महाभारतम्-01-आदिपर्व-075
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मृगयार्थं गतस्य ययातेः पुनर्देवयानीसमागमः।। 1 ।। शुक्राज्ञया तयोर्विवाहः।। 2 ।। देवयानीशर्मिष्ठायां सह ययातेः स्वपुरप्रवेशः।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-75-1x |
अथ दीर्घस्य कालस्य देवयानी नृपोत्तम। वनं तदेव निर्याता क्रीडार्थं वरवर्णिनी।। | 1-75-1a 1-75-1b |
तेन दासीसहस्रेण सार्धं शर्मिष्ठया तदा। तमेव देशं संप्राप्ता यथाकामं चचार सा।। | 1-75-2a 1-75-2b |
ताभिः सखीभिः सहिता सर्वाभिर्मुदिता भृशम्। क्रीडन्त्योऽभिरताः सर्वाः पिबन्त्यो मधुमाधवीं।। | 1-75-3a 1-75-3b |
खादन्त्यो विविधान्भक्ष्यान्विदशन्त्यः फलानि च। पुनश्च नाडुषो राजा मृगलिप्सुर्यदृच्छया।। | 1-75-4a 1-75-4b |
तमेव देशं संप्राप्तो जलार्थी श्रमकर्शितः। ददर्श देवयानीं स शर्मिष्ठां ताश्च योषितः।। | 1-75-5a 1-75-5b |
पिबन्तीर्ललमानाश्च दिव्याभरणभूषिताः। आसनप्रवरे दिव्ये सर्वरत्नविभूषिते। उपविष्टां च ददृशे देवयानीं शुचिस्मिताम्।। | 1-75-6a 1-75-6b 1-75-6c |
रूपेणाप्रतिमां तासां स्त्रीणां मध्ये वराङ्गनम्। `आसनाच्च ततः किंचिद्विहीनां हेमभीषिताम्।। | 1-75-7a 1-75-7b |
असुरेन्द्रसुतां चापि निषण्णां चारुहासिनीम्। ददर्श पादौ विप्रायाः संवहन्तीमनिन्दिताम्।। | 1-75-8a 1-75-8b |
गायन्त्योऽथ प्रनृत्यन्त्यो वादयन्त्योऽथ भारत। दृष्ट्वा ययातिमतुलं लज्जयाऽवनताः स्थिताः।।' | 1-75-9a 1-75-9b |
ययातिरुवाच। | 1-75-10x |
द्वाभ्यां कन्यासहस्राभ्यां द्वे कन्ये परिवारिते। गोत्रे च नामनी चैव द्वयोः पृच्छाम्यहं शुभे। | 1-75-10a 1-75-10b |
देवयान्युवाच। | 1-75-11x |
आख्यास्याम्यहमादत्स्व वचनं मे नराधिप। शुक्रो नामासुरगुरुः सुतां जानीहि तस्य माम्।। | 1-75-11a 1-75-11b |
इयं च मे सखी दासी यत्राहं तत्र गामिनी। दुहिता दानवेन्द्रस्य शर्मिष्ठा वृषपर्वणः।। | 1-75-12a 1-75-12b |
ययातिरुवाच। | 1-75-13x |
कथं तु ते सखी दासी कन्येयं वरवर्णिनी। असुरेन्द्रसुता सुभ्रूः परं कौतूहलं हि मे।। | 1-75-13a 1-75-13b |
`नैव देवी न गन्धर्वी न यक्षी न च किन्नरी। नैवंरूपा मया नारी दृष्टपूर्वा महीतले।। | 1-75-14a 1-75-14b |
श्रीरिवायतपद्माक्षी सर्वलक्षणशोभना। असुरेन्द्रसुता कन्या सर्वालङ्कारभूषिता।। | 1-75-15a 1-75-15b |
दैवेनोपहता सुभ्रूरुताहो तपसापि वा। अन्यथैषाऽनवद्याङ्गी दासी नेह भविष्यति।। | 1-75-16a 1-75-16b |
अस्या रूपेण ते रूपं न किंचित्सदृशं भवेत्। पुरा दुश्चरितेनेयं तव दासी भवत्यहो।।' | 1-75-17a 1-75-17b |
देवयान्युवाच। | 1-75-18x |
सर्व एव नरश्रेष्ठ विधानमनुवर्तते। विधानविहितं मत्वा मा विचित्राः कथाःकृथाः।। | 1-75-18a 1-75-18b |
राजवद्रूपवेषौ ते ब्राह्मीं वाचं बिभर्षि च। को नाम त्वं कुतश्चासि कस्य पुत्रश्च शस मे।। | 1-75-19a 1-75-19b |
ययातिरुवाच। | 1-75-20x |
