का व्याकरण भली भाँति न पढ़ा हो । संस्कृत भाषा का मामूली ज्ञान । अपात्रं (न०) १ कुपात्र बुरा वरतन। अयोग्यपुरुष । दान देने के लिये अयोग्य व्यक्ति | निन्दित । दुराचारी । अपात्रीकरणम् ( न० ) निन्दित कर्म करने वाला। अयोग्यता। नौ प्रकार के पापों में से एक। १ (०) हटाना। अलगाव । विभाग | २ व्याकरण में पांचवाँ कारक । अपाध्यन् ( पु० ) बुरा मार्ग | अपान: ( पु० ) १ शरीर में नीचे रहने वाला पवन । पाँच प्राण वायुओं में से एक | यह गुदा मार्ग से निकलता है। २ गुदा। अपावृत (वि० ) सत्य असत्य से मुक्त । पाप ) ( वि० ) पापरहित विशुद्ध | पवित्र | अपापिन् । धर्मात्मा । पां (अप् का बहुवचन ) -- ज्योतिम्, (न०) विजली विद्युत ।-~~-नपान्, सावित्री और अग्नि की उपाधि । २ - नाथः, ( पु० ) पतिः, (१०) १ समुद्र | वरुण का नाम । - निधिः, ( पु० ) १ समुद्र | २ विष्णु का नाम । -पाथम्, ( न० ) भोजन | - पित्तं, (न० ) अग्नि । -- योनिः, ( पु० ) समुद्र | अपामार्गः ( पु० ) चिचड़ा। अज्जाभारा । (०) धोना। साफ करना । ( रोग आदि को ) दूर करना । अपित प्रषायः (पु० ) १ प्रस्थान २ वियोग अलगाव । ३ अदृश्यता । तिरोहितता । अविद्यमानता । सर्वनाश | ४ हानि | चोट अपार ( वि० ) १ पार रहित २ असीम । सीमा- रहित । ३ जो कभी चुके ही नहीं । बहुत । ४ पहुँच के बाहिर । ५ जिसके पार कठिनता से हुआ जाय। जिससे पार पाना कठिन हो । व्यपारम् (न० ) नदी का दूसरा तट पा (वि० ) १ दूर । फासला । २ समीप | अपार्थ ) ( वि० ) निकम्मा | हानिकारी । निरर्थक | अर्थहीन | १ घेरा । २ छिपाव | बुराव व ( न० ) अपावृत्तिः (स्त्री० ) ) अपावर्तनम् (न० ) | १ लौट जाना | पीछे चला अपावृत्तिः ( स्त्री० ) | जाना | भाग जाना । २ क्रान्ति । अपाश्रय ( वि० ) निराबलम्ब असहाय । अपाय: ( पु० ) १ आश्रय | आश्रयस्थल । २ चन्दोवा | शामियाना। शीर्ष । अपासंगः } ( पु० ) तरकस । अपाङ्गः पानं (०) १ फैकदेना। रही कर देना । २ त्याग परित्याग | ३ नाश | अपार (न० ) प्रस्थान | हटाना। पासु (वि०) निर्जीव । मृत यपि (अव्यया• ) सम्भावना प्रश्न । शङ्का गर्दा । समुद्दय । अनुज्ञा । अवधारण । भी । ही । निश्चय । ठीक । अपिगीर्ण ( वि०) १ प्रशंसित । प्रसिद्ध | २ | कथित । वर्णित अपिच्छिल ( वि० ) गँदला नहीं। स्वच्छ । साफ अपितृक (वि० ) १ पितारहित । २ पैतृक या पुश्तैनी नहीं । अप्रैतृक । अपिज्य (वि० ) पैतृक नहीं। अपिधानं - पिधानं ( न० ) ढकना | आच्छादन | अधिः (स्त्री० ) छिपाव | दुराव | ध्यपिव्रत (वि०) किसी धर्मानुष्ठान में भाग लेनेवाला । रक्तसम्बन्ध युक्त | अपिहित- पिहित प्रकाश अपिहित- पिहित (३० ० ) बंद | मुँदा हुआ । ढका हुआ छिपा हुआ। अपेक्षितम् ( न० ) वाहिश इच्छा | सम्मान । सम्बन्ध | अपीतिः ( स्त्री० ) १ प्रवेश | समीप गमन | २ | ध्यपेत ( सं० का० ० ) १ तिरोहित | गया हुआ । २ विरुद्ध | रहित । मुक्त | दोपरहित - कृत्यः ( वि० ) कार्यशून्य । नाश हानि। ३ प्रलय । अयोगण्डः ( पु० ) १ किसी शरीरावयव की अधिकता अथवा स्वल्पता। देह के किसी अङ्ग की कमी या वेशी २ सोलह वर्ष की अवस्था के नीचे नहीं अर्थात् ऊपर यालिग। वयस्क । २ बालक । बच्चा | ४ अत्यन्त भीरु | बड़ा डरपोंक। २ ( चेहरे की ) सकुड़न वाला। अपोढ (वि० ) निरस्त | व्यक्त | निकाला हुआ। पदक (स्त्री० ) शाक विशेष पूति नामक शाक अपोहः (१०) स्थानान्तरित करना हँका देना। भगा देना पुरना । २ शङ्का या तर्क का निराकरण | ३ तर्क वितर्क करना । बहस करना। ४ उन सब विषयों का निराकरण जो विचारणीय विषय के बाहिर हो । ( ६४ ) अपीनसः (पु०) नाक में खुश्की ठंडक ( सिर में अपुंस्का ( स्त्री० ) विना पति की स्त्री । अपुत्रः (पु० ) पुत्ररहित । अपुत्रक (वि० ) पुत्र या उत्तराधिकारी रहित । अपुत्रिका ( स्त्री०) पुत्र रहित पिता की लड़की जिसके निज का भी कोई पुत्र न हो। अपुनर् ( अन्यया० ) फिर नहीं। सदा के लिये एक बार सदैव । --अन्वय ( वि० ) पुनः न लौटने वाला। मृत - श्रादानं (न० ) वापिस न लेना या पुनः न लेना। -आवृत्तिः (स्त्री० ) मोच | अपुष्ट ( वि० ) १ दुबला पतला २ थीमा। अप्रखर कोमल ( स्वर ) । अपूपः (पु० ) पुआ। मालपुआ। अँदरसा। अपूरणी ( श्री० ) शाल्मली वृच। सेमर का पेड़ । ध्यपूर्ण ( वि० ) अधूरा | जो पूर्ण न हो । असमाप्त है अपूर्व ( बि० ) जो पहिले न रहा हो। नया। विल- चय असाधारण । अद्भुत ३ अपरिचित । ४ प्रथम नहीं।~~-पतिः ( स्वी० ) जिसके पहिले अपोह्य . ( स०का०कृ० ) हटाने योग्य दूर किया अपोहनीय हुआ। निकाला हुआ। पति न रहा हो। कारी। थविवाहिता--विधिः | अपौष ( ( वि० ) १ कायर । भीरु | २ श्रमानु- ( स्त्री० ) अन्य प्रमाणों से अप्राप्त अर्थ का विधान ।यिक । अलौकिक । करने वाला। अपौरपेयं अपौरुषम् ( ( न०) भीस्ता डरपोकपन | कायरता अपौरुषेयम् ।। २ अलौकिक या अमानुषिक शक्ति | पु० ) एक यज्ञ का नाम सामवेद अपूर्वम् ( न० ) पाप पुण्य, जिसके कारण पीछे सुख | अप्तीयमन) की एक ऋचा का नाम । जो उक्त दुःख की प्राप्ति होती है। पूर्वः (पु० ) परमात्मा | तोमः यज्ञ की समाप्ति में पड़ी जाती है। ज्योतिष्टोम यज्ञ का अन्तिम या सप्तम भाग। अपृथकू (अव्यया० ) अलहदा से नहीं। साथ साथ समष्टि रूप से । अपेक्ष्य अपेक्षितम्य : ( वि० ) वाड्रामीय अपेक्षणीय अपेक्षित नरूरी। अपेक्षा (स्त्री०) | १ उम्मेद। श्राशा। अभिलाषा) अपेक्ष (२०) । २ आवश्यकता आकांक्षा | ३ कार्य अप्ययः ( पु० ) समीप आगमन । मिलन । २ ( नदी में से) उलेड़ना। उलीचना | ३ प्रवेश | अन्तर्थान | अदृष्ट होना मोच होना ४ नाश और कारण का परस्पर सम्बन्ध सम्बन्ध || अप्रकरणं (ज०) मुख्य विषय नहीं । चाहियात विषय । ४ परवाह । ध्यान २ प्रतिष्ठा सम्मान | चमक से तिरोहित | छिपा अपोहनम् ( म० ) तर्क वितर्क करने की शक्ति बहस करने की योग्यता । आकाँक्षणीय श्रप्रकाश ( वि० ) : धुँधला काला शून्य | २ स्वप्रकाशमान् | ३ हुआ। गुप्त । अप्रकाशम् अप्रकाशे प्रकाशम् (अन्यथा०) चुपके से गुपचुप ध्यप्रकृत ( वि० ) समुख्य अप्रधान २ विषय से भिन्न अकृतम् ( न. ) १ बनावटी | २ झूला अमगम ( वि० ) इतनी तेज़ी से जाने वाला कि अन्य लोग पीछे न चल सकें। अप्रासङ्गिक । उपमान नैमितिक । अस्वाभाविक | अमगल्भ (वि० ) १ असाहसी । शर्मीला । शीलवान् 1 २ अौड़ ३ नियम। डीजा। सुरत श्रमण (वि० ) व्याकुल । प्रकृष्ट गुणहीन | अमज ( वि० ) १ सन्तान रहित । सन्ततिहीन । २ अनुपा ३ जो ( स्थान या घर) बसा न हो। जहाँ बस्ती न हो। अप्रजस् । ( वि० ) १ सन्तति हीन । जिसके कोई श्रमजतो | धौलाद न हो। अप्रजाता ( स्त्री० ) बन्ध्या स्त्री | प्रतिकर्मन (वि० ) १ ऐसे कर्म करने वाला, जिसकी बराबरी अन्य कोई न कर सके । २ अनिवार्य | प्रति प्रवल । अप्रतिरोधनीय | अप्रतिद्वंद्व २(वि० )जन अप्रतिद्वन्द्व ) हो । अजेय । २ बेजोड़ । अप्रतीत प्रतिभ (वि० ) १ शीलवान | लज्जालु । २ प्रतिभाशून्य उदास ३ स्फूर्ति रहित सुस्त । ४ मतिहीन निर्बुद्धि | अप्रतिभट ( वि० ) जिसका सामना करने वाला कोई न हो। बेजोड़ । ● अप्रतिभः ( पु० ) ऐसा योद्धा जिसके सामने कोई खड़ा न रह सके। अप्रतिपक्ष ( वि० ) : अप्रतियोगी । विपक्षीशून्य । शत्रुरहित २ असदृश | श्रप्रतिपत्ति ( स्त्री० ) १ अस्वीकृति । प्रकृति । २ उपेक्षा | ३ समझदारी का अभाव ४ दृढ़ विचार शून्यता गड़वदी। विह्वलता। प्रतिबन्ध ( वि० ) १ रुकावट का न होना | स्वच्छ- म्दता २ विवादरहित । विना झगड़े का । अप्रतिबल ( वि० ) अजेयशक्तियुक्त वह मनुष्य जिसके समान थली दूसरा न हो। अप्रतिम (वि० ) जिसकी तुलना न हो सके। बेजोड़ असदरा असमान अप्रतिद्वन्द्वी । व्यतिरथ (वि० ) ऐसा धीर योद्धा जिसके समान दूसरा वीर योद्धा न हो। बेजोड़ वीर योद्धा । प्रतिस्थः (पु० ) विष्णु अप्रतिरथम् ( म० () १ युद्ध की यात्रा २ युद्धार्थ यात्रा के लिये किया गया मङ्गलाचार | ३ सामवेद का एक भाग अप्रतिरव (वि० ) विवादरहित । जिसके सम्बन्ध में कोई झगड़ा न हो। अप्रतिकार ) (वि०) १ जिसका कोई उपाय या तद्- अप्रतीकार वीर न हो सके। लाइलाज । असाध्य । २ जिसका कोई बदला न दिया जा सके। अति ( वि० ) १ अभेद्य | अजेय | २ जो नष्ट न ध्यप्रतिवीर्य (वि० ) वह जिसके समान शौर्य या परा क्रम किसी अन्य में न हो अथवा जिसके शौर्य या पराक्रम की समानता अन्य न कर सके। किया जा सके। अरे हटाया न जा सके। जो दूर | अप्रतिशासन (वि० ) जिसका शासन में दूसरा कोई न किया जा सके। ३ कोधी । शान्त | 1 ३ प्रतिद्वन्दी न हो। एक हो शासन में रहने वाला। रूप (वि० ) जिसके समान रूप वाला कोई न हो। अद्वितीय अनुपम जिसकी तुलना न हो सके। -कथा, (स्त्री०) ऐसा वचन जिसका उत्तर न हो। उत्तरहीन वचन | प्रतिष्ठ (वि० ) १ अस्थायी विनवर | २ जो लाभप्रद न हो। निकम्मा ध्ययें | ३ अपकीर्तिकर अप्रतिष्ठानम् (न० ) अनस्थिरत्व प्रौदता या खता का अभाव | अबाधित। निर्विज्ञ अजेय 1 अप्रतिहत (वि० ) २ श्रावावरहित ३ बलवान । जो नियंत न हो। ४ जो हतोत्साह न हो।-नेत्र (चि० ) जिसके नेत्र निर्बल न हो । अतीत ( वि० ) १ जो प्रसन्न या हर्षित न हो। २ जिसकी बात समझ में न आवे । अस्पष्ट शब्द न दोष विशेष | सं०० कौ8 अप्रमता अप्रमत्ता (स्त्री० ) कारी लड़की, जिसका विवाह न हुआ हो या जिसका दान न किया गया हो। अप्रत्यक्ष (वि० ) १ अदृष्ट अगोचर २ प्रशास अविद्यमान अनुपस्थित अप्रत्यय ( वि० ) १ आस्मसन्दिग्ध बेतवार । जिसको किसी पर विश्वास न हो। २ ज्ञानशून्य ३ व्याकरण में प्रत्यय रहित । अप्रत्ययः (५०) अविश्वास थामसंशय । २ जिसका मतलब न समझा गया हो। दुबोध ३ प्रत्यय नहीं। श्रप्रदक्षिणं ( धन्यया) वाए से दहिनी ओर। अप्रधान (विः ) अमुख्य। गौरा । अन्तवंती | अप्रधानम् (न०) १ मातहती की हालत । तावेदारी । अधीनवायी। २ गौणकर्म । 1 अमवृष्य (वि० ) अजेय जो जीता न जा सके। अप्रभु (वि० ) १ जो बलवान न हो । बलरहित। २ जिसमें शासन करने की शक्ति न हो। अशक्त । असमर्थ अयोग्य अप्रमत्त ( वि० ) जो प्रमादी न हो। असावधान म हो। सावधान। बुद्धिमान । सतकें । अप्रमद (वि० ) उत्सवरहित उदास । हर्षरहित । मा (स्त्री० ) अयथार्थ ज्ञान | मिथ्या ज्ञान | अप्रमाण (वि० ) अलीम | अपरिमाण । २ अप्रा- माणिक।३ जो प्रमाण न माना जाय । श्रवि श्वस्त । अप्रामाणिक अप्रयुक्त (वि० ) अव्यवहत। जिसका प्रयोग न किया गया हो या किया जा सके। दुर्व्यवहृत् । अनुचित रीत्या प्रयुक्त (अ० ) दुर्लभ आलाधारण । अप्रवृतिः (स्त्री० ) १ क्रियाशून्यता | निश्चेष्टता। जड़ता। उत्तेजना का अभाव। अप्रसङ्गः (5) अनुराग का अभाव | २ सम्बन्ध का भाव ३ अनुपयुक्त समय या अवसर । प्रसिद्ध वि० ) १ अज्ञात | तुच्छ । २ असाधारण अप्रस्ताविक ( वि० ) [ श्री० - [अप्रस्ताविकी } अप्रासङ्गिक असङ्गत - 1 प्रस्तुत (वि.) असङ्गस प्रसङ्ग विरुद्ध २ बाहियात अर्थ रहित। ३ नैमित्तिक । विजातीय । बहिरङ्ग अप्रधान ४ जो प्रस्तुत या विद्यमान न हो।-प्रशंसा, (स्त्री० ) यह अर्थालङ्कार जिसमें प्रस्तुत के कथन द्वारा प्रस्तुत का बोध कराया जाय। अग्रत ( वि० ) अनाहत २ अनजुती भूमि । ३ कोरा कपड़ा। अकरणिक ( वि० ) जो प्रकरण के या [ स्त्री० -अप्राकरणिकरे ] प्रसङ्ग के अनुसार न हो। के अप्राकृत ( वि० ) १ जो प्राकृत न हो। गँवारू । २ जो असली न हो। अस्वाभाविक | ३ असाधारण ४ विशेष | अप्राध्य (वि०) गौया अधीन निकृष्ट | अप्रमाणम् ( न० ) १ ऐसी आज्ञा या नियम ) जो किसी कार्य में प्रमाण मान कर ग्रहण न किया | अमाप्त ( वि० ) जो मिल न सके । २ आन पहुँचा जाय । २ असङ्गति । अप्रासङ्गिकता | अप्रमाद (वि) सावधान। अप्रमादः ( पु० ) सावधानी सतर्कता 1 अप्रमेय ( वि० ) जो नापा न जा सके। असीम | सीमारहित २ जो यथार्थ रूप से न जाना था हो, न आया हो। ३ नियम जो लागू न हो। व्यवसर, काल ( वि० ) अनवसर का बेमौके अनऋतु का। कुसमय का ।-यौवन ( वि० ) जो युवा न हुआ हो।-व्यवहार, - वयसू, (वि. ) नावालिग। अवयस्क | अप्राप्तिः (स्त्री० ) १ अलब्धि २ जो पूर्व में किसी नियम से सिद्ध या प्रतिष्ठित न हुआ हो। ३ जो घटित न हो। समझा जा सके। जाँच के प्रयोग्य। प्रमेयम् ( न० ) ब्रह्म । श्रयाशिः (स्त्री०) गमन न करने वाला जो उन्नति न करे। ( इसका प्रयोग प्रायः किसी को शाप देने या अकोसने में होता है। 1 अप्रामाणिक ( वि० ) [ स्त्री० - [अप्रामाणिकी ] १जो प्रामाणिक न हो। ऊटपटाँग २ अविश्वस्त । जो मातवर न हो। अप्रिय अबाधित २ पीडा ध्यप्रिय ( वि० ) १ अरुचिकर। नापसंद | २ जो प्यारा न हो जो मित्र न हो। अप्रियः (पु० ) शत्रु | वैरी २ अखण्डन । लड़का नहीं। प्रियम् ( न० ) अरुचिकर काम । नापसंद काम । ध्यप्रीतिः (स्त्री०) अरुचि । नापसंदगी। घृणा । अभक्ति। परामुखता । जवान । २ छोटा नहीं । पूरा ( जैसा पूर्णिमा का ) । अ (वि० ) जो प्रौढ़ अर्थात् हड़ न हो । २ भीर । असाहसी ३ जो पूरा बढ़ा हुआ न हो। अवाह्य (वि०) १ बाहिरी नहीं भीतरी २ (आल०) परिचित । (स्त्री) १ अविवाहित लड़की । २ लड़की | अविधनः १ (५० ) समुद्र के भीतर रहने वाला जिलका हाल ही में विवाद हुआ हो, किन्तु जिसे अविन्धनः । अग्नि | वक्ष्यानल | रजस्वला धर्म न होता हो। ( (वि) जोतन हो । श्रदीर्घीकृत | ( स्वर ) | अविलम्बित | अप्सरा अप्सराः घसरस् ) ( स्त्री० ) इन्द्र की सभा में नाचने वाली देवाहना, जो गन्धवों की खियाँ कही जाती हैं। स्वर्गवेश्या--पतिः, ( 30 ) इन्द्र अफल (वि० ) फलरहित । वेफळवाला बन्ध्या २ जो उधर न हो। व्यर्थ । निरर्थक ३ नपुंसक किया हुआ। लोजा था हिजड़ा बनाया हुआ।-- माकांतिन, -प्रेप्सु, (वि० ) ऐसा पुरुष जो अपने परिश्रम का पुरस्कार था पारिश्रमिक न | चाहे निस्स्वार्थी । ते ब्रह्मवादिभिः।" फेन (वि० ) विना फैन का | फेनरहित । अफेनम् (न० ) अफीम | महाभारत अबंधु श्रवन्धु अवधिव प्रवद्ध ) (वि० ) 3 विना बंधा हुआ । अनरुद्ध । अवद्धक स्वतंत्र २ बिना अर्थ का निरर्थक वाहियात गुमसुम | विरुद्ध /-मुख ( वि० ) जो मुंह का अपवित्र हो । जो गाली गलौज बका करे।

  • ७ )

(वि० ) एकाकी । मित्र रहित। व्यवान्धव व्यबल ( वि०.) 1 निर्बल कमज़ोर । २ अरक्षित | श्रवला ( श्री० ) स्त्री औरत। 1 यव्द. अबाध ( वि० ) १ बाधा शून्य रहित । अबाधः (पु० ) १ रोकटोक होना अवाल (वि० ) लड़कपन नहीं अबुद्ध (वि० ) हुजू । मूर्ख वेवकूफ अबुद्धिः (खी० ) । बुद्धि का अभाव । निर्बुद्धिता | २ श्रज्ञान । मूर्खतापूर्व, पूर्वक, (वि०) बेस- मझा बुझा । अनजाना हुआ।-पूर्व (अवुद्धि- पूर्व) कं, (अबुद्धिपूर्वकम् ) (अन्य ) अशावभाव से अनजानपने से। } अबुध् ) ( वि० ) निर्वाध | मूह (पु०) मूर्ख व्यक्ति। अबुध ) मूह व्यक्ति ( स्त्री० ) अज्ञानता | बुद्धि का अभाव । अबोध (वि०) अज्ञानी । मूर्ख। मूह | जो समझ में न आवे अयोधः (पु० ) अज्ञता मूर्खता अभाव | -गम्य (वि०) मूड़ता। ज्ञान का अन्ज (वि०) जल में था जल से उत्पन्न कार्णिका कमल का बीज पुटकजः भवः- भूः, - योनिः, ( ०1ह्मा के नाम -बान्धवः, ( पु०) सूर्य चाहनः ( पु० ) शिवजी का नाम । " व्यब्जम् ( न० ) १ कमल । २ संख्याविशेष । सौ करोड़ | अरब ३ भसीदा | ५ चन्द्रमा ६ धन्वन्तरि । ४ शंख। अजा (स्त्री० ) सीप अजनी (स्त्री०) १ कमलों का समुदाय २ स्थान जहाँ कमल ही कमल हो । ३ कमल का पौधा । --पतिः, ( पु० ) सूर्य दः (पु० ) बादल। वर्ष (पु० और न० ) । २ एक पर्यंत का नाम।अर्ध, (न०) भाषा' अन्धि वर्ष । ६ महीना।–चाहनः, (५०) शिव जी का नाम । -शतं, (न० ) शताब्दी | सदी | १०० वर्ष । - सारः, (पु०) एक प्रकार का कपूर । (पु०) १ समुद्र | २ ताल। सरोवर। जलाशय । झील ३ सान और कभी २ चार की संख्या का । अझ ( 5 ) बड़वानल -- कफः, -फेनः ( पु० ) फैन | जैः. ( पु० ) चन्द्रमा । २ शङ्ख। जा, (स्त्री० ) १ वारुणी मद्य २ लक्ष्मी देवी । द्वीपा, (स्त्री० ) पृथिवी | -नगरी, ( स्त्री० ) द्वारकापुरी / नवनीतकः ( पु० ) चन्द्रमा । -सराइकी, (स्त्री० ) सीप -शयनः, (१०) विष्णु भगवान् । सारः ( पृ० ) एक रत। अब्रह्मचर्य ( वि . ) १ अपवित्र । २ जो ब्रह्मचारी न हो । अब्रह्मचर्यम् । ( न० ) १ ब्रह्मचर्य का अभाव । अब्रह्मचर्यकम् २ स्त्रीप्रसङ्ग । महाराय (वि०) ब्राह्मण के योग्य नहीं। २ के प्रतिकूल ( * ब्रह्मण्यम् (न०) बाह्मण के अयोग्य कर्म । अब्रह्मन् (वि० ) ब्राह्मणों से भिन्न या ब्राह्मणों का अभाव । प्रभकिः ( स्त्री० ) १ श्रद्धा का था अनुराग का अभाव । २ श्रश्रद्धा | अभय (वि० ) ना खाने योग्य । जिसका खाना निषिद्ध हो । अभयम् (न०) चर्जित खाद्य पदार्थ । अभग ( वि० ) अभागा । बदकिस्मत | अभद्र (वि० ) अशुभ बुरा। दुष्ट । (न०) १ बुराई । पाप । दुष्टता । २ दुःख । । निर्भय - डिण्डिमः, । निडर । (पु० ) १ सुरक्षा का ढिोरा । २ सैनिक ढोल । - दक्षिणा -दानं, – प्रदानं, (न०) किसी को भय से मुक्त कर देने की प्रतिज्ञा या वचन का देना। अक्षय ( वि० ) भय से रहित सुरक्षित | बेखौफ प्रभयंकर अभयङ्कर अभयंकृत अभयत (वि०) १ भयङ्कर या भयावह नहीं । निर्भयप्रद | २ सुरक्षा करना। अमिकाम नैसर्गिक अभवः (पु० ) अनस्तित्व २ मोक्ष सुख ३ समाप्ति या नाश । प्रभव्य ( वि० ) न होने को अनुचित । अशुभ | अभागा प्रारब्धहीन | ) प्रभाग ( वि० ) १ जिसका हिस्सा या पांती न हो । (हिस्सा पैतृक) । २ अविभक्त । विना बँटा हुआ । भवः (पु० ) असत्ता | न होना । अनस्तित्व | नेस्ती । २ अविद्यमानता ३ नाश । मृत्यु | ४ अदर्शन। यह पांच प्रकार का होता है। ( क ) प्राम्भव । (ख) प्रध्वंसाभाव । (ग) अत्यन्ता- भाव । (घ) अन्योन्याभाव । (ङ) संसर्गाभाव । ५ त्रुदि। ढोटा। घाटा | अभावना १ (स्त्री०) निर्णय करने की शक्ति अथवा यथार्थ ज्ञान की अनुपस्थिति २ ध्यान का अभाव । भाषित (वि०) अकथित न कहा हुआ। पुंस्कः, ( पु० ) शब्द विशेष जो न तो कभी पुलिस और न नपुंसक लिङ्ग बन सके। जो सदा स्त्रीलिङ्ग ही बना रहे । अभ(०) १ उपसर्ग विशेष जो संज्ञावाची और क्रियावाची शब्दों में लगाया जाता है। इसका अर्थ है-- ओर प्रति । तरफ । २ पक्ष में । विपक्ष में ३ पर। ऊपर ४ छिड़कनां बुरकना । ५ अधिक। अतिरिक्त चारपार जब यह उपसर्ग विशेषणों और ऐसे संज्ञावाची शब्दों में जो क्रिया से नहीं बने, लगाया जाता है, तब इसका अर्थ होता है -१ घनिष्टता अत्यन्तता उत्कृष्टता २ सामीप्य | सामने । प्रत्यक्ष | ३ पृथक् पृथक् । एक के बाद एक अमिक } (वि० ) कामुक | अभिलाषी । मरभुका । अभिकांता (स्त्री०) स्वाहिश अभिलाषा। आकांक्षा। अभिकतिन् ( वि० ) अभिलाषी । स्वाहिशमंद | अमिकाम ( वि० ) स्नेहभाजन प्यारा अभि लाषी । कामुक । अभिकामः ( पु० ) १ स्नेह | प्रेम | २ ख्वाहिश अभिलाषा | यमिक्रम (०)आरम्भ | उद्योग | २ चढ़ाई। आक्रमण । सांघातिक आक्रमण | ३ चढ़ना । सवार होना । अभिक्रमणं ( न० ) अभिक्रान्ति ( स्त्री० ) ) } समीप गमन चढ़ाई। अभिक्रोश: ( पु० ) १ चिल्लाहट | पुकार | २ गाली । भर्त्सना फटकार । डाँटडपट | अभिकोशकः ( पु० ) पुकारने वाला गाली देने वाला। (स्त्री० ) १ चमक दमक | सौन्दर्य | अभिचरणम् ( न०) किसी बुरे काम के लिये अनुष्ठान; जैसे शत्रु नाश के लिये श्येन याग श्रभिचारः (पु० ) अनुष्ठान मारण उच्चारण, विद्वे- षण आदि के लिये अनुष्ठान । ज्वरः (पु० ) ऐसे अनुष्ठान से उत्पन्न ज्वर । कान्ति । २ कथन । घोषणा ३ पुकार । सम्बोधनकारक }}} ( अनुष्ठान । शब्द | ६ कीर्ति । नामवरी । गौरव । प्रसिद्धि ( बुरे भाव में ) । माहात्म्य । अभिख्यानं ( न० ) कीति । गौरव । अभिगमः ( पु० ) 7 आगमन शमन । मुला- अभिगमनम् ( स्त्री० ) ) कात | पहुँचना । २ मैथुन । अभिगम्य ( स० का० कृ० ) १ समीप यागमन चा गमन किया हुआ । भेटा हुआ | खोजा हुआ | २ उपगम्य । प्राप्तव्य 1 अभिजन: ( पु० ) १ कुटुंब | कुनया | जाति । वंश । उत्पत्ति निकास, वंशपरम्परा २ कुलीनता । खान- दानीपना | ३ जन्मस्थान । जन्मभूमि। पैतृकस्थान । ४ कीर्ति । प्रसिद्धि । ३ खानदान का सरदार या मुखिया कुलभूषण । ६ अनुचर चाकरवर्ग अभिगर्जून, } ( न० ) भयानक दहाद । भयङ्कर गर्ज | अभिजनवत् ( वि० ) कुलीन वंश का । कुलीन । अभिजयः (पु० ) विजय। पूरी पूरी जीत। अभिजात ( व० कृ ) १ उत्पन्न | अच्छे कुल में उत्पन्न | कुलीन | २ शिट | विनम्र | ३ मधुर अनुकूल । ४ योग्य | उचित उपयुक्त | उत्तम गुणदान | सत्पात्र । ५ सुन्दर | रूपवान । ६ विद्वान् । पण्डित। प्रसिद्ध । अभिजातिः ( स्त्री० ) कुलीन वंश में उत्पत्ति | अभिजियां ( न० ) स्नेह प्रदर्शन करने को सिर संधना। अभिगामिन् (वि० ) पास जाने वाला । ( मैथुन सम्बन्धी ) रतज़ब्त रखने वाला । [भितिः ( स्त्री० ) रक्षण | संरक्षण | अभिगो ( 30 ) रक्षक । अभिभावक । वली । अभिग्रह: ( पृ० ) १ लूट खसोट । जवरदस्ती छीनना । २ आक्रमण चढ़ाई। ३ किसी काम के लिये किसी को ललकारना। ४ शिकायत । फरियाद । २ अधिकार शक्ति | । अभिग्रहणम् ( न० ) लूट लेना | छीन लेना । अभिघर्षणम् ( न० ) १ घिसन | रगड़ | २ प्रेतावेश । मिर पर भूत का चढ़ना । अभिघात (पु० ) १ चोट देना मार प्रहार ताइन । आक्रमण । हमला । २ सम्पूर्णतः नाश । सर्वनाश | पूर्ण रूप से स्थानान्तरित करने की क्रिया। अभिघातक (वि० ) [ स्त्री० - अभिवातिका ] रोक | बचाव | प्रमिश अभिघातिन ( पु० ) शत्रु | बैरी । अभिधारः ( पु० ) १ घी । २ हवन में घी डालना। अभिधारणम् (न० ) घी छिड़ने की क्रिया । अभिचरः ( पु० ) अनुचर | नौकर | · टुटका टॅमना | अभिचारकः । ( पु० ) अनुष्ठानकर्त्ता । जादूगर | अभिचारि 5 तांत्रिक । अभिजित् (पु० ) विष्णु का नाम । २ नक्षत्र विशेष | उत्तराषाढ़ा के अन्तिम १५ दण्ड तथा श्रवण के प्रथम चार दण्ड अभिजित कहलाता है । ३ दिन का आठवों मुहूर्त्त। दोपहर के पौने बारह बजे से लेकर साढ़े बारह बजे तक का समय । विजय मुहूर्त्त | अभिश (वि० ) १ जानकार | विज्ञ | २ निपुण । कुशल । अभिज्ञा ( ७० ) श्रमिनिविश्ता अभिक्षा ( स्त्री० ) १ प्रत्याभिज्ञा। पुनशन । प्राथमिक | अभिधेय ( सं० का० कृ ) १ वर्णित | कथित | निरू- ज्ञान २ स्मृति पहिचान । पित। २ नाम धरने योग्य | 1 प्राय | ३ निचोड़ | निष्कर्ष । ३ विवेच्य या श्रोग्य विषय । प्रकरण प्रसङ्ग ४ किसी अभिज्ञानम् ( न० ) १ प्रत्याभिशा | पुनर्ज्ञान | २ | अभिषेयम् ( ० ) १ अर्थ | भाव । तात्पर्य । अभि- स्मृति । पहिचान ३ चिन्हानी | ४ सन्द्रमण्डल का काला भाग । -आभरणम् (३० ) गहना जो किसी बात का स्मरण कराने के लिये उपस्थित किया जाय। परिचायक । सहृदानी । अभितस् (अव्ययाs) : समीप | निकट | पास। ओर। तरफ २ अत्यन्त समीप निकट में पास में 9 । 1 में । ३ ओर सम | सामने । प्रत्यक्ष ४ सब ओर से। चारों नितान्त | निपट | पूर्णतः धुराधुर ६ फुर्ती से। तेज़ी से । अभितापः (g० ) प्रचण्ड गर्मी (चाहें यह शरीरिक हो चाहे मानसिक ) । चोभ | उद्वेग | पीड़ा | अभिताम्र ( वि० ) बहुत लाल । अभिदक्षिणम् (अन्य ) दहिनी ओर या तरफ़ | अभिद्रवः ( 30 ) भद्रम् (न०) अनिद्रोह (पु) आगे पीछे । चौतरफा । २ गाली | भर्त्सना । आक्रमण हमला | षड्यंत्र | हानि | निर्दयता । २ अभिधर्षण ( न० ) १ भूतावेश भूत का शरीर में धावेश होना भूताधिवेश | २ अत्याचार | अभिया (स्त्री० ) १ नाम 1 उपाधि | २ चाचक शब्द। ३ शब्दों के वाच्यार्थ का योधन करने वाली शक्ति । ४ ( मीमांसा ) शाब्दी भावना | अभिधानम् (न० ) १ कथन । निरूपण | नाम करण । २ भविष्यद्-~-कथन । निःसन्देह भाव से कथित वाक्य | ३ नाम । उपाधि लक्रव पद ४ भाषण | संवाद । २ शब्दकोश - कोशः, ( पु० ) माला ( स्त्री० ) शब्दकोश | अभिधायक ( वि० ) [ स्वी० --अभिधायिका ] १ सूचक | परिचायक । २ नाम रखने वाला। अभिधायिन् (दि० ) तिरूपक । प्रकाशक । अभिधानम् (न० ) आक्रमण | हम्ला | पीछा करना । शब्द का अविकल अर्थ | अभिया ( स्त्री० ) १ दूसरे की वस्तु पर मन डिगाना । पराई बस्तु की चाह । २ अभिलाषा । इच्छा | कालच अभिनन्दः ( पु० ) हर्ष प्रसन्नता | २ प्रशंसा | लावा | सराहना । बधाई | ३ अभिलाषा इच्छा | ४ प्रोत्साहन | उत्तेजन | अभिनन्दनम् (न० ) १ आनन्द | बंदना | स्वागत | २ प्रशंसा ३ अभिलाषा | इच्छा अभिवादन । अनुमोदन | अभिनन्दनोय | ( स० का० कु० ) १ हर्षप्रद । अभिनन्द्य २ प्रशंसित | वंदनीय । अभिनन ( वि० ) झुका हुआ नया हुआ | अभिनयः (पु० ) हृदय के भाव को प्रकट करने वाली किया। स्वांग। नक़ल | नाटक का खेल । अभिनव (वि० ) १ कोरा बिल्कुल नया | ताना। टटका । २ अनुभवशून्य । -यौवन, – वयस्क, (चि० ) ( अवस्था में ) बहुत छोटा जवान अभिननम् ( न० ) ( आँखों के ऊपर बांधने की ) - पट्टी धंधा । 1 अभिनियुक्त ( वि० ) काम में लगा हुआ । मशगुल । ग्रभिनिर्याणम् (न० ) १ कूच | प्रस्थान | २ चढ़ाई। अभिर्मुक्त (वि० ) १ छोड़ा हुआ। त्यागा हुआ । २ सूर्यास्त के समय सोने वाला। | प्रभिनिषिष्ट ( व० ऋ० ) : पैठा हुआ | घसा हुआ। हम्ला । किसी शत्रुसैन्य पर धावा गड़ा हुआ । २ लिए | मझ | ३ कृतसङ्कल्प | हदप्रतिज्ञ | ४ हठी | जिद्दी आग्रही ५ एक ही और लगा हुआ अनन्य मन से अनुरक्त । अभिनिविष्टता (श्री० ) १ हदप्रतिज्ञा | सङ्कल्प अपने स्वार्थ में ( किसी बात की भी परवाह न कर ) लिप्स हो जाना। अभिनिवृत्ति अभिनिवृत्तिः (स्त्री० ) सम्पादन | सिद्धि | समाप्ति । पूर्णता अभिनिवेशः ( पु० ) अनुरक्ति लीनता एकाम- चिन्तन २ उत्सुकतापूर्ण अभिलाषा ३ दृढ़- प्रतिज्ञा । ४ ( योगदर्शन में ) पाँच क्लेशों में से अन्तिम क्जेश मृत्यु | शङ्का | अभिनिवेशिन् ( वि० ) १ अनुरक्त | लिप्स | लीन | २ ( मन को किसी थोर) लगाना फेरना। ३ प्रविज्ञ | कृतसङ्कल्प । अभिनिष्कम् (न० ) बाहिर का निकास अभिनिवानः ( पु० ) वर्णमाला का एक अन्तर । अभिनिष्पतनम् ( म०) वहिवन । बाहिर निकलना । युद्धार्थ द्रुतवेग से प्रयाण अभिनिष्पत्तिः ( स्त्री० ) समाप्ति । अन्त | पूर्णता | [ सिद्धि1 | अभिनिवः (पु० ) अस्वीकृति । प्रत्याख्यान | दुराव छिपाव | अभिनीत ( व० कृ० ) १ निकट लाया हुआ । २ अभिनय किया हुआ। ( नाटक ) खेला हुआ ३ पूर्णता को पहुँचाया हुआ। सर्वोत्कृष्ट । ४ सु- सजित ५ योग्य | उचित उपयुक्त ६ कुछ। ७ दयालु अनुकूल प्रशान्त चित्त स्थिर चित्त । I अभिनीतिः ( स्त्री० ) १ भावभङ्गी । हावभाव । २ कृपा दयालुता मैत्री सन्तोष। अभिनेतृ (पु० ) [ श्री० - अभिनेत्री ] एक्टर | नाटक 1 का पात्र : अभिनेय ( ( स० का० ० ) अभिनय करने अभिनेतव्य | योग्य | खेलने योग्य | अभिन] ( वि० ) १ जो भिन या कटा न हो। अपृथक एकमय । २ अपरिवर्तित । अभिपतनं ( न० ) १ समीप गमन | २ आक्रमण हम्ला चढ़ाई। प्रस्थान कूच रवानगी । अभिपत्तिः (स्त्री०) १ समीपगमन | समीप खींचना २ समाप्ति । अभिवचनम् २ भागा हुआ | भगोड़ा ३ वश में किया हुआ। पकड़ा हुआ गिरफ्तार किया हुआ। ४ अभागा । बदकिस्मत आपत्ति में फँसा हुआ। ५ स्वीकृत | ६ अपराधी । ! अभिपरिप्लुत ( वि० ) १ निमज्जित । हूया हुआ। अभिपूरण ( वि० ) अतिप्रबल | विझलकारी। बूढ़ा हुआ। २ दिला हुआ अभिपूर्व (अव्यया० ) क्रमशः । अनुक्रम से | अभियनम् (न० ) पवित्र मंत्रों से संस्कार या प्रतिष्ठा करने की क्रिया | अभियः ( पु० ) स्नेह कृपा प्रसादन तुष्टि- साधन तोषन । [ २ लाया हुआ। अभिप्रथमम् ( न० ) बिछाना, वरना था (आगे) अभिप्रणीत (व० कृ॰ ) १ संस्कारित । प्रतिष्ठित । बड़ाना। ऊपर से डालना या ढकना । अभिप्रायः (०) अभिप्रदक्षिणम् (अव्यया• ) वहिनी ओर । आशय । मतलब । तात्पर्य प्रयोजन उद्देश्य विचार अभिलाषा इच्छा। २ सम्मति राय । विश्वास ३ सम्बन्ध | 1 हवाला । अभिप्रेत ( ० ० ) इट अभिलषित । ईप्सित) चाहा हुआ। २ पसंद । सम्मत स्वीकृत । ३ प्रिय | 'अनुकूल । अभियोक्षणं (न० ) छिड़काव छिड़कना । अभिसवः ( पु० ) १ दुःख | उपद्रव २ नि- मजन | बुड़ना । [ भूति | मग्न | धाकुलित । अभिल (व० कृ० ) दमन किया हुआ | अभि अभिवुद्धिः (स्त्री० ) बुद्धीन्द्रिय | ज्ञानेन्द्रिय (यथा आँख, जिह्वा, कान, नाक, स्थचा ) अभिभवः (पु० ) १ हार। शिकस्त | वश २ तिरस्कार | अनादर ३ हीनता | दमन | ४ याधिक्य | प्राबल्य उमा फैलाव । म्याप्ति । प्रसार । काबू | पक्ष ( व० कृ० ) 1 समीप गया हुआ या आया | अभिभवनम् (न० ) दमन | संयम । ( स्वयं ) हुआ ओर या तरफ दौड़ा हुआ। गया हुआ। ववर्ती होना अभिभाषनम् अभिभावनम् ( न० ) दमन करना । वशवर्ती बनाना। विजयी बनाना । ( ७२ ) अभिभाविन् (वि० ) १ दमन करने चाला | अभिभावक हराने वाला| पराजित करने वाला। अभिभाबुक जीतने वाला | २ लोकोत्तर । श्रेष्ठ । अभिभाषणम् ( म० ) व्याख्यान । भाषण । अभिभूतिः ( स्त्री० ) १ सर्वोत्तमता | प्रावल्य । श्राधिक्य । २ विजय पराजय वशवतीकरण || अधीनताई। ३ अपमान | अभिमत (व० ० ) : अभीष्ट प्रिय प्यारा - | 1 फूल | वाञ्छनीय | २ सम्मत | स्वीकृत | माना हुआ। अभिमतः ( पु० ) माशूक प्यार करने वाला। आशिक । अभिमतम् ( न० ) ख्वाहिश । अभिलाषा । अभिमनस ( वि० ) अभिलाषी । इच्छुक उत्सुक आशावान् । अभिमंत्रम् (न० ) मंत्र विशेषों को पढ़कर (किसी वस्तु को ) पवित्र या संस्कारित करना । २ जादू टोना करना। ३ सम्बोधन करना। न्योता देना। उपदेश करना । अभिमरः ( पु० ) नाश । हत्या । २ युद्ध । लड़ाई । ३ विश्वासघात ( आपस ही के लोगों के साथ) । अपने ही लोगों से भय या शङ्का ४ बन्धन | कैद | बेदी F अभिमर्दः ( पु० ) १ रगड़ २ कुचलन | अजाब किया जाना (शत्रुद्वारा किसी देश का ) | ३ युद्ध । लड़ाई ४ मदिरा शराब अभिमन (वि० ) १ पीसनाचूर चूर करना | २ घस्सा रगड़ युद्ध | } ( पु० ) अभिमर्शः अभिमर्शनम् ( न० ) । अभिमर्ष: अभिमर्षणम् (न० अभिमर्शक अभिमर्षक अभिमशिन् अभिमर्षिन् । E १ स्पर्श संसर्ग २ आक -मण धव्याचार | ३ मैथुन । सम्भोग । अभियोगिन् अभिमाद (पु० ) नशा | मद | " अभिमानः (go ) गर्व घमण्ड अहङ्कार अपने को बड़ा भारी प्रतिष्ठित समझना। यात्मश्लाघा | २ व्यक्तित्व | ३ स्नेह प्रेम ४ प्रवाहिश । इच्छा ७ घाव | चोट /-शालिन्, (वि० ) अभिमानी अहकारी-शून्य, (वि० ) यात्मा- भिमान से रहित। विनम्र ( वि ) छूने वाला । बलात्कार करने चाला | अभिमानिन् (वि० ) अभिमानी। घमंडी। अपने के बहुत लगाने वाला। अभिमुख (वि०) [ स्त्री० अभिमुखी ] १ सामने | सम्मुख | २ समीप । ३ अनुकूल । ४ ऊपर को मुख (अन्य ) थोर । तरफ | सामने मुंह अभिमुखे किये हुए | [[अभियानम् ( न०) } प्रार्थना | माँग | अभियाशाखी० ) अमिया ) (वि० ) समीप आाया या गया हुआ। अभिप्रातिन् । आक्रमण करता हुआ । अभियायिन् अभियातिः अभियातृ ( पु० ) मारपीट के इरादे से समीप जाना या आने की क्रिया | शत्रु | बैरी । अभियानम् ( न० ) १ समीप आना या जाना । २ ( शत्रु पर ) धावा बोलने की क्रिया । आक्रमण करने को किया। अभियुक्त ( ० ० ) १ व्यस्त | किसी काम में नधा हुआ। २ भली भाँति अभिज्ञ | पारदर्शी विशारद । ३ विद्वान् । ज्ञानी । ४ प्रतिवादी । जो किसी मुकदमे में फँसा हो । २ नियुक्त | अभियोक्तृ ( वि० ) अभियोग उपस्थित करने वाला । ( पु० ) १ वादी फरियादी । २ शत्रु | बैरी । आक्रमणकारी । ३ झूठा दावा करने वाला। अभियोगः ( ० ) १ मनोनिवेश | लगन २ उद्योग श्रध्यवसाय | ३ किसी बात की जानकारी प्राप्त करने या उसे सीखने के लिये उसमें मनो- निवेश | ४ अपराध की योजना । नालिश! अर्जी- दावा ५ चढ़ाई। आक्रमण अभियोगन् ( वि० ) १ मनोनिवेशित | संलग्न | २ आक्रमण करने वाला ३ दोषी ठहराने वाला। ( पु० ) मुदई । वादी । अमिशङ्का अभिलीन (वि०) १ संलग्न चिपटा हुआ सटा हुआ। २ आलिङ्गन किये हुए । अभिरतिः ( स्त्री० ) १ आनन्द । हर्ष | सन्तोष । अभिलुलित ( वि० ) १ आन्दोलित | गड़बड़ किया अनुराग । भक्ति । हुआ। २ खिलाड़ी। चञ्चल अभिलूता (स्त्री० ) मकड़ी विशेष । अभिवदनम् ( न० ) सम्बोधन | प्रणाम । सलाम । श्रभिवन्दनम् ( न० ) सम्मान पुरस्सर प्रणाम । अभिवर्षणम् ( म० ) वर्षा । वृष्टि । जल की वर्षा । अभिवाद: ( 30 ) अभिवादनम् ( न० ) । सम्मान पुरस्सर प्रणाम | ( प्रणाम तीन प्रकार से होता है। प्रथम, प्रत्युत्थान । द्वितीय, पादोपसंग्रह। तृतीय, स्वगोत्र एवं स्वनाम का उच्चारण कर वंदना करना । अभिरक्षा अभिरक्षा ( खी० ) अभिरक्षणं ( न० ) ) सर्वविध रक्षण | सर्वत्र रक्षण | अभिराम (वि० ) १ हर्षपूर्ण | मधुर अनुकूल || २ सुन्दर मनोहर । रम्य । प्रिय । अभिरुचिः (स्त्री० ) अभिलापा । चाह । पसंदगी । प्रवृत्ति । २ यश की चाहना । उच्चाभिलाषा | अभिरुचितः (पु०) प्यार करने वाला। चाहने वाला । आशिक । अभिरुतम् ( न० ) आवाज़ | पुकार | शोरगुल | अभिरूप ( वि० ) १ सदृश । अनुसार | २ मनोहर । हर्षपूर्ण । ३ प्रिय | प्रेमपात्र । माशूक | उपण्डित । बुद्धिमान | बुध । - पतिः ( पु० ) १ वह स्त्री जिसका मनोनुकूल पति हो । २ एक व्रत का नाम, जो परलोक में अच्छा पति पाने के लिये, स्त्रियों द्वारा किया जाता है। अभिरूपः ( पु० ) १ चन्द्रमा १२ विष्णु | ३ शिव । ४ कामदेव | अभिलंघनम् ( न० ) कूदकर आरपार चले जाने की क्रिया। नांव जाना। कूद जाना । अभिल ( न० ) इच्छा । अभिलाषा । अभिलषित ( च० कृ० ) इच्छित | अभिलषितम् ( न० ) इच्छा | चाह | प्रवृत्ति | अभिलापः ( पु० ) १ भाषण | कथन । २ प्रकटन । वर्णन । विस्तृत वर्णन | ३ किसी व्रत या धर्मा- नुष्ठान का सङ्कल्प वा प्रतिज्ञा। | इष्ट । अभिलावः ( पु० ) निराई । ( खेत की ) कटाई | अभिलाषः । ( पु० ) कामना । अभिलासः (कभी २) । श्राकांक्षा | इच्छा | मनोरथ । अभिलाषक ) अभिलाषित (वि०) इच्छुक | इच्छा करने वाला। अभिलासिन् | लालची लोभी। लुब्ध अभिलाक अभिलिखित ( वि० ) लिखा हुआ । खुदा हुआ। अभिलिखितम् } (न॰ ) लेख | लिखावट । खुदा अभिलेखनम् ' हुआ लेख । अभिवादक ( वि० ) ( खी०-- अभिवादिका) प्रणाम करने वाला प्रणाम | विनम्र । सुशील । सम्मान सूचक । नत्र | अभिविधिः (पु० ) व्याप्ति | मर्यादा । अभिविश्रुत ( वि० ) जगतप्रसिद्ध सर्वश्रेष्ठ । अभिवृद्धि: ( सी० ) उन्नति । बढ़ती । सफलता । समृद्धि । अभिव्यक्तः ( क्रि० वि०) १ प्रत्यक्ष प्रगट घोषित २ स्वच्छ । साफ । अभिव्यक्तिः ( स्त्री० ) प्रकटकरण । प्रदर्शन | अभिव्यञ्जनम् ( न० ) प्रकटन । प्रकाशन अभिव्यापक । ( वि० ) १ अच्छी तरह प्रचलित होने अभिव्यापिन् । वाला । २ सम्मिलित । शामिल | } व्याप्त । अन्तर्मुक्त | अभिव्याप्तिः ( स्त्री० ) सर्वव्यापकता । अन्तर्मुक्तता । शामिलपन । (०) ( १ कथन | उच्चारण | २ नाम | अभिव्यहार (पु०) ) उपाधि | संज्ञा । अभिशंसक ( (वि०) दोषी ठहराने वाला अपमान अभिशंसिन् । करने वाला बदनाम करने वाला अभिशंसनम् (न०) १ आरोप | इलज़ाम | २ गाली । अपमान उद्दण्डता । अभिशंका } 1 (स्त्री०) सन्देह । शक | भय । चिन्ता। अभिशङ्का स० श० कौ० १० अभिशयनम् (७४ अभिसम्बन्धः अभिशपनम् (न०) १ अकोसा शाप २ संगीन अभिषेकः ( पु० ) १ जल से सिञ्चन ||२ अभिशापः (पु.) इलज़ाम इलज़ाम। बड़ा भारी दोप-रोप ३ अपवाद | निखा बदनाम -स्वरः, ( पु० ) ऐसा ज्वर जो कि अकोसने या शापयश चढ़ आया हो। ऊपर से जल छोड़कर स्नान ३ राजतिलक राज- गद्दी ४ राज्याभिषेक के लिये जल । अभिषेवनम् (न०) १ छिड़काय | २ राज्याभिषेक | अभिषेशनम् (न०) किसी शत्रु पर हमला करने को प्रस्थान या कूच | शत्रु का सामना करने की क्रिया | 1 [1] अभिशब्दित ( वि० ) घोषित वर्णित कथित अभिशस्त (व० कृ० ) १ बदनाम | तिरस्कृत | गरियाया हुआ। २ चोटिल। घायल। आक्रान्त | नामघरा हुआ। ३ थापित ४ दुष्ट पापी । अभिशस्तक ( वि० ) कूटनूड दोषी ठहराया हुआ बदनाम किया हुआ बदनाम | अभिशस्तिः (स्त्री० ) १ असा शाप | २ दुर्भाग्य बदकिस्मती बुराई विपत्ति ३ भर्त्सना | बद- नामी अप्रतिष्ठा ४ याच्या | माँग | 1 अभिशापनम् ( न० ) अकोसना शाप देना । अभिशीत (वि० ) ठंडा| शीतल । अभिशोधनम् ( न० ) बड़ा भारी दुःख, पीड़ा या क्जेश । अभिश्रवणं (न० ) ब्राह्मण श्राद्ध करने बैठे उस समय ऋचायों की पुनरावृत्ति | यति ( क्रि०) सेना के साथ चढ़ाई करने को प्रस्थान करना। आक्रमण करना। शत्रु सैन्य से मुठभेड़ करना | अभिषकः ( पु० ) १ सेमलता को दबा कर, उससे सोमरस निकालने की क्रिया | २ शराब खींचना | धर्मानुष्ठान करने में प्रवृत्त होने के पूर्व स्नानमार्जन आदि की क्रिया ४ स्नान | प्रचालन | अवभूव स्नान । २ वलिकमं । अभिषणम् (न०) स्नान। अभिषिक (व० कृ०) १ अभिषेक किया हुआ। भींगा हुआ। तर २ राजतिलक किया हुआ। राजसिंहासन पर बैठा हुआ।

(०) प्रशंसा विरुदावली शारीफ |

अभिष्यन्दः ( पु०) १ बहाव । आव | २ नेत्र रोग अभिस्यन्दः । विशेष | आँख आना। ३ अस्यधिक थड़ती ! अभिष्वः (०) प्रेम । स्नेह । संसर्ग २ अत्यन्त अनुराग अभिसंश्रयः ( पु०) शरण। पनाह साया। अभिसंस्तवः (पु०) बड़ी भारी प्रशंसा या स्तुति | अभिसन्तापः (पु०) युद्ध लड़ाई विग्रह । अभिसन्देहः ( ० ) १ जननेन्द्रिय | २ विनिमय परिवर्तन | बदलौल। अभिषंगः अभिषः अभिसंगः १ ( पु० ) मिशन | एकीभाव । ऐक्य अभिसन्धः ) (२ पराजय दमन किया। ३ लगा हुआ | अभिसन्धकः १ आघात | धा दुःख इकाइक चाई अङ्गः हुई विपत्ति। ४ भूतपीड़ा | प्रेतावेश | | अभिसन्धा ( स्त्री० ) १ भाषण | घोषणा। शब्द । (पु०) १ धोखा देने वाला । छलिया। २ निन्दक। दोपदर्शी | २ शपथ । ६ आलिङ्गन | सम्भोग | ७ अकोसा। शाप । गाली। झूठा दोष । रोप | झूठी बदनामी ३ तिरस्कार असम्मान। बयान कथन प्रतिज्ञा | २ बोखा | प्रवचना अभिसन्धानम् ( न० ) 1 भाषण | शब्द | विचारित घोषणा। प्रतिज्ञा | २ धोखा दगाबाज़ी अभिसन्धिः १ भाषण | विचारित घोषणा प्रतिज्ञा | २ इरादा | उद्देश्य | अभिप्राय लक्ष्य ३ राय | मत सम्मति । विश्वास ४ खास इकरारनामा | विशेष प्रतिज्ञापत्र शर्तें ठहराव t C अभिसमवायः (पु०) ऐक्य / अभिसम्परायः (पु.) भविष्यद् । अभिसम्पातः (०) २ युद्ध लड़ाई ३ शाप अकोसा। अभिसम्बन्धः (go ) सम्बन्ध | रिश्ता | जोड़। सन्धि २ संसर्ग | मैथुन । एकत्रित होना | सङ्गम । अभिसम्मुख भिसम्मुख (त्रि०) आदरपूर्वक देखना | मुख सामने किये हुए । भिसरः (५०) अनुचर अनुयायी २ साथी । संगी। सहायक अभिसरणाजू ( न० ) १ समीपागमन २ मिळाय। सङ्केतस्थान प्रेमियों के मिलने का सङ्केतस्थान या ठहराव। भिसर्गः (०) । संसार की रचना | सिर्जनम् (न०) १ भेट दान | २ वध | हत्या । अभिसर्पणं ( न०) समीपागमन | सुष्टिसाधन मिसान्वः (पु०) अभिशान्त्वः (पु.) मिसान्त्वनम् (न० ) [ प्रबोध ढाँइस रमिशान्त्वनम् (न०) रभिसायं (अव्यया०) सूर्यास्त के समय सम्ध्या के के साम्वना । धीरज ३ हम्ला । श्राक्रमण | नभिसारिका ( स्त्री० ) नायिका जो सहेवस्थल पर | अपने प्यारे नायिक से मिलने स्वयं जाय या उसे बुलावे। पभिसारिन (वि०) भेंट करने को जाने वाला आगे बढ़ने वाला। आक्रमणकारी। बड़े वेग से बाहिर निकलने वाला। [ लापा । श्रभुज अभिहारः ( 3 ) लेजाना लूट लेना चुरा लेना । २ श्राक्रमण | हमजा ३ हथियार लगाना । हथियार लेना। अभिहासः (पु० ) हँसी दिलगी। मज़ाफ | हर्ष । अभिहित ( व० कृ० ) : कथित | कहा हुआ। घोषित वर्णित २ सम्बोधित | बुलाया हुआ। पुकारा हुआ। [क्रिया | 1 पभिस्नेह (पु० ) अनुराग स्नेछ । प्रेम अभि भिस्कुरित (वि.) पूर्णरूप से फैला हुआ या बढ़ा हुआ पूर्व वृद्धि कर प्राप्त ( यथा पुष्प ). प्रमिहत ( च० ऋ० ) १ ढोंका हुधा | २ पीटा हुआ मारा हुआ। घायल किया हुआ। २ रोका हुआ | रुद्ध | ३ (अङ्गगणित ) गुणा किया हुआ | मभिहतिः ( स्त्री० ) १ मार | चोट । २ गुणा । अरब । सिहोमः ( पु० ) अझि में घी की आहुतियों देने की अभी (वि०) निडर निर्भय प्रसीदणम् ( न० ) 1 अक्सर बहुवा वारंवार २ असता से ३ बहुत अधिक अस अधिकाई से । लगभग | अभिसारः (पु०) १ प्रेमी प्रेमिका का मिलने के लिये | अभीप्सित (वि० ) अभीष्ट || चाहा हुआ । 1 (केवस्थान पर ) गमन | सङ्केतस्थल | ठहराव । २ प्रेमी प्रेमिका का देवस्थान या सङ्केत समय । २ मनोनीत । ३ अभिप्रेस आशय के अनुकूल अभीप्सितम् (न० ) अभिलापा । मनोरथ । अभीरः ( पु० ) 3 अहीर | ग्वाला गौचराने वाला। -पल्ली (स्त्री० ) अहोरों का एक छोटा सा गाँव । अभीक (वि० ) अभिलाषी उल्लुक २ कामुक विलासी । भोगासक्त । ३ निर्भय । निडर | अभीया (वि० ) दुहराया हुआ । २ सतत | निरन्तर | २ अत्यधिक अभीशापः (g० ) देखो "अभिशाप”। भोः (पु० ) १ खवान | २ प्रकाश की किरगा। अभीषुः । ३ अभिलाषा | ४ अनुराग | अभीष्ट ( ० ० ) अभिलषित | अभीप्सित । २ प्रिय | कृपापात्र प्राणप्यारा | अभी: ( इ० ) परम प्यारा। ( म०) मनोरथ | चाही हुई वस्तु । अभि मत वस्तु । अभीष्टा (स्त्री० ) स्वामिनी | प्रेयसी । अभुग्न (वि० ) १ जो देदा या मुद्दा या चुका हुआ न हो। सीधा सतर ३ अच्छा भला । रोगरहित । ग्रमहरणं ( न० ) १ समीप लामा | जाकर लाना। २ लूटना। [ दान | यज्ञ | प्रमिय: ( 30 ) आह्वान | आमंत्रण १ वलि | प्रभुज ( वि० ) भुजारहित । ढुंजा | अभुजिष्या जो दासी या टहलनी न [ का नाम हुआ हो । भगवान विष्णु अभुजिया ( स्त्री० ) स्त्री, हो । स्वतंत्र स्त्री । अभू: ( पु० ) जो पैदा न भूत (वि० ) अस्तित्व । जो नहीं है या नहीं रहा है। जो यथार्थ या सत्य नहीं है। मिथ्या । अविद्यमान । -- पूर्व, (वि०) जो पहले कभी नहीं I ( उदाहरण ) से समर्थित न हो । – शत्रु, (वि०) जिसका कोई शत्रु न हो । ( ७६ ) अभूतिः ( स्त्री० ) १ अनस्तित्व । अत्यन्ताभाव । २ निर्धनता । प्रभृत अभृत्रिम भूमिः ( स्त्री० ) १ अनुपयुक्त स्थान या पदार्थ । २ पृथिवी को छोड़ कर अन्य कोई भी पदार्थ । ( वि० ) : जो भाड़े पर न हो, या जिस का भाड़ा न दिया गया हो। ६ अस मर्थित । नज़ीर अभ्यताक: } ( पु० ) अन्तरङ्गमित्र । अ} ( वि० ) १ जो टुकड़े टुकड़े न किया अमेदिक जा सके । जो बेधा न जा सके । अभेद्य ( म० ) हीरा । अभोज्य (वि०) न खाने योग्य वर्जित भोज्यपदार्थ अभ्य (वि० ) समीप | निकट पास । २ ताना। टटका | अभ्यम् ( न० ) सामीप्य निकटता । अभ्य (वि० ) हाल ही में चिन्ह किया हुआ। नवीन चिन्हित | अभ्यनुज्ञा (स्त्री० ) १ अनुमति | दी हुई अभ्यनुज्ञानम् (न० ) ) आज्ञा | २ किसी दलील की स्वीकृत | } (वि०) १ मध्य | बीच | भीतरी । अति समीपी। अति निकट सम्बन्धी ३ हाव- भाव प्रकाशन की कला। गोपनीय कथा । अभ्यः ( पु० ) शरीर में तेल लगाना। तैलमर्दन । अभ्यंजनम् ? (न०) शरीर में मालिश करने का तैल अभ्यञ्जनम् ) या उबटन | २ आँख में लगाने का अभ्यंतर अभ्यन्तर अभेद (वि० ) अविभक्त । २ समान | एकसा | अभेदः (पु० ) अन्तर या फर्क का अभाव। २ अति | अर्चनम् (न० ) ) पूजन सजावट शृङ्गार | अभ्यर्चा (स्त्री० ) सम्मान | अभ्य (वि० ) समीप । निकट समानता | अभ्यर्थनं (न० ) ( १ विनय | विनती दरख्वास्त | अभ्यर्थना (स्त्री० ) ) २ सम्मानार्थ आगे बढ़कर लेना अगवानी । सुर्मा | अभ्यधिक (वि० ) अपेक्षाकृत अधिक। अत्यधिक २ गुण या परिमाण में अपेक्षाकृत अधिक उच्चतर | बदा ऊँचा ३ अधिक असाधारण । मुख्य अभ्यमनम् ( न० ) आक्रमण | चोट । २ रोग । अभ्यमित ) ( च० कृ० ) १ रोगी । बीमार । अभ्यान्त २ घायल चोटिल। अभ्यमित्रं ( न० ) शत्रु पर आक्रमण । (अन्य ) शत्रु के विरुद्ध या शत्रु की थोर । अभ्यमित्रीणः अभ्यमित्रीयः ( (पु०) योद्धा जो वीरता पूर्वक अपने शत्रु का सामना करता है। अभ्यमियः पहुँच । २ ( सूर्य के ) अभ्ययः (पु०) आगमन अस्त होने की क्रिया । । अभ्यर्थिन् (वि०) माँगने वाला याचना करने वाला । अभ्यर्हणा (स्त्री० ) १ पूजा | २ सम्मान प्रतिष्ठा अभ्यर्हित (वि० ) १ सम्मानित | पूजित | २ योग्य उपयुक्त | भव्य | । अभ्यवकर्षणम् ( न० ) खींच कर बाहिर निकालना अभ्यवकाशः ( पु० ) खुली हुई जगह | अभ्यवस्कन्दः (पु० ) ) १ वीरता पूर्वक शत्रु के अभ्यवस्कन्दनम् ( न० ) ) सम्मुख होना २ ऐसी चोट करना जिससे शत्रुबेकाम या निकमा हो जाय | ३ आघात - - - - - - । ( ( न० ) १ फेंक देना या गिरा देना। २ भोजन करना । खाना । गले के नीचे उतारना । निगलना । अभ्युत्थानं अभ्यान्त (वि० ) रोगी । बीमार । 1 अभ्यापातः (पु० ) विपत्ति सङ्कट । बदकिस्मती । अभ्यामः ( पु० ) ) युद्ध | लड़ाई । भिड़न्त | अभ्यामर्दनम् (न० ) हमला । अभ्यसनम् ( न० ) दुहराना । पुनरावृत्ति । २ सवत | अभ्यारोहः ( पु० ) ) चढ़ना | सवार होना । अध्ययन | किसी काम में तन्मयता । अभ्यारोहणम् ( न० ) ऊपर की ओर जाना। अभ्यावृत्तिः ( स्त्री० ) पुनरावृत्ति । बार बार आवृत्ति । अभ्यसूयक ( वि० ) [ स्त्री अभ्यसूयिका ] डाही ईर्ष्यालु । निन्दक अभ्यसूया ( स्त्री० ) डाह ईर्ष्या क्रोध | अभ्यस्त (व० कृ० ) १ जिसका अभ्यास किया गया हो बार बार किया हुआ । मश्क किया हुआ | २ सीखा हुआ। पढ़ा हुआ | ३ गुणा किया हुआ | ४ अस्वीकृत | अभ्याश ( वि० ) समीप | नज़दीक | अभ्याशः (पु०)आगमन | व्याप्ति | २ पड़ोस । सामीप्य | ३ लाभ | परिणाम | ४ लाभ की धागे को आशा। प्रत्याशा अभ्यवहार, अभ्यवहारः (पु०) १ भोजन करना । खाना खाना । २ भोजन । अभ्यवहार्यः ( स० का० कृ० ) खाने योग्य | अभ्यवहार्यम् (न०) भोज्य पदार्थ । अभ्याकर्षः ( पु० ) ( पहलवानों की तरह ) हथेली से छाती ठोंक कर मानों कुश्ती लड़ने के लिये ललकारना । अभ्याक्षितं ( न० ) १ झूठा इलज़ाम आरोप | २ मनोरथ | अभिलाषा । 1 अभ्याख्यानम् ( न० ) १ झूठा इलज़ाम । असल्य दोषारोपण । अपवाद । निन्दा | २ गर्व को स्वर्व करने की क्रिया । अभ्यागत ( व० कृ० ) १ सामने आया हुआ । घर आया हुआ। अतिथि बना हुआ भ्यागतः (०) पाहुना। सहमान। अतिथि अभ्यहननम् ( न० ) १ मारना । चोटिल करना । घात करना २ रोकना ( रास्ते में ) बाधा अभ्यागमः (०) समीप थाना या जाना । आग डालना । मन । मुलाकात | भेंट । २ सामीप्य | पड़ोस | | अभ्याहारः (go ) 8 समीप लाना या किसी धोर लाना। ढोना । २ लूटना। ३ भिड़ना । हम्ला करना | ४ युद्ध लड़ाई ५ शत्रुता | वैर । अभ्यागमनम् ( न०) समीपागमन | आगमन | भेंट | मुलाकात | अभ्यागारिकः ( पु० ) वह जो अपने कुटुम्ब के भरण पोषण में यनशील हो । अभ्यासः ( पु० ) 3 बार बार किसी काम को करने की क्रिया । २ पूर्णता प्राप्त करने को बारंबार एक ही क्रिया का अवलम्बन । २ श्रादत। बान । टेव स्वभाव | ३ रीति | रवाज़ पद्धति कसरत | कवायद । ५ पाठ अध्ययन ६ समीप | पड़ोस । ७ अभ्यस्त अंश (निरुक्त में) । (गणित में) गुणा । ( संगीत में ) एकतान सङ्गीत। अस्थाई या टेक। -योगः, ( पु० ) एक अवलम्ब में चित्त को स्थापित कर देना अभ्यास कहा जाता है। अभ्यास सहित समाधि । अभ्याघातः (पु० ) हमला। आक्रमण | अभ्यादानं (न०) आरम्भ प्रारम्भ प्रथम आरम्भ | अभ्याधानं ( न० ) रखना। डालना ( जैसे आग में ईंधन ) अभ्यासादनम् ( न० ) शत्रु का सामना करना । शत्रु पर आक्रमण करना । अभ्युत (न० ) १ ( अत ) छिड़कना । तर करना। २ प्रोक्षण | मार्जन । अभ्युचित ( वि० ) मामूली । साधारण प्रथानु- रूप । प्रचलित । [ शालीनता । अभ्युच्चयः ( पु० ) उन्नति । बढ़ती । २ समृद्धि अभ्युत्कोशनम् ( न० ) उच्चस्वर से चिल्लाना । अभ्युत्थानं ( न० ) १ किसी के सम्मान के लिये आसन छोड़ कर खड़े होने की क्रिया २ प्रस्थान रवानगी ३ उदय पदोन्नति | समृद्धि | शान । अभ्युत्पतन अभ्युत्पतन ( म०) उपट आक्रमण | श्रभ्युदयः (पु०) उन्नति । वृद्धि | २ उदय ( किमी नक्षत्र का ) फलना | ३ उत्सव वावसर ४ आरम्भ प्रारम्भ | प्रभ्युदित ( ० अम् अभ्युपायनम् ( न० ) १ घूंस रिशवत | लालच २ सम्मानप्रदर्शक भेंट उत्स- | श्रभ्युपेत ( धन्यवा० ) यामह किये जाने पर रज्ञा- [उदाहरण | मंद होने पर प्रतिज्ञा करने पर अभ्युदाहरणम् न० ) किसी वस्तु का ( उल्टा ) | अभ्युपेत्य (च० ) समीप आया हुआ। २ प्रति- ज्ञाता स्वीकृत अङ्गीकृत । अभ्युषः ) १ उदय हुआ | २ पदोन्नत से त्या हुआ। किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति अथवा महमान का सम्मान (पु० ) एक प्रकार की रोटी या चपाती । अभ्योषः) करते को आगे जाकर उसे लेने | अभ्यूहः (g० ) १ तर्फ । दलील । यादविवाद | २ अनुमान अपना ३ त्रुटि की पूर्ति । ४ द्धि । समझ | ( ३ सूर्यास्त के सम भ्युमः ( 50 ) अभ्युद्धमनम् (न० ) अभ्युतिः ( स्वी० ) की किया। भगवानी | उदय निकास उत्पत्ति । 1 ७८ ) अभ्युद्यत ( ० ० ) १ उठा हुआ । ऊपर उठाया हुआ | २ तैयार किया हुआ । तैयार | ३ धागे | गपा हुआ । उदय हुचा ! ४ अयाचित दिया हुआ | या खाया हुआ अभ्युनत (वि० ) १ उठा हुआ ऊँचा किया हुआ | २ ऊपर का निकला हुआ। अत्युच अभ्युतिः (सी० ) लान्त पदोन्नति और समृद्धि । शालीनता | श्रभ्युपगमः ( पु० ) समीप आगमन | आगमन । २ मंजूर करना। मान लेना। किसी बात को सत्य भङ्गीकार | समझ कर मान लेना । ( दोष को ) करवा | ३ वचन | प्रतिज्ञा। अभ्युपपत्तिः ( स्त्री० ) १ सहायतार्थं समीप जाने की किया। क्या होने की क्रिया १ अनुप्र कृपा २ सान्त्वना | ढाँदस धीरज १ संरचय | बचाव रखा। ४ इकरारनामा प्रतिज्ञापत्र | स्वीकृति प्रतिज्ञा । १ की का गर्भवती करने की क्रिया। अभ्युपायः ( पु० ) १ प्रतिज्ञा इकरार फसाव २ उपाय | इलाज। अभ्रू (धा० पर० ) [ ·थवति, आन, अश्रित ] अभ्रम् ( न० ) १ बादल | २ आकाश । व्योम जाना, इधर उधर घूमना फिरना ३ अक १४ ( गणित में ) शून्य | ज़ीरो । अनंलिइ (वि० ) बादलों का स्पर्श करनेवाला । (अर्थात् बहुत ऊँच) J अहिः (पु० ) पवन म् (न० ) नक अभ्रंकप (वि० ) बादलों को छूनेवाला। बहुत ऊँचा | अभंकपः (पु० ) ३ हवा | पवन | २ एर्वस अमुः ( स्त्री० ) पूर्व दिशा के दिग्गज की हथिनी । इन्द्र के ऐरावत हाथी की हथिनी । - प्रियः, --वल्लभः, (पु० ) ऐरावत हाथी । अभ्युपगमन-सिद्धान्तः (पु० ) १ न्याय का एक सिद्धान्त विशेष । विना परीक्षा किये, किसी ऐसी बात को मान कर, जिसका खण्डन करना है, | ः ) ( स्त्री० ) १ लकड़ी की बनी फरही, जिससे फिर उसकी परीक्षा करने को अभ्युपगमसिद्धान्त कहते हैं | २ स्वीकृत प्रस्ताव या सर्वजनगृहीत मूलनीति | अभ्रीः नाव की सफाई की जाती है। काष्ट कुदाल । [ आच्छादित | २ कुदाली । अम्रित (वि० ) बादल छाये हुए बादलों से | अम्रिय (वि० ) बादल सम्बन्धी या बादलों से उत्पन्न | अष: (पु० ) औचि न्याय्य न्यायानुमोदित होने का भाव 3 अम् (अन्यथा० ) १ जल्दी से फुर्ती से स्वल्प । श्रम् (धा० पर० ) ( अमति, अमितुं, १ जाना थोर या तरफ जाना | २ सेवा २ अल्प अमित ] करना । सम्मान करना | ३ शब्द करना ४ । खाना | श्रम ( आमवति ) आक्रमण करना। पीड़ा अथवा रोग से दुःखी होना। पीड़ित होना। अम ( वि० ) कथा | ध्यमः ( पु० ) १ गमन | २ बीमारी नौकर ३ अनुचर | ४ यह स्वयं अमंगल अमङ्गल अमंगल्य ( ( वि० ) अशुभ | बुरा। खराब बढ़- "क्रिस्मत | अमङ्गल्य अमंगलः अमङ्गतः (पु० ) एरण्ड वृक्ष अँडी का पेड़ । मंड) (वि० ) १ बिना सजावट के बिना थाभू- अलण्ड पक्ष के । २ बिना फेल या मांद के | 1 मत (वि० ) १ असम्मत अविज्ञात अतर्कत | नहीं जाना हुआ। २ नापसंद ध्यमतः (पु० ) १ समय २ यीमारी ३ मृत्यु | प्रमति ( वि० ) धुरे दिल का दुष्ट चरिद्रष्ट -पूर्व, ( वि० ) सत्यासत्यविवेकशक्तिहीन । अनिच्छाकृत अनभिप्रेत अमतिः (१०) बदमाश दुष्ट दगाबाज़ | २ चन्द्रमा ३ समय काल (स्त्री०) अज्ञानता। श्रविवेकता। ज्ञान का, सरपका या ददर्शिता का भाव । मत (वि० ) जो मत्त या उन्मत्त न हो। गम्भीर | अमत्रं ( न० ) १ बरतन घड़ा वासन २ ताकत | शक्ति । अमत्सर ( वि० ) जो ईर्ष्यालु या डाही न हो। उदार अमनस } (वि० ) १ जिसका मन ठीक ठिकाने यमनस्के न हो । २ विवेकशक्ति से हीन | ३ अनर- विट। धमनेोयोगी ४ जिसका मन काबू में न हो । २ स्नेहशून्य गत (वि० ) अज्ञात । अचिन्त्य । -योगः, (५०) अमनोयोगिता |~~हर, ( दि० ) अप्रसन्न कारक । प्रतिकूल । नापसंद । अमनः (न० ) अबोध निर्वाध | वादा वस्तु के ज्ञान से शून्य । २ अमनोयोगी ( पु० ) पर 1 मात्मा। अमना (अन्यथा० ) स्वल्प नहीं। अधिकता से बहुत अधिक। ७८ ) अमर अमनुष्य ( वि० ) १ मनुष्य नहीं । अमानुषिक | २ जहाँ मनुष्यों की वस्ती न हो। अमनुष्यः (१०) मनुष्य नहीं | २ शैतान | राक्षस यमंत्र] } { वि० ) १ वैदिक मंत्रों से रहित । ध्यमंत्रक / वह कर्मानुष्ठान जिसमें वैदिक मंत्रों के पढ़ने की आवश्यकता न पड़े | २ वेद पढ़ने के अनधि- कारी ( शुद्र की आदि ) | ३ वेद को न जानने वाला ४ वह रोगचिकित्सा जिसमें जादू टोना की क्रिया न हो । अमंद ) ( वि० ) १ जो मंद या सुख न हो। क्रिया- अवन्द शील प्रतिभावान् । २ उम्र | हृढ़ | तेज़ | ३ थोड़ा नहीं । बहुत । अत्यधिक बढ़ा। तीव्र | प्रम ( वि० ) ममतारहित । जिसमें स्वार्थ या सांसारिक वस्तुओं का अनुराम न हो । (खी) | स्वार्थराहित्य | अनासक्ति | श्रममन्वं ( न० ) ) उदासीनता । H " - · अमर ( वि० ) १ जो कभी मरे नहीं। अविनाशो । अविनश्वर अङ्गना, स्त्री (स्त्री०) अप्सरा अद्रिः (पु०) देवताओं का पर्वत । सुमेरु पर्वत- अधिपः, इन्द्रः ईशः, ईश्वः, -पतिः, - भर्ता, राजः, (पु०) १ देवताओं के राजा इन्द्र २ विष्णु । ३ शिव। प्राचार्य, गुरु, - इज्यः, ( 3० ) देवताओं के गुरु अर्थात् वृहस्पति । -थापना, तटिनी, सरित, (स्त्री० ) स्वर्ग की नदी। गङ्गा-श्रालयः (पु० ) स्वर्ग -कराटकं, ( न० ) अमरकण्टक पहाड़ जिस से नर्मदा नदी निकलती है। कोशः, -कोषः, (उ०) संस्कृत भाषा के एक प्रसिद्ध शब्दकोश का नाम, जो अमरसिंह विरचित है।-सः, दारुः, ( ५० ) इन्द्र के स्वर्ग का एक दृ-द्विजः, (५०) ब्राह्मण जो किसी देवालय में पूजा करे अथवा देवालय का प्रबन्ध करे --पुरं, (न० ) स्वर्ग । -पुष्पः, -कुष्पकः, (पु० ) कल्पवृक्ष/- प्रख्य ~~प्रभ, (वि० ) अमर के समान। अविनाशी के समान 1- रत्नं, (न०) स्फटिक पत्थर-लोकः, ( पु० ) स्वर्ग 1 - सिंह:, (पु० ) संस्कृत कोषकार अमरसिंह यह जैन थे और कहा जाता है कि, विक्रमाजीत के नौरखों में से एक थे । अमर अमरः (५०) १ देवता | २ पारा | ३ सुवर्ण ४ तेंतीस की संख्या ५ धमरसिंह का नाम । ६ हड्डियों का ढेर | अमरता ( स्त्री० )) अमरत्वं ( न० ) ) ( ८० ) अविनश्वरता । अमरा (स्त्री० ) १ अमरावती पुरी। २ नाभिसूत्र । नाभिनाल | ३ गर्भाशय अमरावती (सी० ) इन्द्र की पुरी का नाम । अमरी (खो० ) देवता की स्त्री देवी । इन्द्र की राजधानी (वि० ) अविनाशी दैवी। जो कभी नाश न हो। आएगा, (स्त्री० ) गङ्गा का नाम । मर्त्यः (०) देवता। अमर्मन् ( न० ) शरीर का मर्मस्थल नहीं।- वेधिन ( वि० ) मर्मस्थल को न वेधने वाला कोमल । मुलायम अमर्याद ( वि० ) १ सीमारहित सीमा के बाहिर । अनुचित। असम्मानकारी। २ असीम । असदा- चर | असम्मान | अमित श्रमा (चि० मापरहित। जो नापा न जा सके । (अव्यया० ) साथ। सनीप पास (स्त्री० ) धमावास्या तिथि | चन्द्र की १६ वीं कला (पु०) थामा । जीव | J 1 मर्यादा (श्री० ) उचित सम्मान की अवहेला अमर्ष (वि० ) दूसरे का उत्कर्ष न सहने वाला। अमः (पु०) असहनशीलता अधैर्य ईर्ष्या ईर्ष्या से उत्पन्न कोष | २ क्रोध | कोप । अमर्षण ) (वि० ) १ अधैर्यवान् । असहनशील धमर्पित जो रामा न करे। २ क्रोध। रूठा हुआ। श्रमर्पिन रोपपरवश २ प्रचण्ड उग्र श्रमर्षवत् प्रतिज्ञ । श्रामल { वि० ) जिसमें मैल न हो । साफ सुथरा | निष्कलङ्क वेषण्वा वेदारा विशुद्ध सञ्चा २ सफेद चमकदार |-- (ला) (स्त्री) १ लक्ष्मी जी का नाम । २ नाला । नाभिसूत्र | ३ एक वृक्ष का नाम आमला वृक्ष-पत्रिन (पु० ) जंगली हंस 1-~-रत्नं, ( न० ) – मणिः (पु० ) एफटिक पत्थर | अमलम् (न०) १ स्वच्छता २ अत्रक २ परमात्मा । अमलिन (वि०) स्वच्छ | बेदाग़। निष्कलङ्क | पवित्र । श्रमसः (पु०) १ रोग १२ मुड़ता | ३ मूर्ख ४ समय 1 अमांस (वि० ) १ विना मांस का । जो मांसल न हो । २ दुबला पतला निर्बल अमांसम् (२०) मांस को छेद अन्य कोई भी वस्तु । मात्यः (पु०) दीवान महामात्र मंत्रो । सचिव | मात्र ( वि० ) १ असीम जो नापा न जा सके। २ सम्पूर्ण या समूचा नहीं । ३ अमौलिक | 1 मात्रः ( पु० ) परमात्मा । अमाननम् ( न० ) मानना (स्त्री० ) अमानस्थं ( न० ) पीड़ा | दर्द । (वि० ) निरभिमान | विनयी | विनम्र अमानुष (वि० ) [ स्त्री०- श्रमानुषी ] मनुष्य सम्बन्धी नहीं। अमानवी। अलौकिक । अपौरुषेय । अमानुष्य ( वि० ) अमानुपी। अलौकिक | मामासी } (श्री०) अमावास्या | } तिरस्कार । अपमान । अवज्ञा । (वि० ) १ सच्चा । निष्कपट | निश्चल | २ जो नापा न जा सके। माय ( न० ) ब्रह्म । " अमाया (स्त्री०) १ छल या कपट का अभाव। सचाई। ईमानदारी । २ वेदान्त दर्शन में ". अमावा " से माया या भ्रम से रहित का बोध होता है। पर- मात्मा का ज्ञान | अमायिक } (वि०) तिश्च । निष्कपट 1 ईमानदार। अमायिन् अमावस्या अमावास्या अभावसो अमावासी प्रमित (वि०) १ अपरिमित | जिसका परिमाण न हो। बेहद असीम | २ श्रवज्ञा किया हुआ। तिरस्कृत | ३ अज्ञात ४ अशिष्ट-अक्षर, (वि० ) राय- वत् । कवित्व शून्य /-धाम, (वि० ) असीम कान्तिवान् । { स्त्री० ) अमावस | कृष्णपक्ष की - अन्तिम तिथि । अंधेरे पास का अन्तिम दिन । अमिन प्रसृत -ओजस्, (वि०) सर्वमान-तेजस्- | अमूर्त (वि० ) आकारशून्य । अशरीरी | शरीर द्युति, (वि०) असीम महिमा या कान्ति वाला । विक्रमः, ( पु० ) १ असीम पराक्रमशाजी । २ विष्णु का नाम । रहित (गुण (पु० वैशेषिकदर्शन में गुह को अशरीरी माना है। यथा धर्म अधर्म। अमूर्तः (पु०) अवयव रहित । २ वायु । अन्तरिच ! धाकाश | ३ काल ४ दिशा । २ आत्मा। ६ शिव | अमित्रः ( पु० ) जो मित्र न हो । शत्रु | रिङ्क | वैरी । प्रतिद्वन्द्वी सामना करने वाला ● अमिथ्या (अन्य ) झुठाई से नहीं सचाई से। अमिन् (वि० ) बीमार रोगी। [1] प्रमूर्ति (वि० ) आकाररहित । जिसकी कोई अलि ( न० ) १ सांसारिक भोग पदार्थ विलास । प्रमूर्तिः (पु० ) विष्णु | (स्त्री० ) धमूर्तिता: शक्ल शक्क न हो। का या आकार का न होना। २ ईमानदारी सचाई | ३ मांस | गोश्त । माम् ( न० ) कष्ट । क्लेश पीड़ा चोट | अमीवा ( स्त्री० ) ३ रोग बीमारी | २ तकलीफ कष्ट भय । अमुक (सर्वनामीय विशेषण ) फलां | ऐसा ऐसा जब किसी वस्तु विशेष या व्यक्ति विशेष का नाम लेना अभीष्ट नहीं होता और उसको निर्दिष्ट किये का प्रयोग किया जाता है 1 1 " 1 प्रमुक्त ( दि० जो मुक्त न हो । बँधा हुआ। बंधन में पढ़ा हुआ जिसे छुटकारा न मिला हो। बह -हस्त (वि० लोभी। कंजूल किफायतशार. अमुकम् (न०) हथियार ( यथा तलवार, छुरी जो फेंककर न चलाया जाय। हाथ में पकड़े ही पकड़े चलाया जाय। ) [ मोर का न मिलना। प्रमुक्ति (स्त्री० ) स्वतंत्रता या मोत का प्रभाव अतः (अन्य ) १ वहाँ से | यहाँ । २ स स्थान से ऊपर से ३३ परलोक में अगले जन्म में। ४ वहाँ । विना काम भी नहीं चलता, तव उस वस्तु था |ध्यमृत ( वि० ) १ जो मृत न हो । २ अमर | व्यक्ति का नाम न लेकर उसके बजाय इस शब्द ३ अविनाशी अविनश्वर --- 1 दीधितिः, की उपधियाँ । 1-

शुः कः, - द्युतिः, - रश्मिः, (g० ) चन्द्रमा -अन्धस्, अशनः, आशिन, (५०) जिसका भोजन अमृत हो । देवता । अवि नाशी । ब्राहरणः, (पु०) गरुड़ का नाम -- उत्पन्ना, ( स्त्री० ) मक्खी।-उत्पन्नम्, उद्भवम् (न०) एक प्रकार का सुर्मा -कुण्डम् (न० ) पात्र जिसमें अद्भुत हो। गर्भ: (पु० ) व्यक्ति गतमा २ परमात्मा । ~तरङ्गिणी (स्त्री०) चाँदनी । जुम्हाई |--! - द्रव (वि० ) मृत बहाने या चुत्राने वाला द्रवः ( पु०) अमृत की धार -धारा (खी०) छन्दविशेष वृत्त विशेष | इस वृत्त में चार चरण होते हैं और प्रथम पद में २०, दूसरे में १२, तीसरे में १६ और चाये में अक्षर होते हैं। २ अमृत की धारा-पः (पु०) १ देवता । २ विष्णु का नाम | ३ शराब पीने वाला । फला, ( स्त्री० बन्धु (पु०) देवता २ घोड़ा या चन्द्रमा १ -भुज, ( पु० ) अमर | देवता ~भू, ( वि० ) जन्म मरग्य से मुक्त -मन्थनम्. ( न० ) अमृत निकालने के लिये समुद्र का मंथन ।-रसंः, सं० श० कौ – ११ । द्राक्षा का गुच्छा- 1 Tem - 1: अमुथा (अव्यया० ) इस प्रकार यों उस प्रकार | अमुष्य ( सम्बन्ध कारक ध्यदस्) एक ऐसे का । --कुल, (वि० ) एक ऐसे कुल का --कुलम्, ( न० ) एक प्रसिद्ध कुल्ल या वंश का '-- (पु०) - पुत्री (स्त्री० ) अच्छे या प्रसिद्ध वंश में उत्पन्न पुत्र या पुत्री | अमृदूश ( (वि०) [ स्त्री० -- अमूदूशी, अमृद्वती] अमूदृशे श्रमूद्वक्ष इस प्रकार का इस जाति या प्रकार का। अमूल 2 ( वि० ) बेजड़ । निर्मूल । असत्य । अमूलक ) मिथ्या | प्रमाणशून्य जिसका कोई प्रमाण या आधार न हो। अमूल्य (वि० ) अनमोल । वेशक़ीमती । बहुमूल्य | लम् (न० ) एक सुगन्निवत वास विशेष | नजद उशीर खस 4 अमृत अम्बालिका (अव्यया० ) अच्छा | हाँ । 1-सारः, ( पु० ) १ अमृत । २ ब्रह्म। लता, लतिका, (स्त्री०) वह लला जिससे मृत निकले ( पु० ) घी: -सूः, सूतिः, ( पु०) १ चन्द्रमा २। देवताओं की जननी :- सोदरः (पु) उच्चै या घोड़ा। ( पु० ) पिता | [ अखि ध्यमृतः (पु० ) १ देवता । धमर । २ धनवन्तनाम। | अम् } (न०) १ जल | पानी। २ नेत्र अमृतम् (न०) अमरता | मोर | स्वर्ग | अमृत ६ रस | ५ सोमरस । ६ विष का मारक | ७ यज्ञशेष | अंबकं ध्यम्बकम् } ( म० } १ नेत्र | २ पिता | अंवरं । ( न० ) १ अन्तरिक्ष । आकाश । व्योम ८ अयाचित भिक्षा ६ जल १० ग्रासव विशेष । ११ घी । १२ दूध । १३ भोज्य पदार्थ | परिच्छ (कोई भी) । १४ भात | १२ कोई मधुर प्यारा या मनोहर पदार्थ । १६ सय १७ पारा । १८ विए । १६ बहा ध्यमृतकम् (न०) अमरत्व प्रदायक रस विशेष) अम्बरम् | २ कपड़ा। वस्त्र | पोशाक। ३ केसर ४ अक २ सुगन्धित पदार्थ विशेष | अम्बरी। -ओोकस्, (पु० ) स्वर्गवासी देवता । - दम्, ( न० ) कपास रुई। मणिः (पु०) सूर्य। -लेखिन्, (वि०) श्राकाशस्पर्शी | (न० ) १ कढ़ाई | २ खेद । सन्ताप ३ युद्ध लड़ाई ४ नरक विशेष २ किसी जानवर का बच्चा बड़दा। किशोर । ६ सूर्य । ७ विष्णु का नाम। शिव का नाम । - अमृतता अंबरीपं अम्बरीषम् अमरता | अमृतत्वं अमृता : एक प्रकार की मंदिरा। गिलोय, गुर्च आदि कई घोषधियाँ | [ साने वाले ) । अमृतेशयः ( पु० ) विष्णु का नाम । जल में प्रमृषा (अव्यया) कुठाई से नहीं। सच्चाई से अमृष्ट (बि० ) १ विना मला हुआ | २ विना साफ "किया हुआ। ( ८२ ) ब [ पवला | अमेदस्क ( वि० ) जिसके चर्बी न हो। दुर्बल । लटा। अमेधस् (वि० ) मुर्ख | सूद बुद्धिहीन । मेध्य (वि० ) १ जो यज्ञ या हवन करने योग्य न हो। २ यज्ञ के अयोग्य | ३ अपवित्र अशुद्ध मैला। गंदा अस्वच्छ । अमेध्यम् ( न० ) ३ विद्या | मल २ अशकुन । अमेय ( वि० ) असीम सीमारहित । अपार । २ अचिन्त्य। जो जाना न जा सके। अज्ञेय - अं अम्बू अस्त्र 2 (था० पर० ) १ जाना | २ ( आत्म० ) शब्द करना। अवः भ्वः अंबरीषः ) ( पु० ) राजा विशेष यह महाराज अम्बरीषः । मान्धाता के पुत्र थे और परम भागवत थे। अंबष्टः } (पु०)1 माह्मण पिता और वैश्या माता की औलाद । २ महावत । ३ ( बहुवचन में ) देश का तथा उस देश के बसने वालों का नाम | अंबष्ठा ) ( स्त्री० ) गणिका, यूथिका आदि कितने ही अम्बष्टा । पौधों का नाम ( जुही, पाठा, पहादमूल, चुका. अंबाड़ा आदि पौधे ) . अंबाड़ा पहुँचने अम्बाडा -श्रात्मन् (पु० ) विष्णु का नाम । अमोघ (वि० ) १ अचूक निशाने पर ठीक वाला २ अव्यर्थ । दराड, ( पु० ) 1 1 जो | अंबाला दण्ड देने में कभी न चूके। २ शिव का नाम । अयोधः (go ) जो कभी व्यर्थ न जाय या न चूके। २ विष्णु का नाम । अम्बाला अंबा (स्त्री० ) ( सम्बोधनकारक में " थम्बे" अम्बा) वैदिक साहित्य में ) १ माता २ शिवपक्षी दुर्गा का नाम ३ राजा पाण्डु की माता का नाम । ( स्त्री० ) माता । जननी मा । अंबालिका ) ( श्री० ) १ माता | भद्रमहिला । २ अम्बालिका | एकपौधे का नाम । ३ राजाविचित्रवीर्य को रानी का नाम, जो काशिराज की सब से छोटी कन्या थी । अधिका जविका ) (स्त्री०) १ माता भव महिला १२ पार्वती क) का नाम । ३ राजा विचित्रवीर्य की पढ़- रानी का नाम यह काशिराज की मफली बेटी थी। पतिः, भत्त, ( पु० ) शिव का नाम । पुत्रः सुतः, (पु०) उतराष्ट्र का नाम । - विकेयः नचिकेयः ( पु० ) 1 गणेश जी का, २ फार्तिकेय विकेयकः का, ३ उतराष्ट्र का नाम । नवयकः | (न० ) १ पानी २ जल का भाग जो रक्त में 1 रेल २ सारस (~5:, (३०) रुहं, (न०) कमल । --रोहिणी (स्त्री० ) कमल -वाहः, (पु०) १ बादल २ झील ३ पानी ढोने वाला - वाहिन्, (न०) पानी ढोने वाला (पु०) बादल। वाहिनी (स्त्री० ) कठेली या काठ का डोल- विहारः, (पु०) जलक्रीड़ा-वेतसः, (पु० ) नर- कुल जो जल में उत्पन्न होता है। -सरां (न०) जल की धारा था जल का बहाव ।--सर्पिणी, (स्त्री० ) ओक । 6 19 कण्टकः, ( पु० ) ग्राह । अविवाल । मगर : अंबुमत् अम्बुमस् } (वि० ) पनीला । जिसमें जल हो । अनुमतीती } ( स्त्री० ) एक नदी का नाम कूर्मः, (पु०) सूंस शिशुमार केशरः, (५०) नीबू का पेड़ - किया, ( स्त्री० ) पितरों को जलवान। तर्पण। -ग, चर चारिन्, (वि०) जल में रहने वाले जीवजन्तु ( – धनः, (पु० ) घोला:-चत्वरं, (न०) झील । -ज, (वि० ) जब में उत्पन्न-जः (४०) १ चन्द्रमा २ कपूर ३ सारस पक्षी ४-जम्, (न०) १ कमल २ इन्द्र का बन-जन्मन्, (न० ) कमल (०) चन्द्रमा २ शङ्ख | ३ सारस । -तस्करा ( पु० ) जल का चोर। सूर्य --- द. (वि० ) जल देने वाला था जिससे जल निकले दः (पु ) बादल । -धरः (पु० ) शंबूकृत ) (वि० ) घोंट बंद कर के गुन गुनाया अम्बूकृत ) हुआ। ऐसे बोला हुआ जिससे थूक उड़े। अभू (धा० आत्म०) [ अंभ, अंभित ] शब्द करना | अमस् (४० ) : जल | २ आकाश | ३ लग्न से चौथी राशि। -ज, (वि० ) पानी का उ~-जः, ( पु० ) १ चन्द्रमा २ सारसपक्षी जं, (न०) कमल - जम्मन्, ( पु० ) की उपाधि | (न०) कमल । -दः धरः, (पु० ) बादल । चिः, -निधिः, राशिः, (५०) समुद्र । - (न०) - हूं (न०) कमल | (g०) सारस /-- सारं ( न० ) मोती। -सुः (पु० ) पुआ। बदरी वाला बादल का। 1 १ बादल । मेत्र । २ अत्रक। घिः, (पु० ) | अंभोजिनी ) ( स्त्री० ) १ कमल का पौधा या उसके अम्भोजिनी फूल । २ कमल के फूलों का समूह १ जल का कोई पात्र । जैसे घड़ा, कलसा आदि । २ समुद्र | ३ चार की संख्या 1-निधिः, ( पु० ) समुद्र--प, (वि० ) जल पीने वाला। --पः (पु० ) १ समुद्र २ वरुण । -पातः (पु०) धारा जलप्रपात । जलप्रवाह जलधोत । - प्रसादः, (५०) - प्रसादनम्, (न० : कतक निर्मली का पेड़। (जिससे जल साफ होता है ) ---भवम् ( म० ) कमल |~-भृत् ( १० ) १ जलवाहक यादव २ समुद्र ३ अ -मात्रज, (वि० ) जो केवल जल ही में उत्पन्न हो । - मात्रजः, ( पु० ) शङ्ख 1-मुचू (१०) बादल -राजः, ( पु० ) समुद्र । वरुण राशि:, ( पु० ) समुद्र /-रुहू, (२०) १ कमल - ३ स्थान नहाँ कमल के फूलों का बाहुल्य हो। यस्मय (वि० ) [ स्त्री० - अम्मयी ] पनीली या पानी की बनी हुई। अम्र देखो आम्र । अम्ल ( वि० ) खट्टा थक, (वि० ) खट्टा | --उदारः, (पु० ) खट्टी डकार 1-केशर, ( go ) चकोतरा मा बीजपूरक का पेड़ --- निम्नकः, (पु०) नीबू का पेड़-फलः, (पु०) इम्ली का वृक्ष फलं, (न.) इम्ली फल 1- वृक्षः, (पु० ) इस्ली का पेड़-सारः, (पु०) नीष का वृक्ष । अम्ल (५०) खापण २ सिरका १३ विभिन्न प्रकार के अभ्लरस तरु। ४ चकोतरा का वृक्ष १ डकार । ध्ययमित (वि० ) १ अनियंत्रित | बेकाबू | २ दिना सम्हाला हुआ। बिना सजाया हुआ। अल (पु० ) एक वृक्ष का नाम लकूया। (वि० ) १ जो कुम्हलाया न हो। जो मुर | अयशः (पु० ) कलह । अपवाद कर, करो, भाषा हुआ न हो। २ साफ स्वरह चमकीला पवित्र विना बादलों का 2 (वि० ) अपकोर्तिकारी बदनामी कराने वाला। अयशस वि० अपकीर्तित । बदनाम फलङ्कित अयशस्य (वि० ) बदनाम । कलङ्कित | 3 प्रस्तानि (वि० ) सतेज | सचल | [ हरियाली। अम्लनिः (सी०) १ सतेजता सवलता | २ ताज़गी। अम्लानिन् (वि० ) साफ | स्वच्छ । ( अम्लिका ) ( श्री० ) ३ मुँह का खट्टापन | खड़ी अम्लीका डाकर । २ का वृक्ष | अम्तिमन ( पु० ) खट्टापन ध्ययू (धा० आत्म० ) [ कभी कभी यह परस्मैपदी भी होती है, विशेष कर "उत्" के संयोग से ) [ धयते, अयांच, भवितुं आयित ] जाना । · गमन करना । श्रयः (१० ) १ गमन २ पूर्वजन्म के शुभ कर्म । ३ सौभाग्य खुशकिस्मती ४ (खेलने फा) पांसा ~~अम्वित, -अयवत्, (वि० ) भाग्यवान् । खुशकिस्मत | अयद (न० ) निरोगता संदुरुस्ती । ध्ययः ( पु० ) बुरा यह यज्ञ नहीं। प्रयज्ञिय (वि०) १ यज्ञ के अयोग्य ( जैसे उर्द ) । २ यज्ञ करने के अयोग्य (जैसे अनुपवीत बालक ) ३ गँवास | दूषित | अयक्ष (वि०) जिसमें यल न करना पड़े। अयक्षः ( पु० ) यस का अभाव सहज सरल अथ (अव्यया० ) जो ज्यों का त्यों न ठीक न हो। भूल से गलती से अनुचित । अयोग्य।–वत्, (धन्यथा॰) राजती से। अनुचित रीति से अयथार्थ्य प्रयंत्रित ( वि० ) बेकाबू जो वश में न हो। मन- मुखी। स्वेच्छाचारी | र अयथार्थानुभव: (30) अनुचित या मिथ्या अनुभव । अन्य वस्तु में अन्य वस्तु का ज्ञान । ध्ययनं ( न० ) १ गमन २ मार्ग रास्ता । ( सूर्य की ) गति । ( यह गति उत्तर या दक्षिण होती है। ) ३ स्थान | धावसस्थन ४ ब्यूह का मार्ग या द्वार। दक्षिणायन उत्तरायण। अयस् (न० ) लोहा २ ईसपात ३ सुवर्ण ४ कोई भी धातु ३ अगर की लकड़ी । ( पु० ) अग्नि । आगअयं अग्रक ( न० ) हथौड़ा । मूसल 1-काण्डः, (५०) १ लोहे का तीर | २ उत्तम खोहा २ लेहे का ढेर |-- कान्तः, ( अयस्कान्तः ) (पु० ) १ धुंबक पत्थर | २ मूल्यवान् पत्थर महि ।कारः, (3०) चुहार :- कोटं, (न० ) लोहे का मोर्चा -~-मलं, (न०) लोहे का मल-मुखः (पु० ) लोहे की नोंक का सीर। शकु (पु०) १ भाला । २ कील | ३ परंग ।-~शूलं, (न०) १ लोहे का भाला २ तीच्या उपाय -हृदय, (वि.) कड़ा हृदय । निर्दयी । अयस्मय ( न० ) ) [ स्त्री० - अग्रोमयी ] लाई अयोमय ( न० ) ) की या अन्य किसी धातु की बनी हुई। प्रयाचित (वि० ) बिना भोंगी हुई त, (पु०) ---वतम् ( न० ) विना माँगी भीख पर जीवन व्यतीत करना । अयाचित (न० ) बिना माँगी भीख । हो। ठीक-ध्ययाज्य (वि० ) वास्य पतित | वह व्यक्ति जिसको यज्ञ नहीं कराया जा सकता। प्रयात (वि० ) नहीं गया हुआ -~ग्राम, ( वि० ) रात की रखी या बासी नहीं। ताज्ञी। टटकी। अयथार्थिक (वि० ) [ स्त्री० -अयधार्थिकी ] १ झूठी अनुचित ठीक नहीं। २ असली नहीं। असकृत । असंलग्न युक्ति अयथार्थ्य ( न० ) १ अयोग्य अशुद्धि २ अस इति । अक्षमता | ( =* ) अरण्य अयि (अध्या० ) ( किसी से प्यार से बोलते समय | सम्बोधन करने का शब्द।) थोह। हो । ए प्रयुक्त (वि० ) १ जो गाड़ी के जुएँ में जुता न हो या जिल पर जीन न कला हो । २ जो मिला न हो । जुड़ा न हो। मिला हुआ । सम्बन्धयुक्त । अयोध्य (वि० ) जो आक्रमण करने योग्य न हो । अप्रतिरोधनीय । धातिप्रथन्न । अयोध्या ( स्त्री० ) सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी जो सरयू के तट पर बसी हुई है। अयोनि (वि० ) अजन्मा । नित्य-ज- अम्मन् (वि० ) जो गर्भ से उत्पन्न न हुआ हो।आ -सम्भवा । ( स्त्री० ) जनकदुहिता सीता । ३ अभक्तिमान् । अधार्मिक | अमनस्क ! असावधान | अयोनिः ( स्त्री० ) गर्भाशय नहीं। अझ की उपाधि | ४ अनन्यस्त | जो किसी काम में न लगा हो । ५ अयोग्य | अनुपयुक्त | अनुचित | ६ झूठा । AM अयोगप ( न० ) समकालीनता का अभाव | यौगिक (वि०) [स्त्री० ययौगिकी ] शब्दसाधन- विधि से जिसकी उत्पत्ति न हो। असर ! श्रयान अयानं ( २० ) न चलना न हिलमा डुलना ठह- रना। गतिरोध | अवस्थिति। 2 अयुग ) ( वि० ) प्रथक इकेला | इकेहरा | अयुगल २ अविभाज्य-अर्चस्, (५०) अग्नि । आग नेशः, -नयनः, ( पु० ) शिवजी का नाम /-शरा ( पु०:) कामदेव का नाम /- सप्तिः (पु०) सात घोड़ों वाला। सूर्य । अयुज् (वि०) अविभाज्य | इषुः, चासः अरजसू ( ( वि० ) धूल से रहित | साफ । अरज अरजस्क २ प्रत्यासति से वर्जित । ( पु० ) कामदेव का नाम । ( कामदेव के पास २ बाद बतलाये जाते हैं ) -नेत्र, लोचन, - अक्ष, -शक्ति शिव जी का नाम । अयुत् (वि० ) जो मिला न हो | असंयुक्त | असंबद्ध ।-अयुतम् ( १० ) दस हज़ार की संख्या --अध्यापकः, (पु०) एक अच्छा शिक्षक -सिद्धिः (स्त्री०) कोई कोई वस्तुएँ या विचार अभिन्न हैं- इस बात को प्रमाणित करने की किया। रजस्का ( स्त्री० ) जिसको मासिक धर्म न हो। अरजाः ( सी० ) रजोधर्म होने के पूर्व की अवस्था की सड़की। " ध्ययुतम् ( स० ) दस हजार की संख्या । विवाद द्योतक अये (अन्य ) देखो “अयि ।" यह क्रोध, आश्चर्य, सम्वोधन याची अन्यम है। अयोग: पु० ) बियोग। अलगाव । अन्तराल अवकाश २ अयोग्यता असंलग्नता ३ अनु- चित मेल | ४ विधुर । रडुचा । १ हथौड़ा | ६ अरुचि । नापसंदगी अयोगवः (पु० ) [ श्री० --प्रयोगवा, प्रयोगवी ] देखो आयोगव सूत्र पिता और वैश्या माता का पुत्र व्ययोग्य (वि० ) १ बेकार। निकम्मा 4 अरः (.go ) पहिये की नाभि और नेमि के बीच की लकड़ी :--अन्तर ( बहु० ) आारों के बीच की खाली जगह घट्टः घट्ट (पु० ) रहट | कुए से पानी निकालने का मंत्र विशेष । २ गहरा कूप । जो योग्य न हो । अनुपयुक्त। अपात्र | प्रज्जु ( वि० ) विना रसियों का । ( न० ) फारा- गृह जेल | अरणः (स्त्री० ० ) अरणी ( श्री. ) यश के लिये भाग इसकी लकड़ियों को रगढ़ कर ही निकाली जाती थी। ( छेकुर की लकड़ी जिसको 5 रगड़ने से अग्नि निकलता है। व्रण (30) सूर्य । २ अग्नि ३ चकमक पत्थर । अररायं ( न० कभी कभी पु० भी ) जंगल | चन । -अध्यक्षः (पु०) वन का निगरांकार बन की देखरेख करने वाला। फारेस्टरेंजर अयनं, - यानं, (न० ) वनगमन । तपस्वी बनना । - प्रोकसू, सद्, (वि० ) वनवास | २ वन- वासी । बागमस्थ या संभ्यासी चन्द्रिका, ( अन्व० ) वन में चोदनी (आलं० ) वृथा का शृङ्गार (नृपतिः, - रांजू, राहू, राज, - - ( पु०) सिंह | चीता। -- परितः (go ) धन का अरि अरविन्दिनी ( स्त्री० ) : कमल का पौधा | २ कमल पुष्पों का समूह | ३ वह स्थान जहाँ कमलों का बाहुल्य हो । अरण्यकम् ( न० ) वन | जंगल । अरण्यानिः } ( स्वी० ) एक बड़ा लंबा चौड़ा वन । अरस ( वि० ) १ रसहीन नीरस फीका | २ निस्तेज | मंद | ३ निर्बल बलहीन | अगुण- कारी । अरत ( वि० ) सुस्त । काहिल | २ असन्तुष्ट । २ कविता के मर्म को न जानने वाला। विरुद्ध त्रप, (वि० ) जो रमय करने में | अरसिक ( वि० ) १ रूखा । जो रसिक न हो। लजावे नहीं -त्रपः ( पु० ) कुत्ता (जो गली में कुतिया के साथ रमण करने में लज्जित नहीं होता। भरतं ( न० ) अरमणकार्यं । अरति ( वि० ) असन्तुष्ट | २ सुस्त | काहिल । चेष्टाहीन । अरतिः (स्त्री ) १ भोग विलास का अभाव । २ कष्ट | पीड़ा दुःख | दर्द | ३ चिन्ता | शोक | विकलता। घबड़ाहट | ४ असन्तुष्टता | असम्वोष | २ चेष्टाहीनता सुस्ती । काहिली। ६ उदरख्याधि | अरण्यकम् परिडत ( अलं० ) मूर्ख मनुष्य -इवन् ( पु० ) भेड़िया | अरतिः (पु०या० स्त्री० ) १ मुट्ठी सूका घूंसा २ एक हाथ ( का नाम ) । कोहिनी से छगुनियां की नोक तक | अरनिक ( पु० ) कोहनी। हाथ और बाँह के बीच का जोड़ रं ( अन्यया० ) १ तेजी से। समीप | पास | विद्य मान । २ तत्परता से अरमण हे (वि०) १ अप्रसन्नताकारक। प्रतिकूल यरममाण ) नापसंद १२ सतत । अररं ( २० ) ११ कपाट | किवाड़ | २ गिलाफ । अररो (स्त्री०) ) भ्यान । ढक्कन । अररः (पु० ) राँपी ( चमार का एक औज़ार ) । अरे (अव्यया० ) अतिशीघ्रता अथवा घृणा व्यक्षक सम्बोधनवाची अव्यय । ( ६ ) अरविंदः ) ( पु० ) १ सारस १२ तांबा | श्र अरविन्द ) (ध्यरविन्दाक्ष) (वि०) कमलनयन | विष्णु का विशेषण या उपाधि । - दलप्रभम् (न०) तांबा - नाभिः, नामः, ( पु० ) विष्णु का नाम :- (पु०) ब्रह्मा का नाम । 1-सद् अरविंद ) ( न० ) १ कमल । रक्त या नीले कमल अरविन्दम् ) का फूल | धराग (वि० ) १ अनासक्त । उदासीन । अरागिन् । २ स्थिर | पक्षपातशून्य अराजन् ( पु० ) राजा नहीं ।—भोगीन ( वि०) अराजक ( वि० ) राजारहित । जहाँ राजा न हो। राजा के काम लायक नहीं । - स्थापित (वि०) जो राजा द्वारा प्रतिष्ठित न हो; आईन विरुद्ध प्ररातिः ( पु० ) १ शत्रु | वैरी | २ छः की संख्या | अराल (वि०) टेदा मेड़ा मुड़ा हुआ --भङ्गः (पु०) शत्रुओं का नाश ( स्त्री० ) वह स्त्री जिसके घुघुराले बाल हों।-- भरालः (पु० ) १ टेड़ी या झुकी हुई बाँह | २ मद- पदमन् (वि० ) टेड़ी मेदी बक्षियों वाला। माता हाथी । केशी भराला ( स्त्री० ) वेश्या । पुंचली | रंडी | अरिः ( पु० ) १ शत्रु | वैरी | २ मनुष्य जाति के छः शत्रु, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि जो मनुष्य के मन को व्याकुल किया करते हैं। काम क्रोधस्तथा लोभो मदमोदो चमस्मरः । कृतारिषद् वर्ग अपेम-॥ किरातार्जुनीय । ३ छ की संख्या ४ गाड़ी का कोई भाग | २ पहिया -कर्षण, ( वि० ) शत्रुजयी या शत्रु को अपने वश में करने वाला 1-कुलं, (न० ) १ बहुत से शत्रु । शत्रु समुदाय | २ शत्रु । -मः, ( पु. ) शत्रु का नाश करने वाला । -विम्तनं, (न०) चिन्ता (स्त्री० ) वैदेशिक शासन विभाग | शत्रु सम्बन्धी व्यवस्था |-- नन्दन, (वि० ) शत्रु को प्रसन्नता। शत्रु को विजय दिलाने वाला। -भद्रः (पु०) सब से बढ़ा या मुख्य शत्रु |Srkris (सम्भाषणम्)सूदनः, हन्, हिंसक, ( पु० ) शत्रुहन्ता | शत्रु को मारने वाला । रिन्दम अरिन्दम ( वि० ) शत्रु को वश में करने बाजा । विजयी विजय प्राप्त अरिषयमाज ) ( वि० ) ऐसा व्यक्ति जो पैतृक अरिषयीय सम्पत्ति पाने का अधिकारी न हो ( हिजड़ा आदि होने के कारण ) । अरित्रम् ( न० ) १ लोहे की चूर कच्चा लोहा। २ नाव का ढाँड़ | अरि (न०) मूसलधार जल की वर्षा । अषः (पु० ) बवासीर । गुदा का रोग विशेष अरिष्ट (वि०) धनचुदीला पूर्ण | अविनाशी । सुरक्षित | -गृहम् ( न० ) सौरी सूतिकागृह ताति ( वि० ) शुभ -तातिः, -मथनः, (पु० ) - शय्या, (स्त्री०) बीमार। रोगी 1-सूदनः, - हुन् ( पु० ) अरिष्ट नामक दैत्य के मारने वाले (स्त्री०) सतत हर्ष । विष्णु । ( ८७ अरः (पु० ) १ गीध | २ कँक | कौवा | ३ शत्रु | ४ अनेक पौधों का नाम रीठा का वृक्ष नीव का अभाव । अरुचिर ) ( वि० ) जो अरुय । अमङ्गलक । अरुजू (चि० ) भला चंगा व्यरुज (वि० ) भला चंगा का वृक्ष | ५ लहसुन 1 अरियम ( न० ) १ बुरी प्रारब्ध । बदकिस्मती । २ अनिष्टसूचक उत्पात ३ बुरे लक्षण या बुरे शकुन जो मौत आने के सूचक माने गये हैं। मरखकारक योग | ४ सौभाग्य । खुशकिस्मती । हर्ष ५ सौरी सूतिकागृह ६ माठा। ७ शराव | अरुचिः (स्त्री० ) १ अनिच्छा | २ अझिमान्य रोग ३ घृणा नफरत | ४ सन्तोषजनक समाधान या शिवका नामम् (२०) १ लाल रंग २ सुवर्ण | मनोहर न हो। अशुभ तंदुरुस्त | नीरोग | तंदुरुस्त | ) - 1 - अरुण (वि०) [खी०- , अरुणी] १ लाल । रक्त । २ व्याकुल । धवढ़ाया हुआ | ३ गंगा मूक । | अनुजः, - प्रवरजः (पु० ) अरुय देव के छोटे भाई गुरु जी का नाम / अर्चिस ( पु० ) सूर्य । आत्मजः (पु० ) १ अरुण पुत्र जटायु का नाम । २ शनि, सावर्णिमनु, फर्ण, धरु सुग्रीव, यम और दोनों अश्विनीकुमारों के नाम | -शामजा, (स्त्री० ) यमुना और तापसी नदियों का नाम । - ईतगा, (वि० ) लालनेत्र वाला / उदयः, (पु० ) भोर । प्रातःकाल - उपलः, ( पु० ) सुन्नी रख | - कमलं (न० ) लाल रंग का कमल । - ज्योतिस (४०) शिव का नाम !-- -प्रियः (पु०) सूर्य का नाम ।-प्रिया ( स्खी० ) १ सूर्यपक्षी । २ छाया /-लोचनः, ( पु० ) कबुतर। परेवा-सारथिः (50) सूर्य । अरुणः (१०) लाल रंग | २ प्रातःकालीन पूर्वाकाश की रक्तमयी आभा ३ सूर्यदेव के सारथी । ४ सूर्य सोना। ३ केसर खाल अरुणित ) ( वि० ) लाल रंग का अरुणीकृत रंगा हुआ । अरुंतुद ) ( वि० ) १ मर्मस्थलों को काटना या प्रस्तुद / धाया करना। घायल करना पीना कारक तीव्र या तीषण | दाहकारक । "अतुदभिवासाममनिर्वाणस्य दन्तिनः।" रघुवंश | २ उम्र प्रकृति वाला तीक्ष्ण स्वभाव युक्त | अरुंधती ) ( श्री ) : वशिष्ठ जी की पत्नी का नाम । अरुन्धती २ इस नाम का एक तारा, सप्तर्षि मण्डल में सबसे छोटा आठवों एक तारा, जो वशिष्ठ जी के समीप रहता है। अरुन्धती तारा के नाम से प्रसिद्ध है। यह तारा उन लोगों को नहीं दिखलाई पड़ता जिनका मृत्यु अतिनिकट होता है। --जानिः, नाथः, -पतिः, ( पु० ) वसिष्ठ जी का नाम । अरुष ) ( वि० ) रूठा हुआ नहीं । शान्त | अरुष्ट ध्यरुष ( वि० ) १ कुछ नही। रूठा हुआ नहीं। २ चमकदार चमकीला। अस्सू (वि) घायल | दारुण। कष्टजनक - कर, (वि०) घायल या चोटिल करना। अमः (१०) | मदार । २ रक्त खदिर | लाल कथा । ( म० ) १ मर्मस्थल । २ भाव । कण्ठ | ( 55 अरूप ( वि० ) १ रूपरहित २ बदश । कुरूप | 1 थाकारशून्य 1 भैौड़ा| ३ असमान । अस दश। --हार्य, (वि० ) जो सौन्दर्य से आकर्षित या वश नें न किया जा सके। रूपम् ( म० ) १ दशक का | २ सांख्यदर्शन का प्रधान और वेदान्त दर्शन का ब्रह्म । रूपः (50) बौद्ध दर्शनानुसार योगियों की एक भूमि अथवा अवस्था । निर्वीजसमाधि । (वि०) विना रूपक का अन्वर्थं । अविकत । अरे (अव्यया० ) एक सम्बोधनार्थंक अध्यय | ए । यो । जब कोई बड़ा किसी छोटे को सम्बोधन करता है; तब इसका प्रयोग किया जाता है। क्रोधावेश में “अरे" कहा जाता है। "अरे महाराज प्रति कुतः क्षत्रियाः ।" उत्तररामचरित्र | यह अव्यय ईर्ष्याबोधक भी है। 1 अपस् (वि० ) निष्पाप | निष्कलङ्ग २ स्वच्छ निर्मल । पवित्र । अरेरे ( अन्यथा० ) एक सम्बोधनार्थक अन्यय । इसका प्रयोग क्रोध की दशा में या किसी का तिरस्कार करने के लिये किया जाता है। ध्यरोक (वि० ) धुँधला वेचमक का । रोग ( वि० ) नीरोग | रोग से शून्य तंदुरुस्त । | मङ्गयुष्व भवा । चंगा ।-—अरोगः (वि० ) अच्छा स्वस्थ्य अरोगिन अरोग्य } ( बि० ) तंदुरुस्त । भला { चंगा । रोचक (वि० [] [स्त्री० –अरोधिका] १ जो चमक- दार था चमकीला न हो । २ एक रोग विशेष जिसमें अन्न आदि का स्वाद मुँह में नहीं मिलता। ३ अरुचिकर | जो रुचे नहीं । अरोचकः ( पु० ) भूख का नाश या भूख न लगना। घृणा ! अतिषणा अर्क (धा० पु० ) १ उष्य करना : गर्मीना | २ स्तुति करना । अर्क (०) प्रकाश की किरन विजली की चमक या कौंध | २ सूर्य | ३ अग्नि | ४ स्फटिक | ५ तांवा ७ रविवार। ७ अर्क मदार | आ अर्घः | इन्द्र का नाम | १० बारह अश्मन, (१०) - उपलः, ( पु०) इन्दुसङ्गमः ( पु० ) दर्श | अमावास्या | वह समय जब चन्द्र और सूर्य मिलते हैं। -कान्ता, ( स्त्री० ) सूर्यपत्री । --चन्दनः ( पु० ) लाल चंदन 1-जः ( पु० ) कर्ण सुग्रीव और यम की उपाधि । - जौ ( पु० ) देवताओं के चिकित्सक अश्विनीकुमार 1-तनयः ( पु० ) सूर्यपुत्र कर्ण, यम और शनि की उपाधि । --तनया, (स्त्री० ) यमुना और तापती नदियों के नाम 1-विष् (स्त्री०) सूर्य का प्रकाश | --दिनं, (न०) वासरः, (पु० ) रविवार इतवार नन्दनः-पुत्रः सुतः, - सुनु, ( पु०) शनि, कर्ण था यम के नाम | – बन्धुः, बान्धवः (०) कमल 1- मण्डलम् ( न० ) सूर्य का घेरा । - विवाहः ( पु० ) मदार के पेड़ के साथ विवाह । [तीसरा विवाह करने के पूर्व लोग अर्क के पेढ़ से विवाह करते हैं। यथाः - - चतुर्थ दिविषादायें तृतीयेऽकं यमुद्देत् । ) 1 [८] आकन्द की संख्या सूर्यकान्त मणि - काश्यप !] अजः ( पु० ) १ बौदा, बिल्ली, किल्ली, सिट- अर्गला ( श्री० ) (कनी थे किवाड़ बंद करने के काठ अली ( खी० ) के यंत्र हैं । २ लहर | रंग । अर्गलम् (न० ) ३ (पु. ) दुर्गा पाठ के अन्तर्गत एक स्त्रोत्र विशेष । अलिका (स्त्री० ) छोटा बँदा जो किवाड़ों को बंद करने के लिये उनमें अटकाया जाता है। चटखनी। अघू (धा०प० ) [ अति, अर्धित ] दाम लगाना । मोल लेना: पायत्रम सन्ति दे मार्थन्ति र समुद्रशानि सुभाषित | अर्घः ( पु० ) १ मूल्य | दाम क्रीमत । भाव | २ पूजा की सामग्री । पोडशोपचार पूजन में से एक उपचार। इस उपचार में जल, दूध, कुशाप्र दही. सरसों, चावल और यव मिला कर देवता को अर्पण करते हैं। जलदान सामने जल गिराना | - (दि० ) सम्मानसूचक भेंट करने योग्य /-चलावलं ( न० ) भाव | उचित अर्धीशः मूल्य । मूल्य में तारतम्य या उतार चढ़ाव या मूल्य का कमवेशी होना । - संख्यानम् संस्थापनम् (न० ) दाम कूतने की क्रिया । क्रीमत लगाना । ( ६ ) शः (पु०) शिव जी का नाम । अर्ध्य (वि० ) १ क्रीमती । मूल्यवान | २ पुज्य अर्थम् (न० ) किसी देवता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को सम्मान प्रदर्शक भेंट | अर्च ( धा० उभय० ) [ अति-अर्चि, अर्चित ] १ पूजा करना शृङ्गार करना। प्रणाम करना । सम्मान पूर्वक स्वागत करना | २ वैदिक साहित्य में ) स्तुति करना । अर्चक (वि० ) पूजा करने वाला । शृङ्गार करने वाला। सजाने वाला।

पु०) पुजारी। शृङ्गारिया ।

न (दि० ) पूजन करते हुए। स्तुति करते हुए। अर्चनम् ( न० ) अर्चना (स्त्री० ) अनी (( स० का० कृ० ) पूजनीय अर्च्य } पूजा 1 पूजन । आदर। सत्कार | शृङ्गार करने योग्य | पूज्य मान्य । प्रतिष्ठित । सम्मानित | [ मूर्ति या प्रतिमा । चर्चा (स्त्री० ) १ पूजा । शृङ्गार | २ पूजन करने की अर्चिः (स्त्री० ) किरन । अंगारा चमक । अविष्मत् } ( पु० ) सूर्य । अग्नि । अर्विस् (न०) } १ आग का विः (पु०) [ शोला या अंगारा । बभक । किरन । २ दीप्ति | आमा । ( पु० ) किरन । ३ अभि । [ २ सूर्य । असिह (वि० ) चमकीला । ( पु० ) १ अग्नि । (घा०प० ) [ अति, अति ] १ उपार्जन करना । कमाना। बावुई वृद्ध, जिसके अर्जक ( वि० ) [ स्त्री० - अर्जिका ] प्राप्त करने वाला। उपार्जन करने वाला। अर्जक: (वि० ) वृक्ष विशेष सूतों से रस्सी बटी जाती है। अर्जनम् ( न० ) प्राप्त करना । उपलब्धि अर्जुन ( वि० ) [ स्त्री० अर्जुना, १ सफेद | स्वच्छ । चमकीला । दिन के प्रकाश की तरह। यथा- प्राप्ति । अर्जुनी ] अर्थः “पिशंगनौजी पुल भर्जुनच्छविं।" -शिशुपालवध | २ रुपहला । अर्जुन: ( पु० ) सफेद रंग । २ मोर । मयूर ६ वृत्त विशेष जिसकी छाल बड़ी गुणदायक है। ४ महाराज युधिष्ठिर के छोटे भाई। इनका वृत्तान्त महाभारत में विस्तार से लिखा हुआ है। २ कार्त- वीर्य राजा का नाम, जिसको परशुराम जी ने मारा था । ६ इकलौता पुत्र |-ध्वजः ( पु० ) सफेद ध्वजा वाला। हनुमान जी का नाम । अर्जुनी (स्त्री० ) १ कुटनी | २ गौ । ३ करतोया नदी का दूसरा नाम | अर्जुनम् ( न० ) घास | अर्जुनोपमः ( पु० ) साखू का वृक्ष सागौन का पेड़ या सगौन। यः ( पु० ) १ साख, या सागौन का वृक्ष | २ [वर्ण- माला का ] एक वर्ण । अर्णवः ( पु० ) १ ( फैनों से युक्त ) समुद्र । — /-उद्भवा, (स्त्री० ) उद्भवः, (पु० ) चन्द्रमा लक्ष्मी उद्भवं, ( न० ) अमृत । -पोत, ( पु० ), –यानम्, ( न० ) - मन्दिरः ( पु० ) १ वरुण | २ समुद्रवासी । ३ विष्णु । अस् ( न० ) जल । - दः, (द ) ( पु० ) बादल । -भवः (पु०) शङ्ख । स्वत् ( वि० ) जिसमें बहुत जल हो । अस्वत् ( पु० ) समुद्र । सागर । अर्तनम् (न० ) धिक्कार | फिटकार | गाली । अर्तिः ( स्त्री० ) १ पीड़ा | दुःख। खेद। २ धनुष की नोंक । अर्तिका (स्त्री०) (नाव्य साहित्य में ) बड़ी बहिन । अर्थ ( धा० आत्म० ) [ अर्थयते, अर्थित ] १ माँगना । याचना करना प्रार्थना करना । बिनती करना । २ वान्छा करना । अभिलाषा करना । अर्थ: ( पु० ) १ उद्देश्य प्रयोजन | अभिलाषा । २ कारण । हेतु । भाव | आधार । जरिया। ३ विष्णु का नाम अधिकारः ( पु० ) खजानची का श्रोहदा/~-अधिकारिन, (पु० ) सं० श० कौ-१२ अर्थः खजानची । कोषाध्यक्ष अन्तरम् ( न० ) ( अर्थान्तरम् ) १ भिन्न अर्थ यानी मानी । २ भिन्न उद्देश्य या हेतु । २ नया मामला। नयीपरिस्थिति । —भ्यासः (पु०) (अर्थान्तर- न्यासः ) काव्यालङ्कार विशेष जिसमें प्रकृति अर्थ की सिद्धि के लिये अन्य अर्थ लाना पड़ता है। अर्थालङ्कार का एक भेड़ | २ ( न्याय दर्शन में ) निग्रहस्थान अन्वित (= अर्धान्वित) ( वि० ) १ धनी । सम्पत्ति वाला । २ गूदार्थ प्रकाशक | गुरुतर | – अर्थ (अर्थ) ( वि० ) वह जो धन प्राप्त करना चाहे या जो कोई अपना उद्देश्य सिद्ध करना चाहे |- अलङ्कारः, (= अर्थालङ्कारः ) ( पु० ) वह अलंकार जिसमें अर्थ का चमत्कार दिखाया जाय। आगमः, (= अर्थागमः ) ( ० ) १ आय । आमदनी। धन की प्राप्ति | २ किसी शब्द के अभिप्राय को सूचना करना । आपत्तिः, (= [अर्थापत्तिः) (स्त्री० ) १ अर्थातकार जिसमें एक बात के कहने से दूसरी बात की सिद्धि हो । २ मीमांसाशास्त्रानुसार प्रमाण विशेष। जिसमें एक बात कहने से दूसरी बात की सिद्धि अपने आप हो जाय। - उत्पत्तिः (= अर्थोत्पत्तिः) ( स्त्री० ) धनोपार्जन : धनप्राप्ति ।-उपक्षेपकः, (पक्षेपकः) (पु० ) नाटक का आरम्भिक दृश्य विशेष । यथा- " सवेपिछेषकाः पश्च।” साहित्यदर्पण | उपमा, (= अर्थोपमा ) (स्त्री) उपमा विशेष जिसका सम्बन्ध शब्दार्थ या शब्द के भाव से रहता है ।-उष्मन () () धन की गर्मी- "यमिता विरक्षिः पुरुषः स एव | भागवत | घ:, (घ) ( 50 ) या - राशिः (अर्थराशि:) (पु०) खजाना या धन का ढेर --- कृत ( वि०) १ धनी बनानेवाला । २ उपयोगी । लाभकारी / काम, (वि० ) धनाकांची। -- कृच्छ्र, (न० ) १ कठिन विषय | २ धन सम्बन्धी अर्थना सद ।-कृत्यं (न०) धन का लाभ कराने वाले किसी कारोवार 1-गौरवं, (न० ) अर्थ की गम्भीरता 1-घ, ( वि० ) फ़िजूल खर्च | अपव्ययी । —जात, (वि० ) अर्थ से परिपूर्ण - जातम्, (न० ) १ वस्तुओं का संग्रह। धन की बड़ी भारी रक्क़म। बड़ी सम्पत्ति 1-तवं, (न०) १ यथार्थ सत्य | असली बात | २ किसी वस्तु का यथार्थ कारण या स्वभाव |द (वि० ) १ धनप्रद | २ उपयोगी लाभदायी ।-दूषणम् ( म० ) १ फ़िजूलखर्ची । अपन्ययिता | २ अन्या पूर्वक किली की सम्पत्ति छीन लेना या किसी का पावना ( रुपया या धन ) न देना । ३ ( किसी पद या शब्द के ) अर्थ में दोष निकालना । - निबंधन, ( वि० ) धन पर निर्भरता । ~पतिः, ( पु० १ धन का अधिष्ठाता । राजा २ कुबेर की उपाधि - पर, लुब्ध, (वि० ) १ धन प्राप्ति के लिये तुला हुया | लालची । लोभी | २ कृपण | व्ययकुण्ठ -प्रयोगः, ( पु० ) व्याज | सूद | कुसीद /-बुद्धि (वि०) स्वार्थी । -मात्रं, (न०) ~ मात्रा, (स्त्री०) सम्पत्ति । धन दौलत |-- लोभः (पु०) खालच /-वादः, (पु०) १ किसी उद्देश्य या अभिप्राय की घोषणा | २ प्रशंसा । स्तुति | तारीफ /विकल्पः, (पु० ) सत्य से डिगने की क्रिया । सत्य बात को बदलने की क्रिया | अपलाप।-वृद्धिः, (स्त्री०) धन को जोड़ना।-- व्ययः ( 30 ) खर्च - शास्त्रं, (न० ) सम्पत्ति शास्त्र | धन सम्बन्धी नीति को बताने वाला शास्त्र । - शौचं, (न०) रुपये के दैन लैन के मामले में सफाई या ईमानदारी । - संबन्धः (g०) किसी शब्द से उसके अर्थ का सम्बन्ध ।-सारः, ( 50 ) बहुत सा धन । - सिद्धिः, ( स्त्री० ) सफलता | मनोरथ का पूरा होना । अर्थतः (अव्यया० ) १ अर्थगौरव । २ दरहकीकत | सचमुच | यर्थार्थतः । ३ धन प्राप्ति लाभ या फायदे के लिये ४ इस कारण से अर्थना (स्त्री०) प्रार्थना | विनय | विनती | २ प्रार्थना- पन। अर्जी। अर्थवत् अर्थवत् ( वि० ) १ धनी । २ गुढार्थं प्रकाशक ३ जिसका अर्थ हो । किसी प्रयोजन का । सफल । उपयोगी | ( २१ अर्थवता (स्त्री० ) धन सम्पत्ति । धन दौलत | अर्थात् (अव्यया० ) या । अथवा । आर्थिकः ( पु० ) 'चौकीदार । २. वैतालिक भाट ३ भिक्षुक । भिखारी। मँगता । आर्थित (व० कृ०) प्रार्थना किया हुआ । अभिलषित । आर्थितम् ( न० ) १ अभिलाषा | इच्छा | २ प्रार्थना- पत्र घर्जी। वाला। अर्थ्य (वि० ) १ साँगने योग्य प्रार्थनीय | २ योग्य | उचित | ३ गूढार्थ प्रकाशक । समुचित | ४ धनी । धनवान् | ५ परिडत | बुद्धिमान | अर्थ्यम् ( न०) लाल खड़िया | गेरू । (धा०प० ) पीढ़ा देना । अत्याचार करना । चोड मारना । चोटिल करना बध करना । २ माँगना। प्रार्थना करना। याचना करना । अन ( वि० ) पीड़ाकारक । क्लेशदायी । अनम् ( न० ) पीड़ा । कटु । चिन्ता । घबड़ाहट । . व्याकुलता । ) (वि० ) आधा अर्थता । १ याचना | प्रार्थना | २: इच्छा | अर्थित्वं ) अभिलाषा | अर्धिक ( वि० ) [ स्त्री० - अधिक ] १ श्रधा नापने वाला | २ जो आधा हिस्सा पाने का हकदार हो । अर्थ (त्रि० ) १ याचफ । भिक्षुक | मँगता | अर्धिकः ( पु० ) वर्णसङ्कर, जिसकी परिभाषा भिखारी। २ सेवक | सहायक | धनी । ४ वादी । ५ धनरहित ६ अभिलाषी । मनोरथ रखने पाराशर स्मृति में इस प्रकार है:- वैश्यकम्पाचपुत्पी ब्राह्मणेन तु संस्कृतः । अर्धिकः स तु विडेयो भोल्यो विषैर्न संशयः ॥ अर्धिन् (वि० ) आधे हिस्से का हक्नदार । अर्धोदयः । ( पु० ) योगविशेष | यह हृदयः योग समझा जाता है, जब श्रवण नक्षत्र और व्यतीपात हो । अमावस तिथि | अर्पणम् ( न० ) १ भेंट | नज़र | त्याग । यथा --

  • स्वदेशार्पण मिष्येण । "

