महाभारतम्-01-आदिपर्व-038
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एलापत्रभाषणम्।। 1 ।। देवब्रह्मसंवादमुखेनास्तीकोत्पत्तिकथनम्।। 2 ।।
सौतिरुवाच। | 1-38-1x |
सर्पाणां तु वचः श्रुत्वा सर्वेषामिति चेति च। वासुकेश्च वचः श्रुत्वा एलापत्रोऽब्रवीदिदम्।। | 1-38-1a 1-38-1b |
`प्रागेव दर्शिता बुद्धिर्मयैषा भुजगोत्तमाः। हेयेति यदि वो बुद्धिस्तवापि च तथा प्रभो।। | 1-38-2a 1-38-2b |
अस्तु कामं मभाद्यापि बुद्धिः स्मरणमागता। तां शृणुध्वं प्रवक्ष्यामि याथातथ्येन पन्नगाः।।' | 1-38-3a 1-38-3b |
न स यज्ञो न भविता न स राजा तथाविधः। जनमेजयः पाण्डवेयो यतोऽस्माकं महद्भयम्।। | 1-38-4a 1-38-4b |
दैवेनोपहतो राजन्यो भवेदिह पूरुषः। स दैवमेवाश्रयेत नान्यत्तत्र परायणम्।। | 1-38-5a 1-38-5b |
तदिदं चैवमस्माकं भयं पन्नगसत्तमाः। दैवमेवाश्रयामोऽत्र शृणुध्वं च वचो मम।। | 1-38-6a 1-38-6b |
अहं शापे समुत्सृष्टे समश्रौषं वचस्तदा। मातुरुत्सङ्गमारूढो भयात्पन्नगसत्तमाः। देवानां पन्नगश्रेष्ठास्तीक्ष्णास्तीक्ष्ण इति प्रभो।। | 1-38-7a 1-38-7b 1-38-7c |
`शापदुःखाग्नितप्तानां पन्नगानामनामयम्। कृपया परयाऽऽविष्टाः प्रार्थयन्तो दिवौकसः।।' | 1-38-8a 1-38-8b |
देवा ऊचुः। | 1-38-9x |
का हि लब्ध्वा प्रियान्पुत्राञ्शपेदेवं पितामह। ऋते कद्रूं तीक्ष्णरूपां देवदेव तवाग्रतः।। | 1-38-9a 1-38-9b |
तथेति च वचस्तस्यास्त्वयाप्युक्तं पितामह। इच्छाम एतद्विज्ञातुं कारणं यन्न वारिता।। | 1-38-10a 1-38-10b |
ब्रह्मोवाच। | 1-38-11x |
बहवः पन्नगास्तीक्ष्णा घोररूपा विषोल्बणाः। प्रजानां हितकामोऽहं न च वारितवांस्तदा।। | 1-38-11a 1-38-11b |
ये दन्दशूकाः क्षुद्राश्च पापाचारा विषोल्बणाः। तेषां विनाशो भविता न तु ये धर्मचारिणः।। | 1-38-12a 1-38-12b |
यन्निमित्तं च भविता मोक्षस्तेषां महाभयात्। पन्नगानां निबोधध्वं तस्मिन्काले समागते।। | 1-38-13a 1-38-13b |
यायावरकुले धीमान्भविष्यति महानृषिः। जरत्कारुरिति ख्यातस्तपस्वी नियतेन्द्रियः।। | 1-38-14a 1-38-14b |
तस्य पुत्रो जरत्कारोर्भविष्यति तपोधनः। आस्तीको नाम यज्ञं स प्रतिषेत्स्यति तं तदा। तत्र मोक्ष्यन्ति भुजगा ये भविष्यन्ति धार्मिकाः।। | 1-38-15a 1-38-15b 1-38-15c |
देवा ऊचुः। | 1-38-16x |
स मुनिप्रवरो ब्रह्मञ्जरत्कारुर्महातपाः। कस्यां पुत्रं महात्मानं जनयिष्यति वीर्यवान्।। | 1-38-16a 1-38-16b |
ब्रह्मोवाच। | 1-38-17x |
`वासुकेर्भगिनी कन्या समुत्पन्ना सुशोभना। तस्मै दास्यति तां कन्यां वासुकिर्भुजगोत्तमः।। | 1-38-17a 1-38-17b |
तस्यां जनयिता पुत्रं वेदवेदाङ्गपारगम्।' सनामायां सनामा स कन्यायां द्विजसत्तमः।। | 1-38-18a 1-38-18b |
एलापत्र उवाच। | 1-38-19x |
एवमस्त्विति तं देवाः पितामहमथाब्रुवन्। उत्क्वैवं वचनं देवान्विरिञ्चिस्त्रिदिवं ययौ।। | 1-38-19a 1-38-19b |
सोऽहमेवं प्रपश्यामि वासुके भगिनी तव। जरत्कारुरिति ख्याता तां तस्मै प्रतिपादय।। | 1-38-20a 1-38-20b |
भैक्षवद्भिक्षमाणाय नागानां भयशान्तये। ऋषये सुव्रतायैनामेष मोक्षः श्रुतो मया।। | 1-38-21a 1-38-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि अष्टत्रिंशोऽध्यायः।। 38 ।। |
1-38-1 इतिचेतिचेति तत्तद्वचनाभिनयप्रदर्शनम्।। 1-38-4 न भवितेति न भवितैवेत्यर्थः। न तथाविधः यस्य राष्ट्रमृत्विजः स्वरूप वा द्रष्टुं शक्यं तादृशो न भवति मन्त्रवीर्यसंपन्नत्वात्।। 1-38-7 तीक्ष्णास्तीक्ष्णाः अत्यन्तं तीक्ष्णाः स्त्रिय इति शेषः।। 1-38-12 दन्दशूकाः दंशनशीलाः। क्षुद्राः अल्पेपि निमित्ते प्राणग्राहकाः।। अष्टत्रिंशोऽध्यायः।। 38 ।।
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