ब्रहमचर्येण वेदो मे कृत्स्रः श्रुतिपथं गतः। राजाहं राजपुत्रश्च ययातिरिति विश्रुतः।। | 1-75-20a 1-75-20b |
देवयान्युवाच। | 1-75-21x |
केनास्यर्थेन नृपते इमं देशमुपागतः। जिघृक्षुर्वारिजं किंचिदथवा मृगलिप्सया।। | 1-75-21a 1-75-21b |
ययातिरुवाच। | 1-75-22x |
मृगलिप्सुरहं भद्रे पानीयार्थमुपागतः। बहुधाऽप्यनुयुक्तोऽस्मि तदनुज्ञातुमर्हसि।। | 1-75-22a 1-75-22b |
देवयान्युवाच। | 1-75-23x |
द्वाभ्यां कन्यासहस्राभ्यां दास्या शर्मिष्ठया सह। त्वदधीनाऽस्मि भद्रं ते सखा भर्ता च मे भव।। | 1-75-23a 1-75-23b |
`वैशंपायन उवाच। | 1-75-24x |
असुरेन्द्रसुतामीक्ष्य तस्यां सक्तेन चेतसा। शर्मिष्ठा महिषी मह्यमिति मत्वा वचोऽब्रवीत्'।। | 1-75-24a 1-75-24b |
ययातिरुवाच। | 1-75-25x |
विद्ध्यौशनसि भद्रं ते न त्वामर्होऽस्मि भामिनि। अविवाह्या हि राजानो देवयानि पितुस्तव।। | 1-75-25a 1-75-25b |
`परभार्या स्वसा श्रेष्ठा सगोत्रा पतिता स्नुषा। अवरा भिक्षुकाऽस्वस्था अगम्याः कीर्तिता बुधैः।। | 1-75-26a 1-75-26b |
देवयान्युवाच। | 1-75-27x |
संसृष्टं ब्रह्मणा क्षत्रं क्षत्रेण ब्रह्म संहितम्। `अन्यत्वमस्ति न तयोरेकान्ततरमास्थिते।' ऋषिश्चाप्यृषिपुत्रश्च नाहुषाङ्ग वहस्व माम्।। | 1-75-27a 1-75-27b 1-75-27c |
ययातिरुवाच। | 1-75-28x |
एकदेहोद्भवा वर्णाश्चत्वारोऽपि वराङ्गने। पृथग्धर्माः पृथक्शौचास्तेषां तु ब्राह्मणो वरः।। | 1-75-28a 1-75-28b |
देवयान्युवाच। | 1-75-29x |
पाणि धर्मो नाहुषाऽयं न पुंभिः सेवितः पुरा। तं मे त्वमग्रहीरग्रे वृणोमि त्वामहं ततः।। | 1-75-29a 1-75-29b |
कथं नु मे मनस्विन्याः पाणिमन्यः पुमान्स्पृशेत्। गृहीतमृषिपुत्रेण स्वयं वाप्यृषिणा त्वया।। | 1-75-30a 1-75-30b |
ययातिरुवाच। | 1-75-31x |
क्रुद्धादाशीविषात्सर्पाज्ज्वलनात्सर्वतोमुखात्। दुराधर्षतरो विप्रो ज्ञेयः पुंसा विजानता।। | 1-75-31a 1-75-31b |
देवयान्युवाच। | 1-75-32x |
कथमाशीविषात्सर्पाज्ज्वलनात्सर्वतोमुखात्। दुराधर्षतरो विप्र इत्यात्थ पुरुषर्षभ।। | 1-75-32a 1-75-32b |
ययातिरुवाच। | 1-75-33x |
एकमाशीविषो हन्ति शस्त्रेणैकश्च वध्यते। हन्ति विप्रः सराष्ट्राणि पुराण्यपि हि कोपितः।। | 1-75-33a 1-75-33b |
दुराधर्षतरो विप्रस्तस्माद्भीरु मतो मम। अतोऽदत्तां च पित्रा त्वां भद्रे न विवहाम्यहम्।। | 1-75-34a 1-75-34b |
देवयान्युवाच। | 1-75-35x |
दत्तां वहस्व तन्मा त्वं पित्रा राजन्वृतो मया। आयचतो भयं नास्ति दत्तां च प्रतिगृह्णतः।। | 1-75-35a 1-75-35b |
`तिष्ठ राजन्मुहूर्तं च प्रेषयिष्याम्यहं पितुः। गच्छ त्वं धात्रिके शीघ्रं ब्रह्मकल्पमिहानय। स्वयंवरे वृतं शीघ्रं निवेदय च नाहुषम्'।। | 1-75-36a 1-75-36b 1-75-36c |
वैशंपायन उवाच। | 1-75-37x |
त्वरितं देवयान्याथ संदिष्टं पितुरात्मनः। सर्वं निवेदयामास धात्री तस्मै यथातथम्।। | 1-75-37a 1-75-37b |