रघुवंश । अ पर्य ३ सानुनासिक चिन्ह विशेष ( ) | ४ मोर के परों पर की चन्द्रिका ५ चन्द्राकार बाण - चोलकः ( पु० ) अँगिया । बाँहकटी /- नारीशः, -नारीश्वरः, (पु०) महादेव का नाम । शिव पार्वती की मूर्ति विशेष । हरगौरी रूप शिव । --पञ्चाशत् ( स्त्री० ) २५ पचीस |–भागः ( पु० ) १ श्राधा हिस्सा पाने का अधिकारी । २ साथी । साझीदार | . २ वापिसी । ३ छेदना | अर्पिसः (पु० ) हृदय का मांस | [ ( धा०] परस्मै ) [ अर्वति, आनवं, अवितुं ] १ एक थोर जाना । २ हनन करना | वध करना । दः (पु० ) ११ सूजन | गुमड़ा | २ दस अर्दना ( स्त्री० ) १ माँग । भिक्षा । २ वध | चोट | पीड़ाकारक । १} ( वि० ) आाधा । खण्ड । टुकड़ा 1- अदम् अर्बुद: अति, (न० ) कनखिया | सैन मारना । शिन (वि० ) आधे का भागीदार 1- अर्थः, (पु०) - अर्ध (न०) आधे का आधा । चौथाई।अवभेदकः, (पु० ) आधे सिर की पीढ़ा। अधासीसी। गङ्गा, (स्त्री०) कावेरी नदी का नाम। (कावेरी के स्नान करने से गङ्गास्नानका थाधा फल प्राप्त हो जाता है ) -चन्द्रः, (पु० ) १ चन्द्रार्ध । अष्टमी का चन्द्रमा । आधे चन्द्रमा के आकार का नख का थाव। गरदनिया। गलहस्त । पहाड़ का नाम ४ सर्प । ५ बादल | ६ दैत्य विशेष जिसे इन्द्र ने मारा था । ७ मांस का डेर । अर्भक (वि० ) १ छोटा | सूक्ष्म | ह्रस्व | २ निर्बल दुबला ३ मूढ़ मूर्ख ४ युवा | २ बालकपन | कः ( पु० ) बालक । बच्चा | २ किसी पशु का बच्चा | ३ मूर्ख | मूढ़ । अर्थ (वि० ) १ सर्वोत्तम । सर्वश्रेष्ठ । प्रतिष्ठित । कुलीन । 1 प्रयं. ( ३२ ) श्रलक्ष्य अर्थः (g० ) १ मालिक | प्रभु । २ वैश्य ।चर्यः | अर्हः (पु० ) १ इन्द्र का नाम | विष्णु का नाम। ( पु० ) प्रतिष्ठित वैश्य । [ की स्त्री । पर्या (स्त्री० ) १ मलकिन । २ वैश्या । वैश्य जाति अर्थमन् ( पु० ) १ सूर्य । २ पितरों के मुखिया । ३मदार ऑफा ४ द्वादश आदित्यों में से एक । ५ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी देवत। ६ परम प्रियमित्र | साथ खेलने वाला। यः (g० ) सूर्य | खोपम मित्र पर्याणी (श्री० ) वैश्य जाति की स्त्री । वैश्या बनीनी । 1 अर्धन् (पु० ) १ घोड़ा । २ चन्द्रमा के १० घोड़ों में से एक ३ इन्द्र | ४ माप विशेष जो गाय के कान के बराबर का होता है। -ती (स्त्री० ) | १ घोड़ी | २ कुटनी। श्रवच् (वि० ) इस ओर आते हुए । २ (किसी ) | ओर घूमा हुआ। किसी से मिलने को ता हुआ। ३ इस थोर को ४ (समय या स्थान में) नीचे या पीछे| ५ बाद का। पीछे का पिछला। ~~, (अव्यया० ) 1 इस घोर इस तरफ। २ किसी विन्दु विशेष से किसी स्थान विशेष से ३ पूर्व का पहला ( समय सम्बन्धी या स्थान सम्बन्धी ) ४ नीचे की ओर निचला | पश्चात् । पीछे से | ६ 1 पिछाड़ी अन्तर्गत । [ विरुद्ध | समीप अर्वाचीन (वि० ) १ आधुनिक | हालका । २ उल् अर्वाचीनम् (अव्यया० ) १ इस ओर का | २ थपेक्षा कृr पीछे का । [सीर रोग नाशक । अर्शस ( न० ) बवासीर रोग (-म, ( वि० ) बवा- अर्शस (बि० ) बवासीर रोग से पीड़ित ई ( धा० पर० ) [ अर्हति, अहंतु, आनई, आर्हित ] चार्थ प्रयोग गथा। रायो भाईते पूर्वा J रामायण | १ योग्य होना । २ अधिकारी होना १२ कोई काम करने के योग्य होना। ३ सदश या समान होना। आई ( वि० ) १ प्रतिष्ठित मान्य २ योग्य | ३ भव्य उपयुक्त ४ मूल्यवान् । ३ मूल्य | अर्हा ( श्री० ) पूजन धाराधन उपासना ( न० ) ) ( वि० ) पूजन । उपासना | महंगा (स्त्री०) ) सम्मान प्रतिष्ठापूर्ण व्यवहार । अत् ( वि० ) १ उपयुक्त । योग्य | आराधनीय । उपास्य । ( पु० ) १ बौद्धों में सर्वोच्चद | २ जैनियों के एक पूज्य देवता । अर्हन्त ( वि० ) उपयुक्त | योग्य | अर्हन्तः (पु० ) १ बौद्ध २ बौद्धभिक्षुक । अर्हन्ती (स्त्री० ) पूजने, उपासना या सम्मान किये आने के लिये अपेक्षित गुण । अ ( स० का० कृ० ) १ उपयुक्त । माननीय प्रतिष्ठित | २ स्तुति योग्य आलू (धा० उभ० ) [ अलति-चलते, अलितुं, अलिव ] १ सजाना । २ योग्य होना । ३ रोकना | बचाना | 1 ध्थलं ( न० ) : वि की पूंछ का डंक २ पीला- हरताल । ( अव्यया० ) काफी | अलकः ( पु० ) घुघराले बाल २ जुल्फें |३ केसर का शरीर पर उपटन ४ उम्मत कुत्ता। अलकम् (न०) व्यर्थ । निरर्थक अलका ( स्त्री० ) (१) ८ और १० बरस के भीतर उम्र की लड़की २ कुबेर की राजधानी का नाम । अतः ) ( पु० ) कतिपय वृक्षों की लाल छाल अलककः 5 या वकला। लाचारस लाख का रंग। महावर ( जो स्त्रियाँ पैरों में लगाती हैं ) । अलक्षण ( वि० ) १ जिसमें कोई चिन्ह या निशान न हो । २ अप्रसिद्ध । जिसके तहण निर्दिष्ट न हों। ३ अशुभ | अलक्षणम् ( न० ) १ अशुभ शकुन या चिन्ह | २ जिसकी परिभाषा न हो, या दुरी परिभाषा हो। अलक्षित (बि० ) अदृष्ट अप्रकट गायव | अलक्ष्मी: (स्त्री० ) दरिद्रता । अभागायन। दुर्दिष्ट अलक्ष्य (वि० ) १ अरष्ट | अप्रकट अज्ञात २ श्रचिन्हित | ३ विशेष चिन्हरहित ४ देखने में तुच्छ ५ जिसका कोई गहाना न हो। धोखे से वर्जित । गति ( दि० ) ऐसे चलना कि अलगई कोई देख न सके ।-जन्मना ( वि० ) अज्ञात उत्पत्ति । अस्पष्ट उत्पत्ति । अलगर्दः (पु० ) पानी का सौंप । थलघु (वि० ) [ स्त्री० अलध्वी ] जो हल्का न हो। भारी । वदा । २ जो छोटा न हो। लंवा ३ संगीन गम्भीर ४ बहुत वदा। अत्यन्त प्रचण्ड प्रवल उपलः, ( पु० ) चहान | अलंकरणम्) ( न० ) १ सजावट | शृङ्गार | अलङ्करणम्। २ आसूपण गहना | "परस्म मलंकरणम् भुगः" भत्त हरिः अलंकरिष्णु ) ( वि० ) १ गहनों का शौकीन । अलङ्करि । २ सजावटी। सजाने में निपुण अलंकारः (पु० ) सजावट अलङ्कारा अंग ४ अलङ्कार शाख अलङ्कारकः } ( दु० ) गढ़ना । सजावट। अलंकृतिः } ( स्खी० ) १ सजावद । २ आभूषण अलङ्कृतिः ) ( कर्णालंकृति धमरु ) ३ साहित्य शास्त्र का एक आभूषण अलिगई: } अलंबुषः ) ( पु० ) ३ वमन | छार्द के थोकी अलम्बुषः १२ खुले हुए हाथ की हथेली ३ रावण के एक राक्षस सैनिक का नाम ४ एक राक्षस जिसे महाभारत के युद्ध में घटोत्कच ने मारा था। प्रलय (वि० ) १ गृहहीन। आवारा । २ जो कभी नाश को प्राप्त नहो। अविनश्वर | शृङ्गार | २ आभूषण प्रलयः ( पु० ) १ स्थायित्व | २ उत्पत्ति | पैदायश | अलर्क ( पु० ) १ पागल कुत्ता २ सफेद मदार या अकौआ | ३ एक राजा का नाम । गहना । ३ साहित्य शास्त्र का एक | खजले (अध्या० ) पैशाची भाषा का शब्द जो नाटकों में बहुधा व्यवहृत होता है। अलवालं (न० ) पेड़ की जड़ का खोडुआ या घाला, जिसमें जल भर दिया जाता है। अलस् (वि०) जो चमकीला न हो या जो चमके नहीं । (०) क्रियाशील। जिसके शरीर में चेष्टाहीन। फुर्ती न हो। सुस्त । काहिल | २ श्रान्त थका हुआ। ३ मृदु । कोमल ४ मन्द अलसक (वि० ) अकर्मण्य | काहिल । सुस्त । अातः (०) अधजला काठ या लकड़ी । थजातम् (म० ) ) जलता हुआ काठ या जकड़ी। श्रावुः (स्त्री०) } तुम्बी लानु । तुमहिया–बु तुमही का बना बरतन| तुम का फल /-कटं, (न० ) तुमड़ी की रज । अलारं ( न० ) दरवाज़ा | | अलिः (पु० ) १ भौरा | २ बिच्छू | ३ काफ। कौश्रा | ४ कोयल | ५ मंदिरा |–कुलम्, (म० ) भौरों का कुंड/- मियः, ( पु० ) कमल (-विरावः, ( पु० ) ~~हतं, (न० ) भौरों का गुआर | अलिकं ( २०:) माया। अजिन् (पु० ) १ बिच्छू | २ शहद की मक्खी | अलिनी (स्त्री० ) शहद की मक्खियों का समुदाय अजिगईः ( पु० ) सर्प विशेष | अलंकिया ( श्री० ) सजावट शृङ्गार अलड़िया 5 } लंघनीय ) ( वि० ) पहुँच के बाहिर अतिक्रम- अलनीय ) णीय | दुरतिक्रम। अनुलढ्य अजः (पु० ) पक्षी विशेष | ( स्त्री० ) : मुंडी । गोरखमुण्डी । २ स्वर्ग की एक अप्सरा | ३ दूसरे का आना रोकने के लिये खींची गयी लकीर। ४ हुई- सुई। लजालू पौधा | ( स्त्री० ) एक देश का नाम | अलंडुपा ) अलम्बुपा अलंबुसा अलम्बुसा अतंजर, अलञ्जर: ( ( पु० ) वहा । मिट्टी का | अलावू: ( न०) ) अलंजुरः, अलब्जुर । धड़ा। चलम् (अव्यया० ) ( वि० ) काफी । पर्याप्त । यथो- चित उपयुक्त-कमण. (वि० ) निपुण । कुषाल। - धूमः ( पु० ) सधन धुआँ । चत्व- धिक धुआपुरुषोण (वि०) मनुष्योचित | मनुष्य के लिये पर्याप्त 1-भूष्णु (. वि० ) योग्य कुशल अलंपट (वि०) जो लंपट या विषयी न हो। अलम्पट / शुद्ध चरित्र वाला। अलंपट: अलस्पटः ( पु० ) अनाना कमरा जनानखाना|| I अलिंग लिंग ) (वि० ) १ जिसके कोई विशिष्ट चिन्ह न लिङ्ग) हो। जिसके कोई चिन्ह न हो । २ डरे चिन्हों वाला । ३ (व्याकरण में ) जिसका कोई लिङ्ग न हो। ( ₹४ ) अवकीर्णी अल्पशः (अव्यया० ) थोड़े अंश में थोड़ा | | अल्पीक ( धा० उभय० ) छोटा करना | घटाना | संख्या में कम करना [ छोटा या कम | अल्पीयस् (वि० ) अपेक्षाकृत कम या छोटा । बहुत अ ( स्त्री० ) माता (सम्बोधनकारक में “ल”)। अव ( धा० परस्मै० ) [ अदति, अवित, या ऊत ] १ बचाना। रक्षा करना सहारा देना २ प्रसन्न करना। सन्तुष्ट करना। आनन्द देना ३ पसंद करना इच्छा करना । अभिलाषा करना | ४ कृपा करना। अनुग्रह करना। उत्सति करना । [ यद्यपि धातुरूपावली में इस धातु के और भी बहुत से अर्थ दिये हैं; किन्तु उन अर्थों में इस धातु का प्रयोग वर्तमान संस्कृतसाहित्य में बहुत कम होता है।] कोयल । २ शहद की मक्खी । [२ मिथ्या | पलीक (वि० ) १ अप्रसन्नकर । अरुचिकर | अलीकं (न० ) १ माथा । २ झूठ असल्य [दग़ा। पलोकिन् (वि) अरुचिकर अप्रसन्जकर २ झूठ । पल्लुः (पु० ) एक छोटा जलपात्र । पलूक्ष (वि० ) कोमल । नम्र | पले } (अव्यया० ) अर्थशून्य शब्द जो नाटकों व ( अव्यया० ) १ दूर फासले पर | नीचे | पिशाचों का संवाद मलेले ) के उस दृश्य में जहाँ होता है, प्रयुक्त किया जाता है। प्रलेपक ( वि० ) निष्कलङ्क | अलेपक (पु० ) ब्रह्म की उपाधि | अलोक ( चि० ) २ ( जब यह किसी क्रिया में "उपसर्ग" होता है तथ ये निग्न भाव प्रकट करता है :-) १ संकल्प। विचार | २ फैलाव | बहाय । विस्तार | ३ प्रवज्ञा । अवहेला । ४ स्वल्पता ५ अवलम्ब ६ शोधन । शुद्धता । निर्मलता अदृश्य । जो देख न पड़े। २ जिसमें कोई प्रादमी भी न हो । ३ ऐसा जीव जो मरने के बाद अन्य किसी लोक में न जाय । अलोकः ( पु० ) ११ लोक नहीं । २ लोक का नाश अलोकम् (न० ) ) मनुष्यों का अभाव । - सामान्य (वि० ) असाधारण । अलोकनम् (न० ) अदृश्यता । हद । (वि० ) १ स्थिर | टिका हुआ । २ मज़बूत | ३ अचञ्चल | ४ जो प्यासानं हो । इच्छा से रहित कामनाशून्य । ( वि० ) १ कामनाशून्य । जो लालची न हो । लोलुप न हो । थलौकिक (वि०) [स्त्री० --अलौकिकी ] १ इस लोक का नहीं। चमत्कारी । लिंजर: । fast: S लिंदः ) (पु० ) घर के द्वार के सामने का चबूतरा रजिन्द या चौतरा | नलिएकः ( पु० ) १ ३ कुत्ता | ( पु० ) पानी का घड़ा। अल्प (वि० ) १ तुच्छ । २ थोड़ा । जरासा ३ विनाशी । थोड़े दिनों का ४ दुर्लभ । व्यवकट (वि० ) १ नीचे की ओर। पीछे की ओर। २ प्रतिकूल | विरुव । अवकटम् ( न० ) विस्ता। प्रतिकूलता । अवकरः (पु० ) धूल । चुहारन । कर्तः (पु० ) टुकड़ा। धज्जी । कतरन । अवकर्तनम् (न० ) काटन | कतरन । अवकम् ( न० ) १ बाहिर निकालने या खींचकर बाहिर निकालने की क्रिया | २ बहिष्करण | अवकलित (वि० ) १ देखा हुआ । अवलोकन किया हुआ। २ जना हुआ। ३ लिया हुआ ग्रहस्य किया हुआ । प्राप्त । अवकाशः ( पु० ) १ अवसर । मौका | २ खाली वक्त । फुर्सत छुट्टी ३ स्थान | जगह | ४ शून्य जगह । ५ दूरी। अन्तर । फासला अल्पकं ( वि० ) [ स्त्री०- अल्पका ] १ कम । अवकीर्णन (वि० ) व्रत से च्युत | धर्म से नष्ट | थोदा २ छद्र घृणायोग्य अल्पंपचः ( पु० ) कंजूस। लोभी। लालची । अवकीर्णी ( पु० ) वह ब्रह्मचारी जिसने अपना ब्रह्मचर्य व्रत भङ्ग कर दिया हो। अवकुचन ( ६५ ) अवग्रहः व्यवञ्चनम् } ( न० ) झुकाव । टेट्रापन | खिवाय । | अवखण्डनं ( न० ) विभक्त करने की क्रिया | नष्ट अवकुंठन ( न० ) १ घिराव | छिकाव । 1 करने की क्रिया । वखातम् ( न० ) गहरा गढ़ा । अवगणनं ( न० ) अवज्ञा तिरस्कार । अवहेला । २ फटकार | दोषारोपण | ३ अपमान | अवगण्डः ( पु० ) मुहासा या फुंसी जो या गाल पर होती है। अवगतिः ( स्त्री० ) व्यवगमः ( पु० ) अवगमनम् (न० ) प्रवकुण्ठित } (वि०) छेका हुआ । छिका हुआ या घेरा हुआ। खिचा हुआ। अवकृष्ट ( ६० कृ० ) १ नीचे गिराया हुआ । २ स्थानान्तरित किया हुआ | ३ निकाला हुआ । ४ अपकृष्ट | नीचा | अधःपति । जातिवहिष्कृत | अवकृष्टः (०) नौकर जो नीच काम करता हो। तिः ( स्त्री० ) १ सम्भावना | २ उपयुक्तता | प्रवकेशिन ( दि० ) यंजर | ( वृक्ष ) जिसमें कोई फल न लगे । अवकोकिल ( वि० ) कोकिल द्वारा गिराया हुआ । कोकिल द्वारा तिरस्कृत | [ सच्चा मातवर | अवक (वि०) जो टेढ़ा न हो। (आलं ) ईमानदार ध्यवक्रन्द ( वि० ) धीरे धीरे रोता हुआ । गर्जता हुआ। हिनहिनाता हुआ। अवकन्दनम् (२०) रोने की क्रिया | ज़ोर से रोने की क्रिया । अवक्रमः ( पु० ) उतार ढाल निचान । व्यः ( पु० ) १ मूल्य । कीमत | २ मजदूरी । भाड़ा| किराया। ठेका । इजारा | पट्टा । चक- नामा। ३ आढ़े पर उठाने की क्रिया पट्टे पर देने की क्रिया | ४ कर या राजस्व । राजग्राह्य जुन्य | प्रवक्रान्तिः ( स्त्री० ) १ उतार | २ समीप आगमन | वक्रिया ( स्त्री० ) छूट | चूक भूल | अवकोशः ( ५० ) १ बेसुरा कोलाहल । २ अकोसा शाप | ३ गाली। झिड़की फटकार । । अवक्लेशः ( पु० ) १ बूँद बूँद टपकने की क्रिया । २ कचलोग। धाव का पानी पंछा। अवक्षयः ( पु० ) नाश सड़ाव । गलन । हानि । चेहरे पर [ धारण | निश्चयात्मक ज्ञान । समझ । १ समीप गमन । ऊपर से नीचे उतरने की क्रिया | अक्पणी (स्त्री० ) खगाम राख हुआ । २ समझ | धारणा । ज्ञान । श्रवगाढ़ (च० कृ० ) १ बूढ़ा हुआ । घुसा डूचा हुआ। २ ढीला | नीचा गहरा ३ जमा हुआ। पक्का बना हुआ। ) १ स्वान । २ निमज्जन } अवगाहनम् ( न० ( श्रीलं० ) निष्यात होने की क्रिया पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की क्रिया अवगीत ( व कृ० ) 8 बेसुरा गाया हुआ | बुरा गाया हुआ। २ अकोसा हुआ। धिकारा हुआ। ३ दुष्ट | पापी । ( न० ) जनापवाद | निन्दा | अभिशाप | अवगुणः ( पु० ) दोष त्रुटि | कमी । श्रवगुंठनं ( न० ) ढकने की क्रिया छिपाने अवगुण्ठनम् ) की क्रिया | २ पर्वा | घूघट | दुर्गा | वगूंठनवत् } (वि०) [स्त्री० –गुण्ठनवती] | घूंघट से ढका हुआ। अवगुण्ठनवत् ठिका का } ( स्त्री॰ ) घूंघट | पर्दा । अवगुंठित ) ( व० ० ) ढका हुआ | घूंघट काढ़े 1 अवगुण्ठित हुए। छिपा हुआ । अवगुरणं ) ( न० ) मार डालने के उद्देश्य वोरणम् ) से हमला करने की क्रिया | हथियार से आक्रमण करने की क्रिया। अवगूहनम् ( म० ) १ छिपाव | दुराव | २ आलिङ्गन करने की क्रिया । अवक्षेपः (पु० ) दोषारोपण | २ श्रापत्ति | प्रक्षेपणं ( न० ) १ गिराव । अधःपात | नीचे | अवग्रहः ( पु० ) १ (व्याकरण) सन्धिविच्छेद फैकने की क्रिया | २ तिरस्कार । घृणा ३ फटकार भर्त्सना | दोषारोपण | ४ वशवर्त्ती करण | २ लुप्त अकार जिसका चिन्ह ( 5 ) है । ३ अनावृष्टि सूखा ४ रुकावट। श्रदचन | रोक । २ गज समूह हाथी का माया बाधा अषप्रणम् ७ स्वभाव । प्रकृति |८ दण्ड | सज़ा | शाप | अकोसा। [ अवहेला । व्यवग्रहणम् (न०) १ रुकावट | अड़चन |२ अपमान । अवग्रहः (पु० ) १ टूटन | बिलगाव | अलगाव | २ अड़चन। रुकावट | रोक ३ शाप धकोसा। अवदः ( पु० ) १ भूमि का बिल। गुफा गुहा | २ अनाज पीसने की चक्की ३ गड्डबड्ड करने की क्रिया हिलाकर गड्बड करने की क्रिया । अवघर्षणम् ( न० ) १ रगड़न | मालिश | पीसने की क्रिया (सूखा रङ्ग आदि) मल कर काढ़ने की क्रिया । ( लगे रंग को ) मल कर छुटाना। । ३ पीसना । अवचनम् ( न० ) १ वचन या कथन का अभाव | चुप्पी । मौनत्वा । २ फटकार । डाँटडपट । दोषा- रोपण | झिड़की। अवघातः ( पु० ) १ धान आदि का साइन । २ चोट प्रहार | वध | हत्या | ३ अपमृत्यु । अवर्णनम् ( ० ) घुमरी । चक्कर । अवघोषणम् ( न० ) अवघोषणा ( श्री० ) अषत्राणम् (म०) सूघने की किया। १ डिवोरा | २ राजसूचना । अवचन (वि० ) न बोलने बाला | चुप | खामोश | | प्रवच्छेदक ( वि० ) १ भेदकारी । अलग करने वाणी रहित । वाला २ विशेषण ३ गुण रूप शब्द | ४ औरों से अलग करने वाला। अवचनीय (वि० ) जो कहा न जा सके। जो बोला न जा सके। अलील या भही ( बात या भाषा ) | २ झिड़की के अयोग्य | भर्त्सना से रहित । व्यवन्चयः ध्रुवचायः ( पु० ) सञ्चय। (जैसे फल फूल } आदि का ) अवचारणम् (न०) किसी काम में लगाने की क्रिया । आगे बढ़ने का तरीका बरताव या जुगत का लगाना। ( पु० ) रथ का उधार किसी कंड़े की सजावद के लिये लटकाये हुए चौरी- प्रवदु | कः ( पु० ) चौरी ( जिससे मक्खियां प्रवचूलकम् ( न० ) | उड़ायी जाती हैं ) । अवच्छदः (पु०) ढक्कन कोई वस्तु जिससे दूसरी अवच्छादः वस्तु ढकी जा सके। व (व० कृ० ) १ काट कर अलग किया हुआ | २ विभाजित | पृथक् किया हुआ । छुड़ाया हुआ।३ जिसका किसी अच्छेदक पदार्थ से अवच्छेद किया गया हो। ४ छेका हुआ। घेरा हुआ। सम्हाला या संशोधित किया हुआ । निश्चित किया हुआ। अवचूडः श्रवचूलः सुमागुच्छे । अवचूर्णनं ( न० ) पीसना | कूटना | पीस कर चूर्ण कर डालना । २ चूर्ण बुरकाना । विशेष कर कोई सूखी दवा किसी घाव पर बुरकाना। अवस्कुरित ( वि० ) मिश्रित । मिला हुआ अवच्छुरितम् ( न०) खिलखिलाहट | अट्टहास । रहाका । प्रवच्छेदः (पु० ) १ टुकड़ा | भाग | २ सीमा । हद्द | ३ वियोग | ४ विशेषता | २ निश्चय । निर्णय | ६ लक्षण ( जिससे कोई वस्तु निर्यान्स रूप से पहचानी जा सके । सीमावद्धकरण । परिभाषाकरण | अवजयः ( पु० ) हार। अवजितिः ( स्त्री० ) जय । विजय | व्यवज्ञानम् ( न० ) अवहेला । अपमान | व्यवट: ( पु० ) १ छेद रन्ध्र गुफा २ गढ़ा । गड़वा | ३ धूप ४ खाल खाड़ी | शरीर का कोई भी नीचा या दबा हुआ अवयव या भाग । -कच्छपः (अव्यय०) गढ़े का कछुआ । (आलं०) अनुभव शून्य । वह जिसने संसार का कुछ भी ज्ञान सम्पादन नहीं किया अवटिः ) ( स्त्री० ). 9 वेद | रन्ध | २ कूप प्रवढी ऽ कुआ। अवटी (वि० ) चपटी नाक वाला। अवटुः (पु० ) १ भूमि का बिल २ कूप । ३ गरदन के पीछे का भाग। शरीर का दबा हुआ भाग । ( स्त्री० ) गरदन का उठा हुआ भाग । व ( न० ) सुराख | छेद। स्त्रोंप दरार | आवडीन प्रवडीनं ( न० ) पक्षी का उड़ान । नीचे की ओर उड़ान । अवतंसः ( पु० ) ) १ हार | गजरा | माला | २ कान अवतंसम् ( न० ()) की बाली । बालीनुमा एक आभू- धण। ३ मस्तक पर पहिनने का गहना मुकुट [ आभूषण। अवतंसकः ( पु० ) कान का आभूषण । कोई भी अवतंसयति ( क्रि०) चाली की तरह इस्तेमाल करना । बाली बनाना । साज | I यवततिः ( स्त्री० ) फैलाव | पसार । बढ़ाव। प्रवत ( च० कृ० ) १ गर्माया हुआ गरम किया हुआ | २ प्रकाशित | उजागर । अवतमसं ( न० ) १ झुटपुटा थोड़ा अन्धकार २ अंधकार | अंधियाला । अवतरः (पु० ) उतार गिराव ध्यवतरणम् (न० ) १ स्नानार्थ पानी में उतरने की क्रिया २ अवतार | प्रादुर्भाव । जन्म-ग्रहण करण वारण करण|३ पार होना उतरना ४ पवित्र स्थान जहाँ स्नान किया जा सके। ५ अनुवाद । भूमिका । दीवाचा ६ उद्धरण | नकल । प्रतिकृति । अवतारः ( पु० ) : उतार । अाई । आगमन । २ आकार: ३ प्रादुर्भाव । किसी देवता का पृथिवी पर जन्मग्रहण करण ४ घाट ५ स्नान करने का पवित्र स्थान | ६ अनुवाद । ७ तालाव। ८ भूमिका | दीवाचा | अवतारक (वि०) [स्त्री० - अवतारिका ] प्रादुर्भूत । अवतरित । अवधारणम् अवतीर्ण ( घ० कृ० ) १ उतरा हुआ। नीचे आया हुआ। २ स्नान किया हुआ। ३ पार किया हुआ। गुजरा हुआ। अघतोका (स्त्री० ) स्त्री या गौ जिसका कारण विशेष वश गर्भश्राव हो गया हो । व्यवतिन् (वि०) विभाजित करने वाला। अवदंश: (पु० ) ऐसा भोज्य पदार्थ जिसके खाने से प्यास बड़े बलवर्द्धक पदार्थ | अवदाघः ( पु० ) 1 उष्णता । २ गर्मी की ऋतु । प्रवदात ( वि० ) १ खूबसूरत | सुन्दर २ साफ | स्वच्छ | बेदाग़ | चिकनाया हुआ। ३ पुण्यात्मा ४ पीला। अवतरणका (सी०) ग्रन्थ की भूमिका | उपोद्धात | अषतरणी ( स्त्री० ) देखो अवतरणिका । अवतर्पणम् ( न० ) शान्त करनेवाला उपाय | अवताड़नम् ( न० ) कुचलन | रुधना | कुचरना । २ मारण। ग्राघातकरण । अवतान: ( पु० ) १ फैलाव | २ झुके हुए धनुष को | यवद्य ( वि० ) १ अधम पापी निन्य । १ सीधा करने की क्रिया | ३ ढक्कन या पर्दा । अवतारणं ( न० ) उतरवाने की क्रिया । २ अनुवाद । ३ किसी भूत प्रेत का श्रावेश ४ पूजन शृङ्गार ५ भूमिका । उपोद्धात । ध्यवदातः ( पु० ) चितरंगा सफेद या पीला रंग । ध्यवदानं ( न० ) १ पवित्र या शास्त्र विहित वृत्ति । २ सम्पादितकार्य | ३ शूरता या गौरवपूर्ण कोई कार्य । शूरता। वीरता । ४ टुकड़े टुकड़े करने की क्रिया । ५ किसी अनौसी कहानी का कोई दृश्य । वारणम् ( न० ) १ चीरन । फाइन। विभाजित करण | खुदाई। टुकड़े टुकड़े करने की किया। २ कुदाल । लकड़ी का फावड़ा । श्रवदाहः (पु० ) गर्मी । उष्णता | जलन । प्रदीर्ण (व० कृ० ) विमुक्त | टूटा हुआ | भग्न | २ पिघला हुआ। ३ हड़बड़ाया हुआ हुआ। दः (पु० ) १ दोहन | दुहना । भटका [ पय | २ दूध गर्हित। त्याज्य । निकृष्ट । कुत्सित 1 (०) अपराध | दोष । त्रुटि । २ पाप । दुष्टकर्म | ३ कलंक | भर्त्सना । अवद्योतनम् (न०) प्रकाश । प्रवधानम् ( न० ) १ मनोयोग | २ मनोयोगता । संलग्नता | सावधानी । । [1] अवधारः (पु०) ठीक ठीक निश्चय थंधेज बंदिश । अवधारण ( वि० ) १ सीमा वद्ध करने वाला। बंधेज बाँधने वाला। अवधारणम् (न०) १ निश्चय | २ डढकरण प्रमाण सं० श० कौ० - १३ अवधि अवधि: ( स्त्री० ) १ सीमा । हड़ | पराकाष्टा । २ निर्धारित समय । मियाद | काल घटकाव । ४ नियुक्ति | ५ किस्मत | डिवीज़न | जिला | विभाग | ६ रन्ध | गढ़ा। [ करना। अवधीर ( धा० पर० ) अवहेला करना । बेइज्जत अवधी (न०) अशापूर्वक बर्ताव करने की क्रिया अवधीरणा (स्त्री० ) बेइजती। असम्मान । हार प्रवधूत ( व० क्रि० ) १ हिलाता हुआ । लहराता हुआ । २ खारिज किया हुआ | अस्वीकृत | घृणा किया हुआ |३ अपमानित किया हुआ । नीचा दिखलाया हुआ। ( प्रवधूतः ( प्र०) त्यागी। संन्यासी । प्रवधूननं ( न० ) १ हिलाने की क्रिया । लहराने की क्रिया । २ घबड़ाहट। कपकपी । अवध्य (वि० ) पवित्र | मौत से बरी । अवध्वंस: ( 50 ) त्याग । उत्सर्ग | २ चूर्ण धूल । ३ असम्मान । भर्त्सना । कलङ्क | ४ बुरकाने की क्रिया । अवनं (न. ) १ रक्षण | बचाव १२ प्रसन्नकारक । हर्षप्रद | ३ इच्छा | कामना। ४ हर्षं । सन्तोष । अवनत ( ३० कृ० ) १ झुका हुआ । भुकाये हुए । प्रवनति ( स्त्री० ) सुकाव । २ अस्त होने की क्रिया । ३ प्रणाम । डंडोत ४ ( धनुष की तरह ) झुकने की क्रिया । ५ नम्रता । शील । अवनद्ध ( व० कृ० ) १ बना हुआ | २ खुर्सा हुआ। गड़ा हुआ। बना हुआ। बंधा हुआ। जुड़ा हुआ। अवनद्धम् (न० ) ढोल । ध्रुवनम्र (वि० ) झुका हुआ। नवा हुआ । ष्यवनयः अवनायः (पु०) नीचे को गिराने की क्रिया । २ नीचे उतरने की क्रिया अधःपात करने की क्रिया । श्रवनाट (वि० ) चपटी नाक वाला । अवनामः (go ) झुकाव २ झुकाने की क्रिया | पैरों पड़ने की क्रिया १८ प्रवनिः } ( स्त्री० ) १ भूमि । पृथ्वी जमीन प्रवनी २ नदी । – ईशः, ईश्वरः, नाथः, -पतिः, - पालः, (पु०) राजा नरेश भूपाल । -चर, (वि० ) पृथिवी पर भ्रमण करने वाला। ) अवमास आवारा । तलं. ( न ) ज़मीन की सतह धरातल ।-मण्डलं, (न०) भूगोल । -रूहः- टू, ( पु० ) वृक्ष | पेड़ ! अवनेजनं ( न० ) १ प्रचालन | मार्जन २ श्राद्ध की वेदी पर बिछे हुए कुशों पर जल सींचने का संस्कार | ३ पाय | पैर धोने के लिये जल धोने के लिये जल । अवंतिः, अवन्तिः ) ( स्त्री० ) २ उज्जयिनी या अवंती, व्यवन्ती ) उज्जैन का नाम २ एक नदी का नाम । ( पु० ) और बहुवचन में ) मालवा प्रदेश का तथा उस देश के निवासियों का नाम । अवंध्य (वि० ) उर्वर । उपजाऊ । जो उसर श्रवन्ध्य न हो । अवपतनम् ( न० ) नीचे गिरने की क्रिया | उतरने की क्रिया । अवपाक (वि० ) बुरी तरह पकाया हुआ। अवपातः (पु० ) नीचे गिरने की क्रिया। अधःपात | २ उतार | ३ छिद्र | गढ़ा| ४ विशेष कर वह गढ़ा जो हाथियों को पकड़ने के लिये खोदा जाता है। अवपातनम् (न०) ठोकर लग कर गिरने की क्रिया । ठुकराना। नीचे गिराने की क्रिया पात। अवपत्रित ( वि० ) जातिभ्रष्ट । जाति बिरादरी से खारिज । अवपीड: ( पु० ) १ दवाव । २ एक प्रकार की दवाई जिसे सूधने से छींकें आती हैं। [ वाली वस्तु । अवपीडनं (ज० ) खाने की क्रिया । २ छौंक लाने अवपीडना (स्त्री० ) उत्पात | खण्डन । भञ्जन | श्रवबोध: ( पु० ) १ जागना जाग उठना । २ ज्ञान | ३ सूक्ष्म विवेचना। दिवेक | मतामत | ४ उपदेश । सूचना | प्रवबोधक ( न० ) वाह्यवस्तु का ज्ञान ज्ञान | वोधकः सूर्य २ भाट | बंदीजन ३ शिक्षक | प्रवबोधनम् ( न० ) ज्ञान | प्रतीति । अभंग: 2 ( पु० ) नीचा दिखलाने की क्रिया । अवभङ्गः } जीतने की क्रिया परास्तकरण | अवभासः (पु०) १ चमक दमक प्रकाश २ ज्ञान । अवबोध । ३ दर्शन | प्राकव्य । ३ दैवज्ञान | ४ स्थान पहुँच ५ मिथ्या ज्ञान भ्रम | अथमासक अवभासक ( वि० ) तेजोमय अवभासकम् ( न० ) परमात्मा । परब्रह्म [टेढ़ा | अवभुग्न ( वि० कृ० ) झुका हुआ | मुड़ा हुआ । अवभृथः (पु० ) १ यज्ञान्त स्नान । २ मार्जन के लिये जल । ३ यज्ञानुष्ठान विशेष, जो प्रधान यज्ञ की त्रुटियों की शान्ति के अर्थ किया जाता है। -स्नानम् (न० ) यज्ञान्त स्नान | अवः ( पु० ) बलपूर्वक या चुरा छिपा कर ( किसी मनुष्य का ) हरण | भगा ले जाने की क्रिया अवट (वि० ) चपटी नाक वाला । अवम् (वि० ) १ पापी । २ तिरस्करणीय क्षुद्र ३ कमीना | अधःपतित | अपकृष्ट | ४ अगला । परमघनिष्ट । सम्पूर्ण । ५ अन्तिम । ( उम्र में ) सब से छोटा | अवमत ( ३० कृ० ) असम्मानित किया हुआ । अंबज्ञात । थवमानित | निन्दित । –अङ्कुशः मदमत्त हाथी जो अङ्कुश को कुछ भी ( पु० न माने । अवमतिः (स्त्री०) १ अवमानना । अवज्ञा | अवहेला । २ घृणा | श्रवाङ्गमुखता । अवमर्दः (पु० ) १ कुचलन । २ बर्बादी | नाश । जुल्म । अत्याचार । अवमर्शः ( पु० ) स्पर्श । संसर्ग | वर्षः (पु० ) १ विचार | थन्वेषण | खोज । २ किसी नाटक के ५ प्रधान भागों या सन्धियों में से एक। विमर्श | “पत्र मुख्यफलोपाय उद्भिन्ने गर्भप्तोऽधिकः । शाषा: चान्तरायद ऽवमर्प इति स्मृतः ॥ - साहित्यदर्पण ३६६ ३ आक्रमण करने की क्रिया । अवर्षणम् ( न० ) १ असहिष्णुता । असहन शीलता । २ मिटाने की क्रिया स्मृति से नष्ट कर देने की क्रिया । अवमानः ( पु० ) असम्मान | तिरस्कार । अवहेला । अवमाननम् ( न० ) अवमानना ( स्त्री० ) } यसम्मान ती। अवमानन् ( वि० ) अवहेलना किया हुआ । असम्मानित । बेज्जत 1. अवरतिः अवमूर्धन् (चि०) सिर झुकाये हुए । –शय. (वि०) श्रधा मुँह कर लेटा हुआ। अवमोचनम् (न०) मुक्तकरण रिहा करने की क्रिया । स्वतंत्र करने की क्रिया | छोड़ देने की क्रिया । ढीला कर देने की क्रिया । ध्यवयवः (पु० ) भाग हिस्सा एक अंश | ऐसे शरीर का एक अंग २ अंश । ३ न्यायशास्त्रानुसार वाक्य का अंश पांच माने गये हैं। यथा १ प्रतिज्ञा, २ हेतु, ३ उदाहरण ४ उपनय और ५ निगमन । ] ४ शरीर । ५ उपादानीभूत । अवयवशः (वि० ) ( अव्यया० ) हिस्सा हिस्सा कर के अलग थलग । टुकड़ा टुकड़ा । [ याला । | यवयषिन् ( वि० ) अवयव वाला । अंशों या भागों प्रवयवी (वि०) १ सम्पूर्ण समष्टि समूचा । अंगी । जिसके और बहुत से ध्रुवश्व हो । अवर (वि० ) १ ( अवस्था या उम्र में ) छोटा | ( समय में ) पिछला, बाद का। पिछाड़ी का । २ एक के बाद दूसरा ३ नीचे | अपेक्षाकृत निचला अपकृष्ट हीन ४ तुच्छ । गयाबीता | धमाधम ५ ( प्रथम का उल्टा ) अन्तिम । ६ सब से कम ( परिमाण में ) । ७ पाश्चात्य | -अर्धः, ( पु० ) १ कम से कम भाग कम से कम | २ दो समान भागों में से पिछला आाधा भाग | ३ शरीर का पिछला भाग–अवर, ( वि० ) सब से नीच | सब से अपकृष्ट । उक्त, ( वि० ) अन्तिमवर्णित -ज, (वि० ) ( उम्र में ) अपेक्षाकृत छोटा ।-अः, (पु० ) छोटा भाई। -जा, ( स्त्री० ) छोटी बहिन । - वर्ण, (चि० ) हीन जाति वाला। -वर्ण: ( पु० ) १ शुद्ध । २ चतुर्थ या अन्तिम वर्णं-वर्णकः- वजः, (पु० ) शुद्ध चतः ( पु० ) सूर्य -शैलः, (पु०) पश्चिम का पहाड़ जिसके पीछे सूर्य होता है। अस्ताचल | ध्यवरम् (न० ) हाथी की जांघ का पिछला भाग । अवरतः (अन्यथा० ) पीछे पीछे की ओर | पीछे का पिछला । [ विश्राम । प्रवरतिः ( स्त्री० ) १ विराम | समाप्ति २; आराम । श्रवण सवरीण ( वि० ) गिरा हुआ। अधः पतित । घृणित निन्ध | [ बीमार | (०) १ टूटा हुआ | फटा हुआ । २ रोगी । अवरुद्धिः ( स्त्री० ) १ रोक थाम । रुकावट २ घिराउ | ३ उपलब्धि प्राप्ति अवरूप (वि० ) बदशक्क । बदसूरत कुरूप । अवरोचकः ( पु० ) भूख का नाश । अवरोध: (पु०) १ रूकावट | २ समय | ३ अन्तःपुर । हरम। जनानखाना। ४ समष्टिरूप से किसी राजा की रानियाँ । यथा- "शवरोधे महस्पषि ( १०० प्रववरकः । अवलक्षः (पु० ) सफेद रंग | [ हुआ। अवलन (वि० ) चिपटा हुआ सटा हुआ छूता अवलग्नः ( पु० ) कमर कटि देह का मध्यभाग | अवलम्बः ( वि० ) १ नीचे को लटकता हुआ । २ आश्रित | ३ श्राश्रय । शरण | ५ थुनकिया सहारा देने वाली लकड़ी। अवलम्बनम् ( न० ) १ धुनकिया | सहारा । २ सहा- [ हुआ। सना हुआ। अवलिप्त (व० कृ.) १ अभिमानी। क्रोधी | २ पोता अवलीढ ( व० कृ० ) १ स्त्राया हुआ | चवाया हुआ। २ चाटा हुआ । छुआ हुआ ३ भक्षित | नष्ट किया हुआ। यता | मदद | ध्यवरोहणम् (न०) १ उतार गिराव। पतन | २ चढ़ाव । अवर्ण ( वि० ) १ रंग रहित । २ बुरा | कमीना । अवर्णः ( पु० ) १ बदनामी कलङ्क धन्वा । आरोप । इलज़ाम । धिकार । अवलक्ष (वि०) सफेद उज्ज्वल । इसी अर्थ में "वलक्ष" भी आता है। + रामायण | ५ घेरा हाता। बंदीगृह । ६ छेक । मुहासिरा । ७ उढोना ८ कटहरा ६ लेखनी । क़लम । १० चौकीदार । ११ खुखला। गह्वर । अवरोधक (वि०) रोकने वाला। घेरा डालने वाला। अवरोधकः ( पु० ) पहरेवाला । रक्षक | अवरोधकम् (न० ) प्रतिबन्धक । घेरा हाता । अवरोधनम् ( न० ) १ छेक | मुहासिरा | २ रुका- वट ३ अड़चन | रोक । ४ अन्तःपुर | जनानखाना । अवरोधिक (वि० ) रुकावट डालने वाला । अवरोधिकः ( पु० ) जनानी ड्योढ़ी का दरबान ! अवरोधिका (स्त्री० ) अन्तःपुरवासिनी महिला । प्रवरोधिन् (वि० ) १ श्रवृचन डालने वाला । रुकावट डालने वाला । २ घेरा डालने वाला। ध्यवरोपणं ( न० ) उखाड़ डालने की क्रिया | २ नीचे | अवलेपनम् ( न० ) १ उतारने की क्रिया | ३ ले जाने की क्रिया । वचित करने की क्रिया। घटाना २ तैल । तेल । ४ अभिमान | अवरोहः ( पु० ) उतार | काल । २ बेल जो वृक्ष की जड़ से फुनगी तक लिपटी होती है। ३ स्वर्गं । आकाश । ५ वट की डाली। थवलीला (स्खी०) १ खेलकूद | हर्ष | २ अवमानना । अवहेला । तिरस्कार । ( वि० ) अनायास । आसानी । अवलुंचनम् ) ( न ) १ काट डालने की क्रिया | उखाड़ अवलुञ्चनम् । डालने की क्रिया नोंच डालने की किया। २ जड़ से उखाड़ डालने की क्रिया यवलुंठनम् ) ( न० ) 8 ज़मीन पर खुड़कन या अवलुण्ठनम् ) लोटने की क्रिया | २ लूट । प्रवलेख: (पु० ) १ तोड़न | २ खरोचन | छीलन । लेखा ( स्त्री० ) १ रगड़न । २ किसी व्यक्ति को सुसज्जित करने की क्रिया | अवलेपः (पु० ) अभिमान । क्रोध | २ जबर दस्ती। बरजोरी आक्रमण | अपमान ३ पोतने की क्रिया | ४ आभूषय | ५ ऐक्य | सङ्ग । पोतने की क्रिया | सानना । उबटन ३ ऐक्य | मेज | व्यवलेहः ( पु० ) चाटने की क्रिया | २ (सोम जैसा) अर्क। चटनी माजून अवलोकः ( पु० ) १ देखन | २ नज़र | दृष्टि | अवलोकनम् ( न० ) १ देखने की क्रिया | देखभाल । २ जाँच पड़ताल। निरीक्षण | ३ दृष्टि | नेत्र | ४ चितवन टा कित (व० कृ० ) देखा हुआ । अवलोकितम् (न० ) दृष्टि | चितवन । छटा अववरकः ( पु० ) १ छिद्र | रन् | २ की। विषाद अववाद: पु० ) १ भर्त्सना | २ विश्वास | भरोसा । ३ अवहेलना अपमान ४ समर्थन | बचाव। २ बदनामी ६ धाज्ञा । . । I प्रवत्रश्चः ( पु० ) खपाची चिपटी किरच वज्ञ (वि०) स्वतंत्र | भुक्त | २ जो पालतू न हो। अवज्ञाकारी । नाफरमाबरदार मनमुखी | स्वेच्छा- चारी | ३ जो किसी का वशवर्ती न हो । ४ असं- यमी । इन्द्रियदास | ५ परतंत्र | शक्तिहीन [ स्वेच्छाचारी | अवगः ( पु० ) जो दूसरे के कहने में न हो। अवशातनम् (न०) नाशकरण काट गिराने की क्रिया। बापुरा | २ मुरझाने की क्रिया | सूख जाने की क्रिया । अवशेष: ( पु० ) बचा हुआ। शेष बानी । 1 २ समाप्त । अवश्य (वि०) १ जो वश में होने योग्य न हो। प्रशास नीय | २ अवश्यम्भावी ३ अनिवार्य । श्रावश्यक | -पुत्रः (पु०) ऐसा पुत्र जिसको पढ़ाना था अपने वश में रखना सम्भव न हो । अवश्यं (अव्यय०) सर्वथा | ज़रूर | निस्सन्देह । निश्चय कर के। -भाविद् ( वि० ) ज़रूर होने वाला। जो टल न सके। आवश्यक (वि० ) आवश्यक | अनिवार्य | [ तुषार | व्यवश्या ( स्त्री० ) कोहर । पाला। ओस । हिम यः (०) फोहारा ! ओस । पाला | हिम तुषार । २ अभिमान । घमंड अवश्रयणम् (न० ) किसी भी वस्तु को आग से निकालने की क्रिया । व्यवष्टब्ध ( ३० कृ० ) अवलम्वित पकड़ा हुआ। घिरा समीप हुआ । २ ऊपर लटकता हुआ । निकट । पास 8 रुका हुआ । कुका हुआ | ५ बंधा हुआ । गसा हुआ । अष्टम्भः (पु० ) सुकने की क्रिया | सहारा लेने की किया। २ सहारा । ३ क्रोध | घमंड | ४ खंभा ५ सुवर्ण ६ आरम्भ। प्रारम्भ । ७ ठहरने की किया। एकजाने की क्रिया सङ्कल्प | लकवा मूर्च्छा । अचेतना | साहस दृढ़ सहारा लेने की किया संमा ।

( न० ) १ २ सहारा देने की किया अवसित अष्टम (वि० ) [ स्त्री० अवटुम्भमयी 1 सुनहली । सुनहला । सोने का बना अथवा खंभे के बराबर लंबा | [२ संग | संस्पर्शित | व्यवसक्त ( व० कृ० ) १ लटकता हुआ । स्थापित । व्यवसयिका ( स्त्री० ) १ अरदावन | श्रदवाइन । २ पिडुरियों और घुटनों में बांधने की पट्टी | ३ पटटी। श्रवसंडीन ) ( न०) पक्षियों का गिरोह बाँध कर अवसण्डीनम् ) ऊपर से एक साथ नीचे की ओर उड़ते हुए आना । अवसथः (पु०) १ वासा । डेरा | आवादी २ गाँव | ३ पाठशाला। विद्यालय --- यः (पु.) विद्यालय | पाठशाला । अव (व० कृ० ) १ निमज्जित । अवनत । २ समाप्त | ३ रहित | खोया हुआ | अवसर (पु०) १ मौका समय । २ अवकाश । फुर- सत | ३ वर्षं । ४ वृष्टि | ५ उतार | ६ निजीरूप से परामर्श लेने की क्रिया । प्रवसर्गः ( पु० ) १ ढीलापन | छुड़ाव | २ स्वेच्छा - नुसार कार्य करने की अनुमति देने की क्रिया ३ स्वतंत्रता । प्रवसपंः ( पु० ) जासूस । भेदिया। पुलची। राज- प्रतिनिधि । अवसर्पण (न०) नीचे उतारने की क्रिया : अधोगमन | अवसादः ( पु० ) १ निमज्जन | मूर्च्छा | बैठना । २ नारा | हानि |३ समाप्ति । ४ थकावट ५ हार। व्यवसादक ( वि० ) मुद्रित करने वाला । असफल करने वाला उदास करने वाला। थकाने वाला। अवसादनम् ( न० ) ३ अवनति | हानि । २ अत्या चार | ३ समाप्ति | 1 व्यवसानम् ( न० ) १ रुकावट : २ समाप्ति । उप- संहार | ३ मृत्यु | रोग | ४ सीमा | हृह् । ५ विराम ठहराव ६ स्थान | विश्रामस्थाम | आवासस्थान | यवसाय: ( पु० ) १ अन्त समाप्ति । २ अवशिष्ट । ३ सम्पूर्णता ४ सङ्कल्प । निर्णय । व्यवसित ( १० कु० ) १ समास पूर्ण २ प्र जाना हुआ समस्या हुआ ३किय ( १०२ ) अवसेक हुआ। दर्यात किया हुआ । ४ एकत्र किया हुआ। जमा किया हुआ । ५ नस्थी किया हुआ | बंधा हुआ। अवसेक (०) छड़काव | सिंचन । अवसेचनम् (न०) १ सींचने की किया। पानी देने की 1 क्रिया २ रोगी के शरीर से पसीना निकालने की क्रिया। ३ रक्त निकालने की क्रिया । अवस्कन्दः ( पु० ) ) १ आक्रमण | हमला | २ अवस्कन्दनम् ( न० ) ) ऊपर से नीचे उतरने को क्रिया े ३ शिविर | छावनी | [ करते हुए। व्यवस्कन्दिन (वि० ) आक्रमण करते हुए बलात्कार वर (पु० ) विष्ठा २ गुझाङ्ग ( यथा लिङ्ग गुदा योनि ) ३ बुहारन। बटोरन । श्रवस्तरणम् ( न० ) बिछौना । 1 अवस्तात् (अव्यया० ) १ नीचे | नीचे से नीचे की ओर २ तले अवस्तार ( पु० ) १ पर्दा | २ कनात | ३ चटाई अवस्तु ( न० ) १ तुच्छ वस्तु | २ असलियत नहीं । अवास्तवता | - व्यवस्था ( स्त्री० ) १ दशा हालत अवस्थिति । समय । काल । २ स्थिति | ३ आयु । उम्र चतुष्टयम्, ( न० ) मनुष्य जीवन की दशाये- [ यथा -१ बालव, २ कौमार, ३ यौवन, ४ वार्धक्य | ] -त्र्यं, (न०) वेदान्तदर्शन के अनुसार मनुष्य की तीन दशाएं [ यथा -१ जागृत, २ | स्वप्न, ३ सुषुप्ति। ] - द्वयं, (न० ) जीवन की दो दशाएँ (यथा-सुख और दुःख) व्यवस्थानं ( न० ) १ स्थिति रहायस २ स्थान ३ आवसस्थल । बसने का स्थान ४ ठहरने की अवधि । व्यवस्थायिन् (वि० ) ठहरने वाला। बसने वाला। रहने वाला । अवस्थित ( ० ० ) १ रहा हुआ । ठहरा हुआ । २ दृढ़ | ३ अवलम्वित । टिका हुआ । अवस्थितिः ( स्त्री० ) १ वर्तमानता । रहाइस | २ डेरा बासा । वयनम् (न० ) शरण। चूने की क्रिया गिरने की क्रिया । प्रवाग्र अवस्रंसनम् ( न० ) नीचे गिरने की क्रिया पात पतन । प्रवहतिः (स्त्री० ) कूटना | कुचरना । अवहननम् ( न० ) १लिका निकालने को धानों का कूटने की क्रिया २ फेफड़े। यावश्यप। स्थानान्तरित "वपण वसाव इनजस्" "अवमनस्फुयुमः- मिताषय | अवहरणम् ( न० ) : हरण करण करण | २ फेंक देने की क्रिया | ३ चोरी। लूट। ४ सपुर्दगी । ५ कुछ काल के लिये युद्ध कार्य बंद कर देने की क्रिया । अस्थायी सन्धि । प्रवहस्तः ( 50 ) हाथ की पीठ | अवहानिः ( स्त्री० ) हानि। घाटा | नुकसान | अवहारः (पु० ) १ चोर | २ शार्क मछली । ३ अस्थायी सन्धि ४ आमंत्रण समन | बुलावा । ५ स्वधर्मस्याग ६ फिर मोल ले लेने की क्रिया । व्यवहारकः ( पु० ) शाकै मछली । अवहार्य ( स० का० कृ० ) १ ले जाने को । स्थानान्तरित किये जाने को। २ अर्थदण्डनीय दण्डनीय ३ फिर मोल लेने योग्य 1 व्यवहालिका ( स्त्री० ) दीवाल | यवहासः ( पु० ) १ मुसक्यान | २ हँसी दिल्लगी। उपहास । अवाहित्था, व्यवहिया (सी० ) | मानसिक भाव का अवहित्थं, अबहित्यम् (न०) ) दुराव । इसकी गणना "संचारी" या व्यभिचारी भाव में है। आकारगुति । अवहेलः (g० ) अवहेलनं ( न० ) ) व्यवहेला (स्त्री० ) अवहेलना (स्त्री० ) | स्कार | अवज्ञा अपमान । तिर- स्कार । अवज्ञा । अपमान । तिर- । व्यवाक् ( अन्यथा० ) १ नीचे की ओर २ दक्षिणी । दक्षिण की ओर ~ ज्ञानं, (न० ) अपमान - भव, ( वि० ) दक्षिणी । --मुख, ( वि० ) [ स्त्री०- मुखी ] नीचे की ओर देखते हुए । २ सिर के बल।-शिरस्, (वि०) नीचे की ओर सिर लटकाये हुए । - | वात ( वि० ) अभिभावक | रखवाला । अवान (वि० ) झुका हुआ । प्रणाम करता हुआ .. भवाचू वा (वि० ) गूंगा | मूक । ( न० ) ब्रह्म । ध्रुवांच ) ( वि० ) १ नीचे की थोर झुका हुआ । वाचे २ अपेक्षाकृत नीचा | ३ सिर के बल | ४ दक्षिणी | (पु० और न० ) ब्रह्म । वाची १ दक्षिण | २ नीचे का लोक । प्रवाचीन | वि० ) १ नीचे की ओर। सिर के बल । २ दक्षिणी | ३ उसरा हुआ। प्रवाच्य (वि०) १ जो कहने योग्य न हो । २ बुरा | ३ | ठीक ठीक या स्पष्ट न कहा हुआ। जो शब्दों द्वारा प्रकट न किया जा सके। --देशः, (पु० ) भग | योनि । ( १०३ ) प्रचित } ( वि० ) झुका हुआ | नीचा । अवाञ्चित विकः ( पु० ) भेड़ । प्रविका (स्त्री० ) भेड़ी | अविकम् ( न० ) हीरा । (स्त्री ) भेड़ । भेड़ी। अविकत्थ ( वि० ) जो शेखी न मारता हो, जो अभि मान न करता हो ! जो अकड़ता न हो। [न हो । अविकत्थनम् (वि०) जो घमंडी न हो, जो अकड़वा अविकल ( वि० ) १ समूचा सम्पूर्ण पूरा तमाम सब । ज्यों का त्यों । २ नियमित | कम से। गढ़बड़ नहीं । अविकल्प (वि० ) अपरिवर्तनशील अधिकल्पः (पु०) १ सन्देह का अभाव । २ निश्चया- स्मक निर्देश या आज्ञा अविकल्पम् (अव्यया० ) निस्सन्देह । निस्सकोच । अविकार (वि० ) जिसमें विकार न हो । जो अपरि वर्तनशील हो । व्यवाण (वि० ) नदी पार करने वाला। वाषट: ( पु० ) उस स्त्री का पुत्र जो उस स्त्री की जाति के किसी पुरुष के ( पति को छोड़ ) वीर्य | से उत्पन्न हुआ हो। द्वितीयेन तुः पिश शर्खयां मजायते । "यवावट" इति रुपातः शूद्रधर्मा स जातितः ॥ अवावन् (पु० ) चोर | चुराकर ले जाने वाला। अविकारः ( पु० ) अपरिवर्तनशीलता । यविकृतिः ( स्त्री० ) परिवर्तन का अभाव । विकार का अभाव । २ (सांख्य दर्शन में ) प्रकृति जो इस संसार का कारण मानी जाती है। श्रविक्रम (वि० ) शक्तिहीन । निर्बल । विक्रमः ( पु० ) भीरुता । डरपोंकपना | कादरता । अवासस् (वि० ) नंगा । जो कपड़े पहिने हुए न हो। | अविक्रिय ( वि० ) अपरिवर्तनशील । ( १० ) घुद्धदेव का नाम । विक्रियम् ( न० ) ब्रह्म । [सम्पूर्ण । वास्तव ( वि० ) [ स्त्री० – अवास्तषी ] १ जो असली न हो । २ निराधार ध्यषिः ( स्त्री० ) १ भेड़ | ( go ) २ सूर्य | ३ पर्वत । अयौक्तिक । श्रविक्षत ( वि० ) जो कम नहीं हुआ। समूचा । अविग्रह ( वि० ) शरीर रहित । अवैहिक | अशरीरी | ब्रह्म की उपाधि । प्रवानः (पु ) श्वास प्रश्वास । अवांतर ) ( वि. ) १ मध्यवर्त्ती | २ अन्तर्गत । अवान्तर) शामिल | ३ गौण | ४ फालतू । विघ्न राजकर जिसमें भेड़ें दी जाती हैं। दुग्धं- दूसं, मरीसं, सोढ़, ( न० ) भेड़ी का दूध –पटः, ( पु० ) भेड़ी का चाम। ऊनी वस्तु । -पादः, ( पु० ) गड़रिया | -स्थलं, ( न० ) भेदों की जगह । एक नगर का नाम । "अविस्थलं" वृक्षं मादी वारणावतम्” अवारः ( ० ) ३ अवार ( प्राप्तिः ( स्त्री० ) प्राप्ति । उपलब्धि । अवाप्य ( स० का० कृ० ) प्राप्त करने योग्य १ समीप का नदीसट । निकट वर्ती नदीतट १२ उस ओर। न० ) ) - पारा, ( पु०) समुद्र ।- पारोण, (वि० ) १ समुद्र का या समुद्र से सम्बन्ध रखने वाला | २ नदी पार करने वाला । -महाभारत | ४ पवन । वायु | ४ ऊनी कंबल । शाल । ६ दीवाल । छार दीवाली | ७ चूहा । ( स्त्री० ) १ भेड़ २ रजस्वलास्त्री । -कटः, ( पु० ) भेड़ों का गिरोह – कटोरणः, ( पु० ) एक प्रकार का | व्यविघ्न (वि० ) विना विनवाधा का । विग्रहः (पु० ) (व्याकरण का ) नित्य समास अविघात ( वि० ) बेरोक टोक बिना अड़चन का। अवित्रम् ( अविनम् ( न० ) विनवाधा से रहित या वञ्चित । ( यह शब्द नपुंसक है, हालौँ कि “विघ्न" पुलिङ्ग है ) “साधयाम्यहमविप्नमस्तु ते " -- रघुवंश । अविष्णमस्तु ते स्येयाः पितेव धुरि पुत्रियां | - रघुवंश । अविचार (वि० ) विचार शून्यता कुविचार | अविचारः ( पु० ) निर्णय का अभाव । अविवेक । अविचारित ( वि० ) विना विचारा हुआ। जिसके विषय में विचारा न गया हो । निर्णयः (पु० ) | पक्षपात पक्षपातपूर्ण सम्मति । अधिचारिन् (वि० ) १ लापरवाह असावधान | अविवेकी । २ फुर्तीला | अविज्ञातृ ( वि० ) अनजानते हुए । अविज्ञातृता ( पु० ) परमेश्वर । प्रविडीनं ( वि० ) पक्षियों का सीधा उड़ान | भवितथ ( वि० ) १ झूठा नहीं। सच्चा | २ कार्य में परिणत किया हुआ । फलरहित नहीं । प्रवितथं ( न० ) सत्य । पारा पारद । [ अनुसार। अवितथं ( अय्यया० ) कुठाई से नहीं सचाई के अवित्यजः ( पु० ) ) अवित्यजम् (न० 15 अविदूर ( वि० ) दूर नहीं। समीप निकट पास । अविरं ( न० ) निकटता सामीप्य | ( अन्यया० ) (किसी स्थान से ) दूर नहीं। (किसी स्थान के ) निकट | अविद्य (वि० ) अशिक्षित अपद मूर्ख अविद्या ( स्त्री० ) १ अज्ञानता। मूर्खता शिक्षा का अभाव । २ आध्यात्मिक अज्ञान । ३ माया । —मय, ( वि० ) अज्ञान से उत्पन्न माया से उत्पन्न | अविधवा (बी० ) जो विधवा न हो। विवाहिता । जी जिसका पति जीवित हो । अधि(०) सम्बोधनात्मक होने पर " सहा- यता करो, सहायता करो" कहने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। १०४ ) अविधेय (वि० ) जो अपने मान का या काबू का न हो। न करने योग्य प्रतिकूल अविवक्षित प्रविनय ( वि० ) धृष्ट ठ उद्दण्ड अविनयः (पु०) १ विगय का अभाव सृष्टता हिठाई। उद्दण्डता । २ अपराध | जुर्म । दोष | ३ अभि मान। थकड़। (०) अवियोग । अविछोह | २ ऐसा सम्बन्ध जो कभी छूट न सके । ३ सम्बन्ध । अविनीत (वि० ) १ दुर्दान्त सरकश २ उद्दण्ड गंधार । [] [[अभङ्ग । समूचा | अविभक्त ( वि० ) १ अविभाजित । सम्मिलित | २ प्रविभाग (वि०) जो बँटा हुआ न हो। अविभक्त । अविभागः ( पु० ) जो बट न सके । २ ऐसी पुश्तैनी सम्पत्ति जो बँट न सके। अविभाज्य (वि० ) जो बँट न सके । I अविभाज्यं ( न० ) वे चीजें जो बटवारे के समय बाँटी नहीं जाती। यथा यस्रं पात्रमलङ्कारं कृतासमुदकं स्त्रियः | योगवे अं प्रचारं च न विभाज्य मथक्षेत ॥ मनु अ० १ श्लो० २१६ अविरत (वि०) १ निरन्तर । विरामशून्य । २ अनिवृत्त । [ श्रजितेन्द्रियस्व । सतत । ( स्त्री० ) १ सातत्य । निरन्तरता । २ असंयतता । अविरल (वि० ) घना । सघन २ संसक्त। धन्यवहित ३ स्थूल खाबड़ | सारवान ४ निरन्तर । अन्यवच्छिन्न मौटा। ऊबड़- लगा हुआ । श्रविरति (वि० ) निरन्तर | अविरलं (अव्यया० ) १ ध्यान से । निरन्तरता से । अविरोधः ( पु० ) १ विरोध का अभाव अनुकूलता । २ सुसङ्गति । अविलम्ब (वि० ) तुरन्त । फौरन । [ फुर्ती । अविलम्बः (पु०) विलम्ब का अभाव | शीघ्रता | अविलम्बम् ( म० ) विना विलम्ब के तुरतफुरत | (अव्यया० ) शीघ्रता से। अविलम्बित (वि०) विना विलम्ब के शीघ्र | तुरन्त । अविलम्बितम् (अव्यया० ) शीघ्रता से | अविला ( स्त्री० ) भेड़ी। अविवक्षित ( वि० ) १ किया गया हो या बोलने या कड़े जाने को न हो। जिसके विषय में इरादा न अपना उद्दिष्ट न हो। २ जो श्रविधिक ( अविविक्त (वि० ) जिसकी खोज न की गयी हो। जो भली भाँति विचारा न गया हो। अविचारित । विवेचनाशून्य | गड़बड़ अविवेक ( वि० ) अविचारी | नादान | विचारहीन | विवेकः ( पु० ) १ विचार का अभाव । नादानी । अज्ञान | २ जल्दबाज़ी । उतावलापन | अविशङ्क (वि० ) निर्भय । निडर । 1 अविशङ्का ( स्त्री० ) भय का अभाव । सन्देह का अभाव। विश्वास भरोसा । विशेषः ( पु० ) ) प्रविशेषं ( न० ) ) [अन्तर या भेद का अभाव । समानता | सादृश्य । विशेषज्ञ ( वि० ) जो भेद या अन्तर न जानता हो । ध्यविष (वि० ) जो ज़हरीला न हो । जो विष न हो। १०५ ) अव्यक्त अवृथा (अव्यया० ) जो वृथा न हो । सफलतापूर्वक । - अर्थ (वि० ) सफल । वृष्टि (दि०) सूखा । वृष्टिः (स्त्री०) मेह का अभाव | अनावृष्टि सूखा। अविशङ्कम् ( न० ) ) विना सन्देह या सङ्कोच विशङ्कन (अव्यया० ) के । योग्य [ विचार । अविशङ्कित (वि० ) १ निःशङ्क | निडर | बेखौफ | अवेक्षा ( स्त्री० ) १ देखना : २ ध्यान। नवरदारी। २ निस्सन्देह । निश्चय । अविशेष (वि० ) विना किसी अन्तर या फ़र्क के प्रवेद्य ( वि० ) १ जो जानने योग्य नहीं। गोप्य २ जो प्राप्त न हो सके। अवेद्यः (पु० ) बछड़ा। समान बराबर सदृश | [ २ कुसमय का । अवेल ( चि० ) १ असीम | जिसकी सीमा न हो। अवेलः ( पु० ) ज्ञान का दुराव प्रवेला ( स्त्री० ) प्रतिकूल समय । अवैध (वि० ) [ स्त्री० – अवैधी ] १ अनियमित । नियम या आईन के विरुद्ध | २ शास्त्रविरुद्ध | अवैमत्यम् (न० ) ऐक्य । एकता अवोणम् (न० ) हाथ टेढ़ा कर पानी छिड़कना । उत्तानेनैव इस्तेन मोक्षणं परिकीर्तितम् । म्यञ्चताभ्यं मोल तिरक्षा" अषोदः ( पु० ) छिड़काव | नम करने की क्रिया अव्यक्त (वि० ) १ अस्पष्ट । जो प्रत्यक्ष न हो। अगोचर । अज्ञेय । ३ | ४ अज्ञात अविषः ( पु० ) १ समुद्र | २ राजा | अविषी (स्त्री० ) १ नदी । २ पृथिवी | ३ स्वर्ग | प्रविषय (वि० ) १ अगोचर । २ अप्रतिपाद्य | अनि- वचनीय | ३ विषयशून्य | अविषयः (पु० ) अनुपस्थिति । अविद्यमानता । २ परे । पहुँच के बाहिर | अवी (स्त्री० ) रजस्वला स्त्री | प्रवीचि (वि० ) लहरों से रहित । अवीचिः (पु० ) नरक विशेष । अवर (वि० ) १ जो वीर न हो । कायर । ढरपोंक। २ जिसके कोई पुत्र न हो । अकाल । अवेक्षक (वि० ) निरीक्षक | दरोगा। इंस्पेक्टर । व्यवेक्षण ( न० ) १ किसी ओर देखना । २ पहरा देना। रखवाली करना। निरीक्षण | ३ ध्यान । खबरदारी । श्री (स्त्री० ) वह स्त्री जिसके न कोई पुत्र ही हो और न पति ही हो । प्रवृत्ति ( वि० ) १ जिसका अस्तित्व न हो। जो हो ही न । जिसकी कोई जीविका न हो। प्रवृत्तिः ( स्त्री० ) १ वृत्ति का अभाव । जीविका का कोई वसीला न होना । २ मज़दूरी का अभाव । अवेक्षणीय ( स० का० कु० ) १ निरीक्षण के योग्य | २ जाँच के योग्य देखने योग्य | परीक्षा के अनुत्प। ५ ( चीजगणित में ) अनवगत राशि - क्रिया ( स्त्री० ) बीजगणित की एक क्रिया । -पद (वि०) वह पद जो ताल्वादि प्रयत्नों से न बोला जा सके। जैसे जीव जन्तुओं की बोली - राग, (वि० ) लाल रंग 1- रागः, ( पु० ) अरुण रंग। -राशिः, बीजगणित में) अनव- गत राशि । – व्यक्तः, ( पु० ) शिव जी की उपाधि । अव्यक्तः (पु० ) १ विष्णु का नाम । २ शिव का नाम | ३ कामदेव | ४ प्रधान प्रकृति | मूर्ख। ● सं० श० कौ०-१४ श्रव्यक्तम् अव्यकम् (न० ) ( वेदान्त दर्शन में ) १ या २ आध्यात्मिक अज्ञानता । ३ ( सांख्य ) सर्व- कारण | ४ जीव। (अव्यया० ) अस्पता से। अव्य (वि० ) १ शान्त २ जो किसी व्यापार में संलग्न न हो। . अव्यंग ) ( वि० ) जिसमें कुछ त्रुटि या कमी न हो। श्रव्यङ्ग भली भाँति निर्मित हद । सम्पूर्ण । श्रव्यंजन प्रव्यञ्जन } { वि० ) १ चिन्हरहित । अस्पष्ट । ध्यव्यञ्जनः ) ( पु०) ऐसा पशु जिसकी उम्र के विचार अव्यंजन से सींग होने चाहिये, किन्तु सींग हों। अव्यथ (वि० ) पीड़ा से मुक्त। अव्यथः ( पु० ) सर्प | सौंप । अन्यधिषः ( पु० ) १ सूर्य । २ समुद्र | अव्यथिषी (स्त्री०) १ पृथिवी | २ अर्धरात्रि | रात्रि । अव्यभिचारः ( १० ) १ अविच्छेद । अविवाह । अव्यभीचारः । अपार्थक्य | २ वफादारी | निसक- इलाली । अव्याहत अव्यवधान ( वि० ) १ समीप का । पास का । सीधा । २ खुला हुआ ३ बेडका हुआ नंगा ४ असावधान अमनोयोगी । । २ जो ध्यय ४ ऐसे फल अव्यवधानम् (न०) सावधानता। अमनोयोगिता | व्यव्यवस्थ ( वि० ) १ जो ( एक स्थान पर ) नियत न हो । हिलने डुलने वाला । अनवस्थित । चञ्चल | अचिरस्थायी । २ अनियमित । १ अव्यवस्था ( स्रो० ) १ अनियमितता । निर्धारित नियम के विरुद्ध आचरण । २ किसी धार्मिक विपय पर या दीवानी मामले में दी हुई अनुचित सम्मति । अव्यवस्थित ( वि० ) १ शास्त्र या पद्धति के विरुद्ध | २ चाल | अस्थिर | ३ क्रम में नहीं। विधिपूर्वक नहीं। अव्यवहार्य (चि० ) १ जो अपनी जाति बालों के साथ खाने पीने और उठने बैठने का अधिकारी न हो। जाति वहिष्कृत २ जिस पर मुकदमा न चलाया जा सके । 4 अव्यभिचारिन् ( वि० ) १ अनुकूल | २ सब प्रकार | अव्यवहित ( वि० ) साथ | लगा हुआ । से सत्य । ३ धर्मात्मा । पवित्र | 8 स्थायी ५ वफादार | अव्यय (वि० ) अपरिवर्तनशील | जो कभी न न हो। सदा एक रस रहने वाला न किया गया हो। ३ मितन्यबी देने वाला ओ कभी नष्टुन हो । अव्ययः (पु०) १ विष्णु का नाम । २ शिव का नाम । अव्ययम् ( न० ) १ ब्रह्म । २ व्याकरण का वह शब्द जिसका सब लिङ्गों, सब विभक्तियों और सब बचनों में समान रूप से प्रयोग हो । अव्याकृत (वि० ) १ श्रमकट २ कारणरूप | अव्याकृतं ( न० ) १ वेदान्त में अप्रकट बीज रूप जगत्कारण अज्ञान २ सांख्यदर्शन में प्रधान १ ईमानदारी। २ सादगी । श्रव्याजः ( पु० ) | अव्याजम् ( न० :} अध्यापक (वि० ) जो व्यापी न हो। जो सब जगह न पाया जाय। १ अक्षधारणक्षम | | श्रव्यापार (वि०) जिसका कोई व्यापार न हो । विना व्यवसाय धंधे का | बेकाम । निठाला | + अव्यापारः ( पु० ) १ कार्य से निवृत्ति २ ऐसा व्यापार जो न तो किया जाय और न समझ में आवे ३ निज का धंधा नहीं। अव्ययात्मा (स्त्री० ) जीव । आत्मा। अव्ययीभावः ( पु० ) १ समास विशेष | यह समास प्रायः पूर्वपदप्रधान होता है । यह या तो | श्रव्याप्ति (स्त्री० ) व्याप्ति का अभाव । २ नव्य न्याया- विशेषण या क्रियाविशेषण होता है | २ अनष्टता | अनाशता ३ व्यय या खर्च का भाव । ( धनहीनता वश ) [कूल प्रिय नुसार लक्ष्य पर लक्षण के न घटने का दोष । 'सीक देशे समवश्यावर्तनमव्याप्तिः " अध्यलोक ( वि० ) झूठा नहीं । सञ्चा | २ अनु अव्याहत (वि० ) १ बेरोकटोक का । अप्रतिरुद्ध | २ जो खण्डित न हो। सत्य । भव्युत्पन्न ( १०७ ) अशोक अव्युत्पन्न (वि०) [१] [अनभिज्ञ | अनाड़ी । अकुशल | | अणित ( ३० कृ० ) खाया हुआ। सन्तुष्ट । उपयुक्त | २ व्याकरण के मतानुसार वह शब्द जिसकी व्युत्पत्ति अथवा सिद्धि न हो सके। संगीन पूर्व में मवेशियों या पशुओं द्वारा नचरा हुआ । २ पशुओं के चरने क स्थान | चरागाह । अशिः (पु० ) १ चोर ३२ चॉवल की बलि । अशिरः ( ० ) १ रिन । २ सूर्य । २ हवा । ४ राक्षस। [ धड़ | कबन्ध | शिरं ( न० ) हीरा । शिरस (वि० ) शिरहीन । ( पु० ) बेसिर का । शिव (वि०) १ अमङ्गलक । अमङ्गलकारी । अशुभ | २ श्रभागा । बदकिस्मत | 4 शिव (न० ) भाग्य । बदकिस्मती । २ उपद्रव अशिष्ठ ( वि० ) १ असाधु दुःशील । अविनीत । उजड्ड । बेहूदा २ शास्त्रसम्मत ३ किसी प्रामाणिक ग्रन्थ में न पाया जाने वाला अव्युत्पन्न: ( पु० ) व्याकरणज्ञानशून्च | (वि० ) जो निर्दिष्ट धम्मोनुष्ठान अतोपवास ! न करता हो। अश] ( घा० आत्म० ) [ अश्नुते, अशित-श्रष्ट ] १ व्याप्त होना । घुसना। परिपूर्ण होना । २ पहुँचना । जाना या आाना । ३ प्राप्त करना | पाना । हासिल करना । उपभोग करना । ४ अनुभव प्राप्त करना ५ खाना । अशकुनः ( पु० ) ) असगुन बुरा शकुन अशकुनम् (न० )} शतिः (स्त्री० ) १ कमज़ोरी । निर्बलता । असम- र्थता । २ अयोग्यता | अपात्रता । अशक्य (वि० ) असम्भव । असाध्य अशंक, अशङ्क, ३ (वि० ) १ निडर । निर्भय । शंकित शत) २ जिसको किसी प्रकार का सन्देह न हो । अशनम् (न० ) १ न्याप्ति फैलाव | २ भोजन करने की क्रिया | खिलाना | ३ चखना उपयोग करना | ४ भोजन । अगना (स्त्री० ) भोजनेच्छा | भूख । प्रशनाया ( स्त्री० ) भूख प्रशनायित ) ( वि० ) भूखा | } । भाला, शनिः (पु० स्त्री०) १ इन्द्र का बज्र | २ बिजली का कौंधा ३ फैक कर मारने का अस्त्र बरछी आदि । ४ ऐसे अस्त्र की नोंक ( पु० ) १ इन्द्र | २ अग्नि | ३ बिजली से उत्पन्न अग्नि अशब्द ( न० ) १ मा १२ (सांख्य में ) प्रधान अशरण ( वि० ) अनाथ | निराश्रय वेपनाह यशरोर: (पु० ) परमात्मा | ब्रह्म | २ कामदेव । ३ संन्यासी । अशरोरिन् ( वि० ) अशरीरी अलैौकिक । अशास्त्र (वि०) १ धर्मशास्त्र के विरुद्ध । २ नास्तिक दर्शन वाला | प्रशास्त्रीय (वि० ) शास्त्रविरुद्ध | (वि० ) जो ठंडा न हो । गर्म | उष्ण - करः, -- रश्मिः, (पु०) सूर्य । अशीतिः ( स्त्री० ) अस्सी । ८० अशोर्षक (वि० ) देखो अशिरस । अशुचि ( त्रि० ) १ जो साफ न हो | मैला | गंदा । अशुद्ध | मृतकसूतक । २ काला । अशुचिः (०) १ अर्पावत्रता | सूतक । २ अधःपात अशुद्ध (वि०) अपवित्र ग़लत | अशुद्धि (वि० ) १ अपवित्र | गंदा | २ दुष्ट | शुद्धिः ( स्त्री० ) अपवित्रता | गंदगी | अशुभ ( चि० ) १ अमङ्गलकारी । अकल्याणकर | २ पवित्र | गंदा | ३ अभागा । [विपत्ति । शुभम् (न० ) 1 अमल २ पाप ३ अभाग्य | अशून्य (वि०) १ जो खाली या रीता न हो । २ परि- पूर्ण पूर्ण किया हुथा। प्रत ( वि० ) विना पकाया हुआ। कच्चा । अनपका | शेष (वि०) जिसमें कुछ भी न बचे । पुर्णं । समूचा । समस्त परिपूर्ण अशेषं, अशेषेण, (०) सम्पूर्णतः । अशेषतः अशोक ( वि० ) शेक रहित । –अरिः, (पु० ) कदंब वृण । -अष्टमी ( श्री० ). चैत्र की कृष्णा अशोकः अष्टमी । तः, नमः, वृत्तः, (पु० ) अशोक वृक्ष । —त्रिरात्रः, – ( पु०) त्रिरात्रम् ( न० ) तीन रात व्यापी व्रत या उत्सव विशेष | अशोकः ( पु० ) १ वृत्त विशेष | २ विष्णु । ३ मौर्य राजवंश का एक प्रसिद्ध राजा । अशोकम् (न० ) १ अशोक वृक्ष का फूल जो कामदेव के पांच सरों में से एक माना जाता है। २ पारा । ( १०८ पारद । शोच्य (वि० ) शोच करने या शेकान्वित होने के अयोग्य | जिसके लिये शोक करना उचित नहीं । अशाचं (न) अपवित्रता | गंदगी| मैलापन | २ जनन या सरण का सूतक अश्नया ( स्त्री० ) भूख । बुभुक्षा । अश्नीतपिवता (स्त्री०) न्योता जिसमें आमंत्रित जन खिलाये पिलाये जाते हैं । “अनोतपितीयन्ती अमृता स्मरकर्मणि ।” --भट्टीकाव्य | अश्मकः ( बहुवचन ) (पु० ) १ दक्षिण के एक देश विशेष का नाम । २ उक्तदेशवासी । अश्मन् ( पु० ) पत्थर | २ चकमकपत्थर । ३ यादल । ४ कुलिश वज्र |-- उत्थं, ( न ) रा। कुछ कुक, (वि० ) पत्थर पर फोड़ी हुई ( कोई भी चीज़ ) 1-गर्भः, ( पु० ), गर्भ, (न०) गर्भजः, (पु०) -गर्भजं, – (न०) योनिः, ( पु० ) पना । —जः, ( पु० ) - जम्, ( न० ) १ गेरू । २ लोहा ।—जतु, - जतुकं, (न० ) राल । - जातिः, ( पु० ) पक्षा-दारणः, (पु०) हथौदा जिससे पत्थर तोड़े जाते हैं । -~-पुष्पं, (न०) राल । -भालं. (न०) पत्थर या लोहे का इमामदस्ता या खरल।सार, ( वि० ) पत्थर या लोहे की तरह। - सारं, ( न० ) – सारः, ( पु० ) १ लोहा | २ पुखराज | नीलमणि । अश्मंतं । ( न०) १ अलाउ वह स्थान जहाँ आग अश्मन्तम् ) जलाकर रखी जाय। २ क्षेत्र । मैदान । ३ मृत्यु | अश्मंतकः, अश्मन्तकः ( पु० ) अश्मंतकम्, अश्मन्तकम् ( न० ) } अलाउ । अग्नि- ) प्रश्व कुण्ड । (पु०) एक पौधे का नाम जिसके रेशों से ब्राह्मणों का कटिसूत्र बनाया जाता है। अश्मरी ( स्त्री० ) पथरी रोग | प्रश्नः (पु० ) कौना । अ (न० ) आंसू | २ रक्त । -पः, ( पु० ) रक्त- पायी। खून पीने वाला। अश्रवण (वि० ) बहरा। जिसके कान न हों। अश्रवणः ( पु० ) सर्प सौंप । अश्राद्धभोजिन् ( वि० ) ऐसा ब्राह्मण जिसने श्राद्धान्न न खाने का व्रत धारण किया हो। प्रश्रान्त ( वि० ) १ जो थका हुआ न हो । अथक । २ लगातार निरन्तर ( अव्यया० ) लगातार रोस्या | निरन्तर रीत्या अ) ( स्त्री० ) १ कोना । कोण | २ किसी श्री हथियार का वह किनारा जो पैना होता है। किसी भी वस्तु का पैना किनारा । प्रश्रीक ) ( वि० ) १ जिसमें चमक या सौन्दर्यं न अश्रील) हो। पीला | २ श्रभागा । जो समृद्धि - शाली न हो । अधू] ( न० ) आँसू - उपहत (वि० ) आँसूओं से भरा हुआ । -कला, ( स्त्री० ) आँसू की बूंद-परिप्लुत, (वि० ) आँसुओं से तर | आँसुओं से नहाया हुआ /-पातः, ( पु० ) आँसूओं का बहना |-- लोचन, नेत्र, ( वि० ) आँखों में आँसू भरे हुए। अश्रुत ( वि० ) १ जो सुना न गया हो। जो सुनाई न पड़े। २ मूर्ख। अशिक्षित अश्रौत (वि० ) वेदविरुद्ध | अश्रेयस् ( वि० ) अपेक्षाकृत जो उत्कृष्ट न हो । अपकृष्टवर । ( न० ) उपद्रव । दुःख लील ( वि. ) १ अप्रिय कुरूप २ गँवारू । फूहर भद्दा असभ्य | ३ कुवाथ्य | [ गलौज । अलीलम् ( न० ) फूहर वोलचाल । बुरी गाली अश्लेषा ( स्त्री० ) १ नव नचत्र | २ धनमिल। अनैक्य -जः, –भूः, - भवः, ( पु० ) केतुग्रह का नाम । अश्वः (०) १ घोड़ा । २ सात की संख्या ३ मानवी जाति विशेष ( जिसमें घोड़े जितना बल अश्वीय होता है)।-प्रजनी, (स्त्री०) चातुक | कोड़ा। -अधिक, (वि० ) जो घुड़सवारों की सेना में हो । जिसके पास घोड़े अधिक हों अध्यक्षः, (पु०) घुड़सवारों की सेना का कमाण्डर । -अनीकम्. ( न० ) घुड़सवारों की सेना | - अरिः, (पु० ) भैसा। - आयुर्वेदः, (पु०) साल- होत्र | - आरोहः ( पु० ) घुड़सवार। उरस, ( वि० ) घोड़े की तरह चौड़ी छाती वाला । - कर्णः, -कर्णकः ( पु० ) १ वृक्षविशेष | २ घोड़े का कान । -कुटी, ( स्त्री० ) अस्तबल । कुशल, कोविद, ( वि० ) घोड़ों को वश में करने की कला में कुशल |–खरजः, ( पु० ) खच्चर । -~-खुरः, (पु० ) घोड़े का खुर। गोष्ठं, ( न०) अस्तबल 1 -- घासः, (पु०) घोड़े का चारा । -चलनशाला, (स्त्रो०) घोड़े घुमाने कास्थान | - चिकित्सकः, वैद्यः, (पु०) सालहोत्री /-- साईस । – वाहः, - वाहकः, (पु०) घुड़सवार | -विदु, ( वि० ) घोड़ों को पालने और उनको चाल आदि सिखाने की कला में कुशल । ( पु० ) १ घोड़ों का सौदागर । २ राजा नल की उपाधि | -वृषः, ( पु० ) बीज का घोड़ा। वह घोड़ा जो घोड़ियों को ग्याभन करता हो । वैद्यः, (५० ) सालहोत्री ~~शाला, (स्त्री०) अस्तवल। तबेला । -शावः, (पु० ) घोड़ी का बछेड़ा।-शास्त्र (न०) सालहोत्र विद्या |-शृगालिका, (स्त्री०) स्यार और घोड़े की स्वाभाविक दुश्मनी । - सादः, - सादिन. (पु० ) घुड़सवार। सैनिक घुड़सवार | - सारथ्यं ( न० ) रथवानी। सारथीपन 1- स्थान, (वि० ) अस्तबल में उत्पन्न :- स्थानं, ( न०) अस्तबल । तबेला । -हृदयं, (न०) १ घोड़े की इच्छा या इरादा । २ शहसवारी । (वि० ) घोड़े की तरह । चिकित्सा, (स्त्री०) सालहोत्र । - जघनः, (पु०) | अश्वकः (०) १ | भाड़े का टट्टू । २ बुरा घोडा । ३ साधरणतः घोड़ा । वकिनी ( स्त्री० ) अश्विनी नक्षत्र | पौराणिक अघोटकाकृति अद्भुत मनुष्य - नायः, (पु०) घोड़ों का समूह | घोड़ों को चराने वाला 1- निबंधिकः, (पु०) साईस -पालः, - पालकः, - रतः, (पु०) घोड़े का साईस- बन्धः, (पु०) साईस-भा, (स्त्री०) बिजुली - महिषिका, (स्त्री०) घोड़े और भैसे की स्वाभा- विक शत्रुता । -मुख, (वि०) घोड़ेजैसा मुख या सिर वाला /-मुखः, (पु०) किन्नर 1-मुखी, (स्त्री०) किन्नरी /- मेघः, (पु०) यज्ञ विशेष जिसमें घोड़े का बलिदान दिया जाता है।- मेधिक, -मेधीय, ( वि० ) अश्वमेध यज्ञ के योग्य या (पु० ) [ स्त्री०-यश्वतरी ] खच्चर । अश्वत्थः ( पु० ) पीपल का पेड़ । अश्वथामन् (पु० ) यह द्रोण का पुत्र था। इसकी माता का नाम कृपी था । महाभारत के युद्ध में यह कौरवों की ओर से पाण्डवों से लड़ा था । यह सप्तचिरजिवियों में से एक है। अश्वस्तन ) (वि०) १ आने वाले कल का नहीं । अश्वस्तनिक | आज का | २ एक दिन के व्यवहार के लिये अनादि संग्रह करने वाला। अश्विक ( वि० ) घोड़ों से खींचा जाने वाला 1 अश्विन ( पु० ) चाबुक सवार - नौ, ( द्विवचन ) उससे सम्बन्ध रखने वाला । – युज, ( वि० ) ( गाड़ी ) जिसमें घोड़े जुते हों - रपः (पु० ) घोड़े का देवताओं के वैद्यों का नाम । सवार या साईस । – रथा ( स्त्री० ) गन्धमादन पर्वत के निकट बहने वाली एक नदी का नाम /- रक्षं, (न० ) – राजः, ( पु० ) सर्वोत्तम घोड़ा । घोड़ों का राजा अश्वः ( १०३ ) जाला ( स्त्री० ) सर्प विशेष | - वक्त्रः, (१०) किचर या गन्धर्व ।–वडवं, (न०) तबेला । अस्तबल, जहाँ घोड़े घोड़ी रखी जाँय !-वहः, (पु०) घुड़सवार। वारः, -वारकः, ( पु० ) चाबुकसवार । अश्विनी ( स्त्री० ) २७ नक्षत्रों में प्रथम । एक अप्सरा जो सूर्य की पत्नी मानी गयी है और जिसने घोडी बनकर सूर्य के साथ मैथुन करवाया था। कुमारौ, -पुत्रौ-सुनौ, (द्विवचन) सूर्यपत्नी अश्विनी के दो जुल पुत्र | अश्वीय (वि० ) घोड़ों का | घोड़ों से सम्बन्ध रखने वाला। घोड़ों के अनुकूल अश्वीय ( न० ) घुड़सवारों का एक दस्ता । [डी] ( वि० ) छ: नेत्रों से न देखा हुआ | अर्थात् जिसे केवल दो पुरुषों ने जाना हो या जिस पर केवल दो पुरुषों ने विचार कर कुछ निश्चय किया हो । अषडीएम् (न० ) गोप्य गुप्त अषाढ (पु०) पाठ मास । अटक (वि० ) आठ भागों चाला । अठगुना । (पु०) जिसने पाणिनी व्याकरण के आठ ग्रन्थ पढ़े हों। अष्टकम् (२०) १ आठ भागों से बनी हुई समूची कोई वस्तु । २ पाणिनो के सूत्रों के ग्राठ अध्याय । ३ ऋग्वेद का भाग विशेष | ४ किन्हीं श्राठ वस्तुओं का एक समुदाय । ५ आठ की संख्या । अटका ( स्त्री० ) १ तीन दिवसों का समुदाय, ७मी, ८मी, हमी २ पौष, माघ और फागुन की कृष्णाष्टमी | ३ श्राद्ध जो उक्त तिथियों को किया जाता है। ( ११० ) अशङ्गः (N०) } चौपड़ की विद्धांत । अन् (वि०) आठ संख्या – अह, ग्रहन (वि०) आठ दिन तक होने वाला । - कर्णः, (वि०) आठ कानों वाला । ब्रह्मा की उपाधि । - कर्मन्. (पु०) -गतिकः ( पु० ) राजा जिसे प्रकार के कर्त्तव्यों का पालन करना पड़ता है वे आठ कर्म यह हैं :- प्रादाने व बिसमें तथा मैपनिषेपयोः । पने पार्थवचने व्यवदारस्य चेक्षते । दरडोः सदा रक्त तेसको नृपः | -कृत्वस ( अन्यया० ) आठगुना – कोणः, ( पु०) आठ पहलू या ग्राउकोना । - गुण, (वि०) आठगुना-गुणम् (न०) आठ प्रकार के गुरु जो ब्राह्मण में होने चाहिये। वे आठण ये हैं :-- दया सर्वभूतेषु शंति, धन्यूया, शौचं, बनायास: मङ्गलस्, खकार्यपयस, खरदा, चेति॥ -गौतम । -चत्वारिंशत् (बी०) (=अष्टचत्वारिंशत) ४८ अड़तालीस । - तय, ( वि० ) अठगुना | अष्टमक - त्रिंशत, ( वि० ) ३८ | तीस | – त्रिकं, ( न० ) २४ की संख्या /दलं, ( न० ) आठदल का कमल – दिशू, ( स्त्री० ) आठ दिशाएं |– दिक्पालाः, (पु०) आठों दिशाओं के अधिष्ठाता । आठ दिपाल ये हैं :- इन्द्रो बन्दः पवित् दुबेर ईशः पतयः पूर्वादीनां दिशां क्रमात् ॥ धातुः ( पु० ) सोना, चाँदी, तांबा, रांगा, सीसा, लोहा, यशद रस (पारा ) 1-पदः, (अष्टापदः) ( पु० ) १ मकही । २ शरभ | ३ कील । कांटा। ४ कैलास पर्वत – पदं (अशपदम् ) ( न० ) १ सुवर्ण । २ वस्त्र विशेष । मङ्गलः, ( पु० ) घंदा जिसका मुख, पूंछ, अयाल, छाती और खुर सफेद हों। - मङ्गलबू ( न० ) आठ माङ्गलिक द्रव्यों का समुदाय । वे आठ ये हैं :- मृगराज यो नागः कलशो व्यजनं तथा । वैजयन्ती तथा मेरी दीप दस्यमङ्गलम् । स्थानान्तरे - लोकऽस्मिन्मङ्गलान्यष्टी व झो गोर्जुनाशनः । हिरपयं सर्पदरादित्यायो रामा तामः ॥ -मूर्तिः, (पु०) शिवजी की उपाधि । -रत्नः, आटरत्न |-- रसाः, ( बहुव० ) नाट्य शास्त्र के अाठरस। यथा । रहायक चोर भवानकाः | षोभटप्स द्रुतमन्त्री चेत्यष्टी नाट्य रखाः स्मृताः । -विध, ( वि० ) आठप्रकार | - विंशतिः, (स्त्री०, २८ अट्ठाइस - श्रवणः - श्रवस् (५०) चारमुख और आठकानों वाले ब्रह्मा जी । अष्ट (वि) आठ भाग या आठ अवयच वाला। अयम् (न० ) आाठ का औसत । अधा (अन्य ) आठ गुना | आठ बार आठ प्रकार से आठ भाग में । म (वि०) आठवाँ अष्टमः ( पु० ) आठवाँ भाग अष्टमी (स्त्री० ) चान्द्रमास का थाठवाँ दिवस पत की आठवीं तिथि । मक (वि० ) आठवाँ । यशमसकंदरेत् | यशवस्त्रय || अष्टमिका नष्टमिका ( स्त्री० ) चार तोले की तौल विशेष | दशन् (वि० ) अठारह / --उपपुराणम् ( न० ) अठारह उपपुराण जिनके नाम ये हैं - शादा समस्कुद रोक्कं नारसिंहमतः परं । तृतीयं बाद कुआरे तुभाषितम् । चतुर्थ शित्रचनख्य साक्षान्नन्दोश भाषितम् । दुर्वासातमा नारदोक्तमतः परम् । कापिलं मानवं चैव तयैवोशनसेरितं । ब्रह्माण्ड वारण चाथ कालिकाहयमेव च । माहेश्वरं तथा शांव और सर्वार्थस् । पराश नवरं तथा भागवतद्वय । इदनादर्श मोक्तं पुरः कर्मसंचित | चतुर्धा सस्थितं पुण्यं संदितानां प्रभेदतः । - हेमाड़ी | -पुराणं, (न०) १८ पुराण जिनके नाम ये हैं:- १ ब्राह्म, २ पाझ, ३ विष्णु, ४ शिव, ५ भागवत, | ६ नारदीय ७ मार्कण्डेय, ८ अग्नि, ६ भविष्य, १० ब्रह्मवैवर्त ११ लिङ्ग १२ बराह, १३ स्कन्द, १४ वामन, १५ कौर्म, १६ मत्स्य, १७ गरुड़ १८ ब्रह्माण्ड। -विद्या, ( स्त्रो० ) १८ प्रकार की विद्याएं या कलाएं | यथा - अंगानि वेदाचारी मीमांसा न्यायविस्तरः | धर्मशा पुराणं विद्या सताश्चर्तुदश । धनुर्वेद गान्धर्वश्चेति ते त्रयः अर्थशास्त्रं चतुर्थ तुवादशैव तु । अष्टि: (स्त्री० ) १ खेल का पांसा | २ सोलह की संख्या । ३ योज | ४ छिलका । छाल अष्टीला (स्त्री०) १ कोई गोल वस्तु | २ गोल पत्थर या स्फटिक । ३ छिलका | छाल | ४ बीज का अनाज । प्रसङ्ग असंसृष्ट (वि० ) जो मिश्रित न हो। जो संलग्न न हो । बटवारा होने के बाद फिर जो शामिलात में न रहे। ध्यस् (धा० पर · ) [ अस्ति, आसीत, अस्तु, स्यात् ] होना, जिंदा रहना । ( कोई बात का ) होना लेना। जाना। पैदा [ बद्ध न हो। असंस्थित (बि० ) १ जो व्यवस्थित न हो। अनिय- मित । २ एकत्रित नहीं। प्रसंस्थितिः ( स्त्री० ) गड़बढ़ी | घालमेल । असंह (वि० ) जो जुड़ा न हो। जो मिला न हो । बिखरा हुआ । [ या जीव । असंहतः (पु० ) सांख्य दर्शन के अनुसार असकृत् (अन्यथा० ) एक बार नहीं बारंबार । अक्सर । – समाधिः बारंबार की समाधि था ध्यान । -गर्भवासः ( पु० ) बारंबार जन्म | असक्त ( वि० ) १ जो किसी में सक्त न हो। २ फला- भिलाष से रहित । सांसारिक पदार्थों से विरक्त असतं ( अध्यया० ) १ किसी में विशेष अनुराग न रखते हुए । २ निरन्तर | सतत । असक्थ (वि० ) जिसके जंघा न हो । सखिः (स्त्री० ) शत्रु । विरोधी । | सगोत्र (वि० ) जो एक गोत्र या कुल का न हो। संकुल | १ (वि०) जहाँ बहुत भीड़ भाड़ न हो। असङ्कुल ) २ खुला हुआ । साफ । चौड़ा ( मार्ग ) असंकुल: } (पु०) चौड़ा मार्गं । असङ्कलः प्रसंख्य (वि० ) गणना के परे जिसकी गणना म हो सके । [ संख्यावाला । असंयमः (दु०) संयम का अभाव । रोक का न होना । | प्रसंख्येय (वि० ) अगणित । संख्यातीत । असंख्यात (वि० ) अगणित संख्यातीत अन असंयत ( वि० ) संयम रहित । क्रमशून्य। जो नियम यह इन्द्रियों के विषय में प्रयुक्त होता है। संख्येयः (पु०) शिव जी की उपाधि विशेष | असंशय ( दि० ) संशयरहित । निश्चित | [ न पड़े || श्यसंग ( ( वि० ) १ अननुरक्त । सांसारिक या लौकिक असंभव ( वि० ) जो सुनने के परे हो। जो सुनाई ध्यसङ्ग बंधनों से मुक्त । २ अनवरुद्ध । जो मौयराम असस्कृत (वि० ) १ विना सुधारा हुआ अपरि भाजित | २ जिसका संस्कार न हुआ हो। व्रात्य । असंस्कृतः (पु० ) व्याकरण के संस्कार से शून्य | अपशब्द । बिगड़ा हुआ शब्द | संस्तुत ( वि० ) १ अज्ञात अपरिचित । २ असा- धारण विलक्षण । संस्थान (न० ) १ संयोग का अभाव | २ गड़बड़ी ३ अभाव | कमी । असग हो । ३ अनमिल। ४ एकान्त आक्रमण न किया हुआ । ( ११२ ) असंगः ( पु० ) १ चैराग्य | २ पुरुष या जीव । अङ्गः ) असंगत ) ( वि० ) १ अयुक्त | सङ्गविवर्जित । २ भवनीय विषम । ३ गँवार । अशिष्ट । असंगति ) ( स्त्री० ) १ सङ्गति विहीन | २ मेल प्रसङ्गति का न होना । असंबन्ध । वेसिलसिला- पन | ३ अनुपयुक्तता | ४ एक काव्यालङ्कार | इसमें कार्य कारण के बीच देश काल सम्बन्धी अयथार्थता दिखलाई जाती है। असंगम असङ्गम ( वि० ) जो मिला हुआ न हो । असंगमः ( ( पु० ) पार्थक्य | विवाह अनैक्य । प्रसङ्गमः २ असंलग्नता । चमेल । असंगिन् ) ( वि० ) १ जो मिला हुआ } यस संसार से विरक्त । असंज्ञ (वि० ) संज्ञाहीन । सूचित । असंज्ञा (स्त्री० ) अनैक्य | विरोध | भगढ़ा टंटा। असत् (वि० ) १ न होना या अस्तित्व का न होना । २ अनस्तित्व | अवास्तविकता | ३ बुरा || खराब । ४ दुष्ट। पापी। दूषित । ५ तिरोहित । ६ ग़लत | अनुचित । मिथ्या | झूठा । ( न० ) १ अनस्तित्व असत्ता | २ मिथ्या | झूठ | असती (स्त्री० ) जो सती या पतिव्रता न हो - अध्येतु ( वि० ) शाखारण्ड ब्राह्मण । जो अपने वेद की शाखा को छोड़ अन्य वेद की शाखा पढ़े । असम ( वि० ) बुरे नेत्रों वाला । बुरी दृष्टि वाला !-- परित्रहः, ( पु० ) बुरे मार्ग का ग्रहण | -- प्रतिग्रहः (पु०) कुदान | बुरा दान। जैसे ते तिल श्रादि 1- भावः ( पु० ) १ अविद्य- मानता असत्ता । २ सम्मति | दुष्ट स्वभाव । -वृत्तिः ( स्त्री० ) १ मीच कर्म या पेशा | २ दुष्टता । - संसर्गः (पु० ) बुरी संगत। असतायो (स्त्री०) दुष्टता असत्ता (स्त्री० ) १ अनस्तित्व | २ असत्य । ३ दुष्टता | बुराई । असत्व (वि० ) शक्तिहीन सत्ता रहित । सत्वं (न० ) १ अनवस्थान | २ अवास्तविकता | असत्य । असत्य (वि० ) १ झूठा । २ कल्पित । अवास्तविक --सन्ध, (वि० ) अपने वचन को पूरा न करने वाला। झूठा दगाबाज़ धोखेबाज़ | असत्यः (पु०) मिथ्यावादी क्रूठ बोलने वाला । अयं ( न० ) झूठ | मिथ्या असदश ( वि० [ स्त्री० - असदृशी ] १ असमान । बेमेल | २ अयोग्य | अनुचित असधसू (अन्यया० ) तुरन्त नहीं। देर करके। देरी से । यस (पु० ) इन्द्र । ( न० ) रक्त | खून | असन (वि० ) फैकते हुए | छुड़ाते हुए। असन्दिग्ध (वि० ) १ सन्देह रहित । निस्सन्देह । स्पष्ट साफ । २ विश्वस्त । असन्दिग्धम् (अव्यया० ) निश्चय | निस्सन्देह । ( वि० ) १ जो मिले या जुड़े ( शब्द ) न हो । २ जो बन्धन में न हो। स्वतंत्र | असंनद्ध (वि०) १ जो इथियारों से सुसज्जित न हो । २ पण्डितंमन्य | अनिकर्षः (पु० ) १ दूरी | २ समझ के बाहिर | प्रसंनिवृत्तिः ( स्त्री० ) न लौटौच | न लौटने की क्रिया | न हो २ स्वशाखां यः परय अभ्यत्र कुरुते भस् । शाखारपः स विधेयो वर्जयेतं क्रियासु च ॥ -आगमः, ( पु० ) १ विरुद्ध मतावलम्बी । २ बेईमानी से ( धन को ) हथियाना । ३ बेई मानी । - प्राचार (वि०) बुरे आचरण वाला । दुष्ट । आचारः (०) दुष्ट | पतित | कर्मन्, किया, (स्त्री०) १ बुरा काम | २ दुर्व्यवहार । -ग्रहः, - ग्राहः, (५०) १ बुरी चालबाजी | २ बुरी राय | पंचपात ३ वच्चों जैसी अभिलाषा असभ्य ( वि० ) गँवार उजड्डू | नाशाइस्ता । चेष्टितम् ( न० ) हानि | चोट । - द्वश. | असम ( वि० ) १ विषम | २ असमान | बेजोड़ | असपिण्ड (वि० ) जो सपिण्ड न हो । जो अपने वंश था कुल का न हो जो अपने हाथ का दिया पिंड पाने का अधिकारी न हो। ( -सायकः ( पु० ) कामदेव की उपाधि । काम देव के पास पांच वाणों का होना माना गया है। -लोचन, - नयन, नेत्र (वि० ) १ विषम- संख्यक नेत्रों वाले । २ शिव जी की उपाधि | असमंजस ) ( वि० ) १ अस्पष्ट अबोधगम्य असमञ्जस } ३ यात मूर्खतापूर्ण । असमायिन ( वि० ) जो सम्बन्ध युक्त या परंपरा गत न हो। थाकस्मिक पृथक् होने योग्य - कारणम्, (न०) न्याय दर्शन के अनुसार वह कारण जो द्रव्य न हो, गुण वा कर्म हो। समस्त (वि० ) १ असम्पूर्ण | थोड़ा सा । पूरा नहीं । २ ( व्याकरण में ) जो समासान्त न हो। ३ पृथक् । अलहदा असम्बद्ध । [ अधूरा | असमाप्त ( वि० ) जो समाप्त न हो । अपूर्ण । असमीदय (वि०) विना विचारा हुआ।-कारिन्, ( वि० ) विना विचारे काम करने वाला। असम्पत्ति (वि० ) ग़रीब । धनहीन । असम्पत्तिः ( स्त्री० ) १ धनहीनता । ग़रीबी । २ दुर्भाग्य बदकिस्मती । ३ असफलता । यसम्पूर्णता । सम्पूर्ण ( वि० ) १ जो पूरा न हो। अधूरा । २ समूचा नहीं। ३ थोड़ा थोड़ा। कुछ कुछ | असम्बद्ध (वि० ) १ जो परस्पर सम्बन्ध युक्त न हो । बेमेल । २ बेहूदा । वाहियात । जिसका कुछ अर्थं न हो। ३ अनुचित | ग़लत | असम्बन्ध (वि० ) बेमेल । सम्बन्ध रहित । सम्बाध ( वि० ) १ जो सङ्कीर्ण न हो । प्रशस्त । चौड़ा | २ जो मनुष्यों की भीड़भाड़ से भरा न हो। एकान्त । ३ खुला हुआ। जहाँ हरेक की गम्य हो । असम्भव ( वि० ) जो सम्भव न हो । जो हो न सके। नामुमकिन । ११३ ) असम्भव्य ( वि० ) १ नामुमकिन । अस म्भव । २ अबोधगम्य सम्भावना ( स्त्री० ) सम्भावना का अभाव | अभवितव्यता । अनहोनापन । असाघनीय असम्भृत (वि० ) १ जो बनावटी उपायों से न लाया गया हो ! जो बनावटी न हो । नैसर्गिक । प्रक- त्रिम | सहज । २ जो भली भाँति पाला पोसा न गया हो । [ २ अनभिमत | विरुद्ध । असम्मत (वि० ) १ जो पसंद न हो। नापसंद । अतः (पु०) वैरी विरोधी (चतुदोषैरसम्मतान्) ~~आदायिन, (वि० ) चोर | असमातिः ( स्त्री० ) १ सम्मति का अभाव | विरुद्ध मत या राय । २ नापसंदगी । अरुचि । असम्मोहः ( पु० ) १ मोह का या भ्रम का अभाव । २ दृढ़ता । शान्ति । चित्त की स्थिरता । ३ वास्त- विक ज्ञान । असम्यच् (वि ) [ स्त्री० -असमोची ] s खराब । कुरिसत । अनुचित । अयुद्ध | २ असम्पूर्ण अचूरा | असलम् ( न० ) १ लोहा । २ किसी अस्त्र को छोड़ते समय पढ़ा जाने वाला मंत्र विशेष । ३ हथियार । सवर्ण (वि० ) भिन्न जाति या वर्ण का । असह (वि० ) असह्य । जो सहा न जाय । जो बरदाश्त न हो। [ ईर्ष्या । (वि०) असहिष्णु । ईर्ष्यालु । डाही । असहन: ( पु० ) शत्रु । बैरी । असहनम् (न० ) असहनशोलता । असन्तोष असहनीय प्रसहितव्य जो सहन न किया जा सके। प्रसह्य असहाय (वि० ) १ मित्रशून्य एकान्ती। अकेला । २ विना साथी संगी या सहायक का [अगोचर । साक्षात् (अव्यया० ) जो नेत्रों के सामने न हो । प्रसाक्षिक (वि० ) [ स्त्री०–प्रसाक्षिकी ] जिसका कोई गवाह न हो। असाक्षिन ( वि० ) १ जो चश्मदीद गवाह न हो । २ जिसकी गवाही प्रमाण स्वरूप ग्रहण न की जाय । ३ जो किसी प्रामाणिक पत्र को प्रामाणित करने का अधिकारी न हो। प्रसाधनीय असाध्य ( वि० ) १ जो साध्य न हो। जिस 5 पर वश न चले । सिद्ध न होने योग्य । २ जो ठीक न हो। सं० श० कौ०-१५

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असाधारण । असाधारण ( वि० ) असामान्य । अपूर्वं । विलक्षण | असाधारणः (०) न्याय में सपर और विपक्ष | यसाधु (वि०) १ जो साधु न हो | अप्रिय । २ ३ असभ्यरित्र । ४ अपभ्रंश अशुद्ध । असामयिक (वि० ) [ सी० --असामयिकी, ] वे अवसर का। बिना समय का बेवक्त का। असामान्य ( वि० ) आसाधारण । विलक्षण । अपूर्व । ) यसु लोकों में उत्पन्न होता है।-पत्र, (न०) सलवार की धार।पुच्छ, पुच्छकः, (४० ) सूँस संगमाही ।-पुत्रिका – पुचो, (स्त्री०) पुरी। --मेदः, (४० ) सड़ा हुआ खविर /-हत्यं, (२०) छूरी या तलवार की लड़ाई 1-हेतिः, (g० ) तलवार चलाने वाला तलवार यहा- असामान्यं ( न० ) विलक्षण या विशेष सम्पत्ति | साम्मत (वि० ) अयोग्य अनुचित । अयुक्त । कालान्तर । [ साम्तम् ( अव्यया० ) असार ( वि० ) १ सारहीन अनुचित २ व्यर्थ योग्यता से। | रूप से । निकम्मा | ३ जो लाभदायक न हो। ४ निर्बल | कमज़ोर | १ वेशरूरी हिस्सा। अनाव- एक अंश २ रेंदी का पेड़ । ३ ऊद या अगर की लकड़ी असारता (श्री०) १ सारहीनता। निस्सारता | तत्व- [ का भाग। असिकं ( म० ) निचले ओठ और ठुड्डी के बीच असिक्की ( ० ) १ अन्तःपुर की युवती परिचारिका या दासी २ पंजाब की एक नदी का नाम । अलका ( स्त्री० ) युवसी दासी । असित (बि०) जो सफेद न हो। काडा। श्रम्वुजं, -उत्पलं, (न० ) जील कमल (अर्चिस्, ( पु० ) अनि । -अश्मन् (पु० ) - उपलः, ( पु० ) कालोहानीला पत्थर ।---केशा, (स्त्री०) काले बालों वाली - गिरिः, (स्त्री० ) नगः, ( पु० ) नीलपर्वत । पर्वत विशेष | -श्रीव, ( वि० ) काली गर्दन वाला। -प्रीवः, ( पु० ) अ1ि-~नयन, (वि० ) काले नेत्रों वाली 1- पक्षः, (पु० ) अंधियारा पाख ।~फलं, (न०) मीठा नारियल :--मृगः, ( पु० ) काला हिरन । कृष्णमृग असारः ( पु० असारं ( न० - शून्यता | २ निरर्थकता। तुच्छता । ३ मिथ्याव असाहसं ( न० ) वेग या प्रचण्डता का अभाव । सुशीलता। असिः ( पु० ) १ तलवार । २ धुरी जो जानवरों | असितः (पु० ) १ काला या नीला रंग | २ कृष्ण पक्ष | ३ शनिग्रह ४ काला सौंप । " को हात करने के लिये इस्तेमाल की जाती है। गण्डः, (पु० ) छोटा तकिया जो गालों के नीचे रखा जाता है।-~जीविन्, { वि० ) तल- चार के फर्म से आजीविका करने वाला। -~-दंष्ट्रक:, ( पु० : मगर घड़ियाल १-दन्तः असिता ( स्त्री० ) १ नील का पौधा | २ कन्या जो अन्तःपुर में रहती है और जिसके बाल अधिक | प्रसिद्ध (वि०) १ जो सिद्ध अर्थात् पूरा न हुआ हो। होने पर भी सफेद नहीं होते)। ३ यमुना नदी । २ अधूरा अपूर्ण ३ अप्रमाणित | ४ कथा | अनपका ५ जिसका परिणाम कुछ न हो । ( ५० ) मगर । घड़ियाल ( स्त्री० ) तलवार की धार । नक 1-धारा. धारावतं, ( न० ) १ किसी किसी के मतानुसार एक व्रत विशेष, जिसमें तलवार की धार पर खड़ा होना पड़ता है। २ अन्य मतानुसार युवती स्त्री के साथ सदैव रह कर भी उसके साथ मैथुन करने प्रसिद्धः ( 50 ) न्यायानुसार हेतु के तीन दोष ये तीन दोष ये हैं-~~याश्रयासिद्ध स्वरूपासिद्ध । न्याप्यतासिद्ध । की इच्छा को रोकना । (आलं०) कोई भी असाध्य या असम्भव कार्य। - धावः, - धावकः, (पु०) सिगळीगर हथियार साफ करने वाला । -धेतुः, धनुका (श्री०) छुरी चुरा ।-पत्रः, (पु०) १ ऊख । ईख । गन्ना । २ वृक्ष विशेष जो अधो- असिद्धिः ( स्त्री० ) : अप्रासि अनिष्पत्ति । २ कच्चा- पन | कचाई ३ अपूर्णता सिरः ( पु० ) १ किरण | २ तीर । ३ चटखनी । असु ( म० ) दुःख | शोक 1 - भङ्गः ( पु० ) १ जोवन का नाश । २ जीवन की आशा या असु भय भुतूंं. ( पु० ) जीवधारी । प्राणी! सम, (वि० ) प्रायोपम /- समः, ( पु० ) पति । प्रेमी । प्रस्त. असूतिः (स्त्री०) १ वामपन | वंजरपन | २ अड़चन | स्थानान्तरितकरण | असूयति ( क्रि० परस्मै०) १ डाह करना। ईर्ष्या करना । २ अप्रसन्न होना । नाराज होना तिरस्कार सुः (पु० ) स्वांस । जीवन । आध्यात्मिक जीवन | २ मृतात्माओं का जीवन ३ (बहुवच मान्त ) प्राणादि पांच वायु करना । प्रसुमत (वि० ) जीवित । स्वांसयुक्त । ( पु० ) १ प्राणधारी । जीवधारी । २ जीवन | असुख (वि० ) दुःखी। शोकाकुल । २ ( जिसका पाना ) सहज नहीं। कठिन | असुखम् (४०) दुःख शांक पीड़ा-जीविका, ( स्त्री० ) दुःखमय जीवन । अयक ( वि० ) १ ईयज्ञ डाही अपवादरत । कुत्साशील । २ असन्तुष्ट अप्रसन अयनम् (न०) निन्दा अपवाद | २ ईर्ष्या डाह असूया (सी० ) १ डाह ईर्ष्या असहिष्णुता २ निम्दा | अपवाद | ३ क्रोध रोष | अठ्युः (g० ) १ डाही || २ अप्रसन्न व्यसूर्य (वि० ) सूर्यरहित । सूर्यपश्य (वि० ) जो सूर्य को भी न देखे । असूर्यपश्या (खी०) १ सती पतिव्रता श्री | २ राज- · 1 " असुखिन् (वि० ) दुःखी। शोकाकुल । [न हो । प्रसुत ( वि० ) वेधौलाद। जिसके कोई बाल बचा असुरः ( पु० ) १ दैत्य राक्षस दानव । २ भूत ! मेत ३ सूर्य ४ हाथी ५ राहु की उपाधि | ६ बावल-अधिपः, - राज, राजा, (पु०) | १ असुरों के राजा । २ प्रह्लाद के पौत्र राजा बलि की उपाधि प्राचार्यः, गुरुः, (५०) शुक्रा- चार्य | २ शुक्रग्रह आई, (न० ) टीन और ताँबे को मिला कर बनायी हुई धातु विशेष|-- द्विष्, (पु०) असुरों के बैरी। अर्थात् देवता -- रिपुः -सूदनः, (पु०) असुरों का नाश करने वाले । विष्णु भगवान की उपाधि । - हन्. (१०) | १ असुरों को मारने वाला | २ अनि, इन्द्र की | प्रसाद की खियाँ। रजवास की रानियाँ, जिन्हें सूर्य तक के दर्शन मिलना दुर्लभ है। असृजू ( न० ) १ खून : रक्त । लोडू | २ मङ्गलमह । ३ केसर-करः, (५०) रस-धरा (स्त्री०) पर्म चमड़ा। -धारा (श्री०) लोहू की धार। -पः, --पाः, (पु०) राइस रफ पीने वाला । -वहा. (स्त्री० ) रक्तधमनी । नाड़ी। -विमो- क्षणं ( न० ) रक्त का बहना। श्रावः, स्रावः ( पु० ) रक्त का बहना 1 असेवन 2 ( वि० ) अत्यन्त प्रिया जिसे देखते असेचनक देखते कभी जी न भरे । असौष्ठव (वि० ) 3 सौन्दर्य या मनोहरता का अभाव | २ बदसूरत । विकलाङ्ग । उपाधि । ३ विष्णु का नाम । असुरा ( बी० ) १ रात्रि । २ राशिक्षक सम्बन्धी | प्रसौष्ठवम् ( न० ) १ निकम्मापन | गुणाभाव । एक राशि | ३ धेश्या । २ विफलाइता। बदसूरती । अस्खलित (वि० ) १ जो हिले नहीं । स्थिर । असुरी ( वि० ) दानवी | राजसी । असुर की स्त्री । श्रसूर्य (चि० ) असुरों का असुरसा (स्त्री० ) पौधे का अनेक जातियाँ। यासुरी। नाम स्वायी। २ बेचुटीला | ३ सावधान। की असुलभ (वि० ) जो सहज में न मिल सके। सुसूः ( पु० ) तीर याद । असुहृद् (पु० ) शत्रु | बैरी यस्ता (न० ) बेइज्जती । अप्रतिष्ठा | [ बंजर | मसूत असूतिक } { वि० ) जिसमें कुछ भी न हो । म अस्त ( ० ० ) : फेंफा हुआ डाला हुआ। त्यागा हुआ छोड़ा हुआ । २ समास | ३ भेजा हुआ करुण, (वि० ) दयाहीन । निठुर धी, (वि० ) मूर्ख व्यस्त (वि० ) इधर उधर गड़बड़ 1- संख्य, (वि० ) असंख्य अस्तः ( पु० )अस्ताचल पर्वत । पश्चिमाचमंत्र | २ सूर्य का विपना | ३ बिपना तिरोना अस्तमम पात । हास । -गमनं, ( न० ) १ अस्त होना | अदृष्ट होना | २ मृत्यु | जीवन रूपी सूर्य का अस्त होना । यस्तमनं ( न० ) ( सूर्य का ) डूबना । अस्तमयः (पु० ) १ (सूर्य का) डूबना । २ नाश | अन्त । हास । हानि । ३ पात । घशस्त्र | ४ ग्रसित होना । अस्ति (अव्यया० ) है। स्थिति । विद्यमानता । रहना । –नास्ति (अव्यया० ) सन्दिग्ध कुछ सही कुछ गलत । आगरं, अस्तिवं ( न० ) विद्यमानता। सत्ता अस्तेयं ( न० ) चोरी न करना। अचौर्य । यस्त्यानम् ( न० ) कलङ्क | अपवाद । (न०) फेंक के मारे जाने वाला हथियार, तलवार, बरछी भाला। बाण आदि । श्रगारं, (न०) सिलहखाना | हथियारों का भाण्डार- कण्टकः, (पु० ) तीर बाण । - चिकित्सक, ( पु० ) जर्राह । - चिकित्सा, (स्त्री०) जरांही । -जीवः, -जीविन, ( पु० ) - धारिन, (पु०) सिपाही । - निवारणं, (न० ) अस्त्र के चार को रोकना 1-मंत्रः, (पु० ) किसी अस्त्र के छोड़ने या लौटाने के समय पढ़ा जाने वाला मंत्र विशेष | -मार्जी, मार्जकः, (पु० ) सिगलीगर - युद्धं, (न० ) हथियारों की लड़ाई।– लाघवं, (न०) अस्त्र चलाने का कौशल । -विद्, (वि०) अविद्या का जानने वाला । –विद्या, ( स्त्री० ) - शास्त्रं, (न० ) – वेदः (पु० ) अस्त्रविद्या । -वृष्टिः, (स्त्री० ) अस्त्रों की वर्मा । – शिक्षा, ( स्त्री० ) सैनिक अभ्यास । अस्मिन् (वि० ) अस्त्रों से लड़ने वाला। धनुधर । अस्त्री ( स्त्री० ) १ स्त्री नहीं। २ व्याकरण में पुलिस और नपुंसकलिङ्ग । प्रस्थान ( वि० ) अति गहरा। अस्थानं (न०) १ बुरी या ग़लत जगह । २ अनुचित स्थान | अनुचित वस्तु | अनुचित अवसर | बेमौका ! स्थाने (अव्यया० ) बेमौक़े। कुठौर | ठीक स्थान पर नहीं अयोग्य पदार्थ | अस्मात अथवर (वि० ) चर | हिलने डुलने वाला । जो अचर न हो। जङ्गम अस्थि ( न० ) १ हड्डी २ फल का छिलका या गुठली। –कृत, – तेजस, (पु० ) , सम्भवः, -साः, स्नेहः, (पु० ) गूदा । -जः, ( पु० ) १] गुड़ा | २ वज्र । —तुण्डः, ( पु० ) पक्षी । चिड़िया / – धन्वन, ( पु० ) शिव जी का नाम - पक्षर, ( ० ) १ हड्डियों का पिंजरा । ठठरी। कंकाल। प्रक्षेपः, (पु० ) हड्डियों के गङ्गा या अन्य किसी तीर्थ के जल में डालने की क्रिया 1-भक्षः, ( पु० ) भुक्, हड्डी खाने वाला । कुता । भङ्गः ( पु० ) हड्डी का टूट जाना। -माला, ( स्त्री० ) १ हड्डियों की माला । २ हड्डियों की पंक्ति ।-मालिन्, ( पु० ) शिव जी का नाम 1-शेष, ( वि० ) लटकर हड्डी मात्र रह जाना । —सञ्चयः, ( पु० ) १ शवदाह के बाद जली हुई हड्डियों को बटोरना । २ हड्डियों का ढेर । –सन्धिः, ( स्त्री० ) जोड़ । ग्रन्थि संयोग । पर्व ।- समर्पणं ( न० ) हड्डियों का गङ्गाप्रवाह । - स्थूणः, ( पु० ) शरीर । स्थितिः ( स्त्री० ) दृढ़ता का अभाव । (आलं० ) शिष्टता का अभाव | अच्छे चालचलन का अभाव । घ्यस्थिर ( वि० ) जो स्थायी या दृढ़ न हो । चञ्चल । अस्पर्शनं ( न० ) असंसर्ग | किसी वस्तु का स्पर्श बचाना । अस्पष्ट (वि० ) १ जो साफ़ ( समझने या देखने योग्य ) न हो । २ सन्दिग्ध | [ पतित । अस्पृश ( वि० ) जो छूने योग्य न हो । २ अपवित्र । अस्फुट (वि० ) अस्पष्ट | सन्दिग्ध | अस्फुटं ( न० ) सन्दिग्ध आपण । - फलं, ( न० ) सन्दिग्ध या अस्पष्ट परिणाम | मद (वि० ) श्रात्मवाची सर्वनाम | देहाभिमानी जीव। मैं हम। यस्मदीय (वि० ) हमारा। हम लोगों का। अस्माकं ( सर्व० ) हमारा। अस्मार्त (वि० ) १ जो स्मरण के भीतर न हो। स्मरणातीत कालवाची २ थाईन विरुद्ध | धर्म मस्मृति शास्त्र अर्थात् स्मृतियों के विरुद्ध । जो स्मार्त्त- सम्प्रदाय का न हो । [ भुलकड़पन | यस्मृतिः (स्त्री०) स्मरण शक्ति का अभाव। विस्मृति अस्मि (अव्यया० ) मैं । अस्मिता (स्त्री० ) १ अहङ्कार | २ योगशास्त्रानुसार पाँच प्रकार के क्लेशों में से एक द्रक, द्रष्टा और दर्शनशक्ति को एक मानना अथवा पुरुष (आत्मा) और बुद्धि में अभेद मानना । ३ सांख्य में इसे मोह और वेदान्त में इसे हृदयग्रन्थि कहते हैं। अनः (पु० ) १ कोना। कोण । २ सिर के बाल -कण्ठः ( पु० ) तीर ।-अं (न० ) मांस | गोश्त । –पः, ( पु० ) खून पीने वाला राराक्षस । -पा, (स्त्री० ) जोंक /- मातृका, (स्त्री० ) अन्नरस अर्द्धजीर्ण भुक्तद्रव्य | अ ( न० ) १ | २ रक्त । खून | व (वि० ) १ जीवनोपाय विहीन । 11 ( ११७ ) अकिञ्चन | निर्धन | गरीब । २ निज का नहीं । [वश्य । स्वतंत्र (वि० ) १ आश्रित । पराधीन । २ नम्र | अस् (वि० ) जागता हुआ । अनिद्रित । अस्वमः ( पु० ) देवता । [ २ व्यञ्जन | स्वरः ( पु० ) १ मन्दस्वर । धीमी आवाज़ | स्वरं (अन्यथा०) जोर से नहीं धीमी आवाज में। अस्वर्ग्य (वि०) जिससे स्वर्ग की प्राप्ति न हो। अस्वाध्यायः (पु० ) १ जिसने वेदाध्ययन आरम्भ न किया हो । जिसका यज्ञोपवीत संस्कार न हुआ हो । २ अध्ययन में रुकावट । अस्वस्थ (वि० ) बीमार। रोगी। भला चंगा नहीं। स्वामिन् (वि० ) जो किसी वस्तु का स्वामी या मालिक न हो। -विक्रयः, (पु०) बिना मालिक की विक्री । प्रस्वैरिन् (वि० ) परतंत्र । पराधीन | यह (धा०म० ) १ मिल कर गाना | २ बनाना । सकलन करना । ३ जाना। ४ चमकना । यह (अव्यया० ) प्रशंसा; वियोग; दृढ़ सङ्कल्प, स्;ा त्याग, बाधक श्रन्यय । आयु (वि० ) अमिमानी कोषी स्वार्थी रथय अहत (वि०) १ जो इत या चोटिल न हो । कारा | अनथुला हुआ। नवीन | व्यहतं ( न० ) कोरा या अनचुला वस्त्र अन् ( न० ) [ कर्ता - अहः, श्रद्धी-छहनी, अहानि, चहा, अहोभ्यां आदि] १ दिवस ( जिसमें रात भी शामिल है ) २ दिवस-काल । ( समास के अन्त में ग्रहन् का अहः; यहं, या अन्ह जाता है। इसी प्रकार समास के आदि में इसके रूप अहम् या प्रहर होते हैं जैसे ग्रहःपति या अहर्पति | -करः, ( पु० ) सूर्य | गया:, (पु०) १ दिनों का समूह । २ तीस दिन का मास। - दिवं, (अव्यया० ) नित्य प्रति । प्रति दिन दिनों दिन 1 - निश, (अन्यया० ) दिन रात । - पतिः, (पु० ) सूर्य । -बान्धवः, ( स्त्री० ) - मणिः, ( स्त्री० ) सूर्य मुखं, (न० ) दिन का आरम्भ। सवेरा । —शेषः, (पु०) -शेषं, ( न०) सायंकाल | सांझ। शाम । (सर्वनाम) मैं। आत्मसम्बन्धी | २ अभि मान। घमंड अहङ्कार-अधिका, ( स्त्री० ) श्रेष्ठता के लिये होड़ । प्रतिद्वन्द्वता - अहमह शिका, (स्त्री०) १ प्रतिद्वन्द्वता । स्प। ईर्ष्या २ अहङ्कार | ३ सैनिक स्पर्द्धाकारी। कारः, (५०) १ अहङ्कार। आत्महाघा | २ अभिमान | क्रोध । – कारिन्, (वि० ) अभिमानी। थात्मा- भिमानी । आत्मश्लावी । -कृतिः, ( स्त्री० ) । अभिमान । – पूर्व, (वि० ) प्रथम होने की अभिलाषा वाला 1-पूर्विका, - -प्रथमिका, ( वि० ) १ स्पर्धा | प्रतिद्वन्द्वता । २ आत्मलाषा । - भद्रं, (न० ) आत्मश्लाघा ।- भावः, (पु० ) अभिमान । अहङ्कार - मतिः ( स्त्री० ) १ अविद्या अज्ञान । अन्य में अन्य के धर्म को दिखाने वाला ज्ञान । २ लाषा । अभिमान | अहङ्कार । प्रहरणीय | (वि० ) १ जो चुराया न जा सके। हार्य}। जो ले जाया न जा सके । २ भक्त । ३ इढ । असं- कोची स्थिर प्रतिज्ञ | = 4 श्रहृल्य अहल्य (वि० ) अनजुसा हुआ। अहल्या (स्त्री० ) गौतम की पत्नी इसको इसके पति के शाप से भगवान् श्रीरामचन्द्र जी ने मुक्त किया था। - जारः, ( पु० ) इन्द्र -नन्दनः | अहितः (पु० ) शत्रु | वैरी | ( पु० ) सतानन्द ऋषि । अहोकः अहित (वि० ) १ जो रखा न गया हो। जो नियत न हो । २ अयोग्य | अनुचित | ३ हानिकारी | अहितकर | ४ प्रतिकूल ५ बैरी । विरोधी । अ ( अव्यया० ) विस्मय, एवं खेद व्यञ्जक | अहिम ( वि० ) जो ठंडा न हो । गर्म 1- अंशु, सम्बोधन । महार्यः (पु० ) पर्वत । पहाड़। - फरः, – तेजस्, द्युतिः,—रुचिः (पु०) सूर्यं । हीन (वि०) १ समूचा सम्पूर्ण धन्यून २ बड़ा | जो छोड़ा न हो । ३ अधिकार में रखने वाला। जो किसी वस्तु से वञ्चित न हो। ४ जो जातिच्युत या पतित न हो। २ सूर्य ३ राहुग्रह | दग़ावाज | ६ मेघ । ८ भोगी | नीव | हितम् (न० ) हानि । नुकसान । इति । अहिः (g० ) १ सर्प सांप ४ वृत्रासुर: ५ घोलेवाज़ बादल । ७ सीसक १० अश्लेषा नक्षत्र १३ दुष्ट मनुष्य १२ जल । १३ पृथिवी १४ दुधार गौ । १२ नाभि /- कान्त ( पु० ) पवन | हवा । कोषः, (पु०) सौंप की कैखुली।-इत्रकं, (न० ) कुकुरमुता| यहु ( वि० ) सङ्गी| व्यास | - जित्, ( पु०) १ श्री कृष्ण का नाम | २ इन्द्र | ध्रुवः (पु०) शत्रु | बैरी | का नाम :~~तुण्डिकः, (पु०) सांप पकड़ने वाला कालवेलिया ।। महुअर बजाने वाला जादूगर । बाजीगर 1-द्विषू, दुहू, मार, रिपु, विद्विष, (पु०) गरुड़ जी का नाम । २ न्योता । ३ मोर |~~नकुलिका, (स्त्री० ) सर्प और न्योले की स्वाभाविक शत्रुता -निर्माकः (50) - अद्भुत (वि० ) जो हवन न किया गया हो । अद्भुतः (पु० ) ध्यान | स्वव। स्वाध्याय । यहे ( अव्यथा० ) धिक्कार, खेद और वियोग सूचक धव्यय | साँप की कैचुली I~~पतिः, (पु० ) १ सर्पराज | | अहेतुः ( वि० ) अकारण । स्वेच्छापूर्वक । मनमाना । अहेतुक ) (वि. ) 8 बिना कारण के । २ फल की इच्छा से रहित । ३ विना किसी तात्पर्य के। पुत्रका, वासुकी । २ कोई भी बना सर्प | ( पु० ) नाव विशेष | जो सर्प के आकार की होती है । -फेनः ( पु० ) - फैनम् (न० ) अफीम (~-भयं, (न० ) १ किसी छिपे सर्व का भय । २ दग़ा या विश्वासघात का भय मित्र अ ( अभ्यया० ) एक अन्यय जो निम्न भावों का योतक है:- आश्चर्य, शोक, खेद प्रशंसा, स्पर्द्धा, ईर्ष्या, सन्तोष थकावट, सम्वोधन, तिरस्कार। अहिंसा ( स्त्री० ) मन, वच, कर्म से किसी प्राणी को पीड़ा न देना। अहिंस्र (वि०) अहिंसक। जो हिंसा न करे। निर्दोष अधिक (पु०) धंधा सर्प । हीः (पु०) | एक यज्ञ जो कई दिनों तक होता है। श्रहीनं ( न० ) अहीर: ( दु० ) ग्वाला | गौ चराने वाला । अहीर । श्रीराणे ( पु० ) कुचलेड़ | दुमुंहा सौंप से भय । भुज् (पु० ) १ गरुड़ का नाम । - २ मोर | ३ न्योला । नकुल (भृत् (५०) अन्हाय ( अन्यया० ) तुरन्त | तेजी से । फुर्ती से । शिव । अह्वय, ( वि०) निर्लज्ज । अभिमानी । प्राह्नि (वि० ) १ मोटा | २ विषयी | ३ बुद्धिमान ४ कवि । अहोक (वि० ) निर्लज्ज व्यहोकः (वि० ) बौद्ध भिक्षुक ( ११९ ) श्रा श्रा वर्ष माला का दूसरा अक्षर तथा स्वर। यह "अ" का दीर्घ रूप है। आहाँ । अनुमति | सचमुच इसका प्रयोग अनुकंपा, दया, वाक्य, समुच्चय, थोड़ा, सीमा, व्याप्ति, अवधि से और तक के अर्थ में होता है। जब यह क्रिया अथवा संख्यावाचक शब्दों के पूर्व लगाया जाता है, तब यह समीप, सम्मुख, चारों ओर से आदि अर्थ को बतलाता है । वैदिक भाषा में "या" सप्तम्यन्त शब्द के पहले -- में और आदि का अर्थ बतलाता है। याः (पु० ) महादेव । ( स्त्री० ) लक्ष्मी । श्राकथनम् ( न० ) डींग शेखी। बडाई । कम्पः (०) १ थोड़ा हिलाना डुलाना। २ हिलाना 1 कापना । श्रा आकम्पित ) ( वि० ) कम्पयुक्त, काँपता हुआ | आंदो। [ किया। ष्प्राकम्प्र आकत्यं (न०) किसी वस्तु को अपवित्र कर ढालने की आकर: ( पु० ) १ खान । २ समूह | ३ सर्वोत्कृष्ट सर्वोत्तम । [ द्वारा नियुक्त राजपुरुष । आकरिकः ( पु० ) खान की निगरानी के लिये राजा आकरिन ( वि० ) 3 खान से निकला हुआ। खनिज पदार्थ | २ कुलीन | आकर्णनम् (न० ) सुनना। कान करना । आकर्ष: ( पु० ) १ खिचाव | २ तूर खींच ले जाना। ३ ( धनुष को ) तानना। ४ वशीकरण | ५ पाँसे का खेल । ६ पला । ७ चौपड़ की ज्ञानेन्द्रिय ६ कसौटी। [वाला। आकर्षक (वि० ) खींचने वाला । आकर्षण करने आकर्षक: (वि० ) चुम्बक पत्थर | आकर्षणम् ( न० ) १ खिंचाव | २ तंत्र शास्त्र का एक प्रयोग विशेष | आकर्षण (स्त्री० ) लग्गी ऊँचाई से फलफूल पत्ती तोड़ने की लंबी और नोंक पर मुड़ी हुई लकड़ी विशेष । आकर्षिक (वि० ) [स्त्री०आकर्षक] १ चुम्बक पत्थर का २ सींचने वाला। आकाश आकर्षिन (वि० ) खींचने वाला | कलनम् ( ० ) १ पकड़ | २ गणना | गिनती । ३ इच्छा | अभिलाषा | ४ पंछ । ५ समझ आकल्पः (पु० ) १ आभूषण | शृङ्गार 1 सजावट। २ पोशाक परिच्छेद ३ रोग । बीमारी । आकल्पक ( पु० ) १ खेद पूर्वक स्मरण | २ मूर्च्छा | ३ हर्ष या प्रसन्नता । ४ अन्धकार | २ गाँठ या जोड़ । प्राकषः (पु० ) कसौटी। आकषिक ( वि० ) जाँचना । परीक्षा करना आकस्मिक ( वि० ) [ स्त्री-आकस्मिकी ] १ अचानक अकस्मात् । सहसा धाशातीत | आकरण आकारण प्रकरणा आकारणा [ ( कसौटी पर ) २ अकारण | आकांक्षा ( स्त्री० ) १ अभिलाषा | इच्छा | बांछा चाह | २ अभिप्राय सात्पर्य । इरादा ३ अनुसन्धान । ४ अपेक्षा कायः (पु० ) १ चिता की अग्नि । २ चिता । आकार: (पु०) १शक्कु | स्वरूप आकृति । सूरत २ डीलडौल । क़द ३ बनावट संगठन | ४ चेष्टा | ५ सङ्केत १ आमंत्रण | २ ललकार । आकालः ( स० ) ठीक समय । आकालिक ( वि० ) [ स्त्री० - आकालिकी ] १ क्षणिक | शीघ्र नष्ट होने वाली । २ वेफसल की (वस्तु) । आकालिकी (स्त्री० ) बिजली । }} आकाश: ( पु० ) ) १ आसमान । गगन । व्योम | आकाश ( न० ) २ आकाश तत्व ३ शून्य स्थान शून्यता ४ स्थान ५ ब्रह्म । ६ प्रकाश | स्वच्छता - ईश:, (पु० ) १ इन्द्र | २ कोई भी अनाथ व्यक्ति जैसे स्त्री, बालक। जिसके पास आकाश को छोड़ अन्य कोई सम्पत्ति ही न हो। -- कक्षा (०) चकल्प(०) प्रकिचन ( १२० ) आकुटम् ब्रह्म। --गः, ( पु० ) पक्षी (गा, (स्त्री० ) | टिः (स्त्री० ) १ खिंचाव | आकर्षण | २ माध्या आकाशगंगा । -चमसः ( पु० ) चन्द्रमा जनिन्. ( पु० ) खिड़की । भरोसा । दीपः-प्रदीपः, (ए० ) ऊँची बली पर लटका कर जो दीपक कार्त्तिक मास में भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रसन्नता सम्पादनार्थ अलाया जाता है उसे आकाशदीप कहते हैं। -भाषितं, (न० ) किसी नाटक के अभिनय में कोई पात्र जब विना किसी अभकर्ता के आकाश की ओर देख कर आप ही आप प्रश्नकर्त्ता और आप ही उसका उत्तर देता है | तब ऐसे प्रश्नोत्तर को आकाशभाषित कहते हैं। - यानं, (न०) व्योमयान। विमान ऐरोप्लेन । -रक्षिन्, राजप्रसाद की चार दीवाली पर का चौकीदार | वाणी (स्त्री० ) देववाणी । वह वाणी जिसका बोलने वाला न देख पड़े। - मण्डलं (न०) नभमण्डल |~-कटिकः, (पु०) | आक्रमः ( पु० ) कर्पण । ३ ( धनुप का ) टानना । कर (वि० ) अधमुँदा अकोर: ( पु० ) मकर राशि | कन्दः (पु० ) १ रुखन | रोना। चीखना | २ तुलाना आह्वान करना। ३ शब्द । चीन ४ मित्र । कर्ता २ भाई ६ घेोर संग्राम युद्ध ७ रोने का स्थान |८ कोई राजा जो अपने मित्र राजा को अन्य राजा की सहायता करने से रोके । आक्रन्दनम् ( न० ) १ विलाप । रुदन | २ बुलाहट। प्राक्रन्दिक (वि० ) रोने का शब्द सुन रोने के स्थान पर जाने वाला। ३ आकन्वित ( ० ० ) ३ गर्जता हुआ | फूट फूट कर रोता हुआ । २ आह्वान किया हुआ। आकन्दितम् (५०) चिहाहट गर्जन | दहाद। नाद । 11 समीप आगमन | इम्ला । आक्रमणम् (४० ) ) श्राक्रमण । ३ घेरना । कब्ज़ा करना प्राप्त करना। पकड़ लेना । १ श्रोले । आकिंचनं किञ्चनं आकिंचन्यं । -दरिद्रता धनहीनता | ग़रीबी | प्राकिञ्चन्यं, (०० ) बिखरा हुआ फैला हुआ। व्यास | आकुञ्चनम् ( न० ) सिकोइन । मोडून समेदन | करने की क्रिया । फैले हुए केर एकत्र याकुल ( वि० ) परिपूर्ण । २ व्यग्र ४ विह्वल कातर ● व्याप्त | सङ्कल भरा हुआ। व्यस्त ३ उद्दिश क्षुध । अस्वस्थ छाप लेना छा लेना । ६ मारी बोझ से लाद देने की क्रिया । प्राकृतिः (स्त्री०) १ बनावट गठन | ढांचा अवयव विभाग | २ मूर्ति रूप ३ चेहरा मुख ४ चेष्टा २२२ अक्षरों का एक वर्णवृत्त । प्राकृतिकृता ( श्री० ) धौसा नाम की एक लता । कान्त ( ० ० ) १ पकड़ा हुआ । अधिकार में लिया हुधा | २ पराजित | हराया हुआ। छिका हुआ ग्रसित ३ प्राप्त अधिकारमुक्त। आकान्तिः (स्त्री०) १ पदार्पण | रूपना छेकना । २ दबाव । जवि | ऊपर रखना पकडून ३ चढ़न। आगे निकल जाने की क्रिया ४ शक्ति | सामर्थ्य बल। [ करने वाला। प्राकुलं ( न० ) बाबादी आबाद जगह | आक्रमकः ( पु० ) थाक्रमण करने आफुलित ( वि० ) दुःखी। व्यग्र | उहिग्न । विह्वल आक्रोड: ( पु० ) ) १ खेल | आकुणित (वि०) कुछ कुछ सकुड़ा हुआ कुछ कुछ | व्याकीडम् ( न० ) ) [आनन्द | २ सिमटा हुआ | क्रीडावन लीलोयान । रमना । याकृतं ( न० ) १ आशय | अभिप्राय | २ भाव | ३ | आश्चर्य ४ इन्छा वान्छा वाला । हम्ला दिलबहलाव | प्रमोद-कानन । आकुष्ट ( ३० ० ) १ तिरस्कृत । डाँटा खपटा हुआ। निन्दा किया हुआ। धिक्कारा हुआ । २ अकोसा हुआ। शापित | ३ चिलाया हुआ । गर्जना किया हुआ। आक्रुटम् ( न० ) १लावा | बुलाहट । २ मखर शब्द। गाली गलौज भरी हुई वक्तृता या कथन । आक्रोश. आक्रोशः (पु० आकोशनम् (२० 8 पुकार | चिल्लाहट । २ धिकार कलङ्क भर्त्सना | गाली । ३ शाप । अकोसा ४ शपथ । सौगंद। दः (पु० ) नमी | तरी ।। प्राततिक (वि० ) [ स्त्री० --प्राचधूतिकी ] जुए से समाप्त किया हुआ । जुए से उत्पन्न ( विरोध या बैर) (न० ) व्रत उपवास | छोड़ावारी । आक्षपाटिक (पु०) १ जुए खाने का प्रवन्ध कर्ता । जुए की हार जीत का निर्णायक | २ न्यायकर्ता | निर्णायक | ( १२१ ) आक्षपाद ( वि० ) [ स्त्री०- आतपादी ] अक्षपाद या गौतम का सिखलाया हुआ। (०) न्यायशास्त्रवादी नैयायिक आचार: (पु० ) आरोप | अपवाद दोषारोप ( विशेष कर व्यभिचार का ) आख्यात आक्षेपकः (5० ) १ फैकने वाला | २ चित्त विशेष- कारक | ३ आक्षेप करने वाला दोषी ठहराने ३ वाला । ३ शिकारी। पणम् (०) फैकाव उच्चा (पु०) अखरोट का वृक्ष | तारणम् (नृ० ) ) कलङ्क | अपवाद । ( व्यभि आचारणा (श्री० ). धार के लिये ) रोपण | छोट प्रताड : आडनम् (न०) शिकार | आखः, आखनः (पु०) कुदाली । लकड़ी की फावड़ी। आखण्डलः (पु० ) इन्द्र | खनिकः (०) : बेलदार । खानि खोदने वाला । २ चूहा / ३ सूचा | शूकर ४ चोर २ कुदाल । प्रखर (५०) १ कुदाल | २ बेलदार | खानि खोदने वाजा। आखातः ( पु० ) आखातम् ( न० ) हुआ न हो । दोषाः (१०) १ वह जो चारो ओर खेड़दे । २ कुदाल | ३ बेलदार । झील ऐसा जलाशय जो 5 किसी मनुष्य का बनाया ३ शूकर | ४ कुदाल आरित ( ० ० ) १ कललित | वदनाम किया | धातुः (पु० ) १ चूहा घूस हूँ दर २ घोर | २ कंजूस उत्करः, ( पु० ) चल्मीकि । मृतिकाकूट । -उत्थं, ( न० ) चूहों का समुदाय ः-पत्रः- रथः, चाहनः, ( पु० ) श्रीगणेश जी की उपाधि जिनका वाहन चूहा है ।-घातः, ( पु० ) शुद्ध | बोम पाषाण (पु० ) चुम्बक पत्थर |--भुज, -भुजः, ( पु० ) विला। विलार। हुआ। २ दोषी । अपराधी व्यक्षिक (वि० ) [ स्त्री० आक्षिकी ] १ पांसों से जुआ खेलने वाला। २ जुए से सम्बन्ध युक्त । आत्तिकम् ( न० ) १ जुए में प्राप्त धन १२ जुए में किया हुआ ऋण ! आक्षिप्तिका ( श्री० ) वान या राग विशेष जो किसी अभिनयपात्र द्वारा उस समय गाया जाय, जिस समय वह रंगमय के समीप पहुँचे। आतीव (दि० ) 1 थोड़ा नशा पिये हुए । २ मद- माता। नशे में चूर प्रक्षेप: ( पु० ) दूर का फिकाव उछाल खिंचाव अपहरण । २ क्टूक्ति। धिक्कार । कलङ्क | गाली । ताना । प्रगल्भ भर्त्सना । ३ वित्त विशेष | प्रलो- भन । घरोचन १ ४ लगाव । चढ़ाना (रंग जैसे) । | आखोटः (g० ) अखरोट का वृष । विवर। गुफा | आखेटक आखेटकम् (२० )) आखेटकः (go ) शिकारी । ५ किसी ओर सङ्केतकरण । (किसी शब्द का अर्थ ) मान लेना । ६ परिणाम निकाल लेना । ७ अमानत | जमा | धरोहर |८ आपत्ति | सन्देह । ६ ध्वनि | व्यंग्य | आखेटकः ( पु० ) शिकार । अहेर 1- शीर्षक, ( न० ) १ चिकना फर्श या कृमीन । २ खान | (वि० )} शिफार | भृगया । आाख्या ( स्त्री० ) १ नाम | उपाधि | आख्यात (च० कृ० ) १ कथित । कड़ा हुआ । उक्त | २ गिना हुआ है पड़ा हुआ 1.. ३ जाना श०] कौ० आाख्यात ( १२२ ) आगू: हुआ । ज्ञात । ४ ( व्याकरया में ) साधन किया | आगन्तुक (०१त प्रवेशक । विना बुलाये हुआ। धातुओं के रूप बनाये हुए। आख्यातं ( न० ) किया। "भावप्रथानमाख्यात ।" आया हुआ । अनधिकार प्रवेश करने वाला व्यक्ति | २ अपरिचित महमान। अतिथि | नवागन्तुक | ध्यागमः ( पु० ) १ अवाई आगमन श्रमद २ उपलब्धि प्राप्ति । ३ जन्म उत्पत्ति । उत्पत्ति- स्थान | ४ योजना । ( धन की ) प्रति | + बहाव । धार (पानी की ) | ६ लिखित प्रमाण । ७ ज्ञान ८ आमदनी आय राजस्व । २ वैध उपाय से प्राप्त कोई वस्तु १० सम्पत्ति की वृद्धि १९ परम्परागत सिद्धान्त या विधि शास्त्र | १२ शास्त्राध्ययन पवित्रज्ञान | १३ विज्ञान | १४ वेद । १५ ( न्याय के ) चार प्रकार के प्रमाणों में से अन्तिम प्रमाण १६ उप- सर्ग, विभक्ति या प्रत्यय १७ किसी अक्षर का संयोग या मिलावड १८ संस्कृत भाषा में, क्रियापदों के आदि में युक्त स्वरवर्णं । १३ उपपत्ति । सिद्धान्त (वृद्ध. (वि०) प्रकाण्ड विद्वान | यथा "प्रती इत्यागमयुद्धवी।" निरुक | विज्ञप्ति | आख्यातिः (स्त्री० ) १ कथन सूचना नामवरी । कीर्ति । ३ नाम । ख्या ( न० ) १ कथन | घोषणा | विज्ञप्ति | सूचना | २ पूर्ववृत्तोक्ति | ३ कहानी | क़िस्सा | ४ उत्तर ( "प्रश्नाख्यानयोः" पाणिनी अष्टा- ध्यायी) आख्यानकम् (न०) किस्सा | छोटी कहानी । कथानक उपाख्यान | माख्यायक (वि० ) कहने वाला । आख्यायकः (पु०) १ इस्कारा | २ राजकीय घोषणा करने वाला या उत्सवादि की व्यवस्था करने वाला। आख्यायिका (स्त्री० ) एक प्रकार की गद्यमयी रचना | कहानी । [साहित्यज्ञों ने गद्य रचना के दो भेद बतलाये हैं। अर्थात् कथा और आख्या- यिका बाण के "हर्षचरित" को ऐसे लोग "आख्यायिका" मानते हैं और कादम्बरी को कथा। यद्यपि दरिडन् के मतानुसार इन दोनों में भेद कुछ भी नहीं है। तरकथाख्यायिकेस्येका जातिः संचाइदाङ्किता | काव्यादर्श ।] ध्याख्यायिन् (वि० ) कहने वाला जताने वाला। आाख्येय ( स० का० कृ० ) कहने योग्य बतलाने योग्य | जताने योग्य | प्रागतिः ( स्त्री० ) १ आगमन | २ प्राप्ति । उप- लब्धि | ३ प्रत्यावर्तन । ४ उत्पत्ति । आगन्तु ( वि० ) आया हुआ | पहुँचा हुआ। बाहिर से आया हुआ । बाहिरी । ३ आकस्मिक ४ भूला भटका | पथभ्रान्त | आगन्तुः ( पु० ) १ नवागत। अपरिचित । महमान | | आगन्तुक ( वि० ) [ स्त्री०-आगन्तुका, आग न्तुको ] १ अपनी इच्छा से आया हुआ | बिना बुलाये भाया हुआ । भूला भटका या घूमता | फिरता आया हुआ | २ आकस्मिक | ४ प्रति -रघुवंश । आगमनम् ( न० ) १ आगमन । थवाई | आमद २ प्रत्यावर्तन । ३ उपलब्धि प्रासि । ४ सम्भोग के लिये किसी स्त्री के समीप गमन । | (वि० ) १ आने वाला । भविष्य का | आगामिन २ आसन्न आने वाला। भागम् ( न० ) १ कसूर अपराध | २ पाप - कृत्, ( वि० ) अपराध करने वाला । अपराधी दोषी । गस्ती (स्त्री० ) दक्षिण दिशा । आगस्त्य (वि० ) दक्षिणी । गाध (वि० ) अत्यन्त गहरा अथाह । आगामिक (वि० ) [स्त्री० --आगामिकी] भविष्य काल सम्बन्धी । २ आने वाला । आसन्न । आगामुक (वि० ) १ आने वाला | २ भविष्य का । आगारं ( न० ) घर | आवस-स्थान । [प्रतिज्ञा गुर् (स्त्री० ) स्वीकारोक्ति । हाँमी । स्वीकृति आसुरां } (न० ) गुप्त प्रस्ताव या सूचना । आगूरणम्. आगूः ( स्त्री० ) इकरार । प्रतिज्ञा | आशिक अग्निक (वि०) [स्त्री० आशिकी] आग सम्बन्धी । यज्ञीय अनि सम्बन्धी ( १२३ श्रीधं ( न० ) वह स्थान जहाँ अग्निहोत्र का अभि जलाया जाता है। आग्नेयम् ( न० ) १ कृत्ति का नक्षत्र | २ सुवर्णं । ३ खून | रक्त । ४ घी। ग्यास्त्र | आग्न्याधानिकी (स्त्री० ) दक्षिणा विशेष जो ब्राह्मण --हितोपदेश । सीध: ( पु० ) १ हवन करने वाला | २ मनुवंशोद्भव | आधारः (पु० ) १ छिड़काव | २ विशेष कर हवन के समय अभि पर घी का छिड़काव । ३ घी । महाराज प्रियव्रत का पुत्र | सम्बन्धी अगिया | २ अभि को चढ़ाया हुआ। आग्नेयः (पु० ) कार्तिकेय या स्कन्द की उपाधि | आग्नेयी ( स्त्री० ) १ अग्नि की पत्नी । २ पूर्व और आग्नेय (वि० ) [ स्त्री० -आग्नेयी ] अझ | आघूर्णनं (न०) लोटना | उछाल । चक्कर । तैरना । आघोषः (पु०) बुलावट घोष (न० ) । ढिंढोरा आघोषणा (स्त्री० ) व्याघ्राणम् ( न० ) १ प्रांगारं आङ्गरम् आमंत्रण । श्राह्वानकरण । । राजाज्ञा की [ होना । 3 घोषणा | सूँघना | २ अघाना | सन्तुष्ट दक्षिण के बीच वाली दिशा । }( न० ) अंगारों का ढेर । | आङ्गिक आशिक: } आंगिरस ङ्गिरसः आंगिक ) (वि० ) [स्त्री०- आंगिकी, प्राङ्गिकी ] १ शारीरिक | दैहिक । २ हाव भाव युक्त । ( पु० ) सबलची या मृदंगची | को दी जाती है। आग्रभोजनिकः ( पु० ) ब्राह्मण जो प्रत्येक भोज में सब के आगे या प्रथम बैठने का अधिकारी है। यणम् (न० ) याहितानियों का नक्शस्येष्टि नवान्न विधान । आग्रहायणः ( पु० ) मार्गशीर्ष मास । आग्रहायणी (स्त्री०) १ मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा । अगहनी पूनो | २ मगशिरा नक्षत्र का नाम । आग्रहायणकः ) ( पु० ) मार्गशीर्ष या अगहन आग्रहायणिकः । मास । आग्रहारिक (वि०) [स्त्री०- आग्रहारिकी] नियमा- नुसार प्रथम भाग पाने वाला प्रथम भाग पाने योग्य ब्राह्मण श्रेष्ठ ब्राह्मण ) [ तिचतु आग्रयणः ( पु० ) अनिष्टोम में सोम की प्रथम (०) पकड़ ग्रहण २ आक्रमण । ३ सङ्कल्प प्रगाढ़ अनुराग कृपा । अनुग्रह । संरक्षकता। आघट्टना ( स्त्री० ) १ हिलाना । कम्पन | ताइन । २ रगड़ | संसर्ग। आधार धाव | ३ दुर्भाग्य । बदकिस्मती । विपत्ति | ४ कसाईखाना । बधस्थान | -"प्राचातं नीयमानस्य ।” आघः (पु० ) रगढ़ | मालिश । ताड़ श्राघर्षणम् (न० ) ) 1 आघाट ( पु० ) सीमा हद्द । यः (पु०) १ दाइन मारण | २ चोट | प्रहार। (पु०) बृहस्पति का नाम अंगिरस का पुत्र | (पु० ) । विद्वान् । पण्डित । याचमः ( पु० ) कुल्ला। आचमन । याचमनम् ( न० ) जल से मुख साफ करने की क्रिया। किसी धर्मानुष्ठान के आरम्भ में दहिने हाथ की हथेली में जल रख कर पीने की क्रिया । आचमनकम् ( न० ) १ पीकदानी । यः (पु० ) १ जमाव | भीड़ | २ ढेर | समूह | आचरणम् ( न० ) १ अनुष्ठान व्यवहार । बर्ताव: २ चालचलन | ३ चलन | प्रचलन पद्धति ४ स्मृति । श्रत ) ( वि० ) १ आचमन या कुल्ला किये हुए । आचान्त २ आचमन करने योग्य आचामः ( पु० ) १ आचमन । कुल्ली । २ जल या गर्म जल का उफान । प्राचार: ( पु० ) १ चालचलन चरित्र । चाल- ढाल । २ रीतिरिवाज़ | चलन | पद्धति | ३ सदा- चार | ४ शील । ५ रस्म ।–भ्रष्ट, पतित, ( वि० ) दुराचारी | अशिष्ट । –पूत, (वि० ) सदाचार के अनुष्ठान से पवित्र लाज, ( go बहुव० ) सीलें. जो. राजा या किसी आसारिक प्रतिष्ठित व्यक्ति के ऊपर बरसायी जाती है~ (उसके प्रति सम्मान प्रदर्शनार्थं ।) - वेदी (स्त्री० ) आर्यावर्त देश का नाम । [ से समर्थित । आचारिक (वि० ) ग्रामाणिक पद्धति या नियम आचार्य: (पु० ) १ (साधारणतः ) शिक्षक या गुरु | आाजानः ( पु० ) उत्पत्ति । जन्म । श्राजानम् ( न० ) उत्पत्ति स्थान | जन्मस्थान | आजानेय (वि० ) [ स्त्री० - प्राजानेयी ] अच्छी जाति का ( जैसे घोड़ा)। २ निर्भीक । निर्भय प्राजानेयः (पु०) अच्छी जाति का घोड़ा। ग्राजिः ( पु० ) १ युद्ध | लड़ाई | २ रणक्षेत्र | आजीवः (पु० ) 9 आजीवनम् ( 5० }}३ आजीविका । २ पेशा। आजीवः (पु० ) जैनी भिक्षुक २ उपनयनसंस्कार के समय गायत्री मंत्र का उपदेश देने वाला ३ गुरु | वेद पढ़ाने वाला ४ जब यह किसी के नाम के पूर्व लगता है (यथा आचार्य वासुदेव ) तब इसका अर्थ होता है, विद्वान्, पण्डित । अंगरेज़ी के “डाक्टर" शब्द यह प्रायः समानार्थवाची शब्द भी है। - मिश्र, ( वि० ) माननीय पूज्य आचार्यकं ( न० ) १ शिक्षा | पाठन पढ़ाना । २ श्राध्यात्मिक गुरु का गुरुव प्राचार्यांनी (स्त्री० ) अचार्य की पत्नी । का आजीविका ( न० ) पेशा। आजीविका का उपाय आजुर्, आजू (स्त्री० ) १ विना पारिश्रमिक काम करना । २ नौकर जो वेतन लिये बिना काम करे। नरक ही में रहना जिसके भाग्य में बढ़ा है। ● आचित (व० कृ० ) १ परिपूरित | भरा हुआ । लदा | आज्ञप्तिः ( स्त्री० ) चाज्ञा | आदेश । हुक्म । हुआ ! ढका हुआ | २ बेधा हुआ | श्रोतप्रोत | ३ सञ्चित | एकत्रित किया हुआ। प्रचितः ( पु० ) गाड़ी भर बोक ( न० भी है ) | दस गाड़ी भर की तौल, अर्थात् ८० हज़ार तोला । [ सिंघी लगाना । श्राप (न०) १ चूसना । २ चूस कर उगल देना। आच्छाद] ( पु० ) कपड़े । सिले कपड़े । आच्छादनं ( ० ) १ ढकने वाली वस्तु । चादर आज्ञा (स्त्री० ) १ आदेश । हुक्म | २ अनुमति इजाजत ।-अनुग, अनुगामिन, अनुया यिन, अनुवर्तन, अनुसारिन, सम्पा दक, वह (वि० ) आज्ञाकारी । फर्मावदार । ज्ञापनम् (न० ) १ आज्ञा | हुक्म १२ प्रकट- पत्र | लकड़ी की छत । चह्न | २ कपड़े। सिने कपड़े | छत में लगी हुई | [जलन पैदा करता हुआ | धारित ( वि० ) १ मिश्रित १२ खुरचा हुआ। आच्छुरितं ( न० ) नखवाय। नखों को एक दूसरे पर रगड़ कर बाजे की तरह बजाने की क्रिया | २ अट्टहास्य | रकम् ( न० ) १ नाखून का खरोंचा। नोंह की खरोच | २ अट्टहास्य । आच्छेदः ( पु० ) १ काटना । नश्तर लगाना । आच्छेदनम् ( न० ) १ २ ज़रा सा काटना । आच्छोटनम् (न० ) उँगलियाँ चटकाना । आच्छादनम् ( न० ) शिकार | आखेट। मृगया। आजकं ( न० ) बकरों का कुंड भाजगवम् (न०) शिव जी का धनुष टि प्रजननम् ( न० ) कुलीनता । उच्चवंशोद्भवता । प्रसिद्ध कुल या वंश | आज्यं ( न० ) घी 1 - पात्रं, (न० ) स्थाली, ( स्त्री० ) वर्तन जिसमें घी रखा जाय। -भुज् ( पु० ) १ अग्नि का नाम । २ देवता । भांचनम् (न० ) शरीर से कांटे या सीर को थोड़ा सा खींच कर निकालने की क्रिया । आं ( धा०प० ) [ भांति ) १ लंबा करना बढ़ाना । २ ठीक करना । बैठाना । ( जैसे हड्डी का ) आंम् (न० ) ( हड्डी या टांग को ) बराबर या ठीक करना या बैठाना आंजनम् ( न० ) अंजन आंजनः श्रांजनेयः S ) ( पु० ) हनुमान जी का नाम । टविकः ( पु० ) १ बनरखा | २ अग्रगन्ता | ध्याटि: ( पु० स्त्री० ) पक्षी विशेष | शरारि । [इसका "आटि" भी रूप होता है।] आटीकनं 1 टीक ( न० ) बछड़े की उछलकूद | आटीकरः (पु० ) बैल । साँड़ । आटोपः ( पु० ) १ अभिमान | आत्महावा । २ सूजन | फैलाव | बढ़ाव । फुलाव | आडम्बर (पु० ) १ अभिमान | सद। औदय २ दिखावट। वाह्य उपाङ्ग ३ बिगुल या तुरही की आवाज़ जो थाक्रमण की सूचक हो । ४ आरम्भ शुरूआत | ५ रोप। क्रोध | ६ हर्पं । आनन्द | ७ बादलों की गर्जन। हाथियों की चिंघार। ८ लड़ाई में बजाया जाने वाला ढोल । २ युद्ध का कोलाहल या गर्जन तर्जन । ( १२५ ) तिदेशिक आतंचनम् | ( न० ) आतञ्चनम् ) दूध । आणिः ( पु० स्त्री० ) १ गाड़ी की धुरी की चावी या पिन २ घुटने के ऊपर का जांघ का भाग । ३ सीमा हद्द ४ तलवार की धार । आंड ) ( वि० ) अण्डज । वे जीव जो अंडे से | प्रातायिन् । उत्पन्न होते हैं। आइड: } 1 (पु०) हिरण्यगर्भं या ब्रह्मा की उपाधि । १ दही । २ जमा हुआ एक प्रकार का तोड़ या पछा ।४ प्रसन्न करना | सन्तुष्ट करना । ५ भय । खतरा । आपत्ति । सङ्कट | ६ रफ़्तार । गति । आतत (वि० ) १ फैला हुआ । बिछा हुआ । छाया हुआ। बड़ा हुआ | २ ताना हुआ (जैसे धनुष की प्रत्यंचा ) आततायिन् ( पु० ) १ महापापी । २ शस्त्र उठा कर किसी का वध करने को उद्यत । शुक्र नीति में छः प्रकार के आततायी बतलाये गये हैं। यथा- आग लगाने वाला । विषखिलाने वाला । शस्त्र हाथ में लिये किसी का वध करने को उद्यत धन का चोर। खेत का हरने वाला और स्त्रीचोर । “अग्निदो गरदश्वंद शस्रोन्नत्तो पनापदः । क्षेत्रदारहरश्चैतान् पड् विद्यादातनायिनः ॥” आडम्बरिन ( न० ) मदमत्त अभिमान में चूर आढक: (पु० ) ) कम् (न०) } द्रोण नामक तौल का चतुर्थांश । श्राव्य (वि० ) १ धनी धनवान | २ सम्पन्न ३ बहुतायत से । विपुल |~~चर, (पु० ) चरी, | ः (०) १ सूर्य अथवा आग की गर्मी । घाम ( स्त्री० ) जो एक बार धनी हो । यंकरण ( वि० ) धनवान करने वाला । आयकरणम् (न०) धन । सम्पत्ति । प्राण (वि० ) नीच । ओछा । दुष्ट | कम् ( न० ) मैथुन करने का आसन विशेष आणव (वि०) [ स्त्री० आणवी ] बहुत ही छोटा । आणवं ( न० ) बहुत ही छोटापन या अत्यन्त २ प्रकाश। - उदकं, (न० ) मृगतृष्णा - त्रं, - ( न० ) -त्रकं, (न०) छाता | छत्र- लंघनं, ( न० ) लपट का लगना । – चारणं, ( न० ) छाता |-शुष्क, (वि० ) धूप में सुखाया हुआ। तपन (पु०) शिव जी का नाम । प्रातरः सूक्ष्मता | } ( पु० ) नाव की उतराई या पुल का तर्पण ( न० ) १ सन्तोष | २ प्रसन्नता | सन्तुष्ट- करण । ३ दीवाल पर सफेदी पोतना। फर्श लीपना । । | ( ० ) पक्षी विशेष | चील । तिथेय ( वि० ) [ स्त्री० -आतिथेयी ] » अतियों का सत्कार । २ अतिथि के योग्य । अतिथि के लिये उपयुक्त । [ पहुई। आतिधेयं (न०) महमानदारी । अतिथि का सरकार । श्रांड } ( न० ) १ अँडों का ढेर | फोल | व्याँद । आण्डम् । २ अण्डकोश की थैली । आतिथ्य (वि० ) पहुँनई के योग्य । भांडीर } (वि० ) १ बहुत से अँडों वाला । २ बढ़ा | आासिध्या ( पु० ) पाहुना । महमान । अतिथि। आयडीर) हुआ पूर्णक्यप्राप्त (जैसे सांड ) भातक । (५० ) १ रोग शारीरिक रोग २ ध्यातिथ्य ( न० ) पहुन यतिरेक्य आतिरेक्यं । ( न० ) विपुलता । फालतूपन । आतिरेक्यम् । अति आधिक्यता । अधिकाई । प्रातिशय्यम् (न०) आधिक्य बहुतायत । ज्यादती । मातुः (पु० ) लकड़ी या लट्ठों का येड़ा। धरनई या चौघड़ा। ( १२६ ३ आतुर (वि०) १ चोटिल | घायल | २ रोगी | दुःखी । पीड़ित ३ शरीर या मन का रोगी ४ उत्सुक अधीर चेचैन । ५ निर्बल कमज़ोर 1-~शाला, ( श्री० ) अस्पताल | आतुरः (पु० ) बीमार। मरीज़ | आताचं } ( म० ) वाद्य विशेष : एक प्रकार आतीयकम् ) का बाजा त (व० ० ) १ लिया हुआ । प्राप्त स्वीकार किया हुआ माना हुआ । २ इकरार किया हुआ। ३ आकर्षण किया हुआ | ४ निकाला हुआ। खींच कर बाहर निकाला हुआ 1-गन्ध, (दि०) 9 शत्रु ने जिसके अहकार को दूर कर डाला हो। शत्रु से पराजित | २ सूंघा हुआ।- -गर्व, (वि० ) नीचा दिखलाया हुआ । तिरस्कृत अध:पतित आत्मक (वि० ) बना हुआ ढंग का या स्वभाष आत्मकीय ( वि० ) अपना अपने से सम्बन्ध आत्मीय युक्त ! आत्मन् ( पु० ) १ यात्मा जीव २ परमात्मा ६ मन ४ बुद्धि | मननशक्ति । ६ स्फूर्ति । मूर्ति | शक्कमपुत्र | ७ "यात्मा ये दुधनाचाहि”। 1 १ उद्योग सावधानी । १० सूर्य ११ अग्नि । १२ पवन १३ सार । १४. विशेषता | लक्षण । १२ स्वभाव । प्रकृति । १६ पुरुष या समस्त शरीर ।-अधीन, ( वि० ) स्वावलम्बी। स्व तंत्र-आधीनः, ( पु० ) १ पुत्र | २ मोजाई । ३ विदूषक | मसनरा।अनुगमनम्, व्यक्तिगत उपस्थिति या विद्यमानता - अपहारकः, ( पु० ) पाखंडी। बहुरूपिया!~~ आराम ( वि० ) १ ज्ञान प्राप्ति का प्रयासी । अध्यात्मविद्या का खोजी २ अपने आत्मा में प्रस रहने वाला।-आशिन, (पु० ) मछली जो अपने बर्यो को खा जाया करती है - ) आत्मन् " - आश्रयः (पु०) अपने ऊपर निर्भर रहने वाला। - उद्भवः, (पु०) पुत्र कामदेव उद्भवा, (स्त्री०) पुत्री । - उपजीविन, (पु०) १ अपने परि- श्रम से उपार्जित आय पर रहने वाला २ दिन में काम करने वाला मज़दूर ३ अपनी पत्नी की कमाई खाने चाला | ४ नाटक का पात्र सार्व- जनिक अभिनेतृ ~~काम, ( वि ) १ आत्मा- भिमानी। यहङ्कारी। २ केवल ब्रह्म या पर मात्मा की भक्ति करने वाला /-गुतिः, (स्त्री० ) गुफा मांद /--माहिन्. ( वि० ) स्वार्थी | लालची )-घातः, ( पु० ) १ आत्महत्या | २ धर्मविरोध | चातिन, ( पु० ) - घातक, ( पु० ) आत्महत्या | २ धर्मविरोधी / घोषः, ( पु० ) १ मुर्गा | कुकुट २ काक | कौवा - जः, ( पु० ) जन्मन्, ( १० ) - जातः, ( पु० ) - प्रभवः ( पु० ) - सम्भवः, ( पु० ) १ पुत्र | २ कामदेव /-जा (स्त्री० ) १ पुत्री | २ तर्कशक्ति | समझने की शक्ति या समझ । बुद्धि । --जयः, (पु० ) अपने आपको जीतना । जितेन्द्रिय-ज्ञः, -विद्, ( पु० ) आत्म- ज्ञानी। ऋषि-ज्ञानं, ( न० ) आत्मा और परमात्मा सम्बन्धी ज्ञान । २ सत्यज्ञान - तस्वं, ( न० ) जीव या आत्मा का अथवा परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान त्यागः, ( पु० ), आत्मोत्सर्ग २ आत्मनाश । आत्मघात /- त्यागिन (पु० ) १ आत्मघात आत्महत्या | २ स्वधर्मत्याग । - त्राणं, (न० ) १ आत्म- रक्षा २ शरीररक्षक | बादी-गार्ड -दर्शः, ( पु० ) दर्पण आईना।-दर्शनम् (न० ) १ अपना दर्शन करना। आत्मज्ञान सत्य ज्ञान । -द्रोहिन (वि० ) अपने ऊपर अत्याचार करने वाला । २ आत्मघाती । - नित्य, (वि०) अत्यन्त प्रिय /- निवेदनम्, (न०) अपने आप को समर्प करना । आत्मसमर्पण /- निष्ठ, ( चि० ) सदैव आरमविद्या की खोज में रहने वाला।-प्रशंसा, (स्त्री०) आत्मश्लाघा । अपनी बढ़ाई-बन्धुः -~बान्धवः, (५०) अपने नातेदार। [धर्मशास्त्र में नातेदारों के अन्तर्गत इतने लोगों की गणान है। आत्मना ग्राममातुः स्वसुः पुत्रा आरमपितुः स्वसुः सुद्राः विवेथा सामान्याः ॥ ( १२७ ) प्रदर आत्मनीनः ( पु० ) पुत्र २ साला ३ विदूषक प्रात्मनेपदं (न० ) १ संस्कृत व्याकरण में धातु में जगने वाले दो तरह के प्रत्ययों में से एक । २ आत्मनेपद प्रत्यय के लगने से बनी हुई क्रिया । अमरि ) १ जो के अपने को पाले २ ध्यात्मम्भरि J जो विना देवता पितर और अतिथि को निवेदन किये भोजन करे ३ उदरं- । भरि पेटू स्वार्थी आत्मवत् ( वि० ) १ लालची । हतारमा | संयत। धीरचेता। २ बुद्धिमान | [ संयम | बुद्धिमता | धात्मवत्ता ( स्त्री० ) धीरता | | आत्म- आत्मसात् (अन्यया० ) अपने अधिकार में अपने वश में। 1 अर्थात् मासी का पुत्र हुआ का पुत्र और मामा का पुत्र ] - बोध: आध्यात्मिकज्ञान ( पु० ) यात्मज्ञान | २ भूग, - योनिः, ( 30 ) १ ब्रह्मा का नाम । २ विष्णु का नाम । ३ शिव का नाम | ४ कामदेव २ पुत्र । -भूः, (स्त्री० ) १ पुत्री | २ प्रतिमा ३ बुद्धि (~ मात्रा, (खी०) परमात्मा का एक अंश-मानिन्, (वि० ) १ आत्मसम्मान रखने वाला २ अभिमानी - याजिन, (वि० ) जो अपने लिये या अपने को | बलि दे। ( पु० ) सब में अपने को देखने वाला। श्रात्मदर्शी विद्वान्। लामः, ( पु० ) जन्म | उत्पत्ति पैदायश |~ वञ्चक, ( वि० ) अपने आपको धोखा देने वाला - वधः, -वध्या, -हत्या, ( स्त्री० ) आत्मघात -शः, - ( पु० ) आत्मसंयम | श्रात्मशासन / -बिंदु, ( go ) बुद्धिमान पुरुष । ज्ञानी । -विद्या ( स्त्री० ) आध्यात्मिक विद्या :-वीरः (पु० ) १ पुत्र | २ पत्नी का भाई। साला । ३ (नाव्य- शात्र में ) विदूषक /-वृत्तिः, ( श्री० ) १ हृदय की परिस्थिति। ~~ शक्तिः, (स्त्री०) अपनी सामर्थ्य । -श्लाघा, स्तुतिः, ( स्त्री० ) अपनी बढ़ाई। शेखी। डींग।-संयमः, (पु० ) आत्मवशत्व -सम्भवः, - समुद्भवः ( ५० ) पुत्र । २ कामदेव | ३ ग्रह्मा विष्णु शिव की उपाधि | -सम्भवा, समुद्रा (स्त्री० ) १ पुत्री | २ सम्पन्न । 24 बुद्धि संयत तामा (वि० ) स्वस्थ | धीरचेता । २ द्धिमान । प्रतिभाशाली । - हननं, ( न० ) – हत्या ( स्त्री० ) यात्म- घात । खुदकुशी -हित, ( वि० ) अपना लाभ अपना फायदा | मना (अव्यया० ) स्वयमर्थक रूप से उसका प्रयोग होता है। यथा- जय वास्तमिता त्वचारममा । रामायण | त्मनीन (वि०) १ निज से सम्बन्ध रखने वाला । निज का अपना । २ आत्महितकर | प्रात्यंतिक ) आत्यन्तिक) ( दि० ) [ स्त्री०-~-आत्यंतिकी, आत्यन्तिकी] लगातार भवि " रत अनम्स । स्थायो। अविनाशी २ बहुत । अतिशय । सर्वाधिक ३ परम प्रधान । महान्। सम्पूर्ण बिल्कुल | ( आत्ययिक ( वि० ) [ श्री०- प्रात्ययिकी ] १ नाश कारी विपत्तिकारी । पीड़ाकारी । दुःखद् २ प्रमाङ्गलिक अशुभ ३ जरूरी अत्यन्त G आवश्यक | आय (वि० ) अत्रि के वंश का। अत्रिका | भत्रि से उत्पन्न । [ की पत्नी ३ रजस्यला स्त्री | (स्त्री०)अनि के वंश में उत्पन्न स्त्री । २ अग्नि आत्रेयिका ( स्त्री० ) रजस्वला श्री आथर्वण (वि० ) [ स्त्री०-पाथर्वणी ] अथ- वेद से निकला हुआ था अथर्ववेद का आथर्वणः (पु० ) १ अथर्वण वेद को जानने वाला। बास | २ अथर्वण बेद । ३ गृहचिकित्सक | युरोहित | [ ब्राह्मण आथर्वशिकः ( पु० ) अथर्वण वेद पड़ा हुआ आदंशः (पु०) १ दाँत । २ काटने की क्रिया काटने से पैदा हुआ धाव । ● आदरः ( पु० ) १ सम्मान | प्रतिष्ठा । मान । इज्जत | २ ध्यान | मनोयोग । मनोनिवेश । ३. उत्सुकता | अभिलाषा | ४ उद्योग प्रयत्न । २ भारम्भ। शुरूआत। ६ प्रेम अनुराग i आम् श्राद ( आदरां (न० ) आदर सस्कार | आदर्श: ( पु० ) १ दर्पण आईना | २ मूल ग्रन्थ जिससे नफूल की जाय। नमुना | बानगी । ३ प्रतिलिपि । ४ टिप्पणी टीका भाष्य विवरण | अर्थ | आदर्शकः (पु० ) दर्पण आईना। शीशा। आदर्शनम् (न० ) १ दिखावट दिखाने के लिये सजावट २ दर्पण | आदित्यः (पु० ) अदिति पुत्र देवता | २ द्वादश आदित्य । ३ सूर्य। भास्कार । ४ विष्णु का पांचवा अवतार /- मराडलं. (न०) सूर्य का घेरा - सुनुः (१०) १ सूर्यपुत्र | २ सुग्रीव का नाम | ३ यम ४ शनिग्रह | २ क का नाम । ६ साव नाम के मनु | ७ वैवस्वत मनु । आदिनवः ( पु० आदीनच (पु० यादिनवम् न० श्राद्हनम् ( न० ) १ जलन | २ चोट | ३ हनन | ३ |आदनियम् ( ८० तिरस्कार । गरियाना ! ४ क़वरस्तान | २ श्मशान | | धादिम (वि० ) प्रथम | आदिकालीन । असली । आदानं (न०) १ ग्रहण । स्वीकृति | पकड़ | २ आर्जन || श्रादीपनम् (न०) १ आग में जलाना। २ भड़काना । ३ किसी उत्सव के अवसर पर दीवाल की पुताई और फर्श की लिपाई 1 प्राप्ति । ३ ( रोग का ) लक्षण | श्रादायिन् (वि० ) लेना । प्राप्त करना । आदि (वि० ) १ प्रथम प्रारम्भिक आदि कालीन । २ मुख्य | प्रधान । प्रसिद्ध । ३ आदिकाल का। ~~ग्रन्त (वि० ) जिसका आरम्भ और समाप्ति हो । शुरू और अखीर बाळा। अतं, (न० ) | आरम्भ और समाप्ति । कर, कर्तु, कृत् (१०) सृष्टिकर्ता ब्रह्म की उपाधि विशेष ध्यादेवनम् ( न० ) १ जुआ । २ जुआ का पांसा | ३ श्रत (व० कृ० ) सम्मानित | आदर किया गया। श्रादेशः ( पु० ) ४ श्राहा | हुक्म । २ निर्देश । नियम | चौसर की वित ४ जुआ।घर । २ वर्णन | सूचना | विज्ञप्ति | ४ भविष्यवाणी | ५ व्याकरण में अक्षरपरिवर्तन | कविः, (पु०) ब्रह्म और बाल्मीकि की उपाधि | आदेशिन (वि०) १ आशा देने वाला १ हुक्म देने वाला । २ उभाड़ने वाला। उकसाने वाला । ( पु० ) १ आज्ञा देने वाला सेनापति । २ ज्योतिषी । आय (वि० ) १ प्रथम प्राथमिक २ सर्वप्रधान | मुख्य अगुआ। -कविः ( पु० ) वाल्मीकि आद्या (स्त्री०) दुर्गा की उपाधि । २ मास की प्रथम तिथि। विशेष -काग्रडं, (न०) वाल्मीकि रामायय का प्रथम अर्थात् बालकाण्ड / कारणं, (न०) सृष्टि का मूलकारण सांख्ययाले प्रकृति को और नैयायिक पुरुष को आदिकारण मानते हैं ।-काव्यं ( न० ) वाल्मीकि रामायण |~-देवः ( पु० ) 1 नारायण या विष्णु २ सूर्य ३ शिव-दैत्यः ( पु० ) हिरण्यकशिपु की उपाधि |--पर्वन् (न० ) महाभारत के प्रथमपर्व का नाम पुरुषः, या - पूरुषः, ( पु० ) विष्णु नारायण ।-बलं, ( न० ) जनन शक्ति /-भवः ( पु० ) १ ब्रह्मा की उपाधि । २ विष्णु का नाम । ३ ज्येष्ठ भ्राता (~मूलं, (न० ) आदिकारण । वराहः ( पु० ) विष्णु भगवान की उपाधि । --शक्तिः ( श्री० ) माया की सामर्थ । दुर्गा की उपाधि | - सर्गः ( पु० ) प्रथम सृष्टि । | आयं (०) १ आरम्भ | २ अनाज | भोज्य पदार्थं । प्राधून (वि०) निर्लज्जता पूर्वक बेशर्मी से। २ पेटू। मरभुका भूखा। बुभुक्षित | श्राद्योतः ( पु० ) प्रकाश चमक। श्राधमनम् ( न० ) १ अमानत | बंधक | २ बिक्री के माल की बनावटी चढ़ी हुई दर आधर्मण्यं ( ० ) दारी। आधर्मिक (वि० ) बेईमान | अन्यायी । आधर्षः (५०) १ तिरस्कार | २ बरजोरी की हुई चोट आघर्षणम् ( न० ) १ सज़ा । दण्ड | २ खण्डन ३ चोटिल करना । 1 ( १२८ ) आदितः ( अन्यथा० ) प्रथमतः । अव्वलन | आदौ आदितेय: ( पु० ) अदिति के सन्तान २ देवता। 9 दुर्भाग्य बदकिस्मती । विपत्ति । २ अपराध । दोष आघर्षित ( १२६ पति ( ० ० ) १ चोटिल किया हुआ | २ बहस में हराया हुआ | ३ सजायात्रता | दडित | आधानम् (न० ) १ रखना। ऊपर रखना १२ लेना। प्राप्त करना। फिर से लेना। वापिस लेना। २ हवन के अग्नि को स्थापित करना ४ करना बनाना । ५ भीतर डालना । देना । ६ पैदा करना | तैयार करना | ७ बंधक | धरोहर अमानत आधानिकः ( पु०) गर्भाधान संस्कार । आधारः (पु०) १ आश्रय आसरा | सहारा अवलंब | २ व्याकरण में अधिकरण कारक | ३ थाना । आलवाल | ४ पात्र २ नीव | बुनियाद | मूल | ६ ( योगशास्त्र में वर्णित ) मूलाधार ७ बाँध | | महर आधि: (०) मन की पीड़ा । २ शाप | अकोसा। विपत्ति । ३ बंधक घरोहर ४ स्थान आवास- स्थान | २ ठिकाना | स्थान | ६ कुटुम्ब के भरण पोषण के लिये चिन्तित मनुष्य-ज्ञ, (वि० ) पीड़ित । -भोगः (पु० ) भोगबंधक।-स्तेनः | ( पु० ) बंधक घरी हुई वस्तु का विना वस्तु के मालिक की अनुमति के भोग करने वाला। आधिकरणिकः ( पु० ) न्यायाधोश | जज | अभ्यास से उत्पन्न | आधिकारिक ( वि० ) [ स्त्री०-प्राधिकारिकी ] | प्राध्वनिक (वि० ) [ स्त्री० –प्राध्वनिकी ] यात्री | १ सर्वप्रधान । सर्वोत्कृष्ट २ सरकारी दफ्तर सम्बन्धी । आधिक्यं ( ० ) १ बहुतायत । अधिकता । ज्यादती । २ सर्वोत्कृष्टता | सर्वोपरिता | आधिदैविक ( पु० ) [ सी० - आधिदैविकी ] १ देवताकृत | देवताओं द्वारा प्रेरित यक्ष, देवता, भूत प्रेत आदि द्वारा होने वाला २ प्रारम्भ से यात्रा करने में चतुर यात्रा करने वाला। प्राध्वर्यच ( वि० ) [ स्त्री० आध्वर्यवी ] श्रध्वर्यु सम्बन्धी अथवा यजुर्वेद से सम्बन्ध रखने वाला। आध्यर्यवम् (न०) १ यज्ञ में कार्यविशेष | २ विशेषतः अध्वर्यु का कार्य करने वाला ब्राह्मण ३ यजुवेंद जानने वाला। धानः ( पु० ) उत्पन्न १ आधिपत्यं ( न० ) १ प्रभुत्व | स्वामित्व अधिकार । २ राजा के कर्तव्य | यथा । "यायडो| पुत्रं मरवाधिपश्ये " आधिभौतिक (वि० ) [ स्त्री० - ) आनतिः तत्वों से उत्पन्न । अथवा शरीर धारियों द्वारा प्राप्त प्राणि सम्बन्धी । [ शासन | आधिराज्यं ( न० ) राजकीय आधिपत्य सर्वश्रेष्ठ आधिवेदनिकं (न० ) सम्पत्ति प्रथम स्त्री का धन जो पुरुष द्वारा दूसरी श्री से विवाह करने पर उसे दिया जाय। विष्णु स्मृति में लिखा है। यथ द्वितोवविवादार्थिना पूर्वखिये पारितोषिकं धनं दनं तदाधिवेदनिके प्राधुनिक (वि० ) [ स्त्री०- अधुनिकी] अब का। हाल का। आजकल का साम्पतिक । नवीन | वर्तमान काल का । इदानीन्तन । आधोरण (पु० ) हाथीसवार अथवा मद्रावत। आध्मानम् ( न० ) १ धौकनी से धौकना । फूकना । (आ) बाद | २ शेत्री डींग ३ भौकनी। ४ पेट का फूलना। अलंधर रोग | श्राध्यात्मिक (वि० ) [ स्त्री० प्राध्यात्मिकी ] १चारमासम्बन्धी पवित्र २ परमात्मा ३ आत्मसम्बन्धी ४ मन से उत्पन्न (दुःख, शोक) आध्यानम् (२०) १ चिन्ता | फिक्र । २ शोकमय स्मृति ३ ध्यान | आाध्यापकः ( पु०) शिक्षक | दीवागुरु | आध्यासिक ( वि० ) [ स्त्री० - आध्यासिकी ] व्याघ्र सपदि जीवों द्वारा कृ ( पीड़ा ) | जीव स्वांस लेना वायु को भीतर खींचना | २ फूंकना । आनक ( पु० ) १ नगादा बड़ा ढोल । २ गरजने वाला बादल /- दुन्दभिः ( पु० ) श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव जी की उपाधि | दुन्दभिः या महाभारत । - दुन्दमी, (खो०) वड़ा ढोल नगाड़ा। - आधिभौतिकी ] | थानतिः ( स्त्री० ) सुकना। नीचा होना प्रणाम । a ३ सम्मान | आतिथ्य अतिथि सत्कार। 1 सं० श० कौ०-१७ आनख ( १३० ) बद्धकारक । आनड (वि०) १ बंधा हुआ । गला हुआ । २ मत [ धारण करना । श्रद्ध: (पु० ) होल । २ पोशाक । परिच्छद ध्याननम् (२०) १ मुँह | चेहरा २ अध्याय। परिच्छेद आनन्तर्यम् (न०) अनम्तर । अन्तर| समीप निकट । प्रनील (वि० ) कालौंडा । हल्का नीला आनत्यम् (न० ) असीमव्य | २ अनन्तत्व ।। ध्यानीलः ( पु० ) काला घोड़ा। ३ अमरत्व १४ अर्वलोक। स्वर्ग भाषीसुख । हये । सुख | प्रसनता २ ईश्वर | - आनन्दः ( 50 ) ब्रह्म। शिव का नाम । -फाननम्, वनं (न०) | काशीपुरी । वाराणसीपुरी 1-पटः ( पु० ) वर के वस्त्र पूर्ण (वि० ) परमानन्द से भरा | हुआ 1पूर्ण (पु० ) परशहा - प्रभवः | ( पु० ) वीर्य धातु आनन्द (वि० ) प्रसन्नता हर्षपूर्ण । ध्यानन्दधुः ( पु० ) प्रसन्नता | वर्ष । आनन्दन (वि० ) प्रसन्न करते हुए करते हुए। आनन्दनम् ( न० ) १ प्रसन्न करना आनन्दित करना | २ प्रणाम करना । नमस्कार करना । ३ आते जाते समय मित्रों का शिष्ठोचित कुशल प्रमादि पूंछ कर उपचार करना । धानुवेश्य. प्रानिल ( वि० ) [ सी०-आनिलो ] वायु से उत्पन्न बातल अनिलः । ( पु० ) हनुमान या भीम का नाम । आनिलिः | अनुकूल्यं ( २० ) १ अनुकूलता । उपयुक्तता । २ अनुग्रह । कृपा अनुगत्यम् (न० ) परिचय | जानपहचान। हेलमेल | आनुगुरायम् (न० ) अनुकूलता । उपयुक्तता । समानता बराबरी [ देहाती। ग्रामीण । अनुशामिक (वि० ) [ स्त्री० -- अनुप्रामिकी ] नुनासिक्यम् (न० ) अनुनासिकता । आनन्दित । धानुपदिक (वि०) [ स्त्री० - अनुपदिको ] १ पीछा करते हुए । अनुगमन करते हुए । २ अध्ययन ध्यानाहः (पु०) १ बंधन | २ कोष्टबद्धता | कब्जियत ३ (वस्त्र की ) चौड़ाई या अर्ज़ आनुकूलिक ( बि० ) [ श्री०- यानुकूलिकी ] उपयुक्त सुविधाजनक एकसा - करते हुए । पूर्व ( न० ) यानुपूर्वी (स्त्री० ) आनुपूव्यम् (न० ){ आनुपूर्वे अनुपूर्वण आनुपूव्यु आनुपूर्व्येण आनन्दमय (वि० ) हर्षपूरित । सुख से पूर्ण कोपः ( पु० ) शरीर के पाँच कोपों में से एक आनन्दमयः (०) परग्रह्म । मानन्दिः ( पु० ) प्रसन्नता | हर्ष | २ कौतूहल | आनन्दिन् (वि० ) १ प्रसन्न | इषित | २ प्रसन्न कर आनर्तः (पु० ) १ नाचघर नृत्यशाला। रंगभूमि प्रानुमानिक ( वि० ) [ स्त्री० --आनुमानकी ] १ अनुमान प्रमाण से सम्बन्ध रखने वाला । २ अनुमानलभ्य | ३ संख्या अटकल पच्चू | गया प्रधान । २ युद्ध | लड़ाई | ३ सौराष्ट्र देश का दूसरा नाम | आनुमानिकम् ( न० ) सांख्य शास्त्र में कहा अर्थात् काठियावाड़ | ४ सूर्यवंशी एक राजा का नाम, जो राजा शमति का पुत्र था। आनर्थक्यं ( न० ) १ निरर्थकता | बेकारपन २ अयोग्यता । प्रानायः ( पु० ) जाल। नायिन् (पु०) महुआ। धीवर मलाह आनाय्यः (पु० ) दक्षिणाभि । शैली | परिपाटी क्रम | रीति । २ वर्णक्रम | (अव्यया० ) एक के बाद दूसरा। यथाक्रम । आनुयात्रिकः ( पु० ) अनुयायी । चाकर। आनुरक्ति (स्त्री० ) प्रीति । अनुराग आनुलोमिक (वि०) [ स्त्री० -आनुलोमिकी ] १ क्रमानुयायी। क्रम से काम करने वाला २ अनुकूल अनुलोम्यम् (न०) १ स्वाभाविक क्रम | ठीक क्रम | २ क्रमानुगत क्रम २ अनुकूलता [ पड़ोसी । आनुवेश्यः (०) अपने घर के समीप ही रहने वाला प्रानुभविक श्रानुभविक ( वि०) जिसको परंपरा से सुनते चले आये हो । [ वैदिक कर्मानुष्ठान | आंदोल आनुभविक ( पु० ) वेद में विधान किया हुआ । आनुषंगिक } (वि० ) [ स्त्री०-आनुषंगिकी, आन्दोलः आनुषङ्गिकी] साथ साथ होने आंधसः आवश्यक ३ गौण शौकीन । ५ विषयक सम्बन्धी आनुपतिक वाला । २ अनिवार्य ४ अनुरक्त ६ अंडाकार | यथोचित | सुव्यवस्थित ७ अन्तर्मुक्त उपलब्ध | धानूप (वि० ) [स्त्री० [अनूपी] १ पानी वाला। नृशंसम् १ रहमदिली । २ कृपालुता । २ नृशंस्यम् । दया। रहम | तरस । पुणं } (२०) अकुशलता। मूढ़ता। मानपुरा यांत ) (वि० ) [ स्त्री० - प्रांति, प्रान्ति ] प्रान्त । अन्तिम । अन् का। आंतम् । आन्तम् । प्रांतर ) ( वि० ) १ भीतरी । गुप्त किया हुआ। ध्यान्तर २ अत्यन्त भीतरी भीतर का। अतिरम् आन्तरम् आंतरिक्ष आन्तरिक्ष आंतरीक्ष आन्तरीक्ष ( अन्यथा० ) पूर्णतः । अन्ततः । दलदली | नम | २ दल दल में उत्पन्न हुआ। ष्मानूषः ( ५० ) वह जीव जिसे बुख दल या जल में आधः } ( S० ) तिलंगाला देश । आन्ध्रः रहना पसंद हो ( जैसे भैंसा, भैस ।) आनृश्यम् ( न० ) ऋणता। कर्ज से बेबाक होना । आनृशंस 3 ( वि० ) कुणतु दयावान। अनृशंस्य रहमदिल } ( न० ) अभ्यन्तरीय स्वभाव | ( वि० ) 1 व्योम सम्बन्धी । आकाशी। स्वर्गीय नैसर्गिक । २ अन्तरिक्ष में उत्पन्न | 1 आसमान । आंतरिक्षं ) ( न० ) आकाश आन्तरितम् पृथिवी और आकाश के बीच का आपतन दोलित ] भूलना इधर उधर डोलना । २ हिलना । काँपना । (पु०) १ भूलना। झूला | २ कंपकपी । स्थान | } ( वि० ) शामिल । सम्मिलित । आंतर्गणिक यान्तर्गणिक प्रांतहिक ) ( वि० ) घर के भीतर होने वाला आन्तर्गैदिक ) या उत्पन्न । यांतिका, आन्तिका ( स्त्री० ) बड़ी वहिन । आंदो, आन्दोल (घा०प० ) [ दोजयती, आन्धसः आंधसिक आन्धसिकः प्रयं आंध्र ध्यान्म ( पु० ) भात का मौंद या माँदी । } (पु० ) स्लोइया | पाचक 1 } (न० ) अंधापन | ( वि० ) आन्ध्र देशीय । तिलंगाना देशका | आन्वयिक (वि०) [स्त्री०-आन्वयिकी] १ कुलीन । अच्छे कुल में उत्पन्न | अच्छी जाति का २ सुव्यवस्थित । नियमित | आन्वाहिक (वि० ) [ स्त्री० --आन्वाहिकी ] निय होने वाला ( कृत्य ) । नित्य ( कर्म ) । अन्वीक्षिकी ( स्त्री०) १ सर्कशास्त्र | न्याय दर्शन | २ आत्मविद्या | आपू (चा०प० ) [ यामोति । याप्त ] 3 प्रा करना | पाना २ पहुँचना मिलना ( आगे गये हुए को पीछे जा कर ) पकड़ लेना । ३ व्यास होना । छेक लेना। ४ अनुमति देना । थापकर (वि० ) [ स्त्री० आपकरी ] अप्री- सिकर उपद्रवकारी। 1 आपक (वि० ) कथा । अघसिका। आपकम् ( न० ) रोटी। चपाती। आपगा ( श्री० ) नदी। सरिता । यः (पु० ) नदीपुत्र | भीष्म या कृष्ण की उपाधि | आपण: ( पु० ) दूकान हाट बाजार आपणिक (वि० ) [ स्त्री०-आपणिकी ] व्यापार सम्बन्धी वाणिज्य सम्बन्धी । [ विक्रेता। आपणिक (पु० ) दूकानदार व्यापारी व्यवसायी । आपतनं ( न० ) १ आगमन समीप आगमन २ घटना। हादसा २ प्रासि । उपलब्धि । ४ ज्ञाने २ स्वाभाविक परिणाम | आपतिक ( १३२ ) यांप्य आपतिक (वि० ) [ खी० - श्रापतिकी ] इत्तिफा | प्रापूपिक (वि० ) [ स्त्री० --प्रापूपिकी] १ अच्छे किया। अचानक देवी। ध्यापतिकः ( ५० ) बाज पक्षी | पुए बनाने वाला २ पुआ खाने का आदी । यापूपिकः ( पु० ) रसोइया । नानबाई । हलवाई। पिकं (न० ) पुत्रों का ढेर। ध्यापतिः ( स्त्री० ) १ परिवर्तन | २ प्राप्ति | ३ सङ्कट आफत विपत्ति । ४ ( दर्शन में ) अनिष्ट प्रसङ्ग । | आपूष्यः ( 50 ) 1 आटा चून मांडा हुआ मीठा आपद् (स्त्री०) विपत्ति सङ्कटकालः, (पु० ) आटा जिससे पुछा बनाये जाय । २ सत्तू | आपूरः (go १ वहाच धार प्रवाद | २ पूर्ण सइट का समय | कट का समय गत - ग्रस्त, प्राप्त, ( वि० ) १ विपत्ति में फँसा हुआ। २ अभागा | कमवन्त । धर्मः, (पु० ) वे कृत्य जो साधारण समय में शाखविरुद्ध होने पर भी विपत्ति काल में किये जा सकते हैं। आपदा ( स्त्री० ) विपत्ति: सङ्कट [ किराल | आपनिक ( पु० ) १ पन्ना | नीलम | पुखराज २ आप ( ० ० ) १ मास | उपलब्ध २ गिरा हुआ। मुबतिला। -सत्वा, (स्त्री० ) गर्भवत्ती स्त्री | आपमित्यक ( वि० ) बदले में पाया हुआ। भोजनोपरान्त का मंत्र आपराधिक (वि०) [स्त्री० --आपराहिकी ] दोपहर | अत (च० ० ) १ प्राप्त बाद का। आपस (न० ) १ जल । पानी २ पाप व्यापातः (30) भरोकर गिरना। आक्रमण उतार | ( सवारी से ) उतरना। २ गिरना पटकना । अधःपात । ३ किली घटना का अचानक होना । पादतः (अव्यया० ) अकस्मात् । अचानक । २ चन्त को आग्निरकार। 1 आपदः ( ० ) प्राप्ति उपलब्धि | २ पुरस्कार । इनाम पारिश्रमिक | थापादनम् ( न० ) पहुँचना । लाना। । ( न० ) १ मयपों की एडली । २ भैरवी चक भोज ३ कलारी की शराब की दूकान । आपानम् आपानकम् । आपालिः (पु० ) जूं | चीजर जुआँ । चिलुए । आपीड: ( पु० ) 1 तंग करना धायल करना । २ सुवाना | निचोड़ना। ३ सीसफूल ४ हार। मात्रा । आपीन (व० ० ) मौदा साहा। मजबूत आपीन: ( पु० ) कूप । कुआँ इंनारा आपीनम् (न०) स्तन के ऊपर की धुंडी थन ऐन करना | भरना । आपूरणम् (न० ) पूर्ण करना। भरना । आपूर्ण ( न० ) धातु विशेष रंगा या टीन। आपृच्छा १ वार्तालाप १ २ बिदाई । अन्तिम रवानगी। ३ नुहल | आपोशनः ( पु० ) मंत्र विशेष जो भोजन करने के पूर्व और पीछे पढ़े जाते हैं। वे ये हैं। भोजन के थारम्भ में पढ़ा जाने वाला मंत्र - "तो परतावस्याहा” । अमृता विद्यामसि स्वादा पाया हुआ | हासिल हासिल किया हुआ | २ पहुँचा हुआ। ३ विश्वास | ४ अन्तरंग | गोप्य सचा ( मनुष्य ) १५ घनिष्ट परिचित ६ युक्तियुक्त समझदार /- काम, ( वि० ) पूर्णकाम | जिसकी सब कामनाएँ पूरी हो चुकी हों- कामः, ( पु० ) परमद्य | - गर्भा, (स्त्री० ) गर्भवती स्त्री |-वचनम्, ( न०) विश्वस्त पुरुष के वचन - वाचू, (वि०) विश्वास करने योग्य ऐसा पुरुष जिसके वचन प्रामाणिक माने जा सकें। (स्त्री०) १ विश्वस्तया मातवर पुरुष की सलाह २ वेद या श्रुति । स्मृति । इतिहास पुराण | श्रुतिः ( स्त्री० ) १ वेद | २ स्मृति | प्रातः (पु० ) विश्वस्त पुरुष | इतमीनान का आदमी उपयुक्त पुरुष २ सम्बन्धी रिश्तेदार । मित्र | [ २ संसार त्यागी। प्राप्तम् ( म० ) १ भाग्य फल बांट फल । लन्ध । ध्याप्तिः ( स्त्री० ) १ प्राप्ति उपलब्धि २ पहुँच मिलनभेंट | ३ योग्यता सम्मान १४ समाप्ति । परिपूर्णता | आप्य (वि० ) 1 जंल सम्बन्धी २ प्राप्य | ( १३३ ) आप्यान आप्यान (च० ० ) १ मौटा तगड़ा । रोयीला । मजबूत २ प्रसन सन्तुष्ट आप्यानम् ( न० ) प्रीति | २ बाढ़ | बदती । आप्यायनम् (न० ) १ पूर्ण करने या मौटा करने याप्यायना (स्त्री०) ) की किया । २ सन्तुष्ट करना अधाना३ धागे बढ़ना । उन्नति करना। ४ भुटाव मौटापन पौष्टिक दवाई। आमच्छम् (न०) विदा माँगना गमन के समय

