महाभारतम्-01-आदिपर्व-004
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सौतिशौनकसंवादमुखेन कथोपोद्धातः।। 1 ।।
पौराणिकः पुराणे कृतश्रमः स कृताञ्जलिस्तानुवाच। `मयोत्तङ्कस्य चरितमशेषमुक्तं जनमेजयस्य सार्पसत्रे निमित्तान्तरमिदमपि।' किं भवन्तः श्रोतुमिच्छन्ति किमहं ब्रवाणीति।। | 1-4-1a 1-4-2a 1-4-2b 1-4-2c |
तमृषय ऊचुः। | 1-4-3x |
परं रौमहर्षणे प्रवक्ष्यामस्त्वां नः प्रतिवक्ष्यसि वचः शुश्रूषतां कथायोगं नः कथायोगे।। | 1-4-3a |
तत्र भगवान् कुलपतिस्तु शौनकोऽग्निशरणमध्यास्ते। `दीर्घसत्रत्वात्सर्वाः कथाः श्रोतुं कालोस्ति।।' | 1-4-4a 1-4-4b |
यौऽसौ दिव्याः कथा वेद देवतासुरसंश्रिताः। मनुष्योरगगन्धर्वकथा वेद च सर्वशः।। | 1-4-5a 1-4-5b |
स चाप्यस्मिन्मशे सौते विद्वान्कुलपतिर्दिवजः। दक्षो धृतव्रतो धीमाञ्शास्त्रे चारण्यके गुरुः।। | 1-4-6a 1-4-6b |
सत्यवादी शमपरस्तपस्वी नियतव्रतः। सर्वेषामेव नो मान्यः स तावत्प्रतिपाल्यताम्।। | 1-4-7a 1-4-7b |
तस्मिन्नध्यासति गुरावासनं परमार्चितम्। ततो वक्ष्यसि यत्त्वां स प्रक्ष्यति द्विजसत्तमः।। | 1-4-8a 1-4-8b |
सौतिरुवाच। | 1-4-9x |
एवमस्तु गुरौ तस्मिन्नुपविष्टे महात्मनि। तेन पृष्टः कथाः पुण्या वक्ष्यामि विविधाश्रयाः।। | 1-4-9a 1-4-9b |
सोऽथ विप्रर्षभः सर्वं कृत्वा कार्यं यथाविधि। देवान्वाग्भिः पितॄनद्भिस्तर्पयित्वाऽऽजगाम ह।। | 1-4-10a 1-4-10b |
यत्र ब्रह्मर्षयः सिद्धाः सुखासीना धृतव्रताः। यज्ञायतनमाश्रित्य सूतपुत्रपुरस्पराः।। | 1-4-11a 1-4-11b |
ऋत्विक्ष्वथ सदस्येषु स वै गृहपतिस्तदा। उपविष्टेषूपविष्टः शौनकोऽथाब्रवीदिदम्।। | 1-4-12a 1-4-12b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि चतुर्थोऽध्यायः।। 4 ।। |
1-4-7 प्रतिपाल्यतां प्रतीक्ष्यतां।। 1-4-10 वाग्भिः ब्रह्मयज्ञीयाभिः।। चतुर्थोऽद्यायः।। 4 ।।
आदिपर्व-003 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-005 |