महाभारतम्-01-आदिपर्व-049
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जनमेजयमन्त्रिसंवादमुखेन पुनः परीक्षिच्चरितकथनम्।। 1 ।।
शौनक उवाच। | 1-49-1x |
यदपृच्छत्तदा राजा मन्त्रिणो जनमेजयः। पितुः स्वर्गगतिं तन्मे विस्तरेण पुनर्वद।। | 1-49-1a 1-49-1b |
सौतिरुवाच। | 1-49-2x |
शृणु ब्रह्मन्यथाऽपृच्छन्मन्त्रिणो नृपतिस्तदा। यथा चाख्यातवन्तस्ते निधनं तत्परिक्षितः।। | 1-49-2a 1-49-2b |
जनमेजय उवाच। | 1-49-3x |
जानन्ति स्म भवन्तस्तद्यथावृत्तं पितुर्मम। आसीद्यथा स निधनं गतः काले महायशाः।। | 1-49-3a 1-49-3b |
श्रुत्वा भवत्सकाशाद्धि पितुर्वृत्तमशेषतः। कल्याणं प्रतिपत्स्यामि विपरीतं न जातुचित्।। | 1-49-4a 1-49-4b |
सौतिरुवाच। | 1-49-5x |
मन्त्रिणोऽथाब्रुवन्वाक्यं पृष्टास्तेन महात्मना। सर्वे धर्मविदः प्राज्ञा राजानं जनमेजयम्।। | 1-49-5a 1-49-5b |
मन्त्रिण ऊचुः। | 1-49-6x |
शृणु पार्थिव यद्ब्रूषे पितुस्तव महात्मनः। चरितं पार्थिवेन्द्रस्य यथा निष्ठां गतश्च सः।। | 1-49-6a 1-49-6b |
धर्मात्मा च महात्मा च प्रजापालः पिता तव। आसीदिहायथा वृत्तः स महात्मा शृणुष्व तत्।। | 1-49-7a 1-49-7b |
चातुर्वर्ण्यं स्वधर्मस्थं स कृत्वा पर्यरक्षत। धर्मतो धर्मविद्राजा धर्मो विग्रहवानिव।। | 1-49-8a 1-49-8b |
ररक्ष पृथिवीं देवीं श्रीमानतुलविक्रमः। द्वेष्टारस्तस्य नैवासन्स च द्वेष्टि न कंचन।। | 1-49-9a 1-49-9b |
समः सर्वेषु भूतेषु प्रजापतिरिवाभवत्। ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्चैव स्वकर्मसु।। | 1-49-10a 1-49-10b |
स्थितः सुमनसो राजंस्तेन राज्ञा स्वधिष्ठिताः। विधवानाथविकलान्कृपणांश्च बभार सः।। | 1-49-11a 1-49-11b |
सुदर्शः सर्वभूतानामासीत्सोम इवापरः। तुष्टपुष्टजनः श्रीमान्सत्यवाग्दृढविक्रमः।। | 1-49-12a 1-49-12b |
धनुर्वेदे तु शिष्योऽभून्नृपः शारद्वतस्य सः। गोविन्दस्य प्रियश्चासीत्पिता ते जनमेजय।। | 1-49-13a 1-49-13b |
लोकस्य चैव सर्वस्य प्रिय आसीन्महायशाः। परिक्षीणेषु कुरुषु सोत्तरायामजीजनत्।। | 1-49-14a 1-49-14b |
परिक्षिदभवत्तेन सौभद्रस्यात्मजो बली। राजधर्मार्थकुशलो युक्तः सर्वगुणैर्वृतः।। | 1-49-15a 1-49-15b |
जितेन्द्रियश्चात्मवांश्च मेधावी धर्मसेविता। षड्वर्गजिन्महाबुद्धिर्नीतिशास्त्रविदुत्तमः।। | 1-49-16a 1-49-16b |
प्रजा इमास्तव पिता षष्टिवर्षाण्यपालयत्। ततो दिष्टान्तमापन्नः सर्वेषां दुःखमावहन्।। | 1-49-17a 1-49-17b |
ततस्त्वं पुरुषश्रेष्ठ धर्मेण प्रतिपेदिवान्। इदं वर्षसहस्राणि राज्यं कुरुकुलागतम्। बाल एवाभिषिक्तस्त्वं सर्वभूतानुपालकः।। | 1-49-18a 1-49-18b 1-49-18c |
