महाभारतम्-01-आदिपर्व-063
← आदिपर्व-062 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-063 वेदव्यासः |
आदिपर्व-064 → |
पूरुवंशकथनम्।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-63-1x |
पूरोर्वंशमहं धन्यं राज्ञाममिततेजसाम्। प्रवक्ष्यामि पितॄणां ते तेषां नामानि मे शृमु।। | 1-63-1a 1-63-1b |
अव्यक्तप्रभवो ब्रह्मा शाश्वतो नित्य अव्ययः। तस्मान्मरीचिः संजज्ञे दक्षश्चैव प्रजापतिः।। | 1-63-2a 1-63-2b |
अङ्गुष्ठाद्दक्षमसृजच्चक्षुर्भ्यां च मरीचिनम्। मरीचेः कश्यपः पुत्रो दक्षस्य दुहिताऽऽदितिः।। | 1-63-3a 1-63-3b |
अदित्यां कश्यपाद्विवस्थान्। विवस्वतो मनुर्मनोरिला।। | 1-63-4a 1-63-4b |
इलायाः पुरूरवाः। पुरूरवस आयुः। आयुषो नहुषः। नहुषस्य ययातिः।। | 1-63-5a 1-63-5b 1-63-5c 1-63-5d |
ययातेर्द्वे भार्ये बभूवतुः। उशनसो दुहिता देवयानी वृषपर्वणश्च दुहिता शर्मिष्ठा नाम।। | 1-63-6a 1-63-6b |
तत्रानुवंशो भवति। यदुं च तुर्वसुं चैव देवयानी व्यजायत। द्रुह्यं चानुं च पूरुं च शर्मिष्ठा वार्षपर्वणी।। | 1-63-7a 1-63-7b 1-63-7c |
तत्र यदोर्यादवाः। पूरोः पौरवाः। पूरोर्भार्या कौसल्या बभूव। तस्यामस्य जज्ञे जनमेजयः।। | 1-63-8a 1-63-8b 1-63-8c 1-63-8d |
स त्रीन्हयमेधानाजहार। विश्वजिता चेष्ट्वा वनं प्रविवेश।। | 1-63-9a 1-63-9b |
जनमेजयस्तु सुनन्दां नामोपयेमे मागधीं। तस्यामस्य जज्ञे प्राचीन्वान्।। | 1-63-10a 1-63-10b |
यः प्राचीं दिशं जिगाय। यावत्सूर्यादयात् तत्तस्य प्राचीनत्वम्।। | 1-63-11a 1-63-11b |
प्राचीन्वांस्तु खल्वाश्मकीमुपयेमे यादवीम्। तस्यामस्य जज्ञे शस्यातिः।। | 1-63-12a 1-63-12b |
शय्यातिस्तु त्रिशङ्कोर्दुहितरं वराङ्गीं नामोपयेमे तस्यामस्य जज्ञेऽहंयातिः।। | 1-63-13a |
अहंयातिस्तु खलु कृतवीर्यदुहितरं भानुमतीं नामोपयेमे। तस्यामस्य जज्ञे सार्वभौमः।। | 1-63-14a 1-63-14b |
सार्वभौमस्तु खलु जित्वाऽऽजहार कैकयीं सुन्दरां नाम तामुपयेमे। तस्यामस्य जज्ञे जयत्सेनः।। | 1-63-15a 1-63-15b |
जयत्सेनस्तु खलु वैदर्भीमुपयेमे सुश्रवां नाम। तस्यामस्य जज्ञेऽपराचीनः।। | 1-63-16a 1-63-16b |
अपराचीनस्तु खलु वैदर्भीमपरामुपयेमे मर्यादां नाम। तस्यामस्य जज्ञेऽरिहः।। | 1-63-17a 1-63-17b |
अरिहः खल्वाङ्गीमुपेयेमे। तस्यामस्य जज्ञे महाभौमः।। | 1-63-18a 1-63-18b |
