महाभारतम्-01-आदिपर्व-216
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द्रौपदींप्रति कुन्त्या आशीर्वादः।। 1 ।।
श्रीकृष्णप्रेषितालंकारादीनां पाण्डवैः स्वीकारः।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-216-1x |
पाण्डवैः सह संयोगं गतस्य द्रुपदस्य ह। न बभूव भयं किंचिद्देवेभ्योऽपि कथंचन।। | 1-216-1a 1-216-1b |
कुन्तीमासाद्य ता नार्यो द्रुपदस्य महात्मनः। नाम संकीर्तयन्त्योऽस्या जग्मुः पादौ स्वमूर्धभिः।। | 1-216-2a 1-216-2b |
कृष्णा च क्षौमसंवीता कृतकौतुकमङ्गला। कृताभिवादना श्वश्र्वास्तस्थौ प्रह्वा कृताञ्जलिः।। | 1-216-3a 1-216-3b |
रूपलक्षणसंपन्नां शीलाचारसमन्विताम्। द्रौपदीमवदत्प्रेम्णा पृथाशीर्वचनं स्नुषाम्।। | 1-216-4a 1-216-4b |
यथेन्द्राणी हरिहये स्वाहा चैव विभावसौ। रोहिणी च यथा सोमे दमयन्ती यथा नले।। | 1-216-5a 1-216-5b |
यथा वैश्रवणे भद्रा वसिष्ठे चाप्यरुन्धती। यथा नारायणे लक्ष्मीस्तथा त्वं भव भर्तृषु।। | 1-216-6a 1-216-6b |
जीवसूर्वीरसूर्भद्रे बहुसौख्यसमन्विता। सुभगा भोगसंपन्ना यज्ञपत्नी पतिव्रता।। | 1-216-7a 1-216-7b |
अतिथीनागतान्साधून्वृद्दान्बालांस्तथा गुरून्। पूजयन्त्या यथान्यायं शश्वद्गच्छन्तु ते समाः।। | 1-216-8a 1-216-8b |
कुरुजाङ्गलमुख्येषु राष्ट्रेषु नगरेषु च। अनु त्वमभिषिच्यस्व नृपतिं धर्मवत्सला।। | 1-216-9a 1-216-9b |
पतिभिर्निर्जितामुर्वीं विक्रमेण महाबलैः। कुरु ब्राह्मणसात्सर्वामश्वमेधे महाक्रतौ।। | 1-216-10a 1-216-10b |
पृथिव्यां यानि रत्नानि गुणवन्ति गुणान्विते। तान्याप्नुहि त्वं कल्याणि सुखिनी शरदां शतं।। | 1-216-11a 1-216-11b |
यथा च त्वाऽभिनन्दामि वध्वद्य क्षौमसंवृताम्। तथा भूयोऽभिनन्दिष्ये जातपुत्रां गुणान्वितां।। | 1-216-12a 1-216-12b |
वैशंपायन उवाच। | 1-216-13x |
ततस्तु कृतदारेभ्यः पाण्डुभ्यः प्राहिणोद्धरिः। वैदूर्यमणिचित्राणि हैमान्याभरणानि च।। | 1-216-13a 1-216-13b |
वासांसि च महार्हाणि नानादेश्यानि माधवः। कम्बलाजिनरत्नानि स्पर्शवन्ति शुभानि च।। | 1-216-14a 1-216-14b |
शयनासनयानानि विविधानि महान्ति च। वैदूर्यवज्रचित्राणि शतशो भाजनानि च।। | 1-216-15a 1-216-15b |
रूपयौवनदाक्षिण्यैरुपेताश्च स्वलङ्कृताः। प्रेष्याः संप्रददौ कृष्णो नानादेश्याः स्वलङ्कृताः।। | 1-216-16a 1-216-16b |
गजान्विनीतान्भद्रांश्च सदश्वांश्च स्वलङ्कृतान्। रथांश्च दान्तान्सौवर्णैः शुभ्रैः पट्टैरलङ्कृतान्।। | 1-216-17a 1-216-17b |
कोटिशश्च सुवर्णं च तेषामकृतकं तथा। वीथीकृतममेयात्मा प्राहिणोन्मधुसूदनः।। | 1-216-18a 1-216-18b |
तत्सर्वं प्रतिजग्राह धर्मराजो युधिष्ठिरः। मुदा परमया युक्तो गोविन्दप्रियकाम्यया।। | 1-216-19a 1-216-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि | |
।। समाप्तं वैवाहिकपर्व ।। |
आदिपर्व-215 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-217 |