जनमेजय उवाच। | 1-49-19x |
नास्मिन्कुले जातु बभूव राजा यो न प्रजानां प्रियकृत्प्रियश्च। विशेषतः प्रेक्ष्य पितामहानां वृत्तं महद्वृत्तपरायणानाम्।। | 1-49-19a 1-49-19b 1-49-19c 1-49-19d |
कथं निधनमापन्नः पिता मम तथाविधः। आचक्षध्वं यथावन्मे श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः।। | 1-49-20a 1-49-20b |
सौतिरुवाच। | 1-49-21x |
एवं संचोदिता राज्ञा मन्त्रिणस्ते नराधिपम्। ऊचुः सर्वे यथावृत्तं राज्ञः प्रियहितैषिणः।। | 1-49-21a 1-49-21b |
मन्त्रिण ऊचुः। | 1-49-22x |
स राजा पृथिवीपालः सर्वशस्त्रभृतां वरः। बभूव मृगयाशीलस्तव राजन्पिता सदा।। | 1-49-22a 1-49-22b |
यथा पाण्डुर्महाबाहुर्धनुर्धरवरो युधि। अस्मास्वासज्य सर्वाणि राजकार्याण्यशेषतः।। | 1-49-23a 1-49-23b |
स कदाचिद्वनगतो मृगं विव्याध पत्रिणा। विद्ध्वा चान्वसरत्तूर्णं तं मृगं गहने वने।। | 1-49-24a 1-49-24b |
पदातिर्बद्धनिस्त्रिंशस्ततायुधकलापवान्। न चाससाद गहने मृगं नष्टं पिता तव।। | 1-49-25a 1-49-25b |
परिश्रान्तो वयस्थश्च षष्टिवर्षो जरान्वितः। क्षुधितः स महारण्ये ददर्श मुनिसत्तमम्।। | 1-49-26a 1-49-26b |
स तं पप्रच्छ राजेन्द्रो मुनिं मौनव्रते स्थितम्। न च किंचिदुवाचेदं पृष्टोऽपि समुनिस्तदा।। | 1-49-27a 1-49-27b |
ततो राजा क्षुच्छ्रमार्तस्तं मुनिं स्थाणुवत्स्थितम्। मौनव्रतधरं शान्तं सद्यो मन्युवशं गतः।। | 1-49-28a 1-49-28b |
न बुबोध च तं राजा मौनव्रतधरं मुनिम्। स तं क्रोधसमाविष्टो धर्षयामास ते पिता।। | 1-49-29a 1-49-29b |
मृतं सर्पं धनुष्कोट्या समुत्क्षिप्य धरातलात्। तस्य शुद्धात्मनः प्रादात्स्कन्धे भरतसत्तम।। | 1-49-30a 1-49-30b |
न चोवाच स मेधावी तमथो साध्वसाधु वा। तस्थौ तथैव चाक्रुद्धः सर्पं स्कन्धेन धारयन्।। | 1-49-31a 1-49-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि एकोनपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 49 ।। |
1-49-4 कल्याणं सर्वलोकहितं चेत्प्रतिपत्स्यामि प्रतीकारं करिष्यामि।। 1-49-6 ब्रूषे पृच्छसि। निष्ठां समाप्तिम्।। 1-49-11 स्वधिष्ठिताः सुष्ठुपालिताः।। 1-49-13 शारद्वतस्य कृपाचार्यस्य।। 1-49-14 सोत्तरायमिति पादपूरणार्थः सन्धिः। अजीजनज्जातः।। 1-49-17 षष्टिवषाणि जन्मतः षष्टिपर्वपर्यन्तं न तु राज्यलाभात्।। 1-49-18 वर्षसहस्राणि चिरकालमित्यर्थः। पालयितुमिति शेषः।। 1-49-20 आचक्षध्वं भ्वादेराकृतिगणत्वाच्छपो न लुक्।। 1-49-26 वयस्थो वृद्धः।। एकोनपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 49 ।।
आदिपर्व-048 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-050 |