महाभारतम्-01-आदिपर्व-109
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भीष्मस्य काशिपतिकन्याहरणार्थं वाराणसीगमनम्।। 1 ।।
कन्यां हृतवता भीष्मेण युद्धे राज्ञां पराजयः।। 2 ।।
मध्येमार्गं साल्वपराजयः।। 3 ।।
विचित्रवीर्यविवाहोपक्रमे तमनिच्छन्त्या ज्येष्ठाया अम्बयाः साल्वं प्रति गमनम्।। 4 ।।
तेन प्रत्याख्यातायाः पुनर्भीष्मं प्राप्ताय अम्ब्रायाः भीष्मेण निराकरणम्।। 5 ।।
भीष्मजिघांसया तपस्यन्त्या अम्बायाः प्रसन्नात्कुमारान्मालाप्राप्तिः।। 6 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-109-1x |
हते चित्राङ्गदे भीष्मो बाले भ्रातरि कौरव। पालयामास तद्राज्यं सत्यवत्या मते स्थितः।। | 1-109-1a 1-109-1b |
`तथा विचित्रवीर्यं तु वर्तमानं सुखेऽतुले।' संप्राप्तयौवनं दृष्ट्वा भ्रातरं धीमतां वरः। भीष्मो विचित्रवीर्यस्य विवाहायाकरोन्मतिम्।। | 1-109-2a 1-109-2b 1-109-2c |
अथ काशिपतेर्भीष्मः कन्यास्तिस्रोऽप्सरोपमाः। शुश्राव सहिता राजन्वृण्वाना वै स्वयंवरम्।। | 1-109-3a 1-109-3b |
ततः स रथिनां श्रेष्ठो रथेनैकेन शत्रुजित्। जगामानुमते मातुः पुरीं वाराणसीं प्रभुः।। | 1-109-4a 1-109-4b |
तत्र राज्ञः समुदितान्सर्वतः समुपागतान्। ददर्श कन्यास्ताश्वै भीष्मः शान्तनुनन्दनः।। | 1-109-5a 1-109-5b |
`तासां कामेन संमत्ताः सहिताः काशिकोसलाः। वङ्गाः पुण्ड्राः कलिङ्गाश्च ते जग्मुस्तां पुरीं प्रति।।' | 1-109-6a 1-109-6b |
कीर्त्यमानेषु राज्ञां तु तदा नामसु सर्वशः। एकाकिनं तदा भीष्मं वृद्धं शान्तनुनन्दनम्।। | 1-109-7a 1-109-7b |
सोद्वेगा इव तं दृष्ट्वा कन्याः परमशोभनाः। अपाक्रामन्त ताः सर्वा वृद्ध इत्येव चिन्तया।। | 1-109-8a 1-109-8b |
वृद्धः परमधर्मात्मा वलीपलितधारणः। किकारणमिहायातो निर्लज्जो भरतर्षभः।। | 1-109-9a 1-109-9b |
मिथ्याप्रतिज्ञो लोकेषु किं वदिष्यति भारत। ब्रह्मचारीति भीष्मो हि वृथैव प्रथितो भुवि।। | 1-109-10a 1-109-10b |
इत्येवं प्रबुवन्तस्ते हसन्ति स्म नृपाधमाः। | 1-109-11a |
वैशंपायन उवाच। | 1-109-11x |
क्षत्रियाणां वचः श्रुत्वा भीष्मश्चुक्रोध भारत।। | 1-109-11b |
भीष्मस्तदा स्वयं कन्या वरयामास ताः प्रभुः। उवाच च महीपालान्राजञ्जलदनिःस्वनः।। | 1-109-12a 1-109-12b |
रथमारोप्य ताः कन्या भीष्मः प्रहरतां वरः। आहूय दानं कन्यानां गुणवद्भ्यः स्मृतं बुधैः।। | 1-109-13a 1-109-13b |
अलङ्कृत्य यथाशक्ति प्रदाय च धनान्यपि। प्रयच्छन्त्यपरे कन्यां मिथुनेन गवामपि।। | 1-109-14a 1-109-14b |