महाभौमस्तु खलु प्रसेनजिद्दुहितरमुपयेमे सुयज्ञां नाम। तस्यामस्य जज्ञे अयुतानायी।। | 1-63-19a 1-63-19b |
यः पुरुषमेधे पुरुषाणामयुतमानयत्तत्तस्यायुतानायित्वम्।। | 1-63-20a |
अयुतानायी तु खलु पृथुश्रवसो दुहितरमुपयेमे भासां नाम। तस्यामस्य जज्ञेऽक्रोधनः।। | 1-63-21a 1-63-21b |
अक्रोधनस्तु खलु कालिङ्गीं कण्डूं नामोपयेमे। तस्यामस्य जज्ञे देवातिथिः।। | 1-63-22a 1-63-22b |
देवातिथिस्तु खलु वैदर्भीमुपयेमे मर्यादां नाम तस्यामस्य जज्ञे ऋचः।। | 1-63-23a |
ऋचस्तु खलु वामदेव्यामङ्गराजकन्यायामृक्षं पुत्रमजीजनत्।। | 1-63-24a |
ऋक्षस्तु खलु तक्षकदुहितरं ज्वलन्तीं नामोपयेमे। तस्यामन्त्यनारमुत्पादयामास।। | 1-63-25a 1-63-25b |
अन्त्यनारस्तु खलु सरस्वत्यां द्वादशवार्षिकं सत्रमाजहार। तमुदवसाने सरस्वत्यभिगम्य भर्तारं वरयामास।। | 1-63-26a 1-63-26b |
तस्यां पुत्रं जनयामास त्रस्नुं नाम। अत्रानुवंशो भवति।। | 1-63-27a 1-63-27b |
त्रस्नुं सरस्वती पुत्रमन्त्यनारादजीजनत्। इलिलं जनयामास कालिन्द्यांत्रस्नुरात्मजम्।। | 1-63-28a 1-63-28b |
इलिलस्तु रथन्तर्यां दुष्यन्तादीन्पञ्च पुत्रानजीजनत्।। | 1-63-29a |
दुष्यन्तस्तु लाक्षीं नाम भागीरथीमुपयेमे तस्यामस्य जज्ञे जनमेजयः।। | 1-63-30a |
सएव दुष्यन्तो विश्वामित्रदुहितरं शकुन्तलां नामोपयेमे। तस्यामस्य जज्ञे भरतः।। | 1-63-31a 1-63-31b |
तत्रेमौ श्लोकौ भवतः। माता भस्त्रा पितुः पुत्रो यस्माज्जातः स एव सः। भरस्व पुत्रं दौष्यन्तिं सत्यमाह शकुन्तला।। | 1-63-32a 1-63-32b 1-63-32c |
रेतोधाः पुत्र उन्नयति नरदेव यमक्षयात्। त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुन्तला।। | 1-63-33a 1-63-33b |
ततोऽस्य भरतत्वम्। भरतस्तु खलु काशेयीं सार्वसेनीमुपयेमे सुनन्दां नाम। तस्यामस्य जज्ञे भुमन्युः।। | 1-63-34a 1-63-34b 1-63-34c |
भुमन्युस्तु खलु दाशार्हीमुपयेमे सुवर्णां नाम। तस्यामस्य जज्ञे सुहोत्रः।। | 1-63-35a 1-63-35b |
सुहोत्रस्तु खल्वैक्ष्वाकीमुपयेमे जयन्तीं नाम। तस्यामस्य जज्ञे हस्ती। य इदं पुरं निर्मापयामास।। | 1-63-36a 1-63-36b 1-63-36c |
तस्माद्धास्तिनपुरत्वम्। हस्ती खलु त्रैगर्तीमुपयेमे यशोदां नाम तस्यामस्य जज्ञे विकुञ्जतः।। | 1-63-37a 1-63-37b |
विकुञ्जनस्तु खलु दाशार्हीमुपयेमे सुन्दरां नाम। तस्यामस्य जज्ञेऽजमीढः।। | 1-63-38a 1-63-38b |
अजमीढस्य तु चतुर्विंशतिपुत्रशतं बभूव। कैकय्यां नागायां गान्धार्यां विमलायामृक्षायामिति।। | 1-63-39a 1-63-39b |
