महाभारतम्-01-आदिपर्व-131
← आदिपर्व-130 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-131 वेदव्यासः |
आदिपर्व-132 → |
दुर्योधनादीनां नामकथनम्।। 1 ।।
दुःशलाविवाहः।। 2 ।।
जनमेजय उवाच। | 1-131-1x |
ज्येष्ठाऽनुज्येष्ठतां तेषां नामानि च पृथक्पृथक्। धृतराष्ट्रस्य पुत्राणामानुपूर्व्यात्प्रकीर्तय।। | 1-131-1a 1-131-1b |
वैशंपायन उवाच। | 1-131-2x |
दुर्योधनो युयुत्सुश्च राजन्दुःशासनस्तथा। दुःसहो दुःशलश्चैव जलसन्धः समः सहः।। | 1-131-2a 1-131-2b |
विन्दानुविन्दौ दुर्धर्षः सुबाहुर्दुष्प्रधर्षणः। दुर्मर्षणो दुर्मुखश्च दुष्कर्णः कर्ण एव च।। | 1-131-3a 1-131-3b |
विविंशतिर्विकर्णश्च शलः सत्वः सुलोचनः। चित्रोपचित्रौ चित्राक्षश्चारुचित्रः शरासनः।। | 1-131-4a 1-131-4b |
दुर्मदो दुर्विगाहश्च विवित्सुर्विकटाननः। ऊर्णनाभः सुनाभश्च तथा नन्दोपनन्दकौ।। | 1-131-5a 1-131-5b |
चित्रबाणश्चित्रवर्मा सुवर्मा दुर्विमोचनः। अयोबाहुर्महाबाहुश्चित्राङ्गश्चित्रकुण्डलः।। | 1-131-6a 1-131-6b |
भीमवेगो भीमबलो बलाकी बलवर्धनः। उग्रायुधः सुषेणश्च कुण्डधारो महोदरः।। | 1-131-7a 1-131-7b |
चित्रायुधो निषङ्गी च पाशी वृन्दारकस्तथा। दृढवर्मा दृढक्षत्रः सोमकीर्तिरनूदरः।। | 1-131-8a 1-131-8b |
दृढसन्धो जरासन्धः सत्यसन्धः सदः सुवाक्। उग्रश्रवा उग्रसेनः सेनानीर्दुष्पराजयः।। | 1-131-9a 1-131-9b |
अपराजितः कुण्डशायी विशालाक्षो दुराधरः। दृढहस्तः सुहस्तश्च वातवेगसुवर्चसौ।। | 1-131-10a 1-131-10b |
आदित्यकेतुर्बह्वाशी नागदत्तोऽग्रयाय्यपि। कवची क्रथनः कुण्डी कुण्डधारो धनुर्धरः।। | 1-131-11a 1-131-11b |
उग्रभीमरथौ वीरौ वीरबाहुरलोलुपः। अभयो रौद्रकर्मा च तथा दृढरथाश्रयः।। | 1-131-12a 1-131-12b |
अनाधृष्यः कुण्डभेदी विरावी चित्रकुण्डलः। प्रमथश्च प्रमाथी च दीर्घरोमश्च वीर्यवान्।। | 1-131-13a 1-131-13b |
दीर्घबाहुर्महाबाहुर्व्यूढोराः कनकध्वजः। कुण्डाशी विराजाश्चैव दुःशला च शताधिका।। | 1-131-14a 1-131-14b |
इति पुत्रशतं राजन्कन्या चैव शताधिका। नामधेयानुपूर्व्येण विद्धि जन्मक्रमं नृप।। | 1-131-15a 1-131-15b |
सर्वे त्वतिरथाः शूराः सर्वे युद्धविशारदाः। सर्वे वेदविदश्चैव सर्वे सर्वास्त्रकोविदाः।। | 1-131-16a 1-131-16b |
सर्वेषामनुरूपाश्च कृता दारा महीपते। धृतराष्ट्रेण समये परीक्ष्य विविवन्नृप।। | 1-131-17a 1-131-17b |
दुःशलां चापि समये धृतराष्ट्रो नराधिपः। जयद्रथाय प्रददौ विधिना भरतर्षभ।। | 1-131-18a 1-131-18b |
`इति पुत्रशतं राजन्युयुत्सुश्च शताधिकः। कन्यका दुःशला चैव यथावत्कीर्तितं मया'।। | 1-131-19a 1-131-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि एकत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 131 ।।
आदिपर्व-130 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-132 |