वित्तेन कथितेनान्ये बलेनान्येऽनुमान्य च। प्रमत्तामुपयन्त्यन्ये स्वयमन्ये च विन्दते।। | 1-109-15a 1-109-15b |
आर्षं विधिं पुरस्कृत्य दारान्विन्दन्ति चापरे। अष्टमं तमथो वित्त विवाहं कविभिर्वृतम्।। | 1-109-16a 1-109-16b |
स्वयंवरं तु राजन्याः प्रशंसन्त्युपयान्ति च। प्रमथ्य तु हृतामाहुर्ज्यायसीं धर्मवादिनः।। | 1-109-17a 1-109-17b |
ता इमाः पृथिवीपाला जिहीर्षामि बलादितः। ते यतध्वं परं शक्त्या विजयायेतराय वा।। | 1-109-18a 1-109-18b |
स्थितोऽहं पृथिवीपाला युद्धाय कृतनिश्चयः। | 1-109-19a |
वैशंपायन उवाच। | 1-109-19x |
एवमुक्त्वा महीपालान्काशिराजं च वीर्यवान्।। | 1-109-19b |
सर्वाः कन्याः स कौरव्यो रथमारोप्य च स्वकम्। आमन्त्र्य च स तान्प्रायाच्छीघ्रं कन्याः प्रगृह्य ताः।। | 1-109-20a 1-109-20b |
ततस्ते पार्थिवाः सर्वे समुत्पेतुरमर्षिताः। संस्पृशन्तः स्वकान्बाहून्दशन्तो दशनच्छदान्।। | 1-109-21a 1-109-21b |
तेषामाभरणान्याशु त्वरितानां विमुञ्चताम्। आमुञ्चतां च वर्माणि संभ्रमः सुमहानभूत्।। | 1-109-22a 1-109-22b |
ताराणामिव संपातो बभूव जनमेजय। भूषणानां च सर्वेषां कवचानां च सर्वशः।। | 1-109-23a 1-109-23b |
सवर्मभिर्भूषणैश्च प्रकीर्यद्बिरितस्ततः। सक्रोधामर्षजिह्मभ्रूकषायीकृतलोचनाः।। | 1-109-24a 1-109-24b |
सूतोपक्लृप्तान् रुचिरान्सदश्वैरुपकल्पितान्। रथानास्थाय ते वीराः सर्वप्रहरणान्विताः।। | 1-109-25a 1-109-25b |
प्रयान्तमथ कौरव्यमनुसस्रुरुदायुधाः। ततः समभवद्युद्धं तेषां तस्य च भारत। एकस्य च बहूनां च तुमुलं रोमहर्षणम्।। | 1-109-26a 1-109-26b 1-109-26c |
ते त्विषून्दशसाहस्रांस्तस्मिन्युगपदाक्षिपन्। अप्राप्तांश्चैव तानाशु भीष्मः सर्वांस्तथाऽन्तरा।। | 1-109-27a 1-109-27b |
अच्छिनच्छरवर्षेण महता लोमवाहिना। ततस्ते पार्थिवाः सर्वे सर्वतः परिवार्य तम्।। | 1-109-28a 1-109-28b |
ववृषुः शरवर्षेण वर्षेणेवाद्रिमम्बुदाः। स तं बाणमयं वर्षं शरैरावार्य सर्वतः।। | 1-109-29a 1-109-29b |
ततः सर्वान्महीपालान्पर्यविध्यत्त्रिभिस्त्रिभिः। एकैकस्तु ततो भीष्मं राजन्विव्याध पञ्चभिः।। | 1-109-30a 1-109-30b |
स च तान्प्रतिविव्याध द्वाभ्यां द्वाभ्यां पराक्रमन्। तद्युद्धमासीत्तुमुलं घोरं देवासुरोपमम्।। | 1-109-31a 1-109-31b |
पश्यतां लोकवीराणां शरशक्तिसमाकुलम्। स धनूंषि ध्वजाग्राणि वर्माणि च शिरांसि।। | 1-109-32a 1-109-32b |