जाने की अनुमति लेना । २ स्वागत करना || ३ वधाई देना। आप्रपदीन ( वि० ) पैर तक लटकता हुआ (घँगा) | | आव: ( पु० ) ) १ स्नान । डुबकी । गोता । आठवनम् (न० ) )२ चारो ओर पानी का छिड़काव/- प्रतिन, या-आतिन् (50) | गृहस्थ जिसने ब्रह्मचर्याश्रम से निकल गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया हो । स्नातक [ बाढ़ बुड़ा आतावः ( पु० ) १ स्नान। मार्जन २ जल की | आफूकं (न० ) अफीम । | आवद्ध ( ० कृ० ) १ बंधा हुआ जकड़ा हुआ। २ गड़ा हुआ। ३ बना हुआ ४ पाया हुआ १२ रुका हुआ । 1 आवडम् ( म० ) ११ याँधना | जोड़ना | २ जुआं आवद्धः (पु० ) १ आभूषण | ४ स्नेह | आबंध: आवन्धः ( पु० ) ) बंधन बाँधने धम्, आवन्धनम् (न० ) ) की रस्सी । २ जुए का जात | ३ गहना | शृङ्गार | ४ स्नेह । थाब: ( पु० ) १ चीर डालना या खींच लेना । आभुझ आभाणकः ( 30 ) कहावत । आभाष: (०) सम्बोधन | २ उपोद्धात भूमिका आभाषणम् (न० ) परस्पर कथोपकथन | बातचीत। यामासः (go ) १ चमक । दसक आव २ निदि ध्यासन । भावना ३ समानता । साढश्य | ४ कलक | मिथ्याज्ञान २ तात्पर्य । अभिप्राय } ( वि० ) चमकीला | सुन्दर | आभासुर आभास्वर आभासुरा आभास्वरः । प्राभिचारिक ( वि० ) [ श्री० ~ धाभिचारिकी ] 2 ऐन्द्रजालिक | बाजीगर धमानुषिक २ शापित । अभिषाषित अकोसा हुआ। आभिजन (दि० ) [ स्त्री० - प्राभिजनी ] जन्म सम्बन्धी । | आभा ( स्त्री० ) १ चमक दमक | कान्ति। २ रूप | रंग। सौन्दर्य ३ सादृश्य। समानता । ४ छाया- चित्र छाया परई। प्रतिविम्ब ( पु० ) चौसठ देवगण का समूह | व्याभिजनम् ( न० ) कुलीनता | सकुलोवता | आभिजात्यम् ( न० ) १ कुलीनता | २ पड़ ३ विद्वत्ता | ४ सौन्द भिषा ( स्त्री० ) १ शब्द | स्वर २ नाम । घ्याभिधानिक ( वि० ) जो किसी कोप में दो । आभिधानिकः (go ) कोषकार | आभिमुरूपं ( ० ) १ थोर । तरफ २ सामने होना थामने सामने। J धानुकूल्य । आमिरूपकः ( पु० ) } सौन्दर्य सुन्दरता यिम् (न० ) ) याभिषेवनक (वि० ) [ स्त्री०-प्राभिषेचनकी अभिषेक सम्बन्धी | आभिहारिक ( वि० ) [ स्त्री०- अमिहारिकी ] भेंट करने योग्य चढ़ाने योग्य । २ मार बाबना। आवाध: ( पु० ) क्लेश कष्ट सन्ताप हानि | घ्याबाधा ( श्री० ) १ चोट। पीदा। कट | २ मान- | श्राभिहारिकम् (न० ) भेंट चढावा | सिक केश या सन्ताप | सूचना आभी दण्यम् ( न० ) निरन्तर आवृत्ति । आयोधनम् ( स० ) ज्ञान | समझ । २ शिक्षण | प्राब्द (वि० ) बादल सम्बन्धी या बादल का ध्याब्दिक (वि० ) वार्षिक सालाना । आमीर: ( पु० ) अहीर ( बहुवचन में ) एक देश का नाम तथा उस देश के निवासी - परिजः, पल्ली (स्त्री० ) अहीरों का गाँव । ध्याभरणं ( न० ) १ गहना | ज़ेवर शृङ्गार | २ पालन पोषण की किया । -- भयप्रद । डरानेवाला । आमीरी (स्त्री० ) अहीरिन । थाभील ( वि० ) भयानक भाभीलं ( न० ) चोट । शारीरिक पीड़ा आभुझ (वि० ) जरासा सुका हुआ धोका टेका। प्राभोग+ (०) गोलाई चकर | वृद्धि | सीमा कार। विस्तार लंबाई चौड़ाई | ३ उद्योग । ४ सांप का फैला हुआ फन । ५ भोगविलास | तृप्ति | प्राभ्यंतर ) (वि०) [स्त्री०-ग्राभ्यन्तरी] भीतरी । आभ्यन्तर अंदर का। भीतर की ओर। आभ्यवहारिक ( वि० ) [ स्त्री० -आभ्यवहारिकी ] खानेयोग्य । आभ्यासिक ( वि० ) १ अभ्यास से उत्पन्न या अभ्यास का फल । २ अभ्यास आवृत्ति । ३ समीपी। पड़ोस का अभ्यासिक । आभ्युदयिक ( वि० ) [ स्त्री० - अभ्युदयिकी ] १ शुभकर्मों की वृद्धि के लिये । २ उच्च । शुभ आवश्यक | याभ्युदयिकम् ( न० )) किली मङ्गल कार्य में पितरों के उद्देश्य से किया गया श्राद्ध कर्म । ग्राम् (अव्यया० ) स्वीकारोक्तवाची धन्यय | ध्याम ( वि० ) १ कञ्चा | अधसिका। २ अनपका | ३ अनसिका १४ आशयः, (पु० ) पेट की वह थैली जिसमें खाया हुआ न रहता है। पेट का ऊपरी भाग – कुम्भः, ( पु० ) कच्चा घड़ा । - गन्धि, (न० ) कच्चे माँस की या मुर्दे के जलने की गन्धि - ज्वरः, ( पु० ) एक प्रकार का ज्वर- त्वच, ( वि० ) कोमल चाम का । ~ रक्त, ( न०) दस्तों की बीमारी जिसमें आँव गिरे। - रसः, ( पु० ) अर्धजीर्ण भुक्तद्रव्य । - वातः ( पु० ) अजीर्ण | अनपच |~ शूल:, (पु० ) वायगोले का दर्द। आँव सुरेह का रोग । ध्यामः ( पु० ) १ रोग । बीमारी । २ अजीर्ण | कोष्ठ- चद्धता | ३ सुसी अलगाया हुआ अनाऊ । (वि० ) मनोहर | प्यारा । पेट की मरोड़ । मंजु } श्रमजु आमंड: आमण्डः ( १३४ ) } (लु०) रण्डवृष्ख । रॅडी का रूख । आमानस्य } ( न० ) पीढ़ा। शाक। प्रामुष्मिक बुलावा । न्योता विदाई । ३ बधाई । ४ अनुमति । ६ वार्तालाप | ७ सम्बोधन कारक । आमंद्र ) ( वि० ) गम्भीर स्वरवाला । गुड़गुड़ा- आमन्द्र ) हट का गम्भीर स्वर। गुड़गुडा- बीमारी । अस्वस्था । मंद्र ( ( पु० ) हल्का आमयः ( पु० ) १ रोग | श्रामन्द्रः हट । २ इति । चोट । श्रमावि (वि० ) बीमार । कब्जियत चाला | जिसको अनपच का रोग हो । आमंत्रणम् ( न० ) ) १ मंत्रणा (स्त्री० ) (२ D आमरणांत आमरणान्त आमरणांतिक आमरणान्तिक आमः ( पु० ) कुचलना । पीस डालना । रगड़ डालना । ( वि० ) [ स्त्री०–आमरणा- न्तिकी ] मृत्यु तक रहने वाला । यावजीवन रहने वाला । क्रोध कोप | रोप | गुस्सा | मर्श: (पु० ) १ स्पर्श करना | रगड़ना | २ परा- मर्श । सलाह मशवरा । अनसम्हला । आमः (पु० ) अनपचा-मर्पणम् ( न० ) ) अधीरता । आमलकः ( पु० ) आमलकी (स्त्री० ) ) प्रामात्यः ( पु० ) दीवान | वजीर | मुसाहिब । मलकम् (न० ) आँवले का फल । } आँवले का पेड़ | आमानस्य ( न० ) पीड़ा । शोक । श्रामिक्षा (स्त्री० ) मठा | छांछ | तक | आमिषं (न०) १ गोश्त | माँस | २ (आलं०) शिकार। आखेट ! भोग्य वस्तु | ३ भोजन | चारा | दाना । ४ रिश्वत | उत्कोच । घूस ५ अभिलापा । कामेच्छा | ६ भोगविलास । प्रिय या मनोहर वस्तु । प्रामीजनम् ( न० ) नेत्रों का बंद करना या मूँदना । आमुक्तिः ( स्त्री० ) पहनना। धारण करना। ( पोशाक या कवच । ) मुखं ( न० ) १ घारम्भ । २ नाव्य साहित्य में ) प्रस्तावना । ( अव्यया० ) सामने। आगे। आमुष्मिक ( वि० ) [ स्त्री०- श्रामुष्मिकी ] पर- लोक से सम्बन्ध रखने वाला। परलोक का। प्रामुष्याया ( १३५ ) आयत प्रामुष्यायण ( वि० ) 1 [स्त्री० -श्रामुष्यायणी] | आम्रेडनम् ( न० ) पुनरावृत्तिः | दुहराना | फेरना । प्रामुष्यायणः (पु० ) सत्कुलोद्भव । किसी प्रसिद्ध पुरुष का पुत्र | श्रामुख्ता करना | आप्रेंडितम् (न० ) किसी शब्द या स्वर का बार बार दुहराया जाना व्याकरण की एक संज्ञा । ) ( स्त्री० ) ( न० ) १ खटाई । तुर्शी | ( पु० } इमली का पेड़ | आम्ला आलिका } (स्त्री- ) इमली का वृक्ष । मोचनम् ( न० ) १ खोल देना | ढील देना | छोड़ देना | २ गिराना | निकालना | उड़ेलना | २ बाँध रखना । प्रमोटनम् ( न० ) कुचलना । पीस डालना । मोदः ( पु० ) १ हर्य । आनन्द । प्रसन्नता । २ सुगन्धि | सुवास | ग्रामोदन (वि० ) प्रसन्नकारक । हर्षप्रद । आमोदनं ( न० ) १ प्रसन्नता | हर्ष | २ सुवासित करना। सौरभान्वित करना । आमोदिन (वि० ) प्रसन्न । हर्षित | सुवासित । मोषः (पु० ) चोरी । डाँका । पिन (०) चोर। ध्यानात ( ३० कृ० ) १ विचारित । २ अधीत । पुनरावृत्त | ३ स्मरण किया हुआ | ४ परंपरागत प्राप्त । आम्नानं (न० ) अध्ययन यः (पु० ) १ ( ब्राह्मण, उपनिषद और आर सयकों सहित ) वेद । २ वंशपरम्परागत परिपाटी । कुल की रीतिभाँति | ३ विश्वासमूलक उपदेश । गुरोपदिष्ट शिक्षा ४ परामर्श मंत्रणा या उपदेश । आंबियः ) ( पु० ) धृतराष्ट्र और कार्तिकेय की आम्बिकेयः उपाधि | []) (चि० ) [ स्त्री० --आम्भासिकी ] आम्भासिक) पनीला । रसोला । आंसिकः आम्भासिकः } ( पु० ) मत्स्य । माही । आः (पु० ) आम का पेड़ । कूटः ( पु० ) एक पर्वत का नाम । - पेशी (स्त्री० ) अमावट । आम का रस जो जमा कर सुखा लिया जाता है। - वर्ण ( न० ) आम का कुञ्जवन । आम की उद्यानवीथिका । आ ( न० ) श्राम के वृक्ष का फल । आत्रातः (पु०) आमाड़ा का पेड़ आत्रातम ( न० ) आमड़ा के पेड़ का फल । तकः (०) १ आमड़ा का वृक्ष । २ अमावट । प्रायः (पु० ) आगमन आना २ धनप्राप्ति | धनागम | ३ आय। आमदनी प्राप्ति । ४ लाभ | फायदा । नफ़ा | ५ जनानखाने का रक्षक /- व्यय (द्विवचन) आमदनी खर्च यः शुलिक (वि० ) [ स्त्री० - [प्रायः शूलिकी, 1 कार्यतत्पर । परिश्रमी : अलिष्ट । अध्यवसायी । प्रायःशूलिकः ( पु० ) अपनी उद्देश्य सिद्धि के लिये जोरदार उपायों से काम लेने वाला पुरुष । चायत ( व० ० ) १ लंबा | २ विस्तृत | परिव्याप्त ३ बड़ा | ४ आकर्षित | ईचा हुआ । ५ मुबा हुआ । रुह 1- अक्ष, ( वि० ) प्रती, ( स्त्री० ) - ईक्षण, नेत्र, लोचन, ( वि० ) बड़े नेत्रों वाला या बड़े नेत्रों वाली । अपाङ्ग बड़े कोए वाली आँखे-आयतिः, ( स्त्री० ) बहुत दिनों बाद आने वाला भविष्यकाल - छदा, (स्त्री० ) केले का पेड़ । कदली वृक्ष - लेख, ( वि० ) बहुत मुड़ा हुआ /-~-स्तू, (पु० ) भाट । स्तुतिवादक। आयतः (पु० ) चौड़ाई की अपेक्षा लंबा अधिक। आयतनम् १ ( न० ) १ स्थान । निवासस्थान । घर । डेरा | २ अग्निवेदी । अग्निकुण्ड | ३ देवालय । मन्दिर । ४ घर का स्थान | आयतिः ( स्त्री० ) १ लंबाई । बिस्तार | २ भविष्यद् काल । भविष्य | ३ भावी फल । ४ राजश्री । प्रताप | महिमा । ५ हाथ बढ़ाना । स्वीकृति । प्रसि । ६ कर्म । आयत (व० कृ०) 1 अवलम्बित पराधीन । परतंत्र | २ शिक्षणीय वश्य । नन्न । ( १३६ ) आयत्ति आयत्तिः ( जी० ) १ परवशता | वश्यता २ स्नेछ । ३ सामर्थ्य | ४ सीमा । मर्याद | ५ सुविधा- जनक ६ प्रताप महिमा । ७ चरित्र की दवा || श्रायथातथ्ये (न० ) अयोग्यता । अनुपयुक्तता | | अनौचित्य 1 1 । आयमनम् ( न० ) १ लंबाई विस्तार । २ संचम । थंधन | ३ ( धनुष को ) तानना । [ जालसा | आयत्तकः ( पु० ) अधैर्य अधीरज उतावलापन | द्यायस ( वि० ) लोहे का बना लोहा धातु का | आयसं (१०) : जोहा २ लोहे की बनी कोई भी वस्तु। ५ हथियार | दुःखी । २ आयसी (स्त्री० ) कवच | आयस्त (०० ) १ पीड़ित | कठित चोटिल | २ क्रुद्ध ४ तीक्ष्ण आयानम् ( न० ) आगमन | स्वभाव | मिजाज 1 आयाम: ( पु० ) १ लंबाई २ विस्वार फैलाव । ३ यसरना। आगे बढ़ना | ४ संयम दमन बंद करना । (वि० ) हथियार से जीवन निर्वाह करने वाला | ( पु० ) योद्धा सिपाही । धारण्य श्रायुष्य - ( वि० ) धायु बढ़ाने वाला जीवन की रक्षा करने वाला। जीवनरक्षक । आयुष्यं ( म० ) जीवनी शक्ति | ३ आयुस् (न० ) जीवन जीवन की अवधि २ जीवनी शक्ति । ३ भोजन |[ समास में से का पू हो जाता है। जब सू किसी दीर्घ व्यञ्जन के पूर्व आवे तय हस्व व्यवन के पूर्व सू कार हो जाता है।]--कर, (वि०) उम्र बढ़ाने बाजा ।~-इव्यं ( न० ) घी ।- वेदः ( 5० ) चिकित्सा शास्त्र | -वेदद्वश, वेदिक, पेंदिन, (वि०) थोषधि सम्बन्धी । ( पु० ) वैय। चिकित्सक-शेषः, ( पु० ) १ बचा हुआ जीवन २ जीवन का अन्त । ३ आयु का हास (~-स्तोमः (= आयुष्टोमः ) ( पु० ) यज्ञ जो दीर्घजीवन की प्राप्ति के लिये किया जाता है। - श्रयामवत् (न०) बड़ा हुआ। लंबा । प्रयासः (पु० ) १ उद्योग । २ थकावट | आयासिन (वि० ) १ थका हुआ करने वाला उद्योग करने वाला। आयुक्त ( ० ० ) नियुक्त | नियत | २ संयुक्त आन्त १२ परिश्रम भास। [ सहायक। आयुक्तः ( पु० ) मंत्री । मिनिस्टर | गुमाश्ता । आयुधः (पु०) ) इथियार डाल | हथियार आयुधं (न०) ) तीन प्रकार के होते हैं। एक पीतल । "प्रहरण" जैसे तलवार दूसरा "हस्तमुक्त" जैसे | भारः ( पु० ) १ मङ्गलग्रह । २ शनिग्रह | भारा (खो०) १ मोची की राँपी । २ चाकू | ध्यारक्ष ( वि० ) रचित | आयुधिक ( वि०) आयुध सम्बन्धी प्रायुधिकः (पु० ) योद्धा सिपाही । आयुधिन् ) ( वि० ) हथियार धारण करने वाला घ्यायुधीय ) अथवा हथियार से काम लेने वाला। आयुष्मत् (वि०) १ जीवित | जिन्दा | २ दीर्घजीवी । ध्याये ( अन्ययः ) स्नेहन्यक्षक सम्बोधनात्मक अध्यय आयोगः (पु० ) नियुक्ति । २ किया ३ पुष्प- हार सुवासित द्रव्य | ४ समुद्रतट या किनारा | आयोगवः (पु०) [ खो०- यायोगवी ] वैश्या के गर्भ और शुद्ध के वीर्य से उत्पन्न सन्तान । बढ़ई। घ्यायोजनम् (न०) १ जोड़ना २ ग्रहण करना | लेना | ३ उद्योग प्रयत्न | प्रायोधनम् (न०) १ थुद्ध लड़ाई | संग्राम | २ रणभूमि । I चक्र, भाला, बरडी आदि तीसरा "यंत्रमुक्त" यथा तीर, बन्दूक, तोप। अगारं, यागारं, ( न० ) इथियारों का भाण्डारगृह -जीविन्यारतः ( ५० ) } १ बचाव | पालन | रक्षण । भारता ( श्री० ) ) २ कुम्भसन्धि । ३ सेना। भारतकः ( पु० ) १ चौकीदार संतरी २ देहाती आरक्षिकः । न्यायाधीश। पुलिस | मैजिस्ट्रेटे। आरट: ( पु० ) नट अभिनेता नाटक का पात्र | आर (पु० ) १ पीतक १२ लोह विशेष | ३ कोण । आरं (२०) J कोना ~~कूट: (१०) कूटम् (न०) एक्टर । प्रारणिः (पु० ) यंबदर उल्टा बहाव । आरण्य ( वि० ) [ स्त्री० आरराया, आरण्यी ] जंगली जंगल में उत्पन्न । . १३७ ) आरण्यक ( 1 आरश्यक ( वि० ) जंगली । जंगल में उत्पन्न । आरश्यकः ( पु० ) यनरखा जंगली मनुष्य जंगल का रहने वाला। धारण्यकम् (२०) वेद के आरुः ( पु० ) १ सूअर २ काईट | केकड़ा | ब्राह्मणों के अन्तर्गत | आरू ( वि० ) भूरे या सांवले रंग का | एक भाग जो या तो वन में बैठ कर रचे गये थे | आरूढ (व० कृ० ) सवार चढ़ा हुआ बैठा हुआ। } झारूदिः ( स्त्री० ) चढ़ाई | उठान | उचान | कः (पु० ) १ खाली करना | २ कुञ्चन । या जिनको कम में जाकर पढ़ना चाहिये । [स्तू शारयक ययेऽध्ययनादेव आरश्यमुदाहृतम्] भारतिः ( स्त्री० ) १ नीरांजन ) भारती धारनालं (न० ) माँड चॉयल का पसाव । भारः ( श्री. ) आरम्भारम्भ | आरभट (पु० ) उद्योगी पुरुष उत्साही पुरुष आरभट: (पु० ) साहस। विश्वास (स्त्री०) वृत्ति | आरभी (स्त्री० ) विशेष प्रकार का नृत्य । आरंभः ) (पु.) १ आरम्भ आरम्भः ३ कर्म शुरूआत । २ भूमिका कार्य | ४ शीघ्रता | तेज़ी | २ 1 i उद्योग चेष्टा प्रयल ६ दृश्य ७ वध | हनन । आरभ ( न० ) १ पकड़ना । काबू में करना । २ पकड़ दस्ता बेंट हैंडिल | 1 धारवः १ धावाज । २ चिल्लाहट । गुराहट । भौंक धारावः ) ( कुते भेदिये आदि की बोली ) । धारस्य (न०) अस्वादिष्टता। जिसमें ज्ञायका न हो । आरात् (अव्यया० ) १ समीप पड़ोस में । २ दूर | फासले पर। ३ दूर से दूरी से ध्यराति: ( पु० ) शत्रु | वैरी । धारातीय (वि० ) समीप नज़दीक २ दूर धारात्रिकम् ( न० ) भगवान के विग्रह की धरती करना । पाकि धारामिकः ( पु० ) माली यारालिकः ( पु० ) रसोइया | आराधनम् (न०) १ प्रसन्नता | सन्तोष | २ पूजन | सेवा शृकार ३ प्रसन्न करने का उपाय | ४ सम्मान । प्रतिष्ठा २ पाचनक्रिया । ६ सम्पन्नता | सफलता। आराधना ( पु० ) पूजन सेवा । आराधनी ( स्त्री० ) पूजन। शृङ्गार प्रसादन ( देवता का ) । आराधयि (वि० ) पुजारी। पूजन करने वाला। विनम्र सेवक । [२] बाग बगीचा आरामः ( पु० ) हर्ष । प्रसवता | आदाद । सिकुड़न रेचित (वि० ) कुञ्चित | सिकुवा हुषा । धारोग्यं ( न० ) सुस्वास्थ अच्छी तंदुरुस्ती । आरोपः (पु० ) संस्थापन | २ कल्पना ३ एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ की कल्पना करना। आरोपणम् ( म०) स्थापन लगाना मढ़ना । २ किसी पौधे को एक स्थान से हटाकर दूसरी जगह लगाना। रोपना। बैठाना | ३ किसी वस्तु के गुण को दूसरी वस्तु में मान लेना ४ मिथ्या ज्ञान अम २ धनुष पर रोदा चड़ाना | रोह (पु० ) १ सवार २ चदाई ( घोड़े की ) सवारी उठी हुई जगह । उचान | ऊँचाई | ५ अहंकार। अभिमान । २ पहाड़ | ढेर की फमर ) नितंय । चूतर |७ माप ६ (स्त्री विशेष | ८ खान। । प्रारोहकः ( पु० ) सवार चढ़ने वाला। रोहणम् (न० ) १ सवार होने की या ऊपर चढ़ने की किया । २ घोड़े पर चढ़ना ३ जीना सीढ़ी आर्कि ( पु० ) अर्क का पुत्र अर्थात् १ यम । शनिग्रह ३ राजा कर्ण ४ सुमो | १ चैवस्वत मनु | आ (वि० ) [ स्त्री०- सम्बन्धी ] नापचिक | तारका [ शहद की मक्खी। आर्धा (स्त्री० ) जाति विशेष अथवा पीछे रंग की तुष्टिसाधना (न० ) जंगली शहद | आर्च (वि० ) [ खो०- आर्थी] अर्चा करने वाला। पूजा करने वाला पुजारी। आर्थिक (दि०) ऋग्वेद सम्बन्धी । आर्चिकं (न० ) सामवेद की उपाधि | सं०१० कौ०-१८ आर्जवम् ( १३८ आर्जवम् ( न० ) १ सिधाई ।२ सीधापन | स्पष्ट वादिता | ईमानदारी सचाई | कुटिलता का अभाव । आर्जुनिः (पु० ) अर्जुनपुत्र | अभिमन्यु | श्रा (वि० ) अस्वस्थ । पीड़ित | कष्ट प्राप्त । ध्यार्तव (वि० ) [ स्त्री० आर्तवा, आतषी ] १ ऋतु सम्बन्धी । २ मौसभी ऋतु में उत्पन्न । सामयिक | ३ स्त्री धर्म का। आर्तवः ( पु० ) वर्ष 1 आर्तवम् ( न० ) १ रज जो स्त्रियों की योनि से प्रति मास निकलता है। २ रजस्वला होने के पीछे कति- पय दिवस, जो गर्भाधान के लिये श्रेष्ठ होते हैं। ३ पुष्प | प्रार्तवी (स्त्री० ) घोड़ी। आार्यकः है । २ वैश्या का पुत्र, जिसे ब्राह्मण ने पाला पोसा हो । आर्य (वि०) १ श्रेष्ठ आर्य के योग्य । २ श्रेष्ठ । प्रति- छित | कुलीन | उच्च । ३ उत्तम । समीचीन | सर्वोत्कृष्ट 1- गृहा ( वि० ) १ श्रेष्ठों द्वारा सम्मानित | २ श्रेष्ठ का मित्र । श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा उपगस्य | ३ सम्मानित | ४ ऋजु । सरल - देशः ( पु० ) आर्यों के रहने का देश । -~-पुत्रः (पु०) १ प्रतिष्ठित जन का पुत्र । २ दीक्षा गुरु का पुत्र | ३ बढ़े भाई का पुत्र | ४ सम्मान जनक संज्ञा । इसी प्रकार पति के लिये पत्नी का अथवा अपने राजा के लिये उसके सेनापति की सम्मानजनक संज्ञा । ५ ससुर का पुत्र (साला) | -प्राय, (वि०) आर्यों द्वारा आवाद । श्रेष्ठ जनों से परिपूर्ण । - मिश्र, (वि०) प्रतिष्ठित । सम्मानित | विख्यात 1- मिश्रः, ( पु० ) १ श्रद्रपुरुष । २ सम्मान सम्बोधन ।—लिङ्गिन (पु० ) धर्म | -भ्रष्ट, ( पु०) । शठ धूर्त भण्ड। -वृत्त, ( वि० ) नेक। भला ।-वेन, (वि० ) भली प्रकार परिच्छद पहिने हुए।– सत्यं, (न० ) महान् सत्य । श्रेष्ठ सत्य । -हृद्य, (वि० ) श्रेष्ठों द्वारा पसंद किया हुआ । यी (स्त्री० ) रजस्वला स्त्री | आतिः (स्त्री० ) १ दुःख क्लेश पीड़ा। (शारीरिक या मानसिक ) । २ मानसिक चिन्ता । ३ बीमारी। रोग। ४ धनुष की नोंक । २ नाश । विनाश | मार्खिजीन (वि०) ऋत्विज प्राज्यिं ( न० ) ऋत्विज का पद आर्थ (वि० ) [ श्री० आर्थी] किसी वस्तु या पदार्थ से सम्बन्ध युक्त आर्थिक (वि० ) [ स्त्री० --आर्थिकी ] १ अर्थयुक्त | २ बुद्धिमान् । ३ सारवान । वास्तविक । श्राई (वि० ) १ नम | तर| भींगा हुआ। २ हरा। रसीला | ३ ताज़ा टटका नया । ४ कोमल । मुलायम /-काउं, (न०) हरी लकड़ी। —पृष्ठ, ( वि० ) सींचा हुआ | तरोताजा |–शाक, ( पु० ) अदरक । आदी । आर्द्रा (स्त्री० ) नक्षत्र विशेष | छठवाँ नक्षत्र आकं ( न० ) अदरक आदी । ) प्रार्थ: (०)हिन्दुओं और ईरानियों का नाम | २ अपने धर्म और शास्त्र को मानने वाला ३ प्रथम तीन वर्ण । [ ब्राह्मण । क्षत्रिय | वैश्य |] ४ एक प्रतिष्ठित व्यक्ति | ५ कुलीन | ६ कुलीनोचित आचरण का व्यक्ति । ७ स्वामी । मालिक गुरु | शिक्षक | ३ मित्र | १० वैश्य | ११ ससुर । १२ बुद्धदेव | आर्या (स्त्री० ) १ सास । २ श्रेष्ठ स्त्री | ३ छन्द विशेष ।- प्रावर्तः, (पु० ) श्रेष्ठ पुरुषों का आवास स्थान देश विशेष जो पूर्व और पश्चिम में समुद्रों द्वारा और उत्तर दक्षिण में हिमालय और विन्ध्यगिरि द्वारा सीमावद्ध है। यति ( क्रि० ) भिंगाना । नमकरना । प्रार्ध (वि० ) आधा धार्धिक (वि० ) [ स्त्री० - आर्धिकी ] आधे से आर्धिकः ( पु० ) संबन्ध रखने वाला आधा बँटवाने वाला। वह जोता, जो खेत की पैदावार ले लेने की शर्त पर खेत जोतता बोता | थार्यकः ( पु० ) भद्रपुरुष २ पितामह । खासमुद्रात वै पूर्वादामुद्राय पश्चिमात् । तयोरेवान्तरं गिर्योः अयायतें विदुर्बुधाः ॥ - मनुस्मृति । का प्रार्यका ) ( स्त्री० ) श्रेष्ठा स्त्री | कुलीन प्रार्थिका 0- । श्रा (वि० ) [ स्त्री० -- आर्यो ] केवल ऋषियों द्वारा प्रयुक्त होने वाला या वाली ऋऋषियों की। वैदिक । पवित्र | पुनीत । अलौकिक । आर्षः (पु० ) ऋषिप्रोक्त आठ प्रकार के विवाहों में से एक। जिसमें कन्या के पिता को, वरपक्ष से एक या दो गौएँ दी जाती है। खादायार्यस्तु गोइयम् | आप ( न० ) ऋषिप्रणीत शास्त्र | वेद । (पु०) ( १३९ ) याज्ञवल्क्य । जो इतना बढ़ा हो कि काम में लाया जासके या साड़ बना कर छोड़ा जासके। पेय (वि० ) [ स्त्री – आयी ] १ ऋषि का । ऋषि सम्बन्धी | २ योग्य मान्य । प्रतिष्ठित । आई (वि०) [स्त्री०आईती] जैन सिद्धान्त-वादी । आईतः ( पु० ) जैनी । 1 आईतम् ( न० ) जैनियों का सिद्धान्त । आती ( पु० ) आन्न्यम् (न० आलः ( पु० ) ) आलं ( न० ) योग्यता 1 १ मछली आदि के झंडे २ पीतसंखिया | हरताल । श्रालानम् ( न० ) १ हाथी बाँधने का खंभा या खूंटा हाथी के बांधने का रस्सा | २ बेड़ी | ३ जंजीर । सकड़ी। रस्सा | ४ बंधन | [ वाला थालानिक (वि०) हाथी बांधने के खंभे का काम देने श्रालापः (g० ) १ वार्तालाप | बातचीत कथोप- कथन | सम्भापण | २ वर्णन | कथन | ३ तान | सङ्गीत के सप्त स्वरों का साधन । आलापनम् (२०) वार्तालाप | कथोपकथन । आलादुः आलावू } (स्त्री०) कुम्हड़ा । कुहँदा । कूष्माण्ड । आलख ( (पु०) १ अवलम्ब | आश्रम | धुनकिया। श्राजावतम् (न० ) कपड़े का बना पंखा। [सथा। आलंक: २ २ सहारा | रक्षण | आलंवनम् | ( म० ) १ धवलम्ब । श्राश्रय | २ आलम्बनम्। सहारा २ आधार अवस्थान ४ कारया हेतु २ रस में विभाग विशेष उसके अवलम्ब से रस की उत्पत्ति होती है। आलि (वि० ) १ निकम्मा | तुस्त | २ ईमानदार। | आलि. (पु० ) १ बिच्छू | २ मधुमक्षिका | आली ( स्त्री० ) १ सखी सहेली | २ कतार । अवलि | ३ पंक्ति | लकीर रेखा ४ पुस । सेतु। ५ बांध | थालिंगनं ) ( न० ) चिपटाना। गले लगाना । थालिङ्गम् ) परिम् । लिंगिन् । प्रालिङ्गिन् थालिंगी (स्त्री० ) लिङ्गी (स्त्री०) | श्रलियः ( पु० ) । आलियः ( पु० आलिङ्गयः श्रालयः (पु० ) आलयं ( न० ) १ घर । गृह | २ आधार | ३ स्थान | जगह। प्रालर्क ( वि० ) पागल कुता सम्बन्धी या पागल कुत्ते के कारण हुआ। ध्यालवरायं (न०) १ जिसमें निमक न हो। जिसमें स्वाद न हो । २ जिसमें कुछ लुनाई न हो। बदसूरत कुरूप। ध्यालगर्दः (पु० ) पनिया सौंप आलभनम् ( न० ) १ पकड़ना | २ स्पर्श करना। ३ मार डालना। आलंबिन् ? (वि०) १ लटकता हुआ चुका हुआ। मालम्बिन्। सहारा | लिये हुए । २ समर्थित | ३ | पहिने हुए। धारण किए हुए। ( पु० १ पकड़ना स्पर्श करना । 31 आलम्भः पु० २ चीरना। फाड़ना । २ आलंभनम् ( न० ) यज्ञ में बलिदान के लिये पशु आलम्भनम् (न० ) का वध करना। यथा “अश्वा- लम्भं गवालम्भम् ।" आलंभ प्रालवालं ( न० ) खोड्या थाला । भालस (वि०) [स्त्री० -- यालसी] सुस्त । काहिल । भालस्य (वि० ) बालसी । सामर्थ्य होने पर भी आवश्यक कर्तव्य का पालन न करने वाला । अकर्मण्य उदासीन । [ उदासीनता । आलस्यम् (न० ) सुस्ती काहिली | अकर्मण्यता । आालातम् (न० ) लकड़ी जिसका एक छोर जलता हो । लुाठी । लुक | ( वि० ) चिपटाये हुए ) सवाकार । छोटा । आलिंजर आलिञ्जरः आलिंदः आलिन्दः आजिदकः थालिन्दकः आजिपनं आलिम्पनम् थालिजर ( पु० ) मट्टी का मटका या महा घड़ा। ( पु० ) १ चबूतरा | चौतरा । १४० ) } { पु० ) पुताई । लिपाईं। घुघ्बू । २ श्रावनूस । झालीदम् (म०) दहिना घुटना मोद कर बैठना बैठने का शासन विशेष । भालु ( म० ) धन्नौटी। वेयर | धातुः (पु० ) उल्लू काले आबनूस की लकड़ी। धातुः (स्त्री० ) बड़ा आलंचनम् ) (न०) नोंच कर उखाड़ना चीर फाड़ नम् कर टुकड़े टुकड़े कर डालना। आलुल (दि० ) १ हिलने डुलने वाला | २ निर्वल । प्यालेखनम् (न०) १ लेख । २ चित्रण | ३ खरोंचन । खसोटन | 1 झालेखनी (स्त्री० ) कूंची क़लम आलेख्यम् ( न० ) 1 हाथ से बनायी हुई तसवीर । तसवीर । चित्र १२ लेख -शेष ( वि० ) सिवाय चित्र के जिसका कुछ भी न बचा हो अर्थात् मृत मरा हुआ। श्रलेपः (पु.) आलेपनम् ( म० आलोकः ( 30 ) ) आलोकनम् (न० ) १ मालिश। उपटन। क्षेप 1 २ पलस्तर | १ चितवन अवलोकन | J २ दृश्य | दर्शन | ३ प्रकाश। ४ आव | कान्ति। २ बधाई | आलोचक (वि० ) देखने वाला आलोकम् (ज०) देखने की शक्ति या कारण । आँचने वाला । देखने का हेतु ( न० ) व्यावसति आवनेयः (पु० ) भूसुत । मङ्गलग्रह । आवंय | ( वि० ) अवन्ती | ( उज्जैन ) से आया आवन्त्य / हुआ या अवन्ती से सम्बन्ध युक्त। आर्थत्यः ) ( पु०) १ धवन्ती का राजा या निवासी । आवस्यः पतिताण की सन्तान । " दोष-निरूपण । विवेचना | १ हिलाना । गड्बड्डू थोडना ( } करना। हिलाना डुलामा । २ मिश्रण करना । मिजाना । आलोल ( वि० ) १ जरा जरा हिलता हुआ। काँपता हुआ घूमता हुआ। २ हिलता हुआ | आन्दोलित | 1 श्रावपनम ( म० ) १ बीज बोने बखेरने या फेंकने की क्रिया २ बीज बोना ६ मुंडन हजामत ४ पात्र घड़ा धारी। करवा लोटा | आवरकं (न० ) उन । पर्दा । घूंघट यावरणम् (२० ) १ ढाँकना छिपाना मुंदना | २ बंद करना। घेरना ६ वक्षन | पर्दा ४ रोक । अड़चन २ घेरा हाता | खारदीवाली । ६ वा | कपड़ा | ७ ढाल !-शक्तिः ( स्त्री० ) आमा व चैतन्य की दृष्टि पर परदा डालने वाली शक्ति | आवर्तः (पु० ) १ घुमात्र चार भँवर ३ विचार | विवेचन बाल १२ घनी बस्ती ६ रत्न विशेष २ यवंडर | ४ बुँघराले लाजा- वर्त । ७ सोनामक्खी । = चिन्ता | १ बादल जो पानी न बरसायें । | धावर्तकः ( पु० ) १ बादल विशेष| २ बवंडर | ३ चर फेरा धुंधराले बाल आवर्तनः ( पु० ) विष्णु । आलोचनादेखना पहचानना । गुण- ध्यावलित (वि० ) थोड़ा सा मुदा हुआ। आलोचनम् (न० आवर्तनम् ( न० ) १ घुमाव | चक्कर | २ धावर्तन । घूर्णन ३ (तुओं का) गलाना 8 आवृत्ति । ५ दही या दूध का रखना। यावर्तनी (स्त्री० ) घरिया; जिसमें रख कर सुनार लोग सोना चाँदी गलाते हैं। ध्यावलिः ( स्त्री० ) 1 रेखा | पंक्ति २ श्रेणी | आवली कतार ! आवश्यक ( वि० ) [खी०-आवश्यकी] १ शरूरी। सापेध्य १२ प्रयोजनीय जिसके बिना काम न चले। आवश्यकम् (न० ) आवश्यकता | ऐसा कर्म या कर्त्तव्य जिसके विना काम न चले । अनिवार्य परिणाम | ध्यावसतिः (स्त्री० ) रात | भाभी रात । श्रावसथ वसः (पु० ) ावसस्थान | मकान | घर | २ विश्रामगृह | ३ छात्रालय | मठ | कुटी | ४ वृत्त विशेष | ( १४१ ) श्रावसध्य (वि०) घर वाला। घर के भीतर । श्रावसथ्यः (g० ) अग्निहोत्र का अग्नि जो घर में रखा जाता है। आवसथ्यम् (न० ) छात्रावास । छात्रनिलय । २ मठ | कुटी | ३ घर । मकान | व्यावमित (वि० ) १ समाप्त | सम्पूर्ण | २ निर्णीत | निश्चित । निर्धारित । आवसितम् (न० ) पका हुआ धनाज | [ हुए। श्राव (वि० ) उत्पन्न करते हुए। पथ दिखलाते आवापः (०) १ बीज बोना। २ बखेरना। ३ आल बाजा । ४ बरवन । अनाज । अनाज रखने का बर्तन | ५ पेय पदार्थ विशेष ६ कंकण । ७ ऊपढ़ खाबड ज़मीन व्याधापक: ( पु० ) कंकण पहुँची। वापनम् ( न० ) करवा | भावालं ( न० ) थाला। खोडुआ | भावासः ( पु० ) १ घर मकान बस्ती । २ आवासस्थल । आवाहनम् ( ० ) इलावा न्योता आमंत्रण । २ देवता का आह्वन २ अग्नि में थाहुति देना। भाविक ( वि० ) [ स्त्री० आविकी ] १ भेद सम्बन्धी । २ ऊनी । करना | आविष्करणम् ( न० ) आविष्कार ( पु० ) वेशनम् प्रविष्ट ( व० ० ) १ प्रविष्ट | घुसा हुआ | २ धावे- शित ( भूत प्रेत द्वारा ) । ३ मरा हुआ। वश में किया हुआ ४ सर्वग्रास किया हुआ घेरा हुआ। रत। सचेष्ट। हुआ। विभांवः (पु० ) १ प्रकाश प्राकम्य [ २ अवतार | उत्पत्ति । t आविल (वि० ) १ मटीला। गंदलर मैला। गंदा २ अपवित्र | ३ काले रंग का कलौंहा ४ धुंधला | मंद | आविलयति ( कि पर० ) धब्बा लगाना | कलङ्कित आविस् (अव्यया० ) सामने। नेत्रों के आगे खुलं- खुल्ला साफ तौर पर स्पष्टसः | आावीतं ( न० ) अपसव्य दहिने कंधे पर अनेक रखने की क्रिया । आबुक: (पु० ) (नाटक की भाषा में ) पिता । आवृतः ( पु० ) भगिनीपति। बहनोई | श्रावृत् (स्त्री० ) १ किसी और का या मुड़ा। प्रवेश | २ क्रम | विधि | तरीका | ३ रास्ते का मोह रास्ता दिशा ४ प्रायश्चित्त विशेष । प्रावृत्त (व० ० ) १ धूमा हुआ। चकर खाया हुआ | लौटा हुआ। २ दुहराया हुआ ३ अभ्यस्त पड़ा हुआ। सीखा हुआ। अधीत । श्रावृत्तिः ( स्त्री० ) 1 प्रत्यावर्तन | लौटना | २ पल- टाव। ( सेना का पीछे ) हटाव | ३ परिक्रमा । यकर ४ धूमकर या चकर काट कर पुनः उसी स्थान पर धाना जहाँ से रवाना हुआ हो। १ वारं- बार जन्म और मरण लौफिक जीवन | ७ बार- चार किसी बात का अभ्यास ७ पुनरावृत्ति । दुहराना । यविकम् ( न० ) ऊनी कपड़ा। श्रावग्न (वि०) दुःखी । विपद्ग्रस्त । मुसीवतज़दा । थाविद्ध ( स० कृ० ) १ बिदा हुआ | दिया हुआ | २ टेदा झुका हुआ ३ ज़ोर से फेंका हुआ। चलाया | यावेदनम् ( म० ) आवृष्टिः (स्त्री० ) वर्षा । फुआरः) आवेग (०) बेचैनी | चिन्ता | उद्विग्नता घबरा- हट । व्यस्तता चित्तचाचल्य २ धवराइट। उतारी। F सूचना | इतिला २ प्रति- ३ अपनी दशा को सूचित अर्जीवा स्मरण | वर्णन करना। अर्जी आवेशः (पु० ) 1 व्यासि | सन्चार । प्रवेश | २ अनुरक्ति | ३ अभिमान र ४ चित्तचावल्य | क्रोध रोष ५ भूतावेश | किसी प्रेत का किसी के शरीर पर अधिकार होना भूतप्रेतबाधा सूगी की मुख । १ १ प्राकव्य । प्रकाश | | घ्यावेशनम् ( न० ) १ प्रवेश द्वार २ भूत प्रेत की ) साक्षात्करण । बाधा । ३ क्रोध रोप ४ कारखाना घर प्रवेशिक घ्यावेशिक ( दि० ) [ स्त्री० -आवेशिकी ] १ विल- क्षण | निज का | २ पुश्तैनी । प्रवेशिकः ( पु० ) महमान। अतिथि । अभ्यागत | आवेंक: ( पु० ) दीवाल। घेरा हाता। आवेशनम् (न) १ बेठन | बन्धन | २ लिफाफा | रैपर । ३ दीवाल हाता। घेरा। प्राश (वि० ) खानेवाला। भक्षक। आशः ( पु० ) भोजन । शंसनम् ( न० ) १ प्रतीक्षा | अभिलाषा १२ कथन | घोषणा | [ घोषणा | आशंसा (श्री०) अभिलाषा | आशा । २ भाषण | शंसु (वि०) अभिलाषी | आशावान | आशंका । (स्त्री० ) १ भय । डर । २ सन्देह । आशङ्का अनिश्चितता । ३ अविश्वास । शक । ( १४२ ) आशुशुक्षाणिः जाला । -भङ्गः, ( पु० ) आशा का टूटना |-- हीन, (वि० ) हतोत्साह। उदास । आषाढ (पु० ) आषाद का महीना । आशास्य ( स० का० कृ० ) वर द्वारा प्राप्तव्य । २ अभिलषित | शुबह । आशंकित १ (च० कृ० ) भयभीत । डरा हुआ। शक्ति 3 आशंकितं । (न०) १ डर । भय । २ सन्देह । शक | आशङ्गितम् । अनिश्चितता । आशयः (पु० ) १ शयनगृह विश्रामस्थल । २ आवसगृह । श्रश्रयस्थल ३ स्थान | आधार खात। गड़ा | ४ आमाशय । पेट । मेदा । ५ अभिप्राय | तात्पर्य | ६ मन हृदय ७ समृद्धि | ८ खत्ती । बखारी । ६ इच्छा | मर्जी 1१० प्रारब्ध भाग्य । ११ पशु पकड़ने का खात या गढ़ा। आशः (पु० ) अग्नि । आग। घ्याशरः (पु० ) अग्नि | २ राक्षस | दैत्य | ३ आशा ( न० ) १ आशा | इच्छा । अभिलाषा | २ आशीर्वाद । बरदान | दुआ । शिंजित ) ( वि० ) झनकारता हुआ । आशिज्जित | प्रशित ( बि० ) १ खाया हुआ । खाने का दिया हुआ । २ अघाया हुआ तृप्त । घ्याशितम् ( न० ) भोजन । आशितंगधीन । (वि० ) पशुओं द्वारा पहिले चरा आशितङ्गवीन । हुआ। } आशितंभव ) ( वि० ) अघाया। तृप्त हुआ । आशितम्भव ) प्रशितंभवम् । ( न० ) १ भोजन | भोज्य पदार्थ | शितम्भवः । २ तृप्ति । ( पु० भी होता है । ) आशिर ( वि० ) पेटू । भोजनभट्ट । आशिरः (०) १ अग्नि | २ सूर्य | ३ दैत्य | राक्षस आशिस (स्त्री०) : आशीर्वाद । दुआ । मङ्गलकामना । २ प्रार्थना । अभिलाया । कामना । ३ सर्प का विषदन्त ।-वादः ( पु० ) चचनं, ( न० ) मङ्गला कामना सूचक वचन दुआ। असीस । -विषः, (आशीर्विषः ) (पु०) सर्प । साँप | आशी (स्त्री० ) १ सर्प का विषदन्त । २ विष । गरज | ३ आशीर्वाद दुआ । – विपः, (पु० ) १ सर्प । २ एक विशेष प्रकार का सर्प । आशु (वि०) तेज । फुर्तीला :-कारिन्, (अव्यया० ) कृत, (वि०) कोई भी काम हो, शीघ्र करनेवाला । - कोपिन, (वि०) चिड़चिड़ा। तुनुक मिजाज । - ( वि०) तेज़ फुर्तीला -गः ( पु० ) १ हवा । २ सूर्यं । ३ सीर। -तोष, (पु०) शिव जी की उपाधि । - ब्रीहिः, ( पु० ) चावल जो वरसात ही में पक जाते हैं। हवा। आशवम् (न०) १ तेजी। फुर्ती २ आसव । अर्क। आशा (श्री० ) १ किसी अप्राप्त वस्तु के प्राप्त करने की अभिलाषा और उसकी प्राप्ति का कुछ कुछ निश्चय | २ अभिलाश | इच्छा | ३ मिथ्या अभि लापा ४ दिशा| अञ्चल । अवकाश । –अन्वित, -जनन, (वि०) आशावान आशाकारक - गजः, (पु०) दिसगज तन्तुः, (पु०) बहुत कम श्राशा -पालः, (पु०) दिग्गज । - पिशाचिका, (स्त्री०) घाशाराक्षसी । - बन्धः, (पु०) १ विश्वास २ साम्खना | भरोसा | आशा । ३ मकड़ी का | प्रशुशुणिः (पु० ) १ हवा । २ आग | आशुः (५०) याशु (न०) चाँवल, जो वर्षाऋतु ही में पक जाते हैं। आशेकुटिन् आशेकुटिन् (पु० ) पहाड़ शोषणं ( ) सुखाना | शौचं ( न० ) अपवित्रता । ( जनन मरण के समय होने वाला सूतक ।) आश्चर्य ( वि० ) अद्भुत । विस्मयकारी । असामान्य । श्राश्रयशः } (पु०) अग्नि । श्रजीव | आश्चर्यम् ( न० ) १ चमत्कार | जादू | २ विलय- णता | विचित्रता | आश्वासः आश्रयः (पु० ) आसरा | सहारा आधार विश्रामस्थल । आश्रयस्थल २ शरण | पनाह ३ भरोसा ४ घर | एक ६ सरकस | ७ सम्बन्ध सङ्गति | राजा के ६ गुणों में से अधिकार | स्त्रीकृति ।[८] आश्रयणम ( न० ) १ सहारा लेने की क्रिया | २ स्वीकृत करना पसन्द करना। ३ पनाह । आश्रय | न (वि० ) १ आश्रित । आश्रय लेनेवाला । २ सम्बन्ध युक्त | श्रव (वि० ) आज्ञाकारी । आज्ञानुवर्ती । प्रवः (पु० ) १ सरिता नदी चश्मा | सोता। २ प्रतिज्ञा | वादा ! प्रतिश्रुति । ३ दोष । अपराध | आश्रि (स्त्री० ) तलवार की धार [वाला | याश्रित (व० कृ० ) १ शरणागत | २ आसरे पर रहने | प्राश्रितः (पु० ) चाकुर नौकर। अनुयायी । आश्रुत ( व० ० ) : सुना हुआ | २ प्रतिज्ञात | स्वीकृत । मंजूर किया हुआ ( न० ) इस प्रकार पुकारना जो सुन पड़े। आश्रुतिः ( स्त्री० ) १ श्रवण | २ स्वीकृति । आश्लेषः (पु०) १ आलिङ्गन | चिपटाना । लिपटाना । गले लगाना । २ घनिष्ट सम्बन्ध सम्बन्ध आश्लेषा ( स्त्री० ) नवौँ नक्षत्र । [सम्बन्धी | श्राश्व (वि० ) [ स्त्री० आश्वी ] घोड़े का । घोड़ा श्वं ( न० ) बहुत से घोड़े। घोड़ों का समुदाय | अश्वत्थ (वि० ) [ स्त्री० -आश्वत्थी ] पीपल का बना हुआ या पीपल का या पीपल सम्बन्धी । ध्याश्वत्थम् (न० ) पीपल वृक्ष के फल । श्वयुज् (वि० ) [ स्त्री० --श्राश्वयुजी ] आश्विन मास से सम्बन्ध रखने वाला। आश्वयुजः ( पु० ) आश्विन मास महीना। (०) १ निन्दाबाद | प्रोक्षण | २ आश्च्यातनम् ) पलकों पर घी आदि लगाना । आश्म (वि० ) [ स्त्री०- आश्मी ] पत्थर का बना हुआ। पथरीला । [ का बना हुआ। आश्मन (वि०) [स्त्री० -प्राश्मनी ] पथरीला पत्थर श्मनः (पु० ) १ पत्थर की बनी कोई वस्तु । २ सूर्य के सारथी अरुण का नाम । आश्मिक (वि०) [ स्त्री० - आश्मिकी ] १ पत्थर का बना। २ पत्थर ढोनेवाला या ले जाने वाला। आश्यान ( च० कृ० ) १ कड़ा | जमा हुआ | २ कुछ कुछ सूखा हुआ । आश्रं ( न० ) आँसू । [क्रिया। पणम् (न० ) पाचन की या उबालने की आश्रमः ( पु० ) ) १ साधुओं के रहने का स्थान | (०) ) कुटी । गुफा | २ ब्राह्मण के जीवन की चार अवस्थाओं में से कोई एक । [ चार अवस्थाएँ — ब्रह्मचर्य, गाईस्थ्य, वानप्रस्थ, संन्यास । रात्रिय और वैश्य को साधरणतः उक्त प्रथम तीन आश्रमों में प्रवेश करने का अधिकार है, किन्तु किसी किसी धर्मशास्त्रकार के मतानुसार ये दोनों वर्णं चतुर्थं ग्राश्रम में भी प्रवेश कर सकते हैं] ३ विद्यालय। पाठशाला । ४ चन। उपवन। --- गुरुः, (पु० ) प्रधानाध्यापक प्रिंसपल । -धर्मः, प्रत्येक आश्रम के कर्त्तव्य कर्म । २ संन्यासाश्रम के कर्त्तव्य । पर्व, मण्डलं, (न०) तपोवन ! - भ्रष्ट, (वि०) आश्रम धर्म से पतिल । -वासिन्, आलयः- सद्, (पु० ) तपस्वी । संन्यासी आश्वयुजी (स्त्री० ) आश्विन मास की आश्रमिक ) (वि०) चार आश्रमों में से किसी एक | आश्वलक्षणिकः ( पु० ) १ घोड़ों के नाल जड़ने आश्रमिन्) आश्रम का वाला । २ अश्ववैद्य | सालहोत्री ३ साईस । आश्वासः ( पु० ) १ स्वतंत्र रीत्या सांस लेना । २ सान्त्वना । प्रसन्नता | अभयदान | ३ निवृत्ति । | कार का [ पूर्णिमा | पूर्णमासी या वासनम अवसान ४ किसी पुस्तक का परिच्छेद या काण्ड | आश्वासनम् ( न०) दिलासा | तसही। टॉडस धीरज आशाप्रदान । आश्विकः ( पु० ) दसवार | आश्विन: ( पु० ) कार का महीना। आश्विनेयो (विचन ) दो आश्विनी कुमार | ये दोनों देवताओं के चिकित्सक कहे जाते हैं। शियन (वि० ) [ स्त्री० आश्विनो ] घोड़े पर सवार हो यात्रा करने वाला। आषाढ ( पु० ) १ वर्षाऋतु के प्रथम मास का नाम । २ पखास का वड भाषाढा (स्त्री० ) २० वाँ और २१ वाँ नक्षत्र | पूर्वापाढा और उत्तरापाड़ा। [ मासी । आषाढ़ी (०) आषाढ़ मास की पूर्णिमा या पूरन आमः ( पु० ) आठवाँ भाग या अंश । आस्, झाः ( श्रन्यवा० ) स्मृति, क्रोध, पीड़ा, अपा- करण, खेद, शोक-थोतक अव्यव आस् (धा० आ० ) [ आस्ते, आसिय ] बैठना। लेटना विश्राम करना २ रहना। बसना । ३ 1 चुपचाप बैठना बेकार बैठना | ४ होना । जीवित रहना २ अन्तर्गत होना । ६ जाने देना | छोड़ | देना ७ एक ओर रख देना । यासः ( पु० ) ) १ बैठक | २ कमान | भासम् (न० ) ) "ह साथि साझा साक्ष | " - किरातार्जुनीय । प्रासक ( ३० कृ० ) १ अनुरक्त | जीन | लिप्स | २ सुब्ध सुग्ध मोहित। आशिक । आसक्तिः (बी० ) १ अनुरक्ति | लिप्तता २ लगन । चाह। प्रेम। ३ इश्क। आसंगः ) (90) अनुराग अभिनिवेश २ संगति, थासङ्गः ) ( सोहबत मिलन ३ बंधन | आसंगिनी ) ( श्री० ) वचंडर | श्रासनी) आसुति. टता । २ अर्थबोधार्थ बिना व्यवधान के परस्पर सम्बन्ध युक्त दो पदों या शब्दों का समीप रहना। श्रासन ( म० ) मुख । आसनम् (न० ) १ बैठ आना। २ बैठक | बैठकी तिपाई। ३ बैठने का ढंग विशेष | श्रासन विशेष | ४ बैठ जाना या रुक जाना | मैथुन करने की कोई भी विशेष विधि | ६ प्रकार की राजनीति में से एक। वे ये हैं:- “सम्धिन विग्रहो याममाया" अमरकोष | शत्रु के सामना करने पर भी किसी स्थान पर दे रहना । ७ हाथी का कंधा। आसना (स्त्री० ) बैठक । सिपाई। टिकाव । ध्यासनी (श्री० ) छोटी बैठकी। यासंदी ) कोच | तकिया दार लंबी बैंच जिस पर आन्दी गद्दा मढ़ा हो । आसंजनम् ) ( न०) १ बांधना । लपेटना । ( शरीर- यासजनम् । पर ) धारण करना । २ फंसजाना। चिपट जाना ३ अनुराग। भक्ति | आसत्तिः ( स्त्री० ) १ संसर्ग | मेलमिलाप | २ घनिष्ट ऐक्य ३ लाभ फायदा ४ सामीप्य निफ- | । आसन्न ( च० कृ० ) समीपस्थ | निकट का उप- स्थित /-कालः, ( पु० ) १ मृत्यु की घड़ी । २ जिसकी मृत्यु समीप हो-परिचारकः, (पु०) ---चारिका, (बी० ) व्यक्तिगत चाकर। शरीर- रक्षक बाडीगार्ड | श्रासंवाध (वि० ) बंद किया हुआ। रोका हुआ | चारों ओर से रुका हुआ। संवाया भविष्यन्ति पन्या शरमिः । --रामाया । आसवः ( पु० ) अर्क २ काढ़ा ३ हर प्रकार का मय । [ मण । आसादनम् ( न० ) १ उपलब्धि | प्राप्ति | २ आक्र आसारः ( पु० ) मूसलधार सृष्टि २ शत्रु को घेरना। ३ आक्रमण हम्ला चढ़ाई ४ मिन राजा की सैन्य ५ रसद | भोज्यपदार्थ | आसिकः ( पु० ) तलवारबहादुर सिपाही । प्रसिधारम् (न० ) व्रत विशेष | प्रसुतिः (बी० ) परिश्रवण निःसरण क्षरया | खिंचाव टपकाव । आव २ फॉट काय | तलवारबंद काड़ा । आसुर ( १४५ ) ( स्त्री० आसुर (वि० ) [ स्त्री० आसुरी ] असुरों का || आस्तिकता असुर सम्बन्धी २ राचसो बारकी अधम घ्यास्तिक्यम् ( म० प्रासुरः (5० ) असुर । २ आठ प्रकार के आस्तिकत्वम् ( म० विवाहों में से एक। इसमें पर अपने लिये वधू को मूल्य देकर वधु के पिता या अन्य किसी सम्बन्धी से खरीदता है। श्रासुरी (सी०) १ जर्राही। चीरा फाड़ी का इलाज राक्षसी या अतुर की स्त्री। सूत्रित ( वि० ) १ पुष्प माला बनाना या पहि नना।२ ओतप्रोत | गुथा हुआ। आकः ( पु० ) सिंचन। जल से सींचना तर करना या भिगोना | उड़ेलना । [ । आसेचनम् (न० ) उड़ेलना। डालना। तर करना । आध: ( पु०) गिरातारी हवालात पकड़ रखना। गिरफ़्तारी चार प्रकार की होती है गया- "स्थानः कालः मवावात् फर्नसाया।" आस्तारः ( पु० ) बिछाना | ठाँकना | बखेरना | आस्तिक (वि०) [ स्त्री० --आस्तिकी ] : परलोक और ईश्वर में विश्वास रखने वाला २ बेड़ों पर आस्था रखने वाला । ३ पवित्र | सच्चा । विश्वासी | ▾ हालत । परिस्थिति । ७ समारोह | आस्थानम् (न० ) १ स्थान जगह २ प्राधार । आधारस्थल ३ समारोह ४ अड़ा पूज्य बुद्धि । १ सभा भवन । दरवार दर्शकों के बैठने के लिये विशाल भवन । ६ विश्रामस्थान | ग्रास्थित (व० कृ० ) निवास किया। ठहरा रहा। पहुँचा। मान गया। बड़े प्रयत्न से किसी काम में संलग्न | घिरा हुआ फैला हुआ। आसेवा ( स्त्री० )) १ उत्साह युक्त अभ्यास | आसवनम् (न० ) ) उत्साह पूर्वक किसी कर्म को | प्रास्पदम् (पु० ) १ स्थान | जगह । वैठक | कमरा । २ ( अलं० ) आावसस्थान ३ पद | मर्यादा । ४ प्रताप अधिकार । ५ मामला | ६ सहारा । ७ लग्न से दसवाँ स्थान 1 बार बार करने की प्रवृत्ति । २ पुनरावृत्ति | आस्कन्दः ( 5० ) १ | चदाई झस्किन्दनम् ( २० ) ) हम्ला | २ चढ़ना । सवार होना सीढ़ी पर चढ़ना ३ विकार भर्त्सना ४ घोड़े की एक चाल । २ युद्ध लड़ाई। स्कन्दितम् ( न० ) जोड़े की चाल विशेष आकम्तेिन डुलकी । आकन्दिन ( वि० ) कूदते हुए फलाँगते हुए हमला करते हुए आक्रमण करते हुए। आस्तरः ( 50 ) १ चादर चहर २ कालीन । गलीचा विस्तरा चढाई | ३ विड़ावन । यास्तरणम् ( न० ) विना | चादर | २ शय्या । ३ गड़ा । तोषक ! चादर | ३ ग़लीचा || २ हाथी की मूल विश्वास। श्रा। ईश्वरभक्ति। धर्मानुराग । | धास्तीकः ( ५० ) एक प्राचीन ऋषि का नाम । यह जरत्कार के पुत्र थे। इन्हीं के बीच में पढ़ने से महाराज जनमेजय ने सर्पयज्ञ बंद किया था। आस्था ( स्त्री० ) १ श्रद्धा पूल्यवृद्धि । २ स्वीका रोक्ति प्रतिज्ञा | ३ सहारा आश्रय आधार ४ थाशा भरोसा । ५ उद्योग प्रयत्न ६ दशा आस्माकोन ईश्वर और परलोक में विश्वास २ वेद में विश्वास | ३ सच्चाई आस्पंदनं ३ ( म० ) सिसकन । काँपन | थर- आस्पन्दनम् ) घराहट धड़कन | [ होड़ी। ध्यास्पर्धा (स्त्री० ) स्पर्धा | बरावरी । हिसं होड़ा- आस्फालः (पु०) १ धीरे धीरे चलाना या हुलाना। २ फटफटाना। ३ विशेष कर हाथी के कानों का आस्माक फटफटाना | आस्फालनम् (न० ) १ रगड़ना । मलना । चलाना । दवाना पछाड़ना। २ गये। यहद्वार। आस्फोट: (पु० ) ३ सदार का पौधा १२ ताल ठोंकना | आस्फोटनम् ( न० ) १ फटफटाना | २ अर थर काँपना। ३ फूंकना । फुलाना ४ सकोड़ना । मूँदना । २ ताल ठोंकना । आस्फोटा (स्त्री०) नवमल्लिका का पौधा । थसेली की भिन्न भिन्न जातियों 1 यास्माकीन (स्त्री० हमारे। आस्माकी ] इमारा | सं० ए० कौ०-१२ आस्य स्य ( न० ) १ मुख । ड़ाड़ें । २ चेहरा ३ मुख का वह भाग जिससे वर्ण का उच्चारण किया जाता है। ४ छेद । आासवः, ( पु० ) थूक । खकार - पत्रं, (न० ) कमल --लाङ्गलः, ( 30 ) । कुत्ता । २ शूकर ।-लोमन् (न० ) डाड़ी । स्यन्दनम् ( न० ) बहना । टपकना । आस्पंधय ( वि० ) चूमा चुम्बन आनं (न० ) खून 1 लोहू | रक्त । आपः ( पु० ) रक्त पीने वाला प्रास्त्रवः (पु० ) १ पीड़ा कष्ट राक्षस | दुःख २ बहाव । दौड़ | ३ निकास । ४ अपराध रोप | ५ चुरते हुए चावल का फेन । [ कष्ट । श्रावः (पु०) १ घाव। २ बहाव थूक | ४ पीड़ा | आस्वादः (पु० ) १ चखना | खाना | २ सुस्वाद । स्वादनम् (न०) चखना। खाना । (०) भर्त्सना । उग्रता । प्रभुत्वसूचक अव्ययात्मक सम्बोधन | (व० कृ० ) १ पिटा हुआ । चोट खाया हुआ। २ कुचला हुआ | ३ चोटिल | मरा हुआ | ४ (गणित में) गुणा किया हुआ। ५ (पाँसा) फेंका हुआ । ६ मिथ्या उच्चारित आाहतः ( पु० ) ढोल । [ असम्भव कथन । (न० ) १ कोरा कपड़ा | २ बेहूदा कथन । आघात | २ प्रहार । ३ प्राइतिः ( स्त्री० ) लठ्ठ । डंडा । [ चाला | आहर (वि० ) लाने वाला। जाकर लाने वाला लेने हर (पु० ) १ ग्रहण | पकड़ । २ परिपूर्णता । किसी कार्य को करने की क्रिया ३ बलिदान । र (न० ) १ छींनना। हरलेना। स्थानान्तरित करना। अपनयन ३ ग्रहण लेना | ४ विवाह में दिया जानेवाला दहेज़ " सत्वानुरूपाणी कृतश्रीः । रघुवंश | हवः (पु० ) १ युद्ध | लड़ाई २ ललकार । चुनौती ||३ यज्ञ | होम आहवनम् ( न० ) यज्ञ । होम | व्याहवनीय ( स० का० कृ० ) हवन करने योग्य । आन्हिक हवनीयः (पु० ) गार्हपत्याग्नि से लिया हुआ अभिमंत्रित अग्नि, जो यज्ञ करने के लिये यज्ञ- मण्डप में पूर्व दिशा में स्थापित किया जाता है। श्राहारः ( पु० ) १ लाना । हरलाना । २ भोजन करना। ३ भोजन 1-पाकः, ( पु० ) भोजन की पाचन क्रिया / – विरहः, (पु० ) फाँका । कड़ाका लँघन - सम्भवः, ( पु० ) खाये हुए पदार्थों का रस | आहार्य ( स० का० कृ० ) १ आहरणीय । २ पकड़ कर पास लाने योग्य | ३ कृत्रिम । बाहिरी ४ चार प्रकार के अभिनयों में से एक । ग्राहवः (पु० ) १ ढोरों को जल पिलाने के लिये कुए के पास का हौद | २ युद्ध | लड़ाई | ३ आह्वान | आमंत्रण | ४ आग | क) (०) वर्णसङ्कर विशेष | निषाद हिडिकः ) पिता और वैदेहि माता से उत्पन्न त (व० कृ० ) १ स्थापित | रखा हुआ । जसा किया हुआ। अमानतन रखा हुआ । टिकाया हुआ। डाला हुआ । किया हुआ | २ संस्कारित | - अग्नि ( पु०) अग्निहोत्री । - अङ्क, ( वि० ) चिन्हित | धग्वादार | माहितुण्डकः ( पु० ) सपेरा । मदारी । श्राहुतिः ( स्त्री० ) १ होम | हवन । किसी देवता के उद्देश्य से उसका मन्त्र पढ़ कर अग्नि में साकल्य का डालना । २ साकल्य की वह मात्रा जो एक बार हवनकुण्ड में छोड़ी जाय। अहुतिः ( स्त्री० ) आह्वान | आमंत्रण | आहे ( वि० ) सर्प सम्बन्धी । आहेयः ( पु० ) सर्प | सर्प का विष । आहो (अव्यया० ) सन्देह, विकल्प, मनव्यञ्जक अव्ययात्मक सम्बोधन | पुरुषका ( स्त्री० ) १ बढ़ी भारी अहंमन्यता | २ शेखी। अपनी शक्ति का बखान | स्थित् ( अन्यथा० ) १ विकल्प सन्देह । प्रश्न २ जानने की अभिलाषा । ३ दैनिक | न्हं (नं० ) बहुत दिवस | आन्हिक (वि०) [स्त्री०-आन्हिकी] प्रति दिन का दैनिक | नित्य प्रति होनेवाला काम । आन्दिक ( १४७ आन्हिकं (न० ) स्नान, सन्ध्या, सर्पण, भोजनादि ! नित्य के कृत्य | आल्हाद (पु० ) हर्ष | आनन्द । असक्षता । ग्राह (वि० ) बुलानेवाला। चिल्लानेवाला । हा (स्त्री० ) १ पुकार । चिल्लाहट । २ नाम । संज्ञा | यथा "अमृवाहः, शताह्नः ।" (०) नाम संज्ञा | २ जुश्रा | जानवरों की लड़ाई से उत्पन्न हुआ मामला, मुकदमा | ) इकवालः (पु० ) ज्योतिष में वर्षफल के सोलह योगों में से एक योग सम्पत्ति । इक्षवः ( पु० ) गन्ना ऊख इत्तुः ( पु० ) गन्ना उख। पौंड़ा। -काण्डः, (पु०) -काण्डम्, ( न०) दो जाति के गयों के नाम । -कुहकः, ( पु० ) गन्ना एकत्रित करने वाला। -दा, (स्त्री० ) एक नदी का नाम - पाकः, ( पु० ) शीरा। गुड़ जूसी चोटा | राब। भक्षिका, ( स्त्री० राब और चीनी का बना हुआ भोज्य पदार्थं विशेष । मती, मालिनी. मालवी, ( स्त्री० ) नदी विशेष :- मेहः, ( पु० ) प्रमेह विशेष । इसमें पेशाब के साथ मधु या शकर निकलती है। मधुमेह । इद्ध प्रमेह । -- रसः, ( 40 ) गन्ने का रस या शीरा ।वणं, ( न० ) गनों का बन या जंगल । विकार, इचिकिल "पणपूर्वक पनिमेषा दिवोधनंखाइयः । ” -राघवानन्द | आह्वयनम् ( न० ) नाम। संज्ञा । आह्वानं ( न० ) १ निमन्त्रण | बुलावा । न्योता | २ अदालत की बुलाहट । ३ किसी देवता का आह्वान ४ ललकार । चिनौती । ५ नाम । संज्ञा | यः (पु० ) अदालत का बुलावा 1 ध्याह्वायकः ( पु० ) हल्कारा | डौंकिया। [ संज्ञा | २ नाम इसंस्कृत अथवा देवनागरी वर्णमाला में स्वर के अन्तर्गत तीसरा वर्ण। इसका स्थान तालुदेश और प्रयत्न विवृत है। ( go ) चीनी | गुड़ | शीरा । राज । - सार (पु०) शीरा चीनी। गुड़ } इः (पु०) कामदेव का नाम (अव्यया० ) क्रोध दया | भर्त्सना, आश्चर्य और सम्बोधनवाची अव्यय । इ ( धा० पर० ) ( एति, इति ) १ जाना । आना । पहुँचना । पाना उपस्थित होना । हाजिर होना। दौड़ना । घूमना। तेजी से या वारंवार जाना। इक ( प्रत्यग ) याद करना । स्मरण करना । इत्तुरः ( पु० ) गन्ना | इदवाकुः (पु०) १ सूर्यवंशी एक राजा विशेष । इनके पिता का नाम वैवस्वत मनु था । २ महाराज इषवाकु का वंशज | ३ कवी तूंबी। तितलौकी । इदवालिका (स्त्री० ) काँल काही । इख ) ( घा०प० ) [ एखति, इंखति ] जाना । ख) हिलना दुलना । इकटा ( स्त्री० ) घास विशेष जिससे चटाई बुनी जाती | इंग् ( धा० उभय०) [ इंगति, इंगते, हंगित] हिलना । डोलना । इंग ) (वि० ) १ हिलने वाला | २ अद्भुत । इस इंगः ) ( पु० ) १ इशारा | सङ्केत । २ हावभाव द्वारा इङ्गः ) मानसिक भाव का द्योतन । इंगनम् ) ( २० ) १ हिलाना | डोलाना | २ ज्ञान । इङ्गनम् ) इंगितम् ( (न०) : धड़कन | डोलन | २ मानसिक इङ्गितम् । विचार | ३ इशारा | सङ्केत । सैन ।— कोविंद, -ज्ञ, (त्रि० ) इशारे बाजी में कुशल । मनोभाव को प्रकाश करने वाला हाव भावों को जानने वाला। इंगुदा, इंगुदी, इडदः पडदी ३ मादकँगनी । इंगुदम् ) ( दि० ) हिंगोट वृक्ष का फल । इज्दम् । इचिकिलः ( पु० ) १ कथा तालाब | २ कीचड़ । (पु० ) } १ हिंगोट का वृक्ष । (स्त्री०) ( २ ज्योतिमति वृक्ष | इज्याक इचाक ( पु० ) जलवुश्चिक। पretat | इच्छल ( पु० ) एक छोटा पौधा विशेष, जो जल के समीप उत्पन्न होता है। हिज्जल | इच्छा (स्त्री० ) १ अभिलाषा | वान्छा चाह । २ ( अंकगणित में ) प्रश्न कठिन प्रथा 1-दानं, ( न० ) मुहमाँगा दान |-- निवृत्तिः ( स्त्री० ) सांसारिक काननाओं की ओर से उदासीनता । ( १४८ ) इतिहास इत ( वि० ) १ गस गया हुआ हुआ। ३ प्राप्त । इतर ( सर्वनाम ) (वि०) [स्त्री०- इसरा, इतरत् ] १ दूसरा अन्य नि । २ पासर । निम्न श्रेणी का | नहीं तो । २ वासनाओं का त्याग । --फलं, ( न० ) किली | इतरथा ( अन्यत्रा० ) १ अन्य प्रकार से। और तरह प्रश्न का उत्तर --रतं, (न० ) मनचाहा खेल से २ प्रतिकूलरीत्या अन्यथा ३ कुटिल भाव से ४ दूसरी ओर | इट: ( पु० ) १ एक प्रकार की घास। २ चटाई । इटवरः (पु०) सौंड़ या बारहसिंहा जो चरने के लिये स्वतंत्र छोड़ दिया जाय। इड् (स्त्री० ) [ वैदिक प्रयोग ] 1 इल् | २ यति । ३ प्रार्थना १४ धारा प्रवाह वक्तृता । ५ पृथिवी । ६ भोजन | ७ सामग्री वर्षापयोगों में से तीसरा प्रयोग | [ इडोगजति ] १० ब्रह्म । इडस्पतिः (पु० ) विष्णु का नाम । इड (पु० ) अग्नि का नाम इडा इडाला इतरेतर ( दि० ) अन्योन्य परस्पर आपस में । इतरेयु: ( अध्यया० ) अभ्यदिवस | दूसरे दिन कूद / --वसुः ( पु० ) कुबेर का नाम /-संपद ( स्त्री० ) मनोकामना का पूरी होना। राज्य (वि० ) पूज्य । [ यस | परमात्मा | | इज्यः ( पु० ) १ गुरु | २ देवगुरु बृहस्पति । २ नारा- | इतस् (अन्यय० ) १ यहाँ से । यहाँ २ इस पुरुष इज्या ( स्त्री० ) १ यज्ञ २ दान पुरस्कार | ३ मूर्ति प्रतिमा । ४ कुटिनी । ५ गौ-शीलः, ( पु० ) सदा यज्ञ करने वाला। से मुझसे ३ इस ओर मेरी ओर इस संसार से। इस समय से इतस्ततः ( इतः इतः ) ( अन्या० ) इधर उधर इसमें । उसमें इति ( अन्यथा ) ३ समाप्ति । २ हेतु। २ निदर्शन। ४ निकटता । ६ प्रत्यक्ष ३७ अवधारण । ८ व्यवस्था ६ मान १० परामर्श 1 19 शब्द के यथार्थ रूप को प्रकट करने वाला १२ वाक्य का अर्थप्रकाशक -अर्थः, (पु०) साराँश । -कथा (स्त्री० ) वाहियात वातचीत 1 करणीय, (वि० ) किन्हीं नियमों के अनुसार करने योग्य !-- मात्र, (वि०) अमुक परिमाण का । वृतं ( न० ) पुरावृत पुरानी कया । कहानी । | हविं| ४ गौ ५ ( इला० ) देवी | इतिकर्त्तव्यता ( स्त्री० ) प्रवश्य करने योग्य काम (स्त्री० ) १ पृथिवी २ वाणी । करने का क्रम, जिसके अनुसार एक काम के अनन्तर दूसरा काम किया जाय। इतिमध्ये (अन्य ) इतने में । इतिह (अन्य ) १ उपदेश परंपरा | २ देर से सुना जाने वाला उपदेश | ३ सुदा सुनाया अ वचन | का नाम मनु की बेटी यह बुध की स्त्री और राजा पुरुरवा की माता थी। ६ स्वर्ग ७ शरीर की एक नाड़ी जो दहिने अंग में रहती है । ८ दुर्गा | १ अम्बिका ११ पार्वती । १२ स्तुति १३ एक यज्ञपात्र १४ आहुति जो प्रयाजा और अनुयाजा के बीच दी जाती है । १२ आसोमपा नामक एक अप्रिय देवता । १३ नय देवता | इडाचिका (स्त्री० ) परं । बरैया। इडिका ( स्त्री० ) धरसी। पृथिवी इडिकः (१०) जंगली बकरा। इस ( क्रि० ) जाना । २ स्मरण किया इतरतः । ( अध्यमा० ) १ अन्यथा } अन्यन्त्र । २ भिन्नत्व | इतरत्र इतिहासः ( पु० ) १ पुस्तक जिसमें बीते हुए काल की प्रसिद्ध घटनाओं और तत्कालीन प्रसिद्ध पुरुषों का वर्णन हो २ वह ग्रन्थ जिसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उपदेश प्राचीन कथानकों से युक्त हो । तवारीख [ संस्कृत साहित्य में इतिहास इत्य इंदिरा ) ( स्त्री० ) लक्ष्मी देवी | विष्णु पक्षी - इन्दिरा | आलयम्. ( म० ) का निवास स्थल । नील कमल - मन्दिरः ( पु० ) विष्णु भगवान की उपाधि :- मन्दिरम् ( म० ) नील - ग्रन्था मे दो ही ग्रन्थों की गयाना है-गथा श्री महात्मीकि रामायण और महाभारत | इत्यं (अव्यया०) इस प्रकार इस तरह ऐसे कारं, (न०) इस प्रकार से । -कारं, (अन्यथा०) इस प्रकार से इस ढंग से 1-भूत, ( वि० ) १ ऐसी दशा में ऐसी हालत में २ सभी ज्यों की | इंदीवरी १ (स्त्री० ) नील कमलों का समूह | त्यों (जैसे कथा, या कहानी) ।---विध, (वि० ) इस प्रकार का । २ ऐसे गुणों वाला-शालः, ( पु० ) ज्योतिष में वर्षफल के तीसरे योग कमल । 1 १ इन्दीवरिणी । इंदीवार: इन्दीवारः । इंदुः ) ( पु० ) १ चन्द्रमा | २ एक की संख्या ३ का नाम । कपूर-कमल, (न० ) सफेद कमल - कला, ( स्त्री० ) चन्द्रमा की एक कला । ३ ~कलिका, (स्त्री०) १ केत की । २ चन्द्रकला । ३ - कान्तः ( यु० ) चन्द्रकान्त मणि [ यह मणि चन्द्रमा के सामने रहने से पसीजती है। ] --कान्ता, ( स्त्री० ) रात क्षयः, ( पु० ) चन्द्रमा की चीखता प्रतिपदा 1~~-जः पुत्रः, ( पु० ) बुधग्रह। पुत्रजा, आ, ( स्त्री० ) नर्मदा या रेवा नदी का नाम :--अनकः, (पु० ) समुद्र । -दलः, (पु० ) कला | अर्धचन्द्र- भा. (स्त्री० ) कमोदिनी /-भृत् -शेखरः, - मौलिः, ( पु० ) शिव जी की उपाधि /-- म: पु०) चन्द्रकान्तमणि - मण्डलं, ( स० ) चन्द्रमा का घेरा (रलं, ( न० ) मोती। सोमलता । ~~लेखा, रेखा, (स्त्री०) चन्द्रकला तोहकं, लौह (न० ) चाँदी :- - छन्दविशेष वासरा, ( १४९ ) १ इत्य ( वि० ) प्राप्य | पहुँचने योग्य | जाने योग्य इत्या ( स्त्री० ) १ गमन | मार्ग । २ डोली पाएकी । इत्वर (वि० ) [ स्त्री० -इत्वरी ] 1 गमन । यात्रा । यात्री २ निष्ठुर । निठुर ३ पामर नीच रिस्कृत अपमानित | गरीव । अथम निर्धन | इत्वर: ( पु० ) हिजड़ा। नपुंसक खोजा । इत्वरी ( श्री० ) १ अभिसारिका । २ व्यभिचारिणी । कुला स्त्री । इदम् ( सर्वनाम० -- वि० ) [ पु० अयं | स्त्री० इयं । न०-इदं ] किसी ऐसी वस्तु को बतलाने वाला, जो बतलाने वाले के निकट हो। यह यहाँ । इदानों (थव्य०) सम्मति। अब इस समय अभी अभी भी । इदानींतन (वि०) : इस समय का अभी का आाधु- निक। २ नवीन नया चढ़ना, (स्त्री० ) इद्ध ( व० कृ० ) जलता हुआ प्रदीप्त । ( ४० ) सोमवार । इजूं (न०) १ श्रृप । धाम { गर्मी । २ दोति | चमक 1 | इंदुमती ) ( स्त्री० ) ३ आश्चर्य | ४ बुड़ा| निर्मल साफ़। 1 इनः ( पु० ) १ प्रभु । इदंदिर ) ( पु० ) इन्दिदि ) भौरा | ) ( पु० ) नील कमल | स्वामी २ राजा । बड़ी मधु मच्चिका अमर पूर्णिमा । २ अज की पत्नी इध्मः ( पु० ) } ईंधन | समिधा जो हवन में जलायी इंदूरः ) इधर्म ( नं० जाती है!जिला ( पु० ) आग । | इन्दूरः । ( पु० ) चूहा | भूसा। अग्नि ।—प्रवचनः (पु० ) कुल्हाड़ी | [करना | इध्या (श्री०) प्रज्वलन करना जलाना । इन (वि० ) १ योग्य प्रकाश शक्तिमान् | बलवान। २ सारसी। इन्दुमती और भोज की भगिनी का नाम । इंद्र ? (वि०) १ ऐश्वर्यदान । विभूतिसम्पन्न । २ श्रेष्ठ। इन्द्र वढ़ा। इंद्र ) ( पु० ) १ देवताओं के राजा । २ मेघों के इन्द्र राजा दृष्टि के राजा वृष्टि ३ स्वामी | प्रभु शासक ४ वैदिक देवता विशेष इसका वाहून ऐरावत हाथी और अब वन है। इसकी रानी का नाम शची और पुत्र का नाम जयन्त है। इसकी ) ( १५० इभ. - सभा का नाम "सुधर्मा है। इसकी राजधानी का नाम अमरावती है। वहीं "नन्दन" नाम का उद्यान है, जिसमें पारिजात वृक्षों का प्राधान्य है। और वहीं कल्पवृक्ष है। इसके घोड़े का नाम टच्चै:- वा है और सारथी का नाम मातलि है। यह ज्येष्ठा नक्षत्र और पूर्व दिशा का स्वामी है - अनुजः, (इन्द्रानुजः, ) ( पु०)-प्रवरजः, (इन्द्रावरजः) (पु० ) विष्णु या नारायण की उपाधि रिः (पु० ) दैत्य या दानव --- 1 इंद्रकं सोंठ-महः (पु०) १ इन्द्रोत्सव | २ वर्षाऋतु । लोकः, ( पु० ) स्वर्ग वंशा, वज्रा, ( स्त्री० ) दो बन्दों के नाम। शत्रुः, ( पु० ) १ इन्द्र का बैरी । २ वह जिसका शत्रु इन्द्र हो । - शलभः, ( पु० ) बीरबहूटी नाम का कीड़ा | -सुतः~हुनुः (पु० ) इन्द्र का पुत्र ( क ) जयन्त। (ख) अर्जुन। ( ग ) चालि - - सेनानी: ( पु० ) कार्तिकेय की उपाधि | ● आयुधं. ( = इन्द्रायुधम्, ) ( न० ) इन्द्रका | इक } ( न० ) सभाभवन । कमेटी घर । वाणी ) (स्त्री० ) १ शची देवी | २ इन्द्रायन वृक्ष इन्द्राणी ३ बड़ी इलायची ॥४आँख की पुतली। १ संभाल । सिन्धुवार बुदा निरगुण्डी । ● - हथियार। इन्द्रधनुष --कोला ( पु० ) १ मन्दराचल पर्यंत का नाम २ चट्टान :-- कोलम्. ( न० ) इन्द्र की ध्वजा-कुअर { go ) ऐरावत हाथी । -~-कूटः, (पु० ) पर्वत | विशेष । कोशः, कोपः,कोपकः, (पु० ) १ कोच । सोफा (Sula ) २ चबूतरा | ३ खूंटी जो दीवाल में गाड़ी जाती है। नागदन्त ।- गिरिः, (पु०) महेन्द्राचल १ गुरुः, प्राचार्यः, ( पु० ) बृहस्पति ।--गोषः -- गोपकः, ( पु० ) वीर बहूटी नाम का एक फीड़ा।-चापं. ( न० ) -धनुस्, ( न० ) सात रंगों का बना हुआ एक अर्धवृत्त जो वर्षाकाल में सूर्य के सामने की दिशा में कभी कभी आकाश में देख पड़ता है। आलं, (न० ) १ एक अस्त्र जिसका प्रयोग अर्जुन ने किया था। २ माया कर्म जादू- गरी। तिलस्म। -जालिक, ( वि० ) धोखे- बाज़ | बनावटी । मायावी ।जालिकः ( पु० ) जादूगर इन्द्रजाल करने वाला जित, (पु०) इन्द्र को जीतने वाला। मेघनाद (जो का पुत्र था और ) जिसे लक्ष्मण जी ने था। ~ जित विजयिन् (पु० ) लक्ष्मण । -तूलं --तूलकं, ( म० ) रई का ढेर 1- दारुः, ( पु० ) देवदारु वृक्ष । -नीलः, (पु० ) नील- मणि ।-मीलः, नीलकः, ( पु० ) मर- कत मणि । पन्ना --पत्नी, ( स्त्री० ) शी देवी-पुरोहितः, (पु० ) बृहस्पति देव । प्रस्थं, (न० ) आधुनिक दिल्ली नगरी - मरणं, (न० ) वज्र --भेषजम् ( न० ) इंद्रियं } (न०) १ बल । जोर । २ शरीर के वे अब- इन्द्रियं ) यव, जिनसे बाहिरी विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है। ये दो प्रकार के होते हैं। यथा कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय अथवा बुद्धीन्द्रिय ६ शारीरिक शक्ति । ४ वीर्य | ५ पाँच की संख्या का सङ्केत। --अगोचर, (वि० ) जो दिखलायी न दे । अर्थः, ( पु० ) इन्द्रियों का विषय | विषय जिनका ज्ञान इन्द्रियों द्वारा हो। [ ये विषय हैं। -रूप, शब्द, गन्ध, रस स्पर्श । ] प्रामः, - वर्गः (पु० ) इन्द्रियों का समूह /-ज्ञानं, ( न० ) सत्यासत्यविवेकशक्ति :~-निग्रहः, ( go ) इन्द्रियों का दमन :-वधः ( पु० ) अज्ञानता । अचेतना मूर्ख विप्रतिपत्तिः ( स्त्री० ) इन्द्रियों का उत्पथगमन /स्वापः, ( पु० ) सूर्च्छा अचेतना। बेहोशी । - } रावण | इंधू } (घा० आ०) [ इद्धे या इंधे, इड ] जलाना । मारा इन्वे) प्रकाशित करना। आग लगाना । ) इंध जलाना उजाला २ इन्धः ( ( पु० ) इंधन | जलाने की लकड़ी । इंधनम् ) ( न० ) । इन्धनम् इंधन | लकड़ी। इभः ( पु० ) हाथी - अरिः ( पु० ) शेर - आननः, (पु० ) गणेश जी का नाम । राजा- नन/-निमीलिका, (खी०) चातुयें | बुद्धिमत्ता | चालाकी होशियारी -पालकः, ( पु० ) महावत /~-पोटा, (स्त्री० ) हाथी की मादा इभी छोटी सन्तान 1-पोतः, ( पु० ) हाथी का बचा-युवनिः (खी० ) हथिनी | इसी (सी० ) हथिनी | इभ्य (वि० ) धनी | धनवान | इभ्यः ( पु० ) १ राजा २ महावत । इभ्यक ( दि० ) धनी धनवान | इभ्या (सी० ) हथिनी । इयत् (वि०) इतना इतना बड़ा इतने विस्तार का। इयत्ता ( श्री० )। सीमा। परिमाण माप । इयत्वं ( न० ) ) इरएं ( न० ) १ ऊसर भूमि लुनई ज़मीन । २ वियावाम | उजार | इरंमदः ( पु० ) १ बिजली की कड़क था कौंधा। वह आग जो बिजली गिरने पर प्रकट होती है। बज्राझि २ बड़वानल इरा ( स्त्री० ) १ पृथियो । २ बासी ३ वायी की | अधिष्ठात्री देवी सरस्वती ४ जल ५ भोज्य पदार्थ ६ मदिरा |-ईशः, (पु० ) वरण | विष्णु | गणेश |--वरं, (न० ) ओला। पत्थर जो बादल से बरसते हैं। इरावत् ( पु० ) समुद्र | सागर । इरियां (न० ) तुनही ज़मीन इर्वालु }( वि० ) नाशक । हिंसक इवाखः } ( पु० स्त्री० ) ककड़ी । कर्कटी इल् ( धा० पर० ) [ इलति, इलित ] : चलना। ● . डोखना। हिलना । २ सेोना ३ फेंकना | भेजना। डाल देना । इला ( स्त्री० ) १ पृथिवी | २ गौ। ३ वाणी --- -गोलः, (पु० ) गोलं. ( न० ) पृथिवी । भूगोल-धरः, ( पु० ) पहाड़ | इलिका (स्त्री० ) पृथिवी । इत्वकाः इल्वला: S ( बहुवचन ) मृगशिरसू नक्षत्र इच ( अव्यया० ) १ जैसा २ गोया | ३ कुछ थोड़ा | कुछ कुछ। शायद । कदाचित् । इष् (धा० पर० ) [ इच्छति इष्ट ] चाहना | कामना करना । २ सुनना पसंद करना ३ प्राप्त इष्टापूर्तम् करने के लिये प्रगलवान होना होना। रज़ामन्द होना। सहमत होना । इषः (5०) १ शक्तिशाली । वळवान् | २ आश्विनमास इषिका) स्त्री० ) १ नरकुल सींक २ बाण | इपीका ) [1] इपिरः (पु० ) अझि । धनुष । २ धनुषधर । इपुः (g० ) १ तीर | रं पाँच की संख्या का सङ्कत। -अमं, अनीकं. (न० ) तीर की नोक 1- असनं, अखं, (न० ) कमान धनुष- आसः, ( पु० ) १ ३ योद्धा ।कारः, कृत्. ( पु० ) धनुष बनाने वाला /-धरः, भृत्. ( पु० ) धनुर्धर | पथः - विक्षेपः, ( पु० ) तीर छोड़ना । तीर की शिश्त -प्रयोगः ( पु० ) तीर - चलाना । इघुधिः ( पु० ) तरकस | तूणीर | इष्ट ( ० ० ) अनुकूल अभिलषित । चाहा गया। ३ पूज्य २ प्रिय | प्यारा । प्रेमपात्र | कृपापात्र मान्य | ४ यज्ञ किया हुआ यज्ञ में पूजन किया हुधा। इष्टः ( पु० ) प्रेमी | आशिफ पति । इष्टम् ( न० ) १ कामना । अभिलाषा ( २ संस्कार | ३ यज्ञादि कर्मानुष्ठान (अव्यया० ) अपने इच्छा से अपने आप स्वेच्छ्रतया । इष्टका (स्त्री० ) ईंट | खपरैल -न्यासः ( पु० ) नींव रखना पथः, ( पु० ) ईटों की art सड़क । इष्टदेवः ( पु० ) ) इटदेवता (श्री०) - अपना देवता विशेष | इश ( स्त्री० ) शमी वृक्ष बैंकुर का पेड़ इष्टार्थः (पु० ) अभिलषित पदार्थ श्वापत्तिः (बी० ) अभिलषित कार्य का होना । प्रतिबादी के अनुकूल बादी का कथन या वयान । यथा- "दोपान्तरमा " इष्टापूर्तम् (न० ) यज्ञादि अनुष्ठान | कूप, बावली खुदवाना, वृचादि रोपण करना, ( धर्मशालादि, परोपकारी कार्य करना ।) ( इष्टि “इष्टापूर्तविधेः सपश्मशभनात् ।" इष्टिः ( स्त्री० ) : अभिलाषा | कामना ।२ प्रवृत्ति ! | ३ यज्ञ दर्शपौर्णमास ४ व्याकरण में भाष्यकार की वह सम्मति, जिसके विषय में सूत्रकार ने कुछ न लिखा हो। सूत्र और चार्तिक से भिन्न व्याकरण का नियम विशेष । - पचः (पु० ) कंजूस :- पशुः, (४०) चलिदान के लिये पशु । इटिका ( स्त्री० ) ईंट | खपरैल इष्मः ( पु० ) १ कामदेव | २ वसन्त ऋतु । • वसन्त ऋतु । इप्यः ( पु० ) है इध्यम् ( न० ) ) ई ( पु० ) संस्कृत या नागरी वर्णमाला का चौथा अक्षर यह इ" का दीर्घ रूप हैं। सालु इसका उच्चारण स्थान है। ई (धा० आत्म० ) [ ईयते ] १ जाना । ( परस्मै० ) चमकना । २ व्याप्त होना । ३ अभिलाषा करना। ४ फेंकना । ५ जाना ६ रवाना होना ७ माँगना ( आत्म० ) । ८ गर्भवती होना । ई: (g० ) कामदेव का नाम । ( अव्यया० ) उदासी, पीड़ा. क्रोध, शोक, अनुकम्पा सम्बोधन और विवेक व्यञ्जक अव्ययात्मक सम्बोधन । ५२ ) इप्सा इस् (अव्यया० ) क्रोध, पीड़ा एवं शोक व्यक अव्ययात्मक सम्बोधन ईस (धा० आत्म० ) [ ईचते, ईक्षित ] १ देखना | ताकना | जानना । आलोचना करना । घूरना । २ सम्मान करना । ३ परवाह करना | ४ सोचना | विचारना। ५ खोजना ढूढ़ना अनुसन्धान इह (थव्यया० ) यहाँ । इस समय इस स्थान मे । अव । -~प्रमुत्र, ( "इहामुत्र) (अव्यया) इस लोक और परलोक में यहाँ और वहाँ । -लोकः, ( पु० ) इस दुनिया में या इस जन्म में। -स्थ, ( वि० ) यहाँ खड़ा हुआ। इहत्य (वि०) यहाँ का । इस स्थान का। इस लोक का । इहलः ( पु० ) चेदि देश का नाम । होना । २ डुलाना । हिलाना | भुलाना । लटकाना । ईज ) (धा० आत्म० ) १ जाना । २ दोष लगाना । ईजू ) फलक लगाना | ईड ( धा० आत्म० ) [ इट्ट इंडित ] स्तुति करना प्रशंसा करना । ईडा (स्त्री० ) प्रशंसा | स्तुति । बढ़ाई | ईडय ( स० का० कृ० ) प्रशंसनीय । हाघनीय । प्रशंस्य । श्श्राव्य | ईतिः ( स्त्री० ) १ प्लेग | आपत्ति | २ फसल सम्बन्धी उपद्रव । ऐसे उपद्रव ६ प्रकार के होते हैं। यथा, - अतिवृष्टि अनावृष्टि | टीढियों का आगमन | चूहों का उपद्रव । तोतो का उपद्रव राजाओं की चढ़ाई या उनका दौरा करना । ईक्षकः ( पु० ) दर्शक देखने वाला | [आँख । ईत (न०) १ देखना | २ दृष्टि | चितवन | ३ नेत्र । ईक्षणिकः ( पु० ) ज्योतिषी | भविष्यद्वक्ता । इततिः (पु० ) चितवन । दृष्टि । ईक्षा (स्त्री० ) १ चितवन | दृष्टि | २ विवेचना | ईक्षिका ( स्त्री० ) १ नेत्र | २ कक्षक | ईक्षित (व० कृ० ) देखा हुआ। विचारा हुआ। ईक्षितम् (न०) १ चितवन | निगाह | २ नेत्र | आँख ! ईख | (घा० पर० ) [ईखति, ईखित ] १ जाना । ईख) हिलना । सरकना । भूमना। आगे पीछे | ईप्सा ( स्त्री० ) १ अपेक्षा | २ चाह । अभिलाषा । व्यतिवृष्टिलावृष्टिः प्रशतभा कृपकाः शुकाः | प्रत्यासलान रामानः यः स्मृताः भ्रमण या यात्रा ३ संक्रामक रोग। ४ विदेशों में २ दंगा । मारपीट | ईद्वता (स्त्री० ) [ इयत्ता का उल्टा ] मात्रा । ईद्वक्ष ) ( वि० ) [ स्त्री० - ईक्षी, ईद्वशी ] इसका इंद्राईद्वशू भी रूप होता है। ऐसा । इस प्रकार का इसके सदृश इसके बराबर इस प्रकार के गुणों वाला। इप्सित ( १२३ ) इषलू ईप्सित (वि० ) अभिलषित | चाहा हुआ । प्रिय । | ईशः ( पु० ) १ प्रभु | मालिक | २ पति | ३ ग्यारह प्यारा । ईप्सितं ( न० ) अभिलाषा | चाह । ईप्स (वि० ) प्राप्ति की कामना । किसी वस्तु की मासि के लिये परिश्रम करने वाला। ईर् (धा० आत्म० ) [ इतें, ईरांचक्रे, ऐरिष्ट, ईरितुं ईर्ण ] [परस्मै० में - ईरित] १ जाना । हिलाना । डुलाना । २ फैकना । डालना। छुड़ाना। सहसा निक्षेप करना। ३ कहना उच्चारण करना । दुह राना । गतिशील करना ४ काम में लगाना । प्रयुक्त करना। काम में लाना । ईराः ( पु० ) हवा । की संख्या ४ शिव का नाम । ईशा (स्त्री०) दुर्गा का नाम ॥२ धनवती स्त्री | कोणः, (५०) ईशान दिशा उत्तर और पूर्व की दिशाओं के बीच का कोना पुरी, नगरी. (स्त्री०) काशीपुरी | बनारस नगर । - सखः, ( पु० ) कुबेर की उपाधि | ईशानः ( पु० ) १ शासक । अधिष्ठाता | मालिक । प्रभु । २ शिव जी का नाम । ३ विष्णु का नाम । सूर्य 8 ईरां ( न० ) १ आन्दोलन | २ गमन | ईरिण ( वि० ) ऊसर । ऊजाड़ ईरिणम् ( न० ) ऊजाड़ स्थान। ऊसर ज़मीन । ईदर्य ( क्रि० ) डाह करना । होड़ करना । ईमम् ( न० ) घाव | ईर्या ( स्त्री० ) इधर उधर घूमना फिरना ( साधु की तरह ) । ईर्षारु: ( पु० स्त्री० ) ककड़ी सिद्धि प्राप्त हो जाय, वह सब पर शासन कर सकता है। ] ईश्चर (वि०) [स्त्री०- ईश्वरा ईश्वरी] शक्तिशाली ३१ ताक्र्सवर | बलवान | योग्य उपयुक्त २ धनी। धनवान् । - निषेधः, (पु०) ईश्वर के अस्तित्व को न मानना । नास्तिकता । -पूजक, ( वि० ) ईश्वर की पूजा करने वाला। ईश्वर में आस्थावान् ईश्वरभक्त-समन्, (न०) देवालय मन्दिर | -सभम्, (न० ) राजदरबार राजसभा । ईर्ष्या ) ( घा० परस्मै० ) डाह करना । दूसरे की ईश्वरः (पु०) १ प्रभु | मालिक | २ राजा | शासक | बढ़ती न देख सकना । ईर्ष्या ईर्ष्या } (पु० ) ढाह | परोत्कर्ष-असहिष्णुता । ईदर्य ( वि० ) डाही । ईर्ष्यालु ३धनी या बड़ा आदमी। यथा - "मा प्रयच्छ्रेश्वरे धनम्” । ४ पति । २ परमात्मा परब्रह्म परमे- श्वर | ६ शिव का नाम । ७ विष्णु का नाम म कामदेव | ईर्ष्याक ईर्ष्या ईर्ष्या । (स्त्री०) हास। हसद । दूसरे की बढ़ती देख ' जो जलन पैदा होती है उसे ईर्ष्या कहते हैं। ईर्ष्यालु ईर्षाल ( वि० ) डाही । हसद रखने वाला असन्तोषी । ईलिः (पु०) [स्त्री० –ईलो ] हथियार विशेष । सोटा | छोटी तलवार : ईशानी ( स्त्री० ) दुर्गा देवी का नाम । ईशिता (स्त्री०) ) उत्कृष्टता । महत्व । आठ सिद्धियों ईशित्वं ( न० ) ) में से एक। [ जिसको ईशिता की ईश (धा० आत्म०) [ ईष्टे, ईशिस ] : शासन करना | मालिक होना। हुकूमत करना | २ योग्य होना । अधिकार करना । कब्ज़ा करना । ईश ( वि० ) १ अधिकार में किये हुए। ईश्वरा ईश्वरी } ( स्त्री० ) दुर्गा का नाम । ईष् (धा० उभय ) [ ईषति-ईपिते, ईषित] १ उड़जाना । भाग जाना | २ देखना | ३ देना | ४ मार डालना । ईष: (पु०) आश्विन मास । ईषत् (अव्यया० ) हल्कासा | थोड़ासा । - उष्ण, (वि०) गुनगुना।– कर, (वि० ) १ थोड़ा करने वाला २ सहज में होने वाला । - जलं, (न०) उथला पानी। -पाराडु, (वि०) हल्का सफेद या पीला ! -पुरुषः ( पु० ) अधम या तिरस्कार सं० श० कौ० - २० ईषा उम्र अभिलाषा रखना । २ किसी वस्तु के पाने के लिये प्रग्रह करना। ३ उद्योग करना प्रयत्न करना। ईहा (स्त्री०) १ ख्वाहिश चाह | २ उद्योग। क्रिया- शीलता । करने योग्य मनुष्य। – रक्त. (वि०) पिलौहा लाल | ईह् (धा० आत्म० ) [ईहते. ईहित] १ इच्छा करना । नारंगी 1 – लभ, मलभ, (वि०) थोड़े में मिलने वाला । -हासः, (पु०) मुसक्यान । मुसकुराहट। ईवा (स्त्री० ) गाड़ी का बस या हल का बाँस । ईषिका (स्त्री०) : हाथी की आँख की पुतली | २ रंगसान की कूँची । ३ हथियार | तीर । नेज्ञा | ईषिर: ( पु०) अग्नि | आग | ईपीका ( स्त्री० ) रंगसाज की कूची । (सोने या चांदी की) छड, ईंट, सलाका या डला । ईष्मः } ( पु० ) १ कामदेव । २ चसन्तऋतु । ईहामृगः (पु०) १ भेड़िया जिसमें चार दृश्य हों। ईहावृकः ( पु०) भेड़िया [ हुआ | ईहित (व० ० ) वाति अभिलषित | चाहा ईहितं (न०) १ वान्छा | अभिलाषा | चाह । २ उद्योग प्रयत्न | ३ कर्म । कार्य । २ नाटक का एक परिच्छेद उ उ - नागरी वर्णमाला का पाँचवा अक्षर । इसका | उक्थं (न० ) १ कथन | वाक्य | स्त्रोत्र | २ स्तुति | प्रशंसा । ३ सामवेद का नाम । उच्चारण ओष्ठ की सहायता से होता है। इसकी गणना मुख्य तीन स्वरों में है। हस्व. दीर्घ, सुरु, सानुन एवं निरनुनासिक - इस प्रकार इसके १८ भेद हैं। उ, को गुण करने से “श्रो” और वृद्धि करने से "औ” होता है। उः (पु० ) १ शिव जी का नाम | २ ब्रह्म का नाम | ३ | चन्द्रमा का बिम्ब । ४ थ्रोम् का दूसरा अक्षर। (अव्यया० ) पुकारने का, क्रोध अनुग्रह, आदेश, स्वीकृति एवं प्रश्न व्यञ्जक अव्ययात्मक सम्बोधन । उं ( धा०) १ शब्द करना। कोलाहल मचाना । गर जना २ घोंकना । ३ माँगना तगादा करना । उकानदः ( पु० ) लाल और पीले रंग का घोड़ा। उकुणः ( पु० ) खटमल । खटकीरा । उक्त ( च० कृ० ) १ कहा हुआ । कथित | २ बोला हुआ। बतलाया हुआ ३ सम्बोधित ४ वर्णित । उक्त ( न० ) वाणी | शब्दराशि । कथित -- अनुक्त, (वि०) कहा और अनकहा हुआ। उपसंहारः, ( पु० ) संक्षिप्त वर्णन | सिंहावलोकन | सारांश | - निर्वाहः, (पु०) कथन का समर्थन । – प्रत्युक्तं, ( न०) कथन और उत्तर संवाद | उतिः (स्त्री० ) १ कथन यचन | २ वाक्य | ३ ( मानसिक भाव ) व्यक्त करने की शक्ति । यथा "एक वावस्या पुष्पयन्सी दिवाकर निशाकरी ।” - अमरकोश उतू (धा० उभय० ) [ उत्चति, उचित ] [छड़कना । तर करना। नम करना। उडेलना। २ निकालना। छोड़ना । उक्ष (०) छिड़काव | प्रोक्षण या मार्जन | उतन् ( पु० ) बैल । साँड़ । तरः, ( पु० ) छोटा साँढ़। [ सर्वोत्तम । उताल (वि० ) १ तेज | भयानक । २ ऊँचा, बड़ा। उतालः ( पु० ) बंदर वानर उख ) ( धा० पर० ) [ ओखति, उखित, ओखित, उंख् । उखित ] चलना । हिलना। डोलना । उखा ( स्त्री० ) बटलोई । डेगची उख्य (वि० ) बटलोई में उबाला हुआ। उग्र (वि० १ निष्ठुर । हिंसक । जंगली | २ भयानक । भयकर २ भयप्रद । ३ बलवान । शक्तिशाली। प्रबल प्रचण्ड | ४ तीषण | तेज | पैना । ५ उच्च । कुलीन ।– काण्डः, ( पु० ) करेला |-- गन्धः, ( पु० ) 1 चम्पा का वृक्ष । चमेली। लशुन लहसन । हींग -गन्ध, (वि०) तेज़ महकवाला-चारिणी, ( स्त्री० ) दुर्गा का नाम जाति, ( वि० ) ) नीच जाति में उत्पन्न । –दर्शन, रूप, ( वि० ) भयानक शक वाला /- धन्वन्, (वि०) मजबूत धनुषधारी (पु० ) शिव जी का नाम इन्द्र का चण्डा, उग्रः ● नाम । -शेखरा, (स्त्री० ) गङ्गाजी का नाम । -श्रवसू, (पु०) रोमहर्षण का पुत्र | (वि० ) सुनी बात को तुरन्त याद कर लेने वाला -सेनः, ( पु० ) कंस के पिता का नाम । उग्रः ( पु० ) १ शिव या रुद्र का नाम । २ वर्णसङ्कर जाति विशेष क्षत्रिय पिता से शूद्धा माता में उत्पन्न सन्तान | ३ केरल देश मालावार देश | ४ रौद्ररस | [ वीभत्स्य | उम्रपश्य (वि० ) भयानक शक्कु वाला। भयानक । उच् ( धा० पर० ) [ उच्यति, उचित या उम्र । ] १ जमा करना इकट्ठा करना २ अनुरागी होना। प्रसन्न होना। ३ उपयुक्त होना । ४ श्रादी होना । अभ्यस्त होना । · उचित ( व० कृ० ) १ योग्य | ठीक | मुनासिव / वाजिब | २ सामान्य । साधारण | प्रथानुरूप । प्रचलित | ३ अभ्यस्त । यादी | ४ लान्य | प्रशंसनीय उच्च ( वि० ) १ ऊचा | २ श्रेष्ठ | महान | उत्तम ( -तरुः, ( पु० ) नारियल का वृक्ष । -तालः, ( पु० ) मद्यशाला का सङ्गीत नृत्य आदि । नोच, (वि० ) १ ऊँचा नीचा | उतार चढ़ाव । २ विविध । बहुप्रकार | ललाढा, लला- टिका, (स्त्री०) चौड़े माथे बाली स्त्री /-संश्रय. ( वि० ) उच्च स्थानीय । (उच्चग्रह के लिये) उच्चकैः (अव्यया० ) १ ऊँचा | ऊपर | लंबा | २ तार । रवकारी । उच्चनुस् ( वि० ) १ ऊपर देखने वाला। ऊपर की ओर निगाह किये हुए । २ दृष्टिहीन उच्चंड ) ( वि० ) १ भयानक । भयङ्कर | २ तेज़ । उच्चण्ड ) फुर्तीला ३ उच्चस्वर वाला | ४ क्रुद्ध । कुपित | उच्चंद्रः ) उच्चन्द्रः } ( पु० ) रात का अन्तिम पहर । उच्चयः ( पु० ) १ संग्रह | ढेर समूह | २ समुदाय | ३ स्त्री केकी अन्थि । ४ समृद्धि | अभ्युदय 1 उच्चरणम् ( न० ) १ ऊपर या बाहिर जाना । २ उच्चारण कथन | उञ्चल ( वि०) हिलने वाला । सरकने वाला । उचलम् ( न० ) मन । उच्छास्त्र उच्चलनम् (न० ) निकलना | चला जाना । उच्चलित ( व० कृ० ) चलने को तैयार । जाने को उद्यत । उच्चाटनम् (न०) : विश्लेषण निकास। २ वियोग | विवाह | ३ उखाड़ना (वृत्त का ) । ४ तांत्रिक पट् कर्मों में से एक । २ चित्त का न लगना। उच्चारः (५०) १ कथन | वर्णन | उच्चारण | २ मल | ३ विष्टा ।" मातुरूवार एव सः ।" ३ विसर्जन छोड़ना | उच्चारणं ( न० ) १ उच्चारण | कथन | २ निरूपण | उच्चावच (वि० ) १ ऊँचा नीचा | अनियमित ऊबड़ खावड़ | २ भिन्न भिन्न उच्चड: उच्चूल } (पु०) ध्वजा का फहरेरा । पताका ! ध्वजा । उच्चैः (अन्य०) १ ऊँचा | ऊपर। ऊपर की ओर । २ ज़ोर की आवाज़ के साथ बड़े शोर के साथ ३ बहुत अधिक | बहुतायत घुष्टं, (न० ) १ शोरगुल | कोलाहल ! उच्च स्वर से पढ़ी गयी 1 घोषणा | - वादः, ( पु० ) प्रशंसा । - शिरस् (चि०) उच्चाशय । उदाराशय । उदारचेता । - श्रवस्, श्रवस, (वि०) १ बड़े बड़े कानों वाला । २ बहरा । ( पु०) इन्द्र के घोड़े का नाम । उच्चैस्तमां (अव्यय०) १ अस्युच्च । बहुत ही अधिक ऊँचा | २ बड़े ज़ोर से । अत्युच्च स्वर से ! उच्चस्तरं ) ( न० ) अत्युच्चस्वर का १२ बहुत उच्चैस्तरां । अधिक लंबा या ऊँचा । उच्छन्न ( वि० ) १ विनष्ट | नष्ट किया हुआ काट कर गिराया हुआ । २ लुप्त । उच्चलत् ( वि० ) १ प्रकाशित । दीप्त। इधर उधर डोलने वाला । २ गतिशील ३ उड़ जाने वाला या ऊपर उड़ने वाला । ४ बहुत ऊँचा जाने वाला । उच्चलनम् ( न० ) ऊपर को जाने वाला या सरकने [ फुलेल की मालिश करना । उच्छादनम् ( न० ) १ ढकना । २ शरीर में तेल उच्छासन (वि० ) नियम या आदेश के अनुसार न चलने वाला। अदम्य । दुरन्त । दुष्ट | उच्चा (चि० ) १ शास्त्रविरुद्ध २ धर्मशास्त्र का अतिक्रम करना। वाला।

