महाभारतम्-01-आदिपर्व-256
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प्रज्वलदग्निदर्शनेन जरितायाः स्वपुत्रैः संवादः।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-256-1x |
ततः प्रज्वलिते वह्नौ शार्ङ्गकास्ते सुदुःखिताः। व्यथिताः परमोद्विग्ना नाधिजग्मुः परायणम्।। | 1-256-1a 1-256-1b |
निशाम्य पुत्रकान्बालान्माता तेषां तपस्विनी। जरिता शोकदुःखार्ता विललाप सुदुःखिता।। | 1-256-2a 1-256-2b |
जरितोवाच। | 1-256-3x |
अयमग्निर्दहन्कक्षमित आयाति भीषणः। जगत्संदीपयन्भीमो मम दुःखविवर्धनः।। | 1-256-3a 1-256-3b |
इमे च मां कर्षयन्ति शिशवो मन्दचेतसः। अबर्हाश्चरणैर्हीनाः पूर्वेषां नः परायणाः।। | 1-256-4a 1-256-4b |
त्रासयंश्चायमायाति लेलिहानो महीरुहान्। अजातपक्षाश्च सुता न शक्ताः सरणे मम।। | 1-256-5a 1-256-5b |
आदाय च न शक्नोमि पुत्रांस्तरितुमात्मना। न च त्यक्तुमहं शक्ता हृदयं दूयतीव मे।। | 1-256-6a 1-256-6b |
कं तु जह्यामहं पुत्रं कमादाय व्रजाम्यहम्। किंनु मे स्यात्कृतं कृत्वा मन्यध्वं पुत्रकाः कथम्।। | 1-256-7a 1-256-7b |
चिन्तयाना विमोक्षं वो नाधिगच्छामि किंचन। छादयिष्यामि वो गात्रैः करिष्ये मरणं सह।। | 1-256-8a 1-256-8b |
जरितारौ कुलं ह्येतज्ज्येष्ठत्वेन प्रतिष्ठितम्। सारिसृक्कः प्रजायेत पितॄणां कुलवर्धनः।। | 1-256-9a 1-256-9b |
स्तम्बमित्रस्तपः कुर्याद्द्रोणो ब्रह्मविदां वरः। इत्येवमुक्त्वा प्रययौ पिता वो निर्घृणः पुरा।। | 1-256-10a 1-256-10b |
कमुपादाय शक्येयं गन्तुं कष्टाऽऽपदुत्तमा। किं नु कृत्वा कृतं कार्यं भवेदिति च विह्वला। नापश्यत्स्वधिया मोक्षं स्वसुतानां तदानलात्।। | 1-256-11a 1-256-11b 1-256-11c |
वैशंपायन उवाच। | 1-256-12x |
एवं ब्रुवाणां शार्ङ्गास्ते प्रत्यूचुरथ मातरम्। स्नेहमुत्सृज्य मातस्त्वं पत यत्र न हव्यवाट्।। | 1-256-12a 1-256-12b |
अस्मास्विह विनष्टेषु भवितारः सुतास्तव। त्वयि मातर्विनष्टायां न नः स्यात्कुलसन्ततिः।। | 1-256-13a 1-256-13b |
अन्ववेक्ष्यैतदुभयं क्षेमं स्याद्यत्कुलस्य नः। तद्वै कर्तुं परः कालो मातरेष भवेत्तव।। | 1-256-14a 1-256-14b |
मा त्वं सर्वविनाशाय स्नेहं कार्षीः सुतेषु नः। न हीदं कर्म मोघं स्याल्लोककामस्य नः पितुः।। | 1-256-15a 1-256-15b |
जरितोवाच। | 1-256-16x |
इदमाखोर्बिलं भूमौ वृक्षस्यास्य समीपतः। तदाविशध्वं त्वरिता वह्नेरत्र न वो भयम्।। | 1-256-16a 1-256-16b |
ततोऽहं पांसुना छिद्रमपिधास्यामि पुत्रकाः। एवं प्रतिकृतं मन्ये ज्वलतः कृष्णवर्त्मनः।। | 1-256-17a 1-256-17b |
तत एष्याम्यतीतेऽग्नौ विहन्तुं पांसुशंचयम्। रोचतामेष वो वादो मोक्षार्थं च हुताशनात्।। | 1-256-18a 1-256-18b |
शार्ङ्गका ऊचुः। | 1-256-19x |
अबर्हान्मांसभूतान्नः क्रव्यादाखुर्विनाशयेत्। पश्यमाना भयमिदं प्रवेष्टुं नात्र शक्नुमः।। | 1-256-19a 1-256-19b |
कथमग्निर्न नो धक्ष्येत्कथमाखुर्न नाशयेत्। कथं न स्यात्पिता मोघः कथं माता ध्रियेत नः।। | 1-256-20a 1-256-20b |
बिल आखोर्विनाशः स्यादग्नेराकाशचारिणाम्। अन्ववेक्ष्यैतदुभयं श्रेयान्दाहो न भक्षणम्।। | 1-256-21a 1-256-21b |
गर्हितं मरणं नः स्यादाखुना भक्षिते बिले। शिष्टादिष्टः परित्यागः शरीरस्य हुताशनात्।। | 1-256-22a 1-256-22b |
`अग्निदाहे तु नियतं ब्रह्मलोके ध्रुवा गतिः।।' | 1-256-23a |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि मयदर्शनपर्वणि षट्पञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 256 ।। |
1-256-15 नोऽस्माकं सर्वविनाशाय सर्वेषां विनाशाय सुतेषु स्नेहं माकार्षीरिति संबन्धः।।
1-256-18 विहन्तुं दूरीकर्तुंम्। वादो वचनम्।। 1-256-19 क्रव्यादाखुर्मांसाद उन्दुरुः। पश्यमानाः पश्यन्तः।। 1-256-20 मोघो निष्फलाऽपत्योत्पत्तिः। ध्रियेत जीवेत।। 1-256-22 शिष्टादिष्टः शिष्टैरादिष्टः।। षट्पञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 256 ।।
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