चिच्छेद समरे भीष्मः शतशोथ सहस्रशः। तस्यातिपुरुषं कर्म लाघवं रथचारिणः।। | 1-109-33a 1-109-33b |
रक्षणं चात्मनः संख्ये शत्रवोऽप्यभ्यपूजयन्। `अक्षतः क्षपयित्वान्यानसङ्ख्येयपराक्रमः।। | 1-109-34a 1-109-34b |
आनिनाय स काश्यस्य सुताः सागरगासुतः।' तान्विनिर्जित्य तु रणे सर्वशस्त्रभृतां वरः।। | 1-109-35a 1-109-35b |
कन्याभिः सहितः प्रायाद्भारतो भारतान्प्रति। ततस्तं पृष्ठतो राजञ्शाल्वराजो महारथः।। | 1-109-36a 1-109-36b |
अभ्यगच्छदमेयात्मा भीष्मं शान्तनवं रणे। वारणं जघने भिन्दन्दन्ताभ्यामपरो यथा।। | 1-109-37a 1-109-37b |
वासितामनुसंप्राप्तो यूथपो बलिनां वरः। स्त्रीकामस्तिष्ठतिष्ठेति भीष्ममाह स पार्थिवः।। | 1-109-38a 1-109-38b |
साल्वराजो महाबाहुरमर्षेण प्रचोदितः। ततः स पुरुषव्याघ्रो भीष्मः परबलार्दनः।। | 1-109-39a 1-109-39b |
तद्वाक्याकुलितः क्रोधाद्विधूमोग्निरिव ज्वलन्। विततेषुधनुष्पाणिर्विकुञ्चितललाटभृत्।। | 1-109-40a 1-109-40b |
क्षत्रधर्मं समास्थाय व्यपेतभयसंभ्रमः। निवर्तयामास रथं साल्वं प्रति महारथः।। | 1-109-41a 1-109-41b |
निवर्तमानं तं दृष्ट्वा राजानः सर्व एव ते। प्रेक्षकाः समपद्यन्त भीष्मसाल्वसमागमे।। | 1-109-42a 1-109-42b |
तौ वृषाविव नर्दन्तौ बलिनौ वासितान्तरे। अन्योन्यमभिवर्तेतां बलविक्रमशालिनौ।। | 1-109-43a 1-109-43b |
ततो भीष्मं शान्तनवं शरैः शतसहस्रशः। साल्वराजो नरश्रेष्ठः समवाकिरदाशुगैः।। | 1-109-44a 1-109-44b |
पूर्वमभ्यर्दितं दृष्ट्वा भीष्मं साल्वेन ते नृपाः। विस्मिताः समपद्यन्त साधुसाध्विति चाब्रुवन्।। | 1-109-45a 1-109-45b |
लाघवं तस्य ते दृष्ट्वा समरे सर्वपार्थिवाः। अपूजयन्त संहृष्टा वाग्भिः साल्वं नराधिपम्।। | 1-109-46a 1-109-46b |
क्षत्रियाणां ततो वाचः श्रुत्वा परपुञ्जयः। क्रुद्धः शान्तनवो भीष्मस्तिष्ठतिष्ठेत्यभाषत।। | 1-109-47a 1-109-47b |
सारथिं चाब्रवीत्क्रुद्धो याहि यत्रैष पार्थिवः। यावदेनं निहन्म्यद्य भुजङ्गमिव पक्षिराट्।। | 1-109-48a 1-109-48b |
ततोऽस्त्रं वारुणं सम्यग्योजयामास कौरवः। तेनाश्वांश्चतुरोऽमृद्गात्साल्वराजस्य भूपते।। | 1-109-49a 1-109-49b |
अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य साल्वराजस्य कौरवः। भीष्मो नृपतिशार्दूल न्यवधीत्तस्य सारथिम्।। | 1-109-50a 1-109-50b |
अस्त्रेण चास्याथैन्द्रेण न्यवधीत्तुरगोत्तमान्। कन्याहेतोर्नरश्रेष्ठ भीष्मः शान्तनवस्तदा।। | 1-109-51a 1-109-51b |