श्रुत्वैव च स राजानं दर्शयामास भार्गवः। दृष्ट्वैव चागतं शुक्रं ययातिः पृथिवीपतिः। ववन्दे ब्राह्मणं काव्यं प्राञ्जलिः प्रणतः स्थितः।। | 1-75-38a 1-75-38b 1-75-38c |
देवयान्युवाच। | 1-75-39x |
राजायं नाहुषस्तात दुर्गमे पाणिमग्रहीत्। नान्यपूर्वगृहीतं मे तेनाहमभया कृता। नमस्ते देहि मामस्मै लोके नान्यं पतिं वृणे।। | 1-75-39a 1-75-39b 1-75-39c |
शुक्र उवाच। | 1-75-40x |
अन्यो धर्मः प्रियस्त्वन्यो वृतस्ते नाहुषः पतिः। कचशापात्त्वया पूर्वं नान्यद्भवितुमर्हति।। | 1-75-40a 1-75-40b |
वृतोऽनया पतिर्वीर सुतया त्वं ममेष्टया। स्वयं ग्रहे महान्दोषो ब्राह्मण्या वर्णसंकरात्। गृहाणेमां मया दत्तां महिषीं नहुषात्मज।। | 1-75-41a 1-75-41b 1-75-41c |
ययातिरुवाच। | 1-75-42x |
अधर्मो न स्पृशेदेष महान्मामिह भार्गव। वर्णसंकरजो ब्रह्मन्निति त्वां प्रवृणोम्यहम्।। | 1-75-42a 1-75-42b |
शुक्र उवाच। | 1-75-43x |
अधर्मात्त्वां विमुञ्चामि शृणु त्वं वरमीप्सितम्। अस्मिन्विवाहे मा म्लासीरहं पापं नुदामि ते।। | 1-75-43a 1-75-43b |
वहस्व भार्यां धर्मेण देवयानीं सुमध्यमाम्। अनया सह संप्रीतिमतुलां समवाप्नुहि।। | 1-75-44a 1-75-44b |
इयं चापि कुमारी ते शर्मिष्ठा वार्षपर्वणी। संपूज्या सततं राजन्मा चैनां शयने ह्वयेः।। | 1-75-45a 1-75-45b |
रहस्येनां समाहूय न वदेर्न च संस्पृशेः। वहस्व भार्यां भद्रं ते यथा काममवाप्स्यसि।। | 1-75-46a 1-75-46b |
वैशंपायन उवाच। | 1-75-47x |
एवमुक्तो ययातिस्तु शुक्रं कृत्वा प्रदक्षिणम्। शास्त्रोक्तविधिना राजा विवाहमकरोच्छुभम्।। | 1-75-47a 1-75-47b |
लब्ध्वा शुक्रान्महद्वित्तं देवयानीं तदोत्तमाम्। द्विसहस्रेण कन्यानां तथा शर्मिष्ठया सह।। | 1-75-48a 1-75-48b |
संपूजितश्च शुक्रेण दैत्यैश्च नृपसत्तमः। जगाम स्वपुरं हृष्टोऽनुज्ञातोऽथ महात्मना।। | 1-75-49a 1-75-49b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः।। 75 ।। |
1-75-3 मधुमाधवीं मधुवृक्षमदिराम्।। 1-75-18 विधानं दैवं अनुवर्तते अनुसृत्यास्ति।। 1-75-21 अर्थेन कार्येण। वारिजं मीनं पद्मादि वा।। 1-75-22 अनुयुक्तोस्मि पलायिते मृगे श्रान्तोस्मि।। 1-75-27 संसृष्टं उच्छिन्नस्य क्षत्रस्य ब्राह्मणवीर्यादेव पुनरुद्भवाद्ब्रह्मणा क्षत्रं संसृष्टम्। क्षत्रियकन्यासु लोपामुद्रादिषु ब्राह्मणानामुत्पत्तिदर्शनात्क्षत्रेण ब्रह्म संहितं मिश्रम्।। 1-75-28 एकस्येश्वरस्य देहो देहावयवाः मुखबाहूरुपादास्तदुद्भवाः।। 1-75-35 मा मां भयं क्षत्रियेण ब्राह्मणीपरिणयनदोषजम्।। 1-75-39 दुर्गमे संकटे।। 1-75-43 ईप्सितं वरं च वृणीध्वेत्युक्तोऽपीदानीं न वृतवान् पश्चात्त्वन्यत्र जरासंक्रमणसामर्थ्यरूपः शुक्रेणैव स्वप्रतिज्ञासिद्धये दत्त इति ध्येयम्।। पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः।। 75 ।।
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