महाभारतम्-01-आदिपर्व-226
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पाण्डवानां हास्तिनपुरगमनंप्रति श्रीकृष्णद्रुपदयोरश्यनुज्ञा।। 1 ।।
पृथाविदुरसंवादः।। 2 ।।
प्रस्थितानां पाण्डवानां द्रुपदेन पारिबर्हदानम्।। 3 ।।
प्रत्युद्गमनायागतैः कौरवैः सह पाण्डवानां भीष्मादिवन्दनपुरःसरं गृहप्रवेशः।। 4 ।।
द्रुपद उवाच। | 1-226-1x |
एवमेतन्महाप्राज्ञ यथात्थ विदुराद्य माम्। ममापि परमो हर्षः संबन्धेऽस्मिन्कृते प्रभो।। | 1-226-1a 1-226-1b |
गमनं चापि युक्तं स्याद्दृढमेषां महात्मनाम्। न तु तावन्मया युक्तमेतद्वक्तुं स्वयं गिरा।। | 1-226-2a 1-226-2b |
यदा तु मन्यते वीरः कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। भीमसेनार्जुनौ चैव यमौ च पुरुषर्षभौ।। | 1-226-3a 1-226-3b |
रामकृष्णौ च धर्मज्ञौ तदा गच्छन्तु पाण्डवाः। एतौ हि पुरुषव्याघ्रावेषां प्रियहिते रतौ।। | 1-226-4a 1-226-4b |
युधिष्ठिर उवाच। | 1-226-5x |
परवन्तो वयं राजंस्त्वयि सर्वे सहानुगाः। यथा वक्ष्यसि नः प्रीत्या तत्करिष्यामहे वयम्।। | 1-226-5a 1-226-5b |
वैशंपायन उवाच। | 1-226-6x |
ततोऽब्रवीद्वासुदेवो गमनं रोचते मम। यथा वा मन्यते राजा द्रुपदः सर्वधर्मवित्।। | 1-226-6a 1-226-6b |
द्रुपद उवाच। | 1-226-7x |
यथैव मन्यते वीरो दाशार्हः पुरुषोत्तमः। प्राप्तकालं महाबाहुः सा बुद्धिर्निश्चिता मम।। | 1-226-7a 1-226-7b |
यथैव हि महाभागाः कौन्तेया मम सांप्रतम्। तथैव वासुदेवस्य पाण्डुपुत्रा न संशयः।। | 1-226-8a 1-226-8b |
न तद्ध्यायति कौन्तेयः पाण्डुपुत्रो युधिष्ठिरः। यथैषां पुरुषव्याघ्रः श्रेयो ध्यायति केशवः।। | 1-226-9a 1-226-9b |
वैशंपायन उवाच। | 1-226-10x |
`पृथायास्तु ततो वेश्म प्रविवेश महामतिः। पादौ स्पृष्ट्वा पृथायास्तु शिरसा च महीं गतः।। | 1-226-10a 1-226-10b |
दृष्ट्वा तु देवरं कुन्ती शुशोच च मुहुर्मुहुः। | 1-226-11a |
कुन्त्युवाच। | 1-226-11x |
वैचित्रवीर्य ते पुत्राः कथंचिज्जीवितास्त्वया।। | 1-226-11b |
त्वत्प्रसादाज्जतुगृहे मृताः प्रत्यागतास्तथा। कूर्मी चिन्तयते पुत्रान्यत्र वा तत्र संमता।। | 1-226-12a 1-226-12b |
चिन्तया वर्धिताः पुत्रा यथा कुशलिनस्तथा। तव पुत्रास्तु जीवन्ति त्वद्भक्त्या भरतर्षभ।। | 1-226-13a 1-226-13b |
यथा परभृतः पुत्रानरिष्टा वर्धयेत्सदा। तथैव पुत्रास्तु मम त्वया तात सुरक्षिताः।। | 1-226-14a 1-226-14b |
क्लेशास्तु बहवः प्राप्तास्तथा प्राणान्तिका मया। अतः परं न जानामि कर्तव्यं ज्ञातुमर्हसि।। | 1-226-15a 1-226-15b |
विदुर उवाच। | 1-226-16x |
न विनश्यन्ति लोकेषु तव पुत्रा महाबलाः। अचिरेणैव कालेन स्वराज्यस्था भवन्ति ते।। | 1-226-16a 1-226-16b |
बान्धवैः सहिताः सर्वे न शोकं कुरु माधवि। | 1-226-17a |
वैशंपायन उवाच।' | 1-226-17x |
ततस्ते समनुज्ञाता द्रुपदेन महात्मना।। | 1-226-17b |
पाण्डवाश्चैव कृष्णश्च विदुरश्च महामतिः। आदाय द्रौपदीं कृष्णां कुन्तीं चैव यशस्विनीम्।। | 1-226-18a 1-226-18b |
सविहारं सुखं जग्मुर्नगरं नागसाह्वयम्। `सुवर्णकक्ष्याग्रैवेयान्सुवर्णाङ्कुशभूषितान्।। | 1-226-19a 1-226-19b |
जाम्बूनदपरिष्कारान्प्रभिन्नकरटामुखान्। अधिष्ठितान्महामात्रैः सर्वशस्त्रसमन्वितान्।। | 1-226-20a 1-226-20b |