जित्वा विसर्जयामास जीवन्तं नृपसत्तमम्। ततः साल्वः स्वनगरं प्रययौ भरतर्षभ।। | 1-109-52a 1-109-52b |
स्वराज्यमन्वशाच्चैव धर्मेण नृपतिस्तदा। राजानो ये च तत्रासन्स्वयंवरदिदृक्षवः।। | 1-109-53a 1-109-53b |
स्वान्येव तेऽपि राष्ट्राणि जग्मुः परपुरञ्जयाः। एवं विजित्य ताः कन्या भीष्मः प्रहरतां वरः।। | 1-109-54a 1-109-54b |
प्रययौ हास्तिनपुरं यत्र राजा स कौरवः। विचित्रवीर्यो धर्मात्मा प्रशास्ति वसुधामिमाम्।। | 1-109-55a 1-109-55b |
यथा पितास्य कौरव्यः शान्तनुर्नृपसत्तमः। सोऽचिरेणैव कालेन अत्यक्रामन्नराधिप।। | 1-109-56a 1-109-56b |
वनानि सरितश्चैव शैलांश्च विनिधान्द्रुमान्। अक्षतः क्षपयित्वाऽरीन्सङ्ख्येऽसङ्ख्येयविक्रमः।। | 1-109-57a 1-109-57b |
आनयामास काश्यस्य सुताः सागरगासुतः। स्नुषा इव स धर्मात्मा भगिनीरिव चानुजाः।। | 1-109-58a 1-109-58b |
यथा दुहितश्चैव परिगृह्य ययौ कुरून्। आनिन्ये स महाबाहुर्भ्रातुः प्रियचिकीर्षया।। | 1-109-59a 1-109-59b |
ताः सर्वगुणसंपन्ना भ्राता भ्रात्रे यवीयसे। भीष्मो विचित्रवीर्याय प्रददौ विक्रमाहृताः।। | 1-109-60a 1-109-60b |
एवं धर्मेण धर्मज्ञः कृत्वा कर्मातिमानुषम्। भ्रातुर्विचित्रवीर्यस्य विवाहायोपचक्रमे।। | 1-109-61a 1-109-61b |
सत्यवत्या सह मिथः कृत्वा निश्चयमात्मवान्। विवाहं कारयिष्यन्तं भीष्मं काशिपतेः सुता। ज्येष्ठा तासामिदं वाक्यमब्रवीद्धसती तदा।। | 1-109-62a 1-109-62b 1-109-62c |
मया सौभपतिः पूर्वं मनसा हि वृतः पतिः। तेन चास्मि वृता पूर्वमेष कामश्च मे पितुः।। | 1-109-63a 1-109-63b |
मया वरयितव्योऽभूत्साल्वस्तस्मिन्स्वयंवरे। एतद्विज्ञाय धर्मज्ञ धर्मतत्त्वं समाचर।। | 1-109-64a 1-109-64b |
एवमुक्तस्तया भीष्मः कन्यया विप्रसंसदि। चिन्तामभ्यगमद्वीरो युक्तां तस्यैव कर्मणः।। | 1-109-65a 1-109-65b |
`अन्यसक्ता त्वियं कन्या ज्येष्ठा त्वम्बा मया जिता। वाचा दत्ता मनोदत्ता कृतमङ्गलवाचना।। | 1-109-66a 1-109-66b |
निर्दिष्टा तु परस्यैव सा त्याज्या परचिन्तिनी। इत्युक्त्वा चानुमान्यैव भ्रातरं स्ववशानुगम्।।' | 1-109-67a 1-109-67b |
विनिश्चित्य स धर्मज्ञो ब्राह्मणैर्वेदपारगैः। अनुजज्ञे तदा ज्येष्ठामम्बां काशिपतेः सुताम्।। | 1-109-68a 1-109-68b |
अम्बिकाम्बालिके भार्ये प्रादाद्भ्रात्रे यवीयसे। भीष्मो विचित्रवीर्याय विधिदृष्टेन कर्मणा।। | 1-109-69a 1-109-69b |
तयोः पाणी गृहीत्वा तु रूपयौवनदर्पितः। विचित्रवीर्यो धर्मात्मा नाम्बामैच्छत्कथंचन।। | 1-109-70a 1-109-70b |