पृथग्वंशकर्तारो नृपतयः। तत्र अजमीढादृक्षायां संवरणो जज्ञे स वंशकरः।। | 1-63-40a 1-63-40b |
सवरणस्तु वैवस्वतीं तपतीं नामोपयेमे। तस्यामस्य जज्ञे कुरुः।। | 1-63-41a 1-63-41b |
कुरुस्तु खलु दाशार्हीमुपयेमे शुभाङ्गीं नाम। तस्यामस्य जज्ञे विदूरथः।। | 1-63-42a 1-63-42b |
विदूरथस्तु खलु मागधीमुपयेमे संप्रियां नाम। तस्यामस्य जज्ञेऽनश्वान्।। | 1-63-43a 1-63-43b |
अनश्वांस्तु खलु मागधीमुपयेमेऽमृतां नाम। तस्यामस्य जज्ञे परिक्षित्।। | 1-63-44a 1-63-44b |
परिक्षित्खलु बाहुकामुपयेमे सुवेषां नाम। तस्यामस्य जज्ञे भीमसेनः।। | 1-63-45a 1-63-45b |
भीमसेनस्तु खलु कैकयीमुपयेमे सुकुमारीं नाम। तस्यामस्य जज्ञे परिश्रवाः।। | 1-63-46a 1-63-46b |
यमाहुः प्रतीप इति। प्रतीपस्तु खलु शैब्यामुपयेमे सुनन्दीं नाम। तस्यां त्रीन्पुत्रानुत्पादयामास देवापिं शन्तनुं बाह्लीकं चेति।। | 1-63-47a 1-63-47b 1-63-47c |
देवापिस्तु खलु बाल एवारण्यं प्रविवेश। शन्तनुस्तु महीपालोऽभवत्।। | 1-63-48a 1-63-48b |
तत्र श्लोको भवति। यं यं कराभ्यां स्पृशति जीर्णं स सुखमश्नुते। पुनर्युवा च भवति तस्मात्तं शन्तनुं विदुः।। | 1-63-49a 1-63-49b 1-63-49c |
तदस्य शन्तनुत्वं। शन्तनुस्तु खलु गङ्गां भागीरथीमुपयेमे तस्यामस्य जज्ञे देवव्रतः। यमाहुर्भीष्म इति।। | 1-63-50a 1-63-50b 1-63-50c |
भीष्मस्तु खलु पितुः प्रियचिकीर्षया सत्यवतीमानयामास मातरं। यामाहुः कालीति।। | 1-63-51a 1-63-51b |
तस्यां पूर्वं पुराशरात्कन्यागर्भो द्वैपायनः। तस्यामेव शन्तनोर्द्वौ पुत्रौ बभूवतुः चित्राङ्गदो विचित्रवीर्यश्च।। | 1-63-52a 1-63-52b |
चित्राङ्गदस्तु प्राप्तराज्य एव गन्धर्वेण निहृतः। ततो विचित्रवीर्यो राजा बभूव।। | 1-63-53a 1-63-53b |
विचित्रवीर्यस्तु खलुकाशिराजस्य सुते अम्बिकाम्बालिके उदवहत्। विचित्रवीर्योऽनुत्पन्नापत्य एव विदेहत्वं प्राप्तः।। | 1-63-54a 1-63-54b |
ततः सत्यवती चिन्तयामास कथं नु खलु शन्तनोः पिण्डविच्छेदो न स्यादिति।। | 1-63-55a |
साथ द्वैपायनं चिन्तयामास सोऽग्रतः स्थितः किं करवाणीति। तं सत्यवत्युवाच भ्राता तेऽनपत्य एव स्वर्गतः तस्यार्थेऽपत्यमुत्पादयेति।। | 1-63-56a 1-63-56b |
स परमित्युवाच स तत्र त्रीन्पुत्रानुत्पादयामास धृतराष्ट्रं पाण्डुं विदुरं चेति।। | 1-63-57a |