सहस्रं प्रददौ राजा गजानां वरवर्मिणाम्। रथानां च सहस्रं वै सुवर्णमणिचित्रितम्।। | 1-226-21a 1-226-21b |
चतुर्युजां भानुमच्च पञ्चानां प्रददौ तदा। सुवर्णपरिबर्हाणां वरचामरमालिनाम्।। | 1-226-22a 1-226-22b |
जात्यश्वानां च पञ्चाशत्सहस्रं प्रददौ नृपः। दासीनामयुतं राजा प्रददौ वरभूषणम्। ततः सहस्रं दासानां प्रददौ वरधन्वनाम्।। | 1-226-23a 1-226-23b 1-226-23c |
हैमानि शय्यासनबाजनानि द्रव्याणि चान्यानि च गोधनानि। पृथक्पृथक्वैव ददौ स कोटिं पाञ्चालराजः परमप्रहृष्टः।। | 1-226-24a 1-226-24b 1-226-24c 1-226-24d |
शिबिकानां शतं पूर्णं वाहान्पञ्चशतं नरान्।। | 1-226-25a |
एवमेतानि पाञ्चालो जन्यार्थे प्रददौ धनम्। हरणं चापि पाञ्चाल्या ज्ञातिदेयं च सोमकः।। | 1-226-26a 1-226-26b |
धृष्टद्युम्नो ययौ तत्र भगिनीं गृह्य भारत। नानद्यमानो बहुशस्तूर्यघोषैः सहस्रशः।।' | 1-226-27a 1-226-27b |
श्रुत्वा चोपस्थितान्वीरान्धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः। प्रतिग्रहाय पाण्डूनां प्रेषयामास कौरवान्।। | 1-226-28a 1-226-28b |
विकर्णं च महेष्वासं चित्रसेनं च भारत। द्रोणं च परमेष्वासं गौतमं कृपमेव च।। | 1-226-29a 1-226-29b |
तैस्तैः परिवृताः शूरैः शोभमाना महारथाः। नगरं हास्तिनपुरं शनैः प्रविविशुस्तदा।। | 1-226-30a 1-226-30b |
`पाण्डवानागताञ्छ्रुत्वा नागरास्तु कुतूहलात्। मण्डयाञ्चक्रिरे तत्र नगरं नागसाह्वयम्।। | 1-226-31a 1-226-31b |
मुक्तपुष्पावकीर्णं तु जलसिक्तं तु सर्वतः। धूपितं दिव्यधूपेन मङ्गलैश्चाभिसंवृतम्।। | 1-226-32a 1-226-32b |
पताकोच्छ्रितमाल्यं च पुरमप्रतिमं बभौ। शङ्खभेरीनिनादैश्च नानावादित्रनिस्वनैः।।' | 1-226-33a 1-226-33b |
कौतूहलेन नगरं पूर्यमाणमिवाभवत्। यत्र ते पुरुषव्याघ्राः शोकदुःखसमन्विताः।। | 1-226-34a 1-226-34b |
`निर्गताश्च पुरात्पूर्वं धृतराष्ट्रप्रबाधिताः। पुनर्निवृत्ता दिष्ट्या वै सह मात्रा परन्तपाः।। | 1-226-35a 1-226-35b |
इत्येवमीरिता वाचो जनैः प्रियचिकीर्षुभिः।' तत उच्चावचा वाचः प्रियाः सर्वत्र भारत।। | 1-226-36a 1-226-36b |
उदीरितास्तदाऽशृण्वन्पाण्डवा हृदयंगमाः। | 1-226-37a |
पौरा ऊचुः | 1-226-37x |
अयं स पुरुषव्याघ्रः पुनरायाति धर्मवित्।। | 1-226-37b |
यो नः स्वानिव दायादान्धर्मेण परिरक्षति। अद्य पाण्डुर्महाराजो वनादिव मनःप्रियम्।। | 1-226-38a 1-226-38b |
आगतश्चैवमस्माकं चिकीर्षन्नात्र संशयः। किं न्वद्य सुकृतं कर्म सर्वेषां नः प्रियं परम्।। | 1-226-39a 1-226-39b |
यन्नः कुन्तीसुता वीरा भर्तारः पुनरागताः। यदि दत्तं यदि हुतं यदि वाप्यस्ति नस्तपः। तेन तिष्ठन्तु नगरे पाण्डवाः शरदां शतम्।। | 1-226-40a 1-226-40b 1-226-40c |
ततस्ते धृतराष्ट्रस्य भीष्मस्य च महात्मनः। अन्येषां च तदर्हाणां चक्रुः पादाभिवन्दनम्।। | 1-226-41a 1-226-41b |
पृष्टास्तु कुशलप्रश्नं सर्वेण नगरेण ते। समाविशन्त वेश्मानि धृतराष्ट्रस्य शासनात्।। | 1-226-42a 1-226-42b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि षड्विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 226 ।। |
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