महाभारतम्-01-आदिपर्व-023
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गरुडोत्पत्तिः।। 1 ।। देवकृतस्तुत्या गरुडकृतं स्वतेजस्संहरणम्।। 2 ।।
सौतिरुवाच। | 1-23-1x |
तं समुद्रमतिक्रम्य कद्रूर्विनतया सह। न्यपतत्तुरगाभ्याशे न चिरादिव शीघ्रगा।। | 1-23-1a 1-23-1b |
ततस्ते तं हयश्रेष्ठं ददृशाते महाजवम्। शशाङ्ककिरणप्रख्यं कालवालमुभे तदा।। | 1-23-2a 1-23-2b |
निशाम्य च बहून्वालान्कृष्णान्पुच्छसमाश्रितान्। विषण्णरूपां विनतां कद्रूर्दास्ये न्ययोजयत्।। | 1-23-3a 1-23-3b |
ततः सा विनता तस्मिन्पणितेन पराजिता। अभवद्दुःखसंतप्ता दासीभावं समास्थिता।। | 1-23-4a 1-23-4b |
एतस्मिन्नन्तरे चापि गरुडः काल आगते। विना मात्रा महातेजा विदार्याण्डमजायत।। | 1-23-5a 1-23-5b |
महासत्त्वबलोपेतः सर्वा विद्योतयन्दिशः। कामरूपः कामगमः कामवीर्यो विहंगमः।। | 1-23-6a 1-23-6b |
अग्निराशिरिवोद्भासन्समिद्धोऽतिभयंकरः। विद्युद्विस्पष्टपिङ्गाक्षो युगान्ताग्निसमप्रभः।। | 1-23-7a 1-23-7b |
प्रवृद्धः सहसा पक्षी महाकायो नभोगतः। घोरो घोरस्वनो रौद्रो वह्निरौर्व इवापरः।। | 1-23-8a 1-23-8b |
तं दृष्ट्वा शरणं जग्मुर्देवाः सर्वे विभावसुम्। प्रमिपत्याब्रुवंश्चैनमासीनं विश्वरूपिणम्।। | 1-23-9a 1-23-9b |
अग्ने मा त्वं प्रवर्धिष्ठाः कच्चिन्नो न दिधक्षसि। असौ हि राशिः सुमहान्समिद्धस्तव सर्पति।। | 1-23-10a 1-23-10b |
अग्निरुवाच। | 1-23-11x |
नैतदेवं यथा यूयं मन्यध्वमसुरार्दनाः। गरुडो बलवानेष मम तुल्यश्च तेजसा।। | 1-23-11a 1-23-11b |
जातः परमतेजस्वी विनतानन्दवर्धनः। तेजोराशिमिमं दृष्ट्वा युष्मान्मोहः समाविशत्।। | 1-23-12a 1-23-12b |
नागक्षयकरश्चै काश्यपेयो महाबलः। देवानां च हिते युक्तस्त्वहितो दैत्यरक्षसाम्।। | 1-23-13a 1-23-13b |
न भीः कार्या कथं चात्र पश्यध्वं सहिता मया। | 1-23-14a |
सौतिरुवाच। | 1-23-14x |
एवमुक्तास्तदा गत्वा गरुडं वाग्भिरस्तुवन्।। | 1-23-14b |
ते दूरादभ्युपेत्यैनं देवाः सर्षिगणास्तदा। | 1-23-15a |
देवा ऊचुः। | 1-23-15x |
त्वमृषिस्त्वं महाभागस्त्वं देवः पतगेश्वरः।। | 1-23-15b |
त्वं प्रभुस्तपनः सूर्यः परमेष्ठी प्रजापतिः। त्वमिन्द्रस्त्वं हयमुखस्त्वं शर्वस्त्वं जगत्पतिः।। | 1-23-16a 1-23-16b |
त्वं मुखं पद्मजी विप्रस्त्वमग्निः पवनस्तथा। त्वं हि धाता विधाता च त्वं विष्णुः सुरसत्तमः।। | 1-23-17a 1-23-17b |
त्वं महानभिभूः शश्वदमृतं त्वं महद्यशः। त्वं प्रभास्त्वमभिप्रेतं त्वं नस्त्राणमनुत्तमम्।। | 1-23-18a 1-23-18b |
ह्यनागतं चोपगतं च सर्वम्।। | 1-23-19e |
त्वमुत्तमः सर्वमिदं चराचरं गभस्तिभिर्भानुरिवावभाससे। समाक्षिपन्भानुमतः प्रभां मुहु- स्त्वमन्तकः सर्वमिदं ध्रुवाध्रुवम्।। | 1-23-20a 1-23-20b 1-23-20c 1-23-20d |
दिवाकरः परिकुपितो यथा दहे- त्प्रजास्तथा दहसि हुताशनप्रभ। भयंकरः प्रलय इवाग्निरुत्थितो विनाशयन्युगपरिवर्तनान्तकृत्।। | 1-23-21a 1-23-21b 1-23-21c 1-23-21d |
खगेश्वरं शरणमुपागता वयं महौजसं ज्वलनसमानवर्चसम्। तडित्प्रभं वितिमिरमभ्रगोचरं महाबलं गरुडमुपेत्य खेचरम्।। | 1-23-22a 1-23-22b 1-23-22c 1-23-22d |
परावरं वरदमजय्यविक्रमं तवौजस सर्वमिदं प्रतापितम्। जगत्प्रभो तप्तसुवर्णवर्चसा त्वं पाहि सर्वांश्च सुरान्महात्मनः।। | 1-23-23a 1-23-23b 1-23-23c 1-23-23d |
भयान्विता नभसि विमानगामिनो विमानिता विपथगतिं प्रयान्ति ते। ऋषेः सुतस्त्वमसि दयावतः प्रभो महात्मनः खगवर कश्यपस्य ह।। | 1-23-24a 1-23-24b 1-23-24c 1-23-24d |
स मा क्रुधः कुरु जगतो दयां परां त्वमीश्वरः प्रशममुपैहि पाहि नः। महाशनिस्फुरितसमस्वनेन ते दिशोऽम्बरं त्रिदिवमियं च मेदिनी।। | 1-23-25a 1-23-25b 1-23-25c 1-23-25d |
शिवश्च नो भव भगवन्सुखावहः।। | 1-23-26f |
सौतिरुवाच। | 1-23-27x |
एवं स्तुतः सुपर्णस्तु देवैः सर्षिगणैस्तदा। तेजसः प्रतिसंहारमात्मनः स चकार ह।। | 1-23-27a 1-23-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि त्रयोविंशोऽध्यायः।। 23 ।। |
-23-2 शशाङ्ककिरणवत्प्रख्या दीप्तिर्यस्य तं तादृशमपि कालवालं कृष्णकेशम्।। 1-23-8 और्वो वडवाग्निः।। 1-23-9 विभावसुं अग्निम्।। 1-23-10 अग्ने मात्वमिति देवानां भ्रमवर्णनं अग्निगरुडयोरति सादृश्यकथनार्थम्।। 1-23-25 चलन्तीत्युत्तरादपकृष्यते।। 1-23-26 निगृत्यतां संक्षिप्यताम्।। त्रयोविंशोऽध्यायः।। 23 ।।
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