महाभारतम्-01-आदिपर्व-121
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पाण्डोः कुन्त्या विवाहः।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-121-1x |
सत्वरूपगुणोपेता धर्मारामा महाव्रता। दुहिता कुन्तिभोजस्य पृथा पृथुललोचना।। | 1-121-1a 1-121-1b |
तां तु तेजस्विनीं कन्यां रूपयौवनशालिनीम्। व्यावृण्वन्पार्थिवाः केचिदतीव स्त्रीगुणैर्युताम्।। | 1-121-2a 1-121-2b |
ततः सा कुन्तिभोजेन राज्ञाहूय नराधिपान्। पित्रा स्वयंवरे दत्ता दुहिता राजसत्तम।। | 1-121-3a 1-121-3b |
ततः सा रङ्गमध्यस्थं तेषां राज्ञां मनस्विनी। ददर्श राजशार्दूलं पाण्डुं भरतसत्तमम्।। | 1-121-4a 1-121-4b |
सिंहदर्पं महोरस्कं वृषभाक्षं महाबलम्। आदित्यमिव सर्वेषां राज्ञां प्रच्छाद्य वै प्रभाः।। | 1-121-5a 1-121-5b |
तिष्ठन्तं राजसमितौ पुरन्दरमिवापरम्। तं दृष्ट्वा साऽनवद्याङ्गी कुन्तिभोजसुता शुभा।। | 1-121-6a 1-121-6b |
पाण्डुं नरवरं रङ्गे हृदयेनाकुलाऽभवत्। ततः कामपरीताङ्गी सकृत्प्रचलमानसा।। | 1-121-7a 1-121-7b |
व्रीडमान स्रजं कुन्ती राज्ञः स्कन्धे समासजत्। तं निशम्य वृतं पाण्डुं कुन्त्या सर्वे नराधिपाः।। | 1-121-8a 1-121-8b |
यथागतं समाजग्मुर्गजैरश्वै रथैस्तथा। ततस्तस्याः पिता राजन्विवाहमकरोत्प्रभुः।। | 1-121-9a 1-121-9b |
स तया कुन्तिभोजस्य दुहित्रा कुरुनन्दनः। युयुजेऽमितसौभाग्यः पौलोम्या मघवानिव।। | 1-121-10a 1-121-10b |
कुन्त्याः पाण्डोश्च राजेन्द्र कुन्तिभोजो महीपतिः। कृत्वोद्वाहं तदा तं तु नानावसुभिरर्चितम्। स्वपुरं प्रेषयामास स राजा कुरुसत्तम।। | 1-121-11a 1-121-11b 1-121-11c |
ततो बलेन महता नानाध्वजपताकिना। स्तूयमानः स चाशीर्भिर्ब्राह्मणैश्च महर्षिभिः।। | 1-121-12a 1-121-12b |
संप्राप्य नगरं राजा पाण्डुः कौरवनन्दनः। न्यवेशत तां भार्यां कुन्तीं स्वभवने प्रभुः।। | 1-121-13a 1-121-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि एकविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 121 ।। |
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