उच्छिख

उज्कू 3 समकता हुआ । [ करना । | उच्छिख (वि० ) ३ चुटियादार । २ अग्निशिखायुक्त उच्सनम् ( न० ) १ सॉल जेना | श्राह भरना । उसित (३० कृ० ) : आह भरता हुआ सांस लेता हुआ | २ तरोताज़ा | २ पूरा फूला हुआ। खुला हुआ। १ विश्राम लिये हुए। सानियत । उसितम् (म०) १ स्वांस | आवायु । २ प्रफुक्षता सांस से फुलानग ३ स्वांस भीतर खींचनः । कुमार उठाना (छाठी का) फुलाव सिसकता। अदित्तिः (स्त्री०) नाश । सुलोच्छेदन | जड़ से नाश उच्चिन (व० कृ०) १ सुलोच्छेद किया हुआ | २ नष्ट किया हुआ नीच हीन । [महान् । 1 1 उच्चिरस् (वि० ) १ गर्दन उठाये हुए | २ कुलीन । उच्चिन | ( वि० ) कुकुरमुतों से परिपूर्ण उच्छिन्त्रम् } ( स० ) कुकुरमुता । 1 उच्छिष्ट (व० ० ) बचा हुआ । जुठा | छूटा हुआ। २ अस्वीकृत किया हुआ । त्यागा हुआ। ३ यासा | तिवासा 1-मोदनम् (२०) मॉम | उच्च (न० ) जूठन । उीर्षक ( पु० ) १ तकिया | २ सिर । उच्छुक (वि० ) सूखा हुआ। मुरझाया हुआ। उच्छून (वि० ) फूला हुआ | सूचा हुआ | २ मोटा ऊँचा महान् । अत (वि०) १ बेलगाम का । जो वश या काबू में न हो। धसंगत। असंगमी २ स्वेन्द्राधारी । ३ डॉवाडोल | १३ उच्छेदः १ उखाचपुखाड़ १२ खण्डन । नाय ३ नश्तर लगाने २ शरीर व्यापी पांच प्राणवायु । उपवासः १ ऊपर को सींची हुई स्वांस | २ सांस | "आइ ३ सान्त्वना | ढॉइस उत्साह ५ वायुरन्भ। ५ ग्रन्थ का प्रकरण विभाग। उच्छा ( म० ) सुखाव। कुम्हलाद मुरझाव । उच्य ? (पु०) किसी ग्रह का उदय २ उठान उच्छ्रीयः) (इमारत का) खड़ा करना । ३ उँचाई | उठान | ४ बाढ़ । उच्चति सघनता । २ अभि मान घमंड उच्चासिन् (वि० ) १ सांस लेते हुए । २ उसांस हुए भरते हुए। ३ प्रदश्य होते हुए । कुम्हलाते हुए । उछ ( धा०प० ) १ बांधना २ समाप्त करना । स्याग देना छोड़ देना। उज्जयिनी । उज्ज्यनी । ( स्त्री० ) उज्जैन नगरी। उज्जासनम् ( न० ) मार दालना। मारण। घात । उज्जिद्दान ( वि० ) १ उठना । उदय होना | २ प्रस्थान | विदाई | ( पु० ) ) म् ( म० ) की क्रिया। उच्छेषः (पु० ) उच्छेषाम् ( न० }} अवशिष्ट बचा हुआ। शेष| उज्ज़'भा ( श्री० ) उच्छषण (वि०) १ सुखाने वाला। कुम्हलाने वाला । | उज्जैम्भा ( स्त्री० ) २ जलन करने वाला। उर्जा, उज्जृंभ उज्अं भः उज्ज़म्भः ) ( वि० ) १ फुलाया हुआ | बढ़ाया 5 हुआ। २ खुला हुआ | (पु० ) १ खिलना । फूलना। विकास । २ विवाह जुदाई | 3 जमुहाई २ उदारन ३ फैलाव बढ़ती। 1 उउभगम् ( न० ) उज्याम् (न० ). उज्ज्य (वि० ) खुली हुई डोरी का धनुष रखने वाला। उज्ज्वल ( चि० ) १ चमकीला चमकदार आभा वाला सफेइ २ मनोहर सुन्दर फूला हुआ। बढ़ा हुआ ४ असंयमी । उज्ज्वलः ( पु० ) प्रेम । अनुराग उच्यणम् (१०) उठाव ऊँचाई। उच्छ्रित ( च कृ० ) १ उठा हुआ। ऊचा किया हुआ | उज्ज्वलम् ( न० ) सुवर्थ | सोना । २ ऊपर गया हुआ। उदित ३ ऊचाई। लंबा | उज्ज्वलनम् (न० ) प्रदीप्त चमकीला बड़ा उतिभूत ४ उत्पन्न किया हुआ । उत्पन्न हुआ | २ समृद्धशाली। उसत बढ़ा हुआ | ६ अभिमानी । [कान्ति | चमक | उज् ( धा० प० ) [ उज्भति, उति ] १ त्यागना । छोड़ना | २ वचा जाना निकल भागना । ३ बाहिर निकालना। निकाल डालना। उज्मक उज्मकः ( पु० ) १ बादल । २ भक्त । उज्झनम् (न०) त्याग स्थानन्तरकरण छोड़ देना | उंद्र ( धा० पर० ) [ उंबृति, डंचित ] खेत में उन्छ । सिख उठ जाने चाद के पड़े हुए अनाज के दाने बीनना एकत्र करना । उंद } ( पु० ) की उन्हः उत्कर्तनम् उतथ्यः (g०) अंगिरस के एक युग का नाम जो बृह- स्पति के ज्येष्ठ भ्राता थे ।-अनुजः, अनु जन्मन् ( पु० ) देवाचार्य बृहस्पति उत्कवि० ) १ अभिलाषी चाह रखने वाला । २ दुःखी | उदास शोकान्वित | ३ अमनस्क | अनाज के दानों का संग्रह करने | अचुक ) ( वि०) विना अंगिया या कयुकी धारण क्रिया -वृत्ति, शील, (वि०) Ta किये हुए | में छूटे हुए अनाज के कयों को कर उत्कबुक उकट (वि० ) १ बड़ा लंबा चौड़ा | २ बलवान् । शक्तिशाली भयकर ३ अत्यधिक अधिक ४ बहुतायत से अत्यधिक सम्पन्न | ५ नशे में चूर | मदमाता। पागल। मदोत्कट ६ श्रेष्ठ उच्च ७ विषम । 1 खेत पेट भरने वाला। उंडनम् ) ( म० ) अनाज की मंडी यागंज में पढ़े अनाज के दानों को एकत्र करने उच्चनम् की क्रिया। उटं ( न० ) जः, ( पु० ) जम्, उड्डः ( स्त्री० ) १ १ नक्षत्र | तारा । २ जल उड (न० ) ) राशिचक्र | , ( म०) -फ. (पु० ) -- पम्, ( न० ) बड़ी घरनई। | उत्कट: ( पु० ) १ हाथी का मद। २ मदमाता हाथी उत्कंठ ) ( वि० ) 9 ऊपर को गर्दन उठाये हुए। उत्कण्ठ ) उदमी ( पु० ) २ सस्पर। उत्सुक उकंटः | [ श्रो०-उत्कंठा ] मैथुन करने का ढंग उत्कराठः ) विशेष | -पः, (पु० ) चन्द्रमा । - पतिः (०) उत्कंठा | { स्त्री० ) १ प्रबल इच्छा | लालसा । राज ( पु० ) चन्द्रमा आकाश ज्योम | अन्तरिष पथः - ( पु० ) उत्कण्ठा व्याकुलता । २ किसी प्यारे पुरुष की प्रिय वस्तु के मिलने की प्रयल इच्छा | ३ खेद | शोक | उत्कंठित ) ( व० कृ० ) | चिन्तित | उत्कण्ठित ) शोकान्वित किसी प्यारे पुरुष या प्रिय- वस्तु के मिलने की प्रबल इच्छा | उत्कंठिता ) ( स्त्री० ) सङ्केत स्थान पर प्यारे के न उत्कण्ठिता ) आने पर तर्क वितर्क करने वाली नायिका आठ प्रकार की नायिकाओं में से एक। उत्कंधर (वि० ) ) गर्दन उठाए हुए | उडुंबरः उडम्बरः ) विशेष पत्र पत्ता २ घास तृण ( न० ) झोपड़ी। कुटी । ) ( पु० ) १ गूलर का पेड़ | २ घर की डवोड़ी | ३ हिजड़ा । नपुंसक | ४ कोढ ( यह नपुंसक लिंग भी होता है ) उडुंबरम् उडम्बरम् ( न० ) १ गुलर का फल | २ तांवा | उड्डयनम् ( न० ) उच्चान ( पक्षियों का ) । [मीम | उड्डामर ( वि० ) १ मनोहर । समीधीन। सर्वोत्तम । २ भयानक । उड्डीन ( म० ० ) उड़ता हुआ । ऊपर उड़ता हुआ | | उत्कन्धर (वि० ) ) उड्डीनम् (न० ) उदान | चिड़ियों का विशेष प्रकार उत्कंप का उड़ान | उत्कम्प (वि० )) उंडेरक उण्डेरकः उड्डीयनम् ( न० ) उड़ान उड्डीशः (पु० ) शिवजी का नाम । उडू: (०) उड़ीसा प्रान्त का प्राचीन नाम । ( पु० ) आटे का लड़हू । रोट [ सूचक अव्यय । उत् ( अव्यय० ) सन्देह, प्रश्न विचार और प्रचण्डता, उत ( अन्यथा० ) सन्देह, अनिश्चितता, अनुमान, अथवा था, और, सङ्गति सूचक अव्यय | (वि० )) काँपते हुए । उत्कंपः ( पु० ) उत्कम्पः उत्कंपनं ( न० ) उत्कम्पनम् ( न० ) उत्करा ( पु० ) १ देर ३ फर्क | (पु० ) ( चँकँपकपी सिहुरन [1] समूह | २ टाल गोला उत्कर्करः (पु० ) ) चाय यंत्र विशेष एक प्रकार उत्कर्तनम् ( न० ) ) का बाजा । २ तराश | चीरना फावना ३ जब से उखापना । ( १८ ) 1 उत्कर्ष उत्कर्षः (पु०) 5 उखाड़ना उचेलना ऊपर खींच जेना। २ उद्यत । बढ़ती प्रसिद्धि उदय समृद्धि | २ आधिक्य । अधिकाई सर्वोकृष्टता उत्तमोत्तम गुए। महिमा : २ अहङ्कार। अभिमान | ६ हर्ष प्रसनता | [उचेल लेना उत्कर्षणम् (न०) १ ऊपर खींचना | २ उखाड़ लेना । उत्कलः ( पु० ) उड़ीसा प्रान्त का नाम । २ बहे लिया। चिड़ीमार | ३ कुली । उत्कलाप (वि० ) पूँड़ उठाये और फैलाये हुए। उत्कलिका (सी०) १ उत्कठा चिन्ता विकलता | २ हेला | कोड़ा विशेष | ३ कली ४ लहर उत्कोशः ( पु० ) १ चिह्नपों। शोरगुल ५ --प्रार्थ ( न० ) ऐसी गद्य रचना जिनमें २ घोषणा | दिढोरा | ३ कुरी। कटुअरों और लंबे लंबे समासों की भर | उदः (पु० ) तर होना भींगना | मार हो । 1 "भवेदुरशशिकायं मामा हृदय" उत्कप ( १० ) १ फादना | खींचना २ जोतना । हज चलाना। ३ मलना रगड़ना। उत्कार: (पु० ) अनाज फटकना | २ अनाज की थनाज योने वाला। तेरी लगाना |३ उत्कासः ( 50 ) उत्कालनं ( न० उत्कासिका (सी०) उत्किर (पि० ) गुफना की तरह घुमाया हुआ | हवा में उड़ाया हुआ। उत्कीर्तनम् (१०) प्रशंसा स्तुति कीर्तन | उत्कुटम् ( न० ) उत्तान खेटना | चित्त लेटना | उत्कुणः ( पु० ) खटमल खटकीरा । चिलुवा श्रीव्हर [नाम करने वाला। उत्खात उत्कोचकः ( पु० ) 2 घूस २ घूसखोर रिश्वती । उत्कम (पु० ) 1 प्रस्थान | २ उन्नतिशील । उन्नत | ३ नियमविरुद्धता | विरुद्धाचरण ४ उड्डाल | फलांग | t उत्कुल ( त्रि० ) पतित । भ्रष्ट। अपने कुल को बद- उत्कूजः ( पु० ) कोकिल की कूक । उत्कूट: ( पु० ) छावावरी । उत्कूदनम् ( न० ) उड़ाल कुलांच। फलांग । उत्कूल (वि० ) तट को नाँध कर यहने वाली। उत्कूलित ( वि० ) तटवर्तिनी उत्क्षिप्त (व० कृ०) १ उछाला हुआ। लुकाया हुआ। ऊपर उठाया हुआ | २ रोका हुआ या रुका हुआ। अवलम्बित ३ एकर हुआ। ४ ढाना हुआ। गिराया हुआ उजादा हुआ। २ गले का कफ साफ | उत्तितः (पु० ) धतूरे का पौधा 9 खम्बारना । खांसना । करना। उत्तितिका (स्त्री० ) आभूषण विशेष जो कान के ऊपरी भाग में पहिना जाता है। वाला। उत्क्षेपः (पु० ) उड़ाल लुकान । २ ऊपर उछाली हुई वस्तु । ३ मेषण रवानगी ४ वमन | उट 1 उत्कृष्ट (व० ० ) १ ऊपर उठाया हुआ। उठा हुआ। उक्षत | २ सर्वोत्तम | उत्तम श्रेष्ठतम । उच्चतम | २ जुता हुआ। हल चलाया हुआ। उत्कोचः ( 50 ) घूंसे रिश्वत । उत्क्रमणं ( न० ) १ उड़ा | निकास । प्रस्थान | २ मृत्यु | जीव का शरीर से वियोग । [२] मृत्यु | उत्क्रान्तिः ( स्त्री० ) उड़ा बहिर्निष्क्रमण । उत्क्रामः ( पु० ) ऊपर था बाहिर जाना प्रस्थान | २ अतिक्रमण । ३ विरुद्धता नियम का अंग करण | कोलाहल । उशः (पु० ) १ घबड़ाहट । अशान्ति । विकलता। २ विचारों की गड़बड़ी ३ रोग बीमारी विशेष कर समुद्री बीमारी । 1 उत्क्षेपक (वि० ) उच्चालने वाला या वह वस्तु जो उडाली जाय। उचाली हुई वस्तु । उत्क्षेपक (पु० ) कपड़ों की चोर | २ भेजने बाला आज्ञा देने वाला। ३ श्रोतप्रोत । जड़ा उत्क्षेपणं ( न० ) १ उचाल । लुकान | २ वमन । उछांट | ३ रवानगी | प्रेषण | ४ सूप | देखा। उत्खचित (वि० ) घोलमेल । हुआ। बैठाया हुआ। उत्खला (खी० ) सुगन्धि विशेष उत्खात ( च० कृ० ) १ [विशेष | खुशबुदार वस्तु खोदा हुआ | उखादा हुआ। २ खींच कर बाहिर निकाला हुआ | ३ जब से उसादा हुआ। जड़ तोड़ कर निकाला हुआ। उत्खात उत्तर -फेलिः, (स्त्री०) कीड़ा के लिये सींग या हाथी | उस्तर ( वि० ) १ उत्तर दिशा का उत्तर दिशा में के दाँत से ज़मीन को खोदना । [शमीम | 1 1 उत्खातं ( न० ) १ रन्ध गुफा २ ठवाव उत्खातिन ( वि० ) विषम ऊँची नीची असत उत्त (वि० ) भींगा हुआ। नम तर उसंसः ( पु० ) १ शिला चोटी सीसफूल | २ कान की बाली था सका। 1 उत्तसित (वि० ) कानों में वाली पहिने हुए। चोटी पर रखे या पहिने हुए। [(नद या नदी) उत्तर (वि० ) सटों के ऊपर निकल कर बहने वाला। उत्तप्त ( व० कृ० ) जला हुआ गर्म सूखा | शुष्क | उत्तप्तम् ( ४० ) सूखा मांस | 1- उपचा २ उच्चतर । अपेक्षा कृत ऊँचा ३ पिछला बाद का। पीछे का अगला अन्त का ४ योँचा | २ उत्कृष्ट मुख्य सर्वोतम ६ अधिकतर ७ सम्पन्न युक्त अन्वित ८ पार होने को पार उतारने कोअर ( चि० ) उच्चतर मीचतर । - अधिकारः, ( पु० ) - अधिकारिता, (खी० ) -- अधि कारित्वं, (न० ) सम्पत्ति पाने का हक़ । पारि- सपन।अधिकारिन्, ( पु० ) उत्तराधिकारी । बारिस । --अयनं, ( न० ) उत्तरी मार्ग | वे छः मास जिनमें सूर्य की गति उत्तर की ओर मुकी हुई होती है। मकर से मिथुन के सूर्य तक का छः मास का समय।-अर्ध (न०) १ शरीर का नाभि के ऊपर का आधा भाग २ उत्तरी भाग । ३ पूर्वार्ध का उल्टा । पहिला भाग -ग्रह, ( पु० ) अगला दिन | आने वाला कल /- आभासः, ( पु० ) भ्रम पूर्ण उत्तर या जवाब 1 --प्रशा. ( श्री० ) उत्तर दिशा -आशा- धिपतिः, आशापतिः, ( पु० ) कुबेर | --प्राषाढ़ा ( स्त्री० ) २१ व नक्षत्र /- आसङ्ग ( पु० ) ऊपर पहिनने का वस्त्र 1- इतर. ( वि० ) दक्षिण | दक्षिण का इतरा, ( श्री० ) दक्षिण दिशा उत्तर, ( वि० ) अधिक अधिक सदा बढ़ने वाला -- उत्तरं, (न०) जवाव । -प्रोष्टः (=उत्तरौष्ठः या उत्तरोष्ठः ) (5०) ऊपर का ओठ-काण्डम् ( न० | श्री महाल्मीकि रामायण का सातवाँ काण्ड । -कायः, (पु०) शरीर का ऊपरी भाग । -कालः, ( पु० ) आगे आने वाला समय --- कुरु, (पु०) (बहुवचन ) पृथिवी के नौ खण्डों में से एक। उत्तरकुर का प्रदेश - कोसलाः, (पु० बहुवचन ) अयोध्या के आस पास का देश - क्रिया, ( श्री० ) शवदाह के अनन्तर मृतक के निमित्त होने वाला कर्म 1-इदः, ( पु० ) चादर चद्दर | पलंगपोश - ज्योतिषाः, ( पु० बहु० ) पश्चिम दिशा का एक देश -दायक, ( वि० ) अवज्ञाकारी । नाफर्माबरदार । 7 - उत्तम (वि०) १ सर्वोच्च के आगे सब के ऊपर सब से ऊँचा | ३ अत्युच मुख्य । प्रधान ४ सब से बड़ा । प्रथम - अङ्गम् ( न० ) शिर । सिर । अधम्, (वि० ) ऊँचा नीचा |-अर्ध: ( पु० ) सव से आधा भाग २ अन्तिम अर्धभाग | --अहः, ( पु० ) अन्तिम या पिछला दिवस । सुदिन | शुभ दिन (ऋगाः, ऋणिका, ( उत्तम: ) ( पु० ) महाजन | कई देने वाला।। (अधमर्गा कर्जदार का उल्टा )- पुरुषः पुरुषः, (पु० ) १ (व्याकरण में) फर्ता । २ परमेश्वर ३ सब से अच्छा आदमी। -श्लोक, (वि० ) सर्वोत्कृष्ठ कत्तिसम्पन्न | आदर्श महिमाम्बित । प्रसिद्ध साहसः, ( ५० ) -- साहसम्, ( न० ) सब से अधिक जुर्माना या अर्थवगड । एक हज़ार ( और किसी किसी के मतानुसार ) अस्सी हज़ार पण का जुर्माना | [ पुरुष। उत्तमः (पु० ) १ विष्णु भगवान का नाम । २ अ उत्तमा ( बी० ) सब से अच्छी स्त्री । उत्तमीय (वि० ) सब से ऊपर सब से ऊँचा सर्वोत्तम । मुख्य प्रधान । उत्तंभः उत्तम्भः उत्तंभनम् उत्तम्भनम् ( पु० ) ) १ सहारा | रोक धाम | पु० ) { २ थुनुकिया। ३ रोक | ( न० पकड़ न० गुस्तान : ढीठ । -- दिश, (स्त्री० ) उत्तर दिशा | -ईशः, -- पालः (= उत्तरदिकपालः ) ( पु०) कुबेर । पक्षः, (५०) १ अंधेरा पाख । २ पूर्वपक्ष का उल्टा । शास्त्रार्थ में वह सिद्धान्त जो विवादग्रस्त विषय का खण्डन करे - पदं (न०) किसी यौगिक शब्द का अन्तिम शब्द । -पादः, ( ५० ) अर्जीदावे का दूसरा हिस्सा । -प्रच्छ (पु० ) रज़ाई। लिहाफ सोशक | -- प्रत्युत्तरं ( न० ) १ बाद विबाद । बहस । २ किसी मुकदमें में वकालत फल्गुनी, - फाल्गुनी, ( स्त्री० ) १२ वां नक्षत्र | भाद्रपद् -भाद्रपदा २६ व नक्षत्र । - मोमांसा | ( स्त्री० ) वेदान्त दर्शन 1- वयसं, वयसू, ( न० ) बुढ़ापा | वस्त्र, वासस् ( न० ) ऊपर का वस्त्र चुग़ा लवादा ओबर कोट 1- वादिन. ( पु० ) प्रतिवादी । मुद्दालह । प्रति पक्षी साधकः ( पु० ) सहायक। उत्तरः ( पु० ) १ आगे आने वाला समय । भविष्यत काल । २ विष्णु का नाम । ३ शिव का नाम । ४ विराट के पुत्र का नाम । उत्तरा ( स्त्री० ) १ उत्तर दिशा | २ नक्षत्र विशेष ३ विराट की कन्या का नाम, जो अभिमन्यु को व्याही गई थी। 1 हे (वि०) १ लहरों से डूबा हुआ। धोया 5 हुआ | कंपाथमान । लहराती हुई लहरों से युक्त । } उत्तरंग उतरङ्ग उन्रतः | ( अभ्या० ) उत्तर से उत्तर दिशा तक। उत्तरात ऽ बांई ओर पीछे बाद को बाद को आगे को । उत्तरत्र (अव्यया० ) पीछे से नीचे । अन्त में | उत्तराहि (अव्यया०) उत्तर दिशा की ओोर । उत्तरीयं उत्तरीयकं उत्तरेण ( अभ्या० ) उत्तर की ओर। उत्तर दिशा की } ( २० ) ऊपर पहिनने का कपड़ा । तरफ | [आने वाले कल के बाद। उत्तरेधः (अव्यया० ) अगले दिन के बाद । परसों उत्तर्जनम् (न० ) भयङ्कर | डरावना । उत्तान ( वि० ) १ फैला हुआ | बिछा हुआ हुआ। प्रसारित । २ चित्त पढ़ा हुआ । बदा सीधा उत्थानम् सतर। ३ साफ दिल का स्पष्ट वक्ता ४ उथक्षा | -- पादः, (g० ) एक पौराणिक राजा का नाम जिनका पुत्र भक्तशिरोमणि ध्रुव था - पादनः, (१०) ध्रुव का नाम । -शय (वि०) चित्त पड़ा हुआ। -शयः, (पु० ) - शया, (स्त्री०) स्तनंधय। दूध पीसा हुआ छोटा शिशु या बच्चा ! उत्तापः ( पु० ) १ बड़ी गर्मी । सपन २ पीड़ा | कष्ट सन्ताप ३ घाट | उतारः ( पु० ) १ उतारा । २ ढुलाई | नाव पर लदे माल का उतारना । ३ पिंड छुटना | ४ वमन | उच्छोट। उत्तारकः ( पु० ) रक्षक | विपत्ति से छुड़ाने वाला | उत्तारणम् ( न० ) नाव पर से तट पर उतारने की किया। छुड़ाने की क्रिया । उत्तारणः ( पु० ) विष्णु का नाम । उत्ताल (वि. ) १ बड़ा मज़बूत : २ उग्र | तेज़ ! ३ भयानक । भयङ्कर | ४ दुरूह | कठिन | ५ ऊया | लंबा । उत्तालः ( पु० ) लंगूर | उत्तुंग ) ( वि० ) ऊँचा। लंबा बड़ा। उत्सुँङ्ग ) उत्तुषः ( पु० ) भुसी निकाला हुआ अन्न । भुना हुआ। अनाज | उत्तेजक ( वि० ) १ उभाड़ने वाला बढ़ाने वाला उकसाने वाला प्रेरक २ वेगों को तीव्र करने वाला । उत्तेजनं ( म० ) । उत्तेजना (स्त्री०) ) १ घबड़ाहट । विकलता । २ बढ़ावा | प्रोत्साह | ३ तेज़ करने वाला । ४ भड़काने वाला भाषण ५ प्रलोभन । उत्तोरण (वि०) ऊँची या सीधी महरावों से सुसज्जित उत्तोलनम् ( न० ) उठाना। ऊपर उठाना । उत्त्यागः ( पु० ) १ त्याग। वैराग्य उत्सर्ग २ उछाल । लुकान | ३ संसार से वैराग्य | उत्त्रासः (पु० ) बड़ा भारी भय या डर । उत्थ ( वि० ) १ उत्पन्न हुआ। पैदा हुआ निकला । २ खड़ा हुआ | आगे आया हुआ। उत्थानम् ( न० ) १ उठने या खड़े २ उदय | ३ उत्पत्ति । ४ होने की क्रिया समाधि से उत्थापनम् पुनस्थान |२ उद्योग प्रयत्न | क्रियाशीलता | ६ शक्ति | स्फूर्ति १७ हर्ष श्रानन्द युद्ध ६ सेना | १० आँगन | वह मण्डप जहाँ बलिदान दिया जाय 19 सीमा । मर्यादा हृद १२ सजग होना । जाग उठना । - एकादशी ( स्त्री० ) कार्तिक शुक्ला ११ । इस दिन भगवान चार मास सो चुकने के बाद जागते हैं । इसका प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। ( उत्थापनम् ( न० ) १ उठाना | खड़ा करना । २ ऊंचा उठाना। ३ भड़काना । उत्तेजित करना । ४ जगाना | ५ चमन । छाँट । उत्थित ( व० कृ० ) १ उठा हुआ । २ खड़ा हुआ। ३ उत्पन्न | पैदा हुआ निकला हुआ । उदय हुआ । ४ बढ़ा हुआ । ५ मर्यादित | सीमाबद्ध । ६ फैला हुआ । पसरा हुआ। अंगुलिः (०) पसारा हुआ हाथ खुला हुआ हाथ फैलाया हुआ हाथ । उत्थितिः ( स्त्री० ) उन्नमन | उच्चता | उठान | उत्पदमन् (वि० ) उल्टे पल्कों वाला ! उत्पतः ( पु० ) पक्षी चिड़िया। उत्पतनम् ( न० ) १ उड़ान । फलांग | उछाल । कुदान | २ ऊपर चढ़ना | चढ़ना । उत्पताक (वि० ) झंडा उठाये हुए । उत्पतिष्णु ( वि० ) उड़ता हुआ। ऊपर जाता हुआ। उत्पत्तिः ( स्त्री० ) १ जन्म | २ उत्पादन | ३ उत्पत्ति स्थान । उद्गमस्थान ४ उदय होना। ऊपर चढ़ना। दृष्टिगोचर होना । १ लाभ | मुनाफा | —व्यञ्जकः, ( पु० ) १ दूसरा जन्म । [उपनयन- संस्कार दूसरा जन्म कहलाता है। क्योंकि द्विजन्मा संज्ञा उपनयन संस्कार के बाद ही होती है।] २ द्विजन्मा का चिन्ह | उत्पथः (पु० ) असन्मार्ग। खराब रास्ता । उत्पर्थ ( न० ) विपथ गमन | १६१ उत्पन्न ( व० कृ० ) १ पैदा हुआ | निकला हुआ । २ उदय हुआ। उगा हुआ ऊपर गया हुआ । ३ प्राप्त किया हुआ । -उत्पल (बि०) माँसरहित । दुबला पतला | लटा । ) उत्पीड --श्रत, चतुसू (वि०) कमलनयन | - पत्र ( न०) १ कमल का पत्ता १२ स्त्री के नख की खरोंच से उत्पन्न घाम नखचत नखचिन्ह | उत्पलम् ( न० ) २ नील कमल । कमोदिनी | २ कोई भी पौधा | उत्पलिन (वि० ) बहु-कमल-पुष्प-सम्पन्न | उत्पत्तिनी ( स्त्रो० ) १ कमल पुष्पों का ढेर | २ कमत का पौधा जिसमें कमल के फूल लगे हों । उत्पावनम् ( न० ) साफ करना | पवित्र करना । उत्पाद: ( पु० ) १ उखाड़ना | उचेलना | २ जड़ डाली सहित नष्ट करना । कान के भीतर का रोग विशेष | [डाली सहित नष्ट कर डालना । उत्पाटनम् ( न० ) जड़ से उखाड़ डालना । जड उत्पाटिका ( स्त्री० ) वृत को छाल। उत्पादन ( वि० ) उचेलना | उन्मूलन । उखाद्न । उत्पातः ( पु० ) १ उछाल कुलाँच उड़ान | २ प्रति क्षेप उठान उभाड़ अशुभसूचक शकुन ४ ग्रहण भूकम्प आदि अशुभ सूचक घटनाएँ | - पवनः, वातः, - वातालिः ( पु० ) वांडर | तूफ़ान | उत्पाद (वि० ) ऊपर को पैर किये हुये । शयः- शयनः ( पु० ) १ शिशु । २ तीतर विशेष | उत्पादः ( पु० ) उत्पत्ति । प्राकट्य । प्रादुर्भाव । उत्पादक ( वि० ) [ स्त्री० - उत्पादिका ] पैदा करने- चाला। प्रभावोत्पादक । पूरा करने वाला । उत्पादकः ( पु० ) पैदा करनेवाला। उत्पन्न करनेवाला । जनक। पिता उत्पादकम् (न०) उद्गम स्थान । कारण । हेतु । उत्पादिन ( वि० ) उत्पन्न किया हुआ । पैदा किया उत्पादनम् ( न० ) उत्पत्ति | पैदाइश | उत्पादिका ( स्त्री० ) १ कीट विशेष । दोमक । २ जननी माता पैदा करने वाली । उत्पाली ( स्त्री० ) तंदुरुस्ती । स्वास्थ्य | उत्पिंजर उत्पिअर उत्पिंजल उत्पिञ्जल (वि) १ जो पिंजड़े में बन्द न हो । २ गढ़-बड़ अत्यन्त घबड़ाया हुआ । उत्पीड: (पु०) १ दबाव । २ प्रबल या प्रचण्ड बहाव । ३ फेन। भाग। स० श० कौ २१ उत्पीड़नम् उत्पीड़नम् (न० ) दबाव | ताड़न | उत्पुच्छ (वि० ) पूछ उठाये हुए। उत्पुलक ( वि० ) १ रोमाश्रित जिसके रोगटे खड़े हों। २ प्रसन | हर्षित | 1 उत्सम ( वि० ) चमकीला | प्रकाशमान । उत्प्रभः (पु० ) दहकती हुई आग | उत्प्रसवः ( पु० ) गर्भपात या गर्भश्राव । उत्प्रासः ( पु० ) ( १ ज़ोर से फेंकना । २ हँसी उत्प्रासनम् ( न० । मजाक । ३ अट्टहास । ४ उपहास । मज्ञाक। जीट। साना व्यङ्ग्य | उत्प्रेक्षण ( न० ) १ चितवन | अवलोकन | पहचान | २ ऊपर की ओर ताकना । ३ अनुमान | कल्पना | | ( १६२ ) ४ तुलना । उत्मेक्षा ( स्त्री०) १ अनुमान कल्पना क़यास २ असावधानी उदासीनता । ३ अर्थालङ्कार विशेष | इसमें भेवज्ञानपूर्वक उपमेय में उपमान की प्रतीति होती है। उत्प्लवः (पु० ) उछाल | कुदान । फलाँग । छलांग । उत्तवा ( स्त्री० ) बोट । नाव । फिरती उल्लवनम् (न० ) कूद | छलाँग फलांग | उछाल उत्फलं ( न० ) उत्तम फल । उत्फालः ( पु० ) १ उछाल छलांग | फलोंग । वेगवान गति । २ कूदने को उद्यत होने का एक ढंग विशेष | [ स्थान | जल का उत्साहः उत्सन ( व० कृ० ) १ सड़ा हुआ | २ नष्ट किया हुआ | उजाड़ा हुआ । जड़ से उखाड़ा हुआ | त्यागा हुआ | ३ अकोसा हुआ | शापित १४ अप्रचलित । लुप्त | उत्सर्गः ( पु० ) १ त्याग । म्यास २ उड़ेलना । गिराना ३ भेंट दान अर्पण ( करना ) | दे डालना। ४ ध्यय करना । २ छोड़ देना। [ जैसे वृपोत्सर्ग में ] बलिदान । ७ विष्टा या पुरीष का त्याग। (अध्ययन या किसी व्रत की ) समाप्ति। ८ साधारण नियम ( अपवाद का उल्टा ) १० योनि । भग । उत्साद: (पु०) १ नाश । विनाश | २ उजड़न | हानि | हुआ। आकार में पुरना या उसका अच्छा होना ४ चढ़ना । उठना ।५ ऊपर उठाना ऊँचा करना ६ दो बार किसी खेत को अच्छी तरह जोवना। 1 उत्फुल्ल (ब॰ कृ०) १ खिला हुआ । २ बिलकुल खुला | उत्सादनम् (न०) १ नाश । २ सुगन्धि । ३ वाब को हुआ। फैला हुआ | ३ फूला बदा हुआ। ४ उतान लेटा हुआ। उत्फुल्लम् (न०) स्त्री की योनि । उत्सः ( पु० ) चश्मा सोता। श्रोत उत्संगः ) ( पु० ) १ गोद | अङ्क | २ आलिङ्गन उत्सङ्गः ) लिपटाना । चिपटाना। ३ थाभ्यान्तरिक । सामीप्य पड़ोस ४ सतह तल घोर डाल नितंब । ६ ऊपरी भाग चोटी पहाड़ की चढ़ाई ८ घर की छत । उत्संगित | (वि०) १ सम्मिलित | समूह | २ गोद में उत्सङ्गित / लिया हुआ ! गोद का । उत्संजनम् । ( न०) उचाल या लुकान। ऊपर को उत्सञ्जनम् ऊठाने की क्रिया। 1 उत्सर्जनम् (न०) १ स्याग । न्यास परित्याग २ भेंट | पुरस्कार | दान | ३ ( वैदिक ) अध्ययन को स्थगित करना। ४ वैदिक अध्ययन बंद करने के उपलक्ष्य में गृहकर्म विशेष । यह वर्ष में दो बार अर्थात् पूस थौर श्रावण में किया जाता है। उत्सर्पः (१०) ऊपर जाना या ऊपर सरकना। उत्सर्पणम् (न०) | २ फुलाना ३ साँस लेना । उत्सवः ( ५० ) १ मङ्गलकार्य उदाह २ आनन्द । हर्ष ३ उचाई। उच्चस्थान 1४ क्रोध | रोष |२ इच्छा । इच्छा का उत्पन्न होना । —सङ्केतः (बहु- वचन, पु० ) हिमालय पर्वत में रहने वाली एक मनुष्य जाति । 1 उत्सारकः ( पु० ) १ पुलिस का सिपाही । २ चौकी- दार | ३ दरवान द्वारपाल । उत्सारणम् ( न० ) १ दूर हटाना | हटाना। रास्ते से दूर करना । २ अतिथि का सरकार। महमान- दारी । उत्साहः ( पु० ) १ साहस | हिम्मत २ उमङ्ग । उधाह। जोश। हौसला | ३ इद अध्यवसाय ४ दृढ़ सङ्कल्प पराक्रम ५ शक्ति । सामर्थ्य ६ छता बल। -वर्धनः, ( पु० ) वीर रस १६३ उत्साहनम् ( -वर्धनम् ( न० ) वीरता । -शक्तिः, ( स्त्री० ) हड़ता। उच्चाह | उत्साहनम् (न०) १ उद्योग दृढ़ प्रयत्नशीलता | ३ बँधाना| उभाड़ना | उत्सित (व० कृ०) १ छिड़का हुआ । २ अभिमानी। क्रोधी| अकड़बाज़ | ३ जल की बाढ़ से बढ़ा हुआ । अत्यधिक । ४ चंचल । विकल | उत्सुक ( वि० ) १ अत्यन्त इच्छावान्। उत्कचिठत | चाह से चाकुल | २ बेचैन । उद्विग्न | व्याकुल । ३ अनुरक्त | ४ शोकान्वित | उत्सूत्र ( वि० ) १ डोरी से न बंधा हुआ। ढीला | बंधनमुक्त । २ अनियमित | गइश्व | ३ व्याकरण के नियम के विरुद्ध | प्रयत्न | २ अध्यवसाय | उत्साहवृद्धि | हौसला उत्सूरः ( पु० ) सन्ध्याकाल | झुटपुटा । उत्सेकः ( पु० ) १ छिड़काव | उड़ेलना । २ उमड़न | बढ़ती । अत्यधिकता | ३ अभिमान | शेखी | उत्सेकिन ( वि० ) १ उमड़ा हुआ । बढ़ा हुआ । २ अभिमानी । क्रोधी | अकड़वाज़ | उत्सेचनम् ( न० ) जल का छिड़काव या जो उछालने की क्रिया । [मोटापन | ३ शरीर । उत्सेधः (पु०) १ उच्चस्थान | ऊचा स्थान | २ मुटाई। उत्सेधम् (न० ) हनन । मारण । घात । उत्स्मयः ( पु० ) मुसक्यान । उत्स्वन ( वि० ) उच्चरवकारी । दीर्घ स्वर वाला । उत्स्वनः ( पु० ) उच्चरव। दीर्घस्वर । उत्स्वमायते ( क्रिया) सेप्ते में बराना । उद् ( अव्यया० ) यह एक उपसर्ग है जो क्रियाओं और संज्ञाओं में लगाया जाता है, अर्थ होता है; १ऊपर। बाहिर । २ अलग | पृथक | ३ उपा र्जन । लाभ | ४ लोकप्रसिद्धि | ५ कौतूहल । चिन्ता । ६ मुक्ति । ७ अनुपस्थिति । ८ फुलाना | बढ़ाना । खोलना । 8 मुख्यता | शक्ति | उदक (अव्यया० ) उत्तर दिशा की ओर। उदकम् ( न० ) पानी । –अन्तः, ( पु० ) तट । किनारा | समुद्रतट । - अर्थिन्, (वि०) प्यासा | -आधारः, ( पु० ) कुण्ड । हौद । - उदञ्जनः, (पु०) लोटा | कल्सा–उदरं, (न०) जलंधर रोग । ) उञ्चनम् -कर्मन. (न० ) कार्य, (२० ) -क्रिया, (स्त्री०) -दानं, (न०) पितरों की तृप्ति के लिये जल से तर्पण -कुम्भः, (पु०) जल का घड़ा या कल्सा । ~~गाहः, (पु०) स्नान | महणं, (न०) पीने का जल द्शतृ - दायिन- दानिक, (दि०) जलदाता जल देने वाला 1- दः, (पु०) १ सर्पण करने वाला | २ वंश वाला । उत्तराधिकारी । - धरः, (पु० ) बादल -वजूः, ( पु० ) चोलों की दृष्टि 1 - शान्तिः, ( स्त्री० ) मार्जनक्रिया :- हारः, (पु० ) पानी ढोने वाला १ उदकल ( वि० ) पनीला । पानी का भाग उदकित जिसमें विशेष हो । उदकेचर: ( पु० ) जलजन्तु । पानी में रहने वाला जीव जन्तु । उक्त (वि० ) ऊपर उठा हुआ । उक्य (दि० ) जल की अपेक्षा रखने वाला । उदवया (स्त्री० ) रजस्वला स्त्री | उदम ( वि० ) १ ऊवा उन्नत उठा हुआ। बाहिर निकला हुआ या वाहिर की ओर बढ़ा हुआ । २ बड़ा | चौड़ा । प्रशस्त । बहुत बड़ा | ३ बूढ़ा | ४ मुख्य । प्रसिद्ध । गौरवान्वित | १ प्रचण्ड | असह्य । ६ भयानक डरावना । ७ कराल | उद्विग्न ८ परमानन्दित । उदंकः ( पु० ) चमड़े की बनी ( तेल या घी रखने की ) कुप्पी या कुप्पा उच् ) उदंच ( वि० ) [ (पु० ) उदङ् ( न० ) - उदक (सी० ) - उदीची ] १ ऊपर की उदचे ) ओर घूमा हुआ था जाता हुआ | २ ऊपर का | उच्चतर | ३ उत्तरी या उत्तर की ओर घूमा हुआ ॥ ४ पिछला। अद्विः, (पु० ) हिमालय पर्वत । --अयनम् ( न० ) उत्तरायण आवृतिः, (स्त्री०) उत्तर से लौटने की क्रिया । –पथः, (पु०) उत्तर का एक देश --प्रवण, (वि० ) उत्तर की ओर झुका हुआ या ढालुआ। मुख, ( वि० ) उत्तर की ओर मुख किये हुए । उदंचनम् } से जल निकाला जाय । २ चढ़ाव । उदञ्चनम् ( न० ) १ ढोल । बाल्टी जिससे कुए उठाव उठान । ३ ढकन | ढकना | उद्जलि दंजलि ) ( वि० ) दोनों हाथों से "दजलि बनाये और उंगुलियों को उपर किये हुए हाथों की मुद्रा विशेष दंडपालः } ( पु०) ३ भ्रस्य । २ सर्पं विशेष । 'दण्डपाल: उदंत उदन्तः दधिः (पु०) घट घड़ा । जलपान । २ समुद्र । ३ झील | सरोबर । ४ घड़ा | कल्सा | उदन् ( न० ) जल | पानी | [ अन्य शब्दों के साथ जब इसका योग किया जाता है, तब इसके "नू” का लोप हो जाता है । [ जैसे-उदधिः, ]- कुम्भः, ( पु० ) घड़ा | कलसा । -ज, ( दि० पानी का । - धानः, ( पु० ) १ पानी का घड़ा। २ बादल । —धिकन्या, (स्त्री० ) १ लक्ष्मी । २ द्वार- कापुरी 1- पात्रं, (न०) - पात्री, (स्त्री०) जल भरने का बर्तन । – पानः, (पु०) –पानम् (न०) १ कुए के समीप की हौदी । २ कूप ।–पेषं, (न०) लेही । चिपकाने की वस्तु । -बिन्दुः, (पु०) जल की बूंद | - भारः ( पु०) जल ढोने वाला अर्थात् बादल । - मन्थः ( पु० ) यवागू या जब का विशेष रीत्या बनाया हुआ जल, जो रोगी को पथ्य में दिया जाता है। - मानः, ( पु० ) - मानम्. (न० ) आटक का पचासवाँ भाग । तौल विशेष । -मेघः, (पु० ) वृष्टि करने वाला बादल । -वजूः, (पु० )ों की वर्षा | २ फुधारा ।- वासः, ( पु० ) जल में रहना या जल में खड़ा रहना। -वाह, ( वि० ) जल लाने वाला । -वाहः, ( पु० ) मेघ i-वाहनं, ( न० ) जलपात्र । -शरावः, (पु० ) जल से भरा घड़ा। - शिवत्, (न० ) छाछ या मठा जिस में १ हिस्सा जल और २ हिस्सा माठा हो । | उदरथिः ( पु० ) १ समुद्र । २ सूर्य । - हरणाः, ( पु० ) पानी निकालने का पात्र । उदंतकः उदन्तकः उदरणी उदन्या (स्त्री० ) प्यास तृषा उदन्वत् ( पु० ) समुद्र | सागर । उतिका उदन्तिका उदन्य (वि० ) प्यासा | तृषित | उद्यः ( पु० ) १ उगना । उठना । ऊँचा होना । २ गम (जैसे धनोदयः ) उपज ( जैसे फलो- व्य)।३ सृष्टि । ४ उदयगिरि । ५ उन्नति | अभ्यु- दय । ६ पदोन्नति । ७ परिणाम |८ पूर्णता परि- पूर्णता | ६ लाभ | नफा | १० आमदनी | आय मालगुज़ारी ११ व्याज सूद १२ कान्ति । 1–प्रचलः, अद्रिः - गिरिः, पर्वतः, -शैलः, ( पु० ) उदयाचल नामक पर्वत जो पूर्व दिशा में है। प्रस्थः, ( पु० ) उदयाचल की अधित्यका । [२ परिणाम | उद्यनम् (न ) १ उगना निकलना ऊपर चढ़ना । उदयनः ( पु० ) १ अगस्थ्य जी का नाम । २ चन्द्र- चमक - वंशी एक राजा का नाम से प्रसिद्ध था और धानी थी । यह वत्सराज के नाम कौशाम्बी इसकी राज- } ( स्त्री० ) सन्तोष । तृप्ति 1 उद } ( पु० ) १ समाचार | ख़बर | वर्णन | उदरम्भरि इतिहास | २ साधु पुरुष | } (पु० ) समाचार | ख़बर । उदरं ( न० ) १ पेट । २ किसी वस्तु का भीतरी भाग खोखलापन। पोलापन | ३ जलोदर रोग के कारण पेट का फुलाव | ४ हनन । घात । हत्या आध्मानः ( पु० ) पेट का फूलना । श्रामयः, (पु० ) असीसार । संग्रहणी दस्तों की बीमारी। आवर्तः, (पु० ) नामि का -- आवेष्टः, (पु० ) फीता जैसा कीड़ा 1- त्राणं, (न०) १ कवच | बख़्तर २ पेटी पेट पर बांधने की पट्टी । - पिशाच, (वि०) बहुत खाने वाला । भोजनभट्ट |~-सर्वस्वः, ( पु० ) भोजन भट्ट या जिसे केवल पेट भरने ही की चिन्ता हो । उद्रवत् उदरिक उदरिल करने वाला | स्वार्थी । २ भोजनभट्ट। (वि०) १ अपने पेट का भरण पोषण (वि० ) बड़पिट्टू । बड़े पेट वाला। तोंदिल । मौंटा । उद्दिन् ( न० ) बड़े पेट या तोंद वाला। मौटा । उदरिणी (स्त्री० ) गर्भवती स्त्री । उदकः उदर्कः ( पु० ) १ समाप्ति । अन्त । उपसंहार । २ परिणाम फल किसी कर्म का भावी परिणाम ३ आने वाला काल । भविष्यत् काल । उदर्चिस् (त्रि०) चमकीला | कान्तिमान | दहकता हुआ। (०) । २ कामदेव । ३ शिव । उदवसितं ( न० ) घर | बासा | ढेरा । उदय (वि० ) जो फूट फूट कर रोता हो । जिसकी आँख से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित हो । उद्सनम् ( न० ) १ फेंकना | उठाना । बनाकर खड़ा करना | २ निकालना । उदात्त (वि० ) १ ऊँचा | उठा हुआ | २ कुलीन । महिमान्वित | ३ उदार दानशील ४ प्रख्यात । आदर्श । महान् | ५ प्रिय | प्यारा माशूक । ६ ऊँचे स्वर से उच्चारण किया हुआ | उदात्तः ( पु० ) १ दान भेंट ३ वाद्य यंत्र विशेष । एक प्रकार का बाजा। ढोल । उदात्तम्, (न०) अलङ्कार विशेष । इसमें सम्भाव्य विभूति का वर्णन खूब चढ़ा बढ़ा कर किया जाता है। उदानः ( पु० ) १ शरीरस्थ पाँच वायु में से एक। यह कण्ठ में रहती है। इसकी चाल हृदय से कण्ठ और तालू तक तथा सिर से भूमध्य तक मानी गयी है। डकार और छींक इसीसे आती है। २ नाफ। नाभि । टुड़ी उदायुध ( वि० ) हथियार उठाये हुए । उदार (वि० ) १ दाता । दानशील । २ महान् । श्रेष्ठ | कुलीन । ३ ऊँचे दिल का असङ्की । ४ ईमानदार | सच्चा धर्मात्मा ५ अच्छा भला । उत्तम । ६ वाम्मी । ७ विशाल | कान्तियुक्त | चम- कीला |८ बढ़िया पोशाक पहिनने वाला । १ सुन्दर । मनोहर । मनोमुग्धकारी । प्रिय - आत्मन, चेतस्, चरित, – मनस, सत्व, ( चि० ) उन्नतचेता । महानुभाव । महामना । महात्मा। महामति। --धी, (वि.) अत्युच्च प्रति- भावान् ।दर्शन, (वि० ) सुन्दर खूबसूरत | उदारता (स्त्री०) १ दानशीलता । फैयाजी | २ धनी पना अमीरी । [ ३ खिन्नचित्त । दुःखी । उदास (वि० ) १ विरऊ | २ निरपेक्ष तटस्थ उद्देजय उदासः ) (पु०) १ विषय-विरागी व्यक्ति | दार्शनिक उदासिन् । पण्डित । २ विरक्त | निरपेक्ष उदासीन ( व० कृ० ) १ दिरक्त | २ प्रपञ्चशून्य | उदासीन: ( पु० ) १ तटस्थ | निरपेक्ष । जो विरोधी पक्षों में से किसी की ओर न हो । २ अपरिचित ३ सामान्य रूप से सब से परिचित । उदास्थितः (पु०) १ पर्यवेक्षक दरोगा सुपरटेंडेंट २ द्वारपाल । दरवान । ३ जासूस | भेदिया | व्रत- भङ्ग यती । उदाहरणम् ( न० ) १ वर्णन | कथन २ निरूपण | पाठ करना । वार्तालाप आरम्भ करना । ३ दृष्टान्त मिसाल । प्रत्यन्तर । पटतर ४ ( न्यायदर्शन) वाक्य के पाँच अवयवों में से तीसरा। इसमें साध्य के साथ साधर्म्य वा वैधर्म होता है। ५ अर्थान्तर न्यास अलङ्कार | [ आरम्भिक भाग | उदाहारः ( पु० ) दृष्टान्त । मिसाल । २ भाषण का उदित ( व० कृ० ) १ उगाहुआ 1 ऊपर चढ़ा हुआ। २ ऊंचा | लंबा | ३ बढ़ा हुआ | ४ उत्पन्न हुआ। पैदा हुआ । ५ कथित | कहा हुआ | उच्चारित | उदोक्षणम् ( न० ) १ खोज तलाश | चितवन । अवलोकन | उदीची ( स्त्री० ) उत्तर दिशा । [ २ उत्तर का । उदीचीन (वि० ) १ उत्तर की थोर झुका या मुड़ा हुआ। उदीच्य ( वि० ) दक्षिण दिशा वासी । उदीच्यः (५०) सरस्वती नदी के उत्तर-पश्चिम वाला देश | (बहुवचन में) उक्त देश निवासी । उदीच्यं ( न० ) एक प्रकार की सुगन्धित वस्तु । उदीपः ( पु० ) जल की बाढ़ । बुड़ा । उदोरणम् ( न० ) १ कथन | उच्चारण | प्रकटन २ बोलना | फहना | ३ फेंकना । पठाना । विदा करना । उदीर्ण (व० कृ० ) १ बढ़ा हुआ | उगा हुआ । उत्पन्न हुआ। २ फूला हुआ उठा हुआ । ३ तना हुआ। खिंचा हुआ | उदुम्बर: ( पु० ) गूलर का पेड़ । उदुखलं ( न० ) उलुखल । उखरी । उटूढा ( स्त्री० ) विवाहित स्त्री । उदेजय ( वि० ) १ काँपता हुआ [२] भयकर | या दिखने वाला। उद्गतिः तेः ( स्त्री० ) १ उठान | उगना चढ़ाव | चढ़ाई। २ निकास | उद्गमस्थान ३ ३ चमन । छाँट न्ध ( वि० ) १ खुशबूदार | २ उम्रगन्ध वाला। ( १ | आविर्भाव उत्पत्ति का स्थान। निकास खड़े होना जैसे उडवम् } ( वि० ) गर्दन उठाए हुए। रोमोदुमः | ३ बाहिर जाना। प्रस्थान ४ उत्पत्ति- | उद्धः ( पु० ) १ उत्तमता । प्रधानता | २ प्रसन्नता सृष्टि । ५ उचाई । उच्च स्थान | ६ पौधे का हर्ष | ३ अन्जुलि | ४ अग्नि | 4 आदर्श । नमूना अँखुआ । ७ वमन । छांट। उगलन । मनम् (न०) उदय। थाविर्भाव । मनीय (वि० ) चढ़ा हुआ। ऊपर गया हुआ। मनीयम् (न- ) धुले हुए कपड़े का जोड़ा। गढ़ (वि० ) गहरा । सघन । अत्यन्त | बहुत | म् ( न० ) अत्यन्त अधिकता । (अन्य ) अधिकाई अत्यन्तता से। से दारिन (वि०) १ ऊपर गया हुआ | उठा हुआ । २ • निकला हुआ। बाहिर आया हुआ | हरणम् ( न० ) १ छ । चमन | २ लार | राल | ३ डकार । ४ उखाड़ पछाड़ | उद्दानम् हुआ | २ ले जाया हुआ | ३ सर्वोत्तम | ४ रखा हुआ। सौंपा हुआ। ५ बंधा हुआ। कसा हुआ। ७ स्मरण किया हुआ | उद्घटनम् ( न० ) उन (स्त्री० ) ) रगड़ | ताड़न | उद्वर्षाम् (न०) १ रगड़न | २ सोठा | डंडा | लठ्ठ | उद्घाट: ( पु० ) चौकी | वह स्थान जहाँ चौकी रहे । उद्घाटकः ( पु० ) १ चाबी | कुंजी | २ कुए पर उद्घाटकम् ( न० ) 5 की रस्सी और डोल। उद्घाटन (वि० ) खोलना । साला खोलना । [ करने वाला। सामवेद का गान तृ ( पु० ) उड़ाता यज्ञ में दारः ( पु० ) : उबाल । उफान | २ वमन | छाँट उड्डानम् ( न० ) १ खोलना । उधारमा १२ प्रकट ३ थूक | खखार ४ ढकार ! करना प्रकाशित करना। ३ उठाना। ४ चाबी | कुंजी। कुएँ की रस्सी और डोल। गिरी। चरखी। उद्धातः ( पु० ) १ श्रारम्भ प्रारम्भ २ हवाला । सङ्केत ३ ताड़न चोटिल करना ४ महार धाव ५ हिलन डुलन । झटका; जो गाड़ी में बैठने पर लगता है। ६ उठान | उचान | ७ लाठी मूंगरी | ८ हथियार | ६ अध्याय । सर्वं । उदोष: (पु०) : घोषण | घोषणा । डिँढारा। २ सार्व- जनिक रिपोर्ट । हीतिः ( स्त्री० ) १ उच्चस्वर का गान । २ सामगान | ३ छन्द विशेष | [ ३ ओंकार | परग्रहा। लोधः (१०) १ सामगान । २ सामवेद का दूसरा भाग। (वि० ) १ चमन किया हुआ | उगला हुआ २ उडेला हुआ। बाहिर निकाला हुआ । हूर्ण (वि० ) उठा हुआ) ऊपर उठाया हुआ | बुंधः } (पु० ) अध्याय । परिच्छेद । इंथि । शरीरस्थित वायु विशेष उद्धनः ( पु० ) बढ़ई का पीढ़ा। उद्देशः ( पु० ) : खटमल | २ चिलुआ | ३ मच्छर | उदण्ड ( वि० ) १ डैंटुल सहित । २ डंडा उठाए हुए । भयानक 1-पालः, ( पु० ) दण्डविधानकर्ता या दण्ड देने वाला २ मत्स्य विशेष | ३ सर्प विशेष । उद्दंतुर ) (वि०) १ बड़े दाँतों वाला या वह जिसके उद्दन्तुर । दाँत आगे निकले हों। २ ऊंचा | लंबा । ३ (वि०) सम्मिलित 1 मिला हुआ । जुड़ा हुआ। धर्मानुष्ठान दुहः ( पु० ) } १ उठाना । ऊपर करना।२ दहणम् (न० ) ऽ ऐसा कार्य जो अथवा अन्य किसी अनुष्ठान से पूरा हो सके । | उद्दांत ३ डकार । [ प्रतिवाद | | उद्दान्त दाहः (पु०) १ उन्नयन | उठालेना | २ प्रत्युत्तर । हणिका (स्त्री० ) वादी का जवाब । प्रतिवाद | दाहित ( ब० कृ० ) १ उठाया हुआ। ऊपर किया भयकर । } ? ( वि० ) १ बीर्यवान | प्रथल । विनीत । उद्दानम् ( न० ) १ बंधन | बन्दीग्रह । २ पालतू बनाना। वश में करना ३ मध्यभाग | कटि कमर । ४ अग्निकुण्ड | ५ वादवान । उद्दाम उद्दाम ( वि० ) १ बन्धनरहित । मुक्त। स्वतंत्र | २ बलवान । शक्तिशाली मद में चूर मदमाता । नशे में चूर | ३ भयानक ४ स्वेच्छाचारी | ५ बहुत बढ़ने वाला। बड़ा । महान् । अत्यधिक । उद्दामः ( पु० ) वरुणदेव का नाम ! उद्दानं (अव्यय०) मज़बूती से । भयङ्करता से । उद्दालकम् (न०) एक प्रकार का मधु या शहद उद्दित (वि०) बंधनयुक्त | बंधा हुआ । उद्दिष्टम् (व० कृ०) १ वर्णित | कथित। २ विशेष रूप से कहा हुआ । ३ व्याख्या किया हुआ | सिखलाया | हुआ। उद्दीपः ( 50 ) १ वहन | जलन । प्रकाशन | २ दहन. कारी । जलानेवाला । [प्रकाशक । उद्दीपक ( वि० ) १ भड़काने वाला । २ दहनकारी । उद्दीपनम् ( न० ) १ उत्तेजित करने की क्रिया | २ उत्तेजित करने वाला पदार्थ | ३ थलङ्कार शास्त्र के वे विभाव जो रस को उत्तेजित करते हैं। ४ रोशनी करना । प्रकाश करना । ५ देह को भस्म करना या जलाना । उद्दीम (वि० ) दहकता हुआ। जलता हुआ । उद्दत ( वि० ) अभिमानी । घमंडी । उद्देशः ( म० ) १ वर्णन। सविशेष विवरण १३ उदाहरण | दृष्टान्त द्वारा प्रदर्शन | व्याख्या | ४ खोज । अनुसन्धान । सहकीकात । ५ संक्षिप्त विव रण । ६ निर्देशपत्र । ७ शर्तें । इकरार | हेतु। कारण । १ स्थान । जगह । १० मतलब | अभि | ( १६७ ) प्राय । उद्देशकः ( पु० ) १ उदाहरण | २ ( अङ्कगणित में ) प्रश्न । कठिन प्रश्न | कूद मन । उद्देश्य ( स० का० कृ० ) व्याख्यान करने को । उद्देश्य ( न० ) १ अभिप्रेत अर्थ | वह वस्तु जिसको लक्ष्य में रख कर कोई बात कही जाय। वह वस्तु जो किसी कार्य में प्रवृत्त करे । २ विधेय का उल्टा। विशेष्य । [भाग। अध्याय । पर्व । काण्ड । उद्योतः ( पु० ) १ चमक | आब | २ ग्रन्थ का उद्भावः ( पु० ) पीछे हटना TI उद्धत (व० कृ० ) १ उठा हुआ । उठाया हुआ | २ अत्यधिक बहुत अधिक। ३ । घमंडी उजुर ४ सख्त २ व्याकुल उद्विग्न ६ विशाल । महान | गौरव युक्त | गंवारू | बद- तमीज्ञ 1-मनसू मनस्क (वि०) उच्चाशय । अक्खड़ | उद्धतः ( पु० ) राजा का पहलवान । राजमल्ल ! उद्धतिः (स्त्री० ) १ ऊंचाई | २ अभिमान | घमंद । ३ गौरव । ४ श्राघात । महार। [दम फूलना। उद्धमः ( पु० ) १ वजाना। फूकना । २ सांस लेना । उद्धरणम् (२० ) १ खींचना | उतारना । २ खींच कर निकालना | ३ चुड़ाना | ४ नामोनिशान मिटाना। ५ ऊपर उठाना । ६ वमन करना | ७ मुक्ति । मोच ८ ऋण से उऋण होना। उद्धर्तृ ) (वि०) १ ऊपर उठानेवाला। ऊंचा करने उद्धारक वाला २ भागीदार | साझीदार उद्धर्ष (त्रि० ) हर्षित | प्रसन्न | उद्धर्षः (पु०) १ बड़ी भारी प्रसन्नता । २ किसी कार्य को आरम्भ करने का साहस ३ त्योहार पर्व । उद्धर्षणम् ( न० ) उस्साहवर्द्धन | जान डालना | २ रोमाञ्च | शरीर के रौंगटों का खड़ा होना। उद्धवः ( पु० ) १ यज्ञाग्नि । २ उत्सव | पर्व ३ एक यादव का नाम जो श्रीकृष्ण का मित्र था। उद्धस्त ( वि० ) हाथ बढ़ाये या उठाये हुए । [छाँट उद्धानम् ( न० ) १ यज्ञकुण्ड | २ उगाल । वमन । उद्धांत ) ( वि० ) उगला हुआ। छाँट किया हुआ। [गया हो । उद्धांतः ) ( पु० ) हाथी जिसका मद चूना बन्द हो उद्धान्त उद्धान्तः उद्धार (पु०) १ मुक्ति | छुटकारा । नाय । विस्तार | २ ऊपर उठाना । ३ सम्पत्ति का वह भाग, जो बरा- बर बाँटने के लिये अलग कर लिया जाय । ४ युद्ध की लूट का ६वाँ भाग जो राजा का होता है।५ ॠण । ६ सम्पत्ति की पुनः प्राप्ति । ७ मोच । नैसर्गिक आनन्द । उद्धारणम् ( न० ) १ निकालना । ऊपर उठाना । २ बचाना (किसी सङ्कट से ) उबारना । उडर (वि०) १ असंयत । अनरुद्ध । स्वतंत्र। २ दृढ़ । निडर । ३ भारी परिपूर्ण ४ गाड़ा । सघन । ५ योग्य | उद्धृत ( १६८ ) उद्धृत (व० ० ) १ हिला हुआ गिरा हुआ। 1 ० उद्भावः (पु०) १ उत्पत्ति उठाया हुआ ऊपर फैला हुआ | २ उन्नत | उन्नत | उद्घायनम् ( न० ) | सोचना | किया हुआ | [हिलाना | उत्पत्ति | रचना । पैदायश उद्धृतनम् ( न० ) १ ऊपर फेंकना । ऊपर उठाना २ उद्धृपनम् (न० ) धूप देना। [चूर्ण डुरकाना | उजूलनम् ( न० ) चूर्ण करना। पीसना । धूल या उडूपणम् (न० ) शरीर के रोंगटों का खड़ा होना। उद्धृत ( ब० कृ० ) १ निकाला हुआ। ऊपर खींचा हुआ। जादू से उसावा हुआ नष्ट किया हुआ। ३ अन्य स्थान से ज्यों का त्यों लिया हुआ। उद्धृतिः (खो०) १खींचना | खणकर बाहर निकालना । २ किसी अन्य का कोई अंश उतार लेना । ३ बचाना । चुड़ाना। ४ पाप से चुदाना । उडमानम् (न० ) यङ्गीठी। अलाव | उद्धयः ( पु० ) एक नदी का नाम । उद्बंध ( वि० ) ढीला | उद्वेधः उद्वन्धः उद्वेधनम् (न०) उद्वन्धनम् (न०)) उधकः ) ( go ) जाति विशेष जो धोबी का काम उद्वन्धकः ) करती है। ( पु०) | बांधना। लटकाना स्वयं लट- कागा । उद्दल (बि० ) मज़बूत | ताकतवर । उद्वाप (वि० ) आंसुओं से परिपूर्ण उद्वादु (वि०) बाहें उठाये हुए। उद्बुद्ध ( च० कृ० ) १ जागा हुया | उत्तेजित | २ खुला हुआ। ३ स्मरण कराया हुआ स्मरण किया हुआ | उद्घोष (पु०) जागृति | स्मृति । याद करना । उद्योधनम् (म०) ) उठ बैठना। उद्बोधक ( बि० ) १ बोध कराने वाला | याद कराने ख्याल कराने वाला । २ वाला चेताने वाला उड़ीप्त कराने वाला। उद्बोधकः ( पु० ) सूर्य का नाम । उद्भट (वि०) १ सर्वोत्तम । मुख्य २ प्रवल । प्रचण्ड । उद्भट (पु० ) १ सूप | २ कछुवा । करछप उद्भवः (पु० ) १ उत्पत्ति सृष्टि 1 जन्म निकास २ उद्गमस्थान | ३ विष्णु का नाम । 1 उद्योगिन प्रादुर्भाव । २ विशालता मन में जाना । २ ३ अमनस्कता । । ४ तिरस्कार | कान्ति | धाव | उदासः (१० ) चमक आभा उहासिन् ( वि० ) चमकदार चमकीला | उत्तम | S उन्हासुर उद्भिद ( वि० ) अंकुरित ) अँखुओं वाला। उद्भिद ( वि० ) अंकुरित । उद्भिदः (पु.) अंकुर सुथा| २ पौधा । ३ श्रोत | चश्मा फव्वारा उद्भिद विद्या (स्त्री०) वनस्पति विज्ञान | उद्भूत ( च० ० ) १ उत्पन्न हुआ। पैदा किया हुआ। २ विशाल | ३ इन्द्रियगोचर | [उन्नति । उद्भूतिः (स्त्री० ) १ उत्पत्ति | पैदायश | २ समृद्धि । उदः (५० ) १ वेधना | २ फोड़ कर निकलना उदनम् (४० ) ) दिखलाई पड़ना । प्रादुर्भाव । प्रकटन | बाड़ | ३ फव्वारा ओठ चश्मा ४ रोंगटों का खड़ा होना । उमः ( पु० ) १ घूमरी। धन्नौया । २ (तखवार को) घुमाना। ३ घूमना फिरना ४ खेद | उम ( न० ) १ घूमना फिरना | २ उठना । निक- [लना : उद्यत ( व० कृ० ) १ उठा हुआ ऊपर उठा हुआ। २ निरन्तर उद्योगकारी परिश्रमी कियावान् । ३ झुका हुआ साना हुआ सत्पर उत्सुक तुला हुआ। उद्यमः ( पु० ) १ उत्थान उज्यन २ सत्य उद्योग अध्यवसाय । ३ सरपरता । तैयारी। -मृत्, (वि०) कठिन परिश्रम करने वाला। उद्यमनम् (२० ) उत्थान | उन्नमन । उद्यानम् ( न० ) 8. गमन | वहिर्गमन । २ उपग्रन । उद्यमिन् (वि० ) परिश्रमी | अभ्यवसायी पार्क । बारा । श्रानन्दवाटिका ३ अभिप्राय । हेतु कारण -पालः, रक्षकः, (९० ) माली | उद्यानकम् ( म० ) बाग । पार्क । उद्यापनम् ( न० ) समाप्ति । अवसान | उद्योगः (5०) प्रयत्न प्रयास मिहनत । २ उद्यम कामधंधा । [श्रमी । उद्योगिन् (वि० ) क्रियाशील । अभ्यवसायी परि 1 उम्र उद्रः ( पु० ) अजन्तुओं का राजा । [भुर्गा । उद्रथः (पु० ) १ रथ की धुरी की कील या पिन २ उद्रायः (पु० ) शोरगुल होहल्ला फोलाहब। उद्रित ( ० ० ) १ बड़ा हुआ । अत्यधिक 1 विपुल २ स्पष्ट साफ़। उद्वादमी ( स्त्री० ) १ रस्सी डोरी २ कौड़ी उद्घाहिक (दि०) १ विवाह सम्बन्धी । [विवाहित । उद्घाहिन् (वि०) १ उठा हुआ। ऊपर खींचा हुआ |२ उदाहिनी (स्त्री० ) रस्सी और अधिकता । विपु | उनि ( ० ० ) दुःखी । सन्राप्त । शोकप्तुत | [नेत्र | उनुज ( वि० ) नाश करना । गुपचुप नष्ट करना । उकः ( पु० ) १ वृद्धि | वदती लता । २ काव्यालङ्कार विशेष | उत्सर: ( पु० ) वर्ष। साल | उपनम् ( न० ) १ सेंट | दान | उद्धमनम् (न० ) ) उद्धांतिः ( स्त्री० ) उद्धान्तिः ( सी० ). वमन | उबकाई । उद्वर्तः ( पु० ) १ वन्वत | फालतूपन | २ भाराधिक्य | ३ शरीर में तेल मालिश या उबटन | [ दलकाना । २ उडेलना || अधिकता। फुलेल की उद्धर्तनम् (न०) १ ऊपर जाना । उठना | २ बाढ़ ( पौधों की ) । ३ समृद्धि । उन्नयन लेना | उठ खड़े होना| २ पीसना | फूटना ६ उबटन लगाना। तेल फुलेल की मालिश। उद्वर्धनम् (न० ) १ उमति २ था धीरे धीरे हँसना । [चौथा पत्र | ३ विवाह । उहः (१०) १ पुत्र २ पवन के सप्त पर्थों में से उद्धहा (स्त्री० ) बेटी पुत्री उद्द्दनम् ( न० ) १ उठाना ले जाना 1 निकलना । करवटें | उद्वेगम् (न० ) सुपारी । विवाह । २ सहारा ऊपर २ सवारी करना । उद्यान (वि० ) उगला हुआ । ओोका हुआ । उद्वानम् ( न० ) १ वमन | उगाल | २ अंगीठी | उन्दनम् उद्वाहनम् (न० ) १ ऊपर ले जाना। ऊपर चढ़ाना। उठाना | २ विवाह | उद्धांत उद्धान्त उद्धापा (पु०) १ निकास । बहिर्निक्षेप । २ हजामत | उदास । उद्धीक्षण ( न० ) १ ऊपर की ओर देखना | २ दृष्टि | उड्रोजनम् (न० ) पंखा करना । उबृहणम् (न० ) बड़ती। बाद उद्धृत (व० कृ० ) १ उठा हुआ ऊँचा किया हुआ। २ उमद कर वहा हुआ । उद्वेगः ( पु० ) १ कंपना थरथराना घरांना २ घबड़ाहट विकलता । ३ भय । श्राशङ्का ४ चिन्ता खेद शोक | ५ आश्चर्य । ताज्जुब । (वि०) १ बोका हुआ | २ मदरहित | | उद्वेष्टनम् ( न० ) १ चारों ओर से घेरने या ढकने की किया। २ घेरा हाता३ पीठ या नितंब की पीड़ा | 4 उद्वेजनम् ( न० ) १ विकलता | व्याकुळता | २ पीड़ा कए। सन्ताप । ३ खेद | [ से युक्त | उद्वेदि (वि० ) सिंहासन से युक्त। श्रथवा उच्चस्थान उद्वेपः ( पु० ) काँपना थरथराना अत्यधिक [ मर्यादा का अतिकम किये हुए। उद्वेल (वि० ) (जलका ) उमड़ कर वहा हुआ। उद्वेलित ( ० ० ) कांपा हुआ | उड़ाला हुआ। | उद्वेल्डितम् ( न० ) हिलना तुलना। प्रकम्प | उद्वेष्टन (वि० ) 1 ढीला किया हुआ खुला हुआ। २ मुक्त | बंधन से छूटा हुआ। बंधन रहित । से चौरकर्म। उद्घोढ़ (पु० ) पति | खसम | खाविंद । उदासः ( पु० ) १ देश निकाला १२ स्याग। ३ वध | | उधस् ( न० ) दूध देने वाले पशुओं का ऐन । लेक | ४ यज्ञीय संस्कार विशेष | उंदू } ( धा० पा० ) उन्नत्ति, उत्त-उम्र ] उद्धारनं (न० ) १ निकालना। देश निकाला देना | २ | उ भिगोना । तर करना। नम करना। स्नान त्यागना। ३ निकाल लेना या निकाल कर ले करना । जाना (आगसे ) । ४ वध करना । उद्वाहः ( ५० ) १ सहारा | २ विवाह परिवाय उंदनम् उन्दनम } ( म० ) नमी | तरी | संश० कौ २२ उदरु ( १७० ) उंद, उन्दरुः इंदुः, उन्दुरः उंदुरुः उन्दुरुः उंदूरुः उन्दूस ( पु० ) चूहा। घूँस | उन्नत ( ६० कृ० ) 19 उठा हुआ। ऊपर उठा हुआ। २ ऊंचा। लंचा। बड़ा विण्यात | ३ मौठा । भरा हुआ। धानत, ( चि० ) विषम | ऊचा नीचा फूला पिचका । -चरण, (वि० ) बेरोक बढ़ने और फैलने वाला 1 प्रवल । पिछले पैरों पर | खड़ा। -शिरस, (वि०) बड़ा अभिमानी । उन्नतः ( पु० ) अजगर । " 1 उन्नम्म्र (वि० ) १ सीधा सतर २ विशाल ऊंचा उन्नयः ) ( पु०) : ऊपर चढ़ना । ऊपर उठना । २ उन्नायः ऊंचाई। चढ़ाई।३ सादृश्य । समता । ४ घटकल । उन्नतम् (न० ) ऊंचाई | चढ़ाव | चदाई। उन्नतिः ( स्त्री० ) १ ऊंचाई | चड़ाव | २ वृद्धि समृद्धि । तरक्की । का नाम । बढ़ती।—ईशः, (पु०) गरुड़ जी | उम्मदः (पु० ) १ पागलपन । २ नशा | [ हुआ। मौटा। मरा हुआ। उन्नतिमत् ( वि० ) उठा हुआ । बाहिर निकला उनमनं (न० ) १ ऊपर उठाना ऊंचा चढ़ाना २ ऊंचाई। उन्मादन बहमी उचङ्गी मेतावेशित। कीर्ति, चेशः, ( पु० ) शिव जी का नाम 1-गङ्गम् (न० ) यह प्रदेश विशेष जहाँ गङ्गाजी का हरहराना प्रवल रूप से होता है । दर्शन, रूप, (वि० ) देखने में या शक्ल से पागल।-प्रलपित (वि०) नशे के झोंक में बातचीत | प्रजपितम् (न० ) - ४ सटकल दक्षस (वि० ) मौटी या ऊँची नाक याला । उनाद्ः (पु०) चिल्लाहट। गर्ज। गुआर पक्षियों की चहक या कूजन (मक्खियों की) भिनभिन्नाइट उन्नाम (वि०) तुंदीला। बड़े पेट का। जिसकी नाभि ऊंची उठी है। । पागल का कथन । उन्मतः ( पु० ) धतूरा | उम्मथनं (न० ) १ हिलाना दुखाना | पटक देना । गिरा देना २ मारा | बघ । हत्या । उन्मद ( वि० ) १ नशे में चूर सहमत्त २ पागल | मतवाला । आपे से बाहिर । डाँवाडोल | उशाहः (पु० ) १ नोक | गुमड़ा | २ बंधन | उन्नाहम् (न० ) चाँवल से बना हुआ पदार्थ विशेष | उभिद्र ( वि० ) 2 निहारहित । जागता हुआ | २ फैला हुआ पूरा फूला हुआ। कलियों से युक्त । उसेट (वि० ) उठा हुआ। ( पु० ) सोलह प्रकार के यज्ञ कराने वालों में से एक। उन्मज्जनम् ( न० ) पानी से बाहर निकलना । उन्मत्त ( वि० कृ० ) १ मदमाता | नशे में चूर २ पागल | सिड़ी | ३ अकदा हुआ। फूला हुआ। 1 उन्मदन ( वि० ) प्रेमासक। प्रेम में विह्वल । उन्मदिष्या (वि० ) 1 पागल २ मदमाता | नशे में चूर | उम्मनस ) (वि०) 1 उद्विग्न | विकल व्याकुल उन्मनस्के । बेचैन । २ मित्रविछोह से संतप्त । उन्मन्यः उन्नयनम् ( न० ) · ऊपर उठाना । २ ऊपर | उन्मंथनम् ) ( म० ) १ इत्या । बधू । चोटिल खींचकर पानी निकालना। ३ विचार विवाद करना । २ लकड़ी से पीटना । उन्मन्थनम् ३ क्षोभ । उद्वेग । उम्मदनं ( न० ) १ मलना । रगड़ना | दबाना | २ उन्मयूख (वि०) चमकीला चमकदार | [ उबटना। उन्माथः ( पु० ) १ पीड़ा कठ २ क्षोभ उद्वेग ३ हत्या वध ४ जाल फंदा । उन्माद (वि० ) १ पागल | सिड़ी । २ डाँवाढोल । उन्माद (पु० ) १ पागलपन सिद्धीपन २ बड़ी झाँझ या क्रोध ३ मानसिक रोग विशेष जिससे मन और बुद्धि का कार्यक्रम अस्तव्यस्त हो जाता है। (न०) इसके ३३ सन्चारी भावों में से एक जिसमें वियोगादि के कारण चित्त ठिकाने नहीं रहता ५ खिलना प्रस्फुटन । यथा- "उन्माद] [वीय पद्मशास् 11 ३ उत्सुक | लालायित । अधीरजी । उन्मनायते ( क्रि० ) वेचैन होना। मन का व्याकुल [ होना। ) (पु० ) १ विकलता । २ हत्या | वय | उन्मेधः साहित्यदर्पण | उन्मादन (वि० ) पागल नशे में चूर उन्मादन ( } उत्पादनः ( पु० ) कामदेव के पांच शरों में से एक उन्मानं ( न० ) १ सौल नाप | २ मूल्य कीमत | उन्मार्ग (वि०) असन्मार्ग में जानेवाला । कुपथगामी उन्मार्गः ( पु० ) १ कुपंथ | २ निकृष्ट याचरण । बुरा ढङ्ग बुरी चाल [भावना | उन्माजनम् ( न० ) गढ़ । मलिश | पोछना उम्मितिः ( स्त्री० ) नाप । मूल्य १७१ ) हुआ। २ खुला हुआ । ३ ताना हुआ। उन्मपितम् ( न० ) इष्ट नज़र | निगाह। उन्मीलः (पु० ) ) (नेत्रों का) खोलना | जागना उम्मीलनम् (न०) ) बढ़ाना । तामना । उपक्रमण १ सामीप्य | सानिध्य | पड़ोस | २ किसी ग्राम या ग्रामसीमा उपकंठः (पु०) उपकण्ठः ( पु० ) उपकंठ (न०) ( के समीप का स्थान (अन्यथा ० ) उपकण्ठम् (न०) गर्दन के ऊपर, गले के पास। २ पास में। पड़ोस में। उपकथा ( स्त्री० ) छोटी कहानी | गरुप | उपकनिष्ठिका ( श्री० ) कनिष्ठिका के पास की उँगली अनामिका उमिश्र (वि० ) मिश्रित । मिलावटो । उम्मिषित (च० ० ) १ खुली हुई (आँखे)। जागता | उपकरणम् ( न० ) १ धनुग्रह । सहायता । २ सामान | सामग्री | औज़ार | हथियार! यन्त्र | उपस्कर | ३ आजीविका का द्वार । जीवनोपयोगी कोई वस्तु | ४ राजचिन्ह ( छत्र, दण्ड, चंवर आदि ) उपकर्णनम् ( न० ) श्रवण | सुनना। उन्मुख (वि०) १ ऊपर मुँह किये। ऊपर को ताकता | उपकर्णिका ( स्त्री० ) अफवाह | हुआ। २ उत्कण्ठा से देखता हुआ ३ उकरिठत उत्सुक | ४ उद्यत | तैयार | उपकर्तृ (दि० ) उपयोगी | अनुकूल उपकल्पनन (२०३१ सामान १२ रचना | उम्मुखर (वि० ) [ स्त्री०-उन्मुखी ] कोलाहल | उपकल्पना ( स्त्री० ) 5 मिथ्या रचना। बनावटीपन । मधाने वाला। शोर उपकार: ( पु० ) १ परिचर्या सहायता | मदद | करने वाला | २ अनुग्रह | कृपा | ३ आभूषण शृङ्गार | उन्मुद्र (वि० )1 बिना मोहर या सील का । २ खुला | उपकारी ( स्त्री० ) 1 शाही नीमा । राजप्रसाद १२ हुआ। फूंक कर बढ़ाया हुआ या फुलाया हुआ। ताना हुआ। खींच कर वढ़ाया हुआ । [करना । पान्थनिवास सराय। धर्मशाला। उपकार्या ( स्त्री० ) राजप्रसाद ) महत्व । उन्मूलनम् ( न० ) जड़ से उखाड़ना समूल नष्ट उन्मेदा ( स्त्री० ) मुटाई। मोटापन । 1 उपकंचिः (५०) उपकुंचि ( पु० ) उपकंचिका ( श्री० ) उपकुंचिका ( स्त्री० ) उन्मेोचनम् (न०) खोलने की किया। दीक्षा करने की उप ( अन्यथा० ) यह उपसर्ग जब किसी क्रिया या संज्ञावाची शब्द के पूर्व लगाया जाता है, तब यह निम्न अर्थों का बोधक होता है: - १ सामोप्य | सानिध्य २ शक्ति योग्यता | ३ व्याप्ति । ४ उपदेश | ५ मृत्यु | नाश | ६ त्रुटि । दोष | ७ प्रदान क्रिया उद्योग | आरम्भ | १० अध्ययन | ११ सम्मान | पूजन १२ सादृश्य || १३ वराव | १४ अभेष्ठत्व 1 T मठ- उन्मेषः ( पु० ) ) (नेत्रों को) १ खुलन उन्मेषणम् (न० ) ) कौशल | सैनामानी । २ चढ़ाव। फुलाव | ३ रोशनी । प्रकाश | चमक १४ उपकुंभ (वि० ) ३१ समीप | निकट | २ एकान्त | उपकुम्भ (वि० ) ) [इच्छा रखता हो। जागृति । दृश्य होने की क्रिया | नज़र आना || उपकुर्वाणः ( पु० ) ब्रह्मचारी, जो गृहस्थ होने की प्रादुर्भाव । प्राकव्य | [ किया। उपकुल्या ( स्त्री० ) नहर खाईं। छोटी इलायची । उपकूप उपकृपे उपकृतिः उप किया । (अव्यया० ) कुए के समीप । ( स्त्री० ) धनुग्रह | कृपा उपक्रमः ( पु० ) १ आरम्भ | २ अनुष्ठान उठान । ' ३ रोगी की परिचर्या | ४ ईमानदारी की परीक्षा | २ चिकित्सा इलाज | ६ सामीप्य । } उपक्रम ( ० ) समीपागमन । २ अनुदान ३ आरम्भ | चिकित्सा i उप उपक्रमणिका ( खी० ) भूमिका | दीवाचा | उपक्रीडा (स्त्री०) चौगान उपक्रोशः ( पु० ) ) उपक्रोशनम (न० ) उपकोष्ट (पु० ) ( रेंकता हुआ ) गधा | उपकणं उपकाणम् वपक्षयः (पु० ) ( १७२ ) 1 खेलने के लिये मैदान । फटकार | डॉटडफ्ट । भर्त्सना । } ( ज० ) वीणा की झनकार | अवनति । कमी हास घटती २ व्यय | उपक्षेपः (पु० ) घुमाना फिराना २ धमकी । आक्षेप र अभिनय के आरम्भ में अभिनय का संचित वृत्तान्त-कथन । उपक्षेपणम् (न० ) १ नीचे फेंकना या गिराना | २ दोषारोपित करना जुर्म आायद करना। उपग (वि०) समीप आया हुआ। पीछे लगा हुआ। सम्मिलित । २ प्राप्त हुआ। उपगणः (पु० ) छोटी या अन्तर्गत श्रेणी उपगत ( व० कृ० ) १ गया हुआ । समीप आया हुआ | २ घटित ३ प्राप्त अनुभूत प्रति शात | उपगतिः ( स्त्री० ) १ 1 चय | ३ स्वीकृति | ४ प्राति उपलब्धि उपगमः ( पु० ) ३ उपगमनम् (न० ) ) ज्ञान गमन उपलब्धि । ३ समागम ( स्त्री पुरुष का ) * संगत | सोहबत | ६ सहित ७ स्वीकृति । ८ प्रतिज्ञा इकरार | अनुभव | समीपागमन | ज्ञान । परि समीप गमन । २ परिचय | ३ प्राप्ति। उपगिरि उपगिरम् ( धन्यया० ) पर्वत के समीप उपगिरिः (पु० ) उत्तर दिशा में पर्यंत के समीप धव- स्थित एक प्रदेश का नाम । उपगु (अन्यथा ) गी के समीप उपगुः ( पु० ) ग्वाला। गोप | लन अनुग्रह [राडु केतु आदि] 1 उपजन. प्रोत्साहन ६ छोटा मह उपमहणम् (न० ) १ नीचे से पकड़ना : गिरफ्तारी । चदी बनाना | ३ सहारा | उचयन । ४ वेदाध्ययन उपग्राहः (पु० ) १ भेंट देना। २ भेंट | उपप्राधः (०) भेंट | नैवेथ नज़राना। उपघातः (5० ) १ महार आघात । २ तिरस्कार । ३ नाश | ४ स्पर्श । संसर्ग २ आक्रमण ६ रोग ७ पाए। उपघोषणम् ( न० ) प्रकटन | प्रकाशन | डिवोरा | उपन: (पु.) १ सहारा २ संरक्षण | पनाह उपचक्रः (पु० ) लाल रङ्ग का हंस विशेष | उपचक्षुस् (न०) चश्मा । ऐनक उपचयः ( पु० ) १ सय १२ वृद्धि | उचति । बड़ी ३ परिमाण । ढेर समृद्धि उन्नयन। ५ कुण्डली में लग्न से तीसरा छुटवों और ग्यारहवाँ स्थान । उपचरः ( पु० ) चिकित्सा | इलाज। उपचरणम् ( न० ) समीपगमन । 1 i उपचाय्यः ( पु० ) यशीग्राझि विशेष । उपचार: ( पु. ) सेवा परिचर्या पूजन सत्कार । २ विनम्रता सभ्योषित व्यवहार । ३ चापलूसी । चाटुता ४ नमस्कार प्रणाम करने का विधान विशेष । २ दिखावट | दिखाबढी रीतिरस्म । ६ चिकित्सा इलाज ७ व्यवस्था | प्रबन्ध [८] धर्मानुष्ठान व्यवहार १० घूंस | रिशदत ११ बहाना। प्रार्थना । १२ विसर्ग के स्थान में सू और प् का प्रयोग | उपचितिः ( स्त्री० ) संग्रह | बड़ती। उन्नति । · उपचूलनं (न०) गर्माने की क्रिया जलाना । उपच्छदः ( पु० ) ढक्कन ढकना । उपगुरुः ( पु० ) सहायक शिक्षक | नायव मुदरिंस। उपगूढ (च० कृ०) छिपा हुआ । २ थालिङ्गन किया हुआ । उपच्चंदनम् ) ( न० ) १ मीठी मीठी बातें कह कर उपगूहनम् (न० ) १ डिपाव | दुराव | २ अङ्ग उपचन्दनम् ३ श्राश्चर्य | अर्था । अपना काम निकालने की किया। प्रलोभित करना २ आमन्त्रण देना। [निकास | उपग्रह (पु० ) पकड़ गिरफ्तारी । २ ज्योश | हार पराजय ३ कैदी बंदी ४ योग सम्मे- उपजनः ( पु० ) १ वदती । उन्नति | २ पुंड़वा | ३ उपअल्पनम उपजल्पनम् उपजल्पितम् ( १७३ ) } (न०) वार्तालाप । उपजाप: ( पु० ) १ सुपचाप कान में कहना या यत- लाना १२ बैरो के मित्र के साथ सन्धि के गुपचुप | उपदिश ( स्त्री० पैगाम राजक्रान्ति के लिये असन्तोष का दीज वपन | ३ अनैक्य | विच्छेद उपविशो (स्त्री० उपजीवक ( पु० ) दूसरे के आधार पर रहने उपजीवन् । वाला | परतंत्र | अनुचर उपजीवनम् (न०) १ जोविका | रोज़ो | २ | उपजीविको (खी०) । निर्वाह | ३ जीविका का साधन, सम्पत्ति आदि । उपोषः (पु० ) उपजोषणम् (न०). उपहा (स्त्री० ) ; वह १ हो, परम्परा से प्राप्त न हुआ हो । २ ऐसे कार्य का अनुष्ठान जो पूर्व में कभी न किया गया हो । उपढौकनम ( न० ) नज़र | भेट उपहार | उपतायः (पु०) १ गर्मी २ उपयता | क्लेश | पीड़ा | शोक | ३ सङ्कट विपत्ति ४ रोग | बीमारी। २ शीघ्रता | बड़ी | [कष्ट देना । उपतापनम् ( म० ) १ गर्माना १२ सम्बत करना। उपतापिन (वि०) 1 गर्माया हुआ गर्म उप् | २ सन्तप्त पीड़ित बीमार [ नक्षत्र का नाम । उपतिष्यं ( न० ) अश्लेषा नपत्र का नाम | पुनर्वसु उपत्यका ( स्त्रो० ) पर्वत के नीचे की भूमि पहाड़ की तलहटी। पहाड़ की तराई । उपदंशः (पु० ) १ वह भड़कावे । २ डसना बीमारी । आतिशक | 1 उपत्रान उपदा (सी०) १ नज़राना भेंड उपदानं 7 ( म० ) १ यति । उपदानकम् ) स्थियत । वस्तु जो प्यास या भूख को डंक मारना । गर्मी की २ घूंस | रिश्वत । चढ़ावा | २ दाम | उपदशः ( वि० ) [ बहुवचन ] लगभग दस | उपदर्शकः ( पु० ) १ पथप्रदर्शक | २ द्वारपाल १३ साची। गवाह । 9 उपदिशा । के कोय | २ पेशानी | उपजीव्य ( स० का० कृ०) १ जीविका देने वाला | २ संरकता प्रदान करते हुए ३ लिखने के लिये सामग्री प्रदान करने वाला। 1 "सधैर्या कविमुख्यामामुपजीथ्यो भविष्यति ।” -महाभारत 1 उपदेशिन् (वि० ) उपदेश । मसीहत देने वाला। उपजीव्यः ( पु० ) १ संरचक | २ आधार या प्रमाण उपदेष्टु (पु० ) शिक्षक गुरु वीचागुरु 7 जिससे कोई लेखक अपने लेख की सामग्री पावे। उपदेहः ( पु० ) १ सलहम | २ ढकना । दिशाओं आग्नेयी नैती। वायवी | उपसः (पु०). उपदेवता (स्त्री) छोटा देटिदेवता । उपदेशः (०) १ शिक्षा नसीहत | हित की बात। कथन] २ दीक्षागुदमन्त्र | ३ सविशेष विव विवरण | ३ व्याज । वहाना। मिस । उपदेशक (वि० ) शिक्षा देने वाला। नसीहत करने- स्नेह | २ भोगविलास | उपदोहः ( पु० ): गाय का स्तन | स्तर के ऊपर की घुँडी | २ दोहनी | पात्र जिसमें दूध दुहा जाय । शान जो स्वयं प्राप्त किया उपद्रवः (दु०) ३ उत्पात। आकस्मिक वाथा । सङ्घट। गढ़- २ चोडफेंट | विपत्ति आफत ३ ऊधम बड़ दूंगा फसाद | गदर रोग का लक्षण | उपधर्मः ( पु० ) गौष धर्म या नियम | उपधा ( स्त्री० ) १ छल। प्रवञ्चना जाल । फरेव | २ सत्यता या ईमानदारी की परीक्षा--भूतः, (पु०) वह नौकर जिसके ऊपर बेईमानी का इल ज्ञाम लगाया गया हो।-शुचि (वि० ) परी चित जाँचा हुआ | वाला । उपदेशक (पु०) शिक्षक पथप्रदर्शक दीचागुरु उपदेशनं (न०) शिक्षा | मसीहत सीख। उपधातुः ( पु० ) १ निकृष्ट धातु अथवा प्रधान धातुओं के समान / धातु वे ये हैं :- प्रोषाः स्वधिकं तारमाक्षिकं । त्यं कांस्यंत शिरं व शिलान्तु ॥ २ शरीर के रस रतादि सात धातुओं से बने हुए दूध, पसीना, चर्बी धादि। वे ये हैं:-- - मोसा स्वेदो दन्ताः केशव व नषा || उपधानं ( न० ) १ जिस पर रख कर सहारा लिया जाय। २ सकिया। २ विशेषता । व्यक्तित्व ४ 1 उपधानीय स्नेह । कृपा | ५ धार्मिक अनुष्ठान ६ सर्वोत्तम गुण विशिष्टता । ७ विष। जहर । उपधानीयं ( न० ) तकिया । उपधारणं (२०) १ विचार आलोचना | २ किसी ऊपर रखी या लगी हुई चीज़ को लग्गी में अटका कर खींच लेने की क्रिया उपधिः ( पु० ) १ जालसाजी | बेईमानी | २ सत्य का अपलाप जान बूझ कर सत्य को छिपाना ३ ३ भय | धमकी। विवशता । कपट | | ४ पहिया या पहिया का स्थान विशेष | उपधिकः ( go ) दगाबाज़ | धोखेबाज़ | प्रवञ्चक । छली। कपटी | उपधूपित (वि०) १ सुवासित | वफारा दिया हुआ | २ मरणासन्न | ३ अत्यन्त पीढ़ित | उपधूपितः ( पु० ) मृत्यु | उपधृतिः ( स्त्री० ) प्रकाश का एक किरण । उपध्मानः ( पु० ) होठ । ओठ । उपध्मानम् ( न० ) फूँक । सांस । उपनक्षत्रम् (न० ) सहकारी नक्षत्र गौण नक्षत्र ऐसे नक्षत्रों की संख्या ७२६ कही जाती है । उपनगरं ( न० ) नगर प्रांत । उपपुर नगर का बाहिरी भाग उपनत ( व० कृ० ) आगम | आया हुआ | प्राप्त । उपनिष्कर उपनायिका ( श्री० ) नाटकों में प्रधान नायिका की सखी या सहेली। [ जैसे मालतीमाधव में मद- यन्तिका - ] 1- उपनाह: ( पु० ) १ बीटा। वंदल | २ घाव या फोड़े पर लगाने की मलहम या लेप | ३ सितार की खूंटी। उपनाहनम् ( न० ) १ मलहम या लेप लगाने की क्रिया | २ प्लासटर लगाने की क्रिया।। उबटन उपनागरिका (स्त्री० ) अलङ्कार में वृत्ति अनुप्रास का एक भेद विशेष | इसमें कर्णमधुर वर्णों का प्रयोग किया जाता है। उपनिनेपः (पु०) अमानत | धरोहर [ऐसी धरोहर जिसकी संख्या, तौल आदि धरोहर रखने वाले को बतला कर दिखला दी जाय। मिताक्षराकार ने ऐसी धरोहर की यह परिभाषा दी है:- “उपनिष्ठेपो नाम रूपसंख्यामदर्शनने रक्षणार्थं परस्य हस्ते मिहिनं द्रव्यं."] उपनिधानम् ( न० )१ समीप रखना | २ धरोहर रखना। ३ धरोहर अमानत । उपनिपातित्र (वि० ) आता हुआ। आगत । [ प्रणाम करना । | उपनिबंधनम् (न०) १ किसी कार्य को सुसम्पन्न करने का साधन | २बंधन | यस्ता । पुस्तक के ऊपर की ज़िल्द । उपनायकः ( पु० ) १ नाटकों में या किसी साहित्य अन्थ में प्रधान नायक का साथी या सहकारी। [जैसे रामायण में लक्ष्मण | ]२ आशिक । उपपति । प्रेमी | उपनिधिः ( पु० ) सील मोहर लगा कर और बंद कर के रखी हुई अमानत । धरोहर । गिरवी रखी हुई वस्तु | बंधक रखी हुई द्रव्य उपनिपातः (पु०) १ समीप गमन | समीप आगमन । २ अचानक घटित घटना या धाक्रमण । घटित हुआ । उपनतिः ( स्त्री० ) १ समीप आगमन २ झुकाव । उपनयः ( पु० ) १ समीप लाना | जाकर लाना । २ प्राप्ति उपलब्धि लगन। ३ उपनयन संस्कार ४ न्याय में वाक्य के चौथे अवयव का नाम । उपनयनम् (न०) १ निकालना। पास ले जाना । २ उपनिमंत्रणम् (न०) आमंत्रण | प्रतिष्ठा । अभिषेक । उपनिवेशित (वि० ) स्थापित । दूसरे स्थान से धाकर बसा हुआ। भेंट करने की क्रिया । चढ़ावा ३ यज्ञोपवीत | उपनिषद् (स्वी०) १ वेद की शाखाओं के ब्राह्मणों के ये अन्तिम भाग धारण कराना । व्रतवंध जनेऊ । जिनमें आत्मा और परमात्मा आदि का वर्णन किया गया है। २ वेद के गुप्तार्थ प्रकाशक ग्रन्थ | ३ ब्रह्मविद्या ब्रह्मसम्बन्धी सत्य- ज्ञान ४ वेदान्त दर्शन | ५ रहस्य | एकान्त | ६ समीप या पड़ोस का भवन । ७ समीप उपवेशन | ब्रह्मविद्या की प्राप्ति के लिये गुरु के निकट उपवेशन | उपनिष्करः ( पु० ) गली । राजमार्ग । मुख्य मार्ग | प्रधान रास्ता । उपनिष्कम् ( १७५ ) उपभृत् उपनिष्क्रमणम् ( न० ) १ बाहिर निकलना | निक- | उपपाश्व ( न० ) ) १ कंधा | बगल | तरफ । ३ लना । २ संस्कार विशेष सब से प्रथम नवजात | उपजाव: ( पु० ) ) सामने की ओर या तरफ बालक को बाहिर लाने के समय का संस्कार उपपीडनम् (न०) : नष्ट करना | उजाड़ना | २ पीड़ित विशेष। यह संस्कार चौधे मास किया जाता है। करना। घायल करना । ३ पीड़ा कष्ट । ३ मुख्य मार्ग । उपपुरम् ( न० ) नगर प्रान्त नगर के समीप की उपनृत्यं ( न० ) नृत्यशाला या नाचने की जगह बस्ती। उपनेतृ (वि०) पास लाने वाला | जाकर लाने वाला। उपनेतृता ( स्त्री० ) उपनयन संस्कार कराने वाला श्राचार्य । उपन्यासः (पु०) १ पास लाना | २ धरोहर । अमानत । बंधक | ३ प्रस्ताव | सूचना विवरण | भूमिका ग्रन्थपरिचय | हवाला ||४ नीतिवाक्य | आईन । उपपतिः ( पु० ) जार। आशिक । उपपत्तिः ( स्त्री० ) १ प्राप्ति । सिद्धि प्रतिपादन | हेतु द्वारा किसी पदार्थ की स्थिति का निश्चय । २घटना । चरितार्थं होना। ३ मेलमिलना | सङ्गति । ४ युक्ति | हेतु। ५ प्रमाण । उपपादन | ६ प्राप्ति । उपलब्धि । उपपदम् (न० ) १ पास या पीछे बोला गया था लगाया गया पद. २ उपाधि । शिक्षा सम्बन्धी योग्यता प्रदर्शक पदवी । प्रतिष्ठासूचक सम्बोधनवाची शब्द; जैसे 'चार्य" ! "शर्मन ! उपपन्न ( व० कृ० ) १ लन् । प्राप्त पाया हुआ। मिला हुआ। २ ठीक | योग्य | उपयुक्त | उचित | ३ युक्तियुक्त । यथार्थं | ४ पास आया हुआ | पहुँचा हुआ | ५ शरणागत | उपपरीक्षा (स्त्री० ) } जाँच पड़ताल । धनुसन्धान उपपरीक्षणम् ( न० ) उपपातः (पु० ) १ इत्तिफाकिया घटना । २ विपत्ति सङ्कट घटना | उपपातकम् ( न० ) छोटा पाप । याज्ञवल्क्य स्मृति में लिखा है। उपपुराणम् ( न० ) अठारह प्रधान पुराणों के अति रिक्त अन्य छोटे पुराण । पुराणों के बाद बनाये गये पुराण | इनके नाम ये है--- १ सनत्कुमार । २ नारसिंह ३ नारदीय ४ शिव, ५ दुर्वासा, ६ कपिल, ७ मानव, ८ औशनस, 8 वरुण, १० कालिका ११ शाँव, १२ नन्दा, १३ सौर, १४ पराशर, १५ आदित्य, १६ माहेश्वर, १७ भार्गव, १८ वासिष्ठ उपपुष्पिका ( स्त्री० ) जसुहाई। उपप्रदर्शनम् ( न० ) बतलाना । निर्देश करना । उपप्रदानम् ( न० ) १ सौंपना हवाले करना । २ रिशवत घूस नज़र | ३ राजस्व | खिराज | उपप्रलोभनम् ( २० ) १ फुसलाहट | लोभन । लालच । २ घूंस | रिशवत । प्रलोभन । उपप्रेक्षणं ( न० ) उपेक्षा | तिरस्कार । उपप्रैषः ( पु० ) निमंत्रण | बुलावा | उपप्लव: ( पु० ) १ विपत्ति सङ्कट केश दुःख । २ अशुभ घटना | ३ अत्याचार | तंग करना | तक कष्ट देना। ४ भय उपद्रव । ६ चन्द्र या सूर्य ७ राहु उपग्रह का नाम अशुभसूचक दैवी ग्रहण। उल्कापात | ८ राज्यक्रान्ति १ [ से सताया हुआ | उपलविन् ( वि० ) १ सन्तप्त । पीड़ित । २ अत्याचार उपबन्धः ( पु० ) १ सम्बन्ध | २ उपसर्ग | ३ रति क्रिया का श्रासन विशेष । विघ्न बाधा पु० उपवणम् (५०}} सकिया। बालिश। उपबहु ( वि० ) थोड़ा । कुछ। उपबाहुः (पु० ) नीचे की बाँद । महापातकतुल्यामि पायान्युक्तानि यानि तु । तानि पातकसंचानि तम्यूमनुषपातकस् || उपपादनम् ( न०) १ करना । पूरा करना । २ देना | सौंपना | हवाले करना । भेंट करना | ३ सिद्ध करना। साबित करना। ठहराना | युक्ति पूर्वक किसी विषय को समझाना । ४ परीक्षण | अवगति । | उपभृत् (स्त्री० ) यज्ञीय पात्र विशेष । उमभङ्गः ( पु० ) भाग जाना। पीछे भागना । उपभाषा (स्त्री० ) गौण बोलचाल की भाषा । उपभोग 1 उपभताः ( पु० ) १ थानन्द भोजन आस्वादन | २ भोग विलास स्त्री के साथ सहवास व्यवहार का सुख उठाने वाला ४ सन्तोष चारहाइ । उपमंत्रयम् (न० ) सम्बोधन करने, निमंत्रण देने और दुलाने की क्रिया उममंथनी ) ( श्री०) भाग उफसाने की एक लकड़ी उपमन्थनी विशेष 1 उपमई (पु०) १ रगद घिन | निचोड़ | कुचलन २माथ। पर हत्या | ३ विकार भर्त्सना गाली। तिरस्कार युक्त वाक्य | ४ भुसी अलगाना । २ किसी लगाये हुए दोष का प्रतिवाद या खण्डन । उपमा (स्त्री०) १ समानता सादृश्य सुलना | २ पटतर । मिलान । ३ अर्यालद्वार जिसमें दो बस्तुओं में भेद रहते भी उनकी समानता दिख | खाई जाती है। उपमा ( स्त्री०) १ धाव दूधपिलाने वाली दाई । २ विल्कुल निकट का सम्बन्ध रखने वाली सी उपमानम् (न०) १ वह वस्तु जिससे उपमा दी जाय। समानता सूचक | २ न्याय में चार प्रमाणों में से एक । उपरा 1 ३ 1 1 उपयाजः ( पु० ) यश का अतिरिक्त विधान | उपयानम् (४०) समीप आगमन समीप आना। उपयुक्त ( ० ० ) अटका हुआ | २ योग्य टीक उपयुक्त उचित २ उपयोगी काम का उपयोगः ( पु० ) काम व्यवहार इस्तेमाल प्रयोग । २ औषधोपचार या दवाइयों का बनाना। योग्यता उपयुक्तता औचित्य ४ सामीप्य उपयोगिन् (चि०) व्यवहार में जाया हुआ। २ व्यवहार में लाने योग्य उपयोगी ॥ ३ योग्य उचित उपरक्त (३० कृ०) १ पीड़ित सम्बत २ ग्रस्त ३ रंगीण | रंगा हुआ। उपरक्तः (पु० ) राहु-केतु-मस्त चन्द्र सूर्य | उपरक्षः ( 50 ) शरीररसक ) उपरक्षणम् (ज० ) रक्षक | चौकी 1 उपरत (व० कृ०) १ बंद किया हुआ २ मरा हुआ। --कर्मन, (वि० ) सांसारिक कर्मों पर भरोसा न करने वाला। - स्पृह ( वि० ) समस्त काम- नाओं से शून्य संसार से विरुद्ध । उपरतिः ( स्त्री० ) : विरति | त्याग | विषय से विराग । २ खीसम्भोग से अरुचि ४ उदासी- 4 नवा | ५ मृत्यु | उपमितिः (स्त्री०) १ समानता। तुलना सादरव २ उपसा या सास्य से होने वाला ज्ञान उपमेय ( स० का० ऋ० ) पयर्थ वर्णनीय । तुलना करने योग्य | 1 उपरक्षं ( न०) साधारणरण श्रेष्ठ घटियारत । उपरमः 2 ( ५० ) १ निवृत्ति वैराग्य | स्याग ३ उपरामः मृत्यु [विराम उपमेयं ( न० ) उपमा के योग्य । जिसकी उपमा दी | उपरणम् (ज०) १ स्त्रीसम्भोग से विरति । २ उपयंत्र ( पु० ) पति । वैद्यक में पारे के समान गुरू करने 1 [आय। उपरसः (पु०) वाले रस २ स्वाद-विशेष गौण स्वाद। 1 उपयंत्रम् (२०) अरोही कर्म का एक छोटा थौज्ञार उपयमः ( पु० ) विवाह । परिक्षय | उपयमनम् (न० ) १ विवाह करना २ रोकना । संयम करना | ३ अभिस्थापन | वाले क्षणों में से उपयष्ट्र ( पु० ) १६ यज्ञ उपयाचक (वि० ) माँगने वाला । मँगवा प्रार्थी यावेदक उपयाचनम् (न० ) याचना प्रार्थना आवेदन उपयावित ( व० कृ० ) याचित । प्रार्थित । उपयाचितम् (न०) १ प्रार्थना निवेदन २ मनौती मानता । ३ किसी कार्य की सिद्धी के लिये देवी देवता से प्रार्थना करना । 1 उपरागः ( पु० ) १ सूर्य चन्द्र का ग्रहण २ राहु | ३ ललाई। लाल रंग रंग ४ विपत्ति स २ विकार | भर्त्सना | कुवाच्य | उपराजः ( पु० ) राजप्रतिनिधि। वाइसराय । उपरि (अन्य ) ऊपर चर, (वि० ) ऊपर चलने वाला (जैसे पक्षी 1) -तन, स्थ, (वि०) ऊपर का, ऊँचा--भागः, (पु०) उपरी हिस्सा ऊपर की ओर। -भूमिः, (स्त्री० ) ऊपर की ज़मीन । उपरिष्ठात (अव्यय० ) ऊपर ऊँचे पर धागे बाद को पीछे से पीछे। 1 उपरीतक उपरीतकः ( पु० ) रतिक्रिया का आासन या विधि | विशेष | [ प्रकार का नाटक | उपरूपकम् (४०) अठारह प्रकार के नाटकों में घटिया | उपरोध: ( पुं० ) १ रोकटोक । बाधा । अड़चन | २ उत्पात । होहल्ला ग्राफ । ३ आड़ पड़। रोक ४ रथा अनुग्रह उपरोधक (वि०) १ रोकने वाला | २ ढकने वाला। करने वाला घेरने वाला। उपरोधकम् (न०) भीतर का कोठा निजका कमरा । उपरोधनम् ( न०) रोकटोक वाधा अड़चन उपल: ( पु० ) १ पत्थर चट्टान | २ रन । उपलकः ( पु०) पत्थर उपला (सी०) १ बालू । रेत | २ साफ की हुई चीनी । उपलक्षणम् (न०) अवलोकन | निहारण | चिन्ह करण । २ चिन्छ। पहचान । विशिष्टता । ३ | पदवी ४ एक प्रकार की अजहरस्वार्थ लक्षया | उपलब्धिः ( स्त्री०) १ प्राप्ति । २ आलोचन। बोध । ज्ञान बुद्धि । भति । ४ अनुमान फल्पना | उपर्लभः । ( पु० ) १ प्राप्ति उपलब्धि २ उपलम्भः तलाश | पहचान । अवगति | खोज उपलालनम् (न० ) प्रियपात्र | लाड़ला । दुलारा उपलालिका (बी०) प्यास । तृषा । उपलिङ्गम् (न० ) दुर्निमित्त । अशकुन । उपलिप्सा (स्त्री०) कामना । अभिलाषा । उपलेपः ( पु० ) १ लेप । मालिश | उबटन २ जीपना | पोतना | ३ रोक सुन्न पड़ जाना। उपलेपनम् (न० ) १ मालिश, लेप या उबटन करने की क्रिया २ लेप उबटन मलहम उपवनं ( न० ) बार। उद्यान | उपवः (पु० ) विस्तृत विवरण उपवर्णन ( न० ) विस्तृत विवरण | उपर्वतनम् ( न० ) अखाड़ा कसरत करने का स्थान । २ जिल्ला या परगना । २ राज्य | ४ दुलदल | 1 ( १७७ ) उपवसथः (पु० ) ग्राम। गाँव । उपवस्तम् ( म० ) उपवास कढाका। व्रस । उपवास (पु० ) १ व्रत । उपोषण । निराहार रहना । २ भतीय अनि का प्रज्वलित करना। उपशास्त्र ले जाना। समीप लाना। उपवाहनम् (न० ) उपवाः ( पु० ) उपवाल्या ( स्त्री० ) राजा की सवारी । | उपविद्या ( स्त्री० ) लौकिक विद्या । घटिया ज्ञान ! उपविष: ( पु०) ) १ यनावटी ज़हर । २ घटिया ज्ञहर। उपविषम् (न०) ) मादक विष; यथा अफीम। धतूरा उपचायति ( क्रि०) वीणा बजाना | उपवीतं ( न० ) उपनयन संस्कार । उपवृंहणम् ( न० ) बढ़ती वृद्धि सञ्चय | उपवेदः ( पु० ) वे विधाएँ जिनका मूल वेद में है। ये चार हैं गया धनुर्वेद, गन्धर्ववेद, आयुर्वेद, स्थापत्य धनुर्वेद विद्या का मूल यजुर्वेद में, गन्धर्व विद्या का सामवेद में, आयुर्वेद विद्या का ऋग्वेद में और स्थापत्य का अथर्ववेद में है। उपवेशनम् ) होना । उपवेशः ) ( न० ) बैठना । जमना स्थित । उपवैधं (न० ) दिन के तीन काल, प्रातः, मध्यान्ह और सायं त्रिसन्ध्या । उपव्याख्यानम् (न० ) पीछे से लगायी या जोड़ी हुई व्याख्या या टीका | उपव्याघ्रः (पु०) चीता । उपशमः ( पु० ) १ निस्तब्ध हो जाना शान्त हो जाना।२ विराम | अवसान | ३ निवृत्ति | इन्द्रियनिग्रह | शान्ति । ४ निवारण का उपाय | इलाज | चारा । उपशमनम् (न० ) १ निस्तब्धता | शान्ति । विरति । २ हास । ३ विलोप । अवसान | 1 उपशयः (वि० ) १ दाव घात | भाँद बनैले पशुओं के रहने का स्थान २ बगल में लेटना । उपशल्यं ( न० ) प्रान्त | मैदान। उपशाखा (खी०) छोटी डाली या छोटी शाख। उपशान्तिः (स्त्री०) १ विराम। अन्त । शान्ति | हास। २ बुझाना। ( जैसे भूख को या प्यास को ) कम करना । उपशायः ( पु० ) बारी बारी से सोना । उपशालं ( न० ) भवन के पास का छोटा घर । मकान के सामने का घेरा या हाता (अन्य ) घर के समीप या पास। उपशास्त्र ( न० ) छोटी पुस्तक या कोई छोटी कला । सं० श० कौ० २३ उपशिक्षा उपशिक्षा ( स्त्री० ) ) अध्ययन अध्यापन उपशिक्षणम् (न०) ) पढ़ाना उपशिष्यः (पु० ) शागिर्द का शागिर्द । शृङ्गार सजावट। उपशोभनम् (न०) उपशोमा ( स्त्री० ) उपशोषणम् (न० ) सूख जाना। मुरझा जाना । उपश्रुतिः ( स्त्री० ) १ सुनना । श्रवण करना । वह दूरी जहाँ सुन पड़े। २ प्रतिज्ञा | स्वीकृति | उपश्लेष: ( पु० ) } १ संसर्ग २ आलिङ्गन | उपश्लेषणम् ( न० ) ” उपश्लोकयति ( क्रि० ) श्लोक बना कर प्रशंसा ● ( १७५ ) उपसर्ग पढ़ना । | उपसंग्रहः ( पु० ) १ १ आनन्दित रखना । निर्वाह उपसंग्रहणम् (न०) ) करना । किसी को खाने पीने आदि की आवश्यकताओं का प्रबन्ध कर देना ।२ प्रणाम | बाप्रदव सलाम। प्रणाम के लिए चरणस्पर्श । ३ अंगीकार करण । ४ विनम्र आवेदन | विनय |५ एकत्र करण । जमर करना। संयोग करना। मिलाना । ६ ग्रहण करना उपकरण १ करना ! उपसंयमः ( पु० ) दमन करना रोकना चश- वर्ती करना। बांधना। २ प्रलय। संसार का नाश । उपसंयोगः ( पु० ) : गौण सम्बन्ध | २ सुधार | उपसंरोहः ( पु० ) साथ साथ उगना या किसी के ऊपर उगना । उपसंवादः (पु० ) इकरारनामा प्रतिज्ञापत्र | उपसंव्यानम् ( न० ) भीतर अर्थात् कपड़े के भीतर पहिना जाने वाला कपड़ा । कुर्त्ता, धनियाइन आदि । उपसंहारणम् (न०) १ वापिस ले लेना। फेर लेना। छीन लेना | २ रोक रखना | ३ छेक देना | ४ धाक्रमण करना। हम्ला करना। उपसंहारः (पु०) १ मिला देना। संयोग कर देना २ वापिस लेना या रोक रखना । ३ समारोह | संग्रह | समास करना। खत्म करना । समाप्ति । ४ भाषण का अन्तिम भाग जिसमें व्याख्यानदावा अपने व्याख्यान का प्रभाव सहित संक्षेप वर्णन करता है । ५ सारांश सारसंग्रह | ६ संचितता ७ पूर्णता ८ नाश । मृत्यु | १ हम्ला आक्रमण । उपसंक्षेपः ( पु० ) सार। संक्षेप सारांश । उपसंख्यानम् (न०) १ जोड़ जमा र अतिरिक्त योग या वृद्धि | यह शब्द प्रायः कात्यायन के वार्तिक के लिये प्रयुक्त होता है, जिसमें पाणिनी की छूटों की पूर्ति की गई है। उपसत्तिः ( स्त्री० ) १ संयोग | सम्बन्ध | २ सेवा | पूजा परिचर्या ३ दान चढ़ावा भेंट | उपसद (पु०) १ समीप गमन २ दान उपसदनम् ( न० ) १ समीप जाना होना २ गुरु के चरणों में बैठना। शिष्य बनना २ पड़ोस । सेवा | भेंट समीपवर्ती उपसंतान: ( 50 ) उपसन्तानः ( पु० ) 5 १ निकट सम्बन्ध । २ सन्तान । [ देना | उपसंधानम् ( न० ) ) मिलावट | जोड़ | उपसन्धानम् ( न० उपसंन्यासः ( पु० ) रख देना। त्याग देना छोड़ उपसमाधानम् ( न० ) जमा करना । ढेर करना । उपसंपत्तिः ( स्त्री० 1 १ समीप आगमन २ श करना ठहराव ठहराना । उपसंपन्न: ( 50 ) } १ प्राप्त ।२ धाया हुआ । उपसम्पन: (च० कृ० ) ) धागत | ३ स्वत्व प्राप्त । ४ वलि में मारा हुआ ( पशु ) । मसाला चौंक बघार उपसंपन्नम् ( न० ) उपसम्पन्नम् ( न० ) उपसंभाषः ( पु० उपसम्भाषः ( पु० ) उपसम्माषा (स्त्री०) उपसंभाषा ( श्री० ) १ वार्त्तालाप | २ प्ररोचना । प्रवर्त्सना | उपसरः ( पु० ) १ समीप जाना २ गौ का प्रथम गर्भ | "गवामुपसरः ।” [ होना। उपसरणम् ( न० ) १ सरफ जाना । २ शरणागत उपसर्गः ( १० ) १ बीमारी । रोग । बीमारी के कारण शारीरिक परिवर्तन ।२ विपत्ति | संकट | चोट | उत्ति । ३ अशकुन । उपद्रव । देवी उत्पात। ग्रहण ५ मृत्यु का पूर्व लक्षण | वह शब्द या अव्यय जो केवल किसी शब्द के पूर उपसर्जनम् ( १७६ ) उपहृत लगता है और उसमें किसी अर्थ की विशेषता | उपस्कृतिः ( स्त्री० ) परिशिष्ट | करता है। जैसे अनु, उप, अन आदि । उपसर्जनम् ( न० ) १ उढेलना । २ विपत्ति: वैषी उत्पात १३ विसर्जन | ४ ग्रहण | ५ कोई व्यक्ति या वस्तु जो दूसरे के अधीन हो । उपसर्पः ( 50 ) समीप जाना । उपसर्पणम् ( २० ) समीप जाना। आगे यड़ना । उपसर्या ( स्त्री० ) सांड़ के योग्य गाय। [एक असुर । उपसुन्दः ( पु० ) निकुम्भ का पुत्र और सुन्द का भाई | उपसूर्यकम् ( म० ) सूर्यमण्डल | उपसूट ( व० कृ० ) १ मिला हुआ | जुड़ा हुआ । सहित । २ आवेशित | ३ सन्तप्त । पीड़ित । ४ ग्रस्त ५ उपसर्ग से युक्त । ५ उपसृष्टः ( पु० ) राहु केतु असित सूर्य या चन्द्र । उपसृष्टम् (२०) स्त्रीमैथुन । स्त्रीसम्भोग । उपसेचनम् ( न० ) ) १ उड़ेलना | छिड़कना पानी उपसेकः ( पु० ) से तर करना |२ गीली "}} चीज़। रस। उपसेचनी (स्त्री० ) कटोरा | चमची । कलछी । उपसेवनम् (न०) २१ पूजन अर्चा | शृङ्गार | २ सेवा उपसेवा (स्त्री० )) (किसी वस्तु का) आदी होना । - उपस्तस्मः पु० ) ११ सहारा २ उप्सर १ उपस्तम्भनम् ( न० ) ) उत्तेजना | सहायता । २ आधार । उपस्तरयम् ( म० ) १ फैलाना | शिखेरना । २ चावर | ३ ौिना। शय्यां | ४ कोई वस्तु जो विछायी जाय ! उपस्त्री (स्त्री० ) रंडी | उपस्थः (पु० ) १ गोड | २ मध्यभाग उपस्थम् ( न० ) १ स्त्री की योनि । २ पुरुष का लिङ्ग | ३ कूल्हा-निग्रहः, ( ० ) इन्द्रिय निग्रह | बंधेज-पत्रः- दलः (पु० ) पीपल उपस्थापनम् ( न० ) 1 पास रखना। तत्पर होना । तैयार होना २ स्मृति को नया करना । याबु दारत का ताज्ञा करना । ३ परिचर्या सेवा । उपस्थायकः ( पु० ) सेवक । अभ्यस्त होना १४ वर्तना इस्तेमाल करना । | उपस्थितिः ( वि० ) १ निकटता | २ विद्यमानता | उपभोग करना (स्त्री का) | ६ प्राप्त करना। पाना। ४ पूरा करना । कार्या वित करना। ५ स्मृति । याददाश्त । ६ परि- चर्या सेवा का बुरा। उपस्थानम् (न० ) १ निकट आना सामने धाना २ अव्यर्थना या पूजा के लिये निकट आना | ३ रहने की जगह डेरा यासा ४ तीर्थ या देवा- जय । १ स्मृति। याददाश्त | उपस्करः (पु० ) अंग अर्थात् जिसके बिना कोई ३ मसाला ३ सामान । यस वस्तु अधूरी रहे बाव उपकरण ४ गृहस्थी के लिए उपयोगी सामान जैसे बुहारी, सूप, चलनी आदि । २ | उपस्पर्श: आभूषण | ६ फलङ्क | दोष भर्त्सना । उपस्करणम् (न० ) १ वध | इत्या | चोटिल करना। २ संग्रह | ३ परिवर्तन | संशोधन ३४ छूट। शुद्धि | ५ कलंक दोष | उपस्कार: ( पु० ) १ परिशिष्ट । २ न्यूनता पूरक । ३ सौन्दर्यवान बनाना। सजावट | ४ आभूषण । २ आवात प्रहार ६ संग्रह | उपस्नेहः ( पु० ) नम करना । तर करना । ( ए ० ) १ स्पर्श करना। छूना संसर्ग उपस्पर्शनम् ( ज० ) ) होना | २ स्वान | प्रचालन | मार्जन ३ कुल्ला करना मुह साफ करना । आचमन करना । उपस्मृतिः ( स्त्री० ) धर्मशास्त्र के अन्य । इनकी संख्या १८ है। उपवां ( म० ) : रजस्वला धर्म । २ बहाव । उपसत्वं ( म० ) राजस्व लाभ, जो भूमि की आप से अथवा पूँजी से होता है। उपस्कृत (च० कृ० ) १ तैयार किया हुआ । बनाया हुआ । २ संग्रहीत | ३ सौन्दर्यवान बनाया हुआ | उपस्वेदः (पु० ) सरी पसीना 1 सजाया हुआ। भूपित किया हुया ४ न्यूनता की | उप च कृ० ) १ थाहत । निर्बल | पीड़ित | २ पूर्ति किया हुआ। ५ संशोधित किया हुआ । प्रभावान्वित किया हुआ। पीटा हुआ 1 हराया उपहतक ( १८० ) उपाधिक श्रावणी कर्म । हुआ । ३ अवश्य नष्ट होने वाला । ४ धिक्कारित । | उपाकर्मन् (न० ) १ तैयारी | आरम्भ। प्रारम्भ | २ २ विगाड़ा हुआ । अपवित्र किया हुआ - आत्मन् (दि० ) उद्विग्न चिस-द्वश. (वि०) चौधियाया हुआ। अंधा-धी, (वि० ) मूढ़ | उपहतक (वि० ) अभागा बदकिस्मत | उपहति (स्त्री०) १ प्रहार | चोट । २ बध | हत्या । उपहत्या ( स्त्री० ) थोँखों का चौधियाना| उपहरणम् ( न० ) १ लाना। जाकर लाना । २ ग्रहण करना पकड़ना ३ नज़र करना भेंट देना। ४ बलिपशु चढ़ाना । २ भोजन परोसना या वांटना। उपहसित ( ० ० ) चिढ़ाया हुआ । मजाक उड़ाया हुआ। उपसितं ( न० / कटारा युक्त हँसी। [ रहता है। उपहस्तिका (स्त्री०) बटुया जिसमें पान का सामान २ बलिपशु यज्ञ किसी देवता का चढ़ावा । ४ नञ्जराना । दक्षिणा । ५ सम्मान | ६ लड़ाई का हर्जाना । ७ महमानों को बाँटा हुआ भोजन । उपहालकः ( पु० ) कुन्तल देश का नाम । उपहासः ( पु० ) १ हँसी ठट्टा दिल्लगी । २ निन्दा | बुराई | व० ) ) हँसी उड़ाने लायक । न० ) निन्दनीय | उपहासक ( वि० ) दूसरों की दिल्लगी उड़ाने वाला । उपहासकः ( पु० ) मसखरा । उपहास्य ( स० का० कृ० ) हँसने योग्य | उपहित (वि० ) स्थापित । रखा हुआ। उपहतिः ( स्त्री० ) आह्वान | बुलौआ | बोला | उपहरः (पु०) 1 एकान्त स्थल । २ उतार | [करना । उपह्वानम् (न०) बुलाना। न्योतना। मंत्रों से आह्वान उपांशु ( अव्यया० ) १ कानाफूंसी । मन्दस्वर से धीमी आवाज से २ चुपके चुपके । उपांशुः ( पु० ) मंत्र जपने की विधि विशेष ऐसे जपना जिससे अन्य कोई जाप्य मंत्र को सुन न सके। उपाकरणम् ( न० ) १ योजना | उपक्रम | तैयारी । उपहास-पात्रम् उपहासास्पदम् उपाकृत (३० कृ०) १ समीप लाया हुआ | २ बलिदान किया हुआ । ३ आरम्भ किया हुआ । उपाक्षं ( धन्यया० ) नेत्रों के सामने । विद्यमानता में। उपाख्यानम् ( न० ) १ पुरानी कथा पुराना उपाख्यानकम् (२० ) वृत्तान्त । २ किसी कथा ३ के अन्तर्गत कोई अन्य कथा | उपागमः ( पु० ) १ समीप आगमन । पहुँचना । २ घटित होना । ३ प्रतिज्ञा । इकरार ४ स्वीकृति । | उपाग्रम् ( न० ) १ छोर के पास का भाग २ गौण [पीछे वेदाध्ययन करना | उपाग्रहणम् ( न० ) वेदाध्ययन का अधिकारी हुए उपांगम् ) ( न० ) १ अन्तर्गत भाग । सँग का अवयव । मुख्य का साहाय्य उपाचारः ( पु० ) १ स्थान | २ पद्धति । उपाजे ( अन्यथा० ) यह केवल कृ धातु के साथ ही व्यवहत होता है। सहारे सहारे से। उपांजन ) ( न० ) तेल मलना | लीपना । उपाञ्जनम् उपात्ययः (पु० ) आज्ञा उल्लङ्घन मर्यादा भङ्ग करना । उपादानं १ (न०) ग्रहण करना। लेना । प्राप्त करना । २ वर्णन करना । बखान करना। ३ सम्मिलित करना | शामिल करना । ४ सांसारिक पदार्थों से इन्द्रियों को हटाना २ कारण हेतु। ६ वे पदार्थ जिनसे कोई वस्तु बनी हो । ७ सांख्य की चार आध्यात्मिक तुष्टियों में से एक। उपाधि: ( पु० ) १ धोखा | जाल चालाकी । २ अम। कपट | ३ वह जिसके संयोग से कोई पदार्थ और का और दिखलाई पड़े । ४ विशेषता २ प्रतिष्ठासूचक पद पदवी बिगाड़ा हुआ नाम ६ परिस्थिति ६ वह पुरुष जो अपने कुटुम्ब के भरणपोषण में सावधान रहता है। ७ धर्मचिन्ता । कर्तव्य का विचार उत्पात उपद्रव । अनुष्ठान । २ यज्ञ में वेदपाठ । ३ यज्ञीय पशु का | उपाधिक (वि० ) अत्यधिक । नियमित संख्या से संस्कार विशेष । अधिक वेशी अतिरिक्त । 1 उपाध्यायः उपाध्यायः ( पु० ) अध्यापक २ वेदवेदाङ्ग का पढ़ाने वाला। उपाध्याया । ( स्त्री० ) पढ़ानेवाली अध्यापिका उपाध्यायी ) ( स्त्री० ) गुरुपत्नी । अभ्यापिका । उपाध्यायानी ( स्त्री० ) गुरु की पत्नी । उपानह (स्त्री० ) जूता | खड़ाऊ । उपांतः । (पु०) १ किनारा । बाढ़ धार | हाशिया । उपान्तः । प्रांत । सिरा | ३ आँख की कोर । ३ पड़ोस । सन्निकट । ४ नितम्ब | ( १८१ ) उपाइलक शिक्षक | गुरु । उपावर्तनम् ( न०) १ लौट थाना | लौट जाना। वापिस आना या जाना । २ चकर खाना | घूमना | ३ समीप आना । उपातिक } (वि० ) समीपवर्त्ती ! पढ़ोस का उपांतिकं उपान्तिकम् } ( न० ) पढ़ोस । पास । समीप | उपत्य } ( बि० ) अन्तिम के पूर्व का एक उपाल्या. } ( पु० ) आँख की कोर । उपांत्यं } ( न० ) पड़ोस | समीप । निकट । उपान्त्यम् उपाय: (पु०) १ साधना | युक्ति । तदबीर साधन । युद्ध में शत्रु को धोखा देना । २ आरम्भ । प्रारम्भ उपक्रम | ३ उद्योग | प्रयत्न ४ शत्रु को परास्त करने की युक्ति यथा साम, दान, भेद, दण्ड । ५ उपागम । ६ शृङ्गार के दो साधन । --चतुष्टयम्, ( न० ) शत्रु को बस में करने के चार उपाय । साम, दान, भेद, दण्ड। - चतुरयज्ञ, ( बि० ) इन चार साधनों का जानकार या इन साधनों का व्यवहार करने में चतुर - तुरीयः, (पु०) चौथा उपाय अर्थात् दण्ड । उपायनम् ( न० ) १ समीपगमन | २ शिष्य बनना । | धर्मानुष्ठान में लगना । ३ भेंट चढ़ावा | उपारंमः उपारम्भः } ( पु० ) आरम्भ । प्रारम्भ । उपार्जन(बी.} } प्राप्ति । उपलब्धि । कमाई। ). ) उपार्थ (वि० ) कम मूल्य का । घटिया उपालंभ: ( पु० ) ) १ श्रोलहना | शिकायत । उपालम्भः (पु० ) निन्दा | २ विलम्ब करना । मुलतबी करना । स्थगित उपालभम् ( न उपालम्भम् ( न० करना। उपाश्रयः ( पु० ) १ सहायता प्राप्त करने का वसीला । आधार। सहारा पानेवाला पात्र । ३ निर्भरता । [भक्त । अनुयायी | ३ शुञ उपासकः (पु०) १ उपसना करने वाला | २ सेवक । उपासनम् ( न० ) ३ १ सेवा । परिचर्या । सेवा उपासना (स्त्री० ) में उपस्थित रहना । २ पूजन | सम्मान | ३ तीरन्दाज़ी का अभ्यास | ४ ध्यान | ५ गार्हपत्याग्नि । [ ३ ध्यान । उपासा (स्त्री० ) १ सेवा | परिचर्या | २ पूजन उपास्तमनम् ( न० ) सूर्यास्त उपास्तिः ( स्त्री० ) १ चाकरी । सेवा में उपस्थित रहना २ पूजन अर्चन उपास्त्र ( न० ) गौण अस्त्र | छोटा हथियार | उपाहारः (g० ) हल्का जलपान । उपाहित (व० कृ०) १ स्थापित | जमा कराया हुआ। २ सम्बन्धयुक्त | संयोजित | [हुआ सर्वनाश | उपाहितः ( पु० ) अग्निभय या अग्नि का किया उपेक्षा (स्त्री० ) १ लापरवाही । उदासीनता । २ विरक्ति । चित्त का हटना । २ घृणा | तिरस्कार | उपेत (च० ऋ० ) १ समीप श्राना । २ उपस्थित ३ [ का छोटा भाई । युक्त सम्पन्न । उपेन्द्रः ( पु० ) वामन या विष्णु भगवान । इन्द्र उपेय ( स० का० कृ० ) १ समीप जाने को । २ पाने को। किसी उपाय से को । उपोढ ( च० कृ० ) १ संग्रह किया हुआ । जमा किया हुआ। राशीकृत २ समीप लाया हुआ | समीप | ३ युद्ध के लिये क्रमबद्ध किया हुआ । ५ विवाहित । उपोत्तम ( वि० ) अन्तिम से पूर्व का एक उपोद्घातः (पु०) १ आरम्भ । २ भूमिका | दीवाचा | ३ उदाहरण किसी के कथन के विपरीत युक्ति । । द्वारा ज़रिया ।५ पृथ- ४ अवसर करण । . उपोद्लक ( वि० ) समर्थित । इद्रीकृत | उम् उपोषणम् ( न० ) उपवास | बांका। उपोषितम् ) कड़ाका । उतिः (स्त्री० ) वीज योना। उज्ज् (धा० पर० ) [ उज्जति, उब्जित ] १ दयाना। वश में करना । २ सीधा करना । ( १८२ ) उभ् ) (धा० पर०) [ उभति, उंभति, उन्नाति, उंभू ) उंभित ] 1 कैद करना। २दो को मिलाना । ३ परिपूर्ण करना | ४ ढांकना। उभ (सर्वनाम ) (वि० ) दोनों उभय (सर्वनाम ) ( दि० ) दोनों चर ( वि० ) जल घल में रहने वाला । - विद्या, ( श्री० ) आध्यात्मिक ज्ञान और लौकिक ज्ञान । -वेतन, ( वि० ) दोनों ओर से वेतन पाने वाला दा वाज-व्यञ्जन, (वि० ) स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्ह रखने वाला। संभवः, सम्भवः, ( पु०) दुविधा । भ्रम । उभयतः (अव्यया०) १ दोनों ओर से दोनों ओर। २ दोनों दशाओं में ३ दोनों प्रकार से /- दत, दन्त, ( वि० ) दाँतों की दुहरी पंक्तियों बाखा~मुख, (वि०) दोनों ओर देखने वाला। दुमुँहा ।मुम्बी (स्त्री० ) गौ | उभयत्र (थव्यया० ) १ दोनों जगह | २ दोनों तरफ ३ दोनो दशाओं में। [ दशाओं में। उभयथा (०) १ दोनों प्रकार से २ दोनों उभयद्युस ) (अव्यया०) १ दोनों दिवस । २ दोनों उभयेस् ) पिछले दिनों । - उभ् (अव्यया० ) क्रोध, प्रश्न, प्रतिज्ञा, स्वीकारोक्ति, सच्चाई व्पक्षक अव्यय विशेष | उमा (श्री०) १ शिव जी की पत्नी, जो पुत्री थी । २ कान्ति कीर्ति । ४ निस्तब्धता । हल्दी उंबर उम्बर: उंबुर: उम्बुरा हिमालय की सौन्दर्य ३ यश | शान्ति श्रात्रि | ६ सन गुरुः (पु० ) अनकः, ( पु० ) हिमालय पर्वत । -पतिः, (पु० ) शिव जी । सुतः, ( पु० ) कार्तिकेय या गणेश जी । ( पु० ) चौखट की ऊपर वाली लकड़ी। उरः ( पु० ) भेद । उरगः [ स्त्री० - उरगी ] १ साँप : सर्प | २ नाग । ३ सीसा। -अशनः, शत्रुः, (पु० ) १ सौंप का शत्रु २ गद ३ मोर ४ न्योला । -इन्द्रः ( पु० ) -राजः, (पु० ) वालुकी या शेष जी का नाम। - प्रतिसर, (वि०) परिणया- मुलीयक के लिये सर्प रखने वाला।~~भूपणः, पु० ) शिव जी का नाम -सारचन्दनः (१०) सारचन्दनम्, ( न० ) एक प्रकार के चन्दन का काष्ट। स्थानं, (१०) पासाल, जहाँ सर्प रहते हैं। उरंगः उरङ्गः उरंगमः - ( पु० ) सर्प | सौंप | उरङ्गमः उरगा ( श्री० ) एक नगरी का नाम । उरणः (पु० ) [ स्त्री० --उरणी, ] 1 मेदा | मेष | मेड़ | २ एक दैत्य, जिसे इन्द्र ने मारा था। उरणकः ( पु० ) १ मेष | २ बादल | उरणी (स्त्री० ) भेड़ी | मेषी । उरभ्रः (पु० ) भेड़ | मेष | उररी (धव्यया०) स्वीकारोकि प्रवेश और सम्मति व्यञ्जक अव्यय । उरस (पु० ) ( उरः ) छाती। वक्षस्थल । -हृतं, ( न०) छाती का घाव । ---ग्रहः, -घातः, (पु०) J - फेफड़े का रोग चदः, आणं, (न० ) छाती के रक्षा के लिये वर्म विशेष -जः, -भू.. उरसिजः, ~~उरसिरुहः, (पु०) क्षियों की छाती। -सूत्रिका, (श्री०) मोठी का हार जो वक्षस्थल पर पढ़ा हो। स्थलं, (न० ) छाती | वक्षस्थल उरस्य ( वि० ) १ औौरस सन्तान (पुत्र या कन्या ) | २ वचस्थल का | ३ सर्वोकृष्ट उरस्य: ( पु० ) पुत्र | उरस्वत् उरसिल } ( वि० ) चौड़ी छाती वाला। उरी (अव्यया० ) देखो उररी । उरु ( वि० ) [ स्त्री० उह और उसवीं 1 थोंदा लंबा चौड़ा प्रशस्त २ यदा लंबा अधिक । अस्यधिक । विपुख १४ बहुमूल्यवान 1 उणनाभ वेशकीमती कीर्ति ( वि० ) प्रसिद्ध । सुपरिचित-क्रमः, (पु०) विष्णु भगवान की उपाधि (वामनावतार की ) -गाय, (वि० ) | महान लोगों से प्रशंसित-सार्गः, ( ५० ) | लंबा मार्ग 1- विक्रम. ( वि० ) पराक्रमी बलवान 1- स्वन, ( वि० ) अतिउच्च रव | गम्भीर रत्र | तार स्वर - हारः, ( ० ) | मूल्यवान हार । वर्णनाभः (पु० ) मकड़ी उर्जा ( स्त्री० ) १ ऊन १ नमदा : २ दोनों भौंवों के [ भूमि | बीच का केरामण्डल देखो “कर्णा" | उर्धटः (पु० ) बछड़ा | २ वर्ष । उर्वरा ( स्त्री० ) : उपजाऊ भूमि | २ ( सामन्यतः ) उर्वशी (स्त्री०) १ विषम वासना उत्कट अभिलाषा | | २ स्वर्गवासिनी इन्द्र की एक प्रसिद्ध अप्सरा | -रमणः, सहायः, वल्लभः, (पु० ) पुरुरवा | का नाम । - उर्वारुः (४०) १ एक प्रकार की ककड़ी| २ खरबूजा उर्वो ( सी० ) १ भूमि | २ पृथिवी | ३ मैदान | --ईशः, ईश्वर, पतिः, -घवः, (पु०) राजा । - - घर, (पु० ) १ पर्यंत । २ शेषनाग/-भृत् (५० ) १ राजा । २ पहाड़। कहः, ( पु० ) वृक्ष। पेड़। उलपः (पु०) १ वेल । लता २ कोमल तृण । उलूकः ( पु० ) 1 उल्लू | घुघू | २ इन्द्र का नाम । उलूखलं (न० ) उखरी । उलूखलकम् (न०) खल | इमामदस्ता । उलूखलिक (वि० ) खल में कूटा हुआ। उलूत: ( पु० ) अजगर सर्प । उलूपी ( स्त्री० ) नागराज एक कुमारी का नाम, जो अर्जुन को व्याही थी और अर्जुन के धौरस और उलूपी के गर्भ से बभ्रुवाहन नामक एक तीर उत्पन्न | हुआ था, जिसने युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ की | दिग्विजय यात्रा में अर्जुन को परास्त किया था। उल्का (स्त्री० ) १ प्रकाश | तेज | २ लुक | आठा। आकाश से टूट कर गिरा हुआ तारा ३ मशाल । ४ अनि । अंगारा। -धारिन, (वि० ) मशा- - उल्लुण्ठा लची पातः, (पु० ) -मुखः, एक राजस। एक उस्कुषी ( स्त्री० ( पु० ) [लकड़ी । १ राक्षसी । दानवी । २ अधी उल्लं ) ( न० ) १ गर्भपिण्ड | गर्भवासी कच्चा बच्चा । उल्वं २ भग | योनि । ३ गर्भाशय उल्लण । ( वि०) १ गाड़ा | गनिँदार | २ अधिक । उल्वण ) विपुल | ३ दृढ़ | मङ्गवृत | बड़ा प्रादु र्भूत । प्रत्यक्ष उल्मुकः ( पु० ) १ अधजली लकड़ी। २ मशाल । उल्लंघनम् (न० ) ) १ लाँघना। डाँकना । २ अति- उल्लनम् (न०) क्रमण | ३ विरुद्वाचरण | उल्लुज ( वि० ) १ हिलने डुलने वाला | २ घने वालों वाला | उल्लसनम् ( न० ) १ हर्ष | आल्हाद । २ रोमाञ्च । उल्लसित ( व० ० ) १ चमकीला । दमकदार । प्रभावान् | कान्तिवान । २ प्रसन्न | धनन्दित । उल्लाघ (वि०) १ रोग से बुडा हुआ। रोग छुटने पर किञ्चित प्राप्त बल २ निपुण पटु चालाक ३ विशुद्ध ४ हर्षित प्रसन्न । उल्लापः (पु० ) १ वाणी। शब्द | २ अपमानकारक शब्द। आरोपयुक्त भाषण | श्राक्षेप | ३ तार स्वर से पुकारना या बुलाना ४ बीमारी या भावावेश के कारण परिवर्तित फण्ठस्वर | सङ्केत | इशारा सूचना । उल्लाप्यम् ( न० ) एक प्रकार का नाटक । उल्लासः ( पु० ) १ हर्ष । आनन्द | २ चमक थामा। दीप्ति ३ एक अलङ्कार, जिसमें एक गुण या दोष से दूसरे के गुण या दोष दिसलाये जाते हैं। इसके चार भेद माने गये हैं। ४ ग्रन्थ का एक भाग पर्व । काण्ड । उल्लासनम् ( न० ) दीसि चमक आभा | उल्लिङ्गित (वि० ) प्रसिद्ध । प्रण्यात । मशहूर । परिचित | [ हुआ। उल्लीडर (वि०) चिकनाया हुआ। मला हुआ। रगवा उल्लुचनम् (न० ) १ तोड़ना कटना २ बाल को खींचना या उखाड़ना उल्लुगठनम् ( म० ) १ श्लेषवाक्य । व्ययवाक्य । उल्लुण्ठा ( स्त्री० ) ) व्योकि । विपरीतार्थक वाक्य । उल्लेख ( १८४ ) उनि की शक्ल का मदिरा पात्र उल्लेखः ( पु० ) वर्णन चर्चा | जिक्र | २ लिखना | उष्ट्रिका ( स्रो० ) १ उदनी २ मिट्टी का लेख | ३ एक काव्यालङ्कार विशेष इसमें एक ही वस्तु का अनेक रूपों में दिखलाई पड़ना वर्णन किया जाता है । ४ खुरचना | छीलना | रगड़न । उल्लेखनं ( न० ) १ खुरचन छीलन | रगढ़ | २ खुदाई | ३ वमन | छर्दि । ४ वर्णन । चर्चा | २ लेख | चित्रण | उल्लेोच: ( पु० ) राजछन । भण्डप | चन्द्राप चंदोवा | शामियाना | उल्लालः ( पु० ) लहर । तरङ्ग । हिलोरा । उल्वा } देखो "उल्व, उहवया " उशनस् (पु० ) शुक्र का नाम शुक्र ग्रह का अधि ष्ठातृ देवता । वैदिक साहित्य में इनको कवि की उपाधि है। इनके नाम से एक स्मृति भी है। उशी (स्त्री० ) इच्छा । अभिलाषा | उशीर: ( पु० ) उषीर: ( पु उशीरं. उषीरें ( न० ) उशीरकम्, उषीरकम् ( न० उष् (ध० पर० [ ओषति, घोषित - उषित - उष्ट ] | १ जलना । भस्म होजाना । २ दण्ड देना । ३ मार डालना। घायल करना । उषः ( पु० ) १ प्रातःकाल । बड़ा सबेरा १२ कामी पुरुष ३ लुनिया भूमि । उषणम् (न० ) १ काली मिर्च | २ अदरक | आदी । उपपः ( पु० ) १ अग्नि । २ सूर्य । उपसू ( स्त्री० ) 3 तड़का भुराहा खस बड़े की जड़ । वीरनमूल : गजरदम | २ प्रातःकाल का प्रकाश | ३ प्रातः सायं सन्ध्याओं की अधिष्ठात्री देवी । – बुधः, ( पु० ) अग्नि । उषसी (स्त्री० ) दिन का अवसान | सायंकाल । उषा (स्त्री० ) तड़का | भोर । २ प्रातः कालीन प्रकाश | ३ झुट पुटा । ४ लुनियाही भूमि। बटलोई । ६ बाणासुर की पुत्री का नाम । --कालः, ( पु० ) मुर्गा 1- पतिः, - रमणः, - ईशः, ( पु० अनिरुद्ध जी का नाम । ) उषित (वि० ) १ बसा हुआ | २ जला हुआ । _ष्ट्र: ( पु० ) १ ऊंट । २ भैसा | ३ साँड़ | [ स्त्री०- उष्ट्री] बना ऊँट उष्ण ( वि० ) १ गरम | ताता | २ पैना | तोचण । सख्त | क्रियाशील | ३ तासीर में गरम ४ तेज़ । चालाक । ५ हैज़ा सम्बन्धी घाम । गुः, - सूर्य | उष्णः ( पु० ) १ १ गर्मी । ताप गर्माई । २ ग्रीष्म- उष्णम् ( न० ) ) ऋतु | ३ सूर्याताप । } ( पु० ) पियाज । –अंशुः- करा, दीधितिः, - रश्मिः – रुचिः, ( पु० ) ---अभिगमः, - ध्यागमः, उपगमः, ( पु० ) ग्रीष्मऋतु । - उदकं, (न० ) गर्मजल । ताता पानी–कालः, -गः (वि० ) ग्रीष्मऋतु । - वाष्पः, ( पु० ) १ आँसू । २ गर्म भाफ | वारणः, (पु०) चारणम्, (न०) छाता | छत्र | उष्णाक (वि० ) : तीषण | चालाक । क्रियाशील । २ ज्वर पीडित | पीडित | ३ गर्माना | गर्म करना । उष्णाकः ( पु० ) १ ज्वर | २ ग्रीष्मऋतु गर्मी का मौसम | [ से व्याकुल । घमाया हुआ | उष्णालु (वि० ) गर्मी को सह सकने वाला । गर्मी उष्णिका ( स्त्री० ) भात की माँडी । उष्णमन् (g० ) गर्मी । उष्णीषः ( पु० ) ) १ फेंटा 1 साफा | २ पगडी उष्णीम् ( न० ) ) मुकुट । ३ पहचान का चिन्ह | उष्णोषि / वि० ) मुकुटधारी ( पु० ) शिव जी का नाम । उष्मः उष्मकः } ( पु० ) १ गर्मी । २ ग्रीष्मऋतु । ३ क्रोध | स्वभाव की गर्माई गरम मिजाज़ | १४ उत्सुकता । उत्कण्ठा |-अन्वित, ( वि० ) क्रुद्ध। क्रोध में भरा। --भासू, ( पु० ) सूर्य । --स्वेदः, ( पु० ) वफारा। भाफ से स्नान । उष्मन् ( पु० ) १ गर्मी। गर्माहट २ भाफ वाष्प ३ ग्रीष्मऋतु । ४ उत्सुकता । उत्कठा ५ शू, ष, सू और इ ये अचर व्याकरण में उम्मन् माने गये हैं। उस्रः ( पु० ) १ किरन । २ साँड़ २ देवता | उस्रा । ( स्त्री० ) १ प्रातःकाल | भोर | तड़का | २. उत्रिः । प्रकाश | ३ गौ-क ( उत्रिकः, ) ( पु० ) माटा बैल | ( १८५ ) उहू उद्दू ( धा० पर० ) [ श्रोति, उहित ] १ पीड़ित करना । घायल करना । २ नाश करना । ऊ ऊ संस्कृत या नागरी वर्णमाला का ६वां अक्षर । उच्चारण स्थान ओठ है। दो मात्राओं से दीर्घ और तीन मात्राओं से यह प्रयत्न होता है। अनुना- सिक-भेद से इसके भी दो दो भेद हैं। ऊः (पु० ) १ शिव जी का नाम । २ चन्द्रमा ! (०) रसूचक अव्यय २ आह्वान अनुकंपा और रक्षण या रक्षा व्यञ्जक अव्यय विशेष | ऊद (वि०) १ ढोया गया। ढोकर ले जाया गया । २ लिया गया ३ विवाहित विवाह किया हुआ । ऊटः ( पु० ) विवाहित पुरुष | व्याहा हुआ पुरुष | ऊढा ( स्त्री० ) लड़की जिसका विवाह हो चुका हो । ऊढिः (स्त्री० ) विवाह | परिणय | शादी। ऊतिः (स्त्री०) १ बुनना । सीना | २ रचा | संरक्षण | ३ भोगविलास | ४ क्रीड़ा | खेल | ऊधस् (न० ) गौ का या भैस का ऐन । वह थैली जिसमें दूध भरा रहता है। ऊधन्यं ( न० ) ) दूध। शीर। ऊन ( वि० ) १ कम | न्यून | २ अधूरा अपर्यास । ३ ( संख्या, आकार या अँश में ) कम | ४ निर्बल | अपकृष्ट घटिया । ५ हीन । ऊम् ( अव्यया० ) प्रभ, क्रोध, भर्त्सना, गर्व, ईर्ष्या न्यञ्जक धव्यय विशेष | ऊय् (धा० आत्म० ) [ ऊयते, ऊत ] बुनना सीना। ऊररी देखो 'उररी" । ऊणु ( अन्यथा० ) बुलाने में प्रयोग किया जाने उहह । वाला अव्यय । उड (पु० ) साँड | ऊरव्यः ( पु० ) [ स्त्री०-ऊरव्या ] वैश्य, जिसकी उत्पत्ति वेद में ब्रह्म की जँघा से बतलायी गयी है। उरुः ( पु० ) १ जाँघ । जंघा - अष्टीधं ( न० ) जांघ और घुटना । —उद्भव, (वि० ) जंघा से निकला या उत्पन्न हुआ। -ज, जन्मन्, -सम्भव, ( वि० ) जंघा से निकला हुआ । घुटने ( पु० ) वैश्य । - दन - इयस, - मात्र, ( वि० ) घुटने तक या घुटने तक ऊँचा के बराबर गहरा | -पर्वन, ( पु० न० ) घुटना । फलकम् ( न० ) जाँघ की हड्डी | पट्टा या कूल्हे की हड्डी ऊमरी देखो “उररी 1” [ पदार्थ | ऊर्ज ( स्त्री० ) १ शक्ति | बल | २ रस | ३ भाज्य ऊर्ज: (स्त्री०) १ कार्तिक मास का नाम । २ स्फूर्ति शक्ति | ३ बल । ताकत । ४ उत्पन्न करने की शक्ति ५ जीवन | स्वांस | ऊर्जस ( न० ) १ बल । शक्ति | २ भोजन । ऊर्जस्वत् (वि० ) १ रसीला | जिसमें भोज्य पदार्थ का अंश अत्यधिक हो। शक्तिशाली । बलवान | ऊर्जस्वल ( वि० ) बड़ा | बलवान् | मजबूत । शक्तिशाली । ★★ ऊर्जस्विन् (वि० ) शक्तिवान् । दृढ़ । विशाल । ऊर्जा (स्त्री०) १ भोजन | २ शक्ति | ३ ताकत बल ४ बढ़ती या वृद्धि | ऊर्जित ( वि० ) १ बलवान | मज़बूत शक्तिसम्पन्न | सुन्दर ३ उदात्त | २ प्रसिद्ध उत्कृष्ट श्रेष्ठ कुलीन | सतेज | तेजस्वी । जिन्दादिल । [ फुर्ती । ऊर्जितम् ( न० ) १ शक्ति । बलबूता | २ पौरुष ऊर्णम् ( न० ) १ऊन । २ ऊनी कपड़ा । --नाभः, पदः, - नाभिः, ( 30 ) मकड़ी । प्रद, -दसू ( दि० ) ऊन की तरह कोमल । ऊर्जा ( स्त्री० ) १ ऊन परम | २ भौधों के मध्य का केशमण्डल - पिण्डः, (पु०) ऊन का गोला या पिंडी | ऊर्णायु ( वि० ) ऊनी । [ कंवल । ऊर्णायुः ( पु० ) १ मेष | मेदा २ मकड़ी | ३ ऊनी ऊ ( ध० उभय० ) [ कति उति ऊर्णित ] ढकना घेरना छुपाना । स० श० कौ०५४ ऊध्य (वि० ) १ सतर | सीधा ऊपर का । २ उठा हुआ। उभा हुआ सीधा खड़ा हुआ। ३ ऊख उत्कृष्ट | उच्चतर | 8 खड़ा हुआ (बैठे हुए का उल्टा ) २ टूटा हुआ। -कच. -केश, (वि० ) २ खड़े बालों वाला। -कचः, (पु० ) केतु का नाम । --फर्मन, (न०) - क्रिया, (स्त्री० ) ऊपर की ओर की गति । २ उच्चा स्थान प्राप्त करने के लिये किया गया कर्म (पु०) विष्णु का नाम । कायः, ( 50 ) -कायम्, (न० ) शरीर का ऊपर का भाग । –ग, गामिन, (वि० ) | ऊपर गमन चढ़ना । ऊँचा उठना । -गति, (वि०) ऊपर गमन । -गतिः, (स्त्री० ) -गसः, ऊवय ( श्री० ) उपजाऊ भूमि | -गमनं, (न० ) १ चढाई | ऊँचा | २ स्वर्ग | ऊलुपिन (न० ) सूंस | शिशुमार गमन | चरण, पाद, (वि० ) शरभ ~~ जानु, -, - शु। (वि० ) अकरू बैठा हुआ । घुटनों के बल बैठा हुआ!~~-नेत्र, (वि०) ऊपर देखने वाला | ( अलं० ) उच्चाभिलाषी । -दृधः ( स्त्री० ) योगदर्शन के अनुसार दृष्टिको भौंधों के मध्य भाग में टिकाने की क्रिया - ( 50 ) सूतक कर्म । -पातनम् (म० ) (जैसे पारे का ) शोधना। परिष्कार । - पात्रम्, (न०) यज्ञीयपात्र । -मुख, (वि० ) ऊपर को सुख किये हुए | ~मौहर्तिक, (वि० ) कुछ देर बाद होने वाला। -रेतस्, (वि० ) अपने वीर्य को कभी न गिराने वाला। स्त्री सम्भोग कभी न करने वाला ( पु० ) १ शिव । २ भीष्म - लोकः, ( ५० ) ऊपर का लोक । स्वर्ग/वर्मन्, ( पु० ) अन्तरित। - वातः, वायुः, (पु० ) शरीर के ऊपरी भाग में रहने वाला पवन । शायिन् (वि० ) चित्त सोने वाला ( पु० ) शिव का नाम -शोधनम्, ( न० ) वसन करने की किया (श्वासः ( पु० ) मृत्यु को प्राप्त होना । 1-स्थितिः, ( स्त्री० ) १ घोड़ा पालना २ घोड़े की पीठ ३ उन्नयन सर्वोत्कृष्टता | ( १८६ ) - ईम् ( न० ) उचान | उचाई । ( धन्यवा० ) 1 ऊपर की ओर २ अन्त में ३ तार स्वर में J ४ पीछे से बाद को। 1 - ऊर्मिः ( पु० सी० ) 1 लहर तरङ्ग २ धार । प्रवाह ! ३ प्रकाश । ४ गति। गति की दुतता । २ वह या किसी सिले कपड़े की प्लेट। पंक्ति वी रेखा | ७ दुःख | बेचैनी । चिन्ता । ~ मालिन्, सरंगमालाओं से विभूषित ( पु० ) समुद्र । ऊर्मिका (स्त्रो० ) १ तरङ्ग | २ अँगूठी | ३ खेद | शोक ( जो किसी वस्तु के खोने से उत्पन्न हो । ४ शहद की मक्खी या भर का गुजार ५ तह या प्लेट किसी सिले हुए वस्त्र की। ऊर्व ( वि० ) विस्तृत विशाल | ऊर्थः ( पु० ) वयानल | 1 ऊप् (धा० पर० ) [ ऊपति, ऊषित ] रोगी होना । गड़बड़ होना। बीमार होना। ऊपः ( पु० ) १ लुनही ज़मीन २ र ३ दरार | किरी | सन्धि ४ कान के भीतर का पोना भाग २ मलयागिरि ६ प्रातः काल प्रभात। ऊपकम् ( न० ) प्रभात। तड़का | भोर । ऊपणम् ( न० ) १ १ काली मिर्च | २ अदरक । ऊपणा (स्त्री० ) ) यादी । ऊपर ( वि० ) निमक या लोना मिला हुआ । ऊसर भूखण्ड जो लुनहा हो । ऊपरः ( पु० ) ऊपरम् ( न० ) ऊपवत् देखो " ऊपर।" ऊष्मः ( पु० ) १ गर्मी । २ ग्रीष्मऋतु । ऊष्मण ऊमय } (वि० ) गर्म | 1 1 1 ऊष्मन् ( 50 ) १ गर्मी । क्रोध | २ ग्रीष्मऋतु । ३ भाफ वाष्पोद्दम (मुँह से ) भाफ निकालना ४ उत्साप क्रोध अत्यासक्ति उग्रता | जबरदस्ती। श, ध्, स् और ड्। उपगमः, ( पु० ) ग्रीष्मऋतु का आगमन पः, ( पु० ) १ अनि । २ पितृगण विशेष | ऊहू ( भा० उमय ० ) [ अहति उहते, उहित ] १ टीपना | चिन्हित करना । थालोचना अनुमान करना । अटकल करना । २ लगाना | ३ समझना | आशा करना १४ बहस ऊहः ( पु० ) १ अनुमान ( १८७ ) | जानना | पहचानना । करना। विचार करना घटकल १२ परीक्षण और निश्चय करण ३ समझ ४ युतिता युक्ति प्रदर्शन | ५ छूट को पूरा करने वाला खुटिपूरक -~प्रपोहः (=ऊहापोहः ) वर्क वितर्क सेरच । विचार | ऋऋ संस्कृत या नागरी वर्णमाला का सातवाँ वर्ष यह भी एक स्वर है और इसका उच्चारण स्थान मू है। हस्य, दीर्घ और प्लुस के अनुसार इसके तीन भेद हैं। इन भेदों में भी उदात्त, अनुदास और प्लुत के अनुसार प्रत्येक के तीन भेद हैं। फिर इन नौं भेदों में भी प्रत्येक के अनुनासिक और निरनुनासिक दो दो भेद हैं। इस प्रकार सब मिला t करा के अठारह भेद हैं। सुच्छ ● ऊहनम् ( न० ) अनुमान। अटक | ऊहनी ( स्त्री० ) भाहू। बुहारी। ऊहवत् ( वि० ) बुद्धिमान | तीव्र | [ करना | ऊहा (स्त्री० ) अध्याहार । वाक्य में त्रुटि को पूरा ऊहिन् (वि० ) कौन और क्या की बहस कर अटकल लगाने वाला। [ फौज | ऊहिनी (स्त्री० ) १ समूह | समुदाय । २ सेना | ऋ 1- ऋत (वि० ) गंजा | ऋतः (पु०) रीड़ भालू | २ एक पर्वत का नाम । ( न० पु०) १ नक्षत्र द्वारा राशि | २ राशिचक्र की एक राशि चक्रं, (न० ) राशिचक । नाथः - ईश: ( पु० ) चन्द्रमा नेमिः, ( पु० ) विष्णु का नाम --राजू-राजः, ( पु० ) १ चन्द्रमा २ जम्बु जाम्बवान ! रीड़ों के राजा--हरीश्वरः (पु० ) रीछों और लंगूरों के राजा क्षा (५० बहुवचन) सप्तर्षि के सात तारे । ऋताः (स्त्री०) उत्तर दिशा ऋत्तीः (स्त्री०) मादा भालू । ॠ (पु० ) १ऋत्विज । २ काँटा । [पर्वत । श्रुतवत् (पु० ) नरमदा नदी का समीपवर्त्ती एक ऋचू (धा० परस्मै० ) [ ऋचति ] प्रशंसा करना । २ ढकना पर्दा बजना ३ प्रकाशित होना । चमकना । ऋचू ( स्त्री० ) १ ऋचा | २ ऋग्वेद की ऋचा । ३ ऋग्वेद | ४ चमक | दमक १२ प्रशंसा | ६ पूजन | -विधानं, (न०) कतिपय वैदिक कर्मों का विधान, जो ऋग्वेद के मंत्रों को पढ़ कर किये जाते हैं।--वेदः, (पु०) ऋग्वेद संहिता, (स्त्री० ) [ के पिता थे। ऋग्वेद | ॠ (अन्य ) आह्वान, उपहास और निन्दाज्यक्षक अन्यय विशेष | ऋ (धा० पर० ) [ ऋऋच्छति ऋत १ जाना। २ हिलाना ३ प्राप्त करना, पहुँचना मिलना। ४ उत्तेजित करना। (परस्मै०) [ ऋणोति, ऋण ] | १ घायल करना। २ आक्रमण करना। (निजन्त) | [ अर्पयति, अर्पित ] १ फेंकना । जड़ना | रोपना || २ रखना लगाना। टकटकी बांधना। ३ देना । ४ हवाले करना सौंपना ॠ (स्त्री०) १ देवमाता । अविति । २ निन्दा | बुराई । ऋ (०) १ॠा | वेदमंत्र | भग्वेद । ऋण (वि० ) घायल चोटिल चुटीला | ॠषयं ( न० ) १ सम्पत्ति २ विशेषकर मरने पर छोड़ी हुई सम्पत्ति सामान ३ सुर्ख। सोना । -ग्रहणम्, ( न० ) सम्पत्तिका प्राप्त करना। ग्राहः (पु० ) वारिस । उत्तराधिकारी। - -भागः, बटवारा हिस्सा बाँट १२ हिस्सा / भाग ऋविकः ( पु० ) भृगुवंशीय एक ऋषि | यह जमदग्नि ऋचषः ( पु० ) नरक | [ की सीठी | ३ सीठी । 1 पैतृक सम्पत्ति। -भागिन्, -हर, हारिन् ऋषम् (न० ) १ कड़ाही वसला २ सोमनता ( पु० ) १ उत्तराधिकारी २ अन्यतम उत्तराधि | ऋऋच्छ ( भा० पर० ) [ ऋति] ] कहा होना | कारी । सकत होना । २ जाना | ३ क्षमता का न रहना । ( १८८ ) का (खी० ) इच्छा कामना | ऋजू ( घा० आम० ) [ अर्जते, ऋजित ] जाना । २ प्राप्त करना | पाना ३ खड़े रहना या हद होना। ४ स्वस्थ होना या मजबूत होना १ उपा जैन करना | ऋजी देखो ऋचीप | ऋजु } ( वि० ) [ स्त्री०-ॠया ऋज्वी ] ॠाजुक ) सीधा २ ईमानदार सञ्चा३ अनु कूल नेक ४ सरल सहज गः (पु० ). १व्यवहार में ईमानदार था सचा २ क्षीर । बाय । - रोहितं, ( म० ) इन्द्र का लाल और [ विशेष | सीधा धनुष । - . सृज्वी ( श्री० ) १ ईमानदार स्त्री | २ नक्षत्रपथ ऋणं ( २० ) १ कर्ज उधार | २ दुर्ग किला। ३ जल । ४ भूमि ५ देव, ऋऋषि और पितरों के उद्देश्य से किया हुआ यथाक्रम यज्ञ ६ वेदाध्ययन और सन्तानोत्पत्ति नामक आवश्यक कर्तव्य कर्म-धन्तकः, ( पु० ) मङ्गख ग्रह 1-अप- नयनम् – ध्यपनोदनं, प्रपाकरणम् -दानं, ( न० ) - मुक्ति, मोक्षः (पु० ) शोधनम् (चि०) कर्ज की अदायगी। शोधकर्ज चुकाना। -आदानं, (न०) ऋण में दिये हुए रुपयों का वापिस सिलना। ऋयां (ऋणार्थ) कर्ज के ऊपर कई एक कर्ज चुकाने को जो दूसरा कर्ज काढ़ा जाय ग्रहः, (पु०) १ कर्ज़ा लेना । २ कई लेने वाला | - दातु, - दायिन, (वि० ) कर्ज देने वाला | -दासः, ( पु० ) कर्ज़ा चुका देने के बदले कश चुकाने वाले का बना हुआ दास 1-मत्कुणः, - मार्गणः, ( १० ) इमानत /-मुक्तः, ( वि० ) कर्ज से छुटकारा पाया हुआ।मुकि, (स्त्री० ) कर्ज से छुटकारा पाना ।-लेख्यं, ( न० ) दस्तावेज़ । टीप । ऋणकः ( पु० ) कर्जदार । ॠणिन् ( वि० ) कर्जदार | धरणी। - - 1 ऋत (वि० ) 1 उचित । ठीक १२ ईमानदार । सच्चा | २ पूजित सम्मानित 1-धामन् ( वि० ) सच्चा या पवित्र स्वभाव वाला ( पु० ) विष्णु भगवान का नाम । मृतेजा तः (५०) अयोध्या के एक राजा, जो राजा नल के मित्र थे और पाँसा खेलने में बड़े निपुण थे। ऋऋतपेयः (पु० ) एकाह यज्ञ जो छोटे छोटे पायों को नष्ट करने के लिये किया जाता है। ऋतम् ( अभ्या० ) ठीक रीति से। ठीक तौर पर । ऋतम् (न० ) १ निश्चित नियम या आईन । २ धार्मिक प्रथा यश ३ अलौकिक नियम - किक सत्य ४ जल ५ सत्य । जो कायिक वाचिक एवं मानसिक हो ६ उम्वृत्ति याहाण की उपजीव्य वृत्ति । ७ कर्म का फल । ऋतम्भरा ( स्त्री० ) योगशास्त्रानुसार सत्य को धारण और पुष्ट करने वाली चित्तवृत्ति विशेष | श्रुतिः ( स्त्री० ) १ गति । २ स्पर्धा | २ जिन्दा | ४ मार्ग | ५ मङ्गल | कल्याण | ● | ऋतीया (स्त्री० ) धिक्कार | भर्त्सना । ऋतुः ( पु० ) १ मौसम । वसन्तादि छः ऋतुएं । २ अब्द-प्रवर्तक-काल | ३ रजोदर्शन | ४ रजोदर्शन के उपरान्त का समय जो गर्भाधान के लिये उप- युक्त काब है। ५ उपयुक्त या ठीक समय । ६ प्रकाश चमक | ७ की संख्या का त कालः, समयः, (पु०) वेला, खी०) रजो- दर्शन के पीछे १६ रात्रि पर्यन्त गर्भाधान का उपयुक्त काल ऋतु-मौसम का अवधि काल । --गणः, (पु०) ऋतुओं का समुदाय | --गामिन, (वि०) ऋतुकाल में स्त्री के पाश जाने वाला :- पर्खः, (पु०) अयोध्या के इच्वाकुवंशीय एक राजा का नाम 1 पर्यायः - वृत्तिः, (पु०) मौसम का आना जाना । ~मुखं, ( न० ) किसी ऋतु का प्रथम दिवस --राजः, ( पु० ) ऋतुओं का राजा अर्थात् वसन्त /- लिङ्गम्, (न० ) १ ऋतुओं का मिलान 1--- सन्धिः (स्त्री० ) वह स्त्री जो रजोदर्शन होने के बाद स्नान कर चुकी हो और सम्भोग के योग्य हो गई हो। -स्नाता (स्त्री० । रजोदर्शन के [पुष्पवती । बाद का स्नान। ऋऋतुमती (स्त्री० ) रजस्वला । मासिक धर्मयुक्ता । भुते (अव्यया० ) बिना। सिवाय । ऋतेजा ( पु० ) नियमानकूल रहना । ऋतेरस ऋतेरस (१०) भूत प्रेतों का भगाना | ॠतोक्ति (स्त्री० ) सत्य वच्चन | ॠत्यसः (पु० ) ऋतु का अन्त । २ स्त्री के रजोऋ दर्शन से १६ वीं रात्रि । ( ऋत्विज ( पु० ) यज्ञ करने वाला । साधारणतया प्रत्येक यज्ञ में चार ऋजि हुया करते हैं। अर्थात होतू, उड़ातृ, अध्वर्य, ब्रह्मन् । किन्तु बड़े यश में इनकी संख्या १६ होती है। 1 ऋत्विय ( वि० ) १ नियमानुसार निरन्तर ऋस्विक कर्म का शाता । १ सम्पक्ष | ऋद्ध ( व कृ० ) १ समृद्धशाली । सम्पत्तिशाली। २ वर्धमान बढ़ने वाला । ३ जमा किया हुआ | ॠद्ध: ( पु० ) विष्णु भगवान का नाम । ॠद्धम् (न० ) १ बढ़ती २ प्रत्यक्षी भूत प्रणाम । सिद्धान्त ऋद्धि: ( की० ) १ बड़सी समृद्धि | धनदौलत शक्ति । २ पूर्णता । वृद्धि २ सफलता | परिमाण | ४ अलौकिक ऋघ (धा० पर० ) [ ऋध्यति, रिजोति, ऋद्ध] १ फलना फूलना सफल मनोरथ होना । २ बढ़ना। बदती होना । ३ सन्तुष्ट करना | प्रसन्न करना । ॠधक ( क्रि० ) १ देना। २ मारना । ३ निन्दा करना | ४ लड़ना | ऋभुः (१०) १ देव देवता स्वर्ग में उत्पन्न से उत्पन्न । १८९ ) चड़ित | ऋभुत (पु०) इन्द्र का नाम २ स्वर्ग ३ वज्र ऋभुति (पु० ) इन्द्र का नाम । ॠम्बन् (वि० ) पटु द निपुण ॠल्लक ( पु० ) वाद्ययंत्र या बाजा बजाने वाला। ऋश्यः ( 50 ) सफेद पैरों का बारहसिंधा। ऋश्यम् (२० ) वध | हत्या } ऋश्यकेतुः ( ० ) १ प्रधुन के पुत्र अनिरुद्ध का ॠयकेतनः । नाम । २ कामदेव का नाम । (घा० पर० ) [ ] जाना समीप खाना | २ मार डालना । ( अर्पति ) : यहना | २ फिसलना | ऋषभः (g० ) १ साँख २ सर्वोकृष्ट सर्वोत्तम ( जैसे पुरुषर्षभः ) २ संगीत के सप्तस्वरों में से दूसरा सुपर की पूँछ | २ मगर की पूँछ । ६ जैनियों के मान्य अवतार विशेष 1-कूडः, (पु० ) पर्वत विशेष ध्वजः, (पु० ) शिव जी का नाम । ऋषभ (स्त्री०) १ स्ट्री जो पुरुष के रूप रंग की हो । २ गौ । २ विधवा स्त्री | ऋषिः (९०) क-संन्न-वृष्टा । २ अनुष्ठानादि । फर्म वडताने वाले सूत्रों के स्थयिता गोत्र, प्रवर, प्रदेशक। ३ प्रकाश की किरन मत्स्य- विशेष कुल्या. ( स्त्री० ) एक नदी का नाम जिसका उल्लेख महाभारत के तीर्थयात्रा पर्व में है। - सर्प (न० ) ऋषियों की तृप्ति के लिये जलदान विशेष | पञ्चमी, ( स्त्री० ) भाद्रमास की शुद्धा १ भी 1- लोकः, (पु० ) ऋषियों का लोक 1-स्तोमः, (पु० ) १ ऋषियों की प्रशंसा । २ यज्ञ विशेष जो एक ही दिन में पूरा होता है। - 1 ऋषः (पु० ) गर्मी । २ अँगारा थोखा | सृष्टिः (पु० स्त्री० ) दुधारा खाँदा २ तलवार | श् भाला यह आदि कोई सा इथियार । ऋष्य (पु०) मृगभेद - अङ्क, -केतमः, -केतुः, ( पु० ) अनिरुद्ध का नाम :--सूकः ( पु० ) पर्वत विशेष जो पंपासरोवर के निकट है - शृङ्गः (पु०) विभागडक ऋषि के पुत्र का नाम । ऋष्यकः ( पु० ) चित्रित या सफेद पैरों वाला हिरन ऋष्व ( वि० ) बड़ा ऊँचा अच्छा देखने योग्य ( पु० ) इन्त्र और अग्नि का नाम । ( ११० ) ऋ डू संस्कृत या नागरी वर्णमाला का श्राठवाँ वई । इसका उच्चारणस्थान मूद्र है। ॣ (अव्यया०) भय, बचाब या रोक, असेना, विकार, अनुकम्पा अथवा स्मृतिव्यजक अव्यय विशेष भ्रू ए

