महाभारतम्-01-आदिपर्व-166
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कुन्तीहिडिम्बासंवादः।। 1 ।।
हिडिम्बावार्तया भीमं हिडिम्बेन युद्ध्यमानं ज्ञातवतां कुन्त्यादीनां तत्र गमनम्।। 2 ।।
हिडिम्बवधः।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-166-1x |
प्रबुद्धास्ते हिडिम्बाया रूपं दृष्ट्वातिमानुषम्। विस्मिताः पुरुषव्याघ्रा बभूवुः पृथया सह।। | 1-166-1a 1-166-1b |
ततः कुन्ती समीक्ष्यैनां विस्मिता रूपसंपदा। उवाच मधुरं वाक्यं सान्त्वपूर्वमिदं शैनः।। | 1-166-2a 1-166-2b |
कस्य त्वं सुरगर्भाभे कावाऽसि वरवर्णिनि। केन कार्येण संप्राप्ता कुतश्चागमनं तव।। | 1-166-3a 1-166-3b |
यदि वाऽस्य वनस्य त्वं देवता यदि वाऽप्सराः। आचक्ष्व मम तत्सर्वं किमर्थं चेह तिष्ठसि।। | 1-166-4a 1-166-4b |
हिडिम्बोवाच। | 1-166-5x |
यदेतत्पश्यसि वनं नीलमेघनिं महत्। निवासो राक्षसस्यैष हिडिम्बस्य ममैव च।। | 1-166-5a 1-166-5b |
तस्य मां राक्षसेन्द्रस्य भगिनीं विद्दि भामिनि। भ्रात्रा संप्रेषितामार्ये त्वां सपुत्रां जिघांसता।। | 1-166-6a 1-166-6b |
क्रूरबुद्धेरहं तस्य वचनादागता त्विह। अद्राक्षं नवहेमाभं तव पुत्रं महाबलम्।। | 1-166-7a 1-166-7b |
ततोऽहं सर्वभूतानां भावे विचरता शुभे। चोदिता तव पुत्रार्थं मन्मथेन वशानुगा।। | 1-166-8a 1-166-8b |
ततो वृतो मया भर्ता तव पुत्रो महाबलः। अपनेतुं च यतितो न चैव शकितो मया।। | 1-166-9a 1-166-9b |
चिरायमाणां मां ज्ञात्वा ततः स पुरुषादकः। स्वयमेवागतो हन्तुमिमान्सर्वांस्तवात्मजान्।। | 1-166-10a 1-166-10b |
स तेन मम कान्तेन तव पुत्रेण धीमता। बलादितो विनिष्पिष्य व्यपनीतो महात्मना।। | 1-166-11a 1-166-11b |
विकर्षन्तौ महावेगौ गर्जमानौ परस्परम्। पश्यैवं युधि विक्रान्तावेतौ च नरराक्षसौ।। | 1-166-12a 1-166-12b |
वैशंपायन उवाच। | 1-166-13x |
तस्याः श्रुत्वैव वचनमुत्पपात युधिष्ठिरः। अर्जुनो नकुलश्चैव सहदेवश्च वीर्यवान्।। | 1-166-13a 1-166-13b |
तौ ते ददृशुरासक्तौ विकर्षन्तौ परस्परम्। काङ्क्षमाणौ जयं चैव सिंहाविव बलोत्कटौ।। | 1-166-14a 1-166-14b |
अथान्योन्यं समाश्लिष्य विकर्षन्तौ पुनःपुनः। दावाग्निधूमसदृशं चक्रतुः पार्थिवं रजः।। | 1-166-15a 1-166-15b |
वसुधारेणुसंवीतौ वसुधाधरसन्निभौ। बभ्राजतुर्यथा शैलौ नीहारेणाभिसंवृतौ।। | 1-166-16a 1-166-16b |
राक्षसेन तदा भीमं क्लिश्यमानं निरीक्ष्य च। उवाचेदं वचः पार्थः प्रहसञ्छनकैरिव।। | 1-166-17a 1-166-17b |
भीम माभैर्महाबाहो न त्वां बुध्यामहे वयम्। समेतं भीमरूपेण रक्षसा श्रमकर्शिताः।। | 1-166-18a 1-166-18b |
साहाय्येऽस्मि स्थितः पार्थ पातयिष्यामि राक्षसम्। नकुलः सहदेवश्च मातरं गोपयिष्यतः।। | 1-166-19a 1-166-19b |
भीम उवाच। | 1-166-20x |
उदासीनो निरीक्षस्व न कार्यः संभ्रमस्त्वया। न जात्वयं पुनर्जीवेन्मद्बाह्वन्तरमागतः।। | 1-166-20a 1-166-20b |
`भुजयोरन्तरं प्राप्तो भीमसेनस्य राक्षसः। अमृत्वा पार्थवीर्येण मृतो मा भूदिति ध्वनिः।। | 1-166-21a 1-166-21b |
अयमस्मांस्तु नो हन्याज्जातु पार्थ राक्षसः। जीवन्तं न प्रमोक्ष्यामि मा भैषीर्भरतर्षभ।।' | 1-166-22a 1-166-22b |
अर्जुन उवाच। | 1-166-23x |
`पूर्वरात्रे प्रयुक्तोऽसि भीम क्रूरेण रक्षसा। क्षपा व्युष्टा न चेदानीं समाप्तोसीन्महारणः।।' | 1-166-23a 1-166-23b |
किमेनन चिरं भीम जीवता पापरक्षसा। गन्तव्ये न चिरं स्थातुमिह शक्यमरिन्दम।। | 1-166-24a 1-166-24b |