धृतराष्ट्रात्पुत्रशतं बभूव गान्धार्यां वरदानाद्द्वैपायनस्य तेषां च धार्तराष्ट्राणां चत्वारः प्रधानाः दुर्योधनो दुश्शासनो विकर्णश्चित्रसेनश्चेति।। | 1-63-58a |
पाण्डोस्तु कुन्ती माद्रीति स्त्रीरत्ने बभूवतुः। स मृगयां चरन्मैथुनगतमृषिं मृगचारिणं बाणेन जघान।। | 1-63-59a 1-63-59b |
स बाणविद्ध उवाच पाण्डुम्। अत्र श्लोको भवति।। | 1-63-60a 1-63-60b |
योऽकृतार्थं हि मां ग्रूर बाणेनाघ्ना मृगव्रतम्। त्वामप्येतादृशो भावः क्षिप्रमेवागमिष्यति।। | 1-63-61a 1-63-61b |
इति मृगव्रतचारिणा ऋषिणा शप्तः। स विषण्णरूपः पाण्डुस्तं शापं परिहरन्नोपसर्पति भार्ये।। | 1-63-62a 1-63-62b |
कदाचित्स आह। स्वचापल्यादिदं प्राप्तवानहम्। पुराणेषु पठ्यमानं शृणोमि नानपत्यस्य लोकाः सन्तीति।। | 1-63-63a 1-63-63b 1-63-63c |
सा त्वं मदर्थे पुत्रानुत्पादयेति कुन्तीमुवाच।। | 1-63-64a |
सा कुन्ती पुत्रानुत्पादयामास धर्माद्युधिष्ठिरं मारुताद्भीमसेनमिन्द्रादर्जुनमिति। स हृष्टरूपः पाण्डुरुवाच। इयं ते सपत्नी भवति माद्र्यनपत्या व्रीडिता साध्वी अस्यामपत्यमुत्पाद्यतामिति।। | 1-63-65a 1-63-65b 1-63-65c |
सा कुन्ती तस्यै माद्र्यै तथेति व्रतमादिदेश। ततस्तस्यां नकुलसहदेवौ यमावश्विभ्यां जज्ञाते।। | 1-63-66a 1-63-66b |
माद्रीं तु खलु स्वलङ्कृतां दृष्ट्वा पाण्डुर्भावं चक्रे। स तां प्राप्यैव विदेहत्वं प्राप्तः।। | 1-63-67a 1-63-67b |
ततस्तेन सह चितामन्वारुरोह माद्री। कुन्तीं चोवाच यमयोरार्ययाऽप्रमत्तया भवितव्यमिति।। | 1-63-68a 1-63-68b |
ततः पञ्चपाण्डवान्सह कुन्त्या हास्तिनपुरं नयन्ति स्म तपस्विनः।। | 1-63-69a |
तत्र भीष्माय धृतराष्ट्रविदुरयोः पाण्डोः स्वर्गगमनं याथातथ्यं निवेदयन्तिस्म तपस्विनः।। | 1-63-70a |
पाण्डवान्सह कुन्त्या जतुगृहे दाहयितुकामो धृतराष्ट्रात्मजोऽभूत्।। | 1-63-71a |
तांश्च विदुरो मोक्षयामास। ततो भीमो हिडिम्बं हत्वा पुत्रमुत्पादयामास हिडिम्बायां घटोत्कचं नाम।। | 1-63-72a 1-63-72b |
ततश्चैकचक्रां जग्मुः कुशलिनः। ततः पाञ्चालविषयं गत्वा स्वयंवरे द्रौपदीं लब्ध्वाऽर्धराज्यं प्राप्येन्द्रप्रस्थनिवासिनस्तस्यां पुत्रानुत्पादयामासुर्द्रौपद्याम्।। | 1-63-73a 1-63-73b |
श्रुतसेनं सहदेव इति।। | 1-63-74e |
शैव्यस्य कन्यां देवकीं नामोपयेमे युधिष्ठिरः। तस्यां पुत्रं जनयामास यौधेयं नाम।। | 1-63-75a 1-63-75b |