संस्कृत वर्णमाला का नयाँ वर्ष । शिक्षा में इसे |

सन्ध्यतर माना है। इसका उपारस्थान कराठ और तालु हैं। संस्कृत में मात्रानुसार इसके दीर्घ और दो ही भेद हैं। ल नोट: -वर्णमाला में ऌ, और ल भी हैं, किन्तु इनसे कोई शब्द आरम्भ नहीं होता। " + (पु०) विष्णु का नाम । (अन्यया०) स्मरण, ईष्यां, दया, आह्वान, तिरस्कार अथवा धिकार बोधक अभ्यय विशेष । एक एक (सर्वनाम० वि० ) १ एक इकहरा | अकेला : केवल २ जिसके साथ अन्य कोई न हो । ३ वही। उसी जैसा। समान। ४ । अपरिवर्तित । २ अद्वितीय | ६ मुख्य प्रधान | एकमेव । ७ बेजोड़ में बहुतों में यादो में से एक अक्ष ( वि० ) १ एफ पुरी वाला। २ काना |-अक्षः, ( पु० ) १ काक । २ शिवजी का नाम-थक्षर. ( वि० ) एक अक्षर का /- अक्षरं, (न० ) ओंकार । अझ (वि० ) १ एक ही ओर ध्यान लगाये हुए । २ ध्यानावस्थित ३ अचञ्चल । - अध्यं १ (न०) ध्यानावस्थित /~-अङ्ग (पु०) शरीररचक १ वुद्ध या मङ्गल ग्रह।-अनुदिष्ठं, ( न० ) एक पितृ के उद्देश्य से किया हुआ मृत कर्म (श्राद्ध) --ग्रन्त (वि० ) १ सुनसान | २ एक थोर अलहदा पृथक ३ एक ओर ध्यान लगाये हुए। ४ अत्यधिक विशाल । २ नितान्त निपट निसन्देह । निरन्तर ।-अन्तः ( पु० ) सुनसान स्थान। अन्तं, अन्तेन, अन्तःअन्ते (धन्यया०) १ अकेला। विशाल । नित्य | सदैव । २ अधिकता से। नितान्त । समूचा -अन्तिक, (वि०) अन्तिम । -श्रयन, (वि०) 1 ऋ: ( पु० ) १ भैरव का नाम : २ एक दानव था दैत्य का नाम । ॠ ( ध० पर० ) [ ऋणाति ईर्ण } जाना | हिलना। में /- 11- 1 ऐसा रास्ता जिस पर केवल एक ही चलने की पग- डण्डी हो। अयनम् (न० ) १ एकाग्रचित्त । २ निरालास्थान | ३ अड्डा मिलने की जगह | ४ एकेश्वरवाद ।-अर्थः, (पु०) १ एक ही वस्तु २ एक ही अर्थ । समान अर्थ - अहन्. अहः, (पु०) १ एक दिन की स्वाद २ एक ही दिन में पूरा होने वाला यज्ञ।-श्रातपत्र (वि०) एकछत्रराज्य ( साम्राज्य सूचक चिन्ह ) एकछत्र ।-आदेशः दो या अधिक अक्षरों के स्थान पर एक अक्षर का प्रयोग आवलिः, यावली (स्त्री०) १ इक- हरी मोती की माला | २ काव्यालङ्कार विशेष - उदकः ( पु०) सम्बन्धी | सगोत्री । - उदय, (पु०) --उदरा. (स्त्री०) सगा। भाई। सगी वहिन :-- उदिष्टम् एकोद्दिष्टम् (न०) एक के उद्देश्य से किया हुआ श्राद्ध । वार्षिक श्राद। - ऊन, (वि०) एक कम | --एक, (वि०) एक एक करके /--- - एकं (न०) --एकैकः (अव्यय०) एक एक करके अलग -शोघः ( पु० ) अविच्छिन्न प्रवाह | ~कर, (वि० ) एक ही काम करने वाला। -करा ( वि० ) १ एक हाथ वाला | २ एक किरन वाला ~~कार्य, (वि० ) मिल कर काम करने वाला। सहयोगी कार्यम्, (न० ) एक ही काम एक ही व्यवसाय - कालः, (पु० ) एक समय एक ही समय 1-कालिक,- कालीन, (वि०) १ एक ही बार होने वाला | २ सहयोगी समवयस्क कुण्डलः, ( पु० ) १ कुबेर का नाम | २ बलभद्र जी का नाम । ३ शेष जी का नाम। गुरु, गुरुक, (वि०) एक ही - अलग एक गुरु वाले। गुरु, गुरुकः ( पु० ) गुरुभाई | --चक्र, (वि० ) एकपहिया वाला-चक्रः ( पु० ) सूर्य का रथ। - चत्वारिंशत् ( श्री० ) ४१ / इकतालीस - चर ( वि० ) १ धकेला घूमने या रहने वाला | २ वह जिसके पास एक ही चाकर हो । ३ बिना सहायता लिये रहने वाला --चारिन् (वि०) चकेला । चारिणी (श्री०) पतिव्रता स्त्री-चित्त, (दि० ) केवल एक ही बात को सोचने वाला /- चित्तं, (न० ) एकमस्य | एकराय :-चेतस्, मनस्, (वि०) सर्वसम्मत/~-जन्मन्, (पु० ) १ राजा । २ शुद्ध |~जात (वि० ) एक हो माता पिता, से उत्पन्न। -जातिः, (स्त्री०) शूद्ध - जातीय, ( वि० ) एक ही वंश या कुल का - ज्योतिस, ( पु० ) शिव जी का नाम । -तान, ( वि० ) अत्यन्त दत्तचित्त!~~तालः, (पु० ) ऐक्य | सम- स्वर गान, नृत्य और वाद्य की सङ्गति सौर्यनिक -तीर्थिन, (वि० ) एक ही तीर्थ में स्नान करने वाले। एक ही सम्प्रदाय के (०) सहपाठी। गुरुभाई।-- त्रिंशत् ( स्त्री० ) ३१ | इकतीस ) -दंः, दन्तः. (५०) एक दाँस वाला अर्थात् गणेश जी-दण्डिन, (१०) संन्यासी भिक्षुक विशेष [ हारीतस्मृति में इनके चार भेद बतलाये गये हैं। १ कुटीचक २ बहूदक ३ हंस और ४ परमहंस। इनमें उत्तरोत्तर श्रेष्ठतर माने गये हैं।]-दृश-दृष्टिः, (पु०) 1 काना काक । २ शिव जी । ३ दार्शनिक - देव:, ( 5० ) 7 - परग्रहा। देशः, (पु०) : एक स्थान या जगह - 1 २ एक भाग या अंश। एक तरफ /-धर्मन,- धर्मिन, (वि०) एक ही प्रकार के एक ही वस्तु के बने हुए एक सम्प्रदाय वाले धुर धुरावह, ~~ धुरीण, (वि० ) केवल एक ही काम करने योग्य | २ एक ही जुए में जोते जाने योग्य नटः ( पु० ) किसी अभिनय का मुख्य पात्र। सूत्रधार।- नवतिः, (स्त्री० ) ६१ | इक्या- नवे पक्षः, (पु०) एक दल | एक थोर । -पत्नी (स्त्री०) १ सच्ची पत्नी | पतिव्रता पनी । २ सौत। --पदी (स्त्री० ) पगडंडी ।- पदे, - एक man ( अन्यया० ) सहसा अचानक -पाव ( पु० ) एक पैर विष्णु और शिव जी का नाम / पिङ्ग पिङ्गलः, ( पु० ) कुबेर का नाम /– पिण्ड, (वि० ) सपिचड 1- भार्या ( स्वी० ) पतित्रता स्त्री / - भार्थः, ( ५० ) केवल एक पक्षी रखने वाला 1-भाव, (वि०) सच्चा भक्त । ईमानदार । -यष्टिः, ( १० ) -यष्टिका (स्त्री०) इकलरा मोतीहार-योनि, (वि०) गर्भाशय सम्बन्धी एक ही वंश या जाति का - रसः, (पु० ) समान एक उङ्ग का। केवल एक रस - राजू,- राजः, ( पु० ) एक छत्र राजा - रात्रः, (पु०) ऐसी रस्म जो केवल एक ही रात में समाप्त हो जाय १- रिक्थिन्, ( पु० ) समान स्वत्वाधिकारी।- रूप, (वि० ) १ समान आकृति वाला एक ही ढङ्ग का(~-लिङ्गः, 1 1 + - - 3 १ वह शब्द जो समान लिङ्गवाची हो । २ कुबेर का नाम-वचनं, (न० ) एक संख्यावाची -वर्णः ( पु० ) एक जाति का वर्षका (सी० ) एक वर्ष की बचिया वाक्यता, ( स्त्री० ) सामअस्य । वारं, चारे, (पु० ) (अन्यथा० ) १ केवल एक बार २ तुरन्त अचानक सहसा । ३ एक बार एक मरतबा -विंशतिः, ( श्री० ) इक्कीस | २१ /-- विलोचन, (वि. ) एक आँख का काना। - विषयिन् (१०) प्रतिद्वन्द्वी -वीरः, (पु० ) एक प्रसिद्ध योद्धा येणः-वेणी (स्त्री० ) एक चोटी [जब पतिव्रता खियाँ पति से अलग हो जाती हैं. तब वे केशविन्यास न कर सब केशों को जोड़ बढोर कर उन सब की एक चोटी बना लेती है।] - शफः, (पु०) एक सुम वाले जानवर जैसे घोड़ा गधा आदि | -ङ्ग (वि० ) एक सींग वाला 1-शृङ्गः ( पु० ) १ गैड़ा | २ विष्णु का नाम :- शेषः, (पु० ) द्वन्द्व समास का एक भेद, जिसमें दो या तीन अथवा अधिक शब्दों का लेप कर एक ही शब्द रहे और वह अर्थ उन सब शब्दों का दे। जैसे पितरौ यहाँ पितरौ से अर्थ माता और पिता दोनों से है।-श्रुत, (वि० ) एक बार सुन्य हुआ। श्रुतिः (सी०) एकक ( १९२ एनस्विन् एकस्वरी वेद पाठ करने का क्रम विशेष, जिसमें एठ (घा० चात्म० ) [ एठते, पुठित ] विदाना | उदातादि स्वरों का विचार न किया जाय । --- सामना करना । सप्ततिः ( स० ) 101 इकहत्तर 1-सर्ग | एड (वि०) बहरा /- भूक (बि०) १ बहरा गूंगा | २ ( वि० ) दशचित्त /--सातिक (वि०) एक कापड ( 5 ) एक प्रकार की भेद। देखा हुआ ।-हायन ( दि०) एक वर्ष का एडकः (५०) १ भेड़ा | २ जङ्गली वकरा पुराना या एक वर्ष की उम्र का दारानी | एडका ( स्त्री० ) भेट्टी (स्खो०) एक की यदिया। एकक ( चि० ) ३ अकेला | २ समान सदा । एकतम (वि०) बहुतों में से एक एकतर (दि) दो में से एक २ दूसरा भिन ३ बहुतों में से एक। एकतसू (अव्यया० ) १ एक ओर से एक थोर । २ | एक एक कर के एकत:-अन्यतः (अभ्या०) १ एक तरफ / २ दूसरी तरफ | | एकत्र (अन्यय०) १ एक स्थान पर । २ साथ साथ सब एक साथ | [ ही समय में। एकदा (अयचा० ) १ एक बार २ एक ही बार एक एकघा (अध्या० ) १ एक प्रकार १२ अकेले ३ तुरन्त एक हो समय में एक साथ | एकल (चि० ) अकेला एकान्त एकशस (अध्यया०) एक एक करके । एकाकिन् (वि०) अदेखा। एकान्त | [११॥ ग्यारह एकादशन् ( वि० ) संख्यावाची विशेषण | एकादश (वि०) [स्त्री०-एकादशी] ग्यारहवाँ- 1 द्वार ( न० ) शरीर के ११ छेद या दरवाजे - रुद्राः (बहुवचन ) ग्यारह रुद्र । एकादशी (श्री०) चन्द्रमा के प्रत्येक पक्ष की ग्यारहवीं तिथि। विष्णु भक्तों के उपवास का दिवस । यह विष्णु सम्बन्धी उपवासदिवस है। एकीभाव. ( पु० ) संमिश्रण एकत्व ऐक्य एकीय (वि० ) एक का या एक से i एकीयः ( पु० ) एक का सहायक। एक पक्ष का एजू] ( भा०] पर० ) [ एअते, एजित ] १ कांपना २ हिलना हिलोरना। ३ चमकना । 1 हुआ। एजक ( वि०) हिलता हुआ। काँपता वाला काँपनेवाला । पजनं (न०) कम्प कापना । हिजने- पाः ) ( पु० ) काला मृग व्यजिनम् (न०) एसकः ) सुगची - तिजकः, भृत् (g० ) चन्द्रमा - दृश् (दि०) हिरन जैले नेत्रोंवाला । ( पु० ) मकर राशि | एणी ( स्त्री० ) काली हिरनी। एत (वि०) [स्त्री० पता, पती] रंगबिरंगा । मकीला । पतः ( पु० ) हिरन | बारहसिंहा। } एतद् (सर्वनाम० वि०) [ ४० एपः । श्री० पूषा | ज० एतद् ] यह यहाँ। सामने। एतदीय (वि०) इसका। इससे सम्बन्ध युक्त | एतनः ( पु० ) स्वांस | स्वांस त्याग पतर्हि (अन्यमा० ) अब इस समय वर्तमान समय में। एतदृगू ) (वि०) [स्त्री०- एतादृशी, एतादृत्ती ] पतादृक्षे १ऐसा इसकी सरह २ इस तरह का । एतावत् (वि०) १ इतना अधिक इतना बड़ा। इतने अधिक। इतने परिमाण का। इतना लम्बा चौड़ा। इतना दूर। इस प्रकार का इस किस्म का। पधू (धा० आत्म०) [ एधते, एधित ] १ बढ़ना । वड़ा होना। २ आराम से रहना। समृद्धिशाली होना । ( निवन्त ) बढ़ाना । बधाई देना । सम्मान करना । पधः (पु० ) ईंधन जलाने के लिये लकड़ी। एधतुः (पु०) मानव | २ अग्नि । पघसू (न०) ईंधन | पघा (स्त्री०) समृद्धि । हर्ष आनन्द । गधित (व० कृ०) १ वृद्धि युक्त वड़ा हुआ। २ पाला पोसा हुआ। एनस (२०) १ पाप । अपराध दोष | २ उत्पात जुर्म ३ क्लेश ४ भर्त्सना | कलङ्क | एनस्वत् } (वि० ) दुष्ट । परपी । पेक्य । ( वि० ) ऐसा और इल (अध्यय०) इस प्रकार से 1 - गुण (बि०) इस प्रकार के गुणों वाला। - प्रकार, -प्राय (वि० ) इस तरह का। इस किस्म का । -भूत ( वि० ) इस प्रकार के गुण- वाला। इस रकम का। ऐसा-रूप. (वि० ) इस किस्म का। इस शक्ल का 1~-विध (वि०) इस प्रकार का ऐसा (२०) कैथा की छाल । सुवासित | पपू ( धा० उभय० ) [ एषति एषते, एपित ] १ जाना। समीप जाना । २ किसी ओर शीघ्रता से जाना। एपगाः (पु०) लोहे का वाण एपणम् ( न० ) इच्छा कामना । खोज | एपणा ( स्त्री० ) इच्छा अभिलाषा | एषणिका (स्त्री०) सुनार का कांटा (तौलने का ) । यथा ( श्री०) कामना । इच्छा यषिन् (वि० ) इच्छा करनेवाला । कामना करने वाला | ( १९३ ) एना एमा (धन्यया०) यहाँ वहाँ। एनी ( स्त्री० ) बारहसिंघी । एमन् (पु०) रास्ता मार्ग । एरका ( श्री० ) तृण विशेष एक प्रकार की घास परंड : } ( go ) अरंडी का पौधा । परण्डः पर्वारुक ( पु० ) खरगुजा फकड़ी। एलकः ( पु० ) मेदा ) एलवालुकम् ) द्रव्य विशेष | एलविलः ( पु० ) कुधेर का नाम । पलवातुः [ दाने। एला (स्त्री०) १ इलायची का पौधा | २ इलायची के एतापसिं (स्त्री०) लज्जावन्ती जाति का एक गुवम | पलीका ( श्री० ) छोटी इलायची एव ( अन्वय० ) सादृश्य तिरस्कार। निश्चय ही " समानता परिभव || भी। एवं (अव्यय०) इस प्रकार और स्वीकार | प्रश्न | निश्चय | अवस्थ (घिo) ऐसी परिस्थिति में | -आदि- -- प्रकार का। - कार ऐ पे---संस्कृत वर्णमाला या नागरी वर्णमाला का दसवां वर्ण। इसका उच्चारण कण्ठ और तानु से होता है। पे: (१०) शिव जी का नाम ( अभ्यया० ) स्मरण, बुलावा, सम्बोधन व्यअक अन्य विशेष | ऐकधम् (अभ्य०) तुरन्त । फौरन । ऐकाधिकरणयं (न०) १ सम्बन्ध का एफटव २ एक पेकथ्यं (न० ) समय या घटना विशेष का एकत्व । कालिकत्व । समकालीन विद्यमानता । येक पत्थं ( न० ) सर्वोपरि प्रधानध्य इकब्रुवराज्य ऐकांतिक ) (वि०) १ सम्पूर्ण बिल्कुल । नितान्त । ऐकान्तिक २ निश्चित । ३ सिवाय । अतिरिक्त ऐकपत्रिक (वि०) [ स्त्री० - -ऐकपदिकी ] एक पद | ऐकान्यिकः ( पु० ) वह शिष्य जो वेद पढ़ने में एक से सम्बन्ध रखनेवाला। पेकपद्यं (न० ) १ शब्दों का योग | २ एक शब्द में [वाक्यता । एक- बना हुआ। एकमत्यं ( न० ) एक मत एक आशय ऐकागारिकः (g०) चोर | २ एक घर का मालिक ऐकायं ( न० ) एक ही वस्तु पर ध्यान लगाना। ऐकांगः (पु० ) ऐकाङ्गः (g०) } शरीररक्षक दल का एक सिपाही। ऐकात्म्यं (न० ) १ एकता ऐक्य आत्मा का ऐक्य | २ एकरूपता | समता ३ या के साथ एकरव होना । भूल करे। ऐकार्थ्य (न०) समान उद्देश्य वाला। अर्थ की सङ्गति। पेकाहिक (वि० ) [ स्त्री० - ऐकाहिकी ] एक दिन में होने वाला। एक दिन का । प्रति दिन का । ऐक्यं ( न० ) 1 एकत्व | मेल ३ समानता | सारश्य ४ i एकता | २ एकमस्य | योग । जोड़ सं० श० कौ० २५ पेक्षव ऐतव (वि० ) गले का। गन्ने से बना हुआ। गने से निकला हुआ। 1 पेक्षवं ( न० ) ३ चीनी खांड़ | २ मदिरा विशेष | पेशव्य (वि० ) गन्ने से बना हुआ। पेक्षुक ( वि० ) गन्ने के लिये उपयुक्त । पेक्षुकः ( पु० ) गन्ना होने वाला। पेनुमारिक (वि० ) गझे का गट्ठर ढोने वाला। पेदवाक (वि० ) इच्वाकु का | ऐदवाकः ) ( पु०) १ ईष्वाकु का वंशधर | २ इष्वाकु ऐदवाकु ) के वंशधर का राज्य ऐंगुव ) ( वि० ) [ स्त्री० - पैगुदी, पेङ्गुदी ] ) हिंगोट बृध से उत्पन्न पेंगु दं पेज़दम्) पेच्छिक ( वि० ) [ स्त्री०-ऐ]ि इच्छानु- वर्ती | इच्छानुसार | २ स्वेच्छित अनियमित | ऐडक (वि० ) [ स्त्री० - ऐडकी ] भेड़ का । ऐडकर (पु० ) भेड़ की एक जाति । ऐडविड: पेलविलः } ( पु० ) कुबेर का नाम । ( न० ) हिंगोट वृक्ष का फल । ऐशेयः (पु० ) काला बारहसिंधा। ऐसेयं ( न० ) रतिबन्ध । ऐतदात्म्यं (न. ) इस प्रकार का विशेष गुण या ऐतरेयन् (पु० ) ऐतरेय ब्राह्मण का पढ़ने वाला। ऐतिहासिक ( वि० ) [ स्त्री० - ऐतिहासिकी ] इतिहास सम्बन्धी । परम्परागत। [जानने वाल ऐतिहासिकः ( पु० ) इतिहास लेखक इतिहास का ऐतिहां (न०) परम्परागत उपदेश पौराणिक वृत्तान्त । पेंपर्यं (न०) मूलाधार । अभिप्राय | उद्देश्य | आशय । [1] पेनस ( न० ) पाप । पेंदव पेन्द्रव ( १६४ ) ऐंद्रः {}( वि० ) चन्द्रमा सम्बन्धी । ऐववः } ( १० ) चान्द्र मास । पेंद्र पेड } ( वि० ) [ स्त्री०~~-पेन्द्री ] इन्द्र सम्बन्धी । पेश

} (पु० ) अर्जुन और बालि का नाम १

पेंद्रजालिक ) ( वि० ) [स्त्री० पेन्द्रजालिक 1 पेन्द्रजालिकी] मायावी धोखे में डालने वाला। भ्रमोत्पादक २ जादू जानने वाला। पेन्द्रजालक: } ( 30 ) मायावी | मदारी। पेण (वि॰ ) [ स्त्री०-~-~-ऐणी ] हिरन का ( चर्म या | ऐजन } (वि० ) [ स्त्री० – ऐंघनी ] ईंधन का | पेंधन - ऊन ) । पैतिक ) ( दि० ) गंज के रोग से पीड़ित । पेन्द्रलुप्तिक) सिर का गंजापन | धनः -- ऐोय (वि०) [स्त्री॰—- पेणेयी] काले हिरन से उत्पन्न । | पेन्धनः } { पु० ) सूर्य का नाम । अथवा काले हिरन की किसी वस्तु से उत्पन्न ऐयत्यं: ( न० ) परिमाण | संख्या ऐरावणः ( पु० ) इन्द्र का हाथी। [ विशिष्टता युक्त | | ऐरावतः ( पु० ) 1 इन्द्र के हाथी का नाम । २ श्रेष्ठ हाथी ३ पातालवासी नागों के नेताओं में से एक नेता | ४ पूर्व दिशा का दिक्कुअर २ एक प्रकार का इन्द्रधनुष | पेरावती (स्त्री० ) १ ऐरावत हाथी की हथिनी । २ बिजली | ३ पञ्जाव की रावी नदी का नाम । इरा- वती नदी । पेरेयं (म०) १ मय | शराब | २ मङ्गल ग्रह । [नाम । पेलः (पु०) इला और बुध से उत्पन्न पुरुरवा का पेलवालुकः ( पु० ) एक सुगन्धि-द्रव्य का नाम । पेलविलः (पु० ) : कुबेर का नाम | २ मङ्गलग्रह | पेलेयः ( पु० ) १ एक सुगन्धि-द्रज्य २ मङ्गलग्रह ।

पेश (वि० ! [ स्त्री०-पेशी ] १ शिव जी का । २ राजकीय | राजोचित | पेंद्रिशिरः ) पेन्द्रिशिरः पेंद्रिः ) ( पु० ) १ इन्चपुत्र जपन्त, अर्जुन, वालि ।

} ( पु० ) हाथियों की एक जाति ।

ऐन्द्रिः ) २ काक | पेंद्रिय, ऐन्द्रिय | ( वि०) १ इन्द्रियों से सम्बन्ध पेंद्रियक, पेन्द्रियक रखने वाला । विषयभोगी। २ विद्यमान इन्द्रियगोचर | ऍट्री ) ( स्त्री० ) एक वैदिक मंत्र विशेष जिसमें ऐन्द्री इन्द्र की प्रार्थना है २ पूर्व दिशा मे विपत्ति । सङ्कट । १ दुर्गादेवी की उपाधि । २ छोटी इलायची | सर्वोपरि | 1 पेशान पेशान (वि० ) शिव जी का पेशानी (स्त्री०) १ ईशान उपदिशा । २ दुर्गा का नाम ।। पेश्वर (वि० ) [ स्त्री० - पेश्वरी ] विशाल | २ | बलवान् । शक्तिशाली | ३ शिव जी का । ४ सर्वे : परि। राजकीय ५ देवी। ( १९५ ) नम् पेपमस्तन ( वि० ) १ वर्तमान वर्ष का चालू ऐपमत्स्य ) साल का | पेश्वरी (स्त्री० ) दुर्गादेवी का नाम । पेश्वर्यम् ( म० ) १ प्रभुत्व । आधिपत्य | २ शक्ति । यल। शासन अधिकार | ३ राज्य | ४ धन सम्पत्ति 1 विभव | ५ भगवान की सर्वव्यापकसा की शक्ति सर्वव्यापकता । 1 ऐशमस् (अव्यया०) इस वर्ष के भीतर इस वर्ष में ऐष्टिक (वि० ) [स्त्री०- पेटिकी] यक्षीय | संस्कारा स्मक । शिष्टाचार सम्बन्धी ।— पूर्तिक, ( बि० ) इष्टापूर्त ( यज्ञ और धर्माने ) से सम्बन्ध युक्त पेहलौकिक (वि० ) [ स्त्री० - पेहलौकिकी ] इस लोक का सांसारिक दुनियवी । ऐहिक ( वि० ) [ स्त्री०- ऐहिकी ] १ इस लोक या स्थान का सांसारिक दुनियवी | २ स्थानीय | ऐहिकं (न० ) ( इस दुनिया का ) धंधा व्यवसाय | 1 [1] श्री ओ-संस्कृत वर्णमाला था नागरी वर्णमाला का ग्यारहवाँ वर्ण। इसका उच्चारण ओट और कण्ठ से होता है। इसके उदात्त, अनुदास, स्वरित तथा सानुनासिक भेद होते हैं। श्रो (पु०)का नाम ( अन्यथा० ) ओह का संक्षिप्त रूप पुकारने याद करने और दया प्रदर्शित करने के काम में प्रयुक्त होने वाला अव्यय विशेष ओक (पु० ) घर मकान २ छाया रखा। बचाव | आद। शरद् आश्रय । ३ पड़ी | यह । ओकणः ओकणिः }(I० ) खटमल । खडकीरा । ओकस् (न०) 1 गृह • मकान । २ आश्रय | शरण। (० पर० ) [ ओखति, थोखित ] १ सूख जाना २ योग्य होगा। पर्याप्त होना। ३ शोभा बढ़ाना। सजाना 8 अस्वीकृत करना रोकना घाड़ करना। } प्रोघः (पु० ) १ जल की बाढ़ जल की धार जल का प्रवाह २ बूबा | ३ ढेर | समुदाय | ४ सम्पूर्ण । समूचा ५ अविच्छिन्नता | सातत्य | ६ परम्परा परम्परागत उपदेश | ७ नटराज अन्यथात्मक रूप में इसका अर्थ होता है। सम्मान- पूर्ण स्वीकृति गम्भीर समर्थन । हाँ। बहुत धच्छा। मङ्गल स्थानान्तकरण बवाय | ३ ह्म प्राव ओज् (घा० उभय० ) [ योजति, भोजयति, भोजित ] बलवान होना । योग्य होना। योज ( वि० ) विषम ऊँचा 1 | भोजसू ( न० ) १ प्राणबल सामर्थ्य शक्ति | २ उत्पादनशक्ति | ३ चमकं । दीति | ४ काव्यालङ्कार विशेष ५ जल ६ धातु जैसी आभा श्रो सोन योजस्य } ( चि० ) महबूत | शक्तिशास्त्री । भोजवित् } (वि० ) मावृत । शक्तिशाली। श्रोडू: (पु० ) [ बहुवचन ] उड़ीसा प्रदेश और उड़ीसा प्रदेश वासी। | ओडूम् ( न० ) जवाकुसुम । [ छोर तक सिला हुआ। श्रोत (वि० ) बुना हुआ सूत से एक छोर से दूसरे श्रोतप्रोत ( वि० ) १ अन्तत एक में एक ना हुधा गुथा हुआ परस्पर लगा और उसका हुआ । २ सव ओर फैला हुधा । तुः (५०) विह्नी । ओंकारः ) ( ० ) १ एक पवित्र पद जो वेदाध्ययन | योदनः ( पु० र) के पूर्व और अन्त में कहा जाता है| २ | योदनम् (५० । भात। भोज्य पदार्थ भिगोया और दूध से रोचा हुआ है ओ मू (धन्यवा० । देखो ओङ्कार । फ: ( पु० ) गहरी खरोच श्रोरम्फः ) श्रोल (वि० भींगा। नम | सर । " ओलंडू ) (धा०] पर०) [थोलण्डति, ओलडपति, ओलण्डे ' ओलण्डित ] ऊपर की ओर फैंकना। उडालना ओल्ल (बि० ) नम | तर यो (पु०) शरीर बंधक घोषः (पु०) जलन । दाह । 1 प्रतिभू । झामिन । ः (पु० ) चरपराहट । तीच्यता । ओषधिः (स्त्री० ) १ रुखरी | गुल्म | २ काष्ठादि घोषधी दवाइयाँ । बसौंठ पौधा विशेष जो पकने योग्यता । लौलीनता । उपयुक्तता न्यायत्व | औौत्सर्गिक पर सूख जाता है। ईशः गर्भः, नाथः, (पु०) चन्द्रमा - ज. (वि०) पैथों से उत्पन्न । - धः, -पतिः (पु० ) १ दवाइयाँ बेचने वाला । २ वैय। हकीम | ३ चन्द्रमा प्रस्थः (पु० ) हिमालय की राजधानी । योष्ठः (पु० ) होंठ | अधर । -प्रघरौ, रं. (न० ) ऊपर और नीचे का ओठ | पुढं, (न० ) मुँह खोलने से जो मुँह में खाली स्थान बन जाता है श्रौ औ संस्कृत वर्णमाला का बारहवों वर्ण । इसका | चौडू: ( पु०) उड़ीसा प्रान्त का रहने वाला या यहाँ का राजा । उच्चारयस्थान कण्ठ और श्रोष्ठ है। यह स्वर च+ ओ के मिलाने से बनता है। श्रौ (अन्य ) आह्वान सम्बोधन, विरोध, और सङ्कल्प द्योतक अव्यय विशेष | (न० ) पढ़ने की विषय विधि । धिक्यं ( म० ) उध संहिता | औक्षकम् ( न० ) बैलों की हेद याबैलों का झुंड }< [ चिन्ता | श्रौत्कंठपं, औौकराठयं ( न० ) १ अभिलाषा । औत्कम् (न०) सर्वश्रेष्ठता | उस्कृष्टता औत्तमिः ( पु० ) १४ मनुओं में से एक मनु का नाम । औत्तर (वि० ) उत्तरी उत्तर दिशा का। औत्तरेयः (पु० ) परीक्षित राजा का नाम, जिनका श्रौत्तानपादः ? (पु०) १ ध्रुव जी का नाम । २ ध्रुव जन्म उत्तरा के गर्भ से हुआ था प्रौक्षम् भौयं (न० ) उग्रता | भयानकता निष्ठुरता औः (१०) बूड़ा जल की बाढ़ औचित्यम् ( न० ) औचिती ( श्री० ) श्रौत्तानपादिः । नाम का सितारा जो सदा उत्तर दिशा में देख पड़ता है। श्रौत्पत्तिक ( वि० ) १ प्राकृतिक प्रकृति सम्बन्धी । सहज | २ एक ही समय में उत्पन्न । औत्पात (वि० ) अपशकुनों का प्रतिकार करते हुए। श्रौत्पातिक (वि० ) श्रमाङ्गलिक | विपत्तिकारक। अकल्याणकारक । सत्यस्व श्रौच्चैःश्रवसः (पु० ) इन्द्र के घोड़े का नाम । प्रौजसिक (वि० ) शक्तिशाली । बलवान । औजस्य (वि० ) शक्ति और वल के लिये लाभदायक। औजस्य ( न० ) शक्ति | जीवनी शक्ति / योज्ज्वल्यम् ( न० ) चमक । कान्ति। औधिक (वि. ) नाव से नदी पार करना। औडुपिकः ( पु० ) नाव या बेड़ा का यात्री । औौडम्वर औदुम्बर गुलर 1 ओष्ठ्य (वि०) ओठों का । २ ओठों की सहायता से उच्चारित होने वाले वर्ष अर्थात् उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म ओष्ण (वि० ) गुनगुना। थोड़ा गर्म औत्पातिकम् (न० ) अपशकुन धमङ्गल । औौत्सङ्गिक ( वि० ) कुल्दे पर रख कर ढोया हुआ या कुल्हे पर रखा हुआ। प्रौत्सर्गिक ( वि० ) १ सामान्य विधि के योग्य | २ त्याज्य छोड़ने योग्य ३ प्राकृतिक | स्वाभाविक । ४ औत्पत्तिक । ( १९७ ) औत्सुक्य ( न० ) १ चिन्ता बेचैनी व्याकुलता । २ उत्कण्ठा उत्सुकता | श्रौदक ( दि० ) जलव । जल से उत्पन्न होने वाला । रसीला । जल सम्बन्धी । औदचन (वि० ) बाल्टी या घड़े में रखा हुआ | औदनिकः ( पु० ) रसोइया । औदरिक (वि० ) पेटू | मरभूका | भोजनभट्ट | औदर्य (वि० ) १ गर्भस्थित | २ गर्भ में प्रविष्ट । श्रौद श्वितं (न०) माठा जिसमें बराबर का पानी मिला हो । [ २ अर्धसम्पत्ति । श्रौदर्यम् ( न० ) १ उदारता। कुलीनता । बढ़प्पन । औदासीन्यम् ( न० ) ३१ उपेक्षा | उदासीनता । औदास्यम् ( न० ) ) निरपेक्षता | २ एकान्तता । ३ वैराग्य | श्रौदुस्वर (वि० ) गुलर की लकड़ी का बना हुआ। औदुम्बरः ( पु० ) वह प्रदेश जहाँ गूलर के वृक्षों का आधिक्य हो। श्रौटुम्बरी (स्त्री० ) गूलर के वृक्ष की डाली। औदुम्बरम् ( न० ) : गूलर के वृक्ष की लकड़ी। २ गूलर के फल। ताँबा । श्रौत्रम् ( न० ) उदाता का पद । श्रौद्वालकम् (न०) कहुआ एवं चरपरा पदार्थ विशेष । शिक (वि० ) [स्त्री०―― औद्देशिकी ] प्रकट करने वाला । निर्देश करने वाला। श्रौद्धत्यं ( न० ) १ उदण्डता अक्खड़पन उम्रता उजड़पन २ ता ढिठाई। ३ साहस | श्रौद्धारिक (वि० ) [ स्त्री०- प्रौद्धारिकी ] पैतृक सम्पत्ति से लिया हुआ । बँटवारे के योग्य । औपरिष्ट औषस्तिक) (पु० ) १ ग्रहण २ चन्द्र या सूर्य औपग्रहिकः । ग्रहण | अप्रधान | | औपचारिक ( वि० ) [ स्त्री० - औपचारिकी ] उपचार सम्बन्धी जो केवल कहने सुनने के लिये हो। बोलचाल का। जो यथार्थं न हो। गौण [घुटनों के समीप का | प्रौपजानुक ( वि० ) [ स्त्री०- औौपजानुकी ] यौपदेशिक (वि० ) [स्त्री० - औपदेशिकी] १ जो उपदेश से जीविका करता हो। जो पढ़ा कर अपना निर्वाह करता हो । २ उपदेश से प्राप्त । श्रौपधर्म्य (न०) १ मिथ्या सिद्धान्त | मतान्तर । २ अपकृष्ट धर्म अधर्म-धर्म-सिद्धान्त । औपाधिक (वि० ) [स्त्री०- श्रौपाधिकी] प्रपञ्ची । धोखेबाज छनी । कपटी । उपनयन सम्बन्धी | औषधेयं ( न० ) रथ का पहिया रथाङ्ग औपनार्यानिक ( वि० ) [ स्त्री०—–औपनायनिकी ] [धरोहर सम्बन्धी | औपनिधिक (वि० ) [ स्त्री०-औपनिधिकी ] औपनिधिकम् (न० ) धरोहर । अमानत । बंधक औपनिषद् (वि०) [स्त्री०-यौपनिषदी] १ उपनिषदों द्वारा जानने योग्य | वैदिक । ब्रह्मविद्या सम्बन्धी । २ उपनिषदों पर अवलम्बित । उपनिषदों से निकला हुआ । (न०) श्रोत का जल । २ सेंधा निमक। औदाहिक (वि०) [स्त्री० श्राहकी] : विवाह के समय मिली हुई वस्तु । २ विवाह सम्बन्धी । औद्राहिकम् ( न० ) स्त्री को विवाह के अवसर पर मिली हुई वस्तु । औधस्य ( म० ) थन से निकला हुआ दूध । औ ( न० ) उचाई उचान। औपक (चि० ) [ स्त्री० - औकर्णिकी ] कान के समीप वाला । औपकार्यम् ( न० ) १ बासा । २ खीमा । तंबू । चौपनिषदः (पु० ) : ब्रह्म । २ उपनिषदों के सिद्धान्त का अनुयायी या मानने वाला । औपनविक (दि०) [स्त्री० --औपनीविकी] नीवि के पास का। भोती की गाँठ के पास लगा हुआ । औपपत्तिक (वि० ) [ स्त्री० -- औपपत्तिकी ] १ तैयार | पहुँच के भीतर | २ योग्य | उपयुक्त | ३ कल्पनात्मक वाचनिक । औपमिक (वि० ) [स्त्री० –औपमिकी] १ उपमा के योग्य | तुलना के योग्य | २ उपमा से प्रदर्शित | औपम्यम् (वि० ) तुलना । समानता | सादृश्य | औपयिक (वि०) [स्त्री०——औषयिकी] १ उपयुक्त । योग्य | उचित । २ प्रयोग द्वारा प्राप्त । औपक (पु० उपाय । सदुपाय | प्रतीकार । प्रौपरिट (वि० ) [ स्त्री०- श्रौपरिष्टी] ऊपर का ( १९८ ) औषणम् औरभ्रकम् (न० ) भेड़ों का झुण्ड । औरकिः ( ० ) गरिया। मेपपाल । औरस (वि० ) [ स्त्री० औरसी] छाती से उत्पन्न। अपने वास्तविक पिता के वीर्य से उत्पन्न । श्रौरसः (०) विहिपुत्र | २ न्याय । वैध । विहित आईनसङ्गस औरसी (स्त्री०) विहित पुत्री औरस्य देखो, औरस । [स्त्री०-ौ ) भौांक [स्त्री०यौ यौगिक [स्त्री०-ौर्थिकी] |ौकालिक (वि० ) [स्त्री०- औौर्षकालिकी ] पीछे की। पिछले समय की [कर्म | प्रोपवेशिक (वि० ) [ स्त्री०-यौपवेशिको ] सारा भोवदेहम् (न०) प्रेतक्रिया। दसगात्र । सपिण्डदान समय लगा कर सेवा वृत्ति द्वार भाजीविका उपार्जन | हि ) ( चि० ) मृत पुरुष से सम्बन्ध युक्त । करने वाला। प्रेतकर्म सम्बन्धी । औपसंख्यानिक ( वि० ) [स्त्री०-ौपसंख्या कम ) ( न० ) प्रेतकर्म। येष्टि । ध्वदेहिक औौदैहिकम् । मरने के बाद किये जाने वाले कर्म विशेष | [जवा से उत्पन्न निकी ] म्यूनतापूरक यौगिक औौपसर्गिक (वि० ) [ स्त्री० -श्रौपसर्गिकी ] १ उपस सम्बन्धी | २ विपत्ति का सामना करने की योग्यता से सम्पन्न | ३ भाषी सूचक 19 बावादि सन्निपात से उत्पन्न औपथिक (वि० ) व्यभिचार से पेट पालने वाला। औपस्थ्यं ( न० ) मैथुन स्त्रीसहवास । औपहारिक (वि० ) [ स्त्री० --औपहारिकी ] भेंट धौर्ष (वि०) [स्त्री० -यौव] १ बर्ष सम्बन्धी | २

( पु० ) भृगुवंशीय एक प्रसिद्ध ऋषि ।

२ याडवानल ३ iter मिट्टी का free -४ पौराणिक भूगोल का दक्षिण भाग, जहाँ देयों का निवास है। पावर सुनियों में से एक। लूकं (न० ) उल्लुओं का समूह औलूक्यः ( पु० ) कयाद का नाम जो वैशेषिक दर्शन के प्रचारक थे। या चढ़ाया सम्बन्धी । औौवयं (न०) अधिकता। अध्याधिक्य विषमता। 1 तोता । अति सोचयता। औपरोधिक औपरोधिक (वि० ) ) १ कृपा या अनुग्रह सम्बन्धी श्रौपरोधिक (वि०. )२ रोक डालने वाला । सामना करने वाला। औरोधक (५०) पीलू वृक्ष की का औपरोधिक ठंडा| [ पत्थर का | श्रौपल (वि० ) [ स्त्री० औौपली ] पथरीला औपयस्तं (न० ) कढ़ाका । उपवास । औपवस्त्रम् ( ० ) १ उपवासोपयुक्त भोजन । फला- हरि २ उपवास। औपचास्यम् (न०) उपवास औपचा (वि० ) सवारी करने योग्य | श्रौपवाः (पु० ) १ गजराज २ राज-यान शाही सवारी । यौपाकरणम् (न० ) वेदाध्ययन का आरम्भ | औषधिक (वि० ) सापेक्ष । २ उपाधि श्रौपाध्यायक (वि० ) [ स्त्री०-औपाध्यायकी ] अध्यापक से प्राप्त सम्बन्धी [सम्बन्धी | श्रौपासनी ] गृह्णाग्नि श्रौपासन (वि० ) [ स्त्री० औपासनः (पु०) साग्नि श्रम् (अन्य ) शूद्रों के उच्चारणार्थ प्रणव का रूप विशेष | [ क्योंकि शूद्रों के लिये ओं का उच्चारण वर्जित है।] (वि०) ऊनी। उनसे बनी । और (वि० ) [ स्त्री०-औरश्री ] भेड़ से उत्प या भेड़ सम्बन्धी | [मौटा ऊनी कंवल । औौरभ्रम् ( न० ) १ भेड़ का माँस ।२ अनीवस || श्रौशन ) (दि०) [स्त्री० श्रौशनी, प्रौशनसीं] औशनस उशना सम्बन्धी या उशना से उत्पन्न अथवा उशना से अधीत । श्रौशनसम् (न० ) उशना कृत स्मृति या धर्मशास्त्र | औशीनरः ( पु० ) उशीनर का पुत्र | | धौशीनरी ( स्त्री० ) पुस्या की रानी का नाम । औौशीरं (ज०) १ पंखा या चौरी की डंडी | २ शय्या . बैठकी जैसे कुर्सी जुदा यादि । ४ खस पड़ा हुआ उपटना विशेष । ५ खस की जड़ ६ पर यौषणम् (न० ) चरपराहट । २ काली मिर्च | ३ औषधम् औषधम् ( न० ) १ जड़ी बूटीयो २ दवाई ३ खनिज पदार्थ | औषधिः ) ( स० ) १ जड़ी बूटी । २ काष्ठादि औषधी चिकित्सा के पदार्थ २ बूटी जिससे अग्नि निकलता है। यथा “विरमन्तिम व्यसितमोषधयः ।" ककुझिन् ( वि० ) [ स्त्री०-औषसिकी, औषिकी सुराहे या तड़के का उत्पन्न । (चि० ) [ स्त्री-] ॐ सम्बन्धी या ऊँट से उत्पन्न | २ ऊठों के बाहुल्य से युक्त | । धौ (न ) ऊँटनी का दूध श्रौष्टकम् ( न० ) ऊँटों का समुदाय श्रौष्ठ्य (वि० ) ओठ सम्बन्धी । घोट से उच्चारित होने वाला।-वर्णः, ( 50 ) थोड से उच्चारित होने वाले वर्ण अर्थात् उ, ऊ, १, कू. १. भू. म. तू, द्, ।स्थान, ( वि० ) ओोठों से उच्चारित । --स्वरः (पु० ) श्रठ से उच्चारित स्वर | श्रौषसिक भौषिक किरातार्जुनीय औषधीय (वि० ) दवा सम्बन्धी। यह दवा जिसमें जड़ी बूटी पढ़ी हो। यौपरकम् } ( न० ) सँधा निमक औपस (वि० ) [ स्त्री०-औौपसी ] प्रातःकाल औष्णाम् (न० ) गर्मी | गरमाहट श्रौपाय सम्बन्धी सबेरे का औषसो ( श्री० ) तड़के बढ़े सवेरें । श्रयम् } ( ज० ) गर्मी । क क - संस्कृत अथवा नागरी वर्णमाला का प्रथम व्यअन । कंसकम् ( २० ) काँसा | इसका उच्चारणस्थान करठ है। इसको स्पर्शवर्ण | भी कहते हैं। ख, ग, घ, ङ, इसके सवर्ण है। कः ( पु० ) १ मा २ विष्णु १३ कामदेव । ४ -शब्दकल्पद्रुम। ककू ( धा० आत्म० ) [ ककते, ककित ] : चाहना | अभिलाषा करना। ३ घमंड करना । ४ चंचल होना | अग्नि ५ हवा पवन ६ यम ७ सूर्य ८ जीव | ३ राजा । १० गाँठ या जोड़ । 11 मोर । ककुजल: } ( पु० ) चातक पष्वी १ मयूर १३ पछी १४ 1 १२ पक्षियों का राजा मन । १२ शरीर । १६ फाल | समय । १७ बादल | मेघ १८ शब्द स्वर| १३ वाल| केश | कम् ( न० ) १ प्रसन्नता एवं | २ जल | ३ शिर | कंसः ( पु० ) १ जल पीने का पात्र | गिलास | कंसम् ( स्त्री० ) 3 घंटी कंटोरा २ कौसा| ३ परिमाण विशेष, जिसे चादक कहते हैं। कंसः ( पु०) उग्रसेन के पुत्र कंस का नाम यह मथुरा का राजा था और बड़ा अत्याचारी था। इसे श्रीकृष्ण ने मथुरा ही में मारा था। अि यरातिः- जित्, कृष्, ~द्विष्,-हन्, (वि०) कंस का मारने वाला। अर्थात् श्रीकृष्ण भगवान | -अस्थि ( न० ) काँसा 1-कारः, ( 50 ) एक वर्णसहर जाति। कसेरा । -- - कंसकारकारी बाह्मणारखंभूवतुः । ककुद (स्त्री०) 3 चोटी शिखर २ मुख्य प्रधान ३. बैल का कुव्ब ४ सय राजकीय चिन्ह (जैसे + चमर आदि) -स्था (पु० ) राजा पुर अय की उपाधि सूर्यवंशी राजा विशेष यह इषवाकु के वंश में उत्पन्न हुए थे। 1 ककुदः (पु० ) (१ पहाव की चोटी पर्वत ककुदम् (न० ) ) शिखर । २ कौहान | कुव । ३ मुख्य प्रधान राजचिन्ह | ककुद्मत (वि० ) कुन्त्र वाला । ( पु० ) ( शिखर वाला ) १ पहाड़ १-२ (कैसा भी ) पहाद । ककुशती ( श्री० ) कमर रहा ककुमिन् (वि० ) १ शिखावाला। कुम्ब वाला (पु०) बैल २ पहाड़। २ रैवतक राजा का नाम । ( २०० कुत् (पु० ) कुब वाला भैसा । 1 ककुन्दरम् (न०) जघन कूप कूप का सूया। रॉन । ककुम् ( स्त्री० ) १ दिशा | २ कान्ति सौन्दर्य ३ चम्पा के फूलों की माला ४ धर्मशाख १५ चोटी | शिखर । [ अर्जुन सुद्ध ककुमः ( पु० ) १ बीखा की झुकी हुई लकड़ी । २ ककुभं ( म० ) फूटज वृक्ष का फूल | कक्कुलः (पु०) कुलगुरु कफोल ( पु० ) ककोली ( श्री० ) शीतलचीनी । गन्धद्रथ्य | बनकपुर । [ हँसी का । ककूट (चि०) : सस्त । कड़ा | ठोस । २ हास्य । कक्खटी (स्त्री० ) चाक खड़िया मिट्टी । कक्षः (पु० ) १ छिपने की जगह २ छोर उस वस्त्र का जो सब धत्रों के नीचे पहिना जाता है। धोती का छोर ।इलता या वेल विशेष ४ घास | सूखी घास । ५ सूखे वृक्षों का वन । ६ बगल | काँख १७ राजा का अन्तःपुर ८ जंगल का भीतरी भाग। ६ भीत | पाखा | १० भैसा ११ फाटक | १२ दलदल वाली ज़मीन कक्षं ( न० ) १ तारा २ पाप कक्षा (स्त्री० ) १ कॅखोरी । २ हाथी बाँचने की जंजीर या रस्सी ।२ कमरबंद | इजारबंद | ४ धारदीवारी । दीवाल ५ कमर मध्यभाग ६ आँगन सहन ७ हाता| घर के भीतर 1 कोठा का कमरा या कोठा नि कमरा अन्तःपुर १० सादृश्य । ११ उत्तरीय १ वस्त्र । डुपट्टा । १२ आपत्ति । एतराज प्रतिवाद । १३ प्रतिद्वन्द्वता हिस छोड़ | १४ कॉलोटा ( कमर में बाँधने का वस्त्र विशेष) १५ पटका | कमरबंद | १६ पहुँचा - प्रग्निः, (पु० ) दावानल अन्तरम् ( म० भीतर का या नीज़ कमरा ।—प्रवेत्तकः (पु) 1 ३ जनानी ढ्योड़ी का दरोगा। २ राजकीय उद्यान का अफसर ३ द्वारपाल कवि शायर | ५ लम्पट ६ खिलाड़ी | चितेरा ७ अभिनयपात्र । ८] प्रेमी आशिक -घरं, (न० ) कंधे का जोड़पा (पु०, कड़वा/पटा (पु० ) 1 ) कङ्कालयः लंगोट शायः, } - पुढा, (पु० ) काँख । बराल - शायुः, ( पु० ) कुत्ता। श्वान । कक्ष्या ( खी० ) १ हाथी या घोड़े का जेवरबन्द २ स्त्री का कमरबंद या नारा ३ उत्तरीय वस्त्र । दुपट्टा उपन्ना ४ चेंगे आदि की गोट। मरञ्जी | ५ अन्तःपुर का कमरा ६ दीवाल | हाता |७ सादश्य । कख्या ( स्त्री० ) हाता। घेरा बड़े भवन का खगढ। कंक, कङ्क: (पु०) बृहत वक विशेष | २ आमों की जातियाँ ३ यमराज का नाम ४ रात्रिय | १ बनावटी ब्राह्मण व विराट के यहाँ अज्ञातवास की अवधि में युधिष्ठिर ने अपना नाम कङ्क ही रखा था।-पत्र, (वि० ) वक विशेष के पखों से सम्पर्क -पत्रः, (पु०) तीर । बाय:त्रिन्, ( पु० ) (=कङ्कपत्रः) ~मुखः : पु० ) चीमटा | - शायः ( पु० ) कुत्ता - १ कवच । सैनिक कंकटः कङ्कटः ( पु० ) कंकटका, कटकः (go ) ) उपस्कर | २ अङ्कुश कंकणः कङ्कणः (०) १ कलाई में पहिनने कंकणं, कङ्कणम् (ज० ) ) का आभूषण विशेष । २ कड़ा। पहुँची। ककना । ३ विवाहसूत्र | कौतुक सूत्र | ४ साधारणतः कोई भी आभूषण | चोटी | फलगी। कंकण कङ्कणः S ( पु ) पानी की फुहार। यथा- नितम्हारा नवयुगले कुमरस्। उद्भट कंकणी, कणी (स्त्री० ) ) 1 घूँशुरू | २ बजने कंकणिका कङ्कणिका (स्त्री०) ) वाला आभूषण कंकतं, कङ्कृतम् ( न० कंकतः कङ्कतः कंकती, कङ्कृती (स्त्री० कंकतिका कतिका (को० ( १० ) फंधी | बाल कारने की कंवी या कंघा ( न० ) मठा जिसमें जल मिला हो । कंकर कङ्करम्, कंकालं, कङ्कालम् (न०) ) ढाँचा । अस्थिपञ्जर । कंकालः कङ्कालः ( पु० ) ठठरी | हड्डियों का - पालिन्. ( पु० ) शिव जी का नाम । -शेष, ( वि० ) जिसके शरीर में केवल हड्डियाँ हड्डियाँ ही रह गयी हो । कंकालयः ) | कङ्कालयः ) ( पु० ) शरीर देह | जिस्म | ● ककेलः, कला ) ( पु० ) अशोक वृक्ष | कंकेल्लिक) कछुः (स्त्री० ) खाज खुजली । कच्छू (स्त्री० ) कछुर (वि० ) १ खजुहा | २ लम्पट | विषयी | कज्जलं ( न० ) १ काजल । २ सुर्मा । स्याही | मसी/ --ध्वजः, ( पु० ) दीपक | अॅप - रोचक (3० ) -- रोचकम् ( म० ) डीवट | w कच् (धा० परस्मै०) [कचति, कचित ] शब्द करना । पतीला | चिल्लाना। शोर मचाना । (उभय०) याँधना कचू (घा० आत्म० ) २ बाँधना : २ धमकाना । नस्वी करना | २ चमकाना | कंकोली, कन्ट्रोली कंगुलः ) ( पु० ) हाथ देखो ककोली। ( २०१ ) कंचार: कत्रः (१०) केश (विशेष कर सिर के) २ | सूखा | कञ्चारः } ( ४० ) १ सूर्य | मदार का पौधा । और पुरा हुआ धाव | गुत ३ बंधन | ४ वस्र | कंचुकः (०) कृषय | २ सर्पचर्म | की गोट या संजाफ़ । ५ बादल ६ बृहस्पत्ति के कबुका चुली ३ पोशाक । परिच्छव ४ पुत्र का नाम । चुस्त पोशाक १२ अंगिया। चोली। जाफट । ( न० ) बालों का बुध- राखापन ।-—आानित, ( वि० ) खुले या बिखरे कंकाल: } ( पु० ) सर्व । साँव । बालों वाला-ग्रहः ( पु० ) बाल पकड़ने वाला 1-मालः, स्त्री० ) धूम धुआँ । कचंगनं ( जु० ) वह सगठी जहाँ त्रिकने के लिये कचडूनं ) आाये हुए माल पर कोई कर वसूल न किया आये ! कबंगलः ( पु० ) समुद्र कथा (स्त्री० ) हथिनी । कचाकवि ( अभ्यया० ) एक दूसरे के बाल पकड़ कर खींचना और लड़ना कच्कटिका काटक } ( स्त्री० ) भगा की चुट Searc कच्छा ( स्त्री०) झींगुर। मिली। कंबुकित ) (वि० ) 1 कवच धारण किये हुए । कंचुकिन् } (वि० ) ३ कवचधारी । ( पु० ) १ कम्युकित २ पोशाक पहने हुए । कम्युकिशनानी योड़ी का रखवाला । शयन- गृह की परिचारिक । २ लम्पट | व्यभिचारी / २ सर्प ४ द्वारपाल ५ यव | जा। श्रन्न विशेष | कंडुलिका,कञ्बुलिका } (स्त्री० ) चोखी । अँगिया । | कंजः ) (१०) १ बाल । २ ब्रह्म का नाम /-नामः कञ्जः ) ( पु० ) विष्णु का नाम । कंजम् ) ( न० ) १ कमल । २ अमृत | कक्षम् । फचादुर: ( पु० ) जलकुकुट कञ्चर ( वि० ) १ युरा मैला २ दुष्ट नोच । अधःपतित | [अन्यय विशेष | पु० कश्चित् ( अध्यया० ) प्रश्न, हवं, और मङ्गल व्यञ्जक | कंजकी, कक्षको (सी.) ) ( कच्छः (पु० ) ) ३ तट | हाशिया। सीमा सीमा-कंजलः, कञ्ञ्जनः (पु० ) कच्छम् ( न० ) ) वर्ती देश । २ दलदल | ३ गोट | मरज़ी | ४ नाव का एक हिस्सा ५ कछुए का शरीराङ्ग विशेष ~अन्तः, ( ० ) किसी नदी या फील का तट पर, (पु० ) का पी, (स्त्री०) १ कछवी २ वीणा विशेष-भूग ( स्त्री० ) चुलदल | पक्षी विशेष । कामदेव । २ पक्षी विशेष । कंजरः, कञ्जरः ) ( पु० ) १ सूर्य । २ हाथी । कंजार, कञ्जारः ३ उदर | पेट | ४ मझा की उपाधि | कंजलः ( पु० ) पक्षी विशेष | कजलः कटू ( धा० पर० ) [ कढति, कठित ] २ ढकना । १ जाना । कटः ( पु० ) १ चटाई | २ कूल्हा ३ कूल्हा और कमर | ४ हाथी की कनपटी २ घास विशेष | ६ शव । लाश । ७ शव वाहन-शिविका । समाधि सँ० श०. कौ०-२६ कटक } मण्डप पाँसों के फेंकने का विशेष प्रकार है अतिरिक्त थाधिक्य १० सीर बाण १३ रवाज रीति | १२ कयरस्तान । अतः, (पु० ) भलक कनखियों देखना --उदकं (न० ) १ सर्पण का जल । २ हाथी का सद। ३ वर्णसङ्कर जाति विशेष | [ शूट्टायां वैश्यतश्चर्यात् कटकार ईति स्मृतः -- उशना |] २ चटाई बनाने वाला | धकार। कॉलः, (पु० ) खखारदान | पीक दान -खादकः, (पु० ) १ स्वार गीदड़ का पात्र घोषः, (पु० ) २ काक | ३ कांच घूतना, - (पु०) गरियों का पुरवा - पूतनः, (30) ( स्त्री०) एक प्रकार के प्रेतात्मा १ शिव २ इद्रभूत या पिशाच | ३ की। कीड़ा | - प्रोथ: (पु० ) -प्रोथे, ( न० ) चूत | नितंब | मालिनी, (स्त्री०) मदिरा | शराब | कटकः ( पु०) (१ पहुँची। कड़ा २ मेखला । कटकम् (२० ) ) कमरबन्द | ३ डोरी।४ जंजीर की कड़ी । २ चढ़ाई। ६ सँधा निमक १७ पर्यंत पा ८ उपत्यका ६ सेना १० राजधानी ११ घर मकान १२ चक्र पहिया वृत्त कटकिन् (पु० ) पर्वत पहाव । कटंकटः } ( पु० ) आग १ २ सोना | ३ गणेश कटङ्कट: 5 जी का नाम । ( २०२ ) कठिन कढीरकं (न०) १ शरीर का पिछला भाग २ पुट्टा | चूतड़ ई 7 कटु (वि० ) [ स्त्री०-डु, कड़ी] १ चरपरा | तीता पटरसों में से एक [छ प्रकार के रस ये हैं १ मधुर, २ कटु. ३ अम्ल, ४ वित्त, २ कवाय और ६ लवण] ३ सुवासित सुगन्धित ४ दुर्गन्धित १ उभ | तीषण। प्रतिकूल अप्रीतिकर | ६ ईर्ष्यालु ७ तेज़ । प्रचण्ड । -(न०) अनुचित कर्म | २ अपमान भिकार फटकार--कीटः, -कीटकः, (पु० ) डाँस मच्छड़काण, ( पु० ) टिटिभ पक्षी । -प्रन्थि, (न० ) सोंठ । -निलावः, ( पु० ) यह अनाज जो जल की बाद में जलमग्न न हुआ हो । - मोदं, (न० ) सुगन्धित द्रज्य विशेष - रवः (g० ) मैड़क | कटिका ( स्त्री० ) कूल्हा । करिहाँव । कटीरः कटीरम् }1 गुफा । चूल्हा । कदि । - मण्डूक कटुः ( पु० ) चरपराहट | सीतापन | कटुक ( वि० ) : सीक्षण | चरपरा | २ प्रचण्ड | तेज़ ३ अप्रीतिकर अप्रिय कटनम् ( न० ) सफान की छत, खपरैल या छप्पर कढाहः (५०) १ कढ़ाह। बड़ी कड़ाही २ खप्पर । ३ कूप । होला । कठिः } (स्त्री० ) १ कमर २ नितम्ब ३ हाथी | कठः (पु० ) एक ऋषि का नाम । यह वैशम्पायन कढी ) का के शिष्य थे। यजुर्वेद के पढ़ाने वाले यजुर्वेद की · एक शाखा इन्हीं के नाम से प्रसिद्ध है । - धूर्तः, (पु०) कठशाखा में निष्णात ब्राह्मण । - श्रोत्रियः, ( पु० ) यजुर्वेद की कठशाखा में - गण्डस्थल 1 -वटं, ( न० ) करिहा करिहाँव । ( न० ) कमरबन्द | कमर में बाँधने का कपड़ा प्रोथा (पु० ) चूतड़ | --मालिका, ( स्त्री० ) स्त्रियों का इज़ार बन्द नारा। -रोहकः, ( पु० ) हाथी का सवार। हाथी पर सवारी करने वाला शीर्षकः, ( पु० ) कूल्हा । करिहाँब बजनी करधनी -सूत्रं. पारङ्गत मारहाण इजारबन्द | कटुकः (पु०) चरपराहट सीतापन [ गँवारपन | कटुकता (स्त्री० ) अशिष्ट व्यवहार अशिष्टता कटोरं ( न० ) समयपात्र मिट्टा का वर्तन । कटुरं ( न० ) जलमिश्रित छाछ या माठा | कढोलः ( पु० ) १ चरपरा स्वाद | २ निम्नवर्ण का पुरुष जैसे चाण्डाल। कळू ( धा० परस्मै० ) कष्ट में रहना । कठमः (पु०) शिव जी का नाम । शृङ्खला (स्त्री० ) | कठर (वि० ) कड़ा | सख्त | ( न० ) कमरबन्द | कठा: ( पु० ) कठऋऋषि के अनुयायी । कठिका ( स्त्री० ) खढ़िया। चाफ । कठिन ( वि० ) १ का सन्त कठिन निष्ठुर हृदय संगदिल । निर्दयी | ३ नम्र न होने कठोर | २ कठिन ( २०३ वाला अनाई। ४ उम्र प्रचण्ड २ पीवा- कारक कठिनः ( पु० ) वन | बेहद कठिना ( स्त्री० ) १ मिश्री या बुरे की बनी मिठाई विशेष । २ मिट्टी की हड़िया। कठिनिका ( सी० ) १ चाक | खड़िया मिट्टी | २ कठिनी } गुनिया | कनिटिका | कम् कण्ठम् अनाज की बाल ४ भुने हुए बेहुँथों का भोल्य पदार्थ विशेष | कणिका ( बी० ): अ छोटे से छोटा पदार्थ २ जलविन्दु । ३ अनाज विशेष | अनाज की बाल । कणिश: ( उ० ) कणिशम् ( न० ) कणीक (वि० ) छोटा नन्हा कठोर ( चि० ) १ फड़ा। ठोस । २ निर्दयी। कठोर | करो (अन्यवा० ) कामना पूर्ति व्यअक अन्यय । हृदय | दयाहीन | ३ पैनर तेज ( ४ पूरा कमेरा ) ( श्री० ) १ इथिनो २ रंडी वेश्या कग्रेसः पतुरिया । पूरा बढ़ा हुआ सम्पूर्ण । २ ( भालं० ) पक्षा संस्कारित साफ़ किया हुआ। कडू देखो कराड् । [ मूर्ख | कड ( वि० ) १ गंगा | २ ख्वा स्वर | ३ अज्ञान | कडंगर कडङ्गः ( पु० ) नृय । तिनका कडंकरः कडङ्करः 1 कडकरीय, कडङ्करीय) (वि०) तुम खाने वाला | कडंगरीय, कडङ्गेरीय) (गा, भैस आदि) । कडनं ( २० ) पात्र विशेष एक प्रकार का वर्तन । कर्डदिका, कडन्दिका (स्त्री०) फलण्डिका विज्ञान। कर्डवः, कडम्बः (go ) कलंबः, कलम्बः (पु० ) चंदुख । डंठा । 1 कडार (वि०) १ सवला | धौला । २ ठगना ३ क्रोधी अहंकारी घमंडी कड़वाज़ | कडारः ( पु० ) १ सांवला या धौला रंग। २ नौकर। 1 ) · कंटका, कण्टका (५०) ) १ कोटा । २ डंक ३ कंटकम्, कराटकम् ( म०) ) (आलं०) शासन या राज्य का कण्टक रूप व्यक्ति ४ व्याधि । क्वास । ५ रोमाज | ६ नख मोह । ७ मन दुखाने वाला भाषण । ( 50 ) १ बाँस २ कारखाना --- प्रशनः, -भक्षकः, (४०) - भुज्, (१०) उंद | -उद्धरणम् (म०) काँटा निकालना। (०) प्रिय या उत्पातकारी व्यक्ति या वस्तु को दूर करना)-प्रभुः ( पु० ) : कांटा। भावी । २ शारुमती बुख ~ मर्दनं, (४० ) उपद्रव दमन 1 - विशोधनम्, ( न० ) प्रत्येक दुःख- दाई श्रोत को नष्ट कर डालना । कंडकित् कण्डकित् } ( वि० ) १ कटीला | २ रोमाञ्चित । कडितलः ( पु० ) तलवार खांड़ा। का (घा० परस्मै० ) [कणति, कथित] १ कराहना । सिसकता २ छोटा होना। ३ जाना | ४ आँख | कपना | पलकों से आँखें मूंदना । कणः (पु०) १ धनाज २ ३ स्वरूप परिमाय । ४ रत्तीभर गई या धूल २ पानी की बूंद या फुहार ६ अनाज की बाल ७ आग का अङ्गारा। वः, -भक्षः, भुजू, (पु० ) अनुवाद अर्थात् वैशेषिक दर्शन के आविर्भावकर्ता का कुत्सित्कंठः, कण्ठः ( 50 ) नाम: - जीरकम्, (न० ) जीरा-भक्षकः | कंडम्, कण्ठम् ( न० 15 स्वर | आवाज । (पु०) पक्षी विशेष-लासः, (पु०) अँवर । कापः ( पु० ) भाला या साँग । काशः (अव्यया० ) थोड़ा थोड़ा बूंद बूंद करण कणिकः ( पु० ) अनाज का दाना २ अणु ३ १ गला | २ गर्दन । ३ [कया। का किनारा था गर्दन २ सामीप्य पड़ोस 1 आभरणम् (न० ) कंठा पाटिया तिलरी धादि गले का गहना 1- कूणिका ( स्त्री० ) बीबा । सारंगी (गत, ( वि० ) गये में प्राप्त । गले में स्थित गले में आया कंटकिन ) ( वि० ) १ कटीला | २दुःखदायी।-- कराटकिन् } फलः, ( पु० ) कटहल का वृक्ष कंडकिलः कराड किलः } (3० ) कँढीला बाँस । कंटू, कण्ठ् ) (धा० सय० ) [ फण्ठति, कण्ठते, कवठयति, कण्ठयते, फण्ठित ] शोक करना । स्यापा करना। चिन्तित होना। अभिलाषी होना। सखेद स्मरण करना। कतिपय या घटका हुआ तदः, तटं. तटी, ( स्त्री० ) गर्दैन की अगल बगल का स्थान 1- दल, (वि० ) गरदन तक -जीडकः ( पु० ) चील ।~-नीलकः, ( पु० ) मसाल । लुका ( २०४ ) कंडनी कण्डनी । ( स्त्री० ) उसली | सरल | खल | कण्डरा } (स्त्री० ) मस after पखीसा । -~-पाशकः, (पु० ) हाथी की गर्दन का | कण्डिका रस्सा/भूषा ( श्री० ) छोटी गुंज /- मणिः, (स्त्री० ) रख्न जो गले में पहिना जाय । -लता, (खी० ) १ पट्टा कालर | २ बाग- डोर। अगा।-शोषः, (पु० ) गला सूखना। -स्थ, (वि० ) गने वाला। गले से उच्चारण किये जाने वाले वर्ण १ गले से । २ स्पद्यतः कंठाला कण्ठाला कंठिका कठिका कठत कराहू कंडूतिः कंठतः कण्ठतः | कराइतिः ) ( स्त्री० ) खाज। खुजली। कंडूयति कराइयति । ( क्रि० उ० ) खुजलाना। धीरे कंडूयते, कण्हयते धीरे मलना । ( अन्या साफ साफ । कंठालः }{ पु० ) , नाव । र बेलचा | कुदाली । कंशयननम् } ( न० ) मलना । खुजलाना। २ २ युद्ध ४ जेंद । ( श्री० ) वर्तन जिसमें दही या दूध | कंडूयनकः ) ( पु० ) गुदगुदाने वाला सुरसुरी बिलोया जाय। पैदा करने वाला। कराड्यनकः } ( स्त्री० } एफलरा हार या गुंज । ( स्त्री० ) १ गर्दन । गला | २ गुंज गोप | कालर | पट्टा | ३ घोड़े की गईन में बाँधने की रस्सी-खः, (पु० ) १ शेर सिंह | २ मदमाता हाथी । २ कबूतर ४ स्पष्ट घोषणा या उल्लेख कंडीलः कराठीलः कंठेकालः } (3० ) कँट । उष्ट्र । कण्ठेकालः } (g० ) शिव जी का नाम । कंटय ) ( वि० ) १ गले से उत्पन्न । २ जिसका कराव्य ) उचारण गले से हो।-वर्णः (पु०) कण्ठ से उच्चारित होने वाले अक्षर यथा ष, आ, कू, कंठी कराठी आ अक्षर । कण्डः / कंडू : कंडू ) ( धा० उभय० ) १ प्रसन्न होना सन्तुष्ट | कराडू ) होना । २ गर्व करना। ३ फटकना । कूट | } कर भूली अलगाना |४ बचाव करना । रजा करना। कंडनम् ) ( न० ) १ भूसी से अनाज का अलगाने करानम् की किया फटकना । पड़ोरना । २ 1 भूसी । कंडूया कराड्या कंडूल । कराहूल यजुर्वेद का भाग विशेष | (स्त्री०) १ छोटे से छोटा विभाग। २शुद्ध- खाज ( पु० स्त्री० ) १ खुजलाहट । खुजली | ( स्त्री० ) खुजली खाज ( श्री० ) खाज खुजली । ) (वि० ) सुरसुरी, जिसके होने से सुज- लाने को जी चाहे । कंडोलः ) कराडोल: ) } कंडोषः कण्डोपः ( पु० ) कोंका। फीड़ा । कीट करावः, ( पु० ) एक ऋषि का नाम जिन्होंने शकु- Fखा का पालन पोषण किया था: कतः कतकः ( पु० ) डलिया । टोकरी । भौया । सुता, ( स्त्री० ) शकुन्तला | खु, कलं - और टू-~-स्वरः, ( 50 ) भ और कतकम् } ( न० ) निर्मलीड का फल । कतम (सर्वनाम वि० ) कौन कौनसा । 1 कतर ( सर्वनाम वि० ) कौन। दो में से कौन सा । कतमालः (पु० ) अग्नि । आग। कति ( सर्वनाम दि० ) १ कितने । २ कुछ | कतिकृत्वम् (अव्यया० ) कितने बार। कितने दफा कतिधा (अव्यया०) १ कितनी बार । २ कितने स्थानं पर कितने भागों में। कतिपय (वि० ) १ कुछ | थोड़े से | कुछेक निर्मली का वृक्ष जिसके फल से जल साप किया जाता है। कतिविध कतिविध (वि० ) कितने प्रकार के। कतिशस् ( अव्यया० ) एक दफे में कितने । कत्थू ( धा० आत्म० ) [ करते कथित ] डींगे हाँकना शेखी बघारना | २ प्रशंसा करना । प्रसिद्ध करना। ३ गाली देना । बखान करना। डींगे हाँकना । कत्थनम् (२०) कत्थना (स्त्री०) कत्सवरं ( म० ) कंधा । कथ् ( घा० उभय० ) [ कथयति, कथित } १ कहना | बतलाना। २ बर्णन करना। ३ वार्तालाप करना । ४ निर्देश करना। खोलना दिखला देना । १ निरूपण करना|६ सूचना देना। खबर देना । शिकायत करना | ३ ! कथक ( वि० ) कहने वाला। निरूपण करने वाला कथकः ( पु० ) १ किसी अभिनय का प्रधान पात्र | २ वादी ३ किस्सा कहने वाला कथनम् ( न० ) वर्णन। निरूपण | विवरण | कथम् ( अभ्यमा० ) १ कैसे किस प्रकार किस तरह से कहाँ से । २ यह आश्चर्य व्यञ्जक भी है कधिकः ( पु०) जिज्ञासु । खोजी (०) किस रीति से ( वि० ) किस नाव का भूत (बि० ) किस प्रकार का कैसा-रूप, (वि० ) किस सूरत कार्य, 1 कैसे प्रमाण, शहु का | कथंता कथन्ता ( २०५ ) } I } (स्त्री०) किस प्रकार का । किस ढंग का : कथा ( स्त्री० ) १ कहानी किस्सा २ कल्पित कहानी ३ वृत्तान्त वर्णन 8 वार्तालाप | aar- पकथन | २ आख्यायिका के ढंग का गद्यमय निबन्ध। - अनुरागः, (पु०) वार्तालाप करने में हर्पित होने वाला पुरुष ।-अन्तरम् ( न० ) १ बातचीत के सिलसिले में २ दूसरी कहानी । -भारम्भः ( पु० ) कहानी का प्रारम्भ उदयः ( पु० ) कहानी का प्रारम्भ ~~-उद्धातः ( पु० ) पाँच प्रकार की प्रस्तावनाओं में से दूसरे प्रकार की प्रस्तावना २ किसी कहानी के वर्णन का आरम्भ-उपाख्यानम्. ( न० ) वर्णन। निरूपण। कुलं, (न०) कल्पित कहानी कढ़ का रूप रंग २ मिथ्यावर्शन -नायकः, पुरुषः, ( पु० ) किसी कहानी का मुख्य -पी. (न० ) किसी कहानी का आरम्भिक भाग/-प्रवन्धः ( पु० ) कहानी | किस्सा प्रसङ्गः ( पु० ) १ वार्तालाप | बातचीत का सिलसिला २ विषवैद्य-प्राणः ( पु० ) नाटक का पान-सुखं, (न० ) कथापीठ | किसी कहानी का थारम्भिक अंश ।-योगः (50) वार्तालाप का सिलसिला:- विपर्यासः (पु० ) किसी कहानी का बदला हुआ ढंग -शेष- प्रवशेष (वि०) वह पुरुष जिसका केवल वृत्तान्त यच रहे अर्थात् सृत सुतक मरा हुआ - शेषः -अवशेषः, (पु० ) कहानी का शेष - - अंश या - यचा हुआ भाग | कथानकम् ( न० ) छोटी कहानी जैसे नेताल- पीसी " कथित च० कृ० ) १ का हुआ। वर्णित | निरू पित २ वाथ्य पदं ( न० ) पुनरुक्ति | [ यह निबन्ध रचना में रचना सम्बन्धी दोष माना गया है ] वाक्या से सम्बन्ध रखने वाला वाक्य सम्बन्धी । कद् ( धा० आत्म० ) [कद्यते] धवड़ा जाना । मन का चबल होना (आत्म० [ कढ़ते ] १ रोना | आँसू बहाना। २ दुःखी होना। ३ बुलावा पुका- रना। 8 मार डालना या चोटिल करना। कट् ( धन्यवा० ) यह 'कु' का परियायवाची है और बुराई, स्वल्पता, हास, अनुपयोगिता, त्रुटिपूर्णता आदि के भावों को प्रकट करता है। अक्षरं ( न० ) बुरे अक्षर | बुरालेख |-अभिः ( पु० ) थोड़ी धाग |-अध्यन् ( पु० ) बुरा मार्ग /- अनं ( न० ) बुरा भोजन । थपत्यं ( न० ) बुरा वालक/अभ्यासः (पु० ) बुरी आदत या बान। फुटेव!-~-अर्थ (वि०) निरर्थक | अर-अर्थमा (खी०) पीड़ा | अत्याचार | -यति (क्रि०) १ तिरस्कार करना | तुच्छ समझना २ पीषित करना अत्याचार करना । -- अर्थित (वि०) १ तिरस्कृत घुति तुच्छी . कृत | २ अत्याचार पीड़ित | खिजाया हुआ। कदक ( २०६ [1] चिड़ाया हुआ ३ कमीना ४ यद दुष्ट -अर्यः (g०) लोभी । लालची । अर्यभावः (=कदर्यभावः) लोभ लालच कंजूसी । प्रलो- अन सूमता। कंजूसपना--प्रवः, (पु० ) दुए घोड़ा ।-आकार ( वि०) भौड़ा वदशक अपरूप आचार (वि० ) दुष्ट | बुरे आचरणों बाला -आचार: ( पु० ) बदचालचलन - उष्ट्रः (पु० ) बुरा अंद-उष्ण, (दि० ) गुनगुन ।उध्याम् ( न० ) गुनगुनापन /- रथः ( पु० ) बुरा रथ या गाड़ी। बद (वि० ) १ दुरी बात करने वाला। अस्पष्ट बोलने वाला अथवा ठीक ठीक बात न कहने वाला २ दुष्ट | तिरस्करणीय | कदकं (न० ) चंदवा | मगठप शामियाना | कदनम् ( न० ) १ नाश यरवादी इत्या २ शुद्ध | ३ प कदंबः कदम्बः ( पु० ) : स्वनामख्यात कदंबक, कदम्बकः वृक्षविशेष इसके बारे में कहा जाता है कि, जय बादल गर्जते हैं, तथ इसमें कलियां लगती हैं। २ घास विशेष| २ हल्दी । -अनिलः (पु०) ३ कदम्ब के पुष्पों वसन्त की सुवास से सुवासित पवन २ ऋतु-वायुः (पु० ) सुवासित पवन । कंधकं ३ (पु० ) १ श्रारा धारी २ अंकुश। कदस्यकम् । कदः (१० ) जमा हुआ दूध। वही। क ( न० ) १ समारोह | २ कदम्य दुख के फूल ।

} (पु० ) केले का पेड़ | कदली वृत्त ।

कदलः कदलकः कदली (स्त्री०) १ केले का पेड़ | २ ग विशेष ३ ध्वजा जो हाथी की पीठ पर लेकर आगे बढ़ाई जाती है। ४ ध्वजा या झंडा कदा ( धन्यवा० ) कब किस समय कटु (वि० ) ३ धौला भूरा करें] (स्त्री० )) (स्त्री० ) कश्यप ऋषि की पत्नी और नागों की माता-पुत्रः सुतः (पु० ) सौंप | | - सर्प । कनकं (न० ) सोना । i कनक ( पु० )पहास व २ धतूरे का वृद्ध | ३ सिंदुक - अंगदम् (पु० ) सोने का बाजू |-- ) कन्द्रा श्रचल:-अद्रि–गिरिः, -शैलः, (पु०) सुमेह पर्वत । आलुका, कलस या सोने का फूलदान घरे का (बी० ) सुवर्ण आहूयः (पु०) टङ्कः, (पु०) सुनहली कुल्हाड़ी -पत्रं, (न० ) सोने का यना कान का गहना | -परागः, (पु० ) सोने की रन । –रसः, (१०) १ इरतात २ गला हुआ सोना । -सूत्रं ( २० ) सोने की गुंज | आभूषण विशेष -स्थली, (सी०) सोने की खान । कनकमय ( वि० ) सोने का बना हुआ सुनहला कनखलं ( न० ) हरिद्वार के समीप का एक तीर्थ विशेष | - कनन ( वि० ) काना एक आँख का। कनयति ( क्रि० ) कम करना आकार में घटाना। छोटा करना कनिष्ठ (वि० ) १ सब से छोटा सब से कम | २ उम्र में सबसे छोटा | [ उँगुली । कनिष्ठा ( स्त्री० ) गुनिया हाथ की सबसे छोटी सब से छोटी कनीनिका १ छगुनिया | हाथ की कनीनी उँगुली | २ आँख की पुतली । कनीयस् (वि० ) १ अपेक्षा कृत कम । अपेक्षाकृत कंतुः ) कन्तुः ) छोटा | २ कय में अपेक्षाकृत छोटा। कनेरा (स्त्री० ) १ रण्डी | वेश्या | २ हथिनी ( पु० ) १ काम । २ हृदय ( जो विचार और अनुभव का स्थान है।) ४ खत्ती या सौ जिसमें अनाज भरा जाता है। कंथा ) ( स्त्री० ) की कथरी धारिणम कन्या ) (२०) कveी पहिमना - धारिन (50) योगी। मिथुक । कंदम् कुंदः ( पु० ) कन्दः पु० ) ( म० ) कन्दम् (न०) २ लहसन | ३ गाँठ | गुदी-मूलम् ( म०) मूली : -सारं (न०) इन्द्र का उद्यान (पु० ) ११ एक प्रकार की जुड़ ) जो खायी जाती है। बादल | कदई (न०) सफेद कमल | कमोदिनी । कंदर (पु०) कन्द्रः ( पु० ) ) गुफा | कंदरा ) ( स्त्री० कंद्रम् (न०) कन्दरम् (२०) ) अंकुश कन्दरा 5 गुफा कंद्री, कन्दरी खुसाल | घाटी । घाटी (पु०) कुस । (स्त्री० ) " केंद्रराकारः कन्द्राकारः (पु०) पहाद | पर्वत । कंदर्पः, कम्बर्षः ( पु० ) १ कामदेव | २ प्रेम- कृपः ( पु० ) १ कुस या कुशा ( २ ) योनि | भग :-~~-वरः, (पु०) कामज्वर । --दहनः, (पु० शिव जी का नाम -मुपत्तः, -मुसलः, (पु०) पुरुप की जनेन्द्रिय । लिङ्गभङ्गल (१०) रतिबन्ध | कदराकार 1 कंदलः कन्दलः ( पु० ) ) १ अंकुर | २ कंवलम्, कन्दलम् (न० ) ) लानत । मलामत | भर्त्सना ३ गाल अथवा गाल और फलपुटी । ४ अशकुन कुल ५ मधुर स्वर ६ केले का वृक्ष । ( पु० ) १ सुवर्ण | २ थुन्छ | लड़ाई | ३ वादानुवाद | बहस । ( न०) पुष्प विशेष | कंदली, कन्दली (स्त्री० ) १ केले का । २ एक जाति का हिरन ३ अंडा ४ कमलगट्टा या कमल का बीज - कुसुप्रम् (न०) कुकुरमुत्ता | ( पु० ) (खो०) १ बरलोई पतीली। २ तंदूर चूल्हा | कंदुक, कन्दुकः (पु०) ) गेंद | वाल | ~ लीला कंदुकम्, कन्दुकम् (न०) 5 (पु० ) गेंद बल्ले का 1- कंदुः खेल | कंदोट कन्ट्रोट (पु०) कंद(पु०) कमल । कंधरः कन्धरः कंधरा कन्धरा )

} ( S० ) १ गरदन । २ यादल ।

कंधिः कन्धिः ) १ कमोदिनी या सफेद कमल का फूल । २ नील ( स्त्री० ) गरदन । कन्यामथम् -जातः, ( पु० ) अविवाहिता लड़की से उत्पन पुढ कानीन । कम्यसः ( पु० ) सब हो वाहुरा भाई। कन्यसा ( स्त्री० ) सब से छोटी डेंगुली । कन्यसी (स्त्री० } सब से छोटी यहिन ! कन्या (को०) अनविवाहिता लड़की या पुत्री | २ दस वर्ष की उम्र की लड़की ३ कारी लड़की। ४ साधारणतः कोई भी श्री ५ कन्या राशि | ६ दुर्गा का नाम । ७ वड़ी इलायची । - अन्तःपुरं, ( न०) जनानखाना| धन्तःपुर।-याट, (वि०) युवती लड़कियों की खोज में रहने वाला।-आदः, ( पु० ) १ लड़कियों के रहने का स्थान २ यह पुरुष जो युवतियों का शिकार करे अथवा उनकी खोज में रहै ।कुणाः, (पु०) कौज नामक नगर -गतम्, (न०) कन्या राशि पर गया हुआ मह -अयन् (न०) विवाह में कम्बा को ग्रहय करना या सेना - दानम् (पु० ) विवाह में कन्या को देना - (पु० ) कन्याओं के ऐव, जैसे रोग, अङ्गम्यूनता आदि । - धनम् ( न० ) दहेज़ | यौतुक 1-पतिः, ( पु० ) दामाद | जामाता-पुत्रः, (पु० ) अविवाहिता लड़की से उत्पन्न लड़का जिसे कानीन कहते हैं। -पुरं, (न० ) ज्ञनानखाना । -भर्तृ, ( पु० ) १ दामाद | जमाई २ कार्तिकेय का नाम । -- रत्नं, ( स्त्री० ) अत्यन्त सुन्दरी कन्या | -- राशि:, ( पु० ) कम्याराशि | - वेदिन, ( पु० ) जमाई।-शुल्कं (न० ) वह धन जो कन्या का मूल्य स्वरूप कन्या के पिता को दिया जाता है।--स्वयंवर (पु० ) कारी कन्या द्वारा अपने लिये पति का वरण करने का विधान विशेष 1- हरणं, ( न० ) कन्या के भगा ले जाना। ( स्त्री० ) समुद्र | २ गर्छन । २ मूर्च्छा बेहोशी । कक्षम् ( न० ) १ पाप कन्यका ( स्त्री०) । लड़की | २ अविवाहिता लड़की। ३ दस वर्ष की लड़की की संज्ञा विशेष साहित्या- लङ्कार में कई प्रकार की नाविकाओं में से एक अविवाहिता लड़की, जो किसी पद्यमय काव्य की प्रधान नायिका हो। ४ कन्याराशि-इलः (पु०) | कन्यामय (वि० ) युवती कन्या के रूप में। बहकावा| दम। झाँसा फुसलाहट -अनः ( पु० ) कुँवारी कम्या अनविवाहिता लड़की कन्यका ) ( स्त्री० ) १ युवती लड़की २ कारी कन्यिका ) लड़की। कन्यामयम् ( न० ) अनानखाना | धन्तःपुर | (जिसमें अधिक संख्या लड़कियों ही की हो) । कपट कपटः (पु० ) | धोखा। इस कपट-तापसः, कपटतू] ( न० ) ) पाखण्डी साधु बना हुआ तपस्वी पर (वि० ) धोखा देने में निपुण | कपित्थम् ज०) कैथा के पेड़ का फल । -प्रवन्धः ( पु० ) कपटपूर्ण चाल । -~-लेख्यम्, | कपिल (चि०) १ भूरा। थुप्रैखा । २ भूरे बालों वाला। ( न० ) जाली दस्ताबेज्ञ या टोप-वचनम्, | कपिलद्युति ( पु० ) सूर्य ( न० ) धोखे की बात ! --वेश, (वि० ) बह- | कपिलधारा ( श्री० ) गङ्गा जी की उपाधि । रूपिया । शङ्ख बदखे हुए। कपिलस्मृति ( सी० ) फपिल रचित सांख्य सूत्र कपिलः (५०) एक महर्षि का नाम, जिन्होंने सगर राजा के ६० हजार यों को कुपित हो, भस्म कर डाला था। इन्होंने सांख्यदर्शन का आविष्कार किया था । २ कुत्ता | ३ खोवान | ॐ धूप ५ एक कपिला ( स्त्री० ) १ भूरे रंग की गाय । २ एक प्रकार प्रकार की भाग ६ भूरा या धुमैला रंग। का सुगन्धिद्रव्य २ लकड़ी का लट्ठा ४ ऑक जलौका | ( २०८ ) कपटिकः ( पु० ) चली। एपटी दगाबाज । कपर्वः ( पु० ) १ कैदी । २ जटा । विशेष कर कपर्दकः शिव जी का जटाजूट कपर्दिका ( स्त्री० ) कौड़ी। कपर्दिन् (पु० ) शिव जी का नाम । कपाट: ( पु० ) कपाटम् (स्त्री०) ) 1 १ किवाड़ | २ द्वार | दरवाजा | - उडाटनम् | न० ) किवाड़ खोलना । झः (पु०) सेंध फोड़ने वाला चोर | कपाल (पु० ) ( 8 खोपड़ी २ खप्पर | ३ समारोह कपालं (न० ) ) संग्रह | ४ भिक्षापात्र । २ प्याला | या कटोरा ६ ढक ढकना | पाणिः भृत्, ~~मालिन्, – शिरस्, ( पु० ) शिव जी | की उपाधियों। - मालिनी (स्त्री० ) भुर्गादेवी का नाम । कपालिका (स्त्री० ) खपरा | खप्पर ठिकड़ा। कपालिन् (चि० ) १ खोपदी रखने वाला । २ खोप- दियों की : माला ) पहिनने बाला ( पु० ) १ शिव जी की उपाधि । २ नीच जाति का आदमी जो ब्राह्मणी माता और मड़वाहा पिता से उत्पन्न हुआ हो। , कपिः (go)1 बंदर लहूर २ हाथी-आख्याः सुगन्धिद्रश्य धूप धना । - इज्यः ( पु० ) श्रीरामचन्द्र और सुग्री की उपाधि इन्द्र, ( पु० ) १ हनुमानजी की उपाधि । २ सुप्रोध की उपाधि की उपाधि । - फः (स्त्री०) एक पौधे का नाम 1- केतनः, - ध्वजः, (पु० ) अर्जुन का नाम -जः, -तेलं. - नामन् (न०) १ शीलाजीत १२ लोबान । -प्रभुः, (पु०) श्रीरामचन्द्रजी की उपाधि । -लोहं, (न० ) " - पीतल । कपिंजलः कपिञ्जलः कपोल. कपित्थः (पु० ) कैथ का पेड़ | आस्यः ( पु० ) वानर विशेष | } (पु०) : चालक पक्षी | २ तीतर पत्ती । या लोवान । कपिलाइदः (पु० ) इन्द्र की उपाधि । कपिश ( वि० ) १ भूरा। सुनहला २ ललौंदा। कपिशः (वि०) १ भूरा या सुनहला रंग | २ शिलाजीत [ नरम | कपिशा ( स्त्री० ) १ माधवीलता | २ एक नदी का कपिशित (वि० ) सुनहला या भूरे रंग का | कपुन्छ (म० ) } १ चूडाकरण संस्कार | २ दोनों कपुष्टिका (स्त्री० ) ) कलपटियों के ऊपर के केशगुस्छ । कपूर (वि० ) निकम्मा | है। नीच | कपोतः (पु० ) पिड़की फाका कबूतर २ (साधरणतः) पक्षी अधिः (पु०) सुगन्धि द्रव्य विशेष अञ्जनम् (न० ) सुर्मा । अरः (पु०) बाज पक्षी -चरणा, (स्त्री०) सुगन्धिद्रव्य विशेष पालिका, पाली, ( स्त्री० ) काबुक । अड्डीराजः, ( पु० ) कबूतरों का राधा सारं. (न०) सुमां- -हस्तः, (पु० ) हाथ जोड़ने की विधि विशेष भय था प्रार्थना व्यक्षक होती है। कपोतकः ( पु० ) छोटा कबुतर कपोतकम् ( न॰ ) सुर्मा । कपोलः ( पु० ) गाल - -फलकः, ( पु० ) चौड़े गाल -भित्ति, (बी० ) कनपटी और गाल | -रागः, ( पु० ) गालों का गुलाबी रंग । कफ ( २०६ कफः ( पु० ) श्लेष्मा | बलाम । अरिः, (पु० ) सोंठ | फूचिका, (खो०) थूक । खखार 1- क्षयः, ( पु० ) सय रोग-ध्र. नाशन, हर, (वि० ) कफनाशक ज्वरः, ( पु० ) कफ की वृद्धि या कफ के विकार से उत्पन्न ज्वर कफल ( चि० ) कफ प्रकृति का कफिन् (वि० ) [ स्टी० कफिनी] कफ की वृद्धि से | कमलः ( पु० ) सारस पक्षी । २ हिरन विशेष | पीड़ित फफीला । 1 कमलकम् ( न० ) एक छोटा कमल | कर्बुधः--कबन्धः (पुः } } सिर रहित धड़ कबंधम् कवन्धम् ( न० ) ) ( विशेष कमला बी०) १ लक्ष्मीजी की उपाधि । २ सर्वोतम स्त्री-पतिः, सखः (पु०) विष्णु की उपाधि | कमलिनी ( श्री० ) १ कमल का पौधा । २ कमल समूह ३ वह स्थान जहाँ फसलों का बाहुल्य हो । कमा (स्खी०) सौन्दर्य कमनीयता । कामितु ( चि० ) कामासक कामुक । कर वह } धड़ जिसमें प्राण बाकी हों। ) ( पु० ) पेट २ बादल। ३ धूमकेतु । ४ राहु का नाम |२|कंप है। घा० आरम० ) { कंपते, कंपित ] हिलना । जल । ६ श्रीमद्भाल्मीकि रामायण में वर्णित राक्षस कम्प् विशेष, जिसे श्रीरामचन्द्र जी ने मारा था।

कविथः ( पु० ) कैथा का पेड़। काँपना अस्थराना है धूमना फिरना । कंपः कम्पः (पु०) हे थरथरी कपकपी । --अन्वित, कंपा, कम्पा (स्त्री०) :) (वि०) थरथराने वाला। श्रान्दो- लित। उह्निम-लक्ष्मन् ( पु०) वायु पचन | कंपन ) ( वि० ) थरथराने वाला काँपने वाला। कम्पन हिलने वाला। कफणिः कफोणिः > (स्त्री०) कुहनी | कफी ) कम्बलः का नाम - ईक्षणा, ( वि० ) कमल जैसे नेत्रों वाली (स्त्री)। उत्तरं, (न० ) कुसुम पुष्प -खण्डम् (न०) कमल समूह /-जः, (पु०) १ अक्षा की उपाधि । २ रोहिणी नक्षत्र---अम्मन, ( पु० ) -भवः -योनिः, सम्भवः, ( 30 ) महा की उपाधियाँ, कम् ( घा० आमा० ) [ कामयते, कामित, कान्त ] १ प्यार करना आसक्त होना २ उत्कण्ठित होना। अभिलाषा करना। इच्छर करना । कमठः (१० ) 1 फछुआ । २ बाँस | ३ घड़ा | | कंपनः ) (पु०) शिशिरऋतु । नवंबर और दिसंबर का कम्पनाः) मास । -पतिः, (पु० ) कब्रुवों का राजा कमठी (स्त्री० ) १ कई या छोटा कटुवा कमण्डलु. कमण्डलुः (पु० ) मिट्टी या लकी का जलपात्र | धरः ( पु० ) शिवजी का नाम । कमन ( वि० ) १ विषयी । लम्पट २ सुन्दर मनोहर । कमनः ( पु० ) कामदेव | २ अशोक बृष ३ ब्रह्मा [ प्रिय का नाम । कमनीय (वि० ) १ वान्छनीय २ मनोहर सुन्दर कमर ( वि० ) कामासक्त । उत्सुक थरथरी कंपनम् (न०) कम्पनम् ) विशेष । गिरकिरी । कंपाकः ( पु० ) वायु | पवन कम्पाकः कंप्र 2 कंपकपी । २ उच्चारण कंच कम्व् ) कंबर कम्बर ( वि० ) फांपने वाला। हिलने वाला। ( भा० परस्मै०) [ कंवति, कंबित ] जाना | हिलना। ( वि० ) चित्रविचित्र | रंगबिरंगा | कंबरः ) ( 50 ) रंगबिरंग रंग का चितकबरे रंग कम्बर का। कम ( न० ) १ कमल १२ जल ३ ताँचा ४ धर्कविशेष 1 दवाविशेष २ सारस पक्षी ६ कंबलः ? (पु०) १ ऊनी कंबल । २ गलथ्या गौ की सूत्रस्थली। अती (बी० ) कमल जैसे नेत्रों ) कम्वलः । गरदन के नीचे का लटकता हुआ मांस । वाली स्त्री व्याकरः, (पु०) १ कमल समूह | २ कमल परिपूर्ण सरोवर। आलया, (खी०) लक्ष्मी जी का नाम | आसनः ( पु० ) बझा हंगा ३ हिरन विशेष उनी वस्त्र जो ऊपर से पहिना जाय। १ दीवाल 1- वाह्यकं ( न० ) पहली जिस पर ऊनी पर्दा पढ़ा हो। सं० श० ० - २७ ( २१० ) कबलम् कंवलम् कम्बलम् }( न० ) जल । कंबलिका ।। स्त्री० ) छोटा कंबल | ( पु० ) बैल | कम्बलिका ) साँढ़ | - वाह्यकं (न०) कंबल के उघार की बैलगाड़ी । कंबी, कंवो.) कम्बी } (स्त्री०) कलछी या चमचा । कंबु, कम्बु ) ( वि० ) [ स्त्री० कम्यु कंबू ] कंबी, कम्बी चित्तीदार धच्चादार रंगविरंगा । ( पु० न०) शङ्ख । (पु०) १ हाथी २ गरदन | ३ रंगविरंगा रंग। ४ शरीरस्थ एक रंग | ५ कंकण । पहुँची । ६ नलीनुमा हड्डी । -कराठी, ८ स्त्री० ) शंख जैसी गरदन वाली स्त्री - ग्रीवा ( स्त्री० ) देखो कंडुकराठी । कंबोजः ) ( पु० ) शङ्ख । २ हाथी विशेष । कम्बोजः ) ३ ( बहुवचन) एक देश विशेष तथा वहाँ के रहने वाले। हाथ का अगला भाग कम्र (वि० ) मनोहर | सुन्दर करः ( पु० ) [ स्त्री० –करा, या करी, ] १ हाथ । २ रोशनी की किरन । ३ हाथी की सुंद| ४ कर । चुँगी । निराज | १ ओला । ६ २४ अँगुल का माप विशेष ७ हस्त नक्षत्र 1-अयं ( न० ) २ हाथी की सूँड की नोंक ।-आघातः, (पु० ) हाथ का थाघात | ---: ( पु०) अँगूठी । - प्रलंबः, (पु० ) हाथ का सहारा देना ।-आस्फोट:,, (पु०) १ छाती । २ हाथ का आघात। कण्टकः, (पु०) -कराटकम, (न०) हाथ की उँगुली का नाखून -कमलं, – पङ्कजम्,- पद्मं, ( न० ) कमल जैसा हाथ । सुन्दर हाथ। -कलशः, ( पु० ) कलशम्, (न०) हाथ की अँजली - किसलयः, ( पु० ) – किसलयम्, (न० ) १ कोमल कर | २ अँगुली (कोषः, ( १० ) हाथ की उँगुली । - ग्रहः, ( पु० ) ग्रहणम् ( न० ) १ कर लगाना | २ पाणिग्रहण करना | ३ विवाह - ग्राहः, (५०) १ पति । २ कर उगाहने वाला - जः, ( पु० ) हाथ की ऊँगुली का नख ।- जम्. ( न० ) सुगन्धि द्रव्य विशेष | जालं, (न० ) प्रकाश की धारा । -तलः ( पु० ) हथेली - करटः तालः, ( पु० ) तालकम् ( पु० ) १ ताली बजाना करताल नाम का बाजा विशेष /- तालिका, ताली, (स्त्री० ) ताली । -तोया, ( स्त्री० ) एक नदी का नाम । -दः, (वि० ) १ कर अदा करते हुए । २ करद या कर देने वाला । --पत्रं, (न० ) धारा । आरी । पत्रिका, (स्त्री०) जल में क्रीड़ा करते समय पानी को उच्चा लना। --पल्लवः, ( पु० ) १ कोमल हस्त । २ उँगुली ।—पालिका ( स्त्री० ) १ सलवार । २ फाँवड़ा | कुढ़ाली । - पीडनम् (न० ) विवाह | -पुटः, (वि० ) उँगुली | पृष्ठं, ( न० ) हाथ की पीठ । बालः, – वालः, (पु० ) १ तलवार : २ उँगुली का नख - भारः, ( पु० ) अत्यन्त अधिक कर 1- भूः ( पु० ) उँगुली का नख ।- भूषणां, (न० ) पहुँची । कड़ा । - मालः, (पु०) धुआ – मुक्तं. (न० ) हथियारों में सरताज - रुहः, ( पु० ) नख । नाखून | - वीरः, - चीरकः, (पु०) १ तलवार | खाँड़ा| २ कवरगाह | ३ एक देश विशेष का नाम । ४ वृत्त विशेष - शाखा, ( स्त्री० ) उँगुली /-शीकरः, ( पु० ) हाथी की सँड़ से फेंका हुआ जल / – शुकः, ( पु० ) उँगुली का नाखून। -सारः, ( पु० ) किरनों के प्रकाश का मंदा पड़ जाना—सूत्रं, ( न० ) सूत्र जो विवाह के समय कलाई पर बाँधा जाता है। - स्थालिन्, (पु० ) शिव का नाम । - स्वनः, ( पु० ) ताली बजाना करकः ( पु० 3}} कमण्डलु साधु का जलपात्र । करकम् (न० --भस्, ( पु० ) नारियल का वृष । आसारः, ( पु० ) ओलों की फुआर या वर्षा -जम्, (पु०) पानी ।- पात्रिका, (स्त्री०) साधु का कमण्डलु । करङ्कः ( पु० ) १ हड्डियों की ठठरी । २ खोपड़ी । ३ नरेरी । नारियल का बना पात्र | पिटारी । संदूकची । करंजः } (K० ) मिलावे का पेड़ । करजः करटः (पु०) १ हाथी का गाल । २ कुसुंभ | ३ काक । ४ नास्तिक | अविश्वासी | ५ पतित ब्राह्मण । २११ ) व रेग ८ } ( पु० ) सारस पत्नी का भेद | करणम् ( न० ) १ करना | सम्पन्न करना | २ क्रिया | ३ धार्मिक अनुष्ठान | ४ व्यवसाय | व्यापार । ३ इन्द्रिय ६ शरीर । ७ क्रिया का साधन कारण हेतु १ टीप । दस्तावेज़ । लिखित प्रमाण १० संगीत विद्या में ताली से ताल देना। ११ ज्योतिष में दिन विभाग विशेष - अधिपः, ( पु० ) जीव । प्रामः, ( पु० ) इन्द्रियों की समष्टि। -- त्राणं, (न०) सिर । करालः ( वि० ) १ भयानक | खौफनाक | २ फटा- हुआ। चौड़ा खुला हुआ । ३ बड़ा | लंबा | ऊँचा | ४ श्रलम | विषम | नुकीला -चंद्रः ( वि० ) भयानक डादों वाला 1-वदना, ( स्त्री०) दुर्गा का नाम । करालिकः (g० ) १ वृक्ष | २ तलवार । करिका ( स्त्री० ) खरोंच । नखाघात । | करिणी ( स्त्री० ) हथिनी । करिन ( पु० ) १ हाथी । २ आठ को संख्या -- इन्द्रः, ईश्वरः, चरः, ( पु०) विशाल हाथी । गजराज । --कुम्भः, (पु० ) हाथी के मस्तक का वह भाग जो ऊँचा उठा हुआ हो ।-गर्जितं, ( न० ) हाथी की चिंघाड़। दन्तः ( पु० ) हाथीदाँत । -पः, ( पु०) महावत । - पोतः- शावः, शावकः ( पु० ) हाथी का वचा - बंधः, (पु०) हाथी का खूँटा । –माचलः, (५०) सिंह। --मुखः, (पु०) गणेश जी । (वि० ) हाथी की पीठ पर रखा हुआ झंड़ा - स्कन्धः, (वि०) हाथियों का समूह । करोरः ( पु० ) १ बाँस का अँखुआ। २ अँखु | ३ करील नाम का कटीला एक झाड़। ४ जलकुम्भ | सूखा गोवर |-अग्निः, ( पु० ) अन्ने कंडों की श्राग मन्ती, करंड: ( पु० ) १ संदूकची या छोटी डलिया । करण्डः २ शहद की मक्खी का छत्ता । ३ तलवार । ४ कारगडव (जल) पक्षी करंडिका, करण्डिका करंडी, करण्डी करंधय करन्धय ( स्त्री० ) बाँस की पिटारी । करीषम् (न० ) ) करीषंकपा ( स्त्री० ) प्रचण्ड पवन या आँधी । करीषिणी ( स्त्री० ) सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी । करुण ( वि० ) कोमल । करुण हृदय । दयापात्र । दया प्रदर्शित करने योग्य | दयोत्पादक । शोका- न्वित ।-~मल्ली, (स्त्री० ) मल्लिका का पौधा । २ सहित्यालङ्कार में वियोग-जन्य प्रेम का भाव । करुणः ( पु० ) १ रहम। दया। अनुकम्पा । कोम- लता । २ दुःख । शोक करंभः, करम्भ. ) ( पु० ) १ घाटा या अन्य करंबः करम्बः ) भोज्यपदार्थ जिसमें दही मिला करुणा ( स्त्री० ) अनुकम्पा । रहम | दया। आई हो । २ कीचड़। यथा - कभवकासापार | ( वि० ) कोमलहृदय । - निधिः, दया का भाण्डार । पर, मय, (वि०) अत्यन्त दयालु । -विमुख, (वि० ) निष्ठुर । सङ्गदिल । करेट: ( पु० ) उँगुली का नख । करेगा: (पु०) १ हाथी । २ कर्णिकार कठचंपा या वनयंपा का पेड़ भूः, -- सुतः, ( पु० ) करटक ( करटकः ( पु० ) १ काक । २ चोरी की कला का विस्तार करने वाले कर्णीरथ का नाम । ३ हितोपदेश और पञ्चतंत्र में वर्णित एक शृंगाल का नाम । करदिन ( पु० ) हाथी । करटु } (वि०) हाथ चूमते हुए । करभः ( पु० ) १ कलाई से लेकर उँगुली के नख तक के हाथ का पृष्ठभाग २ सूँड़ | ३ जवान हाथी । ४ जवान ऊँट । ५ ऊँट । ६ सुगन्धि द्रव्य विशेष | --अरूः, ( स्त्री० ) हाथी की सूंड जैसी जँधाओं वाली स्त्री । करमकः ( पु० ) ऊँट । करभिन् ( पु० ) हाथी । करंब, करम्ब ( वि० ) १ मिश्रित । मिला- करंबित, करम्बित) जुला | रंगबिरंगा | २ जड़ा हुआ। बैठाया हुआ | मनु | करहाट: (पु०) एक देश । सम्भवतः सतारा जिले का आधुनिक करहाद। कमल का डंडुल या कमल- नाल । कमल की जड़ से निकलने वाले रेशे करे ( २१२ ) कर्णाः के आविर्भावफर्ता पालकाव्य का कर्ण (घा०] उभय० ) [ कति कति ] 1 [ का नाम । छेदना सूराख करना। वेधना | २ सुनना । हथिनी । २ पालकाप्य की माता । कर्णः (५०) १ कान | २ कड़ादार गंगाल या जंगाल आदि धर्मन के कड़े या कान वृस्ता । 4. वेंट ४ डौंड़ पतवार समकोण त्रिभुज की वह रेखा जो समकोण के सामने होती है। ६ महाभारत में वर्णित कौरव पक्षीय एक प्रसिद्ध योद्धा राजा [ यह सूर्यपुत्र के नाम से प्रसिद्ध था. तथा बड़ा प्रसिद्ध दानी था कुम्ती जब क्यारी थी, तब उसके गर्भ से इसकी उत्पत्ति हुई थी। इसीसे यह " कानीन' ' भी कहलाता था । कुरुक्षेत्र के युद्ध में इसने कौरवों की ओर से पाण्डवों से युद्ध किया था। अन्त में अर्जुन द्वारा यह मारा गया था। ] अञ्जलिः, ( खी० ) कान का भाग विशेष अथवा वह मुख्य भाग जिससे सुनाई पड़ता है 1-अनुजः, (पु०) युधिष्ठिर। -प्रन्तिक, (वि०) काम के समीप । -धन्दुः श्रन्दू, (स्त्री० ) कान की बाली या बाला1- अर्पणम् (न० ) सुनना | कान देना । -आस्फालः, (पु० ) हाथी का कान फूट- फटाना (उत्तंसः, (पु०) कान में धारण किया जानेवाला आभूषण विशेष अथवा आभूषण- उपकर्णिका (स्त्री०) अफवाह किम्बदन्ती - वे.न:, ( पु० ) कान में सतत धावाज़ का होना । --गोचर (वि० ) जो सुन पड़े - ग्राइ, (पु० ) पतवारी -जप, ( वि० ) (कर्णेजप भी रूप होता है ) गुप्त बात कहने वाला । मुखबिर 1 जपः, जापः, ( पु० ) निन्दक निन्दा करनेवाला ।~-जाहः, ( पु० ) फान की जद । ~ जिल्. ( पु० ) कर्ण को हराने- चाला। अर्जुन की उपाधि - तालः, (पु०) हाथी के कानों की फटफट का शब्द ।-धारः, (पु०) पतवारी :--1 -घारिणी (स्त्री०) हथिनी - परम्पर (स्त्री०) सुनी सुनाई बात अफवाह --पालिः, ( स्त्री० : कान का नीचे लटकता हुआ हिस्सा। पाशः, (पु० ) सुन्दर कान / पूरा, (पु०) १ कर्णफूल | करनफूल | कान का आभूषण विशेष | २ अशोक का दूध-पूरकः, ( पु० ) 1 करन- इस्ती- विज्ञान नाम । करेगा: (०), १ करोर्ट (२० ' १ खोपड़ी । २ कटोरा या करोड (स्त्री० ) पात्र । कर्क: ) (पु० )१ मकरा । ९ कर्कटकः । चौथी राशि | ३ अग्नि राशिचक्र को ४ जलपान | २ आईना दर्पण ६ सफेद रंग का घोड़ा। कर्कटः ) ( पु० ) । २ कर्कराशि | ३ कर्कटकः । घेरा चक्कर | } { स्त्री० ) ककड़ी विशेष | कर्कटी कर्कन्धुः ) ( स्त्री० ) उन्नाव या ईरानी बैर का पेद फर्कन्धू और उसके फल । कर्कर ( वि० ) १ कड़ा | ठोस पोड़ा -प्रतः, ( पु० ) ~अङ्गः, ( पु० ) खअनपक्षी - अन्धुकः (पु० ) अन्धा कुथा अन्धकूप कर्कर: (०) हथौदा | धन | २ दर्पण | आईना। ३ हड्डी। खोपड़ी की हड्डी का टूटा हुआ दुका कर्करा: ( पु० ) दीर्घ तिरखी दृष्टि दूर तक देखने- वाली तिरी चितवन झलक । 1 कर्कराला ( श्री० ) घुँ घुराले बाल । कर्करी (स्त्री०) ऐसा अलपात्र जिसकी पैदी में चलनी की तरह छिद्र हों। कर्कश (वि०) १ का सख्त रूखा २ निष्ठुर दयाशून्य ३ प्रचण्ड र अत्यधिक ४ उदगड असदाचरणी असती अपतिव्रता । } ( श्री० ) ६ समझने में कठिन | समझ में न आने योग्य | कर्कश: (५०) १ तलवार खङ्ग २ करआ | ६ गन्ना । कर्कणिका } ( स्त्री० ) वनज द्रव्य विशेष । कर्किः ( पु० ) कर्क राशि | कर्कोट: 2 ( पु० ) आठ मुख्य सर्पों में से एक ककटकः ) यह एक बड़ा विपैला सर्प होता है। यहाँ तक कि, इसके देख देने ही से देखे जाने वाले पर सर्वविष का असर पैदा हो जाता है। २ गया। ३ बेल का पेड़ । कचूरः (5०) १ कचूर । २ एक सुगन्ध-द्वन्ध विशेष । कचूरम् (न० ) सुवर्ण । २ दरवाल। मैनफल | $ ऋणकर्णि { २१३ फूल वाली २ कदम्ब का पेड़ ३ अशोक का पेड़ ४ नील कमल प्रान्तः, (पु०) कर्णपालि [15] देखो। 1~~भूषण, (न०) -भूपा, (स्त्री० ) कान का गहना - मूलं, (न०) कान के नीचे का भाग 1-पोटी, (स्त्री०) दुर्गा का एक रूप । -- घंशः, (पु०) बाँस बल्ली से बना मचान वर्जित, (वि० ) कानरहित - वर्जितः, (पु०) सर्प । चिवरं, ( न० ) कान का छेद | विष, (स्त्री०) कान का मैल या ठेठ- वेधः, (पु०) संस्कार विशेष जिसमें कान छेदे जाते हैं। विदाउन ।- वेटः (पु०) -वेदनम्, (न०) कान की बालियाँ-~-शकुची, (स्त्री०) कान का वहिर्भाग 1 -शूलः, ( पु० ) - शूलं, (न० ) | कई कान का दर्द | श्रव (वि० ) ऊँची धावाज से कहा गया। सुन पढ़ने योग्य । श्रावः, - संभ्रवः, ( पु० ) कान का बहना। कान का रोग विशेष सूः (स्त्री० ) कर्ण की जननी कुन्ती । -होन, (वि० ) कर्णविवर्जिश :-टीन:, (पु०) | सर्प कर्णाांकर्णि (वि० ) कानों कान कर्णाटः (बहुवचन) भारत के दक्षिणी प्रायद्वीप का एक भूखण्ड विशेष कर्णाटी (स्त्री०) कर्णाट देश की स्त्री | कर्णिक (वि० / १ कानों वाला २ पतवार वाला । कर्णिकः ( पु०) माझी पतवरिया। पतवारी। ! कर्णिका (बी०) १ कानों की बाली। गुमड़ी | गृमहा। ३] पद्मवीज कप लेखनी। मध्यमा डेंगुली ७ हाथी की सूद की नोंक खड़िया | ४ कूची या चित्रकार की ६ फल का डंठल । ८ चाक मिट्टी [२] पद्मकोपवीज कर्णिकारः ( 30 ) १ वनचम्पा या कठचम्पा का पेड़ । कर्णिकारम् (न० ) कणिकार वृक्ष का फूल जिसमें सुगन्धि बिलकुल नहीं होती कर्णिन (वि०) १ कानों वाला । २ बड़े बड़े कानों वाला । शरपच युक्त । (पु०) : गधा | २ पतवारी । ३ गाठोंदार बाय | कहीं (स्त्री० ) १ पुसदार विशेष बनावट का बाण • २ मूलदेव की माता का नाम । यह मूलदेव कधुर चौर्यकला विज्ञान के प्रादुर्भाव कर्ता थे /- रथः (पु०) पर्दा पड़ा हुआ रथ -सुतः पु०) मूलदेव जो चुराने की कला के आविष्कारकर्ता बतलाये जाते हैं। [२ रुई या सूत फातना | कर्तनम् ( न० ) १ काटना । तराशना । कुतरना। कर्तनी (स्त्री०) १ कैची | २ चकू | ३ छोटी तलवार | कर्त्तव्य ( स० वा० कृ० ) १ करने योग्य | २ काटने या नारा करने योग्य | कर्तृ (वि० ) १ कर्त्ता करने वाला २ परश्रा ३ मा की एक उपाधि ४ विष्णु और शिव की उपाधि | कर्ती (स्त्री० ) १ छुरी २ कतरनी। कैची। } ( पु० ) कीचड़ काँदा । ककः । 1 कमः ( पु० ) १ कीचड़ । कीच काँदा | २ मैल | कूड़ा २ ( आलंका०) पाप-याटकः, (पु०) कूड़ाखाना । फमम् ( न० ) मांस | गोश्त | कर्पूट: ( पु० )| कर्पटम् ( न० ) पुराना या पैबंद लगा हुआ कपड़ा | २ कपड़े की धज्जी ३ गेरुया रंग का कपड़ा। दगीला कपड़ा । कर्पटिक ? ( वि० ) चिथड़े लपेटे हुए । कर्पटिन / कर्पण: ( पु० ) एक प्रकार का शस्त्र। | कर्पूरः (१०) १ कढ़ाही कड़ाह | २ ३ ठीकरा | ४ खोपड़ी । ५ हथियार । कसः ( पु० कर्षासम्( न० ) कर्पासो (स्त्री० ). पात्र | वर्तन । एक प्रकार का कपास का वृक्ष । रूई का पेड़ ) ( यु० ) कपूर काफूर | - कर्पूरः कर्पूरम् ) ( न० ) खेत २ कपूर कपूर का तेल | कर्करः ( 50 ) दर्पण आईना। कर्बु ( वि० ) रंग बिरंगा | चितकबरा | कर्बुर (वि० ) १ रंग बिरंगा | चितकबरा । २ भूरा | धुमैला (5०) 1कसर के रंग का । चितकबरा रंग २ पाप ३ प्रेत शैतान | ४ धतूरे का पेड़। 1 खण्ड, ( पु० ) १ कपूर का की डली -तैलं, (न०) करम् 1 करपू ( न० ) १ सोना | २ जल । कर्बुरित ( ३० कृ० ) रंगविरंगा कर्मठ (वि० ) १ कार्यकुशल । क्रियाकुशल काम करने में निपुण २ परिश्रम से काम करने वाला। ३ केवल धार्मिक अनुष्ठानों के फरने ही में लय- छीन । कर्मठः (पु० ) यश कराने वाला। कर्मण्य ( दि० ) चतुर । निपुण कर्मण्या ( श्री० ) महतूरी उजरत कर्मण्यम् ( म० ) क्रियाशीलता । कर्मन् (न० ) १ किया। फर्म चरित्र | २ सम्पादन ३ व्यवसाय | कर्त्तव्य १४ धार्मिक कृत्य | ५ धर्मानुष्ठान का सम्पादन ६ धर्म विशेष नैतिक पारिश्रमिक I ( २१४ ) 1 फल ८ कर्मविपाक | पूर्व जन्म में किये हुए शुभाशुभ कर्मों का फला- फल प्रारब्ध। -अत्तम्, (चि०) कोई भी काम करने के योग्य अंगम्, (न० ) यज्ञ कर्म का एक भाग विशेष/- अधिकारः (g०) धार्मिक कृत्य या क्रिया करने का अधिकार अनुरूप, कर्तव्य ७ परिणाम 1 ( वि० ) 1 फर्मानुसार । २ पूर्वजन्म में किये हुए कर्मों के अनुसार अन्तः, ( पु० ) १ किसी कार्य यां क्रिया का अवसान । २ व्यापार व्यवसाय कर्म का सम्पादन | ३ खत्ती । खों अनाज का भागढार ४ जुती हुई जमीन-अन्तरं, ( म० ) १ क्रिया में भेद | २ प्रायश्चित पापनिवृत्ति ३ किसी धर्मानुष्ठान का स्थगित करना अन्तिक. (वि०) अन्तिम /- प्रन्तिकः, (५०) नौकर कारीगर ।-अ/जीवः (पु०) कारीगर । इन्द्रियम् ( न० ) वे इन्द्रियाँ जो कर्म करें। जैसे हाथ पैर, आँख कान आदि । -उदारं. (न०) महानुभावता उच्चाशयता । J उद्युक्त, (वि०) मशगुल लवलीन | क्रिया- शील स्पर्वाचान्। कर, ( पु० ) १ रोजन्दारी पर काम करने वाला मजदूर ।२ यमराज ।-कर्तु, (पु०) व्याकरण में कर्ताकारक। -- कागडः, (पु०) काण्डम् (न० ) वेद का वह अंश जिसमें यज्ञानुष्ठानादि कर्मों का तथा उनके माहात्म्य का वर्णन है। -कारः, (पु० ) वह मनुष्य जो कोई कमन् भी काम करे। कारीगर उजरत लेकर काम करने वाला ३ लुहार ४ साँढ़-कारिन (पु० ) मञ्जदूर | कारीगर /–कार्मुकः, (५०) कार्मु कम्, ( न० ) सुरद धनुष - कीलका, (१०) धोबी क्षेत्रं, (न० ) वह भूमि जहाँ धार्मिक कर्मानुष्ठान किया जाय | [ भारतवर्ष कर्मभूमि कह लाता है। गृहीत, (वि० ) किसी कार्य करते समय पकड़ा हुआ। ( जैसे चोरी करते समय चोर) -धातः (पु०) फाम बंद कर देना । काम छोड़ बैठना। चण्डालः, - चाण्डालः, (पु०) १ नीच काम करने वाला वशिष्ठ जी ने पांच प्रकार के कर्मचाण्डाल बतलाये हैं:--- कपि या वाहवापि पशुमः ॥ २ दुस्साहस पूर्ण या निष्ठुर काम करने वाला । ३ राहु का नाम । -चीदना ( खी० ) १ वह हेतु या कारण जिससे प्रेरित हो कोई यशानुष्ठान कर्म करे । २ शास्त्र की वह स्पष्ट आशा या निर्देश, जिसमें किसी धार्मिक अनुष्ठान करने का अवश्य करणीय विधान वर्णित हो । -शः, ( पु० ) धर्मानुष्ठान का विधान जानने वाला 1-यागः, ( पु० ) लौकिक कर्मों का त्याग दुष्ट (वि०) असदा- चारी | दुष्ट लंपट तिरस्करणीय /-दोषः, ( पु० ) १ पाप २ भूल चूक त्रुटि ग़लती। ३ मानवोचित कर्मों का शोच्य परिणाम | ४ अयशस्कर आचरण /~-धारयः, ( पु० ) एक प्रकार का समास ध्वंसः, (पु०) किसी धर्मा- नुष्ठान कर्म के फल का नाथ २ हतोत्साह /- नाशा, ( स्त्री० ) एक नदी का नाम /- निए, (वि० ) धार्मिक कृत्यों के करने में संलझ /-पथः, ( पु० ) कर्मयोग । फर्ममार्ग (ज्ञानमार्ग का उल्टा ) - पाकः, ( पु० ) पूर्व जन्म में किये हुए कर्मों के फल की प्राप्ति का समय। -न्यासः, (पु०) धर्मानुष्ठानों के फल का त्याग। -फलं (न०) पूर्वजन्म में किये हुए शुभाशुभ कर्मों का शुभाशुभ फल ।बंधः, चंधनम्, (२०) धावागमन अथवा जन्म मरण का बंधन | -भूः, भूमिः (स्त्री० ) भारतवर्ष। -मीमांसा, कर्मदिन ( २१५ ) कलङ्क - (स्त्री०) कर्मकार सम्बन्धी वेदभाग पर विचार | कर्षिणी (स्त्री०) लगान | करने वाला जैमिनि द्वारा रचित अन्य विशेष - मूलं, (न०) कुश | 1: -युगम्. (न०) कलियुग। - योगः, (पु०) कर्ममार्ग 1-विपाक, देखो कर्मपाक /-शाला, (श्री०) दूकान । कारखाना। -शील-शूर, (वि०) परिश्रमी | क्रियाशील सङ्गः, (पु०) लौकिक कर्मों और उनके फलों में आसक्ति सचिवः, (पु० ) दीवान । मिनिस्टर ( बनीर --संन्यासिकः, संन्यासिन, (५०) संन्यासी जिसने समस्त लौकिक कर्मों का त्याग कर दिया हो। ऐसा तपस्वी जो धार्मिक अनुष्ठान तो परे, किन्तु उनके फलों की कामना न करे 1- साहिन्, (१०) १ प्रत्यक्षदर्शी साधी । २ वे साक्षी जो जीवधारियों के शुभाशुभ कर्मों को साड़ी बन कर देखते हों। [ऐसे नौ साक्षी माने गये हैं। य कर्पू: (स्त्री०) १ खाई। लंबी नाली । २ नदो | ३ नहर (50) अनेकंडों की भाग। २ खेती | २ आजीविका । कर्हि चित्, ( श्रव्यया० ) किसी समय कलू ( श्रा० श्राश्म ) [कलते कलित] बजाना। (उभय०) [कलयति, कलयते, कलित] ६ पकड़ना । थामना २ गिनना | ३ लेना । गिनना | २ रखना। ४ जानना समझना। कल (वि०) १ अस्पद मधुर धीमी और कोमल २२ निर्बल ३ कच्चा अनपचा हुआ अपक | ४ रुनभुन का शब्द करने वाला अंकुरा (g० ) सारसपी अनुनादिन ( पु० ) १ गौरैया पक्षी | २ मधुमक्षिका । २ चटक पक्षी - अविकलः, (पु०) गौरैया पक्षी । आलापः, (पु०. १ धीमी कोमल गुनगुनाहट | २ मधुर एवं प्रिय सम्भाषण । ३ मधुमक्षिका 1--उत्साल, (वि०) ऊंचा | वीषण | पैना :--कराठ, (वि०) मथुर कण्ठस्वर वाला।--- कराठ:. (पु०) कराठी, (स्त्री०) १ कोयल । २ हंस | ३ कबूतर |– कलः, (पु०) १ जन समुदाय का कोलाहल । २ अस्पष्ट और अंडबंड शोरगुल ३ शिव जी का नाम । --कूजिका कूणिका, (श्री०) निलंजा खी। असतीखी। - घोषः ( पु० ) कोयल - तूलिका, (स्त्री० ) निर्लज्जा या रसीजी की । -धौतं, (न०) : चाँदी २ सोना 1- धौत- लिपिः, (स्त्री०) सुनहले अचरों की लिखावट।- ध्वनिः, (स्त्री०) मधुर धीमा स्वर || २ क- सर ३ मोर मयूर ४ कोयल । -नाद:, (पु०) मधुर धीमा स्वर।भाषणं. (न०) चालकों की तोतली बोली |~-रवः, (पु०) मधुर धीमा स्वर । --- हंसः, (5०) १ हंस | राजहंस | २ बत्तक ३ १३ कर्मदिन (पु०) संन्यासी । साधु कमर: (पु.) लुहार । कर्मिन् (वि०) १ क्रियाशील कार्यंतस्पर २ वह पुरुष जो फल प्राप्ति की अभिलाषा से धर्मानुष्ठान करता हो। ( पु० ) कारीगर । कलाकुशल | कर्मिष्ठ (वि० ) चतुर । परिश्रमी व्यापारपद् कर्वट: (पु०) मण्डी अथवा किसी प्रान्त का ऐसा मुख्य नगर जिसके अन्तर्गत कम से कम २०० से ४०० तक आम हों। कर्षः (पु०) १ तनाव खिंचाव | २ धाकर्षण | ३ खेत की जुताई । ४ खाई। लंबी नाली १ खरोंच। कर्षः (पु०) कर्षम् (न०) १६ माशा की सोने चाँदी की सौल } परमात्मा । कर्षक (वि०) खींचने वाला। कलः (पु०) धीमा कोमल एवं अस्पष्ट स्वर। कलं (न०) वीर्य | धातु | कर्षणम् (न०) १ खींचना | तानना | २ जोतना । कलंकः ? (पु०) १ धब्बा | काला दाग । चन् हल चलाना | ३ चोटिल करना । पीड़न कलङ्कः ) (अलङ्का०) अपयश । बदनामी अपकीर्ति । ३ दोष त्रुटि ४ लोहे का मोचां सीता | सूर्यः सोमो : कालो महाभूतानि शुभकर्मको नव साक्षियः ॥] -सिद्धिः, (खी ) सफलता | मनोरथ का साफल्य - स्थानं, (न०) दफ्तर आफिस व्यापार करने का स्थान | 1फल कध कलंकषः ) (पु० ) [ स्त्री०- कलंकषी, कलङ्कप: 5 सिंह | कलंकित । कलङ्कित कलंकुरः ) ( पु० ) भँवर । बगूला । उल्टी धारा। कलङ्करः ) उल्टा बहाव । कलंजः ) ( पु. ) १ पक्षी । २ विष के अस्त्र से कलअः ) मारा हुआ हिरन आदि जीवधारी। कलंजम् । ( न० ) विप में बुके अस्त्र से मारे हुए पशु कलअम्) का मांस । ( २१६ ) कलापकम् कलङ्कषी ] | कलहः ( पु० ) } 9 कगड़ा । खढ़ाई भिड़ाई । कलहम् (न० ) २ युद्ध जंग | ३ दाँवपेंच धोखाधड़ी झूठ । छुख । प्रचण्डता । आघात प्रहार मार। -अन्तरिता, (स्त्री० ) प्रेमी से झगड़ा हो जाने के कारण अपने प्रेमी से वियुक्त स्त्री अपहृत ( वि० ) बरजोरी हरा हुआ छीना हुआ। प्रिय, (बि० ) वह व्यक्ति जिसे लड़ाई झगड़ा अच्छा लगता हो । ( वि० ) बदनाम | दगीला | कलत्रम् ( न० ) १ पत्नी २ कमर | कूल्हा | ३ शाही गढ़ | कलनम् (न०) १ धन्वा दाग़ २ त्रुटि अपराध दोष ३ ग्रहण | ग्रास पकड़ ४ अवगति । समझ ५ र शब्द | कलना (खी०) उपकड़ ग्रास ग्रहण २ किया। ३ वशवर्तित्व | मुती । ४ समझ ५ धारण करना। पहिनना। कलविका } ( स्वी० ) बुद्धि । प्रतिभा । कलभः ( पु० ) १ हाथी का बचा २ तीस वर्ष कलभी ( खीं० ) 5 की उम्र का हाथी । ३ ॐ का या अन्य किसी जानवर का बच्चा कलमः ( पु० ) वे धान जो मई और जून में बोये जाते और दिसंबर में पकते हैं । २ लेखनी नरकुल जिसकी क़लम बनती है। ३ चोर। ४ गुंडा | बदमाश । दुष्ट । कललः ( पु० कललम् (न. कलंबः ?} ( पु० ) १ तीर | २ कदम्ब वृच्च । कलम्बः ) कलंबुटम् कलम्बुटम् ( न० ) ( ताज़ा ) मक्खन | • योनि गर्भ की किल्ली। + कलविङ्गः ) ( पु० ) १ गौरैया पक्षी | २ इन्द्रजी | १ धन्या दारा कलविङ्गः कलहः ( पु० ) नारद जी की उपाधि | कला (स्त्री० ) टुकड़ा | २ व्याज । १ किसी वस्तु का छोटा अंश । चन्त्रमण्डल का १६वाँ अंश ३ सूद ४ समयविभाग २ राशि के तीसवें भाग का ६० वाँ भाग। कोई धंधा । ऐसी कलाएं चौसठ होती है। यथा गाना बजाना आदि । ७ चातुर्थ प्रतिभा कपट छल । १ नौका | १० रजोदर्शन /अन्तरं, ( न० ) अन्य बैंश २ व्याज सूद लाभ (पु०) तलवार की धार पर नृत्य करने वाला। ~~आकुलम्, (न०) हलाहल विष 1-केलि, (वि०) हर्षित। आल्हादित । रसीक्षा /- केलिः, ( पु० ) कामदेव की उपाधि । -तयः, ( पु० ) - घर, निधिः, पूर्णाः ( पु० ) चन्द्रमा / --भृत् ( पु० ) चन्द्रमा | अयनः, चन्द्र का हास ● ( पु० ) सुमार। क्लापः (पु० ) १ गट्ठा । कलशः (पु०) कलसः कलशम (न०) कलसम् कलशी (स्त्री० ) ) धड़ा 1 कलसा /सुतः, कलसी ( पु० ) ) अ ऋषि का नाम । लादः कलादकः गठड़ी । २ समुदाय । मयूरपुच्छ | ४ स्त्री वस्तुओं का संग्रह | ३ का इज़ारबंद या करधनी २ आभूषण ६ हाथी की गरदन की रस्सी । ७ सरकस तृणीर तीर बाय | ६ चन्द्रमा चतुर मनुष्य 13 एक १० बुद्धिमान एवं छन्द में लिखी हुई पद्य रचना १२ संस्कृत का व्याकरण विशेष। १ घड़ा। कलसा | २ चौतीस सेर का माप विशेष /- - जन्मन्, उद्भवः, ( पु० ) अगस्य जी | कलापकम् (न०) १ चार श्लोकों का समूह जो किसी का नाम । एक ही विषय के वर्णन में हो और जिनका एक ही अन्वय हो । २ ऋण जिसकी अदायी उस समय हो जिस समय मोर अपनी पूंछ फैलावे । कलापी ( श्री० ) घास का गट्टा । कलापक कलापकः ( पु० ) १ गट्ठा । गट्ठर | २ मोतियों की माला ३ हाथी के गले की रस्सी । ४ wreat या कमरबंद माथे पर का तिलक विशेष । कलापिन् ( पु० ) १ मोर | २ कोयल | ३ वटवृत्त | कलापिनी ( श्री० ) १ रात । २ चन्द्रमा | कलायः (go ) बीज विशेष | कलाविकः ( पु० ) मुर्गा कलाहकः ( पु० ) काहिली एक प्रकार का मुँह से बजाया जाने वाला बाजा । ( २१७ कलिः (५०)। लड़ाई | २ युद्ध | जंग | ३ चौथा युग यानी कलियुग। [ कलियुग ४१२००० वर्ष का होता है। यह १९०२ स्त्री० पू० वर्ष की म वीं फरवरी को लगा था ।] मूर्ति धारी कलियुग जिसने राजा नल को सताया था। ६ किसी श्रेणी का सर्वनिकृष्ट ७ विभीतिका वृत्त । बहेदा का पेड़८ पाँसे का यह पहल जिस पर अंकित - हो। ८ वीर शूर श्तीर। बाह्य (स्त्री०) कली। -कारः, कारकः, कियः, ( पु० ) भारद जी की उपाधि ।-द्रुमः, वृत्तः, (पु०) बहेड़े का पेड़। --युगं, (न० ) कलियुग | कलिका ) ( स्त्री० ) १ अनखिला फूल | बौड़ी | २ कलिः ) कला | धारी। अंश इकाई । कलिंगा: (पु० -बहुवचन ) देश विशेष और कलिङ्गाः ऽ उसमें बसने वाले लोग । वाममार्ग में इसकी सीमा का उल्लेख इस प्रकार पाया जाता है। जगार कृष्वनीराम्वगः मिये । सम्मोसोवामनार्यपरायः ॥ कलिंजः ? कलिअः ) (पु०) चटाई चिक प 1 कलित् (वि० ) गृहीत पकड़ा हुआ। लिया हुआ । कलिंदः ( (पु० ) १ पर्वत जिससे यमुना नदी निक- कलिन्दः । लती है| २ सूर्य (कन्या, आ - तनया, नन्दिनी ( स्त्री० ) यमुना नदी की उपाधियाँ -गिरः, (5०) स्वनाम प्रसिद्ध पर्वत । कलिल (वि० ) १ ढका हुआ भरा हुआ । २ मिला हुआ। ३ प्रभावान्वित | वशवर्ती अभेद्य कलिलम् (न० ) एक बड़ा ढेर। कलुष ( वि० ) १ मटीला। गंदला मैला खराय | २ छिलकादार दबा हुआ । भद्दा । ३ भरा 1 ) कल्पक: हुआ । १ कुछ | अमसन्न | उत्तेजित | २ दुष्ट | पापी बुरा ६ निष्ठुर तिरस्करदीय काला। धुंधला मैला । सुख काहित । अकर्मण्य । -योनिज, ( वि० ) वर्णसङ्कर । कलुषः ( पु० ) भैसा । महिष । कलु ( न० ) १ मैल । कूड़ा करकट फीचड़ २ पाप ३ क्रोध। रोप कलेवरः ( पु० ) ) शरीर | देह | वन । जिस्म । कलेवरम् (म० ) ) 1 कल्कः ( पु० ) ) १ घी या तेल की तलछट कॉइट। कल्कम् (न० ) 5 फीट २ लेही या लेही की तरह। चिपकने वाला कोई पदार्थ ३ मैल | कूदा | ४ विष्ठा । २ नीचता । कपट दम्भ ६ पाप । ७ पीसा हुआ चूर्ण कल्कफलः ( पु० ) अनार का पेढ़। कल्कनं (न० ) छलना प्रवचना मिथ्या झूठ । कलिः ) ( पु० ) भगवान् विष्णु का दसवाँ अथवा कल्किन् । अन्तिम अवतार। 1 कल्प (वि० ) १ साध्य होने योग्य | सम्भव २ उचित । ठीक योग्य २ निपुण द कल्पः ( पु० ) १ धर्मशास्त्र की आज्ञा आईन । आदेश । २ निर्दिष्ट नियम ऐच्छिक नियम । ३ प्रस्ताव सूचना निश्चय सङ्कल्प ४ पति । 1 ढंग तरीका विधान १५ प्रलय | ६ वह्मा जी का एक दिवस अथवा १००० युराव्यापी काल । ३७ बीमार की चिकित्सा | म छः वेदानों में से वेद का एक अङ्गअन्तः (=कल्पान्तः) (पु०) प्रलय काल | नाश ।-आदिः, (कल्पादिः । (पु०) सृष्टि के आरम्भ काल में सब वस्तुओं का पुनः निर्माण कारः, (पु०) फल्पसूत्र के निर्माता । -क्षयः, ( पु० ) प्रलय सर्वनाश-तकः- द्रुमः~-पादपः, वृक्षः, ( पु० ) स्वर्ग का एक वृक्ष विशेष | ( ग्रालं० ) उदार वस्तु पालः, (पु०) मद्य विक्रेता । - जता, (स्वी०) स्वर्गीय लता विशेष ।~-सूत्रं, (न०) ग्रन्थ विशेष जिसमें पद्धितियों का निरूपण है। कल्पकः, (पु० ) 1 रीति शास्त्रोक्त कर्म । २ नाई। नापित | -- लतिका, स० श० कौ० २८ कल्पनम् कल्पनम् ( न० ) १ बनाना। सजाना। सुव्यवस्थित करना । २ पूरा करना । कार्य में परिणत करना । ३ कतरना | काटना। ४ गाड़ना । १ सजाने के लिये तर ऊपर रखना । कल्पना ( स्त्री० ) १ बनाना। करना । २ तरतीब में लाना । ३ सजाना । ४ रचना करना | १ आविष्कार करना । ६ विचार । मानसिक कल्पना ७ जाल। जालसाज़ी ८ रीतिभाँति | युक्ति । कल्पनी (स्त्री० ) कैची। कल्पित ( वि० ) सुव्यवस्थित निर्मित सज्जित ( २१८ ) कल्मष ( दि० ) १ पापी | दुष्ट | २ मैला कुचैला । गंदा । कल्पपं ( न० ) कल्मषः ( पु० ) } ₁ १ धन्वा । मैल । २ पाप । कवलम् कारी। शुभप्रद | ३ पुण्यात्मा। -धर्मन, (वि०) पुरमात्मा 1-वचनं, ( न० ) सौहाईव्यअक भाषण | शुभ कामनाएं | कल्याणं (न०) १ सौभाग्य । खुशकिस्मती | आनन्द । भलाई । समृद्धि | २ पुण्य | ३ उत्सव ४ सुवर्णं । १ स्वर्ग | कल्याणी (स्त्री०) गौ। गाय । कल्ल (वि० ) बहरा। बधिर | कल्माष ( दि० ) [ स्त्री०~~कल्माषी, 11 रंग- कल्लोल: ( पु० ) १ विशाल लहर । २ शत्रु । ३ बिरंगा । चितकबरा । २ सफेद और काला मिला । कल्लोलिनी (स्त्री० ) नदी । सरिता। असन्नता। हर्ष । हुआ 1-कण्ठः, ( पु० ) शिवजी की उपाधि । कल्माषः (पु०) १ चितकबरा रंग। २ सफेद और काले | कव् ( धा० ग्रात्म० ) [ कवते, कवित ) १ प्रशंसा रंगों का संमिश्रण | ३ दैत्य दानव | करना । २ वर्णन करना। रचना (पद्य का ) |३ चित्रण करना। चित्र बनाना। कल्माषी (स्त्री० ) यमुना नदी का नाम । कल्य ( वि० ) १ स्वस्थ | रोगरहित | तंदुरुस्त । २ तैयार । तत्पर । ३ चतुर । ४ शुभ | अनुकूल | ५ बहरा गूँगा । ६ शिक्षाप्रद । आशः, -अग्धिः ( स्त्री० ) कलेवा | सबेरे का भोजन । – पालः - पालकः ( पु० ) कनार कलवार शराब खींचने वाला (वर्तः, (पु०) कलेवा । जलपान । - वर्तम्, ( न० ) तुच्छ । हल्का । धनावश्यक कल्यं, (न० ) १ तड़का | सबेरा । २ श्राने वाला । अगला दिन | ३ मदिरा । ४ बधाई । शुभ कामना । आशीर्वाद | ५ शुभ संवाद | कल्या (स्त्री० ) १ मदिरा । २ बधाई। -पालः, - पालकः, (पु० ) कलाल। कलवार । कल्याण (वि०) [ स्त्री० ~~कल्याणा, कल्याणी, ] ( न० ) १ शुभ | सुखी । भाग्यवान । सामाग्य- शाली । २ सुन्दर । प्रिय । मनोहर । ३ सर्वोसम | गौरवान्वित | ४ मङ्गलकारी । भला - कृत, ( वि० ) १ लाभदायक | शुभ | २ महल- कल्याणक (वि० ) [ स्त्री०—कल्याणिका, ] १ शुभ समृद्धिशाली । धन्य कल्याणिन् ( वि० ) [ स्त्री० - कल्याणिनी, ] १ सुखी भरापूरा २ भाग्यशालो धन्य । ३ शुभ मङ्गलकारी । कवकः (५०) मुँह भर । | कवकम् (न०) कुकुरमुत्ता | कठफूल । कवचः ( पु० ) ) १ वर्म | जिरहवस्तर | २ तावीज | } कवचम् ( न०) ) यंत्र | ३ ढोल 1-पत्रः ( पु० ) भोजपत्र 1- हर, (वि० ) १ वर्म धारण किये हुए । २ कवच धारण करने के लिये अति बृद्ध । कवटी (स्त्री०) चौखट ( द्वार की ) या (तसवीर का) चौखटा कवर, कबर (वि० ) [ स्खौ० - कवरा या कवरी, कबरा या कबरी ] १ मिश्रित | मिलाजुला । २ जड़ा हुआ। रंगविरंगा । कवरः, कवरः (पु० ) | १ निमक | २ खटाई या कवरम्, कवरम् (न०), । चोटीबंद । खट्टापन चुटीला। बाल बांधने का फीता । कवरी-कबरी (स्त्री०) गुथी हुई चोटी चोटीवन्द । कवलः (पु० ) } मुखभर। कौर । गस्सा । कवलम् (न०) कवलित कचलित (वि० ) : खाया हुआ । निगला हुआ । २ चवाया हुआ | ३ ग्रहण किया हुआ | पकड़ा हुआ। कवाट ( देखो कपाट ) कवि ( वि० ) १ सर्वज्ञ | सर्ववित् । २ बुद्धिमान चतुर । प्रतिभावान | ३ विचारवान | ४ प्रशंस- नीय । श्वान्य। कविः (पु०) १ बुद्धिमान पुरुष। विचारवान । पण्डित । पद्यरचना करनेवाला। शायर | ३ असुराचार्य शुक्रदेव की उपाधि । ४ श्रादिकवि वाल्मीकि । ५ ब्रह्मा । ६ सूर्य । (स्त्री० ) लगाम । - ज्येष्ठः, ( पु०) वाल्मीकि जी की उपाधि । -पुत्रः (पु०) शुक्र जी की उपाधि 1- राजः, (पु०) १ बड़ा शायर | २ एक कवि का नाम एक पद्य का रच यिता जो राघवपाण्डवीय के नाम से प्रसिद्ध है। कविकः ( पु० ) लगाम । कविता ( स्त्री० ) पद्यरचना । कवियं } (न०) लगाम । कवोष्ण (वि०) गुनगुना । कुछ कुछ गर्म । कव्यं (न०) पितरों के लिए तैयार किया हुआ अन कन्य और देवताओं के लिये तैयार किया हुआ श्रन हय कहलाता है | - वाहू (पु०) - वाहः -वाहन: ( पु०) अग्नि । कव्यः (पु०) पितर विशेष | कशः (पु० ) कोड़ा। चाबुक । कशा ( स्त्री० ) १ चाबुक | कोड़ा | २ कोड़े मारना । ३ डोरी। रस्सी । कट कश्मीरः ( पु० बहुवचन ) देश विशेष | तंत्र ग्रन्था- नुसार इस देश की सीमा यह है। शारदानटमारभ्य कुङ्कुमाद्रितटान्तकः । तावरकर देश स्यात् पक्षाशयोजनात्मकः ॥ ज..-जं, जन्मन् (पु० न० ) केसर | जाफ्रान । कश्य (वि० ) चावुक लगाने योग्य | कश्यं ( न० ) शराद | मदिरा । मद्य । कश्यपः (पु०) १ कछुआ । २ अदिति और दिति के पति, एक ऋषि का नाम । कधू ( घा० उभय० ) [ कवति, कपते, कपित ] मलना । खरोचना । छीलना । २ जाँचना । परीक्षा लेना। (कसौटी पर रगड़ कर ) परीक्षा लेना । ३ घायल करना नष्ट करना । ४ खुजलाना। उत्पन्न होने वाला फल विशेष जिसे कसेरू कहते हैं। कश्मल (वि०) गंदा मैला । लज्जाकर घृणित कश्मलं (न०) १ मन की उदासो । २ मोह | ३ पाप। ४ मुर्छा | कप (वि० ) रगड़ा हुआ। खुरचा हुआ | कपः (पु०) १ रगड़ २ कसौटी का पत्थर | कषणम् (न०) १ रगड़न । चिन्हकरण । छीलना । २ कसौटी पर से सुवर्ण की परख । कषा देखा 'कशा' | कषायः (वि०) १ कहुआ। कसैला | २ सुगन्धित । ३ लाल | कलौंहा लाल । ४ मधुर स्वर वाला । १ भूरा ६ अनुचित | मैला । कषायः (पु० ) ) १ कसैला या कडुवा स्वाद या रस | कपायम् (न०) ) २ लाल रङ्ग | ३ काढ़ा। ४ लेप । उबटन | ५ तेल | फुलेल लगाकर शरीर को सुवा- सित करना ।६ गोंद । राल । ७ मैल । मैलापन ८ सुस्ती | मूढ़ता ६ सांसारिक पदार्थों में अनु- राग या अनुरक्ति। ( पु० ) १ अत्यासक्ति । अनुराग २ कलियुग । रंजित | रक्तरक्षित | २ कशिपु ( पु० या न० ) १ चटाई | २ तकिया । ३. विस्तर । शय्या | [ भोजन बस्त्र | कशिपुः (पु०) 8 भोजन २ परिच्छद । वस्त्र | ३ कषि (वि०) हानिकर । अनिष्टकर | क्षतिजनक | कशेरु } (g०) ( न० ) १ मेरुदण्ड-अस्थि । पीठ के कवेरुका } (स्त्री० ) पीठ के बीच की हड्डी । मेरु- | २ कपायित (वि० ) १ रंगीन भावान्तरित । विकृत । कष्ट (वि०) १ बुरा । खराब | दुष्ट गलत | २ पीडा- कारक । सन्तापकारी । ३ क्लिष्ट | कठिनाई से वश में होने वाला । ४ उपद्रवी । अनिष्टकारी । क्षत्ति- जनक । स्थगे होने वाला । अशुभ बतलाने वाला। कष्ट ( २२० -भागत, (वि०) कठिनाई से प्राप्त या कठिनाई से भाया हुआ -कर, (वि०) पीड़ाकारक | दुःखदायी।-तपस्, (वि० ) कठोर तप करने- वाला।साध्य, (वि) कठिनाई से पूरा होने- वाला । -स्थानं, (न० ) दूषित जगह । फठिनाई का या अप्रिय या प्रतिकूल स्थान | कथं ( ० ) १ष्ट | कठिनाई । विपत्ति | पीड़ा । दर्द | २ पाप | दुष्टता । ३ अड़चन | कष्टं (अव्यया० ) हा कष्ट । हा धिक। ऋष्टि (स्त्री०) १ जाँच परीक्षा | २ पीड़ा दुःख । कस् ( धा०प० ) [ कसति, कसित् ] हिलना। जाना। (आत्मने०) [ कस्ते या कंस्ते ] १ जाना। 4 २ नाश करना । मृगः (पु.) हिरन जिसकी नाभि से कस्तूरी निकलती है। कस्तुरिका ) (स्त्री०) मुरक । कस्तूरी कस्तूरिका वह कस्तूरी कल्हारं (न०) सफेद कमल कहः (पु०) एक प्रकार का वेत कांसोयं (न०) कांसा | फूल । धातु । कांस्य (वि०) काँसे या फूल का बना हुआ।-कारा, (पु०) कसेरा । कौंसे का बरतन बनाने वाला - तालः (पु०) झाँक | मजीरा। भाजनम् (न०) पीतल का पात्र]-मलं, (न०) कसाव | ताँबे का मोची। पितराई। कांस्यम् (न० ) कांस्यः (पु० ) कांस्यम् (न०) | काकिणिका ऐसा · छदिः, (पु०) १ खंजन पक्षी | २ जुल्फ | अलक | - जातः ( पु० ) कोकिल । -तालीय, (वि०) अचानक या इत्तिफाकिया होने वाली घटना - तालुकिन, (वि०) तिरस्करणीय। दुष्ट-दन्तः, ( पु० ) कौए के दाँत ( आलं० ) कोई वस्तु जिसका अस्तित्व असम्भव हो। अनहोनी बात । -दन्तगवेषणम्, ( न० ) ऐसी बात की खोज जो सर्वया असम्भव हो व्यर्थ का काम काम जिसके करने में कुछ भी लाभ न हो । ध्वजः, (१०) वाइवानख। -निद्रा, (खी० ) झपकी। जो तुरन्त दूर हो जाय -पक्षः, - पक्षकः, (पु० ) एक प्रकार की जुल्फे पट्टे 1 बालकों की दोनों कनपुटियों के लंबे वालों को काकपच कहते हैं। -पदं, (न० ) छूट का यह ( ू ) चिन्ह | [ हस्तलिखित पुस्तक या किसी लेख में जहाँ यह चिन्ह लगा हो वहाँ समझ ले कि यहाँ कुछ छूट गया है। ] - दः, (पु० ) स्त्री- समागम का विधान विशेष पुच्छ, पुष्ट, ( पु० ) कोकिल कोइल - पेय, ( वि० ) छिछला। उथला । —भीरुः, ( पु० ) उल्लू | उलूक। - यवः, (पु० ) अनाज की बाल जिसमें दाना न हो 1-रुतं, (न० ) कौए की काँव काँव जिससे भविष्यद् के शुभाशुभ का ज्ञान होता है। -वन्ध्या (स्त्री० ) वह स्त्री जिसके केवल एक हो सन्तान होता है। -स्वरा ( पु० ) कैाए की कर्णकर्कश बोली। १ फूल । काँसा । २ कसे का घड़ियाल ३ पीतल का बना जल पीने का पात्र। गिलास। काकं (न० ) काकसमुदाय | काकः (पु०) १ कौवा । २ (आलं०) तुच्छ जन | नोच, | काकी (स्त्री० ) मादा काथा । कौअटिया । निर्लज्ज या उद्धृत पुरुष ३ लंगड़ा आदमी। काकलः काकालः