`अम्बामन्यस्य कीर्त्यन्तीमब्रवीच्चारुदर्शनाम्। | 1-109-71a |
विचित्रवीर्य उवाच। | 1-109-71x |
पापस्य फलमेवैष कामोऽसाधुर्निरर्थकः। परतन्त्रोपभोगो मामार्य नाऽऽयोक्तुमर्हसि।। | 1-109-71b 1-109-71c |
भीष्म उवाच। | 1-109-72x |
प्रातिष्ठच्छान्तनोर्वंशस्तात यस्य त्वमन्वयः। अकामवृत्तो धर्मात्मन्साधु मन्ये मतं तव।। | 1-109-72a 1-109-72b |
इत्युक्त्वाम्बां समालोक्य विधिवद्वाक्यमब्रवीत्। विसृष्टा ह्यसि गच्छ त्वं यथाकाममनिन्दिते।। | 1-109-73a 1-109-73b |
नानियोज्ये समर्थोऽहं नियोक्तुं भ्रातरं प्रियम्। अन्यबावगतां चापि को नारीं वासयेद्गृहे।। | 1-109-74a 1-109-74b |
अतस्त्वां न नियोक्ष्यामि अन्यकामासि गम्यताम्। अहमप्यूर्ध्वरेता वै निवृत्तो दारकर्मणि।। | 1-109-75a 1-109-75b |
न संबन्धस्तदावाभ्यां भविता वै कथंचन। | 1-109-76a |
वैशंपायन उवाच। | 1-109-76x |
इत्युक्ता सा गता तत्र सखीभिः परिवारिता।। | 1-109-76b |
निर्दिष्टा हि शनै राजन्साल्वराजपुरं प्रति। अथाम्बा साल्वंमागम्य साऽब्रवीत्प्रतिपूज्य तं।। | 1-109-77a 1-109-77b |
पुरा निर्दिष्टभावा त्वामागतास्मि वरानन। देवव्रतं समुत्सृज्य सानुजं भरतर्षभम्।। | 1-109-78a 1-109-78b |
प्रतिगृह्णीष्व भद्रं ते विधिवन्मां समुद्यताम्।। | 1-109-79a |
वैशंपायन उवाच। | 1-109-80x |
तयैवमुक्तः साल्वोपि प्रहसन्निदमब्रवीत्। निर्जिताऽसीह भीष्मेण मां विनिर्जित्य राजसु।। | 1-109-80a 1-109-80b |
अन्येन निर्जितां भद्रे विसृष्टां तेन चालयात्। न गृह्णामि वरारोहे तत्र चैव तु गम्यताम्।। | 1-109-81a 1-109-81b |
वैशंपायन उवाच। | 1-109-82x |
इत्युक्ता सा समागम्य कुरुराज्यमनुत्तमम्। अम्बाब्रवीत्ततो भीष्मं त्वयाऽहं सहसा हृता।। | 1-109-82a 1-109-82b |
क्षत्रधर्ममवेक्षस्व त्वं भर्ता मम धर्मतः। यां यः स्वयंवरे कन्यां निर्जयेच्छौर्यसंपदा।। | 1-109-83a 1-109-83b |
राज्ञः सर्वान्विनिर्जित्य स तामुद्वाहयेद्ध्रुवम्। अतस्त्वमेव भर्ता मे त्वयाऽहं निर्जिता यतः।। | 1-109-84a 1-109-84b |
तस्माद्वहस्व मां भीष्म निर्जितां संसदि त्वया। ऊर्ध्वरेता ह्यहमिति प्रत्युवाच पुनःपुनः।। | 1-109-85a 1-109-85b |
भीष्मं सा चाब्रवीदम्बा यथाजैषीस्तथा कुरु। एवमन्वगमद्भीष्मं षट्समाः पुष्करेक्षणा।। | 1-109-86a 1-109-86b |
ऊर्ध्वरेतास्त्वहं भद्रे विवाहविमुखोऽभवम्। तमेव साल्वं गच्छ त्वं यः पुरा मनसा वृतः।। | 1-109-87a 1-109-87b |