पुरा संरज्यते प्राची पुरा सन्ध्या प्रवर्तते। रौद्रे मुहूर्ते रक्षांसि प्रबलानि भवन्त्युत।। | 1-166-25a 1-166-25b |
त्वरस्व भीम मा क्रीड जहि रक्षो विभीषणम्। पुरा विकुरुते मायां भुजयोः सारमर्पय।। | 1-166-26a 1-166-26b |
`माहात्म्यमात्मनो वेत्थ नराणां हितकाम्यया। रक्षो जहि यथा शक्रः पुरा वृत्रं महाबलम्।। | 1-166-27a 1-166-27b |
अथवा मन्यसे भारं त्वमिमं राक्षसं युधि। आतिष्ठे तव साहाय्यं शीघ्रमेव तु हन्यताम्।। | 1-166-28a 1-166-28b |
अथवा त्वहमेवैनं हनिष्यामि वृकोदर। कृतकर्मा परिश्रान्तः साधु तावदुपारम।।' | 1-166-29a 1-166-29b |
वैशंपायन उवाच। | 1-166-30x |
अर्जुनेनैवमुक्तस्तु भीमो रोषाज्ज्वलन्निव। बलमाहारयामास यद्वायोर्जगतः क्षये।। | 1-166-30a 1-166-30b |
ततस्तस्याम्बुदाभस्य भीमो रोषात्तु रक्षसः। अत्क्षिप्याभ्रामयद्देहं तूर्णं शतगुणं तदा।। | 1-166-31a 1-166-31b |
`इति चोवाच संक्रुद्धो भ्रामयन्राक्षसीं तनुम्। भीमसेनो महाबाहुरभिगर्जन्मुहुर्मुहुः।।' | 1-166-32a 1-166-32b |
भीम उवाच। | 1-166-33x |
नरमांसैर्वृथा पुष्टो वृथा वृद्धो वृथामतिः। वृथामरणमर्हस्त्वं वृथाद्य न भविष्यसि।। | 1-166-33a 1-166-33b |
क्षेममद्य करिष्यामि यथा वनमकण्टकम्। न पुनर्मानुषान्हत्वा भक्षयिष्यसि राक्षस।। | 1-166-34a 1-166-34b |
वैशंपायन उवाच। | 1-166-35x |
इत्युक्त्वा भीमसेनस्तं निष्पिष्य धरणीतले। बाहुभ्यामवपीड्याशु पशुमारममारयत्।। | 1-166-35a 1-166-35b |
स मार्यमाणो भीमेन ननाद विपुलं स्वनम्। पूरयंस्तद्वनं सर्वं जलार्द्रे इव दुन्दुभिः।। | 1-166-36a 1-166-36b |
बाहुभ्यां योक्त्रयित्वा तं बलवान्पाण्डुनन्दनः। `समुद्धाम्य शिरश्चास्य सग्रीवं तदपाहरत्।। | 1-166-37a 1-166-37b |
ततो भित्त्वा शिरश्चास्य सग्रीवं तदुदाक्षिपत्। तस्य निष्कर्णनयनं निर्जिह्वं रुधिरोक्षितम्।। | 1-166-38a 1-166-38b |
प्राविद्धं भीमसेनेन शिरो विदशनं बभौ। प्रसारितभुजोद्धृष्टो भिन्नमांसत्वगन्तरः।। | 1-166-39a 1-166-39b |
कबन्धभूतस्तत्रासीद्दनुर्वज्रहतो तथा। हिडिम्बं निहतं दृष्ट्वा संहृष्टास्ते तरस्विनः।। | 1-166-40a 1-166-40b |
हिडिम्बा सा च संप्रेक्ष्य निहतं राक्षसं रणे। अदृश्याश्चैव ये स्वस्स्थाः समेताः सर्षिचारणाः।। | 1-166-41a 1-166-41b |
पूजयन्ति स्म तं हृष्टाः साधुसाध्विति पाण्डवम्। भ्रातरश्चापि संहृष्टा युधिष्ठिरपुरोगमाः।। | 1-166-42a 1-166-42b |
अपूजयन्नरव्याघ्रं भीमसेनमरिन्दमम्।' अभिपूज्य महात्मानं भीमं भीमपराक्रमम्। पुनरेवार्जुनो वाक्यमुवाचेदं वृकोदरम्।। | 1-166-43a 1-166-43b 1-166-43c |
अदूरे नगरं मन्ये वनादस्मादहं विभो। शीघ्रं गच्छाम भद्रं ते न नो विद्यात्सुयोधनः।। | 1-166-44a 1-166-44b |
ततः सर्वे तथेत्युक्त्वा मात्रा सह महारथाः। प्रययुः पुरुषव्याघ्रा हिडिम्बा चैव राक्षसी।। | 1-166-45a 1-166-45b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि हिडिम्बवधपर्वमि षट्षष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। 166 ।। |
1-166-8 भावे चित्ते।। 1-166-11 व्यपनीतो दूरे नीतः।। 1-166-21 इतिध्वनिर्माभूदिति संबन्धः।। 1-166-24 गन्तव्ये सति चिरं स्थातुं न शक्यम्।। 1-166-28 अथवेति द्वयं प्रोत्साहनार्थं।। 1-166-33 वृथामरणं स्वर्गाद्यप्रयोजकं मरणम्।। षट्षष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः।। 166 ।।
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