} (पु० ) पहाड़ी काथा । काला फाक

कॉकलम् } (न० ) रत्नविशेष जो गर्दन में पहिना काकालम् जाता है। काकलिः ) ( स्त्री० ) १ धीमा मधुर स्वर । २ सीठी काकती जिससे चोर यह जानने का यत्न किया करते हैं कि, लोग जगते हैं या सोते हैं । ३ कैची ४ गुआ का भाड़ -रवः, ( पु० ) कोकिल । ४ जल में केवल लिर भिंगो कर (काक की तरह) स्नान करना)-- अतिगोलक न्याय, ( पु० ) कौए की एक ही आँख की पुतली दोनों नेत्रों में चली जाती है। इसी प्रकार उभय सम्बन्धी दृष्टान्त। -रिः (पु० ) उल्लू । उलूक - उदरः, (पु०) सौंप । - उलूकिका, - उलूकीयं, (न०) काक और उलूक का स्वाभाविक वैर। पंचतंत्र के तीसरे तंत्र का नाम “काकोलूकीयम्' है ।—विश्चा. ( स्त्री० ) गुआ या बुंधची का झाड़-दः- - ) काकिणी काकिणिका ) ( स्त्री० ) १ कौड़ी | २ सिक्का विशेष जो चौथाई पण या २० काकिनी ( कौड़ियों के बराबर होता है | ३ चौथाई भाशा । ४ माप का एक अंश विशेष । ५ तराजू की इंडी| ६ अठारह इंच या आधगज़ | काकिनी (स्त्री०) १ चौथाई पण । २ माप विशेष का चतुर्थाश | ३ कड़ी। २२१ ) काली कांचनकिन ( पु० ) हस्तलिपि लिपि लिखत । काचूकः (पु०) १ मुर्गा | २ चक्रवाक | चकई चकवा | काजलम् ( न० ) १ स्वल्प जल | २ दूषित जल । कांचन | (वि० ) [ स्त्री० - काञ्चनी | सुनहला काञ्चन / या सोने का बना हुआ । अङ्गी (स्त्री०) सुनहले रंग की स्त्री अर्थात् पीले रंग की स्त्री - कन्दरः, ( पु० ) सोने की खान । - गिरि, ( पु० ) सुमेरु पर्वत । - भूः, ( स्त्री० ) १ पीली मिट्टी वाली ज़मीन । २ सुवर्णरज -सन्धिः, (स्त्री० ) दो पक्षों के बीच हुई ऐसी सन्धि या सुलह जिसमें उभय पक्ष के लिये समान शर्तें है। कांचनम् ) ( न० ) १ सोना | सुवर्ण | २ चमक | काञ्चनम् । दमक । ३ सम्पत्ति । धनदौलत । ४ "आवेश में स्वर कः ( स्त्री० ) १ वक्रोक्ति । भय, क्रोध, शोक के की विकृति या परिवर्तन । २ अस्वीकारोक्ति को इस ढब से कहना कि, सुनने वाले को वह स्वीकारोक्ति जान पड़े। २ गुनगुना हट | ४ जिह्वा । काकुत्स्थः ( पु० ) ककुत्स्थ राजा के वंशधर । सूर्य- वंशी राजाओं की उपाधि विशेष | काकुदं ( न० ) तालू । तलुआ । जिह्वा का आश्रयस्थान | काकोत्तः ( पु० ) १ काला कौश्रा । पहाड़ी काक २ सर्प | ३ शूकर | ४ कुम्हार | ५ नरक भेद | काक्षः ( पु० ) १ तिरछी चितवन । कनखिया देखना । काक्षम् ( न० ) ऐसे देखना जिससे अान्तरिक अप्र- सन्नता प्रकट हो। टेंडी चितवन । कागः (पु० ) काक । कॉच ( धा० परस्मै० ) [ काँक्षति, काँक्षित ] १ इच्छा करना चाहना २ आशा करना । प्रतीक्षा करना । कांक्षा (स्त्री०) १ कामना । इच्छा | २ प्रवृत्ति । भूख जैसे "भक्तकता" । कांक्षिन (वि० ) [ स्त्री० काँक्षिणो ] इच्छा करने वाला । अभिलाषी । काँच: ( पु० ) १ काच | शीशा | स्फटिक | २ फाँसा । फंदा । लटकने वाली अलमारी का खाना । जुएँ की रस्सी । ३ नेत्र रोग विशेष | ४ मोम |५ खारी- मिट्टी | - घटी, (स्त्री०) झारी । लोटा जो काच का बना हो।--भाजनं, (न० ) शीशे का पात्र । -मणिः, (पु० ) स्फटिक । — मलं, – लवणं, -सम्भवम्. ( न० ) काला निमक या सोडा कांचनम् ( न० ) डोरी या फीता जो बंडल कांचनकम् । लपेटने या कागज़ों को नत्थी करने के काम में श्रावे ।

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कमल का रेशा । कांचनः ) ( पु० ) धतुरा का पौधा । २ चम्पा का काञ्चनः पौधा कांचनारः काञ्चनारः कांचनालः काञ्चनालः कांचिः ) ( स्त्री० ) १ करधनी जिसमें रोनें या घूँ घर काञ्चिः (लगे हों । बजनी करधनी । २ दक्षिण कांची भारत की स्वनाम प्रसिद्ध एक नगरी जिसकी काञ्ची गणना सप्त मोचपुरियों में है। आधुनिक काँजीवरम् नगर । – पदं (न०) कूल्हा और कमर। काञ्जिकम् । विशेष जो खट्टा हो । कांजिकम् ) ( न० ) खट्टी महेरी । खाद्यपदार्थं काटुकं ( न० ) खटाई | खट्टापन | काठः (पु०) चट्टान | पत्थर | ( पु० ) कोविदार या कचनार का पेड़। काठिनम् ) (न०) १ कड़ाई | कड़ापन | २ निष्ठुरता काठिन्यम् । कठोरता। निष्ठुरहृदयता । काण ( वि० ) १ काना | २ छेद किया हुआ । फूटी कौड़ी। यथा- " प्रातः काणवराटकोपि न मया तृष्येऽघुमा मुख्य मां" काणेयः ) ( पु० ) कानी स्त्री का पुत्र । काणेरः । काली (स्त्री० ) १ असती या व्यभिचारिणी स्त्री। २ अविवाहिता स्त्री | – मातृ, (पु०) अविवाहिता स्त्री का पुत्र | कांडः ( २२२ १ भाग | अंश । २ एक पोहए से दूसरे पोरुए तक का किसी पोरुgदार पौधे का भाग | ३ तना | डंडुल । डाली । शाखा | ४ किसी ग्रंथ का एक भाग ५ पृथक् विभाग ६ गुच्छा | समूह । गट्ठा। ७ तीर । ८ लंबी हड्डी । ६ वेत । नरकुल १० छुड़ी डंडा ११ जल । पानी । १२ अवसर । मौका । १३ खास जगह | रहस्य स्थान | १४ दुष्ट । पापी । -कार, ( पु० ) तीर बनाने वाला 1-गोचरः, (पु०) लोहे का तीर । - पटः, -पटकः, (पु०) | कनात | पढ़र्दा । —पातः, ( पु० ) तीर का उड़ान या वह स्थान जहाँ तक तीर जा सके। - पृष्ठः, ( पु० ) १ सैनिकवृत्ति विशेष | सिपाही । २ वैश्या स्त्री का पति । ३ दत्तकपुत्र या औरसपुत्र से मिन कोई पुत्र ( यह गाली देने में प्रयुक्त होता है। ) कमीना । निमकहराम | महावीर चरित्र में जामदग्न्य को शतानन्द ने काण्वपृष्ठ कांडः, काण्डः ( पु० "स्वकुलं पृष्ठतः कृत्वा यो वै परकुलं व्रजेत् । तेन दुश्चरितैनासौ कापडपृष्ठ इति स्मृतः ॥ --भङ्गः, (पु०) हड्डी का टूटना या किसी शरीरा- वयव का भङ्ग होना । --वाणी, (स्त्री०) चाण्डाल की दीणा। सन्धि, (स्त्री० ) गाँठ | -स्पृष्टः (पु० ) योद्धा | सिपाही । काण्डवत् } (१०) धनुषधारी । कांडीरः काण्डीरः ( पु०) धनुषधारी । कांडोलः नरकुल की बनी डलिया या टोकरी । कात् (अव्यया० ) गाली, तिरस्कार व्यञ्जक अव्यय । कातर (वि० ) १ भीरु । डरपोंक | उत्साहहीन । २ दुःखित । शोकान्वित । भीत। ३ घबड़ाया हुआ । विकल । व्याकुल । ४ भय से विह्वल या भय के कारण थरथराता हुआ । कातर्य (न०) भीरुता । ढरपकपना । कात्यायनः ( पु० ) १ प्रसिद्ध व्याकरणी जिन्होंने पाणिनी के सूत्रों को पूर्ण करने के लिये वार्तिक ) कान्तः की रचना की । वररुचि नामक व्याकरण का वार्तिक बनानेवाले। २ कात्यायनसूत्र नामफ एक धर्मशास्त्र के निर्माता । कात्यायनी (स्त्री०) १ एक बूढ़ी या अधेड़ स्त्री ( जो लाल वस्त्र पहिनती हो ) । २ पार्वती का नाम । --पुत्रः सुतः (पु०) कार्तिकेय का नाम । कार्यचित्क ) ( वि० ) [ स्त्री०- काथंचिकी] काथञ्चिक ) कठिनाई से पूर्ण हुआ हो। काथिकः (न०) कहानी कहनेवाला । कादंबः ) ( पु० ११ कलहंस | २ तीर | ३ गन्ना काद्दः ) ४ कदम्ब का पेड़ | काम } ( न० ) कदम्ब के फूल। कादम्बम् कादंबरम् कादम्बरम् ) कादंबरी ) (स्वी०) १ कदम्ब के फूलों से खींची हुई कादम्बरी) मदिरा । २ मदिरा। शराय। ३ हाथी की कनपुटी से चूनेवाला मद ।४ सरस्वती देवी की उपाधि | २ मादा कोकिल ( न० ) कदम्य के फूलों की शराब । कादंबिनी } ( स्त्री० ) मेघमाला । कादम्बिनी, कादाचिन्क (वि० ) इत्तिफाकिया । काद्रवेयः ( पु० ) सर्प विशेष | काननम् (न० ) १ जङ्गल | वन | २ घर | मकान । - अग्निः, ( पु०) दावानल /-ओकस, (पु०) १ वनवासी । २ वानर कानिष्ठिकम् ( न० ) छगुनिया | सब से छोटी हाथ की उँगुली । कानिष्टियः ( पु० ) ) सब से छोटे बच्चे की कानिष्ठिनेयी (स्त्री० ) । सन्तान । कानीन: ( पु० ) १ अविवाहिता स्त्री से उत्पन्न पुत्र | २ व्यास | ३ कर्ण | कांत ३ (वि०) १ प्रियः । इष्ट | प्यारा | २ मनोहर | कान्त ) अनुकूल | सुन्दर-पतिन् ( पु० ) मोर | मयूर । – लोहं ( न० ) चुम्बक पत्थर | कांतः ) (५०) १ प्रेमी। याशिक | २ पति । ३ प्रेम- 'कारतः पात्र माशूक ४ चन्द्रमा ५ वसन्तऋतु । ६ एक प्रकार का लोहा । ७ रत्नविशेष | ८ कार्ति- केथ की उपाधि | कांतम् कांतम् । }( न० ) केसर । जाफ्रान् । कान्तम् ) ( २२३ ) कापथ ( पु० ) खराव सड़क । कापालः कांता ) ( स्त्री० ) १ माशूका या प्रेमपात्री सुन्दरी कान्ता ) स्त्री । २ पत्नी भार्या । ३ प्रियङ्गु बेल । ४ वड़ी इलायची । ५ पृथिवी । - [अंधिदोहदः ( पु० ) अशोकवृक्ष | कांतारः कान्तारः ( पु०) १ १ विशाल वियावान । कांतारं, कान्तारं (न०) ) निर्जन वन | २ खराब सड़क ३ रन्ध्र खुखाल | छेद | सन्धि | ( पु०) लाल रङ्ग के गन्नों की अनेक जातियां | तिन्दुक । ) (५०) १ शैव सम्प्रदाय के अन्तर्गत कापालिका | एक उपसम्प्रदाय । इस सम्प्रदाय के लोग अपने पास खोपड़ी रखते हैं और उसी में रीध कर या रख कर खाते हैं। वामाचारी | २ एक प्रकार की कोढ़ । कापालिन् ( पु० ) शिवजी का नाम । का पिक ( वि० ) [ स्त्री० - कापिकी ] वानर जैसी शक्ल का या वानर की तरह आचरण करने वाला। कापिल (बि० ) [ स्त्री० -- कापिली ] १ कपिल का पहाड़ी आबनूस । कांतिः । (स्त्री०) १ मनोहरता | सौन्दर्य | २ आभा | कान्तिः । दीप्ति । थाव । ६ व्यक्तिगत शृङ्गार । ४ कामना | इच्छा | चाह । ५ अलङ्कार शास्त्र में प्रेम से बढ़ी हुई सुन्दरता साहित्यदर्पणकार ने, या कपिल सम्बन्धी २ कपिल द्वारा पढ़ाया हुआ या कपिल से निकला हुआ। कापिलः (पु०) १ कपिल के सांख्यदर्शन को मानने वाला या उसका अनुयायी । २ भूरा रंग । “कान्ति” 'शोभा' और 'दीप्ति' में इस प्रकार | कापुरुष: ( पु० ) नीच या ओंड़ा जन । ढरपोंक या अन्तर बतलाया है :- दुष्ट जन "रूपयोषन लालित्यं भोगादौरभूषणम् | शोभामोक्ता चैव कान्तिन्मयाच्यायिता सुतिः | कान्तिरेवातिथिस्तीर्णा दीष्टिरित्यभिधीयते ॥” ६ मनोहर मनोनीत स्त्री । ७ दुर्गा की उपाधि । --कर, (वि० ) सौन्दर्य लानेवाला । शोभा बढ़ानेवाला ।–दु, ( वि० ) सौन्दर्यप्रद । शोभा- जनक ।-दूं, (न० ) १ पित्त । २ घी ।- दायक,–दायिन, (वि०) शोभा देनेवाला |-- भृत्. (पु०) चन्द्रमा | कांतिमत् ) ( वि० ) मनोहर । सुन्दर । सर्वोत्तम । कान्तिसत् ) ( पु०) चन्द्रमा । कांदवम् ) (न०) लोहे की कढ़ाई या चूल्हे में सुनी कान्दवम् ' हुई कोई वस्तु । कांदविक कान्दविकः । ( पु० ) नानबाई । हलवाई। काल कांदिशीक ) (वि०) १ भगोड़ा भाग जानेवाला । कान्दिशीक । २ भयभीत। डरा हुआ। कान्यकुब्जः ( पु० ) एक देश का नाम | कन्नौज । २ कापटिक (वि०) [स्त्री कापटिकी] १ धोखेबाज़ | जालसाज़ | बेईमान | २ दुष्ट । कापटिकः ( पु० ) चापलूस | खुशामदी । कापट्यं ( न०) दुष्टता। जालसाजी धोखा | छल । कपट । कापेयं ( न० ) १ वानर की जाति का | २ वानर जैसी चेष्टा करने वाला । ३ वानरी हथकंड़े । कापोत (वि०) स्त्री० कापोती] भूरे धुमैले सफेद रंग का । कापोतं ( न० ) १ कबूतरों का गिरोह | २ सुर्मा | -अञ्जनम् ( न० ) आँख में लगाने का सुर्मा कापोतः ( पु० ) भूरा रंग । काम् ( अव्यया० ) किसी को बुलाने में प्रयोग होने वाला अन्यय । । कामः (पु० ) १ कामना । अभिलाषा । २ अभिलषित वस्तु । ३ स्नेह | प्रेम ४ पुरुषार्थ विशेष स्त्री- सम्भोग की कामना या स्त्रीसम्भोग का अनुराग ५ कामुकता | मैथुनेच्छा | ६ कामदेव । ७ प्रद्युम्न का नाम |८ बलराम का नाम । ६ एक प्रकार का आम का पेड़ | [ब्राह्मण । | कामं (न०) १ इष्टवस्तु | अभीष्ट पदार्थ । २ वीर्य । धातु । -अग्निः, ( पु० ) प्रेम की धाग या सरगर्मी -अङ्कशः, ( पु० ) १ नख | नाखून | २ जनने- न्द्रिय । लिङ्ग-ध्यङ्गः ( पु० ) आम का पेड़ | - अन्धः, (पु० ) कोकिल । --अन्धा (स्त्री० ) कस्तूरी । –अन्निन् ( वि० ) मनोभिलषित भोजन जब चाहे तब पाने वाला।-अभिकाम, ( २२४ काम ( वि० ) कामुक । लंपट । अरयं, ( न० ) मनोहर उपवन या सुन्दर उद्यान |-अरिः ( = कामारिः) (पु०) शिवजी। -अर्थिन्, (वि०) कामुक १–अवतारः, ( पु० ) प्रद्युम्न का नाम । अवसाय: ( पु० ) दुःख सुख की थोर से उदासीनता । - प्रशनं, (न० ) १ इच्छानुसार खाने वाला । २ असंयत भोग विन्तास। आतुर, (वि० ) प्रेम के कारण बीमार | प्रेमरोगाकान्त । कामातुर । -आत्मजः, (पु०) प्रद्युम्न पुत्र अनिरुद्ध की उपाधि -आत्मन् (वि०) कामुक । कामा सक्त । आशिक । —प्रायुधं, (न० ) १ कामदेव के बाण | २ जननेन्द्रिय । -आयुधः, ( पु० ) श्राम का पेड़ । प्रायुस्, ( पु० ) १ गीध | गिद्ध | २ गरुड़ ।-आर्त, (पु० । कामपीड़ित । प्रेमविह्वल-आसक्त, (वि०) कामी । कामुक । प्रेम में बिह्वल । —ईप्सु, ( वि० ) अभीष्ट वस्तु आदि के लिये प्रयत्नवान् | -ईश्वरः, ( पु० ) १ कुबेर की उपाधि । २ परब्रह्म । - उदकं, ( न० ) १ स्वेच्छापूर्वक जलदान | २ सगोत्र या जो सर्पण के अधिकारी हैं, उनसे मिन किसी का जलतर्पण करना । -उपहृत, ( वि० ) कम पीड़ित /–कला, (स्त्री०) काम की स्त्री रति का नाम । -कूटः, ( पु० ) १ वेश्या का प्रेमी । २ वेश्यापना । केलि, (वि० ) कासरत । कामुक कामी । – केलिः, ( पु० ) १ आशिक | प्रेमी | २ मैथुन। चर, चार, (वि०) येरोकटोक | असंयत । वः, चारः, (पु०) १ वेरोक टोक गति । २ स्वेच्छाचारिता | ३ स्वेच्छाचार | ४ कामासक्तता । मैथुनेच्छा | ५ स्वार्थपरता । चारिन्, (वि०) १ असंयत गतिशील २ कामी कामुक ! ३ स्वेच्छाचारी ( पु० ) १ गरुड़ | २ गौरैया |- जित्, (वि०) काम को जीतने वाला। (पु०) १ शिव जी की उपाधि । २ स्कन्द की उपाधि । - तालः, (पु०) कोकिल । —द, (वि०) अभिलाषा पूर्ण करनेवाला । - दा. (स्त्री० ) कामधेनु । - दर्शन, (वि०) मनोहर रूप वाला । दुघा, दुहू, ( स्त्री० ) कामधेनु । —दूती, ( श्री० ) कोकिला 1-- देवः, ( पु० ) प्रेम के अधिष्ठाता ) कामतः देवता । -धेनुः, (स्त्री०) स्वर्ग की गौ विशेष - ध्वंसिन्, ( पु० ) शिव जी का नाम 1-पत्नी, (स्त्री०) रति । कामदेव की स्त्री ।~-पालः, (पु०) बलराम का नाम । प्रवेदनं, (न० ) अपनी इच्छा प्रकट करना प्रश्नः ( पु० ) मनमाना प्रश्न या सवाल। -फलः, ( पु० ) आम के पेड़ों की जाति विशेष । —भोगाः, (बहुवचन) मैथुनेच्छा की पूर्ति । -महः, (पु०) कामदेव सम्बन्धी उत्सव विशेष जो चैत्रमास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।~-मूढ, मोहित, (वि० ) प्रेम से बुद्धि गँवाये हुए | कामान्ध । – रसः, (पु०) वीर्यपात । -रसिक, ( वि० ) कामुक । कामी । –रूप, ( वि० ) १ इच्छानुसार रूप धारण करनेवाला । २ सुन्दर खूबसूरत । – रूपाः, (बहुवचन) गोहाटी का प्रांत कामरूप देश के नाम से प्रसिद्ध है- रेखा, ~लेखा, (स्त्री० ) वेश्या | रंडी | पतु- रिया 1-लोल, (वि० ) कामपीड़ित (~~ वरः ( पु०) मुँ हमाँगा वरदान |--वल्लभः, ( पु० ) १ वसन्तऋतु । २ ग्राम का पेड़ - वल्लभा ( स्त्री० ) जुन्हाई । चन्द्रमा की चाँदनी |---- वश, (वि०) प्रेमासक। -वशः, (पु० ) प्रेमा- सक्ति । -वादः ( पु० ) मनमाना कहना | जो जी में श्रावे सो कहना। -विहंतृ, (वि०) असफल मनोरथ । वृत्त, (वि०) कामुक | ऐयाश | - वृत्ति ( वि० ) स्वेच्छाचारी | स्वतंत्र । -वृत्ति, ( स्त्री० ) स्वतन्त्रता | स्वेच्छाचारिता वृद्धिः, ( स्त्री० ) कामेच्छा की वृद्धि । -शरः, ( पु० ) १ प्रेम का बाण । २ ग्राम का पेढ़ 1-शास्त्रः, (५०) प्रणयात्मक विज्ञान । - संयोगः, ( पु० ) अभीष्ट पदार्थ की उपलब्धि या प्राप्ति ।-सखः, ( पु० ) वसन्तऋतु । -सू. (वि० ) किसी भी अभिलाषा का पूरा करनेवाला ।-सूत्रम्, (न०) वात्स्यायन सूत्र जिसमें कामशास्त्र का प्रतिपादन है। -हैतुक, (वि० ) विना किसी कारण के । केवल इच्छामात्र से उत्पन्न । कमतः (अव्यया० ) १ स्वेच्छतः । मनमाना । रज़ामन्दी से जानबूझ कर । इरादतन । ३ कामुकवत् । रसिकता से | ४ स्वेच्छानुसार असंयत रूप से। बेरोकटोक | ▾ ( २२५ ) कामन् कामन् (वि० ) रलिया। ऐयाश । कामनम् ( न० ) स्वाहिश । थाह । अभिलाषा | कामना ( श्री० ) अभिलाया। इच्छा चाह कामनीयम् ( न० ) कमनीय सुन्दर मनोहर कामंघमिन् कामन्यमिन् ( पु० ) कसेरा। उठेरा 1 कामम् (अव्यया०) इच्छा या प्रवृत्ति के अनुसार। २ इच्छानुकूल २ प्रसन्नता से रजामन्दी से। ४ ठीक बहुत ठीक स्वीकारोक्तिसूचक अव्यय | ६ माना हुआ। स्वीकार किया हुआ। ७ निस्सन्देह । सचमुच वस्तुतः ८ वहतर बल्कि 1 कामयमान कामयान (वि०) रसिया | ऐयाश । लम्पट | कमयितु कामल (वि०) रसिया ऐयाश लम्पट कामलः ( पु० ) १ वसन्तऋतु । २ मरुभूमि रेगस्तान | कामलिका ( सी० ) मदिरा | शराब | कामवत् ( वि० ) १ अभिलाषी चाह रखने वाला। २ रसिक ऐयाश | । कामिन् (वि० ) [ स्त्री०- कामिनी ]१ कामी । रसिक ऐयाश २ अभिलाषी । ( पु० ) १ प्रेमी आशिक | कामी । ऐयाश । २ स्त्रैण | स्त्रीनिर्जित पुरुष ३ चक्रवाक | ४ गौरैया । २ शिव जी की उपाधि ३ चन्द्रमा ७ कबूतर | कामिनी (स्त्री०) १ प्यार करनेवाली स्त्री | २ मनोहरं या सुन्दरी स्त्री ३ स्त्री । धौरत | ४ भीरु स्त्री | ५ शराब मदिरा चाह रखने वाला २ रसिक । कामुक (वि० ) [ स्त्री०- कामुका या कामुकी ] १ अभिलाषी लम्पट ऐयाश । कामुकः ( पु० ) १ प्रेमी। आशिक । ऐयाश आदमी। २ गौरैया पक्षी ३ अशोक चूह | कामुका (स्त्री० ) धन की कामना रखनेवाली स्त्री | जरपरस्त औरत। कायम् कांवधिकः काम्वविकः ( पु० ) शङ्ख या सीए के बने श्राभूषण बेचने याखा दूकानदार शङ्ख का व्यपारी कामुकी (स्त्री० ) छिनाल या ऐवाश चौरस | कांपिल्लः काम्पिल्लः । गुण्डारोचना नामक लता। कांपीलः, काम्पीलः 5 [ढकी हुई गाड़ी। कांबलः काम्बलः ( पु० ) कंबल या ऊनी वस्त्र से कांबाजः काम्बोजः (०) कम्बोडिया) देशवासी २ कम्बोज देश का राजा ३ पुनाम ४ कम्योज देश में उत्पन्न होने वाले घोड़ों की एक जाति विशेष | काम्य ( वि० ) वान्छनीय १२ किसी विशेष कामना के लिए किया हुआ कर्मानुष्ठान ३ सुन्दर | मनोहर । कमनीय 1- अभिमायः, ( पु० ) स्वार्थवश किया हुआ कर्म जिसका हेतु या कारण स्वार्थ हो ।कर्मन (पु० ) धर्मा- नुष्ठान जो किसी उद्देश्य विशेष के लिये किया गया हो और जिससे भविष्य में फल प्राप्ति की इच्छा हो।-गिर् (स्त्री० ) अनुकूल कथन या भाषण। ~दानम् (१० ) ऐसा दान या जो स्वीकार करने योग्य हो । स्वेच्छानुसार दी हुई भेंट या अपनी इच्छा के अनुसार दिया हुआ दान | -मरां, (न० ) इच्छा मृत्यु | आत्महत्या |-- अतं. ( न० ) अपनी इच्छा से रखा हुआ मत काम्या (स्त्री०) अभिलाषा इच्छा प्रार्थना | काम्ल ( वि० ) नाममात्र को खट्टा कायः ) १ शरीर देह कायम् ) तना। ३ तारों कमखट्टा | सन २ पेड़ का घढ़ या को छter aur का समस्त काठ का ढांचा ४ समुदाय । समारोह | संग्रह ५ पूजी । मूलधन ६ घर घासा। डेरा | ७ चिन्ह | ८ स्वभाव अग्निः ( पु० ) पाचनशक्ति /-हेशः, ( पु० ) शरीर सम्बन्धी कष्ट । चिकित्सा, (स्त्री० ) आयु- बेंद के आठ विभागों में तीसरा विभाग अर्थात् उन रोगों की चिकित्सा या इलाज जो समस्त शरीर में व्यास हों। मानं, (न०) शरीर का माप (-वलनम्, (न०) कवच | वर्म ।-स्था, (५०) १ मुंशी जाति, जिसको उत्पत्ति क्षत्रिय पिता और श्रद्धा स्त्री से हुई हो । २ कायथ जाति 'एक मनुष्य स्था, (स्त्री० ) १ कैथानी । कायथ की स्त्री | २ बहेबा, हर्रा, आँवला का सं० स० कौ०-२६ मूलभाग । कायक, (वि०) कायिक ( वि० ) कायः पेड़ | स्थी, ( स्त्री० ) कायथ की स्की । -स्थित, (वि० ) शारीरिक । देह सम्बन्धी । कायः, (पु० ) प्राजापत्य विवाह | आठ प्रकार के ३ विवाहों में से एक प्रकार का विवाह । कायम्. (न० ) प्राजापतितीर्थ । उँगुलियों की जड़ के पास का हाथ का भाग। विशेष कर कनिष्ठिका का कायिकी (वि० ) ( बदले मुजरा दिया जाय । शरीर सम्बन्धी वृद्धि, ( स्त्री० ) वह व्याज या सूद जो किसी धरोहर रखे हुए जानवर का उपयोग करने के कायका ( स्त्री० ) ब्याज सूद | } कायिका २२६ ) कार ( वि० ) [खी०-कारी.] समासान्त शब्द का अन्तिम शब्द होकर जब यह थाता है, तब इसका अर्थ होता है; करने वाला बनाने वाला, सम्पादन करने वाला । यथा-कुम्भकार, ग्रन्थकार, आदि । -अबर:, ( पु० ) एक वर्णसङ्कर जाति विशेष जिसकी उत्पत्ति निषाद पिता और वैदेही जाति की माता से हो। -कर, (वि०) गुमाश्ता या थाम- मुख्तार की जगह काम करने वाला । -भूः, (पु०) सुगी उधाने की जगह कर वसूल करने का स्थान | कारः ( पु० ) १ कार्य । कर्म ( यथा पुरुषकार ) । २ उद्योग । प्रयत्न । चेष्टा । ३ धार्मिक तप । ४ पति । स्वामी मालिक। ५ सङ्कल्प । दृढ़निश्चय । ६ शक्ति । सामर्थ्य | ताकत | ७ कर या चुंगी 5 बन का ढेर । ६ हिमालय पर्वत । 1 कारक (वि० ) [ स्त्री० -कारिका ] १ करने वाला बनाने वाला । २ प्रतिनिधि | कारिन्दा । मुनीम | -दीपकम् (न० ) अलङ्कार शास्त्र का अर्था लङ्कार भेद । – हेतुः, ( पु० ) ज्ञापक हेतु का उल्टा। क्रियात्मक हेतु। कारिका ॥ कारणम् ( न० ) १ हेतु । २ जिसके विना कार्य की उत्पत्ति न हो सके। ३ साधन ज़रिया ४ उत्पा- दक । कर्त्ता | जनक । ५ तत्व | ६ किसी नाटक की मूल घटना । ७ इन्द्रिय | ८ शरीर । १ चिन्ह । टीप | दस्तावेज़ प्रमाण अधिकार । १० वह आधार जिस पर कोई मत या निर्णय अवलम्बित हो । -उत्तरं, (न० ) १ मन में कुछ अभिप्राय रख कर उत्तर देना २ बादी की कही बात को कह कर पीछे उसका खण्डन करना । [ जैसे—मैं यह स्वीकार करता हूँ कि यह घर गोविन्द का है; किन्तु गोविन्द ने मुझे यह दान में दे दिया है । ] -भूत, (वि० ) कारण बना हुआ हेतु बना हुआ। ~भाला, (स्त्री०) काव्यालङ्कार विशेष । --चादिन, ( पु० ) वादी । मुद्दई । वारि, ( न० ) वह जल जो सृष्टि की आदि में उत्पन्न किया गया था। -विहीन ( वि० ) हेतुरहित । कारणरहित | बेवजह । शरीरम्, (न०) नैमि- त्तिक शरीर । कारण ( स्त्री० ) १ पीड़ा । क्लेश । २ नरक में डाला [त्तिक । जाना ! कारकम् ( न० ) व्याकरण में कारक उसे कहते हैं जिसका क्रिया से सम्बन्ध होता है। कर्त्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, अधिकरण, संम्बध —थे सात कारक हैं। २ व्याकरण का चह भाग जिसमें कारकों का वर्णन है। कारणिक ( वि० ) १ परीक्षक | न्यायकर्त्ता | २ नैमि- कारंडवः ) ( पु० ) एक प्रकार की बतन । कारण्डवः (५०) १ कसेरा | उठेरा । २ खनिज- विद्यावित । कारंधमिन ) कारन्धमिन् कारवः ( पु० ) काक। कौना। कारस्करः ( पु० ) किंपाक नामक वृत्त । कारा (स्त्री० ) १ जेलखाना | बंदीगृह | २ वीणा का भाग विशेष या तूंबी | ३ पीड़ा | कष्ट | क्लेश | ४ दूती १५ सुनारिन । ६ वीणा की गूँज को कम करने का औज़ार । आगारं, गृहं, वेश्मन, ( न० ) जेलखाना । कैदुखाना /-गुप्तः, ( पु० ) कैदी। बंदी । बँधुआ। – पालः, (पु०) जेलखाने का दरोगा। कारिः (स्त्री० ) किया । कर्म । ( पु० ) या ( स्त्री० ) कलाकुशल । दस्तकार । कारिका ( स्त्री० ) १ नाचने वाली स्त्री । २ कारो- बार| व्यापार । व्यवसाय | ३ काव्य, दर्शन, च्या- करण, विज्ञान सम्बन्धी प्रसिद्ध पद्यात्मक कोई रचना। कारीशं ( [जैसे सांख्यकारिका]। ४ अत्याचार | ज़ुल्म ५ व्याज सूद । ६ अल्पाक्षरयुक्त और बहुअर्थवाची लोक | कारीशं ( न० ) अनेकंदों का ढेर | काह (वि० ) [ स्त्री० कारु, ] वाला। प्रतिनिधि | कारिंदा। नौकर | २ कापट: पु० ) १ आवेदनकी अर्जी देने वाला । प्रार्थी उम्मेदवार | २ चिथड़ा। लत्ता । ( पु० ) १ तीर्थयात्री २ तीर्थजलों को ढो कर आजीविका करने वाला २ तीर्थयात्रियों का एक दल ४ अनुभवी मनुष्य | पिषलगू | खुशामदी। " तथा व तंत्रवायच नापितो कस्तया । परमरचर्मकार फार नो 35 -चौरः, (पु०) पैदा लगाने वाला। सेंध फोड़ने | कार्पण्यम् ( न० ) १ धनहीनता | गरीबी १ २ अनु- वाला। डॉकू अः, ( पु० ) १ कल से बनी कोई वस्तु । कल का कोई भाग या कोई कल । २ कम्पा । दया। रहम। ३ कंजूसी। सूमपना | शक्ति- हीनता। निर्बलता | ४ इल्कापन | ओड़ापन | मन का हल्कापन | युवा हामी या हाथी का बचा । ३ ढीला | पहाड़ी | कार्यास (वि० ) [ स्त्री० --कासी ] रुई का धना " ४ फेन । ५ गेरू । ६ तिज । मस्सा | कारुणिक ( वि० ) [ स्त्री० कारुणिकी ] दयालु । कृपालु । हुआ । --अस्थि, (१० ) बिनौला । कपास का बीज । नासिका, ( स्त्री० ) तकुच्या | तकला। - सौत्रिक, (चि० ) कपास के सूत से बना हुआ। फठोरता । उदखता । | कार्पासः ( स० ) कार्पासं ( पु० )। कठोरता कार्यासिक (वि० ) [ को से बनी कारुण्यम् ( न० ) दया। रहम अनुकम्पा कार्कइयम् ( न० ) १ सप्रती २ वा ३ ठोंसपना ४ हृदय 1 संगदिली । कार्तवीर्यः (पु० ) हैहयराज कृतवीर्य का पुत्र उसको राजधानी माहिष्मती नगरी थी। इसको सहस्रबाडु या सहस्रार्जुन भी कहते हैं । कार्त्तस्वरम् ( न० ) सोना । सुवर्ण । हो । २ काग़ज़ कोई वस्तु स्त्री० --कार्पासिकी ] रुई कार्यासिका ) ( स्त्री० ) कपास का पौधा | का बना हुआ था कपाल से उत्पन्न । | कार्यासी कार्मण (वि० ) [ स्त्री० -कार्मग्री, ] किसी कार्य को पूरा करना किसी कार्य के सुधार रूप से 1 कुशल कारीगर । कारीगरों में गणना की हैं। कातिक कार्तान्तिक २२७ ) कर्ता | करने कार्य काम (वि० ) [स्त्री० ---कामी] 1 कीचड़ युक्त । कीचड़ में भरा या उससे सना २ कम प्रजा- पति सम्बन्धी । कला-कार्पटिकः इतनों ( पु० ) ज्योतिषी | भविष्यद्वक्ता | कार्तिक (वि० ) [ स्त्री० कार्तिकी, ] फार्तिक मास सम्बन्धी । कार्तिकः ( पु० ) १एक मास का नाम जिसकी पूर्ण- मासी के दिन चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में होता है। अथवा जिसकी पूर्णमासी के दिन कृत्तिका नक्षत्र होता है। २ स्कन्द की उपाधि । कार्तिकी ( स्त्री० ) कार्तिक मास की पूर्णमासी । कार्तिकेयः (५०) शिवपुत्र। स्कन्द | स्वामिकार्तिक । -प्रसूः, ( श्री० ) पार्वती देवी । स्कन्द की जननी । कायै ( न० ) सम्पूर्णता । समूचापन | करना । कार्मणं ( न० ) जादू | तंत्र विद्या | कार्मिक ( वि० ) [ स्त्री० कार्मिकी, ] १ निर्मित | बना हुआ | २ जरी का काम किया हुआ रंगबिरंगे सूतों से बिना हुआ। ३ रंग विरंगा | कार्मुक ( वि० ) [ स्त्री०-कार्मुकी, ] काम के योग्य काम करने लायक। किसी कार्य को सुचार रूप से पूर्ण करने वाला। कार्मुकम् ( न० ) : धनुष । कमान | २ बाँस । कार्य ( स० का० कृ० ) बना हुधा किया हुआ जो किया जाना चाहिये ।-अक्षम, ( वि० ) जो अपने कर्त्तव्य कार्य करने में असमर्थ हो । अयोग्य कार्य ( २२८ ) काल ३ पेशा । उद्योग व्यापार । अति आवश्यक कारोवार ४ धार्मिक अनुष्ठान ५ हेतु। कारण । प्रयोजन । ६ आवश्यकता | अपेक्षा ७ आचरण । ८ अभियोग। मुकदमा | ६ कर्तव्य कार्य । १० नाटक का शेष अङ्क ११ उत्पति- स्थान | -अकार्यविचारः, (पु० ) किसी विषय की सपक्ष । कार्यम् ( न० ) १ काम । व्यवसाय | २ कर्त्तव्य कर्म | विपण युक्तियों पर वादानुवाद | किसी कार्य के यौचित्य प्रनौचित्य पर धादानुवाद । अधिपः, (१०) कार्याध्यक्ष २ ज्योतिष में वह ग्रह जिसकी परिस्थिति देखकर किसी प्रक्ष का उसर दिया जाय । - अर्थः, (पु० ) 1 उद्देश्य प्रयोजन | २ नौकरी पाने के लिये थावेदनपत्र | ~ अर्थिन्, ( न०) १ ग्रार्थी १२ किसी पदार्थ की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील | ३ पदार्थी। नौकरी चाहने वाला ४ अदालत में किसी दावे के लिये वकालत करने वाला अदालत का आश्रय ग्रहण करने वाला शासनं, (न० ) वह स्थान जहाँ लैन दैन या खरीद फरोख्त होती हो। दूकान गदी। इसमां (न०) सार्वजनिक कार्यों की देख कम्( म० ) रेख/-उद्धारः, (पु० ) कर्तव्यपालन --कर, (न०) गुणकारी।– कारणे, (हिवचन) कारणे | कार्य किया। कालः, ( पु० ) 3 काम करने | का समय । ऋतु। मौसम उपयुक्त समय या अवसर। --गौरखं, ( न० ) विषय का महत्व | चिन्तक, (चि० ) परिणामदशी | विचार- वान । विवेकी । –चिन्तकः, ( पु० ) किसी कार्यतः (अन्यवा० ) किसी प्रयोजन या उद्देश्य से | अन्ततोगत्वा । लिहाजा । अतएव । काये ( न० ) १ लटापन | दुबलापन पतलापन | २ कामी। स्वरूपता। थोड़ापन | कार्यः (२) किसान | खेतिहर । कापणः ( पु० ) भिन्न वज़न और मूल्य के सिके । कार्यापिणक: ( go ) कार्यापणम् ( म० ) रुपया । कार्षापणिक ( वि० ) श्री कापणी ] एक कार्यापण के मूल्य का। जिसका मूल्य एक कार्षापण हो । कार्षिक देखो "कार्यापण" - का (वि० ) [ श्री० - कार्णी ] श्रीविष्णु या श्रीकृष्ण से सम्बन्ध रखने वाला या वाली । २ व्यास का या की। ३ कृष्ण मृग का या की। कार्ष्णायस (वि०) [स्त्री-कायसी] काले लोहे । का बना हुआ था हुई। कायसम् ( न० ) लोहा का: ( पु० ) कामदेव की उपाधि । कार्य या कार्यालय का प्रबन्धकर्त्ता या व्यवस्थापक | ~~च्युत. ( वि०) बेकार। जो कहीं नौकर चाकर न हो। ठलुआ। किसी पद से हटाया या निकाला हुआ।-दर्शनं, (न०) १ अवेक्षण | मुआयना | पर्यवेक्षण २ अनुसन्धान तहकोकात /- -निर्णयः, (पु०) किसी काम का निपटारा।- पुदः, ( पु० ) १ निरर्थक काम करने वाला । २ पागल | चलितचित्त की । ३ निठल्ला । ठलुया-पद्वेषः, ( पु० ) अकर्मण्यता । काहिली। सुस्ती। -प्रेष्यः, ( पु० ) प्रतिनिधि | कारिंदा । सुनीम दूत। फासिङ विपत्ति, ( पु० ) असफलता | दुर्भाग्य /-शेष:, ( पु० ) १ किसी कार्य का अवशिष्ठ अंश । २ किसी कार्य की सम्पन्नता । पूर्णता /-सिद्धि: (बी० ) सफलता | कामयावी । - स्थानं, (न०) दत्तर | आफिस । फोठी। दूकान । -हंतु, ( वि० ) दूसरे के काम में बाधा डालने वाला। विपक्षी । /- . " काल (वि०) [ जी०- काली ] काले रंग का - अयसं, (न० ) - लोहा । अतरिकः ( पु० ) पदा लिखा। साक्षर।-अगरुः, (पु० ) चंदन वृक्ष विशेष । ( न० ) चंदन की लकड़ी। अग्निः, अनल, ( पु० ) प्रलय के समय की आग। -अजिनं, ( न० ) काले मृग का चर्म । अञ्जनम्, (न० ) एक प्रकार का अंजन अण्डजः ( पु० ) को- किल । - अतिपातः, अतिरेकः, ( पु० ) विलम्ब देरी। समय गंमाना। २ अवधिया म्याद बीत जाने के कारण होने वाली हानि। - अध्यक्षः, ( पु० ) १ सूर्य देवता । २ परमात्मा । -अनु. - . काल ( २२६ नादिन, (५०) १मधुमक्षिका | २ गौरैया पक्षी | ३ चातक पक्षी । –अन्तकः, (पु०) समय, जो मृत्यु का अधिष्ठात्र देवता और समस्त पदार्थों का नाशक माना जाता है।--अन्तः, (न०) १ बीच का समय । २ समय की अवधि | ३ अन्य समय या अन्य अवसर । - अभ्रः, (पु०) काला, पनीला बादल [-अवधिः, ( पु० ) निर्दिष्ट समय | -अशुद्धिः, ( स्त्री० ) स्थापे या शोक मनाने की अवधि जन्म अथवा मरण अशौच या सूतक । -आयसं ( न० ) लोहा। उप्त, (बि०) ठीक मौसम में बोया हुआ। -कञ्जम् (न० ) नील- कमल |--कटङ्कटः, (पु०) ७ शिवजी का नाम । -कण्ठः ( पु० ) : मोर। मयूर | २ गौरैया पक्षी ३ शिवजी की उपाधि । करणम्. ( न० ) समय नियत करना । –कर्णिका, कर्णी, ( स्त्री० ) बदकिस्मती । विपत्ति । दुर्भाग्य ।--- कर्मन, ( न० ) मृत्यु । मौत ।- कीलः, ( पु० ) कोलाहल 1 -- कुस्ठः, ( पु० ) यमराज । धर्मराज 1-कूटः, ( पु० ) - कूटम्, (न० ) हलाहल विष यह विष जो समुद्र मन्थन के समय निकला था जिसे शिवजी ने अपने कण्ठ में रख लिया था। -कृत्. ( पु० ) १ सूर्यं । २ मयूर | मोर ३ परमात्मा 1- कसः, ( पु० ) समय का बीत जाना। -क्रिया, (स्त्री० ) १ समय का नियत करना | २ मृत्यु | -शेषः, ( पु० ) विलम्ब | देरी। समय का नाश । २ समय बिताना । --खण्डम् ( न० ) यकृत लीवर । -गङ्गा, (स्त्री०) यमुनानदी । -प्रन्धिः, ( पु० ) वर्ष । चक्रं, (न० ) १ समय का पहिया | २ युग २ (०) भाग्यचक्र | जीवन के उतार चढ़ाव। -चिन्हं, (न० ) मृत्यु निकट आने के लक्षण । --चोदित, (वि० ) वह जिसके सिर पर काल या मृत्युदेव खेल रहे हों। --ज्ञ, ( वि० ) उचित समय या उचित अवसर जानने वाला । -शः, (पु० ) १ ज्योतिषी । २ मुर्गा । - त्रयम्, ( न० ) भूत, वर्तमान, भविष्यद् । -दराडः, (पु० ) मृत्यु | मौत। -धर्मः, - धर्मन्, ( पु० ) १ ऐसे आचरण जो किसी ) भी समय के लिये उपयुक्त हों। २ मृत्युकाल | मृत्यु – धारणा, ( स्त्री० ) काल की वृद्धि | -निरूपणम् ( न० ) समय जानने की विद्या | कालनिरूपण शास्त्र | - नेमिः, ( स्त्री० ) १ कालरूपी पहिये के आरे ! २ रावण के चाचा का नाम, जिसे रावण ने हनुमान को मार डालने का काम सौंपा था, किन्तु पीछे वह स्वयं हनुमानजी द्वारा मार डाला गया था। ३ हिरण्यकशिपु का पुत्र । ४ एक अन्य राक्षस, जिसके १०० पुत्र थे और जिसे विष्णु ने मारा था। -पाशः, (पु०) यम का पाश या फाँसी । - पाशिकः, (पु० ) जल्लाद । वह आदमी जो मृत्युदण्ड प्राप्त लोगों को फाँसी लगाता हो। -पृष्ठ, (न०) १ हिरनों की जाति विशेष | २ कपक्षी | पृष्ठ कम्. ( न० ) १ कर्ण के धनुष का नाम । २ धनुष | - प्रभातं, ( न० ) शरद ऋतु । -भक्षः, (पु० ) शिवजी । -मुखः, ( पु० ) लंगूरों की एक जाति ।- मेषी, ( स्त्री० ) मंजिष्ठा नाम के पौधा | - यवनः, ( पु० ) यवन जातीय राजा, जिसने श्री कृष्ण पर मथुरा में, जरासन्ध के कहने से चढ़ाई की थी और जो श्रीकृष्ण की युक्ति से राजा मुचुकुन्द द्वारा भस्म किया गया था। योगः, ( पु० ) भाग्य | क़िस्मत | - योगिन, ( पु० ) शिवजी की उपाधि । -रात्रिः, - रात्री (स्त्री०) १ अंधेरीरात । प्रलयकाल की रात । कल्पान्त- रात । कार्तिकी अमा की रात । - जोहं, (न० ) ईसपातलोहा । – विप्रकर्षः, ( पु० ) समय की वृद्धि /-वृद्धिः, (स्त्री०) व्याज या सूद जो नियत रूप से किसी निर्दिष्ट समय पर अदा किया जाय। -चेला, (स्त्री०) शनिग्रह का समय दिन में आधे पहर यह समय नित्य घाता है। इस समय में शुभ कार्य करना वर्जित है। -सद्गश, (वि०) १ समय से अवसर साधकर -सर्पः, (पु०) काला और महाविषैला साँप । -सारः (५०) काले रंग का मृग। सूत्रं, – सूत्रकं, (न० ) १ समय या मृत्यु का डोरा २ नरक विशेष | -स्कन्धः, (पु० ) तमालवृत --स्वरूप, (वि० ) मृत्यु की तरह कारले ( २३० भयङ्कर । —हः, ( पु० ) शिवजी का नाम -हरणं, (न० ) समय का नाश । विलम्ब । - हानिः, ( स्त्री० ) विलम्ब | कालातिक्रमण | कालं ( न० ) १ लोहा । २ सुगन्ध द्रव्य विशेष । कालः ( पु० ) १ काला रंग |२ समय | ३ उपयुक्त या अवसर ४ समय के विभाग जैसे घंटा, मिनिट आदि । ५ मौसम | वैशेषिक दर्शन के अनुसार नौ दृश्यों में से काल एक द्रव्य माना गया है । ७ परमात्मा का यह रूप जो संहारकारी है।८ यमराज | ६ प्रारब्ध । भाग्य । क़िस्मत । १० नेत्र का काला भाग। समय गोलक। ११ कोकिल । १२ शनिग्रह | १३ शिव जो । १४ समय का माप । १५ कलवार । कलार | १६ विभाग | भाग | फालकं, (न० ) यकृत । कलेजा। जिगर । कालकः ( पु० ) १ तिल । मस्सा | लहसन | २ पनिया साँप । ३ आँख का गोल और काला भाग | कालंजर: 2 ( पु० ) १ पर्वत तथा उस पर्वत के कालज्जरः । समीप का भूखण्ड ३२ साधु समारोह | ३ शिव जी की उपाधि | कालेशयं (न०) माठा। छाल काला (स्त्री० ) दुर्गादेवी की उपाधि । कालापः ( पु० ) १ सिर के केश २ साँप का फन । ३ कलाप व्याकरण पढ़ने वाला । ४ इस व्याकरण का जानने वाला : ५ राक्षस | वैस्य | दानव । कालापकम् ( न० ) १ कलाप-व्याकरणश-विद्वानों का समुदाय । २ कलाप के सिद्धांत या उसकी शिक्षा कालिक (वि० ) [ स्त्री० –कालिकी ] १ समय सम्बन्धी । २ समय पर निर्भर ३ समयानुसार समय से। कालिकः ( पु० ) १ सारस । २ बगला । कालिकम् (न०) कृष्णचन्दन । कालिका ( स्त्री० ) १ कालारंग | कालौंच | २ स्याही। काली स्याही । ३ किसी वस्तु का मूल्य जो किश्तबन्दी कर के चुकाया जाय | ४ छः माही या तिमाही सूद जो निर्दिष्ट समय पर चदा किया जाय। ५ बादलों का समूह | ६ ) काल्पनिक बहा। वह धातु जो सोने में मिलाई जाती है। ७ कलेजा। यकृत | ८ कौआ की मादा । ६ बिच्छू | १० मदिरा | शराब ११ दुर्गा देवी का नाम । कालिंग ) ( दि० ) [[स्त्री० – कालिंगी] कलिंग देश कालिङ्ग) में उत्पन्न या उस देश का । कालिंगः ) ( पु० ) : कलिङ्ग देश का राजा । २ कालिङ्गकङ्ग देश का सर्प । ५ हाथी । ४ राज- कर्कटी। एक प्रकार की ककड़ी। कालिंगा: } (पु०) (बहुवचन) एक देश का नाम । कालिङ्गाः । कालिङ्गम् ) ( न० ) तरबूज़ 1 हिंगवाना। कलींदा। कालिंद ) (वि०)[स्त्री० -कालिंदी] कलिन्द्र पर्वत से कालिन्द निकला या चाया हुआ। यमुनानदी । -कर्पणः, -भेदनः, (पु० ) बलराम जी को उपाधि । --सूः, (स्त्री० ) सूर्यपत्नी संज्ञा - सोदरः, (५०) यमराज । कालिमन् ( पु० ) फालौंच कालापन | कालियः (पु०) एक बड़ा भारी सर्व जो यमुना में रहता था और जिसे श्रीकृष्ण ने दमन कर वृन्दावन से भगाया था। -वमनः, -मर्दनः, ( पु०) श्री- कृष्ण की उपाधि | काली (स्त्री०) १ कालिमा । कालौंच | २ स्याही । मसी । ३ पार्वती की उपाधि | ४ कृष्ण मेघमाला । २ काले रंग की स्त्री । ६ व्यास माता सत्यवती का नाम । ७ रात्रि । -तनयः, (पु० ) भैसा । कालीकः ( पु० ) बगुला | [ यिक | कालीन (वि०) १ किसी विशेष समय का । २ साम- कालियं ( न० ) एक प्रकार का चन्दन । कालीयकं काळुष्यम् ( न० ) १ गन्दगी । मैलाकुचैलापन | गँदलापना | २ मलीनता । अस्वच्छता ३ अनैक्य । कालेय ( वि० ) कलियुग का [३ केसर | जाफ्रान् । कायम (न०) १ यकृत । कलेजा | २ कृष्णचन्दन । कालेयरुः (पु० ) १ कुत्ता | २ हल्दी | ३ चन्दनविशेष | काल्पनिक ( वि० ) [स्त्री० --- काल्पनिकी] १ बना- वटी । फर्जी । २ जाली । ( २३१ ) काल्य (वि०) १ समय से। सामयिक । अवसरानुसार २ प्रिय | अनुकूल | शुभ । कल्याणकारी । काल्यम् ( न० ) तड़का | सबेरा। भोर। प्रभात । काल्यणकम् ( न० ) कल्याण करनेवाला । शुभ । कावचिक (वि० ) [ स्त्री० --कावचिकी ] कवच या वर्म सम्बन्धी । काव्या (स्त्रि०) १ प्रतिमा । २ सखी सहेली । काश ( धा० आत्म० ) [ काशते, काश्यते; काशित ] १ चमकना चमकदार देख पड़ना सुन्दर दिख लाई पड़ना। प्रकट होना। काशः (पु० ) हे एक प्रकार की घास जो छत छाने कावचिकम् ( न० ) कवचधारी पुरुषों का समूह | कावृकः (पु०) १ मुर्गा | २ चकवा चकवी | कावेरम् (न०) केसर | जाफ्रान। कावेरी (स्त्री० ) १ दक्षिण भारत की एक नदी का नाम । २ रंडी वेश्या काव्य (वि०) १ वह पुरुष जिसमें कवि अथवा पण्डित के लक्षण विद्यमान हों। २ भविष्य | ईश्वरी प्रेरणा से लिखा हुआ । पद्यमय । -अर्थः, (पु०) पद्य- मय विचार | पद्य सम्बन्धी भाव | चौरः, (पु०) दूसरे की कविता चुरानेवाला । -रसिक, (वि० ) वह पुरुष जो कविता को पसंद करता हो और उसकी विशेषताओं और सौन्दर्य की सराहना कर सकें । - लिङ्गम्, (न० ) अलङ्कार विशेष | काव्यं ( न० ) १ पद्यमयी रचना २ शायरी । कविता | ३ प्रसन्नता | नीरोगता | ४ बुद्धि । + ईश्वरी प्रेरणा स्फूर्ति काषाय (वि०) [ स्त्री० -काषायी ] जोगिया या गेरुआ रङ्ग का। काव्यः ( पु० ) १ शुक्राचार्य का नाम । यह असुरों | कापायम् ( न०) जोगिया था गेरुया रङ्ग का वस्त्र | के गुरु थे। काष्टं ( न० ) १ लकड़ी का टुकड़ा । २ शहतीर । लट्ठा । ३ लकड़ी । छुड़ी ४ नापने का एक औज़ार 1- आगारः, (पु०) -आगरम्, (न०) घेरा। -अम्बुवाहिनी, लकड़ी का बना मकान ( स्त्री० ) बाल्टी। ढोलची ।-कदली, (स्त्री०) जंगली केला 1-- कीटः, ( पु०) लकड़ी का घुन । - कुट्टः- कूटः, (पु०) कठफुड़वा | हुदहुद | खुटबदई । पक्षी विशेष ।-कुद्दालः, ( पु० ) कठौता । - तत्तू, (पु० ) — तक्षकः, ( पु० ) बढ़ई । - तन्तुः, ( पु० ) शहतीरों में रहने वाला एक छोटा कीड़ा । - दारु:, (पु० ) देवदास का पेड़। पलाश का पेड़ | - भारिकः, ( पु० ) लकड़हारा लकड़ी ढोने वाला ।-मठी, (वि०) चिता । - मल्लः, (पु० ) ठठरी जिस पर रख कर मुर्दा ले जाया जाता है ।-लेखकः, चाती है । ( न०) १ उस घास का फूल तृणपुष्प । २ फेफड़े का रोग । काशि ( पु० ) [ बहुवचन] एक प्रदेश का नाम । काशिः । ( स्त्री०) सप्त मातपुरियों में से एक । श्राधु- काशी । निक बनारस नगर। -पः, (पु० ) शिव काष्ठ काशिन् (वि०) [स्त्री०- काशिनी] १ चमकीला | २ सदृश | समान [ यथा जितकाशिन् अर्थात् जो विजयी के समान आचरण करे। ] जी की उपाधि । -राजः, ( पु० ) काशी के एक राजा का नाम जो श्रम्बा, अम्बिका और अम्बा- लिका का पिता था । काशी (स्त्री०) देखा 'काशि:' । -नाथः, (पु०) शिव जी । - यात्रा, ( स्त्री० ) काशी की तीर्थयात्रा | काश्मरी (स्त्री०) एक पौधा जिसे गाँभारी कहते हैं। काश्मीर (वि०) [ स्त्री०- काश्मीरी ] काश्मीर देश में उत्पन्न काश्मीर देश का। काश्मीर से आया हुआ । —जं, ( न० ) - जन्मन्, (न०) केसर | जाफ्रान । काश्मीरं (न०) केसर । जाफ्रान। [रहनेवाले । काश्मीराः (बहुवचन) देश विशेष अथवा उस देश के काश्य ( न० ) मदिरा शराब मद्य पम् ( न० ) माँस । गोश्त । काश्यपः ( पु० ) एक प्रसिद्ध ऋऋषि २ कणाद का नाम |-- नन्दनः ( पु० ) १ गरुड़ की उपाधि २ अरुण का नाम । | काश्यपिः ( पु०) गरुड़ और अरुण की उपाधि काश्यपी (स्त्री०) पृथ्वी काषः ( पु० ) रगड़न । खरोंच | 3 काष्टकम् ( किणी किणी किकिणिका ( पु० ) लकदी में रहने वाला एक छोटा कीड़ा -वाद, (पु०) - वाटं, (न०) लकड़ी की दीवाल। काष्टकम् ( न० ) ऊद | अगर काष्ठा (स्त्री०) ३ दिशा । २ सीमा | ३ चरम सीमा । ४ दौर का मैदान | ५ चिन्ह । घुड़दौड़ का | किङ्किः | पाला । ६ आकाशस्थित पवन या वायु का मार्ग || किंकरा | किंकरः | फिडिशिका समय का परिमाण । कला का तीसवाँ भाग काकः ( पु० ) की ढोने वाला। काठिका ( स्त्री० ) लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा । काष्टीला (स्त्री० ) कदली वृक्ष । केले का पेड़ । कासू (घा० आत्म० ) [ चासते० फासित ] 1 चम कला २ खखारना | खाँसना कहरना। कासः ) 3 खाँसी क्रम २ छींक / कुठे, कासा ) (वि० ) खौंसी से पीड़ित ।-घ्न, हृत, (दि०) खौंसी दूर करने वाला। कफ निकालने वाला । - 1 कासरः ( पु० ) भैसा | [ स्त्री० - कासरी] भैंस | कासारा (५०)} तालाब । पुष्करिणी । कासारम् (न० ) तलैया। झील | सरोवर । कालु । ( स्त्री०) १ एक प्रकार का भाला २ अस्पष्ट काशु } भाषण । ३ दीसि दमक । आव ४ रोग | ५ भक्ति | कासुति (स्त्री० ) पगडंडी | गुलमार्ग | काहल (वि०) : सूखा | मुर्भाया हुआ । २ उत्पाती। ३ अत्यधिक प्रशस बढ़ा। काहलः ( पु० ) १ बिल्ली १२ मुर्गा ३ काक ४ रव | आवाज़ | २३२ ) फाइलम् (न० ) अस्पष्ट भाषण | काहला ( श्री०) बढ़ा ढोल काहली (स्त्री० ) युवती स्त्री । किंवत् (चि० ) ग़रीय | तुन्छ । बापुरा । किंशुकं ( पु० ) पलाश बृढ ढाक का पेड़ | किंशुक: ( न० ) पलाश पुष्प | किंशुलकः ( पु० ) पलाश गुरु किकि: ( पु० ) १ नारियल का पेड़ | २ नीलकण्ठ पक्षी ३ चातक पक्षी | किम् ( स्त्री० ) घुंघरू । रोना छोटी छोटी घंटियाँ | ( ० ) घोड़ा | २ केकिल्ल । ३ भौरा । ४ कामदेव । ५ लाल रंग । ( स्त्री० ) खून | रक्त | लोहू हिंडित, किकरातः ( पु० ) १ तोता | २ कोकिन । ३ किङ्किरातः ) कामदेव । ४ अशोक वृक्ष। किंजलः किजलः किंजल्क (पु० ) कमल पुष्प का रेशा या कमल को फूल | किसी फ का फूल या उसका किअल्कः रेशा | किटि: (पु० ) शूकर सुअर किटिभः (पु० ) खटमल | जुआँ | चील्हर के 1 किट्ट ) ( म० ) कीट कॉइट मैल तलछट किट्टकं छानन | किट्टालः (पु०) १ ताँबे का पाय २ लोहे का मोर्चा | किण: ( पु० ) १ ठेठे | धट्टा | चट्टा गूत | फोड़े या घाव का निशान | २ तिल । मस्सा | ३ लकड़ी का शुभ किश्वं ( ० ) पाप किरावं (g०)) मदिरा का खनीर उठाने या उसमें किरावः (म०) ) उफान खाने वाली द्रव्य विशेष | कित् (धा० परस्मै० ) ( केठि ) १ करना । २ जीवित रहना। ३ इलाज करना। दंगा करना। आराम करना । कितवः (पु० ) [ स्त्री० - कितवी, ]१ बदमाश । गुंडा | लवार | कपटी | २ धतूरे का पौधा । ३ सुगन्ध द्रव्य विशेष | किंबिना } ( पु०) घोड़ा । श्रश्य । किशाद: ( पु० ) धान की बाल २ बगुला । किशरः ( पु० ) देवताओं के गायक । इनका मुख कङ्कपची ३ तीर । घोड़े जैसा और शरीर मनुष्य जैसा होता है। किनरेश ( पु० ) कुबेर | धनाधिप । किम् ( धन्यया० ) समासान्त शब्दों में यह प्रथम कु की जगह प्रयुक्त होता है और इसके अर्थ यह होते हैं ख़राबी, हास, रोव, कलह या विकार। -~-किसखा, अर्थात् दुष्ट या बुरा मित्र | यथा-- किम् किसर, अर्थात् बुरा मनुष्य था अङ्ग भङ्ग मनुष्य आदि। आगे के समासान्त शब्द देखा -दासः, ( पु० ) इरा नौकर-नरः, (पु० ) १ दुष्ट या विकृत पुरुष | २ देवगायक जाति विशेष ।-नरी, ( स्त्री० ) १ किन्नर की स्त्री । २ वीणा विशेष /-पुरुषः, (पु० ) १ नीच या तिरस्करणीय पुरुष २ फिचर / पुरुषेश्वरः ( पु० ) कुबेर । -प्रभुः, (पु० ) बुरा स्वामी या बुरा राजा-राजन् (वि० ) बुरा राजा वाला। -सखि ( पु० ) ( एकवचन कर्ता कारक में किसखा रूप होता है ) दुष्ट पुत्र यथा । " किंसखा साधुन पास्ति याचियं " ) १ कुछ अवर्णनीय 1 -किरातार्जुनीय । म् (सर्वनाम० अन्य ) [ कर्त्ता एकवचन ( पु० ) -कः, (स्त्री०) का, ( न० ) किम्] १ कौन | क्या। कौनसा - अपि ( अ कुछ | २ बहुत अधिक। अकथनीय ३ बहुत अधिक। कहीं ज्यादा । अर्थ, (वि० ) किस प्रयोजन से किस उद्देश्य से - अर्थ, (अव्यय० ) क्यों । क्यों कर / - प्राख्य ( वि० ) किस नाम का। किस नाम वाला / इति, (अभ्यया) काहे को क्यों कर। किस काम के लिये। उ उत, ( थव्यया० ) १ या अथवा या ( सन्देहात्मक ) २ क्यों । ३ कितना और अधिक कितना और कम-करः, ( 30 ) नौकर। दास। गुलाम | 1 1 "जवेदि मां किङ्करमष्टर्से:" -रघुवंश -करा, (स्त्री०) दासी। नौकरानी चाकरानी। - करी, (स्खो०) नौकर की पत्नी कर्तव्यता, - कार्यता, (श्री० ) किर्तव्यमुद्रता अर्थात् ऐसी परिस्थिति में पहुँचना जब अपने मन में स्वयं यह प्रश्न उठे कि अब मुझे क्या करना चाहिये । परेशानी । कारण, ( वि० ) क्यों कर किस कारण से। किल, (अव्यय० ) एक अव्यय जो अप्रसन्नता या धसन्तोष प्रकट कर्ता है। - क्षया, (वि० ) अकर्मण्य, जो समय का मूल्य नहीं समझता - गोत्र, (वि० ) किस वंश का । - क्रियत् उपरान्त | 0 - - । 2 किस खान्दान का। - च, (अव्यय०) अतिरिक्त -चन (अव्यय० ) कुछ अशं में। थोड़ा सा। -चित् (अन्य ) कुछ अशं में | कुछ कुछ थोड़ा सा | विराज्ञ, (वि० ) थोड़ा जानने वाला। बकवादी - चित्कर, (वि० ) कुछ करने वाला उपयोगी । -चित्कालः, ( पु० ) कभी कभी । कुछ समय 1- चित्लाण, (वि० ) थोड़ा जीवन वाला । - चिन्मात्र ( वि० ) बहुत थोड़ा 12 -चंदस् (दि० ) किस वेद को जानने वाला - तर्हि ( अध्यय० ) फिर क्यों कर। किन्तु । तथापि । कितना ही। फिर भी इसके उपरान्त -तु, (अव्यया० ) किन्तु । साहम तो भी स्थापि ।-देवत, (वि०) किस देवता का। -नामधेय - नामम् (वि०) किस नाम का। -निमित्त (वि० ) किस प्रयो- जन का निमित्तम् (धव्यया० ) क्यों क्यों कर जिस लिये। इस लिये। जिस कारण से । -नु. ( अव्यया०) १ आया था। अथवा | २ अत्यधिक अत्यप ३ क्या नु, खल, ( अन्यथा ० ) १ ऐसा क्यों कर क्यों कर सम्भव | क्यों निश्रय हो । २ अस्तु । ऐसा ही सही पच, - पचान, (वि० ) कंजूस सूम लालची। मक्खीचूस -पराक्रम, (वि० ) किस शक्ति या विक्रम वाला। पुनर, (अव्यया० ) कितना और अधिक या कितना और कम प्रकारं, किस ढंग से किस तरह प्रभाव, (दि०) किस चलाव का । किस स्तवे का । - भूत, ( वि० ) किस तरह का या किस स्वभाव का --रूप, (वि० ) किस शक्ल का । वन्ति, -~-वदन्ती ( श्री० ) अफवाहवराटकः ( पु० ) अपव्ययीपुरुष फजुल खर्च करने वाला आदमी। ~वा, (अव्यया०) प्रभवाची अन्यय । -विद, (वि०) क्या जानने वाला। व्यापार, ( वि० ) किस पेशे का । -शील (वि० ) कैसे स्वभाव का। स्थित्, (अन्यया०) या आया। कियत् (वि०) [ कर्त्ता एकवचन पु० -- कियान, स्त्री० --कियती; न० कियत } कितना बड़ा । कितनी दूर कितना कितने कितने प्रकार का किन स० श० को०-३० 1 1 '} w -- 5 किर ( २३४ ) कोकसम् गुणों वाला । २ निकम्मा ३ कुछ | थोड़ा सा | किल (अध्यय० ) १ निश्चय । अवश्य । २ सत्य अल्पसंख्यक | थोड़ा । -एतिका, उद्योग धीर गम्भीर उद्योग सत्य यथावत। ज्यों का स्यों । ३ अलीक कार्य । आशा | सम्भावना | ४ असन्तोष अरुचि | ६ तिरस्कार । ७ हेतु । कारण किलः (पु० ) खेल | तुच्छ -किञ्चितम् (न० ) कामप्रणोदित उडिग्नता रुदन । हास्य प्रेमी के सामने मचलना, रूठना, क्रोध करना आदि । किलकिलः ( पु० ) ) एक प्रकार का हर्षसूचक किलकिला ( स्त्री० ) ' शब्द विशेष | वानरों की किलकारी । किलिंजं ) ( म० ) १ चटाई । २ हरी लकड़ी का किलिअम्) पतला सत्ता सता फिल्चित् (पु० ) घोड़ा। | किल्वियं ( ० ) १ पाप । २ अपराध | दोष | जुर्मं । अधुर । अँखुप्रा । पचव | ३ रोग। बीमारी। किशलयः (पु० ). किशलयम् (न० ) ( पत्ता | किशोर: ( पु० ) १ बछेड़ा। यथा किसी जानवर का बच्चा | २ बालक । बच्चा | छोकड़ा | १५ वर्ष की उम्र से कम का बालक नाबालिग अवयस्क अप्राप्त व्यवहार अर्थात् मैनर | ३ सूर्य । किशोरी (स्त्री० ) युवती स्त्री । किष्किन्धः ( पु० ) १ एक प्रदेश का नाम । २ विन्ध्यः ) उस प्रदेशस्थित एक पर्वत का नाम । | } ( स्त्री० ) किष्किन्ध्या प्रदेश की राज धानी का नाम । कन्या) ( स्त्री० ) - अलम्, ( अव्यया० ) १ कितने समय का २ कुछ थोड़े समय का विरं ( [अव्यया० ) कब तक । कितने समय तक। -दूरं, (अव्यय०) १ कितनी फासिले पर कितना लंबा | २ कुछ कुछ दूर पर दूर कितने समय के लिये किर: ( पु० ) शूकर किरकः ( पु० ) किरणः ( पु० ) प्रकाश सुअर लेखक २ सुअर का बच्चा धंदा | की फिरन। ( सूर्य, चन्द्र अथवा किसी प्रकाशयुक्त पदार्थ की ) किरन । २ रजकण-मानिन्, ( पु० ) सूर्य । किरातः ( 50 ) एक पतित पी जंगली जाति, जो वनजन्तुओं को मार कर उनके माँस पर अपना निर्वाह करती है। वैयाकरण किरातादपशब्दभूनाः क पान्तु संत्रस्ता यदि महगणक चिकित्सकवैतासिके बदमकंदरा म २ जंगली । वर्वर | ३ बौना यामन ४ साईस घुड़सवार । ५ किरात का रूप धारण करने वाले शिव जी का नाम -ताः, (बहुवचन) एक प्रदेश का नाम । - आशिन, ( go ) गरुड़ जी की उपाधि | किराती ( स्त्री० ) १ किरात जाति की एक स्त्री । २ चौरी डुलाने वाली स्त्री ३ कुटनी | ४ किराती का रूप धारण करने वाली पार्वती । २ प्रकाश- गंगा। किकु (वि० ) दुष्ट तिरस्करणीय बुरा। किकुः (पु० ) ( स्त्री० ) १ बाँह २ बारह अँगुल का माप । किसनः (पु० ) किसलम् ( न० ) किसलयः (पु० ) किसलयम् ( न० 5 पत्र | अहुर। आँखुआ। किधि (पु० ) शूकर। सुधर | २ बादल । किरीट: ( 50 ) ) किरीटम् ( म० ) ) १ सुकुट ताज | कलँगी । २ व्यापारी 1-- धारिन, (पु० ) राजा । ~मालिन्, ( पु० ) अर्जुन की उपाधि । किरीटिन् (वि० ) मुकुट धारण करने वाला (पु०) अर्जुन का नाम । किमर (वि० ) धब्बेदार चित्तेदार रंग बिरंगा | - जित्, - निषूदनः, सूदनः, (पु०) भीम की उपाधि | बपुरा कीट (पु० ) एक देश का नाम । आधुनिक विहा - किमीर: ( पु० ) एक राक्षस का नाम, जिसे भीम ने मारा था। | प्रान्त “कीकटेषु गया पुण्या ।" कोकस ( वि० ) कड़ा। द मजबूत कीकसम् ( न० ) हड्डी । अस्थि । कोकट (वि०) [स्त्री०-कीकटो] 1 गरीब २ कंजूस । नवपनव। कोमलकीचक ( चकः ( पु० ) १ खोखला बाँस पोला बाँस | २ बाँस जो हवा चलने पर खड़खड़ाता हो अथवा हवा के चलने से उत्पन्न बाँस की सनसनाइट २ एक जाति का नाम । ४ विराट राजा का साला और उसकी सेना का प्रधान सेनापति इसे भीम ने मारा था क्योंकि इसने द्रौपदी के साथ अनु- चित कर्म करना चाहा था। - जिल्. (पु० ) भीम की उपाधि । 35 कूड़ा। 8 बड़ाव | फैलाव | पसार ५ प्रकाश कान्ति । | ६ आवास । -भाजू: (वि० ) प्रसिद्ध । प्रख्यात मशहूर (पु० ) द्रोणाचार्य की उपाधि |--शेषः, (पु० ) जिसकी ख्याति के समय कुछ भी पीछे न रह जाय। मृत्यु | मौत | कोल ( धा० परस्मै० ) १ बाँधना | २ खोंसना । कीजना अर्थात् बंद कर देना। कील ठोंकना । सहारा देना टेक लगाना। दाव लगाना। 1 ट: ( पु० ) कीड़ा तिरस्कार या हिकारत में इसकीलः ( पु० ) १ कील । पिन । २ बर्षी ३ संभा खूटा ४ हथियार । ५ कोहनी | ६ कोहनी का महार। ७ लौ । ८ सूक्ष्म अनु। २ शिवजी का शब्द का प्रयोग समासान्त शब्दों में किया जाता है जैसे द्विप हीट: अर्थात् दुष्टहाथी; पतिकीटः, श्रर्थात दुष्टपक्षी आदि ः (पु० ) गन्धक । -अं, (न० ) रेशम /-जा ( स्त्री० ) लाख | | चपड़ा |~ मणिः, (पु० ) जुगुन | खद्योत | टकः ( पु० ) १ कीड़ा | २ मागध जाति का बंदी | जन। द्विशे द्वशी (श्री० ) दक्ष किस प्रकार का कैसा । किस 1 स्वभाव का । सरताज | रम् (न०) गोश्त । मौस [ रहने वाले। राः ( बहुवचन ) कश्मीर देश और उस देश के र्ण ( वि० ) १ गुथा हुआ | फैला हुआ। पड़ा हुआ। बिखरा हुआ / २ ढका हुआ | भरा हुआ । ३ रखा हुआ | ४ घायल। चोटिल।

(स्त्री०) १ बखैरना। २ ढकना | छिपाना | ३

२३५ घायल करना । र्तनम् (न०) १ पर्तना (स्त्री०) १ महिमा | पेर्तिः ( स्त्री० ) १ यश २ प्रशंसा [ देवालय | कहना | वर्णन करना | २ मन्दिर | वर्णन | कथन । पाठ २ कीति । (०) नाश (वि०) १ भूमि जोतने वाला | २ गरीब । धन- हीन ३ कंजूस स्वल्प थोड़ा [ विशेष | नाशः ( पु० ) १ यमराज की उपाधि । २ वानर कोलालकम् ( न० ) रक्त | खून | कीलिका (स्त्री० ) धुरी की कील । कीजित (वि० ) १ विधा हुआ। २ गड़ा हुआ। फील से जड़ा हुआ। कीश (वि० ) नंगा। रः (पु० ) तोता । सुग्गाइए: (पु० ) आम | कोशः (पु० ) १ वानर | लंगूर | २ सूर्य | ३ पक्षी धिक्कार, स्वल्पता, आवश्यear और ४ में का वृक्ष --वर्णकम् ( न० ) सुगन्ध द्रव्यों का | कु ( अन्यथा० ) हास, खरावी, कमी, घिसावट, पाप, re धन्यय विशेष इसके विविध परियायवाची शब्द हैं-१“कद्”, २ "कल”, ३ "का" और ४ "किं"। [ उदाहरण-१ कदश्व । २ कवोष्ण कोष्ण । ४ किंप्रभुः । ] पुत्रः ( पु० ) मङ्गल ग्रह 1 ---कर्मन, (न० ) ओछा काम । बुरा काम 1-ग्रहः, ( पु० ) अशुभग्रह -- ग्रामः, ( पु० ) पुरचा छोटा ग्राम /-- चेल, (पु० ) चिथड़े पहिने हुए ।-चर्या, ( स्त्री० ) दुष्टता | दुष्टाचरण 1-जन्मन्, (वि० ) अकुलीन नीच-तनु, (वि० ) कुरूप | विक लाङ्ग-तनुः, (पु०) कुबेर की उपाधि । -तंत्री, ( स्त्री० ) बुरी बीया ।-तीर्थ, (न० ) बुरा । ) प्रसिद्धि | प्रख्याति । महिमा | सराहना अनुग्रह | ३ कीचड़ नाम । कोलकः ( पु० ) 1 पथर | खूंटी। मेख । कील । २ खम्भा | स्तूप कलाल ( पु० ) १ अमृत के समान स्वर्गीय पेय पदार्थ | २ शहद | ३ हैवान । जानवर | धिः, ३ ( पु० ) समुद्र -पः ( पु० ) राखल | दानव देश्य | ( २३६ ) कुचर शेक्षक । —दिनं, (न० ) अशुभ दिवस । --दृष्टिः | कुकीलः (पु० ) पहाड़ | पर्वत । ( स्खी० ) १ बुरी निगह | २ क्रमज़ोर निगाह । कुकुदः ) विवाह में उपयुक पात्र को उचित कार ३ वेद विरुद्ध सम्मति । – देशः, ( पु० ) बुरा देश | कुँदः ) सहित एवं शास्त्रीय विधानानुसार कन्या या स्थान ऐसा देश जहाँ जीवनोपयोगी देने वाला । पदार्थ अप्राप्त हों या जहाँ का राजा अच्छा न हो कुकुंदरः कुकुन्दर: } (पु०) जघन कूप । हो ) विकलाङ्ग /-देहः, (पु० ) कुबेर की उपाधि | -धी, (वि० ) १ मूर्ख | मूढ़ | बेवकूफ | २ दुष्ट । -नटः, ( पु० ) बुरा अभिनय पात्र | -नदिका, ( स्त्री० ) छोटी नदी या नाला | कुकुराः (यहुवचन ) दशार्ह देश का नामान्तर | कुकूलः ( पु० ) १ भूसी । चोकर | २ चोकर की कॅकूलम् ( न०) ) श्राग | (न०) : सुराख | छेद | गढ़ा गरौँ । २ कवच | वर्म | -नाथः, (पु० ) दुष्ट स्वामी या मालिक । कुक्कुटः (पु०) १ भुर्गा | २ लुट | अघजली लकड़ी। नामन्, (पु० ) कंजूस । -पथः, ( पु० ) '३ चिनगारी | अंगारा | [स्त्री०-कुक्कुटी] मुर्गी | कुकुटि: } ( स्त्री० ) दम्भ | स्वार्थसिद्धी के लिये कुक्कुटी ) किया गया धर्मानुष्ठान । कुक्कुभः (पु०) १ जंगली मुर्गा | २ मुर्गा ३ वारनिश । लुक। रोशन । कुक्कुरः ( पु० ) [ स्त्री० – कुकुरी ] कुत्ता ।—वाच्, ( पु० ) हिरनों की एक जाति । कुमार्गं । –पुत्रः, (पु० ) दुष्ट पुत्र या बेटा 1 पुरुषः, ( पु० ) नीच आदमी (पूय, ( वि० ) नीच | धोछा। तिरस्करणीय। - प्रिय, ( वि॰ ) अप्रिय । तिरस्करणीय | नीच | श्रछा । --सवः, (पु० ) बुरी नाव ब्रह्मः, -ब्रह्मन्, (पु०) पतित ब्राह्मण | - मंत्रः, (पु०) बुरी सलाह । -~~योगः, ( पु० ) ग्रहों का बुरा या अशुभ संयोग (रसः, ( पु० ) मदिरा विशेष रूप, ( वि० ) बदशक । भद्दा । -रूप्यं, (न० ) टीन । जस्ता (चंगः, (पु० ) सीसा /~चचसू, चाक्यम्, ( न० ) गाली- गलोज । वर्षः, (पु० ) अचानक या प्रचंड वर्षा । —विवाहः, ( पु॰ ) विवाह की बुरी पद्धति । –वृत्तिः, (स्त्री०) बुरा कक्षः ( पु० ) पेट कुतिः ( पु०) १ पेट । २ गर्भाशय । पेट का वह भाग जिसमें गर्भ की झिल्ली रहती है। ३ किसी भी वस्तु का भीतरी भाग ४ रन्ध्र | ५ गुफा गुहा ६ म्यान । ७ खाड़ी | शुलः, ( पु० ) पेट का दर्द । कुत्तिभरि ( वि० ) पेटू । मरभुका भोजनभट्ट । आचरण कुंकमम् | (न०) । केसर । जाफ्रांन ।—प्राद्रिः,(पु०) असभ्य बदचालचलन / वैद्यः ( पु०) खरा वैद्य | नीम हकीम 1-~शील, ( वि० ) उजड दुष्ट | बदतमीज़ | अशिष्ट । दुष्टस्वभाव |–ठुलम्, ( न० ) बुरा स्थान /– सरित, ( स्त्री० ) छोटी नदी या नाला । — स्रुतिः, (स्त्री०) १ दुष्टाचरण । दुष्टता। इंद्रजाल | २ बदमाशी । -स्त्री. (स्त्री०) दुष्टा स्त्री । } एक पर्वत का नाम । कुङ्कुमम् कुचूँ (घ० परस्मै०) (कुचति, कुचित) १ पत्ती की बोली विशेष बोलना । २ जाना | ३ चिकनाना । ४ सकोड़ना । ५ सुकाना । सिकुड़जाना । ६ रोकना | अटकाना । ७ लिखना या लिखे को मिटाना | (१०) छाती | चूची चूची के ऊपर की धुंडी । - अयं, - मुखं, (न०) चूची के उपर की धुंडी । - फलः, (पु० ) अनार का वृत् ( स्त्री० ) १ पृथिवी | २ त्रिभुज का आधार | भम् ( न० ) एक प्रकार की शराब । ' धा० आत्म० ) [ कवते ] शब्द करना। बजाना। [ कुवते ] 9 कराहना | कहरना | २ चिल्लाना | ( परस्मै० ) [ कौति ] भिनभिनाना । कुचः पल्ले दर्जे का स्वार्थी । कुचर (वि० ) [स्त्री० -कुचरा, कुचरी] १ रेंगने वाला २ दुष्ट नीच | पापी | ३ निम्दक । ( पु०) स्थिर ग्रह । 1 ( २३७ ) च्छं (न०) कमल की जाति विशेष | कुजः (५०) १ च १२ मङ्गलग्रह | राक्षस विशेष -जा, (स्त्री०) सीताजी का नाम । जंभनः, कुजम्भनः १ (४०) घर में सेंध लगाने जंभिलः, कुजम्भिलः) वाला चोर | मदिः, ) उमटिका (स्त्री० ) कुहासा । नीहार । पाला। टी कुहरा । उच्च } देखो कुच्”। चू कुंचनम् । उञ्चनम् (न०) । झुकाना । सकोड़ना । चिः, हे (पु० ) आठ अंजुली या पसों का माप पश्चिः, ' विशेष | कंचिका ? (स्त्री०) १ ताली | चाबी | २ बाँस का ञ्चिका अर सुचित ) (वि०) सिकुड़ा हुआ । मुड़ा हुआ । कुञ्चित ) सुका हुआ। कुंजः (पु०) कुञ्जः (पु०) १ १ लता वृक्षों से परिवे- जम् (न०) कुञ्जम् (न०) ) ष्ठित स्थान । लतागृह लतावितान । "वल सखि कुटु सतिमिरपुञ्ज शीलय नीलनिचोलं ।” - गीतगोविन्द २ हाथी के दाँत कुटीरः, (पु०) लतागृह कुंजरः ( (पु०) हाथी | २ श्रेष्ठार्थवाचक | [अमर श्रेष्ठार्थवाचक अरः कोपकार ने निम्न शब्द बतलाये हैं-व्याघ्र, पुङ्गव, वर्षभ, कुअर, सिंह, शार्दूल, नाग |] ३ अवस्थ वृत्त । ४ हस्त नक्षत्र | - अनीकं, ( न० ) सेना का अंग विशेष जिसमें हाथीसवारों की टोली हो 1-- यशनः, ( पु० ) पीपल का वृत – अतिः, ( पु० ) १ शेर | २ शरभ / – ( पु० ) हाथी पकड़ने वाला। द (धा० पर०) (कुठति, कुटित) १ मुड़वाना । भुकवाना | २ मोड़ना । मुकाना । ३ बेईमानी करना । धोखा देना । छलना । (कुव्यसि ) टुकड़े टुकड़े कर डालना कूटना विभाजित करना । चीरना। टः ( पु०) } जलपात्र | कलसा | घड़ा । ( पु० ) टम् (०) [१] दुर्ग । गढ़। २ हथौड़ा | धन | कुटीरक' ३ वृत्त | ४ घर | ५ पर्वत । अः, (पु० ) १ एक वृक्ष का नाम | २ अगस्त जी का नाम । ३ द्रोणाचार्य का नाम 1~-हरिका, ( स्त्री० ) दासी । चाकरानी । कुटकं (न०) हल जिसमें बाँस लगा न हो । कुटंकः }(g०) छत्त । छावनी । }(पु०) मदैया । झौपड़ी । कुटंगकः कुटङ्गकः कुटपः (पु०) माप विशेष | तौल विशेष | २ गृहउद्यान। घर के निकट का बाग | ३ ऋषि । कुटपम् (न०) कमल | कुटरः ( पु०) खंभा जिसमें मयानी की रस्सी लपेटी जाय। कुटलं ( न० ) छत | छप्पर । कुटि: (पु०) १ शरीर | २ वृक्ष | (स्त्री०) १ झोपड़ी । २ मोड़ । सुकाव चरः, (पु०) सूस | शिशु- मार | कटिरं (न०) कुटीर | कुटी। सौपड़ी। कॅटिल (वि०) 1 टेढ़ा | झुका हुआ | मुड़ा हुआ | घूमधुमाव का घूमा हुआ। दुःखदायी | ३ झूठा। बनावटी। कपटी । बेईमान । - प्राशय, (वि०) दुष्ट नियत का दुष्टात्मा । - पदमन्, (वि०) झुके हुए पलकों वाला। -स्वभाव, (वि०) कपटी। छली। धोखेबाज़ | कुटिलिका (स्त्री०) १ पैर दवा कर चलने वाला (जैसे शिकारी चलते हैं)। २लुहार की भट्टी। लोहसाही । कुटी (स्त्री०) १ मोड़ | २ भौपड़ी | ३ कुटनी | ४ --चकः, (पु०) चार प्रकार के संन्यासियों में से एक। "A चतुर्विधा भिक्षवरते कुटीचकबहुदको । यो यः पश्चात् स उत्तमः || -- महाभारत । -चरः. (पु०) वह संन्यासी जो अपनी गृहस्थी का भार अपने पुत्र को सौंप स्वयं सप और धर्मानुष्ठान में लग जाता है। कुटीर: ( पु० ) कुटीरम् (न०) (झौपड़ी। कुटी । मड़ैया । | कुटोरकः (५०). ( २३८ ) कुण्ठ जो लंपटों को बिनाल औरतें | कुठार: ( पु० ) [ स्त्री० -कुठारी, ] कुल्हाड़ी परसा । कुटुं. कुटुम्वं कुटुंबकम् कुटुम्बकम् सम्बन्धी चिन्ता और कर्त्तव्य (न०) 1 गृहस्थ | नातेदार | | कुठारिकः (पु० ) लकड़हारा | लकड़ी काटने वाला । "रिश्तेदार २ गृहस्थी कुठारिका (सी० ) छोटी कुल्हाड़ी ( पु० न० ) १ सन्तान । सन्तति । श्रौलाद । २ नाम । ३ जाति । - कलहः, (पु० ) कलहम्, (ज०) घरेलू कुठास: ( पु० ) वृक्ष | पेड़ | २ लंगूर | बंदर | कुठिः ( ० ) १ बृष २ पहाड़। कुडंगः } ( पु० ) लताकुक्ष | खतागृह । गृहस्थी कुडपः भर अथवा प्रस्थ के बराबर होती है । भार व्यावृत ( वि० ) यह पुरुष जो गृहस्थी कुडव: है (पु०) अनाज की एक खौल जो १२ जूलि का पालन पोषण करे और उनकी सम्हाल रखे। कुटुंबिकः कुटुबिकः ) (प्र०) ३ गृहस्थ बाल बचों | कुटुंबिन कुटुम्विन् । वाला। किसी कुटुम्ब का एक | 1 कुडूमल (बि०) खुला हुआ। खिला हुआ। फैला हुआ। कुड्मलः (पु० ) खिलावट फल्ली। कुड्मलम् ( न० ) नरक विशेष | कुड्मलित ( वि० ) : कलीदार | जिसमें कलियाँ आगयी है।। फूला हुआ। २ प्रसन्न हँसमुख । कुड्यं ( न० ) १ दीवाल । २ अस्तरकारी । ३ उत्सु- कता। कौतूहल। छेदिन (पु० ) सेंध लगाने वाला चोर-चेयः, (पु०) खोदने वाला । वेलदार/-छेयम् (न० ) गसै| गढ़ा दरार। कुरा (धा० परस्मै० ) [ कुणति, कुणित] १ सहारा देना समर्थन करना सहायता देना २ शब्द [यच्चा | करना बजाना । कुटुनी (स्त्री०) कुटनी। ला कर दे । व्यक्ति | कुटुंबिनी ) (श्री०) १ गृहस्थ की स्त्री | २ गृहिणी | | कुटुम्बिनी १३ श्री । कुट्ट (घा० उभय०) [यति, कुहित] १ काटना । विभाजित करना। २ पीसना सूर्ण करना | कूटना ३ कलङ्क लगाना दोष लगाना चिक्का- रना । ४ वृद्धि करना | कुट्टकः ( पु० ) पीसने वाला। कूटने वाला । बुद्धनम् ( २० ) १ काटना | कतरना | २ पीसना । कूटना | ये गाली देना। धिकारना । कुन ० ) कुटनी | दशाला। (स्त्री० कुट्टिनी) कुट्टमितं ( न० ) प्रियतम के साथ मिलने की आान्त- रिफ इच्छा रहते भी, न मानने के लिये हाथ या सिर हिलाकर, इशारे से इंकार करना । कुट्टाक ( वि० ) [ स्त्री० -कुट्टाकी, ] जो काटता या विभाजित करता है या जो काटा या विभाजित किया जाता है। कुङ्कारः (पु० ) पहाड़ | [अकेलापन। । मानने कुट्टारं ( न० ) १ स्त्रीमैथुन | २ ऊनी कंबल | ३ कुट्टिमः ( 50 ) } 1 पत्थर जड़ा हुआ फर्श कुट्टिमम् ( म० ) ) २ ठोंक पीट कर मकान के लिये तैयार की गयी नीव | ३ रनों की खान । ४ अनार २ झोपड़ी। कुट्टिहारिका (स्त्री० ) दासी । खरीदी हुई दासी । कुठः ( पु० ) वृष | कुठर देखो कुटर | कुणक: (पु०) हाल का उत्पन्न हुआ जानवर का कुणप (वि० ) [स्त्री० कुणी] मुर्दा जैसी सदा- इन बाजा सडाँइन । कुणप ( बि० ) ) मुर्दा । शव । ( पु०) १ भाला। कुणयम् (न० ) ) बड़ीं। २ दुर्गन्धि सर्वोइन । कुणिः (पु०) विसहरी फोड़ा जो हाथ की अँगुलियों के नाखूनों के किनारे होता है। २ बुआ, जिसकी एक बाँह सूख गयी हो। कुंटक ) ( वि० ) [ स्त्री०- कुण्टकी ] मौटा । कुराटक ) स्थूल | कुंठ (घा० परस्मै०) (कुण्ठति कुण्ठित) : मायरा पड़ जाना २ लंगड़ा होजाना या अँगहीन हो जाना। ३ मूर्ख बनगा। सुख पड़ जाना। ४ ढीला करना (निजन्त ) छिपाना । १ कुंड ) (वि०) : मैौधरा | सुख | डीला । २ अड़ अनावी ।मूह | ३ सुस्त काहिल अकर्मण्य | ४ निर्बल | ( २३६ ) कुठक कुराडक: } ( पु० ) सूर्खं । येषकूक । कुंठित ) ( ० ० ) १ माथरा | गोंडिल | २ कॅण्ठित मूर्ख २ विकलाङ्ग । कुंड: कुण्ड: ( पु० ) ३ १ कूड़ा कुंड कुण्डम् (न०) ) घरी फूही | २ हौदी । ३ समूचापन | ४ कुण्ड | कूप ५ खप्पर । भिक्षापात्र । ( पु० ) छिनाले का लड़का छिनाता कराने से पैदा हुआ बालक पतिजीवित रहते हुए धन्य पुरुष से उत्पन्न सन्तान । [ स्त्री० कुंडी कुण्डो ] "पत्थी जोतिपस्या " -- --मनु० । आशिन (g० ) भवा । कुदना -ऊधस्, [-बुण्डोझी] दूध से ऐन भरी हुई गौ । २ स्त्री जिसके कुछ पूरे निकल चुके हो --कीटः, (५०) १ चकला वाला व्यभिचारिणी स्त्रियों का अड्डे वाला २ चारवाक मतावलम्बी। नास्तिक | ३ विनाले में उत्पन्न ब्राह्मण 1-कॉलः (पु० ) कमीना या अधम पुरुष / — गोलं, - गोलकम्, ( न० ) १ महेरी । पसाव पीच माँद । ओगरा। २ कुण्ड और गोलक का समुदाय। कुंडलः, कुण्डलः (पु० ) ३ १ कान का आभूषण २ कुंडलम्, कुण्डलम् ( न० ) पहुँची ३ रस्सी की गड़री ऐंठन - कुंडलना } ( स्त्री० ) एक गोल चिन्ह जो उस शब्द कुण्डलना) पर लगाया जाता है, जिसका पढ़ते समय, विचारते समय अथवा नकल करते समय छोड़ देना चाहिये। वह चिन्ह गोलाकार होता है। कुंडलिन् (वि०) [स्त्री० --कुण्डलिनी] १ कुण्डलों से भूषित | २ गोलाकार । ३ पैठनदार उमेश हुआ। ( पु० ) सर्व २ मोर ३ वरुण की उपाधि | कंडिका, कुण्डिका } ( स्त्री० ) १ घड़ा। कमण्डलु कुँडिन, कुण्डिन् ) ( पु० ) (ब्रह्मचारी का ) | शिव जी की उपाधि । कुंडिनम् ) ( न० ) एक नगर का नाम विदर्भों की कुँण्डिनम् ) राजधानी | कुडीर,कुण्डीर } (वि० ) मजयुत । कुमल ( पु० ) मनुष्य । कुंडिर: कण्डिर: कुंडी, कुण्ड कुतपः (पु०) १ माझ२ द्विजन्मा ३ सूर्य । ४ अग्नि | २ महमान ६ बैल | साँव । ७ दौहित्र | धोइया। लड़की का लड़का भाँजा। यहिन का जड़का | अनाज १० दिन का आठवाँ मुहूर्त | कुतपम् ( न० ) १ कुश दर्भ २ एक प्रकार का कंवल १ 1 कुतसू (अन्यमा०) १ कहाँ से किधर से २ कहाँ। अभ्यत्र कहाँ किस स्थान पर ३ क्योँ। किस- लिये। इसलिए। किस कारण से। किस उद्देश्य से। ४ क्योंकर किस प्रकार। ५ अत्यधिक अत्यल्प | ६ क्योंकि यतः । [हुआ। कुतस्त्य ( वि० ) १ कहाँ से थाया हुआ १२ कैसे कुतुकम् ( २० ) १ अभिलाषा | कामना । प्रवृत्ति । २ कौतुक | ३ उत्कराठा | कुतुप } (स्त्री० ) कृप्पी या कृष्णा । कुतूहल ( वि० ) १ अद्भुत | विषय | २ सर्वोत्तम । सर्वश्रेष्ठ | ३ श्लाघ्य | प्रसिद्ध । कुतूहलम् (न०) : अभिलाषा | कौतुक | २ उत्सुकतर | उत्कण्ठा ३ कोई पदार्थ जो प्रिय या रुचिका हो। कौतुहल कुत्र (अव्यया०) कहाँ। कुत्रत्य (वि० ) कहाँ रहनेवाला । कहाँ बसनेवाला । कुत्स (घा० आत्म०) [ कुत्सयते, फुत्सित ] गाली देना। धिकारना। फटकारना दोषी ठहराना । कुत्सनम् ( स०) गाली। तिरस्कार । निन्दा । कुन्सा (को०) अपशब्द | कुत्सित (वि० ) १ तिरस्कार करने योग्य | २ मीच कमीना दुष्ट | कुथः (पु० ) कुश | दर्भ १ | कुथः (पु० ) ) कुथम् (नं० ) कुथार स्त्री० ) । गलीचा । कुद्दारः कुद्दाल: कुद्दालकः कुमलं ( म० ) देखो कुड्मलं हाथी की मूल । २ कालीन | ( ५० ) १ कुदाली | २ फवड़ा | ३ कचनार का वृक्ष । कञ्चनप कुद्रकः } ( पु० ) १ चौकीदार का घर या चौकी या मचान पर बनी सधैया । कुमकः ( पु० ) काक। कौया । कुंकः, कुद्रङ्कः कुदंगः, कुद्रङ्गः कुतः ) ( पु० ) १ प्रास नामक शस्त्र । भाला । कॅन्तः । सपक्ष तीर । २ छोटा कीड़ा। कीट। कुंतलः ) ( पु० ) 1 सिर के केश | जलपान करने कुन्तलः ) का कटोरा या प्याला ३ हल । ४ जौ । २ सुगन्ध द्रव्य | ( बहुवचन ) देश विशेष और उसके निवासी। कंतयः ? ( पु० ) ( कुन्ति का बहुवचन ) देश कुन्तयः । विशेष और उसके बाशिंदे । ( २४० ) कतिः ) ( पु० ) राजा क्रथ के पुत्र का नाम - कुँन्तिः ) भोज, ( पु० ) एक यादव वंशी राजा का नाम (इसके कोई सन्तान न थी अतः इसने कुम्ती को गोद लिया था।) कुंती ) ( स्त्री० ) शूरसेन राजा की औरसी पुत्री कुन्ती ) जिसका नाम पृथा था और कुन्तिभोज ने इसे गोद लिया था। यह राजा पाण्डु की पटरानी थी और इसीके गर्भ से कर्णं, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का जन्म हुआ था। कुंथू (घा० परस्मै० ) [ कुंथति, कुश्नाति, कुंथित ] १ पीड़ित होना । २ चिपटना। ३ गले लगाना। ४ घायल करना । कुंद:- कुन्दः ( पु० ) १ चमेली की जाति का एक कंद-बुन्दम् ( न० ) पौधा । (न०) कुन्द का फूल | कंदः । ( पु० ) १ विष्णु की उपाधि | २ खराद । कुन्दः / ३ कुबेर के नौ धनागारों में से एक । ४ करवीर वृक्ष । कुंदमः } ( दु० ) बिल्ली । कंदं ) कुन्दम् ) कंदिनी । कुँन्दिनी । (स्त्री०) कमलों का समूह | कुमारी कुपिनिन ( पु० ) धीवर | महुआ। साहीगीर । कुपिनी (स्त्री० ) छोटी मछलियाँ फँसाने का एक प्रकार का जाल | [ घृणित | कुपूय ( वि० ) दुष्ठाचरणवाला | नीच | अकुलीन । इप्यम् ( न० ) १ उपधातु । २ चाँदी और सोने को छोड़ कर अन्य कोई भी धातु । कुवेरः कुबेरः ) धनाध्यक्ष देवता का नाम जो उत्तर दिशा ) के मालिक हैं। अद्रिः –अचलः, (५०) कैलास पर्वत का नाम । - दिशू, (स्त्री० ) उत्तर दिशा | कुब्ज (वि.) कुबड़ा | झुका हुआ। कुब्ज (५०) १ खङ्ग विशेष २ कूनड़ | ३ थोड़ी कोमलता वाला ४ अपामार्ग | कुब्जा ( स्त्री० ) राजा कंस की एक जवान कुबड़ी दासी का नाम। इसका कुबड़ापन श्रीकृष्ण ने मिटाया था । } ( पु० ) चूहा । मूसा । कुप् ( धा० परस्मै० ) [ कुप्यति, कुपित ] क्रोध करना । २ भड़क उठना । कुपिंद ) देखो कुविंद या कुविन्द । कुपिन्द) कुब्जकः ( पु० ) एक वृत्त का नाम । कुञ्जिका (स्त्री०) आठ वर्ष की अविवाहिता लड़की । कुभूत् ( पु० ) पर्वत । पहाड़ । कुमारः १ (पु०) पुत्र । बालक । पाँच वर्ष के नीचे की उम्र का बालक । ३ युवराज । राजकुमार । ४ कार्तिकेय का नाम ।५ अग्नि का नाम | ६ तोता । ७ सिन्धुनद का नाम । - पालनः, ( पु० ) १ वह पुरुष जो बालकों की देखभाल करे। २ शालिवाहन राजा का नाम । -भृत्य, (स्त्री०) १ लड़कों की देखभाल । २ धातृपना । दाई का काम । जचा स्त्री की परिचर्या । - वाहिन् - चाहनः, ( पु० ) मोर | मयूर । —सूः, (स्त्री०) पार्वती का नाम । २ गणेश जी का नाम । कुमारकः (पु० ) १ बच्चा | बालक | २ आँख की पुतली | कुमारयति ( क्रि० ) बालकों की तरह क्रीड़ा करना । कुमारिक (वि०) [स्त्री० --कुमारिकी] ) लड़कियों कुमारिन [स्त्री० -कुमारिणी 5 के बाहुल्य वाला । कुमारिका } १ (स्त्री०) जवान लड़की । १० और १२ कुमारी 5 वर्ष के बीच की उम्र की लड़की । २ अविवाहिता । क्यारी | ३ लड़की । पुत्री । ४ दुर्गा कुमुद् ( २४१ का नाम । ५ कई एक पौधों का नाम । ६ सीता । ७ बड़ी इलायची । म भारतवर्ष की दक्षिणी सीमा का एक अन्तरीप ६ श्यामा पक्षी | १० नव- मल्लिका | ११ घृतकुमारी । १२ नदी विशेष | -पुत्रः, (पु० ) कानीन । अविवाहिता का पुत्र । - श्वसरः, ( पु० ) विवाह होने से पहिले सतीत्व से भ्रष्ट हुई लड़की का ससुर । कुमुद् ( वि० ) १ अकृपालु । अमित्र | २ लालची । ( न० ) १ कुमुदनी का फूल १२ लाल कमल कुंबा} ( स्त्री० ) यज्ञस्थान का हाता या बेरा | कुम्बा कुरकुर कुरकुरा -~घोषः, ( पु० ) एक प्राचीन कस्त्रे का नाम -- अः, -जन्मन्, (पु० ) -योनिः, सम्भवः, (४०) १ अगस्त्य जी की उपाधियाँ | २ द्रोणाचार्य की उपाधि | २ वशिष्ठ जी की उपाधि । - दासी, ( स्त्री० ) कुटनी | - मराडकः, ( पु० ) घड़े का मिड़का | (आलं० ) अनुभवशून्य मनुष्य | - सन्धिः, (पु० ) हाथी के माथे पर के दो मॉस- पिण्डों के बीच का गढ़ा। कंसकः कुम्भकः / विशेष | का फूल । कुमुदः (पु० ) } १ सफेद कमल जो चुन्द्रमा उदय खिलता ) कमल । (न०) चांदी। (पु०) १ विष्णु की उपाधि । कुंभा } (स्त्री० ) छिनाल स्त्री ! नौची । रंडी । कैशिका कॅभिन् ) ( पु०) हाथी | २ नक्र | मगर | घड़ियाल । कुम्भिन् ३ मछली | ४ एक प्रकार का विषैला फीडा । २ दक्षिण दिशा के दिग्गज का नाम जिसने अपनी | कॅम्मिा ( स्त्री० ) १ कलसिया | २ रंडी। वेश्या। छोटी बहिन कुमुद्रसी का विवाह श्रीरामपुत्र कुश के साथ किया था । - अभिख्यं, (न०) चाँदी । - आकरः, -श्रावासः, (पु०) सरोवर जो कमलों से भरी हो । – ईश:, (पु ) चन्द्रमा :- खराडम्, ( न० ) कमल समूह | नाथः पतिः, बन्धुः, -बान्धवः, सुहृद्, (पु०) चन्द्रमा । कुमुदवती (स्त्री०) कमल का पौधा । कुमुदिनी (स्त्री०) १ सफेद कमल जिसमें सफेद कमल के फूल लगते हैं । २ कमलों का संग्रह |३ वह स्थान जहाँ कमलों का बाहुल्य हो ।-नायकः, - पतिः, ( पु०) चन्द्रमा | कुमोदकः ( ५० ) विष्णु की उपाधि । ) · ( पु० ) १ स्तम्भ का आधार | प्राणायाम २ गुग्गुल । -मदः, (पु०) हाथी का मद । कुंभिलः ) ( पु० ) १ घर में सेंध फोड़ने वाला चोर। कॅम्भिलः । २ ग्रन्थचोर । लेखचोर। लोकार्थ चुराने वाला । ३ साला | ४ गर्भ पूर्ण होने के पूर्व ही उत्पन्न हुआ बालक । कुंभी ) ( स्त्री० ) १ कलसिया | छोटा जलपात्र । कुम्भी ) २ मिट्टी के बरतन | ३ अनाज की तौल का एक बाट बटखरा ४ अनेक पौधों का नाम - नसः, ( पु० ) एक प्रकार का विषैला साँप - पाकः, ( एकवचन या बहुवचन ) ( पु० ) नरक विशेष जहाँ पापी, कुम्हार के बरतनों की तरह अवा में पकाये जाते हैं। कंभः ) ( पु० ) १ घड़ा। जलपात्र | कलसा । २ कुम्भः ) कुंभकः ) ( ५० ) पुन्नाग वृक्ष | २ गाडू | - हाथी के माथे के दो माँसपिण्ड।३ कुम्भ | कुम्भोकः ) मतिका, (स्त्री०) एक प्रकार की मक्खी । राशि । ४ चौसठ सेर या २० द्रोण की सौल । ५ प्राणायाम का एक अंग जिसमें स्वाँस खीचने के कुमीर: } ( 50 ) एक जलजन्तु विशेष । बाद रोकी जाती है। ६ वेश्यापति । ७ कुम्भकर्ण का पुत्र ८ गुग्गुल कर्णः, ( पु० ) रावण का छोटा भाई। कारः, ( पु० ) 8 कुम्हार । २ वर्णसङ्कर जाति उशना के मतानुसार । 'वेश्याया विश्तचौर्वात् कुम्भशारःस उच्यते । " पराशर जी के मतानुसार - "नालाकारारकर्मकया कुम्भकारी उपजायत।" कुंभीरकः, कुम्भीरकः, कॅभीलः, कुम्भीलः कुंभीलकः, कुम्भीलकः, कुर - (धा० परस्मै०) [कुरति, कुरित ] शब्द करना। बजाना । कुरंकरः, कुरङ्करः, कुरंकुरः,कुरङ्कुरः, ( ५० ) १ चोर | २ मगर । नक्र | . } (पु० ) सारस पक्षी । सं० श० कौ०-३१ कुरगः ( २४२ ) कुरंगः ) ( पु० ) [स्त्री० – रङ्गी.] १ लाल रंग का कुरुविंदः, कुरङ्गः ) हिरन । "सबंगी कुरङ्गीङ्गी करोतु ।" -- जगन्नाथ | २ हिरनों की जाति विशेष - क्षी, नयना, – नयनी, – नेत्रा, ( स्त्री० ) हिरन जैसी आंखों वाली स्त्री । - नाभिः, सुश्क | ( स्त्री० ) कस्तूरी कुरंगम: | } ( चु० ) देखो कुरङ्गः ॥ कुरचिल्लः ( पु० ) १ कैकड़ा | २ कुरटः ( पु० ) मोची । श्वमार । कुरंट:. कुरण्ट:, ( पु० ) कुरंटकः करण्टकः, ( पु० ) कुरंटिका, कुँरशिटका, (स्त्री० ) गुलशादाब | केस कुरंड: ) ( पु० ) अण्डकांशवृद्धि रोग । एक रोग कुँरण्डः ) जिसमें पोते बढ़ जाते हैं। } ( पु० ) उस्क्रोश पक्षी। चकवा । कुररी (स्त्री० ) १ चकवी | चकई | २ भेद | मेषी । -गुणः, (पु० ) चकवी पक्षियों का झुड। कररः कुँरलः बनैले सेव | ३ कुर्पूरः | [कर्कराशि | | कूपरः पीले रंग का सदावहार 1 कलगा। गुल- कुल कुरुविदः, कुरुजिन्दः (सः}} लाल (c) 2 कुरुनन्दः (पु०) ) लाल 1 रख (न० ) १ गुलकेस | गुलशादाव। का करवः ( पु० ) करषः ( पु० ) गुलशादाव करवकं, करबकम्. ( न० ) फुल [विशेष । कुरोरं ( न० ) स्त्रियों के सिर पर ओढ़ने का वस्त्र कुरुः ( बहुवचन ) १ आधुनिक दिल्ली के आस पास • का प्रदेश । २ उस देश के राजा । कुरुः ( पु० ) [ एकवचन ] १ पुरोहित | २ भात । -क्षेत्रं ( न०) दिल्ली के पश्चिम एक तीर्थस्थान, जहाँ कौरव और पॉण्डवों का लोकक्षयकारी इति- हासप्रसिद्ध युद्ध हुआ था। - जांगलम्, ( न० ) कुरुक्षेत्र - राजू, ( पु० ) राजः, ( पु० ) राजा दुर्योधन । – विस्रः, (पु० ) चार तोले की सौने की तौल । -वृद्ध: ( पु० ) भीष्म की उपाधि । कुराहट: } ( पु० ) लाल रंग का गुलशादाद। कुरंटी: } (स्त्री० ) काठ की पुतली | कुरण्टीः कुरालः (पु० ) माथे के ऊपर के बाल । दर्पण आईना। कुकुट: ( पु० ) १ भुगीं। २ कूड़ा कर्कट । कुर्कुरः ( पु० ) कुत्ता | कुर्चिका (स्त्री०) कूर्चिका । कुँची । देखो कूर्द-फूर्दन । कुर्द कुन कुसः कृर्पासः १ घुटना | २ कोहनी | ( पु० ) स्त्रियों के पहिनने की एक प्रकार की चोली या अँगिया । कुपासकः कृपसकः कुर्वत् ( व० क० ) करता हुआ । ( पु० ) १ नौकर | २ मोची। चमार | कुलं (न० ) १ वंश घराना | स्थान । २ घर। मकान । ३ कुलीन या उच्च वंशीय | ४ ॐड । गिरोह | दल समूह। समुदाय । २ (बुरे अर्थ में ) गिरोह | ६ देश । ७ शरीर ८ अगला आग प्रकल, (वि०) अच्छा बुरे कुल का। -अंगना, (स्त्री०) उच्च कुलोद्भवा स्त्री । - अङ्गारः, (पु०) कुलकलङ्क | -अचलः - अद्रि पर्वतः, -शैलः, (पु.) प्रसिद्ध सप्त पर्वतों में से एक । - अन्वित, (वि०) उत्तम कुलोत्पन्न । अभिमान, (पु०) अपने कुल का अहङ्कार–प्रचारः, (पु०) अपने वंश का पर म्परागत आचार। आचार्य:, (पु०) १ कुलपुरोहित २ वंशावली रखने वाला। - अलंबिन् (वि० ) कुल रखने वाला । —ईश्वरः, ( पु० ) १ कुटुम्ब का मुखिया | २ शिव जी का नाम - उत्कट, (वि०) उच्च कुलोद्भव-उत्कट:, ( पु०) अच्छी नस्ल का घोड़ा उत्पन्न,- उद्भुत, उद्भव, (वि०) अच्छे वंश में उत्पन्न उद्वहः, ( पु० ) खान्दान का मुखिया । - उपदेशः, ( पु० ) खान्दानी नाम । -कज्जलः, (पु०) कुलकलंक | कुलाङ्गार | -कराटकः, (पु० ) अपने कुल के लिये दुःखदायी । कन्यका, कन्या, ( स्त्री० ) कुलीन लड़की | - करु, ( पु० ) कुल का आदिपुरुष । –कर्मन, ( न० ) अपने कुल या खानदान की खास रस्म ( २४३ ) कुल अथवा विशेष रीति |-- कलङ्कः, ( पु० ) अपने खानदान में धब्बा लगाने वाला । –क्षतः, ( पु० ) १ वंश का नाश । २ कुल की बरबादी। - गिरिः भूभृत् (पु०) । –पर्वतः, -शैलः, ( go ) प्रधान सप्त पर्वतों में से एक । कुला- चल । -घ्न, (वि० ) वंश को बरबाद करने वाला 1-ज, जात, (वि० ) १ कुलीन | अच्छे खनिदान का। खानदानी । २ पैतृक बाप दादों का । पुरखों का जनः, ( पु० ) खान्दानी । कुलीन । -तन्तुः, (पु०) अपने कुल को कायम रखने वाला । - तिथिः, ( पु० स्त्री० ) १ चतुर्थी, अष्टमी, द्वादशी, चतुर्दशी। वह तिथि जिस दिन कुलदेवता का पूजन होता है। तिलकः, ( पु० ) अपने वंश को उजागर करने चाला। वंशउजा- गर। दोपः, दोपकः, ( पु० ) कुलउजागर । --दुहित, (स्त्री०) कुलकन्या ।-देवता (स्त्री०) खानदानी देवता। वह देवता जिनका पूजन अपने कुल में सदा से होता चला आता हो । -धर्मः, चशपरम्परा से प्रचलित धर्म । अपने खान्दान की पद्धति या रीतिरस्म । - धारकः, ( पु० ) पुत्र - धुर्यः ( पु० ) वह पुत्र जो अपने घर वालों का भरणपोषण कर सकता हो । वयस्क पुत्र । -नन्दन, ( वि० ) अपने कुल को प्रतिष्ठा बढाने वाला । –नायिका, ( स्त्री० ) वह लड़की जिसकी पूजा वाममार्गी ताँत्रिक भैरवीचक्र में किया करते हैं। -नारी, ( स्त्री० ) कुलीन और सती स्त्री । -नाशः, ( पु० ) १ खान्दान का नाश या बरबादी | २ जातिच्युत | पंक्तिबहिष्कृतः । ३ ऊँट । परम्परा, (स्त्री० ) वंशावली। पतिः ( पु० ) १० हजार शिष्यों का भरण पोषण कर, उनको पढ़ाने वाला ब्रह्मर्षि सुनीनां दशसाहस्त्र योऽन्नदानादिपोषणात् । अध्यापयति विमर्थिरसी कुलपतिः स्मृतः ॥ -पांसुका, ( स्त्री० ) कुलटा स्त्री । -- पलिः, - पालिका, -पाली, (स्त्री०) सती या कुलीन स्त्री । -पुत्रः, (पु०) उत्तम कुल में उत्पन्न लड़का |- पुरुषः, ( पु० ) १ कुलीन पुरुष | खान्दानी आदमी | २ पुरखा । बुजुर्ग - - पूर्वगः, ( पु० ) कुलायम् पुरखा। बुजुर्ग भार्या ( स्त्री० ) पतिव्रता या सती स्त्री । भृत्या, स्त्री० ) गर्भवती स्त्री की परिचर्या करने वाली । - मर्यादा, ( स्त्री० ) कुल की प्रतिष्ठा | खान्दानी इज्जत 1-मार्गः, ( पु० ) खान्दानी रस्म । योषित, वधू, ( स्त्री० ) कुलीन और अच्छे आचरण वाली स्त्री । -वारः ( पु० ) मुख्य दिवस अर्थात् मंगलवार और शुक्रवार 1 — विद्या, (स्त्री० ) वह ज्ञान जो किसी घर में परम्परा से प्राप्त होता चाया हो । – विप्रः, ( पु० ) पुरोहित (वृद्धः, (पु०) कुल का वृद्ध और अनुभवी पुरुष ।-व्रतः, -व्रतम्. ( न० ) खान्दानी व्रत । – श्रेष्टिन्, ( पु० ) १ किसी वंश का प्रधान २ कुलीन - घराने का कारीगर संख्या, (स्त्री०) १ खान्दानी इज्जत | २ सम्मानित घरानों में गणना- सन्ततिः, ( स्त्रो० ) ग्रालश्रौलाद /-सम्भव, (वि० ) कुलीन घराने का। -- सेवकः, (पु० ) उत्कृष्ट नौकर | -स्त्री (स्त्री० ) अच्छे घराने की औरत । नेक औरत । - स्थितिः, ( स्त्री० ) घराने की प्राचीनता या समृद्धि । कुलक (वि० ) कुलीन । कुन्नकः ( पु० ) १ किसी जत्था का मुखिया । किसी थोक का प्रधान २ किसी प्रसिद्ध घराने का कलाकोविद | ३ बाँबी । कुलकम् ( न० ) १ समूह | समुदाय । २ १५ तक के लोकों का समूह जो बनाते हों या एकान्वयी हों। कुलटा (स्त्री०) छिनाल औरत। व्यभिचारिणी स्त्री | -पतिः ( पु० ) कुटना। मछूंदर । कुलतः ( अन्यया० ) जन्म से । कुलत्थः ( पु० ) कुलथी । एक प्रकार का अनाज । कुलंधर | ( वि० ) अपने कुल या वंश को कायम कुलन्धर / रखने वाला। कलंभरः, कलम्भरः कुँलंभलः, कुलम्भल : } ( पु० ) चोर । कलवत् (वि०) कुलीन । | कजायः कुलायम् ऐसे ५ से एकवाक्य ( पु० ) ) १ पक्षी का घोंसला | २ ( न० ) शरीर । ३ स्थान | जगह । ४ जाला। बुना हुआ वस्त्र | २ किसी वस्तु के रखने कुलायिका का घर या खाना। पात्र 1- निलायः ( पु० ) घोंसले में बैठना। अंडे सेना। -स्थः ( पु० ) पक्षी । [ अटारी । पचीशाला । कत्तायिका ( स्त्री० ) पिंजड़ा। पत्तियों के बैठने की कुरुराज ( पु० ) १ कुम्हार | २ जंगली मुर्गा । कलिः ( पु० ) हाथ । कुलिक ( वि० ) कुलीन | - चेला, ( स्त्री० ) दिन का वह विशेष भाग जिसमें शुभ कार्य करने | कुबल यिनी (स्त्री०) १ नील कमल विशेष का पौधा । २ का निषेध है । कमल समूह | ३ वह स्थान जहाँ कमलों की बहुतायत हो । कमल का पौधा | ( २४४ ) कुलिकः ( पु० ) ३ सगोत्री । २ घराने या वंश का मुखिया | ३ कुलीन । कलाकोविद । कुल्माषं (न०) पीची। माँढ । कुल्माषः (पु०) अन्न विशेष । कुल्य (वि०) १ कुल का । वंश सम्बन्धी | २ कुलीन । कुल्यः (पु०) कुलीन पुरुष। कुशाग्र कुल्या (स्त्री० ) १ सती स्त्री । २ नहर | नाला | छोटी नदी ३ गढ़ा गरौँ । खाई । ४ अनाज की सौल विशेष, जो ८ द्रोण के बराबर होती है। कुवं (न० ) १ फूल । २ कमल । कवलं (न०) १ कमल विशेष | २ मोती । ३ जल । कुवलयम् (न०) १ नील कमल विशेष । २ पृथिवी (पु० भी) कुलिंगः } (पु०) १ पक्षी । २ गौरैया 1 कुलिङ्गः ) कविकः (पु०) (बहुवचन) एक देश विशेष का नाम । कुलिनू (वि०) [ स्त्री० – कुलिनी ] कुलीन । ( १० ) | कविदः कुविन्दः ) ( पु० ) १ जुलाहा कोरी। २ ऋषिदः, कुपिन्दः ) कोरी की जाति का नाम । कुलिंदः ) (बहु०) एक देश विशेष और उसके | कुवेणी (स्त्री०) १ पकड़ी हुई मछलियों को रखने की कॅलिग्दः । शासक । पर्वत । पहाड़ । टोकरी । २ बुरी बंधी हुई सिर की चोटी । कुवेलं (न०) फमल । कश ( वि० ) १ पापी | २ मतवाला । कुशं (न०) जल । । कुलिर: (पु०) ११ बैंकदा २ कर्कराशि । कुलिरम् (न०) कुलिश: - कुलीशः (पु०) १ इन्द्र का वज्र । कुँलिशम् - कुलीशम् (न०) ) नोंक 1~-घरः, - पाणिः, (पु०) इद्र । -नायकः, (पु०) स्खीमैथुन का आसन विशेष । रतिबन्ध | कुली (स्त्री) बड़ी साली । सरहज । कुलीन (वि०) अच्छे खान्दान का । कुलीनः (१०) अच्छी नस्ल का घोड़ा । कुलीनसम् (न०) पानी । कैलोरक } ( 50 ) १ कैकड़ा । २ कर्क राशि : ' कुशः (पु०) १दर्भ | पवित्र तृण विशेष | २ श्री रामचन्द्र जी के ज्येष्टपुत्र । ३ द्वीप विशेष | कुशल (वि०) १ ठीक । उचित | अच्छा | शुभ | २ प्रसन्न । समृद्धशाली । २ योग्य | निपुण । दत। --काम, (वि०) सुख प्राप्ति का अभिलाषी । प्रश्नः, (पु०) राजीखुशी पूँछना । ~ बुद्धि, (वि०) बुद्धिमान | कुशाग्र बुद्धि । प्रतिभाशाली । कुशलं (न०) १ कल्याण | मङ्गल | २ गुण | धर्म । ३ निपुणता । चतुराई । कुँलुकगुआ (स्त्री०) अधजली लकड़ी । लुआट। कुलूतः ( पु० ) ( बहुवचन) एक देश विशेष और कुशलिन (वि०) [बी० --कुशलिनी] प्रसन्न | अच्छी "उसके राजा दशा में भरा पूरा। कल्यं (न०) १ मित्रभाव से घरेलू बातों के सम्बन्ध में प्रश्न | (समवेदना | सहानुभूति | वधाई आदि) २ हड्डी | ३ माँस । ४ सूप | कुवाद (वि०) १ बदनाम तुच्छ । हल्का । निन्दक । दोष हूदने वाला | २ नीच | कमीना। दुष्ट | कुशस्थलं (न०) कन्नौज | कुशस्थली (स्त्री०) १ द्वारकापुरी । कुशा ( स्त्री० ) १ रस्सी | २ लगाम । कुशावती (स्त्री० ; श्रीरामचन्द्र जी के पुत्र कुश की राजधानी का नाम । कुशाग्र (वि०) बहुत महीन | कुश की नौंक के समान । - बुद्धि, (वि०) तीक्ष्ण बुद्धिवाला | कुशारण कुशारणिः, (पु०) दुर्वासा ऋषि । कुशिक ( दि० ) पेंचाताना। भैया। कुशिकः ( 50 ) 1 विश्वामित्र के पिता का नाम । २ दल की फाल नसी | कुसी फाल ३ तेस की। कुशी ( स्त्री० ) हल की फाल । कुशीलवः (पु० ) १ भाट । चारण | गवैया | २ कसीदा (स्त्री०) ब्याजखोर स्त्री । कुसोदायी (स्त्री० ) व्याजखोर की पत्नी | असीविकः } ( पु०) ब्याजन्नोर । सुद खाने वाला । | अभिनय या नाटक का पात्र बनने वाला । नट नचैया ३ खबर फैलाने वाला ४ वाल्मीकि की उपाधि | [ कमण्डलु । कुशुंभ, कुशुम्भः ( पु० ) संन्यासी का जलपात्र । कुशूल : (पु०) १ अन्न भरने का कोठार। भण्डारी । २ धान की भूसी की आग। कुशेशयं (न०) कमल । कुशेशयः (पु०) सारस। २ कनैर का पेड़ | कुप् (घा० परस्मै०) [कुष्णाति, कुपित] १ फाड़ना । खींच कर निकालना | खींचना | २ परीक्षा करना । जाँचना पड़तालना। ३ चमकना । कुपाकु (पु० ) पुत्र १२ अझि | ३ लंगूर बन्दर कुसुमं ( न० ) १ फूल | २ रजोदर्शन : ३ फल /-- अञ्जनम्. (न०) पीतल की भस्म जो अअन की जगह इस्तेमाल की जाती है। लिः, (१०) पुष्पा अति ।-अधिपः- प्रधिराजू, (१०) चम्पा का पेड़ अचचायः. (पु०) फूल एकत्र करना - अवतंस कं, (न०) सेहरा। सरपेच हार-प्रस्त्रः, -आयुधः, -पुः, चाणः, -शरः, (पु० ) ३ कुसुम बाण पुष्पशर । फूल का तीर ३ काम- देव का नाम 1- (पु० ) १ बाग, बगीचा पुष्पोद्यान २ गुलदस्ता ३ वसन्त ऋतु-आत्मकं, (न० ) केसर | जाफ्रान /- आसवं, (न०) १ शहद मधु | २ मदिरा विशेष -उज्वल, (वि०) पुष्पों से प्रकाशित। -कार्मुकः, चापः, -धन्धन, (पु०) कामदेव । चित, (वि०) पुष्पों के ढेर का 1 पुरं, (न० ) पटना । पाटलिपुत्र अता. (स्त्री० ) फूली हुई बेल- शयनम् ( न० ) फूलों की सेज स्तवकः, ( पु०) गुलदस्ता | ० कुष्ठः ( पु० ) है कोद रोग :- अरिः ( ० ) १ कुष्ठम् ( न० ) [ गन्धक २ करथा ३ पर्वन ४ कितने ही पौंधों के नाम केतुः, (पु० ) खेखसा का साग । -गन्धिनी (स्त्री० ) असगन्ध । कुण्ठिन } (वि०) [स्त्री० कुण्ठिनों] कोड़ी | कुण्ठी ( २४५ ) कुष्माण्ड: ( पु० ) 1कुम्हड़ा २ झूठा गर्भ | ३ शिव का एक गया। कुष्माण्डकः ( पु०) कुम्हड़ा। कुस् (धा० परस्मै० ) [कुस्यति, कुसित] १ आलिङ्गन करना | २ घेरना | कुसितः ( पु० ) १ आबाद देश । २ व्याज या सूद | पर निर्वाह करने वाला। कुसिदः ) ( पु० ) इसको कुशीद या कृषीद भी कुसीदः । लिखते हैं। महाजन | सूदखोर । कुसीदम् (न०) १कर्जा जो सूद सहित अदा किया जाय। २ रुपये उधार देना। व्याजखोरी धन्धा - पथः, (पु०) सूदखोरी व्याज सूद ५ सैकड़े से अधिक भाव का सूद।-वृद्धिः (सी) रुपर्यो पर म्याज | कुसुमवती ( स्त्री० ) रजस्वला स्त्री | कुसुमित ( वि० ) फूला हुआ। पुष्पित कुसुमाल: (पु० ) चोर कुसंभ, कुसुम्भ (७०) कु सुभ, कुसुम्भम् (न०) ( पु० ) दिखावटी स्नेह । (४०) सुवर्ण | सोना । कुसूलः (पु० ) खत्ती । सेरें। अझ का भारडार गृह कुसूतिः (श्री० ) घुल जाल । कपट । धोखा प्रवश्वना । १ कुसुंभ | २ केसर ३ संन्यासी का जलपात्र | कुस्तुभः ( पु० ) १ विष्णु कुहः ( पु० ) धनाधिप कुवेर | २ समुद्र । व्याज का | कुहकः ( पु० ) खुली । प्रवद्धक जालसाङ्ग । मदारी । ऐन्द्रजालिक । कुछ कम् 1 कुहकम् (२० ) | जालसाज़ी| इन्द्रजाल कार, कुहका (स्त्री० ) | (दि०) ऐन्टजालिक जालसाज़ छलिया। चकित ( वि० ) संशयात्मा | शकी। सतर्क धोखे से डरा हुआ स्वनः, -स्वरः (g०) मुर्गा कुहनः ( पु० ) 1 मूसा । २ सौंप । कुहनम् (न०) १छोटा मिट्टी का पात्र २ शीशे का पात्र कुनिका (स्त्री०) दंभ | ( २४६ ) कुहरं (न०) १ र छित्र | गुफा | बिल | २ कान ३ गला | ४ सामीप्य | ५ मैथुन । समागम कुहरिवं ( ० ) प्रवास | २ कोकिल की कूक ३ मैथुन के समय को सिसकारी । ( स्त्री० अमावस्या श्रमावस २ इस- कुद्ध: । तिथि का दैवत | ३ कोकिल की कूक । — कुण्ठः दुः -मुखः, - रवः, शब्दः ( पु० ) कोयल | कू (धा० आम० ) [ कवते, कुवते ] शब्द करना । शोर करना २ दुःख में चिल्लाना | कहरना । कृः ( स्त्री० ) चुड़ैल | दुष्टा स्टी। [वाहिता स्त्री की। कृचः (पु० ) चूची | विशेष कर युवती अथवा अवि कृचिका ) ( स्त्री० ) : कृषी | बुश पेंसिल | कूची "} २ ताली | कूज् ( धा० परस्मै० ) [ कृजति --कूजित, ] भिन- भिनाना। गुआर करना। कूमना । } कूज: ( पु० ) कूजनं (न० ) कूजितं (न०) कूट ( वि० ) १ मिथ्या | २ अचल | हड़ चहचहाहट | २ पहियों की खड़खड़ाहट या घूँचाँ कूटः (पु०) ) १ कपट । कुल माया | धोखा । २ कूदम् (न०) ) चालाकी । जालसाज़ी । ३ विषम प्रभ । परेशान करने वाला सवाल लिट ● झूठा पाँसा-आगारं, ( न० ) अटारी | अटा1-व्यर्थः; (पु०) सन्दिग्ध अर्थ - उपायः, ( पु० ) जालसाजी | ठगविद्या (--कारा, (पु० ) जालसाज़ उग। भू गवाह (--, (वि०) १ जाली वस्तावेज बनाने वाला । ३ घूंस देने वाला ( पु० ) १ कायस्थ । २ शिव जी का नाम खड्डः ( पु० ) गुसी ( सलवार ) छान् । पु० ) कपटी खुलिया । ठग - तुला ( श्री०) झूठी तराजु । धर्म, (वि० ) मिथ्या भाषण जहाँ कर्त्तव्य समझा जाय - पाकलः, ( पु०) हाथी का वातज्वर - पालका, ( पु० ) कुम्हार | कुम्हार का अँचा -पाशः, -बन्धः, (पु० ) फंदा । जाल ।-मानं, (न०) झूठी तौल 1-~मोहनः (पु०) स्कन्द की उपाधि 1 -यंत्रम् ( न० ) फंदा जाल, जिसमें पक्षी था हिरन फँसाये जाते हैं। युद्ध (म० ) धोखे घड़ी का युद्ध - शाल्मलिः, ( पु० स्त्री० ) १ शाल्मली। वृत्त विशेष । २ नरक में दण्ड देने का यंत्र विशेष -शासनं, ( म० ) बनावटी डिग्री। झूटी डिग्री /~साक्षिन्, (न० ) झूठा गवाह ~स्थ (वि० ) शिखर या चोटी पर अवस्थित या खड़ा हुआ। सर्वोच्च पद पर अधि ठित । सर्वोपरि ~~स्थः, ( पु० ) १ परमात्मा । २ आकाशादितत्व । ३ व्याघनख नाम का सुगन्ध- द्रव्य विशेष :-स्वर्ण ( न० ) बनावटी या झूठा सोना मुलम्मर । कूटकं (न० ) १ छल | धोखा | जाल | २ श्रेष्ठत्व उन्नयन। ३ हल की नोंक। कुशी-आख्यानं, ( न० ) बनावटी कहानी . कूटश: (अन्यथा० ) ढेर में। समूह में । कूण (धा० उभय०) [[कृष्णयति-कूणयते, कूणित ] १ बोलना। बातचीत करना। २ सफोड़ना बंद करना। रचना ४ झूठ | मिथ्या । २ पर्वत की चोटी या शिखर ६ निकास | ऊँचाई | उमाद। ७ माथे की हड्डी शिखा ८ सींग | 8 केोना | छोर 90 प्रधान मुख्य । ११ ढेर । समूह | १२ ह्यौड़ा | धन | १३ हल की फाल कुशी १४ हिरन फसाने का जाल । १५ गुप्ली । १६ कलसा घड़ा । ( पु० ) १ घर 1 आवास स्थल | २ अगस्त्य जी का नाम (अतः, (पु०) . - कणिका (स्त्री० ) १ सींग २ चीणा की खूँटी। कूणित ( वि०) बंद | मुँदा हुआ। कूदालः (पु० ) पहावी धावनूस। कूपः ( पु० ) १ धूप । इनारा | ३ छेद | रन्ध | गुफा | बिल पोलापन सन्त्रि ३ कुप्पी | कुप्पा | ४ 1 ( २४७ ) कृ मस्तुल–अङ्कः-अङ्गः, (पु०) रोमाञ्च रोंगटे | कूर्मः ( पु० ) १ कढ़वा | २ फण्डावतार | ध्रुवताः खड़े होना । -कच्छपः, -मराइकः ( पु० ) -मराहू की, (स्त्री०) कुए का कप या मैड़क । (घालं०) अनुभवशून्यमनुष्य । - यंत्रम्, ( न० ) पानी निकालने का रहट । ( पु० ) भगवान् का कच्चपावतार -पृष्ठं -पृष्ठकं, ( म० ) १ कळवे की पीठ १ ढकना -राजः ( पु० ) विष्णु भगवान् अपने दूसरे अवतार के रूप में कूलं ( न० ) १ समुद्रतट नदीतट | २ ढाल । उतार | ३ चंचल छोर किनारा | सामीप्य ४ नाताव | ५ सेना का पिछला भाग ६ ढेर | ढीला चर, ( वि० ) नदीवट पर धरने वाला या रहने वाला। ---भूः ( स्त्री० ) तट की भूमि । - हराडकः-हुराडकः, ( पु० ) अल- भँवर । ५ कृपक कूपक (पु०) १ अस्थायी या कशा कुआँ । २ गुफा बिल ३ जांयों के बीच का स्थान । ४ जहाज़ का मस्तूल १२ चिता ६ चिता के नीचे के रन्ध | ७ कुपी कुप्पा ८ नदी के बीच की चहान या वृक्ष | कूपारस } (I० } समुद्र । कूवारः कूपो ( स्त्री० ) १ कुइयां | छोटा कूप | २ बोतल । करावा । ३ नाभि । कुजंकपः, कूलङ्कषः (पु० ) नदी की धार । कृलंकषा. कृतङ्कपा (स्त्री० ) नदी | सरिता | कूलंघय, कूलन्धय (बि०) नदी सटक्त । नदीतट के कूचर ) (वि०) [स्त्री० -कुबरी कूवरी] सुन्दर कुबेर ) मनोहर । २कुबड़ा । कूबरः ) ( पु० ) वह बाँस जिसमें जुए को फँसाते हैं। २ कुबड़ा आदमी | कुबरी ) (स्त्री०) १ कंवल या कपड़े से ढकी गाड़ी पास की। कूवरः कूलमुद्रुज (वि० ) तद ढहाने वाला। कूवेरी ) २ वह बाँस या लंबी लकड़ी जिसमें उषा | कूलमुह ( वि० ) नदीतट को ढहाने बोला । से जाने वाला। लगाया जाता है 1 कूर ( ज० भोजन | भात | क्रूरः ( पु० ) कूर्च: ( पु० ) ) १ मुठा मुदरी गट्ठर | २ मुट्ठी कुर्चम् ( न० ) ) भर कुश | ३ मोरपंख | ४ दादी । १ चुटकी ६ दोनों भौहों का मध्यभाग | ७ कूची। ८ जान छाल कपट ६ डींगे मारना । थक- बना] १० म्भ होंग। ( पु० ) १ सिर । २ भण्डारी । शीर्षः, -शेखरः, (पु० ) नारियल का बुद्ध । कृचिका (स्त्री०) १ चित्र लिखने की कुंची या पेंसिल २ कुंजी | ताली १३ कली। फूल ४ दुग्धविकार | ५ सुई । [ कूदना | उछलना कूर्द ( घा० उभय० ) [ कति, कूते, कूति] १ कर्दनम् (न० ) १ छलांग १२ खेल | क्रीड़ा । कूर्दनी (स्त्री० ) १ चैत्री पूर्णिमा को कामदेव सम्बन्धी उत्सव विशेष | २ चैत्री पूर्णिमा | कूर्पः ( पु० ) दोनों भौहों के बीच का स्थान । कूपर: ( पु० ) १ कोंदनी । २ घुटना कूष्मांड:, कूष्माण्ड: ( पु० ) कुम्हड़ा | कहा (स्त्री० ) कुहासा। कुहरा। कृ (धा० उभव०) [कृणोति कृणुतें] चोटिल करना घायलं करना मार डालना | [ करोति, कुरुते, कृत ] १ करना २ बनाना ३ किसी वस्तु को बनाकर तैयार करना। ४ मकान उठाना । सृष्टि करना। ५ उत्पन्न करना ६ तैयार करना। क्रम में करना । ७ लिखना। रचना करना।८ अनुष्ठान करना । १ कहना। निरूपण करना। १० पालन करना । आशा का पालन करना। तामील करना। ११ पूरा करना | समाप्त करना । १२ फेंकना । निकाल देना उद्देल देना १३ धारण करना | खेना १४ बोलना उच्चारण करना । १५ ऊपर रखना १६ सौंपना १७ भोजन बनाना १८ सोचना | विचारना ध्यान देना । १६ लेना । ग्रहण करना | २० शब्द करना | २१ व्यतीत करना। विताना। २२ फेरना | ध्यान किसी ओर आकर्षित करना २३ दूसरे के लिये नई काम कृक करना | २४ इस्तेमाल करना। व्यवहार में लाना। २५ विभाजित करना । बाँटना | २६ किसी दशह विशेष में लाकर डाल देना । कुकः ( पु० ) गला । कुकशा: } (पु० ) तीतर | ( २४८ कृकतास कृकुलासः कृकुवाकुः (पु०) १ मुर्गा | २ मोर | ३ छिपकली । विस्तुइया -ध्वजः, ( पु० ) कार्तिकेय की उपाधि | ( पु० ) छिपकली। गिरगट | कृकाटिका ( सी०) १ गरदन का उठा हुआ भाग २ गरदन का पिछला भाग घट्टी। कृ ( वि० ) १ कष्टकर | पोड़ाकारी | २ बुरा । विपत्तिकारी। दुष्ट । ३ पापी | ४ सङ्कट में फसा हुआ।- प्राण, (वि० ) जिसके प्राण सङ्कट में हों। २ कष्टपूर्वक स्वांस लेने वाला । ३ कठिनाई से जीवन निर्वाह करने वाला /- साध्य, (वि०) ( रोग ) जो कठिनाई से अच्छा हो सके । २ कठिनाई से पूर्ण किया हुआ। + कृच्छ (पु० ) ) १ कठिनाई। कष्ट पीड़ा सङ्कट कृ ( म० ) ) विपत्ति । २ शारीरिक कष्ट । तप | प्रायश्चित्त । कृच्छ्रीत } बढ़ी कठिनाई से । कष्टपूर्वक। कृत् (धा० परस्मै० ) [ कृतति, कृत ] १ काटना । काट कर अलग कर डालना । विभाजित कर डालना। चीर डालना। फार ढालना टुकड़े टुकड़े कर डालना | नष्ट कर डालना । [कृणत्ति, कृत्त. ] १ कातना | २ घेर लेना। कृत ( वि० ) करने वाला, कर्ता बनाने वाला रचने वाला ( पु० ) एक प्रकार के उपसर्ग। कृतं ( न० ) १ कर्म कार्य क्रिया २ सेवा । लाभ | ३ परिणाम | फल | ४ उद्देश्य प्रयोजन । ५ पोंसे का वह पहल जिसपर ४ बिंदु बने हों। ६ चार युगों में से प्रथम युग जिसमें मनुष्यों के १,२८००० वर्ष होते हैं। (मनु० अ० १ श्लो० ६६ और इस पर कुल्लूकभट्ट की व्याख्या] किन्तु महा भारत के अनुसार कृतयुग में मनुष्यों के ४८०० ) कृत वर्षों के ऊपर वर्ष होते हैं। ७ चार की संख्या - अकृत, ( दि० ) किया और अनकिया अर्थात् अधूरा 1–अङ्क, (वि०) चिन्हित | दागा हुआ | २ गिनती किया हुआ | -अङ्कः (१० ) पाँसे का वह पहल जिसपर चार बिंदकी बनी हों- अञ्जलि ( वि० ) हाथ जोड़े हुए अनुकर, ( वि० ) । उत्तर साधक सहायक अधीन - अनुसारः, ( पु० ) रीति | रस्म | रीति भाँति । --अन्तः, ( पु० ) १ यमराज २ प्रारब्ध क़िस्मत ३ सिद्धान्त ! ४ पापकर्म । दुष्टकर्म | शनिग्रह ६ शनिवार-अन्तजनकः, ( पु० ) सूर्य 1- अन्नं ( ० ) १ पकाया हुआ खाना २ पचा हुआ श्रन्न । ३ विष्ठा ।-अपराध, (दि०) कसूरवार अपराधी दोषी अभय ( वि० ) किसी सकट या भय से बचाया हुआ -अभि चेक. (वि० ) राजगद्दी पर बैठाया हुआ । राज- तिलक किया हुआ |-अभ्यास, ( वि० ) अभ्यस्त 1- अर्थ, (वि० ) १सफल | २ सन्तुष्ट | प्रसन्न | ३ चतुर । - अवधान, (वि० ) होशि- यार सावधान। -प्रवधि, (वि०) निद्धरित | नियत । २ सीमाबद्ध । मर्यादित अवस्थ, - ( वि० ) बुलाया हुआ । २ स्थिर | बसा हुआ । -अस्त्र, ( वि० ) १ हथियारबंद | २ अन्त्र विद्या में निपुण ।- धागम, ( पु० ) परमात्मा । --आत्मन्, ( वि० ) इन्द्रोजित | संयमी । २ पवित्र भन वाला । – आभरण, (वि०) भूषित | -आवास, ( वि० ) पीड़ित --श्राह्वान, ( वि० ) ललकारा हुआ | चुनौती दिया हुआ | -उद्वाह (वि० ) विवाहित ऊपर को बांहे उठा कर तप करने वाला उपकार, ( वि० ) अनुग्रहीत ।-कर्मन, ( वि० ) चतुर | निपुण । ( पु० ) १ परमात्मा २ संन्यासी । -काम, ( वि० ) वह जिसकी कामनाएँ पूरी हो चुकी हों। -काल, (वि०) १ निश्चित समय का | २ वह जिसने कुछ काल तक प्रतीक्षा की हो । –कालः, ( पु० ) निश्चित समय । -कृत्य, (वि० ) १ वह जिसकी उद्देश्य सिद्धि हो चुकी हो । २ सन्तुष्ट अघाया हुआ | ३ कर्तव्य पालन किये कृत ( २४६ हुए । –कयः, (पु०) खरीददार । गाहक 1- क्षमा, (चि०) १ घड़ी भर बड़ी उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा करने वाला | २ अवसरमाप्त -झ, (वि० ) अनुपकारी एहसान फरामोश | करे को न मानने वाला। पूर्व के समस्त उपायों को विफल करने वाला । चूड:, (पु०) वह बालक जिसका चूड़ा- करण संस्कार हो चुका हो ।-झ, (वि० ) उप- कृत | मशकूर | • (दि० ) १ किया हुआ । बनाया हुआ । पूर्ण किया हुआ। उपकार को मानने वाला । २ सदाचरणी । -शः, (पु० ) कुत्ता । - तीर्थ, (षि०) १ जो सब तीर्थकर हो । २ जो किसी अध्यापक के पास अध्ययन करता हो । ३ उपायों को अच्छी तरह जानने वाला ४ पथप्रदर्शक - दासः, ( पु० ) वेतनभोगी नौकर। पन्द्रह प्रकार के दासों में से एक -धी, (वि० ) १ विचारवान बुद्धिमान २ शिक्षित | विद्वान |- नियोजन ( पु० ) पश्चाताप करने वाला पापी । - निश्चय, (वि०) निर्धारित निश्चय किया हुआ ।-पुङ्ग, (वि०) धनुविद्या में निपुण /- पूर्व, (वि० ) पहले किया हुआ |– प्रतिकृतं, (न० ) आक्रमण और बचाव -प्रतिज्ञ, (वि०) १ वह जो किसी के साथ कोई | प्रतिज्ञा या ठहराव कर चुका हो । २ अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण किये हुए । बुद्धि, (वि० ) शिक्षित | पढ़ा लिखा ! बुद्धिमान । —मुख, (वि०) शिक्षित | बुद्धिमान । -लक्षण, (विं० ) १ चिन्हित मोहर लगा हुआ । २ दागा हुआ | ३ सर्वोत्तम । श्रेष्ठ | सर्वप्रिय | ४ छुट्टा। बीना हुआ। निरूपित । - वर्मन्. ( पु० ) कौरव पक्षीय एक योधा जो सात्यकी द्वारा मारा गया था। – विद्य, (वि० ) शिक्षित | अधीत – वेतन, (वि० ) भाड़े का । वेतनभोगी।- वेदिन ( वि० ) कृतज्ञ -- वेश. ( वि० ) भूषित - शोभ, ( वि० ) १ सुन्दर । २ उत्तम | ३ चतुर ।। कुशल- शौच. ( वि० ) पवित्र | शुद्ध 1-श्रमः, - परिश्रमः ( पु० ) अधीत | पढ़ा लिखा । शिक्षित -सङ्कल्प, ( वि० ) निश्चित किया हुआ |-- संज्ञ, (वि०) : सचेत | मूर्च्छा से जागा हुआ | ) कृत्य २ जागा हुआ । सन्नाह (वि० ) कवच पहिने हुए।-सपलिका, (वि० ) वह स्त्री जिसके सौत हो । हस्त, दस्तक, ( वि० ) १ निपुण । कुशल | पटु । २ धनुविधा में पटु । अस्त्र शस्त्र चलाने की विद्या में निपुण कृतक (वि० ) १ किया हुआ । बनाया हुआ । तैयार किया हुआ | २ कृत्रिम | बनावटी अवास्तविक ३ मिथ्या झूठा बनाया हुआ | ४ गोद लिया हुआ। 1 कृतं ( ० ) पर्याप्त काफी अधिक नहीं । कृतिः ( स्त्री० ) १ करतूत २ पुरुषार्थ । ३ बीस अक्षर के चरण वाला लोक विशेष । ४ जादू । इन्द्रजाल ५ चोट वध | ६ बीस की संख्या । -करः ( पु० ) रावण की उपाधि । कृतिन् (चि०) सन्तुष्ट | अधाया हुआ अपनी साध पूरी किये हुए । २ भाग्यवान् | धन्य | कृतकृत्य । ३ चतुर | योग्य पढ़ निपुण | ४ नेक धर्मात्मा पवित्र | ३ अनुगमन अनुसरण आज्ञा- पालन | आज्ञानुसार करने वाला । कृते । ( अव्यया० ) लिये । निमित्त | यवजह । कृतेन । इसलिये । कृत्तिः ( स्त्री० ) १ चर्म | चमड़ा | २ मृगछाला | ३ भोजपत्र | ४ कृत्तिका नक्षत्र । – वास, - वाससू, ( पु० ) शिव जी । कृत्तिका ( बहुवचन ) २७ नक्षत्रों में से तीसरा 1- तनयः पुत्रः, सुतः, ( पु० १ कार्तिकेय । भवः, ( पु० ) चन्द्रमा | कत्तु ( वि० ) १ भली भाँति करने वाला। काम करने की योग्यता रखने वाला। शक्तिमान | २ चतुर । चालाक। निपुण । कृत्नु: ( पु० ) कारीगर । शिल्पी कृत्य (वि०) १ वह जो किया जाना चाहिये। उपयुक्त ठीक १२ सम्भव | साध्य | ३ विश्वासघाती। कृत्यं ( न० ) १ कर्त्तव्य | कर्म | २ कार्य । अवश्य करणीय कार्य । ३ उद्देश्य । प्रयोजन । कृत्यः “तव्य", "नीय" "य' और 'एलिम', ये विभ- क्तियाँ हैं। स० श० कौ०–३२ कृत्या ( २५० ) कृष् कृत्या ( स्त्री० ) 5 कार्य क्रिया २ जादू टोना | | कृपीटम् (न० ) १ जङ्गल | वन 1 ३ देवी विशेष, जो मारण कर्म के लिये विशेष रूप से बलिदानादि से पूजी जाती है। कृत्रिम ( वि० ) १ वनावटी । नकली । कल्पित । २ गोद लिया हुआ - धूपः, धूपकः, ( पु० ) | कृमि ( वि० ) फोड़ों से भरा हुआ |--कोशः, राल, लोबान, गूगूल आदि को मिलाने से बनी हुई धूप पुत्रकः, (पु० ) गुड्डा गुड़िया | पुतली | कृत्रिमः ( पु० ) १२ प्रकार के पुत्रों में से एक के वयस्क हो और अपने जनक जननी की अनुमति बिना किसी का पुत्र बन बैठा हो। --कोचः, ( पु० ) रेशम के कीड़े का खोज | रेशम का कोया कोशउत्थं ( न० ) रेशमी वस्त्र जं, अग्धं, (न० ) अगर की लफड़ी-जा, (खो०) लहा। लाख-जलजः, -~-वारिरुहः (पु०) घोंबा। शङ्ख का कीड़ा- पर्वतः, -शैलः, (पु०) बेहुर । बाम्बी। -फलः, (पु०) उदुम्डर या गूलर का पेड़ --शङ्ख, (पु०) शङ्ख का कीड़ा| ~~शुकि, (स्त्री०) १ घोंघा सीप । २ कीड़ा जो इनमें रहे | ३ दोपट्टा शङ्ख ऋमिः ( पु० ) १ कीड़ा । रोग के कीटाणु ३ गधा। ४ मकड़ी । ५ बाख । "नमः स्वारस्वयं दत्तः " कृत्रिमम् ( न० ) सुगन्ध पदार्थ | -~-याज्ञवल्क्य । एक प्रकार का निमक । २ एक कृत्सं ( न० ) १ जल । २ समूह | कृत्सः ( पु० ) पाप । कृत्स्न (वि० ) समस्त समूचा | सम्पूर्ण कृंतर्भ (न० ) हल | कृतन (न० ) ) काटना | फाड़ना। नौचना | कृन्तनम् (न० ) ) कुवरना। कृपः (पु० ) अश्वत्थामा के मामा का नाम सह चिरजीवियों में से एक कृपण (वि० ) १ गरीब । दयापात्र अभागा । साहाय्यहीन | २ सत्यासत्य-विवेक-शून्य। श्रक- मण्य | ३ नीच | ओड़ा दुष्ट ४ कंजूस जालची-घी, बुद्धि, (वि० ) नीचमना | -वत्सल, ( वि० ) दीनों पर दया करने वाला। दीनदयालु | कृपणः ( पु० ) कंजुस । कृपणम् (न० ) कंजूसी दरिद्रता | + कृपा ( स्त्री० ) रहम दया। अनुकम्पा 1 कृपाणः ( पु० ) १ तलवार । २ छुरी । कृपालिका स्त्री०) खंजर धुरी | कृपाणी (स्त्री० ) १ कैंची | २ खाड़ा | खंजर | कृपालु (वि० ) दयालु । कृपापूर्णं । कृपी (स्त्री०) कृपाचार्य की बहिन और द्रोणाचार्य की पत्नी पतिः, ( पु० ) द्रोणाचार्य |~सुतः, ( पु० ) अश्वत्थामा । क्रमिण कृमिल २ ईंधन | ३ अल ४ पेट पालः, (पु० ) १ पतवार । २ समुद्र | ३ पवन । हवा । -योनिः, ( पु० ) अग्नि । } ( वि० ) कीड़ेदार । कीढ़ों से पूर्ण । कृमिला (स्त्री० ) बहुत बच्चे जनने वाली औरत । कृश (धा० पर०) [ कृश्यति, कृश ] १ दुबला होना । लटना | २ क्षीण पड़ना (चन्द्रमा की तरह) | कृश ( वि० ) १ पतला हुबला लटा निर्बल २ छोटा | थोड़ा। महीन | ३ तुच्छ । निर्धन | -क्षः, (पु०) मकड़ी। -अङ्ग, (वि०) दुबला । लटा। -अङ्गी, (स्त्री० ) १ छरछरे शरीर की स्त्री | २ प्रियंगु लता -उदर, (वि० ) पतली कमरयाली । कृशला (स्त्री०) सिर के बाल । [ उपाधि | कृशानु (पु० ) धाग/- रेतस् (पु०) शिव जी की कृशाश्विन (पु.) नाटक का पात्र । एक्टर | कृष् (धा० उभय०) [कृपति, कृपते, कृष्ट]: जोतना । हल चलाना। [कर्षति-कृष्ट]: खींचना | घसी- ढना | कढ़ोरना । २ आकर्षण करना | ३ सेना। की तरह परिचालन करना | ४ सुकाना ( कमान की तरह ) ५ मालिक बनना | वशक्ती करना। दवा लेना | ६ जोतना । ७ प्राप्त करना । ८ ड्रीन ले जाना विमुक्त करना । कृषाण ( २५१ ) कृषाणः कृषिक: (पु०) हलवाहा। किसान | कृषिः ( स्त्री० ) १ जुसाई | २ कृषि | किसानी /- कर्मन् (न०) खेती 1-जीविन्, ( वि० ) किसानी पेशा खेती करके निर्वाह करनेवाला । फलं, (न०) खेती की पैदावार 1--सेवा, (स्त्री०) किसानी खेतिहरपन | कृषीवलः (पु०) किसान। काश्तकार | खेतिहर | कृष्करः (पु०) शिव जी । [ हुआ। २ जोता (पु०) व्यास जी का नाम :-पक्षः, (पु० ) अँधियारा पाख। यदी ---मृगः (5० ) काला हिरन। -मुखः, - वक्त्रः, -- वदनः, (पु०) काले सुख का वानर यजुर्वेदः, (पु०) तैतरीय या कृष्ण यजुर्वेद |-लोहः, (पु०) चुम्बक पत्थर | वर्णः, (पु०) १ फाला रङ्ग २ राहुमह । ३ शुद्ध --वर्मन, (पु०) १ अग्नि २ राहुग्रह | ३ ओछा थादमी।वेशा, (स्त्री० ) एक नदी का नाम । -शकुनिः, ( पु० ) काफ। कौआ । --सारः, (पु०) चित्तीदार हिरम। --शृङ्गः (पु०) भैंसा /- सखः, - सारथिः, (पु०) श्रीकृष्ण । - 1 कृष्णाम् ( न० ) १ कालापन। कालिख अँधियारी २ खोदा । ३ सुर्मा | ४ आँख की पुसली । ५ काली मिर्च या गोल मिर्च | ६ सोसा। कृष्ट (वि० ) १ खींचा हुआ। आकृष्ट कृष्टिः (स्त्री०) विद्वान आदमी (स्त्री०) १ खिचाव आकर्षया | २ जुलाई। कृष्ण ( वि० ) 1 काबा | २ दुष्ट | बुरा । कृष्णकम् (न० ) काले हिरन का चमड़ा। कृष्णः (पु०) १ काला रङ्ग । २ काला मृग | ३ क ४ कोकित १ २ कृष्णपण अँधेरा पास ६ कलियुग ७ भगवान विष्णु का झाठवाँ अवतार | कृष्णलं ( न० ) हुँघची । जो कंसादि दुर्दान्त दैस्यों के नाश के लिये मथुरा कृप्यलः (पु०) हुँचची का पौधा में हुआ था और जिनके चरियों से भागवतादि | कृष्णा ( श्री० ) १ नौपदी | २ दक्षिण भारत की पुराण और महाभारतादि इतिहास पूर्ण हैं | एक नदी का नाम । महाभारत के रचयिता कृष्णद्वैपायन व्यास | 8 अर्जुन का नाम । १० अगर की लकड़ी - अगुरु, (न०) एकप्रकार के चन्दन की लकड़ी- प्रचलः, (पु०) रैवतक पहाब का नाम।-अजिनं, ( म० ) काले मृग का धर्म ।-~~-अयस्, (न० ) कृ (धा० परस्मै०) [किरति-कीर्ण ] १ बखेरना । असं, छितराना उडेलना | फेंकना | २भगा देना | ३ ढकना | भर देना | छिपा देना श्रमियम् (न०) लोहा । कान्ति- सार लोहा ।~-प्रध्वन, अर्चिस (पु०) धाग। -अमी (स्त्री०) भाज कृष्ण अष्टमी, जो श्रीकृष्ण जी के जन्म की तिथि है। आवासः, ( पु० ) अक्षर या बरगद का पेड़-उदर, ( पु० ) एक प्रकार का सर्पदं ( ० ) लाल कमल 1-~-कर्मन्, (वि० ) असदाचरणी । पापी दोषी दुष्ट अपराधी ।-काकः, (पु०) कृत् (धा० उभ०) {कीर्तयति-कीर्तयते, कोर्वित] १ उल्लेख करना । पुनरावृत्ति करना उच्चारण करना २ कहना पड़ना घोषित करना । सूचना देना। ३ लेना । पुकारना ४ स्तव करना। प्रशंसा करना महत्व बढ़ाना । स्मरण रखना। I जंगली फाफ या पहाड़ी कौणा -काय:, (पु० ) लृप् (घा० आत्म०) [कल्पने, क्लस] १ योग्य होना। भैसा। -कोहलः, (पु० ) जुधारी। --गतिः, उपयुक्त होना। रजाभन्द करना पूर्ण करना। पैदा करना । २ भलीभाँति व्यवस्थित होना। तारा, 1 । ( पु० ) आग -श्रीवः, (पु० ) शिव - (पु०) सुग विशेष भ्रमर 1- धनं, (न० ) पुरे बेईमानी फरके कमाया हुआ धन -देहः, (पु०) भौंरा । ढङ्ग से या -द्वैपायनः, सफल होना। ३ होना घटित होना ४ तैयार होना [निजन्तु] १ तैयार करना । व्यवस्था करना । २ अनुकूल होना ३ शरीक होना। कृष्णिका (स्त्री० ) राई । कृष्णिमन् (पु०) कालापन कृष्णी (स्त्री०) अँधियारी रात । कृत ( जड़ना २ स्थिर करना । नियत करना । ३ बाँटना। ४ सम्पन्न करना। ५ विचारना । क्लृप्त ( द० कृ० ) १ रचित | बनाया हुआ । सजा हुआ। टुकड़े किया हुआ | काटा हुआ |३ उत्पन्न किया हुआ। ४ स्थिर किया हुथा। तै किया हुआ । ५ आविष्कृत | विचारा हुआ |--- कीला, ( स्त्री० ) किवाला एक प्रकार की दस्तावेज | क्लृभिः (स्त्री०) १ पूर्णता | सम्पूर्णता | सफलता | कामियावी । २ आविष्कार । सुव्यवस्था | क्लप्तिक (वि० ) खरीदा हुआ । क्रीत | [निवासी । केकयः (पु० ) (यहुवचन ) देश विशेष और उसके कैकर ( वि० ) [ स्त्री० – केकरी] ऐचाताना | भेंड़ी आँख वाला। मँड़ा। केकरं (न०) सैंदापन | केका (स्त्री०) मोर की बोली। केकावलः ) केकिकः केकिन ( पु० ) मोर मयूर | २५२ केलि ( न० ) वैडूर्य । – वसनं, ( न० ) कपड़े की पताका । केदारः ( पु० ) १ पानी भरे खेत । चाह । २ थाला । खोडुआ । ३ पर्वस | ४ केदार पर्यंत ५ शिवजी का रूप विशेष 1-खण्डम् ( न० ) में बाँध :--नाथः, ( पु० ) शिवजी का रूप विशेष | केनारः (पु० ) १ सिर शीश २ खोपड़ी । ३ जाल | ४ गाँठ जोड़ केनिपातः ( go ) पतवार डाँड़ केन्द्रम् ( न० ) १ वृत्त का मध्य भाग । २ वृत्त का प्रमाण । ३ जन्मपत्र के लग्न, चतुर्थ ससम और दशम स्थान ४ मुख्यस्थान मध्यस्थल । बाजूबंद | जोशन । तावीज्ञ । केशिका ( स्त्री० ) खीमा। तंबू । कनात | केतः ( पु० ) १ मकान | २ आवादी घस्ती | ३ भंडा । पताका । ४ सङ्कल्प । इरादा। अभिलाषा | केतकं (न० ) केतकी का फूल । केतकः ( पु० ) १ एक पौधे का नाम । २ भंड़ा। पताका । केतकी ( स्त्री० ) १ एक पौधा विशेष | २ केतकी का फूल । केतनम् ( न० ) १ घर । मकान २ आमंत्रण | बुलावा ३ जगह स्थान ४ झंडा पताका ५ चिन्हानी चिन्ह ६ अनिवार्य कर्म । केतित (वि०) आमंत्रित | बुलाया हुआ | २ बसने वाला। बसा हुआ केतुः ( पु० ) १ झंडा । पताका २ प्रधान । मुखिया । नेता | ३ पुच्छलतारा धूमकेतु । ४ चिन्हानी | निशान। ४ चमक सफाई ६ प्रकाश की किरन । ७ उपग्रह विशेष | केतुग्रह - ग्रहः, ( पु० ) केतुग्रह । --भः, (पु० ) बादल । -यष्टिः, ( स्त्री० ) पसाका का बॉस -रत्नं, } केयूरः (पु० ) ) केयूरम् (न० ) ) केरलः ( पु० बहुवचन ) मालावार देश और वहाँ के अधिवासी । केरली (स्त्री० ) १ मालावार की स्त्री । २ ज्योति- विज्ञान | केलू ( धा० परस्मै० ) [ केलति, केनित ] १ • हिलाना | २ क्रीड़ा करना | क्रीडोत्सुक होना । कैलकः ( पु० ) नचैया । नाचने वाला । केलासः ( पु० ) स्फटिक पत्थर केलिः ( पु० स्त्री० ) १ खेल | क्रीड़ा | २ आमोद प्रमोद | ३ हँसी मज़ाक। दिल्लगी। हर्ष, कला । ( स्त्री० ) १ रतिकला | २ सरस्वती देवी की वीणा । – किल, ( पु० ) विदूषक | मस- खरा 1- किलावती, ( स्त्री० ) कामदेव की पत्नी। रति देवी कीर्णः, ( पु० ) ऊंट - कुञ्चिका ( वि० ) छोटी साली । – कुपित, ( वि० ) खेल में क्रुद्ध 1- कोषः, (पु०) अभि नय-पात्र | नचैया -गृह-निकेतनम्,- मन्दिरं, -सदनम्, ( न० ) प्रमोद भवन | --- नागरः, (५०) कामासक्त कामुक ऐयाश - पर, (वि० ) खिलाड़ी। श्रमोदप्रमोदप्रिय । -मुखः, (पु०) हँसी। खेल । आमोद प्रमोद । - वृक्षः ( पु० ) कदम्ब वृत्त विशेष । -शयनं, फेलि ( २५३ ) कैकेयी का पेड़ ( न० ) सेज 1 - शुषिः, ( स्त्री० ) पृथिवी | | केशव (वि० ) बहुत अथवा सुन्दर केशों वाला -- -सचिव:, ( पु० ) अभिन्न मित्र | केलिः (स्त्री० ) पृथिवी । कैलिक ( पु ) अशोक वृक्ष । थायुधः, ( पु० ) आम (न०) विष्णु का शस्त्र ( पु० ) पीपल का पेड़ । आयुधम् प्रालयः, -श्रावासः, केली ( स्त्री० ) १ खेल | क्रीड़ा | २ आमोद प्रमोद | - पिक: (०) आमोद के लिये पाली हुई कोकिला 1-वनी, (खो० ) प्रमोद वन - केशवः ( पु० ).१ विष्णु का नाम जो ब्रह्म रुद्राटिकों पर दया करते हैं। केशी दैत्य को मारने वाले। केशाकेशि (अन्य ) परस्पर वाल खींच कर ( लडने वाले ! शुकः ( पु० ) श्रमोद के लिये पाला गया तोता । केवल ( वि० ) १ विशिष्ट । असाधारण । २ अकेला । केशिक (वि० ) [ स्त्री० कोशको ] सुन्दर वालों वाला । मात्र । एकमात्र | बेजोड़ | ३ समस्त | समूचा नितान्त सम्पूर्ण ४ अनावृत विना ढका हुआ । ५ शुद्ध साफ श्रमिश्रित । केवलं ( अव्यय० ) सिर्फ । एकमात्र । केवलतस् (अन्य ) नितान्तता से विशुद्धता से । केवलिन् (वि० ) [ स्त्री० - केवलनी ] १ अकेला । केसरः, केशरः ( पु० ) ) 1 केशिन् ( पु० ) १ सिंह । २ श्री कृष्ण के हाथ से मरे हुए एक राक्षस का नाम । ३ देवसेना का हरण करने वाला और इन्द्र द्वारा मारा गया एक दूसरे राक्षस का नाम । ४ श्री कृष्ण की उपाधि | २ अच्छे बालों वाला | -निषूदनः, -मथनः, सिर्फ एकमात्र । २ ब्रह्म के साथ एकत्व के ( पु० ) श्रीकृष्ण की उपाधियां । सिद्धान्त पर पूर्ण श्रद्धावान् । केशिनी ( स्त्री ) १ सुन्दर वेणी वाली स्त्री । केशः ( पु० ) १ वाल। २ विशेष कर सिर के केश २ विश्रवस की पत्नी और रावण की माता का ३ घोड़ा या सिंह के गरदन के बाल अयाल । ४ नाम | प्रकाश की किरण । ५ वरुण की उपाधि । ६ सुग- १ सिंह की गरदन के न्धद्रव्य विशेष - अन्तः, ( पु० ) १ बाल की | केसरम्, केशरम् (न० ) ) बाल । अयाल । २ नोंक । २ जटा । लट चोटी ३ चूड़ाकरण संस्कार | - उच्चयः ( पु० ) बहुत था. सुन्दर बाल /- कर्मन, ( पु० ) वालों को सम्हालना या काढ़ना | माँग पट्टी बनाना। -कलापः, (पु०) बालों का ढेर कीट:, (पु०) जूँ । बालों में रहने वाले कीट विशेष - गर्भः, ( पु० ) देणी चोटी 1-चिऋद् ( पु० ) नाई । हज्जाम । --- जाहः, (पु०) बालों की जड़ -पक्षः, -पाशः, हस्तः, (पु० | बहुत अधिक वाल : - बन्धः. ( १० ) चुटीला | बाल बाँधने का फीता । -भूः, भूमिः, ( स्त्री० ) सिर या शरीर का अन्य कोई भाग जिस पर केश उगे :--प्रसाधनी (स्त्री० मार्जकं, मार्जनं, (न०) कंघा | कंधी । - रचना, (स्त्री०) बाल सम्हालना । – वेशः, ( पु० ) चुटीला फीता। फूल का रेशा या सूत । ३ बकुल वृक्ष | ४ पुन्नाग वृत्त । २ (आमफल का) रेशा । (२०) वकुलपुष्प | -अचलः, ( पु० ) मेरु पर्वत । वरं ( न० ) फेसर | जाफ्रान् । केसरिन ) ( पु० ) १ सिंह | २ अपनी श्रेणी का सर्वो- केशरिन् । स्कृष्ट या सर्वोत्तम | ३ घोड़ा | ४ नीबू अथवा चक्रोतरा अथवा विजौरे का पेड़ | ५ पुंडाग वृक्ष ६ हनुमानजी के पिता का नाम । सुतः ( पु० ) हनुमान जी । के ( घा० परस्मै० ) [ कायति ] आवाज़ करना | - केशट: ( पु० ) १ बकरा | २ विष्णु का नाम | ३ खटमल ४ भाई । बजाना। कैशुकम् ( न० ) किंशुक का फूल. कैकयः ( पु० ) केकय देश का राजा । कैकसः (पु० ) एक राक्षस । एक दैत्य ।. कैकेयः ( पु० ) केकय देश का राजा या राजकुमार । कैकेयी ( स्त्री० ) महाराज दशरथ की छोटी रानी और भरत की जननी । 2 कैटभः ( २५४ ) कोटीरः कैटभः (पु० ) एक दैत्य जो विष्णु के हाथ से मारा | कोकनदं ( न० ) लाल कमल । गया था। रिः जित्, रिपुः, हन्, ( पु० ) विष्णु । कैतकं (न० ) केतकी का फूल । कैतवं ( न० ) १ जुआ का दाँव | २ झूठ। कपट छल । जाल । ठगी कैतवः (पु०) १ उग | छलिया | २ जुआरी ३ धतूरा कैतवप्रयोगः ( पु० ) चालाकी । ठगी । कैतववादः ( पु० ) छल | प्रवञ्चना | जाल । कैदार: ( पु० ) चावल । धन्न | कैदारम् (न० ) खेतों का समुदाय । कैमुतिकः ( पु० ) न्याय विशेष | P कोटर: ( पु० ) ) माता । २ बालग्रह | कैरवः ( पु० ) १ ज्वारी। ठग | प्रवञ्चक | २ शत्रु - बंधुः ( पु० ) चन्द्रमा कैरवम् ( न० ) कोकावेली । सफेद कमल जो चन्द्रमा | कोटरम् (न० ) ) की चाँदनी में खिलता है। कैरविन ( पु० ) चन्द्रम कैरविणी (स्त्री०) १ कमल का पौधा जिसमें सफेद कमल के फूल लगे हों 1 २ सरोवर जिसमें सफेद कमल के फूलों का वाहुल्य हो । ३ सफेद कमलों का समूह | धूर्त | जुआ | चालाकी । कैरवी (स्त्री० ) चन्द्रमा की चाँदनी । जुन्हाई । कैलासः ( पु० ) हिमालय पर्वत का शिखर विशेष | -नाथः, ( पु० ) १ शिवजी | २ कुबेरजी। कैवर्तः ( पु० ) मल्लाह । मछुआ । माहीगीर । कैवल्यं ( न० ) १ एकत्व । एकान्तता । २ व्यक्तित्व | ३ मोच विशेष | कोकाहः (पु० ) सफेद कमल । कोकिलः ( पु० ) १ कोयल । २ अधजली लकड़ी । -आवासः, - उत्सवः, (पु०) आम का वृक्ष | कोंकः, कोडूः ) ( पु० ( बहुवचन ) सहा पर्वस कोंकणः, कोडूणः ) और समुद्र के बीच का भूखण्ड प्रदेश विशेष | कोंकणा, कोङ्कणा ( स्त्री० ) जमदग्नि की पत्नी रेणुका का नाम । - सुतः, (पु० ) परशुराम | कोजागर: ( पु०) आश्विनी पूर्णिमा के दिवस का उत्सव विशेष । कोटः ( पु० ) १ गढ़। किला | २ शाला झोंपड़ी । ३ बांकापन । ४ दाढ़ी। वृत का खोड़र। ( स्त्री० ) १ बाणासुर की कोटरी कोटवी कोटिः ) कोटी । ( स्त्री० ) नंगी स्त्री | २ दुर्गा देवी । (स्त्री० ) १ कमान की मुड़ी हुई नोंक । २ नोंक। छोर । ३ अस्त्र की नका धार ४ चरम बिन्दु। आधिक्य । सर्वोत्कृष्टता। १ चन्द्रकला । ६ कढ़ार की संख्या ७ समकोण त्रिभुज की एक भुजा ८ श्रेणी कक्षा विभाग | ३ राज्य सल्तनत १० विवादग्रस्त प्रश्न का एक पक्ष ईश्वरः, ( पु० ) करोड़पति । - जित्, (वि० ) कालिदास की उपाधि । -पात्रं, (न० ) पतवार 1-पालः, ( पु० ) दुर्गरक्षक /- वेधिन्, (वि०) क्लिष्टकर्मा । बड़ा कठिन काम करने वाला । कैशिक ( वि० ) [ स्त्री० - कैशिको ] केशों जैसा । बालों की तरह मिहीन । कैशिक ( न० ) बालों का परिमाय । कैशिकः ( पु० ) प्रेमभाव । कामुकता । [ वृत्ति | कैशिकी (स्त्रि० ) कौशिकी | नाट्य शास्त्र की एक कैशोरं ( न० ) किशोर अवस्था जो १ से १२ वर्ष कोटिशः } (पु०) हँगा। पाटा । तक रहती है। कैश्यं ( न० ) सम्पूर्णकेश । कोटिक ( वि० ) अत्यन्त उच्च काम करने वाला । कोटिर: ( पु० ) १ साधुओं के सिर के बालों की चोटी जिसे वे माथे के ऊपर बाँध लेते हैं और जो सींग की तरह जान पड़ती है। २ न्योला । ३ इन्द्र । कोटिशः ( अव्यया० ) करोड़ों । असंख्य । कोकः (पु०) १ भेड़िया | २ चक्रवाक | ३ कोकिल । कोढीरः ( पु० ) १ मुकुट | ताज २ कसँगी। चोटी। ४ सेंद्रक | ५ विष्णु । - देवः, ( पु० ) कबुतर ३ साधुओं के सिर की चोटी जिसे वे सींग की - बुधः ( पु० ) सूर्य । शक्ल में माथे के ऊपर बाँध लिया करते हैं। कोड ( २५५ ) कोष कोहः ( पु० ) कोट | गढ़ | किला | महत्व | राज- | कोरित ( वि० ) १कलीदार | अहरित | २ चूर्ण किया हुआ । पिसा हुआ । कुटा हुआ । २ टुकड़े टुकड़े किया हुआ। कोलं ( न० ) १ एक तोला भर की तौल ।। २ गोल या काली मिर्च ३ एक प्रकार का बेर।-प्रश्चः, ( पु० ) कलिङ्ग देश - पुच्छा, ( पु० ) बगला | बुटीमार | प्रसाद । कोट्टवी ( स्त्री० ) श्वाल खोले नंगी स्त्री | २ दुर्गा- देवी ३ बाणासुर की माता का नाम । कोट्टारा (पु०) १ किला या किले के भीतर का आम २ तालाब की सीढ़ियाँ | ३ कूप | तड़ाग | ४ लम्पट या दुराचारी पुरुष । कोणः ( पु० ) १ कोना । २ सारंगी या बेला बजाने का गज ३ तलवार आदि हथियारों की पैनी धार ५ छड़ी डंडा डंका या ढोल बजाने की लकड़ी । ६ मंगल ग्रह । ७ शनि ग्रह म जन्म कुण्डली में लग्न से नवम और पञ्चम स्थान - कुणः, ( पु० ) खटमल कोणपः ( पु० ) देखो कौणप। कोदंड: कोदराडः, ( पु० ) ) कमान | धनुष कोदंडम्, कोदण्डम् (न० ) ) ( पु० ) भौं । कोद्रवः (पु० ) कोंदों चनाज । कोपः ( पु० ) १ क्रोध | कोप | रोष | गुस्सा | २ (पित्त-) कोप (वात- ) कोप आदि शारीरिक अस्वस्थता । आकुल,—आविष्ट, ( वि० ) क्रुद्ध 1 कुपित । -पदं, (न० ) १ क्रोध का कारण | २ बनावटी क्रोध । - चशः, ( पु० ) क्रोध के वशवर्ती होना । [स्त्री | कोपन (वि० ) १ क्रोधी | २ क्रुद्ध करना । कोपनम् ( न० ) क्रुद्ध हो जाना। कोपना (स्त्री०) १ बिगड़ैल करने कोपिन (वि० ) १ क्रुद्ध | २ क्रोध उत्पन्न वाला । ३ शरीरस्थ रसों का उपद्रव उत्पन्न करने औौरत। क्रोधी स्वभाव की वाला । कोमल (वि०) १ मुलायम | नरम | २ धीमा | मंद | प्रिय | मधुर | ३ मनोहर । सुन्दर । कोमलकम् (न० ) कमल नाल के सूत या रेशे कोयष्टिः ) ( पु० ) शिखरी | एक पक्षी जो पानी कोयटिकः के ऊपर उड़ा करता है। कोरक ( पु० ) ) १ कली | २ कमलनाल सूत्र | कोरकम् (न०) ४ सुगन्ध द्रव्य विशेष | कोरदूषः ( पु० ) देखो कोद्रवः । कोलः ( पु० ) १ शूकर | सुअर | २ मात्र | बेड़ा | ३ बक्षस्थल | ४ कूबड़ | कुव्ब | कूल्हा | गोद | थालिङ्गन | ६ शनिग्रह | ७ जातिच्युत । पतित जाति का ८ वर्वर । जंगली जाति का । कोलंवकः कोलम्बकः } ( पु० ) वीणा का ढाँचा । कोला ) कोलिः } ( स्त्री० ) देखो बदरी । कोली कोलाहलं (न०) } चिल्लाहट | शोरगुल | कोलाहलः (पु०) ) कोविद ( वि० ) पण्डित । अनुभवी । चतुर । बुद्धि- मान योग्य । कोविदारं ( न० ) ) कोविदारः ( पु० ) ) एक वृद्ध विशेष का नाम । लाल कचनार । कोशः ( पु० ) कोशम् ( म० ) } १ कठौती : कोषः ( पु० ) कोषम् ( न० ) ) दोहनी । २ बाल्टी । डोलची ३ कोई भी पात्र | ४ संदूक | अलमारी। दराज़ | ट्रंक | २ न्यान | ६ ढक्कन । खोल । चादर । ७ ढेर ८ भाण्डारगृह खजाना | धनागार । १० धन सम्पत्ति | दौलत । रुपया पैसा । ११ सोना चाँदी । १२ शब्दार्थ संग्रह | शब्दार्थ संग्रहावली | १३ कली । अन- खिला फूल १४ फल की गुठली १५ छीमी | फली । बौंड़ी | डौंडा । १६ जायफल | सुपाड़ी | १७ रेशम का कोका १८ योनि । गर्भाशय । १६ अण्डकोश | २० अंडा । २१ लिंग। पुरुष जनने- न्द्रिय २२ गोला। गेंद । २३ वेदान्त में चर्णित पाँच प्रकार के कोश यथा अन्नमयकोश, प्राणमयकोशादि । २४ [ धर्मशास्त्र में ] एक प्रकार की अपराधी के अपराध की कठोर परीक्षा । -अधिपतिः, अभ्यतः, (पु०) १ खजानची | ( २५३ ) 1 कोशनिक [[आधुनिक] अर्थसचिव | २ कुबेर अगाः ( पु० ) धनागार | खजाना | कारः, (पु० ) स्यान या परतला बनाने वाला २ डिक्शनरी बनाने वाला ३ कोका के भीतर का रेशमी कोड़ा | ४ कोशावस्था कोशवासो | तितली आदि जिनके पर न आये होकारकः ( पु०) रेशम का कोड़ा-कृत्. ( पु० ) गन्ना | गृहं, ( न० ) खजाना। -ब ( पु० ) सारस | -नायकः, पानः, ( पु० ) सजानची । भंढारी-पढक, -पेटकम्, (नः ) तिजोरी । काफर /- वासिन, (पु० ) कोशस्थ जीव । - वृद्धि, (स्त्री० ) १ धन की वृद्धि | २ अण्डकोश की वृद्धि । -शायिका, ( खी० ) स्यान में रक्खी चुरी-स्थ. (वि० ) स्थान वालो 1 स्था ( पु० ) कोशवासी जीव ।-हीन, ( वि० ) गरीब । धनहीन | कोशलिक ( न० ) घूस रिश्वत कोशात किनु (पु०) व्यापार व्यवसाय | विजारत। २ व्यापारी सौदागर । ३ वाड़वानल | कोशिन् कोपिन् ( पु० ) आम का पेड़ | कोष्ठं ( न० ) १ घेरे को दीवाल। हाते की दीवाल छारदिवारी २ छिलका या खोला। कौतुक कोहलः (स्खो०) १ काहिली | बाय विशेष २ शराब | कौकुटिकः ( पु० ) : चिड़ीमार | २ वह साधु जो चलते समय ज़मीन की ओर दृष्टि रखता है जिससे कोई जीव उसके पैर से न कुंचले ३ दम्भी । पाखण्डी | कौक्ष (वि० ) [स्त्री० कक्षो ] पेड़ की कुछ की। कौय (वि० ) [ स्त्री० कौयी ] कुचवाला | पेट बाला। २ स्थान वाला। काँक्षेयकः ( पु० ) तलवार | खाँड़ा। कौकः कः 2 (पु० ) कोण देश और काँकणः - कौणः ) वहाँ के अधिवासी । | कौट (वि०) [स्त्री० कोटी] १ स्वतन्त्र | मुक्त २ घरेलू ३ बेईमान चुली ४ जल में फंसा हुआ। --जः, (पु०) कुटुज वृत-तक्षः, (पु०) स्वतन्त्र बदई (ग्रामतः का उल्टा) | ~साक्षिन्, ( पु० ) झूठा गया ।- साध्यं ( न० ) झूठी या जाली गवाही । [देना | २ झूठी गवाही (पु०) बहेलिया । चिड़ीमार | फन्दे में फंसानेवाला। जाल में पकड़ने वाला। J कोण (वि०) गुनगुना कुनकुना ( थोड़ागरम तत्ता कोणणं ( ५० ) गर्मी । अप्मा कोसलः ) ( पु० ) ( बहुवचन ) देश विशेष धौर कोशलः ) वहाँ के अधिवासी कासला } ( स्त्री० } अयोध्या नगरी । कौटः (पु० ) १ जाल | छल । कूठ | कौट किक: ) कौटिक चिड़ीमार कसाई | वधिक । 2 I कौटिलिकः ( पु० ) १ शिकारी व्याध २ लुहार कौटिल्यं (म०) १ छुटिलता | २ दुवा ३ वेईमानी। जाल खुल । कोट: ( 50 ) १ शरीर का कोई भाग जैसे हृदय, फेंफड़ा, आदि। २ मेदा पेटू ३ भीतर का कमरा | ४ अन्नभाण्डार /- आगारं, ( न० ) भागवार । भण्डरी। -अग्नि, (पु०) [ नीतिकार। कौटिल्य ( 30 ) चाणक्य का नाम । एक प्रसिद्ध कौटुंब ) ( वि० ) [ स्त्री०-कौटुम्बी ] गृहस्थोप- कौटुम्ब योगी। गृहोपयोगी | - अझ पचाने वाली शक्ति पालः, ( पु० ) १ खजानची । भंडारी । २ चौकीदार । कौटुम्बम् } (न०) पारिवारिक सम्बन्ध । रिश्तेदारी । कोष्ठकं ( न० ) इंट चूने का बना हौद जिसमें पशु कोटुम्बिक | पारिवारिक । परिवार कौटुंबिक ) ( वि० ) [ स्थी० सम्बन्धी । बी] पानी पीवे । कौटुंबिकः कोष्ठकः ( पु० ) १ अनाथ का भावदार | भंडारी | २ | कोविक : } ( 50 ) पिता या घर का बढ्ा जुड़ा । हाने की दीवात। धारदीवाली । कोण (पु० ) (पु०) भीष्म | राक्षस दानव दैत्य •दन्तः कौतुकं (न० ) 1 अभिलाषा | कुतूहल ३ इच्छा । २ कौतुक कोई वस्तु ४ विवाहसूत्र जो कलाई पर बाँधा जाता है । ५ विवाह में एक विधि विशेष ६ उत्सव महोत्सव विवाहादि कौतूहल शुभ उत्सव म हर्प आल्हाद | ६ फीड़ा आमोदप्रमोद १० गान। नृत्य | दश्य तमाशा ११ हँसी मज़ाक | १२ बधाई | प्रणाम । आगा, आगारं, गृह ( न० ) प्रमोद राजा या शासक भवन । --क्रिया. (बी०) - मङ्गलं, (न०) विवाहा- | कौय: (पु०) वृश्चिक राशि | त्सव तोरणः, ( पु० ) - तोरयाम् (न.) मङ्गल- | कौल (चि०) [ स्त्री०-कौली ] १ पैतृक । मौरूसी। सूचफ महरावदार द्वार, जो विवाहादि उत्सवों के २ कुलीन | अच्छे खान्दान का। अवसर पर बनाये जाते हैं। कौलः ( पु० ) १ बाममार्गी सांत्रिक | २ ब्रह्मज्ञानी । कौतूहलं ) ( न० ) कौलं (पु०) वाममार्ग का सिद्धान्त और उसके अनु कौतूहल्यं ) २ श्रौत्सुक्य कौतिकः ( पु० ) भालावरद्वार। कौंतेय ) ( पु० ), कुन्ती का पुत्र युधिष्ठिर, भीम, कौन्तेयः ) और अर्जुन। कौंप (वि० ) [ स्त्री०-कौपी) कूप सम्बन्धी या कूप से निकला हुआ | कौपीनम् (न०) १ लंगोटी | २ गुप्तांग | ३ चिथड़ा । ४ पाप या अनुचित कर्म । कौव्व्यं ( न० ) टेढ़ापन । कुबड़ापन | कौमार (वि० ) [ स्त्री० - कौमारी ] १ कारी । - २ कोमल । मुलायम । -भृत्यं, (न० ) चालक | कौलीन ( वि० ) कुलीन | खाम्दानी । का पालन पोषण और चिकित्सा | ( २५७ ) १ अभिलाषा | जिज्ञासा । ३ आश्चर्य। विस्मय कौमारं (न०) १ जन्म से पाँच वर्ष तक की अवस्था । २ कुआँरापना ( १६ वर्ष की अवस्था तक की लड़की का कुआरापना माना गया है ) । कौमारकम् (न०) लड़कपन । कमउन्नपना | कौमारिकः (5०) लड़कियों का पिता कौमारिकेयः (पु० ) धनन्याही स्त्री का पुन | कौमुदः (पु० ) कार्तिक मास । कौमुदी (स्त्री०) १ चोंदनी जुन्हाई । व्याकरण का एक ग्रन्थ | ३ कार्तिकी पूर्णिमा ४ आश्विनी पूर्णिमा । ५ उत्सव । ६ विशेष कर वह उत्सव जिसके घरों और देवालयों में दीपमालिका की कौशल्य कौरवः (१०) १ राजा कुरु । सन्तान | २ कुरुषों का राजा या शासक कौरव्यः (पु०) १ कुछ की सन्तान १२ कुरुषों का जाय ७ व्याख्या/पतिः, (पु० ) चन्द्रमा -वृत्तः, (पु०) डीवर पतीलसोत । कौमोदकी ) ( स्त्री० ) भगवान विष्णु की गदा का कौमोदी नाम।. कौरव (वि०) [ स्त्री०-कौरवी ] कुरुओं से सम्बन्ध | रखने वाला। छान । कौलफेयः (पु०) वर्णसङ्कर दिनाल का लड़का कौलटिनेयः (5०) १ सती भिखारिन का लड़का | २ वर्णसङ्कर। कौलटेयः ( पु० ) १ सती या असती भिखारिन का पुन | वर्णसङ्कर | दोगला । मौरूसी। } कौलिक (बि०) [श्री०-कौलिकी] कुल सम्बन्धी । २ कुल में प्रचलित । पैतृक पुश्तैनी कौलिक ( पु० ) १ कोरी। जुलाहा २ पाखंडी। दम्भी | ३ वाममार्गी | [मार्गी । कौलीनः ( पु० ) १ भिखारिन का लड़का १२ वाम- कोजीनम् ( न० ) १ लोकापवाद | कुत्सा | निन्दा | श्रसदाचरण कुफर्म । ३ पशुओं की लड़ाई | ४ मुर्गों की लड़ाई युद्ध लड़ाई | ६ कुलीनता | • छिपाने योग्य सुझाङ्ग | [बाद कौलीम्यः ( न० ) १ कुलीनता । २ पारिवारिक अप- कौलूतः (पु०) कालूतों का राजा । ७ "कोतूनरिष/मुद्राराक्षस कौलकेयः ( पु० ) कुत्ता। ताजी कुत्ता । शिकारी कुत्ता) कोंबर) (वि०) [ स्त्री० -कोवेरी कौवेरी ] कुबेर कौल्य (वि० ) कुलीन । कौवेर सम्बन्धी । कौबेरी । कौवेरी (स्त्री०) उपतर दिशा । कौश (वि०) [ स्त्री० --कौशी ] रेशमी २ कुछ का बना । कौशलं ) (२०) प्रसन्नता । समृद्धि । २ निपु- कौशल्यं खाई। निपुणता। चतुराईं। सं० श० कौ० ३३ कौशलिक कौशलिकं (न० ) घूँस । रिश्वत । कौशलिका, कौशिली (स्त्री०) १ भेट | चढ़ावा | २ कुशलप्रश्न | बधाई । कौशलेयः ( पु० ) कौशल्यानन्दन श्रीरामचन्द्र जी । कौशल्या ) ( स्त्री० ) महाराज दशरथ की महारानी कौसल्या) और श्रीरामचन्द्र जी की जननी । कौशल्यायनि: (पु०) कौसल्यानन्दन श्रीराम । कौशांबी ( स्त्री० ) दुधाव में अवस्थित एक प्राचीन नगरी का नाम । ऋतुः ( पु० ) १ यज्ञ | २ विष्णु की उपाधि । ३ दस प्रजापतियों में से एक | ४ प्रतिभा । ४ शक्ति । योग्यता उत्तमः, ( पु० ) राजसूय यज्ञ | वह द्विष. (पु० ) राक्षस | दैत्य । -ध्वंसिन्. ( पु० ) शिवजी की उपाधि । - पतिः, (पु० ) यज्ञकर्त्ता - पुरुष:, ( पु० ) विष्णु की उपाधि | -भुज्, ( पु० ) ईश्वर । - राजू ( पु० ) १ यज्ञों के प्रभु | २ राजसूय यज्ञ । कौशिक (वि०) [स्त्री -कौशिकी] १ ग्यानदार । भ्यान में रखा हुआ | २ रेशमी । - रातिः, कथ् ( धा० परस्मै० ) [ कथति, कथित ] घायल अरः (पु० ) काक। कौश्रा । -फलः, (पु० ) नारियल का पेड़ । - प्रियः, (पु० ) श्री रामचन्द्र जी की उपाधि । करना । चोटिल करना। मार डालना। ऋथकैशिकः ( पु० बहुवचन ) एक देश का नाम । “प्रयेश्य ऋथ कैशिकामां” | रघुवंश | ( २५८ ) कौशिकः ( पु०) १ विश्वामित्र | २ उल्लू । ३ कोश- कार । ४ गूदा मिगी । सत सार ५ गूगल ६ न्योला । ७ सपैला | सौंप पकड़नेवाला । ८ शृङ्गार | ९ गुप्त धन जाननेवाला । १० इन्द्र | कौशिका (स्त्री०) कटोरा । प्याला । कौशिकी (स्त्री०) १ बिहार की एक नदी का नाम दुर्गादेवी का नाम । ३ चार प्रकार की नाट्यशास्त्र की वृत्तियों में से एक वृत्ति । सुकुमारार्थसन्दर्भ कौशिकी सालु कथ्यते । -साहित्यदर्पण | कौशेयम् ) ( न० ) १ रेशम | २ रेशमी वस्त्र | ३ कोषेयम् । लहँगा । कौसीद्यं (न०) सूदखोरी। २ सुस्ती। अकर्मण्यता । काहिली। परिश्रम से अरुचि । कौसृतिकः ( पु० ) १ छलिया। धोखेबाज़ | बद- माश 8 मदारी ऐन्द्रजालिक | कौस्तुभः ( पु० ) समुद्रमन्थन के समय प्राप्त एक मणि, जिसे भगवान विष्णु अपने वचस्थल पर धारण करते हैं।--लक्षगाः, - चक्षस, (पु० ) - हृदयः, (पु०) विष्णु भगवान् की उपाधियाँ । क्रूयू ( धा० आत्म० ) [क्रयते] १ कर कर शब्द करना । २ डूबना । ३ भींगना । क्रकचः ( पु० ) धारा-च्छदः ( पु० ) केतकी वृक्ष | -पत्रः, ( पु० ) साल का वृक्ष ।- पादू, ( पु० ) – पादः, (पु०) विस्तुइया | छिपकली । 6 करः ( पु० ) 8 मनुष्य | ४ रोग क्रम तीतर । बीमारी । २ आरा । ३ निर्धन कथनम् ( न० ) हत्या। कल्लाम। कथनकः ( पु० ) ऊँद कंदू ) (धा० परस्मै० ) [ कन्दति, क्रन्दित] १ रोना । कन् । आँसू बहाना। २ बुलाना | पुकारना । क्रंदनम् क्रन्दनम् कदितं कन्दितं ( न० ) १ रोदन | रोना। बिलाप | २ पास्परिक ललकार | क्रम् (धा० उभय ० ) पर [ कामति, कामते, काम्यति, क्रान्त ] १ चलना फिरना। पदार्पण करना। पैर रखना जाना।२ समीप जाना ३ गुजरना | निकल जाना। ४ कूदना फलांगना उचुलना । २ चढ़ना। ऊपर जाना ६ ढकना । छेकना । कब्जा करना । अधिकार जमाना भरना ७ आगे निकल जाना। बढ़ जाना ८ योग्य होना। किसी काम को हाथ में लेना ६ बढ़ना । १० पूरा करना । सम्पन्न करना । ११ स्त्रीमैथुन करना | क्रमः ( पु० ) १ पंग, कदम २ पैर | ३ गमन । अग्रगमन 1 मार्ग | ४ अनुष्ठान | आरम्भ । ५ सिलसिला । ६ तरीका ढब ७ पकड़ |८ जान- वर की एक प्रकार की उस समय की बैठक विशेष, जब वह उछल कर किसी पर आक्रमण करना चाहता है। दबकन | 8 तैयारी। तत्परता । १० भारी काम। जोखों का काम | ११ कर्म | क्रमक ( २५६ ) किया 1- 2 कार्य १२ वेद पढ़ने की शैली विशेष | १३ | कशिमन् (पु०) दुबलायन | लटापन। सीणता । शक्ति | ताकत |-- अनुसार, [कमानुसार: ] | काकविकः ( पु० ) आराकश। आरा चलाने वाला। (४०) अभ्यः [कमान्वयः] (पु०) ठीक सिल- सिलेवार | यथावस्थित प्रागत, आयात, ( वि० ) पैतृक । पुश्तैनी --ज्या. (स्त्री०) राय घटती । --भङ्ग, ( पु० ) अनियमितता ! क्रमक (वि० ) क्रमानुसार क्रमबद्ध पद्धति के अनुसार यथानियम। [पूरा करे। क्रमकः ( पु० ) यह विद्यार्थी जो कमशः पाठ्यक्रम कमणं ( न० ) १ पग कदम २ चलना य चाल। ३ अप्रगमन ४ उल्लंघन | भङ्ग । क्रमणः (पु० ) पैर घोड़ा। क्रमतः (अव्यया० ) धीरे धीरे । क्रम से। क्रमुः, मुकः ( पु० ) सुपारी का पेड़ । क्रमेलः कमलक: } (पु० ) उंट | क्रयः (१०) खरीद | लिवाली ।—भारोहः, (पु०) बाज़ार । हाट | पैंठ ---क्रीत, (वि० ) खरीदा | हुआ । मोल लिया हुआ -लेख्यम्, ( न० ) येचीनामा दानपत्र बृहस्पति जी बेचीनामे की व्याख्या इस प्रकार करते हैं-- क्रमशः ( अध्यय ) 1 सिलसिलेवार । क्रमानुसार | | क्रिमिः (पु० ) १ कीड़ा | २ छोटा कीड़ा | २ धीरे धीरे एक के बाद एक । क्रमिक (वि०) १ क्रमागत । एक के बाद एक सिल | क्रिया (स्त्री०) 1 सम्पादन कार्यं । कृति | सफलता। २ कर्म उद्योग उद्यम ३ परिश्रम ४ शिक्षण I सिलेवार | २ पैतृक । पुरतैनी । २ गानवायादि किसी कला की अभिज्ञता या जन- कारी ६ अभ्यास |७ साहित्यिक रचना यथा मगोभिरवदितः कियाभिनौ कालिदासस्य | -विक्रमोवंशी | पाकिस्तुल्य मूल्यान्वितम् । एवं कारयतेप्रायलेशवं तद्प -विक्रयौ, (द्विवचन० ) व्यापार व्यवसाय | खरीद फरोख्त/विविकः, (पु० ) व्यापारी । सौदागर | ऋयां (न० ) खरीद। लेवाली। क्रयिकः ( पु० ) 1 व्यापारी सौदागर । २ खरी- ( दि० ) गया हुआ | गा दार ग्राहक | ऋथ्य (वि० ) विक्री के लिये। बिकाऊ । ऋव्यं ( न० ) कच्चा मांसद, भुज ( वि० ) कन्यामाँस खाने वाला । ( पु० ) १ शेर, चीता धादि माँस भी जीवजन्तु २ राक्षस पिशाच कान्त कांतः ) कान्तः ) 1 (०) १ घोड़ा | २ पैर पददर्शिन ( वि० / सर्वेश | क्रांतिः } ( स्त्री० ) १ गति । अप्रगति । २ पग | क्रान्तिः ) कदम | ३ अग्रगमन ४ आक्रमण वशवर्ती करण | विषुवरेखा से किसी ग्रहमण्डल की दूरी ६ घायनिक - कक्षः, (पु०) - मराडलं, -वृसं, (न० ) अयनवृत्त या मण्डल पृथिवी का भ्रमणपथ | कायकः ) ( पु० ) 1 खरीदार गाहक हेवालिया। क्रायिकः १२ व्यापारी । कालिदासस्य पार्या कर्म परिषदो बहुमान - मालविकाग्निमित्र | ८ प्रायश्चित कर्म । अनुष्ठान पद्धति प्राया- श्चित १० आदकर्म । मृतसंस्कार | दाह कर्मादि । ११ पूजन | १२ चिकित्सा | इलाज | १३ गति । हरकत ।अन्वित (वि० ) कर्मकारडी अपवर्ग:, ( पु० ) १ किसी कार्य का सम्पादन या सुसम्पन्नता । २ कर्मकाण्ड से छुटकारा - अभ्यु- पगमः (50) विशेष प्रतिज्ञापत्र | इकरारनामा | -अवसन, ( दि०) वह पुरुष जो अपने गवाहों के बयान के कारण अपना मुकदमा हारता है। -कलापः, ( वि० ) १ वह समस्त कर्मकाण्ड जो एक सनातनधर्मी को करना चाहिये । २ किसी व्यवसाय का आायन्त विस्तृत विवरण 1-कारः, ( वि० ) १ गुमास्ता। मुख्तार | मुनीम | २ नोसिखुआ | ३ इकरारनामा प्रतिज्ञापत्र -- द्वेषन (पु०.) जिसकी ओर गंवाही दे उसके कियावत् ( ०६० ) ) मामले को अपनी गवाही से हराने वाला। (पाँच- प्रकार के गवाहों में से एक) - निर्देश: (० ) गवाही। सासी 1-पटु (वि० ) क्रियाकुशल | कार्यनिपुण --पथः, (पु०) चिकित्सा प्रणाली ।