अन्यसक्तं किमर्थं त्वमात्मानमवदः पुरा। अन्यसक्तां वधूं कन्यां वासयेत्स्वगृहे न हि।। | 1-109-88a 1-109-88b |
नाहमुद्वाहयिष्ये त्वां मम भ्रात्रे यवीयसे। विचित्रवीर्याय शुभे यथेष्टं गम्यतामिति।। | 1-109-89a 1-109-89b |
भूयः साल्वं समभ्येत्य राजन्गृह्णीष्व मामिति। नाहं गृह्णाम्यन्यजितामिति साल्वनिराकृता।। | 1-109-90a 1-109-90b |
ऊर्ध्वरेतास्त्वहमिति भीष्मेण च निराकृता। अम्बा भीष्मं पुनः साल्वं भीष्मं साल्वं पुनः पुनः।। | 1-109-91a 1-109-91b |
गमनागमनेनैवमनैषीत्षट् समा नृप। अश्रुभिर्भूमिमुक्षन्ती शोचन्ती सा मनस्विनी।। | 1-109-92a 1-109-92b |
पीनोन्नतकुचद्वन्द्वा विशालजघनेक्षणा। श्रोणीभरालसगमा राकाचन्द्रनिभानना।। | 1-109-93a 1-109-93b |
वर्षत्कादम्बिनीमूर्ध्नि स्फुरन्ती चञ्चलेव सा। सा ततो द्वादश समा बाहुदामभितो नदीम्। पार्श्वे हिमवतो रम्ये तपो घोरं समाददे।। | 1-109-94a 1-109-94b 1-109-94c |
संक्षिप्तकरणा तत्र तप आस्थाय सुव्रता। पादाङ्गुष्ठेन साऽतिष्ठदकम्पन्त ततः सुराः।। | 1-109-95a 1-109-95b |
तस्यास्तत्तु तपो दृष्ट्वा सुराणां क्षोभकारकम्। विस्मितश्चैव हृष्टश्च तस्यानुग्रहबुद्धिमान्।। | 1-109-96a 1-109-96b |
अनन्तसेनो भगवान्कुमारो वरदः प्रभुः। मानयन्राजपुत्रीं तां ददौ तस्यै शुभां स्रजम्।। | 1-109-97a 1-109-97b |
एषा पुष्करिणी दिव्या यथावत्समुपस्थिता। अम्बे त्वच्छोकशमनी माला भुवि भविष्यति।। | 1-109-98a 1-109-98b |
एतां चैव मया दत्तां मालां यो धारयिष्यति। सोऽस्य भीष्मस्य निधने कारणं वै भविष्यति।। | 1-109-99a 1-109-99b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि नवाधिकशततमोऽध्यायः।। 109 ।। |
1-109-13 आहूयेति ब्राह्मः।। 1-109-14 मिथुनेन गृहीतेनेत्यार्षः।। 1-109-15 वित्तेनेत्यासुरः। बलेनेति राक्षसः। अनुमान्येति गान्धर्वः। प्रमत्तामिति पैशाचः। स्वयमन्ये इति प्राजापत्यः।। 1-109-16 आर्षं विधिं यज्ञम्। तेन दैव उक्तः। अष्टमं राक्षसं विवाहम्।। 1-109-17 प्रशंसति। स्वयंवरमिति।। 1-109-24 प्रकीर्यद्भिर्भऊषणैरुपलक्षिता अनुसस्रुरिति तृतीयेनान्वयः।। 1-109-43 वृषौ रेतःसेककामौ गजौ गोवृषावेव वा तत्साहचर्याद्वासिता पुष्पिणी गौस्तदन्तरे वन्निमित्तम्।। 1-109-52 जीवन्तं प्राणमात्रावशेषितम्।। 1-109-58 काश्यस्य काशिराजस्य। अनुजाः कनिष्ठाः।। 1-109-71 अम्बां दृष्ट्वेति शेषः। अब्रवीत् भीष्ममिति शेषः।। नवाधिकशततमः।। 109 ।।
आदिपर्व-108 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-110 |