भीमसेनस्तु वाराणस्यां काशिराजकन्यां जलन्धरां नामोपयेमे स्वयंवरस्थां। तस्यामस्य जज्ञे शर्वत्रातः।। | 1-63-76a 1-63-76b |
अर्जुनस्तु खलु द्वारवतीं गत्वा भगवतो वासुदेवस्य भगिनीं सुभद्रां नामोदवहद्भार्यां। तस्यामभिमन्युं नाम पुत्रं जनयामास।। | 1-63-77a 1-63-77b |
नकुलस्तु खलु चैद्यां रेणुमतीं नामोदवहत्। तस्यां पुत्रं जनयामास निरमित्रं नाम।। | 1-63-78a 1-63-78b |
सहदेवस्तु खलु माद्रीमेव स्वयंवरे विजयां नामोदवहद्भार्याम्। तस्यां पुत्रं जनयामास सुहोत्रं नाम।। | 1-63-79a 1-63-79b |
भीमसेनश्च पूर्वमेव हिडिम्बायां राक्षस्यां पुत्रमुत्पादयामास घटोत्कचं नाम। अर्जुनस्तु नागकन्यायामुलूप्यामिरावन्तं नाम पुत्रं जनयामास।। | 1-63-80a 1-63-80b |
ततो मणलूरुपतिकन्यायां चित्राङ्गदायामर्जुनः पुत्रमुत्पादयामास बभ्रुवाहनं नाम। एते त्रयोदश पुत्राः पाण्डवानाम्।। | 1-63-81a 1-63-81b |
विराटस्य दुहितरमुत्तरां नामाभिमन्युरुपेयेमे। तस्यामस्य परासुर्गर्भोऽजायत।। | 1-63-82a 1-63-82b |
तमुत्सङ्गे प्रतिजग्राह पृथा नियोगात्पुरुषोत्तमस्य। षाण्मासिकं गर्भमहं जीवयामि पादस्पर्शादिति वासुदेव उवाच।। | 1-63-83a 1-63-83b |
अहं जीवयामि कुमारमनन्तवीर्यं जात एवायमजायत। अभिमन्योः सत्येन चेयं पृथिवी धारयत्विति वासुदेवस्य पादस्पर्शात्सजीवोऽजायत। नाम तस्याकरोत्सुभद्रा।। | 1-63-84a 1-63-84b 1-63-84c |
परिक्षीणे कुले जात उत्तरायां परंतपः। परिक्षिदभवत्तस्मात्सौभद्रात्तु यशस्विनः।। | 1-63-85a 1-63-85b |
परीक्षित्तु खलु भद्रवतीं नामोपयेमे। तस्यां तत्र भवाञ्जनमेजयः।। | 1-63-86a 1-63-86b |
जनमेजयात्तु भवतः खलु वपुष्टमायां पुत्रौ द्वौ शतानीकः शङ्कुकर्णश्च।। | 1-63-87a |
शतानीकस्तु खलु वैदेहीमुपयेमे। तस्यामस्य जज्ञे पुत्रोऽश्वमेधदत्तः।। | 1-63-88a 1-63-88b |
इत्येष पूरोर्वंशस्तु पाण्डवानां च कीर्तितः। पूरोर्वंशमिमं श्रुत्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।। | 1-63-89a 1-63-89b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि अंशावतरणपर्वणि त्रिषष्टितमोऽध्यायः।। 63 ।। |
1-63-32 भस्त्रा चर्मकोशः तत्र निहितं बीजं यथा तदीयं न भवति एवं मातापि भस्त्रेव। येन हेतुना यो जातः स एव सः। कार्यस्य कारणानन्यत्वात्।। 1-63-33 पुत्रः रेतोधाः रेतोधातारं पितरं उन्नयति ऊर्ध्वं नयति। यमक्षयात् नरकात्।।
आदिपर्व-062 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-064 |