पर. (वि० ) अपने कर्तव्य पालन में परि

श्रम करने वाला - पादः, (पु० ) साची । लिखित प्रमाण तथा अन्य प्रमाण जो वादी की | मंच क ( उ० ओर से अपने अर्जी दावे में पेश किये गये हों। कञ्च(पु० -योगः (पु० किया से सम्बन्ध | २ उपायों का प्रयोग -लोपः, (पु० ) किसी आवश्यक अनुष्ठेय कर्म का त्याग। - वायक, नाविन, ( वि० ) अध्यय जो किया के दङ्ग का वर्णन करे। -वादिन, ( पु० ) वादी मुद्दई । विधिः ( पु० ) किसी कर्म का विधान विशेषणं, ( न० ) निर्देशकारक विशेषण । संकान्तिः, ( श्री० ) शिक्षय | ज्ञानोपदेश ।समभिहारः, ( पु० ) किसी कर्म की पुनरावृत्ति [ अभ्यासी । क्रियाषद् (वि०) अभ्यस्त। किसी कार्य को करने का क्री ( घा० उभय ) [ मीणाति, क्रीणोते, कीत ३१ खरीदना | मोल लेना | २ अदल बदल करना । विनियम करना । + क्रीडोपस्करम् ( न० ) खेल का सामान । |

ीत ( वि० ) खरीदा हुआ | मोल लिया हुआ ।

क्रीतः (go ) धर्मशान में यथित धारह प्रकार के पुत्रों में से एक प्रकार का खरीदा हुआ पुत्र - अनुशयः, (पु०) किसी चीज़ को खरीदने के लिये पाश्चाताप | मोल ली हुई वस्तु को वापिस करना । 1 1 कुध (धा० परस्मै ) [ कुष्यति, क्रुद्ध] कुपित होना । नाराज़ होना । क्रुधू ( स्त्री० ) क्रोध | गुस्सा कुश ( श्री० परस्मै० ) [ कोशति, कुष्ठ ] १ रोना । विजाप करना। २ चीखना। चिल्लाना । क्रुष्ट ( वि० ) बुलाया हुआ। छम् ( न० ) बुलाना । चिल्लाना। चीखना । क्रूर (दि०) निर निर्दयी दयाशून्य नृशंस | भयप्रद । २ सख्त | रूसा ३ भयकर | भयानक ४ उपद्रवी । उत्पाती। बरबाद करने वाला । २ घायल । चोटिल ६ खूनी | ७ कच्चा | मजबूत | ६ गर्म तीक्ष्ण । अप्रिय ।-याकृति, ( वि० ) भयङ्कर रूप वाला /-याचार, (वि०) निष्ठुर व्यवहार करने वाला ।-आशय, (वि०) 1 जिसमें अपकर जीव हों (जैसे नदी ) २ नृशंस स्वभाव बाजा 1-कर्मन, (न० ) १ खूनी काम | २ कोई भी कठोर परिश्रम का काम /- कूत् (वि०) भयानक | खूखार। निर्दयी।फोड, '9 ०/ दस्तावर दवा यानी जुलाव देने पर भी जिसको दस्त न आयें ऐसे कोठे वाला। कब्जियत रोग से पीड़ित ---गन्धः (go ) गंधक। -दृशू, (वि० ) १ कुटष्टि वाला। पुरी निगाह डालने वाला । २ उत्पाती। दुष्ट नाविन्, ( पु० ) पहाड़ी काक | - लोचनः, ( पु० ) शनिग्रह | क्रीड् (धा० परस्मै० ) [ कीडति, कोडित ] s खेलना । अपना दिल बहलाना । २ जुबा खेलना ३ हँसी करना । उपहास करना । मसखरी करना। [ दिल्लगी। क्रीड: ( पु० ) १ खेल आमोद प्रमोद | २ हँसी कीडनम् (न०) १ खेल । आमोद प्रमोद । २ खिलौना । क्रीडनकः ( पु० ) कीडनकम् ( न० क्रीडनीयम् ( न० ) कोडनीयकम् ( न० ) १ खिलौना | क्रीडा (खी० ) १ खेल। आमोद प्रमोद | २ हँसी दिल्लगी।-- गृहं, (न० ) प्रमोदभवन | ter- भवन /- -शैलः, ( 30 ) कृत्रिम पहाड़। प्रमोद शैल। --नारी, (श्री०) रंडी |--कोपः, (पु०) झूठा क्रोध बनावटी कोप) -मयूरः, (पु० ) | केतु ( पु० ) खरीदनेवाला गाहक मनबहलाव के लिये रखा हुआ मोर।-रत्नं, ( म० ) रमणकार्य | मैथुन ( पु० ) एक पर्वत का नाम । क्रूरं ( म० ) १ धाव । २ हत्या निर्दयता । क्रूरः (पु० ) बाज शिकरा | बहरी। बगुला । कोच: फ्रोशः क्रांड ( २१ ) क्रोड: (पु० ) १ शुकर २ वृद्ध का खोडर | ३ | लम् (धा० परस्मै० । [ लामति, लाम्यति, कान्त ] थक जाना। उदास हो जाना। वक्षस्थल | ४ किसी वस्तु का मध्यभाग। २ शनि- अह ! –अङ्कः, अंधिः पादः (पु०) कड़वा | -पत्रे, (न० ) १ हाशिये का लेख । २ पत्र की समाप्ति करने के बाद लिखा हुआ लेख | ३ न्यूनता पूरक दानपत्र का अनुवन्ध क्रीडम् ( न० ) } १ वज्रस्थल छाती । २ किसी क्रोडा (स्त्री०) ) वस्तु का भीतरी भाग | रम्भ | खोखलापन | पोलापन | कोडीकरणम् (न० ) आलिङ्गन | छाती से लगाना) कोडीमुखः (पु० ) गेड़ा। क्रोध: ( पु० ) क्रोध रोष | २ रौद्ररस का भाव । -उड (वि० ) क्रोधरहित ठंडा शान्त | -मूर्च्छित (वि० ) गुस्से में भरा हुआ | कुपित क्रोधन (वि० ) क्रोध से भरा हुआ। फुद (०)। को क्रोधालु (वि०) क्रोधी । गुस्सैल । क्रोश: (पु० ) १ चीख । चीत्कार । चिल्लाइट कोलाहल | २ कोस ३ मील 1- तालः, - ध्वनिः, (पु०) बड़ा ढोल । क्रमः कृमयः ( पु० ) थकावट | थकाई । कांत (वि०) १ थका हुआ परिधान्त |२ कुम्हलाया लान्त हुआ | मुर्भाव हुआ। ३लटा निर्बल लांति २(स्त्री० ) थकावट । श्रम-ॠि (वि० ) कान्ति) थकावट दूर करने वाला । लिद (धा परस्मै०) [ क्लियति हिन्न ] भींग जाना | नम होना। तर होना । (निजन्य) भिगोना तर करना | लिन (वि०) भींगा | वर /- अक्ष, (वि० ) चुंधा। किचड़ाहा | क्रौर्य ( न० ) क्रूरता | निष्ठुरखा । निर्दयीपन । छंद ) ( धा० पर० ) [ कुन्दु ) पुकारना। बुलाना । २ विज्ञाना । विलाप करना । ( आत्मने० ) [ क्लंदते. क्लदते ] परेशान होना। धवड़ा जाता। लम् (धा० परस्मै० ) [लामति, क्लाम्यति, कान्त] थक जाना उदास हो जाना। लिश् ( घा० आत्म० ) [ किसी किसी के मतानुसार यह परस्मै० भी है [ हिश्यते किए. अथवा लिशित] : सताया जाना। पीड़ित किया जाना । २ सताना। तंग करना । (परस्मै०) [हिश्नाति लिए] १ सताना पीड़ित करना । तंग करना । दुःखदेना | लिशित ) ( दि० ) १ पीड़ित दुःखी । सन्तप्स | २ सठाया हुआ | ३ मुर्भाया हुआ |४ विरोधी । यसङ्गत। [जैसे मेरी माता वन्ध्या है।] २ कृत्रिम | ६ खजित । क्रोशन ( वि० ) चीत्कार करने वाला। कौशनं ( न० ) चीत्कार। धीस कोटु ( 50 ) [ स्त्री० --क्रोट्री ] गीदद। शृगाल 1 काहिल । २ नपुंसक लिङ्ग का ली) (वि० ) नपुंसफ | हिजड़ा | २ भीरू | क्रौंच:-क्रौञ्च (पु० ) ९ कुर पही | पर्वत विशेष | | क्लीव | निवेल | ३ योनीच ४ सुख | यह हिमालय पर्यंत का नाती है और कार्तिकेय तथा परशुराम ने इसे वेधा था। -अदनं, (न०) : क्ली: ( पु० ) } 1 नपुंसक | हिजड़ा। कमलनाल के रेशे। -प्रगतिः । अरिः | कम्. कीम् (न० ) ) खोजा। रिपुः, (५०) १ कार्तिकेय का नाम । २ परशुराम का नाम । दारणः, -सूदनः, ( पु० ) १ कार्तिकेय | परशुराम | ति लिटिः (स्त्री०) १ सन्ताप | पीड़ा दुःख । २ नौकरी । चाकरी सेवा 4 फेम मय विहाचा चोन्मादशुक्राभ्याउ मे --काल्मायन । २ नपुंसक लिङ्ग ] | ः ( पु० ) १ नमी | तरी | सील | २ फोड़े का बहाव । ३ कष्ट दुःख | पीड़ा | क्लेशः ( ० ) १ पीड़ा | कष्ट । क्रोध | ३ सांसारिक आंट/क्षम, (वि० ) कष्ट सहन करने योग्य | कुँव्यं ) ( न० ) १ नपुंसकता । २ अमानुषता । कुष्यं । भास्ता | ३ निरर्थकता। अपुंसकत्व । ( २६२ ) क्लोमं कोमं ( न० ) कैकड़ा । फुसफुस । क (अव्यवा० ) कहाँ । किधर । कचित् कचित् (वि० ) कहीं। एक जगह । इसी जगह । यहाँ यहाँ। अभी अभी । कयू (धा० परस्मै०) [ कति कणित] भंकार करना । | घुघुरू जैसा शब्द करना। चहकना। अस्पष्टगाना | कणः ( पु० ) कानं (न० ) कणितं ( न० ) काणः (पु० ) ऋत्य (वि० ) किस स्थान का । कहाँ का | वथ ( घा० परस्मै ) [ कथति कथित] १ उबालना। काढ़ा बनाना २ जीर्ण करना पचाना । १ शब्द । २ किसी भी बाजे का शब्द । कथः काथः } (पु० ) काढा । कान्त्रिक (वि०) [ स्त्री० - क्वाचित्की ] दुर्लभ । असाधारण । क्षः (पु० ) १ नाश | २ अन्तर्धान प्रदर्शन | हानि | ३ विद्युत | ४ क्षेत्र | ५ किसान | ६ विष्णु का चौथा या नृसिंहावतार । ७ राक्षस क्षण ) (धा० उभय०) [ क्षयोति, क्षगुते, क्षत्त ] चन्) घायल करना । २ भङ्ग करना । क्षणः (पु० ) 21 लहमा पल । सैकण्ड क्षणम् ( न० ) ) २ अवकाश । फुर्सत । मपिलव्धक्षण स्वगेहं गन्दाभि | क्षत्रियः क्षणतुः ( पु० ) धाव । फोड़ा। [ डालना। तगणनम् (न०) घाव करना । चोटिल करना । मार क्षणिक (पु०) क्षणभर का । दमभर का । क्षणिका ( स्त्री० ) विद्युत । विजली । क्षणिन (वि० ) [ स्त्री०- क्षणिनी ] १ अवकाश रखने वाला। २ दमभर का। क्षणिक । क्षणिनी ( स्त्री० ) रात । रजनी । क्षत् (वि०) घायल । काटा हुआ | अंग किया तोड़ा हुआ। चीरा हुआ। फाड़ा हुआ । ( वि०) विजयी | फतहयाव । -उदरं, ( न० ) दस्तों की बीमारी । -कासः, (पु० ) खाँसी जो चोटफेंट से उत्पन्न हुई हो।-जं. (न०) १ रक्त । लोडू | खून | २ पीप | पसेव । राल । -योनिः, ( स्त्री० ) उपयुक्त स्त्री । वह स्त्री जो पुरुष के साथ सम्भोग करा चुकी हो । -विक्षत, ( वि० ) जिसका शरीर घावों से भरा हो । वृत्तिः, (स्त्री० ) आजीविका रहित /- व्रतः, ( पु० ) ब्रह्मचारी । प्रतभङ्ग करने वाला ब्रह्मचारी । क्षतं ( न० ) १ खरोज | २ घाव | चोट | ३ खतरा | जोखों नाश भय । हुआ । अरि क्षतिः ( स्त्री० ) १ चोट | घाव | २ विनाश | काट । चीरा । चीरफाड़ | ३ बरबादी हानि | नुक- सान। ४ हास कमी । क्षय | तत्त (पु०) १ वह जो काटता या मोड़ता है। २ चाकर। द्वारपाल दरवान | ३ कोचवान | घोड़ागाड़ी हाँकने वाला सारथी ४ शूद्र पुरुष और क्षत्रिया स्त्री से उत्पन्न पुरुष १ दासीपुत्र । ६ ब्रह्मा । ७ मछली । ३ उपयुक्त क्षण अवसर उत्सव हर्ष ६ विन्दु । मध्य । - कुछ ही देर बाद । • मालविकाग्निमित्र | ४ शुभ क्षण |५ परतंत्रता । दासता ७ मध्य- अन्तरे, (अव्यया०) अगला पल। क्षेपः, (पु० ) सण भर का विलम्ब -—दः, (पु०) ज्योतिषी ।——-दम्, (न०) तत्रः (०) } शक्तियकार क्षत्रिय जाति का पुरुष या १ । क्षत्रम् पानी। जल। -दा, (स्त्री०) १ रात्रि । २ हल्दी । - दाकरः, ~~पतिः, ( पु० ) चन्द्रमा । - इतिः, (स्त्री०) – प्रकाश, प्रभा (स्त्री० ) विद्युत बिजली । - निःश्वासः, (पु०) सूंस । शिशुमार । --भर, (वि० ) नष्ट हो जाने वाला। नश्वर । निर्बल /- मात्रं, (अध्यया०) एक क्षण के लिये । क्षत्रिय जाति । -अन्तकः, (पु०) परशुराम - धर्मः, (पु०) : बहादुरी । वीरता। सैनिक शूरता | २ क्षत्रिय के प्रवश्य कर्त्तव्य कर्म-पः, (४०) शासक । मण्डलेश्वर । सूबेदार । --बन्धुः (पुं० ) १ जाति का क्षत्रिय | २ केवल क्षत्रिय | दुष्ट या पापी क्षत्रिय । ( यह गाली है ) जैसे ब्रह्मबन्धु । क्षत्रियः ( पु० ) दूसरे वर्ण का पुरुष । राजपूत - हगाः, ( पु० ) परशुराम । -रामिन. ( पु० ) कबूतर । परेवा। विध्वंसिन्, ( वि० ) एक क्षण में नष्ट होने वाला । ( पु० ) एक श्रेणी के नास्तिक दार्शनिक विशेष । क्षत्रियका ( ( श्री० ) १ त्रिय वर्ण की स्त्री । २ क्षत्रिय की पत्नी । २६३ क्षत्रियका क्षत्रिया क्षत्रियिका क्षत्रियाणी (स्त्री०) क्षत्रिय वर्ण की स्त्री | २ क्षत्रिय की पत्नी । क्षत्रियी (स्त्री० ) रात्रि की पत्नी । चंद ) (वि०) (बी०-क्षन्त्री.] धैर्यवान् । सहन चन्तृ शील | विनयी क्षपू (धा० उभय० ) [क्षपति- क्षयते, क्षपित] लंघन करना । (निजन्त) [तपयति-क्षपयते, क्षपित] १ फेंक देना भेजदेना युत कर देना १ चूक ) क्षात्र ४ आर्थिक हानि | २ (भाव का) गिराव। ६ स्थाना- न्तरिस करण। ७ ८ क्षयी का रोग | साधारणतः कोई भी रोग १० बीजगणित में ॠण या बाकी । -कर, (वि०) नाशक नाश करने वाला।-फालः, (पु० ) १ प्रलय का समय। २ घटतो का समय - कासः ( ० ) यी से उत्पन्न खाँसी। -पक्षः, (पु० ) अँधियारा पाख। -युक्तिः, ( श्री०) -योगः (पु० ) नाश करने का अवसर रोगः, (पु० ) यी का रोग (-वायुः, (पु०) प्रलय कालीन पवन /- संपद, (स्त्री०) निवान्त हानि । सम्पूर्णतः हरनि । सर्वनाश | जाना। क्षपणः ( पु० ) बौद्ध सम्प्रदाय का भिन्नुक क्षपणम् ( न० ) १ अशौच | सूतक | अशुद्धि | | क्षयथुः (पु०) क्षय रोग या उसकी खाँसी । २ नाश निर्वासन | क्षयिन् (वि० ) [ खी०- क्षयिणी ) १ विनाशक । नाशक २ यरोगप्रस्त। ३ विनश्वर । ( पु० ) चन्द्रमा | [ वाला। 1 तयिष्णु (वि०) १ नाश करने वाला । करने २ विनश्वर टूटने फूटने वाला। क्षर् (धा० पर०) [ क्षरति, क्षरित] यह सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार से प्रयुक्त होती है। 3 बहना। फिसलना। २ भेजना। उडेलना। निका- जना ३ टपकना । चूना | रिसना | ४ नह होना।२ बेफार हो जाना । ६ अलग किया जाना। वञ्चित किया जाना । (निजन्त) [क्षारयति] दोषी ठहराना नश्वर । नाशवान् । क्षर (वि० ) : पिघला हुआ । २ जङ्गम । था। क्षरं (न०) १ पानी | २ शरीर । क्षरः (पु०) बादल | दरगाम् (न०) १ बहने की, चूने की, टपकने की, रिसने की क्रिया २ पसीना लाने की किया। तरिन (पु०) वर्षा ऋतु । तल (धा० उभय०) [क्षालयति- क्षालयते क्षालित] धोना। साफ़ कर देना शुद्ध करना। धोना । माँजना | २ पौंछ डालना। } (F०) 1 छींक 1 खाँसी । क्षपणकः ( पु० ) बौद्ध या जैन भिनुफ | क्षपणी ( श्री० ) १ जय । २ जाल | क्षपयुः (पु० ) अपराध | जुर्म । हपा (स्त्री० ) १ रात । रजनी २ हल्दी-अटा ( पु० ) १ रात में घूमने वाला । २ राक्षस । पिशाच । ~ कर, नाथः, ( पु० ) १ चन्द्रमा । २ कपूर घनः ( पु० ) काला मेघ - चरा, ( पु० ) राक्षस पिशाच क्षम् (धा० आत्म० ) [ क्षमते, क्षम्यति, क्षान्त ] या क्षमित] १ अनुज्ञा देना परवानगी देना। २ समा करना। माफ करना। धैर्य रखना । शन्ति होना। प्रतीक्षा करना । ४ सहलेना । निर्वाह करना । २ सामना करना । मुकाबिला करना । ६ ( किसी काम करने ) योग्य होना । क्षम ( वि० ) १ धैर्यवान् | २ सहनशील | विनयी । ३ उपयुक्त योग्य ४ उचित ठीक १२ सहने योग्य सह लेने योग्य ६ अनुकूल | क्षमा ( स्त्री० ) १ धैर्य । सहनशक्ति । माफी | २ | पृथिवी । ३ दुर्गा देवी /-जः, ( पु० ) महत ग्रह-भुज्, भुजः, ( पु० ) राजा | क्षमितृ ( वि० ) [ श्री० – क्षमित्री ]} सदनशी धैर्यवान् । क्षमिन् (वि० ) [ स्त्री० - क्षमिनी क्षयः (पु० ) 3 घर खराबी ह्रास मकान २ हानि । घटी । कमी ३ अन्त | नाश | समाप्ति क्षवः क्षवधुः - क्षात्र ( वि० ) [स्त्री०- तात्री ] पत्रिय सम्बन्धी या क्षत्रिय का क्षात्रम् ( २६४ ) क्षिप् क्षात्रम् (न० ) १ क्षत्रिय जाति । रात्रिय के कर्म । | चालित (वि०) : धुला हुआ साफ किया हुआ शुद्ध किया हुआ | २ पड़ा हुआ। भाड़ा हुआ। चि ( धा० परस्मै० ) [ तयति, क्षित या क्षोण ] गलना नष्ट होना। २ शासन करना हुकूमत करना। अधिकार जमाना।-- -[पति, तिगोति, क्षिणाति ] १ नाश करना बरबाद करना। बिगाड़ना | २ घटाना ३ मार डालना, चोटिल करणा (निजन्त) [ तययति या क्षपयति ) १ नाश करना । स्थानान्तरित करना । समाझ करना । २ व्यतीत करना। क्षांत (६० कृ०) १ धैर्यवान | सहनशील। चमा क्षान्त ) बान् | २ माफ किया हुआ। चांता क्षान्ता S (स्त्री०) पृथिवी । तान्तु } (बि०) धैर्यवान् । सहनशील । क्षांतुः } (g० ) पिता अनक बाप | क्षान्तुः नाम (वि०) १ झुलसा हुआ । जला हुआ । २ घा हुआ। पतला। नष्ट किया हुआ । लटा हुआ। 1 दुबला | ३ हल्का | थोड़ा। छोटा | 8 नियंत | | तितिः (स्त्री० ) १ पृथिवी २ गृह । आवासस्थान । बतहीन | मकान | ३ हानि नाश ४ प्रलय । ईशः - - क्षार ( वि० ) काट करनेवाला जलानेवाला। तेज़ | तीषण | खारा । नमकीन । ( न० ) समुद्री निमक ।-अञ्जनम्, (न०) खारी अन या लेप अम्बु ( न० ) खारी रस 1-उदः, -उदका, उदधिः, -समुद्रः, ( पु० ) सारी समुद्र त्र्यं-त्रितयम् (न०) सज्जी, शोरा और जवाखार ( या सोहागा )।-नदी, (जी०) नरक की खारी पानी की नदी विशेष |~~भूमिः (स्त्री०) -वृत्तिका, (बी०) लुनिया ज़मीन । -- मेलकः, (पु०) खारी पदार्थ | रसः, ( पु० ) सारी रस | 1 क्षारं ( म० ) १ काला निमक | २ पानी अल क्षार: (१०) १ रस | सार २ शीरा चोटा राव। जूसी | ३ केोई भी तीथ्य पदार्थ ४ शीशा | २ बदमाश सुच्चा | ठग क्षारकः (पु०) १ खार। २ रस सार ३ पिंजड़ा | टोकरी या जाल जिसमें पी रखे जाते हैं | ४ | चिद्रः (पु० ) १ रोग | २ सूर्यं । ३ सींग । धोबी | २ फूल | कली | क्षारणम् (न०). ) अभिशाप । अभियोग विशेष क्षारणा (स्त्री०) ) कर व्यभिचार या लम्पटता का। क्षारिका (स्त्री०) भूख १ ईश्वरा, (पु० ) राजा --कणः, (पु०) धूल। रज-कम्पः, (पु०) भूचाल | भूडोल।- 1-तित्, (पु०) राजा | राजकुमार (~-जः, (पु०) १ वृक्ष | २ केचुआ | ३ महगृह ४ भरकासुर-अम्, (न०) अन्तरि । -जा, (स्त्री०) सीता जी ।- तलं, (न०) पृथिवी सल। ज़मीन की सतह । -- देवः, (५०) ब्राह्मण धरः (पु०) पहाड़ - नाथः, -पः, पतिः पालः, भुज्, (पु० ) रक्षिन (पु० ) राजा सम्राट् पुष (पु०) महतग्रह-प्रतिष्ठ, (दि०) धरती पर बसनेवाला -मृत, ( पु० ) पर्वत | पहाड़ मण्डलम्, ( न० ) भूमण्डल भूगोलक-त्रम् (२०) गड़ा। गतै । रुड़, (४०) पेड़ | वृषवर्धनः ( पु० ) शव | मुर्दा। मृतकशरीर लाश - वृत्तिः, (स्त्री०) धैर्ययुक्त व्यवहार या आचरण । पृथिवी की गति । व्युदासः, ( पु० ) विल । से क्षारित ( वि० ) १ सारी पदार्थ से चुदाया हुआ । २ ) लम्परता का झूठा दोष लगाया हुआ। झालनं (न०) १ धोना। साफ करना । पखारना । २ छिड़कना | क्षिप (घा० उभय) [ किन्तु जब इसके पूर्व अभि, प्रति, और अति जोड़े जाते हैं तब ही यह परस्मै० होती है।] परस्मै० क्षिपति-क्षिपते, तिप्यति, क्षिप्त) १ फेंकना । पटकना । भेजना रवाना करना । छोड़ना मुक्त कर देना रखना। स्थापित करना । ३ लगाना । अर्पित करना। ४ फेंक देना | २ छीन लेना नाश कर डालना ६ खारिज कर देना। अस्वीकृत कर देना घृया करना ७ क्षिपण अपमान करना । गाली देना तिरस्कार करना। फटकारना । क्षिपणं (न०) १ भेजना | पठाना फैकना | २ गाली गलोज | क्षिपणि क्षिपणी क्षिपणिः (स्त्री०) आघात। चोट । प्रहार | क्षिपण्युः ( पु० ) १ शरीर । २ वसन्तऋतु । क्षिपा (स्त्री०) १ राव | २ पठौनी | पटक गिराव क्षिप्त (व० ७०) १ फेंका हुआ। छितराया हुआ। घुमाया हुआ। पटका हुआ । २ स्यागा हुआ |३ अनारत ४ स्थापित ५ पागल सिही। कुक्कुर, (पु०) पागल कुत्ता। -चित्त, (दि०) चञ्चलचित्त (वि०) विफल/देहे, (वि०) बेय हुआ। पसरा हुआ। तिप्तं (न०) गोली का धाव ( २६५ ) (स्त्री० ) १ डाँड २ जाल | ३ हथियार क्षितिः (स्त्री०) कूटायें। पहेली का अर्थ । क्षिप्र (वि०) [तुलनात्मक-रोपीयस्। फेपिष्ठ] फुर्तीला | ~कारिन्, (वि०) फुर्तीला क्षिप्रं (अन्य०) तेजी से । फुर्ती से जल्दी से । दिया (स्त्री०) १ हानि नाश । बरवादी हास २ असभ्यता आचारभेद | ( पु० ) यच्चा शिशु-अधिः, ( ० ) दूध का समुद्र ।-अधिः (पु०) चन्द्रमा २ मोती ।अधिजा, अन्धितनया, (स्त्री०) लक्ष्मी-ग्राहः, (पु०) सनौवर का वृक्ष - उदः, (१०) दूध का समुद्र /-ऊर्मिः, (खी०) दूध के समुद्र की लहर । -श्रोदनः, (पु० ) दूध में उबले हुए चावल 1- कण्ठः, (पु० ) बच्चा। शिशु । -जे, (न०) जमश्रा दूध जमा हुआ दूध १-~द्रुमः, (पु०) अश्वत्थ वृक्ष । बरगद का पेड़-धात्री, (खी०) दूध पिलाने वाली दासी । -घि निधिः, (पु० ) दूध का समुद्र धेनुः, (स्त्री०) दुधार गाय-जीरं, ( म० ) १ पानी और दूध। २ दूध सदरा जल ३ घोल- मेल मिलावट ~~पः, (पु० ) दूध पीने वाला बच्चा।- वारिः, वारिधिः, (पु० ) दूध का समुद्र /- विकृतिः, जमा हुआ दूध वृक्षः ( पु० ) म्यग्रोध, उदुम्बर, अश्वस्थ और मधूक नाम के वृह-शरः, (पु०) १ मलाई । २ दूध का भाग या फेन ।- समुद्रः (पु०) दूध का समुद्र । -सार, ( पु० ) मक्खन । - हिण्डीरः, (पु०) दूध का फेन । "I 1 -- तीजनम् (न०) पोले नरकुल्लों में से निकली हुई सर सराइट की आवाज़ | क्षीण (बि०) १ दुबला पतला। लदा हुआ। घटा हुआ। खर्च कर डाला गया । २ नाज़ुक | पतला 12 स्वल्प। थोड़ा । कम ४ धनहीन गरीब । ५ शक्तिहीन | निर्बल :- (०) कृष्णपक्ष का चन्द्रमा !-~~-धन, ( वि० ) निर्धन | गरीब | -पाप, (वि० ) पाप का फल भोगने के पीछे " तीव ( वि० ) उत्तेजित | नशे में चूर खाँसना | खखारना । उस पाप से रहित । -~-पुण्य, (वि० ) जिसका तु ( धा० परस्मै० ) [ क्षोति, सुत] छींकना । २ सचित पुरुयफल पूरा हो चुका हो और जिसे अगले जन्म के लिये पुनः पुण्यफल सञ्चय करना चाहिये। -मध्य, (वि० ) पतली कमर वाला । - वासिन्, ( वि० ) खड़हर में रहने वाला विक्रान्त, (वि०) साहस या शक्ति से रहित।- वृत्ति, ( वि० ) श्राजीविका से रहित । क्षीबू, तोब देखो श्रीवृ, जीव क्षीरं ( न० ) क्षीर (पु० १ दूध । २ किसी वृक्ष का दूध जैसा रस । ३ जल मदः, क्षीरिका (स्त्री०) खीर दूध से बना खाद्य पदार्थ | क्षीरिन ( वि० ) दुधार । दूध देने वाला। नीबू ( धा० परस्मै० ) [ श्रीषति, तीव्यति ] नशा में होना। मदिरा पान करना | २ थूकना । मुँह से निकालना। सुगण ( व० ० ) १ कुचला हुआ। कूटा हुआ । २ अभ्यस्त । अनुगत ३ चूर्ण किया हुआ। -मनस् (वि० ) पश्चात्ताप करने वाला। क्षुत् ( श्री० ) हुर्त (५०) चुता (स्त्री०) छ । क्षुद् ( धा० उभय० ) [ तुपत्ति, हुते, चुराण ] १ कुचलना । पैरों से रूंधना | पटकमा । सं० श० कौ०-२४ ( २६६ ) कुचल डालना। पीस डालना । २ हिलना । उत्तेजित होना । क्षुद्र (वि० ) १ बिल्कुल छोटा छोटा । ठिंगना | २ श्रो कमीना दुष्ट | नीच | ३ उद्दण्ड | ४ निष्ठुर । ५ शरीव | ६ कंजूस | क्षुद्गल (वि० ) मिहीन छोटा । ( पशुओं और रोगों के लिये इस शब्द का प्रयोग विशेष रूप से होता है।) 1 क्षुद्रा (स्त्री० ) १ मधुमक्षिका । २ कर्कशा स्त्री | ३ लंजी औरत | ४ वेश्या । रंडी। -अञ्जनम्, ( न०) रोग विशेष में व्यवहार किये जाने वाला सुर्मा । – अंत्रः, (पु०) हृदय के भीतर का छोटासा रन्ध्र ।-उलूकः, (पु०) उल्लू । कम्बु:, (पु०) छोटा शङ्ख । ~कुष्ठं, (न०) एक प्रकार की हल्की काढ़। - घण्टिका, ( स्त्री०) : धुंघरू । रोना । २ बजनी करधनी - चन्दनम् ( न० ) लाल- चन्दन की लकड़ी । -जन्तु:, ( पु० ) कोई भी शुद्र जीव । —दशिका, ( स्त्री० ) डाँस | गोम- चिका | - बुद्धि, ( वि० ) ओछी बुद्धि का | कमीना ।-रसः, (दु०) शहद-रोगः, ( उ०) मामूली बीमारी। आयुर्वेद में इस प्रकार की ४४ बीमारियाँ गिनायी गयी हैं। शङ्ख, ( पु० ) छोटा घोंघा-सुवर्ण ( न० ) खोटा या हल्का सोना । दुध् ) ( स्त्री० ) भूख । आर्त, आविष्ट, क्षुधा ) ( वि० ) भूख से पीड़ित /क्षाम, ( वि० ) भूखे रहते रहते दुबला हो जाना।- पिपासित, ( वि० ) भूखा प्यासा - निवृत्तिः, ( स्त्री० ) भूख का दूर होना । पेट भरना । क्षुधालु (वि०) भूखा। क्षुधित (वि०) भूखा | नृपः ( पु० ) झाड़ी झाड़ | | चुभित ( वि० ) १ काँपता हुआ। व्याकुल १२ भयभीत | ३ कुछ । तुब्ध (वि० ) १ उत्तेजित । विकत | २ घबड़ाया हुआ | ३ भयभीत | क्षुभ् (धा० आत्म० ) [ क्षोभते, तुभ्यति, तुभ्नाति, क्षुभित-तुब्ध] १ काँपना। थरथराना उत्तेजित होना। विकल होना। २ अस्थिर होना । ठोकर खाना । क्षुब्धः ( पु० ) १ मथानी । स्त्रीमैथुन का विधान विशेष | क्षुमा ( स्त्री० ) अलसी । एक प्रकार का सन । क्षुर् (धा० परस्मै० ) [ सुरति चुरित ] १ काटना खरोचना । २ हल से खेत में रेखाएँ सी खींचना रेखा खींचना | क्षुः (पु० ) १ धुरा । अस्तुरा । २ धुरेनुमा शरपच ३ गौ का खुर। घोड़े का सुम। ४ तीर कर्मन, ( न० ) –किया, (स्त्री० ) हजामत --चतुष्टयं, ( न० ) हजामत के लिये आवश्यक चार वस्तुएँ । - धानं, - भाण्डम्, ( न० ) उस्तरे का घर । नाऊ की पेटी–धार, (वि० ) चुरे की सरह पैना । -प्रः ( पु० ) १ घोड़े के सुम के आकार की नोंक वाला तीर | २ कुदाली। फावड़ी- मर्दिन्.-मुण्डिन, (पु० ) नाई। हज्जाम | क्षुरिका, चुरी ( स्त्री० ) १ चक्कू | धुरी | कटार | २ छोटा असुरा | चुरिणो ( स्त्री० ) हज्जाम की पत्नी । नाईन । नाउन । चुरिन् (पु० ) हज्जाम | नाऊ । नाई । तुल्ल (चि०) छोटा | कम। स्वल्प। क्षुधू ( धा० पर० ) [नुष्यति, क्षुधित] भूखा होना । | चुल्लक (वि०) १ थोड़ा | छोटा | विहीन । २ नीच । भूख लगना । पापी | ३ तुच्छ | ४ निर्धन | ६ दुष्ट | कलुपित हृदय का । युवा । क्षेत्रं ( न० ) १ खेत २ स्थावर सम्पत्ति भूमि ३ स्थान प्रान्त | गोदाम | ४ तीर्थस्थान | ५ चारों ओर से घेरा हुआ चौगान ६ उर्वरा भूमि | जर- खेज ज़मीन । ७ उत्पत्तिस्थान ८ भार्या ६ शरीर । १० मन । ११ घर | क़सवा १२ क्षेत्र | रेखागणित की एक शक्त। [जैसे त्रिभुज | ] २३ अङ्कित क्षेत्र | चित्र ।-अधिदेवता, (स्त्री०) किसी पवित्र स्थल का अधिष्ठातृ या रक्षक देवता।आजीवः, (१०) करः, (g०) किसान । खेतिहर । - गणितं, ( न०) क्षेत्ररेखा । गणित | - गत (वि०) रेखा- राणित सम्बन्धी या भूमि की नापजोख सम्बन्धी । । | ..... क्षेत्रिक क्षामणः अन्य किसी ने मूलग्रन्थकार के नाम से स्वयं बना कर ग्रन्थ में जोड़ दिया हो। पुस्तक में ऊपर से मिलाया हुआ पाठ | क्षेपणम् ( न० ) १ फेंकना | डालना । भेजना। बत- --ज, (वि०) १ क्षेत्रोत्पन्न | २ शरीरोत्पन्न । - जः, ( पु० ) १२ प्रकार के पुत्रों में से एक । नियोग द्वारा उत्पन्न पुत्र-जात, (वि० ) दूसरे की भार्या में उत्पन्न किया हुआ पुत्र । —ज्ञ, (वि०) : स्थलों का जानकार | २ चतुर । दु । - ज्ञः, (पु०) १ जीवात्मा | २ परमात्मा । ३ । दुराचारी मनमौजी । ४ किसान 1-पतिः, (पु० ) जमीन- दार | – पदं, ( पु० ) किसी देवता के उद्देश्य से उत्सर्ग किया हुआ पवित्र स्थल । -पालः, (पु०) १ खेस का रखैया या रखवाला । २ देवता लाना । २ व्यतीत करना। ३ छोड़ जाना। ४ गाली देना | ५ गुफना या गोफन नामक एक यंत्र जिसमें रख कर कण दूर तक फेंका जाता है। क्षेपणः ) ( स्त्री० ) १ डाँड़ | २ Heी पकड़ने का क्षेपणी ) जाल | २ गोफ था गुफना जिससे कंकण दूर तक फेंके जाते हैं। क्षेम (वि०) १ सुरक्षित | प्रसन्न | २ सुखी | नीरोग | मः ( पु० ) ) ! शान्ति | प्रसन्नता | चैन । सुख । क्षेमम् (न० ) ) नीरोगता | २ अनामय । निर्विज्ञता रता | ३ रक्षित | सुरक्षित । ४ जो वस्तु पास है। उसका रक्षण। ५ मोच अनन्तसुख । ( पु० ) एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य | कर, (-क्षेमंकर) (चि० ) शुभ । मङ्गलकारी । विशेष जो खेत की रखवाली करता है। ३ शिव जी की उपाधि । -फलं, (न० ) खेत की लंबाई चौड़ाई का माँप । - भक्तिः, (स्त्री० ) खेत का विभाग /-भूमिः, ( स्त्री० ) भूमि जिसमें खेती की जाती है। -विद्, ( वि० ) क्षेत्रज्ञ | ( पु० ) १ किसान | २ आध्यात्मिक ज्ञान । सम्पन्न विद्वान। ३ जीवात्मा । —स्थ, (वि०) मिन् (वि०) [ स्त्री० –क्षेमिणी ] सुरक्षित | पवित्र स्थल में रहने वाला । आनन्दित । ( २६७ ) क्षेत्रिक (वि० ) [ स्त्री० –क्षेत्रिकी ] क्षेत्र सम्बन्धी । क्षेत्रिकः ( पु० ) १ किसान ।२ जोता । है ( धा० परस्मै० ) [ क्षायति, क्षाम ] बरबाद करना । दुर्बल होना । नष्ट करना । क्षेत्रिन् ( पु० ) १ कृषक । २ ( नाममात्र का ) जोता। ३ जीवात्मा । ४ परमात्मा । क्षेत्रिय ( वि० ) १ खेस सम्बन्धी । २ असाध्य । क्षैरायं ( न० ) १ नाश । २ दुबलापन | क्षेत्र ( न० ) १ खेतों का समूह | २ खेव । क्षेत्रियम् ( न० ) १ आभ्यन्तरिक रोग | २ चरागाह । तैरेय (वि०) [स्त्री०-क्षैरेयीं] : दुधार | दूध वाला। गोचर भूमि । २ दूध सम्बन्धी । तोड: (पु० ) हाथी बाँधने का खूँटा । क्षणिः ताण } (स्त्री० ) १ भूमि । २ एक की संख्या । |क्षातृ (पु०) मूसल । बट्टा | धन | क्षोदः (पु० ) १ घुटाई । पिसाई २ सय उखली । ३ रज | धूल कण - क्षम्, (वि० ) जाँच, अनुसन्धान या परीक्षा में ठहरने योग्य | क्षोदिमन् ( 50 ) सूक्ष्मता क्षेत्रियः ( पु० ) लम्पट व्यभिचारी । क्षेपः ( पु० ) १ उछालना। फैकना । पटकना । घूमना । अवयवों का चालन ! २ फैक। पटक | ३ भेजना। रवाना करना । ४ दे पटकना १५ भङ्ग करना। (नियम) तोड़ना । ६ व्यतीत कर डालना । ७ विलम्ब दीर्घसूत्रता |८ तिरस्कार अपशब्द | ६ अपमान । अप्रतिष्ठा । १० अभिमान । ११ गुलदस्ता । घमण्ड क्षेपक (वि० ) १ फैकने वाला | भेजने वाला | २ मिलावटी। बीच में घुसेड़ा हुआ। ३ अपमान- कारक । गालीगलौज वाला । क्षेपकः ( पु० ) मिलावटी या बनावटी भाग। किसी ग्रन्थ का वह अँश जो मूलग्रन्थकार का न हो कर क्षाभः ( पु० ) १ हिलाना | चलना | उडालना | २ ● भटका देना । ३ उत्तेजना घबड़ाहट उत्पात । उचंग | क्षोभणं ( न० ) उत्तेजना | भदक | क्षोभणः ( पु० ) कामदेव के पाँच बाणों में से एक। सोमः खम् क्षामः ( पु० } } अटारी | [अटा। मम् (न० >> चौणिः १(स्त्री० ) भूमि | २ एक की संख्या दमा (स्त्री० ) १ जमीन | २ एक की संख्या 1-जः, ( 50 ) मङ्गलग्रह -पः पतिः, -भुज्, (पु०) राजा--भृत् (पु० ) राजा या पहाड़ क्षोणी ~प्राचीर: ( पु०) समुद्र भुज्, (पु०) | दमाय् (धo चारम० ) [ हमायते, इमायित ] - राजा--भृत् ( 50 ) पहाड़ | पर्वत । हिलना। फौंपना । चौद्रं ( न० ) १ थोड़ापन | २ ओछापन | नीचता | दिवङ् (धा० उभय० ) [ ट्वेडति- दवेडते, त्वेव या ३ शहद मधु ४ पानी १ रजकण अं. ( ५० ) मोम | स्वेडित ] गुनगुनाना। गर्जना । सीटी बजाना । गुरांना भनभनाना। वरांना दिवड, (घ० आत्म०) चि ( धा० परस्मै० ) [दियद्यति, स्वेदित दिचरण] १ भींगना । २ (वृत का ) दूध निकालना। मवाद को ग्रहना । जब इसमें म लगता है तब इसका अर्थ होता है भिन भिनाना, बरबराना | ( २६६ ) चौद्रः (g० ) चम्पा का वृष्ण | चौद्रयं ( न० ) मोम | हामं ( न० ) ११ रेशमी वस्त्र | बुना हुआ रेशम क्षौमः (पु० ) १२ हवादार अटा या घटारी ३ मकान का पिछवाड़ा। (न०) ४ अस्तर लेनिन । ५ अलसी । क्षौमी ( पु०) सन पटसन चौरं (न० ) हजामत | चौरिकः ( पु० ) हज्जाम। नाई। क्षा (च० परस्मै ) [ दणौति, दयतु] पैनाना | तेज़ | वेडितम् (न० ) सिंहनाद । करना। ख संस्कृत अथवा नागरी वर्णमाला का दूसरा व्यञ्जन अथवा कवर्ग का दूसरा वर्ण। इसका उच्चारण स्थान फगठ है। इसको स्पर्शपर्ण कहते हैं। खः ( पु० ) सूर्य । क्ष्वेड: ( पु० ) १ आवाज़। शोर ज़हरीले जानवरों का ज़हर विष ३ नमी ४ त्याग । क्ष्वेड़ा (स्त्री) सिंहगर्जना | २ रनगुहार रथ में योद्धाओं की ललकार | ३ बाँस | बल्ली। खम् (न०) १ आकाश | २ स्वर्ग ३ इन्द्रिय । ४ नगर ५ सेत | ६ शून्य ७ अनुसार ८ रन्ध दरार पोलाई ६ शरीर के छेद या निकास यथा मुँह, कान, आँखे, नथुने, गुदा और इन्द्रिय १० घाव | ११ प्रसवता आनन्द । १२ अवरक । भोडल १३ किया। १४ ज्ञान १२ ब्राह्मण --अटः ( पु० ) [ खेऽट:] १ ग्रह २ राहु -थापना (स्त्री०) गङ्गा का नाम।-~उल्का, ( पु०) धूमकेतु । २ ग्रह /-उल्मुकः, (पु० ) मङ्गलग्रह -कामिनी, ( स्त्री० ) दुर्गा । -- ख दवेला (स्त्री० ) खेल क्रीड़ा हँसी मज़ाक | 1 ( पु० ) ग्रह ३ सूर्य कुन्तलः, (पु०) शिव का नाम । १ चिड़िया पक्षी | २ पवन २ टिंडा | बोट । ६ देवता | ७ बाण | सीर । -गाधिपः, (पु० ) गरुन । --गान्तकः, ( पु० ) बाज गीध । --गाभिराम, ( पु० ) शिव गासनः, ( पु० ) १ उदयाचलपर्वत । २ विष्णु गेन्द्रः -गेश्वर: ( पु० ) गरुड़ की उपाधियाँ-गवती (सी० ) पृथिवी- ग्रस्थानम् (न० ) १ वृष का कोटर या खोड़र | २ घोंसलाङ्गा (स्त्री० ) आकाशगङ्गा |-- गतिः, (स्त्री० ) उड़ान-गमः, (पु०) पछी । -गोलः, (पु०) आकाशमण्डल।गोलविद्या, (स्त्री०) ज्योतिर्विया ।-चमसः, (पु०) चन्द्रमा । च, (पु० ) [ इसके खन्चर और खेचर, खखट दो रूप होते हैं ] पक्षी | २ सूर्य | ३ बादल । ४ हवा । २ राक्षस । चरी (खचरी, खेचरी) (स्त्री०) १ उड़ने वाली अप्सरा | २ दुर्गादेवी की उपाधि (~~जलं, (न० ) थोस । वर्षा का जल कोहर । कुहासा । —भ्योतिस्, ( पु० ) शगुन्। - तमालः, ( पु० ) १ बादल १२ पु खजपम् ( न० ) घी । घृत | खजाकः (पु० ) पी। चिड़िया | द्योतः, ( १० ) १ जुगुन् । २ सूर्य । -योतनः | खजाजिका (स्त्री० ) फलट्री | चमचा । खंज 1 ( पु० ) सूर्य 1- धूपः, ( पु० ) अग्निवाण --परागः, (पु० ) अन्धकार । - पुष्पं, (न० ) खंज ) ( वि० ) लंगड़ा | रुका हुआ । खेदः, ( धा० परस्मै० ) [ खञ्जति ] तंग करना । खजे ) लंगड़ा कर चलना | रुक जाना । (पु० ) १ खेल । २ खञ्जन पक्षी । - आकाश का फूल | [ इस शब्द का प्रयोग उस खख समय किया जाता है, जब असम्भवता दिखलानी | खंजन: } ( S० ) खञ्जन पक्षी की जाति विशेष । होती है।] खंजनम् ) ( न० ) लँगड़ी चाख | लंगड़ा कर चलने खञ्जनम् । की चाल खंजना, खजना खंजनिका, खञ्जनिका - सुभाषित -सं, (न०) ग्रह । - भान्तिः, (पु०) स्पेनपची -मणिः, (पु०) सूर्य । - मीलनं, (न०) औंधायी । थकावट । —मूर्तिः; ( पुo ) शिवजी का नाम । खंजरीटः, खञ्जरीटः खंजटकः, खञ्जटक खंजलेखः, खअलेखः. ( पु०) खंजन पक्षी | चारि, (न०) वृष्टिजल | घोस । -चाप्पः, (पु०) | खटः ( पु० ) १ कफ ( २ अंघा कूप । ३ टाँकी । ४ बर्फ । कोहरा । कोहासा -शय, या खेशय, (वि०) आकाश में सोने वाला या रहने वाला। -श्वासः, ( पु० ) हवा । पथन -समुत्य, हल । २ घास कटाहकः, (पु० ) पीकदान | -खादकः, (पु०) : गीदड़ | शृंगाल | २ काक | कैौधा । ३ जन्तु । ४ शीशे का पात्र । संभव, (वि०) आकाशोत्पन्न । - सिन्धुः, (पु०) | खटकः ( पु० ) ३ सगाई कराने का धंधा करने चन्द्रमा । स्तनी (स्त्री०) धरती | ज़मीन /- स्फटिकं, (२०) सूर्यकान्त या चन्द्रकान्त मणि । खटकामुखं ( न० ) गोली चलाने के समय हाथ की वाला । २ अधमुँ दा हाथ। [विशेष परिस्थिति । -हर, (चि० ) जिसका भाजक शून्य हो । खट ( वि० ) सख्त । ठोस । खटिका (स्त्री०) १ खड़िया | २ कान का बाहिरी भाग खटिक्किका खखट: ( पु० ) खड़िया मिट्टी | खडकिका } (स्त्री०) खिड़की । निम्न श्लोक में चार असम्भवताएँ प्रदर्शित की गयी हैं मृगतृष्यांनति स्नातः शशशृङ्गनुर्धरा एप वन्ध्या तो बाहि पुष्पकृतशेखरः ॥ खंकरः } (पु० ) अलक । लट । काकुल । े खच् ( घा० परस्मै०) [खचति, खन्नाति, खचित] 1 प्रकट होना। सामने आना। २ पुनर्जन्म होना । ३ पवित्र करना । ( उभय० ) बाँधना | जड़ना । लपेटना । ( २६९ ) खचित (वि० ) १ जड़ा हुआ | भरा हुआ । मिला हुआ। २ गड़ा हुआ । गड़बड़ करना। ३ जड़ा हुआ। खजू ( धा० परस्मै० ) [खजति, खजित] मथना । खजः ) ( पु० ) मथानी | मथने की लकड़ी गड्ढड्ड करना घालमेल करना। खटिनी खटी ( जाति विशेष । ( श्री० ) खञ्जन पक्षी की (स्त्री०) खड़ी | खड़िया मिट्टी खट्टन ( वि० ) बौने धाकार का फढाकार। खट्टनः ( पु० ) बौना । कदाकार मनुष्य | [ घास | खट्टा (स्त्री० ) १ खाट। चारपाई । २ एक प्रकार की खट्टि (पु० स्त्री० ) अर्थो । बिवान । I | खट्टकः (पु० ) खटिक खटीक । चिड़ीमार । बहेलिया । शिकारी । २ कसाई | खट्टेक (वि० ) टिंगना । कदाकार। खट्टा ( २७० खट्टा ( स्त्री० १ खाट । चारपाई । सेज । पलका । २ हिंडोला | झूला । कूलन खटोला । अनि, (पु०) १ लकड़ी या डंडा जिसकी भूँठ में खोपड़ी जड़ी हो। यह शिव जी का हथियार समझा जाता है | और उनके अनुयायी गुंसाई साधु उसे अपने पास रखते हैं। २ दिलीप राजा का दूसरा नाम 1--- अंगधर, अंगभृत् ( पु० ) शिव जी की उपाधियाँ । प्राप्लुत, झारूढ, ( चि० ) १ नीच | पापी | २ परित्यक्त । दुष्ट । ३ मूढ़ | मूर्ख | खट्टाका । खट्टिका (स्त्री०) खटोला। छोटी खाट । खड: ( पु० ) तोड़ना। विभाजित करना । खड़िका ) ( स्त्री० ) खड़िया चाक। मिट्टी । खाडीका खड ( न० ) लोहा । खड्गः (पु० ) १ तलवार । २ गैड़े का सींग । २ गैड़ा। प्राघातः, (पु० ) तलवार का घाव -आध, (पु०) म्यान | परतखा । --श्रामिषं, ( न० ) भैसे का मांस । ग्राहः, ( पु० ) गैड़ा /- कोशः, ( पु० ) म्यान परतला - धरः, ( पु० ) तलवार चलाने वाला योद्धा - धेनुः, -धेनुका, (स्त्री० ) १ छोटी तलवार । २ गैंड़े की मादा । —पत्रं, ( न० ) तलवार की धार पिधानं, – पिधानकम् ( न० ) म्यान | परतत्वा । -पुत्रिका, ( स्त्री० ) छुरी । चाकू | छोटी तलवार । -प्रहारः, (पु० ) तल- चार का आघात ~फलं, ( न० ) तलवार की धार । खड्डवत् (वि० ) तलवार से सज्जित । खडिकः ( पु० ) १ तलवार से लड़ने वाला योद्धा । तलवारबंद सिपाही । २ कसाई | बूचड़ खड्डिन् (वि० ) [ स्त्री०–खड्डिनी ] तलवारबंद | ( पु० ) गैंड़ा। खंडनं, खण्डनम् विफल करना । ४ गड़बड़ करना । उपद्रव मचाना । ५ ठगना | धोखा देना। खंडं, खण्डम् (न०) ) खंडः खण्डः (पु०) ) १ ऐड़ा । नकुल । दरार । साँस | सन्धि | छूट । हड्डी का टूटना । २ टुकड़ा भाग । हिस्सा अँश । ३ अध्याय | सर्ग | ४ समूह | समुदाय । कुंड । ( पु० ) १ खाँद । चीनी | २ रत्न का दोष । ( न० ) १ एक प्रकार का निमक। २ एक प्रकार का गन्ना |– श्रभ्रं, ( न०) १ विखरे हुए बादल | २ भोगविलास में लगा हुआ। दांतों से काटने का निशान । – आलिः, ( स्त्री० ) १ तेल का एक नोँप । २ सरोवर या झील | ३ स्त्री जिसका पति नमकहरामी के लिये अपराधी ठहराया गया हो । -कथा (स्त्री० ) छोटी कहानी | काव्यं, ( न० ) छोटा पद्यात्मक ग्रन्थ जैसे मेघदूत । खण्डकाव्य की परिभाषा साहित्यदर्पणकार ने यह दी है। - खड्गीकं (न० ) हंसिया दराँती। खंड् ) ( धा० परस्मै० ) [ खण्डयति, खण्डित] १ खराडे ) तोदना । काटना । चीरना। फाड़ना । टुकड़े टुकड़े कर डालना। चूर्ण कर डालना। २भली भाँसि हरा देना नाश करना ३ हताश करना ) राम । ३ खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्यैकदेशानुसारि च ॥ - जः, ( पु० ) एक प्रकार की चीनी । - धारा, ( स्त्री० ) कैची | कतरनी । कतनी 1- परशुः, ( पु० ) १ शिव जी की उपाधि | २ परशुराम जी की उपाधि /- पर्शुः १ शिव | २ परशु- ४ हाथी, जिसका एक दाँत टूटा हो।-पाल, (पु०) हलवाई |-- प्रलयः, (पु०) छोटी प्रलय जिसमें स्वर्ग के नीचे के समस्त लोक नष्ट हो जाते हैं। - मोदकः, ( पु० ) ओले । लड्डू | - लवणं, (न० ) निमक विशेष । -विकारः, ( पु० ) खाँड़ । चीनी । - शर्करा, (स्त्री०) बूरा। मिश्री ।-शोना, (स्त्री० ) पुंचली स्त्री छिनाल औौरत । व्यभिचारिणी पत्नी । खंडकः ( पु० ) खण्डकः ( पु० ) खंडकं, खण्डकम् (न० ) टुकड़ा अंश भाग। ( पु० ) १ शक्कर | खांड़ । २ नखरहित । खंडन, खण्डन (वि० ) १ तोड़ा हुआ । टूटा हुआ । कटा हुआ। विभाजित | २ नष्ट किया हुआ | खंडनं, खण्डनम् ( न० ) १ सोड़ना । टुकड़े टुकड़े करना। काट डालना | २ काटना । चोटिल करना। घायल करना। ३ हताश करना । व्यर्थ खडल., खण्डल. ( २७१ कर देना। ४ बाधा डालना ५ धोखा देना । ६ किसी की दलीलों को काट देना । ७ विप्लव | विरोध ८ विसर्जन | बरखास्तगी । पु० ) खंडलं,खण्डलम् (न॰} } टुकड़ा है खंडशस्, खण्डशस् ( अव्यया० ) टुकड़े टुकड़े टुकड़ों में । खंडित, खण्डित ( व० कृ० ) १ कटा हुआ । टुकड़े टुकड़े किया हुआ । २ नष्ट किया हुआ । ३ ( बहस में ) हराया हुआ। ( बहस में ) उत्तर दिया हुआ | ४ विप्लव किया हुआ । बिगड़ा हुआ। -विग्रह, (वि० ) अंगहीन | अंगभग | - वृत्त, (वि०) असदाचारी | दुराचारी भ्रष्ट | खंडिता ) ( स्त्री० ) वह स्त्री जिसका पति धन्यत्र खण्डिता । रात बिताता हो । याठ मुख्य नायिकाओं में से एक । खंडिनी, खण्डिनी (स्त्री० ) पृथिवी । खंदिकाः, खन्दिकाः ( बहुवचन ) भुना हुआ या तला हुआ अनाज। खदिरः ( पु० ) १ कत्था का वृक्ष | २ इन्द्र । ३ चन्द्रमा । खन्- ( धा० उ० ) [खनति- खनते, खात, खन्यते, या खायते ) खोदना । खनकः ( पु० ) १ खोदने वाला | २ सेंध फोड़ने वाला । ३ भूसा ( ४ खाना | खननम् ( न० ) १ खुदाई | २ गाड़ना । खनिः खनो } (स्त्री०) खान । खपरिका, खर्परी ( ज्येष्टमास- गृहं-हं, (न० ) गधों के लिये अस्तबल |-- दराडम्, (२०) कमल /- ध्वंसिन, ( पु० ) श्रीराम जी की उपाधि । - नादः, (पु०) गधा की रेंक ।-नालः, (पु०) कमल । - पात्रं, न० ) लोई का वर्तन | -पालः, ( पु० ) काठ का बर्तन ।-प्रियः, ( पु० ) कबूतर - यानं, (न० ) गधे की गाड़ी यानी गाड़ी जिसमें गधे जुते हैं।। - शब्दः, (पु०) गधे का रेंकना । २ समुद्री गिद्ध | लग्घड़। -शाला, (स्त्री०) गधों का अस्तवल। - स्वरा, (स्त्री० ) जंगली चमेली । खरः (पु०) १ गया | २ खच्चर | ३ काक | ४ एक खनित्रं ( न० ) फाँबड़ा | कुदाली । खपुर: ( पु० ) सुपाड़ी का पेड़ । ) राक्षस का नाम जो रावण का भाई था। खरिका (स्त्री० ) पिसी हुई मुश्क या कस्तूरी | खरिधम - खरिन्धम ) ( वि० ) गधी का दूध खरिंघय - वरिन्धय ऽ पीने वाला। खरी (स्त्री० ) गधी । -जंघः, ( पु० ) शिवजी की उपाधि । – वृषः, (पु० ) गधा | मूर्ख | खरु ( वि० ) १ सफेद | २ मूर्ख | मूढ | ३ निर्दयी। ४ वर्जित वस्तुओं का अभिलाषी । खरुः ( ४० ) १ घोड़ा । २ दाँत | ३ घमंड | ४ काम- देव । ५ शिव। (स्त्री० ) वह लड़की जो अपना पत्ति स्वयं पसंद करे । खर्ज ( धा० परस्मै० ) [ खर्जति, खर्जित ] १ कष्ट देना। वेचैन करना | २ चर्राना | थरांना | चूँचूँ करना । खर्जनम् ( न० ) खरोचना | छीलना । खर्जिका ( स्त्री० ) १ जननेद्रिय सम्बन्धी रोग विशेष | २ चाट | चसको । खर्जु: ( स्त्री० ) १ खरोचन | छीलन | २ खजूर का पेड़। ३ धतूरे का झाड़ खजुरं ( न० ) १ चाँदी । २ हरताल । खर्जू: (स्त्री० ) खाज खुजली। खर्जूरं ( न० ) १ चाँदी । २ हरवाल । खर्जूरः ( पु० ) १ खजूर का वृक्ष | २ बिच्छू | खर्जूरी ( स्त्री० ) खजुर का पेड़ | खर्परः (पु० ) १ चोर | २ गुंडा | ठग | ३ खप्पर । खोपड़ी। ५ खपरा | ६ छाता | खर ( वि० ) मृदु, श्लचण, द्रव का उल्टा । १ कड़ा | रूखा । ठोस । २ तेज़ । तीक्ष्ण । कठोर । ३ खट्टा सीता ४ सघन घना ५ हानिकारक । अवगुणकारी । ६ तेज़ धार वाला ७ गरम । उष्ण । ८ निष्ठुर । नृशंस । - अंशुः, करः, - रश्मिः, ( पु० ) सूर्य । – कुटी, (स्त्री०) १ गधों का अस्तबल । २ नाई की दूकान । - कोणः, - काणः, ( पु०) सीतर विशेष 1-कोमलः, (पु०) | खर्परिका, खर्परी (स्त्री० ) एक प्रकार का सुर्मा । खघ, खर्व खर्च - खर्च ( क्रि० ) [ खर्वति, खर्वित ] १ जाना । हरकत करना। २ अकड़ना । खर्ब -- खर्धः ( वि० ) १ अंगभंग | अपूर्ण । २ ठिंगना । कदाकार | नीचा | छोटा | ( क़द में ) खर्बः-खर्वः ( पु० ) 2 दस अरब की संख्या शाख, (वि.) ठिंगना कदाकार । बोना । खर्घटः ( पु० ) ) १ हाट। पैंठ । २ पहाड़ की तराई खर्चटम् ( न० ) ) का ग्राम | ( २७२ ) खलू ( धा० परस्मै० ) [ खलति, खलित ] १ हिलना काँपना २ एकत्र करना। इकट्ठा करना । खलः (पु० ) ) : खलिहान | २ ज़मीन | स्थल । ३ खलम् (न०) ) स्थान | जगह | ४ धूल का ढेर । २ तलछट | नीचे बैठी हुई कीचड़ | ( पु० ) दुष्ट मनुष्य |~-उक्तिः, ( स्त्री० ) गाली । - धान्यं, (न०) खलिहान । -पूः, ( पु० स्त्री० ) मेहतर । बटोरने वाला। -मूर्तिः, (पु०) पारा। संसर्गः, (पु०) दुष्ट की सङ्गति । खलकः ( पु० ) घड़ा। खलति (वि० ) गंजा खातम् खल्लः ( पु० ) १ खरल जिसमें डाल कर कोई वस्तु कूटी जाय। चक्की २ खड्डा | गढ़ा | ३ चमड़ा। ४ चातक पक्षी । १ मसक । लगाम रास । खलुज् ( पु० ) अंधियारा । अंधेरा । खलूरिका ( स्त्री० ) परेड मैदान जहाँ सैनिक लोग क्रवाहद करें तथा अस्त्रप्रयोग का अभ्यास करें । वल्या ( स्त्री० ) खलिहानों का समूह | खल्लिका (स्त्री० ) कढ़ाई | खल्लिट । खालीट } (वि० ) गंजा | खल्वाट (वि०) गंजा | खशः ( बहुवचन० पु० ) उत्तर भारत में पहाड़ी एक देश और उस देश के अधिवासी । खशीरः ( बहुवचन० पु० ) देश विशेष और उसके अधिवासी । खप्पः (पु० ) १ क्रोध २ निष्ठुरता | नृशंसता | खसूचिः ( पु० स्त्री० ) निन्दान्यञ्जक शब्द यथा खसः ( पु ) १ खाज खुजली | २ देश विशेष " वैयाकरणखसूचिः " । वैयाकरण जो व्याकरण को भूल गया हो। व्याकरण को भली भाँति न जानने वाला । खस्खसः (पु० ) पोस्ते के दाने। –रसः, ( पु० ) अफीम । अहिफेन । खलतिकः ( पु० ) पहाड़ | खलिः ) ( स्त्री० ) तेल की तलछट । कीट काइट खजी खरी । खलिनः – खलीनः (पु० ) ) खलिनम् - खलीनम् (न० ) ) खलिनी (सी० ) खलिहानों का समूह | खाटः ( पुं० ) खाटा (स्त्री० ) खाटिका ( स्त्री० ) खाटी (स्त्री० ) 9 खलीकारः (S० } } 1 चोटिल करना। घायल खांडव:- खाण्डवः ( पु० ) मिश्री । कंद । ( स्त्री०) ) बुरा ३ दुष्टता उत्पात | खलु ( अभ्यया० ) १ निश्चय, वास्तविकता, और यथार्थता बोधक अव्यय | २ मिन्नत । आहूँ । खांडवम्-खाण्डवम् ( न० ) इन्द्र के एक वन का नाम जो कुरुक्षेत्र के समीप था और जिसे अर्जुन और श्रीकृष्ण की सहायता से अग्निदेव ने भस्म किया था। प्रस्थः ( पु० ) एक नगर का नाम । प्रार्थना । विनय । ३ अनुसंधान । वनखांडूविकण्डविकः }( पु० ) हलवाईं । | कभी वाक्यालङ्कार की तरह भी व्यवहार में लाया जाता है। खात ( वि० ) १ खुदा हुआ । २ फटा हुआ | टूटा फूटा ! खातम् ( न० ) १ गढ़ा गर्त । २ रन्ध्र | सूराख छेद | ३ खनन । खुदाई | ४ तालाब जो लंबा अधिक और चौड़ा कम हो। -भूः, ( स्त्री० ) नगर के या किले के चारों ओोर जल से भरी खाई। खाजिकः ( पु० ) भुना हुआ अनाज । खाट्- खात् (अन्यया० ) गला साफ करते समय · का शब्द । खखार । अर्थी। टिक्ठी जिस पर रख कर मुर्वे को श्मशान पर ले जाते हैं। ( २७३ ) खेलन खातकः (९०) १ खोदने वाला | बेलदार | २ | खिरः (पु० / १ संन्यासी । फकीर | २ मोहताज | कहुआ कर्जदार । भिखमंगा | ३ चन्द्रमा खातकं (न० ) खाई। गड़ा। गत । [ पीड़ित | खिन्न (व० कृ०) सन्तप्त । उदास । ग़मगीन । दुःखी । खिलं खिलः ( पु० ) ( न० ) ११ बंजर जमीन का टुकड़ा । मरु- ) भूमि का एक खत्ता । २ अतिरिक्त भजन जो मूलभजनसंग्रह में न आया हो । ३ त्रुटिपूरक परिशिष्ट भाग ४ संग्रह | ५ शून्यता | खोखलापन | खाट खुंगाहः, - खुङ्गाहः (१० ) काला टुआ या घोड़ा। खुरः ( पु० ) १ (गाय आदि का ) खुर । २ सुगन्ध द्रव्य विशेष | ३ छुरा प्रस्तुरा का पाया। आघातः, -क्षेपः, ( पु० ) लात 1 -पास, -णस, (वि० ) चपटी नाक वाला। -पदवी (स्त्री० ) घोड़े के पैरों के चिन्ह- प्रः, ( पु० ) तीर जिसकी नोंक या फल अर्द्ध चन्द्राकार हो । खुरली (स्त्री० ) सैनिक कवायद या अस्त्र-चालन का स्वातक खाता ( स्त्री० ) कृत्रिम तालाब | खातिः ( स्त्री० ) खुदाई । खात्रं ( न० ) १ फडुआ। कुदाली | २ लंबा अधिक और चौड़ा कम तालाब | ३ डोरा । ४ वन | जंगल । २ भय | खाद् (धा० परस्मै० ) [खादति, खादित] खाना भक्षण करना शिकार करना काटना । ग्वादक (वि० ) [ स्त्री० - स्वादिका] खाने वाला । निघटाने वाला। खादकः ( पु०) कर्जदार | ऋणी | कटुआ | खाद्नं ( न० ) १ खाना | चवाना । २ भोज्य पदार्थ | खादनः ( पु० ) दाँत | दन्त | [ उपद्रवी खादुक (वि० ) [ स्त्री० खाकी ] उत्पाती। खाद्यम् ( न० ) भोज्यपदार्थं । खाना । खादिर (वि० ) [ स्त्री - हादिरी, ] खदिर यानी कत्था के वृद्ध से बना हुआ था तत् वृक्ष सम्बन्धी । खानं ( न० ) १ खुदाई । २ चोट /-उदकः, (पु०) नारियल का वृक्ष | खानक (वि०) [ स्त्री०- खानिका] खोदने वाला। बेलदार खान खोदने वाला। खानिः ( स्त्री० ) सानि । यानिक ( न० ) खानिकः ( स्त्री० हे कूप का छेद | कूप की दरार ) या सन्धि । खानिलः ( पु० ) घर में सेंध लगाने वाला चोर। खार ) (स्खी०) १२ मन ३२ सेर की अनाज खारिः खारी ) की तौल विशेष | अभ्यास | खुरालकः ( पु० ) लोहे का तीर । खुरालिकः (पु०) १ छुरा रखने का घर या केस । २ लोहे का तीर । ३ सकिया। खुल्ल (वि० ) छोटा। कम | नीच। ओछा - तातः, (पु०) पिता का छोटा भाई । छोटा चाचा । खेचर देखो खचर । खेट: ( पु० ) १ गाँव । २ कफ १ २ बलराम का मूसल । ४ घोड़ा । खेटितानः ) (पु०) वैतालिक जो अपने मालिक को गा खेदितालः बजा कर जगावे । खेटिन् (पु० ) मनमौजी । भ्रष्ट खेदः ( पु० ) १ उदासी । शिथिलता | सुस्ती । २ थकावट ३ पीड़ा शोक खार्वा (स्त्री० ) त्रेता युग खिंखिरः–खिङ्किरः ( पु० ) १ लौमड़ी | २ चारपाई | खेयं ( न० ) गढ़ा | खाई | खेयः (पु० ) पुल | मचवा या पाया । खिद् ( धा० परस्मै० ) [खिदति, खिन्न ] ठोंकना । दबाना । दुःख देना सताना । ( आत्मने० ) [ खिद्यते, खित्ते, खिन्न, ] सन्तप्त होना । खेल (चि०) खिलाड़ी | कामी । कामुक । पीड़ित होना । थक जाना सुस्त या उदास | खेलनं ( न० ) १ हिलना डुलना | २ खेल | श्रमोद - हो जाना। डराना | भय दिखाना। प्रमोद | ३ अभिनय सं० श० कौ० खेल् (धा० परस्मै०) [ खेलति, खेलित] १ हिलाना। इधर उधर घूमना । २ काँपना। खेलना । खेला खेला (स्त्री०) क्रीड़ा | खेल | खेलिः (सी० ) १ मोड़ा | खेल | २ तीर । खोटि: (सी० ) चालाक या नटखट स्त्री। खोड (वि०) लंगदा । लुला । खोर ) ( वि० ) लंगड़ा लूला। खोल खालकः (पु०) १ पुरवा गाँव । २ बॉबी | ३ सुपाड़ी ख्यातिः ( जी० ) १ प्रसिद्धि ४ गधी विशेष | का छिलका खोलिः (पु० ) तरकस ख्या ( चा० परस्मै० ) [ ख्याति, ख्यात ] कहना। यतलाना। बखान करना। [ख्यायते] प्रसिद्ध होना [( निजन्त ) ख्यापयति ख्यापयते ] १ प्रसिद्ध ( २७४ ) ग संस्कृत या नागरी वर्णमाला का तीसरा व्यञ्जन । कवर्ग का तीसरा वर्ण। इसका उच्चारणस्थान कमव्य है। इसको स्पर्शच कहते हैं। ग (वि०) केवल समास में पीछे आता है और वहाँ इसका अर्थ होता है कौन कौन जाता है, हिलने वाला। जाने वाला होने वाला ठहरने वाला रहने वाला। मैथुन करने वाला। गं (न०) गीत | भजन । गः ( पु० ) 3 गन्धर्व गणेश जी चुन्दः शास्त्र में गुरु अक्षर के लिये चिन्ह गङ्गा करना | ३ उद्घोषित करना २ कहना करना। तारीफ करना। प्रशंसा करना | फाल्गुने गगने फेमे सत्यनिष्द्धन्ति पर्वराः । अर्थात् फाल्गुन, गगन और फेन शब्दों में जङ्गली लोग न की जगह ण लगाते हैं ] आकाश अन्तरि २ शून्य सिफर | ३ स्वर्ग | --अ, (न०) सब से ऊँचे ऊर्ध्वंलोक। अंगना, ( स्त्री० ) अप्सरा परी। किचरी - श्रध्वगः, ( पु० ) १ सूर्य । २ ग्रह इस्वर्गीय जीव- अम्बु, ( न०) वृष्टिजल /-उल्मुकः, (पु० ) मङ्गलमह ।– कुसुमं, पुष्पं, (न०) आकाश का वर्णन ख्यात ( व० कृ० ) १ जाना हुआ। २ उक्त कहा हुआ। ३ प्रसिद्ध । मशहूर बदनाम गईण, (वि०) बदनाम | शोहरत | गौरव | कीर्ति । २ संज्ञा | पदवी । उपाधि । ३ वर्णन | ४ प्रशंसा । ५ ( दर्शन में ) ज्ञान | ख्यापनम् (न०) १ वर्णन प्रकाशन | व्यक्तकरण प्रकट करना । २ प्रसिद्ध करना | कीर्ति फैलाना | www फूल (असम्भान्य वस्तु ) | ~~-गतिः, (पु०) १ देवता । २ स्वर्गीय जीव । ३ ग्रह चर, (गगनेचर भी) ( वि० ) आकाश में चलने वाला। -चरः, (पु०) १ पक्षी २ ग्रह । ३ स्वर्गीय चात्मा - ध्वजः, ( पु० ) १ सूर्य । २ बादल । - सद्, ( पु० ) आकाशवासी या अन्तरिक्ष में बसने वाला (पु०) स्वर्गीय जीव । - सिन्धु, (स्त्री० ) गङ्गाजी की उपाधि । -स्थ स्थित, (वि० ) धाकाश में टिका हुआ ।-स्पर्शनः, (पु०) १ पवन । हवा । २ अष्ट मास्तों में से एक का नाम । गंगा ) ( स्त्री० ) भारतवर्ष की पुण्यतोया प्रसिद्ध नदी म्यु, अम्भस्, (न०) गङ्गाजल। २ आश्विन मास की दृष्टि का निर्मल जल । ध्यवताः, ( पु० ) १ गङ्गाजी का भूलोक में आगमन | २ तीर्थस्थलविशेष | - उद्भेदः, (१०) गङ्गाजी के निकलने का स्थान। गङ्गोत्री/क्षेत्रं, ( न० ) गङ्गाजी और उसके दोनों रूटों से दो दो कोस का स्थान -जः (पु०) २ कार्तिकेय /- दत्तः, ( पु० ) भीष्मपितामह । - द्वारं, (न० ) वह स्थान जहाँ गङ्गाजी पहाड़ छोड़ मैदान में आती है। हरिद्वार धरा, (पु०) १ शिवजी । २ समुद्र । -पुत्रः, (पु०) १ भीष्म । २ कार्तिकेय । 1- गगनम् } ( न० ) [ किसी किसी के मतानुसार | गङ्गा गगणम् 3, गगणम् रूप अशुद्ध है। गंगाका, गङ्गाका ( २७५ ३ दोगला वर्षसहर विशेष इस जाति के पुरुष सुर्वे ढोया करते हैं। २ गङ्गा के घाटों पर बैठ कर यात्रियों से पुजवाने वाले। घाटिया-भृत्. (पु०) १ शिव : २ समुद्र । यात्रा. (स्त्री०) १ गङ्गाजी को जाना।२ मरणासह पुरुष को भरने के लिये गातट पर लेजाना -सागर, (पु० ) वह स्थान, जहाँ गङ्गाजी समुद्र में गिरती हैं।सुतः, (पु०) : भीष्म २ कार्तिकेय (पु० ) एक तीर्थ का नाम गंगाका, गङ्गाका ) गंगका, गङ्गका गंगिका, गझिका गंगोलः, गङ्गालः (पु०) रत्न विशेष जिसे गोमेद भी कहते हैं। ( स्त्री० ) श्री गङ्गाजी गच्छः ( पु० ) १ च २ गणित का पारिभा- षिक शब्द विशेष । ) गऊज. चाल से चलनेवाली स्त्री। दम-द्वयस, (दि०) हाथी जितना ढाँचा या ऊँचा दन्तः ( पु० ) दान हाथी का दाँत-२ गणेश जी । ३ हाथी- दाँत का । ४ खूंटी 1 कील याकेट (जो दीवाल पर लटका दिया जाता है)।---दुस्तमय,

वि० ) हाथी दाँत का बना हुआ /- दानं,

( न० ) १ हाथी का मद । २ हाथी -नासा (स्त्री०) हाथी की फनपटी। पतिः, (पु०) १ हाथी का स्वामी २ बड़ा ऊँचा गजरान। ३ सर्वोत्तम हाथी-पुङ्गवः (पु०) गजराज पुरं, (न० ) हस्तिनापुर नगर । --बंधनी, - बंधिनी. (स्त्री०) गजशाला--भक्षकः ( ५०) श्ररवय वृक्ष - मण्डनम् ( स० ) हाथी के माथे पर बनाई हुई रन बिरङ्गी रेखाएँ हाथी का शृङ्गार 1-- मण्डलिका, मण्डली, - ( स्त्री० ) हाथियों की मण्डली (~-माचलः, ( पु० ) सिंह । --मुक्ता ( स्त्री० ) -मौकिक, ( न० ) गज के मस्तक से निकलने वाला मोती ।~मुखः, -वक्त्रः, चदनः ( पु० ) गणेश जी ।-मोटनः (पु०) सिंह | शेर- यूथं, (न० ) हाथियों का झुंड । -योधिन्, (वि०) हाथी की पीठ पर बैठ कर लड़ने वाला। ~~राजः, (पु०) हाथियों में सर्वोत्कृष्ट हाथी । -वजः, ( पु० ) हाथियों की एक टोली- साइयम्, (न०) हस्तिनापुर । - स्नानम्, (न०) हाथी का स्नान । (आलं) स्वर्थ का काम जिस प्रकार हाथी स्नान कर पुनः सूड़ में भर सूखी मिट्टी अपने ऊपर डाल कर स्नान व्यर्थ कर डालता है; उसी प्रकार कोई काम करके पुनः वंह खराब कर डाला जाय, तो उस कार्य को गजस्नानवत् कार्य कहते हैं। गजू (धा० परस्मै०) [गजति गजित] १ शोर करना। गर्जना।२ नशे में होना घवड़ा जाना । गजः ( पु० ) १ हाथी | २ आठ की संख्या ३ लंबाई नापने का माप विशेष जो दो हाथ का होता है। "काचारमगुरुवादिंगुको " ४ राक्षस जिसे शिव जी ने मारा था। अप्रणी, ( पु० ) १ सर्वोत्तम हाथी २ ऐरावत की उपाधि |-अधिपतिः, ( पु० ) गजराज | --अध्यक्षः, ( पु० ) हाथियों का दारोगा । - अपसदः, (पु० दुष्ट हाथी ।-अशन, (पु० ) अश्वस्थ वृक्ष अशनं, (न० ) कमल की जड़ असि ( पु० ) १ सिंह | २ गज नामी राक्षस के मारने वाले शिवजी ।-आजीवः, ( पु० ) महावत -आननः यः (पु० ) गणेश जी। - आयुर्वेदः, ( पु० ) हाथियों की चिकित्सा का शास्त्र --आरोहः (पु०) महावत -आई, श्राह्वयम्, ( न० ) हस्तिनापुर नगर का नाम /~-इन्द्रः (पु० ) गजराज | २ ऐरावत /-इन्द्रक, (पु०) शिव जी /- कुर्माशिद, (पु० ) गरुड जी । -गतिः, (स्त्री०) १ हाथी जैसी चाल | मदमाती चाल २ गज- गंजः १ खान २ खजाना | २ ग्रामनी स्त्री ।-गामिनी, (स्त्री० ) हाथी जैसी | गजः ) गअ अनाज की मगढी । ५ अवज्ञा तिर- गोशाला : ४ गजता (स्त्री० ) हाथियों का समूह । गजवत् ( वि० ) १ हाथी की तरह २ हाथी रखने- वाला । गंजू ) ( धा० परस्मै० ) [ गञ्जति ] गजे से शब्द करना । विशेष रूप गजन ( २७६ स्कार ।-जा, ( स्त्री० ) १ औपड़ी । मड़ैया । चुप्पर २ मदिरा की दूकान | ३ मदिरापात्र । गंजन ) वि० ) १ अत्यधिक वृणित लज्जित किया गञ्जन ) हुआ। २ विजयो गंजा ) ( स्त्री० ) १ झौंपड़ी । २ कलारी। शराब की गञ्जा ) दूकान | ३ पानपात्र | गाजिकका } (श्री० ) कलारी | शराब की दूकान | 'गड् (धा० परस्मै० ) [ गडति, गडित] १ चुआना | २ खींचना । रस निकालना । गडः (पु०) १ पर्दा टही २ हाता| ३ खाई | ४ रोकथाम अटकाव । ५ सुनहले रङ्ग की मछली । --उत्थं, - देशजं, नवयं ( न० ) सेंधा निमक | Ram गडयंतः } गडयन्तः ( पु० ) बावल । मेघ । गडयिनुः, गडिः (न० ) १ बड़ा |२ सुख बैल | गडु (वि० ) कुबड़ा | गडु (पु० ) १ कूबड़ | २ वर्षी । भाला। साँग । ३ निरर्थक वस्तु । गडुक ( पु०) १ भारी लोटा जलपात्र २ अंगूठी । 1 गड्डत } (वि०) कुबढ़ा । झुका हुआ । गडेर: ( पु०) बादल | मेघ गडोलः (पु०) १ मुँह भर | २ कच्ची खाँड | गडुलः } (S०) भेड़ | मेष । गडुरिका (स्त्री० ) १ भेड़ों की कतार | २ अविच्छत रेखा धार । गडकः (पु०) सोने का गढ़या या पात्र विशेष | गया ( धा० उभय० ) [ गणयति-गड़ते, गणित ] १ गिनना गणना करना। मिन्ती करना। २ जोड़ना। हिसाब लगाना | ३ तग्रमीना करना । अन्दाजा लगाना । ४ श्रेणीवार रखना। ५ ख्याल करना | ६ लगाना ( दोष ) ७ ध्यान देना | गणः ( पु० ) १ सुण्ड । गिरोह | समूह | हेड़ टोली। दल | २ श्रेणी । कक्षा ३ नौकरों की टोली । ४ शिव जी के गण ५ एक उद्देश्य के ) गण - । लिये बनी हुई मनुष्यों की संस्था ६ एक सम्प्र दाय । ७ सैनिकों की एक छोटी टोली। ८ संख्या । ६ पाद ( कविता में ) । १० व्याकरण में एक श्रेणी को धातुएँ यथा भ्वादिगण ११ गणेश जी का नाम । -अत्रणी, (पु०) गणेश जी । -अचलः, ( पु० ) कैलास पर्वत का नाम 1-अधिपः, - अधिपतिः (पु० ) १ शिव जी । २ गणेश जी ३ सेनापति | गुरु | यूथप या यूथपति ।- अनं (न०) कहूँ आदमियों के खाने योग्य बनाया हुआ भोज्य पदार्थ – अभ्यन्तर ( वि० ) दल या समुदाय में से एक 1-अभ्यन्तरः ( पु० ) किसी धार्मिक संस्था का नेता था मुखिया | --देशः, ( पु० ) १ गणेश, ईशानः, - ईश्वरः, (५०) १ गणेश । २ शिव /-उत्साहः, (पु०) गैंड़ा। कारः, : पु०) १ श्रेणीकद्ध करने वाला । २ भीष्म की उपाधि । -चक्रकं, (न० ) धर्मात्माओं की पंक्ति था ज्योनार - तिथ, (वि० ) दल या टोली बनाने वाला 1-देवताः, ( पु० ) देव समूह | धमरकोशकार ने इनकी गणना यह बतलायी है:- " - - दिपविश्वाचित भारामिलाः | नाशिकमध्य राजनेयताः ॥ अर्थात १२ आदित्य १० विश्वदेव, ८ वसु, ४३ वायु १२ साध्य ११ रुद्र, ३६ तुषित, ६४ अभास्वा २२० महाराजिक ।-द्रव्यं, ( न० ) सार्वजनिक सम्पत्ति - धरः ( पु० ) १ एक श्रेणी या संख्या का मुखिया २ पाठशालीय अध्या- पक ।-नाथः, - नायकः, (पु०) १ गणेश जी २ शिव जी ।-- नायिका, (स्त्री०) दुर्गादेवी - पः, -पतिः, - (पु०) शिव जी अथवा गणेशजी । - - - पीठकं, (न० ) वक्षस्थल । छाती।-- (पु०) १ जाति का या श्रेणी का मुखिया (बहु- वचन) एक देश और उसके अधिवासो । पूर्वः, ( पु० ) किसी जाति या श्रेणी का मुखिया - भर्ती, (पु०) १ शिव जी का नाम । ९ गणेश ज का नाम । ३ श्रेणी का मुखिया 1- भोजनं, (न०) पंगति । ज्योनार । भोज । --राज्यं, (न० ) गणक दक्षिण की एक रियासत का नाम - हासः ! हासकः, (पु० सुगन्ध व्य विशेष 1 - I गणक (वि० [ स्त्री० - गणिका ] बड़ा मूल्य देकर खरीदा हुआ। गणक (०अनुगणित का जाननेवाला । २ ज्योतिषी | दैवज्ञ | गणनी ( स्त्री० ) ज्योतिपी की स्त्री । ( २७७ . ) गत - फलकं, ( म० ) चौड़ा गाल :-मालः. (पु०) ~~माला, (स्त्री०) रोग विशेष वह रोग जिसमें गरदन में माला की तरह गिल्टियाँ निकलती हैं। - मूर्ख, वि० ) वज्रसूर्ख : महामूर्ख - शिला, ( स्त्री० ) १ एक बड़ी भारी चट्टान जिसे भूडोल या तूफान ने नीचे गिरा दिया हो । २ माथा ।- साइया. ( स्त्री० ) गण्डकी नदी का नाम । स्थलं, (न० ) -स्थली, (स्त्री०) १ गाल | २ हाधी की कनपुटी । गंडकः ( ( पु० ) १ गैड़ा | २ रोक | अड़चन गण्डकः ) बाधा । ३ गाँठ । अन्थि । ४ चिन्ह | य्या | दाग | २ फोड़ा । गुमा । गुमड़ी। मुग़सा ६ वियोग | विरह ७ चार कौड़ी के मूल्य का सिक्का विशेष (1 -वती. ( स्त्री० ) गण्डकी नदी । गणानं (न०) १ गिनती | हिलाय किसाब । २ जोड़ ३ कल्पना विचार | ४ विश्वास | गणना (स्त्री० ) गिनती । किवाय - महायात्रः | ( पु० ) अर्थसचिव [क्रम से। । I गणशस् (अव्यया०) समूह में टोली में श्रेणी के गणिः ( स्त्री० ) गिनती। गणना। [ पुष्प विशेष | गणिका ( श्री० ) १ रण्डी | वेश्या । २ हथिनो । ३ गणित ( वि० ) १ गिना हुआ। संख्या डाला हुआ। जोड़ा घटाण हुआ । २ ध्यान दिया हुआ | J गंडका । ( स्त्री ) इला । डली | भेला | गराडका । भेली। लौदा। चक्का | ढोंका देला । गणितं ( न० ) १ गणना ! गिनती | २ अति गंडकी ? (सी०) एक नदी का नाम जो गङ्गा में जिसके अन्तर्गत पाटीगणित या व्यक्तगणित, | गराडकी । गिरती है। --पुत्रः, ( पु० ), – शिला, बीजगणित, और रेखागणित सम्मिलित हैं । ३ S (स्त्री०) शालग्राम शिला । जोड़ | । गणितिन् (पु० ) १ जिसने गणना की हो । २ अङ्क | गहडलिन् } गणित का जानने वाला। (पु०) शिव जी का नाम । गंडिः ) ( पु०) पेड़ का तना या धड़ जड़ से ले गfus: f कर उस स्थान तक का भाग जहाँ से गणिन् (वि० ) [स्त्री०-गणिनी,] किसी का मुंड या डालियों का निकलना आरम्म होता है। । दल रखनेवाला । ( पु० ) अध्यापक शिक्षक | गणेय ( वि० ) गिनती करने योग्य गिनने योग्य । गणेरुः (पु०) कणिकार वृण । ( स्त्री० ) १ रंडी | २ हथिनी । ( स्त्री० ) पत्थर विशेष | मंडिका गण्डका मंडीरः गंडी.ए.} (पु०) शूरवीर | गंडू: ) (पु० स्त्री०) १ तकिया । ३ जोड़ | गाँठ गराहू: ) ग्रन्थि । --पदः, (पु०) कीट विशेष । गंडूषः, गराइषः ) ( स्त्री० ) १ मुँह भर | २ अञ्जली गंडूषा, गराइषा भर | ३ हाथी की सूड़ की नोंक। गणेशका ( स्त्री० ) १ कुटनी | २ चाकरानी । दासी । गंडः ) ( प्र० : १ गाल २ हाथी की कनपुटी । गण्डः ) ३ बुदबुद | बबूला बुल्ला | ४ फोड़ा गिल्टी | गुमड़ा । मुंहासा | सूजन | ५ धंधा | गरदन की बीमारी विशेष । ६ गाँठ । जोड़ । ७ चिन्ह । दाग धब्बा रौंड़ा मूत्रस्थली | १० वीर योद्धा । ११ घोड़े के साज का अँश | गण्डोलः विशेष ।-अंगः, (पु०) गैंडा। -उपश्चानं, (न०) तकिया। मसनद । -कुसुमं, (न० ) हाथी का मद /- कूपः, (पु०) पर्वतशिखर पर का कूप या कुर्थी 1 1- देशः, प्रदेशः ( पु० ) गाल (- - गंडोलः } (पु०) १ कच्ची शक्कर । २ मुँहभर । गत (व० ० ( गम् का ) १ गया हुआ । सदैव के लिये गया हुआ | २ बीता हुआ । गुजरा हुधा । ३ मृत मरा हुआ ४ आया हुआ। पहुँचा हुआ। ५ अवस्थित । स्थापित । अव गति लम्बित ६ गिरा हुआ। कम किया हुआ । ७ सम्बन्धी विषय का | अक्ष, ( वि० ) अन्धा | नेत्रहीन | - अध्वस्, १ वह जिसने अपनी यात्रा पूरी कर डाली हो । २ अभिन्न अत। ( स्त्री० ) चतुर्दशी युक्त अमावस्या । - अनुगतं, ( न० ) किसी रीति या रस्म का अनुयायी या माननेवाला ।-अनुगतिक, ( वि० ) अँधअनुयायी । अन्तः, ( वि० ) वह जिसकी समाप्ति या पहुँची हो। -अर्थ, (वि०) १ निर्धन । गरीब २ अर्थहीन । असु, - जीवित, प्राण, (वि०) भृत | मरा हुआ | ( २७८ )

(स्त्री० ) १ चाल | हरकत | गमन | २ प्रवेश ।

३समाई। जगह । बिस्तार । ४ पथ मार्ग | रास्ता ५ गमन | पहुँचना । प्राप्ति | ७ फल | परिणाम | ८ हालत | दशा । परिस्थिति । ६ उपाय । ज़रिया । १० पहुँच। शरण स्थान | बचाव | ११ उत्पत्ति स्थान निकास १२ मार्ग पथ गद्य १३ जलूस यात्रा १४ कर्मफल । नतीजा । १५ भाग्य । प्रारब्ध १६ नक्षत्र पथ | १७ नक्षत्र की चाल विशेष १८ नासूर | घाव | भगंदर । १६ ज्ञान | बुद्धि | २० पुनर्जन्म २१ थायु को भिन्न दशाएँ । यथा--शैशव, यौवन, बुढ़ापा आदि ।-अनुसरः, ( पु०) दूसरे के पीछे चलना । दूसरे के मार्ग पर गमन करना । -भङ्गः, (पु० ) निवृत्ति निवारण । प्रतिवन्ध । -हीन, (वि०) बेबस असहाय अनाथ गत्वर (वि०) [स्त्री० गत्वरी] श्चर। जङ्गम। चलने- वाला । २ नश्वर नाशवान | -आधि (वि०) निश्चिन्त । प्रसन्न ।~-आयुस, | गद् ( धा० परस्मै० ) [गति, गदित] १ ऐसे बोलना जिससे समझ पड़े। २ गणना करना । गढ़ (न०) एक प्रकार का रोग गदः (पु० ) १ भाषण | वक्तृता । २ वाक्य | ३ रोग । ४ गर्ज गड़गड़ाहट -अगदौ, ( द्विवचन) अश्विनीकुमार । --अग्रणी (स्त्री०) सव रोगों का सरदार अर्थात् क्षय रोग । –अम्बरः, ( पु०) बादल :- प्ररातिः, (पु०) दवा | गदयित्नु (वि०) १ बातुनिया । बकवादी | २ कामी । ( वि० ) बुढा । अपाहज । अशक्त । -प्रार्तवा, ( स्त्री० ) जच्चा। - उत्साह, (वि०) शिथिल । उदास । उत्साहहीन |– कल्मष, (चि० ) पाप | या दोष से मुक्त । पवित्र 1-क्कम, ( वि० ) तरोताज्ञा । चेतन, (वि०) मूर्छित । बेहोश /-- दिनं (अव्यया०) बीता हुआ कल्ल । - प्रत्यागत, (वि०) जाकर लौटा हुआ | - प्रभ, (वि०) मंदा | धुंधला। कुम्हलाया हुआ। —प्राण, (वि०) मृत । मरा हुआ ।--प्राय, (वि०) लगभग गुजरा हुआ | सरा हुआ ।--भर्तृका, (स्त्री०) विधवा । रौंड़ | | भोषित भतृका । वह स्त्री जिसका पति विदेश गया हो। लक्ष्मीक, ( वि०) प्रभाहीन | धमक रहित । धुंधला । कुम्हलाया हुआ । – वयस्कं, ( वि० ) चूड़ा 1-वर्षः, (९० ) वर्ष ( न० ) बीता हुआ वर्ष । –बैर, (वि० ) मेल मिलाप किये हुए । सन्धि किये हुए व्यथ, (वि०) पीड़ा रहित। - सत्व, (वि०) मृत | मरा हुआ। २ नीच । धोछा | सन्नकः, (वि० ) हाथी } जिसके मद न चूता हो /- स्पृह, ( वि० ) सौंसारिक अनुराग से रहित । लम्पट | गदयित्नुः (पु०) कामदेव का नाम । गदा ( स्त्री० ) काठ था लोहे का अस्त्र विशेष - अग्रजः, ( पु० ) श्रीकृष्ण का नाम । - अग्र- पाणि, (वि०) दहिने हाथ में गदा लेनेवाला । -घरः, (पु०) विष्णु भगवान की उपाधि - भृत्, (५०) गदा से युद्ध करने वाला । ( पु०) विष्णु भगवान की उपाधि । - युद्धं, (न०) गदा की लड़ाई । - हरुन, (वि०) गदास्त्र से सज्जित | गदिन (वि०) [स्त्री० -गदिनों,] १ गदा लिये हुए। २ रोगी । बीमार । ( पु० ) विष्णु की उपाधि | गद्गद (वि०) हकला | एक रुक कर बोलने वाला । - स्वरः, (पु०) १ हकलाने की बोली । २ भैसा । गदः (पु०) हकलाना | तुतलाना । गद्दं (न०) हकला कर बोलना । गद्य ( स० का कृ०) बोलने को कहने को गद्यं (न०) पय नहीं। बार्तिक । वह रचना जिसमें कविता या पद्य न हो। गद्याणकः मंत्री र गन्त्री । गद्याणक: गद्यानकः (पु०) ४१ धुंधची यारत्ती भर की तौल । गद्यालकः गंतृ | (वि. ) [ स्त्री० – गन्त्री, ]१ जाने वाला। गन्तृ २ स्त्री के साथ मैथुन करने वाला। ( २७६ (स्त्री०) वैलगाड़ी । गंधू ) (धा० आत्म०) [गन्धयते] १ घायल करना । गन्धे ) २ माँगना । ३ जाना ।

}

गंधः ) (५०) बू । बास | २ सुगन्ध पदार्थ | ३ गन्धः । गन्धक | ४ घिसा हुआ चन्दन । ५ सम्बन्ध । रिश्ता। पड़ोसी ६ घमण्ड कम्जा, (स्त्री०) जंगली नीबू का वृक्ष अमन (पु०) गन्धक । ——खु (पु०) छछून्दर ।-आढ्यः, ( पु० ) नारंगी का पेड़ –श्रयम् (न०) चन्दन काष्ठ | – इन्द्रियं, (न०) नाक | नासिका । - इभः, -गजः, द्विषः, हस्तिन, ( पु० ) सर्वोत्तम हाथी – उत्तमा, ( स्त्री० ) शराव | मदिरा। -~-श्रोतुः, ( पु० ) गन्धगोकुला | जीव- विशेष । कालिका, कालो, (स्त्री० ) वेद व्यासजी की माता का नाम । – केलिका, - चेलिका, (स्त्री० ) कस्तुरी । मुश्क 1- सी, ( स्त्री० ) नाक | - धूत्तिः, ( स्त्री० ) कस्तूरी | - नकुलः, ( पु० ) छन्दर । –नालिका, नाली, ( स्त्री० ) नाक | नासिका - निलया, ( स्त्री० ) एक प्रकार को चमेली । - पः, ( 30 ) पितृगण विशेष ।- पलाशिका, ( स्त्री० ) हल्दी 1-पाषाणः ( पु० ) गन्धक 1- पुष्पा (स्त्री० ) नील का पौधा | - पूतना, ( श्री० ) बालग्रह विशेष - फली, (स्त्री०) १ प्रियङ्गुलता | २ चम्पा के वृक्ष की फली । बन्धुः, ( पु० ) आम का पेड़ - मादनः, (पु०) भौरा । २ गन्धक ।-मादनम्, ( न० ) मेरु पर्वत के पूर्व एक पर्वत जिसमें महक - दार अनेक वन हैं। - मादनी, (स्त्री०) शराव | -मादिनी, १ ( स्त्री० ) लाख । चपड़ा - माजीरः ( पु० ) मुश्कबिलाई 1- मुखा, मूषिक:, (पु०) -सूषी, ( स्त्री० ) छछूंदर | - मृगः, (पु०) १ मुश्कबिलाई | २ मुश्कहिरन | ) गन्धार कस्तूरीमृग –मैथुनः, ( 3० ) साँड़ | बैल | -मोदनः, (पु०) गन्धक । - मोहिनी, (स्त्री०) चंपा की कली । -राजः, ( पु० ) चमेली - राजमू, ( न० ) चन्दन 1 --लता, ( स्त्री० ) प्रियङ्गु की बेल 1-लोलुपा, ( स्त्री० ) अमर | मधुमक्षिका । -वहः, ( पु० ) पवन | हवा - वहा, ( स्त्री० ) नासिका । नाक | वाहक, ( पु० ) १ पवन हया २ कस्तुरीमृग - वाही, ( स्त्री० ) नाक /-विह्वलः, ( पु० ) गेहूँ।--वृत्तः, (पु०) साल का पेड़।-चयाकुलं. (न०) कङ्कोल । - शुण्डिनी, (स्त्री०) छछूंदरी । - शेखरः, ( पु० ) मुश्क । कस्तुरी । - सामं, ( न० ) सफेद कमोदिनी । गंधकः गन्धकः ) गंधनम् ) ( न० ) १ अध्यवसाय | सततचेष्टा । गन्धनम् )२ चोट | घाव | ३ प्राकट्य । प्रकाशन । ४ सूचना सङ्केत इशारा | गंधवती ? ( स्त्री० ) १ भूमि | पृथिवी । २ शराव । ३ गन्धवती व्यास माता सत्यवती । ४ चमेली की जातियाँ ।

} (पु० )गन्धक ।

गंधर्वः ? (पु०) : देवताओं के गवैया । २ गवैया । गन्धर्वः ) ३ घोड़ा ४ मुश्कहिरन । कस्तूरी मृग ५ मृत्यु के बाद और जन्म के पूर्व की जीव की दशा ।'६ काली कोयल । -नगरं, पुरं, (न०) गन्धवों की पुरी । -राजः, ( पु० ) गन्धर्वो के राजा चित्ररथ -विद्या, ( स्त्री० ) सङ्गीत विद्या ।—विवाहः, (पु०) आठ प्रकार के विवाहों में से एक । इस प्रकार का विवाह युवक और युवती के पारस्परिक प्रेमबंधन पर ही निर्भय है। युवक युवती को न तो अपने किसी सगे सम्बन्धी से अनुमति लेने की आवश्यकता पड़ती है और न कोई रीतिरस्म अदा करने की ज़रूरत ही होती है। -वेद ( पु० ) चार उपवेदों में से एक यह सामवेद का उपवेद है। - हस्तः, ( पु० ) - हस्तकः ( पु० ) अंडी या रेड़ी का रूख । गंधारः ) ( पु० ) [ बहुवचन ] १ देश विशेष >[ गन्धारः ) और उसके अधिवासी । २ राग विशेष | ३ सिन्दूर | गन्चाली ( २५० ) गरमः गन्धाली ) ( स्त्री० ) १ बरैया | २ सतत सुगन्ध | गर्मिन् (वि० ) जाने वाला। जाने की इच्छा रखने गंधाली देने वाला पदार्थ विशेष -गर्भः वाला । गमनेच्छु । ( पु० ) यात्री । ( पु० ) छोटी इलायची । गंधालु }( वि० ) सुवासित । सुगंधित । गन्धालु गंधिक २ (वि० ) १ सुगन्धियुक्त २ अल्प परि- गन्धिक । माय का गंधिकः ) गन्धिकः, ( पु० ) १ गन्धी | इत्रफरोश । २ गन्धक | गभक्ति (g० स्त्री०) १ प्रकाश की किरण । २ चन्त्रमा या सूर्य की किरण।--करः, पाणिः, -हस्तः, (५०) सूर्य । गमस्ति: ( पु० ) सूर्य । स्त्री अग्निपत्नी स्वाहा की उपाधि | गमस्तिमत् ( पु० ) सूर्य । ( न० ) पाताल के सप्त विभागों में से एक । गभीर ( वि० ) १ गहन | गहरा | २ गुप्त | रहस्यमय ४ दुर्बोध । ५ गाढ़ा । सघन घना। -ग्रामन् ( पु० न० ) परब्रह्म |-- वेध, (वि०) वेधकारी । गभीरिका ( स्त्री० ) बड़ा ढोल जिसमें बड़ा गंभीर शब्द हो । गभोलिकः ( पु० ) गोल छोटा तकिया । गम् (धा० परस्मै० ) [ गच्छतिगत ( निजन्य ) गमयति । आत्म० जिनांसते ] १ जाना | २ प्रस्थान करना । रवाना होना । ३ पहुँचना । समीपागमन । ४ गुज़रना। व्यतीत होना । ५ होना । गम ( वि० ) [ समास के अन्त में जोड़ा जाता है जैसे "हृदयङ्गम" "पुरोगमा" आदि और तय इसका अर्थ होता है ] जाते हुए। पहुँचते हुए । प्राप्त होते हुए। आगमः, (पु०) जाना श्राना । गमः ( पु० ) १ गमन २ प्रस्थान | ३ आक्रमणकारी का कूच ४ मार्ग रास्ता ५ अविषेक | ६ कम समझ पाना । ७ स्त्रीमैथुन । ८ चौपड़ का खेल | गमक (वि०) [ स्त्री — गमिका ]१ सूचक | सङ्केत- कारी। स्मारक । २ विश्वासोत्पादक। गमनम् ( न० ) १ गमन | चाल | गति | २ समीपा- गमन | ३ आक्रमणकारी का कूच १४ भोगना । : ५ प्राप्ति | उपलब्धि | ६ स्त्रीमैथुन । • गमनीय, गभ्य ( स० का० कृ० ) १ समीप जाने योग्य : २ बोधगम्य | सहज में समझने योग्य | ३ उपलचित। चन्तर्मुक्त। ध्वनित | तात्पर्य द्वारा गत ४ उपयुक्त व योग्य | मैथुन के योग्य ६ आरोग्य होने योग्य | गंभारिका, वस्पारिका ) ( स्त्री० ) एक वृक्ष का } गंभारी, गम्भारी गम्भीर, । गम्भीर शब्द वाला (जैसे ढोख ) | ३ गाढा । गंभीर, ) ( वि० ) १ ( हरेक अर्थ में ) गहरा । २ नाम । सघन । घना ( जैसे जंगल ) | ४ प्रगाढ अगाध | विचक्षण | २ संगीन | गुरुतर | वास्त- विक दृढ़ गुप्त रहस्यमय । ७ दुरभिगम्य । कठिनता से समझने योग्य - - वेदिन्, (वि० ) विकल । बेचैन । ) ( पु० ) १ कमल । २ नीबू चकोतरा । । बिजौरा । गंभीरः गम्भीरः गंभीरा – गम्भीरा । गंभीरिका ( ( स्त्री० ) एक नदी का गम्भीरिका ) नाम गयः ( पु० ) १ गया प्रदेश और उसके निवासी २ एक असुर का नाम गया ( स्त्री० ) बिहार प्रान्त के एक नगर का नाम, जहाँ सनातनधर्मी अत्यन्त प्राचीन काल से अपने पितरों का उद्धार करने को जाते हैं। गर ( वि० ) [ स्त्री० - गरी ] १ निगलने योग्य | -अधिका, ( स्त्री० ) लाक्षा कीट | लाख या लाल रंग जो. लाता या लाख से निकलता है।- झी, (खी ) मछली विशेष |–द ( वि० ) ज़हर देने वाला। चिप खिलाने वाला । -दं. ( न० ) शहर। विष - व्रतः, ( पु० ) मयूर । मोर | गरः ( प्र० ) १ पेय । शरबत | २ रोग बीमारी । ३ निगलना | लीलना। १ ज़हर विष | २ प्रतिषेधक विष जाशक वस्तु ज्ञहरमोहरा । ( न० ) तर करना। भिगोना । गरं ( पु० ) ) गरः (न० ) ) गरणं ( न० ) १ निगलने की क्रिया | २ छिड़काव । ३ ज़हर। विष। गरभः ( पु० ) १ बच्चादानी । गर्भाशय । गरल ( २८१ ) गर्भ गरल (न०) } १ विष | हलाहल । जहर २ सॉप का | गर्जः ( पु० ) १ हाथी की चिघार । २ बादला की गढ- गरलः (पु०) ) विष । घास का गट्ठा ।अरिः, (पु०) पना हरे रंग की मणि विशेष । गरित ( वि० ) विष मिला हुआ । विष दिया हुआ । गरिमन् ( पु० ) : भार । गुरुता | २ महत्व । विशे- पता | गौरव | ३ उत्तमता । ४ शिवजी की अष्ट- सिद्धियों में से एक जिसके अनुसार वे स्वेच्छापूर्वक अपने शरीर को जितना चाहे उतना बढ़ा या भारी बना सकते हैं। [ महत्व पूर्ण। गरिष्ट (वि० ) 2 से अधिक भारी । २ सर्वाधिक गरीयस् ( वि० ) अपेक्षा कृत भारी । अपेक्षाकृत महत्व पूर्ण । गरुडः (पु० ) १ पचिराज | २ गरुडाकार भवन | ३ गरुड़ के आकार का व्यूह । अग्रजः, ( पु० ) अरुण जो गरुड जी के बड़े भाई और सूर्य के सारथी है। श्रङ्कः, (पु० ) विष्णु का नाम । अङ्गितम्, अश्मन्, - ध्वजः, ( पु० ) विष्णु की उपाधि । -व्यूहः, (पु०) विशेष प्रकार से युद्ध के लिये सेना को खड़ा करना । गरुतू ( पु० ) १ पक्षी का पर । २ भोजन करना । निगलना। -योधिन्, (पु० ) लवा | बटेर । गरुलः (पु० ) पतिराज गरुड़ गर्गः (पु० ) १ मह्मा के पुत्रों में से एक पुत्र । सुनि विशेष | २ साँढ़ | ३ केचुआ । (बहुवचन०) गर्ग के वंशधर । गर्गगोत्री । --स्रोतसू, (न० ) एक तीर्थ का नाम । गर्गरः ( पु० ) १ भँवर | २ बाजा विशेष | ३ मछली विशेष | ४ मथानी । गर्गरी (स्त्री०) मथानी । गगरी । गर्गाट: (पु०) एक प्रकार की मछली । गर्ज (घा० परस्मै० ) [ गर्जति, गर्जयति गर्जयते, गर्जित ] १ गर्जना | गुर्राना । घुरघुराना | २ सिंहनाद करना। कड़कना । गर्जनं ( न० ) १ गर्ज । चिंघार | गड़गड़ाहट घुर- घुराइट २ रव । चीत्कार। शोरगुल । कोलाहल ३ रोष । क्रोध | ४ युद्ध | लड़ाई । ५ भर्त्सना । धिक्कार। फिटकार | गड़ाहट (बी०) गर्जि(go } बादलों की गरजन । गर्तः गर्जित् (वि०) गरजता हुआ। सिंहनाद करता हुआ। गर्जितम् (न०) मदमाता और चिंघारता हुआ हाथी । गर्दै (०), पोल | छेद | गुफा । (पु० ) १ कमर ( पु० ) ) या कूल्हा का भाग विशेष | २ रोग विशेष । ३ नगर्त देश का प्रान्त विशेष - आश्रयः, (पु० ) चूहे की तरह भूमि में बिख बना कर रहनेवाला जन्तु । गर्तिका ( स्त्री० ) जुलाई का कारखाना । गद् (धा० परस्मै० ) [ गर्दति, गर्दयति - गर्दयते] गरजना रव करना । गर्दर्भ ( न० ) सफेद कुमोदिनी । गर्दभः (पु० ) [ स्त्री० -गर्दी] १ गधा | २ गंध । बास ।अण्डः, -अण्डकः, ( पु० ) १ वृद्ध विशेष | २ वृक्ष | - आह्वयं, (न० ) सफेद कमल गदः, (पु० ) चर्मरोग विशेष । गर्धः ( पु० ) १ कामना । इच्छा | उत्सुकता | २ लालचीपन | लालच गर्थित } (वि०) लालची। लोभी । गर्धिन् (वि० ) [ स्त्री-गर्धिनी ] १ अभिलाषी । इच्छुक | लालची | २ उत्सुकता पूर्वक अनुसरण गर्भः ( पु० ) गर्भाशय । पेट | २ गर्भाशय की झिल्ली। गर्भाधान । ३ गर्भाधान का समय । ४ गर्भ का बच्चा | २ बच्चा या पक्षिशावक । ६ भीतर का भाग। मध्यभाग | अभ्यन्तरीण भाग । ७ आकाशोत्पन्न पदार्थ जैसे कोहासा । श्रोस । हिम म प्रसूतिकागृह र कोठे के भीतर की फोठरी १० छेद । ११ अग्नि । १२ भोजन । १३ पनस-कंटक । कटहर का किला | १४ नदी की भण्डारी 1 –अङ्कः, (पु० ) (गर्भेऽङ्क: भी होता है।) अभिनय के किसी दृश्य के अन्तर्गत कोई दृश्य । -ध्यवक्रान्ति, ( स्त्री० ) गर्भस्थित बालक के शरीर में जीव का पढ़ना। -अङ्गारम्, (न०) १ गर्भस्थान | बच्चेदानी | २ जनानखाना । सं० श० कौ०-३६ गर्भ अन्तःपुरः । प्रसूतिकागृह ४ मन्दिर में वह स्थान जहाँ मूर्ति स्थापित हो। गर्भमन्दिर । - आघानं, ( न० ) १ गर्भस्थापन |२ संस्कार विशेष ।-आशयः, ( पु० ) गर्भस्थान । गर्भ की मिल्ली 1-श्रालावः, ( पु० ) गर्भ का कच्ची अवस्था में गिर जाना। -- ईश्वरः ( पु० ) जन्म से धनी होना।- उत्पत्तिः, (स्त्री० ) गर्भपिण्ड का बनना । - उपघातः, ( पु० ) गर्भ का गिर पड़ना । कालः (पु० ) गर्भस्थापन का समय —कोशः, – कोषः, (पु०) गर्भाशय । -क्लेशः, ( पु० ) गर्भस्थ बालक के बाहिर निकलने के समय की पीड़ा जो गर्भधारिणी स्त्री को होती है। क्षयः, (पु०) गर्भ का नाश - गृहं, भवनं, वेश्मन् (न०) १ भवन का मुख्य कमरा । २ प्रसू- तिका गृह | ३ गर्भमन्दिर या यह कमरा जिसमें मूर्ति स्थापित हो । -ग्रहणं, (न०) गर्भस्थापना | गर्भ रह जाना । - घातिन्, (वि०) गर्भ गिराने चाला । — चलनं ( न० ) गर्भ का हिलना डुलना या स्थानच्युत होना । —च्युतिः, (स्त्री०) जन्म । उत्पत्ति | २ कच्चा गर्भ गिर पड़ना - दास, ( पु० ) – दासी, ( स्त्री० ) जन्म से गुलाम या जन्म से वासी।-द्रुह, ( वि० ) पेट गिराना । -- धरा, (स्त्री०) गर्भिणी ।-धारणम्, धारणा, (स्त्री०) गर्भ में सन्तान को रखना ।— ध्वंसः, ( पु० ) गर्भश्राव । – पाकिन, (५०) ६० दिन में पकने वाले चावल - पातः, (५०) गर्भश्राव । ~~पोषणम्,– भर्मन, (न०) गर्भस्थ बालक का पालन पोषण। -मण्डपः, ( पु० ) जच्चाघर । प्रसूतिका गृह /- मासः, (पु० ) गर्भस्थापन का महीना । —मोचनम्, (न०) उत्त्पत्ति । जन्म । -- याषा, (स्त्री०) १ गर्भिणी स्त्री | २ तटों को नाँघ कर बहनेवाली गङ्गा । —रूपः, - रूपकः, (५०) शिशु । बच्चा । ~~लक्षणम्, ( न० ) गर्भ धारण के चिन्ह । - लंभनम्, (न० ) संस्कार विशेष | -वसति, (स्त्री०) वासः, ( पु० ) गर्भाशय । - विच्युतिः, ( स्त्री० ) गर्भाधान के आरम्भ ही में गर्भपात। - वेदना, (स्त्री०) बालक उत्पन्न होने के समय का स्त्री को कष्ट ।- व्याकरणं, ( २८२ ) गह्य ( न० )गर्भपिण्ड की रचना । —शङ्क, ( पु० ) * गर्भस्थित मृतबालक को निकालने का और -सम्भवः,–सम्भूतिः, (स्त्री०) गर्भस्थापन । गर्भ रह जाना। - स्थ, (वि० ) १ गर्भ का | २ आभ्यान्तरिक । भीतरी । - स्रावः, ( पु० ) गर्भपात | गर्भकं (न० ) दो रात्रि, ( जिसके बीच में एक दिन हो ) की अवधि । गर्भक (पु०) पुष्पों का गुच्छा जो बालों में खोंसा जाता है। गर्भण्डः (पु०) गर्भवृद्धि के कारण पेट का बढ़ जाना। गर्भवती (स्त्री०) जिसके पेट में गर्भ हो । गर्भिणी (स्त्री०) गर्भवती स्त्री। - प्रवेक्षणं, (न० ) धातृपना । दाई का काम । --दौहदं. (न०) गर्भिणी स्त्री की इच्छाएँ या रुचि। - व्याकरणम्, - व्याकृतिः, ( स्त्री० ) गर्भवृद्धि का विज्ञान विशेष | आयुर्वेद का प्रसङ्ग विशेष | गर्भित (वि० ) गर्भवाली । जिसके पेट में गर्भं हो। गर्भेतृत (वि० ) १ गर्भ में बालक होने से तृप्त । २ भोजन एवं सन्तान की ओर से निश्चिन्त । ३ कामचोर | आलसी । गर्मुत (स्त्री०) १ एक प्रकार की घास | २ एक प्रकार का नरकुल | ३ सुवर्ण | सोना । गर्व ( धा० परस्मै० ) [ गर्घति, गर्वित ] गर्वीला, घमण्डी अथवा अभिमानी होना । गवः ( पु०) अभिमान । घमण्ड | ऐंठ। अकड़ । गर्वाट: ( पु० ) द्वारपाल । दरबान । चौकीदार । गई ( धा० आत्म० ) कभी कभी पर० भी। [ गर्हते, गर्हयते, गर्हित] १ दोष लगाना । दोषी ठहराना धिक्कारना। फटकारनां । २ अभिषाप लगाना। खेद प्रकट करना । गहू ( न० ) ) भर्त्सना | कलङ्क । धिकार । फिट- गर्हणा (स्त्री०) ) कार | गर्दा (स्त्री० ) गाली | भर्त्सना । गर्हा (वि० ) भर्त्सनीय । धिक्कारने येाग्य । निन्य । -वादिन, (वि०) निन्दक | अपशब्द कहने- घाला। चुयाना २ गिर पड़ना। गिरजाना। ३ अदृश्य हो जाना। गायब हो जाना जाना खाना निगलना । लीलना स्थानान्तरेत हा 4 गल. (पु०) १ गला २ गर्दन । २ साल वृक्ष कीराल ३ वाद्ययंत्र या बाजा विशेष ।-! · www गले का रोग विशेष । -उद्भवः, (पुँ०) घोड़े के श्रयाल । ओघ:, (पु०) गुमड़ा जो गले में हो -कंबलः, (पु०) बैल या गाय के गरदन की खाल जो लटकती रहती है । - गण्डः ( पु० ) घेघा । गले का रोग विशेष । ग्रहः, ( पु० ) - ग्रहणं ( न० ) १ गरदनियाना । गर्दन में हाथ लगा कर पकड़ना । २ रोग विशेष । ३ कृष्णपक्ष की ४र्थी, ७मी, ममी क्ष्मी, १३शी, अमावस्या । ४ ऐसा दिवस जिसमें अध्ययन आरम्भ हो, किन्तु अगले दिन ही अन ध्याय हो १५ अपने थाप बिसाई विपत्ति । ६ मथली की चटनी । चर्मन्, (न० ) गला । नरेटी । नली । नरखड़ा । --द्वारं, (न० ) सुख । -मेखला, ( स्त्री० ) गुअ । हार । कण्ठा |-- गल्भ् (धा० आत्म०) [ गल्भते, गल्भित ] साहसी होना। आत्म निर्भर होना। गल्भ (वि०) साहसी । हिम्मती । गल्या ( स्त्री० ) गलों का समूह | गल्लंः ( पु० ) गाल । विशेष कर मुख के दोनों ओर के पास का भाग। चातुरी, (स्त्री०) छोटा गोल तकिया जो गाल के नीचे रखा जाता है। 3 वार्त, ( चि० ) १ स्वस्थ्य । तन्दुरुस्त | २ मुफ्त | गल्लकः ( पु० ) १ पानपात्र । जाँम मदिरा पीने का वरतन । २ नीलमणि । पुखराज गल्लर्कः ( पु० ) शराब पीने का प्याला । ० गवर्कः ( ५० ) १ स्फटिक मणि । २ लाजवर्द । ३ - खोर। खुशामदी टट्टू -व्रतः, (पु० ) मयूर 1 मोर । - शुण्डिका, (खो०) कव्या /- शुण्डी, (स्त्री०) गरदन की गिल्टियों की सूजन। - स्तनी, (गलेस्तनी) (स्त्री०) बकरी । - हस्तः, ( पु० ) १ अर्धचन्द्र । गलहत्था । गरदुनिया | २ अर्धचन्द्र बाण 1- हस्तित, (वि० ) गले में हाथ डाल गिलास । मदिरा-पान-पात्र | 1- कर पकड़ना । - गलकः ( पु० ) १ गला गरदम २ एक प्रकार की मछली | गलनं (न०) चूना । टपकना रिसना । गलंतिका- गलन्तिका ) ( स्त्री० ) १ कलसिया गलंती-गलन्ती छोटा कलसा । छोटा घड़ा । २ छोटा घड़ा जिसकी पेदी में छेद करके शिव जी के ऊपर टाँग देते हैं, जिससे उस छेद से बराबर शिव जी पर जल टपका करे। गलिः (पु०) पुष्ट किन्तु कामचोर बैल । हुआ | ३ चुधा हुआ बहा हुआ ४ खोया हुआ पृथक किया हुआ | नज़र से छिपा हुआ | ५ सयुक्त ढीला टपक कर खाली हुआ ६ रीता | खाली । टपक ७ साफ किया हुआ सी। निर्बल 1-कुष्ठं, (न०) कोढ़ के रोग की वह दशा जब अँगुलियाँ गल गल कर गिर पढ़ती हैं। -दन्त, ( वि० ) दन्तहीन || - नयन, ( वि० ) ऊँधा | - - गलितिकः ( पु० ) नृत्य विशेष | गलेगंड: ) ( पु० ) एक पची विशेष जिसकी गर- गलेगण्डः दन में खाल की थैली सी लटका करती है। गल्ह ( धा० आत्म० ) [ गव्हते-गल्हित ] कलङ्क लगाना। इलज़ाम लगाना | भर्त्सना करना । गव [ किसी किसी समासान्त पद के पहिले लगाया जानेवाला "" का परियाय] - प्रक्षः, (पु०) रोशनदान | झरोखा । –अक्षित् (वि० ) खिड़- कियोंदार /- अनं. ( न० ) गौधों का कुंड | रौहर (गोऽयं, गोअयं, गवाञं) - प्रदनं, (न०) चरागाह । गोचरभूमि --अदनी, ( स्त्री० ) १ गोचरभूमि। २ नाँद जिसमें गायों को सानी खिलायी जाती है। अधिका, (स्त्री०) लाख । लाचा ।—अहं, (वि० ) गौ के मूल्य का । - अविकं, (न०) पौहे और भेड़ /- प्रशनः, (पु० ) ! १ चमार | मोची । २ जातिच्युत :- आवं, (न०) गवयः ( २८४ ) गाङ्गेय तरह ) घना होना । सधन होना। अप्रवेश्य या अप्रवेशनीय होना २ गम्भीरतापूर्वक प्रवेश करना या बैठना । साँड और घोड़े।—प्राकृति, (वि० ) गोमुखी | गह (घा० उभय०) [गहयति गहयते] १ ( वन की गौ की आकृति की। -आन्हिकं (न० ) नाप जिसके अनुसार रोज गौ को चारा दिया जाय । -इन्द्रः ( पु० ) १ गौ का मालिक | २ उत्तम साँड़ उद्धः, (पु०) उत्तम साँढ़ या गाय । गवयः ( पु० ) बैल की जाति विशेष । गवलः (पु० ) जङ्गली भैंसा । गवालूक: (पु०) ( देखा गवय ।) गविनी (स्त्री० ) गैौधों की हेड । रौहर । गव्य (दि० ) १ गौ या मवेशियों से युक्त। २ गौ से उत्पन्न यथा दूध, दही, मक्खन आदि । ३ मवेशियों के योग्य या उनके लिये उपयुक्त । गव्यं ( न० ) १ मवेशी। गौओं की हेड या रौहर । २ गोचरभूमि | ३ गौ का दूध | ४ पीला रङ्ग या रोगन | गहन (वि०) १ गहरा । सघन । गाड़ा। घना | २ अम वेश्य जिसमें कोई घुस या पैठ न सके। अगस्य | ३ष्टतापूर्वक समझने योग्य | दुरधिगम्य | दुर्वाध | रहस्यमय | ४ लिष्ट पीड़ा या दुःख देने वाला ५ गम्भीर असरल कठिन । प्रखर गव्यः (स्त्री०) १ गौओं की हेड़ या रौहर । २ माप विशेष, जो देर कोस या ४ मील के बरावर होता है। ३ रोदा। कमान की डोरी ४ पीला पदार्थ विशेष या पीला रङ्ग अथवा रोगन | गन्या (स्त्री० ) १ गायों की हेढ़ | २ दो कोस की दूरी का माप । ३ रोदा । धनुष की डोरी । ४ हरताल | गव्यूतम् ( न० ) ) १ माप विशेष जो एक कोस या गव्यतिः (स्त्री० ) ) दो मील के बराबर होता है। २ माप जो दो कोश या चार मील के बराबर होता है। गवेडुः (पु० ) ) गवेधुः ( पु० ) गवेधुका (स्त्री०) गवेरुकं (न०) गेरू | लाल खड़िया | मवेशियों के खाने योग्य घास या तृण विशेष । प्रचण्ड | गहनम् (न०) १ अगाध गर्त | गहराई | २ वन ऐसा सघन वन जिसमें कोई घुस न सके । ३ छिपने की जगह | ४ गुफा ५ पीढा । कष्ट । गहर (वि०) [ स्त्री० - गहरा, गहरी, ] अप्रवेश्य | गह्वरं (न० ) १ असलस्पर्शगर्त । २ गहराई । २ वन । जङ्गल | गुफा ४ धगम्य स्थान | छिपने का स्थान । ६ पहेली । ७ दम्भ | पाखंड |८ रोदन । क्रंदन । गहरः (पु०) लता मण्डप । निकुञ्ज । गहरी (स्त्री०) गुफा । कन्दरा । गा (स्त्री०) गीत | भजन । गांग ? (वि०) [ स्त्री०- गाङ्गी ] गङ्गा का या गाङ्ग ) गना से । गङ्गा से उत्पन्न या गङ्गा का। गांगं ) ( न०) १ आकाश गङ्गा का जल । [लोगों गांङ्ग ) को विश्वास है कि जब सूर्य के देखते देखते " जल की दृष्टि होती है तब वह आकाश गंगा का जल होता है २ सुवर्ण | सोना । गांगः गाङ्गः (पु०) १ भीष्म की उपाधि | २ कार्तिकेय की उपाधि | गांगटेयः, गाय: } (पु०) झींगा मछली। गांगायनि ) (वि०) १ भीष्म | २ कार्तिकेय । गाङ्गायनि गवेष (धा० आत्म० ) [गवेषते, गवेषयति, गवेषित] १ तलाश करना। खोजना | ढूंढ़ना | २ उद्योग करना । कड़ा परिश्रम करना। गवेष (वि०) ढूंढ़ने को। गवेषः ( पु० ) ढूँढ़ना । खोज तलाश । गवेषणम् } किसी वस्तु की खोज या तलाश । गवेषणा S (न०) सुवर्ण | सोना । गाङ्गेयं गवेषित (वि०) ढूंढा हुआ । तलाश किया हुआ | गांगेयः } (१०) १ भीष्म । २ कार्तिकेय । अनुसन्धान किया हुआ। गांगेय ) (वि०) [ स्त्री० — गाङ्गेयी ] गङ्गा का या गङ्गा में । गाङ्गेय गांगेयं गाजरं गजर (न०) गजर । गाजर जांकायः (पु०) लवा | बटेर | ढ (व० कृ०) १ हुवा हुआ । गोता लगाये हुए। स्नान किये हुए। गहरा घुसा हुआ रसघन वसा हुआ। ३ अत्यन्त भिधा या दवा हुधा सूदा हुआ। घना | २ । उप्र । बन्द | पका | कसा हुआ४ सघन गहरा अगस्य ६ मजबूत प्रचण्ड प्रगाढ़ अत्यन्त अतिशय निपट | अपरिमित /-मुष्टि ( वि० ) बद्धमुष्टि | कजूस मक्खीचूस मुष्टिः ( स्त्री० ) तलवार । 1 ( REk ) ढं ( अन्यथा० ) अतिशयता से गुस्ता से, दृढ़ता से। (वि० ) [ स्त्री०- गाणपती ] किसी दल के दलपति से सम्बन्ध रखने वाला | २ गणेश सम्बन्धी । गणपत्यं ( न० ) गणेश जी की पूजा या आरा- धमा | यूथपतित्व | सरदारी । [मानने वाला । गणपत्यः ( पु० ) गणेश को अपना आराध्य देव (म ) वेश्या या रंडियों का समूह | गणेशः ( पु० ) गणेश का पूजने वाला। डिवः, गाण्डिव: गांडीव: गाण्डीवः ( 5 ) गडियम, गारिडवम् ( म० ) 9 अर्जुन के धनुष का नाम । असल में यह धनुष सोम ने वरुण को और वरुण ने अग्नि को दिया था। खाण्डववन दाह के समय यह अर्जुन को अभि द्वारा प्राप्त हुआ था। २ धनुष /- धन्वन्, (पु०) अर्जुन की उपाधि | वि गाण्डीविन) अन्ध अनुयायी या पुरानी लकीर का फकीर बनने के कारण पैदा हुआ। गान्दिगी गात्रम् ( २० ) १ शरीर २ शरीर अवयव । ३ हाथो के धागे के पैर की जाँच - अनुलेपनी (को०) उपटना आवरणम् ( न० ) ढाल -- उत्सादनं, (न०) तेल उयटन लगा कर शरीर को साफ करना ।-कण (वि०) निर्मल या दुर्बल शरीर वाला 1--मार्जनी, ( स्त्री० ) तोलिया | -यष्ठिः (स्त्री०) जटा दुबला शरीर। --हं (ज०) रोंगटे । लोम-जता, (स्त्री०) दुहरा बदन धिरधिरी देह-सङ्कोचिन, (पु० ) खेखर उदविलाव के समान पशु विशेष - सम्लव:, (पु० ) एक छोटा पढ़ी। गोताखोर । गाथः (पु० ) गीत | भजन | गातु ( पु० ) १ भजन । गीत | २ गवैया | ३ गन्धर्व | ४ कोयल । २ भौरा । मातृ: ( पु० ) [ श्री गात्री ] गवैया | २ गन्धर्व | ( पु० ) अर्जुन। गाधिः १ ( पु० ) विश्वामित्र जी के पिता का नाम । गातागतिक ( वि० ) आने जाने के कारण उत्पन्न । | गाधिन् ज्ञः, नन्दनः, - पुत्रः, (पु०) विश्वा- गातानुगतिक ( वि० ) [ सी० -- गातानुगतिकी ] पुरं, (न० ) धाधुनिक कनोज मित्र /-नगर, या कान्यकुब्ज देश का नाम गाधेयः ( पु० ) विश्वामित्र का नाम । गानं ( न० ) गीत | भजन | गांत्री (स्त्री० ) बैलगाड़ी । गांदिनी ) (स्त्री०) १ गङ्गा । २ स्वफल्क की माता गान्दिगी और अकूर की पत्नी का नाम!- सुतः, ( पु० ) १ भीष्म । २ कार्तिकेय । ३ धकूर । Z गायक: } ( पु० ) १ गवैया | २ पुराणों या धर्म गाधिकः ) क्याओं को गाकर पढ़ने वाला। गाथा ( स्त्री० ) : चन्द २ वेद से भिन्न छन्द ३ गीत | शोक प्राकृत भाषा का चुन्द कारः ( पु० ) मान्य निर्माता । गायिका ( स्त्री० ) गीत भजन | गाधू (धा० आत्म० ) [ गाधते, गाधित] १ स्थगित होना । रुक जाना। ठहरजाना । बच रहना । २ रवाना होना। घुसना | बुड़की लगाना । गोता लगाना । ३ दूवना । खोजना | तलाश करना । ४ बटोर जोड़ कर एकत्र करना। डोरे से बाँधना या ना। सूचना | } गाध (वि० ) पार होने योग्य उथला । गम्य | गाघम् (न० ) उथली जगह वह जगह जहाँ जल कम हो और पैदल ही लोग पार हो आयँ । घाट २ स्थल १३ लाभेच्छा | लिप्सा | कामा- भिलाप १४ तली तल + ( २८६ ) गांघर्ष गांधर्व-गान्धर्व ( वि० ) [ स्त्री० -गान्धवीं ] गन्धर्व सम्बन्धी । गांधर्व । ( न०) गन्धवों की कला विशेष । जैसे सङ्गीतालय । 1 गांधर्वः ) ( पु० ) १ गवैया | गन्धर्व | देवगायक । गान्धर्वः २ आठ प्रकार के विवाहों में से एक १३ उपवेद जो सामवेद के अन्तर्गत माना गया है। ४ घोड़ा | अश्व | गांधर्वक:- गान्धर्वकः गांधाविकः-गान्धर्विकः } (पु० ) गवैया । गांधारः ) ( पु० ) १ सङ्गीत के सप्तस्वरों में गान्धारः 5 से तीसरा सरगम ( सा रे ग म प ) का तीसरा वर्ण । २ गेरु | ३ भारतवर्ष और फारस के बीच का देश आधुनिक कंधार । कंधार देश का शासक या अधिवासी । गांधारिः ) ( पुo ) दुर्योधन के मामा शकुनि को | गान्धारिः । उपाधि | गांधारी ? (स्त्री०) धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधनादि गान्धारी कौरवों की जननी । गायः ( पु० ) गान गीत | भजन । गायकः ( पु० ) गवैया । गाने वाला । गायत्रः २० गायत्रम् ( न० ) ) २४ अक्षर होते हैं। २ एक परम .१ वैदिक छन्द विशेष जिसमें } पवित्र एवं ब्राह्मणों द्वारा उपास्य वैदिक मंत्र, जिसकी उपासना किये बिना ब्राह्मण में ब्राह्म- णव ही नहीं आता। गाजनम् गायत्री (स्त्री०) ऋचा या गान। गायनः (पु०) [स्त्री० -गायनी] १ गवैया | २ श्राजी- विका के लिये गानविद्या का अभ्यास करना । गायत्रिन ( वि० ) [ स्त्री० - गायत्रिणी ] सामवेद के मंत्रों को गाने वाला 1. गारुड ( वि० ) [ स्त्री० — गारुडी ] १ गरुड़ के आकार का । २ गरुद सम्बन्धी । गरुडोत्पन्न । गारुड: ( पु० ) १ पन्ना | २ सर्पों को वशीभूत ( न० ) मंत्र से अभिमंत्रित । ४ सोना । सुवर्ण । गारुडिकः ( पु० ) ऐन्द्रजालिक । जादूगर ज़हर- मोहरा बेचने वाला विषवैद्य | गारुमत् (वि० ) [ स्त्री० -गारुमती ] १ गरुड़ के आकार का | २ गरुड़ के मंत्र से अभिमंत्रित (अव)। गान्धारयः } (पु० ) दुर्योधन की उपाधि > गांधिकः ) ( पु० ) १ गंधी | चतर फुलेल बेचने गान्धिकः | वाला | २ लेखक | मुहरिर । क्लार्क । गांधिकम् .} (न०) अतर फुलेल आदि सुगन्ध द्रव्य | गान्धिकम् गामिन् (वि० ) [ समास के अन्त में आने वाला ] १ जाने वाला। घूमने वाला। २ सवार होने गर्मियम् } ( न० ) कई एक गर्भवती स्त्रियाँ । ३ सम्बन्ध गांभीर्यम् । ( न० ) गहराई। गंभीरता । गाम्भीयम्. गार्हपतं ( न० ) गृहस्थ का पद और उसका गौरव । गाईपत्यः (पु०) १ अग्निहोत्र का अग्नि । तीन प्रकार के अग्नियों में से एक १२ वह स्थान जहाँ यह पवित्र थग्नि रखा जाय । गारुमते ( न० ) पन्ना | गार्दभ (वि० ) [ स्त्री० - गार्दभी ] राधे का या गधे से उत्पन्न । गार्थ म् (न० ) लालच | लोभ । गार्ध ( वि० ) [ स्त्री० - गार्थी ] गीध से उत्पन्न । गार्धः ( पु० ) १ लोभ लालच २ तीर | बाण -पक्षः, - वासस्. (पु०) गीध के परों से युक्त गर्भाशय तीर । गार्भ (वि०) [स्त्री० गार्भी ] गार्मिक (वि० ) [स्सी० - गार्भिकी ] [ सम्बन्धी | भ्रूण सम्बन्धी अन्तसत्वावस्था सम्बन्धी । गार्हपत्यं ( न० ) गृहस्थ का पद और गौरव । गाईमेध (वि० ) [ स्त्री०-गार्हमेघी ] गृहस्थ के योग्य या गृहस्थ के उपयुक्त गाईमेधः (पु० ) गृहस्थ के निस्य अनुष्ठेय पञ्चयज्ञ | गालनम् ( न० ) १ ( किसी पनीली वस्तु को ) छानना । २ पिघलाना। गोलव: ( २८७ ) गालवः ( पु० ) १ लोध वृच । २ आबनूस विशेष | ३ विश्वामित्र के एक शिष्य का नाम । ४ एक ऋषि का नाम । गालिः ( स्त्री० ) गाली । अपशब्द | कुवाच्य | गालित (वि० ) १ छाना हुआ । २ चुआया हुआ । ( अ की तरह ) खींचा हुआ | ३ पिघलाया हुआ। गालोडधं ( न० ) कमलगट्ठा या कमल का बीज । गावलागणिः ( स्त्री० ) सञ्जय की उपाधि | गवल्गण का पुत्र । गाहू ( धा० आत्म० ) [ गाहते, गाढ या माहित ] १ गोता लगाना डूबना । डुबकी लगाना । स्नान करना | २ घुसना । पैठना। घूमना फिरना। ३ गड़बड़ करना चलाना उथल पुथल करना । भथना हिलाना डुलाना। ४ मग्न हो जाना। लीन होना। तन्मय होना २ अपने को छिपाना । ६ नष्ट करना । गाहः (पु०) १ डुबकी । गोता| स्नान | २ गहराई । अभ्यन्तरीय अन्तर्देश । [ स्नान | गाहनं ( न० ) गोता या डुबकी लगाने की क्रिया । गाहित (वि० ) १ स्नान किया हुआ । डुबकी लगाये हुए । २ घुसा हुआ। प्रवेशित | गिंदुकः ) १ ( पु० ) १ खेलने की गेंद । २ गेंदुक गिन्दुक: S नामक वृक्ष विशेष | . गिरि कदम्ब वृक्ष की जाति विशेष |– कन्दरः, (पु०) गुफा 1- कर्णिकः, (स्वी०) पृथिवीकाणः ( पु० ) काना । – काननं, (न० ) पहाड़ की राई पहाड़ी छोटा वन । कूटं, (न० ) पर्वतशिखर । –गङ्गा, ( स्त्री० ) नदी विशेष | -गुडः, (पु०) गेंद | गोला-गुहा, (स्त्री०) पहाड़ी गुफा या कंदरा। चरः, ( पु० ) चोर | -ज, (वि० ) पहाड़ से उत्पन्न । -जम्, (न०) १ अबरक। २ गेरू । ३ लोवान | ४ राल । नफ़ता। ५ लोहा । —जा, ( स्त्री० ) १ पार्वती देवी। २ पार्वती कदली। पहाड़ी केला | ३ मल्लिका लता । ४ गङ्गा जी । -जातनयः, -जानन्दनः, - जासुतः, (पु०) १ कार्तिकेय २ गणेश जी । - जापतिः, ( पु० ) शिव जी । - जामलं, (न० ) अवरक | भोडर । - जालं, (न०) पहाड़ की पंक्ति या सिलसिला। -ज्वरः, ( पु० ) इन्द्र का वज्र | दुर्गे, ( न० ) पहाड़ी किला 1 – द्वारं, ( न० ) घाटी । - धातुः, ( पु० ) गेरू -ध्वजं, (न० ) इन्द्र का वज्र - नगरं, ( न० ) दक्षिणपथ के एक नगर का नाम । - णदी, ( स्त्री० ) ( नदी ) पहाड़ी चश्मा । –णद्ध, ( नद्ध ) ( वि० ) पहाड़ों से गिरा हुआ |–नन्दिनी, ( स्त्री० ) १ पार्वती । २ गङ्गा | ३ कोई भी ( पहाड़ी ) नदी | यथा – “कलिमदगिरिमन्दिनीतटसुरमा खम्बिनी।” गिर ( स्त्री० ) १ वाणी शब्द भाषा स्तव | संसार । गीत भजन ३ विद्या की अधिष्ठात्री देवी श्रीसरस्वती जी । - पतिः, ( पु० ) [ गोम्पतिः, गोष्पतिः, और गोर्पतिः ] १ बृहस्पति अर्थात् देवाचार्यं । २ विद्वान् । पण्डित | - रथः, [गीरथः, ] बृहस्पति का नाम /- वाणः, -बाणः, (पु०) [गीर्वाण:] देवता । गिरा ( स्त्री० ) वाणी । भाषण । भाषा | आवाज । गिरि (वि० ) प्रतिष्ठित । सम्मानित | माननीय -इन्द्रः, (पु० ) १ ऊँचा पहाड़ शिव जी । ३ हिमालय पर्वत । ईशः, (पु० ) १ हिमालय पर्वत । २ शिव जी | - कच्छपः, ( पु० ) पहाड़ी कछुआ। -कराटक, (पु० ) इन्द्र का वज्र -कदम्बः, (पुं० ) कंदकः ( पुणे ) भामिनीविलास | -णितस्त्रः, ( नितम्बः ) ( पु० ) पहाड़ का ढाल 1- पोलुः, ( पु० ) फलदार वृक्ष विशेष I-पुष्पकं, (न० ) राज 1-पृष्ठः, ( पु० ) पहाड़ की चोटी 1- प्रपातः, ( पु० ) पहाड़ का ढाल । —प्रस्थः, ( पु० ) पहाड़ की अधित्यका । —भिद्, ( ) इन्द्र । —भू, (वि०) पहाड़ से उत्पन्न । -भूः, ( स्त्री० ) १ श्री गङ्गा । २ पार्वती 1- मल्लिका, ( श्री० ) कुटजवृक्ष | -मानः, ( पु० ) विशाल और अतिबलिष्ठ हाथी ।मृद्मृद्भवम् (न० ) भैरूं राजू, ( पु० ) १ ऊँचा पर्वत | २ हिमालय | --राजः, ( पु० ) हिमालय 1- ब्रजम् (न०) गिरि ( मगध के एक नगर का नाम शालः, ( 50 ) पक्षी विशेष/-शृङ्गः, (पु० ) गणेश जी की उपाधि । --शृङ्गम् (न० ) पर्वत शिखर -- बढ़, (सद् ) ( पु० ) शिव । -सानु, (न० ) | अधित्यका । सारः, ( १० ) १ बोहा | २ | जस्ता ३ मलयपर्वत की उपाधि -हुतः, (१०) मैनाक पर्वत /सुता (स्त्री०) पार्वती । -स्रवा (स्त्री० ) पहाड़ी जलप्रवाह । पहाड़ी चश्मा जो बढ़े वेग से बड़े गिरिः (पु०) : पहाड़ | पर्वस। टीला | २ बड़ी भारी चदान | ३ नेत्र रोग विशेष। ४ दस प्रकार के गुंसाइयों में से एक श्रेणी के गुसाइयों की उपाधि | आठ की संख्या ६ बालकों के खेजने की गेंद। (स्त्री० ) १ निगलना । लीलना । २ चूहा। सूसा। गिरिक: गिरियकः ( (पु०) खेलने की गेंद गिरियाकः गिरिका ( स्त्री० ) चुहिया छोटा चूहा। गिरिशः ( पु० ) शिवजी की उपाधि । गिजू ( धा० परस्मै० ) [ गिलति, गिलित ] निगलना। जीलना | गिलः (पु० ) नीबू का वृक्ष गिलगिलः ) ( पु०) मगर । नक। घड़ियाल । समुद्री गिलग्राहः ] जन्तु विशेष | } निगलना । खा डालना। गिलनम् ( न० ) गिलिः ( 50 ) गिलयुः ( पु० ) गले की कड़ी गिल्टी। गिलित } ( वि० ) खाया हुआ । निगला हुआ । गि:-षः (पु०) १ गवैया । सामवेद गाने वाला १ ब्राह्मण । १ गीत (व० कृ०) १ गाया हुआ |२ वर्णित | कथित अयनं, ( न० ) बाजा चीन । बाँसुरी। शः (वि० ) गानविधा में निपुण - प्रियः, (पु० ) शिव जी -~~-मोदिन, (पु० ) किवंर । -शास्त्रं, (न० ) सङ्गीत विधि | शीतकं ( न० ) गान | गुजिका शीता ( खी० ) कतिपय संस्कृत के पद्यमय धार्मिक अर्थों के नाम जैसे रामगीता भगवद्गीता | -शिवगीता आदि । [नाम | गीतिः ( स्त्री० ) १ भजन | गीत २ एक छन्द का गीतिका ( स्त्री० ) १ दोन भजन | २ गान | गीतिन् (वि० ) [ स्त्री० -गीतिनी] जो गाने की ध्वनि में पड़ता है। ऐसा पढ़ने वाला अधम माना गया है। यथा गीति शीत्री शिरःपी तथा लिखितपादकः । शिक्षा | गीर्ण ( वि० ) ३ निगला हुआ। खाया हुआ | २ प्रशंसित । २८८ ) गीणि: (स्त्री० ) १ प्रशंसा । २ कीर्ति।३ भक्षण | निगलना ? विष्टाशून्य गुग्गुलः ) ( पु० ) एक प्रकार का सुगन्ध पदार्थ गुग्गुलुः गूगुल | परस्मै० ) [ गुवति, गूत ] होना । २ कच्चा बच्चा निकालना। गु ( घा, गुच्छ (पु०) गुच्छा) २ फूलों का गुच्छा | गुलदस्ता । . ३ मयूरपंख । ४ मुक्ताहार । ५३२ या ७० लरों की मोतियों की माला। -अर्धः, (पु० ) २४ खरों की मोतियों की माला ।-अर्ध: ( पु० ) -अम्. ( न० ) आधागुच्छा |~-कणिशः, ( पु०) धनविशेष | - पत्रः, (पु० ) खजूर का पेड़ | तान का पेड़-फलः, ( यु०) १ अंगूर | २ केले का पेड़ | गुरुक ( पु० ) गुच्छा गुज् (धा० परस्मै०) [गोजति] प्रायः गुज भी होता है। [गुंजति, गुंजित, गुजित) गूँजना | गुआर करना । गुनगुनाना । गुजः (पु०) गुनगुनाहट | भिनभिनाइट २ पुष्प- गुच्छ | गुलदस्ता कृतः, (पु०) भौंरा । (न०) धीरे धीरे बोलना । गुनगुनाना | गुंजनं गुञ्जनम् गुंजा ) ( स्त्री० ) 1 घुंघeी का झाड़ / २ धीमी गुजा) आवाज़ | गुनगुनाइट | ४ ढोल | २ मदिरा की दूकान.३ ६ ध्यान । गुंजिका गुखिका (स्त्री०) धुंबची का दाना । गुजित गुंजित ( न० ) गुंजार गुजितं. ( २५६ ) गुनगुनाइट 1 गुटिका (सी०) १ गोली । २ गोल स्फटिक । स्फटिक का गुरिया गोला या गेंद ३ रेशम का काया। ४ मोती। अञ्जनं, (न० ) सुर्मा विशेष | गुटी (सी०) देखो गुटिका । ● गुड़: (पु०) १ गुड़ | शीरा राय | चोटा | २ गोला । ३ गेंद | ४ खेलने की गेंद | २ कौर | कवर | ६ हाथी का कवच या जिरहबन्तर । उदकं, (न०) शीरे का शरबत - उद्भवा, (स्त्री०) चीनी शकर प्रोदनम् (न०) मीठा भात |-तृणम्, (३०) --दारुः, (पु०) दारु, ( न० ) गन्ना | ऊख | पिष्ठ (न०) मिठाई विशेष । फलः (पु० ) पीलू का पेड़-शर्करा, (स्त्री०) चीनी--- शृङ्गम् (न०) गुम्मद | कलश। -- -हरीतकी, (स्रो०) शीरे में पड़ी हुई हरे अर्थात् हरे का मुरब्बा | गुडकः ( पु० ) १ गैंद | २ कौर । गुस्सा | ३ शीरा से खीचा हुआ एक प्रकार का अर्क गुड़लं (न०) मदिरा | शराब वह शराब जो शीरे से खींची गयी हो । गुडा (स्त्री०) १ कपास का पौधा | २ गोली । गुडाका (स्त्री) १ सुस्ती । २ निद्रा | गुडाकेशः (पु०) १ नींद को वश में करने वाला | २ अर्जुन | ३ शिव । 1 गुडगुडायनम् (न०) खखारना । गुडेरः (१०) १ गैंद गोखा २ कौर। गस्ला। गुण ( घ० उभय० ) [ गुणयति, गुणयते, गुणित ] १ गुणा करना । २ सलाह देना ३ धामन्त्रण देना । न्योतना । गुणित बार यथा दस बार । १४ गौण | १५ आधिक्य | विपुलता । आतिशय्य १६ विशेषण छ के स्थान में ए, ओ, आ, और थल का आदेश। १७ काव्यालङ्कार शास्त्र में मम्मद ने गुण की परिभाषा यह दी है:- 1 गुणः (50) सिफत (अच्छी या बुरी) १२ भलाई। सुकृति | उत्तमता श्रेष्ठता नामवरी ख्याति । ३ उपयोग | लाभ अच्छाई ४ प्रभाव परि- याम | शुभ परिणाम | ५ डोरा । डोरी | रस्ता । ६ धनुष की प्रत्यक्षा ७ बाजे की डोरी ८ नस ६ लक्षण |10 रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण स्वभाव | 19 सूत की बत्ती | तन्तु | १२ इन्द्रिय जन्य विषय (फर्म यथा रूप, रस, स्पर्श और शब्द ) १३ पुनरावृत्ति । गुना । यथा-दसगुना 1 ये रसस्यानो धर्माः शौर्यादय एवात्मनः । उस्ते रखास्थितयो गुणाः ॥ १८ नीति में राजा के लिए ६ गुण बतलाये हैं। यथा-सन्धि, विग्रह, यान, स्थान, आसन, संश्रय और है या द्वैधीभाव । ३६ तीन की संख्या । २० वृतांश की प्रान्तय संयोजक सरल रेखा । २१ ज्ञानेन्द्रिय । २२ पाचक | २३ भीम की उपाधि | २४ त्याग । विराग-कारः, (पु० ) १ कुशल रसोइया जो हर प्रकार के व्यअन बना सके । २ भीम की उपाधि । - ग्रामः, ( पु० ) सद्गुणों का समूह -जयं, त्रियतम्, (न०) सत्य, रजस्, तमस 1-जयनिका, जयनी, ( स्त्री० ) सम्बू | सीमा – वृक्षः, वृक्षक, ( पु० ) मस्तूल या यह खंभा जिससे जहाज या नाव बाँध दी जाती है। --शब्दः, (१०) विशेषण | - सागरः, ( पु० ) अच्छे गुणों का समुद्र अत्यन्त गुणवान् पुरुष । २ ब्रह्म परमात्मा है गुणक: ( पु० ) हिसाब जोड़ने वाला था लगाने बाला| २ वह राशि जिसके साथ गुहा जाता है। गुणनं (न०) १ गुणा । २ गिनती | ३ किसी के सद्- गुणों का बखान । गुणनिका ( श्री० ) १ अध्ययन | पुनरावृति / २ नृत्य या नृत्यकला । ३ ( नाटक की ) प्रस्तावना | ४ माला हार | ५ शून्य सिफर गुग्णनीय (बि०) १ गुणा करने योग्य | २ गिनने योग्य ३ परामर्श देने योग्य । गुणनीय: (१०) अध्ययन । अभ्यास । गुणवत् (वि० ) गुणवान् । श्रेष्ठ | उत्तम । नेफ 1 सुकृत। गुणिका (स्त्री०) गुमदी। गिल्डी गुणित ( ० ० ) : गुप्या किया हुआ ॥२ लगाया हुआ। एकत्र किया हुआ मा हुआ। ३ गिना हुआ। स०० ३७ गुणिन खिन् (वि० ) १ गुणवान् | सराहनीय उत्कृष्ट १२ नेक | शुभ | ३ किसी के गुणों से परिचित | ४ गुणों से युक्त | ५ मुख्य । पुणीभूत ( वि० ) महत्वपूर्ण अर्थं से बञ्चित | २ गौण गुणों से युक्त । [ मध्यम काव्य । भूत व्ययम् ( न० ) अलकार में कहा हुआ ठ) (धा० उभय०)[गुण्ठयति, गुण्ठयते, गुण्ठित] गुराठे ) घेरना। चारों ओर से छेक लेना। लपेटना । ( २१० ) ढकना। गुंठनम् ) ( न०) १ ढकना | छिपाना । २ (शरीर में ) गुण्ठनम् ) मलना जैसे शरीर में भस्म मलना । गुंठित ) (वि०) १ घिरा हुआ। ढका हुआ। २ पिसा गुण्ठित ) हुआ । कुटा हुआ । चूर्ण किया हुआ । गुड्डू } { धा० परस्मै॰) [ गुण्डयति गुण्डित, करना । गुंडक: ) ( पु० ) १ रज | चूर्ण | २ तैलभाण्ड ३ गुण्डकः ) धीमा मधुर स्वर । गुंडिक गुण्डिकः ।

} ( पु० ) आटा | भोजन | चूर्णं

गुंडित ) (वि०) १ पिसा हुआ | चूरा किया हुआ | गुण्डित २ धूलभूसरित गुण्य (वि०) १ गुणी । गुणवान् | २ बखानने योग्य ३ गुदं ( न० ) गुदा । मलत्याग स्थान 1- अङ्कुरः, ( पु० ) बवासीर । -आवर्तः, (पु० ) काष्ठ- बद्धता -उद्भवः, (पु० ) बवासीर । -ओष्टः, ( पु० ) गुदा का छेद |--कीलः, - कीलकः, ( पु० ) बवासीर । -प्रहः, (पु०) कबजियत । कोष्ठबद्धता ।-पाक, (पु०) गुदा की सूजन वर्मन, ( न० ) गुदा । मलद्वार ।—स्तम्भः (पु०) कोटबद्धता | गुम्फनी गुदला: } (S०) ढोल विशेष का शब्द। गुवालः–मुन्द्राल: } (पु०) चातक पक्षी। गुप् (धा० परस्मै०) (गोपायति, गोपायित या गुप्त १ बचाना | रक्षा करना | शत्रु के आक्रमण से बचना । पहरा देना । २ छिपना | ३ घृणा करना। भर्त्सना करना। तिरस्कार करना। गुपिलः (पु०) : राजा | त्राता | परित्राण करता | गुप्त (वि०) [व० कृ०] : रक्षित । सुरक्षित रखवाली किया हुआ | २ छिपा हुआ । गोप्य | छिपाने लायक | ३ अदृश्य | आखों के ओझल | ४ जुड़ा हुआ या जोड़ा हुआ।-कथा ( स्त्री० ) गुप्त सूचना ऐसी सूचना जो प्रकट करने योग्य नहीं है। -गतिः, (स्त्री०) जासूस भेदिया। चरः, (पु०) १ बलराम । २ जासूस । - दानं, (न०) अमफट दानवेशः, (पु०) बनावटी वेश । गुधू (धा० परस्मै० ) [ गुष्यति, गुधित ] लपेटना । ढकना । कपड़े पहनना। [गुभाति] क्रोध करना | [ गोधते ] खेलना । गुप्तं (अन्यय०) चुपके चुपके गुप्तः (पु०) वैश्य की उपाधि गुप्तकः ( पु० ) रखक प्रशंसनीय | श्लान्य | ४ गुणा करने योग्य | गुत्सकः ( पु० ) १ गट्ठा | गट्ठर | चंढल | गुच्छा | २ | गुतिः (स्त्री०) १ रक्षण | संरक्षण | २ छिपाव | दुराव | ३ ढकना | ४ गुफा बिल २ जमीन में गढ़ा गुलदस्ता । ३ चौरी । जंबर | ४ अध्याय | सर्ग | गुड़ (धा० आर०) [ गोदते, गुदित ] खेलना क्रीड़ा करना। गुप्ता (स्त्री०) काव्य की मुख्य नायिका । परकीया नायिका | । खोदना । ६ रक्षा का उपाय किलाबन्दी | धुस । परकोटा। गड़की भीत। ७ बन्दीगृह | जेलखाना। ८ नाव का निचला तला| ६ रोकथाम | 2 ( धा० परस्मै० ) [ गुफति, गुंफति, गुफ, गुम्फ लिखना | रचना | गुफित गुंफित, गुम्फित } (व० कृ० ) गुथा हुआ। बाँधा हुआ। बुना हुआ । गुंफा (ज) यवन करख। ३ पहुँची। करभूषण पु०) १ बन्धन | । विशेष । ४ गलमुच्छा । मूँछ । गुंफना } (स्त्री० ) १ गूंथना | २ क्रमबद्ध करना गुम्फना ) रचना | यथारीत्या शब्दयोजना करना अच्छा निबन्ध | शुरू गुरू (धा० श्रा०) [गुरते, गूर्त, गूर्ण] प्रयत्न करना । चेष्टा करना | [ सूर्ण ] । १ चोटिल करना । मार डालना । २ जाना । ( २६१ ) गुरणम् (न०) प्रयत्न | सतत चेष्टा । गुरु (वि०) ) [ तुलनात्मक -गरीयस, गरिष्ठ ] : गुरुवी (वि०) । भारी बोझिल | २ महान | ३ दीर्घ | ४ महत्वपूर्ण । ५ लिष्ट (अस) । ६ प्रचण्ड | ७ सम्मानित | म गरिष्ठ जो शीघ्र न पचे । १ उत्तम । सर्वोत्कृष्ट १० प्यारा प्रेमपात्र ११ अहकारी। घमण्डी ।-अर्थः, (पु०) अध्यापन का शुल्क | पढ़ाई की फीस । - उत्तमः, (पु०) परमात्मा ।-कारः, (पु०) पूजन सम्मान - क्रमः, (५०) परम्परागत प्राप्त शिक्षा। -जनः (पु०) बढ़ा बूढ़ा कोई भी व्यक्ति । - तल्पः (पु०) गुरु की शय्या । —तल्पगः, - तस्पिन, (पु०) १ गुरुपत्नी के साथ व्यभिचार करनेवाला । पाँच गुल्मी स्त्री०) खीमा । तंबू | वाक: } (पु०) सुपाड़ी का पेड़ । गूवाकः महापातकियों में से एक । २ सौतेली माता के गुहू (धा० उभय०) [ गृहति, गूहते, गूढ़ ] संवरण साथ मैथुन करने वाला ।-~-दक्षिणा, (स्त्री०) वह शुल्क जो गुरु को दिया जाय।-- दैवतः, (पु० ) पुष्पनपत्र / - पाक, (वि० ) गरिष्ठ ( पदार्थ ) जो कठिनता से पचे नं, (न०) १ पुष्प गुहः (पु०) १ कार्तिकेय । २ घोड़ा | ३ शृङ्गवेरपुर के करना छिपाना ढकना । निषादों का राजा और श्रीरामचन्द्र जी का मित्र | ४ विष्णु । नक्षत्र । २ कमान । धनुष | -मतः, (पु०) गुहा (स्त्री०) १ गुफा | २ छिपाव | दुराव । ३ गढ़ा। ढोलक या मृदङ्ग । -रत्नं, (न०) पुखराज | -वर्तिन, – वासिन्, (पु०) ब्रह्मचारी। विद्यार्थी, जो गुरु के पास या घर में रहै । – वृत्तिः, (स्त्री०) ब्रह्मचारी का अपने गुरु के प्रति व्यवहार । बिल ४ हृदय ।-आहित, (वि०) हृदयस्थित। - वरं, (न०) ब्राह्मण । —मुख, (वि०) खुला हुआ मुख वाला। - शयः, (पु०) १ चूहा । २ शेर। चीता। ३ परमात्मा | ४ अज्ञान । गुहिनं (न०) वन | जंगल गुहेरः (पु०) १ अभिभावक | सरंक्षक |२ लुहार। गुहा ( स० का० कृ० ) १ छिपाने के योग्य गुप्त । २ एकान्त ३ रहस्य |–दीपकः, (पु० ) जुगुन् । - निष्यन्दः, ( पु० ) पेशाब | मूत्र । -भाषितं, ( न० ) १ रहस्यमयी वार्ता या वार्तालाप | २ रहस्य । - मयः, (पु० ) कार्तिकेय । गुहा (न०) रहस्य | गुप्तत्व | पुरुः (पु०) १ पिता | २ बुढ़ा| ३ शिक्षक | अभ्या- पक | ४ मन्न्रदाता | दीचा देने वाला ५ प्रभु । अध्यक्ष शासक ६ देवाचार्य । बृहस्पति । ७ बृहस्पति ग्रह ८ किसी नये सिद्धान्त का प्रचा- रक |३ पुष्प नक्षत्र १० द्रोणाचार्य ११ मीमांसकों में सिद्धान्त विशेष के प्रवर्तक प्रभाकर गुरुक (वि०) [स्त्री:-गुरुकी] १ कुछ थोड़ा हल्का | २ छन्दोशास्त्र में गुरु वर्ण । ( पु०) गुजरात प्रान्त | गुर्विणी । गुर्वी ( स्त्री० ) गर्भवती स्त्री । गुह्यकः गुलः (पु० ) शीरा । रात । चोटा | गुलच्छ } ( पु० ) दस्ता 1 गुच्छा । । गुल्फः (पु०) गहा। गिटुश्रा | पावों की गांठे। गुल्मं (न० ) ) १ झाड़ी | वृक्षों का झुरमुट । वन । गुल्मः (पु०) ) जङ्गल । २ प्रधान पुरुषों से युक्त रक्षकदल, जिसमें 8 हाथी, ६ रय, २७ घुड़सवार और ४५ पैदल होते हैं । ३ दुर्ग | किला | ९ लोहा । १ नीहावृद्धि | ६ देहाती पुलिस की चौकी । ७ घाट गुल्ममूलम् (न०) अदरक | आदी । गुल्मलता (स्त्री० ) सोमवल्ली । गुल्मिन् (वि०) [ स्त्री०-गुल्मिनी] १ झाड़ बाँध कर उगने वाला । २ प्लीहावृद्धि का रोगी । गुह्यः (५०) १ पाखण्ड दम्भ | २ कछुवा । ..” गुह्यकः ( पु०) देवयोनि विशेष । यह भी कुबेर के किन्नरों की तरह प्रजा हैं और धनागार की रक्षा का काम इनके सुपुर्द है। गू गृहं ( (स्त्री०) १ कूडा करकट २ विष्ठा । मल राध्यं ( न० ) } अभिलाषा | लालच । लोभ । गूढ (व० कृ०) १ गुप्त | छिपा हुआ । २ ढका हुआ । गृध्या ( ० ) ३ गहन | ४ एकान्त । अङ्ग (पु० ) कड़वा | | गृभ (वि० ) खालची | लोभी ! -कूटः, ( पु० ) ) --अंधः, (पु०) सौंप-आत्मन् (गृहमन्) एक पर्वत का नाम जो राजगृह के समीप है।--. परमात्मा उत्पन्नः, -जः. ( पु० ) धर्माशास्त्रों के मतानुसार १२ प्रकार के पुत्रों में से एक। अज्ञातनामा पिता का पुत्र, जिसकी उत्पत्ति गुपचुप हुई हो। 'गृहे मात्र वरपनो गुडस्तु सुतः शत्रुतः । याज्ञवल्क्य | ~नीड़ः, (पु०) खअन पक्षीपथा (पु०) 1 गुप्तमार्ग २ पगडंडी | ३ मन | समझ । प्रतिभा | --पाद-पादः, (पु०) सर्प 1 साँप 1-पुरुषः, (पु०) भेदिया। जासूस पुष्पकः, (पु०) वकुल वृक्ष |~~-मार्गः, (पु० ) सुरङ्गी रास्ता - मैथुनः, ( पु० ) काक | कौआ |-वर्चस्, (पु०) मैदक-साक्षिन्, (न० ) प्रपनी गवाह । ऐसा गवहा जो छिप कर अन्य गवाहों की गवाही सुन ले और तदनुसार स्वयं गवाही दे । गूथं ( न० ) विष्ठा | मल गूथः (go ) ) गुपणा (स्त्री० ) आँखों की वह आकृति जो मोर के पंखों में होती है। गृ ( धा०] परस्मै० ) [ गरति] छिड़कना तर करना। ( नम करना। गूंज } ( घा० परस्मै० ) [ गर्जति, या शृंजति ] गृज्जू ) नाद करना। गर्जना | बुरघुराना | गुरौना। गुंजन: सृञ्जनः }(पु०) १ गाजर । २ शलगम । ३ गाँवा। ३ गुंजनम् २ (च० ) विषैले तीरों से वध किये हुए गृजनम् ) पशु का मॉल डितः ( ( पु० ) शृगाल विशेष स्यारों की एक गृडीव: | जाति । -- गृधू ( धा० परस्मै० ) [ गृध्यति, - गृद्ध ] कामना करना। लोभ करना । लालच दिखाना । ग्रुधु (वि०) लंपट | कामी । ग्रुधुः (पु० ) कामदेव । गृनु ( वि० ) १ लालची। अभिलाषी । लोभी । २ उत्सुक | २६२ ) पति, - राजः, ( पु० ) जटायु की उपाधि - वाज, -वाजित, (वि० ) गीध के परों से युक्त (बाय)। - गर्छ ( नं० ) गृधः (पु० ) गीध गिद्ध गृप्रिः ( स्त्री० ) १ एक प्रसूता गौ। एक व्यान की गौ। वह गौ जो केवल एक बार ही व्यायी हो । २ कोई भी जवान मादा जानवर। गृहं ( न० ) १ घर भवन | २ पत्नी । वियो बृद सुष्यते।" -पंचतन्त्र | 4. ३ गृहस्थ का जीवन ४ नाम [ यह शब्द जय एक घर के लिये प्रयुक्त किया जाता है, तब नपुंसक लिङ्ग और जब एक से अधिक घरों के लिये तब पुलिङ्ग होता है। यथा मेघदूते -" तत्रागारं धनपति - गृहन्"]-गृहः, ( वा० पु० ) 1 घर-अक्षः (पु०) छेद सूराख्न | खिड़की (विशेष) अधिपः, - ईशः, ईश्वरः, (पु०) गृहस्थ-अयनिका ( पु० ) गृहस्थ अर्थः, ( पु० ) गृहस्थी के मामले |अलं, (न० ) काँजी । खट्टामाँड -अवग्रहणी (स्त्री० ) देहरी दहलीज़ ( पु० ) २ पाट। सिख /- आरामः, ( 50 ) घर के आसपास का बाग | --आश्रमः, (पु०) गृहस्थ-आश्रमिन, (पु.) गृहस्थ । ~उपकरणं, ( न० ) गृहस्थी के लिये उपयोगी पात्र अथवा अन्य कोई वस्तु । -कपोतः, -कपोतकः ( पु० ) पालतू कबूतर ।- करणं, ( नं० ) घर गृहस्थी के मामले | भवन या घर की इमारत ।-कर्मन, ( न० ) गृहस्थी के धंधे कलहः, ( पु० ) घरेलू कारकः, ( पु० ) थबई । राज। मैमार। --कार्य, घर गृहस्थी के काम- चुल्ली (स्त्री० ) घर, जिसमें पास पास दो कमरे हों, किन्तु इनमें से एक का सुख पूर्व और दूसरे का पश्चिम की ओर हो । झगड़े गृहयाय्य -चिद्रम् (न० ) गृहथिद्र घर गृहस्थी की कमजोरियाँ या कलङ्क २ पारिवारिक भगड़े । -जः, ~~जातः, ( पु० ) वह दास जो वहीं या उसी घर में जन्मा हो जिसमें वह नौकर हो । जालिका, ( सी० ) धोखा कपट खुल कपट वेश-ज्ञानिन् -[गृहेशानिन्, भी रूप होता है। ] (वि०) अनुभवशून्य | मूर्ख । सूद | बेवकूफ | - तटी. (स्त्री०) चबूतरा | चौतरा ।- देवता, (स्त्री०) घर का देवता कुलदेवता - देहली (स्त्री० ) दहलीज | दहरी / नमनम्, (न०) पवन हवा ।-नाशनः, (पु० ) जंगली कबूतर 1-नीडः, (पु०) गौरैया -पतिः, (पु०) | गृहीतिनर्दिन ( पु० ) घर में डींगे मारने वाला और घर के बाहिर युद्ध में पीठ दिखाने वाला| फायर | दरपोंक | १ गृहस्थ २ यश करने वाला। घर का स्वामी । गृहस्थ के अनुष्ठेय कर्म, यथा आतिथ्य। --पालः, (g० ) १ घर का मालिक । २ घर का कुत्ता - पोतकः, (पु० ) वह स्थल जिसके ऊपर मकान खड़ा हो और उससे सम्बन्ध रखने वाली उसके थास पास की ज़मीन - प्रवेशः ( पु० ) नये बने मकान में जाने के पूर्व कतिपय शास्त्रीय कर्मानुष्ठान |-चभ्रुः (पु० ) पालतू न्योला । गृहा (वि० ) १ आकर्षणीय | प्रसन्न करने योग्य २ घरेलू । ३ परतंत्र बाहिर अवस्थित । ( पु० ) अग्निहोत्र की आग | गृहाः (50) घर में बसने वाला | २ पालतू जानवर | गृह्या (स्त्री० ) नगर के घासपास का गाँव । -~~-पत्रिः, (स्त्री० ) अवशिष्ट अन्न से सब गृ ( धा० परस्मै० ) [ गृणाति, गुर्ण ] १ बोलना । प्राणियों को श्राहारदान जैसे पशु पची, पुकारना | बुलाना । आमंत्रण करना। उद्घोषित करना । २ वर्णन करना । ३ प्रशंसा करना । स्तव करना । ( २३३ ) गृहिणी (स्त्री० ) घरवाली । पत्नी-पदं, (न० ) धरस्वामिनी की मर्यादा । का भेदुआ । २ घर में झगड़े उत्पन्न कराने वाला। - मणिः ( पु० ) दीपक। लॅप। -माचिका, ( स्त्री० ) चमगादड़ --मृगः ( पु० ) कुत्ता | -मेघः, ( पु० ) गृहस्थ / यंत्र, ( न० ) | डंडा या बाँस जिस पर उत्सव के अवसरों | पर ध्वजा फहरायी जाय । -वित्तः, (पु० ) घर का मालिक ।~~कः, (पु० ) आमोद प्रमोद | के लिये पाला गया तोता। - संवेशक:, (पु० ) थबई राज मैमार। --स्थः, ( पु० ) गृहस्थ बालबच्चों वाला । = ग्रहिन (९० ) गृहस्थ : बाल बच्चे वाला। गृहीत (६० कृ०) अहण किया हुआ २ स्वीकृत ३ प्राप्त उपलब्ध। पहिना हुआ धारण किया हुआ। २ लूटा हुआ था लुटा हुआ । ६ सीखा हुआ पड़ा हुआ समझा हुआ- गर्भा, ( स्त्री० ) गर्भवती स्त्री |--दिश, ( वि० ) : झगड़ा | २ गायव | लापता | गृहीतिन् (वि० ) [ स्त्री- गृहीतिनी ] वह व्यक्ति जिसने कोई बात समझ ली हो । - परमुखापेक्षी | ४ पाल्तू । ५ ६ मल-द्वार /- अग्नि, गृहदेवता आदि को |-भङ्ग (पु० ) 1 घर से निर्वासित | २ घर को नाश करना ३ घर फोड़ना । ४ असफलता । किसी दूकान या घर की गडक: } ( १० ) गेंद । गद्दा । पु० 1- भेद गेंदुक: गेय ( वि० ) १ गाने वाला | गवैया | २ याने योग्य गेधू ( धा० आत्म० ) [ गेषते, गेष्या, ] तलाश करना | खेोजना इदना। अनुसंधान करना । गेहम् ( न० ) घर | मकान। बस्ती । गेहेइवेडिन् (वि० ) भीरु। कायर डरपोंक गेहेदाहिन् (वि० ) भीरु | कायर । डरपोक । रोहनदिन (वि० ) डरपोक । पर्दे का सुरा। गोबर के ढेर पर बैठा हुआ मुर्गा गेहेमेहिन् ( वि० ) घर में मूतने वाला। कामचोर । गेहेन्याड (पु०) अकड़बाज़। डींगें हाँकने वाला अभिमानी । हयाय्यः ( पु० ) गृहस्थ । बालबच्चों वाला । इयालु ( वि० ) पकड़ने वाला । ग्रहण करने वाला । | गेहेर (पु० ) भीरु। डरपोंक। ( रोहिन (वि० ) [ स्त्री० -गेहिनी, ] देखो गृहिन् । गेहिनी ( स्त्री० ) पत्नी | गृहिणी । घर की सलकिन । गै (धा० पर ) [ गायति, -गीत, ] १ गाना | गीत गाना। २ गाने के स्वर में पढ़ना या बोलना । ३ वर्णन करना। निरूपण करना ४ पद्य द्वारा वर्णन करना या कविता बनाकर प्रसिद्ध करना । गैर (वि० ) [ स्त्री० – गैरी ] पहाड़ पर उत्पन्न । गैरिक ( वि० ) [ स्त्री० --चौरिकी ] पहाड़ पर उत्पन्न । गैरिकं ( न० ) } गेरू । ( न० ) सुवर्ण । सोना | गैरिकः ( पु० ) ) गैरेयं ( न० ) राल | नफ़सा | गो ( पु० स्त्री० ) [ कर्ता-गौः ] १ पशु | मवेशी ( बहुवचन में ) । २ गैौ से उत्पन्न कोई भी वस्तु जैसे दूध, चमड़ा आदि । ३ नक्षत्र | ४ श्राकाश । १ इन्द्र का वज्र | ६ किरण | ७ हीरा | ८ स्वर्ग ● सीर । गो ( स्त्री० ) १ गौ | २ पृथिवी | ३ वाणी | ४ सर- स्वती देवी । ५ माता ६ दिशा । ७ जल । ८ नेत्र | गो ( पु० ) १ साँड | बैल | २ रोम | लोम | ३ इन्द्रिय | ४ वृषराशि | ५ सूर्य | ६ नौ की संख्या | ७ चन्द्रमा ८ घोड़ा-कराटकः, (पु० ) - कण्टकम्, ( न० ) बैलों से खूंदा हुआ मार्ग या स्थान जो दूसरों के जाने योग्य न रह गया हो । २ गाय का खुर। ३ गौ के खुर की नोंक ।-कर्णी, ( ५० ) १ गाय का कान | २ खच्चर | ३ साँप | ४ बालिश्त । बित्ता । माप विशेष अवध प्रान्त का तीर्थ विशेष जो गोकरननाथ के नाम से प्रसिद्ध है। ६ बाणविशेष – किराठा, किराटिका, ( स्त्री० ) मैना पक्षी । - किलः, - कीलः, (५०) १ हल | २ खल्ल । - फुलं, (न०) १गौ की रौहर। गौओं का समूह | २ गोशाला | ३ गोकुल गाँव जहाँ श्रीकृष्ण पाले पोसे गये थे। कुलिक, ( वि० ) १ दलदल में फंसी गैर को निकालने में सहायता न देने वाला । २ ऐचाताना | भेड़ा । –कृतं, ( न० ) गोबर | तोरं, ( न० ) गाय का दूध। - गृष्टिः, ( स्त्री० ) एक बार की व्यायी गाय । - गोयुगं, ( न० ) बैलों की २२४ ) गो एक जोड़ी 1-गोष्ठं, (न०) गोशाला । -प्रन्थिः, ( स्त्री० ) १ कंडे | उपरी । २ गोशाला /- ग्रहः ( पु० ) मवेशी पकड़ना । -ग्रासः, (g०) भोजन करने के पूर्व निकाला हुआ हिस्सा । - घृतं, ( न० ) वृष्टि का जल | २ धी। गौ का घी । – चन्दनम्. ( न० ) एक प्रकार का चन्दन । –घर, (वि०) १ गौ का चरा हुआ। २ पृथिवी पर घूमने वाला | ३ लक्ष्य के भीतर 1 चरः, ( पु० ) १ गोचरभूमि । चरागाह | २ जिला | प्रान्त | विभाग | प्रदेश | ३ इन्द्रियों की पहुँच के भीतर । इन्द्रियों के विषय | ४ पहुँच | लक्ष्य के भीतर ५ पकड़ शक्ति प्रभाव कायु । ६ दिनमण्डल । दिगन्तवृत्त । आकाशमण्डल । - चर्मन, ( न० ) १ गाय का चमड़ा । २ सतह नापने का माप विशेष, जिसकी परिभाषा वशिष्ठ जी ने इस प्रकार दी है- 1 दशरस्तेन वंशेन दशवंशान् समन्ततः पञ्च चाभ्यधिकान् ददयादेतद्गोचर्म चोध्यते ॥ चर्मवसनः, ( पु० ) शिवजी । चारकः, ( पु० ) ग्वाला । अहीर ।—जरः, ( पु० ) बूढ़ा साँद या बैल 1-जलं, ( पु० ) गोमूत्र | - जागरिकं, (न० ) श्रानन्द । उल्लास | उछाह मङ्गल । तल्लजः, ( पु० ) उत्तम सौंद या गाय । - तीर्थ, (न० ) गोशाला । —त्रं, (न०) १ गोशाला | २ वंश । कुल | ३ नाम | संज्ञा । ४ समूह | ५ वृद्धि | ६ वन | ७ खेत ८ मार्ग १ सम्पत्ति । १० । छाता | ११ भविष्यज्ञान | १२ श्रेणी । जाति वर्ग । –त्रः, ( पु० ) पर्वत । पहाड़ । —त्रकीला, (स्त्री० ) पृथिवी । -नज, (वि० ) एफ ही कुल या वंश में उत्पन्न । -त्रपटः, ( पु० ) वंशावली । - त्रमिदः, ( पु० ) पहाड़ों को फोड़ने वाला । इन्द्र | - त्रस्खलनम्, ( न० ) - त्रस्खलितम्. ( म० ) गलत नाम से पुकारना । - त्रा, (स्त्री०) १ गौओं की हेड़। २ पृथिवी । --दन्तम्, (न० ) हरताल । -दा, (स्त्री०) गोदावरी नदी । - दानम्, (न०) बाल काटने का दान। यथा रघुवंशे-“गोदान विवेरनन्तरम् ।" - दारणं, ( न० ) १ हल | २ गा ( २६५ ) कुदाली । फाँबड़ा । --दाववरी, ( स्त्री० ) नदी विशेष |-दुद्द्, ( पु० ) दुहः, ( पु० ): ग्वाला । अहीर गाय दुहने वाला । २ गाय दुहने का समय - दोहनम् १ गाय दुहने का समय । २ गाय दुहना। -- दोहिनी, ( स्त्री० ) वासन जिसमें दूध दुहा जाय । - द्रवः, ( पु० ) गोमूत्र । - धरः, ( पु० ) पर्वत 1 धुमः- धूमः, ( पु० ) १ गेहूँ । २ नारंगी | शंतरा |- धूलिः, (पु०) वह समय जब गोधरभूमि से गौए घर कर लौटे । – धेनुः, (स्त्री०) गाय जो दूध देती हे और जिसके नीचे बछड़ा हो । ध्रः, ( पु० ) पर्वत । पहाड़ | नन्दी, ( स्त्री० ) सादा सारस । -नर्दः, ( पु० ) १ सारस । २ देश विशेष |-- नदीयः, (पु०) महाभाष्यकार पतञ्जलि / नसः, - नासः ( पु० ) १ सर्प विशेष । २ रत्नविशेष | -नाथः, ( पु० ) १ बैल | साँड़ | २ ज़मीदार ३ ग्वाला । ४ गौ का धनी । - निप्यन्दः, ( पु० ) गोमूत्र । -पः, (पु० ) १ गोप | ग्वाला । २ गोशाला का प्रधान | ३ गाँव का दारोगा | ४ राजा । ५ संरक्षक । अभिभावक /- पी. (स्त्री०) गोप की स्त्री । - पीध्यक्षः, (पु० )-पेन्द्रः- पेशः, (पु०) श्री कृष्ण /-पीदलः, (पु०) सुपारी का वृक्ष 1-पतिः, (पु० ) १ गौ का धनी । २ साँड | ३ मुखिया । प्रधान | ४ सूर्य | १ इन्द्र | ६ कृष्ण | ७ शिव ८ वरुण ७ राजा - g पशुः, (पु० ) यज्ञीय पशु-पानसी, (स्त्री०) छप्पर की धुनकिया -पालः ( पु० ) १ ग्वाला । अहीर । २ श्रीकृष्ण | ३ राजा ।-- पालकः, (पु० ) १ अहीर ग्वाला | २ शिव । --पालिका, – पाली, ( स्त्री० ) अहरिन । ग्वाला की स्त्री । - पीतः, ( पु० ) खंजन पक्षी विशेष पुच्छः ( पु० ) १ वानर विशेष | २ हार विशेष जिसमें दो, चार या ३४ खरे हों।- पुटिकम्, ( न० ) शिव जी के नादिया का सिर । ~~पुत्रः ( चि० ) बछड़ा - पुरं (न० ) १ नगर- द्वार | २ मुख्य द्वार । ३ मंदिर का सजा हुआ द्वार। -पुरोष, ( न० ) गोबर 1- प्रकाण्डम्, ( न० ) विशाल बैल |~~-प्रचारः, (पु० ) गोचर गा भूमि / – प्रवेशः, ( go ) के चरकर लौटने का समय, सूर्यास्त काल । -भूत्, (पु० ) पहाड़ |~-मत्तिक, बग्घी डाँस -मण्डलम्, ( न० ) १ भूगोल | २ गोत्रों का झुंड मतल्लिका ( स्त्री० ) वह गाय जो काबू मे लायी जा सके। सीधी गाय | उत्तम गाय - मथः, ( पु० ) ग्वाला /- माथुः, ( पु० ) १ सृगाल । २ मैड़क । एक गन्धर्व का नाम :- मुखः, - मुखम्, ( न० ) वाद्य यंत्र विशेष ! - मुखः, ( पु० ) १ मगर | घड़ियाल | नक्र | २ चोरों का किया हुआ विशेष प्रकार का दीवार में सूराख 1-मुखं, (न० ) - मुखी, ( स्त्री० ) जप करने की थैली | – मूढ ( वि० ) बैल की तरह मूढ | सूत्रं, (न० ) गाय का मूत्र | - मृगः, ( पु० ) एक प्रकार का बैल । - मेदः, ( पु० ) मणि विशेष | -यानम्, (न, ) बैल- गाड़ी। बहली | रथ । –रक्षः, (पु०) १ गोपाल । ग्वाला । २ नारंगी । – रङ्कः, (पु०) १ जलपक्षी । कैदी | बंदी । ३ नग्ना स्त्री । परमहंस - रसः, ( पु० ) १ गाय का दूध | २ दही | ३ मक्खन ।-राजः, ( पु० ) सर्वोत्तम बैल 1- रुतं, (न० ) दो कोस या चार मील का माप । -राटिका, - राठी, ( स्त्री० ) मैना पक्षी । - रोचना (स्त्री० ) गौ के मस्तक से निकला हुआ पीला पदार्थ 1- लवणं ( न० ) माप विशेष जिसके अनुसार गाय को निमक दिया जाता है ।- लांगुलः, लांगूलः, ( पु० ) वानर विशेष - नोमी (स्त्री० ) वेश्या । रंडी। -- वत्सः, ( पु० ) बछड़ा 1-वत्सयादिन, ( पु० ) भेड़िया | -- वर्धनः ( पु० ) मथुरा जिले का एक पर्वत और तीर्थस्थान :-वर्धन- धरः, - वर्धन्धारिन, ( पु० ) श्रीकृष्ण | - वशा, (स्त्री० ) बाँझ गाय । -वार्द, – वास, ( पु० ) गोशाला | – विदः, ( पु० ) १ मुख्य ग्वाला । अहीरों का मुखिया । २ श्रीकृष्ण । ३ बृहस्पति ~~-विष्, (स्त्री०) - विष्ठा, ( स्त्री० ) गोबर । — विसर्गः, ( पु० ) प्रातःकाल का वह समय जब चरने के लिये गाएं ढीली जाती हैं। गोडम्बः ( २६६ वीर्य. (न०) दूध का मूल्य। - वृंदम्, (न०) मवेशियों की हेढ़ या रौहर-वृंदारकः पु० ) सर्वोत्तम बैल या गौ-वृषः, ( पु० ) उत्तम साँड़ । - वृषध्वजः, (पु० ) शिवजी । -वजः, (पु० ) १ गोशाला । २ गौओं का कुंड ३ चरागाह जहाँ गौएं चरे-शकृत, ( न० ) गोवर - शालं, (न०) - शाजा, (स्त्री०) वह छाया हुआ घर, जिसमें गौए रक्खी जाय । -पम् (न०) बैलों की सीन जोदिया 1---: ( पु० ) गोशाला । - संख्यः, ( पु० ) ग्वाला । अहीर। —सर्गः, ( पु० ) प्रातःकाल 1 ~ सूत्रिका, ( स्त्री० ) गाय बाँधने की रस्सी स्तनः ( पु० ) भगाय का ऐन या थन | २ गुलदस्ता चौलड़ा मोती का हार । स्तना, स्तनी, ( स्त्री० ) अँगूरों का गुच्छा !- स्थानं, (न० ) गोशाला 1-स्वामिन, (पु० ) गाय का धनी । २ भिक्षुक विशेष | ३ उपाधि विशेष | - हत्या, ( स्त्री० ) गोवध | - हनम्. ( न० ) गोबर 1-हित, ( वि० ) गौ की रक्षा करने वाला । गोडम्बः (पु० ) कलींदा। हिंगवाना | तरबूज | गोणी (स्त्री०) १ गोन । बोरा | २ एक द्रोण के बरा- बर की तौल। ३ चिथड़ा। गूदड़ । गांड: ( ( पु० ) १ मांसल नाभि । २ नीच जाति गोण्डः / विशेष । विशेष कर नवंदा और कृष्णानदी के बीच विन्ध्याचल के पूर्वी भाग में बसने वाली जाति के लोग। गोतमः ( पु० ) सतानन्द के पिता और अहिल्या के पति एवं अँगिरस गोत्री एक ऋऋषि विशेष । गोतमी (. स्त्री० ) गोतम की स्त्री अहल्या- पुत्रः, ( पु० ) सतानन्द । गोधा ( स्त्री० ) १ चमड़े का पट्टा जो बाई भुजा पर धनुष की रगढ़ बचाने को बांधा जाता है। २ नाका। मगर । घड़ियाल । ३ ताँत । डोरी । ) गोष्पद चुराव | ३ गाली | कुवाच्य | ४ उत्तेजना । आन्दो- लन । ५ दीप्ति | चमक | कान्ति । गोपायनं ( न० ) रक्षण । यचाव । गोधायित ( वि० ) रक्षित | गोष्ट (वि० ) [ स्त्री०-गोत्री ] रक्षा करने वाला । छिपाने वाला | दुराने वाला। गोमत् ( वि० ) गोधन वाला। गोमती ( स्त्री० ) नदी विशेष : गोमयं ( न० ) सोमयः ( पु० ) } गोवर | गोमय } ( न० ) कठफूला। कुकुरमुता। गोमिन् (पु०) १ मवेशी का धनी । २ स्यार। शृगाल । ३ अर्चक । ४ बुद्धदेव का सेवक । [ चेष्टा । गोरणं ( न० ) स्फूर्ति | सतत प्रयत्न | अविच्छिन्न गोईम् ( न० ) मस्तिष्क | दिमाग | गोलः ( पु० ) १ गेंद | गोला। गद्दा | २ भूगोल | ३ नभसण्डल | ४ विधवा का पुत्र | वेश्यापुत्र । हरामी ५ एक राशि पर कई ग्रहों का समागम । गोला (स्त्री० ) १ लड़कों के खेलने की काठ की गेंद २ जल रखने का मटका | कूडा | ३ सिंगरफ | लाल संखिया । ४ स्याही । मसी ।२ सखी | सहेली । ६ दुर्गा का नाम गोदावरी नदी का नाम । गोलकः ( पु० ) १ गेंद | गोला । २ लकड़ी की गेंद । ३ मिट्टी का बड़ा घड़ा ४ विधवापुत्र । ५ एक राशि पर ६ या अधिक ग्रहों का योग ६ शीरा । राब । ७ मदन का पेड़ | गोष्ठ (धा० आ० ) [ गोष्ठते ] एकत्र होना | जमा होना। ढेर लगाना । गोष्ठः ( पु० ) ) : गोशाला । २ अहीरों का अड्डा । गाउं ( न० ) ) ( पु० ) जमाव । गोष्टिः ) ( स्त्री० ) १ जमाव । सभा | मीटिंग । २ गोष्ठी ) संस्था | ३ वार्तालाप | बातचीत | संवाद। } गाधिः ( पु० ) १ माथा । २ गङ्गा का नक्र । ४ समूह | समुदाय ५ सम्बन्ध | नाता ६ नाटक की रचना विशेष गोधिका (स्त्री०) गोह | एक प्रकार का जन्तु विशेष | | गोष्प ( न० ) १ गो का खुर । २ धूल में गाय गोपः (पु० ) [स्त्री० --गोपी] १ रक्षक २ छिपाव । खुर का चिन्ह । ३ उस खुरचिन्ह में समा जाने गाह्य ( २६७ वाला जल । ४ गौ क खुर म समाव उतना जल 1 ५ स्थान जहाँ गाएं प्राय: आाया जाया करें। गोहा (वि० ) छिपाने योग्य | गोप्य | गाजिक } ( पु० ) सुनार । गौडः ( पु० ) १ एक प्रान्त विशेष का नाम । स्कन्द- पुराण में इस देश का परिचय इस प्रकार दिया गया है :- बंगदेशः समारभ्य भुबनेशान्तः शिवे । गौडदेशः सम ख्यातः सर्वविद्यः विशारदः । २ ब्राह्मणों की जाति विशेष । गौडा: (पु० बहु०) गौड देश के अधिवासी । गौडी ( स्त्री० ) 1 शीरा या गुड़ की शराब । २ रागिनी विशेष ३ छन्दःशाख की रीति या वृत्ति विशेष । गौडिकः ( पु० ) गन्ना । ऊख ! अप्रधान | २ गौय ( वि० ) [ जी०- गौणी ] १ अमुख्य । प्रकरण में प्रधान का उल्टा | गुणवाचक । गुण बतलाने वाला। गौरायं ( न० ) मातहती | अधीन होकर रहना। अप- गौरी ललोंहा | ४ चमकीला । दीप्तियुक्त | ५ विशुद्ध | स्वच्छ| मनेोहर | | गौरः ( पु० ) १ सफेद रंग । २ पिलौंहाँ रंग ॥ ३ लोहाँ रंग | ४ सफेद राई ५ चन्द्रमा ६ भैसा विशेष | ७ एक प्रकार का हिरन । गौरं (न०) १ कमल-माल-तन्तु । २ केसर । जाफ्रान । ३ सुवर्ण | सोना । गौरसर्पपः ( पु० ) सफेद राई । गौरास्यः (पु० ) एक प्रकार का काले रंग का वानर जिसका मुख सफेद होता है। गौरदयं ( न० ) ग्वाला या गौओं की रखवाली करने वाले का पद । गौरवम् ( न० ) १ वजन | भारीपन । प्रयोजनीयता | ३ ज़रूरीपन | ४ सम्मान | प्रतिष्ठा | ५ कुलीनता पदमर्यादा बड़प्पन ६ भारीपन | गुरुत्व - आसनं ( न० ) सम्मान की बैठक 1- हरित, ( वि० ) प्रशंसित । कीर्तिवान ! स्याति गौतमी सम्पन्न । गौरविति (वि० ) अत्यन्त सम्मानीय । कृष्ट पद | गौरिका ( स्त्री० ) क्वारी । युवती लड़की । जवान लड़की । गौतमः ( पु० ) १ ( क ) भरद्वाज ऋषि का नाम । ( ख ) सतानन्द मुनि का नाम । ( ग ) कृपाचार्य | गौरिलः (पु० ) १ सफेदराई । २ लोहे या ईस्पात लोहे का नाम, जो द्रोणाचार्य के साले थे। (घ) बुद्ध- देव का नाम । (ङ ) न्यायशास्त्र प्रवर्तक का नाम- सम्भवा, (स्त्री० ) गोदावरी नदी | स्त्री० ) १ द्रोणाचार्य की स्त्री कृपी का नाम | २ गोदावरी नदी की उपाधि । ३ बुद्धदेव की शिक्षा या उपदेश ४ गौतम द्वारा प्रवर्तित न्याय दर्शन | ५ हल्दी ६ गोरोचन | ७ कराव मुनि की बहिन । गौधीमीनं ( न० ) खेत जिसमें गेहूँ उत्पन्न होते हैं। गौनर्दः ( पु० ) महाभाष्य प्रणेता पतञ्जलि की उपाधि | गापिकः ( पु० ) गोपी या गोप की स्त्री का बालक या पुत्र | गौतेयः ( पु० ) वैश्या का पुत्र | गौर ( वि० ) [ स्खी०- गौरा या गौरी ] सफेद २ पिलोहाँ । पीला या लाल | ३० ) की चूर या धूल । गौरी (स्त्री० ) १ पारवती ! नाम । २ आठवर्ष की कन्या | ३ क्वारी रजोधर्म जिस लड़की को न हुआ हो वह लड़की | ४ गोरी या गेहुआ रंग की लड़की ५ पृथिवी । ६ हल्दी | ७ गोरोचन | ८ वरुण की स्त्री । १ मल्लिका की लता -१० तुलसी का पौधा । ११ मञ्जिष्ठ का पौधा - कान्तः, -नाथः, ( पु० ) शिवजी । - गुरु, ( पु० ) हिमालय पर्वत 1-जः, ( पु० ) कार्तिकेय -अम्, ( न० ) अवरक ---पट्टः, ( पु० ) वह योनिरूपी अर्धा जिसमें शिवलिङ्ग, स्थापित किया जाता है । पुत्रः, ( पु० ) कार्तिकेय 1- ललितं, ( न० ) गोरोचन (- सुतः ( पु० ) : कार्तिकेय २ ऐसी स्त्री का पुत्र जिसका विवाह आठ वर्ष की अवस्था में हुआ हो। सं० स० कौ० ३८ ( २३८ गौरतल्पिक, गौरतल्पिकः, ( पु० ) गुरुपत्नी के साथ गमन करने | वाला या गुरु की शय्या को भ्रष्ट करने वाला। गौलक्षणिकः ( पु० ) गौ के शुभाशुभ लक्षणों जानने वाला । गौत्मिकः, ( पु० ) किसी सैनिक दल का एक सिपाही । गौशतिक ( वि० [ स्त्री०-गौशतिकी ] १०० गायें पालने वाला । ग्मा ( स्त्री० ) पृथिवी । ग्रंथ या ग्रन्थ ( भा० आत्मने० )[ अथते, ग्रन्थते ] १ टेढ़ा करना | तिरछा करना | झुकाना २ गुथना | रचना । प्रथनम् ( न० ) १ गादा करना जमाना । २ गूँथना | ३ पुस्तक की रचना करना | लिखना | [ प्रथना, भी अन्तिम दो अर्थों का वाची है।] ग्रथन ( पु० ) गुच्छा प्रथित ( व० कृ० ) १ गूँथा हुआ। रचा हुआ || श्रेणीबद्ध किया हुआ । यथाक्रम किया हुआ | ४ जमाया हुआ । गाड़ा किया हुआ | ५ गाँठ गठीला । ग्रन्थ (धा० परस्मै०) [ ग्रन्थित, प्रध्नाति, अन्थयति ग्रन्थयते प्रति और प्रथते भी रूप होते हैं ] १ बाँधना | गूंथना । यथाक्रम करना | श्रेणी बद्ध करना । २ लिखना। रचना करना । ३ बनाना पैदा करना । ग्रन्थः (पु० ) १ बांधना | गाँठ लगाना | २ रचना | ग्रन्थ । पुस्तक | साहित्यिक रचना ३ धन | सम्पत्ति ४ अनुष्टुप छन्द वाला पद्य - कारः, --कृत, (पु० ) ग्रन्थरचयिता लेखक - छु.टी, - फूटी, (स्त्री०) १ पुस्तकालय । २ दफ़्तर जहाँ काम किया जाय 1-विस्तरः ( पु० ) बृहदकारता प्रकाण्डता । प्रगल्भ शैली ।-- सन्धिः, ( स्त्री० ) काण्ड | अध्याय | सर्व । ग्रन्थनम् }देखो प्रथन । ग्रन्थिः ( स्त्री० ) : गिल्टी | गुमड़ा। गुमड़ी। २ रस्सी की गाँठ | ३ कपड़े के आँचल की गाँठ, जिसमें पैसे रुपये गठियाये जाते हैं। ४ बेंत या ) प्रह नरकुल के पोरू की गाँठ या जोड़ | ६ टेढ़ा- पन भद्दापन असत्य ७ सूजना या फूलना । -वेदकः, -भेदा–भोचकः, (पु०) गँठकटा | जेब कतरने वाला । - ए (पु० ) पर्णम्, ( न० ) १ एक सुगन्ध वृक्ष | २ एक सुगन्ध पदार्थ |–बन्धनम्, ( न० ) १ विवाह के समय दूल्हा दुलहिन का गठजोड़ा । २ पदी । —हरः, ( पु० ) सचिव | दीवान। ग्रंथिकः ) ( पु० ) १ दैवज्ञ | ज्योतिषी २ अज्ञात- ग्रन्थिकः ) वास के समय राजा विराट के यहाँ रहते समय नकुल ने अपना नाम ग्रन्थिक ही रखा था। ग्रंथित प्रस्थित ) ( वि० ) देखो अधित । ग्रंथिन ) ( पु० ) अन्थिन् । सुपठित | ग्रन्थ पढ़ने वाला | २ विद्वान अंथिल ) ग्रन्थिल) ( वि० ) गाँठ गठीला ग्रस् (धा० श्रात्म० ) [ ग्रसते, ग्रस्ते ] १ निगलना । लील लेना । निघटाना। वर्तं डालना । २ पकड़ना | ३ ग्रहण डालना। ४ शब्दों पर चिन्ह या दारा लगाना। ५ नष्ट करना । ( उभय० ) [ ग्रसति, प्रासयति, – प्रासयते ] खा डालना भक्षण कर जाना । प्रसनम् ( न० ) १ निगलना | खाना | २ पकड़ना । ३ चन्द्र और सूर्य का अपूर्ण ग्रास | प्रस्त (व० ० ) १ खाया हुआ भक्षण किया हुआ । २ पकड़ा हुआ अधिकृत किया हुआ प्रभाव पड़ा हुआ । ३ ग्रहण लगा हुआ । प्रस्तं (न० ) ग्रहण सहित सूर्य या चन्द्रमा का अस्त होना। - उदयः, (पु०) ग्रहण लगे हुए चन्द्रमा सूर्य का उदय होना । ग्रस्त (न० )चारित शब्द या वाक्य | ग्रह् ( घा० उभय० ) वैदिक साहित्य में प्रभु, [ गृह्णाति, गृहीत, ( निजन्त) ग्राहयति. जिघृ- क्षति ] १ पकड़ना । लेना ग्रहण करना २ पाना प्राप्त करना। अङ्गीकार करना वसूल करना। उगाहना। ३ गिरफ्तार करना बंदी बनाना। ४ रोकना थामना। पकड़ना । ५ ग्रहः ( २९६ धाकर्षित करना। अपनी ओर खींचना ६ जीतना एक एच में कर लेना । ७ प्रसन्न करना । खुश करना अधिकार में करना प्रभावान्वित करना । ६ धारण करना १० सीखना जानना पहिचानना। समझना ११ विश्वास करना। याव करना । १२ इन्द्रियगोचर करना | १३ वशवर्ती करना १४ अनुमान करना । परिणाम निकालना । १५ बखान करना | वर्णन करना। १६ खरीदना | मोल लेना । १७ वञ्चित करना । छीन लेना लूट लेना १८ धारण करना। पहिन लेना १३ पहचान लेना। २० (ग्रह) रखना । २१ ग्रस लेना । २२ हाथ में ( किसी ) कार्य को लेना । [ निवन्त ] १ लेना। ग्रहण करना। पकड़ना स्वीकार करना २ विवाह में दान कर डालना। ३ सिखलाना। बतलाना। ) ग्रामः 4 पनिः, (पु०) १ सूर्य । २ चन्द्रमा |-पीडनम्, -पीडा, ( स्त्री० ) १ ग्रह के कारण दुःख या क्लेश २ चन्द्र सूर्य का ग्रहण /-राजः, (पु०) १ सूर्य २ चन्द्र ३ वृहस्पति ।-मण्डलं, (न०) --मराडली. (स्त्री० ) ग्रहों का बृद्ध । - युतिः, (स्त्री०) ग्रहों का योग-वर्षः (5०) वर्षफल | - विप्रः ( पु०) ज्योतिषी । - शान्तिः (स्त्री०) जपदानादि से अशुभ ग्रहों के अशुभ फल को दूर करना। संगमम् ( स० ) ग्रहों का योग | ग्रहणम् (न०) १ पकड़ना ग्रहण करना २ पाना । प्रसि अङ्गीकार करना। ३ वर्णन करना | कहना । ४ पहनना धारण करना। ५ चन्द्र और सूर्य का अहण । ६ बुद्धि | समक। ७ ज्ञान | ६ प्रतिध्वनि काँई । १ हाथ । १० ग्रहणः ) ( स्त्री० ) ग्रहणी ) बीमारी | संग्रहणी का रोग दस्तों की इडी | ज़िदी। 1

( पु० ) १ पकड़ना । हाथ साफ करना | २ | हिल (बि०) १ लिया हुआ। स्वीकृत | २ अविनयी ।

पकड़ लेना प्राप्त करना। अङ्गीकार करना । उपलब्धि | ३ चोरी डाँका ४ लूट का माल २ ग्रहण (चन्द्रमा सूर्य का ) । ७ ग्रह ८ वर्णन | निरूपण | दुहराना & ग्रा6 नक। मगर । घड़ियाल । १० भूम | पिचाश ११ बच्चों को कष्ट देने वाली दुष्ट योनि विशेष | १२ ज्ञान | बोध | १३ ज्ञानेन्द्रिय | १४ सतत चेष्टा । निरन्तर प्रयल । १२ अभिप्राय मंशा | मनोरथ | १६ संरक्षकता। अनुग्रह । - अधीन (वि० ) ग्रहों के शुभाशुभ फलों के ऊपर निर्भर ।-अवमर्दनः ( पु० ) राहु का नाम-श्रवमर्दनम् ( म० ) ग्रहों की टक्कर ।-अघोशः, (पु० ) सूर्य -आधारः - आश्रयः, ( पु० ) धुववृत्त सम्बन्धी नक्षत्र मेरु सम्बन्धी नव-आमयः, ( पु० ) १ मिर्गी २ भूतावेश /- आलुञ्चनम्, ( न० ) शिकार पर झपटना और उसके टुकड़े टुकड़े कर डालना - - ईशः (go ) सूर्य / कल्लोलः ( पु० ) राहु । --गतिः, ( स्त्री० ) ग्रहों की चाल -चिन्तकः, (पु०) ज्योतिषी । दैवज्ञ /~-दशा, (स्त्री० ) ग्रह की दशा - नायकः, (पु० ) १ सूर्ये । २ शनि-विग्रहो, (वचन) इनाम और दण्ड। - नेमि, चन्द्रमा । महीतू [स्त्री०- महीनी] १ पाने वाला स्वीकार करने वाला २ जान लेने वाला पहिचान लेने वाला देखने वाला | ३ कर्जदार | ऋणिया । ग्रामः (पु०) १ गाँव | पुरवा पुरा रजाति | समाज | - ३ समूह | समुदाय ४ सरगम | स्वर | राग । अधिकृतः अध्यक्षः ईशः, ईश्वरः, (पु०) गाँव का सुम्ब्रिया चौधरी/अन्तः ( पु० ) ग्राम की सीमा। ग्राम के समीप की जगह -अन्तरं, (न० ) धन्य ग्राम --अन्तिकम्, ( म० ) ग्राम का पड़ोस था सामीप्य । श्राचार, ( 50 ) गाँव की ( रस्म ) ।-आधानं, (न०) शिकार उपाध्यायः, (पु० ) ग्रामयाजक ( कराटकः, ( पु० ) चुगलखोर | पिशुन /- कुमार, ( पु० ) देहाती लड़का |--कूटः, (5०) १ ग्राम का सर्वोत्तम पुरुष | यह /-घातः, (पु०) गाँव की लूट करने वाला 1-घोषिन्, (१०) इन्द्रचर्या ( स्त्री० ) श्रीमैथुन -जालं, (न०) कई एक ग्रामों का समूह /~ी: (श्री०) १ गाँव या समाज का मुखिया या चौधरी २ नेता। सुखिया । ३ नाईं। ४ कामीपुरुष | ( श्री०) ग्रामटिका ( ३०० १ रंडी | वेश्या । २ नील का पौधा |--तक्षः, ( पु० ) बढ़ई जो गाँव में काम करे। - धर्मः, ( पु० ) स्त्रीमैथुन । -- प्रेष्यः, ( पु० ) किसी ग्राम के समाज का संदेश ले जाने और ले श्राने वाला । - अङ्गुरिका, ( स्वी० ) ग्राम कागड़ा या उत्पात । उपद्रव । - मुखः ( पु० ) हाट | बाज़ार । - मृगः, (पु० ) कुत्ता /-याजकः, ( पु०) -याजिन, (पु० ) १ ग्राम का उपाध्याय । २ पुजारी। अर्थक 1-पंडः, (पु० ) नपुंसक पुरुष । हिजड़ा। - संघः, (पु.) ग्रामीण संस्था | - सिंहः, ( पु० ) कुत्ता। - स्थ, (वि०) १ ग्राम में रहने वाला । २ एक ही ग्राम का बसने वाला साथी । -हासकः, ( पु० ) बहनोई | ग्रामटिका ( स० ) अभागा गाँव । दरिद्र गाँव । ग्रीवालिका देखा ग्रीवा ग्रामिक (वि० ) [ स्त्रो० -- ग्रामिकी ] १ ग्रामीण । ग्रीविन ( पु० ) ऊंट गँवारू | २ गँवार | ग्रीष्म (वि० ) गर्म | ग्रामिकः ( ० ) ग्राम का चौधरी चा मुखिया | ग्रामीण: (५०) १ गाँव में रहने वाला २ कुत्ता । ३ ग्राम्यं ( न० ) १ गवारू बोलचाल १२ ग्राम में तैयार किया गया भोजन | ३ स्त्रीमैथुन । ग्रावन् ( पु० ) १ पत्थर । चट्टान २ पहाड़। ३ यादल । ) ग्लह या केतु ग्रस्त चन्द्र या सूर्य का एक भाग 1- च्छादनम् (न० ) भोजन कपड़ा |-- शल्यं, ( न० ) गले में अटकी कोई भी वस्तु । ग्राह ( वि० ) पकड़ा हुआ। काक । ४ शूकर | प्रमेय (वि० ) गाँव में उत्पन्न | गँवार । ग्रामेयी (स्त्री० ) रंडी । वेश्या । ग्राम्य (वि० ) गाँव सम्बन्धी १ गाँव का । २ ग्राम- वासी । ३ पालतू | हिला हुआ। नीच । अशिष्ट । कमीना । ५ अश्लील । -अश्वः, सुता आम, ( पु० ) गया । –कर्मन, ( न० ) ग्रामवासी का पेशा या रोज़गार ।–कुङ्कुमं, (न० ) केसर । - धर्मः, ( पु० ) १ ग्रामवासी का कर्तव्य । २ मैथुन । स्त्रीप्रसङ्ग । – पशुः, (पु०) पालू जानवर। -बुद्धि, (वि० ) अज्ञानी । हँसोड़ | मसखरा । -वल्लभा. (स्त्री० ) रंडी। वेश्या । – सुखं | ग्लपनम् ( न० ) १ सुर्माना । सूखना | कुम्हलाना । (२०) मैथुन २ पर्यवसान | ग्राम्यः ( पु० ) पालतूकुत्ता। 1 शासः (पु०) १ कवर | कौर । गस्सा | मुंह भर माप २ भोजन | पालन पोषण का उपस्कर | ३ राहु | ग्राह: (पु० ) १ पकड़ । २ नक | ग्राह| मगर ३ बंदी | कैदी । ४ स्वीकृति । १ समझ | ज्ञान ६ अटलता दृढ़ता प्रत्यानुरोध | ७ हृढ़ प्रति- ज्ञता सङ्कल्प निश्चय | ८ रोग। बीमारी। ग्राहक ( वि० ) खरीदार | पाने वाला । ग्राहकः ( पु० ) १ वाज। राजपक्षी | २ विषवैद्य | ३ खरीददार ४ पुलिस अफसर । श्रीवा (स्त्री) गरदन | घंटा, ( स्त्री० ) घोड़े के गले की घंटी या धुंधरू । ग्रीष्मः (पु०) १ गर्मी की ऋतु । ज्येष्ठ और आषाढ़ के मास । २ गर्मी । ३ उप्णता । --उद्भवा, (स्त्री०) -जा, (स्त्री० ) नवमलिका लता । चैव (वि० ) [ स्त्री०- -नैवी ] ग्रैवेय ( वि० ) [ स्त्री० ग्रैवेयी] गरदन सम्बन्धी अवयं } ( न० ) १ गले का पट्टा या कंठा । २ हाथी के गले की जंजीर | वेयकम् (न० ) १ हार | कंठा | २ हाथी के गले की जंज़ीर । ग्रैष्मक (वि० ) [ स्त्री० – प्रैष्मिका ] १ गर्मी में २ गर्मी की ऋतु में अदा बोया हुआ । करने योग्य । ग्लस् (धा० आत्म०) [ग्लसते, ग्लस्त] खा जाना । भक्षण कर जाना। म्लहः ( घा० उभय० ) [ ग्लहति-लहते, ग्लायति, लाहयते] १ जुआ खेलना । जुआ प्राप्त करना । में जीतना । २ पाना । ग्लहः ( पु० ) १ जुआरी। २ दाँव । ३ पाँसा । ४ जुआ। द्यूत ग्लान ( ३०१ ) घटी ग्लान ( ३० कृ० ) १ थका हुआ । परिश्रान्त । | ग्लैच् (धा०प० ) [ ग्लोवति, ग्लुक ] 1 जाना । २ बीमार | रोगी | ३ छीन लेना । २ चुराना लूटना ग्लै ( ० ० ) [ ग्लायति, ग्लान ] या करना । २ थक जाना। ३ हिरास होना उदास होना। ४ मूर्च्छित होना । लौ (पु० ) ३ चन्द्रमा २ कपूर | ग्लानि (स्त्री० ) १ थकान १२ हास। ३ निर्बलता | बीमारी ४ घृणा अरुचि । ग्लास्तु ( वि० ) थका हुआ। श्रान्त । घ घ संस्कृत वर्णमाला या नागरी वर्णमाला का बीसवाँ वर्ण और व्यञ्जनों में से कवर्ग का चौथा व्यञ्जन | इसका उच्चारण जिह्वामूल या कण्ठ से होता है } यह स्पर्श वर्ण है। इसमें घोष, नाद, संवार और महाप्राण प्रयत्न होते हैं। घ (वि० ) यह समास में पीछे जुड़ता है और इसका अर्थ होता है मारने वाला; हत्या करने वाला जैसे पाणिध, राजघ घः ( पु० ) १ घंटा | २ धर्मरशब्द | - घटू ( धा० श्रात्म० )[ घटते, -घटित ] यत्न करना / प्रयत्न करना घटित होना । होना । घटः (पु० ) १ घड़ा। २ कुम्भराशि | १ हाथी का माया । ४ कुम्भक समान तौल ६ प्राणायाम |२२० द्रोण के स्तम्भ का एक भाग - का घड़ा।- स्थापनम् (२०) घड़ा रखकर उसमें देव विशेष का आह्वाहन पूर्वक पूजन | घटक ( वि० ) १ प्रयत्नवान्। चेष्टा करने वाला २ सम्पन्न करने वाला। २ मौलिक । आवश्यक सास्था- निक। प्रधान। वास्तविक | घटकः (पु० ) एक वृद्ध जिसमें फूल न लग कर फल ही लगते हैं। २ दियासलाई बनाने वाला। ३ सगाई कराने बाजा विचवानिया ४ वंशावली जानने वाला । घटनं (न०) घटना (न०) ) होना । प्रयल उद्योग २ घटना । बाके ३ सम्पन्नता पूर्णता । ४ संसर्ग । सम्बन्ध | बनाना । मेल ऐक्य गढ़ना तैयार करना। घटा (स्त्री० ) १ उद्योग प्रयत्न | चेष्टा | २ संख्या | } ३ दल जमाव | ३ सैनिक कार्य के लिये जमा हुए हाथियों का समूह ४ समूह | ( बादलों का ) घटिकं (न० ) कूल्हा | आटोपः ( पु० ) बग्धी या गाड़ी का उधार- उद्भवः, -जः, योनिः, -सम्भवः, ( पु० अगस्य जी-ऊधसू, (स्त्री० ) (= घडोनी ) | घटिकः ( पु० ) पानी पिलाने वाला। दूध से परिपूर्ण पेन वाली गी १ संस्कृत साहित्य के कवि विशेष - -कर्परः, (पु०) २ खपरा - कारः, - कृत्, (पु० ) कुम्हार ग्रहः, (पु० ) कहार धीमर पनभरा-दासी, ( स्त्री० ) कुटनी/-~पर्यसनम् (न० ) जो अपने जीवन काल में पुन: अपनी जाति में शामिल होने को रज़ामंद न हुआ हो ऐसे जातिच्युत का श्रौद्ध देहिक कृत्य-भेदनकम् ( न० ) कुम्हार का एक औौज़ार जो बरतन बनाने के काम में आता है। -राजः, (पु०) आँवा में पकाया हुआ घटिका ( स्त्री० ) १ छोटा मिट्टी का घड़ा। २ वाल्टी। डोल। मिट्टी का छोटा बर्तन | ३ २४ मिनिट की एक घड़ी ४ जनघड़ी १२ गट्ठा टखना | एकी घटिन् (पु० ) कुम्भ राशि | घटिंधम् घटिन्धम् } (न०) जो घड़ा भर (जल) पी जाय । घटी ( स्त्रो० ) १ छोटा घड़ा | २२४ मिनिट का काल | ३ जलघड़ी। कारः, (पु०) कुम्हार ।- ग्रह, ग्राह (वि०) पनभरा पानी ढोनेवाला। घटोत्कचः -यंत्र ( न० ) १ ढेकी एक यंत्र विशेष जो पानी उलीचने के काम में धाता है । २ जलघड़ी । घटोत्कचः (पु० ) हिडिम्बा राक्षसी के गर्भ से उत्पन्न भीम का पुत्र | घट्टू ( घा० घात्म० ●) { बढ़ते ] - ( उभय० ) [घट्टयत्ति-घट्टयते, घहित] १ हिलामा डुलाना । गड्बड्ड करना २ स्पर्श करना । मलना । हाथों को मलना । ३ चिकनाना । चोट मारना । ४ निन्दा करना । ५ उखाड़ पछाड़ करना । घट्टः ( पु० ) १ घाट महसूल उगाहने का स्थान । - कुटी, महसूल उगाहने की चौकी 1- जीविन, ( पु० ) १ मल्लाह | नाव खेने वाला । २ दोगला, जाति विशेष । ( यथा “ वैश्सायां रजकाज्जातः " ) । घट्टना (स्त्री०) १ हिलाना। गड्डुबड्डु करना | २ मलना । व्यवसाय | पेशा। ( ३०२ घंट: घण्टः घंटा घण्टा ) ( न० ) घंटाघर 1-1 } } ( यु० ) एक प्रकार की चटनी विशेष । - (स्त्री० ) १ घंटा । घड़ियाल अगारं, - फलक, ( पु० ) - फलकम्. (न०) ढाल जिसमें घूघर जड़े हों - ताडः, ( पु० ) घंटा बजाने वाला । - नादः ( पु० ) घंटा का नाद ।-पथः, (पु० ) किसी ग्राम की मुख्य सड़क यथा दशवम्यन्तरी राजमार्गो घंटा कौटिल्य 1 -शब्दः, ( पु० ) १ काँसा | फूल । २ घंटे की आवाज़ | घटिका ( स्त्री० ) घंटी । छोटा घंटा 1 धंदु ) ( पु० ) १ हाथी की छाती के आर पार घण्टुः S बाँधने की रस्सी जिसमें घंटे अटके हों। २ उष्णता । प्रकाश । घंड: ( पु० ) मधुमक्षिका | घण्डः ( पु० ) घन (वि० ) १ फसा हुआ । हृढ़ । कड़ा । ठोस । २ गाढा घना सघन ३ पूर्ण पूर्णता को प्राप्त ४ गहरा ५ स्थायी । बेरोकटोक । ६ श्रमेश ७ महान् । अतिशय | सोरण | ) घरह सम्पूर्ण । ३ शुभ सौभाग्य सम्पन्न । -प्रत्ययः, ( पु० ) - अन्तः, ( पु० ) शरद ऋतु /- (न० ) वर्षा - आकरः ( पु० ) वर्षा ऋतु । -आगमः, (पु०) वर्षाऋतु । ग्रामयः, ( पु० ) छुहारे का वृक्ष प्राश्रयः, ( पु० ) आकाश, अन्तरिक्ष - उपलः, (पु०) श्रोले- (०) बादलों का समूह / कफः, ( पु० ) चोले । विनौले । – कालः, ( पु० ) वर्षाकाल गर्जितं, ( न० ) बादलों की गड़- गड़ाहट-गोलकः, ( पु० ) चाँदी, सोने की मिलौनी । खोटी धातु 1-जम्बालः, ( पु० ) गाड़ी कीचड़ या कोंदो तालः, ( पु० ) पक्षी विशेष सारङ्ग पक्षी -तोलः ( पु० ) चातक पक्षी । -- नाभिः, ( पु० ) धूम धुआ। -नीहारः, (पु०) सघन कोहासा । कोहरा। - पदवी, (श्री०) आकाश । अन्तरिक्ष । --पापण्डः, ( पु० ) मथूर । मोर |--मूलें, (न० ) धनवर्ग । - रसः ( पु० ) १ गाठा रस २ सार । काढ़ा । २ कपूर | ४ पानी । जल /- वर्त्मन, ( न० ) ग्राकाश। - वल्लिका, चल्ली, ( स्त्री० ) बिजली वासः, ( पु० ) कोहड़ा | कोला । काशीफल 1- वाहनः, ( पु० ) १ शिव | २ इन्द्र -श्याम ( वि० ) अत्यन्त काला - श्यामः, ( पु० ) १ श्रीरामचन्द्र | २ श्री कृष्ण चन्द्र की उपाधि समयः, ( पु० ) वर्षाऋऋतु । सारः, (पु० ) १ कपुर २ पारा पारद ३ जब पानी--स्वनः, ( पु० ) बादलों की गड़- - - - 1 गड़ाहट । धनः ( पु० ) १ बादल । २ गदा बड़ा हथौड़ा या धन ३ शरीर । ४ समूह | समुदाय । १ श्रबरक। धनम् ( न० ) १ कांक मजीरा । घंटा । २ लोहा | ३ टीन | ४ चर्म | छल घड़ियाल । छिलका । घनाघन: ( पु० ) १ इन्द्र | २ दुष्ट हाथी | २ मदमत्त हाथी | ३ नशे में चूर हाथी । ४ पानी से भरा काला बादल | घरट्टः ( पु० ) चकिया। घघर घर्घर ( वि० ) १ अस्पष्ट | २ बर्राता हुआ । ३ ( बादल की तरह ) घरघरं । घर्धरः (पु० ) १ बरबराहट | २ कोलाहल | ३ द्वार। फाटक ! ४ हास्य | आनन्दोल्लास | ५ उल्लू | ६ तुषाग्नि | घर्घरा ) ( स्त्री० ) १ घुंघरूया रोने । २ घुँघरों घर्घरी की आवाज़ | ३ गङ्गा | ४ दीया विशेष । घर्धरिका (स्त्री० ) रोने। घूँघरू । वाद्ययंत्र विशेष । एक प्रकार का बाजा घर्घरितं ( न० ) शूकर की घुरघुराहट । घर्मः ( पु० ) गर्मी । उष्णता | २ ग्रीष्म ऋतु । ३ पसीना । स्वेद | ४ कढ़ा | बड़ी कढाई। हंडा - अंशुः ( पु० ) सूर्य | - अन्तः, ( पु० वर्षा- ऋतु । -अम्बु, थम्भस, ( न० ) पसीना । स्वेद /- चर्चिका, ( स्खौ० ) अदुरियाँ । अहोरी । दिधितिः, ( पु० ) सूर्य – तिः, सूर्य – पयस, ( न० ) पसीना | स्वेद | घर्षः ( पु० )) रगड़न । रगड़ १२ कूटना १ वर्षणम् ( न० ) ) पीसना । घस् ( धा० प० ) [ घसति, घस्ति, घस्त, ] खाना | भक्षण करना । घस्मर (वि०) १ मरभुखा | खाऊ ! पेटू | २ भक्षक । नाशक । घस्त्र ( वि० ) चोट पहुँचाने वाला । हानिकारक | घस्रं ( न० ) केसर | ज़ाफ़ान | घस्रः ( पु० ) १ एक दिन । २ सूर्य । ( ३०३ ) घाटा ( पु० ) गर्दन का पृष्ठ आग घाटा ( श्री० ) ) घांटिकः ) ( पु० ) १ घंटा बजाने वाला। बंदी - घाण्टिक: जन । भाट । ३ धतूरा का पौधा | घातः (पु० ) १ प्रहार। चोट २ हत्या | ३ तीर । ४ गुणनफल । चन्द्र, (पु० ) (अशुभ राशि स्थित ) चन्द्रमा |- तिथि:, ( स्त्री० ) अशुभ चान्द्र तिथि । -नक्षत्रम्, ( न० ) अशुभ नचन्द्र । —चारः ( पु० ) अशुभ बार । - स्थानं, (न० ) कसाईखाना। फाँसीघर । धातक (वि० ) हत्यारा जल्लाद । घातन (वि० ) हत्यारा । हत्याकारी । घातनम् (न०) १ हत्याकरण | श्राघात २ ( यज्ञ मे पशु की तरह ) हनन | घातिन् (दि० ) [ स्त्री०-घातिनी ] १ प्रहार करने वाला। मारने वाला | २ पकड़ने वाला मार डालने वाला । ३ नाशक ।-पक्षिन, विहगः, ( पु० ) बाज पक्षी | धातुक ( वि० ) [ स्त्री० - घातुकी ] १ हिंसक २ क्रूर | निष्ठुर । नृशंस घात्य ( वि० ) मार डालने योग्य । धारः ( 30 ) सिंचन | छिड़काव । तर करना । घार्तिकः ( पु० ) घी में सिकी पूड़ी या माल पुआ, विशेष कर जिसमें अनेक छिद्र से होते हैं। घासः ( पु० ) १ चारा २ चरागाह । गोचरभूमि | -कुन्दम्,–स्थानं, ( न० ) चरागाह । घु ( धा० ग्रात्म० ) [ घवते, घुत, ] अस्पष्ट शब्द करना। ऐसा शब्द करना जिसका अर्थ समझ में नावे | घुः ( पु० ) कबुतर की कूटुरगूँ । गुटुरगूँ । घुट्ट ( धा० प० ) [ घुमति, छुटित ] १ पुनः आघात करना । बदला लेना रोकना । २ प्रतिवाद करना । (घोटते ) लौटना । ३ सौदा करना | बदुलौनल करना । घुटः घुटि: घुटी ( स्त्री० ) [ स्त्री०-घुटिक, -घुटिका, ] टखना। एड़ी। घुण ( धा०प० [ घेोणते, घुणाति, घुणित, ] लोटना | डगमगाना | घूमना । लौटना | धूम कर लौट आना | चक्कर देना। (आत्म० ) लेना । प्राप्त करना । एड़ी। घुणः (पु० ) घुन । छोटा कीड़ा विशेष अक्षरं - लिपि, (स्त्री० ) लकड़ी या कागज़ में धुनों की बनाई अक्षरनुमा आकृतियाँ घुटः घुण्टः ( पु० ) घटिका घुटिका (स्त्री० ) घुटकः घुराटकः ( पु० ) घुँड:- घुण्डः ( पु० ) भौरा । भ्रमर । घुर ( घा० प० ) [ धुरति, घुरित, ] शब्द करना । कोलाहल करना। सोने के समय खुराना। गुरांना भयकर होना । दुःख में रोना । ( धुरी घुरी (स्त्री० ) नथना । ( विशेष कर शूकर के ) घुघुर: ( पु० ) १ कीट विशेष | धुराना | २ गुर्राना । घुघुरी (स्त्री० ) शूकर का शब्द विशेष | घुलघुलारवः ( पु० ) एक प्रकार का कबूतर | घुष् ( धा० प० ) [ घोषति, घोषयति, - घोषयते, घुपित, घुष्ट, या घोषित ] 9 शब्द करना। आवाज़ फरना। शोर करना । २ घोषणा करना । घुसूणं ( न० ) केसर | जाफ्रान | धूकः ( पु० ) उल्लू | घुग्धू / अरिः (०) कौआ। ) हिलाना । घूमना । चक्कर ) काटना । ३०४ ) चमकना । घृणा ( स्त्री० ) १ अरुचि । घिन | दया। रहम । २ तिरस्कार | ३ भर्त्सना । विकार । घूर्ण ( घा० प्रा० ) [ घूर्णत, घूर्णति, घूर्णित ] | इधर उधर घूमना या मारे मारे फिरना । चक्कर लगाना। हिलना। घूम कर पीछे पलटना । घोटी घोटिका } ( स्त्री० ) घोड़ी । घूर्ण (वि० ) इधर उधर घूमने वाला ।- वायुः, घोणसः } ( पु० ) रेंगने वाला जन्तु विशेष । ( पु० ) बबण्डर | घूर्णनम् ( न० ) घूर्णना ( स्त्री० ) घृ ( धा०प० ) [ घरति घृत ] ema घोणा (स्त्री० ) १ नासिका । नाक | २ घोड़े का नथुना शूकर का थूथन | घेोणिन् (पु० ) शूकर करना । ( उभय० ) [ धारयति, घारयते, घारित ] नम करना | तर करना | छिड़कना घाटा } ( स्त्री० ) वृक्ष विशेष । सुपाड़ी का पेड़ | सींचना | घृण ( धा०प० ) [ घृणोति, घृण्ण ] जलना । घृणालु ( वि० ) दयालु । कोमल हृदय । कृपालु । घृणिः ( स्त्री० ) १ गर्मी | धूप | २ किरन | ३ सूर्य । ४ लहर । ( न० ) जल /- निधिः, ( पु० ) सूर्य घोषणा घृतं (न०) १ घी । २ मक्खन । ३ पानी । -अन्नः, -अर्चस्. (पु०) दहकती हुई आग। आहुतिः, ( स्त्री० ) घी की आहुतिः (पु० ) वृत्त विशेष - उदः ( पु० ) घी का समुद्र । -~-प्रोदनः, (पु०) घी मिश्रित भात। -कुल्या, ( स्त्री० ) घी की नदी । - दीधितिः, ( पु० ) श्राग | – धारः, ( स्त्री० ) अविच्छिन्न घी की धार। - पूरः, चरः, ( पु० ) मिष्ठान्न विशेष । -लेखनी, ( स्त्री० जिससे घी डाला घृताची (स्त्री) १ रात । २ कली या चमचा या निकाला जाय। सरस्वती देवी ३ अप्सरा विशेष /-गर्भसम्भवा, ( स्रो०) बड़ी इलायची । घृष् (धा० परस्मै० ) [ वर्षति, घृष्ट ] १ रगड़ना। मलना प्रहार करना २ झाड़ना। पालिश करना | चिकनाना । चमकाना | ३ पीसना । कूटना | कुचरना ४ स्पर्धा करना। हिर्स करना। डाह करना । वृष्टिः (पु० ) शूकर | ( स्त्री० ) १ पीसना | कूटना। मलना । २ प्रतिद्वन्द्वता | स्पर्धा | घोटः (पु० ) ) घोड़ा । अश्व |-अरिः, ( पु० ) घोटकः ( पु० ) ) भैसा । घोर (वि० ) १ भयङ्कर | भयानक | २ प्रचण्ड | उम्र 1 - प्राकृति, – दर्शन, (वि० ) भयानक शक्ल का । – घुष्यं / न० ) काँसा फूल | - रासनः, (पु०) - रासिन्, – चाशनः, वाशिन, (५०) शृगाल स्यार।-रूपः, ( पु० ) शिव । घेारं ( न० ) १ भय । डर । २ ज़हर । घोरः (पु० ) शिव | धोरा (स्त्री० ) रात । घोलः (पु० ) माठा। छाँछ । घेाषं ( न० ) काँसा धातु | घेोषः (१०) १ शोर गुल | २ बादल की गड़गड़ाहट ३ घोषणा ढिंढोरा | ४ अफवाह । किंवदन्ती । २ ग्वाला। गोप | ६ गाँव | पुरवा ७ कायस्थ । घोषणम् ( न० } } डिंडोरा । राजाज्ञा । फरमान । घोषणा ( स्त्री० ) ) घोषयित्नुः घोषयलुः ( पु० ) १ चिल्लाने वाला भाट । बंदी जन २ ब्राह्मण ३ कोकिल । ( ३०५ ) घ्न ( वि० ) [ स्त्री० – मी. ] मारने वाला। हत्या करने वाला। नाशक । विनाशक । घ्रा ( धा० प० ) [ जिघति, प्रात, -घाण ] १ सूंघना | सँध कर जान लेना। ३ धुंबन करना। चक चः ( पु० ) १ चन्द्रमा | २ कछुवा | ३ चोर । (अव्यय०) और। पादपुर्णक ( धा० उभ० ) [ चकति, - चकते, चकित ] अधाना। अफरना। सन्तुष्ट होना रोकना । घड़ना । चकास् (धा० परस्मै० किन्तु कदाचित् आत्मने भी) [चकास्ति, चकास्ते, चकासित, ] चमकना चमकीला होना । २ (आलं० ) प्रसन्न होना और समृद्धशाली होना । ( निजन्त) चमकाना | प्रकाशित करना । चफ ङ नोट- से श्रारम्भ होने वाला संस्कृत में कोई शब्द नहीं है। न्च च संस्कृत वर्णमाला या नागरीवर्णमाला का २२ वाँ | चक्रं ( न० ) १ पहिया | २ कुम्हार का चाक |३ तेली का कोल्हू | ४ भगवान विष्णु का आायुध विशेष ५ वृत्त । मण्डल ६ दल समूह | अक्षर और छठाँ व्यञ्चन और दूसरे वर्ग चवर्ग का प्रथम अक्षर यह भी व्यञ्जन है। इसका उच्चारण स्थान तालु हैं । यह स्पर्शवर्ण है और इसके उच्चारण में श्वास, विवार, घोष और अल्पप्राण प्रयत्न लगते हैं। घाण ( व० कृ० ) संधा हुआ। इन्द्रियं (दि०) आँखों का धंधा किन्तु नाक से सूंघ सूंघ कर जान लेने वाला ।-तर्पण, (वि० ) नासिकाप्रिय | -तर्पणम्, (न० ) सुगन्धि । घ्राणं ( न० ) १ सूचना | २ गन्धि। सुगन्थि । प्रातिः ( स्त्री० ) १ सूंघने की किया । २ नाक | चकित (वि० ) ( भय के कारण ) १ थरथर काँपता हुआ । २ भयमीत चौंका हुआ। ३ भीरु | डर- पोंक। शङ्कान्वित । शङ्कित | ( न० ) एक छन्द जिसके प्रत्येक पाद में १६ अक्षर होते हैं। चकोर: ( पु० ) तीतर की जाति का एक पहाड़ी पक्षी जो कि चन्द्रमा को देख बहुत प्रसन्न होता है। समुदाय | ७ राष्ट्र राज्य प्रान्त । सूबा । जिला। ग्रामों का समुदाय | १ सैनिक व्यूह १० युग | ११ अन्तरिच । ग्राकाशमण्डल | १२ सेना भीवभाड़ । १३ ग्रन्थ का अध्याय १४ भँवर । १५ नदी का घूमधुमाव । -अङ्गः, (पु०) १ राजहंस | २ गाड़ी | ३ चक्रवाक | - अटः, ( पु० ) १ मदारी | सपेरा | २ गुंडा | बदमाश | ठग ३ दीनार या सिक्का विशेष प्राकार, - प्राकृति, (वि०) गोलाकार | गोल । - आयुधः, ( पु०) श्रीविष्णु । - श्रावर्तः, (पु०) भँवर जैसी या चक्करदार गति ।- आहः, (पु० ) आह्वयः, ( पु० ) चक्रवाक | - ईश्वरः, (पु०) १ विष्णु । २ जिले का श्राला अफसर या सर्वोच्च अधिकारी। - उपजीविन, (पु०) तेली ।- कारकं, (न०) १ नाखून । नख । २ सुगन्ध-द्रव्य विशेष ।-गराडुः, ( पु० ) गोल तकिया । — गतिः, ( स्त्री० ) चक्कर चक्करदार चाल या गति । -गुच्छः, (पु० ) अशोक वृक्ष-ग्रहणं, (न०) [स्त्री० ग्रहणी] परकोटा | खाई चर, (वि० ) मण्डल में सं० श० कौ० – ३९ ( ३०६ ) कलाबाजी } (स्रो० ) राजहंस चकाङ्की ( घूमने वाला।-चूडामणिः (g०) मुकुटमणि | | चक्रकः ( पु० ) तर्क विशेष -जीवकः, - जीविन, ( पु० ) कुम्हार /- तीर्थ, ( न० ) नैमिवारण्य का तीर्थ विशेष :- धरः, ( पु० ) १ विष्णु का नाम । २ राजा। सूबेदार | प्रान्त का शासक | ३ देहाती नट । जादूगर। मदारी।-—धारा, (स्त्री०) पहिये की परिधि या उसका घेरा । – नाभिः, ( पु० ) पहिये की नाह। - नामन् (पु० ) १ चक्रशक । २ लोहभस्म !- नायकः, (पु०) १ सैनिक टोली का नायक | ३ सुगन्ध द्रव्य विशेष - नेमिः, एहिये की परिधि या उसका घेरा । पाणिः, ( पु० ) विष्णु भगवान |--- पादः -पादक, ( पु० ) १ गाड़ी | २ थी। -पालः, (पु० ) सूबेदार या प्रान्त का शासक २ एक १ सैनिक विभाग का अधिकारी । ३ आकाशमण्डल || चक्रीवतः } (पु० ) गधा । रासभ । खर । बन्धु, बान्धवः, (पु० ) सूर्य 1- बालः, - वालः, बाडः, वाडः, - बालं, वालं, - बार्ड, चाडं, (न०) १ मण्डल वृत्त । समुदाय । समूह | ३ आकाश भण्डल । ( पु०) १ पौराणिक पर्वत माला जो पृथिवी की परिधि को दीवाल की तरह घेरे हुए हैं और जो प्रकाश और अन्धकार की सीमा समझी जाती है | २ चक्रवाक | - भृत्, ( पु० ) १ चक्रधारी । २ विष्णु। - भेदिनी, (स्त्री०) रात । निशा । भ्रमः, -भ्रमिः, (स्त्री०) चक्की (आटा पीसने की ) । - मराड लिज् ( 5०) सर्प विशेष - सुखः, (पु० ) यानम्, (न० ) गाड़ी । -रद, ( पु० ) शूकर । - वर्तिन, (पु० ) आसमुद्रक्षितीश | सम्राट | -चाकः, ( पु० ) चकवा चकवी - वाढः, ( पु० ) १ सीमा । सरहद्द | २ डीवट | पतील- सोत । ३ किसी कार्य में व्याप्ति । - वातः, (पु०) तूफान । बंबदर | आँधी । --वृद्धि ( स्त्री० ) सूद दर सूदच्यूहः, ( पु० ) मण्डलाकार सैनिक संस्थापना । - संज्ञं, (न० ) टीन /- संज्ञः, ( पु० ) चक्रवाक । —साहयः, ( पु० ) चक्रवाक |~-हस्तः ( पु० ) विष्णु । चक्रः

(पु०) १ चक्रवाक | २ समुदाय । समूह | दल । |

-क (वि० ) चन्द्राकार | गोल । • चक्रवत् (वि०:) १ पहियादार या जिसमें पहिये लगे हों । २ गोल । ( पु० ) १ तेली । २ सम्राट | ३ विष्णु का नाम । चक्रिका (स्त्री० ) १ ढेर | दख । टोली | २ धोखा | दगाबाज़ी | ३ घुटना | सकिन् (पु०) १ विष्णु । २ सन्नाटू । कुम्हार । ३ तेली । ४ सूबेदार । प्रान्त का शासक ६ गधा । ७ चक्रवाक |८ मुखबिर | सूचना देने वाला | 8 सर्प | १० काक | ११ मदारी | नट | चक्रिय (वि०) यात्रा करने वाला। गाड़ी में बैठने वाला। चक्रीवत् । चक्षू ( घा० आत्म० ) [ चष्टे ] १ देखना | ताकना । पहचानना । २ बोलना कहना बतलाना । चक्षुस् ( पु० ) १ शिक्षक दीक्षागुरु | अध्यात्म विद्या सम्बन्धी विद्या पढ़ाने वाला | २ देवगुरु बृहस्पति । चक्षुष्य ( वि० ) १ सुन्दर खूबसूरत मनोहर २ आँखों के लिये भला । चक्षुण्या ( स्त्री० ) सुन्दरी स्त्री । चतुस् ( म० ) १ नेत्र । आँखे । २ दृष्टि । दृकूशक्ति । देखने की शक्ति। -गोचर, (वि० ) दिखलाई पढ़ने वाला। - दानं, ( न० ) मूर्ति प्रतिष्ठा के अन्तर्गत नेत्रोन्मीलन कृत्य । -पथः, (पु०) दृष्टि की पहुँच । अन्तरिच - मलं, ( न० ) कीचड़ | आँख का मैल | - रागः, (चरागः) (पु०) आँखों की सुख । आँखभिड़ौल 1- रोगः, ( = चनुरोगः ) ( पु० ) नेत्ररोग विशेष |-- विषयः, ( पु० ) दृष्टिगोचरत्व | २ चिन्हानी | देखने से प्राप्त हुआ ज्ञान अथवा देखने से प्राप्त होने वाला ज्ञान | ३ कोई भी पदार्थ जो दिख लाई पड़े । [ अच्छे या स्वच्छ नेत्रों वाला। चक्षुष्मत् ( वि० ) १ देखने की शक्ति से सम्पन्न । २ चंकुरा, चङ्करः (पु० ) ) चंकुणः, चङ्कुणः(पु०)} १ ३ कोई भी पहियादार वृष । पेडू । २ गाढ़ी । सवारी । चक्रमणम् चंक्रमणम् ) ( न० ) 3 घूमना फिरना । टहलना । २ } चमणम्। धीरे धीरे चलना। चन्बू ( धा०प० ) [ चञ्चति, चञ्चित ] १ हिलना । लहराना । कौंपना । २ दोदूल्यमान होना झूमना । चञ्चः । चंचः } ( ५० ) १ टोकनी । डलिया । २ पञ्चाङ्गुल- मान पांच अंगुल का नाप । भौरा । चंचरिन् । चञ्चरिन् । ( पु० ) भ्रमर । चंचरीकः ) चञ्चरीकः । } ( पु० ) भ्रमर । चंचल ) ( वि० ) १ कँपकपा । थरथराने वाला चञ्चल) काँपने वाला । २ अस्थिर । एकला न रहने वाला । चंचू । चञ्चू ) }(स्त्री० ) चोंच | ( ३०७ ) भौरा । वंड ) ( न० ) १ गर्मी | उष्णता | २ क्रोध | चण्डम् ) रोप | चंडा, चराडा ( स्त्री० / १ दुर्गा देवी । २ क्रोधन चंचला ) ( स्त्री० ) १ विद्युत | बिजली | २ धन की | चंडी, चराडी : स्खी० ) ) स्वभाव की स्त्री | चञ्चला अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी जी । चंचलः ) ( पु० ) १ पवन | २ प्रेमी | आशिक चञ्चलः । ३ मनमौजी | लम्पट । चंडातः चंचा । (वि० ) १ बेत का बना हुआ । २ गुड्डा | } चण्डत: } ( पु० ) सुगन्धयुक्त कनेर । चञ्चा ) गुड़िया | पुसला ) ( वि० ) : प्रसिद्ध । प्रख्यात | परिचित । चंडातकः, चण्डातकः ( पु० ) | कुर्ती । चंयु चंडातकम्, चण्डातकम् ( न० ) ) छोटाकोट | चन्बु ) २ चतुर । -प्रहार, ( पु० ) चोंच की | चंडाल ) ( वि० ) दुष्ट । निष्ठुर । कर्मा । चोट । -भृत्, ( पु० ) कत्, ( पु० ) पक्षी | चण्डाल ) क्रूरकर्मन -वल्लकी, ( स्त्री० ) चण्डाल की वीणा । चज्युः } (४० ) हिरन । चंडालः ) ( पु० ) १ अत्यन्त नीच पूर्व घृणित एक चण्डालः । चकर जाति का नाम जिसकी उत्पति ब्राह्मण पिता और शूजा स्त्री से हुई है । २ इस जाति का मनुष्य । जातिच्युत पुरुष | चंचुर} ( दि० ) चतुर । पटु १ चञ्चुर चटू ( धा०प० ) [ चटति, चटित ] कूटना । गिरना। अलग होना । [चाटयति ३ वध करना । २ घायल करना । ३ पैठना । चाट्यते ] घुसना । तोड़ना । चटकः ( पु० ) गौरैया। है चटका } (स्त्री० ) मादा गौरैया | चटुं ( न० ) चटुः ( पु० ) चतुर चटुतोल ) ( वि० ) १ कंपकपा । २ मनोहर | चट्टेल्लोल) सुन्दर | ३ मधुरभाषी । चय (वि० ) प्रसिद्ध । प्रख्यात निपुण चा: ( पु० ) मटर विशेष । चयकः ( पु० ) चना सटर। चंड } ( वि० ) 1ोध 2 चण्ड ! युक्त | २ गर्म । उष्ा । ३ फुर्तीला । कठ ४ भालदार १ चूक :- दीधितिः-भानुः (go ) सूर्य । - ईश्वरः, ( पु० ) शिव का रूप विशेष । -मुराडा, { चामुण्डा ) ( स्त्री० ) दुर्गा का रूप विशेष | --मृगः, ( पु० ) वन्य जन्तु विशेष | विक्रम, ( दि० ) अत्यन्त पराक्रमी । चापलूसी भरे शब्द | पेट । चटुल ( वि० ) १ कैंपकपा । कौंपने वाला । अस्थिर | अढ़ | २ चञ्चल ३ मनोहर सुन्दर । प्रिय | चटुला (स्त्री० ) बिजली । विद्युत । चंडालिका चण्डालिका चंडिका चरिडका } (स्त्री० ) दुर्गा का नाम 1 } ( स्त्री० ) चाण्डाल की वीणा । चंडिमन् | ( ५० ) १ क्रोध | रोष | उग्रता | चण्डिमन्) २ गर्मी । उव्यता । चरिडल: } (पु० ) नाई । हज्जाम। चतुर् ( वि० ) [ संख्यावाची- सदा बहुवचनान्त यथा - (पु.) चत्वार; (स्त्री०) चतत्रः (न०) चत्वारि ] चार ।-अंशः, (पु०) चतुर्थ भाग । अम (न० ) १ जिसके चार अंग हों। हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सिपाहियों से सज्जित सेना । ^t^

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- atta r net 1 चतुर ( गजशाला | चतुरं ( न० ) १ धातुर्थ पटुता । निपुणता । २ [ ( 50 ) संन्यासाश्रम चतुर्थ (वि०) [स्त्री०-~चतुर्थी] चौधा-याश्रमः चतुर्थ ( न० ) चौधाई | चतुर्थाश चतुर्थक (वि०) चौथा | चतुर्थक: (पु० ) चौथिया ज्वर चतुर्थी (स्त्री० ) १ चौयतिथि | २ कारक विशेष - कर्मन्, ( न० ) विवाह में एक कर्म विशेष जो चतुर्थ दिवस किया जाता है। चतुर्धा ( अन्यथा० ) चार प्रकार से चार गुना | चतुष्कम् (न० ) : चार का समूह २ चौराहा । ३ चौफोन आँगन चार खंभों पर टिका हुआ बड़ा कमरा चौहारी। चतुष्की (स्त्री० ) १ चौकोन बड़ी पुष्करिणी । २ मसतरी। मच्छरदानी | चतुष्टय (वि० ) [ स्त्री०-चतुप्रयी ] चारगुना । चतुष्टयम् ( न० ) : चार का समूह | २ चौकोन । चत्वरं ( न० ) १ चबुतरा | आँगन | २ चौराहा | ३ समथर भूमि जो यज्ञ के लिये तैयार की गयी हो। चत्वारिंशत् ( श्री० ) चालीस । ४० । चत्वालः ( पु० ) 1 हवनकुण्ड | २ कुरा ३ गर्भाशय चद् (धा० उभय० ) [ चदति, चढ़ते ] माँगना । याचना करना । चदिः ( ५० ) १ चन्द्रमा १२ कपूर | ३ हाथी । ४ सपै । चन (अव्यया० ) [ च+न ] और नहीं । चंद } ( घा० परस्मै० ) [चन्द्रति चन्द्रित ] : चमकना | २ प्रसन्न होना। चन्द् चंदः ( पु० ) १ चन्द्रमा २ कपूर | (१०) चन्दन । सुगन्बद्रव्य विशेष - अवलः, - गिरि, अद्रि (पु० ) मलयपर्वत उदकं ( न० ) चन्दन मिश्रित जत- पुष्पं ( स० ) लवंग। लौंग | चंदनः चन्दनः चंदनम् चन्दनम् चंदिरः चन्दिर: } (पु० ) १ हाथी । २ घरमा । चंद्रः ) ( पु० ) चन्द्रमा | चाँद | २ चन्द्रग्रह | ३ कपूर मयूरपंख में की चन्द्रिकाएँ । २ ३०६ ) चन्द्रः जल ६ सुवर्ण। [ चन्द्र जब समासान्त शब्दों के धन्त में आता है, तब इसका अर्थ प्रख्यात या आदर्श होता है। यथा दुरुपचन्द्र अर्थात सर्वो स्कृष्ट या धादर्श पुरुष ] - (पु० ) चन्द्र की किरण-अर्धः, (पु० ) आधा चम - पालजः औरसः, -अः, -जातः, - तनयः, -नन्दनः पुत्रः ( पु० ) बुध ग्रह -शाननः, ( पु० ) कार्तिकेय आपीडः - J 1 ( 50 ) शिव 1- ग्राहयः (पु० ) कपूर- इष्टा, ( स्त्री० ) कमल का पौधा कमोदिनी के पुष्पों का समूह /-उपलः, ( पु० ) चन्द्र- कान्त मदि - कान्तः, ( पु० ) चन्द्रकान्त मणि कला, ( सी० ) चन्द्रमा का एक अँश -कान्ता, ( स्त्री० ) १ रात २ चाँदनी - कान्तिः ( स्त्री० ) चाँदनी । ( न० ) चाँदी - क्षयः, (पु० ) अमावास्या 1-गोलः, ( पु० ) चन्द्रलोक - गोजिका ( खी० ) चाँदनी--प्रणम् (न० ) चन्द्रमा का ग्रहण | -चञ्चला (स्त्री०) एक प्रकार की छोटी मछली । -चूड:-मैलिः - शेखरः ( पु० ) शिवजी की उपाधियाँ --दाराः, (पु० बहुवचन ) २७ नक्षत्र जो दक्ष की कन्याएं हैं, चन्द्रमा की स्त्रियाँ हैं। घुतिः (पु० ) चन्दन काट । ( श्री० ) चाँदनी ।-नामन, ( पु० ) कपूर -- पाद, ( पु० ) चन्द्र किरण --प्रभा, (स्त्री० ) चाँदनी-बाला, (स्त्री०) १ बड़ी इलायची २ चाँदनी 1-बिन्दु (पु० ) चिन्ह विशेष ( ँ )।-सरूमन, ( म० ) कपूर 1-भागा, ( श्री० ) दक्षिण भारत की एक नदी का नाम । -भासः, (पु० ) तलवार 1-2 -भूति, ( न० ) चाँदी । - मणिः, (पु०) चन्द्रकान्त मणिरेखा - लेखा (स्त्री) चन्द्रमा की कक्षा-रेयुः, ( पु० ) ग्रन्थचोर | लेखचोर। - जोकः, (४०) चन्द्रमा का लोक 1-लोहकं,-लोहं,- जौहर्क, ( म० ) चाँदी /- वंशः ( पु० ) भारतीय प्राचीन प्रसिद्ध राजवंशों में से एक चन्द्रवंश/-वदन. ( वि० ) चन्द्रमा जैसे मुख वाला 1-घतं, (न० ) एक प्रकार का व्रत । 1- + ( ३१० ) चन्द्रक वयः ! ~शाला, ( खी० ) १ अटारी अटा । २ चाँदनी । - शालिका, ( श्री० ) अटा । घटारी --शिवा. ( श्री० ) मणि (~-संक्ष:, ( पु० ) कपूर /-सम्भवः, चपेट, चपेटिका ( स्त्री० ) थप्पड़ झापड़ चम् (धा० परस्मै० ) [ चमति, चान्त, ] १ पीना। उसकना पी डालना । २ खाना । चमः (पु० ) एक प्रकार का हिरन । चन्द्रकान्त की ( पु० ) बुध ग्रह सम्भवा, ( स्त्री० ) छोटी | चमः ( पु० } } जन्तु विशेष की पूँछ का बना चँवर । इलायची-सातोक्यं, (न० ) चमरम् ( म० ) प्राप्ति। -~~-इन्, (न०) राहु की उपाधि ( पु० ) १ चमचमाती तलवार | २ रावण की सखवार का नाम २ केरल के राजा सुधार्मिक का पुत्र चन्द्रहास था। चन्द्रलोक हासः चमरी (स्त्री०) सुरागाय । यमर की मात्रापुच्छ्रं, ( न० ) चमर की पूंछ जो चंवर की तरह इस्ते- माल की जाती है।पुच्छ:, (पु० ) गिलेहरी । चमरिकः ( पु० ) कोविदार हुए। चमसः (पु० ) | यशों में सोमवती का रस चमसम् (न० ) का पात्र विशेष | शत्रूः (स्त्री० ) सेना ( फौज ) सैन्यदल जिसमें ७२३ हामी ७२६ ही रथ २१८७वार और ३६४ पैदल होते हैं।-~चः, (पु०) योद्धा | सिपाही । -नाथः, -पः, - पतिः, (पु० ) सेनानायक | जनरा। कर्मोंडर। (पु० ) | मयूर के पंखों की चन्द्रिका | ३ नख | ४ चन्द्र के आकार का मण्डल | नसी (स्त्री० (जो जल में तैन विन्दु डालने से बन जाता है।) चन्द्रकिन् ( पु० ) मदूर। मोर। चन्द्रकस ( पु०) चन्द्रमा | चन्द्रिका ( श्री० ) १ चाँदनी | २ व्याख्या टीका ३ रोशनी | ४ बड़ी इलायची | ५ चन्द्रभागानदी ६ मल्लिका लता! अम्बुजं, (न० ) सफेद कमल ओ चन्द्रमा के उदय होने पर खिलता है। -- द्रावः, ( पु० ) चन्द्रकान्त मयि । --- -पायिन, ( पु० ) चकोर पक्षी । चन्द्रिलः (४०) भाई । २ शिव | चपू ( चा० परस्यै० [ चपति ] साम्यना प्रदान | करना। टाँडस बँधाना। (उभय० ) [ चपयति, -चपयते, ] पीसना । कूटना | गूंथना | चमूर (5० ) एक प्रकार का हिरन । www चम्पू (धा० उभय०) (चंपयति, चपयते] जाना। हिलना। i सानना । चपटः (पु० ) देखो चपेट 1 चपल (वि० ) १ काँपने वाला हिलाने वाला थर- थराने वाला । २ स्थिर चंचल अनियमित डॉवाडोज ३ निर्बल नश्वर । ४ फुर्तीला | उतावला । ५ थविचारी। अविवेकी । चपलः (पु० ) १ मदली २ पारा | पारद। ३ चातक पक्षी ४ सुगन्ध द्रष्य विशेष | चपला (श्री०) १ बिजली | २ कुलटा श्री ३ मदिरा ४ लक्ष्मी २ जिह्वा (~जनः, (पु० ) चंचल या अस्थिर स्वभाव की स्त्री | चपेटः (go ) थप्पड़ २ फैले हुए हाथ की होली। चः (०) चंपा का बुथ २ सुगन्धिद्रव्य विशेष | माला, (स्त्री० ) आभूषण विशेष २ चम्पा के - चम्पकं ( ऋ० ) चम्पा का फूल। चंपाकली फूलों का हार । ३ छन्द विशेष | रम्भा, ( स्त्री० ) कदली विशेष चम्पकातुः (पु० ) कटहर का पेड़ | चम्पकावती ) ( स्त्री० ) गंगातट पर प्राचीन नगर का नाम आधुनिक नाम भागलपुर है। अवस्थित एक इस पुरी का चम्पा चम्पावती " चम्पातुः (पु० ) देखो " चम्पकालु" । चम्पू ( स्त्री० ) गद्यपथ मिश्रित काव्य विशेष विश्व भिधीयते । 1 - साहित्यदर्पण | चय् (धा० श्रास्म ० ) [ चयते ] ओर जाना | चयः ( पु० ) 1 समूह समुदाय | ढेर २ टीला | ३ भुस्स४ परकोटा ५ दुर्गद्वार । ६ बैठकी | ७ इमारत भवन ८ लकड़ी की दाल । चयनम् वयनम् ( न० ) १ पुष्पादिक को बीन कर एक करने की क्रिया २ ढेर | चर् ( धा० पर० ) [ अरति, चरित ३१ चलना। फिरना। इधर उधर घूमना | भ्रमण करना | २ अभ्यास करना। देखना | ३ चरना | ४ खाना । निघटाना। ५ किसी काम में लगना ६ रहना। किसी दशा में रहना। [ निमन्त ] [चारयति] | चरिः (g० ) जन्तु | १ चलाना भेजना | २ भगा देना। ४ अभ्यास | चरित (भू० ० ) १ भ्रमण किया हुआ । घूमा हुआ। करवाना | 1 चर (वि० ) [ स्त्री०-चरी, ] : कॉपसा हुआ थर थराता हुआ। २ जंगम | चलने वाला | ३ जान- वार। जीवधारी | अवर, ( पु० ) स्थावर २ पूरा किया हुआ | अभ्यास किया हुआ ३ उपलब्ध किया हुआ | ४ आना हुआ | भेंट किया हुआ -- अर्थ, ( वि० ) १ सफल / २ सन्तुष्ट ३ पूरा किया हुआ। १ जङ्गम1-अचरम्, (न०) १ संसार | २ आकाश | चरितम् ( न० ) १ गमन | मार्ग । अभ्यास । चाल- अन्तरिच -द्रव्यं ( न० ) हिलाने बुलाने चलन। आचरण। ३ जीवनचरित्र स्वयं लिखित चाला पदार्थ |~~ मूर्तिः, ( पु० ) उत्सव मूर्ति । अपनी जीवनी | इतिहास ( कथा ) | चरः ( पु० ) १ जासूस सेटिगा दूस | २ खंजन चरित्र ( न० ) १ आचरण आदृत | बान | टेव | मङ्गलग्रह | ६ चाल-चलन | करतब २ सम्पादन निर्वाह | पत्ती | ३ जुआ। ४ कौदी | २ मङ्गलवार । चरकः ( पु० ) १ जासूस २ रमता भिचुक । ३ पालन | रक्षा अनुष्ठान ३ इतिहास जीवनी स्वहस्त लिखित जीवनी | वृत्तान्त | साहसिककार्य । आश्चर्म घटना स्वभाव | मिनाज | १ कर्तव्य निर्दिष्ट अनुष्ठान | खंभा | थुन- चरिष्णु ( वि० ) डोलने वाला । क्रियाशील | ४ श्लोक का भ्रमणकारी । 1 आयुर्वेद विशेष ४ पापड़ चरहः ( पु० ) खक्षन पक्षी। चरणः (पु० } } १ पैर । २ सहारा | चरणम् (न० ) 3 किया। मे पृष्ठ मूल एक पाइ ५ चौधाई। ६ वेद की शाखा | ७ जाति । महत्व | (२०) घूमना फिरना। भ्रमण २ सम्पादन अभ्यास ३ चालचलन दर्ताव | ४ सम्पन्नता । ५ भवरा-तं उदकं, ( न० ) जल। जिससे वास या किसी देव मूर्ति के पैर धोये गये है। पैर का धोबन 1- अरविन्द, - कमलं – पद्मं, (न०) कमल जैसे पैर :- श्रायुधः, (पु०) खुर्गा। श्रास्कन्दनम्, ( न० ) कुचरना | पैरों से रुँधना - प्रन्थिः | चचरी ) परिडतों का पाठ ( पु० ) -पर्वन, ( न० ) चर्चारिका ) (स्त्री०) उपनाम्यासः, खेल उत्सव का उल्लास लूसी । ७ घुँघराले बाल । ( पु० ) कदम-पः, ( पु० ) वृक्ष-पतनम्, ( न० ) पैरों पड़ना । - पतित, ( पु० ) पैरों पदना। पैर लगना।-- -शुश्रूषा, सेवा, (स्त्री०) खगढवत नकघिसनी | २ सेवा | भक्ति | चरम ( वि० ) १ अन्तिम आखरी २ पिछला | ३ १ 1 चधिका युवा पुराना | ४ विल बाहिरी | २ पश्चिमी । ६ सद से मीचा या कम । --अचलः, अि ~~दमाभृत् (पु० ) अस्ताचल पर्वत / व्यवस्था ( स्त्री० ) वृद्धावस्था बुढ़ापा - कालः, ( पु० ) मृत्यु की घड़ी। धरमम् ( अव्यया० ) अन्त में आखिर में । नमः ( पु० ) कम्प विशेष हृज्य विशेष | चर्च - चर्च (धा० उभय०) [चर्चयति पढ़ना | सीखना । अध्ययन चर्जति चर्चित करना। [ परस्मै० गाली देना। धिकारना | निन्दा करना । २ बहस करना। विचार करना। चर्चनं (न०) १ अध्ययन पुनरावृत्ति | बारबार पढ़ना। २ शरीर में उबटन या क्षेप करना | गीत विशेष | २ ताल देना । ३ उत्सव के समय के ५ उत्सव ६ चाप चर्चा चर्चिका ( श्री० ) १ पाठ पुनरावृत्ति अध्ययन | बार बार पढ़ना। २ बइस खोज । अनु- संधान | तहकीकात । ३ निदिध्यासन |४ शरीर में चन्दनादि का लेप | चर्चियम् ( ३१२ चर्चियम् (न०) शरीर में चन्दनादि लगाना | लेप । उक्टन । चर्चित ( ३० कृ० ) १ लगा हुआ । लेप किया हुआ २ विचारित । अनुसन्धान किया हुआ। चर्पट: (पु० ) चपेट थप्पड़ | चापड़ चर्पटी (स्त्री० ) चपाती। रोटी। चर्मट: (पु० ) ककड़ी [ ककड़ी | चर्मटी (स्त्री० ) १ आनन्द कोलाहल । हपैरव । २ चर्मम् ( न० ) ढाल | O चर्मरावती (स्त्री० ) चंबल नदी । यह नदी इटावे के पास यमुना में गिरती है। चर्मन् ( न० ) १ चाम । २ चमड़ा | ३ स्पर्शज्ञान | ४ ढाल /- अम्भस, ( न० ) शरीर का स्वच्छ तरल पदार्थ रस - अनं, (न० ) चमड़े का कारोबार । अवकर्तिन, प्रवकर्तृ (न०) मोची । जूता बनाने वाला । चमार /- कारः, - कारिन्, (पु० ) मोची । चमार | -कीलः, कीलं, (न० ) मस्सा | टेंदर - चित्रकं, (न० ) सफेद कोढ़ । -जं. ( न० ) १ बाल । २ खून –तरङ्गः, (५०) सुरी। शिकन । -दण्डः (पु०) -नालिका, (स्त्री० ) कोड़ा । द्रुमः, वृक्षः, ( 50 ) भोजपत्र का वृक्ष - पा, ( स्त्री० ) पाँसे फेंकने का चमड़े का चौरस टुकड़ा1-- पत्रा, (स्त्री०) चिमगीदछ । पादुका, ( स्त्री० ) जूता । —प्रभेदिका, (स्त्री०) चमार की राँपी :- प्रसेवधः (पु० ) - प्रसेविका, ( स्त्री० ) धोंकनी | बंधः, ( पु० ) चमड़े का तस्मा। -मुराडा, ( स्त्री० ) दुर्गा का नाम । यष्टिः, ( स्त्री० ) चाबुक 1-वसनः, ( पु० ) शिवजी | वाद्य, ( न० ) दोल । ढोलक | सबला आादि । –सम्भवा, (स्त्री०) बड़ी इलायची-सारः, (पु०) शरीर का स्वच्छ तरल पदार्थ या रस। · चर्ममय ( वि० ) चमड़े का चर्मरुः चर्मार: } ( पु० ) मोची चमार | 7 ) चलन ढालधारी सिपाही । २ केला । का पेड़ | चर्या (स्त्री० ) १ गति । चाल । २ ३ भूर्जपत्र चालचलन । व्यवहार | आचरण १३ अभ्यास | अनुष्ठान | निर्वाह | रहा। ५ नियमित अनुष्ठान | ६ भत्तण । ७ रस्म । रीति । चव् ( धा० पर० ) [ चर्वति, चर्वयति चर्षयते, चर्षित ] : चवाना | खाना। कुतरना। दुनगना । 4 २ चूसना | घसकना । ३ चखना | चर्वणम् ( स० ) चर्वण ( स्त्री० ) चर्चा ( स्त्री० ) थप्पड़ का प्रहार। चर्वित ( भू० कृ० ) १ चवलाया हुआ | कुतरा हुआ। खाया हुआ धक्खा हुआ। चर्वणम्, ( न० ) चवाये हुए को चवाना। एक ही विषय की शब्दान्तर में पुनरुक्ति 1- पात्रं ( न० ) पीकदानी । १ चबाना । खाना । २चसकना । १२ चखना | चलू ( धा० पर० )[ चलति, चलते, चलित ] हिलना। काँपना। थर्राना धड़कना । उथल पुथल होना । धार्मिक ( वि० ) ढाल बारी । घर्मिन् (वि० ) वालधारी | २ चमड़े का । ( पु० ) | चलनः ( पु० ) पैर । २ हिरन । 1 चलू ( वि० ) १ डोलता हुआ । काँपता हुआ | २ अस्थिर । ढीला | ३ निर्बल कमज़ोर। भाशवान । ४ घबड़ाया हुआ । प्रचल, (वि० ) १ स्थावर जंगम २ चंचल नाशवान --अचलः, (पु०) काक /- अन्तकः ( पु० ) गठिया । --श्रात्मन, ( वि० ) चञ्चल।-इन्द्रिय (वि० ) १ इन्द्रिय सम्बन्धी । इन्द्रियसेव्य २ सहज में परिवर्त- नीय । -इघुः ( पु० ) वह तीरंदाज़ जिसका तीर लक्ष्यच्युत हो जाय। -कर्णः (पु० ) किसी ग्रह का पृथिवी से ठीक ठीक अन्तर - चञ्चुः, ( पु० ) चकोर पक्षी- चित्त, ( वि० ) चञ्चल मना - दलः, -पत्रः, ( पु० ) अश्वत्थ वृत्त । चलः (पु० ) १ कंपकपी । घबड़ाहट विकलता । २ पवन | ३ पारद | चला ( स्त्री० ) १ लक्ष्मी । २ सुगन्धद्रव्य विशेष | चलन ( वि० ) हिलने वाला। काँपने वाला। पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२० पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२१ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२२ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२३ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२४ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२५ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२६ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२७ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२८ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२९ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३३० पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३३१ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३३२ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३३३ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३३४ पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३३५ मीडियाविकि:Proofreadpage pagenum templateपृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३३६ मीडियाविकि:Proofreadpage 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